पाठ्यपुस्तक से हल प्रश्न
प्रश्न 1. हित समूह प्रकार्यशील लोकतंत्र के अभिन्न अंग हैं। चर्चा
कीजिए।
उत्तर:
हित समह लोकतंत्र के अभिन्न अंग हैं हित समूह लोकतंत्र के अभिन्न अंग हैं, इसे
निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत स्पष्ट किया गया है
(1)
हित समूह अपने हितों का प्रतिनिधित्व करते हुए सरकार के समक्ष अपनी माँगें रखते हैं
- हित समूह लोकतंत्र की आत्मा हैं क्योंकि विभिन्न हित समूह अपने - अपने हितों और सरोकारों
का प्रतिनिधित्व करते हुए सरकार के सामने अपनी समस्याएँ व परेशानियाँ रखते हैं व सरकार
का ध्यान अपनी परेशानियों की ओर आकृष्ट करते हैं।
(2)
राजनीतिक दलों को प्रभावित करना - हित समूह राजनीतिक दलों को प्रभावित करने के लिए
कार्य करते हैं।
(3)
राजनैतिक क्षेत्र में कार्यशील - हित समूह राजनीतिक क्षेत्र में कुछ निश्चित हितों
को पूरा करने का कार्य करते हैं। इसके लिए वे विधानमण्डलों में लॉबीइंग करते हैं।
(4)
जनमत का निर्माण - हित समूह विभिन्न प्रश्नों के सम्बन्ध में जनता को शिक्षित करके
जनमत का निर्माण करने में सहायता करते हैं।
(5)
समाचार पत्रों पर नियंत्रण - हित समूह जनमत को अपने पक्ष में करने के लिए समाचार पत्रों
पर नियंत्रण रखते हैं जिससे कि उनके हितों का प्रचार हो सके।
(6)
चुनावों में सक्रिय योगदान - यद्यपि हित समूह राजनीति से अपने को दूर रखते हैं, लेकिन
वे सभी राजनीतिक दलों से साँठ-गाँठ रखते हैं। वे सभी राजनीतिक दलों को चंदा देते हैं
तथा वे राजनीतिक दलों में उसके हितों को उठाने वाले प्रतिनिधियों को दलों से टिकिट
दिलवाते हैं तथा उन्हें जिताने के प्रयत्न करते हैं ताकि विधानमण्डल में वे उनके हितों
की रक्षा कर सकें।
(7)
मंत्रियों को प्रभावित करना - जिन देशों में संसदीय शासन प्रणाली है, वहाँ हित समूह
मंत्रियों को प्रभावित करके शासकीय नीति को अपने पक्ष में करवाने का प्रयत्न करते रहते
हैं कि उनके हितों के रक्षक व्यक्तियों को मंत्री बनाया जाये। हित समूह के कुछ उदाहरण
हैं-फेडरेशन ऑफ इंडियन कॉमर्स एण्ड चैंबर्स, एसोसिएशन ऑफ बर्स ऑफ कॉमर्स, शेतकरी संगठन
इत्यादि।
प्रश्न 2. संविधान सभा की बहस के अंशों का अध्ययन कीजिए। हित
समूहों को पहचानिए। समकालीन भारत में किस प्रकार के हित समूह हैं ? वे कैसे कार्य
करते हैं?
