12th GEOGRAPHY MODEL (Mock) TEST 2022-23

12th GEOGRAPHY MODEL (Mock) TEST 2022-23

MODEL TEST 2022-23

SUBJECT-GEOGRAPHY CLASS-XII

Total- 30 Marks

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Question)   5x2 - 10 अंक

1. आधुनिक मानव भूगोल के जनक है

(a) फेडरिक रेटजेल

(b) वारेनियस

(c) डार्विन

(d) सेम्पुल

2. विश्व में सबसे अधिक कॉफी उत्पादन करने वाला देश है?

(a) ब्राजील

(b) जापान

(c) चीन

(d) भारत

3. निम्न में से कौन तृतीयक क्रिया है?

(a) खनन

(b) परिवहन

(c) कृषि

(d) उद्योग

4. नियतिवाद के विचारक कौन थे?

(a) ई० काण्ट

(b) हम्बोल्ट

(c) रीटर

(d) इनमें से सभी

5. भारत में चावल का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य राज्य कौन सा है?

(a) बिहार

(b) ओड़िश

(c) पश्चिम बंगाल

(d) आंध्र प्रदेश

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Type Question ) 5 x 4 = 20 अंक

6. विश्व में जनसंख्या के घनत्व को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारकों की समीक्षा कीजिए।

उत्तर : जनसंख्या वितरण का तात्पर्य यह जानना है कि मानव की प्रत्येक इकाई कहाँ-कहाँ निवास कर रही है तथा घनत्व का तात्पर्य है मानव का भूमि के संदर्भ में अनुपात। इन दोनों तथ्यों को प्रभवित करनेवाले कारक हैं:- (i) भौतिक, (ii) सांस्कृतिक, (iii) आर्थिक एवं (iv) राजनैतिक ।

(i) भौतिक कारक : भौतिक कारक के अंतर्गत उच्चावन, जलवायु, मिट्टी और खनिज प्रमुख कारक है जो जनसंख्या वितरण एवं घनत्व को प्रभावित करते हैं।

(a) उच्चावचन : धरातल की बनावट के अनुसार मानव का वितरण और घनत्व बदलता है। पहाड़ी क्षेत्र में घनत्व कम, पठारी में मध्यम और मैदानी भागों में अत्यधिक होता है क्योंकि उच्चावचन के अनुसार सुविधाओं में तथा संसाधनों की गुणवत्ता में कमी-वेसी होती है।

(b) जलवायु : विषम जलवायु में मानव नहीं रह सकता किंतु सम जलवायु में वह आराम से रह लेता है अतः जलवायु के कारण भी घनत्व प्रभावित होता है। पश्चिमी यूरोप का अनुकूल या सम जलवायु लोगों को आकर्षित करती है जबकि सहारा या ध्रुवीय क्षेत्रों की विषय जलवायु विकर्सित करती है।

(c) मिट्टी : मिट्टी की उर्वरता अलग -अलग स्थानों पर अलग - अलग होती है। नदी घाटी प्रदेश की मिट्टी उर्वरक होती है अतः यहाँ घनत्म अधिक होता है जबकि बंजर भूमि वाले क्षेत्रों में जैसे शुष्क मरूस्थलों में घनत्व कम होता है।

(d) खनिज : जहाँ खनिज पाये जाते हैं वहाँ औद्योगिक वृद्धि होती है। झारखण्ड पठारी क्षेत्र होते हुए भी खनिज की बहुलता के कारण अधिक घनत्व वाला क्षेत्र होता जा रहा है।

(ii) सांस्कृतिक कारक : अलग-अलग संस्कृति में रीति-रिवाज, मान्यताएँ एवं धर्मानुचरण के कारण जनसंख्या घनत्व प्रभावित होता है। मुस्लिम प्रदेश में जन्म दर अधिक होने के कारण घनत्व अधिक होता जा रहा है। इसी प्रकार भारत में वंश परम्परा एवं बेटा पाने की अनिवार्यता के कारण भी जनसंख्या में वृद्धि हो रही है।

(iii) आर्थिक कारक : औद्योगीकरण, नगरीकरण, संसाधनों का विकास आदि आर्थिक कारक हैं। ये कारक जहाँ संतुलित एवं समुचित मात्रा में उपलब्ध होते हैं वहाँ घनत्व का अधिक होना स्वभाविक है। यूरोप, भारत के महानगर एवं यू.एस.ए. का तटीय ऐसे देश ही सांधान सम्पन्न क्षेत्र है।

(iv) राजनैतिक कारक : मानव शांतिप्रिय जीवन जीने के इच्छुक होते हैं। शांति उन्हीं क्षेत्रों में मिलती है जहाँ राजनैतिक स्थायित्व होता है। युद्ध एवं अशांति के कारण जनसंख्या उन क्षेत्रों में पलायन करती है अतः जनघनत्व राजनैतिक कारकों पर भी निर्भर करता है।

