पाठ्य पुस्तक के प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. कुछ लोगों का तर्क है कि असमानता प्राकृतिक है जबकि कुछ अन्य
का कहना है कि वास्तव में समानता प्राकृतिक है और जो असमानता हम चारों ओर देखते हैं
उसे समाज ने पैदा किया है। आप किस मत का समर्थन करते हैं? कारण दीजिए।
उत्तर
: प्राकृतिक असमानताएँ लोगों की जन्मजात विशिष्टताओं और योग्यताओं का परिणाम मानी जाती
हैं। यह कथन सत्य है। इसे हम बदल नहीं सकते। दूसरी ओर वे सामाजिक असमानताएँ हैं जिन्हें
समाज ने बदल दिया है। उदाहरण के लिए, कुछ समाज बौद्धिक कार्य करने वालों को शारीरिक
कार्य करने वालों से अधिक महत्त्व देते हैं और उन्हें अलग तरीके से लाभ देते हैं। वे
विभिन्न वंश, रंग या जाति के लोगों के साथ भिन्न-भिन्न व्यवहार करते हैं। हम इसी मत
का समर्थन करते हैं क्योंकि बौद्धिक कार्य करने वाले पहले कार्य की संरचना करते हैं
तभी शारीरिक कार्य करना सम्भव होता है।
प्रश्न 2. एक मत है कि पूर्ण आर्थिक समानता न तो सम्भव है और न ही वांछनीय।
एक समाज ज्यादा-से-ज्यादा बहुत अमीर और बहुत गरीब लोगों के बीच की खाई को कम करने का
प्रयास कर सकता है। क्या आप इस तर्क से सहमत हैं? अपना तर्क दीजिए।
उत्तर
: हम इस तर्क से सहमत हैं। अगर किसी समाज में कुछ विशिष्ट वर्ग के लोग पीढ़ियों से
बेशुमार धन-दौलत और इसके साथ प्राप्त होने वाली सत्ता का उपयोग करते हैं, तो समाज वर्गों
में बँट जाता है। एक ओर वे, जो पीढ़ियों से धन, विशेषाधिकार और सता का उपयोग करते आए
हैं और दूसरी ओर अन्य जो पीढ़ियों से गरीब बने हुए हैं। कालक्रम में यह वर्ग भेद, आक्रोश
और हिंसा को बढ़ावा दे सकता है। इसलिए अमीरी-गरीबी के बीच की खाई को कम करने के प्रयास
किए जा सकते हैं, इसे पाटा नहीं जा सकता।
प्रश्न 3. नीचे दी गई अवधारणा और उसके उचित उदाहरणों में मेल बैठाएँ
(क)
सकारात्मक कार्यवाही – (1) प्रत्येक वयस्क नागरिक को मत देने का अधिकार है।
(ख)
अवसर की समानता – (2) बैंक वरिष्ठ नागरिकों को ब्याज की ऊँची दर देते हैं।
(ग)
समान अधिकार – (3) प्रत्येक बच्चे को निःशुल्क शिक्षा मिलनी चाहिए।
उत्तर
: (ख) 1, (ग) 2, (क) 3.
प्रश्न 4. किसानों की समस्या से सम्बन्धित एक सरकारी रिपोर्ट के अनुसार
छोटे और सीमान्त किसानों को बाजार से अपनी उपज का उचित मूल्य नहीं मिलता। रिपोर्ट में
सलाह दी गई कि सरकार को बेहतर मूल्य सुनिश्चित करने के लिए हस्तक्षेप करना चाहिए। लेकिन
यह प्रयास केवल लघु और सीमान्त किसानों तक ही सीमित रहना चाहिए। क्या यह सलाह समानता
के सिद्धान्त से सम्भव है?
उत्तर
: समानता के विषय पर सोचते समय हमें प्रत्येक व्यक्ति को बिल्कुल एक जैसा मानने और
प्रत्येक व्यक्ति को मूलतः समान मानने में अन्तर करना चाहिए। मूलतः समान व्यक्तियों
को विशेष स्थितियों में अलग-अलग व्यवहार की आवश्यकता हो सकती है। लेकिन ऐसे सभी मामलों
में सर्वोपरि उद्देश्य समानता को बढ़ावा देना हो होगा। समानता के लक्ष्य को पाने के
लिए अलग या विशे बर्ताव के बारे में सोंचा जा सकता है। इसके लिए औचित्य सिद्ध करना
और सावधानीपूर्वक पुनर्विचार आवश्यक होता है।
प्रश्न 5. निम्नलिखित में से किस में समानता के किस सिद्धान्त का उल्लंघन
होता है और क्यों?
