12th आरोह 7. सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' (बादल राग)

12th आरोह 7. सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' (बादल राग)

12th आरोह 7. सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' (बादल राग)

कविता के साथ

प्रश्न 1. 'अस्थिर सुख पर दुःख की छाया' पंक्ति में 'दुःख की छाया' किसे कहा गया है और क्यों?

उत्तर : पूँजीपतियों के द्वारा सामान्य लोगों एवं किसानों का शोषण किया जाता है। इस कारण पूँजीपतियों के पास पर्याप्त सुख के साधन होते हैं। सामाजिक क्रान्ति से वे सदैव डरते हैं, क्रान्ति आने से सब कुछ परिवर्तित हो जाएगा। अतएव क्रान्ति या विनाश की आशंका को उनके सुख पर दुःख की छाया बताया गया है।

प्रश्न 2. 'अशनि-पात से शापित उन्नत शत-शत वीर' पंक्ति में किसकी ओर संकेत किया गया है?

उत्तर : इस पंक्ति में क्रान्ति के विरोधी एवं स्वार्थी पूँजीपतियों-शोषकों की ओर संकेत किया गया है। जिस प्रकार बरसात में बिजली गिरने से बड़े-बड़े वृक्ष धराशायी हो जाते हैं, पर्वतों की चोटियाँ खण्डित हो जाती हैं, उसी प्रकार - क्रान्ति होने से बड़े-बड़े पूँजीपतियों का गर्व चूर-चूर हो जाता है और धन-सम्पन्न लोग भी धराशायी हो जाते हैं। इस - प्रकार इसमें क्रान्ति के प्रभाव की ओर संकेत हुआ है।

प्रश्न 3. 'विप्लव-रव से छोटे ही हैं शोभा पाते' पंक्ति में 'विप्लव-रव' से क्या तात्पर्य है? 'छोटे ही हैं शोभा पाते' ऐसा क्यों कहा गया है?

उत्तर : 'विप्लव-रव' का आशय क्रान्ति का स्वर है। जब क्रान्ति होती है, तो उसका सबसे अधिक लाभ छोटे लोगों अर्थात् शोषित गरीबों को मिलता है। क्रान्ति की उथल-पुथल से सम्पन्न लोगों का सब कुछ छिन जाता है और छोटे लोग लाभान्वित रहते हैं। इसी आशय से कवि ने 'छोटे ही शोभा पाते' कहा है।

 प्रश्न 4. बादलों के आगमन से प्रकृति में होने वाले किन-किन परिवर्तनों को कविता रेखांकित करती है?

उत्तर : बादलों के आगमन से प्रकति में अनेक परिवर्तन आ जाते हैं। बादलों की गर्जना से, बिजली कडकने और मूसलाधार बरसने से भय का वातावरण बन जाता है। बिजली गिरने से बड़े-बड़े लता-वृक्ष धराशायी हो जाते हैं, बाढ़ आ जाती है, विनाश का दृश्य भी दिखाई देता है, लेकिन एक लाभ होता है छोटे-छोटे पौधे एवं खेतों की हरियाली लहराने लगती है। कमल खिल जाते हैं तथा धरती अंकुरित हो जाती है। सारी प्रकृति में परिवर्तन आ जाता है।

व्याख्या कीजिए

1. तिरती है समीर-सागर पर

अस्थिर सुख पर दुःख की छाया -

जग के दग्ध हृदय पर

निर्दय विप्लव की प्लावित माया -

2. अट्टालिका नहीं है रे

आतंक-भवन

सदा पंक, पर ही होता

जल-विप्लव-प्लावन

उत्तर : कविता का भावार्थ भाग देखिए।

कला की बात

प्रश्न 1. पूरी कविता में प्रकृति का मानवीकरण किया गया है। आपको प्रकृति का कौन-सा मानवीय रूप पसंद आया और क्यों?

उत्तर : प्रस्तुत कविता में प्रकृति पर मानव-व्यापारों का आरोप कर मानवीकरण किया गया है। वैसे इसमें प्रकृति के अनेक मानवीय रूप चित्रित हैं, परन्तु हमें उसका यह रूप पसन्द में आया-

हँसते हैं छोटे पौधे लघुभार

शस्य अपार . हिल-हिल

खिल-खिल . .

हाथ हिलाते

तुझे बुलाते. . इस अंश में छोटे पौधों को शोषित वर्ग का प्रतीक बताया गया है। वे बादल रूपी क्रान्ति के आने की सम्भावना से हँसते हैं और खुश होकर उसे हाथ हिला-हिलाकर बुलाते हैं। कवि की मानवीकरण की यह कल्पना मनोरम है।

प्रश्न 2. कविता में रूपक अलंकार का प्रयोग कहाँ-कहाँ हुआ है? सम्बन्धित वाक्यांश को छाँटकर लिखिए।

उत्तर : रूपक अलंकार का प्रयोग

तिरती है समीर-सागर पर 

अट्टालिका नहीं है रे आतंक-भवन

यह तेरी रण-तरी

भेरी-गर्जन से सजग सुप्त अंकुर

ऐ जीवन के पारावार!

