उत्पादन
♥️ उत्पादन
का अभिप्राय पदार्थ का निर्माण करना नहीं है बल्कि उसका स्वरूप बदल कर उसमें
प्रतियोगिता का सृजन करना होता है।
♥️
उत्पादन वह प्रक्रिया है, जिसमें उपयोगिता का सृजन होता है।
♥️ एडम
स्मिथ के अनुसार उत्पादन के तीन साधन होते हैं जिनकी सहायता से किसी वस्तु का
उत्पादन किया जाता है, ये साधन- भूमि, श्रम तथा पूँजी।
♥️ प्रो०
मार्शल का मत है कि उत्पादन के चार साधन होते हैं जैसे- भूमि, श्रम, पूँजी तथा संगठन।
♥️ आधुनिक अर्थशास्त्रियों
के अनुसार उत्पादन के पाँच साधन होते हैं जैसे भूमि, श्रम, पूँजी,
संगठन तथा उद्यम।
♥️ प्रो०
वान वीजर (ऑस्ट्रियन अर्थशास्त्री) ने उत्पत्ति के साधनों को दो भागों में बाटा है
- जैसे विशिष्ट साधन तथा अविशिष्ट साधन।
♥️ श्रम उत्पादन का एक
सक्रिय साधन है जो अपने शारीरिक एवं मानसिक कार्यों द्वारा
उत्पत्ति के अन्य निष्क्रिय साधनों को सक्रिय बनाता है।
♥️ जे० एस० मिल, चैपमैन जैसे
अर्थशास्त्री मानते हैं कि उत्पादन के केवल दो ही भौतिक साधन
होते हैं- भूमि तथा श्रम।
♥️ प्रकृतिवादी अर्थशास्त्री
केवल भूमि को ही उत्पादक क्षेत्र मानते थे।
♥️ श्रम नाशवान होता है तथा
उत्पादन का साधन एवं साध्य होता है।
♥️ श्रम विभाजन एवं विशिष्टीकरण
बड़े पैमाने के उत्पादन में आन्तरिक एवं वाह्य बचतें उत्पन्न
करते हैं।
♥️ पूँजी मनुष्य द्वारा
उत्पादित धन का वह भाग है जिसका उपयोग अधिक धन उत्पन्न करने के लिए किया जाता है।
♥️ अल्प विकसित देशों में
पूंजी निर्माण की निम्न दर का कारण गरीबी का दुष्चक्र है या गरीबी के दुष्चक्र की क्रियाशीलता
है।
♥️ गरीबी के दुष्चक्र की अवधारणा
को प्रो० नर्क्स ने विकसित किया है।
♥️ उत्पादन क्रिया में
अनेक जोखिम व अनश्चिततायें निहित होती हैं जिन्हें वहन करना ही
साहस है। इन जोखिम तथा अनिश्चितताओं के वातावरण में उत्पादन कार्य करने वाला
व्यक्ति हो साहसी होता है।
♥️ लाभ अनिश्चतताओं को
सहन करने का ही पुरस्कार होता है।
♥️ एक उद्यमी का कार्य
केवल जोखिम उठाना है जबकि संगठक का कार्य व्यवसाय व संगठन
प्रबन्ध एवं नियंत्रण करना होता है।
♥️ प्रो०
शुम्पीटर के अनुसार साहसी विकास की मुख्य प्रेरक शक्ति है, वह नवीनताओं का सृजन
करता है। उत्पादन की तकनीकी में क्रान्ति का अधिष्ठाता होता है।
♥️ हानि
की दशा में केवल उद्यमी ही हानि उठाता है।
♥️ प्रो० इरविंग फिशर ने
पूँजी और श्रम को स्टाक और प्रवाह माना है।
♥️ प्रो० शुम्पीटर के अनुसार
साहसी ही उत्पादन कार्य में नयेपन का निर्माण करता है।
♥️ प्रो० नर्क्स ने गरीबी
के दुष्चक्र की संकल्पना को विकसित किया।
♥️ श्रम विभाजन आन्तरिक
व वाह्य दोनों बचतों में विशिष्टिकरण उत्पन्न करता है।
♥️ प्रकृतिवादियों
के अनुसार केवल कृषि ही उत्पादक क्षेत्र है।
♥️ श्रम की कार्य कुशलता
एक सापेक्षिक शब्द है जिसके मूल्यांकन में मात्रात्मक व गुणात्मक
दोनों पक्ष सम्मिलित किया जाता है।
♥️ उत्पादन
की मात्रा को प्रभावित करने वाले दो तत्व हैं- आन्तरिक तत्व तथा बाह्य तत्व ।
♥️ आन्तरिक
तत्वों में - उत्पत्ति के साधनों की कुशलता तथा उत्पत्ति के साधनों का प्रयोग
