12th अंतरा 4. केदारनाथ सिंह (क) बनारस (ख) दिशा

12th अंतरा 4. केदारनाथ सिंह (क) बनारस (ख) दिशा
12th अंतरा 4. केदारनाथ सिंह (क) बनारस (ख) दिशा

बनारस

प्रश्न 1. बनारस में वसन्त का आगमन कैसे होता है और उसका क्या प्रभाव इस शहर पर पड़ता है?

अथवा

बनारस में वसन्त के आगमन और उसके व्यापक प्रभाव पर कविता के आधार पर टिप्पणी लिखिए।

अथवा

बनारस में वसंत का आगमन कैसे होता है तथा उसका प्रभाव इस शहर पर क्या होता है?

अथवा

कविता के आधार पर बनारस में वसन्त के आगमन और उसके प्रभाव का चित्रण अपने शब्दों में कीजिए।

उत्तर : बनारस में वसन्त का आगमन अचानक होता है। सारा शहर धूल से भर जाता है। लोगों की जीभ पर धूल की किरकिराहट अनुभव होने लगती है। प्रकृति में जब वसन्त ऋतु आती है तो सारी प्रकृ श्रृंगार करती है। वृक्षों पर नये पत्ते आते हैं पर बनारस का वसन्त उससे भिन्न है। बनारस के वसन्त में चारों तरफ धूल के बवंडर उठते हैं। वसन्त में बनारस के गंगा के घाटों, और मन्दिरों में घण्टों की ध्वनि सुनाई देती है। गंगा के घाटों और मन्दिरों में भिखारियों की भीड़ बढ़ जाती है और उनके कटोरे भीख से भर जाते हैं।

प्रश्न 2. 'खाली कटोरों में वसन्त का उतरना' से क्या आशय है?

उत्तर : उपर्युक्त कथन का आशय यह है कि अब तक भिखारियों के जो कटोरे खाली थे वे अब भिक्षा से भर जायेंगे। लोग उनमें पैसे डालने आरम्भ कर देंगे। भिखारियों की आँखें आनन्द से चमकने लगती हैं। लगता है मानो उनके कटोरों में वसन्त उतर आया है।

प्रश्न 3. बनारस की पूर्णता और रिक्तता को कवि ने किस प्रकार दिखाया है ?

अथवा

बनारस कविता में बनारस की पूर्णता और रिक्तता को कवि ने कैसे सजीव किया है?

उत्तर : वसन्त के आगमन पर लोगों के मन में उल्लास भर जाता है जो उसकी पूर्णता का प्रतीक है। किसी न किसी पर्व पर दूर से आने वाले श्रद्धालु यहाँ एकत्रित होते हैं। गंगा में स्नान करके पूजा-अर्चना करते हैं और विश्वनाथ के दर्शन करते हैं। इस प्रकार बनारस में पूर्णता व्याप्त रहती है। बनारस अपने अस्तित्व के साथ अपनी पूर्णता बनाए रखता है। लोग शवों को अँधेरी गलियों से निकालकर गंगा-घाट की ओर ले जाते हैं और दाह-संस्कार करते हैं। यह कार्य बनारस की रिक्तता को प्रकट करता है।

प्रश्न 4. बनारस में धीरे-धीरे क्या-क्या होता है ? 'धीरे-धीरे' से.कवि इस शहर के बारे में क्या कहना चाहता है?

उत्तर : बनारस में हर कार्य मन्थर गति से होता है। यहाँ धीरे-धीरे धूल उड़ती है, लोग धीरे-धीरे चलते हैं। यहाँ मन्दिरों में और गंगा-घाट पर आरती के घण्टे धीरे-धीरे बजते हैं। यहाँ सन्ध्या भी धीरे-धीरे उतरती है। रस में हर काम अपनी लय में होता है। धीरे-धीरे हर काम का होना बनारस शहर की एक विशेषता है, एक सामूहिक लय है। यहाँ के जीवन में व्यग्रता नहीं है। यह शहर अपने ढंग से जीता-मरता है। यहाँ के जीवन में विचलन का अभाव है।

प्रश्न 5. धीरे-धीरे होने की सामूहिक लय में क्या-क्या बँधा है ?

उत्तर : बनारस का सारा जीवन एक मन्थर गति में बँधा है। जो पहले जहाँ था वह सब वहीं स्थित है। सारा शहर एक सामूहिक लय में बँधा है। गंगा के घाटों पर नावें जहाँ बँधती थीं वहीं बँधी हैं। सारी परम्पराएँ उसी रूप में विद्यमान हैं। तुलसीदास की खड़ाऊँ भी दीर्घकाल से वहीं रखी है। यहाँ के सांस्कृतिक, धार्मिक और ऐतिहासिक वातावरण में कोई परिवर्तन नहीं आया है। गंगा के प्रति लोगों की आस्था और मोक्ष की कामना अब भी यथावत है।

प्रश्न 6. 'सई साँझ' में घुसने पर बनारस की किन-किन विशेषताओं का पता चलता है ?

उत्तर : संध्या के समय बनारस में प्रवेश करने पर गंगा जी की आरती के दर्शन होते हैं। मन्दिरों और घाटों पर दीप जलते दिखते हैं, उस समय बनारस की शोभा अद्भुत दिखाई देती है। गंगा के जल में गंगा के घाटों की, दीपों की और बनारस की छाया पड़ रही थी उसे देखकर ऐसा लगता था कि आधा शहर जल में है और आधा शहर जल के बाहर है। कहीं शव जलाए जा रहे हैं तो कहीं उनका जल प्रवाह किया जा रहा है। संध्या के समय बनारस में श्रद्धा, आस्था, विरक्ति, विश्वास और भक्ति के भाव देखने को मिलते हैं।

प्रश्न 7. बनारस शहर के लिए जो मानवीय क्रियाएँ इस कविता में आई हैं, उनका व्यंजनार्थ स्पष्ट कीजिए।

उत्तर : बनारस शहर के लिए निम्नलिखित मानवीय क्रियाएँ आई हैं -

(क) यह शहर इसी तरह खुलता है व्यंजनार्थ है कि शहर की शुरूआत आस्था और विश्वास के साथ होती है।

(ख) भिखारियों के कटोरों का निचाट खालीपन व्यंजनार्थ है कि भिखारियों के कटोरे भीख का इन्तजार करते हैं।

(ग) जो है वह खड़ा है, बिना किसी स्तम्भ के इसका व्यंजनार्थ है कि प्रत्येक व्यक्ति में श्रद्धा, भक्ति और आस्था है।

(घ) पुराने शहर की जीभ किरकिराने लगती है-व्यंजनार्थ है कि धूल भरी आँधी चलने से चारों तरफ धूल भर जाती है जिससे हर जगह किरकिराहट अनुभव होती है।

(ङ) अपनी एक टाँग पर खड़ा है यह शहर, अपनी दूसरी टाँग बिलकुल बेखबर-व्यंजना यह है कि बनारस अपनी आध्यात्मिकता में लिप्त है, उसे आधुनिकता का ध्यान ही नहीं है।

प्रश्न 8. शिल्प-सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए।

(क) यह धीरे-धीरे होना

धीरे-धीरे होने की सामूहिक लय

दृढ़ता से बाँधे है समूचे शहर को

उत्तर : भावानुकूल तत्सम शब्दों का प्रयोग किया गया है। 'धीरे-धीरे' में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है। मुक्त छन्द है। भाषा में लाक्षणिकता है। बनारस के जीवन की सहजता, प्राचीन संस्कृति से प्रेम तथा व्यवस्थित जीवन का चित्रमय वर्णन हुआ है। इसके लिए कवि ने लक्षणा का सहारा लिया है।

(ख) अगर ध्यान से देखो

तो यह आधा है

और आधा नहीं है

उत्तर : भाषा सरल और प्रवाहमय है। 'आधा' शब्द की पुनरावृत्ति से एक सौन्दर्य आ गया है। गंगा के पानी में नगर की छाया पड़ती है। उससे लगता है शहर अधूरा है। 'आधा नहीं' से बनारस की संस्कृति की सम्पूर्णता की व्यंजना है। मुक्त छन्द है। लाक्षणिकता है।

(ग) अपनी एक टाँग पर खड़ा है यह शहर

अपनी दूसरी टाँग से

बिलकुल बेखबर!

