12th आरोह 13. धर्मवीर भारती (काले मेघा पानी दे)

12th आरोह 13. धर्मवीर भारती (काले मेघा पानी दे)

12th आरोह 13. धर्मवीर भारती (काले मेघा पानी दे)

 पाठ के साथ

प्रश्न 1. लोगों ने लड़कों की टोली को 'मेढक-मण्डली' नाम किस आधार पर दिया? यह टोली अपने आपको 'इंद्र सेना' कहकर क्यों बुलाती थी?

उत्तर : गाँव के कुछ लोगों को लड़कों का नंग-धडंग होकर कीचड़ में लथपथ होना अच्छा नहीं लगता था। वे उनके अन्धविश्वास एवं ढोंग से चिढ़ते थे। इस कारण वे उन लड़कों की टोली से चिढ़ने के कारण 'मेढक-मण्डली' नाम से पुकारते थे। लड़कों की वह टोली वर्षा के देवता इन्द्र से वर्षा करने की प्रार्थना करती थी। वे लोक-विश्वास के आधार पर इन्द्रदेव के दूत बनकर सबसे पानी इसलिए माँगते थे, ताकि इन्द्रदेव भी उन्हें वर्षा का दान करें। इसी से वे अपने आपको 'इन्द्र सेना' कहकर बुलाते थे।

प्रश्न 2. जीजी ने 'इन्द्र सेना' पर पानी फेंके जाने को किस तरह सही ठहराया?

उत्तर : जीजी ने लेखक को बताया कि देवता से कुछ माँगे जाने से पहले उसे कुछ चढ़ाना पड़ता है। किसान भी तीस-चालीस मन गेहूँ पाने के लिए पहले पाँच-छ: सेर गेहूँ की बुवाई करता है। इन्द्र सेना पर भी यही बात लागू होती है। इन्द्र वर्षा के देवता हैं। इन्द्र सेना को पानी देने से इन्द्र देवता प्रसन्न होते हैं और बदले में झमाझम वर्षा करते हैं। एक प्रकार से इन्द्र सेना पर पानी फेंकना वर्षा-जल की बुवाई है। इस तरह पहले कुछ त्याग करो, फिर उसका फल पाने की आशा करो।

प्रश्न 3. 'पानी दे गुड़धानी दे' मेघों से पानी के साथ-साथ गुड़धानी की माँग क्यों की जा रही है?

उत्तर : पानी के साथ ही गुड़धानी की माँग एक तुकबन्दी भी है और विशेष अभिप्राय भी है। मेघ जब पानी देंगे तो अनाज उगेगा, गुड़-चना आदि की उपज होगी और पेट-पूर्ति के साधन सुलभ होंगे। उसी कारण पीने, नहाने-धोने एवं खेती के लिए पानी चाहिए, तो खाने के लिए गुड़धानी अर्थात् अनाज चाहिए। अतएव इन दोनों की माँग एकसाथ की जाती थी।

प्रश्न 4. 'गगरी फूटी बैल पियासा' इन्दर सेना के इस खेल गीत में बैलों के प्यासा रहने की बात क्यों मुखरित

उत्तर : इन्द्र सेना के इस खेल गीत में इस आशय से ऐसा कहा गया है कि वर्षा न होने से घरों के बर्तन सूखकर फूट गये हैं और खेती भी सूखी जा रही है। कृषि की रीढ़ बैल होते हैं, वे भी प्यास के कारण मरे जा रहे हैं और खेती नष्ट होने का खतरा बढ़ रहा है।

प्रश्न 5. इंद्र सेना सबसे पहले गंगा मैया की जय क्यों बोलती है? नदियों का भारतीय सामाजिक, सांस्कृतिक परिवेश में क्या महत्त्व है?

उत्तर : इन्द्र सेना सबसे पहले गंगा मैया की जय बोलती है। क्योंकि गंगा भारत की पूज्य एवं पवित्र नदी है। इसके जल-सिंचन से देश में अन्न का उत्पादन होता है, गंगा नदी हमारी सांस्कृतिक आस्था है, इसके तट पर अनेक पवित्र तीर्थ एवं सांस्कृतिक केन्द्र विद्यमान हैं, जिनका हमारे धार्मिक और सामाजिक जीवन में विशेष महत्त्व है। इन सब कारणों से गंगा नदी का महत्त्व सर्वोपरि है।

प्रश्न 6. रिश्तों में हमारी भावना-शक्ति का बँट जाना विश्वासों के जंगल में सत्य की राह खोजती हमारी बुद्धि की शक्ति को कमजोर करती है। पाठ में जीजी के प्रति लेखक की भावना के सन्दर्भ में इस कथन के औचित्य की समीक्षा कीजिए।

उत्तर : वस्तुत: यह कथन विचारणीय है। जब हम रिश्तों को निभाने की खातिर भावना के वशीभूत हो जाते हैं, तब हमारे मन में जमे विश्वास भी कई बार हिल जाते हैं और हम सत्य को खोजने के प्रयास में भटक जाते हैं। मनुष्य भावनाओं के बिना नहीं रह सकता और जीवन के अनेक सत्य भावनाओं में छिपे रहते हैं। इस तरह की मनोदशा में सत्य का अन्वेषण करती हुई हमारी बुद्धि कुण्ठित हो जाती है तथा तर्क-शक्ति कमजोर पड़ जाती है। तब हम भावनात्मक सत्य के वशीभूत हो जाते हैं।

प्रस्तुत पाठ में लेखक का जीजी के साथ भावनात्मक सम्बन्ध है। इस कारण उसके सामने उसका विश्वास दब जाता है और जीजी के तकों के सामने उसकी बुद्धि की शक्ति कमजोर पड़ जाती है। तब वह उन सारं कामों को करने लग जाता है, पूजा-अनुष्ठान आदि सब कुछ करता है, जिनका वह विरोध करना चाहता है।

 पाठ के आसपास

प्रश्न 1. क्या इन्द्र सेना' आज के युवा वर्ग का प्रेरणा-स्रोत हो सकती है? क्या आपके स्मृति-कोश में ऐसा कोई अनुभव है जब युवाओं ने संगठित होकर समाजोपयोगी रचनात्मक कार्य किया हो? उल्लेख करें।

उत्तर : 'इन्द्र सेना' आज के युवा वर्ग के लिए निश्चित रूप से प्रेरणा-स्रोत हो सकती है। इन्द्र सेना की तरह युवा वर्ग संगठित होकर ऐसा प्रयास कर सकती है, जिससे समाज तथा देश का हित हो सकता है। इससे एक तो संगठित शक्ति को बढ़ाने का प्रयास हो सकता है तथा युवाओं में त्याग-भावना भी आ सकती है। इससे समाज-सुधार के बड़े बड़े आन्दोलन हो सकते हैं।

मेरे स्मृति-कोश में एक ऐसा अनुभव है, जब युवा वर्ग ने संगठित होकर समाजोपयोगी रचनात्मक कार्य किया। कुछ युवकों ने 'नव जागृति संघ' का गठन कर कॉलोनी की समस्याओं का समाधान करने का प्रयास किया। उन्होंने कॉलोनी में पीने के पानी की व्यवस्था सुचारु रूप से करवायी, सड़कों एवं नालियों में पड़े कूड़ा कचरे की सफाई का अभियान चलाया तथा लोगों को स्वच्छता रखने के लाभ बताए। युवकों के इस संगठित प्रयास से अब हमारी कॉलोनी को एक आदर्श कॉलोनी माना जाता है।

प्रश्न 2. तकनीकी विकास के दौर में भी भारत की अर्थव्यवस्था कृषि पर निर्भर है। कृषि-समाज में चैत्र, वैशाख सभी माह बहुत महत्त्वपूर्ण हैं पर आषाढ़ का चढ़ना उनमें उल्लास क्यों भर देता है?

