Class XI Political Science Set -3 Model Question Paper 2021-22 Term-2

Class XI Political Science Set -3 Model Question Paper 2021-22 Term-2

 

वर्ग- 11

विषय- राजनीतिक शास्त्र

पूर्णांक-40

समय - 1:30 घंटे

सेट-3 (Set-3)

प्रश्न 1. भारत कैसे एक गणतंत्र है ?

उत्तर: भारत एक गणतंत्र राज्य है। गणतंत्र राज्य वास्तव में वह होता है जिसमें सता राज्य के हाथ में न होकर जनता के हाथ में रहती है और जिसमें राज्य का अध्यक्ष निर्वाचित व्यक्ति होता है। भारत राज्य का सर्वोच्च अधिकारी वंशक्रमानुगत राजा न होकर भारतीय जनता द्वारा अप्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित राष्ट्रपति है।

प्रश्न 2. प्रेस की स्वतंत्रता से आपका क्या अभिप्राय है ?

उत्तर: प्रेस विचारों की अभिव्यक्ति का सबसे लोकप्रिय, सशक्त और सरल साधन है। इसमें लोगों के विचार प्रकाशित होते हैं। आज के प्रजातांत्रिक युग में तो प्रेस की स्वतंत्रता का बड़ा महत्व है। विरोधी दलों के नेताओं के विचारों को प्रकाशित करने से सरकार के मनमाने रवैये की ओर लोगों का ध्यान आकृष्ट करता है। प्रेस अपने उत्तरदायित्व का निर्वाह तभी कर सकता है जबकि प्रेस स्वतंत्र हो ।

प्रश्न 3. लोकसभा के संगठन के बारे में लिखिए।

उत्तर: भारतीय संसद के निम्न या लोकप्रिय सदन को लोकसभा का नाम दिया गया है। लोकसभा की सदस्य संख्या समय-समय पर परिवर्तित होती रही है। वर्तमान समय में इसकी सदस्य संख्या 545 है। लोकसभा के सदस्य भारतीय जनता द्वारा वयस्क मताधिकार के द्वारा प्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित होते हैं। लोकसभा का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है।

प्रश्न 4. समानता से आप क्या समझते हैं ?

उत्तर: साधारण भाषा में समानता का अर्थ है-सब व्यक्तियों का समान दर्ज हो, सबकी आय एक जैसी हो, सब एक ही प्रकार से जीवन यापन करें। पर यह सम्भव नहीं है।

प्रश्न 5. आर्थिक समानता के बारे में आप क्या जानते हैं ?

उत्तर: वर्तमान काल में आर्थिक समानता ने एक महत्वपूर्ण स्थान है। इसका यह अर्थ नहीं है कि सब व्यक्तियों की आय अथवा वेतन समान दिया जाए।

इसका अर्थ है-सबको उन्नति के समान अवसर प्रदान किये जा सभी की न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति की जाए।

प्रश्न 6. सरकार किसे कहते हैं ?

उत्तर: सरकार कानून बनाने और लागू करने वाली एक विशिष्ट संस्था है।

प्रश्न 7. धार्मिक स्वतंत्रता का अर्थ स्पष्ट कीजिए।

उत्तर:  मनुष्य के नैतिक तथा सामाजिक जीवन में धर्म का महत्वपूर्ण स्थान है। अतः प्रत्येक मनुष्य को अपनी इच्छानुसार किसी भी धर्म के स्वीकार करने, इसका पालन करने, पाठ, उपासना आदि की स्वतंत्रता को ही धार्मिक स्वतंत्रता कहते हैं। इसमें राज्य का कोई हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए और इसका किसी धर्म-विशेष के प्रति पक्षपात नहीं होना चाहिए।

प्रश्न 8. 74वें संविधान संशोधन द्वारा बारहवीं सूची में सम्मिलित आर्थिक सामाजिक विकास संबंधी कार्य का विवरण प्रस्तुत कीजिए जो नगर निगम नगरपालिका को सौंपे गये हैं।