उत्तर : यह शहर स्वयं में मस्त और व्यस्त है। यह अपनी आस्था, मान्यता, विश्वास, श्रद्धा, भक्ति में लीन है। उसे अपनी पुरानी संस्कृति के अतिरिक्त और किसी की चिन्ता नहीं है। वह आधुनिकता से बेखबर है। भाषा सरल और प्रवाहमय है। मुक्त छन्द है। बिम्ब योजना सार्थक है। 'लक्षणा' शब्द-शक्ति का प्रयोग हुआ है। बिम्बों के प्रयोग के कारण वर्णन सजीव और चित्र जैसा बन पड़ा है।

दिशा

प्रश्न 1. बच्चे का 'उधर-उधर' कहना क्या प्रकट करता है ?

उत्तर : बच्चा केवल एक ही दिशा जानता है। वह दिशा है जिधर उसकी पतंग उड़ रही है। इसलिए वह हिमालय भी सब के यथार्थ अलग-अलग होते हैं इसी तरह बच्चे का यथार्थ भी अलग है। इससे बाल-मन की सहजता तथा स्वाभाविकता व्यक्त होती है।

प्रश्न 2. 'मैं स्वीकार करूँ मैंने पहली बार जाना हिमालय किधर है" प्रस्तुत पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिए।

उत्तर : भाव यह है कि कवि पहली बार बच्चे के संकेतानुसार हिमालय की दिशा को जानता है। कवि यह अनुभव करता है कि हर व्यक्ति का यथार्थ अलग होता है। बालक के सहज उत्तर को सुनकर कवि उससे कुछ सीखने की प्रेरणा देता है। वह बालक की सहजता पर आत्म-मुग्ध दिखाई देता है।

योग्यता विस्तार

प्रश्न 1. आप बनारस के बारे में क्या जानते हैं ? लिखिए।

उत्तर : बनारस गंगा के तट पर बसी एक प्रसिद्ध धार्मिक नगरी है। यहाँ बाबा विश्वनाथ का प्रसिद्ध मन्दिर है। यहाँ सभी कार्य सहज रूप में ही होते हैं। यह साहित्यकारों और कलाकारों की नगरी है। यहाँ की संस्कृति पुरानी और शाश्वत् है। यहाँ के लोग आज भी उसी संस्कृति को मानते हैं। बनारस के लोग अपने काम धीरे-धीरे, व्यवस्थित ढंग से बिना व्यग्रता दिखाये करते हैं।

प्रश्न 2. बनारस के चित्र इकट्ठे कीजिए।

उत्तर : विद्यार्थी बनारस के चित्र स्वयं एकत्र करें।

प्रश्न 3. बनारस शहर की विशेषताएँ जानिए।

उत्तर : बनारस शहर की विशेषताएँ -

गंगा नदी के तट पर स्थित उत्तर भारत का एक प्रसिद्ध प्राचीन नगर।

धार्मिक, सांस्कृतिक तथा सभ्य जीवन का उदाहरण।

धार्मिकता और आध्यात्मिकता की प्रबलता। मान्यता है कि बनारस शिव जी के त्रिशूल पर टिका है और पृथ्वी पर होने पर भी उससे अलग है।

कला और संस्कृति से समस्त भारत तथा विश्व को आकर्षित करता रहा है।

बनारस की रेशमी तथा जरी की साड़ियाँ विश्व प्रसिद्ध हैं।

शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ बनारस के ही निवासी थे। इसी प्रकार की अनेक विशेषताएँ बनारस शहर की है।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. "और खाली होता है यह शहर" यहाँ 'शहर' शब्द किस नगर के लिए प्रयुक्त है?

उत्तर : "और खाली होता है यह शहर" यहाँ 'शहर' शब्द बनारस नगर के लिए प्रयुक्त है।

प्रश्न 2. वसन्त के अकस्मात् आने से लहरतारा या मडुवाडीह मौहल्ले से क्या चलती हैं?

उत्तर :  वसन्त के अकस्मात् आने से लहरतारा या मडुवाडीह मौहल्ले से धूल भरी आँधियाँ चलती हैं।

प्रश्न 3. 'खाली कटोरों में वसन्त का उतरना' पंक्ति का आशय क्या है?

उत्तर :  'खाली कटोरों में वसन्त का उतरना' पंक्ति का आशय भिखारियों के कटोरे भीख से भर जाते हैं।

प्रश्न 4. 'बनारस' कविता में शहर का जीवन कैसे चलता है ?

उत्तर :  'बनारस' कविता में शहर का जीवन धीमी गति से चलता है।

प्रश्न 5. बच्चे ने हिमालय को किस दिशा में बताया था?

उत्तर :  बच्चे ने हिमालय को उस दिशा में बताया जिस दिशा में उसकी पतंग उड़ी जा रही थी।

प्रश्न 6. कवि ने 'बनारस' कविता में किसकी विशेषता का वर्णन किया है?

उत्तर : कवि ने 'बनारस' कविता में बनारस के गरीबों, नदी, घाटों, मंदिरों और गंगा नदी की विशेषताओं का वर्णन किया है।

प्रश्न 7. मुहल्लों में धूल क्यों छा जाती है?

उत्तर : वसंत का अचानक से आगमन हो जाता है और मौहल्ले के हर स्थान, पर धूल का बवंडर बनना शुरू हो जाता है। इससे चारों तरफ धूल फैल जाती है

प्रश्न 8. बनारस के भिखारियों का क्या उल्लेख किया गया है?