प्रश्न 3. इस कविता में बादल के लिए 'ऐ विप्लव के वीर!, ऐ जीवन के पारावार!' जैसे संबोधनों का इस्तेमाल किया गया है। बादल राग' कविता के शेष पाँच खण्डों में भी कई सम्बोधनों का इस्तेमाल किया गया है। जैसे - अरे वर्ष के हर्ष!, मेरे पागल बादल!, ऐ निर्बन्ध!, ऐ स्वच्छंद!, ऐ उद्दाम!, ऐ सम्राट!, ऐ विप्लव के प्लावन!, ऐ अनंत के चंचल शिशु सुकुमार! उपर्युक्त संबोधनों की व्याख्या करें तथा बताएँ कि बादल के लिए इन संबोधनों का क्या औचित्य है?

उत्तर : अरे वर्ष के हर्ष - बादल वर्ष-भर में वर्षा-ऋतु में मूसलाधार बरस कर धरती को हरा-भरा बनाते हैं। इसलिए यह सम्बोधन उचित है।

मेरे पागल बादल - बादल आकाश में अपनी स्वच्छन्द गति से मण्डराते रहते हैं, स्वेच्छा से गरजते एवं मस्त बने रहते हैं। यह कथन बादलों की मस्त चाल के लिए उचित है।

ऐ निर्बन्ध - बादल सर्वथा स्वच्छन्द होते हैं। वे किसी के बन्धन या नियन्त्रण में नहीं रहते हैं। इसलिए इन्हें निर्बन्ध अर्थात् बंधनमुक्त कहा है।

ऐ उद्दाम - बादल पूर्णतया निरंकुश और असीमित आकाश में उमड़ते-घुमड़ते हुए घनघोर गर्जना करते रहते हैं। इन पर किसी का अधिकार नहीं होता है।

ऐ विप्लव के प्लावन - बादलों के मूसलाधार बरसने से विनाशकारी बाढ़ भी आ जाती है। यह सम्बोधन ‘उचित है।

ऐ अनन्त के चंचल शिशु सुकुमार - बादल चंचल शिशु की तरह सुकुमार भी होते हैं, नटखट बच्चों की तरह मचलते हैं। प्रकृति के चंचल शिशु-समान है। अतः यह सम्बोधन उचित है।

प्रश्न 4. कवि बादलों को किस रूप में देखता है? कालिदास ने मेघदूत काव्य में मेघों को दूत के रूप में देखा। आप अपना कोई काल्पनिक बिम्ब दीजिए।

उत्तर : कवि बादलों को सामाजिक परिवर्तन लाने वाले क्रान्ति प्रवर्तक के रूप में देखता है। क्रान्ति के आगमन से शोषित वर्ग का हित होता है। महाकवि कालिदास ने अपने खण्ड-काव्य 'मेघदूत' में बादलों को यक्ष के दूत रूप में चित्रित किया है।

मैं बादल को किसानों के मसीहा के रूप में देखता हूँ।

कब आएगा बादल नभ में

बूँद- बूँद को अन्न ये तरसे

अब तू बरखा लाएगा

इनका जीवन सफल कर जाएगा

प्रश्न 5. कविता को प्रभावी बनाने के लिए कवि विशेषणों का सायास प्रयोग करता है जैसे - अस्थिर सुख। सुख के साथ अस्थिर विशेषण के प्रयोग ने सुख के अर्थ में विशेष प्रभाव पैदा कर दिया है। ऐसे अन्य विशेषणों को कविता से छाँटकर लिखें तथा बताएँ कि ऐसे शब्द-पदों के प्रयोग से कविता के अर्थ में क्या विशेष प्रभाव पैदा हुआ है।

उत्तर :

दग्ध-हृदय - 'दग्ध' विशेषण लगने से दु:ख सन्ताप की अधिकता व्यक्त हो रही है।

निर्दय विप्लव - 'निर्दय' विशेषण लगने से विप्लव को अधिक क्रूर और हृदयहीन व्यंजित किया गया है।

सुप्त अंकुर - 'सुप्त' विशेषण से अंकुरों को मिट्टी के अन्दर दबा हुआ बताया गया है।

घोर वज्र-हुँकार - 'वज्र' के साथ 'घोर' व 'हुँकार' के प्रयोग से उसकी भयानकता का प्रभाव व्यक्त हुआ है।

अचल-शरीर - 'अचल' विशेषण से शरीर की घायल दशा को व्यक्त किया गया है। जो हिल-डुल नहीं सकता है।

रुद्ध कोष - 'रुद्ध' विशेषण से खजानों की सुरक्षा व्यक्त हुई है। अर्थात् रुका हुआ, संरक्षित कोष।

आतंक-भवन - भवन को उसकी ऊँचाइयों के कारण आतंक-भय का स्थान बताने के लिए 'आतंक' विशेषण प्रयुक्त हुआ है।

बुलाता कृषक अधीर - इसमें अधीर' विशेषण से कृषक की आकुलता एवं व्यथा की व्यंजना हुई है। जो वर्षों से बदलाव की वर्षा के लिए हषित (प्यासा) है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. "अट्टालिका नहीं है रे आतंक-भवन।"'बादल राग' की इस पंक्ति में भाव क्या है?"

उत्तर : कवि कहता है कि धनिक-वर्ग की यह अट्टालिका सुख-सुविधा देने वाली न होकर गरीबों का शोषण करके उन पर आतंक फैलाने वाली या आतंक की प्रतीक है। इनकी ऊँचाइयाँ ही गरीबों में भय उत्पन्न करती हैं।

प्रश्न 2. 'अशनि-पात से शापित, उन्नत शत-शत वीर',-'बादल-राग' कविता में बादलों को 'अशनि-पात से शापित, उन्नत शत-शत वीर' कहने का क्या तात्पर्य है?

