➡️ किसी भी देश की अर्थव्यवस्था में सामान्य मूल्य
स्तर में एक नियमित ढंग से होने वाली लगातार वृद्धि को मुद्रा स्फीति कहते हैं।
➡️ मुद्रा स्फीति मूल्य स्तर में एक नियमित तथा
लगातार दीर्घकालीन वृद्धि का सूचक है।
➡️ जब अर्थव्यवस्था के मूल्य स्तर में वृद्धि बिना
सरकारी नियंत्रण के होती है तो इसे स्वतंत्र मुद्रा स्फीति कहते हैं।
➡️ जब अर्थव्यवस्था में मूल्य स्तर की वृद्धि पर
नियंत्रण लगा दिया जाता है जिसके परिणामस्वरूप मूल्य स्तर का बढ़ना रूक जाता है तो उसे प्रतिबन्धित मुद्रा स्फीति कहते हैं।
➡️ अनियन्त्रित
मुद्रा स्फीति का तात्पर्य उस दिशा से है कि उस अर्थव्यवस्था में
मुद्रा की मात्रा का चलन इतना अधिक बढ़ गया कि व्यवहारिक दृष्टिकोण से मुद्रा
प्रायः बेकार सी हो जाये।
➡️ स्टेग फ्लेशन
(Stagflation) जब अर्थव्यवस्था के आर्थिक विकास में स्थिरता के साथ-साथ मुद्रा
स्फीति की दशायें विद्यमान हो (Co-existence of Stagnation & Inflation) उसे
स्टैगफ्लेशन कहते हैं।
➡️ हाट्रे
के अनुसार मुद्रा स्फीति मूलतः मौद्रिक घटना है।
➡️ फ्रीडमैन के अनुसार- मुद्रा स्फीति
सदैव तथा सब जगह एक मौद्रिक घटना है।
➡️ लागत वृद्धि मुद्रा
स्फीति को मजदूरी वृद्धि स्फीति भी कहते हैं।
मुद्रा स्फीति की तीव्रता-
(1) रेगती स्फीति- यह उस स्थिति
की सूचक है जबकि कीमत स्तर में धीरे-धीरे वृद्धि होती हैं।
कीन्स के अनुसार इस तरह की
हल्की सी मुद्रास्फीति अर्थव्यवस्था को विकासोन्मुख रखने के लिए जरूरी है, लेकिन इस
बात को ध्यान में रखना आवश्यक है कि यह रेंगती हुई मुद्रा स्फीति आगे चलकर कूदना या
दौड़ना शुरू न कर दें।
(2) चलती स्फीति- रेंगती स्फीति
की गति बढ़ जाने के बाद जब खतरे के कुछ चिन्ह दृष्टिगोचर होने लगें तो यह स्थिति चलती
स्फीति की होती है।
(3) दौड़ती स्फीति- इस स्थिति
में कीमतों में तेजी से वृद्धि होने लगती है जिसके परिणामस्वरूप स्थिर आय वाले व्यक्तियों
को कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
(4) सरपट दौड़ती स्फीति- इस स्थिति में कीमतें इतनी तीव्रता से बढ़ती है कि वृद्धि की कोई सीमा नहीं होती और न ही इसके बारे में अनुमान लगाना सम्भव होता है। मुद्रा का मूल्य अत्यधिक कम होने से लोगों का उस पर से विश्वास हट जाता है। इन परिस्थितियों में सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था अस्त-व्यस्त हो जाती है।
चित्र में वक्र C मंद स्फीति
को प्रदर्शित करता है जब दस वर्ष की अवधि के भीतर कीमत-स्तर में लगभग 30 प्रतिशत वृद्धि
हुई है। वक्र W चलती हुई (walking) स्फीति को व्यक्त करता है जब दस वर्ष की अवधि के