उत्तर:
संविधान सभा की बहस के अंशों में निहित हित समूह संविधान सभा की बहस के पाठ्यपुस्तक
में दिए गए अंशों का अध्ययन करने पर हमें अग्रलिखित हित समूह पहचान में आते हैं।
(1)
समाजवादी हित: समूह - कुछ लोग वामपंथी विचारधारा में विश्वास रखते थे-उनका हित समाजवाद
में था। वे संविधान में 'काम के अधिकार' को मूल अधिकारों में सम्मिलित कराना चाहते
थे।
(2)
आर्थिक और सामाजिक न्याय का पक्षधर हित समूह-संविधान सभा में एक हित समूह उन लोगों
का था जो सरकार के राजनीतिक दायित्वों (नीति - निर्देशक तत्त्वों) के वर्गीकरण की अपेक्षा
आर्थिक और सामाजिक न्याय को अधिक महत्त्व देना चाहता था।
(3)
वयस्क मताधिकार के समर्थक हित समूह-वहाँ कुछ लोग देश के सभी वयस्कों का प्रतिनिधित्व
कर रहे थे। उदाहरण के लिए डॉ. अम्बेडकर ने कहा कि "संविधान का जो प्रारूप बनाया
गया है वह देश के शासन के लिए केवल एक प्रणाली उपलब्ध करायेगा। अगर व्यवस्था लोकतंत्र
को संतुष्ट करने में खरी उतरती है, तो यह जनता द्वारा निश्चित किया जायेगा कि कौन सत्ता
में होना चाहिए।
(4)
जमींदारी प्रथा के उन्मूलन का पक्षधर समूह-संविधान सभा में एक दबाव समूह भारत में भूमि
सुधारों की वकालत कर रहा था। यह समूह जमींदारी प्रथा का उन्मूलन चाहता था।
(5)
आदिवासी लोगों के हितों से सम्बन्धित दबाव समूह-संविधान सभा में एक दबाव समूह उन लोगों
का था जो देश के आदिवासी लोगों के पक्ष में अपनी आवाज उठाना चाहते थे।
(6)
एक दबाव समूह या हित समूह राज्य के नीति-निर्देशक तत्त्वों के अधीन कुछ नीतियों और
कार्यक्रमों को अपनाने पर जोर दे रहा था ताकि प्रत्येक सत्ताधारी दल देश के विकास के
लिए नीति-निर्देशक तत्त्वों के तहत उनको लागू करे।
(7)
एक दबाव समूह कारीगरों, कलाकारों तथा सामान्य पेशेवरों का था जो कुटीर उद्योगों का
विकास चाहते थे। वे चाहते थे कि भारत सरकार को कुटीर उद्योग की संरक्षा और विकास के
लिए लोगों को जागरूक करना चाहिए तथा वे उद्योग को-ऑपरेटिव ढंग से चलाये जाने चाहिए।
समकालीन
भारत के हित समूह विभिन्न हित समूह-उद्योगपति के हित समूह फेडरेशन ऑफ इंडियन,
कॉमर्स एंड चैंबर्स, एसोसिएशन ऑफ चैंबर्स ऑफ कॉमर्स, कर्मचारी के हित समूह इंडियन
ट्रेड यूनियन कांग्रेस, शेतकरी संगठन कृषि मजदूरों का हित संगठन है।
समकालीन
भारत के हित समूहों की कार्यप्रणाली समकालीन भारत में विद्यमान विभिन्न हित समूह
निम्न प्रकार से कार्य करते हैं:
👉
हित समूह सरकार का ध्यान अपनी परेशानियों की ओर आकृष्ट करते हैं।
👉
हित समूह राजनीतिक दलों को प्रभावित करने के लिए कार्य करते हैं।
👉
हित समूह राजनीतिक क्षेत्र में कुछ निश्चित हितों को पूरा करने
का कार्य करते हैं।
👉
हित समूह प्राथमिक रूप से वैधानिक अंगों के सदस्यों का समर्थन
प्राप्त करने का प्रयास करते हैं।
👉
हित समूह सरकार को नियंत्रण करने का कार्य करते हैं।
👉
हित समूह विभिन्न सामाजिक समूहों जैसे वर्ग अथवा जाति अथवा
लैंगिक समूह आदि की शक्ति को हतोत्साहित करते हैं।
प्रश्न 3. विद्यालय में चुनाव लड़ने के समय अपने आदेश पत्र के साथ
एक फड़ बनाइये। (यह पाँच लोगों के एक छोटे समूह में भी किया जा सकता है जैसा कि
पंचायत में होता है।)
> अथवा : विद्यालय
में चुनाव लड़ने के समय अपने आदेश पत्र के साथ एक फड़ बनाइये।
उत्तर:
विद्यालय में मैं अपने समूह के 5 सदस्यों के साथ चुनाव जीतने के बाद निम्नलिखित
कार्यों को पूरा करने का प्रयास करूँगा
👉
सभी विद्यार्थियों के लिए जिन्हें स्कूल बस या बसों की आवश्यकता
होगी, उनके लिए इन बसों की व्यवस्था की जाएगी।
👉
स्कूल मैनेजमेंट द्वारा अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति तथा अन्य
पिछड़े वर्ग तथा अन्य गरीब विद्यार्थियों को इन बसों के उपयोग के लिए निःशुल्क पास
दिये जायेंगे।
👉
सभी कक्षाओं और विद्यार्थियों के लिए सभी विषयों के अध्यापकों की
उचित व्यवस्था की जायेगी। साथ ही अनुशासन/रुचियों/खेलों की भी उचित व्यवस्था की
जायेगी। .