उत्तर : बरसात में बिजली गिरने से जैसे बड़े-बड़े वृक्ष धराशायी हो जाते हैं, उसी प्रकार क्रान्ति से सैकड़ों पूँजीपतियों एवं शोषक वर्ग के बड़े लोगों का सर्वनाश होता है। इसका तात्पर्य सामाजिक परिवर्तन की व्यंजना करना है।

प्रश्न 3. "तुझे बुलाता कृषक अधीर, ऐ विप्लव के वीर" कवि निराला ने 'विप्लव का वीर' किसे कहा है? और क्यों? .

उत्तर : कवि निराला ने बादलों को विप्लव का वीर कहा है। क्योंकि वे लगातार उमड़-घुमड़कर बिजली गिराते हैं तथा बड़े-बड़े वृक्षों एवं पर्वत-शिखरों को अपनी शक्ति से धराशायी करते हैं। उनसे छोटे-छोटे पौधों को उगने और बढ़ने का अवसर मिलता है।

प्रश्न 4. निराला की 'बादल राग' कविता का प्रतिपाद्य स्पष्ट कीजिए।

उत्तर : निराला की 'बादल राग' कविता का प्रतिपाद्य शोषित-पीड़ित कृषकों-श्रमिकों के जीवन में परिवर्तन लाने तथा सामाजिक क्रान्ति के द्वारा पूँजीपतियों के शोषित आचरण का विरोध करना है। इसमें सामाजिक क्रान्ति एवं बदलाव का सन्देश दिया गया है।

प्रश्न 5.'हँसते हैं छोटे पौधे लघुभार'-इसका आशय स्पष्ट कीजिए।

उत्तर : बादलों के बरसने से छोटे-छोटे पौधों का विकास होता है। इसी प्रकार सामाजिक क्रान्ति से दलित शोषित वर्ग के लोग प्रसन्न होते हैं और पूँजीपतियों का दमन होने से गरीबों एवं निम्न वर्ग को सामाजिक परिवर्तन का लाभ मिलने लगता है।

प्रश्न 6. 'सुप्त अंकुर उर में पृथ्वी के, ताक रहे'-इससे कवि ने क्या व्यंजना की है?

उत्तर : बादलों के बरसने से अंकुर धरती से बाहर आकर पल्लवित-पुष्पित होकर जीवन का लाभ प्राप्त कर सकेगा। इस कथन से कवि ने व्यंजना की है कि क्रान्ति आने से समाज में दबे शोषित-पीड़ित लोग उन्नति की आशा लगाये हुए बैठे हैं।

प्रश्न 7. विप्लव के बादल का आह्वान समाज का कौनसा वर्ग करता है और क्यों?

उत्तर : विप्लव के बादल का आह्वान समाज का शोषित-पीड़ित वर्ग तथा श्रमिक-कृषक वर्ग करता है, क्योंकि वह पूँजीपतियों एवं सम्पन्न लोगों के अत्याचारों एवं शोषण से पीड़ित रहता है। इसलिए वह शोषण-उत्पीड़न से छुटकारा पाना चाहता है।

प्रश्न 8. विप्लवी बादल की युद्ध-नौका की क्या विशेषता बतायी गयी है?

उत्तर : विप्लवी बादल की युद्ध-नौका पवन रूपी सागर में तैरती है और शोषित वर्ग की आशाओं एवं आकांक्षाओं रूपी सामग्री से भरी रहती है। वह सामाजिक परिवर्तन के लिए शान्ति के मार्ग पर सुख-दुःख की छाया बनकर मंडराती रहती है।

प्रश्न 9. 'ऐ जीवन के पारावार'-बादल के लिए ऐसा क्यों कहा गया है?

उत्तर : बादल समय-समय पर जल-वर्षण करके संसार को नव-जीवन प्रदान करता है, सभी प्राणियों के जीवन ण-संवर्धन करता है। इसी विशेषता के कारण बादल को जीवन का पारावार कहा गया है। अर्थात जीवन दान देने वाला समुद्र कहा गया है।

प्रश्न 10. 'रुद्ध कोष है क्षुब्ध तोष'-इससे कवि का क्या आशय है?

उत्तर : इससे कवि का आशय है कि धनवानों के पास अपार धन है, परन्तु उसका सामाजिक उपयोग नहीं हो रहा है, वह तालों में बन्द है। सामाजिक विषमता से अशान्ति फैल रही है जिससे जनता में क्षुब्धता (असन्तोषता) फैल रही है।

प्रश्न 11. 'चूस लिया है उसका सार'-इस पंक्ति से क्या तात्पर्य है?

