फणीश्वरनाथ रेणु (संवदिया)
प्रश्न 1. संवदिया की क्या विशेषताएँ हैं और गाँव वालों के मन में संवदिया
की क्या अवधारणा है ?
अथवा
गाँव की मान्यता के अनुसार संवदिया किसे कहा जाता है? उसके स्वभाव की
दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर
: संवाद के प्रत्येक शब्द को याद रखना तथा जिस सुर और स्वर में संवाद सुनाया गया है,
ठीक उसी ढंग से जाकर सुनाना संवदिया की विशेषताएँ हैं। यह सहज काम नहीं है। गाँववालों
की संवदिया के विषय में धारणा है कि निठल्ला. कामचोर और पेट आदमी ही संवदिया का काम
करता है। बिना मजदूरी लिए वह गाँव-गाँव संवाद पहुँचाता है। औरतों की मीठी बोली सुनकर
ही वह उनका संदेशवाहक बन जाता है। हरगोबिन को इसीलिए गाँववाले औरतों का गुलाम कहते
हैं।'
प्रश्न 2. बड़ी हवेली से बुलावा आने पर हरगोबिन के मन में किस प्रकार
की आशंका हुई ?
उत्तर
: बड़ी हवेली से संवदिया हरगोबिन के लिए जब बलावा आया तो उसे आशंका,हई कि जरूर कोई
गप्त संवाद बड़ी बहू को कहीं भिजवाना है जिसकी खबर चाँद-सूरज तक को न हो और जिसे पंछी-परेवा
भी न जानें। अन्यथा आज के जमाने में जब गाँव-गाँव में डाकघर खुल गए हैं तब किसी को
संवदिया के माध्यम से संवाद भिजवाने की क्या जरूरत ?
प्रश्न 3. बड़ी बहुरिया अपने मायके संदेश क्यों भेजना चाहती थी?
उत्तर
: बड़ी बहुरिया के पति की अकाल मृत्यु हो जाने से हवेली की दुर्दशा हो गयी थी। तीनों
देवर शहर जाकर बस गए थे, रैयतों ने जमीन पर दखल कर लिया था। अब बड़ी बहुरिया बहुत कष्ट
में थी, बड़ी हवेली में अकेली रहती थी। उसके खाने-पीने की व्यवस्था भी नहीं हो पाती
थी। उसे कोई उधार भी नहीं देता था, मोदिआइन तगादा करके उसे अपमानित करती थी। बथुआ-साग
खाकर वह कब तक गुजारा करती अतः उसने अपनी माँ के पास संवदिया के द्वारा यह संदेश भिजवाया
कि माँ उसे शीघ्र बुलवा ले, वह भाभी के बच्चों की जूठन खाकर कोने में पड़ी रहेगी। यदि
ऐसा न हुआ तो वह आत्महत्या कर लेगी।
प्रश्न 4. हरगोबिन बड़ी हवेली पहुँचकर अतीत की किन स्मृतियों में खो
जाता है ?
अथवा
'संवदिया' कहानी में हरगोबिन बड़ी हवेली में पहुँचकर अतीत की किन स्मृतियों
में खो जाता है? क्यों?
उत्तर
: हरगोबिन संवदिया बड़ी हवेली पहुँचकर अतीत की स्मृतियों में खो गया। अब यह नाम की
बड़ी हवेली है। पहले यहाँ दिन-रात नौकर-नौकरानियों और जन-मजदूरों की भीड़ लगी रहती
थी और आज बड़ी बहरिया अपने हाथ से सूप में अनाज लेकर फटक रही थी। कभी बड़ी बहुरिया
के हाथों में मेंहदी लगाकर गाँव की नाइन अपने परिवार का पालन-पोषण कर लेती थी और अब
सब काम बड़ी बहरिया को अपने हाथों करना पड़ता था। बड़े भइया के मरते ही सब खेल खत्म
हो गया। शेष बचे तीनों भाइयों में लड़ाई-झगड़ा हुआ, रैयतों ने जमीन पर दखल कर लिया
और अब वे तीनों भाई शहर में जा बसे। बड़ी हवेली में रह गई अकेली बड़ी बहुरिया।
प्रश्न 5. संवाद कहते वक्त बड़ी बहुरिया की आँखें क्यों छलछला आईं
?
उत्तर
: बड़ी बहुरिया जब हरगोबिन को अपनी विपत्ति कथा सुना रही थी तो उसकी आँखें छलछला आईं।
कहाँ तो वह गाँव की जमींदारिन थी, बड़ी हवेली की मालकिन थी और कहाँ अब ऐसे बुरे दिन
आए कि उसका गुजारा भी कठिन हो खाकर भख मिटाती थी। वह भाभी के बच्चों की जठन खाकर और
कोने में पड़ी रहकर मायके में दिन काट लेने को तैयार थी। यह सब संवदिया को बताते हुए
उसके आत्मसम्मान को ठेस लग रही थी। यह कहते वक्त कि अब ससुराल में उसका गुजारा नहीं
हो रहा और अगर माँ ने नहीं बुलाया तो वह डूंब मरेगी, उसके अन्तर्मन की वेदना बाहर छलक
रही थी। इन सब कारणों से उसकी आँखों में आँसू छलछला उठे थे।
प्रश्न 6. गाड़ी पर सवार होने के बाद संवदिया के मन में काँटे की चुभन
का अनुभव क्यों हो रहा था? उससे छुटकारा पाने के लिए उसने क्या उपाय सोचा ?
उत्तर
: बडी बहरिया के मार्मिक संदेश का प्रत्येक शब्द हरगोबिन के मन में काँटे की तरह चभ
रहा था। उसने कहा था-'-माँ से कहना कि भाभी के बच्चों की जूठन खाकर कोने में पड़ी रहूँगी।
यहाँ अकेली किसके भरोसे रहूँ ? एक नौकर था वह भी कल भाग गया। गाय खूटे से बँधी भूखी-प्यासी
हिकर रही है। किसके लिए वह इतना दुःख झेले। ये सब बातें गाड़ी में बैठे हरगोबिन के
मन में काँटे की तरह चुभ रही थीं। इस दुःख से छुटकारा पाने के लिए उसने पास बैठे हुए
यात्री से बातचीत का प्रयास किया।
प्रश्न 7. बड़ी बहुरिया का संवाद हरगोबिन क्यों नहीं सुना सका?
उत्तर
: बड़ी बहरिया पूरे गाँव की लक्ष्मी थी। यदि वह बड़ी बहुरिया की विपत्ति कथा उसकी माँ
से कहता तो वह उसे अपने पास बुला लेती। यह पूरे गाँव की बदनामी थी। गाँव की लक्ष्मी
गाँव छोड़कर चली जायेगी जाएगा। सुनने वाले हरगोबिन के गाँव का नाम लेकर थूकेंगे..कैसा
गाँव है, जहाँ लक्ष्मी जैसी बहुरिया दुःख भोग रही है। इसी कारण हरगोबिन बड़ी बहुरिया
का संवाद उनकी माँ को नहीं सुना सका।
प्रश्न 8. 'संवदिया डटकर खाता है और अफर कर सोता है' से क्या आशय है
?
उत्तर
: संवदिया जहाँ संवाद लेकर जाता है वहाँ उसका भरपर आतिथ्य होता है। अच्छा भोजन और बिस्तर
उसे दिया जाता है इसीलिए संवदिया पेट भरकर खाता है और गहरी आराम की नींद सोता है। संवदिया
एक प्रकार का.दूत होता है, जो अपने स्वामी का संदेश दूसरों तक ससम्मान पहुँचाता है।
वह संदेश के महत्त्व का विचार करके उसको ज्यों का त्यों पहुँचाता है तथा संदेश भेजने
वाले के हावभाव तक को सजीव अभिव्यक्ति देता है। वह संदेश की गोपनीयता को भी बनाये रखता
है। उसके महत्त्वपूर्ण कार्य के लिए उसको सुविधायें प्रदान की जाती हैं, जिनका वह भरपूर
उपयोग करता है।
प्रश्न 9. जलालगढ़ पहुँचने के बाद बड़ी बहुरिया के सामने हरगोबिन ने
क्या संकल्प लिया ?
अथवा
जलालगढ़ पहुँचने के बाद बहुरिया के सामने हरगोबिन ने क्या संकल्प किया?
उसके संकल्प में उसके चरित्र की कौन-सी विशेषता उद्घाटित होती है?
उत्तर
: बड़ी बहू के मायके से जब हरगोबिन संवदिया अपने गाँव जलालगढ़ लौटा तो बीस कोस पैदल
चलने की थकान और भूख के कारण वह बेहोश हो गया। जब होश में आया तो बड़ी बहुरिया के पैर
पकड़कर उसने माफी माँगी और उन्हें बताया कि वह उनका संवाद उनके मायके में माँ जी को
नहीं सुना सका। हरगोबिन ने बड़ी बहुरिया से संकल्प व्यक्त किया कि आज से मैं आपका बेटा
हूँ और आप मेरी ही नहीं सारे गाँव की माँ हैं। आप गाँव छोड़कर नहीं जाएँगी। अब मैं
आपको कोई कष्ट नहीं होने दूंगा। आपकी देखभाल मैं बेटा बनकर करूँगा और निठल्ला न रहकर
काम-काज करूँगा। आपका सारा काम भी मैं ही करूँगा बस आप गाँव छोड़कर न जाएँ।
प्रश्न 10. 'डिजिटल इंडिया' के बैर में संवदिया की क्या कोई भूमिका
हो सकती है?
उत्तर
: पुराने समय में जब आवागमन के साधन बहुत कम थे। सूचनाओं के आदान-प्रदान की व्यवस्था
नहीं थी। उस समय गाँवों में अपना समाचार भेजने के लिए संवदिया होता था। संवदिया.एक
संदेशवाहक होता है, जो यथावत् संवाद को बोलकर संदेश को पहुँचाता है। वर्तमान में 'डिजिटल
इंडिया' होने पर संचार के अनेकानेक माध्यम विकसित हो गए हैं। जो किसी भी समाचार को
दृश्य-श्रव्य माध्यम से दुनिया के किसी भी कोने में क्षणभर में पहुँचा देते हैं। अतः
डिजिटल इंडिया में संवदिया की प्रत्यक्षतः कोई भूमिका नजर नहीं आती। लेकिन संवदिया
एक विश्वसनीय व्यक्ति होता है, अतः विशेष क्षेत्रों, परिस्थितियों में तथा परंपरा के
अनुसार संवदिया का आज भी महत्व है।
भाषा-शिल्प
प्रश्न 1. इन शब्दों का अर्थ समझिए -
उत्तर
:
(i)
काबुली-कायदा-काबुल के पठानों का कायदा जो उधार दिए रुपयों को बड़ी निर्दयता से वसूल
करते थे। उधार देते समय तो वे मीठा बोलते थे पर सूद और मूल वसूलते समय गाली-गलौज एवं
कठोर भाषा का प्रयोग करते थे।
(ii)
रोम-रोम कलपने लगा शरीर के रोम-रोम से बड़ी बहुरिया के देवर-देवरानियों के प्रति अभिशाप
निकल रहा था। अर्थात् उसका रोम-रोम बड़ी बहुरिया के देवर-देवरानियों की निर्दयता और
निष्ठुरता को देखकर दुखी था।
(iii)
अगहनी धान-धान की वह फसल जो अगहन में पककर तैयार हो जाती है, अगहनी धान कही जाती है।
प्रश्न 2. पाठ से प्रश्नवाचक वाक्यों को छाँटिए और संदर्भ के साथ उन
पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर
:
(i) फिर उसकी बुलाहट क्यों हुई ?
सन्दर्भ
: हरगोबिन संवदिया को बड़ी हवेली की बड़ी बहू ने बुलाया है। आज के जमाने में गाँव-गाँव
में डाकघर खुल गए हैं तब भी संवदिया की आवश्यकता क्यों पड़ गई। जरूर कोई गुप्त संदेश
बड़ी बहू को भिजवाना है संभवतः इसीलिए उसे बुलाया गया है।
(ii) कहाँ गए वे दिन ?
