Section - A खण्ड क ( अति लघु उत्तरीय प्रश्न )
किन्हीं
पाँच प्रश्नों के उत्तर दें।
1. किस देश का नाम एक पेड़ के नाम पर है ?
उत्तर:
ब्राज़ील
2. सर्वप्रथम राष्ट्रीयकृत बैंक की स्थापना कहाँ
हुई ?
उत्तर:
रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया (कोलकाता)
3. चीन में कुओमिनतांग (KMT) पार्टी का संस्थापक
कौन था ?
उत्तर:
सुन् यात-सेन (Sun Yat-sen)
4. "द-लास्ट-सपर" की रचना किसने की ?
उत्तर:
लियोनार्डो द विंची
5. अमेरिका की खोज किसने किया ?
उत्तर:
क्रिस्टोफर कोलंबस
6. औद्योगिक क्रांति किस देश में आरम्भ हुई ?
उत्तर:
इंग्लैंड
7. वास्को-डि-गामा किस देश का निवासी था ?
उत्तर:
पुर्तगाल
Section
- B खण्ड ख
(
लघु उत्तरीय प्रश्न )
किन्हीं
पाँच प्रश्नों के उत्तर दें।
8. पुनर्जागरण कालीन प्रमुख मूर्तिकार का नाम लिखें।
उत्तर:
पुनर्जागरण काल के तीन मूर्तिकारों के नाम थे
लोरेंजो
गिबर्ती – यह एक पुनर्जागरण युग का एक महान मूर्तिकार था। इसका काल
1378 से 1455 के बीच का रहा है। इस मूर्तिकार ने फ्लोरेंस के गिरजाघर के लिए सुंदर
दरवाजे बनाए थे। जिनकी प्रशंसा में यह कहा गया कि 'यह द्वार तो स्वर्ग के द्वार पर
रखे जाने योग्य है'
दोनातेल्लो
–
इस मूर्तिकार का काल 1386 ईस्वी से 1466 ईस्वी
के बीच रहा है। इस मूर्तिकार द्वारा 15 फीट ऊँची बनाई गई पेता की मूर्ति एक श्रेष्ठ
कलाकृति मानी जाती है।
माइकल
एंजेलो – यह मूर्तिकार भी पुनर्जागरण काल का एक महान मूर्तिकार और
चित्रकार था। इस मूर्तिकार के द्वारा बनाया गया सबसे महान चित्र 'द लास्ट जजमेंट' है।
9. भारत की खोज यात्रा की चर्चा करें ।
उत्तर:
1498 ई. में वास्को डी गामा ने अब्दुल मनीद नामक गुजराती पथ प्रदर्शक की सहायता से
कालीकट तक की यात्रा की और इसके बाद से हिंद महासागर पर पुर्तगालियों का आधिपत्य स्थापित
हो गया । कालीकट के शासक जमोरिन ने वास्कोडिगामा का स्वागत किया । लेकिन कालीकट के
समुद्री तटों पर पहले से ही व्यापार कर रहे अरबों ने इसका विरोध किया। विरोध का कारण
आर्थिक ही था अंततः वास्कोडिगामा जिस मसालों को लेकर वापस स्वदेश लौटा वह पूरी यात्रा
की कीमत के साठ गुना दामों पर बिका परिणामतः इस लाभकारी घटना ने पुर्तगाली व्यापारियों
को भारत आने के लिए आकर्षित किया ।
पूरब
के साथ व्यापार करने के लिए इंडिया नामक कंपनी की स्थापना पुर्तगालियों ने की । वास्कोडिगामा
1502 में दूसरी बार भारत आया । इसके बाद पुर्तगालियों का भारत में निरंतर आगमन शुरू
हो गया । पुर्तगालियों की पहली फैक्ट्री कालीकट में स्थापित हुई जिसे जमोरिन द्वारा
बाद में बंद कर दिया गया । 1503 ई. में काली मिर्च और मसालों के व्यापार पर एकाधिकार
प्राप्त करने के उद्देश्य से पुर्तगालियों ने कोचीन के पास अपनी पहली व्यापारिक कोठी
बनाई। इसके बाद कन्नूर में 1505 में पुर्तगालियों ने अपनी दूसरी फैक्ट्री बनाई ।
पुर्तगाली
वायसराय फ्रांसिस्को डी अल्मीडा (1505 से 1509) भारत में पहला पुर्तगाली वायसराय बन