अनुपात शामिल किया जाता है।
♥️ वाह्य
तत्वों में प्राकृतिक तत्व, वैज्ञानिक प्रगति, साख तथा बैंकिग सुविधायें, परिवहन
एवं संचार, सरकार की नीतियाँ तथा राजनीतिक दशाएँ प्रमुख हैं।
♥️ अर्थशास्त्र में भूमि
का प्रयोग व्यापक है।
♥️ प्रो० जे० के० मेहता
ने भूमि के अभिप्राय से एक नया दृष्टिकोण दिया है- 'भूमि एक विशिष्ट साधन है या किसी
साधन में निहित विशिष्ट तत्व को बढ़ाती है।"
♥️ श्रम की कुछ विशेषतायें
निम्नलिखित हैं
A. श्रम उत्पादन की अनिवार्य
तथा सक्रिय साधन है।
B. श्रम, श्रमिक से पृथक नहीं
हो सकता।
C. श्रम नाशवान है।
D. श्रम का संचय नहीं होता।
E. श्रम की पूर्ति को शीघ्र
ही नहीं बढ़ाया जा सकता।
F. श्रम गतिशील होता है।
G. श्रम की माँग व्युत्पन्न
माँग होती है।
♥️ भूमि की कुछ विशेषतायें
निम्नलिखित हैं
A. प्रकृति का निःशुल्क उपहार
B. सीमित पूर्ति
C. भूमि का अविनाशी होना
D. भूमि गतिहीन
E. उत्पादन का निष्क्रिय साधन
F. इसमें उत्पत्ति का निष्क्रिय
साधन
G. इसमें उत्पत्ति ह्रास नियम
शीघ्र ही लागू होना।
♥️ प्रकृतिवादी अर्थशास्त्री
केवल कृषि क्षेत्र को ही उत्पादक क्षेत्र मानते थे। उनकी दृष्टि में कृषि क्षेत्र के
अतिरिक्त अन्य क्षेत्रों में किया जाने वाला कोई भी श्रम अनुत्पादकीय होता है।
♥️ पूँजी मनुष्य द्वारा उत्पादित धन का वह भाग है जिसका उपयोग
अधिक धन उत्पन्न करने के लिए किया जाता है।
♥️ पूँजी के अन्तर्गत निम्नलिखित
घटकों का होना आवश्यक है-पूँजी के अन्तर्गत केवल दो ही वस्तुयें सम्मिलित होती हैं।
धन तथा विनिमय मूल्य, पूँजी मनुष्य द्वारा निर्मित होती है, पूँजी आय प्रदान करने वाला
साधन है।
♥️ पूँजी बचत का परिणाम
है, इसके संचय के लिए बचत करने की शक्ति, बचत करने की इच्छा तथा बचत करने की सुविधा
आवश्यक है।
♥️ वर्तमान उत्पादन का
सम्पूर्ण भाग वर्तमान में उपभोग न करके उसका अंश ही मशीनों एवं औजारों जैसी वस्तु के
उत्पादन में लगाना ही पूँजी निर्माण है।
♥️ साइमन कुजनेस्ट का कहना
है कि दबाव द्वारा प्रेरित आर्थिक विकास एवं औद्योगीकरण की स्थिति में पूंजी निर्माण
का अर्थ उन संयंत्रों उपकरणों एवं नवीन वस्तुओं की खोजों तक ही सीमित है जो कि प्रत्यक्ष
रूप से औजार के रूप में प्रयुक्त किये जाते हैं।
♥️ कोलिन क्लार्क का कहना
है कि पूंजीगत वस्तुयें पुनः उत्पादन योग्य धन है जिनका उत्पादन कार्यों के लिए उपयोग
होता है।
♥️ पूंजी निर्माण की निम्न विधियाँ हैं
A. उपभोग कम करके प्रशुल्क
नीति के द्वारा
B. बचतों में वृद्धि करके मुद्रा
स्फीति द्वारा,
C. साधनों का पूर्ण उपयोग करके
D. बेरोजगार मानव शक्ति
E. सार्वजनिक उपक्रमों के लाभ
♥️ पूँजी का महत्व
A. ऊपरी पूँजी का निर्माण
B. बाजार का विस्तार
C. भुगतान शेष का हल
D. विदेशी सहायता से मुक्ति
प्राविधिक प्रगति
E. राष्ट्रीय आय में वृद्धि
F. प्राकृतिक साधनों का उपभोग
G. आर्थिक कल्याण में वृद्धि
H. मानवीय पूंजी का निर्माण
I. उत्पादन की चक्रीय विधियों
में वृद्धि
♥️ अर्द्धविकसित देशों
में पूंजी निर्माण की निम्न दर का कारण गरीबी के दुष्चक्र की क्रियाशीलता है। गरीबी