सन्दर्भ
: बड़ी हवेली के वे पुराने दिन कहाँ गए जब यहाँ समृद्धि का बोलबाला था। नौकर-नौकरानियाँ,
जन-मजदूरों : की भीड़ लगी रहती थी पर आज बड़ी बहुरिया हवेली में अकेली रह गई। उसके
पति की अकाल मृत्यु होते ही सब खेल खत्म हो गया। कहाँ तो गाँव की नाइन बड़ी बहू के
हाथों में मेंहदी लगाकर अपना परिवार पाल लेती थी और आज हालत यह है कि बड़ी बहू बथुआ-साग
खाकर गुजारा कर रही है, अपने उन्हीं हाथों से सूप में अनाज फटक रही है।
(iii) मैं किसके लिए इतना दुःख झेलूँ ?
सन्दर्भ
: बड़ी बहुरिया अब हवेली में अकेली रह गयी है। देवर-देवरानियाँ शहर में जाकर बस गये
हैं। नौकर भाग बँधी रँभा रही है। खाने के लिए बथुआ-साग ही मिल पाता है कब तक उसे खाकर
गुजारा करे। किसके लिए इतना दुःख झेले बड़ी बहुरिया, यही हरगोबिन सोच रहा था।
प्रश्न 3. इन पंक्तियों की व्याख्या कीजिए
(क) बड़ी हवेली अब नाममात्र को ही बड़ी हवेली है।
व्याख्या
: बड़ी हवेली पहले वास्तव में बड़ी हवेली थी। पहले यहाँ नौकर-नौकरानियों, जन-मजदूरों
की भीड़ लगी रहती थी पर अब सब खेल खत्म हो गया। बडे भइया की अकाल मत्य हो गई. शेष बचे
तीन भाई शहर में जाकर रहने लगे। रैयतों ने जमीन पर कब्जा कर लिया और अब तो हालत यह
हो गई है कि बड़ी हवेली की बड़ी बहुरिया के पास खाने तक को अनाज नहीं है, बथुआ-साग
खाकर गुजारा कर रही है। बड़ी हवेली अब नाम की बड़ी हवेली है वैसे वहाँ सर्वत्र दरिद्रता
का साम्राज्य है।
(ख) हरगोबिन ने देखी अपनी आँखों से द्रौपदी की चीरहरण लीला।
व्याख्या
: बड़ी हवेली के बड़े भइया की अकाल मृत्यु होते ही सारा खेल खत्म हो गया। शेष बचे तीनों
भाई आपस में लड़ने-झगड़ने लगे थे, जमीन पर रैयत ने कब्जा कर लिया और अन्ततः तीनों भाई
शहर में जाकर बस गए। उन तीनों ने आपस में बँटवारा करते समय बड़ी बहुरिया के शरीर के
जेवर तो उतरवाकर बाँट ही लिए थे और उसके शरीर पर पहनी बनारसी साड़ी को भी उतरवाकर उसके
तीन टुकड़े कर बाँट लिए थे। द्रौपदी के ची उरण जैसी यह लीला हरगोबिन ने अपनी आँखों
से देखी थी।
(ग) बथुआ-साग खाकर कब तक जीऊँ ?
व्याख्या
: बड़ी बहुरिया ने हरगोबिन संवदिया को बुलाकर अपनी माँ को यह संदेश भिजवाया कि मैं
बहुत कष्ट में हैं। यहाँ मेरे पास खाने तक के लिए नहीं है। बथुआ-साग खाकर जैसे-तैसे
पेट की आग शांत करती हूँ पर ऐसा कब तक चलेगा। इस पंक्ति का अर्थ है कि खाने के लिए
मेरे घर में अनाज तक नहीं है। कोई व्यक्ति बथुआ-साग खाकर कब तक जीवित रह सकता है अर्थात्
अब मैं ज्यादा जीवित नहीं रह सकती।
(घ) किस मुँह से वह ऐसा संवाद सुनाएगा?
व्याख्या
: बड़ी बहुरिया ने अपनी माँ को सुनाने के लिए जो संवाद दिया था वह इतना मार्मिक और
करुण था कि हरगोबिन को लगा कि वह यह संवाद सुना नहीं पाएगा। बड़ी बहू आर्थिक कष्ट के
कारण बड़ी हवेली छोड़कर मायके में रहकर गुजारा करने का संदेश भिजवा रही है इससे तो
सारे गाँव की बदनामी हो जाएगी। गाँव की लक्ष्मी ही गाँव से चली जाएगी तो लोग गाँव का
नाम लेकर थूकेंगे, कैसा गाँव है जहाँ लक्ष्मी जैसी बहुरिया दुःख भोग रही है। कैसे वह
माँ जी से कह सकेगा कि उसकी बेटी बश -साग खाकर गुजारा कर रही है। किस मुँह से वह ऐसा
संवाद सुना पाएगा अर्थात् यह संवाद सुना पाने लायक साहस के पास नहीं है।
योग्यता विस्तार
प्रश्न 1. संवदिया की भूमिका आपको मिले तो आप क्या करेंगे ? संवदिया
बनने के लिए किन बातों का ध्यान रखना पड़ता है ?
उत्तर
: संवदिया की भूमिका यदि मुझे मिले तो मैं इसे प्रसन्नता से करूँगा क्योंकि दूसरों
के संदेश को पहुँचाना सेवा कार्य है और यह सेवा करके मुझे आंतरिक प्रसन्नता प्राप्त
होगी। संवदिया वही बन सकता है जो
1.
प्रत्येक शब्द को याद रख सके।
2.
जिस सुर और स्वर में बात कही गयी है ठीक उसी ढंग से जाकर सुना दे।
3.
संवदिया को संवाद की गोपनीयता भी बनाए रखनी चाहिए। जिसके लिए संवाद भेजा गया है, केवल
उसे ही वह संवाद देना चाहिए।
प्रश्न 2. इस कहानी का नाट्य रूपांतरण कर विद्यालय के मंच पर प्रस्तुत
कीजिए।
उत्तर
: प्रश्न परीक्षोपयोगी नहीं है। छात्र अपने शिक्षक की सहायता से कर सकते हैं।
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. 'संवदिया' पाठ में संवदिया का नाम क्या है?
उत्तर
: 'संवदिया' पाठ में संवदिया का नाम हरगोबिन है।
प्रश्न 2. हरगोबिन संवाद लेकर कहाँ गया था?
उत्तर
: हरगोबिन संवाद लेकर बड़ी बहू के मायके गया
था।
प्रश्न 3. बड़ी बहू की माँ ने सौगात में बेटी के लिए क्या भेजा?
उत्तर
: बड़ी बहू की माँ ने सौगात में बेटी के लिए धान का चूड़ा भेजा।
प्रश्न 4. मोदिआइन काकी किस नाम से चिढ़ती थी?
उत्तर
: मोदिआइन काकी काबुली कायदा नाम से चिढ़ती
थी।
प्रश्न 5. हरगोबिन संवदिया कहाँ का रहने वाला था?
उत्तर
: हरगोबिन संवदिया जलालगढ़ का रहने वाला था।
प्रश्न 6. तीन नंबर प्लेटफार्म से गाड़ी किधर की ओर जाया करती थी?
उत्तर
: तीन नंबर प्लेटफार्म से गाड़ी थाना बिहपुर, खगड़िया और बरौनी की ओर जाया करती थी।
प्रश्न 7. बड़ी हवेली में गृहस्थी का काम कौन देखता था?
उत्तर
: बडी हवेली में गहस्थी का काम बडी बहरिया देखती थी।
प्रश्न 8. माँ ने बड़ी बहुरिया के लिए क्या-क्या भेजा था?
उत्तर
: माँ ने बड़ी बहुरिया के लिए थोड़ा चूड़ा और बासमती का धान भेजा था।
प्रश्न 9. हरगोबिन किसका नाम लेकर पैदल चल पड़ा था?
उत्तर
: 'महावीर-विक्रम-बजरंगी' का नाम लेकर हरगोबिन पैदल ही चल पड़ा था।
प्रश्न 10. कटिहार से जलालगढ़ कितनी दूरी पर था?
उत्तर
: कटिहार से जलालगढ़ बीस कोस की दूरी पर था।
प्रश्न 11. हरगोबिन को अचरज क्यों हुआ?
उत्तर
: जब बड़ी बहुरिया ने हरगोबिन को बुलाया, तो उसे आश्चर्य हुआ कि अब तो गाँव-गाँव में
डाकघर खुल गए हैं, ऐसे में संवदिया का क्या काम, आज: तो आदमी घर बैठे ही लंका तक खबर
भेज सकता है।
प्रश्न 12. गाँव के लोग संवदिया को क्या समझते थे?
उत्तर
: गाँव के लोगों के अंदर संवदिया को लेकर एक गलत धारणा थी कि संवदिया का काम कामचोर,
निठल्ले और * पेटू लोग ही करते हैं। उनका मानना था कि जिसके न आगे नाथ, न पीछे पगहा
हो, वही ऐसा काम कर सकता है।
प्रश्न 13. कटिहार जंक्शन पर क्या बदलाव हुए थे?
उत्तर
: कटिहार जंक्शन पंद्रह-बीस सालों में बहुत बदल गया था। अब स्टेशन पर उतरकर किसी से
ट्रेन के बारे में, प्लेटफार्म के बारे में, कुछ पूछने की ज़रूरत नहीं थी। भोंपू अपनी
आवाज से बता दिया करता था।
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. हरगोबिन कौन था और वह क्या काम करता था ?
उत्तर
: हरगोबिन संवदिया नामक आंचलिक कहानी का प्रमुख पात्र है। वह संवदिया था अर्थात् एक
स्थान से दूसरे स्थान तक संदेश ले जाने वाला संदेशवाहक। वह जलालगढ़ गाँव का रहने वाला
था और गाँव के हर घर की माँ-बेटी-बहू उसके माध्यम से अपना संवाद भिजवाया करती थी। गाँव
के लोग उसे निठल्ला, कामचोर और पेट समझते थे। किन्तु वह कर्तव्यनिष्ठ तथा संवेदनशील
व्यक्ति था। उसे. बड़ी बहुरिया से संवेदना थी और गाँव की प्रतिष्ठा की चिन्ता भी थी।
प्रश्न 2. बड़ी बहू कौन थी और उसने हरगोबिन को बड़ी हवेली में क्यों
बुलाया था ?
उत्तर
: बड़ी बहू बड़ी हवेली की बड़ी बहुरिया थी। उसके पति की अकाल मृत्यु हो गई थी तथा शेष
बचे तीनों देवर अब शहर में रहने लगे थे। बड़ी बहू की आर्थिक स्थिति इतनी कमजोर हो गई
थी कि अब उसके खाने-पीने तक का ठिकाना न था। बेचारी बथुआ-सांग खाकर गुजारा करती थी।
उसने हरगोबिन संवदिया को अपनी माँ के घर संवाद पहुँचाने के लिए बुलाया था। उसने कहलवाया
था कि वह अकेली है तथा बड़ी गरीबी में गाँव में रहकर गुजारा कर रही है परन्तु अब और
अधिक समय तक वह ऐसा नहीं कर सकती।
प्रश्न 3. हरगोबिन को बड़ी हवेली से बुलावा आने पर अचरज क्यों हुआ
?
उत्तर
: हरगोबिन को बड़ी हवेली से बुलावा आया था। हरगोबिन संवदिया था अतः उसने अनुमान लगा
लिया कि जरूर कोई महत्त्वपूर्ण संवाद बड़ी हवेली की बड़ी बहुरिया भिजवाना चाहती है।
आज के इस जमाने में जब गाँव-गाँव डाकघर खुल गए हैं, संवदिया की जरूरत भला बड़ी बहू
को क्यों पड़ गई, यह सोचकर उसे अचरज (आश्चर्य) हो रहा था। फिर सोचा जरूर कोई ऐसा संवाद
होगा जिसे बड़ी बहू गुप्त रखना चाहती होगी इसलिए उसे संवदिया की जरूरत पड़ी।
प्रश्न 4. हरगोबिन ने बड़ी बहू की माँ को क्या संवाद दिया ?
