12th अंतरा (ऐच्छिक) 2. संजीव = आरोहण

12th अंतरा (ऐच्छिक) 2. संजीव = आरोहण

 

12th अंतरा (ऐच्छिक) 2. संजीव = आरोहण

आरोहण

प्रश्न 1. यूँ तो प्रायः लोग घर छोड़कर कहीं न कहीं जाते हैं, परदेश जाते हैं, किन्तु घर लौटते समय रूप सिंह को एक अजीब किस्म की लाज, अपनत्व और झिझक क्यों घेरने लगी?

उत्तर : रूपसिंह हिमांग पहाड़ की तलहटी में स्थित माही गाँव का रहने वाला था। एक पर्वतारोही कपूर साहब उससे प्रसन्न होकर उसे मंसूरी ले गए थे। वहाँ रूपसिंह ने पर्वतारोहण विभाग में चार हजार रुपये मासिक की नौकरी कर ली थी। अब पूरे ग्यारह वर्ष बाद वह कपूर साहब के बेटे शेखर कपूर के साथ अपने गाँव लौट रहा था।

पिछले ग्यारह साल से रूपसिंह का सम्पर्क अपने गाँव तथा परिवार के लोगों के साथ नहीं था। उसे यह भी पता नहीं था कि उसके माता-पिता जीवित भी हैं या नहीं, उसका भाई कहाँ है, उसकी प्रेमिका शैला का क्या हुआ, उसे कुछ भी पता नहीं था। कोई उससे पूछेगा कि वह इतने साल कहाँ रहा और अब लौटकर क्यों आया है, तो वह क्या उत्तर देगा-यह भी वह समझ नहीं पा रहा था। इस कारण उसको अपने गाँव लौटने में अपनत्व का भाव तो था, किन्तु लज्जा और झिझक का अनुभव भी हो रहा था। शेखर कपूर का साथ होना रूपसिंह की लज्जा और झिझक का दूसरा कारण था।

प्रश्न 2. पत्थर की जाति से लेखक का क्या आशय है? उसके विभिन्न प्रकारों के बारे में लिखिए।

उत्तर : अपनी बनावट तथा उत्पत्ति के आधार पर पत्थर विभिन्न प्रकार के होते हैं। निर्माण के आधार पर उनकी अनेक किस्में होती हैं। इन किस्मों को ही लेखक ने पत्थर की जाति कहा है। प्रत्येक किस्म के पत्थर की उपयोगिता-तथा कीमत अलग-अलग होती है। मारबल या संगमरमर सफेद रंग का चिकना कीमती पत्थर होता है। आजकल लोग ग्रेनाइट मारबल तथा कोटा स्टोन का प्रयोग भवन निर्माण में करते हैं। एक पत्थर लाइम स्टोन कहलाता है। प्रस्तुत पाठ में पत्थर की निम्नलिखित किस्में बताई गई हैं।

इग्नियस - यह पत्थर आग से निर्मित होने के कारण इग्नियस कहलाता है।

ग्रेनाइट-यह एक कठोर दानेदार पत्थर होता है।

मेटामारफिक-यह विभिन्न परिवर्तनों में गुजरने से बनता है।

सैंड स्टोन-यह लाल रंग का परतदार पत्थर होता है।

सिलिका यह कठोर तथा सफेद रंग का पत्थर होता है।

प्रश्न 3. महीप अपने विषय में बात पूछे जाने पर उसे टाल क्यों देता था?

अथवा

'आरोहण' में महीप कौन था? वह अपने बारे में पूछे प्रश्नों को टाल क्यों देता था?

उत्तर : महीप रूपसिंह के बड़े भाई भूपसिंह का बेटा था। उसकी माँ शैला रूपसिंह की प्रेमिका तथा भूपसिंह की पहली पत्नी थी। भूपसिंह ने दूसरी औरत कर ली थी। जब महीप नौ साल का था, उसकी माँ शैला ने पहाड़ से सूपिन नदी में कूदकर आत्महत्या कर ली थी। तब से महीप नीचे अपने पिता से अलग रहता था। वह भूपसिंह को अपनी माँ की मृत्यु का दोषी मानता था। रूपसिंह तथा शेखर कपूर को वह घोड़ों पर बैठाकर माही ले जा रहा था। दोनों रास्ते में आपस में बातें कर रहे थे। इसमें भूपसिंह तथा शैला का नाम भी आ रहा था। महीप उनकी बातें सुन रहा था। वह जान चुका था कि रूपसिंह उसके पिता का भाई है। वह उससे अपना परिचय छिपाना चाहता था। इस कारण अपने विषय में पूछे जाने पर वह चुप रहता था तथा बात को बहाने में टाल देता है।

प्रश्न 4. बूढ़े तिरलोक सिंह को पहाड़ पर चढ़ना जैसी नौकरी की बात सुनकर अजीब क्यों लगा?

उत्तर : माही पहुँचने पर रूपसिंह सबसे पहले तिरलोकसिंह के पास पहुँचा। रूपसिंह ने अपना परिचय दिया और तिरलोकसिंह के पैर छुए। किसी ने पूछा कि वह इतने दिनों तक कहाँ रहा? रूपसिंह ने बताया कि वह पर्वतारोहण संस्थान में था, वहाँ पहाड़ पर चढ़ना सिखाया जाता है। सरकार इस नौकरी के लिए उसको चार हजार रुपये महीना वेतन देती है।

बूढ़ा तिरलोकसिंह का गाँव माही पहाड़ की तलहटी में बसा था। वह पहाड़ी था। पहाड़ के लोग हर दिन पहाड़ पर चढ़ते-उतरते थे। यह उनके लिए एक मामूली-सा काम था। इस काम के लिए सरकार चार हजार रुपये की नौकरी दे, यह बात उसे सच नहीं लग रही थी। उसने पहले यह सुना भी नहीं था। अतः उसे रूपसिंह की पहाड़ पर चढ़ने की नौकरी करने की बात अजीब-सी लगी थी।

प्रश्न 5. रूपसिंह पहाड़ पर चढ़ना सीखने के बावजूद भूपसिंह के सामने बौना क्यों पड़ गया था?

अथवा

उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए कि पर्वतारोहण के कौशल में प्रशिक्षित होने पर भी रूपसिंह और शेखर अप्रशिक्षित भूपसिंह के सामने बौने हैं?

उत्तर : रूपसिंह पहाड़ पर च। सीखकर पर्वतारोहण संस्थान में नौकरी करता था। ग्यारह वर्ष बाद वह अपने गाँव माही लौट रहा था। उसके साथ शेखर कपूर भी था। उसके बड़े भाई भूपसिंह ने दोनों के बैग अपने कैंधे पर लटकाए और हिमांग पर्वत पर चढ़ने लगे। रूपसिंह और शेखर किसी पेड़ या पत्थरं का सहारा लेकर कुछ ऊँचाई तक तो चढ़े, फिर रुक गए और हाँफने लगे। पहाड़ पर चढ़ने के लिए वे पत्तरों, झूटी, रस्सों, कुल्हाड़ी और दूसरी चीजों का सहारा लेते थे।

वे पहाड़ में दरार ढूँढ़ते थे,'रॉक पिटन लगाते थे, 'दरार न मिलने पर ड्रिल करते थे तथा रॉक पिटन, ऐंकर, डिसेंडर और रोपलैंडर आदि का इस्तेमाल करते थे। परन्तु यहाँ रूपसिंह के पास इनमें से कोई चीज नहीं थी। उसे इन सामानों के बिना तथा किसी सहायता के बिना पहाड़ पर चढ़ने का अभ्यास नहीं था। पहाड़ पर रहने के कारण भूपसिंह काफी मजबूत था। वह किसी छिपकली, ष, सॉप या रोबोट की तरह पहाड़ पर चढ़ सकता था। वह अपनी दो-दो पत्नियों तथा दो-दो बछड़ो को अपने कधे पर उठाकर ऊपर ले जा चुका था। इतनी शक्ति रूपसिंह में नहीं थी।

प्रश्न 6. शैला और भूप ने मिलकर किस तरह पहाड़ पर अपनी मेहनत से नयी जिंदगी की कहानी लिखी?

अथवा

शैला और भूप ने मिलकर पहाड़ पर नई जिंदगी की कहानी किस प्रकार लिखी? सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।

उत्तर : भूपसिंह ने रूपसिंह को बताया कि हिमांग पहाड़ के धंसने से उसके खेत, घर, माता-पिता उसमें दब गए थे। वह अकेला बचा था। किसी तरह वह पहाड़ पर चढ़ा और धीरे-धीरे मलबा हटाता रहा। थोड़ी बहुत खेती शुरू की। अकेलापन लगा तो नीचे से शैला को ले आया। शैला के आने से खेती फैल गई। बरफ न जमी रहे, इसके लिए दोनों ने खेतों को ढलवाँ बनाया। अब पानी की समस्या थी, जिसकी खोज में शैला और भूप हिमांग के बिना टूटे ऊँचे हिस्से पर चढ़ गए। वहाँ एक झरना बहकर सूपिन नदी में गिर रहा था। दोनों ने उसका रुख मोड़ने का निश्चय किया।

इसके लिए पहाड़ को काटना जरूरी था। दोनों ने कड़ी मेहनत की। अन्त में वे सफल हुए और झरने का पानी खेतों की सिंचाई के लिए मिलने लगा। उन्होंने वहाँ 'सेब और देवदार के पेड़ लगा लिए थे, जिनसे उन्हें जलाने की लकड़ियाँ और खाने को फल मिल जाते थे। मकई की फसल खड़ी थी। भूप नीचे से कन्धों पर उठाकर दो बछड़े ऊपर ले आया था, जो अब बैल बनने पर खेती के काम आते थे। इस तरह भूप और शैला ने मिलकर अपनी मेहनत से जिंदगी की नई कहानी लिखी थी।

प्रश्न 7. सैलानी (शेखर और रूप सिंह) घोड़े पर चलते हुए उस लड़के के रोज़गार के बारे में सोच रहे थे जिसने उनको यो वार कर रखा था और स्वयं पैदल चल रहा था। क्या आप भी बाल-मजदूरों के बारे में सोचते हैं ?

