1. अग्नाशय से निकलने वाले हार्मोनों को क्या कहते हैं ?
Ans. इन्सुलीन
2. भारत में मनोविज्ञान का प्रथम विभाग कब आरंभ किया गया ?
Ans.
1916 ई० में।
3. न्यूरोन किसे कहते हैं ?
Ans.
तंत्रिका तंत्र में पाये जाने वाले कोश को न्यूरॉन कहते हैं।
4. अधिक लम्बे विषय के अधिगम के लिए कौन विधि अधिक उपयुक्त है?
Ans.
अंश विधि |
5. हमारी आँख कितनी परतों से बनी होती है ?
Ans.
हमानी आँख तीन परतों से बनी होती है।
6. समस्या पहचान के बाद शोधकर्ता समस्या का एक काल्पनिक उत्तर ढूँढता
है, उसे क्या कहा जाता है ?
Ans.
परिकल्पना ।
7. व्यवहारवाद की नींव किसने डाली ?
Ans.
वाटसन ने।
8. अवधान के किन्हीं दो प्रकारों का वर्णन करें।
Ans.
अवधान के दो प्रकार निम्नलिखित है
(i)
ऐच्छिक अवधान वैसा अवधान जिसमें व्यक्ति की इच्छा की प्रधानता होती है अर्थात् व्यक्ति
स्वयं के इच्छा के कारण अन्य उद्दीपनों की अपेक्षा कर उद्दीपन विशेष पर ध्यान देता
है तो ऐसे अवधान को ऐच्छिक अवधान कहते हैं।
ऐच्छिक
अवधान में निहित मुख्य बातें-(क) उद्देश्य (ख) प्रेरणा दायक इच्छा (ग) अन्य उद्दीपक
की चेतना उपेक्षा
(ii)
अनैच्छिक अवधान वैसा अवधान जिसमें इच्छा, रुचि, प्रेरणा या ध्येय की उपेक्षा होती है।
अनैच्छिक अवधान कहा जाता है। यह अवधान उद्दीपक की तीव्रता के कारण चेतना केन्द्र में
आता है जैसे-पटाखा फूटना, सुन्दर स्वरूप आदि ।
9. चिंतन की परिभाषा देकर उसका स्वरूप बताएँ।
Ans.
सामान्य शब्दों में, चिन्तन से यहाँ तात्पर्य है मन में होने वाली किसी समाधान करना
है। वारेन चिंतन की परिभाषा इस प्रकार दी है- "चिंतन व्यक्ति के समक्ष उपस्थित
समस्या से उत्पन्न होने वाला प्रतीकात्मक स्वरूप की एक विचारात्मक किया है जिसमें समस्या
के प्रभाव एवं निर्देशन में कुछ प्रयत्न और भूल होते हैं। और अंततः समस्या का समाधान
हो जाता है। "
चिंतन
में कुछ मानसिक क्रियाएँ सन्निहित होती है जो प्रक्रिया या स्वरूप के रूप में जाना
जाता है।
1.
समस्या की उपस्थिति
2.
भिन्न-भिन्न विचार की उपस्थिति
3.
प्रयत्न एवं भूल का होना
4.
व्यक्ति की सक्रिय होना।
5.
आंतरिक संभावना होना।
6.
समस्या समाधान के साथ प्रक्रिया का अंत होना।
10. संवेग के किन्हीं तीन आंतरिक परिवर्तन का वर्णन करें।
Ans.
संवेग के मुख्यतः तीन आंतरिक परिवर्तन इस प्रकार हैं
(i)
सॉस की गति में परिवर्तन प्राणी की सॉस की गति एक समान चलते हैं परन्तु अवसर विशेष
अर्थात् संवेगावस्था में प्रायः सॉस की गति में वृद्धि हो होती है। यह गति कम या अधिक
दोनों हो सकता है। सामान्य स्थिति में सॉस की गति का अनुपात 1:4 होता है जबकि संवेगावस्था
में यह गति 1: 2 या 1:1 भी हो जाता है।
(ii)
रक्तचाप में परिवर्तन-संवेगावस्था में सामान्य रक्त चाप की अपेक्षा रक्त के चालन में
वृद्धि या कमी हो जाती है। भय की स्थिर खुशी की स्थिति में यह गति बढ़ती घटती जाती
है। सामान्य रक्त चाप 80-120 के बीच पाया जाता है परन्तु रक्त चाप की गति में उतार-चढ़ाव
तनाव के प्रभाव स्वरूप होता है।
(iii)
पाचन क्रिया में परिवर्तन परिस्थिति विशेष में अध्ययन के पश्चात् कैनन के प्रयोगों
द्वारा पाया कि भय, क्रोध आदि की स्थिति में पाचन क्रिया बन्द भी हो जाती है।
11. थॉर्नडाइक ने सीखने के किन-किन नियमों की स्थापना की ?