दौरान कीमतों में 50 प्रतिशत से अधिक वृद्धि हुई। वक्र R तीव्र (running) स्फीति को
प्रदर्शित करता है जब 10 वर्षों में कीमतों में लगभग 100 प्रतिशत वृद्धि हुई । ऊपर
की ओर ढाल वाला वक्र H अतिस्फीति के मार्ग को प्रदर्शित करता है जब एक वर्ष से कम अवधि
में ही कीमतें 120 प्रतिशत बढ़ गईं ।
➡️ फिलिप्स
वक्र का निर्माण ब्रिटिश अर्थशास्त्री प्रो0 ए0डब्ल्यू0 फिलिप्स (1958) ने किया।
➡️ फिलिप्स वक्र मजदूरी में परिवर्तन (या मुद्रा स्फीति दर में परिवर्तन) तथा बेरोजगारी दर में परिवर्तन के सम्बन्ध को वक्र द्वारा दिखाया गया है।
➡️ इसे
पूर्ण
रोजगार
में
बेरोजगारी
की
दर
या
बेरोजगारी
की
प्राकृतिक
दर
भी
कहते
हैं।
➡️ फिलिप्स
के
अनुसार
बेरोजगारी
के
निम्न
स्तरों
पर
मजदूरी
दर
में
या
मुद्रा
स्फीति
दर
में
वृद्धि
अधिक
होती
है।
➡️ रिचर्ड लिप्से ने फिलिप्स को सांख्यिकी के सम्बन्ध में W = f `\frac{D-S}S`
जिसमें D = Demand of
labour
S = Supply of Labour
W = Wage rate
➡️ मुद्रा
स्फीति की अर्थव्यवस्था के आर्थिक, सामाजिक जीवन का महत्वपूर्ण ढंग से प्रभाव पड़ता
है।
➡️ मुद्रा स्फीति की दशा में ऋणदाता को हानि होती
है तथा ऋणी को लाभ होता है।
➡️ मुद्रा स्फीति का अर्थव्यवस्था के भुगतान सन्तुलन
पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है क्योंकि स्फीति की दशा में अन्य देशों की वस्तुओं के प्रति
आयात बढ़ जाते हैं जिससे निर्यात हतोत्साहित होते हैं।
➡️ मुद्रा
स्फीति से अर्थव्यवस्था में स्फीतिकारी प्रवृत्ति उत्पन्न हो जाती है।
➡️ मुद्रा अपस्फीति (Money Diflation) मुद्रा अपस्फीति
वह अवस्था है जिसमें मुद्रा का मूल्य बढ़ता है और कीमतें नीचे गिरती हैं।
➡️ मुद्रा संकुचन को रोकने के उपायों को संस्फीति
(Money Reflation) कहते हैं।
➡️ कीन्स ने स्फीतिक अन्तराल का विचार प्रस्तुत
किया।
➡️ ग्रेगरी
के शब्दों में क्रय शक्ति की मात्रा में असाधारण वृद्धि ही मुद्रा स्फीति है।
➡️ सैम्यूलसन के अनुसार निस्पंद स्फीति एक नयी
बीमारी का नाम है।
➡️ हीनार्थ
प्रबन्ध को पाल इजिंग ने बजटीय स्फीत कहा है।
➡️ जानमन ने फिलिप्स वक्र को मुद्रा स्फीति नियंत्रण
में सहायक माना है।
➡️ टार्बिन ने फिलिप्स वक्र को विकुंचित आकार में
प्रस्तुत किया।
➡️ स्टेग फ्लेशन, गतिहीनता के साथ स्फीति की दशा
है।
➡️ मुद्रा
संस्फीति को जान बूझकर उत्पन्न की जाती है।
➡️ स्फीतिक दशाओं में व्यापार शेष प्रतिकूल होता
है। + स्फीतिक दशाओं में आर्थिक विषमतायें बढ़ती है।
➡️ अवमूल्यन
से आन्तरिक कीमतें बढ़ती है।
➡️ हीनार्थ प्रबन्धन मुद्रा स्फीति दर को बढ़ाता
है।
➡️ व्यापारिक बैंकों की उदार ऋण नीति का परिणाम