उत्तर : शेखर कपूर और रूपसिंह हिमांग पहाड़ की तलहटी में स्थित गाँव माही जा रहे थे। दोनों घोड़ों पर सवार थे। लड़का महीप उनको घोड़ों पर बैठाकर ले जा रहा था और स्वयं शेखर के घोड़े को पकड़कर आगे-आगे पैदल चल रहा था। वे सोच रहे थे कि इतनी छोटी उम्र में उसे घोड़ों पर मुसाफिरों को पहाड़ी स्थानों पर लाने-ले जाने का जोखिम भरा कठिन काम करना पड़ रहा है। पेट के लिए क्या-क्या करना पड़ता है? बर्फ गिरने के दिनों में यह क्या काम करता होगा? इसके परिवार में और कौन-कौन लोग होंगे? इत्यादि।

हमारी दृष्टि में भारत में अनेक बच्चों को अपना बचपन पेट भरने के लिए पैसा कमाने में गँवाना पड़ता है। स्कूल जाकर पढ़ने, खेलने-कूदने और निश्चित होकर घूमने की उम्र उनको कठोर श्रम करने में बितानी पड़ती है। भारत में बाल-मजदूरी की समस्या अत्यन्त विकट है। गैर-कानूनी होने पर भी यह आज भी प्रचलित है, जिसका कारण गरीबी है। इस समस्या के समाधान के लिए सरकार के साथ ही हम सभी को मिलकर प्रयास करना होगा। कोरी सहानुभूति का प्रदर्शन उचित नहीं है।

प्रश्न 8. पहाड़ों की चढ़ाई में भूप दादा का कोई जवाब नहीं! उनके चरित्र की विशेषताएँ बताइए।

अथवा

"भूपदादा साँप थे, छिपकली थे, बनमानुष थे या रोबोट थे" इस कथन के आधार पर भूप सिंह का चरित्र चित्रण

उत्तर : भूप दादा 'आरोहण' कहानी के प्रमुखतम पात्र हैं। पर्वतारोहण में उनका मुकाबला कोई नहीं कर सकता। पर्वत पर चढ़ने में उनको महारत हासिल है। उन्होंने पर्वतारोहण की शिक्षा नहीं ली है। जो कुछ सीखा है, अपने अनुभव से ही सीखा है। वह बिना किसी उपकरण की सहायता के पहाड़ पर चढ़ जाते हैं। यहाँ तक कि पेड़ों तथा चट्टानों का सहारा लेना भी वे ज़रूरी नहीं समझते। भूप दादा पर्वत पर चढ़ते हैं, तो किसी साँप, छिपकली, वनमानुष. अथवा रोबोट जैसे लगते हैं। वह अत्यन्त शक्तिशाली हैं तथा उनमें अद्भुत आत्मविश्वास है। वह अपनी दो-दो पत्नियों तथा दो-दो बछड़ों को भी नीचे से अपने कीजिए।

कंधों पर उठाकर पहाड़ के ऊपर ले आए थे। उनका छोटा भाई रूप भी इस मामले में उनका मुकाबला नहीं कर सकता। हिमांग पर चढ़ते समय वह और उसका.मित्र शेखर पेड़ों और चट्टानों के सहारे थोड़ा ऊपर चढ़ पाते हैं, मंगर फिर थककर हाँफने लगते हैं। रूप तो पर्वतारोहण की शिक्षा भी देता है, किन्तु वह भी भूप दादा के सामने बौना सिद्ध होता है।

भूप दादा कुशल पर्वतारोही, परिश्रमी किसान, स्नेही भाई, सच्चे प्रेमी, सफल पति, यथार्थवादी मानव तथा वत्सलतामय पिता हैं। उनके चरित्र का प्रमुख गुण उनका आत्मसम्मान के प्रति सजग रहना है। वह कष्ट सहकर भी अपनी खुद्दारी (अपना आत्मविश्वास) नहीं छोड़ते।

प्रश्न 9. इस कहानी को पढ़कर आपके मन में पहाड़ों पर स्त्री की स्थिति की क्या छवि बनती है? उसे पर अपने विचार व्यक्त कीजिए।

उत्तर : 'आरोहण' कहानी में दो ही नारी पात्र हैं। एक है शैला जो पहले भूप सिंह की प्रेमिका तथा बाद में पत्नी बनती है। दूसरी महिला पात्र भूपसिंह की दूसरी पत्नी है। पहली पत्नी के बच्चा होने वाला था इसलिए भूपसिंह दूसरी औरत को नीचे से ऊपर पहाड़ पर ले आया था। शैला भेड़ चराती थी। वह भूपसिंह के लिए स्वेटर बुनती थी। वह उनके लिए फल, फूल और ईंधन लाती थी। जंगल में भूपसिंह उनसे मिलने आते थे। जब वह नहीं आते थे तब शैला दुःखी होती थी। उसके प्रति एकतरफा प्रेम करने वाला रूप भी उसको खुश नहीं कर पाता था।

इस कहानी को पढ़ने पर प्रतीत होता है कि पहाड़ की स्त्री अत्यन्त दयनीय स्थिति में है। उसको अपना पूरा जीवन पराश्रित होकर बिताना पड़ता है। वह भेड़-बकरी चराती है, जंगल से घास और ईंधन लाती है, खेती करती है तथा घर की देखभाल और परिवार का पोषण करती है। उसे कठोर परिश्रम करने पर भी अपना जीवन पुरुष पर आश्रित होकर और अपमान सहकर गुजारना पड़ता है। भूपसिंह जैसा प्रेमी, जो अकेलापन महसूस होने पर शैला को पहाड़ पर लाया था, उसके गर्भवती होने पर दूसरी स्त्री. को ले आया था। सौतन के होने की इस पीड़ा को नौ वर्ष सहने के बाद उसे सूपिन में कूदकर आत्महत्या करनी पड़ी थी। शैला की यह आत्महत्या पहाड़ी स्त्री की अपमानपूर्ण जीवन जीने की विवशता को व्यक्त करती है। वैसे पहाड़ की स्त्री गोरी, सुन्दर, पुष्ट और स्नेहमयी होती है। वह मधुर कंठ से गीत गाती है। वह सच्चे मन से प्रेम करती है तथा किसी को धोखा नहीं देती है।

योग्यता विस्तार

प्रश्न 1. 'पहाड़ों में जीवन अत्यन्त कठिन होता है।' पाठ के आधार पर उक्त विषय पर एक निबंध लिखिए।

अथवा

'आरोहण' कहानी के आधार पर पर्वतीय क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के जीवन का वर्णन कीजिए।

उत्तर : पहाड़ों की सुन्दरता मैदानी भाग के निवासियों को सदा से आकर्षित करती रही है। अनेक पर्यटक वहाँ प्राकृतिक सौन्दर्य के दर्शनार्थ जाते हैं। पहाड़ों पर जीवन अत्यन्त कठिन होता है। वह मैदानी प्रदेश के गाँवों तथा शहरों के समान सुविधाजनक और आरामदायक नहीं होता। पहाड़ी प्रदेशों में गाँव और नगर दूर-दूर स्थित होते हैं। मार्ग में वन, वन्य जीव-जन्तु तथा नदी-नालों की बाधाएँ होती हैं। पहाड़ों पर मकान थोड़ा-सा समतल भूभाग होने पर बनाए जाते हैं। पहाड़ों पर भू-स्खलन होता रहता है। चट्टानों के टूटने तथा पर्वतों के धंसने से गाँव नष्ट हो जाते हैं, रास्ते बन्द हो जाते हैं।

पहाड़ों पर खेती कम होती है। वहाँ खाने-पीने की चीजें बाहर से आती हैं। ईंधन के लिए लोगों को जंगलों से लकड़ी लाकर काम चलाना पड़ता है। पहाड़ों पर यातायात के साधनों का अभाव होता है। वहाँ रेलें नहीं चलती। सड़कें भी पक्की और अच्छी किस्म की नहीं होती। पहाड़ी रास्ते सँकरे, ऊबड़-खाबड़ तथा ऊँचे-नीचे होते हैं। सवारी के रूप में घोड़े ( या खच्चर मिलते हैं। ज्यादातर तो पैदल ही चलना पड़ता है।

पहाड़ी लोगों में गरीबी तथा बेरोजगारी व्याप्त है। खेती, पशुपालन तथा वन के पदार्थों, जड़ी-बूटियों आदि को इकट्ठा करने से बहुत कम आमदनी होती है। कहीं-कहीं पर्यटकों के कारण भी कुंछ आय होती है। वहाँ अस्पतालों तथा स्वास्थ्य सेवाओं का अभाव होता है। इससे बीमारों को इलाज नहीं मिल पाता। बच्चों की उचित पढ़ाई की भी व्यवस्था नहीं होती। स्कूल प्रायः नहीं होते, होते हैं तो दूर होते हैं। अशिक्षा के कारण लोगों में अन्धविश्वास तथा अज्ञान व्याप्त रहता है।

प्रश्न 2. पर्वतारोहण की प्रासंगिकता पर प्रकाश डालिए।

उत्तर : 'पर्वतारोहण' का अर्थ है पहाड़ पर चढ़ना पहाड़ पर के गाँव या नगर का निवासी पहाड़ पर नहीं चढ़ेगा तो क्या करेगा ? वह तो अपने जीवन में हर रोज पहाड़ पर चढ़ता-उतरता है। परन्तु यहाँ पर्वतारोहण एक विशिष्ट अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। दूरस्थ मैदानी क्षेत्र के रहने वाले अथवा कुछ पहाड़ी क्षेत्र के निवासी भी पर्वतों की ऊँची-ऊँची चोटियों पर चढ़ते हैं। ऐसे पर्वत-शिखर जहाँ पहुँचने में अनेक प्राकृतिक बाधाएँ हैं, पर्वतारोहियों को आकर्षित करते हैं। उन, शिखरों पर चढ़ना ही पर्वतारोहण कहलाता है।

पर्वतारोहण आज हमारे जीवन में अत्यन्त प्रासंगिक हो गया है। पर्वतों पर चढ़ना एक कला है। आज वह एक उद्योग का रूप ले चुका है। उसकी विधिवत् शिक्षा दी जाती है। कुछ लोगों के लिए यह जीविका का साधन बन चुका है। कुछ लोग अपने साहस तथा लगन के प्रदर्शन के लिए पर्वतारोहण करते हैं। पर्वतीय प्रदेश की जानकारी पर्वतारोहण से ही प्राप्त की जा सकती है। यह जोखिम का काम है और जोखिम उठाने में भी एक प्रकार का आनन्द मिलता है। इसी के लिए लोग पर्वतों पर चढ़ते हैं। इस कार्य में सफलता पाने पर वे प्रसिद्ध और यशस्वी हो जाते हैं। कभी-कभी इसमें जीवन संकट में पड़ जाता है। जो भी हो, आज पर्वतारोहण हमारे जीवन में महत्त्वपूर्ण स्थान पा चुका है।

प्रश्न 3. पर्वतारोहण पर्वतीय प्रदेशों की दिनचर्या है, वही दिनचर्या आज जीविका का माध्यम बन गई है। उसके गुण-दोष का विवेचन कीजिए।

अथवा

'आरोहण' पहाड़ी लोगों की जीवनचर्या का भाग है, किन्तु वही आरोहण किसी को नौकरी भी दिला सकता है। पाठ के आधार पर बताइए।

उत्तर : 'पर्वतारोहण' दो शब्दों से मिलकर बना है - पर्वत + आरोहण। पर्वतारोहण का अर्थ है - पर्वत पर चढ़ना। पर्वतीय प्रदेश के निवासी अपने जीवन की जरूरतों को पूरा करने के लिए तथा अन्य गाँवों-नगरों में रहने वालों से मिलने के लिए पहाड़ की ऊँचाई पर चढ़ते-उतरते हैं। इस तरह पर्वत पर चढ़ना-उतरना उनके दैनिक कार्य-कलापों का एक हिस्सा है।

आज पर्वतारोहण विद्यालयों में छात्रों के लिए अध्ययन का एक विषय बन गया है। पर्वतारोहण का अभ्यास करके वे अपनी जीविका चला सकते हैं। दर स्थित मैदानी प्रदेशों से अनेक पर्यटक पहाड़ों पर आते हैं। पहाड़ों के दर्गम स्थानों की यात्रा में उनको मार्ग-दर्शकों की सहायता अपेक्षित होती है। पहाड़ के निवासी या पर्वतारोहण की शिक्षा प्राप्त कर चुके व्यक्ति इन पर्यटकों के लिए मार्ग-दर्शक या गाइड का काम करते हैं।