7. चलवासी पशुपालन एवं वाणिज्यिक पशुपालन में पाँच अंतर स्पष्ट कीजिए ।

उत्तर : चलवासी एवं वाणिज्यिक पशुचारण में अन्तर

चलवासी पशुचारण

व्यापारिक पशुचारण

1. चलवासी पशुचारण पशुओं पर आधारित जीवन निर्वाह  करने की क्रिया है। इसके क्षेत्र सहारा, पूर्वी अफ्रीका का तटीय भाग, अरब प्रायद्वीप, मध्य एशिया, यूरेशिया में टुण्ड्रा, मैडागास्कर, एशियाई उच्च पठारी प्रदेश आदि हैं।

यह शुष्क एवं अर्द्ध-शुष्क भागों में विकसित हुआ है। इसके क्षेत्र उत्तरी अमेरिका के प्रेयरी प्रदेश, मध्य अमेरिका  के लानोज, दक्षिणी अमेरिका के पेम्पास, दक्षिण अफ्रीका  के वेल्ड्स तथा ऑस्ट्रेलिया के डाउन्स क्षेत्र हैं।

2. चलवासी पशुचारण में पशुपालक पानी एवं चारे की खोज में अपने पशुओं के साथ विचरण करते रहते हैं।

व्यापारिक पशुचारण बड़े पैमाने पर निश्चित स्थानों पर किया जाता है जहाँ चरागाह विस्तृत एवं स्थायी होते हैं।

3. चलवासी पशुचारण में किसी एक समय में ही विभिन्न प्रकार के जानवरों को पाला जाता है।

व्यापारिक पशुचारण में पशु-पालन के अनुकूल क्षेत्र के आधार पर पशुओं को पाला जाता है।

4. चलवासी पशुचारण जीवन निर्वाह की पद्धति होने के कारण स्थानीय होता है।

व्यापारिक पशुचारण बड़े पैमाने पर किया जाता है अतः  यह विस्तृत होता है।

5. चलवासी पशुचारण में पशुपालक पशुओं के साथ विचरण करते हैं क्योंकि यहाँ चारे की कोई फसल नहीं उगायी जाती हैं।

व्यापारिक पशुचारण में पशुओं को प्राकृतिक घास पर  निर्भर नहीं रखा जाता है अत: उनके लिए चारे की फसलें उगायी जाती है।

  











8. वायु प्रदूषण क्या है? इसके प्रभाव का वर्णन करें।

उत्तर : विश्व स्वास्थ्य संगठन ने वायु प्रदूषण को इस प्रकार परिभाषित किया है - ‘‘वायु प्रदूषण एक ऐसी स्थिति है, जिसमें बाहा वातावरण में मनुष्य और उसके पर्यावरण को हानि पहुँचाने वाले तत्व सघन रूप से एकत्रित हो जाते हैं।’’ ‘‘वायु मण्डल में विद्यमान सभी अवांछनीय अवयव की वह मात्रा, जिसके कारण जीवधारियों को हानि पहुँचती है, वायु प्रदूषण कहलाता है।’’

वायु प्रदूषण का प्रभाव

1. कार्बन मोनोक्साइड मनुष्य के रक्त के हीमोग्लोबीन अणुओं से ऑक्सीजन की तुलना में 200 गुणा अधिक तेजी से संयुक्त हो जाती है एवं जहरीला पदार्थ कार्बोेक्सी हीमोग्लोबिन बनाती है। जिस कारण ऑक्सीजन की वायु में पर्याप्त मात्रा रहने पर भी श्वास अवरोध, दम घुटन (Suffocation) होने लगता है।

2. ओजोन की अल्पता होने पर गोरी चमड़ी के लोगों में चर्म कैंसर होने की आशंका व्यक्त की गयी है।

3. सल्फर-डाइ-ऑक्साइड से मिश्रित नगरीय धूम कोहरे के कारण मनुष्य के शरीर में श्वसन प्रणाली अवरूद्ध हो जाती है, जिस कारण लोगों की मृत्यु हो जाती है।

4. सल्फर-डाइ-ऑक्साइड के प्रदूषण द्वारा आँख, गले एवं फेफड़े का रोग भी होता है।

5. अम्ल वर्षा के कारण धरातलीय सतह पर जलभण्डारों का जल तथा भूमिगत जल प्रदूषित हो जाता है (जल में अम्लता बढ़ जाती है), जो लोग इस तरह के प्रदूषित जल का सेवन करते हैं, उनका स्वास्थ्य दुष्प्रभावित होता है।

