खण्ड-अ (वस्तुनिष्ठ प्रश्न)
प्रश्न संख्या 1
से 40 तक के प्रत्येक प्रश्न के साथ चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें से एक सही है।
अपने द्वारा चुने गये सही विकल्प को OMR शीट पर चिह्नित करें। 40 x 1 = 40
1. व्यष्टि अर्थशास्त्र
अध्ययन है
(1) व्यक्तिगत उपभोक्ता का
(2) व्यक्तिगत फर्म का
(3) व्यक्तिगत उद्योग का
(4) इनमें से
सभी
2. उत्पादन तकनीक
के चयन का अर्थ है
(1) क्या उत्पादन करें
(2) कैसे उत्पादन
करें
(3) किसके लिए उत्पादन करें
(4) इनमें से कोई नहीं
3. सम-सीमांत
उपयोगिता नियम के प्रतिपादक थे
(1) मार्शल
(2) गोसेन
(3) रिकार्डो
(4) मिल
4. पेट्रोल की
कीमत में वृद्धि से गाड़ी की माँग में
(1) वृद्धि होगी
(2) कमी होगी
(3) स्थिरता आयेगी
(4) अस्पष्ट है
5. यदि वस्तु
की माँग में आनुपातिक परिवर्तन, वस्तु के मूल्य में आनुपातिक परिवर्तन के बराबर हो,
तो माँग की लोच
(1) पूर्णतः लोचदार है
(2) पूर्णतः बेलोचदार है
(3) इकाई के
बराबर है
(4) शून्य के बराबर है
6. उत्पाद किसका
फलन है
(1) वस्तु की कीमत का
(2) वस्तु की लागत का
(3) वस्तु की उत्पादन के संसाधनों
का
(4) उत्पादन
के संसाधनों का
7. .............
में उत्पादन के सभी संसाधनों में परिवर्तन संभव है
(1) अल्पकाल
(2) मध्यकाल
(3) दीर्घकाल
(4) किसी भी समय
8. परिवर्तनशील
अनुपातों का नियम लागू होता है क्योंकि कुछ संसाधन
(1) सीमित हैं
(2) असीमित हैं
(3) स्थिर है
(4) अत्यधिक है
9. प्राचीनकाल
के सिक्कों की पूर्ति
(1) बेलोचदार है
(2) पूर्णतया
बेलोचदार
(3) लोचदार है
(4) पूर्णतया लोचदार है
10. औसत स्थिर
लागत वक्र
(1) X- अक्ष
को स्पर्श नहीं करता
(2) Y-अक्ष को स्पर्श नहीं
करता
(3) कभी शून्य नहीं होता
(4) इनमें से सभी
11. पूर्ण प्रतियोगी
फर्म ....... होती है।
(1) कीमत लेनेवाली
(2) कीमत बनानेवाली
(3) विक्रय लागत शून्य
(4) (1) और (3) दोनों
12. संतुलन कीमत
से अधिक कीमत पर
(1) वस्तु की माँग अधिक होगी
(2) वस्तु की
पूर्ति अधिक होगी
(3) (1) और (2) दोनों
(4) इनमें से कोई नहीं
13. न्यूनतम
सहायता मूल्य ....... होती है।
(1) साम्य मूल्य
से अधिक
(2) साम्य मूल्य से कम
(3) साम्य मूल्य के बराबर
(4) इनमें से कोई नहीं
14. परिवार एवं
फर्म के बीच वस्तुओं एवं सेवाओं के प्रवाह को ........ कहते हैं।
(1) मौद्रिक प्रवाह
(2) वास्तविक प्रवाह
(3) आय का चक्रीय
प्रवाह
(4) पूँजी प्रवाह
15. चार क्षेत्रीय
अर्थव्यवस्था के संतुलन की शर्त है
(I) Y = C + I
(2) Y = C + I + G
(3) Y= C +
1 + G+ (X-M)
(4) इनमें से कोई नहीं
16. निम्न में
कौन राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं किया जाता ?
(1) कर्मचारियों का पारिश्रमिक
(2) परिचालन अधिशेष
(3) स्वरोजगारी
की मिश्रित आय
(4) आकस्मिक आय
17. शुद्ध अप्रत्यक्ष
कर बराबर है
(1) अप्रत्यक्ष
कर - सहायता
(2) अप्रत्यक्ष कर + सहायता
(3) अप्रत्यक्ष कर - प्रत्यक्ष
कर
(4) प्रत्यक्ष कर - अप्रत्यक्ष
कर
18. सीमांत उपभोग
प्रवृत्ति (MPC) एवं सीमांत बचत प्रवृत्ति (MPS) के बारे में सही कथन है।
(1) MPC x MPS = 1
(2) MPC - MPS = 1
(3) MPC +
MPS = 1
(4) MPC + MPS = 0
19. अवस्फीति
अंतराल की स्थिति में
(1) कुल माँग कुल पूर्ति से
अधिक होती है
(2) कुल माँग कुल पूर्ति से
कम होती है
(3) अर्थव्यस्था में मूल्य
स्तर गिरता है
(4) (2) और
(3) दोनों
20. न्यून माँग
की स्थिति से उबरने के लिए उपाय है।
(1) साख में वृद्धि
(2) घाटे का बजट
(3) निवेश को प्रोत्साहन
(4) इनमें से
सभी
21. माँग जमा
से अभिप्राय है, बैंक में जमा वह राशि
(1) जिसका भुगतान माँगने पर
तुरंत हो जाए
(2) जिसका ऋण के रूप में माँग
हो
(3) जिसे ए.टी.एम. से निकाला
जा सके
(4) (1) और
(3) दोनों
22. निम्नलिखित
में से कौन साख-नियंत्रण का परिमाणात्मक उपाय नहीं है ?