के दुष्चक्र की स्थिति के लिए
A. जनसंख्या में वृद्धि
B. माँग में कमी
C. योग्य साहसी का अभाव
D. करों में वृद्धि
E. पूँजी का अभाव
F. निम्न उत्पादन क्षमता
G. सहयोगी साधनों का अभाव
H. आधारभूत सेवाओं का अभाव
I. वित्तीय प्रबन्धन
♥️ उत्पादन प्रक्रिया में अनेक
जोखिम व अनिश्चितताएँ होती हैं जिन्हें वहन करना ही साहस है तथा इन जोखिम व अनिश्चितताओं
के वातावरण में उत्पादन कार्य करने वाला व्यक्ति साहसी कहलाता है।
♥️ प्रो० जे०के० मेहता के शब्दों में इस प्रावैगिक संसार में
मानव के उत्पादन कार्यों में अनिश्चितता तत्व एक प्रकार का त्याग उत्पन्न करता है,
वह त्याग जोखिम उठाना है तथा अनिश्चितता सहन करना है। इसे लाभ द्वारा पुरस्कृत किया
जाता है।
♥️ विलियम फेलनर के शब्दों
में सहशोधन का कार्य ऐसा कार्य है जिसके लिए लाभ अर्जित करता है।
♥️ उद्यमी का कार्य केवल
जोखिम उठाना है, जबकि संगठक का कार्य व्यवसाय का संगठन, प्रबन्ध एवं नियंत्रण करना
होता है।
♥️ उद्यमी व्यवसाय का स्वामी
होता है। उद्यम के स्वामित्व के रूप में उसे लाभ अथवा हानि प्राप्त होता है।
♥️ संगठन उत्पत्ति प्रक्रिया
का एक ऐसा विशिष्ट एवं सक्रिय साधन है जिसके द्वारा उत्पत्ति के साधनों के प्रयोग में
सामंजस्य बिठाया जाता है। उत्पादन विभिन्न साधनों को अनुकूलतम अनुपात में एकत्रित करने
का कार्य ही संगठन कहलाता है।
♥️ प्रो० शुम्पीटर के शब्दों
में, साहसी विकास की मुख्य प्रेरक शक्ति है, वह नवीनताओं का सृजन करता है उत्पादन की
तकनीक में क्रान्ति का अधिष्ठाता है और बाजार के विस्तार की क्रेडिट उसे दी जाती है।
♥️ आधुनिक अर्थशास्त्री
उत्पत्ति के साधनों को पाँच भागों में बांटते हैं जैसे भूमि श्रम, पूंजी, साहस, संगठन।
♥️ साइन कुजनेटस ने पूँजी
निर्माण प्रक्रिया को मानवीय एवं भौतिक दोनों प्रक्रिया निर्माणों से लिया है।
♥️ प्रो० जे० के० मेहता
ने भूमि को विशिष्ट साधन माना है।
उत्पादन के सिद्धान्त
♥️ किसी वस्तु का उत्पादन
उत्पत्ति के विभिन्न साधनों के परस्पर संयोग द्वारा होता है। जिस वस्तु का उत्पादन
किया जाता है उसे निगत (output) तथा जिन साधनों द्वारा उत्पादन किया जाता है उसे आगत
(input) कहते हैं।
♥️ किसी फर्म के उत्पादन तथा
पड़तों के बीच सम्बन्धों को उत्पादन के प्रकार्य या फलन कहते हैं।
♥️ आगतों तथा निर्गतों के बीच
एक तकनीकी सम्बन्ध होता हैं जो यह स्पष्ट करता है कि उत्पादक आगतों की एक निश्चित मात्रा
से अधिक से अधिक कितना उत्पादन प्राप्त कर सकता है। इस तकनीकी सम्बन्ध को ही 'उत्पादन
फलन' कहते हैं।
उत्पादन फलन की विशेषतायें
♥️ उत्पादन फलन एक अभियान्त्रिक
धारणा है।
♥️ उत्पादन फलन का सम्बन्ध
केवल भौतिक मात्रा से है।
♥️ उत्पादन फलन का सम्बन्ध
समयावधि से है।
♥️ उत्पादन फलन में तकनीकी
स्तर को स्थिर मान लिया जाता है।
♥️ उत्पादन फलन के उत्पत्ति
साधनों में स्थानापन्नता का गुण होता है।
उत्पादन का नियम
♥️ आगत तथा निर्गत के बीच
का सम्बन्ध तो उत्पादन फलन कहलाता है। परन्तु उत्पादन का नियम यह बताता है कि निर्गत
