खण्ड
क
(अपठित बोध )
1. निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए : 2+2+2=6
भिखारी
की भाॅंति गिड़गिड़ाना प्रेम की भाषा नहीं है। यहाँ तक की मुक्ति के लिए भगवान
की उपासना करना भी अधम उपासना में गिना जाता है। प्रेम कोई पुरस्कार नहीं चाहता ।
प्रेम सर्वथा प्रेम के लिए ही होता है । भक्त इसलिए प्रेम करता है कि बिना किए वह
रह ही नहीं सकता । जब तुम किसी मनोहर प्राकृतिक दृश्य को देखकर उस पर मोहित हो
जाते हो तो तुम किसी फल की याचना नहीं करते और न वह दृश्य ही तुमसे कुछ माँगता है।
फिर भी उस दृश्य का दर्शन तुम्हारे मन को आनंद से भर देता है ।
(क) प्रेम क्या चाहता है ?
उत्तर:
प्रेम सर्वथा प्रेम चाहता है।
(ख) कैसी उपासना अधम मानी जाती है ?
उत्तर:
मुक्ति के लिए भगवान की उपासना करना अधम मानी जाती है।
(ग) उपर्युक्त गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक दें।
उत्तर:
प्रेम
अथवा
निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
"जाति
। हार री जाति ।
कर्ण
का हृदय क्षोभ से डोला ।
कुपित
सूर्य की ओर देख वह वीर क्रोध से बोला ।
जाति-जाति
वे रटते हैं, जिनकी पूँजी केवल पाखण्ड ।
मैं
क्या जानूँ जाति, जाति हैं मेरे ये भुजदण्ड ।"
(क) किसका हृदय क्षोभ से भर आया ?
उत्तर:
कर्ण का हृदय क्षोभ से भर आया।
(ख) जाति-जाति की रट कौन लगाते हैं ?
उत्तर:
पाखंडी लोग जाति- जाति की रट लगाते हैं।
(ग) उपर्युक्त पद्यांश का उपयुक्त शीर्षक लिखें ।
उत्तर:
रश्मिरथी।
खण्ड- ख ( अभिव्यक्ति और माध्यम तथा रचनात्मक लेखन )
2. निम्नलिखित में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर दीजिए : 5+5=10
(क) 'कम्प्यूटर साक्षरता का महत्व' अथवा 'मेरे जीवन का लक्ष्य' विषय
पर एक निबंध लिखिए ।
उत्तर:
'कम्प्यूटर
साक्षरता का महत्व'
वर्तमान
युग-कंप्यूटर युग : वर्तमान युग कंप्युटर युग है । यदि भारतवर्ष पर नजर दौड़ाकर देखें
तो हम पाएँगे कि आज जीवन के लगभग सभी क्षेत्रों में कंप्यूटर का प्रवेश हो गया है।
बैंक, रेलवे स्टेशन, हवाई अड्डे, डाकखाने, बड़े-बड़े उद्योग, कारखाने, व्यवसाय, हिसाब-किताब,
रुपये गिनने की मशीनें तक कंप्यूटरीकृत हो गई हैं। अब भी यह कंप्यूटर का प्रारंभिक
प्रयोग है। आने वाला समय इसके विस्तृत फैलाव का संकेत दे रहा है।
कंप्यूटर
की उपयोगिता : आज मनुष्य-जीवन जटिल हो गया है। सांसारिक गतिविधियों, परिवहन और संचार-उपकरणों
आदि का अत्यधिक विस्तार हो गया है। आज व्यक्ति के संपर्क बढ़ रहे हैं, व्यापार बढ़
रहे हैं. गतिविधियाँ बढ़ रही हैं, आकांक्षाएँ बढ़ रही हैं, साधन बढ़ रहे हैं। परिणामस्वरूप