(क)
कक्षा का हर बच्चा नाटक का पाठ अपना क्रम आने पर पढ़ेगा।
(ख)
कनाडा सरकार ने दूसरे विश्वयुद्ध की समाप्ति से 1960 तक यूरोप के श्वेत नागरिकों को
कनाड़ा में आने और बसने के लिए प्रोत्साहित किया।
(ग)
वरिष्ठ नागरिकों के लिए अलग से रेलवे आरक्षण की एक खिड़की खेली गई।
(घ)
कुछ वन क्षेत्रों को निश्चित आदिवासी समुदायों के लिए आरक्षित कर दिया गया है।
उत्तर
: प्रश्न के पैरा में समानता के सिद्धांत का उल्लंघन है। कनाडा की सरकार ने रंग के आधार पर भिन्न कार्य अपनाया। उसने केवल गोरे यूरोपीय लोगों को द्वितीय विश्व युद्ध के अंत से 1960 तक कनाडा प्रवजन का आदेश दिया। यह स्पष्ट रूप से समानता के सिद्धांत का उल्लंघन है। प्रश्न के पैरा ‘क’ और पैरा ‘ग’ में समानता के सिद्धांत का उल्लंघन नहीं है। प्रश्न के पैरा ‘घ’ में समानता के सिद्धांत का उल्लंघन है, क्योंकि इसमें कुछ जंगल केवल जनजाति समुदाय को देने की बात कही गई है जबकि सभी के लिए इस प्रकार प्रावधान करना चाहिए।
प्रश्न 6. यहाँ महिलाओं को मताधिकार देने के पक्ष में कुछ तर्क दिए
गए हैं। इनमें से कौन-से तर्क समानता के विचार से संगत हैं। कारण भी दीजिए।
(क)
स्त्रियाँ हमारी माताएँ हैं। हम अपनी माताओं को मताधिकार से वंचित करके अपमानित नहीं
करेंगे।
(ख)
सरकार के निर्णय पुरुषों के साथ-साथ महिलाओं को भी प्रभावित करते हैं इसलिए शासकों
के चुनाव में उनका भी मत होना चाहिए।
(ग)
महिलाओं को मताधिकार न देने से परिवारों में मदभेद पैदा हो जाएँगे।
(घ)
महिलाओं से मिलकर आधी दुनिया बनती है। मताधिकार से वंचित करके लम्बे समय तक उन्हें
दबाकर नहीं रखा जा सकता है।
उत्तर
: प्रश्न के पैरा ‘ख’ और पैरा ‘घ’ समानता से अधिक मेल रखते हैं। पैरा ‘ख’ में कहा गया है कि सरकार के निर्णय पुरुष और महिला दोनों को प्रभावित करते हैं। इसलिए दोनों को शासकों के चुनाव में सहभागी होना चाहिए। पैरा ‘घ’ में कहा गया है महिलाओं के मतदान के अधिकार को इंकार किया जा सकता है जो सम्पूर्ण जनसंख्या का 50% है।
परीक्षोपयोगी प्रश्नोत्तर
बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1. समानता का सही अर्थ क्या है?
(क) प्रत्येक व्यक्ति को अपने सही विकास के लिए समान सुविधाएँ प्राप्त
हों और देश के कानून के समक्ष सभी समान हों।
(ख)
सभी को समान मजदूरी व सम्पत्ति प्राप्त हो
(ग)
सभी को निवास की सुविधा
(घ)
सभी को समान शिक्षा व रोजगार
प्रश्न 2. नागरिक या कानूनी समानता निम्नलिखित में किसकी विशेषता है?
(क) सभी प्रजातान्त्रिक सरकारों की
(ख)
सभी प्रकार की सरकारों की
(ग)
केवल तानाशाही सरकारों की
(घ)
जिन देशों में लिखित संविधान है।
प्रश्न 3. कानून के समक्ष समानता निम्नलिखित श्रेणियों में किसके अन्तर्गत
हैं?
(क)
राजनीतिक समानता के अन्तर्गत
(ख)
सामाजिक समानता के अन्तर्गत ।
(ग) नागरिक समानता के अन्तर्गत
(घ)
आर्थिक समानता के अन्तर्गत
प्रश्न 4. नकारात्मक दृष्टि से समानता का क्या अर्थ है?
(क) विशेष अधिकारों का अभाव
(ख)
कमजोर वर्ग के लिए विशेष अधिकारों का प्रावधान
(ग)
शासक वर्ग के लिए विशेष सुविधाओं की व्यवस्था
(घ)
इनमें से कोई नहीं
प्रश्न 5. समानता को सकारात्मक अर्थ क्या है?
(क)
समाज के सभी सदस्यों की प्राथमिक आवश्यकताओं की पूर्ति
(ख) सभी के लिए पर्याप्त अवसरों की व्यवस्था
(ग)
समानता जो कानून की शक्ति द्वारा समर्थित होती है।
(घ)
प्रकृति प्रदत्त समानता
प्रश्न 6. सामाजिक समानता का क्या अर्थ है?
(क)
प्रत्येक व्यक्ति अपनी क्षमता के अनुसार कार्य करे
(ख)
वर्तमान सामाजिक व्यवस्था को बदलने का कोई प्रयत्न न हो
(ग) जाति व धर्म के अन्तर के कारण किसी भी व्यक्ति को हीनता के भाव
से पीड़ित न होना पड़े
(घ)
कमजोर वर्ग की आर्थिक उन्नति के लिए विशेष प्रयत्न हों।
प्रश्न 7. “आर्थिक समानता के अभाव में राजनीतिक स्वतन्त्रता केवल एक
भ्रम है।” यह मत किसका है?
