पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर
1. बहुवैकल्पिक प्रश्न
प्रश्न (i) उस तत्त्व की पहचान करें जो जलीय चक्र का भाग नहीं है-
(क)
वाष्पीकरण
(ख)
वर्षण
(ग) जलयोजन
(घ)
संघनन
प्रश्न (ii) महाद्वीपीय ढाल की औसत गहराई निम्नलिखित के बीच होती है|
(क)
2-20 मीटर ।
(ख) 20-200 मीटर
(ग)
200-2,000 मीटर ।
(घ)
2,000-20,000 मीटर
प्रश्न (iii) निम्नलिखित में से कौन-सी लघु उच्चावच आकृति महासागरों
में नहीं पाई जाती है?
(क)
समुद्री टोला ।
(ख)
महासागरीय गभीर
(ग) प्रवालद्वीप ।
(घ)
निमग्न द्वीप
प्रश्न (iv) लवणता को प्रति समुद्री जल में घुले हुए नमक (ग्राम) की
मात्रा से व्यक्त किया जाता है
(क)
10 ग्राम
(ख)
100 ग्राम
(ग) 1,000 ग्राम
(घ)
10,000 ग्राम
प्रश्न (v) निम्न में से कौन-सा सबसे छोटा महासागर है?
(क)
हिन्द महासागर
(ख)
अटलाण्टिक महासागर
(ग) आर्कटिक महासागर ।
(घ)
प्रशान्त महासागर
2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए
प्रश्न (i) हम पृथ्वी को नीला ग्रह क्यों कहते हैं?
उत्तर-जल
हमारे सौरमण्डल का दुर्लभ पदार्थ है। सौरमण्डल में पृथ्वी ग्रह के अतिरिक्त अन्यत्र
कहीं जल नहीं है। इस दृष्टि से पृथ्वी के जीवन सौभाग्यशाली हैं कि यह एक जलीय ग्रह
है, अन्यथा पृथ्वी पर जीव-जन्तुओं का अस्तित्व ही नहीं होता। वस्तुतः सौभाग्य से पृथ्वी
के धरातल पर जल की प्रचुर आपूर्ति है। इसीलिए पृथ्वी को नीला ग्रह कहा जाता है।
प्रश्न (ii) महाद्वीपीय सीमान्त क्या होता है?
उत्तर-महाद्वीपीय
सीमान्त वह क्षेत्र है जहाँ महासागर महाद्वीपों से मिलते हैं। प्रत्येक महाद्वीप का
सीमान्त उथले समुद्रों तथा खाड़ियों से घिरा होता है। इसकी ढाल प्रवणता अत्यन्त कम
होती है, जिसका औसत लगभग 1 डिग्री या इससे भी कम हो सकता है।
प्रश्न (iii) विभिन्न महासागरों के सबसे गहरे गर्गों की सूची बनाइए।
उत्तर-महासागरीय गर्त महासागरों के सबसे गहरे भाग होते हैं। अभी तक महासागरों में लगभग 57 गर्ते की खोज की गई है जिसमें सबसे अधिक गर्त प्रशान्त महासागर में स्थित है। प्रमुख महासागरीय गर्गों की संख्या इस प्रकार है1. प्रशान्त महासागर 32, 2. अटलाण्टिक महासागर 19, 3. हिन्द महासागर 6.
प्रश्न (iv) ताप प्रवणता क्या है?
उत्तर-महासागरीय
गहराई में जहाँ तापमान में तीव्र कमी आती है उसे ताप प्रवणता कहते हैं। ऐसा अनुमान
है कि जल के कुल आयतन का लगभग 90 प्रतिशत गहरे महासागर में ताप प्रवणता के नीचे पाया
जाता है। इस क्षेत्र में तापमान 0° सेल्सियस पहुँच जाता है।
प्रश्न (v) समुद्र में नीचे जाने पर आप ताप की किन परतों का सामना करेंगे?
गहराई के साथ तापमान में भिन्नता क्यों आती है?
उत्तर-महासागर
की सतह से विभिन्न गहराई तक जल के तापमान के आधार पर कई परतें मिलती हैं। सामान्यतः
मध्य एवं निम्न अक्षांशों में ऐसी हीं निम्नलिखित तीन ताप परतें मिलती हैं-
- गर्म महासागरीय जल की सबसे ऊपरी परत जो
लगभग 500 मीटर मोटी होती है, का तापमान 20°C से 25°C के बीच होता है।
- ताप प्रवणता परतं जो पहली परत के नीचे स्थित
होती है, में गहराई बढ़ने के साथ तापमान में तीव्र | गिरावट आती है।
- बहुत अधिक ठण्डी परत जो गम्भीर महासागरीय
तली तक विस्तृत होती है।
महासागरों
में उच्च तापमान प्रायः उसकी ऊपरी सतह पर ही पाया जाता है, क्योंकि महासागर का यह भाग
प्रत्यक्ष रूप से सूर्य की ऊष्मा प्राप्त करता है। इसके साथ गहराई पर जाने में सूर्य
का ताप कम प्राप्त होता है, इसलिए सागरीय जल के तापमान में गहराई बढ़ने के साथ-साथ
भिन्नताएँ मिलती हैं।
प्रश्न (vi) समुद्री जल की लवणता क्या है?
उत्तर-महासागरीय
जल के खारेपन अथवा उसमें स्थित लवण की मात्रा को ही महासागरीय लवणता कहते हैं। महासागरीय
जल की औसत लवणता लगभग 35 प्रति हजार अर्थात् 1000 ग्राम समुद्री जल में 35 ग्राम लवण
पाया जाता है।
3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दीजिए
प्रश्न (i) जलीय चक्र के विभिन्न तत्त्व किस प्रकार अन्तर-सम्बन्धित
है?
उत्तर–जल
एक चक्र के रूप में महासागर से धरातल पर और धरातल से महासागर तक चलने वाली पक्रिया
है। यह चक्र पृथ्वी पर, पृथ्वी के नीचे तथा ऊपर वायुमण्डल में जल के संचलन की व्यवस्था
करता है। पृथ्वी पर जलचक्र करोड़ों वर्षों से कार्यरत है और आगे भी पृथ्वी पर जब तक
जीवन है, यह चक्र सक्रिय रहेगा। सभी प्रकार के जीव इसी जलचक्र पर निर्भर हैं। जलचक्र
से सम्बन्धित तत्त्व, जो परस्पर अन्तर-सम्बन्धित पक्रिया में जलचक्र को सक्रिय रखते
हैं, निम्नलिखित हैं-
1.
