20.PGT राजस्व (Public Finance)

राजस्व (Public Finance)

 राजस्व (Public Finance)

➡️ राजस्व, अर्थशास्त्र की वह शाखा है जिसके अन्तर्गत सरकार अर्थव्यवस्था के समष्टिभावी उद्देश्यों की पूर्ति के लिए व्यय सार्वजनिक और सार्वजनिक आय का समायोजन करती है।

➡️ राजस्व, राज्य के मौद्रिक और साख संसाधनों का अध्ययन है।

➡️ सरकारी प्राप्तियां = सरकारी राजस्व + अन्य सभी स्रोतों से प्राप्त आय।

➡️ राजस्व की विषयवस्तु में सार्वजनिक व्यय, सार्वजनिक आय, सार्वजनिक ऋण, सार्वजनिक प्रशासन तथा संघीय वित्त आते हैं।

➡️ सार्वजनिक व्यय (Public Expenditure) के अन्तर्गत सार्वजनिक कोष में से सरकार द्वारा किये जाने वाले व्यय के सिद्धान्तों और समस्याओं का अध्ययन एवं विश्लेषण किया जाता है।

➡️ सार्वजनिक आय के अन्तर्गत उन विभिन्न विधियों का अध्ययन किया जाता है जिसके द्वारा सरकार द्वारा लगाये जाने वाले विभिन्न करों के वर्गीकरण और औचित्य है।

➡️ सार्वजनिक ऋण के अन्तर्गत सरकार द्वारा देश की जनता से लिए जाने वाले ऋणों के विभिन्न पक्षों को अध्ययन किया जाता है।

➡️ कर : कर एक अनिवार्य भुगतान है जो करदाता द्वारा सरकार के प्रति बिना किसी ऐसी आशा से किये जाते हैं कि उन्हें उसके बदले में प्रत्यक्ष में कोई लाभ नहीं होगा।

➡️ कर भुगतान से प्रत्यक्ष रूप से करदाता को कोई लाभ नहीं मिलता।

➡️ कर का सेवा लागत से कोई सम्बन्ध नहीं।

➡️ कर एक कानूनी वसूली है।

➡️ एडम स्मिथ ने एक अच्छी कर प्रणाली के निम्न गुण बताये हैं। जैसे - समानता, निश्चितता, सुविधा तथा मितव्ययिता।

➡️ श्रीमती हिक्स के अनुसार एक अच्छी कर प्रणाली में निम्नलिखित गुण होने चाहिए। जैसे- करारोपण भुगतान की योग्यता, करारोपण का उद्देश्य सार्वजनिक सेवाओं को वित्तीय व्यवस्थाओं के लिए निश्चित किया जाना चाहिए तथा कर प्रणाली सार्वभौमिकता के सिद्धान्त पर आधारित होनी चाहिए।

➡️ कालवर्ट के अनुसार कर का वित्तीय सिद्धान्त इस प्रकार का होना चाहिए जैसे - " बतख के पंख इस प्रकार निकाले जाये कि वह कम से कम शोर मचाये।"

➡️ भुगतान सामर्थ्य सिद्धान्त के अनुसार करारोपण भुगतान करने में सामर्थ्य के अनुसार होना चाहिए।

➡️ करारोपण का लाभ उपागम (Benifit approach) सिद्धान्त का सुझाव जे.एस. मिल, सैलिगमैन, विकसैल आदि अर्थशास्त्रियों ने किया।

➡️ सन् 1881 में डी मार्को ने भी लाभ उपागम का अनुमोदन किया।

➡️ सन् 1919 में स्वीडेन के प्रसिद्ध अर्थशास्त्री एरिक लिन्ढाल (Eric Lindhal) ने लाभ उपागम की संकल्पना का समर्थन किया तथा इसे ऐच्छिक विनिमय सिद्धान्त के रूप में प्रतिपादित किया।

➡️ भुगतान सामर्थ्य सिद्धान्त के अनुसार करदाता और सरकार के मध्य करारोपण का आधार लेने का देने (quid pro-quo) नहीं अपितु करदाता को भुगतान करता है।