👉
देर से आने वाले या स्कूल की स्वीकृत पोशाक के बिना आने वाले तथा
अनुशासन को तोड़ने का प्रयास करने वाले विद्यार्थियों को शिकायती पत्र जारी किया
जायेगा तथा आदतन और निरन्तर ऐसे कृत्य करने वाले विद्यार्थियों के विरुद्ध कठोर
कार्यवाही की जायेगी।
👉
समस्त स्कूल प्रयोगशालाएँ, भूगोल कक्ष, सामाजिक विज्ञान कक्ष,
पुस्तकालय, कम्प्यूटर कक्ष, गृह-विज्ञान कक्ष, गेम्स तथा स्पोर्ट्स कक्ष, ड्राइंग
तथा पेंटिंग कक्ष, आदि प्रतिदिन साफ किये जायेंगे। ये पूरी तरह से व्यवस्थित रखे
जायेंगे।
👉
स्कूल के समय से पूर्व तथा पश्चात् विशेष कोचिंग कक्षाओं की भी
व्यवस्था की जाएगी।
👉
शाम के वक्त इनडोर तथा आउटडोर खेल-कूदों की व्यवस्था की जायेगी।
👉
सफाई, पानी की आपूर्ति, विद्युत आपूर्ति, स्कूल लॉन, पेड़-पौधे
तथा बगीचों का रखरखाव निजी अभिकरण को सौंपा जायेगा।
👉
प्रत्येक अन्तिम रविवार बोर्ड कक्षाओं (कक्षा 10 तथा कक्षा 12)
की जाँच परीक्षाओं की व्यवस्था की जाएगी।
👉
समस्त Curricular तथा अतिरिक्त Co-curricular प्रतियोगी
कार्यक्रम स्कूल के हॉल में होंगे तथा योग्य विद्यार्थियों के लिए इनामों का वितरण
किया जायेगा।
प्रश्न 4. क्या आपने बाल मजदूर और मजदूर किसान संगठन के बारे में
सुना है? यदि नहीं तो पता कीजिए और उनके बारे में 200 शब्दों में एक लेख लिखिए।
उत्तर:
हाँ, हमने बाल मजदूर और मजदूर संगठन के बारे में सुना है।
बाल
मजदूर का अर्थ - 14 साल से कम आयु के बच्चे जो ढाबे, होटलों, कारखानों में कार्य
करते हैं. बाल मजदूर कहलाते हैं।
1.
बाल मजदूर के रूप में कार्य करने वाले बच्चे पढ़ - लिख नहीं
पाते।
2.
ये बच्चे गन्दी आदतों में पड़ जाते हैं, जैसे - नशा, शराब आदि।
3.
इन बच्चों को बुनियादी सुविधाएँ भी प्राप्त नहीं होती हैं।
4.
इनमें से अधिकांश बच्चे सड़कों व कच्ची बस्ती में रहते हैं, जहाँ
का वातावरण दूषित होता है।
बाल
मजदूर संगठन भारत में बाल मजदूरों के हितों की रक्षा हेतु अनेक संगठन कार्यरत हैं।
ऐसे संगठनों का उद्देश्य इन मजदूरों को सामाजिक न्याय दिलवाना है। बाल मजदूरों से
सम्बन्धित अन्तर्राष्ट्रीय संगठन है - यूनिसेफ। भारतीय बाल कल्याण परिषद तथा बंधुआ
मुक्ति मोर्चा जैसे अनेक सरकारी एवं गैर - सरकारी संगठन बाल मजदूरों के हितों की
रक्षा के लिए प्रयासरत हैं। बाल मजदूरों के सम्बन्ध में भारत में संवैधानिक
व्यवस्था-संविधान द्वारा बाल मजदूरी को गैर - कानूनी घोषित किया गया है। इसके लिए
कई अधिनियम बनाए गए हैं जिनके अन्तर्गत 14 वर्ष तक की आयु तक के बच्चों को किसी
खतरनाक कार्य में लगाना दंडनीय अपराध है।मजदूर किसान संगठन भारत में स्वतंत्रता के
बाद अखिल भारतीय स्तर पर तथा क्षेत्रीय स्तर पर अनेक किसान संगठन बने हैं । यथा
(1)
अखिल भारतीय स्तर के किसान संगठन - समाजवादियों ने 'हिन्द किसान पंचायत' की स्थापना
की; मार्क्सवादी, साम्यवादी दल ने 'यूनाइटेड किसान सभा का गठन किया। मार्क्सवादी भारतीय