उत्तर
: बड़ी बहू की माँ के पूछने पर हरगोबिन ने कहा कि वह कोई संवाद नहीं लाया है। आपकी
बेटी कुशल से है। सब भगवान की कृपा है, देवर उसका ध्यान रखते हैं। उन्हें किसी बात
का कष्ट नहीं है, यह ठीक है कि उनके देवर शहर में जाकर बस गए हैं मगर सारा गाँव ही
बड़ी बहुरिया का परिवार है। हमारे गाँव की लक्ष्मी है बड़ी बहुरिया। देवर तो बार-बार
ले जाने की जिद करते हैं पर गाँव की लक्ष्मी गाँव को छोड़कर कैसे जाएगी। हरगोबिन ने
यह झूठा संवाद बड़ी बहू के बारे में उनकी माँ जी को दिया।
प्रश्न 5. हरगोबिन जलालगढ़ तक लौटकर कैसे आया?
उत्तर
: हरगोबिन जब बड़ी बहू के मायके से अपने गाँव के लिए लौटने लगा तो बड़ी बहू के भाई
ने पूछा कि राह खर्च तो है! तो हरगोबिन ने झूठा उत्तर दिया कि सब भगवान की कृपा है।
वास्तव में उसके पास घर लौटने लायक पैसे बचे ही न थे। केवल कटिहार तक की टिकट लायक
पैसे बचे थे जिससे टिकट लेकर वह कटिहार जंक्शन पहुँच गया। बिना टिकट डर के कारण वह
यात्रा नहीं कर सकता था अतः अपने गाँव तक पैदल जाने का निश्चय किया। भूखा-प्यासा, थका-हारा
हरगोबिन 20 कोस की लम्बी यात्रा पैदल तय करके जब जलालगढ़ पहुँचा तो थकान और भूख के
कारण बेहोश हो गया।
प्रश्न 6. बड़ी बहू का संदेश सुनकर हरगोबिन की आँखें क्यों छलछला आईं?
संक्षेप में बताएँ।
उत्तर
: हरगोबिन एक सहृदय व्यक्ति है। बड़ी हवेली की बड़ी बहू ने जब मार्मिक संदेश उसे दिया
तो बड़ी बहू के साथ-साथ उसकी आँखें भी छलछला आईं। उसने बड़ी बहू से कहा कि आप दिल कड़ा
कीजिए। उसे यह देखकर वेदना हो रही थी कि इस बड़ी हवेली की पुरानी शान-शौकत तो समाप्त
हो ही गई अब तो हालात यहाँ तक आ पहुँचे हैं कि बड़ी बहू के पास खाने तक को नहीं है।
बेचारी बथुआ-साग खाकर गुजारा कर रही हैं। देवर पूछते नहीं बस हर फसल पर अपना हिस्सा
लेने आ जाते हैं। बड़ी बहुरिया की दीन-हीन दशा देखकर उसकी आँखें छलछला आईं।
प्रश्न 7. हरगोबिन ने बड़ी बहुरिया का संदेश क्या सोचकर माँ जी को नहीं
सुनाया? संक्षेप में बताएँ।
अथवा
संवदिया की क्या विशेषताएँ हैं? वह बड़ी बहुरिया का संवाद क्यों नहीं
सुना सका?
अथवा
संवदिया के बारे में कहा जाता है कि वह संवाद ज्यों का त्यों सुनाता
है, फिर भी हरगोबिन बड़ी बहू का संवाद नहीं सुना पाया। कारण स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
: संवदिया की प्रमुख विशेषता यह होती है कि वह संवाद को ज्यों का त्यों सुना दे। हरगोबिन
में भी संवदिया की सभी विशेषताएँ थीं, लेकिन हरगोबिन को लगा कि यदि बड़ी बहू गाँव छोड़कर
मायके में जाने को विवश हो रही है तो यह पूरे गाँव का अपमान है। बड़ी बहुरिया का मार्मिक
संदेश कि मैं भाभी के बच्चों की जूठन खाकर कोने में पड़ी रहूँगी किन्तु यहाँ नहीं रहूँगी
और यदि माँ ने शीघ्र न बुलाया तो मैं पोखर में डूबकर जान दे दूंगी। यह संदेश उसने बड़ी
बहू की माँ को नहीं सुनाया। उसे लग रहा था कि बड़ी बहू तो हमारे गाँव की लक्ष्मी है
यदि वह मायके में जाकर रही तो पूरे गाँव की बदनामी होगी, लोग उसके गाँव का नाम ले-लेकर
थूकेंगे।
प्रश्न 8. हरगोबिन ने घर लौटकर बड़ी बहू से क्या कहा और क्यों ?
उत्तर
: घर लौटकर उसने बड़ी बहू से क्षमा माँगी और कहा कि वह उसका संवाद नहीं सुना सका। वह
नहीं चाहता कि गाँव की लक्ष्मी गाँव से जाए। अब वह बड़ी बहू का बेटा बनकर रहेगा और
उसे कोई कष्ट न होने देगा। निठल्ला न रहकर कोई काम-धंधा करेगा। बड़ी बहू स्वयं अपनी
गलती पर पछता रही थी कि उसने ऐसा संवाद मायके में क्यों भेजा। हरगोबिन ने वह संवाद
न सुनाकर उसका हित ही किया था। हरगोबिन ने यह सब इसलिए बताया कि वह बड़ी बहू से कुछ
छिपाना नहीं चाहता था। वह चाहता था कि बड़ी बहू गाँव में रहकर गाँव की प्रतिष्ठा की
रक्षा करें।
प्रश्न 9. "संवाद पहुँचाने का काम सभी नहीं कर सकते। आदमी भगवान
के घर से संवदिया बनकर आता है।" क्या आप कहानीकार के इस कथन से सहमत हैं ?
उत्तर
: संवाद पहुँचाने का काम प्रत्येक व्यक्ति कर सकता है। अवसर पड़ने पर तथा इसकी शिक्षा
मिलने पर हर व्यक्ति कुशल संवदिया हो सकता है। भगवान किसी को संवदिया बनाकर नहीं भेजता।
संसार में जन्म लेने के बाद प्रत्येक व्यक्ति वातावरण और परिस्थितियों से प्रभावित
होता है। वह बहुत से काम अपने अनुभव से भी करता है। संवदिया का कार्य भी एक व्यवसाय
है। आज प्रत्येक व्यवसाय का प्रशिक्षण दिया जाता है। संवाद पहुँचाने का प्रशिक्षण भी
प्राप्त किया जा सकता है और इस व्यवसाय का कौशल अर्जित किया जा सकता है। अतः इस कथन
से सहमत होने का प्रश्न ही नहीं है।
प्रश्न 10. आप कैसे कह सकते हैं कि बड़ी बहुरिया के देवर-देवरानियाँ
बेदर्द हैं ?
उत्तर
: बड़े भैया की मृत्यु के बाद बड़ी बहू के तीनों देवर और देवरानियों का व्यवहार अपनी
विधवा भाभी के प्रति सहानुभूति और संवेदना का नहीं है। उन्होंने घर के सामान का बँटवारा
कर लिया है। बड़ी बहू के शरीर से गहने उतार कर आपस में बाँट लिए हैं। उसकी रेशमी बनारसी
साड़ी को उतरवाकर उसके तीन टुकड़े करके बाँटे हैं। तीनों गाँव छोड़कर शहर में रहने
लगे हैं। अगहन के समय गाँव आते हैं। वापस जाते समय मन दो मन के हिसाब से चावल चूड़ा
साथ ले जाते हैं। इन पन्द्रह दिनों में बड़ी बहू कर्ज-उधार में डूब जाती है। आम के
मौसम में आकर कच्चा-पक्का आम तोड़कर बोरियों में भरकर ले जाते हैं फिर उलटकर नहीं देखते
कि बड़ी बहू कैसे गुजर कर रही है ?
निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1. हरगोबिन ने गाँव की प्रतिष्ठा को धूमिल होने से किस प्रकार
बचाया ?
उत्तर
: बड़ी बहुरिया के पास खाने को भी अनाज न था, वह बथुआ-साग खाकर गुजारा कर रही थी। इसी
कारण उसने अपनी माँ के पास यह संदेश भिजवाया कि वह मायके में जैसे-तैसे दिन काट लेगी।
अब यहाँ ससुराल में वह अकेली नहीं रह पाएगी। हरगोबिन ने सोचा कि बड़ी बहू तो गाँव की
लक्ष्मी है यदि उसने उसके मायके जाकर उसकी माँ को यह संदेश सुना दिया तो इससे सारे
गाँव की प्रतिष्ठा धूमिल हो जाएगी, लोग गाँव के नाम पर थूकेंगे। हरगोबिन ने यह संदेश
बड़ी बहू की माँ को नहीं सुनाया और गाँव लौटकर बड़ी बहुरिया से कहा कि तुम मेरी माँ
हो, मैं तुम्हारा बेटा। मैं तुम्हारी देखभाल करूँगा, निठल्ला नहीं रहूँगा बस तुम गाँव
छोड़कर जाने का विचार त्याग दो। ऐसा कहकर हरगोबिन ने गाँव की प्रतिष्ठा को धूमिल होने
से बचा लिया।
प्रश्न 2. मोदिआइन काकी कौन थी और काबुली के नाम से क्यों चिढ़ती थी
?
उत्तर
: मोदिआइन काकी गाँव में दुकान करती थी। बड़ी बहुरिया भी उनकी दुकान
से उधार में सामान खरीदती रहती थी। आज वे अपना उधार वसूलने आई थीं।
एक
काबुली गुल-मोहम्मद-आगा मोदिआइन के ओसारे पर कपड़े की दुकान लगाकर बैठता था। कपड़ा
देते समय तो वह मीठा बोलता था पर वसूली जोर-जुल्म से करता था। एक बार कुछ लोगों ने
मिलकर काबुली की पिटाई कर दी और वह फिर लौटकर गाँव नहीं आया पर लोग मोदिआइन को उसका
नाम ले-लेकर चिढ़ाने लगे। हरगोबिन ने जब 'काबुली-कायदा' कहकर मोदिआइन को चिढ़ाया तो मोदिआइन गाली देते हुए बोली-"फिर काबुली
का नाम लिया तो जीभ पकड़कर खींच लँगी।"
प्रश्न 7. हरगोबिन ने बड़ी बहुरिया का संदेश क्या सोचकर माँ जी को नहीं
सुनाया? संक्षेप में बताएँ।
अथवा
संवदिया की क्या विशेषताएँ हैं? वह बड़ी बहुरिया का संवाद क्यों नहीं
सुना सका?
अथवा
संवदिया के बारे में कहा जाता है कि वह संवाद ज्यों का त्यों सुनाता
है, फिर भी हरगोबिन बड़ी बहू का संवाद नहीं सुना पाया। कारण स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
: संवदिया की प्रमुख विशेषता यह होती है कि वह संवाद को ज्यों का त्यों सुना दे। हरगोबिन
में भी संवदिया की सभी विशेषताएँ थीं, लेकिन हरगोबिन को लगा कि यदि बड़ी बहू गाँव छोड़कर
मायके में जाने को विवश हो रही है तो यह पूरे गाँव का अपमान है। बड़ी बहुरिया का मार्मिक
संदेश कि मैं भाभी के बच्चों की जूठन खाकर कोने में पड़ी रहूँगी किन्तु यहाँ नहीं रहूँगी
और यदि माँ ने शीघ्र न बुलाया तो मैं पोखर में डूबकर जान दे दूंगी। यह संदेश उसने बड़ी
बहू की माँ को नहीं सुनाया। उसे लग रहा था कि बड़ी बहू तो हमारे गाँव की लक्ष्मी है
यदि वह मायके में जाकर रही तो पूरे गाँव की बदनामी होगी, लोग उसके गाँव का नाम ले-लेकर
थूकेंगे।
प्रश्न 8. हरगोबिन ने घर लौटकर बड़ी बहू से क्या कहा और क्यों ?