उत्तर : वसंत का मौसम आने से यहाँ के भिखारी भी बहुत खुश हो जाते हैं क्योंकि अन्य मौसमों की अपेक्षा इनको वसंत के मौसम में अधिक भीख मिलती है

प्रश्न 9. 'बच्चे का उधर-उधर कहना' प्रस्तुत पंक्ति का अभिप्राय स्पष्ट करो।

उत्तर : उपरोक्त पंक्ति का अभिप्राय है कि पतंग एक दिशा में उड़ रही है और बच्चा उस पतंग को देखकर उसकी दिशा का संकेत करता है।

प्रश्न 10. बनारस शहर की तीन विशेषताएँ लिखो।

उत्तर : बनारस शहर की तीन विशेषताएँ हैं -

(क) यह भारत के सबसे पुराने शहरों में से एक है।

(ख) यह बनारसी साड़ियों के लिए विश्व प्रसिद्ध है।

(ग) बुद्ध का पहला प्रवचन सारनाथ में हुआ, जो बनारस के करीब था।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. बनारस कविता का प्रतिपाद्य स्पष्ट कीजिए।

उत्तर : उत्तर भारत का प्रसिद्ध प्राचीन धार्मिक नगर बनारस और उसकी विशेषताएँ इस कविता का प्रतिपाद्य है। यहाँ सभी कार्य धीरे-धीरे सम्पन्न होते हैं। धूल धीरे-धीरे उड़ती है जिससे सारा वातावरण धूल से भर जाता है। मन्दिरों और गंगा के घाटों पर मंत्रोच्चारण होता है, आरती के घण्टे धीरे-धीरे बजते हैं। इस शहर के साथ मोक्ष की धारणा जुड़ी है। यहाँ आस्था, श्रद्धा, विरक्ति, विश्वास और भक्ति का मिला-जुला रूप देखने को मिलता है। यहाँ एक ओर खुशियाँ होती हैं तो दूसरी ओर शवों को कन्धों पर उठाकर गंगाघाट पर ले जाते हैं और दाहसंस्कार करते हैं। वसन्त में भिखारियों के कटोरे दान से भर जाते हैं।

प्रश्न 2. निम्न पंक्तियों का भाव लिखिए -

जो है वह सुगबुगाता है

जो नहीं है वह फेंकने लगता है पचखियाँ

उत्तर : जो अस्तित्ववान है उसमें जागृति होने लगती है और जो चेतनाहीन है, अस्तित्वहीन है उनमें नया अंकुरण होने लगता है। सम्पूर्ण वातावरण में परिवर्तन दिखाई देता है। असफलताओं में भी नई उमंग और नया उल्लास भर जाता है।

प्रश्न 3. दशाश्वमेध घाट पर पहुँचकर लेखक ने क्या देखा ?

उत्तर : कवि को अनुभव हुआ कि गंगा नदी को स्पर्श करने वाला घाट का आखिरी पत्थर कुछ नरम हो गया है। पाषाण हृदय व्यक्तियों के हृदय में भी परिवर्तन हो गया है। घाट पर बैठे बन्दरों की आँखें नम दिखाई देती हैं। भिखारियों के कटोरे भीख से भर जाते हैं। दीन-हीनों में भी उमंग व्याप्त हो जाती है।

प्रश्न 4. वसन्त के आगमन पर भिखारियों पर क्या प्रभाव पड़ता है ?

उत्तर : वसन्त के आगमन पर भिखारियों के चेहरे प्रसन्नता से खिल उठते हैं। चेहरे पर चमक आ जाती है। वसन्त के आगमन पर उनके खाली कटोरे चमकने लगते हैं अर्थात् कटोरे भीख से भर जाते हैं। ऐसा लगता है उनमें वसन्त उतर आया है।

प्रश्न 5. निम्न पंक्तियों का आशय स्पष्ट कीजिए -

यह शहर इसी तरह खुलता है

इसी तरह भरता है

और खाली होता है यह शहर

उत्तर : उपर्युक्त पंक्तियों का आशय यह है.कि प्रत्येक दिन का आरम्भ एक उल्लास के साथ होता है। हर दशा में प्रसन्न रहना बनारस के लोगों की विशेषता है। सारा शहर उल्लास से भर जाता है। नित्यप्रति शवों को कन्धों पर उठाकर गंगा के तट पर लाना और दाह-संस्कार करना अथवा गंगा में बहा देना भी होता रहता है। इस प्रकार यह शहर खाली होता रहता है।

प्रश्न 6. निम्न पंक्तियों में कवि का भाव क्या है ?

जो है वह खड़ा है

बिना किसी स्तम्भ के

उत्तर : बनारस की प्राचीनता, आध्यात्मिकता, आस्था, विश्वास और भक्ति अत्यन्त सुदृढ़ है। वह अनन्त काल से इसी प्रकार बनी हुई है। उसको अपने अस्तित्व की सुरक्षा के लिए किसी सहारे की जरूरत नहीं है। वह बिना किसी सहारे के जन-जीवन में समाई हुई है।

प्रश्न 7. 'दिशा' शीर्षक कविता में कवि ने क्या संदेश दिया है ?

उत्तर : 'हिमालय किधर है' कवि के इस प्रश्न के उत्तर में पतंग उड़ाने में तल्लीन बच्चे पतंग की दिशा में संकेत करते हैं। कवि संदेश देना चाहता है कि प्रत्येक व्यक्ति की सोच'अलग होती है। प्रत्येक व्यक्ति का यथार्थ भी अलग होता है। प्रत्येक व्यक्ति से कुछ सीखा जा सकता है। अपने कार्य में तल्लीन रहने का सन्देश भी यह कविता देती है।

प्रश्न 8. 'दिशा' शीर्षक कविता का मूल कथ्य क्या है ?

उत्तर : यह कविता बाल मनोविज्ञान पर आधारित है। सबका यथार्थ अलग-अलग होता है। बच्चे अपने ढंग से यथार्थ को सोचते हैं। बच्चे की पतंग जिस ओर उड़ रही है उसे हिमालय उधर ही दीखता है। कविता यह प्रेरणा देती है कि बच्चों से भी कुछ सीखा जा सकता है।

प्रश्न 9. 'दिशा' बाल मनोविज्ञान से सम्बन्धित लघु कविता है, स्पष्ट कीजिए।

उत्तर : इस कविता में बाल स्वभाव का यथार्थ चित्रण है। बच्चों की सोच और बड़ों की सोच में अन्तर होता है। उनकी दुनिया छोटी होती है, इसलिए वे उसी सीमित क्षेत्र तक सोचते हैं। इसी कारण वे हिमालय उधर ही बताते हैं जिधर उनकी पतंग उड़ रही है। बच्चे प्रत्येक प्रश्न का उत्तर बड़ी सहजता से देते हैं। कवि ने जाना कि बच्चों का यथार्थ अपने ढंग का होता है। कवि ने बच्चों का स्वभाव. पहचान कर उसका अच्छा वर्णन किया है।

प्रश्न 10. निम्न पंक्तियों में कवि क्या कहना चाहता है ? स्पष्ट कीजिए।

धीरे-धीरे होने की सामूहिक लय

दृढ़ता से बाँधे है समूचे शहर को

इस तरह कि कुछ भी गिरता नहीं है।

कि हिलता नहीं है कुछ भी

उत्तर : बनारस में सभी कार्य धीरे-धीरे सामूहिक लय में होते हैं जिससे सारा शहर मजबूती से बँधा है। इसी कारण यहाँ कुछ भी नहीं हिलता और कुछ भी नहीं गिरता है। जो चीज जहाँ थी वह अब भी वहीं है। उसमें कोई परिवर्तन नहीं है। लोगों की आस्था और विश्वास अब भी गंगा के प्रति पहले जैसा ही है। इन पंक्तियों में कवि बनारस के व्यवस्थित जीवन के बारे में बताना चाहता है। वह बाह्य चीजों से अप्रभावित रहता है।

प्रश्न 11. संध्या-समय की आरती का जो दृश्य देखने को मिलता है उसे अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर : संध्या-समय गंगा की आरती होती है। उस समय लोगों की श्रद्धा देखने को मिलती है। आरती के समय अपार भीड़ एकत्रित हो जाती है। आरती के पात्र से ज्योति की लपटें उठती हैं और धुएँ से गंगा-जल में एक स्तंभ-सा बन जाता है। आरती की सुगन्ध से सारा वातावरण महक उठता है। मनुष्यों के उठे हुए हाथ सूर्य को अर्घ्य देते दिखाई देते हैं। इस तरह लोगों की श्रद्धा, आस्था और विश्वास के दर्शन होते हैं।

प्रश्न 12.

