Class XII (History) 9. Rulers and Various Chronicles : Mughal Court

9. शासक और विभिन्न इतिवृत्त : मुगल दरबार

9. शासक और विभिन्न इतिवृत्त : मुगल दरबार

उत्तर दीजिए (लगभग 100-150 शब्दों में)

प्रश्न 1. मुगल दरबार में पाण्डुलिपि तैयार करने की प्रक्रिया का वर्णन कीजिए।

उत्तर: मुगलकाल में समस्त पुस्तकें हाथ से लिखी जाती थीं अर्थात् समस्त पुस्तकें पांडुलिपियों के रूप में थीं। पांडुलिपि रचना का मुख्य केन्द्र शाही किताबखाना था। किताबखाना एक लिपिघर था जहाँ बादशाह की पांडुलिपियों का संग्रह रखा जाता था एवं पांडुलिपियों की रचना की जाती थी। मुगलकाल में पाण्डुलिपियाँ तैयार करने में विभिन्न प्रकार के कार्य करने वाले अनेक व्यक्ति शामिल होते थे। कागज बनाने वालों की, पाण्डुलिपि के पन्ने बनाने वाले सुलेखकों की, पाठ की नकल तैयार करने, कोफ्तगारों की पृष्ठों को चमकाने के लिए, चित्रकारों की पाठ के दृश्यों को चित्रित करने के लिए तथा जिल्दसाजों की प्रत्येक पन्ने को इकट्ठा कर उसे अलंकृत आवरण में बैठाने हेतु आवश्यकता होती थी। तैयार पाण्डुलिपि को एक बहुमूल्य वस्तु, बौद्धिक सम्पदा तथा सौन्दर्य-कार्य के रूप में देखा जाता था। मुगल सम्राट पाण्डुलिपि तैयार करने वालों को विभिन्न पदवियाँ तथा पुरस्कार देते थे। इसके अतिरिक्त पाण्डुलिपि के लेखन पर भी विशेष ध्यान दिया जाता था।

प्रश्न 2. मुगल दरबार से जुड़े दैनिक-कर्म और विशेष उत्सवों के दिनों ने किस तरह से बादशाह की सत्ता के भाव को प्रतिपादित किया होगा ?

अथवा  : "मुगल शक्ति का सुस्पष्ट केन्द्र बादशाह का दरबार था।" उपयुक्त तर्कों के साथ इस कथन को न्यायसंगत ठहराइए।

उत्तर: मुगल शक्ति का सुस्पष्ट केन्द्र बादशाह का दरबार था। इस सम्बन्ध में निम्नलिखित बिन्दु महत्वपूर्ण हो सकते हैं

1. राजसिंहासन--मुगल शासन की सत्ता का केन्द्र राजसिंहासन था जहाँ से सम्राट के कार्यों को व्यावहारिक स्वरूप प्रदान किया जाता था।

2. दरबार में अनुशासन दरबार में बादशाह जब सिंहासन पर बैठ जाता था तो किसी को भी अपने स्थान से कहीं और जाने की अनुमति नहीं होती थी। न ही कोई बादशाह की अनुमति के बिना दरबार से बाहर जा सकता था। दरबार के नियमों का उल्लंघन करने वालों को तुरन्त दण्डित किया जाता था।

3. अधिकारियों के बैठने का स्थान-मुगल दरबार में अधिकारियों की स्थिति उनके बैठने के स्थान से ज्ञात होती थी। सामान्यतः जो दरबारी सम्राट के जितने समीप बैठता था वह उतना ही बड़ा अधिकारी माना जाता था।

4. दरबारियों का सम्मान प्रकट करने का माध्यम मुगल शासक को अभिवादन करने के तरीके से अभिवादनकर्ता की हैसियत का पता चलता था।

5. झरोखा दर्शन-बादशाह अपने दिन का आरम्भ सूर्योदय के साथ कुछ धार्मिक प्रार्थनाओं से करता था।  इसके बाद बादशाह पूर्वमुखी छज्जे अर्थात् झरोखे में आता था, जहाँ से वह जनता को दर्शन देता था। झरोखा दर्शन की प्रथा का उद्देश्य शाही सत्ता के प्रति जनविश्वास को बढ़ावा देना था।