उत्तर
: घर लौटकर उसने बड़ी बहू से क्षमा माँगी और कहा कि वह उसका संवाद नहीं सुना सका। वह
नहीं चाहता कि गाँव की लक्ष्मी गाँव से जाए। अब वह बड़ी बहू का बेटा बनकर रहेगा और
उसे कोई कष्ट न होने देगा। निठल्ला न रहकर कोई काम-धंधा करेगा। बड़ी बहू स्वयं अपनी
गलती पर पछता रही थी कि उसने ऐसा संवाद मायके में क्यों भेजा। हरगोबिन ने क्ह संवाद
न सुनाकर उसका हित ही किया था। हरगोबिन ने यह सब इसलिए बताया कि वह बड़ी बहू से कुछ
छिपाना नहीं चाहता था। वह चाहता था कि बड़ी बहू गाँव में रहकर गाँव की प्रतिष्ठा की
रक्षा करें।
प्रश्न 9. "संवाद पहँचाने का काम सभी नहीं कर सकते। आदमी भगवान
के घर से संवदिया बनकर आता है।" क्या आप कहानीकार के इस कथन से सहमत हैं ?
उत्तर
: संवाद पहुँचाने का काम प्रत्येक व्यक्ति कर सकता है। अवसर पड़ने पर तथा इसकी शिक्षा
मिलने पर हर व्यक्ति कुशल संवदिया हो सकता है। भगवान किसी को संवदिया बनाकर नहीं भेजता।
संसार में जन्म लेने के बाद प्रत्येकं व्यक्ति वातावरण और परिस्थितियों से प्रभावित
होता है। वह बहुत से काम अपने अनुभव से भी करता है। संवदिया का कार्य भी एक व्यवसाय
है। आज प्रत्येक व्यवसाय का प्रशिक्षण दिया जाता है। संवाद पहुँचाने का प्रशिक्षण भी
प्राप्त किया जा सकता है और इस व्यवसाय का कौशल अर्जित किया जा सकता है। अतः इस कथन
से सहमत होने का प्रश्न ही नहीं है।
प्रश्न 10. आप कैसे कह सकते हैं कि बड़ी बहुरिया के देवर-देवरानियाँ
बेदर्द हैं ?
उत्तर
: बड़े भैया की मृत्यु के बाद बड़ी बहू के तीनों देवर और देवरानियों का व्यवहार अपनी
विधवा भाभी के प्रति सहानुभूति और संवेदना का नहीं है। उन्होंने घर के सामान का बँटवारा
कर लिया है। बड़ी बहू के शरीर से गहने उतार कर आपस में बाँट लिए हैं। उसकी रेशमी बनारसी
साड़ी को उतरवाकर उसके तीन टुकड़े करके बाँटे हैं। तीनों गाँव छोड़कर शहर में रहने
लगे हैं। अगहन के समय गाँव आते हैं। वापस जाते समय मन दो मन के हिसाब से चावल चूड़ा
साथ ले जाते हैं। इन पन्द्रह दिनों में बड़ी बहू कर्ज-उधार में डूब जाती है। आम के
मौसम में आकर कच्चा-पक्का आम.तोड़कर बोरियों में भरकर ले जाते हैं फिर उलटकर नहीं देखते
कि बड़ी बहू कैसे गुजर कर रही है?
प्रश्न 11. संवदिया कहानी के प्रमुख पात्र हरगोबिन का परिचय संक्षेप
में दीजिए।
उत्तर
: संवदिया फणीश्वरनाथ 'रेणु' द्वारा लिखी गई एक आँचलिक कहानी है जिसका प्रमुख पात्र
हरगोबिन है। वही . घटनाओं के केन्द्र में है इसलिए उसे इस कहानी का नायक माना जा सकता
है। हरगोबिन एक कुशल संवदिया है। गाँव के हर घर की माँ-बेटी-बहिन उसके माध्यम से अपना
संदेश (संवाद) निर्धारित स्थान तक पहुँचाती है। उसे पता है कि संवदिया का काम सहज नहीं
होता। पूरे संवाद को ज्यों-का-त्यों याद रखकर सुनाना पड़ता है साथ ही संवाद जिस सुर
और स्वर में दिया गया है उसी स्वर में दुहराना पड़ता है। संवाद को गुप्त रखना भी संवदिया
की जिम्मेदारी है। हरगोबिन में ये सभी गुण विद्यमान हैं। हरगोबिन एक विश्वासपात्र व्यक्ति
है इसीलिए बड़ी हवेली की बड़ी बहुरिया ने उसे अपनी माँ के पास संवाद पहुँचाने हेतु
बुलाया है। वह जानता है कि अवश्य ही कोई गोपनीय संवाद उसे पहुँचाना है।
प्रश्न 12. किस घटना से हरगोबिन की ईमानदारी पर प्रकाश पड़ता है ? संक्षेप
में बताएँ।
अथवा
बड़ी बहुरिया का संदेश देने में हरगोबिन ने क्या-क्या शारीरिक और मानसिक
कष्ट सहे और क्यों? पाठ के आधार पर उत्तर दीजिए।
उत्तर
: हरगोबिन ईमानदार एवं दृढ़-प्रतिज्ञ है। प्रथमतः तो वह बड़ी बहू के संदेश को लेकर
बहुत मानसिक उलझन में हो गया। अगर वह संवाद ज्यों का त्यों देगा तो गाँव की बहुत बेइज्जती
होगी। संवाद दिए बिना वहाँ से लौटते समय राह खर्च पास में न होने पर भी उसने बड़ी बहू
के मायके से राह खर्च नहीं लिया यद्यपि बड़ी बहू के भाई ने राह खर्च के लिए पूछा था।
कटिहार तक तो वह टिकट लेकर आ गया पर आगे की यात्रा के लिए पैसे न थे अतः वह बीस कोस
पैदल चलकर भूखा-प्यासा अपने गाँव पहुँचा। उसने बिना टिकट रेलयात्रा करना उचित न समझा।।
उसके
पास बड़ी बहू की माँ जी द्वारा भिजवाया बासमती धान का चूड़ा थापर वह उस अमानत में से
कैसे खा सकता था ? भूख, प्यास और थकान से बेहाल होकर वह जब गाँव पहुँचा तो बेहोश हो
गया। यह सब उसने गाँव की बड़ी बहू के लिए किया था, क्योंकि वह उनका बहुत आदर करता था।
साहित्यिक परिचय का प्रश्न
प्रश्न : फणीश्वर नाथ 'रेणु' का साहित्यिक परिचय लिखिए।
उत्तर
: साहित्यिक परिचय - रेणु जी हिन्दी के प्रसिद्ध आंचलिक कथाकार हैं। आपने अपनी
रचनाओं द्वारा उपन्यास-सम्राट प्रेमचन्द की विरासत को आगे बढ़ाया है। आपकी रचनाओं की
विषय-वस्तु अंचल विशेष के ग्राम्य जीवन पर आधारित है।
भाषा
- रेणु जी की भाषा अत्यन्त सशक्त तथा संवेदनशील है। उसमें सम्प्रेषणीयता तथा भावानुकूलता
है। उनकी भाषा में आंचलिक शब्दों तथा मुहानरों का प्रयोग सफलतापूर्वक हुआ है।
शैली
-
कथाकार होने के कारण रेणु जी ने वर्णनात्मक शैली को आधार बनाया है। कुछ स्थलों पर उन्होंने
आत्मकथन शैली को भी अपनाया है। इसके साथ ही यत्र-तत्र व्यंग्य शैली का प्रयोग भी दर्शनीय
है। इस शैली का पैनापन गहरा प्रहार करने वाला है। अभावों से पीड़ित जन की बेबसी और
कष्टों के प्रति गहरी संवेदना के कारण ही वह आधुनिकता से दूर ग्रामीण समाज का सशक्त,
प्राणवान् और यथार्थ चित्र प्रस्तुत कर सके हैं। उनकी रचनाओं में संवाद शैली का प्रयोग
भी दर्शनीय है।
कृतियाँ
- रेणु जी का प्रसिद्ध रचनाएँ निम्नलिखित हैं- उपन्यास-मैला आँचल. तथा परती परिकथा।
कहानी-संग्रह ठुमरी, अग्निखोर, आदिम रात्रि की महक, तीसरी कसम उर्फ मारे गये गुलफाम
(इस कहानी पर फिल्म भी बन चुकी है)।
संवदिया (सारांश)
लेखक परिचय
जन्म
सन 1921 ई., स्थान ग्राम औराही हिगंना, जिला पर्णिया (बिहार)। सन 1942 के भारत छोडो
स्वाधीनता आन्दोलन तथा नेपाल के राणाशाही विरोधी आन्दोलन में सक्रिय रहे। राजनीति में
प्रगतिशील विचारधारा के समर्थक। सन् 1975 ई. में इमरजेंसी के विरुद्ध जयप्रकाश नारायण
के आन्दोलन में सक्रिय भूमिका रही। सन् 1953 ई. से साहित्य-सृजन आरम्भ। प्रसिद्ध आंचलिक
कहानीकार और उपन्यासकार। सन् 1977 ई. में निधन।
साहित्यिक
परिचय - रेणु जी हिन्दी के प्रसिद्ध आंचलिक कथाकार हैं। आपने अपनी
रचनाओं द्वारा उपन्यास-सम्राट प्रेमचन्द की विरासत को आगे बढ़ाया है। आपकी रचनाओं की
विषय-वस्तु अंचल विशेष के ग्राम्य जीवन पर आधारित है।
भाषा
- रेणु जी की भाषा अत्यन्त सशक्त तथा संवेदनशील है। उसमें सम्प्रेषणीयता तथा भावानुकूलता
है। उनकी भाषा को मर्मांतक पीड़ा और भावनाओं के द्वन्द्व को उभारने की अद्भुत क्षमता
प्राप्त है। वह अन्तर्मन को स्पर्श करने वाली है। उनकी भाषा में आंचलिक शब्दों तथा
मुहावरों का प्रयोग सफलतापूर्वक हुआ है। परम्परागत तत्सम शब्दावली के साथ ग्रामीण अंचल
के शब्दों के प्रयोग ने उनकी भाषा को जो शक्ति प्रदान की उसके कारण ही वह अंचल विशेष
का सजीव चित्र उपस्थित करने में सफल रहे हैं।
शैली
- कथाकार होने के कारण रेणु जी ने वर्णनात्मक शैली को आधार बनाया है। कुछ स्थलों पर
उन्होंने आत्मकथन शैली को भी अपनाया है। इसके साथ ही यत्र-तत्र व्यंग्य शैली का प्रयोग
भी दर्शनीय है। इस शैली का पैनापन गहरा प्रहार करने वाला है। उनके द्वारा प्रयुक्त
चित्रात्मक शैली जीवन के सजीव चित्र उभारने में सफल है। कथाकार को गहरी मानवीय संवेदना
और बदलते हुए सामाजिक यथार्थ की पहचान है। अभावों से पीड़ित जन की बेबसी और कष्टों
के प्रति गहरी संवेदना के कारण ही वह आधुनिकता से दूर ग्रामीण समाज का सशक्त, प्राणवान्
और यथार्थ चित्र प्रस्तुत कर सके हैं। उनकी रचनाओं में संवाद शैली को प्रयोग भी दर्शनीय
है।
कृतियाँ
- रेणु जी का प्रसिद्ध रचनाएँ निम्नलिखित हैं उपन्यास-मैला आँचल तथा परती परिकथा।
कहानी
- संग्रह ठुमरी, अग्निखोर, आदिम रात्रि की महक, तीसरी कसम उर्फ मारे गये गुलफाम (इस
कहानी पर फिल्म भी बन चुकी है)।
पाठ सारांश
'संवदिया'
रेणु की मानवीय संवेदना की गहनता को प्रस्तुत करने वाली आंचलिक कहानी है। हरगोबिन संदेशवाहक
है। बुलावे पर वह बड़ी बहुरिया का संवाद लेने के लिए हवेली पहुँचा। बड़े भैया की मौत
के बाद हवेली नाम की ही हवेली रह गई थी। तीनों भाई गाँव छोडकर शहर जा बसे थे। बड़ी
बहरिया भयानक कष्टों में वहीं जीवन बिता रही थी। संवाद लेकर हरगोबिन बड़ी बहुरिया के
मायके के लिए चला।
बड़ी
बहुरिया ने कहलवाया था-माँ उसे बुला ले। बथुआ का साग खाकर वह कब तक वहाँ रहे। बड़ी
बहरिया की माँ से हरगोबिन ने उसका संवाद नहीं कहा। झूठ बोल दिया कि हवेली में सब ठीक-ठाक
है। भाड़े के लिए मिले पाँच रुपयों में बचे पैसों से कटिहार तक की टिकट ली। वहाँ से
बीस कोस जलालगढ़ के लिए भूखा ही पैदल चला। थकावट और भूख से वह बेहोश हो गया। होश आया
तो सामने बैठी बड़ी बहुरिया को देखा, पूछ रही थी.. हरगोबिन भाई क्या हुआ तुमको ?