कर आया। उसने भारत पर प्रभुत्व स्थापित करने के लिए मजबूत सामुद्रिक नीति का संचालन
किया जिसे ब्लू वाटर पॉलिसी या शांत जल की नीति के रूप जाना जाता है। 1508 में वह चौल
के युद्ध में गुजरात के शासक से संभवतः परास्त हुआ किंतु 1509 में उसने महमूद बेगड़ा
मिश्र तथा तुर्की शासकों के समुद्री बेड़े को पराजित किया तथा दीव पर अधिकार कर लिया
| दीव पर कब्जे के बाद पुर्तगाली हिंद महासागर में सबसे अधिक शक्तिशाली बन गए। पुर्तगाली
गोवा दमन और दीव पर 1961 ई. तक शासन करते रहे ।
10. चीनी क्रांति के बारे में लिखें।
उत्तर:
चीनी साम्यवादी दल की स्थापना 1921 में हुई थी । सन 1949 में चीनी साम्यवादी दल का
चीन की सत्ता पर अधिकार करने की घटना चीनी साम्यवादी क्रांति कहलाती है ।
चीन
में 1946 से 1949 तक गृहयुद्ध की स्थिति थी । चीन में आधिकारिक तौर पर इस अवधि को
‘ मुक्ति संग्राम ‘ ( War Of Liberation ) कहा जाता है ।
चीन
की पहली क्रांति का सूत्रपात डॉ सनयात सेन ने किया था । उन्हीं के प्रयत्नों से राष्ट्रवादी
चीनी पार्टी की स्थापना हुई जिसे ‘ कुओमितंग ‘ के नाम से जाना जाता है ।
चीनी
क्रांति 10 अक्टूबर 1911 से लेकर 12 फरवरी 1912 ईस्वी तक चला था जिसने चीन देश को राजतंत्र
से गणतंत्र घोषित कर दिया गया ।
चीन
में दूसरी क्रांति की शुरुआत 1916 ईस्वी से लेकर 1949 इसवी तक चला जिसे साम्यवादी क्रांति
के नाम से जानते हैं। चीन में मंचू वंश का अंत 1911 ईस्वी में हुआ।
11. पुनर्जागरण से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
पुनर्जागरण का शाब्दिक अर्थ होता है, “फिर से जागना”। 14वीं और 17वीं सदी के बीच यूरोप
में जो सांस्कृतिक व धार्मिक प्रगति, आंदोलन तथा युद्ध हुए उन्हें ही पुनर्जागरण कहा
जाता है। इसके फलस्वरूप जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में नवीन चेतना आई।
12. मेइजी पुनःस्थापना क्या है ?
उत्तर:
जापान में मेईजी पुनर्स्थापन उन्नीसवीं सदी में जापान में घटित एक घटनाक्रम था, जिससे
जापान के राजनैतिक और सामाजिक वातावरण में महत्त्वपूर्ण बदलाव आए, जिनसे जापान तेज़ी
से आर्थिक, औद्योगिक तथा सैन्य विकास की ओर बढ़ने लगा। इस क्रांति द्वारा सैद्धांतिक
रूप से सम्राट की सत्ता को पुनः स्थापित किया गया तथा नए सम्राट ने ‘मेइजी’ की उपाधि
धारण की।
पश्चिम
की सामुद्रिक शक्तियों से व्यापारिक संबंधों की नयी नीति नवीन जापान के उदय की द्योतक
थी। 1868 में जापान में तोकूगावा शोगुनों की शक्ति का अंत हुआ और अभी तक निष्क्रिय
रहे जापान के सम्राट ने राजशक्ति को अपने हाथ में ले लिया। जापान के जिस सम्राट के
शासनकाल में यह महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हुआ उसका नाम मुत्सुहितो था। वह 1867 में सिंहासना
रूढ़ हुआ था। उसने 1868 में मेईजी (प्रकाशपूर्ण शांति) की उपाधि धारण की। सत्ता परिवर्तन
की इस घटना को जापान के इतिहास में ‘मेईजी ईशीन‘ अथवा ‘मेईजी पुनर्स्थापना’ के नाम
से जाना जाता है
13. रेड इंडियन कौन थे ?