(1) बैंक दर
(2) प्रत्यक्ष
कार्यवाही
(3) खुले बाजार की क्रियाएँ
(4) नकद कोष अनुपात
23. किस घाटा
को सरकारी ऋण उगाही द्वारा पूरा किया जाता है ?
(1) प्राथमिक घाटा
(2) आगम घाटा
(3) वित्तीय घाटा
(4) बजट घाटा
24. विदेशी विनिमय
की पूर्ति के प्रमुख स्रोत है
(1) वस्तुओं एवं सेवाओं का
निर्यात
(2) विदेशियों द्वारा प्रत्यक्ष
निवेश
(3) विदेशी पर्यटकों द्वारा
किया गया खर्च
(4) इनमें से
सभी
25. निम्नलिखित
में से कौन गैर-विकासशील सार्वजनिक व्यय नहीं है ?
(1) सुरक्षा
(2) कर संकलन
(3) शिक्षा
(4) सहायता
26. निम्न में
से कौन चल लागत नहीं है ?
(1) कच्चे माल की लागत
(2) मजदूरी
(3) ईंधन पर खर्च
(4) ऋण पर ब्याज
27. उत्पादन
संभावना वक्र
(1) मूल बिंदु की ओर अवतल होती
है
(2) दोनों वस्तुओं की उपलब्ध
चुनावों की सूची को बतलाता है।
(3) इसे रूपांतर रेखा भी कहा
जाता है।
(4) इनमें से
सभी
28. सम सीमांत
उपयोगिता नियम के अंतर्गत उपभोक्ता के संतुलन की शर्त है।
`(1)\frac{MU_A}{P_A}=\frac{MU_B}{P_B}`
`(2)\frac{MU_A}{MU_B}=\frac{P_A}{P_B}`
(3) (1) और
(2) दोनों
(4) अपरिभाषित है
29. निम्न में
से किस वस्तु के मूल्य वृद्धि से दूसरी वस्तु की माँग वक्र दायीं ओर खिसक जायेगी ?
(1) प्रतिस्थापना
(2) पूरक
(3) आवश्यक
(4) इनमें से कोई नहीं
30. मूल्य ह्रास
की राशि को कहते हैं
(1) प्रतिस्थापना निवेश
(2) निवल निवेश
(3) घिसावट के लिए राशि
(4) केवल
(1) और (3)
31. एक ऋजुरेखी
माँग वक्र जहाँ X- अक्ष से मिलता है वहाँ माँग की लोच
(1) शून्य होगी
(2) इकाई होगी
(3) अनंत होगी
(4) इनमें से कोई नहीं
12th History Model Set-4 2022-23
32. माँग की
लोच को कौन-सा तत्व प्रभावित नहीं करता ?
(1) वस्तु की प्रकृति
(2) स्थानापन्न वस्तु की उपलब्धता
(3) समयावधि
(4) इनमें से
कोई नहीं
33. निम्न में
से कौन पूर्ण प्रतियोगिता की शर्त नहीं है ?
(1) वस्तु की एक-सी इकाइयाँ
(2) बेचने और खरीदने वालों
की अधिकता
(3) उत्पादन संसाधनों की इकाईयाँ
(4) ट्रेड मार्क
या बैंड नाम
34. एकाधिकार
बाजार में जैसे-जैसे बिक्री की इकाइयाँ बढ़ती हैं औसत आय
(1) बढ़ती है
(2) घटती है
(3) स्थिर रहती है
(4) इनमें से कोई नहीं
35. साख नियंत्रण
का प्रमुख उद्देश्य है
(1) आर्थिक विकास
(2) मुद्रास्फीति पर नियंत्रण
(3) अर्थव्यस्था को संकुचन
से बचाना
(4) इनमें से
सभी
36. स्थायी जमा
की तुलना में बचत जमा पर ब्याज की दर
(1) ज्यादा होती है
(2) बराबर होती है।
(3) कम होती
है
(4) काफी ज्यादा होती है
37. भारत एक
.......... अर्थव्यवस्था है।
(1) खुली
(2) बंद
(3) मिश्रित
(4) (1) एवं
(3) दोनों
38. साम्य मूल्य
से अधिक मूल्य पर बाजार में
(1) अत्यधिक माँग होगी
(2) अत्यधिक
पूर्ति होगी
(3) माँग पूर्ति के बराबर होगी
(4) इनमें से कोई नहीं
39. किसी अर्थव्यवस्था
में एक देश के अंतर्गत उत्पादित अंतिम वस्तुओं तथा सेवाओं के मूल्य को कहते हैं
(1) कुल राष्ट्रीय उत्पादन
(2) राष्ट्रीय आय
(3) कुल घरेलू
उत्पादन
(4) विशुद्ध राष्ट्रीय उत्पादन
40. किसी वस्तु
की माँग
(1) उस वस्तु के मूल्य पर निर्भर
करती है।
(2) अन्य वस्तुओं के मूल्य
पर निर्भर करती है
(3) उपभोक्ता के आय पर निर्भर
करती है.