उत्तर : भारत में कृषि-कार्य पूर्णतया मौसमी वर्षा पर निर्भर रहता है। आषाढ़ का महीना आते ही वर्षा ऋतु प्रारम्भ हो जाती है। इस ऋतु के शुरू होते ही झमाझम वर्षा होने लगती है, खेतों की प्यास बुझ जाती है तथा बुवाई-रोपाई होने लगती है। इस तरह भरपूर फसल होने की आशा से आषाढ़ प्रारम्भ होते ही किसान उल्लास से भर जाते हैं।

प्रश्न 3. पाठ के सन्दर्भ में इसी पुस्तक में दी गई निराला की कविता 'बादल-राग' पर विचार कीजिए और बताइए कि आपके जीवन में बादलों की क्या भूमिका है?

उत्तर : सभी के जीवन में बादलों का विशेष महत्त्व है। निराला ने बादलों को क्रान्ति का प्रतीक तथा शोषित-पीड़ित कृषक-श्रमिक वर्ग का हितकारी बताया है। बादल जब समय पर जल-वर्षण करते हैं, तब धरती पर नये जीवन का संचार होता है; पेड़-पौधे, घास, लता आदि हरे-भरे हो जाते हैं और पशु-पक्षियों की प्यास बुझ जाती है। सब ओर प्राकृतिक परिवेश हरीतिमा से व्याप्त हो जाता है, जो कि अतीव सुखदायी लगता है। इस तरह बादलों की न केवल कृषकों के जीवन में, अपितु सभी प्राणियों के जीवन के विकास में विशिष्ट भूमिका रहती है। बादल नव-जीवन संचरित करने वाले वाहक माने जाते हैं।

प्रश्न 4.'त्याग तो वह होता....उसी का फल मिलता है।' अपने जीवन के किसी प्रसंग से इस सूक्ति की सार्थकता समझाइए।

उत्तर : जीजी का यह कथन उचित है कि त्याग संदा दूसरों के हितार्थ किया जाता है। त्याग का सम्बन्ध दान से है। इसमें स्वार्थ की अपेक्षा दूसरों के हित का भाव रहता है। लेकिन त्याग करने से उसका फल हमें भी अर्थात् त्याग करने वाले को भी अवश्य मिलता है। कुछ लोग प्याऊ लगाते हैं, धर्मशाला बनाते हैं, निःशुल्क चिकित्सा-सुविधा उपलब्ध कराते हैं तथा गरीबों की सहायता दिल खोलकर करते हैं। इस तरह के त्याग से उनका नाम-यश फैलता है तथा कभी उन पर जरा-सी आपदा आने पर अनेक लोग सहानुभूति-सहायता करने के लिए आगे आ जाते हैं।

प्रश्न 5. पानी का संकट वर्तमान स्थिति में भी बहुत गहराया हुआ है। इसी तरह के पर्यावरण से सम्बद्ध अन्य संकटों के बारे में लिखिए।

उत्तर : वर्तमान में पानी कमी का संकट काफी बढ़ रहा है। इसके साथ ही वायु की स्वच्छता का संकट बढ़ने लगा है। बड़े-बड़े कारखानों से निकलने वाले धुएँ, विषैली गैसों से, वाहनों के द्वारा गैस-उत्सर्जन से पर्यावरण अत्यधिक प्रदूषित हो रहा है। वृक्षों एवं हरियाली की कमी होने से तथा अनेक तरह के यन्त्रों की कर्ण-कटु ध्वनि से सारा पर्यावरण दूषित हो रहा है। नदियों एवं पेयजल के स्रोतों में गन्दगी फैल रही है; प्रकृति का बड़ी मात्रा में विदोहन हो रहा है। इससे मानव-जीवन पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है। इसी कारण आज पर्यावरण प्रदूषण से सभी लोग चिन्तित हैं।

प्रश्न 6. आपकी दादी-नानी किस तरह के विश्वासों की बात करती हैं? ऐसी स्थिति में उनके प्रति आपका रवैया क्या होता है? लिखिए।

उत्तर : हमारी दादी-नानी अपनी धार्मिक आस्था के कारण तरह-तरह के अन्धविश्वासों की बातें करती हैं। वे शनिवार को तेल का दान करना अच्छा मानती हैं, इससे सारे अनिष्ट दूर होने का विश्वास व्यक्त करती हैं। वे महीने में चार व्रत रखना नहीं भूलती हैं, भगवानजी को भोग लगाती हैं, प्रत्येक पूर्णिमा एवं अमावस्या को पितरों के निमित्त दान पुण्य करती हैं। उनके इस तरह के कार्यों से हमें खीझ व झुंझलाहट होती है लेकिन उनके प्रति आदर व सम्मान का ध्यान रखते हुए चुप रहते हैं। वैसे इसे हम उनकी धार्मिक प्रवृत्ति का हिस्सा मानते हैं।

 लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. 'काले मेघा पानी दे' शीर्षक निबन्ध का मूल भाव या प्रतिपाद्य स्पष्ट कीजिए।

उत्तर : निबन्ध का प्रतिपाद्य यह है कि विज्ञान तर्क की कसौटी पर खरी उतरने वाली बात को ही सत्य मानता है। साथ ही विश्वास भावना के आधार पर अनहोनी-होनी सबको सत्य मान लेता है। भारतीय समाज में अन्धविश्वास होते हुए भी उनमें सामाजिक कल्याण की भावना सांस्कृतिक चेतना एवं संस्कारों से पल्लिवत होती है।

प्रश्न 2. 'इन्द्र सेना' अनावृष्टि दूर करने के लिए क्या करती थी?

उत्तर : 'इन्द्र सेना' में गाँव के दस-बारह वर्ष से सोलह-अठारह वर्ष के सभी लड़के नंग-धडंग उछल-कूद, शोर-शराबे के साथ कीचड़-मिट्टी को शरीर पर मलते हुए घर-घर.जाते थे और 'बोल गंगा मैया की जय' का नारा लगाते हुए पानी की माँग करते थे। वे आस्था के कारण इन्द्र देवता से बारिश करने के लिए प्रार्थना करते हुए ऐसा करते हैं।

प्रश्न 3. समय पर वर्षा न होने से गाँववासी कौन-कौनसे उपाय करते थे?

उत्तर : गाँववासी अपनी आस्था के अनुसार इन्द्रदेवता को प्रसन्न करने के लिए सामूहिक रूप से पूजा-पाठ कराते, कथा-कीर्तन एवं रात्रि-जागरण आदि सारे कार्य करते। इन सब उपायों के बाद भी वर्षा नहीं होती, तो इन्द्र सेना आकर इन्द्रदेवता से जल-वर्षण की प्रार्थना करती थी।

प्रश्न 4. जीजी के त्याग व दान के विषय में क्या विचार थे? 'काले मेघा पानी दो' अध्याय के आधार पर बताइये।

उत्तर : इस सम्बन्ध में जीजी के विचार थे कि जो चीज मनुष्य पाना चाहता है, उसे पहले खुद देना पड़ता है—त्याग करना पड़ता है। बिना त्याग के दान नहीं होता है। जो चीज बहुत कम है, उसका त्याग करने से ही लोक-कल्याण होता है। इससे स्वार्थ-भावना कम होती है और परोपकार भावना बढ़ती है।

प्रश्न 5. इन्द्र सेना पर पानी फेंकने से मना करने पर जीजी ने क्या प्रयास किया और लेखक को कैसे समझाया?