वाष्पीकरण-वाष्पीकरण जलचक्र का सबसे महत्त्वपूर्ण घटक है। महासागर
से वायुमण्डल का परिसंचलन इसी प्रक्रिया द्वारा सम्पन्न होता है। इस प्रक्रिया में
सौर ताप से जल गर्म होकर वाष्प के रूप में वायुमण्डल में जाता है।
2.
संघनन-जल के गैसीय अवस्था से द्रवीय अवस्था में परिवर्तन को संघनन
कहते हैं। जलचक्र में संघनन का कार्य वायुमण्डल में सम्पन्न होता है। इसी प्रक्रिया
में महासागर का जल वायुमण्डल से धरातल पर पहुँचता है।
3.
अवक्षेपण-इस प्रक्रिया में वायुमण्डले की जलवाष्प जल-बूंदों में जलवृष्टि
के रूप में पृथ्वी पर आती है।
इस प्रकार वाष्पीकरण, संघनन एवं अवक्षेपण तत्त्वों द्वारा जलचक्र की प्रक्रिया सतत् चलती रहती है। (चित्र 13.1)।
प्रश्न (ii) महासागरों के तापमान वितरण को प्रभावित करने वाले कारकों
को परीक्षण कीजिए।
उत्तर-महासागरीय
जल के तापमान वितरण को प्रभावित करने वाले कारक निम्नलिखित हैं
1.
अक्षांश-ध्रुवों की ओर सौर विकिरण की मात्रा घटने के कारण महासागरों
के सतही जल का तापमान विषुवत् वृत्त से ध्रुवों की ओर घटता जाता है।
2.
स्थल तथा जल का असमान वितरण-उत्तरी गोलार्द्ध के महासागर दक्षिणी गोलार्द्ध
के महासागरों की अपेक्षा स्थल के बहुत बड़े भाग से सम्बद्ध हैं। इसलिए उत्तरी गोलार्द्ध
दक्षिणी | गोलार्द्ध की अपेक्षा अधिक ऊष्मा ग्रहण करता है।
3.
प्रचलित हवाएँ-स्थलों की ओर से महासागरों की ओर चलने वाली
हवाएँ समुद्री सतह के गर्म जल को तट से दूर धकेल देती हैं जिसके परिणामस्वरूप नीचे
का ठण्डा जल ऊपर की ओर आ जाता है। परिणामस्वरूप इस प्रक्रिया से समुद्र के तापमान में
वृद्धि हो जाती है।
4.
महासागरीय धाराएँ-गर्म समुद्री धाराएँ ठण्डे क्षेत्रों के जल
का तापमान बढ़ा देती हैं, जबकि ठण्डी धाराएँ गर्म समुद्री क्षेत्रों के जल का तापमान
कम कर देती हैं। उदाहरण के लिए-गल्फ-स्ट्रीम गर्म जलधारा यूरोप के पश्चिमी तट के जल
का तापमान बढ़ा देती है। इसके विपरीत लेब्रेडोर की ठण्डी जलधारा उत्तरी अमेरिका के
उत्तरी-पूर्वी तट के तापमान को कम कर देती है।
परीक्षोपयोगी प्रश्नोत्तर
बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1. निम्नलिखित में से कौन महासागरीय तली में सबसे ऊपर स्थित
होता है?
(क) महाद्वीपीय मग्नतट
(ख)
महाद्वीपीय मग्नढाल
(ग)
महासागरीय द्रोणी
(घ)
महासागरीय गर्त
प्रश्न 2. निम्नलिखित में विश्व का सर्वाधिक लवणता वाला सागर कौन-सा
है?
(क) मृत सागर ।
(ख)
बाल्टिक सागर
(ग)
काला सागर
(घ)
अजोव सागर
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. महासागरीय मग्न तट से आप क्या समझते हैं?
उत्तर-यह
समुद्र के नितल का अति मन्द ढालयुक्त भाग है, जो महाद्वीप के चारों ओर फैला हुआ है।
प्रश्न 2. महासागरीय जल की लवणता को समझाइए।
उत्तर-सागरीय
जल में लवणों की उपस्थिति से उत्पन्न खारेपन को महासागरीय जल की लवणता कहा जाता है।
प्रश्न 3. महासागरों के तलीय उच्चावच का रेखाचित्र बनाइए।
उत्तर-
प्रश्न 4. विश्व के महासागरीय गत का वितरण लिखिए।
उतर-विश्व
के लगभग 7% भाग पर, महासागरीय गर्गों का विस्तार है। कुल 57 गर्गों में से 32 प्रशान्त
महासागर में, 19 अटलाण्टिक महासागर में और 6 हिन्द महासागर में स्थित हैं। मेरियाना
(प्रशान्त महासागर) नाम का महासागरीय गर्त लगभग 11 किमी गहरा है जो विश्व का सर्वाधिक
गहरा महासागरीय गर्त है।
प्रश्न 5. विश्व के किस भाग में महाद्वीपीय मग्नतट की अनुपस्थिति मिलती
है?
उतर-विश्व
में दक्षिणी अमेरिका के पश्चिमी तट पर महाद्वीपीय मग्नतट लगभग अनुपस्थित मिलते हैं।
प्रश्न 6. महासागरीय जल के तापमान वितरण की प्रमुख विशेषता क्या है?
उत्तर-महासागरीय
जल के तापमान वितरण में क्षेत्रीय विविधता पाई जाती है। भूमध्यरेखा के समीप महासागरीय
जल सबसे अधिक गर्म और ध्रुवों की ओर क्रमशः ठण्डा होता जाता है।
प्रश्न 7. विश्व के सर्वाधिक लवणता वाले क्षेत्र बतलाइए।
उत्तर-विश्व
में सर्वाधिक लवणता वाले क्षेत्र आयनमण्डल में पाए जाते हैं। अटलाण्टिक महासागर में
आयनमण्डलों के समीप लवणता लगभग 37 प्रति हजार है। स्थल से घिरे समुद्रों में संयुक्त
राज्य अमेरिका की ग्रेट साल्ट लेक में 220, मृत सागर में 240 तथा तुर्की की वान झील
में 330 प्रति हजार लवणती सबसे अधिक है।
प्रश्न 8. विश्व के समुद्रों की औसत लवणता मात्रा कितनी है?