उत्तर: नगरों में स्वशासन की स्थापना के लिए नगरीय निकाय की स्थापना की गई है। जैसे-नगर पंचायत, नगरपालिका परिषद्, नगर निगम आदि। संविधान के 74वें संशोधन, जो 1 जून, 1993 को लागू हुआ, उसके द्वारा इन नगर निकायों को संवैधानिक दर्जा दिया गया। संविधान के भाग 9-क में अनुच्छेद अनुच्छेद-243(पी) से अनुच्छेद 243(जेडजी) तक नगरपालिका के लिए उपबंधों का समावेश किया गया है। 74वें संविधान संशोधन अधिनियम की बारहवीं अनुसूची [अनुच्छेद-243 (डब्ल्यू) के अंतर्गत] में नगरपालिकाओं एवं नगर निगमों के 18 बड़े कार्यों का उल्लेख किया गया है। ये कार्य इस प्रकार हैं-

1. नगर नियोजन एवं शहरी नियोजन;

2. भूमि के उपयोग पर नियंत्रण एवं भवनों का निर्माण;

3. आर्थिक एवं सामाजिक विकास के लिये योजनाओं का निर्माण;

4. सड़कें एवं पुल,

5. घरेलू, वाणिज्यिक एवं औद्योगिक उद्देश्यों के लिये पानी की आपूर्ति,

6. लोक स्वास्थ्य, स्वच्छता एवं ठोस अपशिष्ट प्रबंधन,

7. अग्नि सेवायें;

8. शहरी वानिकी, पर्यावरण का संरक्षण एवं पारिस्थितिकीय कारणों को प्रोत्साहन;

9. समाज के कमजोर वर्गों के हितों को संरक्षण, जिसमें विकलांगों एवं मानसिक से रूप विक्षिप्त व्यक्तियों की सहायता भी सम्मिलित है;

10. झुग्गी-झोंपड़ी सुधार;

11. शहरी निर्धनता उन्मूलन;

12. शहरी सुविधाओं में वृद्धि, जिनमें पार्को, उद्यानों एवं खेल के मैदानों की स्थापना एवं रख-रखाव भी सम्मिलित हैं;

13. सांस्कृतिक, शैक्षिक एवं अन्य कार्यक्रमों को प्रोत्साहन;

14. श्मशानों ( दाह संस्कार स्थल) एवं विद्युत शवदाह गृहीं की उचित व्यवस्था;

15. चारागाहों की व्यवस्था एवं आवारा पशुओं पर रोक;

16. जन्म एवं मृत्यु का पंजीकरण;

17. प्रकाश व्यवस्था पाकिंग स्थलों, बस स्टापों एवं जन- सुविधा परिसरों इत्यादि की स्थापना, तथा;

18. बूचड़खानों का प्रबंध

प्रश्न 9. 42वें संशोधन द्वारा संविधान में अंकित किन्ही चार मौलिक कर्तव्यों का वर्णन करें।

उत्तर: भारतीय संविधान में मौलिक अधिकारों की व्यवस्था की गई थी। परन्तु 42 वे संशोधन द्वारा संविधान में एक नया भाग IV-A "मौलिक कर्तव्य" शामिल किया गया है। इस नए भाग में 51-A नाम का एक नया अनुच्छेद जोड़ा गया है जिसमें नागरिकों के 10 मौलिक कर्तव्य का वर्णन किया गया है। चार मौलिक कर्तव्य इस प्रकार है।

1. संविधान, राष्ट्रीय झण्डे तथा राष्ट्रीय गीत का सम्मान करना भारतीय नागरिक का प्रथम कर्तव्य यह है कि वे पूर्ण श्रद्धा से संविधान, राष्ट्रीय झण्डे तथा राष्ट्रीय गीत का सम्मान करें।