उत्तर : तब जीजी ने उसके मुँह में मठरी डालते हुए समझाया कि इन्द्र सेना पर पानी फेंकना पानी की बर्बादी नहीं है, यह पानी का अर्घ्य चढ़ाना है। जो चीज हमारे पास कम हो और प्रिय भी हो, उसका दान करना ही सच्चा त्याग है। इन्द्र सेना को पानी देने से इन्द्र देवता प्रसन्न होंगे और वे हमें पानी देंगे अर्थात् वर्षा करेंगे।

प्रश्न 6. "हम अपने घर का पानी इन पर फेंकते हैं, वह भी बुवाई है।" जीजी के इस कथन का क्या आशय है? क्या आप इससे सहमत हैं?

उत्तर : किसान को अगर तीस-चालीस मन गेहूँ उगाना है तो वह पाँच-छ: सेर अच्छा गेहूँ लेकर उसकी जमीन में बुवाई कर देता है। इस तरह बुवाई करने से उसको कई गुना अनाज प्राप्त होता है। इसी प्रकार इन्दर सेना पर हम जो पानी फेंकते हैं, वह भी पानी की बुवाई है। इससे बादलों से कई गुना अधिक पानी मिलता है। हम जीजी के इस तर्क से सहमत नहीं हैं, क्योंकि इसमें अन्धविश्वास की अधिकता है।

प्रश्न 7. "हम चटखारे लेकर इसके या उसके भ्रष्टाचार की बातें करते हैं।" इससे लेखक ने क्या आक्षेप किया है?

उत्तर : इससे लेखक ने वर्तमान काल में पनप रहे भ्रष्टाचार पर आक्षेप किया है। आज भ्रष्टाचार सर्वत्र व्याप्त है। आज हर किसी के भ्रष्टाचार पर बातें खूब की जाती हैं, परन्तु स्वयं के भ्रष्टाचरण पर सब चुप रहते हैं। इससे समाज, देश तथा मानवता का पतन हो रहा है।

प्रश्न 8. "यह सच भी है कि यथा प्रजा तथा राजा।" इस कथन का आशय स्पष्ट कीजिए।

उत्तर : कहावत प्रसिद्ध है - 'यथा राजा तथा प्रजा', अर्थात जैसा राजा होगा, प्रजा भी वैसी ही होगी। राजा दानी, त्यागी और परोपकारी होगा, तो प्रजा भी उसी के अनुरूप आचरण करेगी, परन्तु प्रजा के आचरण का प्रभाव राजा पर भी पड़ता है। जनता त्याग-भावना का आचरण करती है तो तब राजा अर्थात् देवता भी त्याग करते हैं, जनता की प्रार्थना सुनकर इच्छित फल देते हैं।

प्रश्न 9. जीजी के प्यार के कारण लेखक के सामने क्या मुश्किल आ गई थी?

उत्तर : लेखक आर्यसमाजी प्रभाव के कारण इन्द्र सेना के आचरण को, धार्मिक परम्पराओं को अन्धविश्वास और पाखण्ड मानता था। परन्तु उनके सामने यह मुश्किल थी कि जीजी के प्यार के कारण अनिच्छा से वह पूजा-पाठ एवं गहरी श्रद्धा होने से उनका साथ देता था और उनके स्नेह के कारण मजबूरी में सारे धार्मिक अनुष्ठान करता था।

प्रश्न 10. जीजी के अनुसार आज भारत के लोगों का आचरण किस प्रकार का हो गया है?

उत्तर : आज भारत में लोगों का आचरण स्वार्थी हो गया है। स्वार्थपरता के कारण वे दूसरों की कठिनाइयों एवं कष्टों की कोई चिन्ता नहीं करते हैं। लोग परमार्थ और परोपकार को भूलते जा रहे हैं। समाज के प्रति अपने कर्तव्यों का ध्यान नहीं रखते परन्तु अपने अधिकारों की बात करते हैं। अब देशप्रेम कोरे उपदेश का विषय बन गया है।

प्रश्न 11. "इन बातों को आज पचास से ज्यादा बरस होने को आये"-लेखक को पचास वर्ष पूर्व की कौन-सी बात कचोटती है?

उत्तर : लेखक को पचास वर्ष जीजी ने दान और त्याग के साथ ही आचरण को लेकर जो कुछ कहा था, वह बात आज के सन्दर्भ में लेखक को कचोटती है, क्योंकि आज लोग त्याग और दान को भूल गये हैं। देश एवं समाज के प्रति अपने कर्तव्यों को नहीं निभाते हैं। केवल स्वार्थ, भ्रष्टाचार, अधिकार-प्राप्ति और छल-कपट रह गया है।

प्रश्न 12. "गगरी फूटी की फूटी रह जाती है, बैल पियासे के पियासे रह जाते हैं।" इस कथन से क्या व्यंजना की गई है?

उत्तर : यह कथन प्रतीकात्मक है। वर्तमान में हमारे देश में भ्रष्टाचार का बोलबाला है। जनता के कल्याण के लिए बनने वाली विकास योजनाओं रूपी गगरी में भ्रष्टाचार के छेद हो गये हैं। योजनाएँ तो खूब बनती हैं, पर उनका लाभ आम जनता को नहीं मिलता है, इस तरह उक्त कथन से समकालीन भ्रष्ट शासन की व्यंजना की गई है।

प्रश्न 13. 'काले मेघा पानी दे' संस्मरण द्वारा लेखक ने क्या सन्देश व्यक्त किया है?

उत्तर : लेखक ने यह सन्देश दिया है कि विज्ञान अपनी जगह सत्य है तथा उसके आविष्कारों से सभी परिचित हैं। फिर भी जनता के सामूहिक चित्त में अन्धविश्वास और लौकिक कर्मकाण्ड का इतना प्रभाव है कि विज्ञान भी उसके सामने कमजोर पड़ जाता है। अतएव परम्परागत मान्यताओं तथा वैज्ञानिक दृष्टिकोण में जन-भावना के अनुसार समन्वय रखना जरूरी है।

प्रश्न 14. 'काले मेघा पानी दे' के आधार पर समझाइए कि लेखक ने भारतीयों का अंग्रेजों से पिछड़ने व .. उनका गुलाम बनने के क्या कारण बताये हैं? वह उस स्थिति में सुधार चाहते हुए भी क्यों नहीं कर पाता है?

उत्तर : लेखक ने भारतीयों का अंग्रेजों से पिछड़ने एवं उनका गुलाम होने का कारण पाखण्ड और अन्धविश्वास बताया है। भारतीयों में रूढ़िवादी धार्मिक मान्यता एवं सांस्कृतिक परम्पराओं के कारण अशिक्षित या अर्द्ध-शिक्षित लोग अन्धविश्वासों से छुटकारा नहीं पाते हैं। रूढ़ संस्कारों के कारण चाहते हुए भी इस स्थिति में सुधार नहीं हो रहा है।

प्रश्न 15. "विज्ञान का सत्य बड़ा है या सहज प्रेम का रस?"काले मेघा पानी दे' पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।

उत्तर : आज विज्ञान का युग है और वैज्ञानिक विकास को देखने से स्पष्ट हो जाता है कि विज्ञान का सत्य बड़ा है। जीजी ने लेखक को सहज प्रेम-भाव में इन्द्र सेना पर पानी फेंकना उचित आचरण बताया। लेखक न चाहता हुआ भी उसके अनुसार कार्य करने लगा। इसका कारण जीजी का सहज प्रेम ही था।

 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1. 'काले मेघा पानी दे' निबन्ध का सारांश लिखिए।