6. वायु में नाइट्रिक ऑक्साइड्स के सान्द्रण में वृद्धि होने से वह मनुष्य के शरीर में सांस द्वारा पहुँचती है तथा ऑक्सीजन की तुलना में एक हजार गुनी अधिक तेज गति से हीमाग्लोबीन से संयुक्त हो जाती है, जिस कारण सांस लेने में कठिनाई होने लगती है, मसूढ़ों में सूजन हो जाती है, शरीर के अंदर रक्त स्त्राव होने लगता है, ऑक्सीजन की कमी हो जाती है तथा निमोनिया एवं फेफड़े का कैन्सर हो जाता है।

7. कारखानों एवं स्वचालित वाहनों से उत्सर्जित निलम्बित कणिकीय पदार्थों, जैसे-सीसा, असबेस्ट्स, जस्ता, ताँबा, धूलि आदि के कारण मानव शरीरों में कई प्रकार के प्राण घातक रोग हो जाते हैं।

8. रसायनों एवं जहरीली गैसों के संयंत्रों से हानिकारक विषाक्त गैसों के अचानक स्त्राव होने से वायु का प्रदूषण इतना अधिक हो जाता है कि पलक झपकते ही सैकड़ों लोग मौत के शिकार हो जाते हैं।

9. भारत में जनसंख्या का वितरण बहुत असमान है व्याख्या कीजिए ।

उत्तर : किसी भी देश की जनसंख्या का वितरण एवं घनत्व वहाँ पायी जाने वाली जलवायु, प्राकृतिक स्थिति और भू-संसाधन, भूमि की भरण-पोषण की शक्ति और आवागमन के मार्गों की सुविधा आदि बातों पर निर्भर करता है। अधिकतर लोग वही रहना पसन्द करते हैं जहाँ उनको अपने जीविकोपार्जन में विशेष सुविधा रहती है। अतः अधिकांश कृषि-प्रधान प्रदेशों में जनसंख्या का जमाव होता है जहाँ कृषि योग्य उपजाऊ भूमि, पर्याप्त वर्षा तथा उचित तापमान और नम तथा समतल भूमि होने के साथ-साथ आवागमन की सुविधा होती है। इसके विपरीत, औद्योगिक देशों में जनसंख्या का निवास विशेषकर खनिज, औद्योगिक अथवा व्यापार केन्द्रों में होता है। इसके अतिरिक्त कुछ धार्मिक, सामाजिक और राजनीतिक तत्व भी जनसंख्या को प्रभावित करते हैं-

(1) उच्चावच— भारत में जनसंख्या के विवरण को प्रभावित करने वाले कारकों में यह सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। देश के पूर्वोत्तर राज्य, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखण्ड आदि जो उच्चावच की दृष्टि से विषम हैं, में जनसंख्या का अल्प जमाव मिलता है, जबकि उत्तरी मैदान में स्थित उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, पंजाब, हरियाणा आदि में जनसंख्या का वृहद् जमाव मिलता है। इसी तरह देश के पठारी राज्यों आन्ध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, झारखण्ड, कर्नाटक आदि में जनसंख्या का वितरण मध्यम स्तर का है।

(2) जलवायु - अनुकूल जलवायु मानव को क्षेत्र विशेष में रहने को आकर्षित करती है। भाबर, तराई, गंगा का निम्न डेल्टा आदि क्षेत्रों में दलदल व वनों की अधिकता तथा आर्द्र जलवायु के कारण विषैले कीड़े-मकोड़े तथा जीवों एवं बीमारी के कारण बहुत कम घने बसे हैं, जबकि भारत के मैदानी क्षेत्रों में अच्छी जलवायु के कारण सर्वत्र अधिक जनसंख्या पायी जाती है।

(3) तापमान—अधिक ऊँचे तापमान जनसंख्या के जमाव में बाधा डालते हैं, जबकि सामान्य तापमान इसको आकर्षित करते हैं। बहुत ही नीचे तापमान, जैसे-ऊँचे हिमालय प्रदेश शीत के कारण जनसंख्या में शून्य होते हैं किन्तु निचले पहाड़ी ढाल ग्रीष्म ऋतु में मैदानी भागों की अपेक्षा ठण्डे रहते हैं। अत शिमला, नैनीताल, मसूरी आदि की ग्रीष्म ऋतु में जनसंख्या बढ़ जाती है किन्तु शीत ऋतु में ठण्ड के कारण फिर से घट जाती है।

(4) वर्षा की मात्रा (जल उपलब्धता) — भारत जैसे कृषि प्रधान देश में जनसंख्या वितरण एवं घनत्व वर्षा की मात्रा अथवा जल उपलब्धता से विशेष रूप से प्रभावित है। 100 सेण्टीमीटर वर्षा रेखा के पश्चिमी भाग, वर्षा की कमी के कारण कम घने हैं, जबकि इसके पूर्वी भागों में घनत्व अधिक पाया जाता है। कम वर्षा वाले भागों में भी पश्चिमी उत्तर प्रदेश, उत्तरी राजस्थान, पंजाब, हरियाणा आदि राज्यों में सिंचित क्षेत्रों के कारण जनसंख्या अधिक पायी जाती है। इसके विपरीत, असोम तथा हिमाचल प्रदेश में जल का निकास ठीक न होने से अधिक वर्षा होने पर भी जनसंख्या कम पायी जाती है।