2. राष्ट्रीय स्वतंत्रता आन्दोलन के उद्देश्यों को स्मरण तथा प्रफुल्लित करना 42 वें संशोधन के अन्तर्गत लिखा गया है कि, "प्रत्येक भारतीय नागरिक का यह कर्तव्य है कि स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए किए गए राष्ट्रीय संघर्ष को प्रोत्साहित करने वाले आदर्श का सम्मानपूर्वक पालन करें।"

3. भारतीय प्रभुसता, एकता और अखण्डता का समर्थन तथा भारतीय संविधान की प्रस्तावना भारत को एक प्रभुसत्ता, समाजवादी, निरपेक्ष, लोकतंत्रीय गणराज्य घोषित किया गया है। प्रत्येक भारतीय नागरिक का यह कर्तव्य है कि वह भारत की प्रभुसत्ता, एकता तथा अखण्डता का समर्थन एवं रक्षा करें।

4. लोगों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण फैलाना प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य है कि वह वैज्ञानिक स्वभाव, मानववाद तथा जाँच करने और सुधार करने की भावना को विकसित करें।

प्रश्न 10. मौलिक कर्तव्य का क्या महत्व है ?

उत्तर: मौलिक कर्तव्यों का महत्व

1. राष्ट्र के प्रति कर्तव्य को पूरा करने के लिए एक निरंतर अनुस्मारक: मौलिक कर्तव्य प्रत्येक भारतीय नागरिक को याद दिलाते हैं कि सभी मौलिक अधिकारों के हकदार होने के साथ-साथ कुछ ऐसे कर्तव्य भी हैं जिन्हें उन्हें एक महान राष्ट्र के निर्माण की दिशा में काम करते हुए निभाने और पूरा करने की आवश्यकता है। उन्हें समझना चाहिए कि अधिकार और कर्तव्य साथ-साथ चलते हैं।

2. असामाजिक गतिविधियों के खिलाफ चेतावनी: जो लोग बुनियादी नियमों के उल्लंघन में मज़ा लेते हैं और सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाते हैं या भारतीय ध्वज को जलाते हैं, या किसी भी तरह से आम जनता की शांति में बाधा डालते हैं, ये मौलिक कर्तव्य एक अनुस्मारक हैं कि यदि ठीक से पालन नहीं किया जाता है, तो वे कर सकते हैं गंभीर परिणाम की ओर ले जाते हैं।

3. प्रतिबद्धता और अनुशासन की भावना: वे देशभक्ति की भावना पैदा करते हैं और लोगों में प्रतिबद्धता और अनुशासन की भावना पैदा करते हैं। वे उन कर्तव्यों की निरंतर याद दिलाते हैं जो आपके देश के प्रति हैं और कैसे उनकी पूर्ति आपकी बेहतरी और देश की बेहतरी के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।

4. यह निर्धारित करने में सहायता करें कि कोई कानून संवैधानिक है या नहीं: सार्वजनिक हितों के मामलों में, अदालत यह निर्धारित करने में मदद करने के लिए मौलिक कर्तव्यों की ओर रुख कर सकती है कि क्या कोई विशेष निर्णय जनता के सामान्य हित में बाधा डाल सकता है या उनके पक्ष में काम करेगा। यदि कोई कानून मौलिक अधिकारों में से किसी एक के उत्थान के लिए काम करता है, तो उसे एक वैध कानून घोषित किया जा सकता है और उसे मंजूरी दी जा सकती है।

5. उल्लंघन पर जुर्माना लगाना: प्रत्येक नागरिक को मौलिक कर्तव्यों का पालन करने की आवश्यकता है। मौलिक कर्तव्यों के महत्व को समझने में विफलता और उनके उल्लंघन के प्रयास के परिणामस्वरूप न्यायपालिका से सख्त कार्रवाई हो सकती है।

6. संप्रभुता बनाए रखना: जब लोग कुछ निश्चित कर्तव्यों को पूरा करने का लक्ष्य रखते हैं, तो उन्हें भाईचारे और एकता की भावना मिलती है। यह संविधान और उसके लोगों के बीच एक सामंजस्यपूर्ण संबंध स्थापित करने में मदद करता है।