सब जगह भागदौड़ और आपाधापी चल रही है।
स्वचालित
गणना-प्रणाली : इस 'पागल गति' को सुव्यवस्था देने की समस्या आज की प्रमुख समस्या है।
कंप्यूटर एक ऐसी स्वचालित प्रणाली है, जो कैसी भी अव्यवस्था को व्यवस्था में बदल सकती
है । हड़बड़ी में होने वाली मानवीय भूलों के लिए कंप्यूटर रामबाण औषधि है। क्रिकेट
के मैदान में अंपायर की निर्णायक भूमिका हो, या लाखों-करोड़ों-अरबों की लंबी-लंबी गणनाएँ,
कंप्यूटर पलक झपकते ही आपकी समस्या हल कर सकता है । पहले इन कामों को करने वाले कर्मचारी
हड़बड़ाकर काम करते थे । परिणामस्वरूप काम कम, तनाव अधिक होता था । अब कंप्यूटर की
सहायता से काफी सुविधा हो गई है।
कार्यालय
तथा इंटरनेट में सहायक : कंप्यूटर ने फाइलों की आवश्यकता कम कर दी है। कार्यालय की
सारी गतिविधियों चिप में बंद हो जाती हैं। इसलिए फाइलों के स्टोरों की जरूरत अब नहीं
रही । अब समाचार-पत्र भी इंटरनेट के माध्यम से पढ़ने की व्यवस्था हो गई है। विश्व के
किसी कोने में छपी पुस्तक, फिल्म, घटना की जानकारी इंटरनेट पर ही उपलब्ध है । एक समय
था जब कहते थे कि विज्ञान ने संसार को कुटुंब बना दिया है। कंप्यूटर ने तो मानों उस
कुटुंब को आपके कमरे में उपलब्ध करा दिया है।
नवीनतम
उपकरणों में उपयोगिता : आज टेलीफोन, रेल, फ्रिज, वाशिंग मशीन आदि उपकरणों के बिना नागरिक
जीवन जीना कठिन हो गया है। इन सबके निर्माण या संचालन में कंप्यूटर का योगदान महत्त्वपूर्ण
है । रक्षा-उपकरणों, हजारों मील की दूरी पर सटीक निशाना बाँधने, सूक्ष्म-से-सूक्ष्म
वस्तुओं को खोजने में कंप्यूटर का अपना महत्त्व है । आज कंप्यूटर ने मानव-जीवन को सुविधा,
सरलता, सुव्यवस्था और सटीकता प्रदान की है। अत: इसका महत्त्व बहुत अधिक है।
कम्प्यूटर
के प्रचलन के साथ व्यापक बेरोजगारी की सम्भावना व्यक्त की गयी थी। लेकिन यह आशंका निर्मूल
साबित हुई है । कम्प्यूटर ने असीमित संभावनाओं के द्वारा खोल दिये हैं । किन्तु इसके
प्रयोग में सतर्क, सचेत और सावधान रहने की आवश्यकता है । यह एक ऐसा साधन है जिसका राष्ट्र
की प्रगति में अमूल्य योगदान है । लेकिन, एक बात स्मरणीय है कि कम्प्यूटर साधन भर है
साध्य नहीं । मानव के ऊपर इसे महत्व देना अनुचित होगा।
'मेरे
जीवन का लक्ष्य'
मनुष्य
का महत्वाकांक्षी होना एक स्वाभाविक गुण है । प्रत्येक व्यक्ति जीवन में कुछ न कुछ
विशेष प्राप्त करना चाहता है । कुछ बड़े होकर डॉक्टर या इंजीनियर बनना चाहते हैं तो
कुछ व्यापार में अपना नाम कमाना चाहते हैं ।
इसी
प्रकार कुछ समाज सेवा करना चाहते हैं तो कुछ भक्ति के मार्ग पर चलकर ईश्वर को पाने