उत्तर-समुद्र
के एक हजार ग्राम जल में औसत 35 ग्राम लवण घोल के रूफ़ में विद्यमान हैं। इस प्रकार
विश्व के समुद्री जल की औसत लवणता 35 प्रति हजार (35%) है।
प्रश्न 9. विश्व के कम एवं अधिक लवणता वाले क्षेत्रों के नाम लिखिए।
उत्तर-विश्व
के कम और अधिक लवणता वाले क्षेत्र निम्नानुसार हैं
- भूमध्य रेखा पर कम लवणता,
- व्यापारिक पवनों के क्षेत्रों (आयनमण्डल)
के समीप कम लवणता,
- पछुआ पवनों के क्षेत्रों में कम लवणता,
- ध्रुवीय प्रदेशों में कम लवणता।
प्रश्न 10. सागरीय मैदानों का विस्तार कहाँ मिलता है?
उत्तर-सागरीय
मैदानों का विस्तार 20° उत्तरी अक्षांश से 60° दक्षिणी अक्षांशों के मध्य अधिक पाया
जाता है। महासागरों के विचार से प्रशान्त महासागर में सागरीय मैदान अधिक मिलते हैं।
प्रश्न 11. महाद्वीपीय ढालों की उत्पत्ति कैसे हुई है?
उत्तर-महासागरीय
ढाल महासागरीय तल का एक सँकरा भाग होता है। इनकी उत्पत्ति महाद्वीपों के किनारे मुड़ने
तथा अवसादों की मोटी परत एकत्रित होने के फलस्वरूप हुई है।
प्रश्न 12. विश्व के प्रसिद्ध महासागरीय पठार का नाम व स्थिति लिखिए।
उत्तर-विश्व
का प्रसिद्ध महासागरीय पठार अटलाण्डिटक महासागर के मध्य में स्थित मध्य अटलाण्टिक कटक’
है। इसके अतिरिक्त पूर्वी प्रशान्त महासागर में स्थित ‘एल्बटरॉस पठार’ भी सागरीय पठार
का अच्छा उदाहरण है।
प्रश्न 13. महासागरीय जल की लवणता समझाइए।
उत्तर-सागरीय
जल के भाग तथा उसमें घुले हुए पदार्थों के भार के अनुपात को लवणता कहते हैं। एक किग्रा
समुद्री जल में घुले हुए ठोस पदार्थों की मात्रा ही लवणता है। सामान्यतया महाद्वीपीय
जल में प्रति हजार ग्राम में 35 ग्राम लवणता पाई जाती है (35%)।
प्रश्न 14. पृथ्वी के कितने भाग पर जल पाया जाता है?
उत्तर-पृथ्वी
के 71% भाग पर जल पाया जाता है।
प्रश्न 15. समुद्र विज्ञान से आप क्या समझते हैं?
उत्तर-समुद्र
विज्ञान वह विज्ञान है जिसमें समुद्र के जल, जलधारा, ज्वारभाटा तथा अन्य सम्बन्धित
तथ्यों का अध्ययन किया जाता है।
प्रश्न 16. प्रमुख महासागरों के नाम लिखिए।
उत्तर-प्रमुख
महासागरों के नाम निम्नलिखित हैं–
- प्रशान्त महासागर,
- अटलाण्टिक महासागर,
- हिन्द महासागर,
- आर्कटिक महासागर,
- दक्षिणी हिम महासागर
प्रश्न17. विश्व का सबसे बड़ा महासागर एवं सबसे गहरा गर्त कौन-सा है?
उत्तर-विश्व
का सबसे बड़ा महासागर प्रशान्त महासागर एवं सबसे गहरा गर्त मेरियाना (11,033 मीटर)
है जो प्रशान्त महासागर में स्थित है।
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. महासागरीय तलीय उच्चावच पर प्रकाश डालिए तथा इसकी लपरेखा
स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-महासागरीय
तल
महासागरों
की तली को धरातल अत्यन्त विषम होता है। भूपटल की भाँति सागरीय तली में भी पर्वत, पठार,
मैदान, गर्त आदि पाए जाते हैं, जिन्हें महासागरीय उच्चावच कहते हैं। पृथ्वी के ऊँचे
भागों की अपेक्षा महासागर कहीं अधिक गहरे हैं। महासागरों की गहराई पर प्रकाश डालते
हुए प्रो० जॉन मूरे ने लिखा है-“3,500 मीटर से अधिक ऊँचा भाग समस्त भूमण्डल का मात्र
1% है, जबकि समुद्रों में 3,500 मीटर से अधिक गहरे भाग 46% हैं। वस्तुतः महासागरीय
नितल का अधिकांश भाग 3 किमी से 6 किमी तक गहरा है।
महासागरीय
तल की रूपरेखा
महासागरीय
नितल को उच्चावच की दृष्टि से निम्नलिखित भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है
- महाद्वीपीय मग्नतट (Continental
Shelf),
- महाद्वीपीय ढाल (Continental Slope),
- गहन सागरीय मैदान (Deep Sea Plains),
- महासागरीय पठार (Oceanic Plateaus),
- महासागरीय गर्त (Oceanic Deeps)।
प्रश्न 2. महाद्वीपीय मग्नतट का क्या अर्थ है? इनकी मुख्य विशेषताएँ
बतलाइए।
उत्तर-महाद्वीपीय
मग्नतट महासागरों व महाद्वीपों के मिलन-स्थल होते हैं। इसका ढाल 1° से 3° तक, गहराई
200 मीटर तक तथा चौड़ाई कुछ किमी से 1,000 किमी तक होती है। विश्व में सबसे अधिक मग्नतट
अन्ध महासागर में विद्यमान हैं। महाद्वीपीय मग्नतटों की मुख्य विशेषताएँ निम्नांकित
हैं–
- पृथ्वी पर महासागरों के कुल क्षेत्रफल का
लगभग 7.5 से 8.5% भाग महाद्वीपीय मग्नतट के रूप में अवस्थित है।
- महाद्वीपीय मग्नतट समुद्री खाद्य पदार्थों
की उपलब्धता, मत्स्य आखेट और खनिज तेल एवं गैस उत्पादन के प्रमुख क्षेत्र होते
हैं।
- महाद्वीपीय मग्नतट मत्स्य उत्पादन के अनुकूल
क्षेत्र होते हैं। विश्व के विशालतम मत्स्य संग्रहण क्षेत्र डॉगर बैंक और ग्राण्ड
बैंक इन्हीं तटों पर स्थित मिलते हैं।
- ये तट प्रकाश और गर्मी की उपस्थिति के कारण
जल-जीवों तथा सागरीय वनस्पति के विपुल । भण्डार होते हैं।
प्रश्न 3. महासागरीय लवणता वितरण की विभिन्नता के दो महत्त्वपूर्ण कारणों
का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-महासागरों
में लवणता वितरण की भिन्नता के दो महत्त्वपूर्ण कारण निम्नांकित हैं
1:
स्वच्छ जल की आपूर्ति-महासागरों में स्वच्छ जल की आपूर्ति जितनी अधिक
मात्रा में होती है, लवणता उतनी ही कम होती है। इसीलिए भूमध्य रेखा के निकट वर्षा की
अधिकता के कारण | लवणता कम तथा आयन रेखाओं के निकट कम वर्षा होने के कारण लवणता अधिक
मिलती है।
2.