(4) इनमें से
सभी पर निर्भर करती है।
खण्ड-ब (विषयनिष्ठ प्रश्न)
खण्ड-क (अतिलघु उत्तरीय प्रश्न)
किन्हीं पाँच प्रश्नों
के उत्तर दीजिए। 2 x 5 = 10
1. बजट रेखा
क्या है ?
उत्तर -जब एक उपभोक्ता के बजट
सेट को रेखाचित्र द्वारा प्रदर्शित किया जाता है तो इसे बजट रेखा कहते हैं। इस प्रकार
बजट रेखा दो वस्तुओं के उन विभिन्न संयोजनों अथवा बंडलों को दर्शाती है जिन्हें उपभोक्ता
दी हुई कीमतों पर अपनी कुल आय द्वारा खरीद सकता है। इस रेखा पर स्थित सभी बंडलों की
कीमत या लागत उपभोक्ता की कुल मौद्रिक आय के बराबर होती है। बजट रेखा को आय-कीमत रेखा
भी कहते हैं।
2. माँग वक्र
क्या है ?
उत्तर- जब माँग-तालिका को एक
रेखाचित्र द्वारा व्यक्त किया जाता है तो इसे माँग वक्र कहते हैं। माँग-वक्र यह दर्शाता
है कि विभिन्न कीमतों पर किसी वस्तु की कितनी मात्राएँ खरीदी जाएँगी। माँग-तालिका के
समान ही माँग-वक्र भी दो प्रकार के होते हैं— व्यक्तिगत माँग-वक्र और बाजार माँग वक्र,
जो किसी व्यक्ति तथा बाजार की कुल माँग को प्रदर्शित करते हैं।
3. सीमांत उत्पाद
क्या है ?
उत्तर- परिवर्तनशील आगत की
एक अतिरिक्त इकाई के प्रयोग से कुल उत्पादन में होनेवाली वृद्धि को सीमांत उत्पाद
(MP) कहते हैं। दूसरे शब्दों में, परिवर्तनशील आगत की एक इकाई को बढ़ाने से कुल उत्पादन
में होनेवाली वृद्धि सीमांत उत्पाद है।
4. बाजार संतुलन
क्या है ?
उत्तर - बाजार संतुलन बाजार
की वह स्थिति है जब किसी वस्तु की माँग की जानेवाली मात्रा और पूर्ति की मात्रा दोनों
बराबर होती हैं। दूसरे शब्दों में, ऐसी अवस्था में न अतिरिक्त माँग होती है और न अतिरिक्त
पूर्ति होती है तथा माँग और पूर्ति में पूर्ण संतुलन होता है।
5. मध्यवर्ती
वस्तुओं की परिभाषा दीजिए।
उत्तर- मध्यवर्ती वस्तुएँ वे
हैं जो किसी एक लेखा वर्ष में अन्य वस्तुओं के उत्पादन में प्रयोग के लिए खरीदी जाती
हैं। ये वस्तुएँ प्रायः अन्य वस्तुओं के उत्पादन में आगत अर्थात कच्चे माल के रूप में
प्रयुक्त होती हैं। उदाहरण के लिए, कपड़े के उत्पादन में कपास के धागे का प्रयोग तथा
मोटरकार निर्माण के लिए इस्पात की चादर का उपयोग।
6. मुद्रा क्या
है? मुद्रा विनिमय का सर्वोत्तम साधन है। क्यों?
उत्तर - मुद्रा वह वस्तु है
जो विनिमय के माध्यम एवं मूल्य-मापक का कार्य करती है तथा जिसके रूप में धन या संपत्ति
का संग्रह किया जाता है।
मुद्रा विनिमय का सर्वोत्तम
साधन है; क्योंकि इसमें सर्वग्राह्य का गुण होता है। जिससे प्रत्येक व्यक्ति अपनी वस्तु
या सेवा के बदले बिना किसी संकोच के इसे स्वीकार कर लेता है। इससे विनिमय का कार्य
अत्यंत सरल हो गया है।
7. व्यापार शेष
क्या है?
उत्तर - अंतरराष्ट्रीय व्यापार
में प्रत्येक देश कुछ वस्तुओं का आयात और निर्यात करता है तथा इनकी मात्रा हमेशा बराबर
नहीं होती। आयात तथा निर्यात के इस अंतर को व्यापार शेष या व्यापार संतुलन कहते हैं।
खण्ड ख (लघु उत्तरीय प्रश्न)
किन्हीं पाँच प्रश्नों के उत्तर
दीजिए। 3 x 5 = 15
8. आर्थिक समस्याएँ
क्यों उत्पन्न होती हैं ?