प्रश्न 11. शांति की स्थापना में संयुक्त राष्ट्र संघ की भूमिका की विवेचना कीजिए

उत्तर: द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना 24 अक्तूबर, 1945 को हुई जिसने मानवजाति के साथ विशेष रूप से जापान पर बम गिराये जाने के बाद महत्वपूर्ण कार्य किया क्षेत्रीय स्तर पर अनेक युद्धों, प्रथम विश्वयुद्ध और द्वितीय विश्वयुद्ध ने अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण को बदल दिया और विश्व हिंसा में तनाव भर गया।

संयुक्त राष्ट्र संघ से अपने चार्टर में अंतर्राष्ट्रीय शांति स्थापित करने को मुख्य उद्देश्य बनाया है और सुरक्षा परिषद् ने अंतर्राष्ट्रीय शांति को स्थापित करने और कायम रखने का एकल उत्तरदायित्व लिया है। संयुक्त राष्ट्र संघ अपने अनेक एजेंसियों के द्वारा अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा को आपसी सहयोग द्वारा परिवर्तित प्रयास किया। संयुक्त राष्ट्र ने आपसी सहयोग द्वारा विश्व के राष्ट्रों के मध्य समझ बनाने का प्रयास किया है जिससे अंतर्राष्ट्रीय शांति को बढ़ावा देने के लिए स्वस्थ वातावरण बन सके।

प्रश्न 12. कल्याणकारी राज्य से आप क्या समझते हैं ?

उत्तर: आधुनिक समाज में राज्य के कार्य संबंधी लोक कल्याण सिद्धांत प्रचलित हैं जो व्यक्तिवाद का आदेश, स्वतंत्रता और समाजवाद का आदेश आर्थिक सुरक्षा के आधार पर समाज का निर्माण करता है। वास्तव में राज्य का कल्याणकारी सिद्धांत व्यक्तिवादी है जिसमें समाजवादी सिद्धांत का सार तत्व शामिल है और जिसके द्वारा जनता का कल्याण हो सकता है। इस सिद्धांत के अनुसार राज्य नागरिकों के भलाई के लिए आवश्यक यंत्र है। कल्याणकारी राज्य का मुख्य उद्देश्य नागरिकों के जीवन को सुखी सम्पन्न बनाना।

प्रश्न 13. विकास की प्रक्रिया ने किन नए अधिकारों के दावों को जन्म दिया है ?

उत्तर: लोकतांत्रिक सहभागिता के रूप में नई माँगें समाज और राजनीति के लोकतांत्रिक ढाँचे में और आधुनिक युग में प्रत्येक व्यक्ति अपना अच्छा जीवन व्यतीत करना चाहता है। इसलिए प्रत्येक व्यक्ति निर्णय निर्माण प्रक्रिया, विकास के लक्ष्यों के निर्धारण और इसके कार्यान्वयन की प्रणाली में शामिल होना पसंद करता है। ऐसा सहभागिता के उद्देश्य और शक्तिशाली होने के लिए किया जाता है।

विकास और लोकतंत्र सामान्य हित को अनुभव करने से सम्बन्धित है। लोकतान्त्रिक राजनीतिक उद्देश्य सामान्य हित के लोगों के अधिकार को प्राप्त करने से है। यह संसाधनों के अधिकतम सदुपयोग द्वारा विकास की प्रक्रिया और सामान्य लोगों को विकास का लाभ लेने से सम्भव है। लोकतांत्रिक समाजों में लोगों की सहभागिता के अधिकार की प्रशंसा की गई है और इसपर जोर दिया गया है। इस प्रकार की सहभागिता की एक विधि यह बताई जाती है कि स्थानीय क्षेत्रों में विकास की परियोजनाओं के विषय निर्णय निर्माण संस्था को निर्णय लेने देना चाहिए। इसीलिए अधिकार संसाधन जो स्थानीय निकायों के हैं, बढ़ाये जा रहे हैं। भारतीय संविधान का 73वाँ और 74वाँ संशोधन इस दिशा में किये गये प्रयास हैं। इन संशोधनों के द्वारा सभी वर्ग के लोगों की सहभागिता को सुनिश्चित करने के लिए प्रयास हो रहे हैं। इसके साथ यह कार्य कमजोर वर्ग जैसे महिलाओं, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति और पिछड़े वर्गों के लिए भी किया जा रहा है, जिससे वे विकासगत परियोजनाओं को प्रेरित कर सकें।