➡️ करदाता क्षमता वह अधिकतम धनराशि है जो कि राज्य अपने निवासियों से बिना उत्पादन को अस्त व्यस्त किये ही करों के रूप में प्राप्त कर सकती है।

➡️ डाल्टन ने निरपेक्ष करदान क्षमता के स्थान पर सापेक्ष करदान क्षमता को अधिक व्यवहारिक बताया।

➡️ करदान क्षमता को निम्न तत्व प्रभावित करते हैं-

♥️ राष्ट्रीय आय

♥️ जनसंख्या

♥️ आय

♥️ धन का वितरण

♥️ सरकारी व्यय

♥️ कराधान का स्वरूप

♥️ प्रशासकीय कुशलता

♥️ देश की आर्थिक स्थिति

➡️ प्रत्यक्ष कर ये वे कर हैं जिनका कारापात और कराघात एक ही व्यक्ति पर पड़ता है। प्रत्यक्ष करों का भुगतान वहीं करता है। जिस पर वह संवैधानिक रूप से लगाया जाता है।

➡️ प्रत्यक्ष करों के गुण

♥️ समता एवं समर्थता

♥️ निश्चितता का पाया जाना

♥️ लोचपूर्णता

♥️ नागरिक चेतना

♥️ उत्पादकता

♥️ योग्यता एवं न्यायशीलता

♥️ मितव्ययिता

➡️ प्रत्यक्ष करों के दोष-

♥️ मनमानापन

♥️ कर वंचन तथा कर की बचत

♥️ असुविधाजनक

♥️ संग्रह करनेमें खर्चीली प्रणाली

♥️ अलोकप्रिय

♥️ धनी वर्ग के साथ अन्याय

➡️ कैल्डोर के अनुसार आय या सम्पत्ति के स्वामित्व पर लगने वाले सभी प्रकार के कर प्रत्यक्ष कर होंगे और सम्पत्ति की खरीद एवं बिक्री पर कर जैसे मुद्रांक कर अप्रत्यक्ष कर होते हैं"।

➡️ "ऐसा कर जो दूसरों पर न टाला जा सके जैसे आयकर, मृत्युकर उपहार कर इत्यादि प्रत्यक्ष कर होते हैं।"

➡️ डाल्टन के अनुसार - प्रत्यक्ष कर वह कर है जिनका भुगतान वास्तव में उस व्यक्ति द्वारा किया जाता है जिस पर वह कानूनी रूप में लगाया जाता है जैसे--आय कर (Income Tax), उत्तराधिकार कर तथा सम्पत्ति कर।

➡️ अप्रत्यक्ष कर - इस कर में कर का प्रारंभिक भार एक व्यक्ति पर पड़ता है तथा वास्तविक भार दूसरे व्यक्ति पर पड़ता है।

➡️ जो कर दूसरों पर टाला जा सकता है जैसे विक्री कर, आयात- निर्यात कर, उत्पादन कर तथा मनोरंजन कर, इत्यादि अप्रत्यक्ष कर कहलाते हैं।

➡️ अप्रत्यक्ष करों गुण -

♥️ सुविधाजनक

♥️ करों को छिपाने में कठिनाई

♥️ लचीलापन

♥️ सामाजिक हित

♥️ कर का अधिभार विस्तृत होना

♥️ लोकप्रिय प्रणाली

♥️ मादक वस्तुओं के उपयोग पर रोक

♥️ न्यायपूर्ण प्रणाली

➡️ अप्रत्यक्ष करों के दोष

♥️ अन्याय एवं समानतापूर्ण

♥️ अत्यधिक अनिश्चित

♥️ सामाजिक चेतना का आभाव

♥️ अमितव्ययिता

♥️ प्रतिगामी

♥️ प्रभावी माँग का कम होना

♥️ अनेक मध्यस्थों का होना

♥️ मन्दी काल में आय में कमी

➡️ डाल्टन के अनुसार - अप्रत्यक्ष कर किसी एक व्यक्ति पर लगाया जाता है परन्तु उसका भुगतान पूर्णतः या अंशत: दूसरे व्यक्ति द्वारा किया जाता है।