Ans. पिछले कई वर्षों से अमेरिका के मनोवैज्ञानिक, पशुओं पर परीक्षण करके सीखने के नियमों की खोज में लगे हुए हैं। उन्होंने सीखने के जो नियम प्रतिपादित किये हैं, उनमें सबसे अधिक मान्यता ई. एल. थार्नडाइक (E. L. Thormdike) के नियमों को दी जाती है। उसने सीखने के तीन मुख्य नियम और पाँच गौण नियम प्रतिपादित किये हैं। इसे हम चित्र के माध्यम से सीखेंगे-
A.
मुख्य नियम (Primary Laws)
तत्परता
का नियम
अभ्यास
का नियम (इस नियम के दो अंग हैं-उपयोग और अनुपयोग के नियम)
प्रभाव
या परिणाम का नियम।
B.
गौण नियम (Secondary Laws)
बहुप्रतिक्रिया
का नियम
अभिवृत्ति
या मनोवृत्ति का नियम
आंशिक
क्रिया का नियम
आत्मीकरण
का नियम
सम्बन्धित
परिवर्तन का नियम।
12. चयनात्मक अवधान को प्रभावित करने वाले कारकों का संक्षेप में वर्णन
करें।
Ans.
चयनात्मक अवधान के कारकों को दो भाग 'बाह्य एवं आंतरिक कारकों में वर्गीकृत किया जाता
है। बाह्य कारण-उद्दीपन के लक्षण से संबंधित होते हैं अन्य चीज स्थिर रहने पर उद्दीपक
के आकार, तीव्रता, गति अवधान के प्रमुख निर्धारक हैं।
आंतरिक
कारक-ये व्यक्ति के अन्दर पाए जाते हैं जिन्हें 2 भागों में बाँटाजाता है
(a)
अभिप्रेरणात्मक कारक-इसका संबंध हमारी जैविक एवं सामाजिक आवश्यकता से होता है जैसे
हमें भुख लगती है तब हम भोजन की हल्की गंध भी सूंघ लेते हैं।
(b)
सहानात्मक कारक-इसके अंतर्गत अभिरुचि, अभिवृत्ति आदि आते है तथा जिस वस्तु के प्रति
अभिवृत्ति अनुकूल होती है वह हमारा ध्यान खींचती है।
13. प्रेक्षण से क्या तात्पर्य है इसके गुण-दोषों का संक्षेप में वर्णन
करें
Ans.
प्रेक्षण का साधारण अर्थ है किसी व्यवहार या घटना को देखना किसी घटना को देखकर क्रमबद्ध
रूप से उसका वर्णन प्रेक्षण कहलाता है।
गुण:
(a)
यह विधि वस्तुनिष्ठ तथा अवैयक्तिक होता है।
(b)
इसका प्रयोग बच्चे, बूढे, पशु-पक्षी सभी पर किया जा सकता है।
(c)
इस विधि द्वारा संख्यात्मक परिणाम प्राप्त होता है।
(d)
इसमें एक साथ कई व्यक्तियों का अध्ययन संभव है।
(e)
इस विधि में पुनरावृत्ति की विशेषता है
दोषः
(a)
इस विधि में श्रम एवं समय का व्यय होता है।
(b)
प्रेक्षक के पूर्वाग्रह के कारण गलती का डर रहता है।
(c)
प्रयोगशाला की नियंत्रित परिस्थिति नहीं होने कारण निष्कर्ष प्रभावित होता है।
14. सर्जनात्मक चिंतन क्षमता एवं कौशल को बढ़ाने में सहायक कुछ उपाय
का वर्णन करें ।
Ans.