की मात्रा में होने वाले परिवर्तन तथा आगत में होने वाले परिवर्तन के बीच क्या सम्बन्ध
है। यह बताता है कि आगत के परिवर्तन के बाद निर्गत में जो परिवर्तन होता है वह उसी
अनुपात में हो रहा है, अधिक हो रहा है, या कम हो रहा है, जिस अनुपात के आगत में वृद्धि
की जा रही है। माना उत्पादन फलन= P = J (A.B.C.) है। अब यदि आगत में a गुनी तथा निर्गत
में b गुनी वृद्धि होती है तो उत्पान फलन निम्न होगा।
यदि ; b.p= f. a (A.B.C)
(i) b > a तो उत्पादन वृद्धि
नियम
(ii) b = a तो उत्पादन समता
नियम
(iii) b < a तो उत्पादन
हास नियम
♥️ उत्पादन फलन उत्पादन
संभावनाओं की सूची है।
♥️ उत्पादन फलन एक दिये
गये समय के लिए उत्पत्ति के साधनों एवं उनके द्वारा उत्पादित उत्पादन की मात्रा के
भौतिक सम्बन्ध को बताता है।
♥️ उत्पादन फलन के उत्पत्ति
साधनों के स्थानापन्नता का गुण विद्यमान रहता है।
♥️ प्रो० लिफ्टविच के शब्दों
में-उत्पादन फलन शब्द उस भौतिक सम्बन्ध के लिए प्रयुक्त किया जाता है जो एक फर्म के
साधनों के इकाइयों (पड़तों) और प्रति इकाई समयानुसार प्राप्त वस्तुओं और सेवाओं (उत्पाद)
के बीच पाया जाता है।
♥️ गणितीय समीकरण में उत्पादन
फलन - P = f (A, B, C n)
♥️ कॉव- डगलस उत्पादन फलन
प्रथम घात वाला समरूप फलन है। उत्पादन फलन कई प्रकार के हो सकते हैं जैसे- रेखीय समरूप
उत्पादन फलन, पैमाने के स्थिर प्रतिफल से सम्बन्धित है। इसकी यह विशेषता होती है कि
उत्पत्ति के साधनों को जिस अनुपात में बढ़ाया जाता है उसी अनुपात में उत्पादन भी बढ़ता
है।
♥️ समरूप उत्पादन फलन की
निम्नलिखित विशेषतायें हैं -
A. स्थिर पैमाने के प्रतिफल
की व्याख्या
B. उत्पत्ति साधनों की औसत
उत्पादकता पूंजी श्रम अनुपात पर निर्भर करती है।
C. उत्पत्ति साधन की सीमान्त
उत्पादकता केवल पूंजी श्रम अनुपात का फलन होती है।
D. वितरण सिद्धान्त की यूलर
प्रमेय इसी रेखीय समरूप फलन पर आधारित है।
♥️ समरूप उत्पादन फलन स्थिर
पैमाने के प्रतिफल पर आधारित होता है। जिसमें उत्पत्ति के साधन एक निश्चित अनुपात में
मिलकर क्रिया करते हैं।
♥️ प्रो० फर्ग्युसन के
शब्दों में यदि उत्पादन फलन प्रथम घात का है तब पैमाने के स्थिर प्रतिफल प्राप्त होंगे।
♥️ पैमाने का प्रतिफल दीर्घकालीन उत्पादन फलन को प्रदर्शित करता है।साधनों के पैमाने में परिवर्तन के फलस्वरुप उत्पादन में जो परिवर्तन होता है उसे पैमाने का प्रतिफल कहते हैं।
♥️ उत्पादन
के साधनों के निरपेक्ष इकाई में इस प्रकार वृद्धि की जाए कि साधनों का अनुपात स्थिर रहे तो इसका अर्थ होता है कि पैमाने में वृद्धि की गई है।
इस रेखाचित्र में OR उत्पादन की रेखा है। यह बताता है कि इसके प्रत्येक बिन्दु पर साधन का अनुपात स्थिर रहता है।
`\frac{AK_1}{OK_1}=\frac{BK_2}{OK_2}`
अर्थात् सभी साधनों को X गुणा बढ़ाया जाए तो साधनों का अनुपात स्थिर होगा।
♥️ पैमाने के प्रतिफल के नियम
(1)पैमाने का वृद्धिमान प्रतिफल :- उत्पादन के सभी साधनों को जिस अनुपात में बढ़ाया जाता है, उत्पादन में अगर उससे अधिक अनुपात में वृद्धि हो तो उसे पैमाने का वृद्धिमान प्रतिफल कहा जाता है।
Y = f ( a, b, c.........)