'मैं स्वीकार करूँ

मैंने पहली बार जाना हिमालय किधर है?

 पंक्तियों का भाव-सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए।

उत्तर : कवि के पूछने पर कि हिमालय किधर है, पतंग उड़ाने वाले बच्चे ने पतंग की दिशा में संकेत करते हुए कहा उधर-उधर। उपर्युक्त पंक्तियों में कवि ने बाल-मन की अवस्था का वर्णन किया है। इसमें बाल मनोविज्ञान का चित्रण है। बालक के मन की तल्लीनता, उसकी सोच का वर्णन है। बालकों का सोचने का ढंग बड़ों से भिन्न होता है। कवि कहता है कि बच्चों से भी बहुत कुछ सीखा जा सकता है।

प्रश्न 13.

यह धीरे-धीरे होना

धीरे-धीरे होने की सामहिक लय

दृढ़ता से बाँधे है समूचे शहर को

इस तरह कि कुछ भी गिरता नहीं है

उपर्युक्त पंक्तियों के भाव-सौन्दर्य पर प्रकाश डालिए।

उत्तर : कवि ने बनारस शहर के जीवन का वर्णन करते हुए बताया है कि वहाँ सब कुछ धीरे-धीरे होता है। इन पंक्तियों में कवि ने बनारस शहर की व्यवस्थित जीवन-शैली का चित्रण किया है। वहाँ सैकड़ों वर्षों से जीवन व्यवस्थित ढंग से चल रहा है कहीं कोई व्यग्रता, व्याकुलता अथवा उतावलापन नहीं है। सर्वत्र आत्मविश्वास और अनुशासन के दर्शन होते हैं। वहाँ के आध्यात्मिक वातावरण ने लोगों के मन में अविचलित होने का भाव पैदा कर दिया हैं।

प्रश्न 14.

तुमने कभी देखा है

खाली कटोरों में वसंत का उतरना।

पंक्तियों में निहित भाव-सौन्दर्य को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर : कवि ने बनारस में वसन्त आगमन का वर्णन किया है। जब वसन्त आता है तो गंगा के घाट पर बैठे भिखारियों के कटोरे भिक्षा के अन्न से भर उठते हैं। लगता है कि उनके खाली कटोरों में वसंत स्वयं उतर आया है। इन पंक्तियों में वसन्त आने पर बनारस में श्रद्धालुओं की चहल-पहल तथा उत्साह की वृद्धि होने और भिखारियों को भरपूर भिक्षा प्राप्त होने का प्रतीकात्मक चित्रण हुआ है।

प्रश्न 15. 'बनारस' कविता के शिल्पगत काव्य-सौन्दर्य पर प्रकाश डालिए।

उत्तर : 'बनारस' कविता की भाषा सरल एवं भावानुकूल है। तत्सम शब्दावली का प्रयोग किया गया है। बिम्ब योजना अच्छी है। चित्रोपमता भी है। 'शहर की जीभ किरकिराने लगती है' में मानवीकरण अलंकार है। निचाट, सुगबुगाता, पचखियाँ जैसे बोलचाल के शब्दों का प्रयोग किया गया है। लक्षणा शब्द-शक्ति का प्रयोग है। 'आधा' शब्द की पुनरावृत्ति से अर्थ और भाव में सौन्दर्य आ गया है। सई-साँझ में अनुप्रास अलंकार है। आध्यात्मिकता और आधुनिकता का मिला-जुला वर्णन है।

प्रश्न 16.

'गंगा के जल में

अपनी एक टाँग पर खड़ा है यह शहर

अपनी दूसरी टाँग से

बिलकुल बेखबर'

उपर्युक्त पंक्यिों में शिल्प-सौन्दर्य पर प्रकाश डालिए।

उत्तर : शिल्प-सौन्दर्य - बनारस शहर सदियों से एक पैर पर खड़ा है मानो किसी अलक्षित सूर्य को एक पैर पर खड़ा होकर अर्घ्य दे रहा है। बनारस के आध्यात्मिक और आधुनिक दोनों रूपों का मिला-जुला वर्णन है। 'गंगा के जल में एक टाँग पर खड़ा है' में मानवीकरण है। 'बिलकुल बेखबर' में अनुप्रास अलंकार है। 'टाँग' का प्रयोग प्रतीक के रूप में किया गया है। मुक्त छन्द है। भाषा सरल और प्रवाहमय है।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1. 'बनारस' कविता का सारांश लिखिए।

उत्तर : बनारस - बनारस भारत का प्राचीनतम नगर है जिसके सांस्कृतिक तथा सामाजिक परिवेश का कवि ने कविता गा के तट पर स्थित है और शिव की नगरी है। इस कारण इस नगरी के प्रति लोगों की आस्था अधिक है। कवि ने कविता में गंगा, गंगा के घाट, मन्दिर और घाटों पर बैठे भिखारियों का सजीव वर्णन किया है।

प्राचीन काल से ही काशी और गंगा के सान्निध्य के कारण मोक्ष-प्राप्ति की अवधारणा यहाँ से जुड़ी हुई है। दशाश्वमेध घाट पर पूजा-पाठ चलता रहता है। गंगा के किनारों पर नावें बँधी रहती हैं। गंगा के घाटों पर दीप जलते रहते हैं, हवन होते रहते हैं, चिताग्नि जलती रहती है और उसका धुआँ सदैव उठता रहता है। यह बनारस की विशेषता है। यहाँ का कार्य अपनी गति से चलता रहता है। इस नगरी के साथ लोगों की आस्था, श्रद्धा, विरक्ति, विश्वास, आश्चर्य और भक्ति के भाव जुड़े हैं। इस कविता में काशी की प्राचीनता, आध्यात्मिकता, भव्यता और आधुनिकता का समाहार है। यह मिथक बन चुका शहर है। इस कविता में बनारस शहर की दार्शनिक व्याख्या है।

प्रश्न 2. 'दिशा' कवितां का सारांश लिखिए।

उत्तर : दिशा केदारनाथ सिंह की 'दिशा' कविता लघु आकार की है और बाल मनोविज्ञान पर आधारित है। इसमें बच्चों की निश्छलता और स्वाभाविक सरलता का मार्मिक वर्णन है। कवि ने कविता के माध्यम से यथार्थ को परिभाषित किया है। कवि पतंग उड़ाते बच्चों से सहज रूप में पूछता है कि हिमालय किधर है ? बच्चे भी अपनी सहज प्रवृत्ति के अनुसार उत्तर देते हैं, कि हिमालय उधर है जिधर उनकी पतंग उड़ रही है। कवि सोचता है कि प्रत्येक व्यक्ति का यथार्थ'अलग होता है। बच्चे यथार्थ को अपने ढंग से देखते हैं। कवि बालकों के इस सहज ज्ञान से प्रभावित हो जाता है। कवि की धारणा है कि हम बच्चों से भी कुछ न कुछ सीख सकते हैं।

प्रश्न 3. कवि ने बनारस की किन विशेषताओं का उल्लेख किया है ?