उत्तर : इसका तात्पर्य है कि धनवानों ने दलित-कृषकों एवं शोषितों का भरपूर शोषण कर लिया है। उन्होंने गरीबों के सुख-चैन, शारीरिक शक्ति, आशा-आकांक्षा आदि सभी का सार चूस लिया है। शोषण होने से गरीबों के पास कुछ नहीं बचा है।

प्रश्न 12. बादल के वज्र-गर्जन से धनी-वर्ग पर क्या प्रभाव पड़ता है? 'बादल राग' कविता के आधार पर बताइये।

उत्तर : बादल के वज्र-गर्जन से धनी-वर्ग काँपने लगता है । क्रान्ति के उद्घोष से धनी वर्ग अपने विनाश और पतन आदि के भय से ग्रस्त रहते हैं तथा अपनी सुन्दर स्त्री के अंगों से लिपट जाते हैं, मुख-नेत्र ढाँप लेते हैं।

प्रश्न 13. 'जीर्ण बाहु है शीर्ण शरीर'-इससे क्या व्यंजना की गई है? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर : इससे व्यंजना की गई है कि समय पर वर्षा न होने से तथा धनिकों के शोषण-उत्पीड़न से कृषक-श्रमिक हाड़ मात्र रह जाते हैं। उनकी बाँहें कमजोर तथा शरीर दुर्बल हो गए हैं। जिससे उनकी शारीरिक एवं मानसिक स्थिति चिन्तनीय बनी रहती है और वे बादल रूपी क्रान्ति की आशा में रहते हैं।

प्रश्न 14. 'गगन-स्पर्शी स्पर्द्धा-धीर'-इसका आशय 'बादल राग' कविता के आधार पर बताइए।

उत्तर : कवि बादल को सामाजिक क्रान्ति का प्रतीक बताते हुए कहता है कि बादल आकाश में बार-बार गिरकर ऊँचाइयों का स्पर्श करते हैं। उनमें गर्जन-तर्जन तथा ऊपर उठकर वर्षा करने की होड़ लगी रहती है। वे क्रान्ति लाने के लिए तैयार रहते हैं।

प्रश्न 15. 'विप्लव-रव से छोटे ही हैं शोभा पाते।' इससे कवि ने क्या व्यंजना की है?

उत्तर : तेज वर्षा से भी छोटे पौधों व घास का कुछ नहीं बिगड़ता है। इसी प्रकार सामाजिक क्रान्ति से दलित शोषित लोगों का ही हित होता है। इससे उन्हें उन्नति एवं प्रगति का नया क्षेत्र मिलता है। उनका कुछ भी नष्ट न होकर कल्याण ही होता है।

प्रश्न 16. 'हृदय थाम लेता संसार'-संसार किस कारण हृदय थाम लेता है?

उत्तर : जब बादल-राग के रूप में सामाजिक क्रान्ति का स्वर सुनाई देता है तथा क्रान्ति के कारण बड़े धनवानों का पतन होने लगता है, तब संसार भय के कारण हृदय थाम लेता है और वह भविष्य के प्रति चिन्तित हो जाता है।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1. 'बादल राग' कविता के प्रतिपाद्य अथवा उद्देश्य पर प्रकाश डालिए।

अथवा

'बादल-राग' कविता में निराला ने किस वर्ग के प्रति व्यंजनापूर्ण भावाभिव्यक्ति का चित्रण किया है? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर : 'बादल राग' कविता सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की क्रांतिकारी भावों से पूरित कविता है। इसमें कवि ने बादलों को क्रांति का प्रतीक माना है। जिस प्रकार सूखी-उजाड़ प्यासी धरती को बादल वर्षा द्वारा संचित कर तृप्त करते हैं। भूखे गरीब किसान व मजदूरों की आशाओं का संबल बनते हैं। गरज-बरस कर नव जीवन की शुरुआत करते हैं। ठीक उसी तरह कवि ने शोषित वर्ग के हित में बादलों का आह्वान किया है।

क्रांति के प्रतीक बादलों की गर्जना सुनकर पूँजी वर्ग भयभीत हो जाता है। जबकि कृषक-वर्ग आशा भरे नेत्रों से देखते हैं। बड़े-बड़े धनिक अपने ऊँचे भवनों से आतंक फैलाने का प्रयास करते हैं पर क्रांति के स्वर उन्हें ही कंपित कर देते हैं। इस क्रांति की बाढ़ में शोषित वर्ग ही लाभान्वित होता है। अतः समाज में शोषितों को उनका अधिकार दिलाने हेतु क्रांति की आवश्यकता है। इस मूल स्वर को प्रकट करते हए कवि ने सामाजिक एवं आर्थिक वैषम्य का यथार्थ चित्रण किया है। शोषकों के प्रति व्यंजनापूर्ण भावों की  अभिव्यक्ति कर आर्थिक विषमता मिटाने पर जोर दिया है।

प्रश्न 2. निराला द्वारा रचित कविता 'बादल-राग' शीर्षक की सार्थकता या औचित्य सिद्ध कीजिए।

उत्तर : कवि निराला को वर्षा-ऋतु अधिक आकर्षित करती है। क्योंकि बादलों के भीतर सृजन की ताकत और ध्वंस का सामर्थ्य रहता है। ये बादलों को क्रांति-दूत मानते हैं। बादल शोषित वर्ग के हितैषी होते हैं। बादलों की क्रांति का लाभ दबे-कुचले लोगों को मिलता है। बादलों के आने से नए पौधे हर्षित होते हैं। बादलों द्वारा की गई घनघोर वर्षा से बुराई रूपी कीचड़ साफ हो जाता है तथा आम-व्यक्ति को जीने योग्य स्थिति मिलती है।