(5) मिट्टी का उपजाऊपन -मैदानों में मिट्टी मुलायम और उपजाऊ होती है तथा सिंचाई के लिए उत्तम व्यवस्था पायी जाती है। अतएव कृषि, पशुपालन तथा औद्योगिक क्रियाएँ भली-भाँति की जा सकती हैं। यहाँ पर परिवहन के मार्ग भी सरलता से बनाये जा सकते है तथा नदियाँ भी धीमी बहने के कारण परिवहन में सहायता देती हैं। इसलिए गंगा-सतलज का मैदान, पूर्वी और पश्चिमी समुद्रतटीय मैदान अन्य पहाड़ी एवं पठारी भागों की तुलना में अपेक्षतया घने बसे है।

(6) कृषि का ढंग भी जनसंख्या के घनत्व को प्रभावित करता है। गहरी खेती सदैव ही अधिक जनसंख्या का भरण-पोषण कर सकती है, जबकि विस्तृत अथवा सरकती हुई खेती पर कम जनसंख्या निर्भर करती है। गेहूँ की अपेक्षा चावल उत्पादक क्षेत्रों में अधिक जनसंख्या पायी जाती है क्योंकि चावल का प्रति हेक्टेअर उत्पादन गेहूँ की अपेक्षा दो से तीन गुना अधिक होता है। चावल की वर्ष में तीन फसले तक प्राप्त की जा सकती हैं और चावल की कम मात्रा पर ही अधिक लोगों का पेट भरा जा सकता है। उन्नत तकनीक के प्रयोग एवं फसली कृषि द्वारा उसी भूमि पर सरलता से अधिक लोगों का भरण-पोषण सम्भव है।

(7) परिवहन के मार्ग एवं व्यापार-जीवन-निर्वाह के साधनों की उपलब्धता और जलवायु के बाद किसी स्थान की जनसंख्या पर वहाँ पायी जाने वाली परिवहन की सुविधाओं एवं व्यापार का भी बड़ा प्रभाव पड़ता है। मनुष्य स्वभाव से ही प्रगतिशील है। वह एक स्थान पर बँधकर नहीं रह सकता किन्तु इस प्रकार और समागम के लिए अच्छे मार्गों की आवश्यकता होती है। जहाँ भी उत्तम व उन्नत परिवहन केन्द्र विकसित हुए हैं, वहाँ जनसंख्या के घनत्व एवं व्यापार में तेजी से वृद्धि भी हुई है। देश के बहुत-से भाग ऐसे हैं जहाँ पैदावार अधिक होती है, खनिज पदार्थों का प्राचुर्य होता है और जलवायु मानव जीवन के लिए उतनी बाधक नहीं पायी जाती किन्तु वहाँ आवागमन के मार्गों की सुविधाओं का विकास नहीं होने के कारण जनसंख्या का जमाव बहुत कम होता है। ऐसे स्थानों के अन्तर्गत पहाड़ी प्रदेश, जंगल प्रदेश अथवा मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र एवं कर्नाटक का आन्तरिक संलग्न भाग उल्लेखनीय है।

(8) खनिज एवं औद्योगिक केन्द्र - किसी स्थान पर पाये जाने वाले खनिज पदार्थों अथवा शक्ति के साधनों के कारण भी जनसंख्या का जमाव हो सकता है। जिन भागों में खनिज पदार्थ विशेषकर कोयला और लोहा मिलता है, वहाँ खनन एवं औद्योगिक कार्यों में तेजी से विकास होने से जनसंख्या की वृद्धि होती जाती है क्योंकि खानों में काम करने के लिए अन्य भागों से मनुष्य वहाँ आकर बस जाते हैं। इन दोनों महत्वपूर्ण खनिजों की प्राप्ति के फलस्वरूप किसी स्थान पर उद्योगों की भी उन्नति हो जाती है। कारखाने में जितने मूल्य का माल तैयार होता है, उतने मूल्य की पैदावार हजारों हेक्टेअर भूमि पर भी उत्पन्न नहीं की जा सकती है।

(9) सामाजिक कारण- जनसंख्या के जमाव पर सामाजिक परम्पराएँ भी अपना प्रभाव डालती हैं। स्वभाव से ही मनुष्य उन स्थानों पर रहना चाहता है जहाँ उसकी सम्पत्ति और शरीर की सुरक्षा होती है। चम्बल के बीहड़ों, राजस्थान और असोम के सीमावर्ती भागों में निरन्तर आक्रमण होते रहने के डर से असुरक्षा की भावना के कारण कम ही लोग रहते हैं। वर्तमान में कश्मीर में आतंकवाद के चलते बहुत अधिक जनसंख्या का पलायन हुआ है।

10. ग्रामीण बस्तियों की समस्याओं का उल्लेख करें ?