उत्तर : यह शिव की नगरी है। यहाँ गंगा के साथ लोगों की आस्था जुड़ी है।

वसन्त में लहरतारा की ओर से धूल भरी आँधी चलती है जिससे सारा शहर धूल से भर जाता है।

इस शहर के साथ मोक्ष की अवधारणा जुड़ी है।

संध्या को मन्दिरों और घाटों पर आरती होती है और सारा शहर दीपों से जगमगा जाता है।

यहाँ आस्था, श्रद्धा, विरक्ति, विश्वास और भक्ति का मिला-जुला रूप देखने को मिलता है। यह भाव लोगों के मन में स्थायी है।

यहाँ आध्यात्मिकता और आधुनिकता का सम्मिलित स्वरूप देखने को मिलता है।

प्रश्न 4. निम्न पंक्तियों का काव्य-सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए

किसी अलक्षित सूर्य को

देता हुआ अर्घ्य

शताब्दियों से इसी तरह

गंगा के जल में

अपनी एक टाँग पर खड़ा है यह शहर

अपनी दूसरी टाँग से

बिलकुल बेखबर

उत्तर :

(क) भावपक्ष बनारस शहर सदियों से एक पैर पर खड़ा है मानो किसी अलक्षित सूर्य को एक पैर पर खड़ा होकर अर्घ्य दे रहा है। भाव यह है कि इस शहर में सदियों से सूर्य को ब्रह्म मानकर उसकी पूजा की जाती है। बनारस के एक हिस्से में उसी प्रकार की आस्था एवं आध्यात्मिकता विद्यमान है जबकि दूसरी ओर आधुनिकता का प्रभाव बढ़ रहा है। बनारस में दोनों रूप देखने को मिलते हैं।

(ख) कला पक्ष बनारस के आध्यात्मिक और आधुनिक दोनों रूपों का मिला-जुला वर्णन है। 'गंगा के जल में एक टाँग पर खड़ा है' में मानवीकरण है। 'बिलकुल बेखबर' में अनुप्रास अलंकार है। 'टाँग' का प्रयोग प्रतीक के रूप में किया गया है। मुक्त छन्द है। भाषा सरल और प्रवाहमय है।

प्रश्न 5. निम्न पंक्तियों का काव्य-सौन्दर्य स्पष्ट करो -

कभी सई-साँझ

बिना किसी सूचना के

घुस जाओ इस शहर में

कभी आरती के आलोक में

इसे अचानक देखो

अद्भुत है इसकी बनावट 

यह आथा जल में है

आधा मंत्र में 

आधा फूल में है 

उत्तर :

(क) भावपक्ष-संध्या के समय बनारस की शोभा बड़ी आकर्षक होती है। संध्या समय बनारस में प्रवेश करने पर गंगा की आरती के घण्टों की ध्वनि सुनाई देती है। आरती के समय दीपों की जगमगाहट दिखाई देती है। उस समय का सौन्दर्य मन को आकर्षित कर लेता है। उस समय ऐसा लगता है कि यह शहर आधा जल में है और आधा मंत्र में अर्थात् सब ओर मंत्रोच्चार सुनाई पड़ता है। भाव यह है कि संध्याकाल में आधा शहर मन्दिर-घाटों पर जल-मंत्र और फूल चढ़ाकर भक्ति-भाव में डूबा हुआ दिखाई देता है।

(ख) कलापक्ष-बनारस की प्राचीनता एवं आधुनिकता का समावेश है। बिम्ब योजना आकर्षक है। 'सई-साँझ' में अनुप्रास अलंकार है। भाषा सरल एवं प्रवाहमय है। मुक्त छन्द का प्रयोग है। बनारस की सन्ध्याकालीन शोभा का वर्णन है। चित्रोपमता अधिक है। भाषा में लाक्षपिकता है।

प्रश्न 6. निम्न पंक्तियों का काव्य-सौन्दर्य प्रकट कीजिए -

हिमालय किधर है?

मैंने उस बच्चे से पूछा-जो स्कूल के बाहर

पतंग उड़ा रहा था।

उधर-उधर-उसने कहा 

जिधर उसकी पतंग भागी जा रही थी

उत्तर :

(क) भावपक्ष - उपर्युक्त पंक्तियों में कवि ने बच्चों के सहज स्वभाव का वर्णन किया है। बच्चे हर बात का उत्तर सहजता व सरलता से देते हैं। कवि ने बच्चे से प्रश्न किया हिमालय किधर है। बच्चे ने सहजता से उस ओर बता दिया जिधर उसकी पतंग उड़ रही थी। बच्चा भोला था, उसे हर चीज पतंग की दिशा में दिखाई दे रही थी। भाषा में लाक्षणिकता है।

(ख) कलापक्ष - बच्चे के भोलेपन का मनोवैज्ञानिक वर्णन है। बच्चे की दुनिया छोटी होती है, इसलिए वह अपने अनुसार सोचता है। नाटकीयता अधिक है। कथोपकथन शैली का प्रयोग है। बोलचाल की सरल भाषा का प्रयोग है।

साहित्यिक परिचय का प्रश्न

प्रश्न : केदारनाथ सिंह का साहित्यिक परिचय लिखिए।

उत्तर : साहित्यिक परिचय - भाव-पक्ष केदारनाथ सिंह मूलतः मानवीय संवेदना के कवि हैं। आपकी कविताओं में शोर-शराबा न होकर, विद्रोह का शांत और संयत स्वर सशक्त रूप से उभरा है। संवेदना और विचार-बोध उनकी कविताओं में साथ-साथ चलते हैं। अतः उनकी कविताओं में मनुष्य जीवन का निकटता से चित्रण हुआ है। उनमें रोजमर्रा की जिन्दगी के अनुभव स्पष्ट दिखाई देते हैं।

कला-पक्ष - केदारनाथ सिंह की कविताओं में बिम्ब विधान पर बहुत बल दिया गया है। उनकी भाषा नम्य और पारदर्शी है तथा उसमें नयी ऋजुता और बेलौसपन पाया जाता है। उनके बिम्बों का स्वरूप परिचित तथा नया और बदलता रहने वाला है। उनके शिल्प में बातचीत की सहजता है और अपनापन अनायास दिखाई देता है।

प्रमुख कृतियाँ :

(क) काव्य संग्रह - 1. अभी बिलकुल अभी, 2. जमीन पक रही है, 3. यहाँ से देखो, 4. अकाल में सारस, 5. बाघ।

(ख) आलोचना और निबन्ध - 1.मेरे समय के लोग, 2. कल्पना और छायावाद, 3. हिन्दी कविता में बिम्ब विधान।

(ग) कहानी संग्रह कब्रिस्तान में पंचायत।

(क) बनारस (ख) दिशा (सारांश)

कवि परिचय : जन्म - 7 जुलाई, 1934 ई.। ग्राम - चकिया, जिला-बलिया (उ. प्र.)। शिक्षा - काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से एम. ए., पी-एच. डी.। गोरखपुर तथा जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में हिन्दी के प्रोफेसर रहे। स्वतंत्र लेखन कार्य किया। 19 मार्च 2018 को 83 वर्ष की आयु में दिल्ली में आपका निधन हुआ।