उत्तर - आर्थिक समस्याओं की
उत्पत्ति का मूल कारण मानव जीवन की कुछ आधारभूत एवं मौलिक आवश्यकताएँ हैं। सर्वप्रथम
हमारी आवश्यकताएँ अनंत एवं असीमित हैं। मानवीय आवश्यकताओं की कोई सीमा नहीं है। आदिमानव
की आवश्यकताएँ बहुत कम थीं। परंतु, आर्थिक विकास के साथ ही मनुष्य की आवश्यकताओं में
भी निरंतर वृद्धि हुई है। आज हमारी अनेक आवश्यकताएँ हैं। लेकिन, इन आवश्यकताओं को पूरा
करने के साधन सीमित हैं। साधनों से हमारा तात्पर्य मानवीय श्रम, प्राकृतिक एवं पूँजीगत
साधन तथा इनके द्वारा उत्पादित वस्तुओं या धन से है। माँग की तुलना में इन साधनों की
पूर्ति सीमित है तथा इनका वैकल्पिक अथवा कई प्रकार से प्रयोग किया जा सकता है। उदाहरण
के लिए, हम देश में उपलब्ध लोहा एवं इस्पात से मकानों, पुलों, मशीनरी तथा उपकरण आदि
का निर्माण कर सकते हैं अथवा अस्त्र-शस्त्र का। इस सीमित साधन द्वारा इन सभी आवश्यकताओं
की पूर्ति नहीं की जा सकती है।
इसके साथ ही मनुष्य की आवश्यकताओं
की तीव्रता में भी भिन्नता होती है। हम अपने सीमित साधनों से सभी आवश्यकताओं को पूरा
नहीं कर सकते। अतएव, हमें यह निर्णय लेना होता है कि इन सीमित साधनों का विभिन्न आवश्यकताओं
की पूर्ति के लिए किस प्रकार प्रयोग या आवंटन किया जाए। हमें अपनी आवश्यकताओं के बीच
चुनाव करना पड़ता है तथा इन साधनों का प्रयोग पहले अधिक महत्त्वपूर्ण आवश्यकताओं को
पूरा करने के लिए किया जाता है। इस प्रकार, अर्थशास्त्र की मूल समस्या चुनाव या चयन
की समस्या है जो साधनों की सीमितता के कारण उत्पन्न होती है।
9. बजट सेट अथवा
बजट रेखा को प्रभावित करनेवाले तत्त्वों का उल्लेख करें।
उत्तर- बजट सेट अथवा बजट रेखा
दो वस्तुओं की वे संयुक्त मात्राएँ या बंडल हैं जिन्हें उपभोक्ता अपनी कुल मौद्रिक
आय से खरीद सकता है। बजट सेट दो तत्त्वों पर निर्भर करता है—उपभोक्ता की मौद्रिक आय
तथा बंडल में सम्मिलित दोनों वस्तुओं के मूल्य । अतएव, उपभोक्ता की आय अथवा मूल्यों
में परिवर्तन होने पर बजट सेट या बजट रेखा में भी परिवर्तन हो जाता है।
10. 'माँग की
मात्रा में परिवर्तन' तथा 'माँग में परिवर्तन' के बीच अंतर कीजिए।
उत्तर- जब किसी वस्तु की अपनी
कीमत में परिवर्तन के कारण उस वस्तु की माँग में परिवर्तन होता है, तो उसे 'माँग की
मात्रा में परिवर्तन' कहते हैं। इसके विपरीत, जब माँग को प्रभावित करनेवाले अन्य कारकों
में होनेवाले परिवर्तन के कारण वस्तु की माँग में परिवर्तन होता है, तो इसे 'माँग में
परिवर्तन' की संज्ञा दी जाती है। इस प्रकार, माँग में परिवर्तन वस्तु की कीमतेतर कारकों
में परिवर्तन के कारण होता है।
11. उत्पादन
फलन से आप क्या समझते हैं? इसकी मुख्य विशेषताओं का उल्लेख करें।
उत्तर - उत्पादन का अर्थ आगतों
या आदानों (inputs) को निर्गतों (outputs) - में बदलने की प्रक्रिया से है। भूमि, श्रम,
पूँजी, उद्यम उत्पादन के साधन या कारक हैं। उत्पादन इन साधनों के संयुक्त प्रयोग का
परिणाम होता है। उत्पादन के साधनों को आगत तथा उत्पादन की मात्रा को निर्गत की संज्ञा
दी जाती है। उत्पादन फलन एक दी हुई तकनीक के अंतर्गत आगतों तथा निर्गतों के संबंध की
व्याख्या करता है। निर्गत को आगतों का फल या परिणाम कहा जा सकता है। इस प्रकार, उत्पादन
फलन इस तथ्य को व्यक्त करता है कि एक दी हुई प्रौद्योगिकी में आगतों के विभिन्न संयोग