6. दीवान-ए-आम अपनी सत्ता के कार्यों को पूर्ण करने के लिए बादशाह दीवान- ए-आम में जाता था। वहाँ राज्य के उच्च अधिकारी बादशाह को अपना-अपना प्रतिवेदन प्रस्तुत करते थे।

7. विशेष उत्सवों के अवसर-बादशाह अनेक धार्मिक उत्सव तथा त्योहार अपने राज-दरबार में मनाता था। इन अवसरों पर विशेष साज-सज्जा की जाती थी तथा अपार धनराशि व्यय की जाती थी।

प्रश्न 3. मुगल साम्राज्य में शाही परिवार की स्त्रियों द्वारा निभाई गयी भूमिका का मूल्यांकन कीजिए।

उत्तर: मुगल साम्राज्य में शाही परिवार की स्त्रियों द्वारा निभाई गई भूमिका को निम्न बिन्दुओं के अन्तर्गत प्रस्तुत कर सकते

1. नूरजहाँ ने महिलाओं की शासन में भागीदारी एवं नियंत्रण की प्रथा का चलन प्रारम्भ किया। जहाँगीर के समय नूरजहाँ ही वास्तविक शासिका मानी जाती थी।

2. नूरजहाँ के पश्चात् मुगल रानियों और राजकुमारियों ने महत्वपूर्ण वित्तीय स्रोतों पर नियन्त्रण रखना प्रारम्भ कर दिया। शाहजहाँ की पुत्रियजहाँआरा एवं रोशनआरा को ऊँचे मनसबदारों के समान वार्षिक आय प्राप्त होती थी। इसके अतिरिक्त जहाँआरा को सूरत नगर से भी राजस्व की प्राप्ति होती थी। यह नगर बंदरगाह विदेशी व्यापार का प्रमुख केन्द्र था।

3. जहाँआरा ने शाहजहाँ की नई राजधानी शाहजहाँनाबाद (दिल्ली) की कई वास्तुकला परियोजनाओं में भाग लिया। दिल्ली के हृदयस्थल चाँदनी चौक का डिजाइन भी जहाँआरा ने तैयार किया था।

4. गुलबदन बेगम द्वारा रचित हुमायूँनामा से हमें मुगलों की घरेलू दुनिया की एक झलक मिलती है। गुलबदन बेगम बाबर की पुत्री व हुमायूँ की बहन थी जो तुर्की व फारसी में धाराप्रवाह लिख सकती थी। उसने राजाओं और राजकुमारों के मध्य होने वाले संघर्षों और तनावों के बारे में लिखा था। उसने संघर्षों के घमासान में परिवार की वृद्ध महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका के बारे में विस्तार से लिखा था।

प्रश्न 4. वे कौन-से मुद्दे थे जिन्होंने भारतीय उपमहाद्वीप से बाहर के क्षेत्रों के प्रति मुगल-नीतियों व विचारों को आकार प्रदान किया ?

उत्तर: इसे हम निम्नलिखित बिन्दुओं के माध्यम से समझ सकते हैं

(i) शाही पदवियाँ-मुगल शासकों ने अनेक प्रकार की शाही पदवियाँ ग्रहण की, इनमें से प्रमुख हैं

(अ) शहंशाह-राजाओं का राजा,

(ब) जहाँगीर-विश्व पर अधिकार करने वाला तथा

(स) शाहजहाँ-विश्व का राजा इत्यादि।

(ii) कंधार का किला-नगर वस्तुतः यह किला मुगलों तथा सफावियों के मध्य झगड़े का मुख्य कारण था जो आरम्भ में हुमायूँ के नियन्त्रण में था। अकबर ने 1595 ई. में इस पर पुनः अधिकार कर लिया। जहाँगीर ने 1613 ई. में शाह अब्बास को इसे मुगलों को देने को कहा, किन्तु उसे सफलता नहीं मिली।

(iii) तूरानियों तथा ईरानियों से सम्बन्ध-प्रायः मुगल शासकों के ईरान तथा तूरान जैसे देशों से सम्बन्ध हिन्दुकुश पर्वत द्वारा निर्धारित सीमा पर आधारित थे।