उत्तर : 'काले मेघा पानी दे' निबन्ध लोकजीवन के विश्वास एवं उनसे उत्पन्न हुई मान्यताओं पर आधारित है। विज्ञान के तर्क एवं लोगों का विश्वास दोनों अपनी जगह सत्य हैं इस बात को पुष्ट करता है। भीषण गर्मी के कारण पानी की कमी से बेहाल गाँव के लोग वर्षा कराने के उद्देश्य से पूजा-पाठ और कथा-विधान करके जब थक-हार जाते हैं तब वर्षा कराने का अंतिम उपाय के रूप में इन्द्र सेना निकलती है।

इन्द्र सेना नंग-धडंग बच्चों की टोली है, जो कीचड़ में लथपथ होकर गली-गली पानी माँगने निकलती है। लोग घरों की छतों से उन पर पानी फेंकते हैं। लोगों की मान्यता है कि इन्द्र बादलों के स्वामी और वर्षा के देवता हैं। इन्द्र की सेना पर पानी डालने से इन्द्र भगवान प्रसन्न होकर पानी बरसायेंगे।

प्रश्न 2. 'काले मेघा पानी दे' निबन्ध के माध्यम से लेखक ने वर्तमान की किस समस्या की ओर संकेत किया है और कैसे?

उत्तर : आर्यसमाजी विचारधारा वाला लेखक इन्द्र देवता को मनाने के लिए तथा पूजा-पाठ सम्बन्धी सभी क्रिया कलापों को अंधविश्वास मानता है। इसके विपरीत अपने जीजी के विचारानुसार एवं स्नेहवश वह सभी कार्य करते भी हैं। उनकी जीजी कहती है कि कुछ पाने के लिए कुछ देना भी पड़ता है। त्याग के बिना दान नहीं होता है। लेखक ने भ्रष्टाचार की समस्या को उठाते हुए कहा है कि जीवन में कुछ पाने के लिए त्याग आवश्यक है। जो लोग त्याग और दान की महत्ता को नहीं मानते, वे ही भ्रष्टाचार में लिप्त रह कर देश और समाज को लूटते हैं। सरकार द्वारा चलाई गई योजनाओं का लाभ गरीबों तक नहीं पहुंच रहा है। काले मेघा के दल उमड़ रहे हैं पर आज भी गरीब की गगरी फूटी हुई है।

प्रश्न 3. 'काले मेघा पानी दे' संस्मरण में व्यक्त लेखक की जीजी का चरित्र-चित्रण कीजिए। उत्तर : लेखक ने जीजी की विशेषताओं को कई प्रसंगों में बताया है

1. स्नेहशील-जीजी लेखक को अपने बच्चों की तरह प्रेम एवं स्नेह से रखती थी। वे सारे अनुष्ठान, कर्मकांड लेखक से करवाती थी ताकि लेखक को पुण्य मिले।

2. आस्थावान-जीजी परम्पराओं, विधियों एवं अनुष्ठानों में विश्वास रखती थी तथा श्रद्धापूर्वक उन्हें पूरा करती थी।

3. तर्कशील-जीजी के पास हर बात का तर्क मौजूद होता था। इंद्र सेना पर पानी फेंकने के पक्ष में जो तर्क दिए, उनको कोई काट नहीं सकता था। लेखक भी स्वयं को उनके समक्ष असहाय महसूस करते थे।

इस प्रकार जीजी का स्वभाव अत्यन्त स्नेही, कर्मशील, तर्कशील तथा वात्सल्य से पूरित था।

प्रश्न 4. मेंढक मंडली पर पानी डालने को लेकर लेखक और जीजी के विचारों की भिन्नता स्पष्ट कीजिए।

उत्तर : मेंढक मंडली पर पानी डालने को लेकर लेखक का तर्क था कि गर्मी के इस मौसम में जहाँ पानी की बहुत किल्लत है ऐसे समय में व्यर्थ में पानी फेंकना, पानी की बर्बादी है। लोगों को पीने के लिए, जीवन यापन के लिए पानी नहीं मिल रहा वहाँ मंडली पर झूठे विश्वास के तहत पानी फेंकना गलत है।

इसके विपरीत, जीजी इंद्र सेना पर पानी फेंकना, पानी की बुवाई मानती थी। वे कहती हैं कि जिस तरह ढेर सारे गेहूँ प्राप्त करने के लिए कुछ मुट्ठी गेहूँ पहले बुवाई के लिए डाले जाते हैं वैसे ही वर्षा प्राप्त करने हेतु कुछ बाल्टी पानी फेंका जाता है। उनका यह तर्क कि सीमित में से ही दिया जाना त्याग कहलाता है और त्याग करने से ही सच्चा लोक-कल्याण होता है।

प्रश्न 5. आजादी के पचास वर्षों बाद भी लेखक दुःखी है क्यों? उनके विचारों को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर : लेखक आजाद भारत के पचास वर्ष व्यतीत होने के पश्चात् भी लोगों के विचारों में सकारात्मकता का भाव नहीं पाता है। वह लोगों के स्वार्थी एवं भ्रष्टाचार में लिप्त व्यवहार को देख कर दुःखी है। वह कहता है कि क्या हम भारतीय आज पूर्णतः स्वतंत्र हैं? हम अपनी देश की सभ्यता और संस्कृति को पूरी तरह समझ पाये हैं? देश के राष्ट्र निर्माण में क्यों हम अभी तक पीछे हैं।

भारतीय त्याग में विश्वास न करके भ्रष्टाचार में क्यों लिप्त रहते हैं? सरकार द्वारा चलाई जा रही सरकारी योजनाएँ तथा उनसे प्राप्त होने वाला लाभ गरीबों तक क्यों नहीं पहुंच पाता है? इन तमाम प्रश्नों एवं विचारों से क्षुब्ध लेखक दुःखी है। वर्षों की गुलामी झेलने के बाद भी भारतीयों की समझ विकसित नहीं हो पाई है। वे देश के विकास को भूल कर सिर्फ स्वयं के विकास में ही तत्पर हैं।

 रचनाकार का परिचय सम्बन्धी प्रश्न

प्रश्न 1. लेखक धर्मवीर भारती का कृतित्व एवं व्यक्तित्व का परिचय दीजिए।

उत्तर : धर्मवीर भारती का जन्म सन् 1926 में इलाहाबाद (उ.प्र.) में हुआ था। उनकी कविताएँ, कहानियाँ, उपन्यास, निबंध, गीतिनाट्य और रिपोर्ताज हिन्दी साहित्य की उपलब्धियाँ हैं। वे मूल रूप से व्यक्ति-स्वातंत्र्य, मानवीय संकट. एवं रोमानी चेतना के रचनाकार हैं। उनकी प्रमुख रचनाएँ 'कनुप्रिया', 'सात-गीत वर्ष', 'ठंडा लोहा' (कविता संग्रह); 'बंद गली का आखिरी मकान' (कहानी-संग्रह); 'सूरज का सातवाँ घोड़ा', 'गुनाहों का देवता' (उपन्यास) आदि हैं। पद्मश्री, व्यास सम्मान एवं साहित्य से जुड़े अनेक राष्ट्रीय पुरस्कार उन्हें प्राप्त हुए हैं। सन् 1997 में उनका निधन हो गया था।

काले मेघा पानी दे (सारांश)