उत्तर:
रेड इंडियन अमेरिका के मूल निवासी हैं। इनकी खोज कोलंबस ने की थी जो कि भारत की खोज
में निकला था और उसने अमेरिका को ही भारत मान लिया था। रेड इंडियन उतर और दक्षिण अमेरिका
के मूल निवासी हैं।
वे
मंगोलायड प्रजाति की एक शाखा माने जाते हैं। रेड इंडियन 500 स्वतंत्र कबीलों का सामुहिक
नाम है जो अमेरीकी सरकार के संधि के अंतर्गत आरक्षित इलाके में रहते हैं। यूरोप से
लोगों के आने से पहले जो लोग अमेरिका महाद्वीप के निवासी थे उनको रेड इंडियन या नेटिव
इंडियन कहते हैं। ये स्वतंत्र रुप से रहते हैं।
14. समाजवादी अर्थव्यवस्था क्या है ?
उत्तर:
समाजवादी अर्थव्यवस्था से अभिप्राय एक ऐसी आर्थिक प्रणाली से है, जिसमे उत्पति के सभी
साधनों पर सरकार द्वारा अभिव्यक्त सम्पूर्ण समाज का स्वामित्व होता है. तथा आर्थिक
क्रियाओं का संचालन एक केन्द्रीय सता द्वारा सामूहिक हित व कल्याण के उद्देश्य से किया
जाता है. समाजवादी अर्थव्यवस्था को समान अर्थव्यवस्था अथवा केन्द्रीय नियोजित अर्थव्यवस्था
भी कहा जाता है।
काल
मार्क्स द्वारा विकसित समाजवादी विचारधारा से प्रभावित होकर सन 1917 में रूस में क्रांति
हुई, एवं समाजवादी अर्थव्यवस्था का प्रारम्भ हुआ।
Section
- C खण्ड ग
(
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न )
किन्हीं
तीन प्रश्नों के उत्तर दें।
15. माया, ईका तथा एजटेक सभ्यता की प्रमुख विशेषताओं को लिखें।
उत्तर:
माया सभ्यता माया सभ्यता का उदय 1100 ई० के लगभग हुआ। यह मध्य अमेरिका के एक
बड़े भाग में फैली हुई थी। फिर भी इन्होंने अनेक महत्त्वपूर्ण उपलिब्धियां प्राप्त
की। माया सभ्यता की मुख्य विशेषताओं का वर्णन इस प्रकार है
→ ये लोग अनाज के खेतों के पास
बस्तियों में रहते थे। उनके भोजन में मक्का, सेम, आल. पपीता, स्वकाश तथा मिर्च शामिल
थे। वे सूती वस्त्रों का प्रयोग करते थे। वे चाक पर बने मिट्टी के बर्तनों का प्रयोग
भी करते थे।
→ इनका मुख्य व्यवसाय कृषि था।
भोजन के लिए अधिक-से-अधिक मक्का उगाने के उद्देश्य से ये अपने देवताओं को प्रसन्न करने
का प्रयत्न करते थे।
→ वे अनेक प्रकार के धार्मिक
कृत्यों और कर्मकांडों में विश्वास रखते थे। उनका एक धार्मिक कृत्य रबड़ की गेंद का
खेल था। उनके अनेक देवता थे जिनमें अग्नि देवता और मक्का देवता मुख्य थे। देवताओं को
प्रसन्न करने के लिए बलि चढ़ायी जाती थी।
→ उनकी लिपि चित्रात्मक थी।
कहीं-कहीं स्वरों का प्रयोग भी होता था।
→
उन्होंने
अनेक भव्य पिरामिड, चौक, वेधशालाएँ तथा मंदिर बनाए। वे मूर्तिकला और चित्रकला में भी
बड़े निपुण थे।
→
इन्होंने
सौर पंचांग का निर्माण किया जिसके अनुसार वर्ष में 365 दिन होते थे।
→
उन्होंने
गणित के ज्ञान, हेराग्लिफिक लेखन और कागज के प्रयोग में भी निपुणता दिखायी।
एजटेक
सभ्यता - 12वीं शताब्दी में माया सभ्यता के पतन के बाद अमेरिका में
एजटेक लोगों ने सभ्यता की ज्योति जलाई। एजटेक लोग, जिन्हें टेनोका भी कहते हैं टेनोक्ट्टिलान,
टलाटेलोको नाम की दो राजधानियाँ बसायीं। इन लोगों की सभ्यता की मुख्य विशेषताएँ ये
थीं
→