(iv) ईसाई धर्म-मुगल दरबार में निरन्तर ईसाई पादरी तथा यात्री आया करते थे। मुगल दरबार के सन्दर्भ में यूरोपीय विवरणों में जेसुइट का विवरण सबसे प्राचीन है। 15 वीं शताब्दी के अन्त में भारत तक सीधे समुद्री मार्ग का अनुसरण करते हुए पुर्तगाली व्यापारियों ने तटीय क्षेत्रों में व्यापारिक केन्द्रों की स्थापना की।

(v) ऑटोमन साम्राज्य : तीर्थयात्रा तथा व्यापार-मुगल बादशाह ऑटोमन राज्य के साथ अपने सम्बन्धों में धर्म तथा व्यापार को जोड़ने का प्रयास करते थे। वे बिक्री से प्राप्त आय को फकीरों तथा धार्मिक स्थलों में वितरित कर देते थे। औरंगजेब को जब भेजे जाने वाले धन के दुरुपयोग होने की सूचना मिली तो उसने भारत में उसके वितरण का समर्थन किया।

प्रश्न 5. मुगल प्रान्तीय प्रशासन के मुख्य अभिलक्षणों की चर्चा कीजिए। केन्द्र किस तरह प्रान्तों पर नियन्त्रण रखता था ?

उत्तर: मुगलों के प्रान्तीय शासन का प्रमुख अधिकारी सूबेदार होता था। सूबेबे (प्रान्त) में भी केन्द्र के समान दीवान, बख्शी तथा सद्र इत्यादि होते थे। सूबे का प्रधान अर्थात् सूबेदार प्रत्यक्ष रूप से शासक को अपना प्रतिवेदन प्रस्तुत करता था। अकबर के समय मुगल सूबों की कुल संख्या 15 थी जो औरंगजेब के समय बढ़कर 20 हो गयी। मुगल सूबों का सर्वोच्च वित्त अधिकारी दीवान था जिसकी नियुक्ति बादशाह केन्द्रीय दीवान की सलाह पर करता था। सूबे की वित्त व्यवस्था पर नियन्त्रण, आय-व्यय का विवरण, लगान तथा कृषि की देख-रेख, अधीनस्थ वित्त अधिकारियों पर नियन्त्रण, सूबे की आर्थिक स्थिति की सूचना केन्द्र को प्रेषित करना तथा दीवानी विवादों का निर्णय करना; प्रान्तीय दीवान के मुख्य कार्य थे। सूबे का.एक अन्य महत्वपूर्ण अधिकारी बख्शी था। इसका मुख्य उत्तरदायित्व प्रान्तीय सेना की देखभाल करना था।

सूबे में सेना की संख्या सुनिश्चित करना, सेना का संगठन तथा उस तक पर्याप्त रसद पहुँचाना; बख्शी का मुख्य दायित्व माना जाता था। यह भी प्रत्यक्ष रूप से केन्द्र के अधीन कार्य करता था। वाकिया-ए-नवीस सूबे की गुप्तचर व्यवस्था का प्रधान था। अत: यह सूबे के शासन की प्रत्येक घटना, यहाँ तक कि सूबेदार तथा दीवान के कार्यों की सूचना भी, केन्द्रीय प्रशासन को भेजता था। यह सूबे में अति महत्वपूर्ण अधिकारी माना जाता था। उपर्युक्त अधिकारियों के अतिरिक्त सूबे में एक सद्र-ए-काजी भी होता था, यह केन्द्रीय सद्र-उस-सुदूर अथवा मुख्य काजी के प्रत्यक्ष नियन्त्रण में रहता था। सूबे की राजधानी तथा बड़े नगरों में शान्ति और सुरक्षा, स्वास्थ्य तथा सफाई, यात्रियों आदि की देखभाल कोतवाल करता था।

निम्नलिखित पर एक लघु निबंध लिखिए (लगभग 230-300 शब्दों में)