प्रश्न 14. हम कैसे कह सकते हैं कि भारत का शांति का दृष्टिकोण व्यापक है ?

उत्तर:

1. भारत की विदेश नीति का दृष्टिकोण (नजरिया) व्यापक है। भारत की विदेश नीति विश्व-शांति के लिए लगातार प्रयासरत है। भारत अन्य देशों की अंतर्राष्ट्रीय समस्याओं पर सकारात्मक भूमिका निभाता रहा है। देश की विदेश नीति के उद्देश्य और सिद्धांत हैं हर तरह का साम्राज्यवाद का विरोध करना तथा सभी देशों को उपनिवेशी मामलों से स्वतंत्रता, रंग-भेद नीति का बहिष्कार, भुखमरी तथा बीमारी को जड़ से उखाड़ना, सभी देशों के साथ मित्रता के संबंध स्थापित करना व संयुक्त राष्ट्र संघ तथा अन्य संगठनों और अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं में सक्रिय भागीदारी की भूमिका निभाना ।

2. दूसरे भारत की शांति नीति का दृष्टिकोण नकारात्मक या युद्ध विरोधी नहीं है, किन्तु हम यह मानते हैं कि युद्ध के कारणों को समाप्त किए बिना विश्व में चिरकालीन स्थायी शांति की स्थापना नहीं की जा सकती। भारत चाहता है सभी देश अपने अनावश्यक विनाशकारी हथियारों का विनाश कर दें तथा सभी राष्ट्र स्वेच्छा से निशस्त्रीकरण संबंधी संधियों पर सच्चे मन से हस्ताक्षर कर दें।

प्रश्न 15. किन आधारों पर मौलिक अधिकारों की आलोचना की गई हैं? संक्षेप में व्याख्या करें।

उत्तर: भारतीय संविधान में जो अधिकार दिए गए हैं, उनको देखने से भी पता चलता है कि नागरिकों के पास अधिकारों व स्वतंत्रताओं की कमी नहीं है और वे इनका प्रयोग करके अपने व्यक्तित्व का विकास कर सकते हैं, अधिकारों की आलोचना की गई है परन्तु मौलिक अधिकारों की निम्नलिखित आधारों पर कड़ी आलोचना की गई है

1. बहुत अधिक बन्धन- मौलिक अधिकार पर इतने प्रतिबंध लगाए गए हैं कि अधिकारों का महत्व बहुत कम हो गया है। इन अधिकारों पर इतने अधिक प्रतिबंध हैं कि नागरिकों को यह समझने में कठिनाई आँती है कि इन अधिकारों द्वारा कौन-कौन-सी सुविधाएँ दी गई हैं।

2. निवारक नजरबन्दी व्यवस्था- अनुच्छेद 22 के अन्तर्गत व्यक्तिगत स्वतंत्रता की व्यवस्था की गई है। परन्तु इसके साथ ही संविधान में निवारक नजरबन्दी की व्यवस्था की गई है। जिन व्यक्तियों को निवारक नजरबन्दी कानून के अन्तर्गत गिरफ्तार किया गया हो, उसको अनुच्छेद 22 में दिए गए अधिकार प्राप्त नहीं होते। निवारक नजरबन्दी के अधीन सरकार कानून बनाकर किसी भी व्यक्ति को बिना मुकदमा चलाए अनिश्चित काल के लिए जेल में बन्द कर सकती तथा उसकी स्वतंत्रता का हनन कर सकती है।