की चेष्टा करते है । सभी व्यक्तियों की इच्छाएँ अलग-अलग होती हैं परंतु इनमें से बहुत
कम लोग ही अपनी इच्छा को साकार रूप में देख पाते हैं । थोड़े से भाग्यशाली अपनी इच्छा
को मूर्त रूप दे पाते हैं । ऐसे व्यक्तियों में सामान्यता दृढ़ इच्छा-शक्ति होती है
और वे एक निश्चित लक्ष्य की ओर सदैव अग्रसर रहते हैं ।
मनुष्य
के जीवन में एक निश्चित लक्ष्य का होना अनिवार्य है । लक्ष्यविहीन मनुष्य क्रिकेट के
खेल में उस गेंदबाज की तरह होता है जो गेंद तो फेंकता है परंतु सामने विकेट नहीं होते
। इसी भाँति हम परिकल्पना कर सकते हैं कि फुटबाल के खेल में जहाँ खिलाड़ी खेल रहे हों
और वहाँ से गोल पोस्ट हटा दिया जाए तो ऐसी स्थिति में खिलाड़ी किस स्थिति में होंगे
इस बात का अनुमान स्वत: ही लगाया जा सकता है । अत: जीवन में एक निश्चित लक्ष्य एवं
निश्चित दिशा का होना अति आवश्यक है ।
मेरे
जीवन का लक्ष्य है कि मैं बड़ा होकर चिकित्सक बनूँ और अपने चिकित्सा ज्ञान से उन सभी
लोगों को लाभान्वित करूँ जो धन के अभाव में उचित चिकित्सा प्राप्त नहीं कर पाते हैं
। मैं इस बात को अच्छी तरह समझता हूँ कि एक अच्छा चिकित्सक बनना आसान नहीं है ।
अच्छे
विद्यालय का चयन, उसमें प्रवेश पाना तथा पढ़ाई में होने वाला खर्च आदि अनेक रुकावटें
हैं । परंतु मुझे पूरा विश्वास है कि मैं इन बाधाओं को पार कर सकूँगा । इसके लिए मैंने
बहुत कड़ी मेहनत का संकल्प लिया है । उचित मार्गदर्शन के लिए मैं अपने अध्यापक व अनुभवी
छात्रों का सहयोग ले रहा हूँ ।
चिकित्सक
बनने के बाद मैं भारत के उन गाँवों में जाना चाहता हूँ जहाँ पर अच्छे चिकित्सक का अभाव
है अथवा जहाँ पर चिकित्सा केंद्र की व्यवस्था नहीं है । में उन सभी लोगों का इलाज नि:शुल्क
करना चाहता हूँ जो धन के अभाव में अपना इलाज नहीं करा पाते हैं । इसके अतिरिक्त मैं
उनमें अच्छे स्वास्थ्य के बारे में जागरूकता लाना चाहता हूँ ।
वे
किस प्रकार जीवन-यापन करें, सफाई, स्वास्थ्य एवं संतुलित भोजन के महत्व को समझें, इसके
लिए मैं व्यापक रूप से अपना योगदान देना चाहता हूँ । आजकल कुछ परंपरागत रोगों का इलाज
तो आसानी से संभव है लेकिन उचित जानकारी का अभाव, रोग तीव्र होने पर ही इलाज के लिए
तत्पर होना जैसी समस्याएँ अशिक्षितों एवं ग्रामीणों की प्रमुख समस्याएँ हैं ।
इस
दिशा में मैं कुछ सार्थक कदम जरूर उठाना चाहूँगा । मेरे लक्ष्य में देश और समाज की
सेवा का भाव निहित है । सभी लोगों, विशेषकर निर्धन लोगों को चिकित्सा तथा अच्छे स्वास्थ्य
संबंधी जानकारी देकर मैं निश्चय ही आत्म-संतुष्टि प्राप्त करूँगा ।
समाचार-पत्रों