वे उनको पर्यटन के स्थानों पर ले जाते हैं। उनके लिए घोड़ों या अन्य सवारियों का प्रबन्ध करते हैं, उनको सुरक्षित स्थानों में सुविधापूर्वक ठहराते हैं, उनके भोजन आदि की व्यवस्था करते हैं तथा उनको वांछित जानकारी प्रदान करते हैं। इस सेवा के बदले पर्यटकों से उनको अच्छी आमदनी होती है। इस तरह पर्वतारोहण जीविका का एक साधन बन जाता है।

पहाड़ों पर जहाँ जीविका के साधनों का अभाव है, वहाँ पर्वतारोहण लोगों का जीवन-स्तर सुधारने में एक महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। इससे संसार के अन्य भागों से कटे हुए एकान्त प्रदेश में रहने वाले पहाड़ी लोगों का सम्पर्क शेष विश्व से होता है और वे संसार की विविध जानकारी प्राप्त करते हैं। पर्वतारोहण को जीविका बनाने में कुछ दोष भी हैं। सबसे बड़ा दोष यह है कि यह सुरक्षित जीविका नहीं है। इसमें ऐसे स्थानों पर जाना होता है जहाँ जीवन संकट में पड़ जाता है। दूसरे, यह जीविका स्थायी नहीं है। पर्यटक विशेष अवसरों पर ही पहाड़ों पर आते हैं, बारहों महीने तथा हर दिन नहीं।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. देवकुंड के बस-स्टाप पर रूपसिंह के सामने क्या समस्या आई ?

उत्तर : रूपसिंह ग्यारह साल बाद अपने गाँव माही लौट रहा था। उसके साथ उसका मित्र शेखर कपूर भी था, जो आई. ए. एस. ट्रेनी था। इतने लम्बे समय से गाँव के सम्पर्क से दूर रहने के कारण घाटियों पर जमी धुंध की तरह उसके रिश्तों पर भी लम्बे. अन्तराल की धुंध जमा हो गई थी। गाँव तक जाने के लिए पक्की सड़क नहीं थी। कोई सवारी भी नहीं थी। वह अपने मित्र को अपने गाँव तक पैदल ले जाकर अपने गाँव की तौहीन नहीं कराना चाहता था। वह इसी उधेड़-बुन में पड़ा हुआ चाय वाले की दुकान पर खड़ा था।

प्रश्न 2. रूपसिंह को माही पहुँचने के लिए सवारी की ज़रूरत थी। चाय वाले ने उसकी समस्या का समाधान किस - प्रकार किया?

उत्तर : रूपसिंह शेखर को अपने गाँव माही तक पैदल ले जाना नहीं चाहता था। उसने चाय वाले के सामने अपनी समस्या रखी। चाय वाले ने कुछ सोचा फिर आगे बढ़कर गुमसुम-से बैठे नौ-दस साल के लड़के को पुकारकर कहा कि तुझे माही जाना है। लड़का चुपचाप उठकर चला गया और थोड़ी देर बाद दो घोड़ों के साथ चढ़ाई चढ़ता हुआ दिखाई दिया। मेहनताना चायवाले ने ही तय कर दिया था। शेखर और रूप घोड़ों पर चढ़कर महीप के साथ चल पड़े।

प्रश्न 3. देवकुंड से आगे का रास्ता कैसा था ?

उत्तर : देवकुंड से आगे पहले पहाड़ तक रास्ता ठीक-ठाक था। उससे उतरते ही धूप का उजाला कम होने लगा था। धूप और छाया की पट्टियाँ-सी पहाड़ पर बन रही थीं, जिनके कारण पहाड़ किसी विशाल धारीदार जुगाली करते पशु के जैसा दिखाई दे रहा था। चढ़ाई और ढलानों का अनन्त क्रम था। बीच-बीच में जहाँ-तहाँ छोटे-छोटे घरौंदे बने थे। पहाड़ों पर बादल इधर-उधर उड़ रहे थे। नीचे घास थी, बेलें थीं और पेड़ों की हरियाली थी। पहाड़ कहीं कच्चे थे तो कहीं पक्के। नीचे सूपिन नदी बह रही थी।

प्रश्न 4. घाटी में सुनाई दे रहे गीत का क्या अर्थ बताया रूपसिंह ने ?

उत्तर : घाटी में गूंज रहे गीत का अर्थ रूपंसिंह ने शेखर को बताया कि कोई घास काटनेवाली पहाड़ी लड़की कुहरे से कह रही है हे कुहरे! ऊँची-नीची पहाड़ियों में तुम न लगो जाकर। इस पर कुहरा उससे कहता है कि तू ऊँची-नीची पहाड़ियों में मत जाया कर। कुहरा हिलांस नामक पक्षी को भी सावधान कस्ता है कि वह ऊँची-नीची पहाड़ियों में अपना बसेरा न बनाया करे। पहाड़ी प्रदेश में छाया कुहरा वहाँ के निवासियों को बड़ा कष्ट देता है। इससे घर-बार ही नहीं नाते रिश्ते तक धुंधला जाते हैं। प्रेम के नाते भी दिखाई नहीं देते।

प्रश्न 5. घाटी में गूंजने वाले गीत को सुनकर रूपसिंह की क्या दशा हुई ? उसने शेखर को क्या बताया ?

उत्तर : घाटी में गूंजने वाले गीत का अर्थ शेखर को बताते हुए रूप की आवाज भर्रा गई। उस गीत की दर्द भरी टेर से वह अत्यन्त प्रभावित हुआ। उसने शेखर को बताया कि यह ठीक है कि उसने पहाड़ पर कोई बसेरा नहीं बनाया। वह यहाँ से चला गया। परन्तु बाबा और भूप दादा ने तो वहाँ अपना बसेरा बनाया था। पहाड़ पर कुहासे का होना क्या मायने रखता है, इसे कोई पहाड़ी ही जान सकता है। इस कुहासे के कारण रिश्ते तक धुंधले पड़ जाते हैं। स्नेह के नाते भी दिखाई नहीं देते। यह कहते-कहते रूप चुप हो गया।

प्रश्न 6. रूपसिंह और शेखर के मध्य हुई पर्वतारोहण सम्बन्धी बातों को संक्षेप में लिखिए।

उत्तर : मार्ग में रूपसिंह तथा शेखर में पर्वतारोहण पर बातें होने लगी। शेखर ने रूप से पूछा कि वह पर्वत पर कैसे चढ़ेगा? लेकिन रूप ने पहले शेखर से ही इस प्रश्न का उत्तर पूछा। शेखर ने कहा पहले पहाड़ पर कोई दरार तलाश करते हैं फिर रॉक पिटन लगाते हैं। यदि दरार नहीं मिलती तो. ड्रिल करने के बाद रॉक पिटन लगाते हैं। इसके बाद ऐंकर और रोप लैडर का प्रयोग करते हैं। रूपसिंह ने उसे रोककर कहा- नहीं, पहले सपोर्ट ही नहीं बना पाओगे, बन भी गया तो फ्रीरैपेलिंग नहीं होगी। इसके बाद रूप ने शेखर से दूसरा सवाल पूछा, शेखर उसका उत्तर देना ही चाहता था कि घोड़े वाले महीप ने उनको टोक दिया-"साब जल्दी करो ना"।

प्रश्न 7. आप कैसे कह सकते हैं कि रूपसिंह को अपने घर-गाँव से अब भी प्रेम था ?

उत्तर : रूपसिंह ग्यारह वर्ष पश्चात् अपने गाँव माही लौट रहा था। उसको अपने गाँव तथा परिवार के लोगों की याद आ रही थी। घाटी से आ रहे दर्द भरे गीत की ध्वनि से उसका गला भर्रा उठा था। गाँव ज्यों-ज्यों निकट आ रहा था, उसकी बेचैनी बढ़ती जा रही थी। उसकी वर्षों से बंद-स्मृतियों के कपाट खुलते जा रहे थे। वह सोच रहा था कि पहाड़ की तलहटी में उसका गाँव है। वहाँ उसके खेत होंगे, उसका घर होगा। उसके बाबा, माँ और भूप दादा तथा अन्य लोग होंगे। अभी कुछ दूर हैं केदार काँठा और दुर्योधन जी का मंदिर। बस, फिर वह अपने वतन पहुँच जाएगा। ये सभी बातें अपने घर-गाँव के प्रति , रूपसिंह के प्रेम को प्रकट करती हैं।

प्रश्न 8. 'एकाएक जैसे सफेद हो गया रंगीन स्क्रीन'-प्रस्तुत कथन का आशय स्पष्ट कीजिए।

उत्तर : रूपसिंह माही पहुँचा तो सबसे पहले उसकी मुलाकात तिरलोकसिंह से हुई, जो उसका दादा था। उसने अपने पिता तथा भाई के बारे में पूछा तथा घर जाने की इच्छा व्यक्त की। तिरलोक ने उससे हिमांग पहाड़ के ऊपर चढ़ जाने को कहा और बताया कि घर ऊपर चला गया है। उसे अपने माता-पिता के बारे में पता चला कि बहुत पहले ही उनकी मृत्यु हो गई। अपने माता-पिता के देहावसान की बात सुनकर अपने गाँव आने तथा परिवार के लोगों से मिलने की रूप की सारी खुशी गायब हो गई। एकाएक जैसे सफेद हो गया रंगीन स्क्रीन।

प्रश्न 9. ग्यारह साल बाद मिलने पर रूपसिंह को भूप दादा कैसे लगे? .

उत्तर : ग्यारह साल बाद रूपसिंह की मुलाकात भूप दादा से हुई तो वह कतई असाधारणे नहीं लगे। उन्होंने स्वेटर और मफलर पहन रखे थे। उनका कद मध्यम था। उनमें चुस्ती थी। मामूली सी शख्सियत के बावजूद उनको जादू अभी तक बाकी था। उनका गोरा-चिट्टा चित्तीदार चेहरा सख्त और लम्बोतरा था मानो ग्रेनाइट पत्थर से तराशकर बनाया गया हो। उनकी अजीब-सी स्थितप्रज्ञ आँखें मद्धिम-मद्धिम जल रही थीं। उनकी भौहों पर कंटे का निशान था। वह वैसे के वैसे ही थे। ग्यारह सालों में वे और अधिक ठोस और सख्त हो गए थे।

प्रश्न 10. भूपसिंह साँप, छिपकली, वनमानुष या रोबोट थे। रूपसिंह की इस सोच का कारण क्या है ?

उत्तर : रूपसिंह तथा शेखर हिमांग पर्वत पर नहीं चढ़ पा रहे थे। तब भूपसिंह ने अपना मफलर अपनी कमर में बाँधा। उसके दोनों किनारे उन्होंने रूपसिंह को पकड़ाये और वह उसे खींचते हुए पहाड़ पर चढ़ने लगे। वह जिस आत्मविश्वास, ताकत और कुशलता से अपनी मांसपेशियों और अंगों का नायाब उपयोग कर रहे थे, उसे देखकर रूपसिंह को हैरत हो रही थी। वह अकेले नहीं थे, रूपसिंह को भी खींचकर ले जा रहे थे। एक घंटे में वे ऊपर पहुँच चुके थे। भूप दादा की पहाड़ पर चढ़ने में प्रवीणता को देखकर ही रूपसिंह को भ्रम हो रहा था कि वह साँप, छिपकली, वनमानुष या रोबोट थे।

प्रश्न 11. हिमांग पर्वत के धंसने से हुई तबाही के बारे में भूपसिंह ने अपने भाई रूप को क्या बताया ?

