Class XI Political Science Set -4 Model Question Paper 2021-22 Term-2

Class XI Political Science Set -4 Model Question Paper 2021-22 Term-2

 

वर्ग- 11

विषय- राजनीतिक शास्त्र

पूर्णांक-40

समय - 1:30 घंटे

सेट-4 (Set-4)

प्रश्न 1. सरकार किसे कहते हैं ?

उत्तर- सरकार कानून बनाने और लागू करने वाली एक विशिष्ट संस्था है।

प्रश्न 2. शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व क्या है ?

उत्तर- 'जियो और जीने दो' का वाक्य शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व है जिसमें युद्ध का कोई स्थान नहीं है।

प्रश्न 3. विकास से आप क्या समझते हैं ?

उत्तर- वर्तमान भौतिकवादी युग में विकास का अभिप्राय आर्थिक विकास से लगाया जाता है। परन्तु भारत के परिप्रेक्ष्य में विकास का अर्थ ढूँढें तो यहाँ विकास का तात्पर्य भौतिक और आध्यात्मिक दोनों रहा है ।।

प्रश्न 4. क्या हथियार वैश्विक शांति को बढ़ावा देता है ?

उत्तर- नाभिकीय शक्ति से लैस देश परमाणु बम की विनाशलीला को स्वीकार करते हैं, लेकिन यह तर्क भी देते हैं कि इससे शांति स्थापना का उद्देश्य पूरा हो सकता है यानि महाविनाशकारी संभावना उसे शांति स्थापना के लिए प्रेरित करता है वर्तमान परमाणु सम्पन्न राष्ट्र (अमेरिका, फ्रांस, चीन, रूस) नाभिकीय युद्ध से बचना चाहते हैं यह माना जाने लगा है कि परमाणु नामक राक्षस ने ही विश्व में शांति स्थापित की है लेकिन यह अस्थायी एवं संदिग्ध है क्योंकि तानाशाही प्रवृत्ति  के लोगों के पास परमाणु शक्ति आ जाय तो शांति नहीं बल्कि विनाश होगा।

प्रश्न 5 विकास के उदारवादी लोकतांत्रिक मॉडल का क्या अर्थ है ?

उत्तर- विकास के उदारवादी लोकतांत्रिक मॉडल का अर्थ - पश्चिम के विकसित राष्ट्रों में उदारवादी लोकतंत्र एक महत्वपूर्ण राजनीतिक शक्ति है उदारवादी विचारधारा व्यक्ति को समाज की तुलना में उच्च नैतिक मूल्य प्रदान करती है उदारवादी लोकतंत्र में श्रमिकों को पर्याप्त पारिश्रमिक सम्मानपूर्ण जीवन, निजी सम्पत्ति के अधिकार अर्थव्यवस्था पर बाजारवाद का प्रभाव उत्पादन एवं वितरण के साधनों को निजी शक्तियों द्वारा नियंत्रण; बेरोजगारी, वृद्धावस्था, बीमारी असमानता की स्थिति में राज्य द्वारा सहायता का प्रावधान किया गया है यह लोकतांत्रिक भावना के अनुरूप है ।

प्रश्न 6. अर्ध- अध्यक्षीय प्रणाली क्या है ?

उत्तर- अर्ध- अध्यक्षीय प्रणाली अध्यक्षात्मक एवं संसदीय शासन व्यवस्था का मिश्रित रूप है इस पद्धति में राष्ट्रपति एवं प्रधानमंत्री दोनों पद का प्रावधान होता है लेकिन तुलनात्मक दृष्टि से राष्ट्रपति अधिक शक्तिशाली होता है प्रधानमंत्री संसद के माध्यम से जनता के प्रति उत्तरदायी होता है जबकि राष्ट्रपति जनता के प्रति प्रत्यक्ष रूप से उत्तरदायी होता है। पंचम गणतंत्र के बाद फ्रांस, रूस, श्रीलंका अर्थअध्यक्षीय प्रणाली का उदाहरण है।

प्रश्न 7 संविधान शासन की शक्तियों को किस प्रकार सीमित करता है?