इस कविता ने लघु-मानव की खुशहाली का राग गाया है। किसानों व मजदूरों की आकांक्षाएँ बादल को नवनिर्माण के राग के रूप में पुकार रही हैं। और क्रांति सदैव वंचितों का प्रतिनिधित्व करती है। इसलिए कवि बादलों को गर्जना के साथ बारिश करने या क्रांति करने को कहता है। अतः कथ्यानुसार यह शीर्षक उपयुक्त तथा उचित, है।

रचनाकार का परिचय सम्बन्धी प्रश्न

प्रश्न 1. कवि.सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर पूर्ण प्रकाश डालिए।

उत्तर : महाप्राण कवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का जन्म सन् 1899 में बंगाल राज्य के मेदिनीपुर ग्राम में हुआ था। जब ये तीन वर्ष के थे इनकी माता का देहान्त हो चुका था। इन्होंने स्कूली शिक्षा अधिक प्राप्त नहीं की लेकिन स्वाध्याय से अनेक भाषाओं का ज्ञान प्राप्त किया। कविता को नया स्वर देने वाले निराला छायावाद के ऐसे कवि हैं जो एक ओर कबीर परम्परा से जुड़ते हैं तथा दूसरी ओर समकालीन कवियों के प्रेरणा-स्रोत भी हैं।

इनके द्वारा लिखे गए अनामिका, परिमल, गीतिका, बेला, नए पत्ते, अणिमा तुलसीदास, कुकुरमुत्ता (काव्य-संग्रह); चतुरी चमार, प्रभावती बिल्लेसुर बकरिहा, काले कारनामे (गद्य) आदि। समन्वय, मतवाला पत्रिका का सम्पादन भी इन्होंने किया। विषयों और भावों की तरह भाषा की दृष्टि से भी निराला की कविता के कई रंग हैं। मुक्त छंद की रचना करने वाले कवि काव्य विषय और युग की सीमाओं का भी अतिक्रमण करते हैं। साहित्य सेवा करते हुए सन् 1961 में इलाहाबाद में इनका देहान्त हुआ।

बादल राग

सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला'

कवि परिचय - छायावादी कवियों में सबसे विलक्षण प्रतिभा के धनी सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' का जन्म | बंगाल के मेदिनीपुर जिले के महिषादल नामक स्थान पर सन् 1899 ई. में हुआ था। इनकी शिक्षा मैट्रिक तक ही हो सकी। अल्पायु में इनका विवाह हुआ। पिता की मृत्यु से मेदिनीपुर रियासत में नौकरी प्रारम्भ की, परन्तु बाईस वर्ष की आयु में पत्नी का निधन हुआ। इस तरह व्यथित-पीड़ित होकर निरालाजी अपने पैतृक गाँव गढ़कोला (उन्नाव, उत्तरप्रदेश) लौट आये। फिर ये लखनऊ और इलाहाबाद में रहकर साहित्य-सर्जना करते रहे।

निरालाजी ऐसे युगान्तकारी कवि थे। इनकी कविता में तत्कालीन समाज की पीड़ा, परतन्त्रता, कुण्ठा आदि के प्रति आक्रोश की, अन्याय तथा असमता के प्रति गहरे विद्रोह की एवं विषम परिस्थितियों में संघर्ष करते रहने की गूंज सुनाई देती है। बंगला, हिन्दी, अंग्रेजी के साथ संस्कृत पर इनका असाधारण अधिकार था और दर्शनशास्त्र के गहन अध्येता थे। निराला म के अनुरूप वस्तुतः निराली प्रतिभा से सम्पन्न थे। इनका देहावसान सन् 1961 ई. में हुआ। निरालाजी ने कविता के साथ उपन्यास, कहानी, आलोचना आदि विधाओं में भी लिखा, परन्तु मूलत: ये कवि थे।

इनकी काव्य-रचनाओं के नाम हैं- 'अनामिका', 'परिमल', 'गीतिका', 'बेला', 'तुलसीदास', 'कुकुरमुत्ता', 'अणिमा', 'अपरा', 'नये पत्ते', 'अर्चना', 'आराधना', 'गीत गूंज', 'सान्ध्य काकली'। इनकी समस्त रचनाओं को आठ खण्डों में 'निराला ग्रन्थावली' नाम से प्रकाशित किया गया है। 'तुलसीदास' और 'राम की शक्ति-पूजा' काव्य उनके गहन चिन्तन, प्रौढ़ता एवं प्रखरता के परिचायक हैं तथा इनमें प्रबन्धात्मकता की सघनता विद्यमान है।

कविता-परिचय-निराला ने 'बादल राग' शीर्षक से छः कविताओं की रचना की है। पाठ्यपुस्तक में उनकी 'बादल राग-6' कविता 'अनामिका' कविता-संग्रह से संकलित है। इस कविता में यद्यपि प्रकृति का चित्रण किया गया है, परन्तु यह उपदेशात्मक है। इसके प्रथम भाग में बादल के कोमल और काम्य रूप का वर्णन किया गया है, परन्तु द्वितीय भाग में बादल को क्रान्तिकारी और अतीव शक्तिशाली चित्रित किया गया है।