उत्तर : भूपसिंह ने बताया कि रूपसिंह के जाने के बाद अगले साल बहुत बर्फ पड़ी थी। हिमांग उसका बोझ न सह सका और धसक गया। उसके नीचे उनके खेत, मकान, माँ, बाबा सब दब गए। भूपसिंह धानी पर था। वह किसी तरह बच गया। उसने वहाँ से यह तबाही देखी। वह असहाय था। चारों ओर पहाड़ का मलबा बिखरा पड़ा था। दस-दस किलोमीटर तक धंसाव हुए थे। सारे रास्ते बदल गए थे, नदियों ने रास्ते बदल लिए थे। वह अकेला था। कोई सहारा देने वाला नहीं था। सहारा देता भी कौन? सभी अपने-अपने में तबाह थे।

प्रश्न 12. 'ऊँचाइयाँ तनहा भी तो करती हैं' शेखर के इस कथन का क्या तात्पर्य है?

उत्तर : भूप दादा तलहटी का गाँव माही छोड़कर सीधे हिमांग पर्वत के ऊपर जा बसे थे। वहाँ वे अपनी पत्नी के साथ रहते थे। पहली पत्नी शैला ने आत्महत्या कर ली थी तथा उनका बेटा महीप अपने पिता को अपनी माँ की मौत का दोषी मानकर उन्हें छोड़कर चला गया था। वे हिमांग पर्वत के नीचे माही वालों से कोई बात नहीं करते थे। वे अकेले हो गए थे। शेखर के प्रस्तुत कथन का आशय यह भी है कि जब मनुष्य अपने जीवन में ऐसी मनोदशा में पहुँच जाता है, तो सामान्य जनों से उसका सम्पर्क टूट जाता है। उसका अपना अलग संसार बन जाता है और वह उसी में मग्न रहता है।

प्रश्न 13. हिमांग पहाड़ पर बैलों को देखकर शेखर ने क्या पूछा? भूप दादा ने उसको क्या बताया ?

उत्तर : हिमांग पहाड़ पर बैलों को देखकर शेखर ने पूछा-भूप भैया, ये बैल यहाँ कैसे आए? भूप सिंह ने उत्तर दिया "कैसे आए? आप ई बताओ जी। सुना, बड़ा मैंड (माइंड) रखते हैं आई. ए.एस. वाले।" शेखर कुछ इस कदर पराभूत था कि भकुआ गया। भूप ने बताया कि वह बैलों को अपने कंधों पर ढोकर लाए थे। वह अपनी दो-दो पत्नियों को कंधे पर ला . सकते थे, रूप और शेखर को ला सकते थे तो बैलों को क्यों नहीं? पहले वह एक-एक कर दो छोटे बछड़ों को ऊपर लाए फिर उन्हें पालकर बड़ा किया और वे बैल बन गए।

प्रश्न 14. हिमांग पर रहते हुए भूप दादा अपने को अकेला क्यों नहीं मानते ?

उत्तर : यद्यपि भूप दादा हिमांग पहाड़ पर अकेलेपन का कष्टदायक जीवन जी रहे थे, परन्तु वह अपने को अकेला नहीं मानते थे। रूपसिंह को उन्होंने बताया था कि वे अकेले नहीं थे। वहाँ उनके साथ बाबा थे, माँ थी, शैला थी, सभी सोये पड़े थे। वहाँ महीप था, बैल थे, उनकी घरवाली थी, मौत के मुंह से निकले खेत थे, पेड़ थे, झरना था। उन पहाड़ों पर उनके प्यारे पुरखों की आत्मा भटकती रहती थी। वह उनसे बातें करते थे। फिर वह अकेले कैसे थे?

प्रश्न 15. रूप सिंह का अपने साथ नीचे जाकर रहने का प्रस्ताव.भूप दादा ने क्यों स्वीकार नहीं किया?

उत्तर : भूप दादा को रूपसिंह का यह प्रस्ताव स्वीकार नहीं था कि वह नीचे जाकर उसके साथ रहें। रूप पहले ही घर छोड़कर चला गया था। माँ, बाबा, शैला सभी मर गए थे। महीप भी छोड़कर चला गया। उसने उनकी कोई खोज-खबर नहीं ली थी। गाँव वालों ने भी भूप की कोई सहायता नहीं की थी। सारे कष्ट भूप ने अकेले ही झेले थे। वे किसी की सहायता नहीं चाहते थे। वे आत्म-सम्मान को खोना नहीं चाहते थे। उन्होंने रूप से कहा कि वह उनकी खुद्दारी को बखस दे। अब जिन्दा रहते न बैल उतर सकते न हम।

प्रश्न 16. 'आरोहण' कहानी के आधार पर भूप दादा की चारित्रिक विशेषताएँ लिखिए।

अथवा

'तुमने सिर पर पहाड़ टूटने की कहावत तो बहुत सुनी होगी, सुनने में बहुत भली नहीं लगती। लेकिन इसकी सच्चाई वही जानता है जिस पर सचमुच का पहाड़ टूटा हो।' आरोहण' कहानी में भूपसिंह के उक्त कथन के आलोक में जीवन और जीवन-मूल्यों की रक्षा के लिए उसके संघर्ष पर प्रकाश डालिए।

उत्तर : भूप सिंह अर्थात् भूप दादा रूप सिंह के बड़े भाई हैं। वह 'आरोहण' कहानी के प्रमुख पात्र तथा नायक हैं। भूप दादा का शरीर मजबूत तथा सशक्त है लेकिन उनका मन कोमल तथा स्नेहमय है। उनके माता-पिता मर चुके हैं। उनकी प्रेमिका तथा पत्नी शैला सूपिन नदी में कूदकर आत्महत्या कर चुकी है। भाई रूप सिंह उन्हें छोड़कर गया तो ग्यारह साल बाद लौटा है। बेटा महीप सिंह नाराज होकर उनका साथ छोड़ चुका है।

उनका घर-बार सब पहाड़ के धसकने से तबाह हो चुका है। इन सब घटनाओं प दादा को आहत कर दिया है। वह टूट चुके हैं और अकेले हो गये हैं। भूप दादा अत्यन्त आत्म सम्मान वाले हैं, खुद्दार हैं। वह सब सह सकते हैं किन्तु अपनी खुद्दारी नहीं छोड़ सकते। वह पहाड़ी निवास छोड़कर रूप के साथ नीचे जाने का प्रस्ताव स्वीकार नहीं करते। विपरीत परिस्थितियों में संघर्ष करते हुए पूरे मनोयोग से पुनर्निर्माण में जुट गए। इस प्रकार भूप दादा ने जीवन-मूल्यों की रक्षा की।

प्रश्न 17. 'आरोहण' पाठ में पहाड़ी जीवन की किन कठिनाइयों का वर्णन किया गया है ?

उत्तर : 'आरोहण' कहानी पर्वतारोहण के सम्बन्ध में है। इसका नायक भूप सिंह का निवास हिमांग पहाड़ पर है। पहाड़ की तलहटी में उसका गाँव माही है। इस कहानी में पहाड़ी जीवन की अनेक कठिनाइयों का वर्णन है। पहाड़ पर स्थित गाँव दूर-दूर होते हैं। ऊँचे-नीचे पहाड़ों पर कहीं थोड़ी सी समतल जमीन मिलने पर लोग मकान बनाकर रहते हैं। पहाड़ों पर शहर तो होते नहीं हैं, होते हैं तो बहुत कम। रास्ते पथरीले, ऊँचे-नीचे तथा टेढ़े-मेढ़े होते हैं।

वहाँ आने-जाने के साधन नहीं होते। घोड़े, खच्चरों आदि का प्रयोग सवारी के लिए होता है। ज्यादातर तो पैदल ही चलना होता है। अपना समान भी स्वयं सिर पर पड़ता है। खाने-पीने की चीजों की कमी होती है। जरूरत का सामान बाहर से आता है। अतः महँगाई बहुत होती है। लोगों में बेरोजगारी होती है। वहाँ के निवासियों का सम्पर्क बाहरी दुनिया से कम ही होता है। पहाड़ के ऊँचे-नीचे रास्ते और नदी-नाले आवागमन में बाधा उपस्थित करते हैं।

प्रश्न 18. महीप कौन था ? वह अपने पिता के पास क्यों नहीं रहता था?

उत्तर : शैला भूप सिंह की प्रेमिका थी। बाद में वह उसकी पत्नी बनी। महीप उनका ही पुत्र था। जब शैला गर्भवती थी तो भूपसिंह नीचे से एक औरत ले आया था। शैला को सौतन का साथ सहन नहीं हुआ। उसने सूपिन नदी में कूदकर आत्महत्या कर ली। महीप अपनी माता की मृत्यु के लिए अपने पिता भूप को ही जिम्मेदार समझता था। अतः वह अपने पिता तथा सौतेली माता को छोड़कर नीचे चला गया। वह अपने पिता के पास नहीं रहता था। एक बार वह रूप सिंह तथा शेखर को वहाँ पहुँचाने गया परन्तु रुका नहीं और घोड़ों को लेकर तुरन्त वापस लौट आया।

प्रश्न 19. 'पर्वतारोहण संस्थान' से क्या आशय है?

उत्तर : 'पर्वतारोहण संस्थान' उस संस्थान को कहते हैं जो पर्वत पर चढ़ने की इच्छा रखने वालों को पर्वत पर चढ़ने की कला सिखाते हैं। इसके लिए इन संस्थानों में पर्वत पर चढ़ने की कला में दक्ष व्यक्ति पर्वत पर चढ़ने की कला सिखाते हैं।. इसमें ये लोग पत्तरों, खूटियों, रस्सों, कुलहाड़ी तथा दूसरी चीजों की मदद लेते हैं। अब तो पर्वतारोहण शिक्षा के पाठ्यक्रम में स्थान पा चुका है। पर्वतारोहण के क्षेत्र में बनेंद्री पाल व संतोष यादव का नाम प्रसिद्ध हो चुका है।

प्रश्न 20. भाई से मिलकर कैसा लगा, रूप ? 'शेखर ने एकान्त में पूछा-"भाई...... ? बस थोड़ी-सी ही धुंध छैटी है अभी।" इस संवाद में धुंध का क्या अर्थ है ?

उत्तर : रूप सिंह ग्यारह वर्ष बाद अपने गाँव लौटा था। इतने लम्बे समय तक उसका सम्पर्क अपने गाँव तथा परिवार से नहीं था। उसके माता-पिता मर चुके थे, गाँव पहाड़ के धसकने से दब गया था। गाँव में कोई उसको पहचान नहीं सका था। वहाँ उसकी भेंट बड़े भाई भूप सिंह से हुई। वह उसे घर ले गये। दूसरे दिन सवेरे शेखर ने रूप से यह प्रश्न किया। इस संवाद में धुंध का तात्पर्य ग्यारह वर्ष के लम्बे समय से है। धुंध किसी वस्तु को देखने में बाधक होती है। लम्बा अलगाव भी दो बहुत लोगों के सम्बन्धों में रुकावट बन जाता है। शेखर इससे सहमत था। उसने कहा -भाई तक पहुँचने के लिए उसे समय की इस बाधा को दूर करना पड़ेमा।

प्रश्न 21. 'आरोहण' कहानी में लेखक ने क्या संदेश दिया है ?