साहित्यिक परिचय - भाव-पक्ष-केदारनाथ सिंह मूलत: मानवीय संवेदना के कवि हैं। आपकी कविताओं में शोर-शराबा न होकर, विद्रोह का शांत और संयत स्वर सशक्त रूप से उभरा है। जमीन, रोटी, बैल आदि उनकी इसी प्रकार की कविताएँ हैं। संवेदना और विचार-बोध उनकी कविताओं में साथ-साथ चलते हैं। उनका मानना है कि जीवन के बिना प्रकृति और वस्तुएँ महत्त्वहीन हैं। अत: उनकी कविताओं में मनुष्य जीवन का निकटता से चित्रण हुआ है। उनमें रोजमर्रा की जिन्दगी के अनुभव स्पष्ट दिखाई देते हैं।

कला-पक्ष - केदारनाथ सिंह की कविताओं में बिम्ब विधान पर बहत बल दिया गया है। उनकी भाषा नम्य और पारदर्शी है तथा उसमें नयी ऋजुता और बेलौसपन पाया जाता है। उनके बिम्बों का स्वरूप परिचित तथा नया और बदलता रहने वाला है। उनके शिल्प में बातचीत की सहजता है और अपनापन अनायास दिखाई देता है। आपको अनेक पुरस्कार प्राप्त हो चुके हैं-'अकाल में सारस' कविता संग्रह पर 'साहित्य अकादमी पुरस्कार (1989)', मैथिलीशरण गुप्त राष्ट्रीय सम्मान (1994), व्यास सम्मान, दयावती मोदी पुरस्कार आदि।

कृतियाँ - अब तक केदारनाथ सिंह के निम्न काव्य-संग्रह तथा निबन्ध; कहानी आदि प्रकाशित हो चुके हैं - 

(क) काव्य संग्रह - 1. अभी बिलकुल अभी, 2. जमीन पक रही है, 3. यहाँ से देखो, 4. अकाल में सारस, 5. बाघ।

(ख) आलोचना और निबन्ध - 1.मेरे समय के लोग, 2. कल्पना और छायावाद, 3. हिन्दी कविता में बिम्ब विधान।

(ग) कहानी संग्रह कब्रिस्तान में पंचायत।

(घ) अन्य - ताना-बाना (विविध भारतीय भाषाओं की कविताओं का हिन्दी अनुवाद)।

उनकी चुनी हुई कविताओं का संग्रह 'प्रतिनिधि कविताएँ' शीर्षक से प्रकाशित हुआ है।

सप्रसंग व्याख्याएँ

बनारस

इस शहर में वसंत

अचानक आता है

और जब आता है तो मैंने देखा है

लहरतारा या मडुवाडीह की तरफ से

उठता है धूल का एक बवंडर

और इस महान पुराने शहर की जीभ

किरकिराने लगती है।

शब्दार्थ :

लहरतारा या मडुवाडीह = बनारस के मोहल्लों के नाम।

बवंडर = अंधड़, आँधी।

सन्दर्भ : प्रस्तुत काव्यांश आधुनिक कवि केदारनाथ सिंह की कविता 'बनारस' से उद्धृत है जो हमारी पाठ्य-पुस्तक 'अन्तरा भाग -2' में संकलित है।

प्रसंग : इन पंक्तियों में बनारस-शहर में वसन्त के अचानक आने का वर्णन किया गया है। वसन्त में धूलभरी आँधी चलती है जिससे सारे शहर में धूल ही धूल हो जाती है।

व्याख्या : वसन्त के अकस्मात् आगमन पर बनारस में लहरतारा या मडुवाडीह मोहल्ले से धूलभरी आँधियाँ चलती हैं जिसके कारण पुराने शहर बनारस के प्रत्येक भाग में धूल-ही-धूल भर जाती है। धूल के कारण जिस प्रकार मुँह में किरकिरापन हो जाता है उसी प्रकार सारे शहर में धूल-ही-धूल हो जाती है। लगता है मानो बनारस शहर की जीभ धूल के कारण किरकिरी हो गई हो। कहने का तात्पर्य यह है कि बनारस में वसन्त में धूलभरी आँधियाँ चलती हैं और सारा वातावरण धूलधूसरित हो जाता है।

विशेष :

कवि ने बनारसं की वासन्ती प्रकृति का यथार्थ चित्रण किया है।

शब्द चयन सार्थक है। वासन्ती वातावरण का एक बिम्ब प्रस्तुत किया गया है।

भाषा में देशज शब्दों का प्रयोग है। वह प्रसाद गुण युक्त है।

मुक्त छन्द की रचना है।

केदारनाथ सिंह नयी कविता के कवि हैं।

जो है वह सुगबुगाता है

जो नहीं है वह फेंकने लगता है पचखियाँ

आदमी दशाश्वमेध पर जाता है

और पाता है घाट का आखिरी पत्थर

कुछ और मुलायम हो गया है

सीढ़ियों पर बैठे बन्दरों की आँखों में

एक अजीब सी नमी है

और एक अजीब सी चमक से भर उठा है

भिखारियों के कटोरों का निचाट खालीपन

शब्दार्थ :

सुगबुंगाता = जागरण, जागने की क्रिया।

पचखियाँ = अंकुरण।

निचाट = बिलकुल, एकदम।

सन्दर्भ : प्रस्तुत पंक्तियाँ 'बनारस' कविता से ली गई हैं, जिसके रचयिता आधुनिक कवि केदारनाथ सिंह हैं। यह कविता हमारी पाठ्य-पुस्तक 'अन्तरा भाग -2' में संकलित है।

प्रसंग : इन पंक्तियों में कवि ने बनारस में वसन्तागमन का वर्णन किया है। वसन्त आने पर बनारस में नवीन जागृति, उल्लास और चेतना व्याप्त हो जाती है। पत्थरों तक में नरमी का एहसास होता है।

व्याख्या : कवि कहता है कि बनारस में वसन्त की हवा चलने से जो अस्तित्व में है उसमें सुगबुगाहट होने लगती है, उसमें जागृति आ जाती है। जो अस्तित्व हीन हैं उनमें भी नवांकुर फूटने लगते हैं। इस प्रकार वसन्त की हवा का सारे वातावरण पर प्रभाव पड़ता है। लोग विगत असफलताओं से निराश नहीं होते बल्कि उनमें नई उमंग और नया संकल्प भर जाता है। नवजीवन का संचार होने लगता है और वातावरण नवीन उत्साह से भर जाता है।

दशाश्वमेध घाट पर आने वाले प्रत्येक व्यक्ति को ऐसा लगता है मानो नदी का स्पर्श करने वाला घाट का अन्तिम पत्थर कुछ और नरम हो गया है, उसकी कठोरता कम हो गई है। यह ऐसा ही है जैसे पाषाण हृदय व्यक्ति का, हृदय बदल जाता है, उसके व्यवहार में परिवर्तन आ जाता है। घाट पर बैठे बन्दरों की आँखों में एक विशेष प्रकार की नमी दिखाई देने लगती है। एक अजीब-सी चमक दिखाई देती है। घाट पर बैठे भिखारियों के कटोरे भिक्षा से भर जाते हैं जैसे उनमें वसन्त उतर आया हो। जो दीन-हीन हैं उनमें भी एक उमंग भर जाती है।

विशेष :

सार्थक बिम्ब योजना है।

आम बोलचाल के शब्दों का प्रयोग हुआ है; जैसे - सुगबुगाना, पचखियाँ, निचाट।

सीढ़ियों पर बैठे बन्दरों और घाट पर बैठे भिखारियों के वर्णन में चित्रोपमता है।

भाषा में प्रसाद गुण और सहजता विद्यमान है।

'बनारस' का वर्णन अत्यन्त सजीव है।

तुमने कभी देखा है

खाली कटोरों में वसन्त का उतरना !