सर्जनात्मक चिंतन क्षमता एवं कौशल को बढ़ाने में सहायक उपाय निम्न है-
(a)
विभिन्न क्षेत्रों से संबंधित विविध प्रकार की सूचना प्राप्त करने की आदत डालें।
(b)
किसी समस्या के एक समाधान ने बँधकर अन्य विकल्पों पर विचार करना चाहिए।
(c)
अपनी रूचि एवं शौक को ऐसे काम में लगाना चाहिए जिसमें मौलिक चिन्तन की आवश्यकता हो
।
(d)
पूर्वोनत के अतिरिक्त आत्मविश्वासी एवं सकारात्मक बने ।
(e)
समस्या से संबंधित स्वयं की रक्षा युक्तियों के प्रति सजग रहना चाहिए।
(f)
कारण एवं परिणतियों को मानसिक रूप से देखें।
(g)
निर्णय लेने एवं कल्पना करने में स्वतंत्र चिंतन का विकास करना चाहिए।
(h)
आत्म-मूल्यांकन को प्रोत्साहित करना चाहिए।
(i)
अपने विचार को उद्भवित होने का अवसर प्रदान करें।
15. दीर्घकालिक स्मृति में श्रेणीबद्ध संगठन क्या है ?
Ans.
दीर्घकालिक स्मृति में बड़े पैमाने पर सूचनाओं का संग्रह होता है जिनका उपयोग कुशलतापूर्वक
किया जाता है। सूचनाओं के संबंध में भेद और लक्षण जानने के लिए उन्हें संगठित करना
आवश्यक होता है। दीर्घकालिक स्मृति के संबंध में निम्नलिखित प्रश्नों के सही उत्तर
के आधार पर सूचनाओं को संगठित किया जाता है
(i)
सूचना किसके संबंध में है ?
(ii)
सूचना में प्रयुक्त मुख्य पद किस श्रेणी या जाति का है।
(iii)
किस तरह के प्रश्नों के उत्तर हॉ या नहीं में दिये जा सकते हैं।
(iv)
सूचना सामाजिक, मानसिक, आर्थिक किस प्रकार के कारकों पर आधारित हैं।
(v)
स्मृति पर आधारित प्रश्नों के उत्तर देने में कितना समय लिया जाता है।
दीर्घकालिक
स्मृति में ज्ञान प्रतिनिधान की सबसे महत्त्वपूर्ण इकाई संप्रत्यय है जहाँ संप्रत्यय
समान लक्षण वाले वस्तुओं अथवा घटनाओं के मानसिक संवर्ग होते हैं। सूचना प्रात्यक्षिक
रूप में प्रतिमाओं के रूप में संकेतित की जा सकती है। सन् 1969 में एलन कोलिन्स तथा
रॉस किबुलियन ने शोध-पत्र के माध्यम से बताया कि दीर्घकालिक स्मृति में सूचना श्रेणीबद्ध
रूप से संगठित होती हैं तथाउसकी एक जालीदार संरचना होती है।
16. विकासात्मक कार्य क्या है ? उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए।
Ans.
मानव जीवन विविधताओं के भण्डार का मालिक होता है। तरह-तरह के परिवर्तन, आकांक्षाएं,
कला, व्यवहार एवं अवस्था के साथ वह बाल्यावस्था से वृद्धावस्था को प्राप्त कर लेता
है। भिन्न-भिन्न मानव अपने परिवेश, आनुवंशिकता, परिस्थिति और अवस्था के वंशीभूत होकर
अलग-अलग विकास परिणाम को पाता है। मानवीय विकास सामान्यतया अवधि या अवस्थाओं के रूप
में सम्पन्न होता है। लोग तरह-तरह के आचरण और परिणाम के हकदार बनकर जीते हैं। एक ही
घटना का प्रभाव बच्चे, युवा, वृद्ध पर अलग-अलग देखा जाता हैं। मानव जीवन विभिन्न अवस्थाओं
से होते हुए आगे बढ़ता है। युवा फिल्म देखना पसन्द करता है तो वृद्ध भजन में तल्लीन
रहता है। विकासात्मक अवस्थाएँ अस्थायी रूप से कार्यरत होते हैं तथा प्रभावी लक्षण के