प्रश्न 16. भारतीय चुनाव प्रणाली को समझाइये ।

उत्तर: भारत में प्रतिनिध्यात्मक प्रजातंत्र को अपनाया गया है जिसमें समय-समय पर विभिन्न स्तर पर विभिन्न पदों के लिए चुनाव की प्रक्रिया जारी रहती है। संविधान के निर्माताओं ने इस प्रक्रिया को सम्पन्न कराने के लिए एक स्वतंत्र व निष्पक्ष चुनाव आयोग के गठन की व्यवस्था की है। चुनाव में हिस्सा लेने के लिए भारत में वयस्क मताधिकार को अपनाया गया है अर्थात् प्रत्येक वयस्क व्यक्ति को चुनाव में मत प्रयोग का अधिकार होगा चाहे वह किसी भी जाति, धर्म, भाषा स्तर व लिंग का हो।

आजकल भारत में 18 वर्ष के व्यक्ति को वयस्क माना गया है। भारतीय चुनाव प्रणाली की दूसरी विशेषता यह है कि चुनाव क्षेत्रों का निर्माण क्षेत्रीय आधार पर किया जाता है अर्थात् पूरे देश को निश्चित चुनाव क्षेत्रों में बाँट लिया जाता है। इस चुनाव क्षेत्र में प्रत्येक व्यक्ति अपनी इच्छा व पसंद के आधार पर मत का प्रयोग करता है। परन्तु एक निश्चित क्षेत्र से चुने जाने वाला व्यक्ति उस क्षेत्र में रहनेवाले प्रत्येक सदस्य का प्रतिनिधित्व करता है चाहे उसने उसको वोट दी हो अथवा नहीं। इस प्रकार से यह एक संयुक्त चुनाव क्षेत्र होता है। चुनाव में निर्णय बहुमत के द्वारा ही लिया जाता है। अर्थात् चुनाव में जो उम्मीदवार अन्य उम्मीदवारों से ज्यादा मत प्राप्त करता है उसको विजयी घोषित किया जाता है। इस प्रणाली को फ.पा.दी. पो. (फर्स्ट पास्ट दी पोस्ट) प्रणाली कहते हैं।

यद्यपि कुछ पदों जैसे राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति राज्य सभा के सदस्यों के चुनाव में आनुपातिक मत प्रणाली की एकल संक्रमणीय मत प्रणाली का प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न 17. भारत के विगत 14 आम चुनावों के दौरान मतदाता के प्रतिमानों व रुझानों का वर्णन कीजिए।

उत्तर: विगत चौदह आम चुनावों के दौरान भारतीय मतदाताओं के द्वारा मतदान व्यवहार के जो प्रतिमान व रुझान प्रकट हुए हैं उनका विवरण निम्न प्रकार है-मतदाताओं के निर्णय अपने सामाजिक समूह, दीर्घकालिक सम्बन्ध, चुनाव के मुद्दों की समझ-बूझ के अर्थव्यवस्था की दशा दल का नेतृत्व करने वाले नेताओं तथा दल की छवि, चुनाव अभियान तथा राष्ट्रीय मुद्दों पर ध्यान देते हुए मतदान किया गया है। भारतीय मतदाता के बारे में जो प्रारंभ में आशंकाएँ प्रकट की गयी थीं उन्हें मतदाता ने निर्मूल सिद्ध किया और लोकतंत्र की जड़ों को मजबूत करते हुए भारतीय मतदाता ने अपनी परिपक्वता का परिचय दिया है। समय के साथ निर्दलीय उम्मीदवारों की भूमिका और उनका भाग्य अन्धकारमय बना है।