अथवा

'आरोहण' कहानी लेखन में निहित कहानीकार का चिंतन क्या रहा है? स्पष्ट कीजिए।

अथवा

'आरोहण' कहानी के आधार पर उन जीवन-मूल्यों पर प्रकाश डालिए जो हमें भूपसिंह के जीवन से प्राप्त होते हैं।

उत्तर : भूप सिंह का साथ सब छोड़ चुके हैं। अपने लोगों से बिछुड़कर वह अकेला रह गया है। उसका गाँव पहाड़ के नीचे दब चुका है। पत्नी की मृत्यु के बाद उसका बेटा महीप भी उसके साथ नहीं रहता। उसका भाई रूप ग्यारह साल बाद लौटा है। वह उससे पहाड़ की कठिनाईपूर्ण जिन्दगी छोड़कर अपने साथ चलकर नीचे रहने का प्रस्ताव करता है। यह प्रस्ताव भूप को स्वीकार नहीं। यह प्रस्ताव उसके आत्म-सम्मान पर चोट करने वाला है। वह कठिनाई सह सकता है किन्तु अपना आत्म-सम्मान नहीं छोड़ सकता। 'आरोहण' कहानी में लेखक ने संदेश दिया है कि मनुष्य को अपने आत्म-सम्मान की रक्षा करनी चाहिए। सब कुछ चला जाये किन्तु आत्म-सम्मान बना रहना चाहिए। खुद्दारी आदमी का सर्वोत्तम धन है। इसकी रक्षा करना उसका परम कर्तव्य है।

निबन्धात्मक प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. "मेरी खुद्दारी को बखस दो। अब तो जिंदा रहणे तक न ई बल्द उतर सकदिन न हम।"'आरोहण' में भूप के प्रस्तुत कथन के आलोक में उसके व्यक्तित्व का चित्रण कीजिए।

अथवा

'आरोहण' कहानी का नायक आप किसे मानते हैं ? उसके चरित्र की प्रमुख विशेषताओं का चित्रण कीजिए।

उत्तर : 'आरोहण' कहानी का प्रमुखतम पात्र तथा नायक भूपसिंह है। यद्यपि वह कहानी के आरम्भ से उपस्थित नहीं है, परन्तु रूपसिंह तथा शेखर कपूर के वार्तालाप में उसका उल्लेख हुआ है। 'आरोहण' के कथानक के केन्द्र में वही है तथा समस्त घटनाक्रम उसी के आसपास घूमता है। कहानी के फल का भोक्ता भी वही है। भूपसिंह के चरित्र की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं -

1. खुद्दारी के प्रति सजग - भूपसिंह अपनी खुद्दारी के प्रति सजग है। उसने पहाड़ के फँसने पर हुए सर्वनाश में भी किसी से सहायता नहीं माँगी थी।

2. कुशल पर्वतारोही - पहाड़ पर चढ़ने में भूपसिंह का कोई मुकाबला नहीं है। वह पहाड़ पर अपना संतुलन बनाकर सरलता से चढ़ जाता है। उसके इसी कौशल पर चकित होकर रूप सोचता है कि भूप दादा साँप हैं, छिपकली हैं, वनमानुष हैं, रोबोट हैं।

3. पुष्ट एवं शक्तिशाली - भूप हृष्ट-पुष्ट और शक्तिशाली है। वह अत्यन्त सख्त है। पहाड़ को काटकर वह खेत बनाता है तथा झरने का रुख मोड़ने में सफल होता है।

4. स्नेही भाई एवं प्रेमी - भूपसिंह अपने भाई रूप से बहुत स्नेह करता है। बहुत दिन बाद उसे पाकर वह मन ही मन द्रवित हो उठता है। वह शैला से प्रेम करता है। शैला के आत्महत्या करने की घटना से वह अत्यन्त दु:खी है।

5. सहनशील एवं गम्भीर - भूपसिंह अत्यन्तं सहनशील है। भाई से बिछुड़ने, पहाड़ के धंसने और उसके कारण माँ-बाप की मृत्यु होने, सब कुछ बर्बाद होने, शैला द्वारा आत्महत्या करने तथा महीप द्वारा उसको छोड़कर जाने आदि की अनेक दुःखदायी घटनाओं को वह शांत रहकर सह लेता है।

6. बेहद अकेला - भूपसिंह पहाड़ पर रहता है। अपने परिवारीजनों को खोकर वह बहुत अकेलापन अनुभव करता है। यह पीड़ा उसके मन को खाये जाती है।

7. सबका हितैषी - भपसिंह का माही के लोगों से सम्बन्ध नहीं है। परन्त वह किसी का अहित नहीं करता। वह सभी का भला चाहता है। आग लगने पर वह झरने को मोड़कर आग बुझाता है तथा माही वालों की रक्षा करता है।

प्रश्न 2. 'कुहासे का होना क्या मायने रखता है इन पहाड़ों में, इसे तो कोई पहाड़ी ही समझ सकता है। रिश्ते तक धुंधला जाते हैं...'। 'आरोहण' कहानी में रूप के इस कथन में उसके जीवन की व्यथा-कथा झलक रही है तर्कसम्मत टिप्पणी कीजिए।

उत्तर : रूपसिंह शेखर कपूर के साथ अपने गाँव माही जा रहा था। मार्ग में पहाड़ी घाटी में किसी अदृश्य नारी-कंठ का कोई गीत उमड़ रहा था। उसका पतला दर्दीला स्वर था।

ऊँची-नीची डांडियों मा,

हे कुहेड़ी ना लाग तूं - ऽऽऽ!

ऊँचे-नीचे पाँखों मा,

हे घसेरी ना जाय तू ऽऽऽ! 

ऊँची-नीची डांडियों मा,

हे हिलांस ना बास तूं ऽऽऽ!

शेखर द्वारा इस गीत का मतलब पूछने पर रूप ने बताया कि यह एक दर्द भरा पहाड़ी गीत है। कोई स्त्री कुहरे से कह - तू ऊँचे-नीचे पहाड़ी रास्तों पर मत छाया कर रूप ने.पहाड़ पर कोई बसेरा नहीं बनाया था। वह पहाड़ों को छोड़कर पहले ही चला गया था। मगर भूप दादा ने, बाबा ने तो............ 'कुहासे का होना क्या मायने रखता है इन पहाड़ों में, इसे तो कोई पहाड़ी ही समझ सकता है। रिश्ते तक धुंधला जाते हैं, नेह के नाते तक नजर नहीं आते। पास में कोई अपना खड़ा है और उसे आप देख तक नहीं पाते, पहचान तक नहीं पाते।'

गीत के भाव रूप के मन में गहरे पैठ जाते हैं। उसके मन का दर्द जाग उठता है। वह यहाँ था तो शैला से प्रेम करता था। शैला उसे नहीं, भूप दादा को चाहती थी। उसका प्रेम इकतरफा था किन्तु था तो सच्चा। आज भी उसकी याद उसके मन में ताजा है। समय के लम्बे अन्तराल की धुध उस पर जरूर जम गई है। रूप ग्यारह साल पहले गाँव छोड़कर चला गया था। परन्तु अपने गाँव, भूप दादा, माँ, बाबा तथा अन्य लोगों के प्रति उसके मन में प्रेम अब भी था।

वह ग्यारह वर्ष बाद उनसे मिलने आ रहा था। इतने लम्बे अन्तराल ने उसके मन में अपरिचय की धुंध बिछा दी थी। वह समझ नहीं पा रहा था कि उसे कौन मिलेंगे, कौन नहीं? कौन कहाँ होगा? यह भी उसे नहीं पता था। अपने लोगों तथा अपने प्यारे वतन की यादें उसे उधर ही खींचे लिए जा रही थीं। शेखर से रूप ने जो कुछ कहा है, उसमें उसके मन की पीड़ा और टीस साकार हो उठी है।

प्रश्न 3. 'आरोहण' कहानी पर्वतीय अंचलों की पलायन जैसी समस्या को भी रेखांकित करती है। भूपसिंह और रूपसिंह के जीवन के आधार पर इस कथन का विवेचन कीजिए और उन जीवन-मूल्यों का उल्लेख कीजिए जिन्हें भूपसिंह जैसे लोगों ने सँभालकर रखा है।

अथवा

'आरोहण' कहानी में कहानीकार ने क्या संदेश दिया है ?

अथवा

'आरोहण' कहानी की प्रतिपाद्य समस्या क्या है ?

उत्तर : 'आरोहण' संजीव जी की एक उद्देश्यपूर्ण कहानी है। पहाड़ी जीवन का यथार्थ चित्रण इस कहानी का प्रतिपाद्य है। कहानी में पहाड़ के लोगों की समस्या और संस्कृति की स्पष्ट अभिव्यक्ति हुई है। पहाड़ों पर भीषण गरीबी है, बेरोजगारी है, बाल-श्रम की बुराई प्रचलित है, स्त्रियों का अपमान और शोषण है। कहानी पहाड़ की कठोर जिन्दगी का स्पष्ट चित्र हमारे समक्ष प्रस्तुत करती है।

रूप शेखर के साथ देवकुंड के बस स्टाप पर उतरता है तो पाता है कि गाँव तक जाने के लिए कोई पक्की सड़क अभी तक नहीं बनी है। वे घोड़ों पर सवार होकर माही पहुँचते हैं। भूप दादा से मिलकर रूप को पहाड़ के धंसने से हुई भीषण तबाही का पता चलता है। भूप दादा और शैला द्वारा पहाड़ को काटकर खेती करने और पानी की व्यवस्था करने से पहाड़ियों के कठोर श्रमपूर्ण जीवन का परिचय मिलता है।

कहानी का शीर्षक 'आरोहण' कहानी की प्रमुख तथा केन्द्रीय समस्या को ही सूचित करता है। रूप जब पहाड़ पर चढ़ता है तो उसे पहाड़ी जीवन की विवशता तथा कठोरता का पता चलता है। कथानक की प्रमुख समस्या पर आधारित होने के कारण कहानी का शीर्षक 'आरोहण' अत्यन्त उचित है। इस शीर्षक से पर्वतारोहण की समस्याएँ ज्ञात होती हैं। शीर्षक छोटा और आकर्षक है। वह जिज्ञासा-भाव से परिपूर्ण भी है। यह शीर्षक हर तरह से कहानी के लिए उपयुक्त है। कहानी का अन्त भूप दादा के इस कथन से होता है - 'मेरी खुद्दारी को बखस दो अब तो जिंदा रहने तक न ई बल्द उतर सकदिन न हम।'

भूप दादा कष्ट सहने को तैयार हैं। वह अपनों की उपेक्षा सह सकते हैं। वह दूसरों से कटकर अकेले रह सकते हैं तथा इस पीड़ा को मन-ही-मन झेल सकते हैं परन्तु वह अपनी खुद्दारी नहीं छोड़ सकते। उनको रूप का नीचे चलकर साथ रहने का प्रस्ताव स्वीकार नहीं है। भूप दादा का यह कथन ही कहानी का संदेश है। कहानीकार कहना चाहता है कि मनुष्य के लिए आत्म-सम्मान सर्वोपरि होता है। चाहे कितने भी कष्ट जीवन में आएँ परन्तु अपनी खदारी नहीं छोड़नी है, उसकी रक्षा हर स्थित में करनी है।

प्रश्न 4. रूप ने भूप दादा को धक्का क्यों दिया था? इस घटना से रूप को भूप दादा की किन विशेषताओं का पता चला?