वाष्पीकरण की मात्रा एवं तीव्रता-वाष्पीकरण की मात्रा की अधिकता
के कारण लवणता की मात्रा में वृद्धि होती है। कर्क व मकर रेखाओं के निकट निर्मल आकाश
व प्रखर सूर्य की किरणों के कारण वाष्पीकरण की मात्रा अधिक रहती है। इसी कारण लाल सागर
में लवणता 40% मिलती है।
प्रश्न 4. अन्ध महासागर एवं प्रशान्त महासागर की तापमान विभिन्नताओं
पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-अन्ध
महासागर-अन्ध महासागर में गर्म एवं ठण्डी धाराओं का प्रभाव समताप रेखाओं के वितरण
पर विशेष रूप से षड़ता है। उत्तरी अन्ध महासागर में समताप रेखाएँ पश्चिम की ओर परस्पर
मिलती हैं, जबकि उत्तर-पूर्व में समताप रेखाएँ दूर-दूर स्थित हैं। मध्यवर्ती अन्ध महासागर
में समताप रेखाओं का वितरण बड़ा ही असंयमित है, क्योंकि यहाँ सागर एवं मौसम की दिशा
अनिश्चित रहती है।
प्रशान्त
महासागर-प्रशान्त महासागर में समताप रेखाएँ प्रायः अक्षांश रेखाओं
के समानान्तर मिलती हैं, क्योंकि यह महासागर आकार में सबसे बड़ा है, जिससे स्थलीय क्षेत्रों
एवं पवनों का विशेष प्रभाव यहाँ नहीं पड़ता है। यहाँ विषुवत् रेखा के समीपवर्ती भागों
में तापमान 25° सेल्सियस पाया जाता है जो घटते-घटते 60° उत्तरी एवं दक्षिणी अक्षांशों
के समीपवर्ती भागों में हिमांक बिन्दु के समीप पहुँच जाता है। दक्षिणी प्रशान्त महासागर
में स्थलखण्ड की कमी के कारण समताप रेखाएँ लगभग पूर्व-पश्चिम दिशा में ही विस्तृत मिलती
हैं।
प्रश्न 5. महासागरीय उच्चावच की दो आकृतियों-मध्य महासागरीय कटक एवं
समुद्री टीला का वर्णन कीजिए।
उत्तर-1.
मध्य महासागरीय कटक-मध्य महासागरीय कटक पर्वतों की दो श्रृंखलाओं से बनी आकृति
है जो एक विशाल अवनमन द्वारा अलग होती है। इन पर्वत श्रृंखलाओं के शिखर की ऊँचाई
2,500 मीटर तक हो सकती है। किन्तु इनमें से कुछ समुद्र की सतह तक भी पहुँच जाती हैं;
जैसे—आइसलैण्ड, जो मध्य अटलाण्टिक कटक का एक भाग है।
2.