इसके द्वारा कवि ने सामहिक क्रान्ति की घोषणा कर जहाँ उसकी अनिवार्यता को संकेतित किया है, वहाँ उसे दलित जनों का सहायक और शोषकों का विनाशकर्ता भी बताया है। इस दृष्टि से बादल को विप्लव का प्रतीक और क्रान्ति का दूत चित्रित कर कविवर निराला ने उसे सामाजिक विसंगतियों एवं विषमताओं का संहारक चित्रित किया है। बादल का गर्जन-तर्जन, अशनिपात, मूसलाधार वर्षण आदि जहाँ प्रकृति में जल-प्रलय मचा देता है, वहाँ वह शोषितों को शोषकों का सामना करने की शक्ति प्रकट करने का सन्देश भी देता है। निराला की यह कविता मूल संवेदना की दृष्टि से अतीव ओजस्वी तथा विशिष्ट है।

सप्रसंग व्याख्याएँ

बादल राग

तिरती है समीर-सागर पर

अस्थिर सुख पर दुःख की छाया

जग के दग्ध हृदय पर

निर्दय विप्लव की प्लावित माया -

यह तेरी रण-तरी

भरी आकांक्षाओं से,

घन, भेरी-गर्जन से सजग सुप्त अंकुर

उर में पृथ्वी के, आशाओं से

नवजीवन की, ऊँचा.कर सिर,

ताक रहे हैं, ऐ विप्लव के बादल!

कठिन-शब्दार्थ :

तिरती = तैरती या विचरण करती।

समीर = वायु।

अस्थिर = क्षणिक।

दग्ध = जला हुआ।

विप्लव = क्रान्ति, विनाश, अशान्ति।

प्लावित = बहा दिया गया।

रण-तरी = युद्ध की नौका।

घन = बादल।

भेरी = नगाड़ा।

उर = हृदय।

नवजीवन = नया जीवन।

प्रसंग - प्रस्तुत काव्यांश कवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला द्वारा लिखित काव्य-संग्रह 'अनामिका' की कविता 'बादल राग' के छठे खण्ड से प्रकाशित है। कवि यहाँ बादल का आह्वान क्रांति के रूप में कर रहे हैं । बादल नव जीवन, नव क्रांति के प्रतीक हैं।

व्याख्या - कवि निराला बादलों को क्रांति के प्रतीक बताते हुए नवजीवन का आह्वान कर रहे हैं। वे कहते हैं कि हे क्रांतिकारी बादल, तुम वायु रूपी सागर के वक्षस्थल पर, विचरण करने वाले, कभी स्थिर न रहने वाले सुखों पर दुःख की छाया बनकर मंडराने वाले परिवर्तनकारी बादल हो। निर्दयी विनाशकारी माया के समान जो इच्छाएँ इस संसार में पूरी तरह से प्लावित (फैली) हैं। तेरी युद्ध की नौका मनुष्यों की (उन्हीं) इच्छाओं और आकांक्षाओं से भरी हुई है।

तेरे बादलों की गर्जन से पृथ्वी के हृदय में नवजीवन की आशा लिए हुए, अपना सिर ऊँचा कर जागृत अवस्था के सुप्त अंकुर तेरे इन क्रांति लाने वाले बादलों की ओर ताक रहे हैं। कवि का भाव है कि किसान, मजदूर की आकांक्षाएँ बादलों को नव-निर्माण के रूप में पुकार रही हैं। बादल जनता के लिए परिवर्तन युग प्रवर्तक के रूप में हैं। उनका बरसना, गरजना नवजीवन की सृष्टि करना है।

विशेष :

1. कवि ने बादलों को क्रांति का प्रतीक बताया है। संसार के दुःखी व निराश हृदय को बादलों की मूसलाधार वर्षा शान्ति-सुख प्रदान करती है।

2. शब्द-बिम्बों का प्रयोग, तत्सम प्रधान ओजस्वी शब्दावली, लक्षणा-व्यंजना का प्रयोग हुआ है।

फिर-फिर

बार-बार गर्जन

वर्षण है मूसलधार

हृदय थाम लेता संसार,

सुन-सुन घोर वज्र-हुंकार।

अशनि-पात से शापित उन्नत शत-शत वीर,

क्षत-विक्षत हंत अचल-शरीर,

गगन-स्पर्शी स्पर्धा धीर।

कठिन-शब्दार्थ :

वर्षण = बरसना।

वज्र-हुंकार = वज्र के प्रहार से होने वाली भीषण आवाज।

अशनि-पात = बिजली का चमकना या गिरना।

शापित = शापग्रस्त।

क्षत-विक्षत = घायल।

हत = मरे हुए।

स्पर्द्धा = आगे बढ़ने की होड़।

प्रसंग - प्रस्तुत काव्यांश कवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला द्वारा लिखित काव्य-संग्रह 'अनामिका' के छठे भाग 'बादल राग' से लिया गया है। निर्धन कृषकों द्वारा बादलों की प्रतीक्षा करते बताया गया है जो परिवर्तन की आकांक्षा व इच्छा लिए क्रांतिकारी बादलों को ताक रहे हैं।

व्याख्या - कवि निराला बादल को विश्व में परिवर्तन लाने की शक्ति से सम्पन्न और क्रान्ति का प्रतीक मानकर उसे सम्बोधित कर कहते हैं कि हे बादल! जब तू बार-बार भीषण गर्जना करते हुए घनघोर रूप से धरती पर वर्षा करता है, तो तेरी बिजली की भयंकर कडक को सनकर भयत्रस्त सांसारिक लोग अर्थात पँजीपति वर्ग के लोग अपना हृदय थाम लेते हैं।