उत्तर : रूप वर्षों पहले अपने घर से देवकुंड भाग गया था। भूप दादा उसे खोजते हुए आए थे और उसे पकड़ लिया था। वह फिर से न भाग जाय, यह सोचकर दादा ने उसकी कलाई कसकर पकड़ रखी थी। वे गाँव लौट रहे थे। पहाड़ी रास्ते पर चलते समय उनसे छुटकारा पाने के लिए रूप ने उनको धक्का दिया था। वे सँभल न सके और फिसल गए। हाथ पकड़ा होने के कारण रूप भी उनके साथ खिंच गया। वे ढलान पर लुढ़कने लगे। रास्ते में खड़े एक पेड़ के एक तरफ रूप तथा दूसरी तरफ दादा लटके हुए थे। दादा बहुत मजबूत इंसान थे। उन्होंने जैसे-तैसे रूप को खींचा और ऊपर ले आए और उसका हाथ छोड़ दिया।

इस घटना से रूप को पता चला कि भूप दादा उसे बहुत चाहते थे। वह समझ रहे थे कि वह अपनी गलती से फिसले थे। उनके कारण रूप को तकलीफ हुई। उन्होंने उसके बदन को परखा। पत्ते निचोड़कर उसकी और अपनी खरोंचों पर लगाए। इस घटना से रूप को भूप दादा के स्नेह, कोमलता तथा भ्रातृत्व भाव का परिचय मिला। उसको यह भी पता चला कि भूप दादा यद्यपि शरीर से अत्यन्त शक्तिशाली थे, किन्तु उनका मन अत्यन्त कोमल था।

प्रश्न 5. रूपको मानो रस्सी की सीढ़ी मिल गई, जिससे उम्र के चौबीसवें शिखर से नीचे उतरने लगा वह.."यहाँ रस्सी की सीढ़ी का आशय क्या है? इसका प्रयोग रूप ने किस प्रकार किया?

उत्तर : मार्ग में शेखर तथा रूप को एक चौदह पन्द्रह साल की लड़की मिली, जो भेड़ें हाँक रही थी। शेखर ने उसे देखकर रूप से पूछा कि उसने कभी किसी लड़की से प्रेम किया है? रूप सिंह ने शेखर को शैला के साथ की अपनी प्रेम कहानी सुनाई। वह अपनी उम्र के चौबीसवें साल से बहुत पहले घटी उन बातों को याद करने लगा। शैला इस लड़की से भी अधिक सुन्दर थी। वह भेड़ें चराती थी। वह रूप से उम्र में बड़ी थी। वह स्वेटर बुनती थी और रूप उसकी भेड़ें हाँकता था।

वह उसकी पसंद के बुरुंस के फूल लाता था। कहीं सेब या आड़ मिल जाते तो पहले लाकर शैला को देता था। शैला उसे मकई की रोटी तथा देवता के प्रसाद के रूप में मांस देती थी। बाद में रूप को पता चला कि स्वेटर भूप दादा के लिए बुना जा रहा था और फल-फूल रोटी भी उन्हीं के लिए आते थे। भूप दादा न आते तो शैला को खुश करने की रूप की सभी कोशिशें बेकार चली जाती थीं।

यहाँ भेड़ चराने वाली लड़की ही रस्सी की सीढ़ी है। उसी को आधार बनाकर रूप अपनी किशोर उम्र में नीचे उतर आया है और शैला के साथ अपने इकतरफा प्रेम की कथा शेखर को सुना रहा है।

प्रश्न 6. महीप की उम्र यद्यपि कम थी किन्तु वह अपने कार्य में कुशल तथा लगनशील था-यह आप कैसे कह सकते हैं ?

उत्तर : महीप की आयु नौ-दस साल थी। वह अपने पिता को अपनी माँ की मृत्यु का दोषी मानकर घर छोड़ आया था। वह घोड़ों पर मुसाफिरों को बैठाकर पहाड़ी स्थानों पर पहुँचाता था। यही उसकी जीविका थी। कम उम्र में भी वह अपने काम को पूरी लगन के साथ करता था। रूपसिंह और शेखर कपूर जब आपस में बातें करते तो वह रास्तों की कठिनाई बताकर उनको बातें करने से रोक देता था। वह उनके कहने पर भी.स्वयं घोड़े पर बैठना स्वीकार नहीं करता था।

वह अपने ग्राहकों की सुरक्षा का पूरा ध्यान रखता था। रास्ते में मिले भूटिया कुत्ते पर उसका पूरा ध्यान था। नीचे की संकरी नदी से बचते हुए पहाड़ से सटे बेहद सँकरे रास्ते पर चलतें समय शेखर डरकर घोड़े से उतरना चाहता था मगर महीप ने उसे रोक दिया था। वह अपने घोड़ों का भी पूरा ध्यान रखता था। वह उन्हें पुचकारते हुए निर्देश देता था- "सँभली के हीरू, सँभली के --ओय वीरू दाँए चल... दाँए... अरे ले जाता है नदी मा...दाँए-दाँए, सँभली के।" घोड़े भी उसके निर्देश मानते थे। माही पहुँचने पर वह अपनी थकान भूलकर अपने हीरू-वीरू की पीठ, पुट्ठों और टाँगों को थपथपा रहा था।

प्रश्न 7. नन्ही चिड़ियाँ की कहानी क्या थी? भूप ने यह कहानी रूपको क्यों सुनाई थी?

अथवा

"तो मुइला, इसी तरह में भी आ बैठा मौत की इस पीठ पर, उसी की जिसने मेरा सब कुछ निगल लिया.था......। भूपसिंह के वक्तव्य के पीछे कही गई गिद्ध और चिड़िया की कहानी कौन-सी है? लिखिए।

उत्तर : रूप ने अपने भाई भूपसिंह से हिमांग पहाड़ पर चढ़कर बसने का कारण पूछा। भूप ने उसको एक नन्ही चिड़िया की कहानी सुनाई। चिड़िया से गीध ने कहा कि वह उसे खा जायेगा। चिड़िया ने डरकर पूछा-'क्यों? गीध ने कहा क्योंकि वह उससे ऊँचा नहीं उड़ सकती। नन्ही चिड़िया ने धैर्यपूर्वक पूछा-'अगर मैं तुमसे ऊँचा उड़कर दिखा दूँ तो?' गीध ने उसके बचकानेपन पर हँस कर कहा-'तो नहीं खाऊँगा।' मुकाबला शुरू हो गया। गीध अपने लम्बे डैने फैलाकर खूब ऊँचा उड़ा।

चिड़िया को डर लगा, किन्तु वह धैर्यपूर्वक उड़ती रहीं। मरना तो है ही फिर मौत से लड़कर क्यों न मरूँ? चिड़िया ने सोचा और पूरी ताकत लगाकर उड़ी। लगा कि प्राण निकल जाएँगे। अपनी पूरी ताकत से उड़कर चिड़िया गीध की पीठ पर जा बैठी। गीध अपनी ताकत के घमंड में आकाश में खूब ऊँचा उड़ा। मगर अब चिड़िया को डर नहीं था। वह हर हाल में उससे ऊँचाई पर थी, मौत की पीठ पर ही जा बैठी थी। भूप ने यह कहानी अपनी बात, रूप को समझाने के लिए सुनाई थी। जिस पहाड़ के कारण भूप का सब कुछ तबाह हुआ था, वह उसी के ऊपर आ बैठा था, वह मौत की पीठ पर आ बैठा था। उसकी स्थिति उस चिड़िया के ही समान थी।

आरोहण (सारांश)

लेखक परिचय : संजीव का जन्म ग्राम बांगरकलाँ, ज़िला सुल्तानपुर, उत्तर प्रदेश में हुआ। उन्होंने बी.एससी. तक शिक्षा प्राप्त की। समकालीन कहानी लेखन के क्षेत्र में संजीव एक प्रमुख नाम हैं। उनकी कहानियाँ अधिकतर 'हंस' में प्रकाशित हुई हैं।

उनके प्रमुख कहानी संग्रह हैं-तीस साल का सफ़रनामा, आप यहाँ हैं, भूमिका और अन्य कहानियाँ, दुनिया की सबसे हसीन औरत, प्रेत-मुक्ति आदि। इन्होंने एक किशोर-उपन्यास रानी की सराय लिखा। उनके कुछ महत्त्वपूर्ण उपन्यास हैं-किशनगढ़ का अहेरी, सर्कस, जंगल जहाँ शुरू होता है, सावधान! नीचे आग है, धार, सूत्रधार आदि।

संजीव की कहानियों और उपन्यासों में आंचलिक भाषा का प्रभाव दिखाई देता है। उनकी भाषा में एक ऐसी रवानगी . है जो पाठक को बाँधकर रखती है। शब्दों का सटीक प्रयोग संजीव की भाषा की अपनी पहचान है। संजीव हंस पत्रिका के कार्यकारी संपादक भी रहे हैं।

पाठ-सार

परिचय - 'आरोहण' कहानी में लेखक ने पर्वतारोहण की आवश्यकता तथा वर्तमान समय की उसकी उपयोगिता के सम्बन्ध में बताया है। पर्वतीय प्रदेश के लोगों के जीवन-संघर्ष तथा प्राकृतिक परिवेश के साथ उनके सम्बन्ध का चित्रण भी इस कहानी में है।

देवकुंड बस-स्टाप पर - बस रूपसिंह को देवकुंड बस-स्टाप पर छोड़कर आगे बढ़ गई। वह पूरे ग्यारह वर्ष बाद अपने गाँव माही लौट रहा था। उसके साथ था उसके गॉडफादर कपूर साहब का बेटा शेखर कपूर। वह आई. ए. एस. का ट्रेनी था। माही तक जाने के लिए अभी तक कोई पक्की सड़क नहीं बनी थी। अपने खास मेहमान को वहाँ तक पैदल ले जाने में उसे संकोच हो रहा था। चाय का गिलास पकड़ते हुए उसने चायवाले से पूछा कि क्या वहाँ घोड़ा मिलता है। उन्हें सरगी से पहले के गाँव माही जाना है।

दो घोड़ों की व्यवस्था - चायवाले ने पत्थर की सीढ़ियों पर अकेले बैठे एक लड़के को पुकारा-"ओय महीप! तूई वकी जाणा छू? (अरे महीप! तू माही जायेगा?)" लड़का चुपचाप उठकर चला गया, मगर थोड़ी देर में दो घोड़ों के साथ चढ़ाई चढ़ता हुआ दिखाई दिया। मेहनताना चायवाले ने ही तय कर दिया था-दो घोड़ों के सौ रुपये। एक घोड़े पर शेखर तथा दूसरे पर रूप सवार हो गया।