समुद्री टीला-ये नुकीले शिखरों वाले सागरीय पर्वत हैं। ये
पर्वत या टीले महासागरीय सतह तक | नहीं पहुँच पाते हैं। इनकी उत्पत्ति ज्वालामुखी द्वारा
होती है। इनकी ऊँचाई प्रायः 3,000 से 4,500 मीटर के आसपास होती है।
प्रश्न 6. प्रशान्त महासागर के उच्चावच की तुलना हिन्द महासागर के उच्चावच
से कीजिए।
उत्तर-
प्रशान्त महासागर एवं हिन्द महासागर के उच्चावच की तुलना
|
प्रशान्त
महासागर |
हिन्द
महासागर |
1. |
प्रशान्त
महासागर पृथ्वी के 30% भाग पर फैला है। इसकी औसत गहराई 5,000 मीटर है। |
हिन्द
महासागर अफ्रीका, एशिया एवं ऑस्ट्रेलिया महाद्वीप से घिरा है। इसकी औसत गहराई
4,000 मीटर है। |
2. |
इसमें
20,000 से अधिक द्वीप पाए जाते हैं तथा इसके तटीय भागों में समुद्र, खाड़ियाँ एवं
उपसागर स्थित हैं। इसमें स्थित गर्न अत्यन्त गहरे हैं। मिडनाओ (मेरियाना) प्रशान्त
महासागर का सबसे गहरा ( 11,022 मीटर) गर्त है। |
इसमें
द्वीप, शंकु, उद्रेख आदि मिलते हैं। हिन्द महासागर में स्थित गर्त अधिक गहरे नहीं
हैं। हिन्द महासागर में कई बड़े सागर हैं; जैसे— अरब सागर तथा बंगाल की खाड़ी आदि
। |
प्रश्न 7, थर्मोक्लाइन तथा होलोक्लाइन में अन्तर बताइए।
उत्तर-थर्मोक्लाइन-थर्मोक्लाइन
होलोक्लाइन के नीचे होती है। यहाँ लवणता की मात्रा बहुत कम पाई जाती है। इसकी मात्रा
34.6 तथा 34.9 प्रतिशत तक होती है। इसी को थर्मोक्लाइन क्षेत्र कहा जाता है।
होलोक्लाइन-इसकी
स्थिति ऊपरी सतह पर उथले धरातल पर होती है। यहाँ उच्च लवणता पाई जाती है। इसके बाद
लवणता कम होती जाती है।
प्रश्न 8. महासागरीय जल के तापमान के क्षैतिज वितरण का वर्णन कीजिए।
उत्तर-महासागरीय
जल के तापमान का क्षैतिज वितरण
महासागरीय जल के तापमान का क्षैतिज वितरण पर भूमध्य-रेखा का विशेष प्रभाव पड़ता है प्रायः विषुवत् रेखा से ध्रुवों की ओर प्रत्येक अक्षांश पर औसत रूप से 1/2°C ताप कम हो जाता है, परन्तु दक्षिणी गोलार्द्ध में महासागरीय जल का तापमान उत्तरी गोलार्द्ध की अपेक्षा कम पाया जाता है। महासागरीय जल के तापमान का क्षैतिज वितरण मानचित्रों में समताप रेखाओं (Isotherms) द्वारा प्रदर्शित किया जा सकता है। हिन्द महासागर में 15°C की समताप रेखा अधिकतम तापमान के प्रदेशों को घेरती है (चित्र 13.3)। महासागरों के उत्तर-पश्चिमी भागों में समताप रेखाएँ देशान्तर रेखाओं के लगभग समान्तर हैं। मध्यवर्ती अन्ध महासागर में समताप रेखाएँ बड़ी ही असंयमित हैं, क्योंकि यहाँ मौसम की दशाएँ अनिश्चित रहती हैं। भूमध्यसागर में अन्ध महासागर की अपेक्षा तापमान उच्च रहता है। इसके विपरीत बाल्टिक सागर एवं हडसन नदी की खाड़ी में तापमान कम रहता है। कैरिबियन सागर में तापमान उच्च रहता है, क्योंकि व्यापारिक पवनें इस सागर की ओर चलती हैं।
प्रशान्त
महासागर में समताप रेखाएँ प्रायः अक्षांश रेखाओं के समानान्तर मिलती हैं। किन्तु दक्षिणी
प्रशान्त महासागर में स्थलखण्ड की कमी के कारण समस्राप रेखाएँ लगभग पूर्व-पश्चिम दिशा
में ही विस्तृत मिलती हैं।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. महासागरों के तल के विन्यास का वर्णन कीजिए।
Ø महासागरों के सामान्य तलीय
उच्चावच का वर्णन कीजिए।
Ø महाद्वीपीय मग्ल ढाल क्या है?
उत्तर-महासागरीय
तल-पृथ्वीतल के 70.8% भाग पर जल का विस्तार मिलती है। जल का यह भण्डार स्थिर है।
लगभग 29.2% भाग पर स्थलमण्डल का विस्तार पाया जाता है। यदि सागरों एवं महासागरों के
सम्पूर्ण जल को स्थल पर फैला दिया जाए तो पृथ्वीतल पर तीन किमी गहरा सागर हिलोरें लेने
लगेगा। इस प्रकार उत्तरी गोलार्द्ध में थल भाग (75%) की अधिकता के कारण उसे स्थल गोलार्द्ध
एवं दक्षिणी गोलार्द्ध में जल के आधिक्य (90%) के कारण उसे जल गोलार्द्ध कहा जाता है।
पृथ्वीतल
पर यह जल महासागरों, सागरों, खाड़ियों एवं झीलों आदि से मिलता है। प्रशान्त, अन्ध,
हिन्द, आर्कटिक एवं अण्टार्कटिका–पाँच महासागर तथा भूमध्य, उत्तरी मलय, कैलीफोर्निया,
लाल तथा अण्डमान आदि प्रमुख सागर हैं। फारस, हड़सन, मैक्सिको तथा बंगाल की खाड़ियाँ
महत्त्वपूर्ण स्थान रखती हैं। झीलें सागरीय तटों के समीप तथा महाद्वीपों के आन्तरिक
भागों में स्थित हैं। सुपीरियर, मिशीगन, घूरन, इरी, ओण्टेरिया, विक्टोरिया, बाल्कश,
मानसरोवर आदि मुख्य झीलें हैं। महासागरों की औसत गहराई 3,800 मीटर है।
आधुनिक
वैज्ञानिक युग में यन्त्रों, उपकरणों एवं गोताखोरों द्वारा सागरों एवं महासागरों की
तली के उच्चावचों के विषय में पर्याप्त जानकारी प्राप्त हुई है। अब तो महासागरों की
तली के मानचित्र भी बना लिये गये हैं। पश्चिमी प्रशान्त महासागर की गहराई सबसे अधिक
अर्थात् 11.9 किमी है।
महासागरीय
तली का विन्यास–महासागरीय तली के विन्यास को जानने के लिए निम्नलिखित
बातों का ज्ञान होना अति आवश्यक है
(अ)
सागरतल की गहराई एवं (ब) उस स्थान पर जलयान की स्थिति।
सागरतलों
की जानकारी के लिए वैज्ञानिकों ने ध्वनि-तरंगों की प्रतिध्वनि विधि को खोज निकाला है।
सागरों की गहराई जलयानों में लगे स्वचालित यन्त्रों द्वारा एक ग्राफ पर स्वयं ही अंकित
होती रहती है। इस प्रक्रिया में जलयान के निचले भाग द्वारा जल में ध्वनि-तंरगें उत्पन्न
की जाती हैं, जो सागरों की तली से टकराकर वापस लौटती हैं। इससे पता चलता है कि सागरीय
तल सपाट नहीं है। इसमें बहुत-से पर्वत, पहाड़ियाँ, खाइयाँ एवं समतल मैदान मिलते हैं।
ये खाइयाँ इतनी गहरी होती हैं कि इसमें विश्व के सबसे ऊँचे पर्वत ‘एवरेस्ट’ की चोटी
भी समा सकती है। सागरों एवं महासागरों में विभिन्न स्थलाकृतियाँ देखने को मिलती हैं,
जिनका विवरण निम्नवत् है
1.