उत्तर- संविधान राष्ट्र का सर्वोच्च कानून होता है यह न सिर्फ राज्य के कानून से सर्वोपरि है बल्कि राज्य के सभी महत्वपूर्ण अंगों एवं संस्थाओं का निर्माण संविधान के ही अधीन होता है। विधायिका, कार्यपालिका संविधान के विरुद्ध कार्य नहीं कर सकते इस स्थिति में न्यायपालिका उन कार्यों को अवैध घोषित कर सकती है। सांविधानिक सीमा में कार्य करने के लिए वे बाध्य होते हैं। इस आंधार पर शासन को शक्ति संविधान द्वारा सीमित माना जाता है ।

प्रश्न 8. भारतीय नागरिकों के कोई पाँच मौलिक कर्त्तव्य लिखें।

उत्तर भारत के प्रत्येक नागरिक का कर्त्तव्य है कि वह-

(i) संविधान का पालन करें और उसके आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्रध्वज और राष्ट्रगान का आदर करे ।

(ii) स्वतंत्रता के लिए हमारे राष्ट्रीय आंदोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शों को हृदय में संजोए रखे और उनका पालन करें।

(iii) भारत की प्रभुसत्ता, एकता और अखण्डता की रक्षा करे और उसे अक्षुण्ण रखे।

(iv) देश की रक्षा करे और आह्वान किए जाने पर राष्ट्र की सेवा करे ।

(v) भारत के सभी लोगों में समरसता और भ्रातृत्व की भावना का निर्माण करे जो धर्म, भाषा और प्रदेश या वर्ग पर आधारित सभी भेदभाव से परे हो और ऐसी प्रथाओं का त्याग करे जो स्त्रियों के सम्मान के विरुद्ध हो।

प्रश्न 9. राज्य के नीति-निर्देशक तत्त्व तथा मूल अधिकारों में तुलनात्मक अध्ययन करें।

अथवा, राज्य के नीति निर्देशक तत्त्व तथा मूल अधिकार में क्या अन्तर है?

उत्तर- संविधान के भाग 4 तथा अनुच्छेद 36 से 51 तक राज्य के नीति निर्देशक तत्वों का उल्लेख किया गया है, जबकि संविधान के भाग 3 में अनुच्छेद 12 से 30 तथा 32 और 35 में कुल 23 अनुच्छेदों में मूल अधिकारों के सम्बन्ध में व्यापक वर्णन किया है। मूल अधिकार वे अधिकार हैं जो व्यक्तित्व के विकास के लिए आवश्यक है; जबकि निर्देशक तत्त्व देश के शासन के मूलभूत तत्त्व हैं। इनमें संविधान तथा सामाजिक न्याय के वास्तविक दर्शन हैं। नीति निर्देशक तत्त्वों तथा मूल अधिकारों में परस्पर संबंध है। यह एक-दूसरे के पूरक हैं। फिर भी इनमें प्रमुख अन्तर है, जो इस प्रकार हैं-

1. मूल अधिकार न्यायालय में प्रवर्तनीय हैं अर्थात् इनके उल्लंघन किए जाने की स्थितियों में न्यायालय में रिट दाखिला किया जा सकता है। इसके विपरीत, निर्देशक तत्त्व न्यायालय में प्रवर्तनीय नहीं है । इनमें उल्लंघन के विरुद्ध न तो कोई रिट और न ही कोई वाद दाखिल किया जा सकता है।

2. मूल अधिकार नकारात्मक हैं, क्योंकि इनके द्वारा राज्यों के कुछ कार्यों को प्रतिबंधित किया जाता है, जबकि नीति-निर्देशक तत्त्व सकारात्मक हैं, क्योंकि ये राज्य के निश्चित कार्यों को करने का निर्देश देते हैं ।

3. मूल अधिकारों का मुख्य उद्देश्य राजनीतिक प्रजातंत्र की स्थापना करना है, जबकि नीति निर्देशक तत्त्वों द्वारा कल्याणकारी राज्य और आर्थिक लोकतंत्र की स्थापना का प्रयास किया गया था ।

4. मूल अधिकार कानूनी महत्त्व के हैं, जबकि नीति निर्देशक तत्त्व नैतिक सिद्धान्त हैं।

5. मूल अधिकार आत्यन्तिक कर नहीं है, क्योंकि इन पर विशेष परिस्थितियों में निर्बन्ध लगाए जा सकते हैं, जबकि नीति निर्देशक तत्त्व आत्यन्तिक हैं अर्थात् इन पर किसी भी स्थिति में निर्बन्ध नहीं लगाया जा सकता है।