से निर्गत की कितनी अधिकतम मात्रा का उत्पादन संभव है।
मान लें कि हम उत्पादन के दो
साधनों या आगतों भूमि और श्रम का प्रयोग करते हैं। इस स्थिति में हम उत्पादन फलन को
इस प्रकार व्यक्त कर सकते हैं-
q = ƒ (x1, x2)
इससे यह पता चलता है कि हम
आगत x1 और x2 का प्रयोग कर वस्तु की अधिकतम मात्रा का उत्पादन
कर सकते हैं।
उत्पादन फलन की तीन मुख्य विशेषताएँ
निम्नांकित हैं।
(i) उत्पादन फलन विभिन्न आगतों
के सर्वोत्तम अथवा अनुकूलतम प्रयोग से निर्गत के अधिकतम स्तर को व्यक्त करता है।
(ii) यह एक निश्चित अवधि के
अंतर्गत आगत और निर्गत के संबंध की व्याख्या करता है।
(iii) उत्पादन फलन वर्तमान
प्रौद्योगिकीय ज्ञान से निर्धारित होता है।
12, “पूर्ति
स्वतः माँग का सृजन करती है।" विवेचना कीजिए।
उत्तर- प्राचीन अर्थशास्त्रियों
की यह मान्यता थी कि अर्थव्यवस्था में सामान्यतः पूर्ण रोजगार की स्थिति रहती है तथा
इसमें उत्पादन एवं आय पूर्ण रोजगार के स्तर के अनुरूप रहते हैं। यह संभव है कि अल्पकाल
में पूर्ण रोजगार की स्थिति नहीं रहे और कुछ हद तक बेरोजगारी हो जाए, लेकिन सामान्य
परिस्थितियों में बेरोजगारी नहीं रहेगी। इसका कारण यह है कि एक स्वतंत्र पूँजीवादी
अर्थव्यवस्था में आर्थिक शक्तियाँ इस प्रकार कार्यशील होती हैं जिससे माँग एवं पूर्ति
में स्वतः सामंजस्य स्थापित हो जाता है। जे० बी० से (JB Say) के शब्दों में, “उत्पादन
के द्वारा ही बाजार की सृष्टि होती है।"
इस प्रकार से (Say) के बाजार-नियम
के अनुसार, एक स्वतंत्र पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में वस्तुओं की माँग का मूल स्रोत उत्पादन
की प्रक्रिया में उत्पादन के साधनों को प्राप्त होनेवाली आय है। उत्पादन के प्रत्येक
स्तर पर जितनी वस्तुओं का उत्पादन होता है, उतनी ही साधन आय की भी सृष्टि होती है।
इसके फलस्वरूप उत्पादन में जितनी वृद्धि होती है उतनी ही वृद्धि साधन आय में भी होती
है। अतः, संपूर्ण माँग में कमी होने अथवा अति उत्पादन का कोई प्रश्न ही पैदा नहीं होता।
चूँकि उत्पादन के क्रम में उत्पादित सामग्री को खरीदने के लिए आवश्यक आय भी उत्पन्न
हो जाता है, अतएव उत्पादन उस स्तर तक होगा जिस स्तर तक साधन इकाइयों का पूर्ण उपयोग
नहीं हो जाती है।
13. सरकारी बजट
की क्या विशेषताएँ हैं?
उत्तर- सरकारी बजट की मुख्य
विशेषताएँ निम्नांकित हैं-
(i) सरकारी बजट सरकार की प्राप्तियों
और व्यय के अनुमानों का विवरण होता है।
(ii) बजट अनुमानों की अवधि
सामान्यतया एक वर्ष होती है जिसे वित्तीय वर्ष कहा जाता है।
(iii) इसमें व्यय की मदें और
आय के स्रोत सरकार की नीतियों एवं लक्ष्यों के अनुरूप रखे जाते हैं।
(iv) बजट लागू होने से पहले
इसे संसद से स्वीकृत करवाना आवश्यक होता है।
14. व्यष्टि
अर्थशास्त्र और समष्टि अर्थशास्त्र में भेद करें।
उत्तर- इन दोनों के अंतर को
निम्नांकित तालिका द्वारा भी दिखलाया जा सकता है-
अंतर का आधार |
व्यष्टि अर्थशास्त्र |
समष्टि अर्थशास्त्र |
(i) अर्थ |
यह अर्थशास्त्र की वह शाखा है जिसमें व्यक्तिगत विचारों जैसे माँग, पूर्ति, कीमत आदि का अध्ययन किया जाता है। |
यह अर्थशास्त्र की वह शाखा है जिसमें सामूहिक विचारों जैसे कुल माँग, कुल पूर्ति तथा सामान्य मूल्य आदि का अध्ययन होता है। |
(ii) क्षेत्र |