महाद्वीपीय मग्न तट-सागरों एवं महासागरों में अथाह जलराशि होती
है जिससे यह आस-पास के तटीय भागों में फैल जाती है। अत: महाद्वीपों या स्थलों के वे
भाग जो जलमग्न होते हैं, महाद्वीपीय मग्न तट कहलाते हैं। इन भागों में जल छिछला होता
है तथा गहराई भी 200 फैदम तक होती है। इनका ढाल स्थल से सागर की ओर होता है।
महाद्वीपीय
मग्न तट की तली सभी भागों में समान नहीं होती, इनमें गड्ढे, टीले, घाटियाँ आदि पाये
जाते हैं। कहीं-कहीं पर इनका तल कठोर शैलों द्वारा निर्मित होता है। कुछ भागों में
बालू एवं कीचड़ के जमाव भी मिलते हैं। इनमें कुछ भाग ऊपर उठ जाते हैं, जो सागरीय जल
के द्वीप के समान दिखाई पड़ते हैं। महाद्वीपीय मग्न तट कहीं पर ऊँचे उठ रहे हैं और
कहीं पर नीचे धंस रहे हैं। इन पर अपरदन कारकों द्वारा अवसादों का निर्माण होता रहता
है। सूर्य के प्रकाश के कारण महाद्वीपीय मग्न तट पर वनस्पति तथा जन्तु जीवित रहते हैं।
ये क्षेत्र महत्त्वपूर्ण मत्स्य उत्पादक क्षेत्रों के रूप में विकसित हो गये हैं।
2. महाद्वीपीय मग्न ढाल-महाद्वीपीय मग्न् तट के किनारे पर जब ढाल अचानक ही तेज हो जाता है। तो उसे महाद्वीपीय मग्न ढाल कहते हैं। यह ढाल 35 से 61 मीटर प्रति किमी होता है। इसका एक सिरा मग्न तट से जुड़ा होता है तथा दूसरा सिरा समुद्री फर्श से मिल जाता है।
3.
गहरे सागरीय बेसिन-सागरों एवं महासागरों का 2/3 भाग गहरे बेसिन
या फर्श द्वारा निर्मित है। इसकी लम्बाई 37 से 43 किमी तक होती है। यहाँ लम्बी पहाड़ियाँ,
पठार, ज्वालामुखी, पर्वत शिखर आदि स्थलाकृतियाँ पायी जाती हैं। सागरीय जल में ये पहाड़ियाँ
द्वीप की भाँति दिखाई देती हैं। इस प्रकार की स्थलाकृतियाँ प्रशान्त महासागर में देखने
को मिलती हैं।
4.
सागरीय गर्त-सागरीय तली में स्थित लम्बे, सँकरे एवं गहरे
स्थल-स्वरूप को सागरीय गर्त कहते हैं। प्रशान्त महासागर एवं कैरेबियन सागर में यह गर्त
अधिक पाये जाते हैं। इनकी गहराई 7 से 9 किमी तक होती है। पर्वत-निर्माणकारी घटनाओं
द्वारा इन सागरीय गतें की उत्पत्ति होती है।
5.
अन्तःसागरीय गम्भीर खड्ड-महाद्वीपीय मग्न तट और मग्न ढालों पर
‘वी’-आकार के तीव्र ढाल वाली दीवारों के साथ बने गड्ढों को अन्त:सागरीय गम्भीर खड्ड
कहते हैं। सागरों में ये खड्ड नदियों के मुहानों के पास होते हैं। इनकी गहराई 2 से
3 किमी तक होती है।
6.
सागरीय पर्वत-सागरीय फर्श पर ऊँची परन्तु शीर्षयुक्त जलमग्न
स्थलाकृति को सागरीय पर्वत कहते हैं। इनका आकार शंकु की भाँति होता है। अलास्का खाड़ी
में इस प्रकार के अनेक पर्वत देखे जा सकते हैं।
7.
सागरीय कटक-सागरीय भागों में फैली लम्बी एवं सँकरे आकार की जलमग्न पर्वत-श्रेणियाँ
सागरीय कटक कहलाती हैं। अन्ध महासागर में इस प्रकार की अनेक़ स्थलाकृतियाँ मिलती हैं।
प्रशान्त महासागर में ये कटक नहीं मिलतीं। हिन्द महासागर में इनका विस्तार उत्तर-दक्षिण
दिशा में है।
प्रश्न 2. महासागरों में लवणता के असमान वितरण का वर्णन कीजिए तथा उसके
कारणों की विवेचना कीजिए।
Ø महासागरीय लवणता से आप क्या
समझते हैं? उसके वितरण को प्रभावित करने वाले चार कारकों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-महासागरीय
जल की लवणता–सम्पूर्ण ग्लोब के 70.8% भाग पर जलमण्डल का विस्तार है। परन्तु सागरों
एवं महासागरों का यह जल पीने-योग्य नहीं होता, क्योंकि इसमें अनेक लवणों का मिश्रण
रहता है। सागरीय जल में लवणों की उपस्थिति से उत्पन्न खारेपन को महासागरीय जल की लवणता
कहा जाता है। खारेपन की यह मात्रा उन सभी खनिजों से मिलती है जो इनके जल में स्वतन्त्र
रूप से एक निश्चित अनुपात में मिलते रहते हैं। भिन्न-भिन्न सागरों एवं महासागरों में
लवणता की मात्रा में भिन्नता पायी जाती है। यह लवणता प्रति 1000 ग्राम जल में घुले
हुए नमक द्वारा प्रकट की जाती है। उदाहरण के लिए, यदि 1,000 ग्राम जल में 21 ग्राम
नमक है तो इस जल की लवणता 21 प्रति सहस्र होगी।
लवण
का नाम |
मात्रा
(ग्राम में) |
सोडियम
क्लोराइड |
27.213 |
मैग्नीशियम
क्लोराइड |
3.807 |
मैग्नीशियम
ब्रोमाइड |
0.076 |
मैग्नीशियम
सल्फेट |