द्वारा पहचाने जाते हैं। कारण परिणाम की व्याख्या अवधि और अवस्था के आधार पर की जा
सकती है। कोई वर्तमान की दशा से संतुष्ट रहता है तो कोई भविष्य की कामना में साधना
करता हुआ देखा जाता है। नि:संदेह विकास की एक अवस्था से दूसरी अवस्था के मध्य विकास
के समय और दर के सापेक्ष व्यक्ति निश्चित रूप से भिन्न होते हैं। यह सत्य है कि कला,
कौशल, प्रशिक्षण और निपुणता एक विशिष्ट अवस्था तथा परिस्थिति में सरलता से ग्रहण किया
जा सकता है। सीखने की क्रिया के लिए एक विशिष्ट अवस्था को अनुकल माना जाता है। संबंधित
व्यक्ति की कला और योग्यता से पूरा समाज लाभ पाने के लिए उसे प्रेरित करने लगता है।
सीखे गये ज्ञान तथा उपलब्ध योग्यता का दूसरे के लिए व्यवहार लाने से संबंधित कार्य
को विकासात्मक कार्य माना जाता है। विकासात्मक कार्य व्यक्ति की अवस्था एवं निपणता
पर आधारित होता है जो अवधि, अवस्था एवं परिवेश के कारण कम और अधिक, मंद और तीव्र, अच्छा
या बुरा कुछ भी हो सकता है।
17. 'स्मृति एक रचनात्मक प्रक्रिया है' से क्या तात्पर्य है ?
Ans.
स्मृति एक रचनात्मक प्रक्रिया है जहाँ सूचनाएँ व्यक्ति के पूर्व ज्ञान, समझ एवं प्रत्याशों
के अनुसार संकेतित एवं संचित की जाती है। मनोवैज्ञानिक बार्टलेट ने क्रमिक पुनरुत्पादन
विधि पर आधारित प्रयोग किया जिसमें प्रतिभागी याद की हुई सामग्री को भिन्न-भिन्न समयांतरालों
पर प्रत्याहवान करते थे। प्रयोग में पाई जाने वाली बार्टलेट ने स्मृर्ति की रचनात्मक
प्रक्रिया को समझने के लिए उपयोगी माना। उन्होंने गलतियों को वांछनीय संशोधनों तथा
समयानुकूल अर्थ प्रकट करने का प्रयास मानकर खुशी व्यक्त की। बार्टलेट ने बताया कि कोई
विशिष्ट स्मृति व्यक्ति के ज्ञान, लक्ष्यों, अभिप्रेरणा, वरीयता तथा अन्य कई मनोवेज्ञानिक
प्रक्रियाओं से प्रभावित होते हैं।
18. संप्रत्यय क्या है ? चिंतन प्रक्रिया में संप्रत्यय की भूमिका की
व्याख्या कीजिए।
Ans.
संप्रत्यय का अर्थ-ज्ञान-परिधान की सबसे महत्वपूर्ण इकाई संप्रत्यय है। संप्रत्यय उन
वस्तुओं एवं घटनाओं के मानसिक संवर्ग हैं जो कई प्रकार से एक-दूसरे के समान हैं। अर्थात्
संप्रत्यय निर्माण हमें अपने ज्ञान को व्यवस्थित या संगठित करने में सहायता करता है।
चिंतन प्रक्रिया में संप्रत्यय की भूमिका चिंतन हमारे पूर्व अर्जित ज्ञान पर निर्भर
करता है। जब हम एक परिचित अथवा अपरिचित वस्तु या घटना को देखते हैं तो उनके लक्षणों
को पूर्व ज्ञान से जोड़कर उन्हें जानना-पहचानना चाहते हैं। यही कारण है कि हमें सेब
को फल कहने में, कुत्तों को जानवर मानने में, औरत को दया की प्रतिमा कहने में कोई कठिनाई
नहीं होती है। संप्रत्यय एक संवर्ग का मानस चित्रण है। यह एक समान या उभयनिष्ठ विशेषता
रखने वाले वस्तु, विचार या घटना को वर्गीकृत करने में हमारी मदद करता है।
19. क्या निर्णय लेना एवं निर्णयन अंतःसंबंधित प्रक्रियाएँ हैं? व्याख्या
कीजिए ।
Ans.