इसका क्षेत्र बहुत सीमित होता है, जैसे एक व्यक्ति, एक बाजार, एक फर्म आदि। |
इसका क्षेत्र व्यापक है, जैसे इसमें सम्पूर्ण राष्ट्रीय आय, रोजगार आदि का अध्ययन होता है। |
(iii) संबंधित विचार |
माँग, पूर्ति, मूल्य-निर्धारण तथा बाजार के स्वरूप आदि व्यष्टिगत अर्थशास्त्र के विचार हैं। |
कुल माँग, कुल पूर्ति, राष्ट्रीय आय आदि समष्टि अर्थशास्त्र के मुख्य विचार हैं। |
खण्ड-ग (दीर्घ उत्तरीय प्रश्न)
किन्हीं तीन प्रश्नों के उत्तर दीजिए। 5 x 3 = 150
15. कुल घरेलू
उत्पाद तथा कुल राष्ट्रीय उत्पाद में अंतर कीजिए।
उत्तर - कुल घरेलू उत्पाद एक
देश की भौगोलिक सीमाओं के अंदर एक लेखा वर्ष में उत्पादित सभी अंतिम वस्तुओं और सेवाओं
का मौद्रिक मूल्य है। कुल राष्ट्रीय उत्पाद का आकलन भी किसी एक वर्ष में उत्पादित अंतिम
वस्तुओं और सेवाओं के बाजार मूल्य के आधार पर किया जाता है। परंतु, इसमें विदेशों से
प्राप्त आय भी सम्मिलित होती है। कुल घरेलू उत्पाद तथा कुल राष्ट्रीय उत्पाद के अंतर
को समझने के लिए एक बंद अर्थव्यवस्था एवं खुली अर्थव्यवस्था के अंतर को जानना आवश्यक
है। एक बंद अथवा आत्मनिर्भर अर्थव्यवस्था वह है जिसका विदेशियों से कोई आर्थिक संबंध
नहीं होता है। एक बंद अर्थव्यवस्था उस कमरे के समान होती है जिसमें सभी दरवाजे और खिड़कियाँ
बंद होती है। इसकी आर्थिक क्रियाओं का शेष विश्व पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। इस प्रकार
की अर्थव्यवस्था में राष्ट्रीय उत्पाद की धारणा को समझना अत्यंत सरल है। यदि देश के
प्राकृतिक साधनों पर श्रम और पूँजी लगाकर उनका उपयोग किया जाए तब प्रतिवर्ष एक निश्चित
मात्रा में वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन होता है। यह कुल घरेलू उत्पाद है। एक बंद
अर्थव्यवस्था के कुल घरेलू उत्पाद तथा कुल राष्ट्रीय उत्पाद के बीच कोई अंतर नहीं होता
है।
परंतु, वर्तमान समय में प्रायः
सभी अर्थव्यवस्थाएं खुली हुई है। इस प्रकार की अर्थव्यवस्थाओं के कुल घरेलू उत्पाद
और कुल राष्ट्रीय उत्पाद में निम्नलिखित अंतर होता है।
(i) यह देश अपने यहाँ उत्पादित
वस्तुओं को विदेशों में भी बेचता है, जिसे निर्यात कहते हैं। उसी प्रकार, वह कुछ वस्तुएँ
और सेवाएँ विदेशों से खरीदता है अथवा आयात करता है। इस प्रकार, राष्ट्रीय उत्पाद की
गणना करने के लिए आयात के मूल्य को निर्यात की जानेवाली वस्तुओं के मूल्य में से घटा
देना होगा।
(ii) इस देश में विदेशी पूँजी
लगी रहती है तथा देश की पूँजी का भी दूसरे देशों में निवेश होता है। यदि देश में विदेशी
पूँजी लगी हुई है, तब कुल ब्याज और लाभ का एक अंश विदेशों को चला जाता है। इसी प्रकार,
विदेशों में निवेश की गई पूँजी पर इस देश को ब्याज तथा लाभ प्राप्त होता है।
(iii) यह देश विदेशों को ऋण
दे सकता था उनसे ऋण ले सकता है। इन दोनों के अंतर को शुद्ध विदेशी ऋण (Net Foreign
Lending) कहते हैं।
(iv) यह देश अन्य देशों से
उपहार प्राप्त कर सकता है तथा उन्हें उपहार दे सकता है।
उपर्युक्त तथ्यों को ध्यान
में रखते हुए हम कुल राष्ट्रीय उत्पाद को इस प्रकार व्यक्त कर सकते हैं-
'कुल राष्ट्रीय उत्पाद = कुल
घरेलू उत्पाद + (निर्यात - आयात) + विदेशी निवेश से प्राप्त शुद्ध आय + शुद्ध विदेशी
ऋण + विशुद्ध उपहार
16. बेरोजगारी
से आप क्या समझते हैं? बेरोजगारी के विभिन्न प्रकार क्या हैं?