हरगोबिन
ने संवाद न कह पाने के लिए पैर पकड़कर बड़ी बहुरिया से माफी माँगी। उसने बड़ी बहुरिया
से कहा-वह उसकी माँ है। वह बेटे की तरह उनकी सेवा करेगा। वह गाँव छोड़कर नहीं जायें।
बड़ी बहुरिया गरम दूध में बासमती चूड़ा जलकर मसक रही थी। संवाद भेजने के बाद से वह
अपनी गलती पर पछता रही थी।
किठिन शब्दार्य
संवदिया
= संवाद (संदेश) ले जाने वाला।
अचरज
= आश्चर्य।
मारफत
= द्वारा।
ड्योढ़ी
= दरवाजा।
परेवा
= कबूतर।
पंछी
= चिड़िया।
पाँव
लागी = प्रणाम।
बहुरिया
= पुत्र-वधू, बहू।
पीढ़ी
= बैठने का कुछ ऊँचा आसन।
सूपा
= सूप (अनाज फटंकने वाला उपकरण)।
खेल.खत्म
हो जाना = नष्ट हो जाना (बरबाद हो जाना)।
रैयत
= प्रजा (जींदार के किसान)।
दखल
किया = अपने अधिकार में ले ली।
लीला
= नाटक।
निर्दय
= क्रूर (जिसमें दया न हो)।
बड़बड़ा,
= क्रोध सहित बोलना।
मीठा
= अच्छा।
नहीं
टलती = नहीं जाती।
काकी
= चाची।
बाकी
बकाया = उधार की रकम।
काबुली-कायदा
= काबुली लोगों का तरीका (जोर जबरदस्ती करना)।
तमककर
= क्रोध व्यक्त करती हुई।
मुँह-झौंसे
= एक गाली।
निमौछिये
= बिना मूंछ का (मूंछ विहीन)।
गुलजार
= खूब फली-फूली (अत्यधिक बालों वाली)।
ओसारे
= घर के बाहर का छप्पर या टीन से छाया स्थान।
जोर
जुल्म = निर्दयता एवं क्रूरता।
स्वांग
= नाटक ।
अमारा
मुलुक = हमारे देश में।
अकरोट
= अखरोट।
किलायगा
= खिलायेगा।
बहुरिया
= बहू।
संवाद
= संदेश।
छलछलाई
= आँसुओं से भरी।
सिसकने
लगी = रोने लगी।
आँखें
भी भर आईं = आँखों में आँसू आ गए।
हवेली
की लक्ष्मी = बड़ी बहू।
दिल
कड़ा कीजिए = धीरज रखिए।
पोखरे
में = तालाब में।
बथुआ
साग = गेहूँ के साथ उगने वाली एक हरी तरकारी।
अगहनी
धान = अगहन में पक जाने वाला धान।
चूड़ा
= उबले चावलों को कुचकर और सुखाकर बनाया गया एक खाद्य पदार्थ, चिड़वा, पोहा।
चावल-चूड़ा
= चावल और चिड़वा।
आँचल
के छूट से = साड़ी के आँचल के छोर से।
राह
खर्च = मार्ग व्यय।
उम्मीद
= आशा।
भावशून्य
= भावनाओं से रहित।
राह
देखना = प्रतीक्षा करना।
सुर
= भाव, अंदाज।
निठल्ला
= जिस पर कोई काम न हो।
पेटू
= खाने का लालची (अधिक खाने वाला)।
आगे
नाथ, न पीछे पगहा = जिसे कोई रोक-टोक करने वाला न हो, परम स्वतंत्र।
गीत
की कड़ी = पंक्ति।
पैयाँ
पडूं दाढ़ी धरूँ = पैरों पढूँ, दाढ़ी स्पर्श करूँ।
हिकर
= रंभाना (चिल्लाना)। डाकगाड़ी = मेलट्रेन।
कुढ़कर
= रुष्ट होकर।
भाँप
लिया = अनुमान लगा लिया।
जंक्शन
= जहाँ दो अलग-अलग दिशाओं की रेल लाइनें मिलती हैं।
भोंपे
से = लाउड स्पीकर से।
प्लेटफार्म
= रेलवे रान का वह स्थान जहाँ गाड़ियाँ रुकती हैं और सवारियाँ चढ़ती-उतरती हैं।
जी
भारी हो गया = मन में दुःख हुआ।
कलपने
लगा = परेशान होने लगा।
बुलाहट
= बुलावा।
मायजी
= माता जी।
बबुआ
= बेटा।
सवांग
= सगे संबंधी (परिवारीजन)।
गाँव
की लक्ष्मी = पूरे गाँव की भाग्यवान बहू।
जिद
= हळू। अफरकर = पेट भर कर।
मेहमानी
= किसी का मेहमान (अतिथि) बनना और आतिथ्य का सुख उठाना।
दुआ
= कृपा।
चौअन्नी
= चवन्नी, चार आने (एक पुराना सिक्का)।
खूम
सूखना = भयभीत होना।
निरगुन
गाने वाला = भजन सुनाने वाला।
सूरदास
= अंधा व्यक्ति।
नैहरा
को सुख = मायके में मिलने वाला सुख।
करम
की गति = कर्मफल।
भोर
= सुबह।
बीस
कोस = चालीस मील की दूरी।
मंजिल
= पहुँचने का स्थान।
महावीर
विक्रम बजरंगी = हनुमान जी।
बाई
के औंके पर रहना = उत्साह के झोंके में।
पोटली
= गठरी।
सौगात
= भेंट।
डबडबायी
= आँसुओं से भरी।
सांझ
= संध्या।
राह
= रास्ता।
टटोलकर
= छूकर।
मसकने
= दबाने।
महत्त्वपूर्ण व्याख्याएँ
हरगोबिन को अचरज हुआ तो आज भी किसी को संवदिया की जरूरत पड़ सकती है।
इस जमाने में जबकि गाँव-गाँव में डाकंघर खुल गए हैं, संवदिया के मारफत संवाद क्यों
भेजेगा कोई ? आज तो अ मी घर बैठे ही लंका तक खबर भेज सकता है और वहाँ का कुशल संवाद
मँगा सकता है, फिर उसकी बुलाहट क्यों हुई? हरगोबिन बड़ी हवेली की टूटी ड्योढ़ी पारकर
अंदर गया। सदा की भाँति उसने वातावरण को सूंघकर संवाद का अंदाज लगाया।...निश्चय ही'
कोई गुप्त समाचार ले जाना है।
संदर्भ
: प्रस्तुत पंक्तियाँ हिन्दी के सुप्रसिद्ध आंचलिक
कहानीकार फणीश्वरनाथ 'रेणु' की कहानी 'संवदिया' से ली गई हैं जिसे हमारी पाठ्य-पुस्तक
'अंतरा भाग. 2' में संकलित किया गया है।
प्रसंग
: बड़ी हवेली की बहुरिया ने हरगोबिन को बुलाया है। संवाद पहुँचाना है उसे अपनी माँ
के पास। हरगोबिन को इस बुलावे पर आश्चर्य हो रहा है कि.आज तो डाकघर खुल जाने से चिट्ठी-पत्री
की सुविधा है फिर भला उसकी बुलाहट क्यों हुई है ?
व्याख्या
: गाँव की बड़ी हवेली में रहने वाली बड़ी बहुरिया ने हरगोबिन को बुलवाया है। उसे अपनी
माँ के पास कोई संदेश भिजवाना है। हरगोबिन संवदिया है अर्थात् 'संवाद ले जाने वाला'!