➡️ कर का प्राथमिक भार कराघात (impact) तथा वास्तविक भार करापात (incidence) कहलाता है।

➡️ प्रत्यक्ष कर तथा अप्रत्यक्ष कर किसी भी देश की कर प्रणाली को सर्वाधिक उपर्युक्त, न्यायोचित तथा प्रगतिशील बनाने के लिए आवश्यक है।

➡️ मूल्यानुसार कर ( Advaloram tax) वह कर है जो कि वस्तु के मूल्य के रूप में व्यक्त किया जाता है।

➡️ विशिष्ट कर (Specific tax) वे कर हैं जो कि वस्तु की इकाई एवं परिमाण के आधार पर अदा की गई एक निश्चित रकम के रूप में व्यक्त किये जाते हैं।

➡️ विशिष्ट कर अवरोही (Regressive) प्रकृति के होते हैं।

➡️ कराघात का विवर्तन नहीं होता जबकि कर भार का विवर्तन होता है।

➡️ कराघात से करापात की स्थिति तक पहुँचाने की क्रिया को कर विवर्तन (Shifting of taxation) कहते हैं।

➡️ कराघात से आशय कर के तात्कालिक प्रत्यक्ष मौद्रिक भार से है। कराघात वहन करने वाले व्यक्ति को वैधानिक जिम्मेदारी यह होती है कि वह आरोपित कर सरकार को भुगतान करे।

➡️ कराघात से आशय कर के अन्तिम मौद्रिक भार से है। कराघात उस करदाता पर पड़ता है जो अन्ततः कर के वास्तविक भारत को वहन करता है।

➡️ प्रो० मसप्रेव ने करापात की नवीन अवधारणा को विकसित किया है।

➡️ विशिष्ट करापात (Specific Incidence ) अन्य विभिन्न करों और सार्वजनिक व्यय को स्थिर रखने की स्थिति में किसी एक कर के परिवर्तन से निजी उपभोग के लिए उपलब्ध होने वाली वास्तविक आय पर उत्पन्न होने वाले विवरणात्मक प्रभाव को विशिष्ट करापात कहते हैं।

➡️ भेदात्मक करापात - से आशय करापातसे आय वितरण के ऐसे परिवर्तन मापे जाते हैं जो उस व्यवस्था में उत्पन्न होते हैं। जब समान आय देने वाला एक कर किसी दूसरे कर की जगह ले लेता है।

➡️ सन्तुलित बजट करापात इसके अन्तर्गत वितरण के उस परिवर्तन को ज्ञात किया जाता है जो करों और सार्वजनिक व्ययों को एक समान मात्रा तक बढ़ाने या घटाने से उत्पन्न होता है।

➡️ कर विवर्तन - कराघात और करापात के निर्धारण में कर विवर्तन की संकल्पना अत्यन्त महत्वपूर्ण होती है।

 स्वतन्त्रता के बाद काला धन निकालने के लिए चलायी गयी योजनाओं का विवरण

योजना

वर्ष

घोषित राशि करोड़ रु. में

बी. डी. एस. त्यागी

1951

90

राष्ट्रीय रक्षा स्वर्ण बांड नेशनल डिफेस

-

-

रेमिटेंस स्कीम, सिक्सटी फोर स्कीम ब्लाक स्कीम

1965

177

बी.डी. एस.