प्रश्न 6. उदाहरण सहित मुगल इतिहासों के विशिष्ट अभिलक्षणों की चर्चा कीजिए।

उत्तर: मुगल साम्राज्य एक शक्तिशाली राज्य था। यहाँ मुगल इतिहास के विभिन्न अभिलक्षणों का विस्तृत विवरण निम्नलिखित

(i) राजकीय अथवा दरबारी लेखक-मुगल इतिहास, जिन्हें इतिवृत्त कहा जाता है, वस्तुतः मुगल दरबारी लेखकों द्वारा लिखे गए जिनमें सम्बन्धित बादशाह के समय का लेखा-जोखा रहता था। इसके अतिरिक्त इन दरबारी इतिहास लेखकों ने बादशाह को अपने प्रदेशों के शासन में सहयोग देने के लिए भारतीय उपमहाद्वीप के अन्य क्षेत्रों से महत्वपूर्ण जानकारियाँ भी एकत्रित की।

(ii) रंगीन चित्र अथवा चित्रकारी-अधिकांश मुगल इतिहास रंगीन चित्रों से चित्रित किए गए थे जिनमें अधिकांश चित्र, चित्रकारों की कल्पना पर आधारित हैं। चित्रों का मुख्य विषय दरबारी चित्रण तथा राजकीय चित्रण था।

(iii) कालक्रम आधारित घटनाएँ-मुगल इतिवृत्त कालक्रम पर आधारित हैं। ये एक ओर मुगल राज्य की संस्थाओं की जानकारी देते हैं, तो दूसरी ओर उन उद्देश्यों पर प्रकाश डालते हैं जिन्हें मुगल शासक अपने क्षेत्र में लागू करना चाहते थे। ये इतिवृत्त इस तथ्य की झलक देते हैं कि शाही विचारधाराएँ किस प्रकार रची तथा प्रचारित की जाती थीं।

(iv) मुगल भाषा-मुगलों की राजकीय भाषा फारसी थी। अकबरनामा जैसे मुगल इतिहास फारसी में लिखे गए थे, वहीं बाबर द्वारा लिखा गया बाबरनामा तुर्की भाषा में लिखा गया था, जिसका कालान्तर में फारसी में अनुवाद किया गया। मुगल बादशाहों ने रामायण और महाभारत जैसे संस्कृत ग्रन्थों का भी फारसी में अनुवाद करवाया था।

(v) दरबार तथा बादशाह के इतिहास में समानता.---अकबर के शासनकाल में अकबरनामा, शाहजहाँ के समय शाहजहाँनामा तथा औरंगजेब के काल में आलमगीरनामा लिखे गए थे; जो यह संकेत देते हैं कि इनके लेखकों की दृष्टि में दरबार का इतिहास तथा बादशाह का इतिहास एक ही था।

(vi) मुगल ऐतिहासिक स्रोत-अधिकांश मुगल शासकों द्वारा निर्मित इतिवृत्त साम्राज्य तथा उसके दरबार के महत्वपूर्ण स्रोत हैं। ये मुगल इतिवृत्त साम्राज्य के अन्तर्गत आने वाले सभी व्यक्तियों के सामने मुगल राज्य का एक समृद्ध तथा बुद्धिजीवी राज्य के रूप में चित्रण करने के उद्देश्य से लिखे गए थे। इनका उद्देश्य मुगल शासन का विरोध करने वाले व्यक्तियों को यह बताना भी था कि उनके सभी विद्रोहों का असफल होना निश्चित है। मुगल शासक यह भी चाहते थे कि भावी पीढ़ियों के लिए. उनके शासन का विवरण उपलब्ध रहे।

प्रश्न 7. इस अध्याय में दी गई दृश्य-सामग्री किस हद तक अबुल फजल द्वारा किए गए 'तसवीर' के वर्णन (स्रोत-1) से मेल खाती है ?