दर्द भरा स्वर - मार्ग प्राकृतिक सौन्दर्य से भरा था। पहाड़ कही कच्चे तो कहीं पक्के थे। नीचे सूपिन नदी बह रही थी। घाटी से किसी अदृश्य नारी-कंठ के पतले, दर्द भरे सुर में कोई गीत उमड़ रहा था।

शेखर ने पूछा-'इस गीत का मतलब क्या हुआ यार?' रूप सिंह ने भर्राई हुई आवाज़ में उसे गीत का अर्थ समझाया। आवाज भर्रा जाने का कारण पूछने पर रूप ने कहा - यह एक दर्द भरा गीत है। इन पहाड़ों में बसेरा बनाने, इन पहाड़ों के कुहासे की पीड़ा को कोई पहाड़ी ही समझ सकता है। नेह के नाते तक धुंधला जाते हैं।

भूप दादा की याद - अचानक एक स्थान पर रूप रुक गया। उसने शेखर को बताया कि मैं देवकुंड भाग गया था, परन्तु पकड़ा गया था। दादा ने मेरी कलाई पकड़ रखी थी। उनसे बचने के लिए मैंने उनको धक्का दिया था। वे फिसल गए थे और उनके साथ मैं भी। इस ढलान पर हम लुढ़कने लगे। नीचे एक पेड़ के कारण हम रुके। मैं पेड़ के एक तरफ तथा दादा दूसरी तरफ लटकने लगे। उन्होंने मेरा हाथ नहीं छोड़ा था।

उनकी पकड़ मजबूत थी। किसी तरह हम ऊपर आए। दादा जितने सख्त थे, उनका मन उतना ही कोमल था। वह समझ रहे थे कि यदि उन्होंने मुझे न पकड़ा होता तो मैं न फिसलता। वह अपनी गलती मान रहे थे। उन्होंने पत्ते निचोड़कर मेरी और अपनी खरोंचों पर लगाया। उन्होंने उस दिन जो हाथ छोड़ा फिर अभी तक नहीं पकड़ा।

पर्वतारोहण पर बातचीत - शेखर ने बच्चे की तरह. कहा अगर उस समय रॉक क्लाइंबिंग जानते तो मुश्किल नहीं आती। रूपसिंह ने कहा इस पर्वतारोहण की ट्रेनिंग तो बाद में आपके पापा की मेहरबानी से मिली थी। पर्वतारोहण का प्रसंग छिड़ने पर शेखर और रूप को याद नहीं रहती। आरोहण पर अति उत्साह के कारण बातें करते-करते वे ढलान उतर कर मैदान में आ गए थे। दोनों ओर पहाड़ी चोटियाँ होने के कारण वह मैदान सँकरा होता जा रहा था। तभी महीप ने उकताकर टोक दिया—साब, जल्दी करो न। पर्वतारोहण का अध्याय बन्द करके उन्हें घोड़ों पर सवार होना पड़ा।

शेखर और रूप की बातचीत वे नीचे की सँकरी नदी से बचते हुए पहाड़ से सटे सँकरे रास्ते से चल रहे थे। तभी उन्हें रास्ते में एक चौदह-पन्द्रह साल की सुन्दर लड़की मिली जो भेड़ें हाँक रही थी। शेखर ने रूप से पूछा- क्या तुमने कभी प्रेम किया है? रूप ने बताया कि उसे एक लड़की मिली थी। वह बहुत सुन्दर थी। उसका आदेश मानना रूप को अच्छा लगता था। बाद में उसे पता चल गया था कि वह भूप दादा को चाहती थी। इसके बाद कइयों से वास्ता पड़ा, संग-साथ रहा। उनमें कोई भी शैला जैसी नहीं थी। रूप शेखर को वह स्थान दिखाना चाहता था, जहाँ वे दोनों मिलते थे, पर महीप से यह जानकर कि पहाड़ धंसने से वह स्थान दब-ढक गया है, रूप को बड़ी निराशा हुई।

क्षेत्रीय प्राकृतिक सौन्दर्य - शेखर ने रूप को बताया कि उसका इलाका स्वर्ग जैसा सुन्दर है। रूप में कहा—पाण्डव इसी रास्ते से स्वर्ग को गए थे। इधर सबसे आखिरी गाँव सुरगी यानी स्वर्ग है। उसके कुछ आगे स्वर्गारोहिणी है। रूप को पुरानी बातें याद आ रही थीं। उसने शेखर को बताया कि उसके पिता यहाँ आकर रास्ता भटक गए थे। रूप ने उनकी मदद की थी। वे उसे खुश होकर अपने साथ मसूरी ले गए थे। तबसे वह वहाँ का ही होकर रह गया।

माही पहुँचना - वहाँ से माही डांडी (पहाड़) के पीछे डेढ़ किलोमीटर दूर था। अब रूप पहुँच चुका था अपने गाँव माही। दो गोरे संभ्रांत अजनबियों को देखकर लोग अपने-अपने घरों से बाहर निकल आए। लोग संशय के साथ दोनों को देख रहे थे।

गाँव के लोगों से बातें - रूप ने एक बूढ़े के पास जाकर अपने परिवार के बारे में पूछताछ की। रूपसिंह ने वृद्ध को पहचानकर कहा मैं रूपसिंह हूँ। आप मेरे बाबा तिरलोक सिंह हैं। उसने उनके पैर छुए। वृद्ध ने बताया कि उसके माता-पिता मर चुके थे तथा भाई भूपसिंह गाँव छोड़कर हिमांग पहाड़ के ऊपर जाकर रहने लगा था। किसी ने बताया कि जो लड़का उनको घोड़ों पर लेकर आया था, वह भूप का ही बेटा है। वृद्ध ने रूप से कहा कि शाम होने वाली है, वह जल्दी से पहाड़ पर चढ़ जाए।

भूपसिंह से भेंट - किसी प्रौढ़ की आवाज आई-भूप तो इधर ई आ रहा है।' सबने उधर देखा। धीरे-धीरे चलकर वह आया। ग्यारह सालों में और अधिक सख्त और ठोस हो गए थे भूप दादा। रूप ने उनके पैर छूकर कहा-'मैं रूप हैं, तुम्हारा भगोड़ा भाई।' उसने शेखर का परिचय कराया। भूप ने तिरलोक दादाजी तथा गाँव के लोगों से भी कोई बात नहीं की। 'मुइला! चल ग्यार (घर) चल।' उन्होंने दोनों के बैग कंधे पर डाले और वे वापस मुड़ गए। आगे खड़ी चढ़ाई थी। भूप ने पहले रूप को सहारा देकर फिर शेखर को ऊपर चढ़ाया।

भूप दादा का घर - पहाड़ के ऊपर कुछ दूर तक समतल जमीन थी। मकई की फसल थी, सेब और देवदार के पेड़ भी थे। कुछ दूरी पर एक गुफानुमा आश्रम के पास छप्पर का एक झोंपड़ा था। छप्पर के नीचे एक नाटी, गोरी, जवान, चुस्त और लाल रंग का फुल स्वेटर पहने स्त्री खड़ी थी। वह उसे देखकर हैरान थी। रूप ने सोचा कि यह भाभी होगी। तभी शेखर को लेकर आए भूप ने परिचय कराया 'रूप, तेरी भाभी!' रूप ने उसके पैर छुए। रूप और शेखर गुफा में बिछे पटरों पर लेट गए। रात में भूप ने उन्हें जगाकर खाना खिलाया। फिर वे वहीं पड़े रहे। बाहर बहुत जोर की वर्षा हो रही थी।

सवेरे आसमान साफ था। वे नाश्ते पर साथ बैठे। रूप ने पूछा-'यहाँ पहाड़ पर कैसे आए दादा?' भूप ने अतीत में .... झाँकते हुए बताया कि रूप के जाने के बाद बहुत बर्फ गिरी थी। उसके बोझे से हिमांग पहाड़ धसक गया। भूप बच गए। वह पहाड़ सबकी कबर बन गया। भारी तबाही हुई थी। उसके बाद भूप पहाड़ पर ऊपर आ गए। उन्होंने जमीन समतल की और खेती शुरू की। फिर नीचे से शैला को ले आए। दोनों ने खूब मेहनत की।

वे कंधे पर उठाकर दो बछड़ों को ऊपर लाए। वे अब बड़े होकर बैल बन गए हैं। पर खेती का काम इतना बढ़ गया था कि दोनों से पूरा नहीं हो पाता था। फिर शैला के बच्चा भी होने वाला था। तब वे दूसरी औरत ले आए। शैला के एक बेटा हुआ महीप। वह नौ साल का था। तभी शैला को जाने क्या सूझा कि एक दिन यहाँ से सूपिन नदी में कूद गई। महीप अपनी माँ की मौत के लिए उन्हें ही जिम्मेदार मानता है। वह उसे छोड़कर नीचे गया तो लौटा ही नहीं है।

भूप दादा की खुद्दारी - रूप को लगा भूप दादा बहुत अकेले हैं। भूप के लौटकर आने पर रूप ने कहा - "आपने बहुत दुःख झेले हैं। मैं आपका. छोटा भाई, आपको लिवा जाना चाहता हूँ। मुझे सरकार की ओर से पक्का क्वार्टर मिला हुआ है। जितनी तनख्वाह मिलती है, हम सभी आराम से रह लेंगे।" भूप गंभीर हो गए न 'हाँ' कहा और न 'ना'। रूप ने कहा यह पहाड़ कभी भी धंस सकता है। यहाँ रहना 'सरासर खुदकशी है। भूप ने कहा कि यह खुदकशी नहीं, बचने का काम है। रूप के कहने पर कि यहाँ वे अकेले हैं, भूप ने प्रतिवाद किया - 'हाँ माँ हैं, बाबा हैं, शैला है.-सोये पड़े हैं सब ह्याँ, मही'. है, बल्द हैं, मेरी घरवाली है, खेत हैं, पेड़ हैं, झरना है

रूप ने पुनः कहा - 'दादा! अभी भी बची-खुची जिंदगी के साथ इंसाफ किया जा सकता है।' भूप ने अपनी भीगी पलकें उठाईं तो वे अन्दर से जल रही थीं, भौत इंसाफ किया तुम सबी ने मेरे साथ भौत। अब माफ करो भुइला। मेरी खुद्दारी को बखस दो। अब तो जिंदा रहणे तक न ई बल्द उतर सकदिन, न हम!