उत्तर- पूँजीवादी आर्थिक प्रणाली
की सबसे कठिन समस्या बेरोजगारी की समस्या है। आज विश्व के अधिकांश देशों में पूर्ण
अथवा आंशिक बेरोजगारी वर्तमान है, लेकिन पिछड़े और अर्द्धविकसित देशों में यह अधिक
उम्र है। सामान्यतः, जब कोई व्यक्ति अपने जीवन-निर्वाह के लिए किसी काम में नहीं लगा
हो तो उसे बेरोजगार कहते हैं। लेकिन, इस दृष्टि से एक आलसी व्यक्ति को भी जो अपनी इच्छा
से काम नहीं करता, बेरोजगार कहा जाएगा। वास्तव में, इस प्रकार की स्वेच्छापूर्ण अथवा
ऐच्छिक बेरोजगारी (Voluntary Unemployment) को आर्थिक बेरोजगारी की संज्ञा नहीं दी
जा सकती। जब काम चाहनेवाले व्यक्तियों को इच्छा एवं योग्यता रहने पर भी प्रचलित मजदूरी
पर काम नहीं मिलता तब हम इसे बेरोजगारी की स्थिति कहते हैं। यदि लोग इच्छा नहीं रहने
अथवा शारीरिक या मानसिक दुर्बलता के कारण काम नहीं करते तब हम इसे बेरोजगारी नहीं कहेंगे।
आर्थिक दृष्टि से हम केवल ऐसे व्यक्तियों को बेरोजगार की श्रेणी में रखेंगे जिन्हें
इच्छा और योग्यता रहने पर भी कोई कार्य नहीं मिलता है। इस प्रकार, बेरोजगार व्यक्ति
वे हैं जो अपनी इच्छा के विरुद्ध बेकार हैं। इस प्रकार की अनैच्छिक बेरोजगारी समग्र
माँग में कमी होने के कारण उत्पन्न होती है।
आधुनिक अर्थव्यवस्थाओं में
प्रायः निम्नांकित प्रकार की बेरोजगारी पाई जाती है।
(i) संरचनात्मक बेरोजगारी
- इस प्रकार की बेरोजगारी अर्थव्यवस्था में होनेवाले संरचनात्मक परिवर्तनों के कारण
उत्पन्न होती है। इसे दीर्घस्थायी अथवा मार्कि्सयन बेरोजगारी भी कहते हैं। संरचनात्मक
बेरोजगारी मुख्यतया अर्द्धविकसित एवं पिछड़े हुए देशों में पाई जाती है। यदि किसी देश
की जनसंख्या पूँजीगत साधनों की अपेक्षा अधिक तेजी से बढ़ रही हो, तो ऐसी स्थिति में
सभी लोगों को उत्पादक कार्यों में लगाना संभव नहीं होगा। अतः, संरचनात्मक बेरोजगारी
का प्रधान कारण पूँजीगत साधनों (मशीन, संयंत्र आदि) का अभाव है।
(ii) संघर्षक बेरोजगारी -संघर्षक
बेरोजगारी श्रम की गतिहीनता, रोजगार के अवसरों की अनभिज्ञता, कच्चे माल का अभाव, मशीनों
की टूट-फूट आदि के कारण उत्पन्न होती है। एक गतिशील समाज में इस प्रकार की बेरोजगारी
का होना अनिवार्य है। इसका कारण यह है कि श्रमिकों को कार्य संबंधी जानकारी प्राप्त
करने अथवा कोई नया कार्य सीखने में समय लगता है। अतः, रोजगार के अवसरों की सूचना तथा
प्रशिक्षण आदि की सुविधा देकर संघर्षक बेरोजगारी को दूर किया जा सकता है।
(iii) मौसमी बेरोजगारी
- कई बार लोगों को वर्ष के कुछ महीनों में बेरोजगार रहना पड़ता है; क्योंकि जिन व्यवसायों
में वे कार्य करते हैं, वह व्यवसाय ही मौसमी या सामयिक होता है। उदाहरण के लिए, भारतीय
कृषि की प्रकृति मौसमी है तथा यहाँ खास-खास मौसम में ही कृषिकार्य किए जाते हैं। जब
तक कृषिकार्य होते हैं तब तक कृषि में संलग्न जनसंख्या को काम रहता है, लेकिन कृषि
का मौसम समाप्त होते ही ये लोग बेरोजगार हो जाते हैं। इस प्रकार की बेरोजगारी को मौसमी
या सामयिक बेरोजगारी कहते हैं। चावल मिल, बर्फ, चीनी के कारखाने आदि मौसमी उद्योगों
के कुछ अन्य उदाहरण हैं।
(iv) अर्द्धबेरोजगारी या अदृश्य
बेरोजगारी - इस प्रकार की बेरोजगारी मुख्यतः एशिया और अफ्रीका के पिछड़े
हुए देशों में कृषि के क्षेत्र में पाई जाती है। कृषि पर जनसंख्या का अत्यधिक भार इस
प्रकार की बेरोजगारी का प्रमुख कारण है। इसके अंतर्गत कृषक अपने-आपको कृषिकार्य में
लगा हुआ समझता है, लेकिन उसकी उत्पादकता लगभग शून्य के बराबर होती है। अतः, यदि उसे
कृषिकार्य से हटा भी दिया जाए तो कृषि उत्पादन में कोई कमी नहीं होगी। इस प्रकार प्रकट
रूप कृषक रोजगार प्राप्त मालूम होता है, लेकिन उत्पादन में उसका कोई योगदान नहीं रहता।
इसीलिए, इस प्रकार की बेरोजगारी को अदृश्य अथवा अर्द्धबेरोजगारी कहते हैं।
17. न्यून माँग
से क्या अभिप्राय है? इसके आर्थिक परिणामों का वर्णन कीजिए।'
उत्तर- जिसमें वस्तुओं तथा
सेवाओं की कुल माँग, कुल पूर्ति से कम होती है, को माँग की कमी अथवा न्यून माँग की
स्थिति कहा जाता है।