उत्तर : ग्रामीण बस्तियों की प्रमुख समस्याएँ निम्नलिखित हैं

1. पेयजल का अभाव – संसार के अधिकतर गाँवों में पेयजल की गम्भीर समस्या है। महिलाओं व बच्चों को कई-कई किमी दूर से पानी लाना पड़ता है। रेगिस्तानी और पर्वतीय भागों में पेयजल की समस्या अत्यधिक गम्भीर है।

2. जलवाहित रोग – पेयजल की गुणवत्ता ठीक न होने से जलवाहित रोग जैसे हैजा, पीलिया आदि फैलते हैं।

3. बाढ़ और सूखा – दक्षिण एशिया के देशों के गाँव बाढ़ और सूखे दोनों की ही मार सहने को अभिशप्त हैं। सिंचाई के अभाव में सूखा पड़ने पर फसलों को भारी हानि होती है।

4.शौचालयों और कचरे की समस्या – गाँव में शौचालयों के न होने से महिलाओं को अधिक कठिनाई उठानी पड़ती है। वे इसी कारण अनेक रोगों का शिकार हो जाती हैं। गाँवों में कचरे की निपटान की कोई सुचारु व्यवस्था नहीं है।

5. मानव और पशु एक साथ – पशुओं को और उनके चारे को अपने घर में या घर के अति निकट घेर में रखना किसान की मजबूरी है, लेकिन इससे अनेक रोगों के फैलने का खतरा बना रहता है।

6. परिवहन और संचार साधनों का अभाव – गाँव में पक्की सड़कों का अभाव है। टेलीफोन सविधा सभी गाँवों में नहीं है, अत: आपातकाल में गाँव शेष दुनिया से कट जाते हैं। अनेक गाँव वर्षा ऋतु में सम्पर्कविहीन बने रहते हैं।

7.स्वास्थ्य और शिक्षा का अभाव – गाँवों में स्वास्थ्य और शिक्षा का अभाव है। यदि कहीं सुविधा है भी तो उसका स्तर बहुत घटिया है।

मॉक टेस्ट पेपर 2

वर्ग: XII     विषय: Geography

कुल अंक : 30 समय: 1 घंटा

1. वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions ) :-5x1-5

(i) 'एन्थ्रोपोज्योग्राफी' (Anthropogeography) नामक पुस्तक के लेखक है -

(a) कुमारी एलेन सेम्पल

(b) रेटजेल

(c) डार्विन

(d) विडाल-डी ला ब्लाश

(ii) निम्नलिखित में से कौन एक जन-स्थानान्तरण (Migration) का अपकर्ष कारक नहीं है?

(a) रहन-सहन की निम्न दशाँए

(b) रहन-सहन की अच्छी दशाएँ

(c) शान्ति एवं स्थायित्व

(d) अनुकूल जलवायु

(iii) मानव विकास सूचकांक (Human Development Index) का मापक निम्न में से कौन-सा है ?

(a) स्वास्थ्य

(b) शिक्षा

(c) संसाधनों तक पहुँच

(d) इनमें से सभी

(iv) निम्न में से कौन रोपण फसल (Plantation Crop ) है ?

(a) गेहूँ

(b) कोको

(c) मक्का

(d) राई

(v) मैनचेस्टर किस उद्योग (Industry) के लिए प्रसिद्ध है ?

(a) सूती वस्त्र

(b) ऊनी वस्त्र

(c) लौह-इस्पात

(d) कागज

2. लघु उत्तरीय प्रश्न ( Short Answer Type Questions ) :-2x2.5-5

(1) आयु लिंग पिरामिड (Age-sex Pyramid ) क्या है ?

उत्तर : यह एक प्रकार का रेखा चित्र है, जिसमे किसी क्षेत्र की जनसंख्या को विभिन्न आयु वर्गो के पुरुष और स्त्रियों की संख्या को व्यक्त करने के लिए किया जाता है। इसकी रचना बहु दण्ड आरेख के माध्यम से किया जाता है। आयु-लिंग पिरामिड को जनसंख्या पिरामिड भी कहते है। इसका उपयोग आयु-लिंग संरचना को व्यक्त करने के लिए किया जाता है। इसका प्रतिपादन डब्ल्यू एम थामसन तथा आर्थर लेविस ने किया था।

( 2 ) छावनी नगर ( Garrison City) क्या है ?