आज भी किसी को संवदिया की जरूरत पड़ सकती है-यह जानकर हरगोबिन को अचरज हो रहा था। एक
जमाना था जब डाक की. समुचित व्यवस्था न थी पर अब तो गाँव-गाँव डाकघर खुल गए हैं अब
भला संवदिया की क्या जरूरत।
पर
बड़ी बहू जरूर कोई ऐसा संवाद भिजवाना चाहती हैं जिसे चिट्ठी-पत्री में नहीं लिख सकर्ती
वरना चिट्ठी तो आज विदेशों तक भेजी जा सकती है। आदमी घर बैठे ही संका तक खबर भेज सकता
है और वहाँ से कुशलक्षेम का संवाद मँगा सकता है। पर आज बड़ी बहू ने हरगोबिन संवदिया
को बुलाया है तो जरूर कोई खास बात होगी, कोई खास संवाद भिजवाना होगा तभी तो उसको बुलाया
है। हरगोबिन संवदिया जब बड़ी हवेली के टूटे हुए दरवाजे पर पहुँचा तो सदैव की भाँति
उसने वातावरण को भाँप कर यह अनुमान लगाने का प्रयास किया कि अवश्य ही उसे कोई महत्त्वपूर्ण
समाचार पहुँचाने के लिए बुलाया गया है।
विशेष
:
संवदिया
अर्थात् संदेश ले जाने वाला हरकारा/हरगोबिन गाँव का संवदिया है।
भाषा-भाषा
सरल, सहज और प्रवाहपूर्ण है। उसमें अंचल विशेष के शब्द होने के कारण अपूर्व आकर्षण
उत्पन्न हो गया है।
शैली
आँचलिक शैली का प्रयोग है।
वातावरण
को सूंघकर संवाद का अन्दाज लगाने से हरगोबिन के कुशल संवदिया होने का पता चलता है।
बड़ी हवेली की बड़ी बहुरिया ने हरगोबिन को पीढ़ी दी और आँख के इशारे
से कुछ देर चुपचाप बैठने को कहा। बड़ी हवेली अब नाममात्र को ही बड़ी हवेली है। जहाँ
दिन-रात नौकर-नौकरानियों और जन-मजदूरों की भीड़ लगी रहती थी, वहाँ आज हवेली की बड़ी
बहरिया अपने हाथ से सपा में अनाज लेकर फटक रही है। मन लगाकर ही गाँव की नाइन परिवार
पालती थी। कहाँ गए वे दिन ? हरगोबिन ने लंबी साँस ली।
संदर्भ
: प्रस्तुत गद्यावतरण हिन्दी के सुप्रसिद्ध आंचलिक कहानीकार फणीश्वरनाथ 'रेणु' की कहानी
'संवदिया' से लिया गया है, जिसे हमारी पाठ्य-पुस्तक 'अंतरा भाग-2' में संकलित किया
गया है।
प्रसंग
: बड़ी हवेली की बड़ी बहुरिया ने अपनी माँ के पास संदेश भिजवाने के लिए हरगोबिन संवद्रिया
को बुलाया है। बड़ी हवेली अब नाम मात्र की ही बड़ी हवेली है, अब इसमें रहने वाली बड़ी
बहुरिया की आर्थिक हालत तंग हो गई है। इसी विषय में इस अवतरण में बताया गया है।
व्याख्या
: हरगोबिन संवदिया को बड़ी हवेली की बड़ी बहू ने संवाद पहुँचाने के लिए बुलाया है।
जब हरगोबिन वहाँ पहुँचा तो बड़ी बहुरिया ने उसे बैठने के लिए पीढ़ी दी और आँख के इशारे
से चुपचाप बैठने को कहा। वह नहीं चाहती थी कि गाँव की मोदिआइन काकी के सामने संवदिया
से कहे कि अपनी माँ के पास संदेश भिजवाना है। मोदिआइन काकी की गाँव में दुकान थी और
वे अपना पैसा माँगने बड़ी हवेली में आकर बड़बड़ा रही थीं।
हरगोबिन
जानता है कि बड़ी हवेली अब नाममात्र की ही बड़ी हवेली रह गई है। एक समय था जब यहाँ
दिन-रात नौकर-नौकरानियाँ, जन-मजदूरों की भीड़ लगी रहती थी, चहल-पहल रहती थी पर अब सब
खत्म हो गया। बड़े भइया की मौत हो गई और शेष तीनों भाई शहर जाकर रहने लगे। जमीन-जायदाद
पर रैयत (प्रजा) ने कब्जा कर लिया। अब तो अकेली रह रही बड़ी बहुरिया के खाने तक का
ठिकाना नहीं है। बड़ी हवेली की बड़ी बहुरिया आज अपने हाथ में सूप लेकर अनाज फटक रही
है। एक जमाना था जब गाँव की नाइन बड़ी बहू के इन हाथों में मेंहदी लगाकर ही अपने परिवार
को पाल लेती थी पर अब तो दिन बदल गए। हरगोबिन ने बड़ी हवेली की इस दुर्दशा पर लम्बी
साँस ली।
विशेष
:
बड़ी
हवेली की दुर्दशा पर संवदिया हरगोबिन दुखी हो रहा है। इससे हरगोबिन की संवेदनशीलता
प्रकट
आज
बड़ी हवेली नाम की ही बड़ी हवेली है तभी तो वहाँ रहने वाली बड़ी बहू अपने हाथों में
सूप लेकर अनाज फटक रही है।
भाषा-भाषा
सरल, सहज और प्रवाहपूर्ण है। बहुरिया, सूपा, पीढ़ी आदि आंचलिक शब्द भाषा की मोहकता
को बढ़ा रहे हैं।
शैली-विवरणात्मक
शैली का प्रयोग है।
बड़े भैया के मरने के बाद ही जैसे सब खेल खत्म हो गया। तीनों भाइयों
ने आपस में लड़ाई-झगड़ा शुरू किया। रैयतों ने जमीन पर दावे करके दखल किया, फिर तीनों
भाई गाँव छोड़कर शहर में जा बसे, रह गई बड़ी बहुरिया-कहाँ जाती बेचारी! भगवान भले आदमी
को ही कष्ट देते हैं। नहीं तो एक घंटे की बीमारी में बड़े भैया क्यों मरते?... बड़ी
जेवर खींच-छीनकर बँटवारे की लीला हई थी। हरगोबिन ने देखी है अपनी आँखों से द्रौपदी
चीर-हरण लीला! बनारसी साड़ी को तीन टुकड़े करके बँटवारा किया था, निर्दय भाइयों ने।
बेचारी बड़ी बहुरिया!
संदर्भ
: प्रस्तुत पंक्तियाँ 'संवदिया' नामक कहानी से ली गई हैं। यह कहानी हमारी पाठ्य-पुस्तक
'अंतरा-भाग-2' में संकलित है और इसके लेखक प्रसिद्ध आंचलिक कथाकार फणीश्वरनाथ 'रेणु'
हैं।
प्रसंग
: बड़ी हवेली की दुर्दशा बड़े भाई की अचानक हुई मृत्यु के बाद प्रारंभ हुई। तीनों भाई
शहर में जा बसे, जमीनों पर किसानों ने दखल कर लिया। आपसी लड़ाई-झगड़े एवं बँटवारे से
बड़ी हवेली बरबाद हो गई।
व्याख्या
: हरगोबिन संवदिया बड़ी हवेली की दुर्दशा पर विचार करते हुए सोच रहा था कि बड़े भइया
के मरने के बाद ही हवेली की शान-शौकत नष्ट हो गई। शेष बचे तीनों भाइयों ने आपस में
लड़ाई-झगड़ा किया जिसका फायदा उठाकर किसानों ने जमीन पर अधिकार कर लिया। तीनों भाई
गाँव छोड़कर शहर में जा बसे और बड़ी हवेली में अकेली रह गई बड़ी बहुरिया। वह बेचारी
कहाँ जाती, सो यहीं रह गई।
भले
आदमी को ही भगवान कष्ट देते हैं, तभी तो एक घंटे की बीमारी में बड़े भइया चल बसे। उनके
मरने के बाद घर तितर-बितर हो गया। भाइयों ने बड़ी बहुरिया (अपनी भाभी) के शरीर से जेवर
उतरवाकर बँटवारा किया। हद तो तब हो गई जब उन निर्दयी भाइयों ने अपनी भाभी के शरीर से
बनारसी साड़ी उतरवाकर उसके तीन टुकड़े करके आपस में बाँट लिए। द्रौपदी तुल्य बड़ी बहुरिया
की यह चीर-हरण लीला हरगोबिन ने अपनी आँखों से देखी थी। बेचारी बड़ी बहुरिया को कितने
कष्ट अपने जीवन में झेलने पड़े हैं।
विशेष
:
बड़ी
हवेली की दुर्दशा का चित्रण किया गया है। बड़ी बहुरिया के पति का असमय निधन हो जाने
से ही बड़ी हवेली दुर्दशा को प्राप्त हुई।
परिवार
का विघटन पूरे परिवार को बरबाद कर देता है यही बताना लेखक का उद्देश्य है।
भाषा-भाषा
सरल, सहज और प्रवाहपूर्ण हिन्दी हैं। खेल खत्म हो जाना, द्रौपदी चीर-हरण लीला देखना
आदि मुहावरों का सटीक प्रयोग किया गया है। रैयत, दावे, दखल आदि उर्दू शब्दों का भी
प्रयोग हुआ है।
शैली
विवरणात्मक शैली का प्रयोग है।
"और कितना कड़ा करूँ दिल?... माँ से कहना, मैं भाई-भाभियों की
नौकरी करके पेट पालूँगी। बच्चों की जूठन खाकर एक कोने में पड़ी रहूँगी, लेकिन यहाँ
अब नहीं.....अब नहीं रह सकूँगी।..... कहना, यदि माँ मुझे यहाँ से नहीं ले जायेगी तो
मैं किसी दिन गले में घड़ा बाँधकर पोखरे में डूब मरूँगी। ..... बथुआ-साग खाकर कब तक
जीऊँ ? किसलिए .... किसके लिए ?" हरगोबिन का रोम-रोम कलपने लगा।
संदर्भ
: प्रस्तुत गद्यावतरण हमारी पाठ्य-पुस्तक 'अंतरा भाग-2' में संकलित कहानी 'संवदिया'
का एक अंश है। यह मार्मिक कहानी हिन्दी के सुप्रसिद्ध आंचलिक कहानीकार श्री फणीश्वरनाथ
'रेणु' ने लिखी है।
प्रसंग
:
बड़ी हवेली की बड़ी बहुरिया ने हरगोबिन संवदिया को बुलाया अपनी माँ के पास यह संदेश
पहुँचाने के लिए कि वे उसे बुला लें, अब यहाँ रह पाना संभव नहीं है। संदेश देते समय
उसकी आँखें छलछला रही थीं। हरगोबिन ने जब बड़ी बहू से कहा कि आप धैर्य धारण करें, दिल
कड़ा करें। तब बड़ी बहू ने बताया कि वह बहुत धैर्य रख चुकी, अब और अधिक धैर्य नहीं
रख सकती।
व्याख्या
: बड़ी बहुरिया ने हरगोबिन से कहा-कितना दिल कड़ा करूँ, कितना धैर्य धारण करूँ ? अब
नहीं सहा जाता। तुम जाकर मेरी माँ से कहना कि मैं भाई-भाभियों की नौकरी कर पेट पाल
लूँगी। बच्चों की जूठन खाकर एक कोने में पड़ी रहूँगी लेकिन अब यहाँ बड़ी हवेली (ससुराल)
में रह पाना संभव नहीं है। यहाँ अब खाने तक को अनाज उपलब्ध नहीं है। माँ से कहना कि
यदि उसने मुझे जल्दी नहीं बुलाया तो आत्महत्या करने के लिए गले में घड़ा बाँधकर किसी
तालाब में डूब मरूँगी। बथुआ-साग खाकर कब तक जीवित रहूँ और किसके लिए जीऊँ? बड़ी बहुरिया
के दुःख को देखकर हरगोबिन अत्यन्त दुःखी हो गया।
विशेष
:
बड़ी
बहुरिया का अपनी माँ को भेजा गया यह संदेश अत्यंत. मार्मिक एवं करुण है। बड़ी बहू अब
अपनी गरीबी से तंग आकर माँ के घर रहना चाहती है।
यदि