लेखक परिचय - स्वातन्त्र्योत्तर साहित्यकारों में अग्रणी स्थान रखने वाले धर्मवीर भारती का जन्म इलाहाबाद नगर में सन् 1926 ई. में हुआ। वहीं से उच्च शिक्षा प्राप्त कर ये स्वावलम्बी बने। 'अभ्युदय' और 'संगम' पत्रों का सम्पादन-सहयोग करने के बाद ये प्रयाग विश्वविद्यालय में हिन्दी के प्राध्यापक बने। कुछ समय बाद विश्वविद्यालय की नौकरी छोड़कर मुम्बई चले गये और वहाँ 'धर्मयुग' पत्रिका का सम्पादन करने लगे।

इन्हें 'दूसरा सप्तक' के कवियों में स्थान प्राप्त हुआ। इन्होंने अपनी रचनाओं में व्यक्ति स्वातन्त्र्य, मानवीय संकट तथा रोमानी चेतना को अभिव्यक्ति दी है। इनकी रचनाओं में सामाजिक चेतना के साथ संगीत की लय मिलती है। इस विशेषता से ये रोमानी गीतकार माने जाते हैं। इन्हें पद्मश्री, व्यास सम्मान एवं साहित्य-जगत् के कई अन्य राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त हुए।

भारतीजी का निधन सन् 1997 ई. में हुआ। - रचनाएँ-इन्होंने कविता, कहानी, उपन्यास, निबन्ध, गीतिनाट्य और रिपोर्ताज आदि सभी में अपनी प्रतिभा का परिचय दिया है। इनकी प्रमुख रचनाएँ हैं - 'कनुप्रिया', 'सात गीत-वर्ष', 'ठंडा लोहा' काव्य-संग्रह; सूरज का सातवाँ घोड़ा', 'गुनाहों का देवता' उपन्यास; 'अंधा युग' गीतिनाट्य; 'मुर्दो का गाँव', 'चाँद और टूटे हुए लोग', 'बन्द गली का आखिरी मकान' कहानी-संग्रह; 'ठेले पर हिमालय', 'कहनी-अनकहनी', 'पश्यन्ती', 'मानव मूल्य और साहित्य' निबन्ध-संग्रह।

पाठ-सार - 'काले मेघा पानी दे' शीर्षक निबन्ध (संस्मरण) में लोक-जीवन में प्रचलित विश्वास और विज्ञान दोनों ही दृष्टियों का द्वन्द्व उपस्थित किया गया है। इन दोनों में कौन सार्थक और सत्य है, इसका निर्णय पाठकों पर छोड़ दिया गया है।

पाठ का सार इस प्रकार है

1. इन्द्र सेना के कार्य-कलाप-अपने किशोर जीवन का एक संस्मरण प्रस्तुत करते हुए भारतीजी बताते हैं कि गाँव में जब वर्षा की प्रतीक्षा करते-करते सब ओर सूखा पड़ जाता, तो तब दस-बारह से सोलह-अठारह वर्ष के नंग धडंग लँगोट-धारी किशोरों की एक टोली एकत्र होती और 'गंगा मैया की जय' बोलती हुई गलियों में निकल पड़ती थी। इसे इन्द्र सेना कहा जाता था। ये किशोर उछलते-कूदते घर-घर जाकर पुकार लगाते थे - 'पानी दे मैया, इन्द्र सेना आई है।' तब घर की औरतें उन पर बाल्टी या घड़े से पानी डालकर तर कर देती थीं। बच्चे उसी जल में नहाते, मिट्टी में लोटते और कीचड़ में लथपथ हो जाते थे। फिर वे 'काले मेघा पानी दे' तथा 'गंगा मैया की जय' इत्यादि की पुकार लगाते हुए आगे बढ़ जाते थे।

2. लोगों का विश्वास-उस समय गर्मी के मारे हर जगह लोग तप-भुन रहे होते थे। कुएँ सूखने लगते थे, नलों में खौलता हुआ पानी आता था। खेतों की मिट्टी सूखकर पत्थर हो जाती थी। बारिश का नामो-निशान नहीं रहता था। वर्षा के लिए पूजा-पाठ, कथा-विधान सब करके लोग हार जाते थे। तब लोगों के विश्वास को जगाती हुई इन्द्र सेना निकलती थी। वर्षा के बादलों के स्वामी इन्द्रदेव हैं, उन्हीं की सेना टोली बाँधकर आती, तो लोग घरों में कठिनाई से एकत्र किये गये पानी को उस पर उँडेल देते थे।

3. लेखक का अभिमत-लेखक की आयु भी उस समय उन्हीं किशोरों के समान थी, परन्तु लेखक आर्यसमाजी संस्कार एवं कुमार-सुधार सभा के प्रभाव से उस अन्धविश्वास के विरोध में था। लेखक का अभिमत था कि जब पानी का पहले ही इतना अभाव है, तो फिर इन्द्र सेना या मेढक मण्डली पर पानी बेकार क्यों उँडेला जाता है। यदि यह इन्द्र की सेना है, तो सीधे इन्द्रदेव से पानी क्यों नहीं माँगते? ऐसे अन्धविश्वासों के कारण ही हम अंग्रेजों से पिछड़ गये और गुलाम बन गए।

4. जीजी का प्यार एवं विश्वास-लेखक को अपने बचपन में सबसे ज्यादा प्यार जीजी से मिलता था, वह लेखक को अपने लड़के-बहू से भी अधिक प्यार करती थी। वह अन्धविश्वासी थी तथा इन्द्र सेना पर अन्धी आस्था रखती थी। वह हर पूजा-विधान, त्योहार-अनुष्ठान लेखक के हाथों करवाती थी। वह चाहती थी कि इन सबका पुण्य-फले लेखक को ही मिले।

5. जीजी का तर्क-जीजी इन्द्र सेना पर पानी उँडेलने का काम लेखक से ही करवाना चाहती थी, परन्तु लेखक ने ऐसा करने से इनकार कर दिया। तब जीजी ने तर्क दिया कि यदि हम इन्द्र-सेना को पानी नहीं देंगे, तो इन्द्रदेव हमें पानी कैसे देंगे? हम भगवान को पानी का अर्घ्य चढ़ाते हैं। जो चीज मनुष्य पाना चाहता है, उसे पहले देना पड़ता है - त्याग करना पड़ता है। बिना त्याग के दान नहीं होता। अगर लाखों-करोड़ों रुपये होने पर कोई उसमें से दो-चार रुपये किसी को दे, तो वह क्या त्याग हुआ?

जो चीज बहुत कम है, उसका त्याग करने से ही सच्चा लोक-कल्याण होता है। किसान तीस-चालीस मन गेहूँ उगाने के लिए पहले पाँच-छ: सेर गेहूँ धरती में बोता है। इसी तरह पानी फेंकना भी उसकी बुवाई है। पानी को इस तरह बोने के बाद ही बादल बरसेंगे। 'यथा राजा तथा प्रजा' ही केवल सच नहीं है, अपितु यथा प्रजा तथा राजा भी सच है। गाँधीजी ने भी इस बात का समर्थन किया है।

6. प्रमुख समस्या-अन्त में लेखक टिप्पणी करते हुए बताता है कि इस घटना को हुए पचास से ज्यादा वर्ष हो गये। इससे मन में प्रश्न उठता है कि हम देश के लिए कितना त्याग करते हैं? हम भ्रष्टाचार को मिटाने की बातें करते हैं, परन्तु अपना स्वार्थ ही आज एकमात्र लक्ष्य रह गया है। काले मेघा झमाझम बरसते है, परन्तु गगरी फूटी को फूटी रह जाता है, बैल प्यासे रह जाते हैं। आखिर यह दशा कब बदलेगी?