6. अनुच्छेद 20 तथा 21 में दिए गए मूल अधिकारों के अतिरिक्त अन्य अधिकारों को आपातकाल के दौरान निलम्बित किया जा सकता है, जबकि  नीति निर्देशक तत्वों को किसी भी स्थिति में निलंबित नहीं किया जा सकता है।

प्रश्न 10. राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का गठन क्यों किया गया ? इसके कार्य एवं अधिकारों का वर्णन करें।

उत्तर - संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकारों का जब तक समाज के गरीब, पिछड़े और अशिक्षित लोगों द्वारा समान स्वतंत्र उपभोग न किया जाए, संविधान का मूल उद्देश्य ही अपूर्ण है। इसी परिप्रेक्ष्य में वर्ष 2000 में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का गठन किया गया । मानवाधिकार आयोग मानव अधिकार के हनन रोकने तथा उन्हें व्यावहारिक रूप से लागू करवाने के लिए पर्याप्त कदम उठाता है। इस प्रकार मानवाधिकार आयोग मानवाधिकारों के हनन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। ।

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग में एक अध्यक्ष तथा चार अन्य सदस्य होते हैं । इनकी नियुक्ति पाँच वर्ष के लिए सरकार द्वारा की जाती है। इसका अध्यक्ष सर्वोच्च न्यायालय का सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश होता है। इसके अतिरिक्त सर्वोच्च न्यायालय का एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश, उच्च न्यायालय का एक पूर्व मुख्य न्यायाधीश तथा मानवाधिकारों के सम्बन्ध में व्यावहारिक ज्ञान और अनुभव रखने वाले दो अन्य सदस्य होते हैं। आयोग को स्वयं किसी मुकदमे को सुनने का अधिकार नहीं है । यह सरकार या न्यायालय को अपनी जाँच के आधार पर मुकदमा चलाने की सिफारिश कर सकता है ।

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के कार्य एवं अधिकार- राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के निम्नलिखित कार्य हैं

1. मानवाधिकारों के उल्लंघन की शिकायत मिलने पर उसकी जाँच-पड़ताल करना तथा सरकार को अपनी रिपोर्ट देना ।

2. मानवाधिकारों की सुरक्षा से सम्बन्धित प्रावधानों की जाँच-पड़ताल करना ।

3. जेलों या सुधार गृहों में बन्द व्यक्तियों की स्थिति का अध्ययन कर अपनी रिपोर्ट सम्बन्धित सरकार को देना।

4. मानवाधिकार के क्षेत्र में हो रहे शोध कार्यों को प्रोत्साहित करना तथा विस्तारित करना ।

5. मानवाधिकार से सम्बन्धित सुरक्षा प्रावधानों की जाँच-पड़ताल कर अपनी रिपोर्ट सरकार को देना ।

6. न्यायालय की कोई ऐसी कार्यवाही जिसमें मानवाधिकार के उल्लंघन का मामला विचाराधीन है, न्यायालय की स्वीकृति से जाँच पड़ताल कर अपना पक्ष रखना ।

7. मानवाधिकारों को लागू करने में आ रही बाधाओं का अध्ययन करना और सुझावों सहित अपनी रिपोर्ट सरकार को देना ।

8. अन्तर्राष्ट्रीय स्तर या मानवाधिकार के क्षेत्र में हो रहे समझौतों का अध्ययन कर उन्हें देश में लागू करवाने का प्रयास करना ।

प्रश्न 11. न्यायपालिका की स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिए संविधान के विभिन्न प्रावधान कौन-कौन से हैं ?

उत्तर- न्यायपालिका की स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिए संविधान के विभिन्न प्रावधान इस प्रकार है :

1. न्यायाधीशों की नियुक्ति के संबंध में प्रावधान- न्यायाधीशों की नियुक्ति के अधिकार राष्ट्रपति को दिए गए हैं। इस संबंध में राष्ट्रपति जरूरत पड़ने पर मुख्य न्यायाधीश तथा अन्य न्यायाधीशों से परामर्श ले सकता है।

2. सेवानिवृत्त्ति के पश्चात् वकालत करने पर प्रतिबंध- भारतीय संविधान सेवा निवृत्त्त होने के बाद न्यायाधीश को भारत के किसी भी क्षेत्र में वकालत करने की अनुमति नहीं देता है।