उत्तर: पाठ्यपुस्तक के पृष्ठ संख्या 229 पर स्रोत-1 'तसवीर की प्रशंसा में' शीर्षक से विवरण दिया गया है। इस स्रोत में अबुल फजल समकालीन चित्रकारों की प्रशंसा कर रहे हैं। इस अध्याय में लगभग 22 चित्र दिए गए हैं। जिनमें से 19 चित्र तत्कालीन चित्रकारों द्वारा बनाए गए हैं। चित्रकारों की प्रशंसा में अबुल फजल के द्वारा अनेक विवरण दिए गए हैं, इनमें से मुख्य विवरण निम्नलिखित हैं

1. चित्रों में बारीकपन तथा सूक्ष्मता।

2. चित्रों में परिपूर्णता।

3. चित्रों में स्पष्टता तथा निर्भीकता।

4. सजीवता।

अबुल फजल ने उपर्युक्त विवरणों के साथ तत्कालीन चित्रकारों की प्रशंसा की है, विशेषकर हिन्दू-चित्रकारों की। उस समय गोवर्धन, विसनदास, दशरथ, मनोहर इत्यादि प्रसिद्ध हिन्दू चित्रकार थे। इस अध्याय में गोवर्धन, रामदास, अबुल हसन, विसनदास तथा अन्य चित्रकारों के चित्र दिए गए हैं, जिनमें से प्रमुख का विवरण निम्नलिखित है

1. नस्तलिक सुलेखन शैली को दर्शाता है। यह चित्र सूक्ष्मता के साथ चित्रित किया गया है।

2. जितना सुन्दर है उतना ही परिपूर्ण भी है। इस चित्र से तत्कालीन दरबारी जीवन तथा सम्राट के चरित्र के विषय में पर्याप्त सूचनाएँ प्राप्त होती हैं। यहाँ प्रकृति, पशु तथा मानवों को सही अनुपात में तथा उच्च हाव-भाव में दिखाया गया है।

3. शहजादे सलीम के जन्मोत्सव के रूप में दर्शाया गया है। यह चित्र अत्यधिक सजीव है

प्रश्न 8. मुगल अभिजात वर्ग के विशिष्ट अभिलक्षण क्या थे? बादशाह के साथ उनके सम्बन्ध किस तरह बने?

उत्तर: मुगल इतिहास विशेषकर अकबरनामा के अनुसार मुगल | साम्राज्य में सत्ता लगभग पूर्णत: बादशाह में निहित होती थी। शेष राज्य बादशाह के आदेशों का पालन करता था, परन्तु मुगल राजतंत्र में अलग-अलग प्रकार की कई संस्थाओं पर आधारित शाही संगठन भी प्रभावपूर्ण ढंग से कार्य करते थे। मुगल शासन व्यवस्था का एक महत्वपूर्ण अंग इसके अधिकारियों का दल था जिसे इतिहासकार सामूहिक रूप से अभिजात वर्ग भी कहते हैं। मुगल अभिजात वर्ग के विशिष्ट अभिलक्षण निम्नलिखित थे

(i) विभिन्न नृ-जातीय एवं धार्मिक समूह मुगलकाल में अभिजात वर्ग अत्यधिक विस्तृत था; जिसमें भर्ती, विभिन्न नृ-जातीय तथा धार्मिक समूहों से होती थी। मुगल साम्राज्य के अधिकारी वर्ग को एक गुलदस्ते के रूप में वर्णित किया जाता था जो पूर्ण वफादारी से बादशाह के साथ जुड़े थे। मुगल साम्राज्य के आरम्भ में ईरानी तथा तूरानी अभिजात ही अपनी सेवा प्रदान करते थे। आरम्भ में ईरानियों तथा तूरानियों का विशेष स्थान था।

(ii) भारतीय मूल के अभिजात-मुगल शासन में बैरम खाँ (1560 ई.) के उपरान्त भारतीय मूल के दो शासकीय समूहों-राजपूत तथा भारतीय मुसलमानों (शेखजादाओं) ने भी मुगल शासन को अपनी अमूल्य सेवाएँ प्रदान की। इसके उपरान्त मराठे भी मुगल अभिजात वर्ग में सम्मिलित हो गए तथा उन्हें उच्च मनसबों से भी नवाजा गया।