इनका साम्राज्य 2 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ था। इसे 38 प्रांतों में
बाँटा गया था। प्रत्येक प्रांत का शासन एक गवर्नर चलाता था।
→ वे कई देवी-देवताओं की पूजा
करते थे। सूर्य देवता और अन्न देवी इनमें प्रमुख थे। वे अन्न देवी को देवताओं की जननो
मानते थे।
→ इन लोगों ने धातुओं को पिघलाकर
उनका प्रयोग करना सीख लिया था।
→
उन्होंने
धार्मिक समारोहों से संबंधित एक पंचांग बनाया। इसके अनुसार वर्ष में 260 दिन होते थे।
→ 1521 ई० में एजटेक साम्राज्य
का अंत हो गया।
इंका
सभ्यता - इस सभ्यता के निर्माता इंका लोग थे। उन्होंने 14वीं और
15वीं शताब्दियों के बीच दक्षिण अमेरिका के एडियन क्षेत्र में अपनी सभ्यता को विकसित
किया। इस सभ्यता की मुख्य विशेषताएँ ये थी
→
इंका
लोगों ने विशाल साम्राज्य की स्थापना की जिसमें अनेक बड़े नगर थे। कुज्को नगर इस साम्राज्य
का मुख्य केंद्र था। सारा साम्राज्य चार भागों में बँटा हुआ था। प्रत्येक भाग पर कोई
कुलीन पुरुष शासन करता था।
→ उन्होंने नगरों में भव्य किलों,
सड़कों और मंदिरों का निर्माण किया। वे सीढ़ीदार खेत बनाकर आलू, शकरकंद आदि की खेती
करते थे।
→ अनाज को बड़े-बड़े सरकारी
गोदामों में संकट के लिए सुरक्षित रखा जाता था।
→ कुछ लोगों ने मिट्टी के बर्तन
बनाने, कपड़ा बनाने और लामा तथा अल्पाका से ऊन प्राप्त करने के व्यवसाय भी अपनाए हुए
थे।
→ इंका लोग सोने, चाँदी और ताँबे
को गलाकर उनके आभूषण बनाते थे।
→ अस्त्र-शस्त्र बनाने के लिए
काँसा प्रयोग में लाया जाता था।
→
उन्होंने
चिकित्सा तथा शल्य चिकित्सा के क्षेत्र में भी उन्नति की।
16. पुनर्जागरण के कारणों का वर्णन करें ।
उत्तर:
यूरोप मे पुनर्जागरण एक आक्स्मिक घटना नही थी। मानवीय,जीवन के सभी क्षेत्रों मे धीरे-धीरे
होने वाली विकास की प्रक्रिया का परिणाम ही पुनर्जागरण की पृष्ठभूमि थी। यूरोप मे आधुनिक
मे पुनर्जागरण के निम्म कारण थे-
1.
कुस्तुनतुनिया का पतन: पन्द्रहवीं शताब्दी की महत्वपूर्ण घटना 1453
मे कुस्तुनतुनिया के रोमन साम्राज्य के पतन से सम्पूर्ण यूरोप मे हलचल मच गयी। तुर्को
ने कुस्तुनतुनिया पर कब्जा कर लिया। तुर्कों के अत्याचारों से बचने के लिए वहां पर
बसे हुए ग्रीक विद्वानों, साहित्यकारों तथा कलाकारो ने भागकर इटली मे शरण ले ली। वहां
पहुंचर विद्वानों का यूरोप के अन्य विद्वानों से हुआ। इस सम्पर्क के परिणामस्वरूप यूरोप
व उसके अन्य आसपास के देशो मे पुनर्जागरण की धारा अत्यधिक वेग के साथ बढ़ने लगी।
2.
धर्मयुद्धो का प्रभाव: मध्यकाल मे ईसाइयों एवं मुसलमानों मे अनेक धार्मिक
संघर्ष हुए। दोनों मे सांस्कृतियो का आदान-प्रदान भी हुआ। मुस्लिम विद्वानों के स्वतंत्र
विचारो का प्रभाव ईसाइयों पर पड़ा। अरबो के अंकगणित तथा बीजगणित आदि विषय यूरोप मे
प्रचलित हुए। मुसलमानों के आक्रमणों का सामाना करने के लिए यूरोप के राष्ट्रो मे आपसी
सम्बन्ध घनिष्ठ होने लगे। यूरोप मे रोमन पोंप तथा सम्राटों के संघर्षों के कारण धीरे-धीरे
लोगों की पोप तथा धर्म पर श्रद्धा कम होने लगी। इसी के परिणामस्वरूप धर्म सुधार आन्दोलन
ने जोर पकड़ लिया।
3.