सप्रसंग महत्त्वपूर्ण व्याख्याएँ

1. शहरों की तुलना में गाँव में और भी हालत खराब होती थी। जहाँ जुताई होनी चाहिए वहाँ खेतों की मिट्टी सूख , कर पत्थर हो जाती, फिर उसमें पपड़ी पड़ कर जमीन फटने लगती, लू ऐसी कि चलते-चलते आदमी आधे रास्ते में लू खाकर गिर पड़े। ढोर-ढंगर प्यास के मारे मरने लगते हैं लेकिन बारिश का कहीं नामनिशान नहीं, ऐसे में पूजा पाठ, कथा-विधान सब करके लोग जब हार जाते तब अंतिम उपाय के रूप में निकलती यह इंद्रसेना

कठिन-शब्दार्थ :

ढोर-ढंगर = पशु।

प्रसंग - प्रस्तुत गद्यांश धर्मवीर भारती द्वारा लिखित संस्मरण 'काले मेघा पानी दे' से लिया गया है। वर्षा नहीं होने के कारण गाँवों की हालत का वर्णन लेखक ने इसमें किया है।

व्याख्या - लेखक बताते हैं कि गर्मी के दिनों में जब चारों तरफ सूखे के हालात बन जाते हैं तब शहरों की तुलना में गाँवों की हालत और अधिक खराब हो जाती है। जहाँ खेती की जुताई होनी चाहिए वहाँ वर्षा के अभाव में खेतों की मिट्टी सूख कर पपड़ी बन जाती और जमीन फटने लगती अर्थात् उनमें जगह-जगह दरारें पड़ने लगती थीं।

गर्मी की अधिकता के कारण गर्म हवाएँ लू बनकर चलती जिससे राह चलता भूखा-प्यासा आदमी लू के प्रभाव से वहीं गिर पड़ता। पशु-पक्षी सभी प्यास के मारे मरने लगते थे। लेकिन तब भी बारिश आने का कोई नामोनिशान नहीं दिखाई देता था। चारों तरफ से दुःखी आदमी तब ईश्वर की आस्था का सहारा लेकर पूजा-पाठ, कथा-विधान सब करने लग जाते।

इन सब अनुष्ठानों को करने के पश्चात् भी जब कोई हल नहीं निकलता दिखता तब अंतिम रूप में इन्द्र देवता को प्रसन्न करने के लिए बच्चों की टोली इन्द्र सेना का स्वांग रचकर गली-गली घूमती, इस आशय और प्रार्थना के साथ कि शायद अब इन्द्र देवता प्रसन्न होकर बारिश की सौगात उन्हें दे दें।

विशेष :

1. सूखे के हालात का वर्णन एवं धार्मिक आस्था एवं विश्वास से भरी मान्यताओं को प्रस्तुत किया गया है।

2. भाषा सरल-सहज व बोधगम्य है।

2. वर्षा के बादलों के स्वामी हैं इंद्र और इंद्र की सेना टोली बाँध कर कीचड़ में लथपथ निकलती, पुकारते हुए मेघों को, पानी माँगते हुए प्यासे गलों और सूखे खेतों के लिए। पानी की.आशा पर जैसे सास जीवन आकर टिक गया हो। बस एक बात मेरे समझ में नहीं आती थी कि जब चारों ओर पानी की इतनी कमी है तो लोग घर में इतनी कठिनाई से इकट्ठा करके रखा हुआ पानी बाल्टी भर-भर कर इन पर क्यों फेंकते हैं। कैसी निर्मम बरबादी है पानी की।

कठिन-शब्दार्थ :

लथपथ = लिपटी हुई।

निर्मम = कठोर।

प्रसंग - प्रस्तुत गद्यांश धर्मवीर भारती द्वारा लिखित संस्मरण 'काले मेघा पानी दे' से लिया गया है। लेखक ने सूखे की हालत पर धार्मिक मान्यतानुसार पानी बर्बाद किये जाने पर विचार व्यक्त किया है।

व्याख्या - लेखक कहते हैं कि धार्मिक मान्यतानुसार वर्षा के बादलों के स्वामी हैं इन्द्र और बच्चे इन्द्र की सेना के रूप में टोली बना कर पानी और मिट्टी के कीचड़ से लथपथ, लोगों के प्यासे गलों के लिए, खेतों की सूखी मिट्टी के लिए बादलों को पुकारती गली-गली घूमती थी। पानी की आशा लिए पूरा जन-जीवन उसके आने का इंतजार करते हुए जैसे रुका हुआ था।

इन सारी स्थितियों को देखते-समझते हुए लेखक को सिर्फ एक बात समझ नहीं आती थी कि जब चारों तरफ पानी की कमी है, लोग प्यासे हैं, धरती सूखी है, पशु-पक्षी प्यासे के मारे मर रहे हैं ऐसी स्थिति में लोग इतनी कठिनाई से घर में इकट्ठा करके रखा हुआ पानी बाल्टी भर-भर कर इस टोली पर क्यों फेंकते हैं।

लेखक के कहने का आशय है कि लोग सूखे की हालत में, पानी की किल्लत में जो थोड़ा बहुत बचा कर रखा हुआ पानी है उसकी इतनी कठोर बर्बादी क्यों करते हैं? उनकी आस्था, मान्यता क्या उनकी जरूरतों से ज्यादा बडी है? क्यों लोग इतनी बड़ी परेशानी में अपने पास रखा हुआ पानी भी व्यर्थ कर देते हैं? लेखक लोगों की इसी समझ, आस्था, विश्वास व मान्यता को तर्को के द्वारा नहीं समझ पाता है।

विशेष :

1. लेखक ने उन आस्थाओं एवं मान्यताओं पर प्रश्न-चिह्न खड़ा किया है जब मनुष्य उन्हें अपनी जरूरतों से ज्यादा अहम स्थान देते हैं।

2. भाषा सरल-सहज एवं व्यंजनात्मक है।

3. देश की कितनी क्षति होती है इस तरह के अंधविश्वासों से। कौन कहता है इन्हें इन्द्र की सेना? अगर इन्द्र महाराज से ये पानी दिलवा सकते हैं तो खुद अपने लिए पानी क्यों नहीं माँग लेते? क्यों मुहल्ले भर का पानी नष्ट करवाते घूमते हैं, नहीं, यह सब पाखण्ड है। अन्धविश्वास है। ऐसे ही अन्धविश्वासों के कारण हम अंग्रेजों से पिछड़ गए और गुलाम बन गए।

प्रसंग - प्रस्तुत गद्यांश लेखक धर्मवीर भारती द्वारा लिखित संस्मरण 'काले मेघा पानी दे' से लिया गया है। इसमें लेखक ने पानी की बर्बादी पर आक्षेप किया है।

व्याख्या - लेखक धार्मिक मान्यताओं के नाम पर समाज में व्याप्त अन्धविश्वासों पर व्यंग्य करते हुए कहते हैं कितना नुकसान होता है इस तरह के अन्धविश्वासों से। जब बच्चे इन्द्र सेना का रूप धर गाँव-भर में घूम कर स्वयं पर पानी डलवाते हैं इस मान्यता के साथ कि ऐसा करने से इन्द्र देवता प्रसन्न होकर अच्छी वर्षा करेंगे, तब लेखक का मन क्षुब्ध हो उठता है। पानी की भयंकर कमी के बावजूद लोग अपने पास बचाकर रखा पानी ऐसे अन्धविश्वासों की भेंट चढ़ा देते हैं।