कठिन शब्दार्थ

स्टॉप = बस रुकने का स्थान।

अजीब = विचित्र।

अपनत्व = अपनापन।

झिझक = हिचकिचाहट।

इत्ते = इतने।

खतों-किताबत = पत्र-व्यवहार।

दिक्कत = कठिनाई।

मुकम्मिल = स्थायी।

पगडंडी = पैदल जाने के लिए पतला रास्ता।

गॉड फादर धर्म पिता।

आई. ए. एस. = इंडियन एडमिनिस्ट्रेटिव सर्विस (भारतीय प्रशासनिक सेवा)।

ट्रेनी = प्रशिक्षु।

खासमखास = अति विशिष्ट।

तौहीन = अपमान।

बाइनोक्यूलर = दूरबीन जैसा एक यंत्र।

दीगर = दूसरी, अलग।

पसरे = फैले हुए।

जर्द = पीली।

धुंध = धुंधलापन।

फफूंद = काई जैसा एक पौधा।

इंपोर्टेड = आयातित।

थामना = पकड़ना।

उड़ती-सी = सरसरी।

दरियाफ्त = पता, मालूम।

ह्याँ = यहाँ।

मशरूम = कुकुरमुत्ता।

सेंटर = केन्द्र।

गुमसुम = सोच-विचार में मग्न, चुपचाप।

उदासीन = अरुचिपूर्ण।

फेरी = घुमाई।

उड़ा हुआ = फीका पड़ गया।

मासूमियत = भोलापन।

झटकना = दूर करना, हटाना।

घाट बटी = पहाड़ के पार जाने का मार्ग।

मेहनताना = मजदूरी।

चंदोव = शामियाना, चादर।

दरकना = फटना।

स्याह = काली।

धारीदार = लकीरोंवाला, लाइनोंवाला।

पगुरा रहा = जुगाली कर रहा।

पैबंद = थेगड़ी।

ढलान = उतराई।

घरौंदा = छोटा घर।

छिटकना = बिखरना।

अगल-बगल = इधर-उधर।

लताएँ = बेलें।

फीकी = हल्के रंग की।

चटक = गहरी, तेज।

अदृश्य = छिपी हुई।

डॉडियों मा = पहाड़ों पर।

कुहेड़ी = कुहरा।

अस्फुट = अस्पष्ट।

घसेरी = घास काटनेवाली।

अमूर्त = निराकार।

हिलांस = एक प्रकार का पक्षी।

परिंदा = पक्षी।

आगाह = सतर्क, सावधान।

बसेरा = घोंसला।

भर्राना = फटी-फटी आवाज।

टेर = पुकार।

नेह = स्नेह, प्रेम।

नाते = रिश्ते।

लय = गति, प्रवाह।

हिलकोरे = स्वर-लहरी।

अग-जग = पूरा संसार।

ठमक = ठिठक, रुक।

सख्त जान = शक्तिशाली, मजबूत।

गफ़लत = असावधानी।

कसूरवार = अपराधी।

भुइला = अनुज, छोटा

= पछतावा।

खीझ = चिढ़।

परख = परीक्षा, जाँच।

एड़ लगाई = घोड़े को हॉकना।

रॉक क्लाइंबिंग = चट्टानों पर चढ़ना, पर्वतारोहण।

ट्रेनिंग = प्रशिक्षण।

मुलाकात = भेंट, मिलना।

वाकया = घटना।

उस्तादाना = उस्ताद (शिक्षक) जैसी।

आरोहण = ऊपर चढ़ना (पर्वत पर)।

एक सूत्र में जोड़ना = आपस में मिलाना।

सैद्धान्तिक = सिद्धान्त, नियम से सम्बन्धित।

दरार = चटकन।

रॉक-पिटन = चट्टान में गड्ढा करना।

ड्रिल = खोदना।

ऐंकर = लंगर।

डिसेंडर = नीचे उतरने में प्रयुक्त यंत्र।

रोप लैडर = रस्सी की सीढ़ी।

आधिकारिक = अधिकार होने की भावना से परिपूर्ण।

फर्स्ट वाच = पहले देखो-समझो।

देन = तब, उसके बाद।

गाडेंनिंग = समतल या चौरस बनाना।

इग्नियस, ग्रेनाइट, मेटामारफिक, सैंड स्टोन, सिलिका = विभिन्न प्रकार के पत्थरों के नाम।

अव्वल = पहले।

सपोर्ट = सहारा।

फ्रीरैपेलिंग = मुक्तभाव से पीछे हटना।

परिपक्व = पकी हुई, अनुभवी।

आरोही = पर्वत पर चढ़नेवाले।

अभियान = चढ़ाई का काम।

भान होना = पता चलना।

कसते चलना = निकट आते जाना।

ईजी = आसान।

सूपिन = नदी का नाम।

पिरामिडनुमा = मिस्र के पिरामिड जैसी बनावट वाला।

फ्लैट = सपाट।

श्रृंखला = चोटियाँ।

लाइम-स्टोन = पत्थर की एक जाति।

ओवर हैंगिंग = निराधार लटकन।

टफ = कठिन।

क्रॉस = पार करना।

उकताना = ऊबना।

टोकना = रोकना।

सटे = चिपके हुए।

बेहद = अत्यन्त।

पुचकारना = प्यार का शब्द।

निर्देश = मार्गदर्शन।

चौकन्नी = सावधानीपूर्ण।

सलोनी = सुन्दर।

शिखर = चोटी।

गुलामी बजा लाना = अधीन की तरह आज्ञा मानना।

ठिठोली = मजाक, हँसी।

कनखियों से देखना = आँखों के किनारे से देखना, चोरी से देखना।

दम = शक्ति, ताकत।

कइयों = अनेक, बहुतों।

साबका पड़ा = सम्पर्क हुआ।

रस मिलना = आनन्द प्राप्त होना।

खटका होना = संदेह होना।

नामोनिशान = अस्तित्व।

पस्त होना = हार जाना।

मुकामात = स्थान, जगहें।

भू-स्खलन = जमीन धंसना।

स्वर्गारोहिणी = स्वर्ग की चढ़ाई, एक पहाड़ी स्थान का नाम।

लैंड स्लाइड = भूस्खलन।

दौरान = समय में।

बखत = समय।

आनाई = आना ही।

भौत ई = बहुत ही।

विराम = रोक।

फालतू = बेकार।

उजड़ी = निर्जन।

पनचक्की = पानी से चलने वाली चक्की।

संयोग = अचानक प्राप्त अवसर।

घुन्ना = चुप रहने वाला।

चेताया = सावधान किया।

औकात = सामर्थ्य।

पिल पड़ना = पूरी ताकत से जुट जाना।

स्मृतियाँ = यादें।

कपाट = किवाड़।

वतन = देश।

संभ्रांत = प्रतिष्ठित।

सईस = घोड़ों की देखभाल करने वाला।

थपथपाना = हाथों से थपकियाँ देना।

प्रतिक्रिया = उत्तर में व्यक्त विचार।

आश्वस्त = भरोसे से पूर्ण।

मशगूल = व्यस्त।

धंधेबाज अदा = काम के प्रति लगन को प्रकट करने वाला स्वरूप।

पोपला = बिना दाँतों वाला।

ओट = रुकावट।

टलना = दूर होना।

यक = एक।

दुइ = दो।

होंदा छै = हुआ करते थे।

छु = हो।

आत्मीयता = अपनापन।

आत्मसात् करना = पेचाना, स्वीकार करना।

'गड़बड़ाना = समझ न पाना।

जिरह = बहस।

ल्या सुण = लो सुनों।

एकई = इनकी।

म्याल = पहाड़।

अहमक = बेवकूफ, मूर्ख।

किरकिरी = अपमान।

ग्यार = घर।

गेछु = गया है।

दिर = उधर।

गाढ़े = मोटे।

लिहाफ = ढंक लेना।

शिनाख्त = पहचान।

ओझल = छिपना।

स्क्रीन = पर्दा (यादों का)।

प्रतिध्वनि = गूंज।

आवाहन = पुकार।

अक्स = छाया, छवि।

तिरोहित होना = छिपना।

स्टेज = विचित्र बात।

कै = कह।

प्रौढ़ = युवा और वृद्ध अवस्था के बीच का व्यक्ति।

डिबका = झाड़ी, पौधा।

मायावी = धोखेबाज, भ्रमित करनेवाला।

दरमियाने = मध्यम।

शख्सियत = व्यक्तित्व।

तिलिस्म = जादू।

बरकरार = ज्यों का त्यों।

तराशना = छाँटना।

गढ़ना = तैयार करना, बनाना।

लंबोतरा = लम्बा।

स्थितप्रज्ञ = मोहभावहीन।

मद्धिम = धीरे।

भगोड़ा = भाग जाने वाला।

बरफ़ पिघलना (मुहा.) = दूरियाँ मिटना।

शिलाओं के बीच खड़े होना (महा.) = निःशब्द खड़े रहना, बातचीत न करना।

सम्मति = स्वीकृति।

बेस कैंप = रुकने का आधार स्थल।

डेस्टीनेशन = लक्ष्य।

चुहल = हँसी।

तलहटी = निचला हिस्सा।

आदम = पुराना।

उपकरण = यंत्र, औजार।

सपोर्ट = सहारा।

संतुलन बनाना = साधना।

हिदायत = निर्देश।

नायाब = बढ़िया, अच्छा।

हैरत = आश्चर्य।

झिझक = संकोच।

संवादहीनता = बातचीत न होना।

जड़ता = स्थिरता, निर्जीवता।

ताड़ लेना (मुहा.) = अनुमान से जान लेना।

रेयर एक्सपीरिएंस = अनूठा अनुभव।

पहर = प्रहर, वक्त।

यकी = यहाँ पर ही।

कहर ढाना = प्रलय का दृश्य पैदा करना।

अरुणाभ = लाल आभा वाली।

तल = निचला भाग।

गिर्द = नजदीक।

मक्के की बाल = भुट्टा।

अदद = संख्या, मात्र।

पहाड़ टूटना (मुहा.) = संकट आना।

तबाही = बर्बादी।

पैले = पहले।

धंसाव = स्खलन।

पनियाई = पानी से भरी हुई।

ऊष्मा = गरमी।

मुखातिब = उन्मुख।

चटक = चमकीली।

जबरदस्ती = बलपूर्वक कोई काम करवाना।

बचकाणापन = बुद्धिहीनता।

बिसात = सामर्थ्य।

डैने = पंख।

दो दो हाथ करना (मुहा.) = संघर्ष करना, लड़ना।

मलाल = पछतावा।

पराण = प्राण।

बेहिसाब = अत्यधिक।

गुरूर = घमंड।

मंजर = दृश्य।

स्निग्ध = कोमल।

नामालूम = अज्ञात।

साबुत = बिना टूटे हुए।

क्वार = आश्विन, वर्षा के अन्त का महीना।

भिड़ा देना = लड़ाना।

बूता = सामर्थ्य।

स्तब्ध = जड़, गतिहीन।

चाह = चाय।

विषयान्तर = विषय बदलना।

धुंध = धुंधलापन, लम्बे अन्तराल के कारण अपरिचय।

आलोक-छाया = प्रकाश और परछाँई।

हिमायित होना = बर्फ जमना।

लाजिमी = निश्चित।

दहशत = डर, भय।

सम्मोहित = मुग्धता, विचार शून्यता।

गला भर आना (मुहा.) = रोमांचित होना।

क्वार्टर = छोटा मकान।

निर्विकार = शांत, अविचलित।

शौकिया = शौक पूरा करने के लिए।

बंदे = प्राणी, जीव।

मैंड = दिमाग, मस्तिष्क।

पराभूत = हारना।

भकुआना = निरुत्तर होना।

हँसुआ = फसल काटने में प्रयुक्त एक औजार।

आतंक = भय।

खुदकशी = आत्महत्या।

गहराना = गहरा होना।

कलेजा मुँह को आना (मुहा.) = अत्यन्त दुःख होना।

इंसाफ = न्याय।

खुद्दारी = आत्म-सम्मान।

बखसना = नष्ट न करना।

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