वे घबरा उठते हैं। संकेत यह है कि सामाजिक क्रान्ति के उद्घोष को सुनकर पूँजीपतियों के हृदय भयभीत होने लगते हैं, उन्हें अपनी सत्ता डगमगाती प्रतीत होती है। निराला कहते हैं कि हे वीर बादल! तू अपने बिजली रूपी वज्रपात से ऐसे सैकड़ों लताओं और वृक्षों को सशरीर तोड़ता-फोड़ता हुआ धरती पर सुला देता है, जो अपनी ऊँचाई पर गर्व कर रहे थे और असीम आकाश को छूने की कोशिश कर रहे थे।

इसका प्रतीकार्थ यह है कि समाज का निम्न वर्ग दुःखों से आक्रान्त है। अतएव क्रान्ति से ही उनका उद्धार हो सकता है। सामाजिक परिवर्तन के लिए रण-भेरी का गर्जन अत्यावश्यक है।

विशेष -

1. कवि ने बताया है कि सामाजिक क्रांति आने से दलित-शोषितों को नव-जीवन की आशा होती है।

2. तत्समप्रधान ओजस्वी शब्दावली, मानवीकरण व अनुप्रास अलंकार, शब्द-बिम्बों का प्रयोग हुआ है।

हँसते हैं छोटे पौधे लघुभार

शस्य अपार,

हिल-हिल

खिल-खिल,

हाथ हिलाते,

तुझे बुलाते,

विप्लव-रव से छोटे ही हैं शोभा पाते।

कठिन शब्दार्थ :

शस्य = हरा-भरा।

रवं = आवाज, शोर, कोलाहल।

प्रसंग - प्रस्तुत काव्यांश कवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला द्वारा लिखित काव्य-संग्रह 'अनामिका' के छठे भाग 'बादल राग' से लिया गया है। इसमें कवि ने हरी-भरी धरती व खिलते-फूलते फूलों द्वारा बादल को आह्वान (पुकारा) किया गया है।

व्याख्या - कवि कहता है कि क्रान्ति के वर्षण-गर्जन से पूँजीपति न केवल घबराने लगते हैं, अपितु जीवन को व्यर्थ मानकर धराशायी होने लगते हैं। उन सभी पूँजीपतियों को गर्वोन्नत वृक्षों की भाँति पृथ्वी पर गिरते हुए देखकर छोटे पौधे रूपी दलित वर्ग के लोग हँसते हैं।

वे उनके विनाश से जीवन प्राप्त करते हैं। इसी कारण अत्यधिक हरियाली से प्रसन्न होकर वे अपने पत्ते रूपी हाथों को बार-बार हिलाकर तुम्हें धरती की ओर आने के लिए आमन्त्रित करते हैं। तेरे द्वारा क्रांतिकारी भयंकर ध्वनि करने से दलित वर्ग रूपी छोटे लता-वृक्ष तो प्रसन्न ही होते हैं, वे सदा शोभा भी पाते हैं। दूसरे शब्दों में, क्रांति से निम्न व दलित वर्ग को अपने अधिकार भी प्राप्त होते हैं।

विशेष :

1. कवि प्रगतिवादी दृष्टिकोण के साथ बादलों को क्रांति और विद्रोह का प्रतीक मानते हैं।

2. तत्सम शब्दावली युक्त खड़ी बोली है। ओजस्वी भाषा व मुक्तक छंद का प्रयोग है।

अट्टालिका नहीं है रे

आतंक-भवन

सदा पंक पर ही होता

जल-विप्लव-प्लावन,

क्षुद प्रफुल्ल जलज से

सदा छलकता नीर,

रोग-शोक में भी हँसता है

शैशव का सुकुमार शरीर।

कठिन-शब्दार्थ :

अट्टालिका = अटारी, भव्य-भवनों के ऊपरी कक्ष।

पंक = कीचड़।

प्लावन = बाढ़।

क्षुद्र = छोटा, तुच्छ।

जलज = कमल।

शैशव = बचपन।

नीर = जल।

प्रसंग - प्रस्तुत काव्यांश कवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला द्वारा लिखित काव्य-संग्रह 'अनामिका' के छठे भाग 'बादल राग' से लिया गया है। इसमें कवि ने पूँजीपतियों में क्रांति का भय तथा निर्धन-गरीबों में हर्ष की लहर को वर्णित किया है।

व्याख्या - कवि पूँजीपतियों के बड़े-बड़े भवनों को देखकर कहते हैं कि ये ऊँचे भवन अपनी ऊँचाई द्वारा गरीब व निर्धन लोगों को भयभीत करते हैं। इन भवनों की ऊँचाइयाँ ही उनमें डर भर देती हैं। इन्होंने गरीबों के शोषण से ही ऊँचे भवन निर्मित किये हैं । वर्षा से जो जल-प्लावन (बाढ़) आता है उससे सबसे पहले कीचड़ ही बहता है। छोटे-से कमल के फूल तो उस जल को स्पर्श कर और भी आनन्दित होते हैं।

कहने का भाव है कि कीचड़ पूँजीपतियों का पर्याय तथा कमल उन गरीबों के समान है। गरीबों के बच्चे अत्यन्त कठिन परिस्थितियों में जीने वाले सुकुमार होते हैं। जिन पर प्रकृति का कोई असर नहीं होता बल्कि प्रकृति के विभिन्न रूप को देखकर भी वे सदैव प्रसन्न रहते हैं। गरीब रोग-व्याधि, दुःख-पीड़ा सभी में समान स्थिति में रहता है जबकि पूँजीपति ही सदैव अपने शोषण से उत्पन्न क्रांति के कारण भयभीत रहते हैं।

विशेष :

1. जल-प्लावन में कमल खिलता है अर्थात् कष्टों में भी सामान्य वर्ग प्रसन्न रहता है जैसी विशेषोक्ति प्रस्तुत है।

2. शब्द लघु आकार लिए, तत्सम प्रधान खड़ी बोली है। बिम्बों तथा अलंकारों का प्रयोग है।

रुद्ध कोष है, क्षुब्ध तोष

अंगना-अंग से लिपटे भी

आतंक अंक पर काँप रहे हैं।

धनी, वज्र-गर्जन से बादल!