(iii) मनसबदारी व्यवस्था-मुगल साम्राज्य में मनसबदारी व्यवस्था एक महत्वपूर्ण व्यवस्था थी जिसके अन्तर्गत सभी सरकारी अधिकारी वर्ग के दर्जे और पदों में दो प्रकार के संख्या-आधारित पद होते थे, प्रथम-जात, जो शाही पदानुक्रम में अधिकारी (मनसबदार) के पद तथा वेतन का सूचक था एवं द्वितीय-सवार, जो यह सूचित करता था कि जात को अपने पास कितने घुड़सवार रखने होंगे।

मुगल अभिजात वर्ग के बादशाह के साथ सम्बन्ध-मुगल प्रशासन में अभिजात वर्ग के व्यक्ति सैन्य अभियानों में अपनी सेना के साथ भाग लेते थे। इसके अतिरिक्त प्रान्तों में वे सम्राट के प्रतिनिधि के रूप में कार्य करते थे। निम्न पदों के अधिकारियों को छोड़कर स्वयं सम्राट सभी अधिकारियों के पदों तथा उनकी नियुक्ति को अपने नियन्त्रण में रखता था।

इसके अतिरिक्त वह स्वयं समय-समय पर उनका निरीक्षण भी करता रहता था। बादशाह अकबर ने अभिजात वर्ग के कुछ अधिकारियों को अपना शिष्य मानते हुए उनके साथ आध्यात्मिक सम्बन्ध भी स्थापित किया। मीर बख्शी (उच्चतम वेतनदाता) एक उच्च अधिकारी था जो खुले दरबार में सम्राट के दायीं ओर खड़ा होता था तथा नियुक्ति और पदोन्नति के सभी उम्मीदवारों को सम्राट के सम्मुख प्रस्तुत करता था; जबकि उसका कार्यालय, उसकी मुहर एवं हस्ताक्षर के साथ-साथ बादशाह की मुहर एवं हस्ताक्षर वाला आदेश भी जारी करता था। अभिजात वर्ग विलासिता का जीवन व्यतीत करता था। वे फलदार वृक्षों एवं सुन्दर फव्वारों से युक्त बागों में बने शानदार महलों में रहते थे। सरदारों को अपने स्तर के अनुसार वर्ष में दो बार सम्राट को भेंट देनी होती थी। इतने भारी व्यय के कारण वे प्रायः कर्ज में फंसे रहते थे।

उपर्युक्त के अतिरिक्त मुगल दरबार में शीर्ष अधिकारियों की नियुक्ति होती थी। दरबार में नियुक्त तैनात-ए-रकाब अभिजातों का एक ऐसा सुरक्षित दल था जिसे किसी भी प्रान्त अथवा सैन्य अभियानों में प्रतिनियुक्त किया जा सकता था। ये सार्वजनिक सभा भवन में प्रतिदिन दो बार सुबह एवं शाम बादशाह के प्रति आत्मनिवेदन के कर्तव्य से बँधे होते थे। संक्षेप में, मुगल साम्राज्य का अभिजात वर्ग अपने वैभव तथा आकार में अति विशाल था, किन्तु रोचक तथ्य यह है कि सम्राट का उस पर पूर्ण नियन्त्रण था।

प्रश्न 9. राजत्व के मुगल आदर्श का निर्माण करने वाले तत्वों की पहचान कीजिए।

अथवा  : सुलह-ए-कुल के मुख्य आदर्श का वर्णन कीजिए जो अकबर के दीप्तमान शासन के एकीकरण का स्रोत था।

अथवा : अकबर के प्रबुद्ध शासन की आधारशिला के रूप में सुलह-ए-कुल के विचार की परख कीजिए।

उत्तर: मुगल साम्राज्य में राजत्व के अनेक तत्व उपस्थित थे जिन्हें हम निम्नलिखित शीर्षकों के माध्यम से समझ सकते हैं