व दूरदर्शन अथवा अन्य माध्यमों से जब मुझे इस बात की जानकारी प्राप्त होती है कि देश
के गाँवों में प्रतिवर्ष हजारों लोग कुपोषण के कारण तथा उचित चिकित्सा के अभाव में
मृत्यु के शिकार हो जाते हैं तो मुझे वास्तव में बहुत दु:ख होता है ।
यह
निश्चय ही देश के लिए दुर्भाग्यपूर्ण बात है। यह मेरे लिए सौभाग्य की बात होगी कि मैं
अपने देश और देशवासियों के लिए अपना योगदान कर सकूँगा । दूसरी ओर एड्स जैसी कई बीमारियाँ
ऐसी हैं जिनके बारे में समाज को जागरूक बनाना अत्यावश्यक है ।
मुझे
विश्वास है कि मेरे इस जीवन के लक्ष्य में गुरुजनों, सहपाठियों व माता-पिता सभी का
सहयोग प्राप्त होगा । ईश्वर मेरे इस नेक कार्य व मेरे लक्ष्य प्राप्ति के मार्ग में
मेरी सहायता करेंगे इसका मुझे पूर्ण विश्वास है । मैं खुद भी अपने लक्ष्य की प्राप्ति
में कोई कसर नहीं छोड़ूँगा ।
(ख) विभिन्न कार्यालयों में बढ़ते भ्रष्टाचार की ओर मुख्यमंत्री का
ध्यान आकृष्ट करते हुए दैनिक समाचार पत्र के सम्पादक को पत्र लिखें ।
उत्तर:
सेवा में
संपादन,प्रभात
खबर, रांची
विषय:
बढ़ते भ्रष्टाचार की ओर मुख्यमंत्री का ध्यान आकृष्ट करने हेतु।
महोदय,
मैं आपके माध्यम से मुख्यमंत्री जी का ध्यान
आकृष्ट करना चाहता हूं कि आज हमारे प्रदेश में भ्रष्टाचार सारी सीमाएं लांघ रहा है।
भ्रष्टाचार राज्य को घुन की तरह खाए जा रहा है। राज्य चरित्र में कमी होने के कारण
भ्रष्टाचार सब को निगलने को तैयार खड़ा है। राज्य में हरेक आदमी की दौड़ लगी हुई है–धन
पाने की। अनैतिक ढंग से लोग अधिक से अधिक धन इकट्ठा कर रहे हैं।
भ्रष्टाचार
जैसे पाप को रोकने के लिए कुछ भी करना चाहिए। कड़ा से कड़ा दण्ड भी देना चाहिए – यहां
तक कि मृत्यु दण्ड भी। भ्रष्टाचारी को समाज में कोई जगह नहीं
मिलनी चाहिए। चौराहे में खड़े करके उसे कोड़े लगाए जाने चाहिएं।
भ्रष्टाचार
से पीड़ित राज्य कभी सुख नहीं पा सकता। इसलिए राज्य की पुलिस को भी इस दिशा में अधिक
काम करना चाहिए। हालांकि पुलिस ने इस दिशा में कई सराहनीय कार्य किए हैं, कई स्कैंडलों
का पता लगाया है लेकिन अभी भी इस संबंध में बहुत से आवश्यक कार्य करने जरुरी है। सरकार
को इस संबंध में गंभीरता और कठोरता से निपटना चाहिए ताकि देश अनैतिक और भ्रष्टाचारी
समाज द्रोहियों से बच सके और जनता को न्याय मिल सके।
अतः
आपसे विनम्र निवेदन है कि आप अपने अखबार में हमारे राज्य के बढ़ते भ्रष्टाचार की खबर
को प्रमुखता से छापे जिससे मुख्यमंत्री जी की नजर इस पर पड़े और इसमें में कुछ सुधार
हो। इसके लिए मैं सदा आपका आभारी बना रहूंगा
सधन्यवाद
दिनांक:
18.06.2022
भवदीय
क्षेत्र निवासी
आदर्श रोड़, रांची।