त्रस्त नयन-मुख ढाँप रहे हैं।

कठिन-शब्दार्थ :

रुद्ध = रोका गया।

कोष = खजाना।

क्षुब्ध = अशान्त।

तोष = सन्तुष्टि।

अंगना-अंक = पत्नी की गोद।

त्रस्त = भयभीत।

प्रसंग - प्रस्तुत काव्यांश कवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला द्वारा लिखित काव्य-संग्रह 'अनामिका' के छठे भाग 'बादल राग' से लिया गया है। इसमें कवि ने बादलों से क्रान्ति का आह्वान किया है कि वे अपनी गर्जना से पूँजीपतियों को आतंकित कर दें।

व्याख्या - कवि निराला कहते हैं कि शोषक-वर्ग का विनाश आवश्यक है। ये सामान्य जनता का शोषण करते हैं। शोषकों एवं पूंजीपतियों ने जनता के अपार धन का शोषण करके उसे अपने खजानों में बन्द कर रखा है। पूँजीपतियों के द्वारा धन का संचय करना एक प्रकार से विनिमय की गति को बन्द करना है। ऐसा करने से गरीब और अधिक गरीब होते जा रहे हैं। पूँजीपतियों को अपार धन-राशि का संचय करके भी सन्तोष नहीं है। वे अपनी सुन्दर स्त्रियों के अंगों से लिपटे रहने पर भी सदा आशंकित-आतंकित रहते हैं।

विशेष :

1. कवि ने बादलों के माध्यम से नव क्रांति की बात की है, जिससे गरीबों एवं शोषितों को न्याय मिल सके, उनकी स्थिति में सुधार हो।

2. संस्कृतनिष्ठ तत्सम शब्दावली, ओजस्वी भाषा तथा प्रवाहमयता है। बिम्बों का सटीक प्रयोग है।

जीर्ण बाहु, है शीर्ण शरीर,

तुझे बुलाता कृषक अधीर,

ऐ विप्लव के वीर!

चूस लिया है उसका सार,

हाड़-मात्र ही है आधार,

ऐ जीवन के पारावार!

कठिन शब्दार्थ :

जीर्ण = पुराना, कमजोर।

शीर्ष = दुर्बल।

हाड़ = हड्डियाँ।

अधीर = व्याकुल।

पारावार = अथाह, समुद्र।

प्रसंग - प्रस्तुत काव्यांश कवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला द्वारा लिखित काव्य-संग्रह 'अनामिका' के छठे भाग 'बादल राग' से लिया गया है। इसमें कवि ने किसानों द्वारा बादलों को बुलाये जाने का वर्णन किया है।

व्याख्या - कवि बादलों को आमन्त्रित करते हुए कहता है कि हे क्रान्ति के बादल! जब तू भयानक रूप में गर्जना करेगा, तब तेरे विद्रोह रूपी रथ की ध्वनि सुनकर पूँजीपति वर्ग भयभीत होकर अपने नेत्रों को और मुख को ढक रहे हैं। अर्थात् क्रांति के स्वर को सुनकर भयभीत व कंपित हो रहे हैं। हे बादल! जीर्ण-जर्जर भुजाओं वाला, दुर्बल शरीर वाला, अर्थात् निरन्तर शोषित रहने और पुष्ट भोजन न पाने से अत्यन्त दुर्बल हाथ-पैरों वाला किसान तुम्हें बड़ी आतुरता से बुला रहा है।

धनिक वर्ग ने किसान का शोषण कर दिया है। इससे उसकी ऐसी बुरी दशा हो गई है। हे नवीन शक्ति और सामाजिक क्रान्ति से सम्पन्न बादल! शोषित कृषक वगे का इतना शोषण हो गया है कि वह अब मात्र हड्डियों का ढाँचा रह गया है, पूँजीपतियों ने उसका सारा जीवन-रस चूस लिया है। हाड़-मांस ही अब उसके जीवन का आधार रह गया है। ऐसी अवस्था में अब तुम ही उसके जीवन-दाता हो। हे जीवन रूपी जल के सागर! तुम्ही ऐसे शोषितों को शोषण से मुक्ति दिलाकर बचा सकते हो, उनके जीवन में अपनी वर्षा रूपी क्रांति से परिवर्तन लाकर संरक्षण प्रदान कर सकते हो।

विशेष :

1. कवि ने किसानों एवं गरीबों की स्थिति बताते हुए क्रांतिदूत बादलों का आह्वान किया है।

2. भाषा संस्कृतप्रधान, ओजस्वी भाव तथा बिम्ब सादृश्यता युक्त है।

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