(i) सम्राट दैवीय शक्ति का प्रतीक-मुगल दरबारी इतिहासकारों ने अनेक साक्ष्यों के माध्यम से यह प्रमाणित करने का प्रयास किया है कि मुगल शासकों को प्रत्यक्ष ही ईश्वर से सत्ता तथा शक्ति प्राप्त हुई है। उनके द्वारा वर्णित दन्तकथाओं में से एक कथा मंगोली रानी अलानकुआ की है, जो अपने शिविर में आराम करते समय सूर्य की किरणों से गर्भवती हुई थी। उसके द्वारा जन्म लेने वाली सन्तान पर दैवीय प्रकाश का प्रभाव था। इस प्रकार यह दैवीय प्रकाश पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तान्तरित होता गया। शासक और विभिन्न इतिवृत्त : मुगल दरबार 13071 अकबरनामा के रचयिता अबुल फजल ने ईश्वर (फर-ए-इजादी) से युक्त प्रकाश को ग्रहण करने वाले तत्वों के पदानुक्रम में मुगल राजत्व सिद्धान्त को सबसे ऊँचा स्थान दिया।

अबुल फजल इस विषय में एक प्रसिद्ध सूफी शहाबुद्दीन सुहरावर्दी के विचा ने अत्यधिक प्रभावित था, जिसने सर्वप्रथम इस प्रकार का विचार प्रस्तुत किया था। इस विचार के अनुसार एक पदानुक्रम के तहत यह दैवीय प्रकाश राजा को प्रेषित होता था; जिसके उपरान्त राजा अपनी प्रजा के लिये आध्यात्मिक मार्गदर्शन का स्रोत बन जाता था। इस तथ्य से प्रेरणा लेकर मुगल चित्रकारों ने सत्रहवीं सदी के प्रारम्भ से मुगल शासकों को प्रभामण्डल के साथ चित्रित करना आरम्भ कर दिया। पुस्तक के चित्र 9.5 में हम देख सकते हैं कि जहाँगीर के हाथ में उसके पिता अकबर का चित्र है। इस चित्र में दोनों के सिरों के पीछे दैवीय प्रकाश दिखाया गया है। यह चित्र जहाँगीर के प्रिय दरबारी चित्रकार अबुल हसन द्वारा निर्मित किया गया था।

(ii) सुलह-ए-कुल : एकीकरण का एक प्रयास-विभिन्न समकालीन मुगल दरबारी इतिहासकारों ने अपने इतिवृत्तों में विभिन्न सामाजिक, सांस्कृतिक तथा नृ-जातीय तत्वों का समावेश किया है। इन सभी तत्त्वों में सभी प्रकार की शान्ति तथा स्थायित्व के स्रोत के रूप में मुगल बादशाह सभी धार्मिक तथा नृ-जातीय तत्वों से ऊपर होता है। बादशाह ही इनके मध्य मध्यस्थता करता था तथा यह भी सुनिश्चित करता था कि राज्य में पूर्णशान्ति तथा न्याय व्यवस्था बनी रहे। अबुल फजल सुलह-ए-कुल (पूर्ण शान्ति) के आदर्श को प्रबुद्ध शासन की आधारशिला अथवा आधारभूत तत्व बताता है। साधारणत: अबुल फजल के सुलह-ए-कुल में सभी धर्मों तथा मतों को अभिव्यक्ति की पूर्ण स्वतन्त्रता प्राप्त थी, किन्तु यह शर्त भी थी कि वे राज्य-सत्ता को कोई क्षति नहीं पहुँचाएँगे तथा आपस में संघर्ष नहीं करेंगे।

अबुल फजल द्वारा निर्मित सुलह-ए-कुल का आदर्श राज्य नीतियों के माध्यम से लागू किया गया था। मुगलों के अधीन अभिजात वर्ग मिश्रित प्रकार का था, अर्थात् उसमें ईरानी, तूरानी, अफगानी, राजपूत, सिख, दक्कनी तथा मराठे सम्मिलित थे। इन सबको दिए गए पद तथा पुरस्कार पूर्ण रूप से शासक के प्रति उन सेवा तथा निष्ठा पर ही आधारित होते थे। इसके अतिरिक्त अकबर ने 1563 ई. में तीर्थयात्रा कर को समाप्त कर दिया तथा अगले ही वर्ष अर्थात् 1564 ई. में हिन्दुओं पर लगने वाले जजिया कर को समाप्त कर दिया। इसके साथ ही साम्राज्य के अधिकारियों को सुलह-ए-कुल के नियम का अनुपालन करने के निर्देश दे दिए गए।