1975

1578

एमनेस्टी (क्षमादान योजना

1985

10778

फारेन रेमिटेंस स्कीम

1991-1992

2200

नेशनल हाउसिंग बैंक स्कीम

1991-92

60

इंडिया डेवलपमेंट बांड

1991-92

4500

वी.डी. आई. एस. 1997

1977

33,000

 वी. डी. आई. एस. 97 योजना की महत्वपूर्ण झलकियाँ

♥️ योजना की शुरुआत 1 जुलाई, 1997

♥️ योजना समाप्त हुई 31 दिसंबर, 1997

♥️ कुल एकत्र राजस्व 10,050 करोड़ रुपये

♥️ कुल करदाता 4 लाख 66 हजार 31 लोग

♥️ केन्द्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड के कर्मचारियों के कल्याण निधि में दिया गया धन 100 करोड़ रुपये।

♥️ 16 सितम्बर को घोषित योजना खर्च में पाँच प्रतिशत की बहाल की गई।

♥️ योजना के विज्ञापन पर हुआ खर्च -27 करोड़ रु.।

♥️ योजना के अन्तर्गत वसूली पर आया खर्च 0.27 प्रतिशत।

♥️ 5 जनवरी, 1988 से कराधान को व्यापक बनाने हेतु नवीनतम् अभियान।

♥️ नवीनतम योजना के अन्तर्गत फार्म हाउस और सेलुलरफोन पर ध्यान केन्द्रित ।

♥️ सरकार आय कर आयुक्तों को स्वायत्ता देगी और एक अप्रैल 98 से प्रोत्साहन लक्ष्य निर्धारित करेगी।

 आयकर की 'सरल' योजना

♥️ बजट 1998 में व्यक्तिगत आयकर दाताओं के लिए 'सरल' योजना प्रारम्भ की है।

♥️ 'सरल' योजन के अन्तर्गत आयकर दाता सरल नाम वाला आयकर घोषणा का एक पृष्ठ का फार्म भरेगा जिसे भरने में किसी चार्टर्ड एकाउण्टेंट या टैक्स सलाहकार की सहायता की जरूरत नहीं पड़ेगी।

♥️ सरल योजना का मुख्य उद्देश्य कर चोरी की प्रवृत्ति का रोकना है और तीन वर्ष के भीतर करीब 18 प्रतिशत की औसत दर केन्द्रीय वैट (मूल्यवर्धित कर) की ओर बढ़ाना है।

 मनी लाउंड्रिंग बिल क्या है?

♥️ 4 अगस्त, 98 को लोकसभा में प्रस्तुत इस बिल का मुख्य उद्देश्य अवैध रूप से प्राप्त किये गये धन के आवागमन पर निगरानी रखने तथा दोषी व्यक्ति के खिलाफ समुचित दण्डात्मक कार्यवाही करने का प्रावधान है।

♥️ यह बिल पारित होने के बाद समूचे देश में प्रभावी होगा, इसके प्रावधानों के अनुसार 25 लाख के ऊपर के लेन-देन पर निगरानी रखने का दायित्व वित्तीय संस्थाओं को सौपा जायेगा।

♥️ इस बिल के अनुसार दोषी पाये जाने पर सात वर्ष की सजा एवं किये गये अपराध की सजा अलग से मिलेगी, अवैध रूप से इकट्ठा किये गये धन से खरीदी गई सम्पत्ति जब्त की जायेगी।

♥️ इस बिल के क्रियान्वयन के लिए त्रिस्तरीय व्यवस्था की गई है। प्रथम स्तर पर एक प्रवर्तन एवं नियमन निदेशालय होगा जो अपराधी को समन भेजने, तलाशी लेने और गिरफ्तार करने के लिए होगा।

 कर विवाद समाधान स्कीम - 99

♥️ 1988 के आम बजट में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष करो के 6 लाख 48 हजार विवादित मामलों को सुलझाने के लिए सितम्बर, 98 से 'समाधान' योजना को लागू किया गया।

♥️ इस योजना द्वारा उन करदाताओं को अपने उन कर एरिओ को स्वेच्छा से बाहर लाने के लिए प्रोत्साहित किया जायेगा, जिनकी 31 मार्च, 1998 को विभिन्न कर कानूनों के अन्तर्गत देनदारी बनती है।

♥️ समाधान योजना के अनुसार लाभ उठाने (समाधान का) वाली कंपनी या व्यक्ति को विवादित राशि का 50 प्रतिशत ही भुगतान करना पड़ेगा। इस भुगतान पर किसी भी तरह का ब्याज या जुर्माना देय नहीं होगा।