माँ ने उसे जल्दी नहीं बुलाया तो वह आत्महत्या कर लेगी - इस कथन से बड़ी बहुरिया की
व्याकुलता प्रकट होती है।
भाषा-भाषा
सरल, सहज और प्रवाहपूर्ण है। 'दिल कड़ा करना', 'पेट पालना', 'रोम-रोम कल्पना' आदि मुहावरों
के प्रयोग ने भाषा को सशक्त बना दिया है।'
शैली
- आत्मकथन तथा संवाद शैलियों का प्रयोग हुआ है।
संवाद पहुँचाने का काम सभी नहीं कर सकते। आदमी भगवान के घर से संवदिया
बनकर आता है। संवाद के प्रत्येक शब्द को याद रखना, जिस सुर और स्वर में संवाद सुनाया
गया है, ठीक उसी ढंग से जाकर सुनाना सहज काम नहीं। गाँव के लोगों की गलत धारणा है कि
निठल्ला, कामचोर और पेटू आदमी ही संवदिया का काम करता है। न आगे नाथ, न पीछे पगहा।
बिना मजदूरी लिए ही जो गाँव-गाँव संवाद पहुँचावे, उसको और क्या कहेंगे ?..... औरतों
का मुलाम। जरा-सी मीठी बोली सुनकर ही नशे में आ जाए, ऐसे मर्द को भी भला मर्द कहेंगे
? किंतु गाँव में कौन ऐसा है, जिसके घर की माँ-बहू-बेटी का संवाद हरगोबिन ने नहीं पहुँचाया
है ? ..... लेकिन ऐसा संवाद पहली बार ले जा रहा है वह।
संदर्भ
:
प्रस्तुत पंक्तियाँ 'संवदिया' नामक आंचलिक कहानी से ली गई हैं जिसके रचयिता सुप्रसिद्ध
हिन्दी कथाकार फणीश्वरनाथ 'रेणु' हैं। यह कहानी हमारी पाठ्य-पुस्तक 'अंतरा-भाग-2' में
संकलित है।
प्रसंग
: बड़ी हवेली की बड़ी बहुरिया अपनी माँ के पास संदेश भिजवा रही है, इस हेतु उसने गाँव
के हरगोबिन संवदिया को बुलाया है। हरगोबिन को गाँव के लोग निठल्ला कहते हैं पर हरगोबिन
जानता है कि संवदिया का काम कितना कठिन होता है। संवदियां की विशेषताओं का उल्लेख इस
अवतरण में कहानीकार ने किया है।
व्याख्या
: हरगोबिन सोच रहा है कि संवदिया का काम हर कोई नहीं कर सकता। लगता है कि भगवान के
घर से ही कुछ लोग संवदिया बनकर आते हैं। संवदिया का काम बहुत कठिन और गोपनीय होता है।
संदेश देने वाले ने जिस सुर और स्वर में संवाद सुनाया है, ठीक उसी ढंग से उसे गंतव्य
स्थान पर जाकर संवाद सुनाना चाहिए। य हर किसी के वश का नहीं है। गाँव के लोगों की धारणा
है कि हरंगोबिन जैसा निठल्ला. का संवदिया का काम कर सकता है पर उनकी यह धारणा नितांत
गलत है।
हरगोबिन
के परिवार में और कोई नहीं है, वह इसीलिए बिना मजदूरी लिए गाँव-गाँव में संवाद पहुँचाता
है। लोग इसी कारण उसे मूर्ख समझते हैं पर वह जानता है कि गाँव का कौन-सा ऐसा घर है
जिसकी माँ-बहू-बेटी को संवाद भिजवाने हेतु उसकी आवश्यकता न पड़ी हो। उसने सबका काम
किया है और गोपनीय ढंग से किया है। गाँव के लोग भले ही उस पर यह तोहमत मढ़ें कि वह
मूर्ख है और औरतों की मीठी बातों में आकर ही उनका संवाद बिना मजदूरी लिए पहुँचाता है।
पर वह अपने काम की महत्ता से परिचित है। किन्तु आज बड़ी हवेली की बड़ी बहू ने जो मार्मिक
संवाद अपनी माँ के पास पहुँचाने के लिए उसे दिया ऐसा संवाद वह पहली बार ले जा रहा है।
विशेष
:
प्रस्तुत
गद्यांश में संवदिया की विशेषताओं का निरूपण है।
संवदिया
हरगोबिन की अपने काम के प्रति निष्ठा और विश्वास को प्रकट किया गया है।
भाषा-भाषा
सरल, सहज और प्रवाहपूर्ण है। मुहावरों के प्रयोग के कारण भाव-व्यंजना में चार चाँद
लग गये हैं।
शैली-वर्णनात्मक
शैली है।
कटिहार जंक्शन पहुँचकर उसने देखा, पंद्रह-बीस साल में बहुत कुछ बदल
गया है। अब स्टेशन पर उतरकर किसी से कुछ पूछने की कोई जरूरत नहीं। गाड़ी पहुँची और
तुरंत भोंपे से आवाज अपने आप निकलने लगी-थाना बिंहपुर, खगड़िया और बरौनी जाने वाले
यात्री तीन नंबर प्लेटफार्म पर चले जाएँ, गाड़ी लगी हुई है।' हरगोबिन प्रसन्न हुआ कटिहार
पहुँचने के बाद ही मालूम होता है कि सचमुच सुराज हुआ है।
संदर्भ-प्रस्तुत
अवतरण हिन्दी के सुप्रसिद्ध आंचलिक कथाकार फणीश्वरनाथ 'रेणु' की आंचलिक कहानी 'संवदिया'
से लिया गया है। यह कहानी हमारी पाठ्य-पुस्तक 'अंतरा भाग-2' में संकलित है।
प्रसंग
: हरगोबिन संवदिया बड़ी हवेली की बड़ी बहू का संदेश लेकर उसके मायके जा रहा है। कटिहार
जंक्शन पर पहुँचकर उसने पाया कि पिछले वर्षों में बहुत कुछ बदला है। इस परिवर्तन से
उसे बहुत सहूलियत हुई और तब उसे लगा कि 'सुराज' के कारण बड़ी तरक्की हुई है।
व्याख्या
: हवेली की बड़ी बहू का संदेश लेकर हरगोबिन संवदिया उसके मायके के लिए चल पड़ा। जब
वह कटिहार जंक्शन पहुँचा तो उसने देखा कि पिछले पंद्रह-बीस वर्षों में बहुत कुछ बदल
गया है। अब उसे गाड़ी से उतरकर यह पूछने की जरूरत ही न पड़ी कि थाना बिंहपुर की गाड़ी
कब और कहाँ से जाएगी। जैसे ही वह स्टेशन पर उतरा लाउडस्पीकर से आवाज आने लगी कि थाना
बिंहपुर, खगड़िया.और बरौनी जाने वाले यात्री तीन नंबर प्लेटफार्म पर पहुँचें, वहाँ
गाड़ी लगी हुई है।
हरगोबिन
प्रसन्न हो गया और उसे लगा कि वास्तव में. 'सुराज' आ गया है और बहुत सारी सहूलियतें
सरकार उपलब्ध करा रही है। चारों ओर जो तरक्की हुई है उसी का यह सुपरिणाम है कि स्टेशन
पर भोंपे (लाउडस्पीकर) लग गए हैं और उनसे जानकारियाँ प्रसारित हो रही हैं। हरगोबिन
को पहले कई बार लोगों से गाड़ी के बारे में पूछना पड़ता था और इसी चक्कर में उसकी गाड़ी
छूट भी जाती थी पर अब प्लेटफार्म पर होने वाली उद्घोषणा से बड़ी सहूलियत हो गई थी।
विशेष
:
हरगोबिन
गाँव का सीधा-सादा ग्रामीण है। शहर आने का अवसर उसे कम ही मिलता है।
कटिहार
जंक्शन पर होने वाली उद्घोषणा के द्वारा लेखक ने यह बताने का प्रयास किया है कि चहुँमुखी
विकास हो रहा है।
आंचलिक
शब्दावली.-'भोंपे' (लाउडस्पीकर) के लिए प्रयुक्त है।
भाषा
सरल, सहज और प्रवाहपूर्ण है। शैली वर्णनात्मक है।
नहीं मायजी! जमीन-जायदाद अभी भी कुछ कम नहीं। जो है, वही बहुत है। टूट
भी गई है, है तो आखिर बड़ी हवेली ही। 'संवाग' नहीं है, यह बात ठीक है! मगर बड़ी बहुरिया
का तो सारा गाँव ही परिवार है। हमारे गाँव की लक्ष्मी है बड़ी बहुरिया।... गाँव की
लक्ष्मी गाँव को छोड़कर शहर कैसे जाएगी? यों, देवर लोग हर बार आकर ले जाने की जिद करते
है।
संदर्भ : प्रस्तुत पंक्तियाँ 'संवदिया' नामक आंचलिक
कहानी से ली गई हैं जिसके लेखक फणीश्वरनाथ 'रेणु' हैं। यह आंचलिक कहानी हमारी पाठ्य-पुस्तक
'अंतरा भाग-2' में संकलित है।
प्रसंग
: हरगोबिन बड़ी बहुरिया का संवाद लेकर उसके मायके पहुँचा। जब बड़ी बहुरिया की बूढ़ी
माता ने हरगोबिन से पूछा कि क्या संवाद लाए हो तो वह झूठ बोल गया और कहा--संवाद तो
कोई नहीं बस आप लोगों के दर्शन करने आ गया। बूढ़ी माता ने कहा कि मैं तो बबुआ से कब
से कह रही हूँ कि जाकर दीदी को ले आओ, अब वहाँ बचा ही क्या है। जमीन-जायदाद सब चली
गई, तीनों देवर शहर में जाकर बस गए अब अकेली वहाँ क्या करेगी।
व्याख्या
: हरगोबिन ने बड़ी बहुरिया की बूढ़ी माँ की बातों का प्रतिवाद किया यद्यपि वह जानता
था कि वह झूठ बोल रहा है। उसने कहा- नहीं माँ, जी जमीन-जायदाद अभी बहुत है, हवेली टूट
भले ही गई हो पर है तो बड़ी हवेली ही। यह ठीक है कि बड़ी बहुरिया का कोई सगा साथ में
नहीं रहता पर सारा गाँव ही उनका परिवार है। वे हमारे गाँव की लक्ष्मी हैं। गांव की
लक्ष्मी भला गाँव छोड़कर कैसे जाएगी. इसलिए वे शहर नहीं जाती वरना उनके देवर तो हर
बार आकर उन्हें शहर ले जाने की जिद करते हैं। हरगोबिन को लगा कि यदि मैंने बड़ी बहुरिया
की विपत्ति कथा और उनका दुःख भरा संवाद बूढ़ी माता जी को दे दिया तो इससे पूरे गाँव
की बदनामी होगी। गाँव की इज्जत का सवाल है। बूढ़ी माता सोचेगी-लो पूरा गाँव मिलकर भी
गाँव की लक्ष्मी (बहू) की देखरेख नहीं कर पाया।
विशेष
:
'संवदिया'
एक आंचलिक कहानी है।
संवदिया
हरगोबिन को गाँव की इज्जत प्यारी थी इसलिए उसने बड़ी बहू का संवाद उसकी माँ को नहीं
दिया।
प्रस्तुत
अवतरण में संवदिया हरगोबिन के चरित्रांकन में कहानीकार को सफलता मिली है।
संवाद
शैली है। भाषा सरल, सहज, प्रवाहपूर्ण एवं आंचलिक है। 'सवांग' आंचलिक शब्द है।
संवदिया डटकर खाता है और 'अफर' कर सोता है, किन्तु हरगोबिन को नींद
नहीं आ रही है।..... यह उसने क्या किया ? क्या कर दिया ? वह किसलिए आया था ? वह झूठ
क्यों बोला ?.... नहीं, नहीं, सुबह उठते ही वह बूढ़ी माता को बड़ी बहुरिया का सही संवाद
सुना देगा अक्षर-अक्षर, 'मायजी, आपकी इकलौती बेटी बहुत कष्ट में है। आज ही किसी को
भेजकर बुलवा लीजिए। नहीं तो वह सचमुच कुछ कर बैठेगी। आखिर, किसके लिए वह इतना सहेगी।.....