उत्तर : गैरीसन ( छावनी ) नगर एक ऐसा शहर है जिसे विशेष रूप से रक्षा उद्देश्यों के लिए बनाया जाता है। गैरीसन नगर की उत्पत्ति ब्रिटिश काल के दौरान हुआ है। यह नौसेना या वायु सेना या सेना या सभी के रक्षा कर्मियों की किलेबंदी है। यह शहर मुख्य रूप से रक्षा कर्मियों के साथ-साथ उनके रक्षा उपकरणों की बस्ती है।

3. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Type Questions ) :- 5x4-20

(1) जनांकिकीय संक्रमण (Demagraphic Transition) की तीन अवस्थाओं की विवेचना करें ।

उत्तर : जनांकिकीय संक्रमण सिद्धांत का उपयोग किसी क्षेत्र की जनसंख्या के वर्णन तथा भविष्य की जनसंख्या के पूर्वानुमान के लिए किया जा सकता है। यह सिद्धांत हमें बताता है कि जैसे ही समाज ग्रामीण अशिक्षित अवस्था से उन्नति करके नगरीय औद्योगिक और साक्षर बनता है तो किसी प्रदेश की जनसंख्या उच्च जन्म दर और उच्च मृत्यु-दर से निम्न जन्म-दर व निम्न मृत्यु दर में बदल जाती है। ये परिवर्तन तीन अवस्थाओं में होते हैं-

12th GEOGRAPHY MODEL (Mock) TEST 2022-23

1. प्रथम अवस्था :- उच्च प्रजननशीलता में उच्च मर्त्यता होती है क्योंकि लोग महामारियों और भोजन की अनिश्चित आपूर्ति से पीड़ित थे। जीवन - प्रत्याशा निम्न होती है, अधिकांश लोग अशिक्षित होते हैं और उनके प्रौद्योगिकी स्तर निम्न होते हैं।

2. द्वितीय अवस्था :- द्वितीय अवस्था के प्रारंभ में प्रजननशीलता ऊँची बनी रहती है किंतु यह समय के साथ घटती जाती है। स्वास्थ्य संबंधी दशाओं व स्वच्छता में सुधार के साथ मर्त्यता में कमी आती है।

3. तीसरी अवस्था :- तीसरी अवस्था में प्रजननशीलता और मर्त्यता दोनों घट जाती हैं। जनसंख्या या तो स्थिर हो जाती हैया मंद गति से बढ़ती है। जनसंख्या नगरीय और शिक्षित हो जाती है व उसके पास तकनीकी ज्ञान होता है। ऐसी जनसंख्या विचारपूर्वक परिवार के आकार को नियंत्रित करती है।

(2) उद्योगों की अवस्थिति (Location of Industry) को प्रभावित करने वाले कारकों का वर्णन करें।

उत्तर : उद्योग हर जगह पर विकसित नहीं हो पाते। उनकी स्थापना ऐसे स्थानों पर की जाती है जहाँ उत्पाद के निर्माण और विक्रय पर लागत कम-से-कम आए और अधिक-से-अधिक लाभ हो। ऐसी अवस्थिति का चयन काफी सोच-विचार के उपरान्त किया जाता है। किसी भी उद्योग की अवस्थिति अनेक प्रकार के कारकों द्वारा नियन्त्रित होती है।

उद्योगों की अवस्थिति को प्रभावित करने वाले कारक उद्योगों की अवस्थिति को प्रभावित करने वाले कारक निम्नलिखित हैं

1. बाजार – उद्योगों की स्थापना में सबसे महत्त्वपूर्ण कारक उसके द्वारा उत्पादित माल के लिए उपलब्ध बाजार का होना है। बाजार से अभिप्राय उस क्षेत्र से होता है जहाँ तैयार माल की माँग हो और वहाँ के निवासियों में उन वस्तुओं को खरीदने की क्षमता भी हो।

2. कच्चे माल की प्राप्ति – उद्योग के लिए कच्चा माल अपेक्षाकृत सस्ता एवं आसानी से परिवहन योग्य होना चाहिए। कच्चे माल के स्रोत के समीप स्थित होने वाले उद्योग हैं

⦁ ह्रासमान भार वाले कच्चे माल का प्रयोग करने वाले उद्योग, जैसे-चीनी उद्योग।

⦁ भारी कच्चा माल प्रयोग करने वाले उद्योग, जैसे-लौह-इस्पात उद्योग।

⦁ कच्चे माल का भार कम होने वाले उद्योग, जैसे-ताँबा उद्योग।

⦁ शीघ्र नष्ट होने वाले कच्चे माल पर आधारित उद्योग, जैसे-दुग्ध पदार्थ, डिब्बाबन्द फल आदि

3. शक्ति के साधन – वे उद्योग जिन्हें अधिक शक्ति की आवश्यकता है, शक्ति स्रोतों के समीप ही लगाए जाते हैं, जैसे-ऐलुमिनियम उद्योग।