1951-52 से लेकर 1969 तक पहले चार आम चुनावों में भारतीय मतदाताओं ने कॉंग्रेस के पक्ष में मतदान किया है। 1971 में इंदिरा गाँधी के नेतृत्व और उनके द्वारा 'गरीबी हटाओ' के नारे का सम्मान करते हुए कॉंग्रेस (ई) को भारी बहुमत से चुनाव जिताया। 1977 में इंदिरा गाँधी की नीतियों को ठुकराते हुए भारतीय मतदाता ने जनता पार्टी को सतारूढ़ किया परंतु उसके घटक दलों में एकता और समन्वय की भावना न रहने के कारण 1980 में भारतीय मतदाता ने फिर से राष्ट्रीय एकता को ध्यान में रखते श्रीमती इंदिरा गाँधी की कॉंग्रेस को पुनः सत्ता सौंप दी। 1984 में इंदिरा गाँधी की हत्या से उत्पन्न सहानुभूति और भ्रष्टाचार समाप्त करने की आशा में राजीव गाँधी को पूर्ण बहुमत दिया। इसके बाद से स्थानीय हितों की उपेक्षा से नाराज होकर भारतीय मतदाता किसी एक दल को पूर्ण बहुमत न देते हुए गठबन्धन का जनादेश देता गया है।

18. "नौकरशाही" की भूमिका का वर्णन कीजिए। अघवा, आधुनिक राज्य में नौकरशाही के कार्यों का वर्णन कीजिए।

उत्तर: नौकरशाही का शासन पर बहुत प्रभाव बढ़ गया है। बिना नौकरशाही ई शासन चलाना और दश का विकास करना अत्यन्त कठिन कार्य है। नौकरशाही का महत्व इसलिए बढ़ गया है कि आधुनिक राज्य एक कल्याणकारी राज्य है। कल्याणकारी राज्य होने के कारण राज्य के कार्य इतने बढ़ गये हैं कि सब कार्य मंत्री नहीं कर सकते। मंत्रियों के फैसलों को कार्यरूप देने के लिए स्थायी कर्मचारियों अर्थात् नोकरशाही की आवश्यकता पड़ती है। इसके अतिरिक्त मंत्रियों के पास वैसे भी समय कम होता है, जिसके कारण वे प्रत्येक सूचना स्वयं प्राप्त नहीं कर पाते। आधुनिक राज्य में नौकरशाही की भूमिका का वर्णन हम निम्नलिखित शीर्षकों के अंतर्गत कर सकते हैं

लोकसेवकों के कार्य-

1. मंत्रियों को परामर्श देना-संसदीय शासन में मंत्री जनता के प्रतिनिधि होते हैं जो अपने राजनीतिक दल की नीतियों को कार्यान्वित करने के लिए वचनबद्ध होते हैं। इस दृष्टि से शासन की नीतियों का निर्धारण करने का कार्य मंत्री ही करते हैं किन्तु इन मंत्रियों को अपने विभाग की बारीकियों का पता नहीं होता। अतः नीतियों को कार्यान्वित करने के लिए विभाग के सचिवों का कर्तव्य होता है कि वे संबंधित जानकारी मंत्री तक पहुँचाए। वे आवश्यक जानकारी सूचनाएँ व ऑकड़े एकत्रित करते हैं और उन नीतियों की सफलता के संबंध में मैत्रियों को परामर्श देते हैं। इस प्रश्न के अभाव में नीतियों को सफलतापूर्वक लागू करना बहुत कठिन है।

2. नीतियों को कार्यान्वित करना मंत्रियों द्वारा निश्चित की गई नीति को सफल बनाना लोक प्रशासकों का कर्तव्य होता है।

प्रश्न 19. भारत का राष्ट्रपति किन आपातकालीन शक्तियों का प्रयोग कर सकता है ?