सेम विलयम के अनुसार, “न्यून
माँग से तात्पर्य उस स्थिति से है, जिसमें वर्तमान कुल माँग पूर्ण रोजगार की कुल माँग
अथवा कुल पूर्ति से कम होती है।"
न्यून माँग के आर्थिक परिणाम-
(i) अल्पाधिकार की स्थिति में
माँग की कमी से उत्पादन एवं रोजगार में कमी आती है। ऐसी स्थिति पर कीमत पर कुछ अधिक
प्रभाव नहीं होता है।
(ii) यदि अर्थव्यवस्था में
उत्पादकों की अधिक संख्या होती है एवं आपस में प्रतियोगिता होते हैं तो माँग में कमी
होने के कारण कीमत में कमी हो जाती है एवं उत्पादन तथा रोजगार में कमी नहीं होती।
(iii) विकसित अर्थव्यवस्था
में माँग में कमी के फलस्वरूप उद्योग क्षेत्र में रोजगार एवं उत्पादन पर अधिक प्रभाव
होता है। यदि सरकार कृषि में मूल्य सहायता की नीति अपनाती है तो, इस क्षेत्र में रोजगार
एवं उत्पादन में भी कमी होगी। यह इस कारण होता है क्योंकि अधिकतर अर्थव्यवस्था अल्पाधिकार
प्रकृति की होती है।
(iv) प्रतियोगी अर्थव्यवस्था
में जहाँ उत्पादन के साधनों की पूर्ति पूर्णत: लोचदार होती है, माँग की कमी के कारण
रोजगार एवं उत्पादन में भी कमी हो जाती है। इसका कीमत पर कुछ अधिक प्रभाव नहीं होता।
18. प्रगतिशील
कर क्या है? इसके गुण-दोषों की व्याख्या करें।
उत्तर - प्रगतिशील कर : प्रगतिशील
कर वह कर है जिसकी दर आय बढ़ने के साथ बढ़ती जाती है। प्रगतिशील कर में कम आय स्तर
पर कम दर से तथा अधिक आय पर अधिक दर से कर आरोपित किया जाता है।
प्रगतिशील कर के गुण-
(i) प्रगतिशील कर में धनी व्यक्तियों
को निर्धन व्यक्तियों की अपेक्षा अधिक धन देना पड़ता है। इसका कारण यह है कि अधिक आय
वाले को अधिक कर देना पड़ता है और कम आय वाले को कम।
(ii) प्रगतिशील कर से प्राप्त
आय का उपयोग देश के आर्थिक विकास में किया जाता है जिससे राष्ट्रीय आय में वृद्धि होती
है।
(iii) एक अच्छे कर की विशेषता
यह है कि आवश्यकतानुसार आय में कमी या वृद्धि की जा सकती है। यह गुण प्रगतिशील कर में
पाया जाता है, क्योंकि इसकी दर सफलतापूर्वक घटायी या बढ़ायी जा सकती है।
प्रगतिशील कर के दोष-
(i) प्रगतिशील कर के भार को
कम करने के लिए करदाता अनेक प्रकार की बेईमानी करता है। करदाता अपनी आय या लाभ कम दिखाता
है जिससे उसे उतना कर नहीं देना पड़ता कि उसे जो ईमानदारी से देना चाहिए।
(ii) कर निर्धारण अधिकारी द्वारा
होता है, इससे करदाता की क्षमता का कम ध्यान रखा जाता है।
(iii) प्रगतिशील करों का उत्पादन
पर बुरा प्रभाव पड़ता है क्योंकि धनी वर्ग को इस प्रकार के करों का भुगतान अपनी जेब
से करना पड़ता है जिससे बचत में कमी आती है। बचत में कमी होने से पूँजी की मात्रा भी
घट जाती है जिससे भविष्य में उत्पादेन की मात्रा का कम होना स्वाभाविक है।
19. वस्तु विनिमय
प्रणाली क्या है? इसकी किन्हीं तीन कठिनाइयों को लिखिए।
उत्तर- जिसमें वस्तु का वस्तु
के साथ प्रत्यक्ष विनिमय होता है। उदाहरण के लिए चावल के बदले गेहूँ, कपड़ा के बदले
कागज या कलम मुद्रा के आविष्कार के वस्तु-विनिमय प्रणाली का ही प्रचलन था। किन्तु इस
प्रणाली में बहुत सारे दोष थे जिनके निराकरण के लिए मुद्रा का आविष्कार हुआ।
वस्तु-विनिमय प्रणाली के तीन
दोष-
(1) आवश्यकताओं के दोहरे संयोग
का अभाव : वस्तु-विनिमय प्रणाली में यदि हमें किसी वस्तु-विशेष की
आवश्यकता है तो हमें ऐसे व्यक्ति को ढूँढ़ना पड़ेगा जिसके पास हमारी आवश्यकता की वस्तु
हो और जो उस वस्तु के बदले में हमारे पास की किसी वस्तु को लेने के लिए तैयार हो ।
(2) मूल्य के एक सर्वमान्य
मापक का अभाव : वस्तु-विनिमय प्रणाली की दूसरी प्रधान कठिनाई
मूल्य के एक सर्वमान्य मापक के अभाव से संबंधित है। इस प्रणाली में मूल्य का कोई एक
सर्वमान्य मापक नहीं होता। इससे दो वस्तुओं के बीच विनिमय की शर्तों के निर्धारण में
भी असुविधा होती है।
(3) मूल्य-संचय की सुविधा का
अभाव
: वस्तु-विनिमय प्रणाली की एक प्रमुख कठिनाई मूल्य-संचय की सुविधा का अभाव है। इस पद्धति
में वही व्यक्ति सबसे अधिक धनी माना जाएगा जिसके पास आवश्यक वस्तुओं जैसे अनाज, कपड़ा,
जानवर तथा दूध आदि का सबसे बड़ा भण्डार हो ।