(ग) अपने विद्यालय के प्राचार्य को वाचनालय के लिए हिंदी और अंग्रेजी
के एक-एक दैनिक समाचार पत्र मँगवाने के लिए आवेदनपत्र लिखिए ।
उत्तर:
सेवा में
प्रधानाचार्य
महोदय
+2
जिला स्कूल रांची
विषय-हिंदी
और अंग्रेजी के एक-एक दैनिक समाचार पत्र मँगवाने के संबंध में।
महोदय,
सविनय
निवेदन यह है कि मैं इस विद्यालय की ग्यारहवीं कक्षा का छात्र हूँ। इस विद्यालय का
पुस्तकालय अत्यंत समृद्ध है। यहाँ बहुत सारी पुस्तकें हैं, पर इनमें से अधिकांश कहानियों
की पुस्तकें है। देश दुनिया में रोज क्या हो रहा है इससे हम सभी अनजान बने हुए हैं।
और हमारी वाक्पटुता भी कमजोर हो रही है।
अतः
आपसे प्रार्थना है कि विद्यालय के पुस्तकालय और वाचनालय के लिए हिंदी और अंग्रेजी के
एक-एक दैनिक समाचार पत्र मँगवाकर कृतार्थ करें ताकि हम छात्र भी इनसे लाभान्वित हो
सकें।
सधन्यवाद
आपका
आज्ञाकारी शिष्य
विनय
कुमार
ग्यारहवीं-बी,
अनु. - 10
(घ) समाचार लेखन के छह ककार कौन-कौन हैं ?
उत्तर:
समाचार लिखते समय पत्रकार मुख्यतः छह ककारों का उत्तर देने का प्रयत्न करता है।
ये
छह ककार हैं-'क्या हुआ', 'किसके साथ हुआ', 'कहाँ हुआ', 'कब हुआ', 'कैसे हुआ' और 'क्यों
हुआ' ?
इस-
क्या, किसके (कौन), कहाँ, कब, क्यों और कैसे को छः ककरों के रूप में जाना जाता है।
किसी समाचार या घटना की रिपोंटिंग करते समय इन छह ककारों पर ध्यान देना आवश्यक होता
है।
खण्ड ग (पाठ्यपुस्तक )
3. निम्नलिखित में से किसी एक की सप्रसंग व्याख्या कीजिए
(क) बाँध लेंगे क्या तुझे यह मोम के बंधन सजीले ?
पथ की बाधा बनेंगे तितलियों
के पर रंगीले ?
उत्तर:
संदर्भ:- प्रस्तुत छन्द ‘चिर सजग आँखे आज कैसा व्यस्त बाना’ शीर्षक कविता से लिया गया
है। इसकी रचयिता श्रीमति महादेवी वर्मा है।
प्रसंग:-
कवियत्रि मानव को सचेत करते हुए कह रही है। कि हे संसार के पथिक! तेरी सदैव सजग रहने
वाली आँखे आज अलसाई हुई सी क्यों हो रही है, तुझे तो अभी बहुत दूर तक जाना है।
व्याख्या:-
कवियत्रि महादेवी वर्मा कहती है कि मानव! क्या ये मोन के गीले बंधन तुझे अपने जाल में
बाँध लेंगे? क्या रंग-विरंगी तितलियों के पंख तुम्हारे मार्ग की रुकावट बनेंगे? क्या
भौंरो की मधुर गुनगुनाहट संसार के दुखों को भुला देगी या ओस से गीले फूल की पंखुड़ियां
तुझे डूबो देगी? तु व्यर्थ में ही अपनी परछाई को अपना जेलखाना बना रहा है। इन निराशा
की भावनाओं को छोर तेरा जो लक्ष्य है उसे पाने के लिए तू सतत् प्रयत्न कर तुझे अभी
बहुत दूर तक जाना है।
(ख) मन होता है फिर सो जाऊँ,
गहरी निद्रा में खो जाऊं,
जब तक रात रहे धरती पर,
चेतन से फिर जड़ हो जाऊँ
!