लेखक इस बात पर नाराज होकर कहते हैं कि कौन इन्हें इन्द्र की सेना कहता है? अगर ये सच में इन्द्र की सेना होती और इन्द्र महाराज से पानी दिलवा सकते तो, क्यों नहीं स्वयं के लिए पानी माँग लेते? क्यों घर-घर घूमकर लोगों के घरों का पानी बर्बाद करवाते हैं। यह सब दिखावा है। मान्यता के नाम पर पाखण्ड है, अन्धविश्वास है। लेखक मानते हैं कि भारत इन्हीं अन्धविश्वासों और पाखण्डों के कारण अंग्रेजों से पीछे रह गये और उनके गुलाम बन गए। उनके अनुसार भारतीयों की बुद्धि पर तर्क की जगह अन्धविश्वासों ने पकड़ बना रखी है जो इनके पिछड़ने का एक मुख्य कारण

विशेष : 

1. लेखक ने अन्धविश्वासों व पाखण्डों पर कटाक्ष करते हुए भारतीयों के पिछड़ने का कारण बताया है।

2. भाषा सरल-सहज व आवेगपूर्ण है।

4. मैंने साफ इनकार कर दिया। नहीं फेंकना है मुझे बाल्टी भर-भर कर पानी इस गन्दी मेंढक-मण्डली पर। जब जीजी बाल्टी भरकर पानी ले गईं उनके बूढ़े पाँव डगमगा रहे थे, हाथ काँप रहे थे, तब भी मैं अलग मुँह फुलाए खड़ा रहा। शाम को उन्होंने लड्ड-मठरी खाने को दिए तो मैंने उन्हें हाथ से अलग खिसका दिया। मुँह फेरकर बैठ गया, जीजी से बोला भी नहीं। पहले वे भी तमतमाईं, लेकिन ज्यादा देर तक उनसे गुस्सा नहीं रहा गया।

कठिन-शब्दार्थ :

तमतमाना = क्रोधित होना।

प्रसंग - प्रस्तुत गद्यांश धर्मवीर भारती द्वारा लिखित संस्मरण 'काले मेघा पानी दे' से लिया गया है। लेखक ने इसमें उस घटना का वर्णन किया है जिसमें उन्होंने इन्द्र सेना पर पानी डालने से इंकार कर दिया था।

व्याख्या - लेखक ने बताया कि उनकी जीजी स्नेह के कारण अनेक धार्मिक कार्य उनसे करवाती थी। ऐसे में एक दिन इन्द्र सेना के आने पर और उन पर पानी फेंकने के कार्य को करने से उन्होंने साफ इन्कार कर दिया। अपना गुस्सा दिखाते हुए उन्होंने कहा कि मुझे बाल्टी भर-भरकर पानी नहीं फेंकना इस गंन्दी मेंढक-मण्डली पर। उनके मना करने पर उनकी जीजी पानी भरकर लाई, जीजी के बूढ़े पैर भरी बाल्टी लिये डगमगा रहे थे। हाथ काँप रहे थे।

तब भी लेखक मुँह फुलाए गुस्से में दूर ही खड़े रहे। शाम को जब जीजी ने लड्ड और मठरी खाने के लिए दिए तब लेखक ने हाथ से उन चीजों को दूर कर दिया तथा गुस्सा दिखाते हुए मुँह फेरकर बैठ गए। अपनी जीजी से नाराजगी के कारण बात भी नहीं की। लेखक के इस तरह के व्यवहार से दुःखी होकर उनकी जीजी भी नाराज हो गई, उन्हें भी गुस्सा आ गया लेकिन उनका गुस्सा ज्यादा देर तक नहीं रहा और वे लेखक से प्रेमपूर्वक कहने लगी।

विशेष :

1. लेखक ने अपने और जीजी के मध्य के प्रेमपूर्वक संबंध को बताया है।

2. भाषा सरल-सहज व प्रवाहमय है। 'मुँह फुलाना' लोकोक्ति का प्रयोग हुआ है।

5. "देख भइया रूठ मत। मेरी बात सुन। यह सब अंधविश्वास नहीं है। हम इन्हें पानी नहीं देंगे तो इंद्र भगवान हमें पानी कैसे देंगे?" मैं कुछ नहीं बोला। फिर जीजी बोली, "तू इसे पानी की बरबादी समझता है पर यह बरबादी नहीं है। यह पानी का अर्घ्य चढ़ाते हैं, जो चीज मनुष्य पाना चाहता है उसे पहले देगा नहीं तो पाएगा कैसे? इसलिए ऋषि-मुनियों ने दान को सबसे ऊँचा स्थान दिया है।"

कठिन-शब्दार्थ :

अर्घ्य = जल चढ़ाना।

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश धर्मवीर भारती द्वारा लिखित संस्मरण 'काले मेघा पानी दे' से लिया गया है। इस प्रसंग में लेखक की जीजी दान के महत्त्व को समझाकर कह रही है।

व्याख्या - इन्द्र सेना पर पानी फेंकने की बर्बादी को लकर जब लेखक नाराज थे तब उनकी बहन उन्हें समझाती है कि तुम नाराज मत हो, मेरी बात को ध्यान से सुनो। यह सब करना अन्धविश्वास नहीं है। इन्द्र सेना पर पानी फेंकना तू पानी की बर्बादी समझता है पर यह बर्बादी नहीं है। इसे पानी का अर्घ्य चढ़ाना कहते हैं। जिस प्रकार किसी चीज को प्राप्त करने के लिए पहले उसे देना पड़ता है तभी वह प्राप्त कर पायेगा।

अगर आप प्रेम-स्नेह देंगे तो आपको भी प्रेम और स्नेह ही मिलेगा और अगर आप घृणा-नफरत देंगे तो प्रतिफल में आपको भी घृणा-नफरत ही प्राप्त होगी। इसलिए अगर हम जल चढ़ा रहे हैं तो हमें भी वर्षा द्वारा जल प्राप्त होगा। यह हमारी आस्था और विश्वास है। इसलिए ऋषि-मुनियों ने भी दान-प्रवृत्ति को सबसे ऊँचा स्थान दिया है। दान दिया हुआ व्यर्थ न जाकर आपको प्रतिफल के रूप में अवश्य प्राप्त होता है।

विशेष :

1. लेखक ने अपनी जीजी के कथन द्वारा दान का महत्त्व प्रतिपादित किया है।

2. भाषा सरल-सहज व सारगर्भित है।

6. बिना त्याग के दान नहीं होता। अगर तेरे पास लाखों-करोड़ों रुपये हैं और उसमें से तू दो-चार रुपये किसी को दे दे तो यह क्या त्याग हुआ। त्याग तो वह होता है कि जो चीज तेरे पास भी कम है, जिसकी तुझको भी जरूरत है तो अपनी जरूरत पीछे रख कर दूसरे के कल्याण के लिए उसे दे दो तो त्याग वह होता है, दान तो वह होता है, उसी का फल मिलता है।"

प्रसंग - प्रस्तुत गद्यांश धर्मवीर भारती द्वारा लिखित संस्मरण 'काले मेघा पानी दे' से लिया गया है। इसमें लेखक ने अपनी जीजी के कथनों द्वारा दान व त्याग की महिमा पर प्रकाश डाला है।

व्याख्या - लेखक ने बताया कि दान करने की बात पर नाराज होने पर उनकी जीजी कहती है कि दान का बिना त्याग के दान नहीं होता है। अगर तेरे पास लाखों-करोड़ों रुपये हैं उसमें से थोड़े-बहुत रुपये अगर किसी को दे दिया जाये तो वह दान नहीं कहलाता है और न ही वह त्याग क है जो चीज तेरे पास भी कम है अर्थात् तुझे भी उस वस्तु की, उस पैसे की अधिक जरूरत है, तब तुम उस जरूरत को पीछे रखकर या अपनी जरूरत पूरी न करके दूसरे के कल्याण के लिए, उसके अच्छे के लिए दे दो तो वह त्याग कहलाता है।