3. कार्यप्रणाली के संबंध में प्रावधान- न्यायपालिका की स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिए उसके कार्यप्रणाली के नियमन हेतु नियम बनाने का अधिकार भी स्वयं न्यायपालिका का है। लेकिन शर्त यह है कि नियम संसद द्वारा निर्मित विधि के अंतर्गत होना चाहिए तथा इस पर राष्ट्रपति का अनुमोदन भी आवश्यक है।

4. पद की सुरक्षा के संबंध में प्रावधान- न्यायाधीशों के पद सुनिश्चित किये गए है कि इन्हें कोई भी पद से हटा नहीं सकता। यदि कदाचार और अयोग्यता के आधार पर हटाया भी जा सकता है तो उससे पूर्व उस आशय का प्रस्ताव संसद के दोनों सदनों में अलग-अलग दो-तिहाई बहुमत से पारित होना चाहिए। इस प्रकार उनको पद से हटाने की प्रक्रिया को बहुत जटिल बनाया गया है।

5. पर्याप्त वेतन एवं भत्ता- न्यायपालिका की स्वतंत्रता को बनाये रखने के लिए उसके लिए न्यायाधीशों को आर्थिक रूप से काफी सुदृढ़ बनाया गया है। उन्हें पर्याप्त वेतन एवं मुफ़्त आवास उपलब्ध कराया जाता है। जब वे सेवानिवृत्त हो जाते है तो उन्हें काफी पेंशन भी दिया जाता है।

प्रश्न 12. किन परिस्थितियों में हमारे मौलिक अधिकारों को स्थगित किया जा सकता है ?

उत्तर- भारतीय संविधान द्वारा प्रदत्त मूल अधिकार निरपेक्ष नहीं हैं। इन पर राष्ट्र की एकता, अखण्डता, शान्ति एवं सुरक्षा तथा अन्य राष्ट्रों के साथ मैत्रीपूर्ण सम्बन्धों के आधार पर प्रतिबन्ध लगाया जा सकता है। संविधान द्वारा अग्रलिखित परिस्थितियों में नागरिकों के मौलिक (मूल) अधिकारों पर प्रतिबन्ध लगाये जाने की व्यवस्था की गयी है –

1. आपातकालीन स्थिति में नागरिकों के मूल अधिकार स्थगित किये जा सकते हैं।

2. संविधान में संशोधन करके नागरिकों के मूल अधिकार कम या समाप्त किये जा सकते हैं।

3. सेना में अनुशासन बनाये रखने की दृष्टि से भी इन्हें सीमित या नियन्त्रित किया जा सकता है।

4. जिन क्षेत्रों में मार्शल लॉ (सैनिक कानून) लागू होता है वहाँ भी मूल अधिकार स्थगित हो जाते

5. नागरिकों द्वारा मूल अधिकारों का दुरुपयोग करने पर सरकार इन्हें निलम्बित कर सकती है।

प्रश्न 13. क्या भारतीय संसद मौलिक अधिकारों में संशोधन कर सकती हैं।

उत्तर - भारतीय संसद मौलिक अधिकारों में संशोधन कर सकती है। मौलिक अधिकारों में धारा 368 में दी गई संशोधन विधि द्वारा संशोधन किया जा सकता है। इसके लिए कुल सदस्यों की संख्या के बहुमत व संसद के दोनों सदनों में प्रत्येक सदन में उपस्थित एवं मत देने वाले सदस्यों के 2/3 बहुमत का होना आवश्यक है। 1952 में सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश ने कहा था कि अनुच्छेद 368 संसद को संविधान में बिना किस छूट संशोधन  करने का अधिकार प्रदान करता है। परन्तु 1967 में गोलकनाथ मुकदमें में सर्वोच्च न्यायालय ने यह फैसला दिया कि संसद को मौलिक अधिकारों में संशोधन करने और सीमित करने का कोई अधिकार प्राप्त नहीं है। 42 वें संशोधन द्वारा सम्पत्ति के अधिकार को मौलिक अधिकारों में से निकाल दिया गया।

प्रश्न 14. भारतीय संविधान में दिए गए मौलिक अधिकारों का क्या महत्व है ?