उत्तर:
भावार्थ - प्रस्तुत पंक्तियाँ 'नींद उचट जाती है' कविता से उद्धृत हैं, जो कवि 'नरेन्द्र
शर्मा' जी के द्वारा रचित है। इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कहते हैं कि समाज में
घोर अँधेरा देख मन करता है की फिर से गहरी नींद में सो जाऊँ जब तक कि समाज में अँधेरा
रहेगा जागृति नही आएगी तब तक मैं स्थिर रहूँ, जब तक धरती में रात है तब तक विराम रहूँ,
यह सोचते-सोचते कवि को नींद नही आती है और बेचैन होकर करवट बदलते रहते हैं रात भर ।
4. निम्नलिखित में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर दीजिए: 3+3=6
(क) 'जाग तुझको दूर जाना' कविता में कवयित्री महादेवी वर्मा मानव को
किन-किन विपरीत स्थितियों में आगे बढ़ने के लिए उत्साहित कर रही हैं ?
उत्तर:
जाग तुझको दूर जाना' कविता में कवयित्री मानव को निम्नलिखित विपरीत स्थितियों में आगे
बढ़ने के लिए उत्साहित कर रही है-
(क)
वे कह रही हैं कि हिमालय के हृदय में कंपन हो रहा है। इससे भूकंप की स्थिति बन सकती
है लेकिन तुझे बढ़ना है। इस कंपन से तुझे डरना नहीं है ।
(ख)
प्रलय की स्थिति बन गई है। ऐसी स्थिति में मनुष्य घबरा जाता है, तुझे निरंतर बढ़ना
है।
(ग)
चारों तरफ घना अंधेरा छाया हुआ है। तुझे इस स्थिति में कुछ दिखाई न दे फिर भी तुझे
बढ़ना है।
(ख) 'पत्नी की आँखें आँखें नहीं हाथ हैं जो मुझे थामे हुए हैं' से कवि
का क्या अभिप्राय है ? 'घर में वापसी' कविता के आधार पर लिखिए ।
उत्तर:
पत्नी की आँखें से उसे हिम्मत मिलती है। वह हर परिस्थिति में उसके साथ रहती हैं। वह
अपनी आँखों के माध्यम से उसके आत्मसम्मान को बनाए रखती है। विषम परिस्थिति में उसकी
आँखें उसे सही दिशा बताती हैं इसलिए वे आँखें नहीं हाथ हैं। पत्नी की आँखों में उसे
दिलासा, हिम्मत और प्रेम मिलता है। ये उसे लड़ने की हिम्मत देते हैं ।
(ग) बादलों का वर्णन करते हुए कवि नागार्जुन को कालिदास की याद क्यों
आती है ?
उत्तर:
प्रस्तुत प्रश्न हमारी पाठ्यपुस्तक अंतरा-1 मे नागार्जुन द्वारा रचित
'बादल को घिरते देखा है' से लिया गया है। इसमें बादल को देखकर कवि
को कालिदास की याद आती है क्योंकि कालिदास ने अपनी विरह रचना' मेघदूत' मे धनकुबेर,
यक्ष, तथा उनका नगर अलकापुरी का वर्णन किया है। जिसमे यक्ष को एक वर्ष के तड़ीपार का
दण्ड मिलता है तो यक्ष मेघ के माध्यम से अपनी प्रेमिका तक संदेश पहुंचाते है। लेकिन
कवि नागार्जुन को कहीं भी वह धनकुबेर, वह नगर दिखाई नहीं पड़ता है और ऐसा लगता है कि
यक्ष ने जिस बादलों के माध्यम से अपनी प्रिया तक संदेश भेजा था वह बादल भी इधर ही पर्वतों
में बरस रहा है। इसलिए बादल को देखकर नागार्जुन को कालिदास की याद आती है।
5. निम्नलिखित में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर दीजिए : 3+3=6
(क) आदर्श परिवार के बारे में ज्योतिबा फुले के विचार बताइए ।
उत्तर:
परिवार को धार्मिक नजरिये से नहीं देखा जाना चाहिए। केवल धर्म के आधार पर किसी परिवार
के नींव नहीं पड़ सकती। परिवार में विद्यमान लोगों में आपसी प्रेम, एकता, आपसी समझ,
समन्वय की भावना, परिस्थितियों में दृढ़ता का भाव इत्यादि होना आवश्यक है। यदि किसी
परिवार के मध्य ये नहीं हैं, तो वह आदर्श परिवार नहीं कहला सकता है।
(ख) मानो के दिलो-दिमाग पर ईंटों का लाल रंग क्यों छा गया था ?