♥️ इस योजना में जिन मामलों में किसी तरह की अपील लंबित नहीं है, उनके इससे बाहर रखा जायेगा।

♥️ जिन मामलों में व्यक्ति को दोषी ठहराकर उन पर मुकदमा चलाया जा रहा है, उन्हें इस योजना का लाभ नहीं होगा।

♥️ फेरा, डाटा, नॉरकोटिक्स, भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, भारतीय दंडसंहिता इत्यादि के अन्तर्गत मुकदमें लंबित हैं, उनको योजना का लाभ नहीं मिलेगी।

♥️ इस योजना का लाभ उठाने हेतु व्यक्ति या कम्पनी को एक फार्म भरना होगा, आवेदन पत्र देने के 60 दिन के भीतर विभाग-पत्र जारी करेगा, प्रमाण-पत्र जारी होने के 20 दिन के भीतर आवेदनकर्ता को निर्धारित राशि का जमा करना होगा।

 सम्मान योजना

♥️ आम बजट 1998-99 में करदाताओं को समाज में मान्यता प्रदान करने के लिए इस योजना का प्रस्ताव किया गया।

♥️ इसके तहत निर्धारित समय सीमा के अन्दर ईमानदारी से कर अदा करने वाले व्यक्तियों को प्रोत्साहन प्रदान करने का प्रावधान है।

♥️ प्रोत्साहन नकद राशि और कर में कटौती दोनों रूपों में हो सकता है, साथ ही करदाताओं को एक प्रशस्ति-पत्र भी प्रदान किया जायेगा।

 न्यू इंडिया मिलेनियम योजना

♥️ इस योजना की घोषणा  1998-99 के आम बजट में की गई। यह विशेष योजना अनिवासी भारतीयों के लिए SBT द्वारा शुरू किया गया।

♥️ इस योजना के अन्तर्गत अनिवासी भारतीय डालर में ही भारतीय कंपनियों के शेयरों में निवेश कर सकेंगे।

♥️ पी.आई. ओ. कार्ड (Person of India Origin) जारी करने की घोषणा आम बजट 1998-99 में की गई।

♥️ पी.आई.ओ. कार्ड विदेशों में रहने वाले तथा विदेशी पासपोर्ट रखने वाले भारतीय मूल के लोगों के लिए जारी किया जाएगा।

♥️ पी.आई.ओ. कार्ड धारक को भारत आने के लिए किसी भी प्रकार के वीसा की आवश्यकता नहीं होगी।

 रिसर्जेंट इंडिया बांड्स (रिब)

♥️ बजट 1998 की व्यवस्था के अनुसार भारतीय स्टेट बैंक ने 5 अगस्त, 98 को अनिवासी भारतीयों के लिए बहुचर्चित 'रिसर्जेंट इंडिया बांड (रिब) जारी किया।

♥️ 'रिब' द्वारा भारतीय स्टेट बैंक ने केवल 14 दिन में ही कई अरब अमेरिकी डालर जुटाने में सफल हुआ। '

♥️ 'रिब इश्यू' में 27 देशों के 74 हजार 300 लोगों ने निवेश किया।

♥️ कुल एकत्र 4.16 अरब डालर में 50 प्रतिशत खाड़ी देशों से, 20 प्रतिशत सुदूर पूर्व या अन्य एशियाई देशों से तथा शेष 30 प्रतिशत हिस्सा अमेरिका अथवा यूरोप से एकत्र किया गया।

♥️ इस राशि पर स्टेट बैंक को 7.75 प्रतिशत का ब्याज देना होगा।

♥️ रिब से एकत्र धन का तीन चौथाई हिस्सा देश में लाया जायेगा और चौथाई विदेश में रखा जायेगा।