निर्णयन - निगमनात्मक एवं आगमनात्मक तर्कना हमें निर्णय लेने की क्षमता प्रदान करते
हैं। निर्णय (Judgement) लेने में हम ज्ञान एवं उपलब्ध साक्ष्य के आधार पर निष्कर्ष
निकलने हैं, धारणा बनाते हैं, घटनाओं और वास्तुओं का मूल्यांकन करते हैं। इस उदाहरण
पर विचार करें, यह आदमी बहुत वाचाल है, लोगों से मिलना पसंद करता है, दूसरों को सरलता
से सहमद कर लेता है - वह बिक्रीकर्ता की नौकरी के लिए सर्वाधिक उपयुक्त होगा। इस व्यक्ति
के बारे में हमारा निर्णय एक निपुण बिक्रीकर्ता के लक्षणों या विशेषताओं पर आधारित
है। कभी-कभी निर्णय स्वचालित होते हैं और इसके लिए व्यक्ति की ओर से किसी चेतन प्रयास
की आवश्यकता नहीं होती है तथा ये आदतवश हो जाते हैं। उदाहरण के लिए, लाल बत्ती देखने
पर ब्रेक लगाना, किंतु उपन्यास अथवा साहित्यिक पुस्तक के मूल्यांकन में आपके पूर्व
ज्ञान एवं अनुभव के संदर्भ की आवश्यकता होती है। एक पेंटिंग के सौंदर्य के मूल्यांकन
में आपकी व्यक्तिगत अभिरुचियाँ और पसंद सम्मिलित होंगी। अतः हमारे निर्णय हमारे विश्वासों
और अभिवृत्तियों से स्वतंत्र नहीं होते हैं। नवीन अर्जित सूचना के आधार पर हम अपने
निर्णय में परिवर्तन भी करते हैं। एक उदाहरण देखिए । एक नया अध्यापक विद्यालय में पदभार
ग्रहण करता है, विद्यार्थी तत्काल निर्णय लेते हैं कि अध्यापक बहुत कठोर है। बाद की
कक्षाओं में वे अध्यापक से घुल मिल जाते हैं और अपने निर्णय में परिवर्तन कर लेते हैं।
अब वे अध्यापक का मूल्यांकन अत्यंत छात्र-मित्र के करते हैं।
अनेक समस्याएँ जिनका समाधान हम प्रतिदिन करते हैं जिसमें निर्णयन की आवश्यकता पड़ती है। पार्टी में जाने के लिए क्या पहनें? रात के भोजन में क्या खाएँ ? हमें अपने मित्र से क्या कहना है ? इन सभी प्रश्नों का उत्तर अनेक विकल्पों में से किसी एक विकल्प को चुनने में पाया जाता है। निर्णयन में हम विकल्पों का चयन करते हैं जो कभी-कभी व्यक्तिगत महत्त्व के विकल्पों पर आधारित होता है। निर्णयन और निर्णय परस्पर संबंधित प्रक्रियाएँ हैं। निर्णयन में हमारे समक्ष जो समस्या होती है वह है प्रत्येक विकल्प से संबंधित लागत-लाभ का मूल्यांकन करते हुए विकल्पों में से चयन करने का विकल्प जब हमारे पास है तो यह निर्णयन हमारी रूचि, भावी अवसर, पुस्तकों की उपलब्धता, अध्यापकों की दक्षता इत्यादि पर आधारित होगा। वरिष्ठ छात्रों और अध्यापकों से बातचीत, कुछ कक्षाओं में पढ़ लेना आदि के द्वारा हम इनका मूल्यांकन कर सकते हैं। निर्णयन अन्य तरह की समस्या समाधान से हटकर है। निर्णयन में हम पूर्व से ही विभिन्न समाधान या विकल्पों को जानते हैं और उनमें से एक का चयन करना होता है। उदाहरण के लिए, आपका मित्र बैडमिंटन का बहुत अच्छा खिलाडी है। उसे राज्य स्तर पर खेलने का अवसर मिल रहा है। उसी समय वार्षिक परीक्षा नजदीक आ रही है और उसके लिए उसे गहन अध्ययन की आवश्यकता है। उसे दो विकल्पों बैडमिंटन के लिए अभ्यास या वार्षिक परीक्षा के लिए अध्ययन में से एक को चुनना होगा। इस स्थिति में उसका निर्णय विभिन्न परिणामों के मूल्यांकन पर आधारित होगा।