बड़ी बहुरिया ने कहा है, भाभी के बच्चों की जूठन खाकर वह एक कोने में पड़ी रहेगी.....।
संदर्भ
: प्रस्तुत पंक्तियाँ 'संवदिया' नामक कहानी से ली गई हैं। यह आंचलिक कहानी फणीश्वरनाथ
'रेणु' द्वारा रचित है और इसे हमारी पाठ्य-पुस्तक 'अन्तरा भाग-2' में संकलित किया गया
है।
प्रसंग
: बड़ी बहुरिया का संदेश लेकर हरगोबिन संवदिया उसकी बूढ़ी माँ के गाँव पहुँचा। उसके
सामने सुस्वाद भोजन की थाली रखी गयी पर उससे खाया न गया। बार-बार आँखों के सामने बड़ी
बहुरिया की करुण मूर्ति आ जाती। साथ ही उसे इस बात की भी पीड़ा थी कि उसने संवदिया
का कर्तव्य पूरा नहीं किया। इन पंक्तियों में उसके इसी मानसिक अंतर्द्वन्द्व की अभिव्यक्ति
हुई है।
व्याख्या
: संवदिया का विशेष आदर-सत्कार होता है। अच्छा एवं स्वादिष्ट भोजन वह पेटभर कर खाता
है और डटकर सोता है पर हरगोबिन संवदिया से आज न तो भरपेट भोजन किया गया और न ही उसे
नींदे आ रही है। बार-बार उसे लगता है कि उसने बड़ी बहू का संदेश माँ जी को न सुनाकर
अपराध किया है। बड़ी बहू ने बड़ी आशा और विश्वास से उसे भेजा था पर उसने अपने कर्त्तव्य
का निर्वाह नहीं किया।
वह
यहाँ बड़ी बहुरिया के कष्टों का समाचार देने आया था पर यहाँ आकर उसने झूठ क्यों बोला
कि वहाँ सब ठीक-ठाक है और हवेली में बड़ी बहुरिया कुशल से है, जबकि बड़ी बहुरिया भोजन
न मिलने के कारण बथुआ-साग खाकर जैसे-तैसे गुजारा कर रही थी। वह सोचने लगा कि सुबह उठते
ही वह माँ जी को बता देगा कि उनकी इकलौती बेटी बहुत कष्ट में है और यदि आपने उसे जल्दी
नहीं बुलाया तो कष्ट की अधिकता में वह कुछ कर बैठेगी।
आखिर
कब तक बथुआ-साग खाकर गुजारा करेगी और किसके लिए इतना कष्ट सहेगी ? कोई भी तो उसका नहीं
है। उसने तो यह संदेश दिया है कि माँ जी से जाकर कहना कि मुझे शीघ्र बुला लें। मैं
भाभी के बच्चों की जूठन खाकर एक कोने में पड़ी रहूँगी और मायके में रहकर गुजारा कर
लूँगी। पर उसने यह संदेश अभी तक माँ जी को न सुनाकर अपने 'संवदिया' होने का कर्तव्य
पालन नहीं किया है, यह उचित नहीं है। इसी अंतर्द्वन्द्व के कारण हरगोबिन संवदिया की
आँखों - से नींद गायब हो गई थी।
विशेष
:
प्रस्तुत
अवतरण में हरगोबिन के अंतर्द्वन्द्व का चित्रण है।
हरगोबिन
को यह अपराध बोध हो रहा था कि उसने बड़ी बहू का संदेश माँ जी को न सुनाकर भूल की है।
भाषा-भाषा
सरल, सहज और प्रवाहपूर्ण हिन्दी है।
शैली
- मनोविश्लेषण शैली का प्रयोग किया गया है।
हरगोबिन महावीर-विक्रम-बजरंगी का नाम लेकर पैदल ही चल पड़ा। दस कोस
तक वह मानो 'बाई' के झोंके पर रहा। कस्बा-शहर पहुँचकर उसने पेटभर पानी पी लिया। पोटली
में नाक लगाकर उसने सूंघा-अहा! बासमती धान का चूड़ा है। माँ की सौगात बेटी के लिए।
नहीं, वह इससे एक मुट्ठी भी नहीं खा सकेगा..... किन्तु, वह क्या जवाब देगा बड़ी बहुरिया
को? उसके पैर लड़खड़ाए।... हूँ, अभी वह कुछ नहीं सोचेगा। अभी सिर्फ चलना है।
संदर्भ
: प्रस्तुत गद्यावतरण 'संवदिया' नामक आंचलिक कहानी से लिया गया है जिसके लेखक फणीश्वरनाथ
'रेणु' ... हैं। यह कहानी हमारी पाठ्य-पुस्तक 'अंतरा भाग-2' में संकलित है।
प्रसंग
: हरगोबिन संवदिया बड़ी बहरिया के मायके उसका संवाद लेकर गया पर वह उस संवाद को बिना
कहे वापस
लौट
आया। लौटने के लिए पूरा रेल किराया पास न होने पर वह कटिहार तक टिकट लेकर रेलगाड़ी
से आ गया।
व्याख्या
: हरगोबिन पर आगे की यात्रा के टिकट के पैसे न थे। यहाँ से उसका गाँव 20 कोस दूर था।
वह हनुमान जी का नाम लेकर पैदल ही चल पड़ा। दस कोस तो वह उत्साह के झोंके में चला आया।
कस्बे में पहुँचकर उसने भरपेट पानी पी लिया। बड़ी बहुरिया के लिए माँ जी द्वारा भेजी
गयी सौगात 'बासमती धान का चूड़ा' पोटली में बँधा उसके पास था। उसने नाक लगाकर सूंघा,
बहुत अच्छी सुगन्ध आ रही थी।
पर
वह इस सौगात में से कुछ खा नहीं सकता था। वह सोच रहा था घर पहुँचकर बड़ी बहुरिया को
क्या जवाब देगा ? जब वह पूछेगी कि माँ को मेरा संदेशा दे आए तो वह क्या कहेगा, क्योंकि
उसने तो इस डर से बड़ी बहुरिया के कष्ट की बात और उसे मायके बुला लेने का संदेश उसकी
माँ से कहा ही नहीं था। ऐसा कहने से तो पूरे गाँव की बदनामी होती। वह गाँव की इज्जत
को बट्टा नहीं लगा सकता था। पर वह अभी कुछ नहीं सोचना चाहता था। उसे चलने रहने की चिन्ता
थी। वह किसी तरह भी जल्दी गाँव पहुँचना चाहता था।
विशेष
:
हरगोबिन
के चरित्र पर प्रकाश डाला गया है। वह ईमानदार, नैतिकतावादी एवं कष्ट सहिष्णु है।
हरगोबिन
के अंतर्द्वन्द्व का यथार्थ चित्रण है।
भाषा-भाषा
सरल, सहज और प्रवाहपूर्ण हिन्दी है। 'बाई' आंचलिक शब्द है जिसका अर्थ है झोंका।
शैली-विवरणात्मक
मनोविश्लेषण शैली का प्रयोग है।
लेकिन, यह कहाँ चला आया हरगोबिन ? यह कौन गाँव है ? पहली साँझ में ही
अमावस्या का अंधकार ! किस राह से वह किधर जा रहा है ? .... नदी है ! कहाँ से आ गई नदी
? नदी नहीं, खेत हैं.... ये झोपड़े हैं या हाथियों का झुण्ड ? ताड़ का पेड़ किधर गया
? वह राह भूलकर न जाने कहाँ भटक गया ? .... इस गाँव में आदमी नहीं रहते क्या ? कहीं
कोई रोशनी नहीं, किससे पूछे ? ..... कहाँ, वह रोशनी है या आँखें ? वह खड़ा है या चल
रहा है ? वह गाड़ी में है या धरती पर ?
सन्दर्भ : प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक 'अंतरा-भाग 2' में संकलित फर्णीश्वरनाथ 'रेणु' द्वारा रचित आंचलिक कहानी 'संवदिया' से उद्धृत है।
प्रसंग
: संवदिया (हरगोबिन) बड़ी बहुरिया के मायके से लौटा। किराये के पैसे कम थे अतः कटिहार
के बाद जलालगढ़ तक का बीस कोस लम्बा मार्ग भूखे-प्यासे पैदल ही तय किया। थकावट और भूख
से व्याकुल हरगोबिन अर्द्धमूर्छा की अवस्था में जा पहुँचा।
व्याख्या
:
हरगोबिन को पूरी तरह होश नहीं था। भूख-प्यास और थकावट से वह अर्द्धमूर्छित-सा हो गया
था। उसकी ऐसी अवस्था हो गई थी कि वह समझ नहीं पा रहा था कि वह कहाँ आ गया है, किस गाँव
में आ पहुँचा है। अभी तो शाम ही हुई है। पर वहाँ अमावस्या की रात जैसा घना अँधेरा हो
गया है। उसे समझ नहीं आ रहा कि वह कौन-से रास्ते पर चल रहा है और कहाँ जा रहा है ?
रास्ते में यह नदी कहाँ से आ गई ? नदी तो रास्ते में थी नहीं। नहीं, यह नदी नहीं है।
ये
तो खेत हैं। ये झोंपड़े हैं या हाथियों का झुण्ड रास्ते में खड़ा है। यहाँ एक ताड़
का पेड़ था, वह कहाँ गया ? जरूर वह रास्ता भूल गया है और गलत जगह आ पहँचा है। यह गाँव
बड़ा सूना है। क्या इस गाँव में कोई आदमी नहीं रहता ? कहीं प्रकाश दिखाई नहीं देता।
वह किससे पूछे कि वह कहाँ आ गया है ? सामने वह क्या चमक रहा है ? रोशनी है या किसी
की चमकीली आँखें हैं ? वह समझ नहीं पा रहा कि वह चल रहा है या खड़ा है ? वह गाड़ी में
बैठा है या जमीन पर खड़ा है।
विशेष
:
हरगोबिन
की मानसिक दशा का सजीव वर्णन कहानीकार ने किया है।
प्रश्नों
के माध्यम से संवदिया की मनोदशा का चित्रण सफलता के साथ किया गया है।
भाषा
सरल, प्रवाहपूर्ण तथा भावानुकूल है। लेखक ने उर्दू के शब्दों को भी अपनी भाषा में स्थान
दिया है।
हरगोबिन
की अवस्था का मनोवैज्ञानिक चित्रण होने से तथा प्रश्न शैली का प्रयोग कहानीकार ने किया
है।
हरगोबिन होश में आया।..... बड़ी बहुरिया का पैर पकड़ लिया, "बड़ी
बहुरिया! ..... मुझे माफ करो। मैं तुम्हारा संवाद नहीं कह सका। ..... तुम गाँव छोड़कर
मत जाओ। तुमको कोई कष्ट नहीं होने दूंगा। मैं तुम्हारा बेटा! बड़ी बहुरिया, तुम मेरी
माँ, सारे गाँव की माँ हो! मैं अब निठल्ला बैठा नहीं रहूँगा। तुम्हारा सब काम करूँगा।.....
बोलो, बड़ी माँ, तुम...तुम गाँव छोड़कर चली तो नहीं जाओगी ? बोलो..... ! बड़ी बहुरिया
गरम दूध में एक मुट्ठी बासमती चूड़ा डालकर मसकने लगी। .....संवाद भेजने के बाद से ही
वह अपनी गलती पर पछता रही थी।
संदर्भ
: प्रस्तुत पंक्तियाँ 'संवदिया' नामक आंचलिक कहानी से ली गई हैं। इनके लेखक सप्रसिद्ध
आंचलिक कहानीकार फणीश्वरनाथ 'रेणु' हैं। यह कहानी हमारी पाठ्य-पुस्तक 'अंतरा भाग-2'
में संकलित है।
प्रसंग
: हरगोबिन संवदिया के पास बड़ी बहुरिया के मायके से वापस आने के लिए पूरा राह खर्च
भी नहीं था। कटिहार तक रेल से आया फिर 20 कोस पैदल चलकर गाँव पहुँचा। भूखा-प्यासा,
थका-हारा हरगोबिन बेहोश हो गया। जब वह होश में आया तो उसने स्वयं को बड़ी बहुरिया के
सामने पाया।
व्याख्या
: हरगोबिन जब होश में आया तो उसने बड़ी बहुरिया के पैर पकड़कर कहा—बड़ी बहुरिया मुझे
माफ कर दो मैं आपका संदेश आपकी माँ को नहीं सुना सका। मैं चाहता हूँ आप गाँव छोड़कर
न जायें। मैं वादा करता हूँ कि आपको कोई कष्ट नहीं होने दूंगा। मैं आपका बेटा हूँ और
आप मेरी माँ हैं, मेरी ही नहीं सारे गाँव की माँ हैं। हमारे होते हुए आप मायके में
जाकर रहें यह नहीं हो सकता। इससे सारे गाँव की बेइज्जती होगी।
मैं
वादा करता हूँ कि अब बेकार नहीं बैलूंगा। आपका सब काम मैं करूँगा। बोलो बड़ी माँ आप
गाँव छोड़कर चली तो नहीं जाएँगी, बोलो! बड़ी बहुरिया ने जैसे मौन रहकर उसके प्रस्ताव
को स्वीकार कर लिया और वह हरगोबिन के लिए गरम दूध में चूड़ा डालकर मसकने लगी। वास्तव
में संवाद भेजने के बाद वह स्वयं अपनी गलती पर पछता रही थी, उसे ऐसा संवाद नहीं भेजना
चाहिए था। हरगोबिन ने संवाद न सुनाकर अच्छा ही किया। उसकी और सारे गाँव की इज्जत बच
गयी और अब तो उसे हरगोबिन जैसा बेटा मिल गया था। वह आराम से यहीं रहेगी।
विशेष
:
हरगोबिन
की कर्तव्यपरायणता एवं उसकी स्वामिभक्ति का परिचय इन पंक्तियों से प्राप्त होता है।
बड़ी
बहुरिया द्वारा गरम दूध में चूड़ा डालकर मेसकना उसके वात्सल्य का सूचक है। वह हरगोबिन
को अपने पुत्र मानकर उसे कुछ खिलाकर उसकी भूखे शान्त करना तथा थकावट दूर करना चाहती
है।
गाँव
की प्रतिष्ठा का अब कौन ऐसा ध्यान रखता है जैसा हरगोबिन को है।
भाषा-भाषा
सरल, सहज और प्रवाहपूर्ण हिन्दी है।
शैली वर्णनात्मक और संवाद शैली का प्रयोग हुआ है।