(iii) सामाजिक अनुबन्ध के रूप में न्यायपूर्ण प्रभुसत्ता-प्रभुसत्ता को अबुल फजल ने एक सामाजिक अनुबन्ध के रूप में परिभाषित किया है। अबुल फजल के अनुसार, बादशाह अपनी प्रजा के चार सत्वों की रक्षा करता है-जीवन (जन), धन (माल), सम्मान (नामस) तथा विश्वास (दीन)। इसके बदले में वह आज्ञापालन तथा संसाधनों में हिस्से की माँग करता है। केवल न्यायपूर्ण संप्रभु ही यहाँ शक्ति और दैवीय मार्गदर्शन के साथ अनुबन्ध का सम्मान कर पाते हैं। मुगल राजतन्त्र में न्याय के विचार को सर्वोच्च सद्गुण माना गया है जिसको चित्रित करने के लिए अनेक प्रतीकों की रचना हुई। इन प्रतीकों में से कलाकारों का सबसे प्रमुख तथा रुचिकर प्रतीक था; एक-दूसरे के साथ चिपककर शान्तिपूर्वक बैठे हुए शेर तथा बकरी। इसका उद्देश्य यह दिखाना था कि राज्य के सबल तथा दुर्बल वर्ग, सभी का राज्य में | प्रेमपूर्वक सहअस्तित्व है। बादशाहनामा के कंधार दरबारी दृश्यों में ऐसे प्रतीकों को बादशाह के आगरा सिंहासन के ठीक नीचे एक आले में अंकित किया गया है।

मानचित्र कार्य

प्रश्न 10. विश्व मानचित्र के एक । सीकरी रेखाचित्र पर उन क्षेत्रों को अंकित कीजिए जिनसे मुगलों के राजनीतिक तथा सांस्कृतिक सम्बन्ध थे।

उत्तर: संलग्न मानचित्र में हम इसे देख सकते हैं

परियोजना कार्य (कोई एक)

प्रश्न 11. किसी मुगल इतिवृत्त के विषय में और जानकारी ढूँढ़िए। इसके लेखक, भाषा, शैली तथा विषयवस्तु का वर्णन करते हुए एक वृत्तान्त तैयार कीजिए। अपने द्वारा चयनित इतिहास की व्याख्या में प्रयुक्त कम से कम दो चित्रों का, बादशाह की शक्ति को इंगित करने वाले संकेतों पर ध्यान केन्द्रित करते हुए, वर्णन कीजिए।

उत्तर: इस अध्याय में तीन इतिवृत्त दिए गए हैं-अकबरनामा, बाबरनामा तथा आलमगीरनामा। यहाँ पर आप अपनी रुचि के अनुसार किसी भी इतिवृत्त का चयन कर सकते हैं। यहाँ अकबरनामा का चयन अधिक उपयुक्त होगा।

1. इतिवृत्त का नाम - अकबरनामा

2. इतिवृत्त का लेखक - अबुल फजल

3. समर्पित शासक - बादशाह अकबर

4. इतिवृत्त की भाषा फारसी (मुगल शासकीय भाषा भी फारसी थी)

5. इतिवृत्त की भाषा-शैली – कथात्मक, कहीं-कहीं लयात्मक

6. कुल भाग अथवा जिल्द - इसमें कुल तीन जिल्द हैं

7. प्रथम जिल्द-ऐतिहासिक विवरण

8. द्वितीय जिल्द-ऐतिहासिक विवरण

9. तृतीय जिल्द-आइन-ए-अकबरी (इसके कुल पाँच भाग हैं)

10. इतिवृत्त का निर्माणकाल-1589-1602 ई.

11. विषय-वस्तु-विद्यार्थी पढ़कर स्वयं तैयार करें।

प्रश्न 12. राज्यपद के आदर्शों, दरबारी रिवाजों और शाही सेवा में भर्ती की विधियों पर ध्यान केन्द्रित करते हए एवं समानताओं और विभिन्नताओं पर प्रकाश डालते हुए मुगल दरबार तथा प्रशासन की वर्तमान भारतीय शासन व्यवस्था से तुलना कर एक वृत्तान्त तैयार कीजिए।

उत्तर: विद्यार्थी स्वयं तैयार करें।

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