उत्तर - 1. यह लोकतंत्र के आधार तत्व है व्यक्ति के आर्थिक, सामाजिक एवं राजनीतिक विकास तथा प्रगति के लिए मौलिक अधिकार अनिवार्य है। इन अधिकारों के बिना सच्चे प्रजातंत्र के सिद्धांत लागू नहीं होते तथा व्यक्ति की गरिमा एवं प्रतिष्ठा का अस्तित्व प्रभावी नहीं होता।

2. मौलिक अधिकार व्यक्ति की राजनीतिक प्रक्रिया में सहभागिता सुनिश्चित करते हैं, जिससे व्यक्ति की आकांक्षाओं एवं राजनीतिक उद्देश्यों के मध्य समन्वय एवं सामंजस्य स्थापित होता है।

3. मौलिक अधिकार व्यक्ति एवं समुदाय विशेष को शोषण से सुरक्षा प्रदान करते हैं क्योंकि राजनीतिक चेतना को जागृत करने में यह अधिक सहायक होते हैं।

4. मौलिक अधिकार नागरिकों के व्यक्तित्व के विकास के लिए आवश्यक परिस्थितियां उत्पन्न करते हैं।

5. ये सरकार की निरंकुशता पर प्रतिबंध लगाते हैं।

6. ये कानून का शासन स्थापित करते हैं।

7. ये सामाजिक समानता स्थापित करते हैं।

8. ये धर्मनिरपेक्ष राज्य के आधार हैं ।

9. ये कमजोर वर्गों को सुरक्षा प्रदान करते हैं।

10. ये अधिकार अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा करते हैं।

11. ये अधिकार लोकतंत्र की आधार शिला है।

प्रश्न 15. भारत के उपराष्ट्रपति पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए । उसे किस प्रकार अपदस्थ किया जा सकता है ?

उत्तर - भारतीय संविधान राष्ट्रपति के पद के साथ उपराष्ट्रपति के पद की भी व्यवस्था करता है । अनुच्छेद 63 में कहा गया है कि “भारत का एक उपराष्ट्रपति होगा।" भारतीय संविधान निर्माताओं ने उपराष्ट्रपति के पद की विशेषता अमेरिका के संविधान से ली है। राष्ट्रपति का स्थान किसी भी समय किसी भी कारण से रिक्त हो जाने पर उपराष्ट्रपति उसका कार्यभार संभाल लेता है ।

योग्यताएँ - 1. वह भारत का नागरिक हो ।

2. उसकी आयु 35 वर्ष से ऊपर हो ।

3. वह राज्य सभा का सदस्य बनने की योग्यता रखता हो ।

4. वह संसद के किसी सदन का या किसी राज्य के विधानमंडल का सदस्य न हो । यदि इनमें से किसी का सदस्य हो तो उपराष्ट्रपति निर्वाचित होने के पश्चात् त्यागपत्र दें ।

उपराष्ट्रपति का चुनाव- उपराष्ट्रपति का निर्वाचन संसद के दोनों सदनों के सदस्य एक संयुक्त अधिवेशन में करते हैं । उच्च निर्वाचन आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के अनुसार एकल संक्रमणीय प्रणाली द्वारा होता है। उपराष्ट्रपति के निर्वाचन में राज्य विधानमंडलों के सदस्य भाग नहीं लेते। संसद के दोनों सदनों में बहुमत द्वारा उपराष्ट्रपति को उसके पद से हटाया जा सकता है ।

प्रश्न 16. उपराष्ट्रपति की शक्तियों का वर्णन कीजिए ।

उत्तर- 1. राज्यसभा का सभापति - उपराष्ट्रपति राज्यसभा का पदेन अध्यक्ष होता है । इस नाते वह राज्य सभा की बैठकों की अध्यक्षता करता है ।

2. राष्ट्रपति की अनुपस्थिति में राष्ट्रपति का कार्यभार संभालना- संविधान में यह व्यवस्था है कि जब राष्ट्रपति का पद रिक्त हो तो उपराष्ट्रपति, राष्ट्रपति के पद पर कार्य करेगा और ऐसा करते हुए वह उन सभी शक्तियों, वेतन, भत्ते तथा सुविधाओं व विशेषाधिकारों के प्रयोग करने का अधिकारी होगा जो राष्ट्रपति को मिलते हैं। यदि उपराष्ट्रपति उस समय राष्ट्रपति के पद पर कार्य करे जबकि वह पद राष्ट्रपति की मृत्यु, त्यागपत्र, महाभियोग द्वारा हटाए जो सर्वोच्च न्यायालय द्वारा उसके चुनाव को अवैध घोषित किये जाने के कारण रिक्त हो तो उपराष्ट्रपति अधिक से अधिक 6 महीने तक उस पद पर रह सकता है और इस अवधि में नए राष्ट्रपति का चुनाव हो जाना आवश्यक है। यदि वह उस दशा में जबकि राष्ट्रपति बीमारी या देश से बाहर जाने के कारण अपना कार्य न कर सकता हो, राष्ट्रपति पद कार्य करे तो वह समय तक इस पद पर रह सकता है जब तक कि राष्ट्रपति अपना कार्य करने के योग्य नहीं हो जाता।

प्रश्न 17. संसद में धन विधेयक कैसे पारित होता है ?