4.श्रम आपूर्ति – कम्प्यूटरों के बढ़ते उपयोग, यन्त्रीकरण, स्वचालन एवं औद्योगिक प्रक्रिया के लचीलेपन के कारण उद्योगों की श्रमिकों पर निर्भरता थोड़ी कम हुई है। फिर भी औद्योगिक विकास के लिए उचित वेतन पर सही श्रमिकों का महत्त्व आज भी बना हुआ है।

5. परिवहन एवं संचार की सुविधा – कच्चे माल को कारखाने तक लाने के लिए और उत्पादित माल को खपत केन्द्रों तक पहुँचाने के लिए तीव्र और सक्षम परिवहन सुविधाएँ उद्योगों की अवस्थिति के लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण कारक हैं। उद्योगों के लिए सूचनाओं के आदान-प्रदान एवं प्रबन्धन के लिए संचार की महत्त्वपूर्ण आवश्यकता होती है।

6. सरकारी नीति – सरकारी नीति में उद्योगों के अवस्थितिकरण को प्रभावित करने वाली महत्त्वपूर्ण कारक है।

उपर्युक्त सभी कारक सम्मिलित रूप से किसी उद्योग की अवस्थिति को प्रभावित व नियन्त्रित करते हैं।

(3) परम्परागत ऊर्जा संसाधन (Conventional Energy Resource) एवं गैर-परम्परागत ऊर्जा संसाधन (Non Conventional Energy Resource) में अन्तर स्पष्ट करें ।

उत्तर :

तुलना के लिए आधार

ऊर्जा के परम्परागत स्रोत

ऊर्जा के गैर-परम्परागत स्रोत

अर्थ

ऊर्जा के पारंपरिक स्रोत वे स्रोत हैं जो आमतौर पर लंबे समय से उपयोग में हैं।

ऊर्जा के गैर-पारंपरिक स्रोत कुछ दशकों पहले पहचाने गए स्रोतों को संदर्भित करते हैं।

हद

अधिक खपत के कारण वे समाप्त हो सकते हैं।

उन्हें समाप्त नहीं किया जा सकता है।

प्रदूषण

वे बड़े पैमाने पर पर्यावरण को प्रदूषित करते हैं, और ग्लोबल वार्मिंग में जुड़ जाते हैं।

वे पर्यावरण के अनुकूल स्रोत हैं, जो प्रदूषण का कारण नहीं है।

उपयोग

वे मुख्य रूप से औद्योगिक और वाणिज्यिक प्रयोजनों के लिए उपयोग किए जाते हैं।

वे मुख्य रूप से घरेलू उद्देश्यों के लिए उपयोग किए जाते हैं।

व्यय

महंगा।

तुलनात्मक रूप से कम खर्चीला।

(4) विकासशील देशों में नगरीय बस्तियों की समस्याओं ( Problems of urban setteiments) का वर्णन करें।

उत्तर : नगरीय बस्तियाँ वे मानव बस्तियाँ हैं जिनकी अधिकांश आबादी विनिर्माण और सेवा क्षेत्रों जैसी गैर-प्राथमिक गतिविधियों में शामिल है।

विशेष रूप से विकासशील देशों में नगरीय बस्तियाँ के पास पैसे कम होता है और जनसंख्या ज्यादा होता है इस कारण से नगरीय बस्तियाँ विभिन्न समस्याओं से ग्रस्त होते हैं।

विकासशील देशों में नगरीय बस्तियों की आम समस्याएं दो प्रकार के है। पहला आवास , पेयजल, बिजली, सीवेज निपटान, अस्पतालों और स्कूलों जैसी बुनियादी बुनियादी सुविधाओं की कमी। दूसरा, प्रदूषण की समस्या जिसमे वायु और जल प्रदूषण मुख्य हैं।

नगरीय समस्याओं को निम्नलिखित शीर्षों में वर्गीकृत किया जा सकता है;

1. आर्थिक समस्या : नगरीय बस्तियों में बुनियादी ढांचे और सुविधाओं के लिए वित्त की अक्सर कमी होती है। अपर्याप्त वित्तीय संसाधन तथा भ्रस्टाचार के कारण नगरीय बस्तियों में बुनियादी सुविधाओं की कमी देखने को मिलता हैं।

ग्रामीण-से-शहरी के अति प्रवास के कारण, नगरीय क्षेत्र में आर्थिक के कम अवसर होते जा रहा है और शहरी केंद्र में तेजी से झुग्गियां बस्तियाँ (गन्दी बस्ती ) बढ़ रहे हैं ।

नगरीय आबादी में व्यापक आय असमानता होती है और यह बढ़ता ही जा रहा है।

2. सामाजिक-सांस्कृतिक समस्याएं : शहरी क्षेत्रों में पुरुष चयनात्मक प्रवासन के कारण शहरों में लिंगानुपात को असंतुलित करता है।