और असली दान भी वही कहलाता है और उसी दान या त्याग का ही फल मनुष्य को मिलता है। लेखक का आशय दान के प्रकार एवं उसके महत्त्व को इस प्रकार समझाना रहा है कि मनुष्य के पास कम होते हुए भी अपने स्वार्थ को पीछे छोड़ दूसरों के भले के लिए किया गया कार्य ही परमार्थ होता है और बिना स्वार्थ के किये गए परमार्थ का फल अच्छा ही मिलता है।

विशेष :

1. लेखक ने दान व त्याग में समानता व अर्थ स्पष्ट किया है।

2. भाषा सरल-सहज व अर्थ युक्त है।

7. एक बात देखी है कि अगर तीस-चालीस मन गेहूँ उगाना है तो किसान पाँच-छह सेर अच्छा गेहूँ अपने पास से लेकर जमीन में क्यारियाँ बना कर फेंक देता है। उसे बुवाई कहते हैं। यह जो सूखे हम अपने घर का पानी इन पर फेंकते हैं वह भी बुवाई है। यह पानी गली में बोएँगे तो सारे शहर, कस्बा, गाँव पर पानी वाले बादलों की फसल आ जाएगी। हम बीज बनाकर पानी देते हैं, फिर काले मेघा से पानी माँगते हैं। सब ऋषि-मुनि कह गए हैं कि पहले खुद दो तब देवता तुम्हें चौगुना-अठगुना करके लौटाएँगे भइया, यह तो हर आदमी का आचरण है, जिससे सबका आचरण बनता है। यथा राजा तथा प्रजा सिर्फ यही सच नहीं है। सच यह भी है कि यथा प्रजा तथा राजा।

कठिन-शब्दार्थ -

मन = चालीस किलो।

सेर = किलो।

प्रसंग - प्रस्तुत गद्यांश धर्मवीर भारती द्वारा लिखित संस्मरण 'काले मेघा पानी दे' से लिया गया है। दान के महत्त्व को लेखक ने जीजी के शब्दों द्वारा समझाया है।

व्याख्या - लेखक ने बताया कि उनकी जीजी ने दान का महत्त्व बताते हुए कहा कि हमेशा एक बात देखी है और उसी से सीखा है कि अगर तीस-चालीस मन गेहूँ खेतों में से चाहिए तो उसके लिए किसान पाँच-छः किलो अच्छा गेहूँ अपने पास से लेकर खेत की जमीन में क्यारियाँ बना कर फेंकता है। और उसे बुवाई कहते हैं। उसी प्रकार हम सूखे अर्थात् पानी के अभाव में भी अपने घर का पानी इन पर फेंकते हैं तो वह भी बुवाई है। हम यह पानी गली में बोयेंगे अर्थात् फेंकेगे तभी तो सारे शहर, कस्बा और गाँवों में बादलों की फसल उगेगी जिससे अनाज रूपी पानी हम सबको मिलेगा।

हम बीज बनाकर पानी देते हैं, काले बादलों से पानी माँगते हैं। इसीलिए सभी ऋषि-मुनि कह गये हैं कि पहले खुद दो तब देवता भी तुम्हें उसका चार गुणा-आठ गुणा करके वापस कर देंगे। यह तो आदमी का स्वयं का व्यवहार है। जिसे देखकर ही सबका व्यवहार बनता है। जैसा राजा वैसी ही प्रजा सिर्फ यही कहावत सही नहीं है।

आशय है कि जैसा राजा का व्यवहार होता है वैसी ही उसकी प्रजा होती है बल्कि यह बात भी आजकल उतनी ही सत्य है कि जैसी प्रजा होती है उसका स्वामी अर्थात् राजा भी वैसा ही होता है। लेखक की बहन का बताने का आशय सिर्फ इतना है कि आपका व्यवहार, आपका आचरण जैसा होगा, सामने वाला भी वैसा ही व्यवहार एवं आचरण आपके साथ करेगा।

विशेष :

1. लेखक ने जीजी के कथन के माध्यम से व्यक्ति के आचरण पर प्रकाश डाला है कि व्यक्ति को जो कुछ भी प्राप्त होता है वह उसके स्वयं के आचरण का प्रतिफल है।

2. भाषा सरल-सुबोध एवं अर्थगाम्भीर्य युक्त है।

8. हम आज देश के लिए करते क्या हैं? माँगें हर क्षेत्र में बड़ी-बड़ी हैं पर त्याग का कहीं नाम-निशान नहीं है। अपना स्वार्थ आज एकमात्र लक्ष्य रह गया है। हम चटखारे लेकर इसके या उसके भ्रष्टाचार की बातें करते हैं पर क्या कभी हमने जाँचा है कि अपने स्तर पर अपने दायरे में हम उसी भ्रष्टाचार के अंग तो नहीं बन रहे हैं? काले मेघा दल के दल उमड़ते हैं, पानी झमाझम बरसता है, पर गगरी फूटी की फूटी रह जाती है, बैल पियासे के पियासे रह जाते हैं? आखिर कब बदलेगी यह स्थिति?

कठिन-शब्दार्थ-

चटखारा = रुचि लेना।

दायरा = सीमा।

दल = समूह।

गगरी = घड़ा।

पियासा = प्यासा।

प्रसंग - प्रस्तुत गद्यांश धर्मवीर भारती द्वारा लिखित संस्मरण 'काले मेघा पानी दे' से लिया गया है। इस प्रसंग में लेखक ने मनुष्य की स्वार्थी प्रवृत्ति पर चोट करते हुए देश में व्याप्त भ्रष्टाचार पर व्यंग्य किया है। को अपनी जीजी की बात आज भी उसी सन्दर्भ में याद है। वे कहते हैं कि हम अपने देश के लिए क्या करते हैं? हर क्षेत्र में बड़ी-बड़ी माँगें हैं, जरूरतें हैं पर त्याग का कहीं कोई नामो-निशान नहीं है। अपना हित, अपना स्वार्थ सभी के लिए केवल उद्देश्य रह गया है। देश में चल रहे भ्रष्टाचार पर हम सब मिलकर बातें करते हैं।

बढ़ चढ़ कर उन बातों में हिस्सा लेते हैं। पर हमने कभी स्वयं को परखने की कोशिश नहीं की कि क्या हम भी उसी स्वार्थ, उसी भ्रष्टाचार की श्रेणी में तो नहीं आ रहे हैं? कहने का आशय है कि अपने स्तर पर अपने आपको परखने की जरूरत है कि हम भी कहीं जाने-अनजाने भ्रष्टाचार को बढ़ावा तो नहीं दे रहे हैं।

लेखक कहते हैं कि काले बादल खूब आते हैं, खूब बरसते भी हैं लेकिन फिर भी गगरी खाली और बैल प्यासा रह जाता है। आशय है कि सरकारी नीतियाँ गरीबों को जरूरतों के लिए खूब बनती हैं, क्रियान्विति भी होती हैं लेकिन उनका लाभ उन्हें नहीं मिल पाता है। स्वार्थ और भ्रष्टाचार में लिप्त लोग उन लाभों को जनता तक पहुँचने ही नहीं देते हैं।

विशेष :

1. लेखक ने देश में फैली भ्रष्टाचार की नीति एवं अराजकता के विषय में चिन्तन व्यक्त किया है। वे दुःखी हैं इस तरह की स्वार्थी नीतियों से।

2. भाषा सरल-सुबोध तथा आक्षेपपूर्ण है। 'चटखारे लेना' जैसी कहावतों का प्रयोग हुआ है।

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