जहां , Y = उत्पादन f = फलन a,b,c............= साधन
Xα.y = f(na,nb,nc...........)
अगर α>1हो तो यह पैमाने का वृद्धिमान प्रतिफल प्रदर्शित करेगा।
रेखाचित्र में हर अगले सम उत्पाद वक्र (IQ) के बीच की दूरी क्रमशः घटती जाती है जो दर्शाता है कि साधन जिस अनुपात में बढ़ता है उत्पादन उससे अधिक अनुपात में बढ़ता है।
BC < AB < OA
पैमाने के वृद्धिमान प्रतिफल के कारण :-
a. तकनीकी बचत
b. श्रम संबंधी बचत
c. वित्तीय बचत
d. विपणन मितव्ययिता
e. शोध,प्रयोग एवं विज्ञापन से लाभ
(2) पैमाने के स्थिर प्रतिफल :- जिस अनुपात में साधनों को बढ़ाया जाता है ठीक उसी अनुपात में उत्पादन में वृद्धि होती है तो इसे पैमाने का स्थिर प्रतिफल करते हैं।
Xα.y = f(na,nb,nc...........)
अगर वस्तु α =1 हो तो यह पैमाने का स्थिर प्रतिफल प्रदर्शित करेगा
चित्र में हर अगले सम उत्पाद वक्र की दूरी समान रहती है जो दर्शाता है कि जिस अनुपात में साधन लगता है उत्पादन उसी अनुपात में होता है।
OA=AB=BC
पैमाने के स्थिर प्रतिफल के कारण :-
A.आंतरिक एवं बाह्य बचत आंतरिक एवं बाह्य हानियों के बराबर होता है।
B.एक फार्म के विस्तार से कुछ सीमा तक पैमाने के बढ़ते प्रतिफल की अवस्था के बाद पैमाने के स्थिर प्रतिफल की एक लम्बी अवस्था होती है।
C.कॉब-डग्लस उत्पादन फलन :- काॅब-डग्लस के अनुसार अधिकांश उद्योगों पर लंबे समय तक पैमाने के स्थिर प्रतिफल लागू होता है।
Q = K La C1-a
= K (gL)a (gC)1-a
= K gaLa g1-aC1-a
= ga+1-a K La C1-a
= g (KLa C1-a)
= g (Q)
इस प्रकार साधनों को g गुणा बढ़ाने से उत्पादन भी g गुणा बढ़ता है जो पैमाने के स्थिर प्रतिफल को दर्शाता है।
(3) पैमाने का ह्रासमान प्रतिफल :- जिस अनुपात में साधनों में वृद्धि की जाती है उसे कम अनुपात में जब उत्पादन में वृद्धि होती है तो उसे पैमाने का ह्रासमान प्रतिफल कहते हैं।
Xα.y = f(na,nb,nc...........)