उत्तर - धन विधेयक पारित करने की प्रक्रिया:

संविधान में (अनुच्छेद-110) संसद द्वारा धन विधेयक को पारित करने के संबंध में एक विशेष प्रक्रिया निहित है तथा उसे पारित करने के लिये अनुच्छेद 109 के तहत विशेष प्रक्रिया का प्रावधान किया गया है।

लोकसभा में पारित होने के उपरांत उसे राज्यसभा के विचारार्थ भेजा जाता है।

14 दिनों के अंदर उसे स्वीकृति देनी होती है अन्यथा इसे राज्यसभा द्वारा पारित माना जाता है।

लोकसभा के लिये यह आवश्यक नहीं कि वह राज्यसभा की सिफारिशों को माने।

यदि लोकसभा किसी प्रकार की सिफारिश को मान लेती है तो फिर इस विधेयक को सदनों द्वारा संयुक्त रूप से पारित माना जाता है।

यदि लोकसभा कोई सिफारिश नहीं मानती है तो इसे मूल रूप से दोनों सदनों द्वारा पारित माना जाता है।

धन विधेयक के संबंध में राज्यसभा के पास शक्तियाँ:

राज्यसभा के पास इसके संबंध में प्रतिबंधित शक्तियाँ हैं। यह धन विधेयक को अस्वीकृत या संशोधित नहीं कर सकती है। राज्यसभा केवल  सिफारिश कर सकती है।

धन विधेयक के संबंध में राष्ट्रपति की भूमिका:

इसे केवल राष्ट्रपति की सिफारिश के बाद ही प्रस्तुत किया जा सकता है।

दोनों सदनों द्वारा पारित होने क बाद धन विधेयक को राष्ट्रपति के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है तो या तो वह इस पर अपनी सहमति देता है या फिर इसे रोक कर रख सकता है।

राष्ट्रपति इसे किसी भी दशा में सदन को पुनः विचार के लिये नहीं भेज सकता।

प्रश्न 18. लोकसभा के अध्यक्ष (स्पीकर) के कार्यों का उल्लेख कीजिए ।

उत्तर - लोकसभा के अध्यक्ष को निम्नलिखित कार्य एवं अधिकार प्राप्त है :-

सदन के सदस्यों के प्रश्नों को स्वीकार करना उन्हें नियमित व नियम के विरुद्ध घोषित करना।

किसी विषय को लेकर प्रस्तुत किए जाने वाला कार्य स्थगन प्रस्ताव अध्यक्ष की अनुमति से पेश किया जा सकता है।

लोकसभा अध्यक्ष को विचारधिन विधेयक पर बहस रुकवाने का अधिकार प्राप्त है।

संसद सदस्यों को भाषण देने की अनुमति देना और भाषणों का कर्म व समय निर्धारित करना।

विभिन्न विधेयक वह प्रस्ताव पर मतदान करवाना एवं परिणाम घोषित करना तथा मतों की समानता की स्थिति में निर्णायक मत देने का भी अधिकार है।

संसद और राष्ट्रपति के बाद होने वाला पत्र व्यवहार करना तथा कोई विधेयक धन विधेयक है या नहीं इसका निर्णय करना भी लोकसभा अध्यक्ष का कार्य है।

प्रश्न 19. भारतीय संसद के मुख्य कार्य क्या हैं ? उन विधियों का परीक्षण कीजिए जिनके द्वारा संसद कार्यकारिणी को नियंत्रित करती है ।

उत्तर - भारतीय संसद के मुख्य कार्य निम्नलिखित है -

1. कार्यपालिका का नियंत्रण: संसद का एक महत्त्वपूर्ण कार्य है मंत्रिपरिषद् की चूक और वचनबद्धता की जवाबदेही तय करते हुए उस पर अपने नियंत्रण के अधिकार का प्रयोग करना। धारा 75(3) में स्पष्ट कहा गया है कि मंत्रिपरिषद तभी तक कार्यरत रह सकती है, जब तक उसे लोकसभा का विश्वास प्राप्त है। संसद का यह महत्त्वपूर्ण कार्य एक जवाबदेह शासन को सुनिश्चित करता है।