साम्यवादियों ने 1967 में क्रांतिकारी किसान सम्मेलन आयोजित किया जो आगे चलकर नक्सलवादी
आंदोलन में बदल गया। 1978 में चरण सिंह और राजनारायण के प्रयासों से जनता पार्टी ने
अखिल भारतीय किसान कामगार सम्मेलन की स्थापना की।
(2)
क्षेत्रीय स्तर के किसान सम्मेलन-क्षेत्रीय या राज्य स्तर पर पश्चिमी उत्तर प्रदेश
में भूमिहीन श्रमिकों व किसानों के हितों के लिए चौधरी महेन्द्र सिंह टिकैत के नेतृत्व
में 'भारतीय किसान यूनियन नामक संस्था की स्थापना की गई तथा गुजरात में शरद जोशी के
नेतृत्व में शेतकारी संगठन' की स्थापना की गई। ये संगठन कृषकों के हितों के लिए कार्यरत
हैं। इनका उद्देश्य गन्ना तथा कपास की कीमतों, कृषकों को दिये गये कर्जे, बिजली की
अनियमितताओं तथा किसानों की अन्य समस्याओं को सरकार तक पहुँचाना रहा है।
प्रश्न 5. ग्रामीणों की आवाज को सामने लाने में 73वाँ संविधान-संशोधन
अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। चर्चा कीजिए।
उत्तर:
73वें संविधान संशोधन विधेयक के प्रमुख प्रावधान - 73वें संविधान संशोधन अधिनियम
(1992) ने पंचायती राज संस्थाओं को संवैधानिक प्रस्थिति प्रदान की है। इस संविधान संशोधन
अधिनियम के प्रमुख प्रावधान ये हैं
(1)
स्थानीय स्वशासन के सदस्य गाँवों तथा नगरों में हर पाँच साल में चुने जाएंगे।
(2)
इसने ग्रामीण क्षेत्रों के स्थायी निकायों के सभी चयनित पदों में महिलाओं को एक-तिहाई
आरक्षण दिया। इनमें से 17% सीटें अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति की महिलाओं के लिए
आरक्षित हैं। इस प्रकार यह महिलाओं को प्रतिनिधित्व देने वाला एक बड़ा कदम है।
(3)
अब स्थानीय स्वशासन के लिए त्रिस्तरीय पंचायती राज प्रणाली का प्रावधान एक समान रूप
से पूरे देश में लागू है। 20 लाख से अधिक जनसंख्या वाले प्रत्येक राज्य में त्रिस्तरीय
राज प्रणाली लागू कर दी गई है।
ग्रामीणों
की आवाज को सामने लाने में 73वें संविधान संशोधन का महत्त्व ग्रामीणों की आवाज को
सामने लाने में 73वें संविधान संशोधन का महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है। यथा
1.
73वाँ संविधान संशोधन मौलिक एवं प्रारम्भिक स्तर पर लोकतंत्र तथा विकेन्द्रीकृत शासन
को मजबूत करने की दिशा में एक बड़ा कदम है। इससे न केवल पंचायती राज संस्थाओं को संवैधानिक
दर्जा मिला, अपितु प्रत्येक पाँच साल बाद स्वशासन हेतु गाँवों में स्थानीय सदस्यों
का चयन सुनिश्चित किया गया है।
2.
इसमें सभी चयनित पदों में महिलाओं को एक तिहाई आरक्षण दिया गया
है। महिलाओं को स्थानीय स्वशासन की संस्थाओं में प्रतिनिधित्व देने वाला एक बड़ा
कदम है।
3.
यह पंचायतों को आर्थिक विकास तथा सामाजिक न्याय के लिए योजना
तैयार करने की शक्ति और उत्तरदायित्व दोनों प्रदान करता है। इस प्रकार यह
ग्रामीणों की आवाज को सामने लाता है।
4.