अगर वस्तु α < 1 हो तो यह पैमाने का स्थिर प्रतिफल प्रदर्शित करेगा।
चित्र में हर अगले सम उत्पाद वक्र की दूरी क्रमशः बढ़ती जाती है।
जो दर्शाता है कि जिस अनुपात में साधनों को लगाया जाता है उत्पादन उससे कम अनुपात में बढ़ता है।
OA<AB<BC
ह्रासमान प्रतिफल के कारण :-
A. पैमाने का घटता हुआ प्रतिफल
B. प्राकृतिक साधनों की स्थिर मात्रा
C. आंतरिक एवं बाह्य हानियां
कॉव डगलस उत्पादन फलन
♥️ युद्ध के पश्चात् के वर्षों में कॉव-डगलस उत्पादन फलन अर्थशास्त्रियों
के लिए बहुत महत्वपूर्ण रहा। यह उत्पादन फलन दो व्यक्तियों कॉव (Cobb) तथा डगलस
(Douglas) की अमेरिका के कुछ उद्योगों की साख्यिकीय समीक्षा का परिणाम है
♥️ इस उत्पादन फलन में दोनों अर्थशास्त्रियों ने दो उत्पत्ति
के साधनों-श्रम तथा पूँजी को ही सम्मिलित किया है।
♥️ गणितीय रूप में
Q
= K α Cβ
जिसमें β = 1- α
तथा 0< α <
1
इस प्रकार Q=K Lα
C1+ α
♥️ प्रो० लारेंज क्लेन ने इस
उत्पादन फलन की कुछ विशेषताओं का उल्लेख किया है।
♥️ उत्पादन की निश्चित मात्रा
के लिए उत्पत्ति के दोनों साधन, श्रम तथा पूंजी का होना आवश्यक है।
तथा β की मात्रा उत्पादन फलन की प्रकृति का सूचक
है। पैमाने के प्रतिफल इन्हीं मात्राओं से उत्पन्न होते हैं।
♥️ (α
+β) < 1 तो घटते पैमाने के प्रतिफल उपस्थित होंगे।
♥️ (α
+β) = 1 तो स्थिर पैमाने के प्रतिफल ।
♥️ (α
+β) > 1 तो बढ़ते हुए पैमाने के प्रतिफल होंगे।
♥️ किन्तु कॉव-डगलस उत्पादन
फलन α+β =1
♥️ साधनों की अविभाज्यता
के कारण उत्पत्ति ह्मस नियम लागू होता है।
♥️ श्रीमती जान राबिन्सन
का मत है कि अपूर्ण स्थानापन्नता उत्पत्ति ह्मस
नियम की क्रियाशीलता का मुख्य कारण है।
♥️ डेविड रिकार्डों तथा माल्थस
ने घटते हुए प्रतिफल के नियम को कृषि क्षेत्र में लागू किया है।
♥️ उत्पत्ति वृद्धि नियम
उत्पत्ति ह्वास नियम की एक अस्थायी कुव्यवस्था है, अन्त में उत्पत्ति ह्रास नियम अनिवार्य
रूप से लागू होता है।
♥️ स्थानापन्न साधनों की
दशा में धनात्मक उत्पादन प्रभाव ऋणात्मक तकनीकी प्रतिस्थापना प्रभाव से कम होता है।
♥️ पूर्ण पूरक साधनों में समोत्पाद
वक्र का आकार अंग्रेजी के 'L' के आकार का होता है।
♥️ जब औसत उत्पादकता गिरती
है तब यह सीमान्त उत्पादकता से अधिक होती है।
♥️ पैमाने का विचार दीर्घकालीन
है।
♥️ जब AP बढ़ता है तब MP बढ़ता
है, अधिकतम होता है तथा घटता भी है।
♥️ बढ़ते हुए प्रतिफल की अवस्था
में मोड़ के बिन्दु के बाद TP वक्र 'X' अक्ष के प्रति अवनतोदर होता है।
♥️ `MRTS_{xy}=\frac{MP_x}{MP_y}`
♥️ उत्पादक की सन्तुलन की दशा में `\frac{MP_L}{MP_L}=\frac{MP_k}{MP_k}`
♥️ काब- डगलस उत्पादन फलन
Q=K Lα C1+ α तथा यह समीकरण प्रथम घात वाला समरूप फलन है।
♥️ कुल उत्पाद (Total Product): एक
निश्चित समय में उत्पादित की गई वस्तुओं तथा सेवाओं की कुल मात्रा को कुल उत्पाद
कहा जाता है।
♥️ औसत उत्पाद
(Average Product): परिवर्ती कारक की प्रत्येक इकाई उत्पादन को औसत उत्पाद कहा जाता
है।
`AP=\frac{TP}L`
♥️ सीमांत उत्पादन (MP) :- परिवर्तनशील साधन की एक अतिरिक्त इकाई और लगाने से कुल उत्पादन में जो वृद्धि होती है, उसे सीमांत उत्पादन कहते हैं।
MP = TPn – TPn-1 or , `\frac{\Delta TP}{\Delta L}`
(यहाँ ΔTP कुल उत्पादन में परिवर्तन, ΔL काम पर लगाए गए परिवर्ती कारक की इकाइयों में परिवर्तन)