2. कानून बनाना: कानून बनाना किसी भी विधानमंडल का प्रधान कार्य है। भारत की संसद उन तमाम विषयों पर कानून बनाती है, जो संघ सूची और समवर्ती सूची (राज्य और केंद्र, दोनों की सूची में शामिल विषय) में शामिल हैं।

3. वित्त का नियंत्रण: संसद, खासकर लोकसभा वित्त के कार्यक्षेत्र में महत्त्वपूर्ण अधिकारों का प्रयोग करती है। विधायिका को यह सुनिश्चित करना होता है कि सार्वजनिक निधि की उगाही और व्यय उसकी अनुमति से हो।

4. विमर्श शुरू करना: सभी महत्त्वपूर्ण प्रशासनिक नीतियों की चर्चा सदन के पटल पर होती है। लिहाजा न केवल मंत्रिमंडल संसद का परामर्श हासिल करता है और अपनी खामियों के बारे में जानता है, बल्कि पूरे देश को भी सार्वजनिक महत्त्व के विषयों के बारे में जानकारी मिलती है।

5. संवैधानिक कार्य: संविधान के अंतर्गत संसद एकमात्र निकाय है, जो संविधान में संशोधन के लिए कोई प्रस्ताव पेश कर सकता है। संशोधन का प्रस्ताव किसी भी सदन (लोकसभा या राज्यसभा) में पेश किया जा सकता है।

6. निर्वाचन संबंधी कार्य: संसद राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव में भी भाग लेती है। यह अपनी समितियों के विभिन्न सदस्यों, पीठासीन पदाधिकारियों और उप पीठासीन पदाधिकारियों को भी चुनती है।

7. न्यायिक कार्य: संसद के पास राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, सुप्रीम व हाई कोर्ट के जजों के साथ-साथ संघ व राज्य लोक सेवा आयोगों के अध्यक्षों तथा सदस्यों और सीएजी पर महाभियोग चलाने का अधिकार है।

प्रश्न 20. किसी देश के संविधान का क्या महत्त्व है ?

उत्तर- संविधान में ही बताया जाता है कि सरकार के विभिन्न अंगों की क्या-क्या शक्तियाँ और उनके क्या-क्या दायित्व होते हैं

प्रश्न 21. संविधान निर्मात्री सभा से आप क्या समझते हैं ?

उत्तर - निर्मात्री सभा 6 सदस्यी निकाय थी। जो कि संविधान के मसौदे तैयार करती थी एवं उसको चर्चा के लिए संविधान सभा के समक्ष रखती थी। इसके अध्यक्ष डॉ भीमराव अंबेडकर थे। इसे ड्राफ्टिंग कमेटी भी कहा जाता है।

प्रश्न 22. भारत के राष्ट्रपति का निर्वाचन कैसे होता है ?

उत्तर- राष्ट्रपति का निर्वाचन प्रत्यक्ष रूप से ना होकर अप्रत्यक्ष निर्वाचन पद्धति द्वारा होता है, जिसमे निर्वाचक मंडल के सदस्यों द्वारा चुनाव आनुपातिक प्रतिनिधित्व के अनुसार एकल संक्रमणीय मत व गुप्त मतदान द्वारा उसका निर्वाचन द्वारा किया जाता है।

प्रश्न 23. प्रतिनिधित्व के समानुपातिक पद्धति का वर्णन कीजिए ?

उत्तर- आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति इस पद्धति को हेयर पद्धति भी कहा जाता है। इस पद्धति के अंतर्गत सामान्य पद्धति की तरह उम्मीदवारों का चुनाव नहीं होता। इस पद्धति के अंतर्गत एक कोटा निश्चित किया जाता है। इसमें निश्चत "मत संख्या या उससे अधिक मत प्राप्त करने वाला व्यक्ति ही निर्वाचित होता है।

प्रश्न 24. आर्थिक समानता के बारे में आप क्या जानते हैं ?