यह शहर इसी तरह खुलता है

इसी तरह भरता

और खाली होता है यह.शहर

इसी तरह रोज-रोज एक अनन्त शव

ले जाते हैं कंधे

अँधेरी गली से

चमकती हुई गंगा की तरफ

शब्दार्थ :

अनन्त = जिसका अन्त न हो, बहुत अधिक, अनेक।

सन्दर्भ : प्रस्तुत काव्यांश 'बनारस' कविता से उद्धृत है जो हमारी पाठ्य-पुस्तक 'अन्तरा भाग -2' में संकलित है। इसके रचयिता केदारनाथ सिंह हैं।

प्रसंग - इन पंक्तियों में कवि ने वसन्त आने पर बनारस में जो प्रसन्नता व्याप्त होती है उसका वर्णन किया है। वसन्त आने पर भिखारियों के कटोरे भीख से भर जाते हैं, उनके मुख पर प्रसन्नता व्याप्त हो जाती है।

व्याख्या : कवि कहता है कि वसन्त आने पर बनारस के अभावग्रस्त लोगों में भी उल्लास व्याप्त हो जाता है। खाली कटोरों में वसन्त उतर आता है अर्थात् भिखारियों के कटोरे भीख से भर जाते हैं। उनके चेहरों पर उमंग व्याप्त हो जाती है। बनारस की यह विशेषता है कि यहाँ दिन उल्लास, उमंग और प्रसन्नता के साथ प्रारम्भ होता है। लोगों की जिजीविषा, आशा और उमंग के साथ यह शहर भरा रहता है। लोग आशा और उमंग के साथ जीते हैं।

यहाँ प्रतिदिन कोई-न-कोई शव गंगा के किनारे लाया जाता है। इस प्रकार यह शहर खाली भी होता रहता है। लोग शव को कंधे पर उठाकर अंधेरी गली से निकालकर गंगा की ओर दाह-संस्कार के लिए ले जाते हैं। अर्थात् मृत्यु के अन्धकार से निकालकर शव को मोक्ष के प्रकाश की ओर ले जाया जाता है। इस प्रकार शहर में कहीं खुशी का वातावरण व्याप्त रहता है तो कहीं शोक की काली चादर बिछ जाती है। इस प्रकार परस्पर विपरीत दृश्य बनारस में देखने को मिलते हैं।

विशेष :

बनारस के हर्ष-विषाद का यथार्थ वर्णन किया गया है।

केदारनाथ सिंह ने बनारस में रहकर इस नगर को बहुत देखा-परखा है, उसी की यथार्थ अभिव्यक्ति इस कविता में है।

'खाली कटोरे में वसन्त का उतरना' नया प्रयोग है।

भाषा प्रसाद गुण युक्त है। सार्थक शब्दों का प्रयोग हुआ है।

वर्णन में चित्रोपमता है।

इस शहर में धूल

धीरे-धीरे उड़ती है

धीरे-धीरे चलते हैं लोग

धीरे-धीरे बजते हैं घंटे

शाम धीरे-धीरे होती है

यह धीरे-धीरे होना

धीरे-धीरे होने की सामूहिक लय

दृढ़ता से बाँधे है समूचे शहर को

इस तरह कि कुछ भी गिरता नहीं है

कि हिलता नहीं है कुछ भी

कि जो चीज जहाँ थी

वहीं पर रखी है।

कि गंगा वहीं है

कि वहीं पर बँधी है नाव

कि वहीं पर रखी है तुलसीदास की खड़ाऊँ

सैकड़ों बरस से

शब्दार्थ :

सामूहिक = मिला-जुला।

दृढ़ता = मजबूती।

समूचे = पूरे, समग्र।

खड़ाऊँ = लकड़ी से बनी पैरों में पहनने वाली पादुकाएँ।

सन्दर्भ : प्रस्तुत पंक्तियाँ आधुनिक कविता के सशक्त हस्ताक्षर केदारनाथ सिंह की कविता 'बनारस से ली गई हैं। इस कविता को हमारी पाठ्य-पुस्तक 'अन्तरा भाग-2' में संकलित किया गया है।

प्रसंग : इन पंक्तियों में बनारस की जीवन-शैली का वर्णन है। यहाँ हर कार्य धीरे-धीरे होता है मानो यह इस शहर की विशेषता है। आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से इस नगर का अपना अलग ही महत्त्व है।

व्याख्या' : बनारस शहर में सैकड़ों वर्षों से कोई परिवर्तन नहीं हुआ है। इस शहर में धूल धीरे-धीरे उड़ती है, लोग धीरे-धीरे चलते हैं। उनका जीवन धीमी गति से चलता है। मन्दिरों और गंगा के घाटों पर बहुत मन्द ध्वनि में घण्टे बजते हैं। शहर में संध्या धीरे-धीरे उतरती है। भाव यह है कि बनारस में जीवन सहज रूप से चलता है। हर कार्य का धीरे-धीरे होना यहाँ का स्वभाव बन गया है। यही सामूहिक मंथर गति सारे शहर को बाँधे हुए है।

इस मजबूत बंधन के कारण यहाँ की हर अपने स्थान पर स्थिर है, वह गिरती और हिलती नहीं है। मंगा के प्रति आस्था और श्रद्धा आज भी अडिग है। नावें भी निश्चित स्थान पर ही बँधती हैं और तुलसीदास की खड़ाऊँ भी सैकड़ों वर्षों से वहीं रखी हैं। पुराने मूल्य, मान्यताएँ, आस्था, विश्वास, श्रद्धा आदि सभी बनारस की धरोहर के रूप में सुरक्षित हैं। बनारस की आध्यात्मिकता और भव्यता अब भी जैसी की तैसी है। भाव यह है कि बनारस का जीवन अब भी पुराने ढंग से ही चल रहा है।

विशेष : 

बनारस की अपरिवर्तित आध्यात्मिकता, संस्कृति, आस्था और परम्पराओं का वर्णन है।

धीरे-धीरे में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है।

बिम्ब योजना आकर्षक है।

मुक्त छन्द का प्रयोग है।

केदारनाथ सिंह आधुनिक कविता के सशक्त हस्ताक्षर हैं।

कभी सई-साँझ

बिना किसी सूचना के

घुस जाओ इस शहर में

कभी आरती के आलोक में

इसे अचानक देखो

अद्भुत है इसकी बनावट

यह आधा जल में है

आधा मंत्र में

आधा फूल में है

आधा शव में

आधा नींद में है

आधा शंख में

अगर ध्यान से देखो

तो यह आधा है

और आधा नहीं है।

शब्दार्थ :

सई-साँझ = सांध्यारम्भ।

आलोक = प्रकाश।

सन्दर्भ : 'बनारस' कविता से उद्धृत इन पंक्तियों के रचयिता केदारनाथ सिंह हैं। यह कविता हमारी पाठ्य-पुस्तक 'अन्तरा भाग-2' में संकलित है।

प्रसंग : प्रस्तुत काव्यांश में बनारस के संध्याकालीन सौन्दर्य का वर्णन है। कहीं श्रद्धा के साथ मंत्रोच्चारण करते हुए गंगा की आरती उतारी जाती है तो कहीं शवयात्रा निकाली जाती है। इसी मिले-जुले रूप का वर्णन इस अंश में किया गया है।