1.658 |
पोटैशियम
सल्फेट |
0.863 |
कैल्सियम
सल्फेट |
1.260 |
कैल्सियम
कार्बोनेट |
0.123 |
लवणों
का योग |
35.000 |
भूमि
पर प्रवाहित होता हुआ जल अर्थात् नदियाँ प्रतिवर्ष 16 करोड़ टन खनिज पदार्थ बहाकर सागरों
एवं महासागरों के गर्भ में जमा करती हैं। इस जल में कार्बोनेट, सोडियम तथा सिलिकेट
आदि लवणों की अधिकता होती है। इस जल में 35 ग्राम नमक प्रति 1,000 ग्राम होता है। सागरों
एवं महासागरों के जल का । खारापन अधिक होता है, क्योंकि इनके जल का मैग्नीशियम सल्फेट
वाष्पीकरण होता रहता है जिससे इनमें नमक की मात्रा की वृद्धि होती रहती है। सागरीय
जल में सल्फेट तथा क्लोराइड आदि लवण अधिक मिलते हैं। अतः इस जल की लवणता का मूल कारण
नदियों का जल, जल का – वाष्पीकरण अधिक मात्रा में होना, समुद्री जल-जीव एवं रासायनिक
क्रियाओं को होना है।
लवणता
की रचना—यह अनुमान लगाया गया है कि सागरों एवं महासागरों के जल में लवणता की मात्रा
50 लाख अरब टन है। सामान्य रूप से प्रति 1,000 ग्राम जल में लवणता की औसत मात्रा
35 ग्राम है; अर्थात् 3.5 प्रतिशत नमक है। इन लवणों में सोडियम क्लोराइड सबसे अधिक
होता है। प्रति 1,000 ग्राम सागरीय जल में विभिन्न लवणों की मात्रा संलग्न तालिका के
अनुसार है।।
सागरीय
जल में लवणों का अनुपात सभी स्थानों पर एकजैसा मिलता है, परन्तु उनकी मात्रा में परिवर्तन
हो सकता है। इसका प्रमुख कारण सागरीय जलधाराओं का एक स्थान से दूसरे स्थान पर प्रवाहित
होते रहना है। इसी कारण यह अनुपात सदैव स्थिर रहता है।
सागरीय
जल की लवणता में भिन्नता के कारण ।
सागरों
एवं महासागरों के जल की लवणता में भिन्नता के निम्नलिखित कारण हैं
1.
स्वच्छ जल की पूर्ति–जलाशयों में स्वच्छ जल की पूर्ति लवणता की मात्रा
को कम कर देती है। उदाहरण के लिए, विषुवत् रेखा के समीपवर्ती भागों में स्वच्छ जले
की पूर्ति के कारण सागरीय लवणता कम पायी जाती है। इसके विपरीत उपोष्ण तथा शीतोष्ण कटिबन्धीय
भागों के सागरों तथा महासागरों में स्वच्छ जल की कमी के कारण लवणता अधिक पायी जाती
है। इसी कारण भूमध्यसागरीय जल में लवणता की मात्रा अधिक पायी जाती है।
2.
वाष्पीकरण-वाष्पीकरण क्रिया में जल का बहुत-सा भाग वाष्प बनकर वायुमण्डल
में मिल जाता है। इससे सागरीय जल की लवणता में वृद्धि हो जाती है। वाष्पीकरण की अधिकता
उच्च ताप, शुष्क वायु, वायु की तेज गति एवं आकाश की स्वच्छता पर निर्भर करती है। उष्ण
कटिबन्ध में इस प्रकार की दशाएँ पायी जाती हैं, जिससे इन प्रदेशों में स्थित सागरों
में लवणता की मात्रा भी। अधिक मिलती है। इसके विपरीत ध्रुवीय प्रदेशों में निम्न तापमान
एवं वाष्पीकरण की कैमी के कारण लवणता कम पायी जाती है।
3.
पवनों की प्रकृति-पवनों की तीव्रता एवं शुष्कता जल के अधिक वाष्पीकरण
में सहायक होती है; अतः ऐसे क्षेत्रों में सागरीय लवणता भी अधिक मिलती है। यही कारण
है कि कर्क एवं मकर रेखाओं के समीपवर्ती सागरीय भागों में लवणता की अधिकता पायी जाती
है।
4.
सागरीय धाराएँ-समुद्र-तल की ऊपरी सतह में नीचे की सतह की अपेक्षा
अधिक लवणता होती है। सागरों में जो धाराएँ प्रवाहित होती हैं, वे ऊपरी सतह के जल को
बहा ले जाती हैं, जिससे उस स्थान की लवणता कम हो जाती है। ऊपरी सतह का यह जल जिन भागों
में पहुँचता है, वहाँ सागरीय जल की लवणता में वृद्धि कर देता है।
5.
जल-जीवों की उपस्थिति-महासागरीय जीव भी लवणता को प्रभावित करते हैं।
जिन सागरीय भागों में स्वच्छ एवं मृदु जल होता है, उसमें सिलिको एवं कैल्सियम कार्बोनेट
की अधिकता होती है, परन्तु इस जल में उत्पन्न इन तत्त्वों का शोषण जल-जीवों द्वारा
कर लिया जाता है, जिससे सागरीय जल की लवणता में वृद्धि हो जाती है।
लवणता
का वितरण
यदि
हम ग्लोब पर स्थित जलाशयों का अध्ययन करें तो पता चलता है कि सबसे कम सागरीय खारापन
ध्रुवीय प्रदेशों में मिलता है। इसके विपरीत संबसे अधिक खारापन कर्क एवं मकर रेखाओं
के निकटवर्ती सागरीय भागों में पाया जाता है। इसका मुख्य कारण उच्च ताप, कम वर्षा,
स्वच्छ आकाश, गर्म शुष्क एवं तीव्र वायु प्रवाह है। सागरीय लवणता का वितरण निम्नलिखित
है
1.