उत्तर- वर्तमान काल में आर्थिक समानता ने एक महत्वपूर्ण स्थान ले लिया है। इसका यह अर्थ नहीं है कि सब व्यक्तियों की आय अथवा वेतन समान कर दिया जाए। इसका अर्थ है-सबको उन्नति के समान अवसर प्रदान किये जाएँ । सभी की न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति की जाए। प्रत्येक व्यक्ति को काम मिले।

प्रश्न 25. सरकार किसे कहते हैं ?

उत्तर- सरकार कानून बनाने और लागू करने बाली एक विशिष्ट संस्था है।

प्रश्न 26. धार्मिक स्वतंत्रता का अर्थ स्पष्ट कीजिए ।

उत्तर- मनुष्य के नैतिक तथा सामाजिक जीवन में धर्म का महत्वपूर्ण स्थान है। अतः प्रत्येक मनुष्य को अपनी इच्छानुसार किसी भी धर्म के स्वीकार करने, इसका पालन करने, पाठ, उपासना आदि की स्वतंत्रता को ही धार्मिक स्वतंत्रता कहते हैं। इसमें राज्य का कोई हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए और इसका किसी धर्म-विशेष के प्रति पक्षपात नहीं होना चाहिए।

प्रश्न 27. 74वें संविधान संशोधन द्वारा बारहवीं सूची में सम्मिलित आर्थिक सामाजिक विकास संबंधी कार्य का विवरण प्रस्तुत कीजिए जो नगर निगम व नगरपालिका को सौंपे गये हैं।

उत्तर- नगरों में स्वशासन की स्थापना के लिए नगरीय निकाय की स्थापना की गई है। जैसे-नगर पंचायत, नगरपालिका परिषद्, नगर निगम आदि । संविधान के 74वें संशोधन, जो 1 जून, 1993 को लागू हुआ, उसके द्वारा इन नगर निकायों को संवैधानिक दर्जा दिया गया। संविधान के भाग 9-क में अनुच्छेद 243-त से अनुच्छेद 243-च-छ तक नगरपालिका के लिए उपबंधों का समावेश किया गया है । इसके साथ ही संविधान में बारहवीं अनुसूची का समावेश किया गया है जिसमें इसके कार्य क्षेत्र से संबंधित 18 विषयों का समावेश किया गया है। नगरपालिका अथवा नगर निगम द्वारा किए जाने वाले सामाजिक-आर्थिक कार्य निम्नलिखित हैं

(i) सामाजिक-आर्थिक विकास की योजनाएँ तैयार करना ।

(ii) गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम को लागू करना ।

(iii) समाज के दुर्बल वर्गों के, जिनके अन्तर्गत विकलांग और मानसिक रूप से मंद व्यक्ति भी है,उनके हितों की रक्षा करना ।

(iv) गंदी बस्तियों को उन्नत करना।

प्रश्न 28. चुनावों में राजनीतिक दलों की भूमिका समझाइये।

उत्तर-अधिकांश देशों में राजनीतिक दलों का उदय चुनावी प्रक्रिया में हो होता है, केवल कुछ साम्यवादी देशों में राजनीतिक दलों को संवैधानिक दर्जा प्राप्त होता है। चुनावी प्रजातंत्र में राजनीतिक दलों की भूमिका बहुत महत्त्वपूर्ण हो गयी है। वास्तव में राजनीतिक दल ही चुनाव को अर्थ देते हैं व प्रजातंत्र को सफल बनाने में सहायक होते हैं। राजनीतिक दल जनता के सम्मुख चुनावों में अलग-अलग पसंद व्यक्त करते हैं। अपनी नीतियों व कार्यक्रमों से जनता को जागरूक करते हैं। राजनीतिक दल सरकारें बनाते हैं व विरोधी दलों के रूप में भूमिका निभाते हैं। राजनीतिक दल स्वस्थ जनमत निर्माण करते हैं व सरकार व अधिकारियों (नौकरशाही) पर नियंत्रण करते हैं। राजनीतिक दल जनता की राजनीतिक प्रक्रिया में भागीदारी को बढ़ाती है। राजनीतिक दलों की एक नकारात्मक भूमिका यह अवश्य रहती है कि ये जनता को संकीर्ण आधार अर्थात जाति, धर्म व भाषा आदि पर बाँटते हैं व इन आधारों पर वोट प्राप्त करने का प्रयास करते हैं जिससे देश की व समाज की एकता को खतरा पैदा होता है। चुनाव प्रजातंत्र में राजनीतिक दलों को भूमिका लगातार बढ़ रही है।

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