♥️ देश में आने वाले तीन चौथाई हिस्से में से 36 प्रतिशत हिस्सा स्टेट बैंक 'वैधानिक तरलता अनुपात (एस.एल.आर.) और नकद आरक्षित अनुपात (सी.आर.आर.) के रूप में R.B.I. के पास सरकारी प्रतिभूतियों में लगा सकता है। शेष 64 प्रतिशत स्टेट बैंक के पास कार्य हेतु सुरक्षित रहेगा।

♥️ स्टेट बैंक के अध्यक्ष के अनुसार यह धन सड़क, बंदरगाह और बिजली जैसी आधारभूत परियोजनाओं में लगेगा।

♥️ दूसरे स्तर पर न्यायिक प्राधिकरण निदेशालयों के निर्णय के खिलाफ सुनवायी कर सकेगा, इसके निर्णय की चुनौती उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के नेतृत्व में गठित अपीली न्यायाधिकरण में दी जा सकेगी।

 पैन नम्बर (स्थायी लेखा संख्या)

♥️ 1 नवम्बर, 1998 से निम्नलिखित मामलों में स्थायी लेखा संख्या (पैन) का उल्लेख अनिवार्य कर दिया गया है-

(i) 5 लाख रु0 या अधिक किसी अचल सम्पत्ति की खरीद या बिक्री।

(ii) मोटर या वाहन की खरीद या बिक्री

(iii) किसी बैंक व बैंकिंग कंपनी अथवा बैंकिंग संस्थान में 50,000 रु. से अधिक की सावधि जमा।

(iv) पैन कार्ड में पता का उल्लेख नहीं रहता।

➡️ जब मांग पूर्णतः बेलोचदार हो तो कर की मात्रा का सम्पूर्ण भार क्रेता वहन करेगा।

➡️ जब मांग पूर्णतः लोचदार हो तो कर राशि का सम्पूर्ण भारत विक्रेता सहन करेगा।

 कर विवर्तन के सिद्धान्त

➡️ संकेन्द्रण सिद्धान्त (Concentration theory) इसका प्रतिपादन फ्रांस में अहस्तक्षेप नीति का अनुसरण करने वाले अर्थशास्त्रियों, प्रकृतिवादी अर्थशास्त्रियों तथा परम्परावादी अर्थशास्त्रियों द्वारा किया गया।

➡️ प्रकृतिवादी अर्थशास्त्रियों का मत था कि अतिरेक सृजित करने वाला वर्ग ही कर भार वहन कर सकता है।

➡️ प्रसारण का सिद्धान्त (Diffusion Theory) कर के प्रसारण सिद्धान्त का प्रतिपादन फ्रांसीसी अर्थशास्त्री केनार्ड (Canard) ने किया है।

➡️ प्रसारण सिद्धान्त का अभिप्राय यह है कि अर्थव्यवस्था में कहीं भी लगाये गये कर का भार धीरे-धीरे पूरे समाज में फैल जाता है।

➡️ केनार्ड के अनुसार - यदि किसी व्यक्ति को एक धमनी से रक्त निकाला जाये तो रक्त की कमी केवल उस धमनी में नही होती अपितु सम्पूर्ण शरीर में रक्त अल्पता महसूस होती है।

➡️ करारोपण का आधुनिक सिद्धान्त कर विवर्तन को ज्ञात करने के लिए हमें विनिमय; सम्बन्ध का अध्ययन करना होगा।

 कर विवर्तन के सामान्य सिद्धान्त के अनुसार-

➡️ यदि पूर्ति और माँग की लोच बराबर है eS = eD तब कर का भार क्रेताओं और विक्रेताओं पर बराबर बँट जाता है।

➡️ जब eS > eD तो कर का भार विक्रेताओं की अपेक्षा क्रेताओं पर अधिक पड़ेगा।

➡️ जब eS < eD तो कर का भार क्रेताओं की अपेक्षा विक्रेताओं पर पड़ेगा।

➡️ जब वस्तु की माँग पूर्णतया लोचदार और पूर्ति पूर्णतया बेलोचदार है तो कर का सम्पूर्ण भार विक्रेता पर पड़ेगा।