अंतर्राष्ट्रीय व्यापार: अंतर्राष्ट्रीय व्यापार ने भी पुनर्जागरण
के उदय मे महत्वपूर्ण योगदान दिया। यूरोप के व्यापारी चीन और भारत तथा अन्य देशों मे
पहुंचने लगे। व्यापार की उन्नति से यूरोप का व्यापारी-वर्ग समृद्ध हो गया एवं व्यापार
एक देश से दूसरे देश मे प्रगति कर बैठा।
4.
नये वैज्ञानिक अविष्कार: व्यापार के विकास से अधिक धन एकत्र हुआ।
अतिशेष धन नये अविष्कारो को क्रियान्वित करने मे सहायक हुआ। पुनर्जागरण के लिए आवश्यक
था कि नए विचारों का प्रचार-प्रसार हो। इसके लिए कागज तथा मुद्रणालय के अविष्कार ने
सबसे महत्वपूर्ण कार्य किया।
5.
नवीन भौगोलिक खोजों का प्रभाव: नवीन भौगोलिक खोजो मे यूरोप
के साहसी नविकों मे से पुर्तगाल, स्पेन, फ्रांस तथा हालैण्ड के नाविकों ने अमेरिका,
अफ्रीका, भारत, आस्ट्रेलिया आदि देशो को जाने के मार्गों का पता लगाया। इससे व्यापार
वृद्धि के साथ उपनिवेश स्थापना का कार्य हुआ। इन देशों मे यूरोप के धर्म एवं संस्कृति
के प्रसार का मौका मिला।
6.
सामंतवाद का पतन: सामंतवाद का पतन पुनर्जागरण का महत्वपूर्ण कारण
था। सामंतवाद के रहते हुए पुनर्जागरण के बारे मे कल्पना भी नही की जा सकती है। सामंतवाद
के पतन के कारण लोगों को स्वतंत्र चिन्तन करने तथा उद्योग धंधे, व्यापार, कला और साहित्य
आदि के विकास के समुचित अवसरों की प्राप्ति हुई।
7.
मानववादी दृष्टिकोण का विकास: ज्ञान के नये क्षेत्रों के
विकास ने मानववादी दृष्टिकोण को विकसित किया। मानववादी दृष्टिकोण के विचारकों मे डच
लेखक " एरासमस " ने ईसाई धर्म की कमजोरियों को जनता के सामने रखा। उसने आम
इंसान को महत्व दिया।
8.
औपनिवेशक विस्तार: पुनर्जागरण के कारण धीरे-धीरे यूरोप के राज्यों
मे औपनिवेशिक साम्राज्य की स्थापना की भावना जाग्रत हुई। इससे यूरोपीय सभ्यता तथा संस्कृति
का प्रसार अन्य राष्ट्रों मे होने लगा।
17. औद्योगिक क्रांति में लोहा एवं कोयला उत्पादन की भूमिका की व्याख्या
करें।
उत्तर:
लौह उद्योग में कोयले ने विशेष रूप से महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसने औद्योगीकरण के
चौथे चरण का गठन किया। मध्य युग से ही लोहा और इस्पात यूरोपीय प्रौद्योगिकी के लिए
महत्वपूर्ण थे , लेकिन महंगी उत्पादन प्रक्रियाओं ने उनके उपयोग को सीमित कर दिया।
अन्य प्रारंभिक आधुनिक निर्माण की तरह, लोहे का निर्माण व्यक्तिगत कारीगरों के एक बड़े
पैमाने पर अनुभव और कौशल पर निर्भर करता था, जिनकी छोटी फाउंड्री ने उनके द्वारा उत्पादित
प्रत्येक टुकड़े का बारीकी से निरीक्षण करने की अनुमति दी थी। स्टील और भी स्पष्ट रूप
से एक विशेष उत्पाद था, जिसके लिए मुख्य रूप से स्वीडन में पाए जाने वाले बेहतर लौह
अयस्क की आवश्यकता होती है; हाथ से जाली, यह हथियार जैसे उपयोगों के लिए आरक्षित था,
और अधिक सांसारिक उत्पादों के लिए बहुत महंगा था। लेकिन अठारहवीं शताब्दी की शुरुआत