व्याख्या : कवि कहता है कि कभी सन्ध्या के समय अचानक इस बनारस नगरी को देखो तो एक अजीब-सा दृश्य आँखों के सामने आयेगा। संध्या आरती के समय इस शहर को देखो तब एक आश्चर्यजनक दृश्य दिखाई देगा। ऐसा दिखाई देगा मानो यह शहर आधा जल में है, आधा मंत्र में है और आधा फूल में है अर्थात् संध्या के समय मन्दिरों-घाटों पर आधा .. बनारस शहर जल, मंत्र और फूलों से भगवान की आरती उतारने में निमग्न रहता है।

उसी समय दूसरी ओर गंगा तट पर चिता जलती दिखाई देती है। इस प्रकार यह शहर आधा नींद में और आधा शव में दिखता है तो कहीं आधे शहर में शंख की ध्वनि सुनाई देती है अर्थात् आधा शहर नींद की अचेतनता में डूबा रहता है तो कहीं देर रात तक पूजा-पाठ होता रहता है। आधा शहर प्राचीन संस्कृति के रूप में देखने को मिलता है। आधा शहर प्राचीनता,

आध्यात्मिकता और श्रद्धा - भक्ति में डूबा दिखता है तो आधा शहर आधुनिक संस्कृति से सराबोर दिखता है।

विशेष :

संध्याकालीन बनारस के वातावरण का वर्णन है।

बनारस की प्राचीनता और नवीनता का वर्णन है।

भाषा प्रसाद गुण युक्त है और सटीक शब्दों का प्रयोग हुआ है।

बिम्ब योजना सशक्त है।

अनुप्रास अलंकार का प्रयोग हुआ है।

जो है वह खड़ा है

बिना किसी स्तम्भ के

जो नहीं है उसे थामे है

राख और रोशनी के ऊँचे-ऊँचे स्तंभ

आग के स्तंभ

और पानी के स्तंभ

धुएँ के

खुशबू के

आदमी के उठे हुए हाथों के स्तंभ

किसी अलक्षित सूर्य को

देता हुआ अर्घ्य

शताब्दियों से इसी तरह

गंगा के जल में

अपनी एक टाँग पर खड़ा है यह शहर

अपनी दूसरी टाँग से

बिलकुल बेखबर!

शब्दार्थ :

स्तंभ = खंभा।

अलक्षित = अज्ञात, दिखाई न देने वाला।

अर्घ्य = पूजा के 16 उपचारों में से एक विधान, दूध चावल आदि मिला हुआ जल श्रद्धापूर्वक चढ़ाना।

संदर्भ - प्रस्तुत काव्यांश 'बनारस' कविता से उद्धृत है जिसके रचयिता श्री केदारनाथ सिंह हैं। यह कविता हमारी पाठ्य-पुस्तक 'अन्तरा भाग-2' में संकलित है।

प्रसंग - इन पंक्तियों में एक ओर बनारस के प्राचीन भव्य स्वरूप की झाँकी प्रस्तुत की गयी है तो दूसरी ओर बनारस की आधुनिकता का वर्णन है। इसमें बनारस के एक विशिष्ट रूप को प्रस्तुत किया गया है। सदियों से चली आ रही आध्यात्मिकता और सांस्कृतिक वैभव का भी वर्णन है।

व्याख्या - कवि का कहना है कि बनारस में जो कुछ विद्यमान है वह सभी बिना किसी आधार के, बिना किसी सहारे के खड़ा है। बनारस की प्राचीनता, आस्था, आध्यात्मिकता, विश्वास, भक्ति, श्रद्धा और सामूहिक गति सभी विरासत के रूप में यहाँ के जनजीवन में व्याप्त हैं। उसका मिथकीय रूप आज भी सुरक्षित है। जो अस्तित्व में नहीं है उसे राख, रोशनी के ऊँचे खम्भे, आग के स्तम्भ, पानी के खम्भे, धुएँ की सुगन्ध और आदमी के उठे हाथ थामे हुए हैं अर्थात् बनारस में आध्यात्मिकता की दोनों शैलियों के मिले-जुले रूप देखने को मिलते हैं।

यह बनारस शहर सदियों से किसी अज्ञात, अदृश्य सूर्य को अर्घ्य देता हुआ गंगा के जल में अपनी एक टाँग पर खड़ा है और दूसरी टौंग से अनजान है। सूर्य को ब्रह्म का प्राचीनतम रूप मानकर सदियों से यहाँ पूजा जा रहा है। यह परम्परा आज की नहीं बहुत प्राचीन है। कहने का तात्पर्य यह है कि आज भी गंगा के बीच में खड़े होकर उसके जल से सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। बनारस का एक भाग आज भी प्राचीन परम्परा में दृढ़ है तो दूसरा आधुनिकता से प्रभावित है। इस प्रकार बनारस में प्राचीनता के साथ आधुनिकता का समावेश है।

विशेष :

इस काव्यांश में बनारस के प्राचीन और आधुनिक रूप का मिला-जुला वर्णन है।

टाँग का प्रयोग प्रतीक रूप में किया गया है।

'बिलकुल बेखबर' में अनुप्रास अलंकार है।

बिम्ब योजना आकर्षक है।

भाषा में प्रसाद गुण और प्रवाह है।

दिशा

हिमालय किधर है?

मैंने उस बच्चे से पूछा जो स्कूल के बाहर

पतंग उड़ा रहा था

उधर-उधर - उसने कहा

जिधर उसकी पतंग भागी जा रही थी

मैं स्वीकार करूँ

मैंने पहली बार जाना

हिमालय किधर है!

सन्दर्भ : प्रस्तुत पंक्तियाँ 'दिशा' नामक कविता से ली गई हैं। यह प्रसिद्ध आधुनिक कवि केदारनाथ सिंह की रचना है जो हमारी पाठ्य-पुस्तक 'अन्तरा भाग-2' में संकलित है।

प्रसंग : यह कविता बाल मनोविज्ञान से सम्बन्धित है। प्रत्येक व्यक्ति की सोच अलग होती है। यथार्थ के सम्बन्ध में सभी अपने ढंग से सोचते हैं। बच्चे भी अपने ढंग से सोचते हैं।

व्याख्या : बच्चों की दुनिया छोटी होती है। बच्चा अपनी सीमा में ही सोचता है। कवि कहता है कि मैंने स्कूल से बाहर आते हुए एक बच्चे से प्रश्न किया, हिमालय किधर है? बच्चे ने सहजता से हिमालय उधर ही बता दिया जिधर उसकी पतंग उड़ती हुई भागी जा रही थी। बच्चे का उत्तर सुनकर कवि ने जाना कि हिमालय किधर है। बच्चे का उत्तर सुनकर कवि ने समझा कि प्रत्येक व्यक्ति का अपना-अपना यथार्थ होता है। बच्चे दुनिया की हर चीज को अपने ढंग से देखते हैं। उनकी दुनिया छोटी होती है। वे उसी सीमा में सोचते हैं।

विशेष :

इन पंक्तियों में बाल मनोविज्ञान का वर्णन है।

बच्चे सहज रूप से ही किसी बात का उत्तर दे देते हैं।

भाषा अत्यन्त सरल है। हिन्दी खड़ी बोली का प्रयोग है।

सबके सोचने का ढंग अलग-अलग होता है, यह दिखाया गया है।

'मैं स्वीकार ........ किधर है' - में बच्चे के सहज उत्तर पर कवि मुग्ध दिखाई देता है।

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