उत्तर:
मानो तथा सुकिया मज़दूर थे। वे ठेकेदार द्वारा दी गई झुगियों में रहती थे। मानो के
मन में अपना घर बनाने का सपना जन्म लेने लगा था। वह अपने लिए एक पक्का घर चाहती थी।
अपने घर में वह अपनी गृहस्थी को आगे बढ़ाना चाहती थी तथा अपने बच्चों के लिए छत चाहती
थी। यही ईंटों के घर का ख्याल उसे बार- बार परेशान कर रहा था।
(ग) विलायत में गाड़ी के कोचवान भी अखबार पढ़ते हैं। इस कथन के द्वारा
लेखक क्या कहना चाहता है ?
उत्तर:
लेखक कहता है कि यदि भारतवासियों से कार्य करने के लिए कहा जाए तो वे कहते हैं कि हमको
पेट के धन्धे के मारे छुट्टी नहीं रहती है, हम उन्नति क्या करें । तुम्हारा पेट भरा
है, तुमको दूर की सूझती है । लेकिन भारतवासियों को यह जानना चाहिए कि विश्व के किसी
भी देश में सभी के पेट भरे हुए नहीं होते । पेट उन्हीं के भरे होते हैं, जो कर्म करते
हैं । विदेशी लोग अपने खेतों को पैदावार के लिए जोतते और बोते समय भी यह सोचते रहते
हैं कि वे ऐसा क्या नया करें, जिससे इसी खेत में पिछली फसल की तुलना में दुगुनी फसल
उत्पन्न हो । इसी सन्दर्भ में लेखक विदेशी कोचवानों का भी उद्धरण देते हुए कहता है
कि विदेशों में गाड़ी के कोचवान भी खाली समय में अखबार पढ़ते हैं अर्थात् अपने समय
का सार्थक उपयोग करते हैं, जबकि भारतवासी अपने खाली समय को आलस्य, अकर्मण्यता और बेवजह
की बकवास में बिता देते हैं । विदेशी लोग अपने खाली समय में भी ऐसी बात करते हैं जो
उनके देश से सम्बन्धित होती है । वे अपने क्षणमात्र समय को भी व्यर्थ नहीं गँवाना चाहते
।
6. ओमप्रकाश वाल्मीकि अथवा भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की किन्हीं दो रचनाओं
के नाम लिखें । 2
उत्तर:
ओमप्रकाश वाल्मीकि की रचना: सलाम और जूठन
भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की रचना: अंधेरा नगरी
और राजा हरिश्चंद्र
7. एक दिन सिनेमा का इश्तिहार देखकर मकबूल पर क्या प्रतिक्रिया हुई
?
उत्तर:
एक दिन दुकान के सामने से फ़िल्मी इश्तिहार का ताँगा गुजरा। मकबूल का जी चाहा कि उसकी
ऑयल पेंटिंग बनाई जाए। आज तक ऑयल कलर इस्तेमाल ही नहीं किया था। वही रंगीन चॉक या वॉटर
कलर, अब्बा तो बेटे को बिजनेसमैन बनाने के सपने देख रहे थे,रंग-रोगन क्यों दिलाते!