मुद्रा स्फीति है।
➡️ स्फीतिक अन्तराल का विचार कीन्स ने प्रस्तुत
किया।
कीन्स का दृष्टिकोण
➡️ कीन्स
ने सभी प्रकार की कीमत वृद्धि को स्फीति नहीं कहा। पूर्ण रोजगार से पूर्व बढ़ती हुई
कीमतें प्रेरणादायक होती हैं। अत; पूर्ण रोजगार से पूर्व की स्फिति को कीन्स के अनुसार
• आंशिकी स्फीति कहा जाता है। किन्तु जब पूर्ण रोजगार स्तर के बाद भी कीमतें बढ़ती
हैं तब वास्तविक स्फीति उत्पन्न होती है जिसे नियंत्रित किया जाना आवश्यक है।
➡️ माँग प्रेरित स्फीति -
1. मांग प्रेरित स्फीति का
कारण माँग में वृद्धि है।
2. माँग प्रेरित स्फीति पूर्ण
रोजगार की अवस्था के बाद पैदा होती है।
3. माँग प्रेरित स्फीति सार्वजनिक
व्यय की पूर्ति हेतु मुद्रा की मात्रा में वृद्धि के कारण ‘उत्पन्न होती है।
4. उत्पादन बढ़ाकर या माँग
में कमी कर माँग प्रेरित स्फीति को नियन्त्रित किया जा सकता है।
➡️ लागत प्रेरित स्फीति -
1. लागत प्रेरित स्फीति का
मुख्य कारण लागत में वृद्धि है जो मुख्यत: मजदूरों की मौद्रिक मजदूरी बढ़ने से होती
है ।
2. लागत प्रेरित स्फीति बेरोजगारी
की स्थिति में पायी जाती है।
3. लागत स्फीति बाजार की अपूर्णता
के कारण उत्पन्न होती है।
4. लागत प्रेरित स्फीति को
नियन्त्रित करने के लिए मजदूरी की मजदूरी पर नियन्त्रण करना पड़ता है।
भारत में मुद्रास्फीति की माप
➡️ थोकमूल्य
सूचकांक
(Wholesale Price Index-WPI) - मूल्य सूचकांक, सापेक्ष
मूल्य
परिवर्तनों
का
माप,
जिसमें
संख्याओं
की
एक
श्रृंखला
शामिल
होती
है,
ताकि
किन्हीं
दो
अवधियों
या
स्थानों
के
मूल्यों
के
बीच
तुलना
अवधि
के
बीच
कीमतों
में
औसत
परिवर्तन
या
स्थानों
के
बीच
कीमतों
में
औसत
अंतर
दिखाए।
♥️ यह
भारत
में
सबसे
अधिक
इस्तेमाल
किया
जाने
वाला
मुद्रास्फीति
संकेतक
(Inflation Indicator) है।
♥️ इसे
वाणिज्य
और
उद्योग
मंत्रालय
(Ministry of Commerce and Industry) के आर्थिक सलाहकार
(Office of Economic Adviser) के कार्यालय द्वारा
प्रकाशित
किया
जाता
है।
♥️ इसमें
घरेलू
बाज़ार
में
थोक
बिक्री
के
पहले
बिंदु
किये
जाने-वाले
(First point of bulk sale) सभी लेन-देन शामिल होते हैं।
♥️ इस
सूचकांक
की
सबसे
प्रमुख
आलोचना
यह
है
कि
आम
जनता
थोक
मूल्य
पर
उत्पाद
नहीं
खरीदती
है।
♥️ वर्ष
2017 में
अखिल
भारतीय
WPI के
लिये
आधार
वर्ष
2004-05 से
संशोधित
कर
2011-12 कर
दिया
गया
है।
➡️ उत्पादक
मूल्य
सूचकांक
(Producer Price Index in Hindi) - एक सूचकांक है
जिसका
उपयोग
विक्रेता
के
दृष्टिकोण
से
मूल्य
की
गति
की
गणना
करने
के
लिए
किया
जाता
है।
उपभोक्ता
मूल्य
सूचकांक
और
थोक
मूल्य
सूचकांक
की
तरह,
भारतीय