में, पावर ब्लोअर (बहुत उच्च तापमान बनाने के लिए) और हथौड़ों (अशुद्धियों को दूर करने
के लिए) के लिए कोयले और भाप इंजन की उपलब्धता ने नई लौह-निर्माण प्रक्रियाओं के अनुक्रम
को प्रेरित किया, और इन नाटकीय रूप से उद्योग के अर्थशास्त्र को बदल दिया। क्योंकि
इन तकनीकों के लिए महंगी मशीनरी आवश्यक थी, लोहे का उत्पादन तेजी से बड़े उद्यमों में
केंद्रित था, सबसे नाटकीय रूप से आयरनमास्टर जॉन विल्किंसन (1728 -1808); लेकिन एक
बार जब मशीनरी स्थापित हो गई, तो इसने निम्न-श्रेणी के, सस्ते अयस्कों के उपयोग की
अनुमति दी। लागत तदनुसार गिर गई, और अठारहवीं शताब्दी के अंत तक, सस्ते लोहे की उपलब्धता
ने इसके उपयोग की एक पूरी तरह से नई श्रृंखला की कल्पना करना संभव बना दिया।
नए
आर्थिक क्षेत्रों में नवाचारों को फैलाने का यह उत्साह बाद की अठारहवीं शताब्दी की
एक और विशेषता थी, और इसका मतलब था कि औद्योगिक क्रांति ने ब्रिटिश अर्थव्यवस्था के
कई क्षेत्रों को बदल दिया, न कि केवल कपास, लोहा बनाने और भाप की शक्ति। उदाहरण के
लिए, सस्ता लोहा, नए मशीन टूल्स के निर्माण की अनुमति देता है, और जब भाप की शक्ति
के साथ संयुक्त हो जाता है, तो इससे कई उत्पादों का मशीनीकृत उत्पादन संभव हो जाता
है जो कभी हाथ से बनाए जाते थे। भाप शक्ति और कोयला ईंधन ने कुम्हार योशिय्याह वेजवुड
(1730 -1795) चीनी मिट्टी के बरतन बनाने में बड़े पैमाने पर उत्पादन प्रक्रियाओं को
स्थापित करने के लिए, तब तक एक लक्जरी अच्छा। आविष्कारक इमारतों और जहाजों में लोहे
के उपयोग की संभावनाओं के बारे में सोचने लगे। इस प्रकार के आर्थिक परिवर्तनों का अर्थ
छोटी कार्यशालाओं या कुशल कारीगरों का अंत नहीं था। इसके विपरीत, मशीन बनाने के विकास
के लिए अधिक कार्यशालाओं और अत्यधिक कुशल मजदूरों की आवश्यकता थी, और कई उपभोक्ता उत्पादों
ने खुद को छोटे पैमाने पर उत्पादन के लिए उधार दिया। पावरलूम के आगमन के बाद भी, उन्नीसवीं
सदी में हथकरघा बुनकर असंख्य और समृद्ध बने रहे। लेकिन 1800 तक यह सभी के लिए स्पष्ट
था कि नाटकीय परिवर्तन अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों को प्रभावित करने की संभावना
थी; तकनीकी विकास सामान्य हो गया था, और समकालीनों को उम्मीद थी कि यह आर्थिक गतिविधि
के नए क्षेत्रों को बदल देगा।
18. धर्म सुधार आंदोलन के प्रमुख परिणामों की चर्चा करें ।
उत्तर:
धर्म सुधार आन्दोलन के परिणाम (प्रभाव)
1.
राजनीतिक परिणाम: इसने यूरोप में राष्ट्रीयता की भावना को प्रोतसाहन
दिया और राजाओं की निरंकुश सत्ता को मान्यता दे दी। फ्रांस तथा स्पेन को छोड़ कर यूरोप
के अधिकांश देशों में प्रोटेस्टैण्ट धर्म की स्थापना हुई। कैथोलिकों तथा प्रोटेस्टैण्टों
के बीच धर्म के नाम पर तीस वर्षीय (1618 1648 ई०) युद्ध हुआ।
2.