मगर इस पोस्टर ने मकबूल को इस कदर भड़काया कि वह गया सीधा अलीहुसैन रंगवाले की दुकान
पर और अपनी दो स्कूल की किताबें, शायद भूगोल और इतिहास बेचकर ऑयल कलर की ट्यूबें खरीद
डालीं और पहली ऑयल पेंटिंग चाचा की दुकान पर बैठकर बनाई। चाचा बहुत नाराज, बड़े भाई
तक शिकायत पहुँचाई अब्बा ने पेंटिंग देखी और बेटे को गले लगा लिया।
अथवा
'हुसैन की कहानी अपनी जबानी' पाठ में मकबूल के पिता के व्यक्तित्व की
कौन-कौन सी बातें उभरकर आई हैं ?
उत्तर:
प्रस्तुत प्रश्न हमारी हिन्दी की पाठ्यपुस्तक अंतरा -I मे मकबूल फिदा हुसैन द्वारा
रचित हुसैन की कहानी अपनी जबानी से अवतरित है। इसमें मकबूल के पिता की निम्न विशेषता
बताई गई हैं:-
→
भविष्य के प्रति चिंतित :- जब मकबूल के दादा जी की मृत्यु हो गई तो मकबूल के पिता को
अपने बेटे की चिंता होने लगी और इसलिए वे लेखक
को बड़ौदा के बोर्डिग स्कूल में भेजने का निर्णय किया।
→
धार्मिक प्रवृत्ति :- मकबूल के पिता धार्मिक प्रकृति के व्यक्ति थे। वे चाहते थे कि
उनका बेटा पढ़ाई के साथ-साथ 'तालीम' की शिक्षा भी ले, रोजा- नमाज को समझें तथा अच्छा
आचरण सीखें।
→
दूरदर्शी सोच :- जब लेखक ने अपने पिता को प्रसिद्ध चित्रकार बेंद्रे से मिलवाया तो
बेंद्रे ने मकबूल के चित्रकारी की तारीफ की तो तुरंत उनके पिता ने मकबूल के लिए, विनसर
न्युटन से ऑयल ट्यूब और कैनवास मंगवाने का आर्डर भिजवा दिया और मकबूल के अच्छे भविष्य
की नींव रखी।
8. दुकान पर बैठे-बैठे भी मकबूल के भीतर का कलाकार उसके किन क्रियाकलापों
से अभिव्यक्त होता है?
उत्तर:
मकबूल दुकान पर बैठने के बाद भी ड्राइंग तथा पेंटिंग करने में अपना सारा ध्यान लगाता
था। वह गल्ले का जबानी हिसाब रखता था। इसके साथ वह अपने आसपास व्याप्त जीवन को 20 स्केचों
में उकेरता था। इस तरह वह अपने आसपास आने-जाने तथा उठने-बैठने वाले लोगों के स्केच
को बनाता था। इसमें घूँघट ओढ़े मेहतरानी, पेंचवाली पगड़ी पहने तथा गेहूँ की बोरी उठाने
वाला मज़दूर, सिज़दे के निशान व दाढ़ी से युक्त पठान तथा बकरी के बच्चे का स्केच बनाया
करता था। अपनी पहली ऑयल पेंटिंग भी उसने दुकान पर रहकर ही बनायी थी। उसने एक फ़िल्म
सिंहगढ़ से प्रेरित होकर अपनी किताबें बेचीं और आयल पेंटिंग करना आरंभ कर दिया। इसी
फिल्म ने उसे ऑयल पेंटिग के लिए प्रेरित किया।
अथवा
मकबूल बचपन में गुमसुम-सा क्यों रहने लगा था ?
उत्तर: लेखक को अपने दादा जी से बेहद लगाव था लेकिन दादा की मृत्यु के बाद वह गुमसुम रहने लगा। वह दादा के कमरे में बंद रहता था। वह सोता भी दादा के बिस्तर में वह भी दादा की भूरी अचकन ओढ़कर मानो दादा उसके साथ सो रहे हो। वह किसी से बातचीत भी नहीं करता था।