10. PGT आगम फलन (Revenue Function)

आगम फलन (Revenue Function)

👉 वस्तु की बिक्री से उत्पादक को जो प्राप्ति होती है उसे आय या आगम कहते हैं।

👉 आगम का अभिप्राय उस विक्रय राशि से है जिसे फर्म अपना उत्पादन बेंचकर प्राप्त करती है। प्रत्येक फर्म का उद्देश्य अधिकतम लाभ कमाना होता है, अत: लाभ, उत्पादन लागत तथा प्राप्त आगम पर निर्भर करता है।

👉 लाभ = आगम - लागत (Profit = Reveme - Cost)

👉 कुल आगम- किसी फर्म का कुल आगम वस्तु की एक इकाई कीमत तथा कुल विक्रय की गयी इकाइयों के गुणनफल द्वारा प्राप्त किया जा सकता है।

कुल आगम = कुल बिक्री से प्राप्ति राशि = बिक्री इकाइयाँ x प्रति इकाई मूल्य

👉 औसत आगम - किसी उत्पादक की कुल आगम में से वस्तु की संख्या से भाग देने पर जो भागफल आता है उसे औसत आगम कहते हैं।

`AR=\frac{TR}Q`

or; `AR=\frac{PQ}{\Delta Q}=P`

👉 औसत आगम सदैव वस्तु के प्रति इकाई मूल्य को प्रदर्शित करता है।

👉 सीमान्त आगम उत्पादक की एक अतिरिक्त ईकाई बेचने से कुल आगम में जो वृद्धि होती है उसे फर्म का सीमान्त आगम कहते हैं।

MR = TRn - TRn-1  

सीमान्त आगम = कुल आगम में परिवर्तन / बेची गयी मात्रा में परिवर्तन

or, `MR=\frac{\Delta TR}{\Delta Q}`

[MR = TRn - TRn-1]

तालिका से

बेची गई इकाई (Q)

1

2

3

4

5

6

7

कीमत(P)

10

9

8

7

6

5

4

कुल आगम ( TR)

10

18

24

28

30

30

28

औसत आगम (AR)

10

9

8

7

6

5

4

सीमांत आगम (MR)

10

8

6

4

2

0

-2

👉 उपर्युक्त तालिका माँग के नियम का ह्मसमान सीमान्त उपयोगिता नियम के साथ सम्बन्ध का उल्लेख करती है।

👉 यदि औसत आगम एक सीधी रेखा का रूप अपनाती है तो सीमान्त आगम भी एक सीधी रेखा के रूप में अपनाती है।

👉 यदि औसत आगम वक्र एक वक्र के रूप में उपलब्ध होता है तो उससे सम्बन्धित सीमान्त आगम भी एक वक्र का ही मार्ग अपनाता है।

👉 यदि औसत आगम वक्र मूल बिन्दु की ओर उन्नतोदर होता है तब भी वक्र के किसी बिन्दु से Y अक्ष पर डाले गये लम्ब के मध्य बिन्दु से बांयी ओर MR वक्र का बिन्दु उपलब्ध होता है।

👉 पूर्ण प्रतियोगिता की दशा में AR = MR । अतः AR तथा MR रेखाओं का आकार OX रेखा के समानान्तर होता है।

👉 एकाधिकार अथवा अपूर्ण प्रतियोगिता की अवस्था में AR तथा MR का ढाल नीचे की ओर होगा।

👉 AR तथा MR दोनों का आधार TR है।

👉 जब AR रेखा ऊपर से नीचे की ओर गिरती है तो MR रेखा उससे भी अधिक गिरकर AR रेखा के नीचे हो जाती है (एकाधिकार तथा अपूर्ण प्रतियोगिता की दशा में)।

👉 औसत आगम रेखा सदैव धनात्मक (Possitive) होती है जबकि MR रेखा सिद्धान्त रूप में शून्य तथा ऋणात्मक भी हो सकती है।

👉 अपूर्ण प्रतियोगिता की दशा में AR तथा MR अधिक लोचदार होते हैं जबकि एकाधिकार में कम लोचदार होते हैं।

👉 माँग की लोच तथा सीमान्त आगम एवं औसत आगम में बड़ा ही घनिष्ठ सम्बन्ध होता है। इस सन्दर्भ में श्रीमती जान राबिन्सन ने निम्न सूत्र की रचना की।

👉 श्रीमती जान राबिन्सन AR तथा MR एवं माँग की लोच (e) में

`AR=MR\left(\frac e{e-1}\right)`

or, `MR=AR\left(\frac e{e-1}\right)`

सूत्रों की रचना की है।

👉 यदि हमें माँग की लोच ज्ञात करनी हो तो विभिन्न कीमत पर MR अथवा किसी औसत आगम के अनुरूप सीमान्त आगम ज्ञात कर सकते हैं।

माँग की लोच तथा आगम में सम्बन्ध

माँग की लोच

सीमान्त आगम

 MR रेखा की वक्र स्थिति की मात्रा

1. पूर्ण लोचदार

MR = AR

MR की वक्र स्थिति AR में समाहित

2. अधिक लोचदार

AR से थोड़ा कम

AR वक्र के थोड़ा नीचे

3. इकाई लोच

MR= शून्य

X अक्ष में समाहित

4. बेलोचदार

MR = ऋणात्मक

X अक्ष के नीचे स्थिति

👉 जब माँग की लोच एक से अधिक हो तो MR धनात्मक होती है।

👉 जब माँग की लोच अनन्त होती है तो AR = MR

👉 जब माँग की लोच शून्य होता है तो MR तथा AR का अन्तर बढ़ जाता है।

👉 जब AR > AC तो फर्म को लाभ तथा जब AR < AC तो हानि एवं AR = AC की दशा में सामान्य लाभ प्राप्त होगा।

👉 जब AR वक्र AC वक्र को न्यूनतम बिन्दु पर स्पर्श करता है तो फर्म पूर्ण क्षमता पर काम कर रही है

👉 अपूर्ण प्रतियोगिता की दशा में AR > MR

👉 AR वक्र को ही मांग वक्र कहते हैं।

👉 एकाधिकार की दशा में जब e = 1 होगा तब MR (केवल) शून्य होगा।

👉 फर्म के साम्य की दशा के लिए दो आवश्यक शर्तें होती हैं जिसमें

1. MR = MC तथा

2. MC रेखा MR रेखा को नीचे से स्पर्श (काटे) करे

👉 इस चित्र में E बिन्दु पर साम्य होगा क्योंकि यहाँ पर सन्तुलन की दोनों आवश्यक दशायें पूरी होती हैं।

👉 मूल्य निर्धारण में प्रो० मार्शल ने माँग तथा पूर्ति (D & S) दोनों पक्षों की अनिवार्यता को स्वीकार किया है।

👉 एकाधिकारी सन्तुलन के लिए MR = MC की दशा आवश्यक है।

👉 एकाधिकारी का माँग वक्र इकाई लोच के बराबर होता है।

👉 AFC वक्र का ढाल 'U' आकार का नहीं होता।

👉 फर्म का लाभ उस समय अधिकतम होगा जहाँ पर MR = MC

👉 अगर e >1 तो MR धनात्मक होगी।

👉 अगर e < 1 (माना 1/2) MR ऋणात्मक होगी।

👉 पूर्ण प्रतियोगिता में फर्म Price taker होती है। इसलिए AR = MR

👉 पूर्ण प्रतियोगिता में माँग की लोच पूर्णतया लोचदार होती है। e = अन्नत

👉 अल्पाधिकार में कीमत में दृढ़ता पायी जाती है।

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