➡️ यदि वस्तु की माँग पूर्णतया बेलोचदार तथा पूर्ति पूर्णतया लोचदार तो कर का सम्पूर्ण भार क्रेता पर पड़ेगा।

➡️ यदि वस्तु की पूर्ति पूर्णतया बेलोचदार तथा माँग पूर्णतया लोचदार तो कर का सम्पूर्ण भार विक्रेता पर पड़ेगा।

➡️ यदि वस्तु की पूर्ति पूर्णतया लोचदार तथा माँग बेलोचदार हो तो कर का भार (सम्पूर्ण भार) क्रेता पर पड़ेगा।

➡️ बजटीय घाटा (Budgetary deficit) = कुल प्राप्तियाँ - कुल व्यय

➡️ राजस्व घाटा (Revenue Deficit) = राजस्व प्राप्तियाँ - राजस्व व्यय

➡️ राजकोषीय घाटा = बजटीय घाटा + उधार और अन्य देयतायें।

➡️ मौद्रिकृत घाटा = केन्द्र सरकार के लिए भारतीय रिजर्व बैंक की निबल साख में होने वाली वृद्धि।

➡️ RBI के बकाया ट्रेजरी बिलों की शुद्ध वृद्धि + सरकार की बाजार उधार में RBI का योगदान।

➡️ राजकोषीय घाटा - यह राजस्व प्राप्तियों के ऊपर सरकार के व्यय का अतिरेक होता है।

➡️ प्राथमिक घाटा (Primary Deficit)- जब राजकोषीय घाटे में से ब्याज की अदायगियों को घटा दिया जाता है, तो शेष राशि को प्राथमिक अथवा प्रारम्भिक घाटा कहते हैं।

➡️ बजटीय घाटा = राजस्व प्राप्ति + पूँजीगत प्राप्ति - गैर आयोजन व्यय + आयोजन व्यय।

➡️ केन्द्र सरकार के लिए RBI की निबल साख में होने वाली वृद्धि को मौद्रिकृत घाटा कहते हैं।

➡️ राजस्व घाटा = राजस्व प्राप्ति - राजस्व व्यय।

➡️ eS = eD की दशा में कर भार क्रेताओं तथा विक्रेताओं पर समान रूप से पड़ेगा।

➡️ यदि ed = ∞ तथा eS = 0 तब कर भार सम्पूर्ण रूप से विक्रेता पर पड़ेगा।

➡️ कराघात से अभिप्राय कर के प्रत्यक्ष मौद्रिक भार से है।

➡️ करापात में कर का अन्तिम भार टाला नहीं जा सकता।

➡️ राजस्व घाटे की तुलना में राजकोषीय घाटा का आकार हमेशा बड़ा होता है।

➡️ राज्य के राजकोषीय घाटे की वित्तीय व्यवस्था में सबसे अधिक अंश केन्द्रीय सरकार से ॠण है।

➡️ ब्याज भुगतान केन्द्रीय सरकार के राजस्व व्यय का सबसे महत्वपूर्ण घटक है।

➡️ राजस्व बजट में कर स्त्रोत तथा गैर कर स्त्रोत दोनों को सम्मिलित किया जाता है।

➡️ कर, अनिवार्य कर भार है जबकि शुल्क ऐच्छिक है।

➡️ विशिष्ट करों की प्रकृति अवरोही होती है।

➡️ अवरोही कर वे कर होते हैं जो आय में वृद्धि के साथ-साथ इनकी दर घटती जाये।

➡️ आनुपातिक कर वे कर हैं जो आय के अनुपात में लगाये जाते हैं।

➡️ प्रगतिशील कर वे कर हैं जो आय में वृद्धि के साथ-साथ करों की दरों में भी वृद्धि होती जाये।

➡️ रिकार्डे के अनुसार प्रत्यक्ष तथा परोक्ष कर एक-दूसरे के पूरक हैं।

➡️ कराघात से करापात तक जाने की क्रिया को कर विवर्तन कहते हैं।

➡️ जब eS > eD तो कर का भार क्रेता पर अधिक पड़ेगा।

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