अर्थव्यवस्था
में
बाजार
अर्थव्यवस्था
के
रुझान
को
मापने
के
लिए
उत्पादक
मूल्य
सूचकांक
(Producer Price Index) एक महत्वपूर्ण साधन
है।
♥️ यह
खुदरा खरीदार के दृष्टिकोण से मूल्य परिवर्तन को मापता है।
♥️ यह
चयनित वस्तुओं और सेवाओं के खुदरा मूल्यों के स्तर में समय के साथ बदलाव को मापता है,
जिस पर एक परिभाषित समूह के उपभोक्ता अपनी आय खर्च करते हैं।
♥️ CPI
के चार प्रकार निम्नलिखित हैं:
1. औद्योगिक श्रमिकों
(Industrial Workers-IW) के लिये CPI
2. कृषि मज़दूर
(Agricultural Labourer-AL) के लिये CPI
3. ग्रामीण मज़दूर (Rural
Labourer-RL) के लिये CPI
4. CPI (ग्रामीण/शहरी/संयुक्त)
♥️ इनमें
से प्रथम तीन को श्रम और रोज़गार मंत्रालय में श्रम ब्यूरो (labor Bureau) द्वारा संकलित
किया गया है। जबकि चौथे प्रकार की CPI को सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय
(Ministry of Statistics and Programme Implementation) के अंतर्गत केंद्रीय सांख्यिकी
संगठन (Central Statistical Organisation-CSO) द्वारा संकलित किया जाता है।
♥️ CPI
का आधार वर्ष 2012 है।
➡️ उपभोक्ता मूल्य सूचकांक बनाम थोक मूल्य सूचकांक
♥️ थोक मूल्य सूचकांक (WPI) का उपयोग थोक स्तर
पर वस्तुओं की कीमतों का पता लगाने के लिये किया जाता है। अर्थव्यवस्था में सभी वस्तुओं
की कीमतों में परिवर्तन को मापना या पता लगाना वास्तव में असंभव है। इसलिये थोक मूल्य
सूचकांक में एक नमूने को लेकर मुद्रास्फीति को मापा जाता है। इसके पश्चात् एक आधार
वर्ष तय किया जाता है जिसके सापेक्ष में वर्तमान मुद्रास्फीति को मापा जाता है।
♥️ भारत में थोक मूल्य सूचकांक के आधार पर महँगाई
की गणना की जाती है।
♥️ उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) में मुद्रास्फीति
की माप खुदरा स्तर पर की जाती है जिसमें उपभोक्ता प्रत्यक्ष रूप से जुड़े रहते हैं।
यह पद्वति आम उपभोक्ता पर मुद्रास्फीति के प्रभाव को बेहतर तरीके से मापती है।
♥️ WPI, आधारित मुद्रास्फीति की माप उत्पादक स्तर
पर की जाती है जबकि और CPI के तहत उपभोक्ता स्तर पर कीमतों में परिवर्तन की माप की
जाती है।
♥️ दोनों बास्केट व्यापक अर्थव्यवस्था के भीतर
मुद्रास्फीति की प्रवृत्ति (मूल्य संकेतों की गति) को मापते हैं, दोनों सूचकांक अलग-अलग
होते हैं जिसमें भोजन, ईंधन और निर्मित वस्तुओं का भारांक (Weitage) निर्धारित किया
गया है।
♥️ WPI सेवाओं की कीमतों में परिवर्तन को शामिल
नहीं करता है, जबकि CPI में सेवाओं की कीमतों को शामिल किया जाता है।
♥️ अप्रैल 2014 में, RBI ने मुद्रास्फीति के प्रमुख मापक के रूप में CPI को अपनाया था।