उत्तर: आपातकालीन शक्तियां

संविधान के भाग 18 में अनुच्छेद 352 से अनुच्छेद 360 तक आपातकालीन शक्तियों का प्रावधान है। जिसके अनुसार राष्ट्रपति तीन तरह के आपात की घोषणा कर सकता है, जो निम्नलिखित है-

1. राष्ट्रीय आपातकाल (अनुच्छेद 352):

(1) अनुच्छेद 352 के तहत राष्ट्रीय आपातकाल निम्न तीन परिस्थितियों में लगाया जा सकता है-

बाह्य आक्रमण

भारत द्वार किसी युद्ध में शामिल हो जाने पर

सशस्त्र विद्रोह

(2) अनुच्छेद 352 में यह भी उल्लेखित है, कि इन तीनों परिस्थितियों के वास्तविक रूप में नहीं होना अर्थात केवल संभावना होने पर भी राष्ट्रीय आपातकाल लगाया जा सकता है।

(3) अब तक तीन बार राष्ट्रीय आपातकाल लगाया गया है। चीनी आक्रमण (1962)26 अक्टूबर 1962 से 10 जून 1963 तक। ( प्रधानमंत्री- जवाहरलाल नेहरू तथा राष्ट्रपति- डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ) ।

पाकिस्तान आक्रमण (1971) दिसंबर 1971 से 21 मार्च 1968 तक। (प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी, तथा राष्ट्रपति- वी. वी.गिरी)

आंतरिक असंतोष (1975) - (प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी तथा राष्ट्रपति- फखरुद्दीन अली अहमद )

2. राष्ट्रीय शासन आपातकाल (अनुच्छेद 356):

अनुच्छेद 356 के अनुसार यदि राष्ट्रपति को किसी राज्य के राज्यपाल या अन्य किसी राज्य से यह पता चलता है, कि ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई है, जिसमें वहां के राज्य का शासन संविधान के प्रबंधक एवं नियमों के अनुसार नहीं चलाया जाता है। तब राष्ट्रपति उस राज्य की मंत्रिपरिषद को बर्खास्त कर सकता है। इस स्थिति को सामान्य बोलचाल में राष्ट्रीय शासन लागू होना कहते हैं।

किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन 1 वर्ष से अधिक अवधि के लिए तभी जारी रह सकता है, जब अनुच्छेद 352 के तहत आपातकाल लगा हो। या निर्वाचन आयोग यह परमादेश कर दें, कि चुनाव संभव नहीं है, लेकिन किसी भी परिस्थिति में राज्य में 3 वर्ष से अधिक समय राष्ट्रपति शासन नहीं रह सकता। राष्ट्रपति की शक्तियां राष्ट्रपति के कार्य।

1967 तक जब केंद्र सरकार और अधिकांश राज्यों में कांग्रेस का एक सदन था तब केवल 7 बार ही राष्ट्रपति शासन लागू हुआ था। उसके बाद में जैसे ही विपक्षी पार्टियों की राज्यों में सरकारें बनने लगी, तब इस अनुच्छेद का प्रयोग बड़े पैमाने पर होने लगा था। राजस्थान में चार बार अनुच्छेद 356 अर्थात राष्ट्रपति शासन का‌ प्रयोग किया जा चुका है।

3. वित्तीय आपातकाल (अनुच्छेद 360):

इस अनुच्छेद के अनुसार यदि राष्ट्रपति को यह विश्वास हो जाता है, कि भारत में ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई है, जिससे भारत का वित्तीय स्थायित्व संकट में आ चुका है। तब राष्ट्रपति वित्तीय आपातकाल की घोषणा कर सकता है।

भारत में वित्तीय आपातकाल की घोषणा अर्थात अनुच्छेद 360 का प्रयोग अब तक एक बार भी नहीं किया गया है

वित्तीय आपातकाल की अधिकतम अवधि के संदर्भ में संविधान में कोई प्रावधान नहीं किया गया है।

अनुच्छेद 360 में यह स्पष्ट उल्लेख किया गया है कि वित्तीय आपातकाल लग जाने पर न्यायाधीशों का वेतन कम किया जा सकता है तथा सरकारों के बजट केंद्र सरकार की अनुमति से लागू होते हैं।

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