धार्मिक परिणाम: इस आन्दोलन ने यूरोप के ईसाई देशों की एकता
नष्ट कर दी। ‘ईसाई जगत’ शब्द का नामोनिशान मिट गया। इंग्लैण्ड, स्कॉटलैण्ड, उत्तरी
जर्मनी, डेनमार्क, नावें, स्वीडन, नीदरलैण्ड के कुछ प्रदेश रोम के चर्च से अलग हो गए।
यूरोप में धार्मिक सहिष्णुता और वैयक्तिक नैतिकता का उदय हुआ। ईसाई धर्म में तीन सम्प्रदायों
का जन्म हुआ—लूथर का सम्प्रदाय ‘लूथेरियन’, ‘ज्विगली’ को सम्प्रदाय ‘विगलीयन’ और काल्विन
का सम्प्रदाय ‘प्रेसविटेरियन’।
3.
आर्थिक परिणाम: इस आन्दोलन ने यूरोप की अर्थव्यवस्था को
भी प्रभावित किया। रोमन चर्च ने सूदखोरी को अनैतिज और अधार्मिक बताया था, लेकिन प्रोटेस्टेण्ट
सम्प्रदाय ने इसे कानूनी घोषित कर दिया। इससे
यूरोप में पूँजीवाद का विकास और व्यापार में वृद्धि हुई।
4.
राष्ट्रीय भाषा व साहित्य का विकास: धर्म सुधार आन्दोलन
ने राष्ट्रीय भाषा तथा साहित्य के विकास को प्रोत्साहन दिया। लूथर ने ‘बाइबिल’ का अनुवाद
जर्मन भाषा में करके लैटिन भाषा के महत्त्व को कम कर दिया। अब धार्मिक साहित्य राष्ट्रीय
भाषाओं में अनुवादित तथा प्रकाशित होने लगा।
5.
धर्म सुधार विरोधी आन्दोलन: धर्म सुधार आन्दोलनों ने ‘धर्म सुधार विरोधी
आन्दोलन (Counter Reformation) को जन्म दिया। इस धर्म सुधार विरोधी आन्दोलन के फलस्वरूप
कैथोलिक धर्म में अनेक सुधार किए गए तथा रोमन चर्च के दोषों को दूर करने का प्रयत्न
किया गया। इससे प्रोटेस्टेण्ट धर्म की प्रगति रुक गई। इस प्रकार धर्म सुधार आन्दोलन
एक महत्त्वपूर्ण घटना थी। उसने यूरोप के राजनीतिक, आर्थिक और धार्मिक जीवन को प्रभावित
किया। वास्तव में पुनर्जागरण और धर्म सुधार आन्दोलन विश्व-इतिहास की युगान्तरकारी घटनाएँ
सिद्ध हुईं। इसके साथ ही मध्य युग का अन्त और आधुनिक युग का आगमन हुआ।
19. चीनी क्रांति में डा० सन-यात्-सेन की भूमिका तथा प्रमुख सिद्धान्त
की चर्चा करें ।
उत्तर:
सन यात-सेन के नेतृत्व में 1911 में मांचू साम्राज्य को समाप्त कर दिया गया और चीनी
गणतंत्र की स्थापना की गई। वे आधुनिक चीन के संस्थापक माने जाते हैं। वे एक गरीब परिवार
से थे और उन्होंने मिशन स्कूलों से शिक्षा प्राप्त की जहाँ उनका परिचय लोकतंत्र व ईसाई
धर्म से हुआ। उन्होंने डॉक्टरी की पढ़ाई की, परंतु वे चीन के भविष्य को लेकर चिंतित
थे। उनका कार्यक्रम तीन सिद्धांत (सन मिन चुई) के नाम से प्रसिद्ध है। ये तीन सिद्धान्त
हैं
1.
राष्ट्रवाद - इसका अर्थ था मांचू वंश-जिसे विदेशी राजवंश
के रूप में माना जाता था - को सत्ता से हटाना, साथ-साथ अन्य साम्राज्यवादियों को हटाना।
2.
गणतांत्रिक सरकार की स्थापना - अन्य साम्राज्यवादियों को
हटाना तथा गणतंत्र की स्थापना करना।
3. समाजवाद - जो पूँजी का नियमन करे और भूस्वामित्व में समानता लाए। सन यात-सेन के विचार कुओमीनतांग के राजनीतिक दर्शन का आधार बने। उन्होंने कपड़ा, खाना, घर और परिवहन, इन चार बड़ी आवश्यकताओं को रेखांकित किया।