महासागरीय लवणता-कर्क एवं मकर रेखाओं के समीपवर्ती भागों में
लवणता की मात्रा सबसे अधिक अर्थात् 3.6 प्रतिशत है। इनसे आगे ध्रुवों की ओर लवणता की
मात्रा कम होती जाती है। भूमध्य रेखा पर लवणता की मात्रा 3.4 प्रतिशत है, जिसका कारण
स्वच्छ जल की प्राप्ति का होना है। ध्रुवीय प्रदेशों में लवणता की मात्रा 3.0 प्रतिशत
रह जाती है या इससे भी कम मिलती है, जिसका प्रमुख कारण ताप में कमी, वाष्पीकरण का कम
होना तथा हिम द्वारा शुद्ध जल की प्राप्ति का होते रहना है।
सागरों
में सबसे अधिक लवणता सारगैसो सागर (उत्तरी अटलांटिक महासागर) में है, जहाँ पर इसकी
मात्रा 3.8 प्रतिशत है। इसका कारण उच्च ताप, कम वर्षा, आकाश की स्वच्छता, उष्ण एवं
शुष्क पवनों का प्रवाहित होना तथा सूर्य की किरणों की तीव्रता का होना है। वाष्पीकरण
की तीव्रता सागरीय जल के खारेपन में वृद्धि करती रहती है।।
2.
सागरीय लवणता-सागरीय लवणता महासागरों से भिन्न होती है। इन
सागरों का सम्बन्ध खाड़ियों तथा जलडमरूमध्य द्वारा महासागरों में होता है। भूमध्ये
सागर में सबसे अधिक लवणता 3.9% है। स्वेज नहर के समीप यह मात्रा बढ़कर 4.1% हो जाती
है। फारस की खाड़ी में 4.8% लवणता की मात्रा मिलती है। इसका मुख्य कारण वर्षा का अभाव,
स्वच्छ जल की कमी, उच्च ताप एवं वाष्पीकरण की तीव्रता का होना है। काला सागर में लवणता
की मात्रा 1.8% है। उत्तरी ध्रुव के निकटवर्ती भागों में लवणता और भी कम हो जाती है;
जैसे—-बाल्टिक सागर में 1.5%, बोथानिया की खाड़ी में 0.8% तथा फिनलैएड की खाड़ी में
केवल 0.2% रह जाती है।
3.
आन्तरिक जलाशयों में लवणता-इस वर्ग में आन्तरिक सागर एवं झीलें सम्मिलित
हैं। विश्व में लवणता की सबसे अधिक मात्रा जोर्डन के समीप मृत सागर में 23.8% है। इसका
प्रमुख कारण उच्च तापमान, अत्यधिक वाष्पीकरण तथा शुष्क एवं उष्ण पवनों का प्रवाहित
होना है। कैस्पियन,सागर के दक्षिणी भाग में काराबुगा खाड़ी में लवणता 17.0% तथा उत्तरी
भाग में केवल 1.4% है। इसका प्रमुख कारण कैस्पियन सागर के उत्तरी भाग में यूराल तथा
वोल्गा नदियों द्वारा स्वच्छ जल की पूर्ति करते रहना है। झीलों में सर्वाधिक लवणता
की मात्रा तुर्की की वान झील में 33.0% है। उत्तरी अमेरिका महाद्वीप की महान झीलों
में भी लवणता की मात्रा अधिक मिलती है, जहाँ पर सुपीरियर झील में यह मात्रा 22.0% है।
इस
प्रकार उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि उच्च ताप, वर्षा का अभाव, अत्यधिक वाष्पीकरण,
उष्ण एवं शुष्क पवनों का प्रवाह, स्वच्छ जल की आपूर्ति का पूर्ण अभाव तथा स्वच्छ एवं
स्पष्ट आकाश आदि तथ्य सागरीय लवणता को प्रभावित करते हैं।
प्रश्न 3. महासागरीय जल के तापमान के लम्बवत वितरण की विशेषताओं की
विवेचना कीजिए।
उत्तर-
महासागरीय जल के तापमान का लम्बवत् वितरण
महासागरीय जल के तापमान का प्रमुख स्रोत सूर्य है। इसके अतिरिक्त भूगर्भ का ताप, जल को आपसी दबाव भी ताप प्रदान करते हैं। वायुमण्डल की भाँति जलमण्डल में गति के कारण ताप के वितरण में भिन्नता मिलती है। महासागरीय ताप वितरण की विशेषताओं को विवरण निम्नलिखित है–
महासागरीय
जल अधिकतम ताप सूर्य से प्राप्त करता है जिस कारण सागरों की ऊपरी परत का जल सर्वाधिक
ताप ग्रहण करता है। और गहराई के साथ जल में ताप की उपस्थिति कम होती जाती है, परन्तु
तापमान की ह्रास दर सभी गहराइयों पर एक-सी है नहीं होती है। प्राय: 2,000 मीटर की गहराई
तक तापमान तेजी से घटता है। 180 मीटर की गहराई का 16° सेल्सियस तापमान है। 2,000 मीटर
की गहराई पर घटकर केवल 2° सेल्सियस रह जाता है, परन्तु 4,000 मीटर की गहराई तक केवल
0.4° सेल्सियस ही घटता है तथा वहाँ 1.6° सेल्सियस ताप पाया जाता है। ऐसा अनुमान है
कि आयतन की दृष्टि से लगभग 85% महासागरीय जल का तापमान 2 से 4° सेल्सियस के मध्य रहता
है (चित्र 13.5)।
महासागरों में तोप के लम्बवत् वितरण पर जलमग्न अवरोधों का बड़ा प्रभाव पड़ता है। ये अवरोध महासागरों के ताप में विभिन्नताएँ पैदा करते हैं। उदाहरण के लिए लाल सागर में 2,100 मीटर की गहराई पर भी 21° सेल्सियस ताप पाया जाता है, जबकि हिन्द महासागर में इस गहराई पर केवल 2° सेल्सियस ताप पाया जाता है। वस्तुत: जलमग्न अवरोधों के कारण ही महासागरीय जल के लम्बवत् ताप वितरण में अन्तर पाया जाता है; क्योंकि ये अवरोध जल का मिश्रण नहीं होने देते हैं।