शहरी केंद्रों में उच्च जनसंख्या, आय असमानता और कम आर्थिक अवसर होते है जिसके कारण यह नगरीय बस्तियों में अपराध दर को बढ़ाते हैं। सामाजिक अपराध जैसे बलात्कार, डकैती, हत्या, जबरन वसूली आदि शहरी क्षेत्रों में आम हैं।

3. पर्यावरणीय समस्याए : नगरीय जनसँख्या अक्सर वहाँ उपलब्ध संसाधनों से ज्यादा होता है। जिसके कारण वहां उपलब्ध संसाधन जैसे जल, जंगल आदि जैसे प्राकृतिक संसाधनों को तेजी से समाप्त कर देता है।

शहरी क्षेत्रों में भारी मात्रा में कचरा उत्पन्न होता है। कचरे का निस्तारण एक बड़ी चुनौती होती है। कचरे के उचित निपटान ना करने से - जल, वायु और मृदा प्रदूषण हो सकता है।

नदी बाढ़ क्षेत्रों और अन्य जल निकायों के अतिक्रमण के कारण नगरीय क्षेत्र में बाढ़ उत्पन्न करता हैं।

शहरी क्षेत्रों में आजकल ऊर्जा की भारी खपत के कारण नगरीय बस्तिया "गर्मी द्वीप का प्रभाव" जैसा काम करता है; नतीजतन, यह चक्रवातों को आकर्षित करता है। उदाहरण के लिए, भारत के पूर्वी और पश्चिमी तट की शहरी बस्तियों के "गर्मी द्वीप का प्रभाव" के कारण तट से चक्रवात अपनी ओर आकर्षित होते है।

(5) भारत में जल संसाधनों (Water resources) का संरक्षण क्यों आवश्यक है? जल संसाधनों के संरक्षण (Water conservation) की तीन विधियाँ स्पष्ट करें।

उत्तर : जल संसाधन के संरक्षण की आवश्यकता निम्न कारणों से है-

1. जलाभाव (Scarcity of Weter) देश में वार्षिक वर्षा का औसत 118 सेमी. है। इस तरह देश को प्रति वर्ष 40 करोड़ हेक्टेयर मीटर जल प्राप्त होता है यह सभी कामों के लिए अपर्याप्त है । देश के कुछ भागों में स्थायी तथा कुछ भागों में अस्थायी जल संकट बना रहता है।

2. वर्षा का कुछ ही समय में होना (Limited time of Rainfall)-वर्षा केवल चार महीनों में ही होती है। 80% वर्षा इन्हीं चार महीनों में हो जाती है। शेष समय सूखा रहता है।

3. वर्षा का असमान वितरण (Uneven distribution of Rainfall) देश में कहीं अधिक तथा कहीं कम वर्षा होती है इसलिए भी जल संरक्षण आवश्यक है। 4. बढ़ती माँग (Increasing Demand) देश में सिंचाई के अतिरिक्त अन्य कार्यों के लिए भी जल की माँग बढ़ती जा रही है जैसे उद्योगों के लिए और बढ़ती जनसंख्या की I आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए ।

5. प्रदूषण (Pollution) - गाँव-नगरों के मल-जल की तथा औद्योगिक अपशिष्ट जल की मात्रा दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। यह सारा प्रदूषित और अनुपचारित जल देश की नदियों बहाया जाता है जिससे सिंचाई तक नहीं होती है। इसलिए जल संरक्षण की आवश्यकता होती है।

ताजे पानी की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए, हम विभिन्न तरीकों से पानी का संरक्षण कर सकते हैं:

वर्षा जल संचयन: वर्षा जल संचयन एक ऐसी तकनीक है जिसका उपयोग भविष्य में उपयोग के लिए वर्षा जल को एकत्रित और संग्रहीत करने के लिए किया जाता है। इस तकनीक का उपयोग प्रचुर वर्षा वाले कई क्षेत्रों में और राजस्थान जैसे कम वर्षा वाले क्षेत्रों में भी किया जाता है, जहाँ भविष्य में संग्रहित जल का उपयोग किया जाता है।

वाटरशेड विकास: वाटरशेड भूमि के उस क्षेत्र को संदर्भित करता है जो पानी को अन्य जल निकायों जैसे नदियों, महासागरों आदि में ले जाता है। वे वर्षा या बर्फ के पानी को ले जाते हैं जिसे पीने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। इस क्षेत्र का संरक्षण करके हम ताजे पानी की उपलब्धता सुनिश्चित करते हैं।

जल पुनर्चक्रण और पुन: उपयोग: हम पुनर्चक्रण या पुन: उपयोग करके जल का संरक्षण कर सकते हैं। हम उपयोग किए गए पानी का उपयोग अन्य उद्देश्यों के लिए कर सकते हैं जैसे पानी की बोतलों में बचे पानी को पौधों को पानी देने के लिए पुन: उपयोग करना।

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