यह पंचायतों के विभिन्न स्तरों पर संरचना, शक्ति तथा कार्यों,
वित्त और चुनाव एवं सीटों के आरक्षण में कमजोर वर्गों की क्या स्थिति रहेगी, इस
सम्बन्ध में दिशा - निर्देश देता है।इस प्रकार यह संशोधन अधिनियम जमीनी लोकतंत्र
की स्थापना की दिशा में एक क्रांतिकारी कदम है।
प्रश्न 6. एक निबन्ध लिखकर
उदाहरण देते हुए उन तरीकों को बताइये जिनसे भारतीय संविधान ने साधारण जनता के
दैनिक जीवन में महत्त्वपूर्ण समस्याओं का अनुभव किया है।
उत्तर:
संविधान ने साधारण जनता की दैनिक जीवन में महत्त्वपूर्ण समस्याओं को छआ है-भारतीय
संविधान ने अनेक तरीकों से साधारण जनता की दैनिक जीवन की महत्त्वपूर्ण बातों को
छुआ है। यथा
(1)
मूल अधिकार तथा असमानता को समाप्त करने के प्रयत्न: भारतीय संविधान में सभी नागरिकों
को बिना किसी भेदभाव के वयस्क मताधिकार प्रदान किया गया है। सभी नागरिकों को बिना किसी
भेदभाव के स्वतंत्रता, समानता, धार्मिक स्वतंत्रता, शिक्षा एवं संस्कृति के मूल अधिकार
प्रदान किये गये हैं। जाति पर आधारित विशेषाधिकार एवं निषेध समाप्त कर दिये गये हैं।
(2)
लोकतांत्रिक शासन: भारतीय संविधान ने हमें प्रतिनिधि लोकतंत्र प्रदान किया है, जिसमें
सभी वयस्क नागरिकों को शासन संचालन के लिए प्रतिनिधियों के चुनाव में भाग लेने का अधिकार
दिया गया है। इसके माध्यम से हम ऐसे व्यक्ति का चुनाव कर सकते हैं जो हमारी समस्याओं
के समाधान में रुचि लेता हो।
(3)
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता संविधान हमें अपने विचारों को शांतिपूर्ण ढंग से अभिव्यक्त
करने की निर्वाचित प्रतिनिधियों के समक्ष रख सकते हैं।
(4)
धर्मनिरपेक्षता-हमारे संविधान ने धर्मनिरपेक्षता को स्थापित किया है । इसके माध्यम
से हम साम्प्रदायिक सौहार्द बनाये रखते हैं तथा सभी धर्मावलम्बी अपने-अपने धर्मों का
पालन करते हुए परस्पर बंधुत्व की भावना के साथ रह सकते हैं।
(5)
नीति - निर्देशक तत्त्व: संविधान में आर्थिक और सामाजिक लोकतंत्र की स्थापना के लिए
नीति-निर्देशक तत्त्वों की व्यवस्था की है। सरकार को इन नीतियों के पालन करने की दिशा
में बढ़ना होगा। ये नीति-निर्देशक तत्त्व हमारे दैनिक जीवन की समस्याओं से सम्बन्धित
हैं।
(6)
संविधान के मूल उद्देश्य: संविधान में कुछ मूल उद्देश्य सम्मिलित किये गए हैं जो भारतीय
राजनीतिक संसार में सामान्यतः न्यायोचित मानकर स्वीकृत कर लिए गए हैं। ये उद्देश्य
हैं-निर्धनों और हाशिये के लोगों को सक्षम बनाना, निर्धनता का उन्मूलन करना, जातिवाद
को समाप्त करना तथा सभी समूहों के प्रति समानता का व्यवहार करना। ये सभी उद्देश्य आम
जनता के रोजमर्रा की समस्याओं से सम्बन्धित हैं।
(7)
लोगों को जीवन, स्वास्थ्य और रोजगार की सुनिश्चितता प्रदान करना-संविधान जीवन का अधिकार
प्रदान करता है और जीवन के लिए अनिवार्य गुणवत्ता, जीवनयापन के साधन, स्वास्थ्य, आवास,
शिक्षा और गरिमापूर्ण जीवन आवश्यक है।
उपर्युक्त
विवेचन से स्पष्ट होता है कि भारतीय संविधान ने विभिन्न तरीकों से साधारण जनता की
दैनिक जीवन में महत्त्वपूर्ण समस्याओं को छुआ है।