(क)
प्लेटो
(ख)
मार्क्स
(ग) कोल
(घ)
लॉस्की
प्रश्न 8. “स्वतन्त्रता तथा समानता एक-दूसरे की विरोधी हैं।” यह कथन
किसका है?
(क) लॉर्ड एक्टन
ख)
लॉस्की
(ग)
कार्ल मार्क्स
(घ)
प्लेटो
प्रश्न 9. ‘एक व्यक्ति एक वोट का सिद्धान्त किससे सम्बन्धित है? |
(क)
आर्थिक समानता ।
(ख) राजनीतिक समानता
(ग)
सामाजिक समानता
(घ)
नागरिक समानता
प्रश्न 10. “समानता की उत्कट अभिलाषा के कारण स्वतन्त्रता की आशा ही
व्यर्थ हो गई है। यह कथन किस विद्वान का है?
(क) लॉर्ड एक्टन
(ख)
लासवैल
(ग)
डेविड ईस्टन
(घ)
फाइनर
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. सामाजिक समानता का अर्थ लिखिए।
उत्तर
: प्रत्येक व्यक्ति को समाज में रहकर अपने सर्वांगीण विकास का अवसर प्राप्त होना ही
सामाजिक समानता के अर्थ का परिचायक है।
प्रश्न 2. समानता के दो प्रकार लिखिए।
उत्तर
: समानता के दो प्रकार हैं
(i)
राजनीतिक समानता, तथा
(ii)
आर्थिक समानता।
प्रश्न 3. “स्वतन्त्रता और समानता एक-दूसरे की पूरक हैं।” एक तर्क दीजिए।
उत्तर
: लोकतन्त्र की सफलता के लिए स्वतन्त्रता और समानता दोनों ही आवश्यक हैं, इसलिए ये
दोनों एक-दूसरे की पूरक हैं।
प्रश्न
4. समानता के अधिकार को भारत के संविधान में किस अनुच्छेद से किस अनुच्छेद तक वर्णित
किया गया है?
उत्तर
: समानता के अधिकार को भारतीय संविधान में अनुच्छेद 14 से 18 तक वर्णित किया गया है।
प्रश्न 5. “आर्थिक स्वतन्त्रता के बिना राजनीतिक स्वतन्त्रता एक भ्रम
है।” यह कथन किसका है?
उत्तर
: यह कथन प्रो० सी०ई०एम० जोड का है।
प्रश्न 6. समानता के किसी एक प्रकार का वर्णन कीजिए।
उत्तर
: समानता का एक प्रकार है—प्राकृतिक समानता।
प्रश्न 7. नागरिक समानता का क्या अर्थ है?
उत्तर
: नागरिक समानता का अर्थ है कि राज्य प्रत्येक नागरिक को वंश, जाति, धर्म, लिंग इत्यादि
के आधार पर बिना भेदभाव किए समान रूप से नागरिक अधिकार प्रदान करे।
प्रश्न 8. राजनीतिक समानता से क्या तात्पर्य है?
उत्तर
: राजनीतिक समानता से तात्पर्य है–समान राजनीतिक अधिकार।
प्रश्न 9. प्राकृतिक समानता से क्या तात्पर्य है?
उत्तर
: प्राकृतिक समानता का अभिप्राय है कि प्रकृति ने सभी मनुष्यों को समान बनाया है।
प्रश्न 10. सकारात्मक समानता से क्या अभिप्राय है?
उत्तर
: सकारात्मक समानता से अभिप्राय है कि प्रत्येक व्यक्ति को बिना किसी भेदभाव के विकास
के समान अवसर प्रदान किए जाएँ।
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. समानता के मार्क्सवादी दृष्टिकोण को संक्षेप में समझाइए।
उत्तर
: समानता के सन्दर्भ में मार्क्सवादी दृष्टिकोण इस बात का प्रतिपादन करता है कि जब
तक समाज में विरोधी वर्गों का अस्तित्व रहेगा तब तक किसी भी रूप में समानता की स्थापना
नहीं की जा सकती है। आर्थिक समानता को तब तक लागू नहीं किया जा सकता जब तक कि पूँजीवादी
व्यवस्था पर आधारित व्यक्तिगत पूँजी को समाप्त करके उत्पादन, वितरण विनिमय के साधनों
को समाज के सभी वर्गों में विभक्त न कर दिया जाए। अत: मार्क्सवादी आर्थिक असमानता को
भी समाज में एक वर्ग के द्वारा दूसरे वर्ग के शोषण एवं उत्पीड़न के लिए उत्तरदायी मानता
है। माक्र्स को यह भी मत है कि पूँजीवादी राज्यों में राजनीतिक एवं सामाजिक समानता
का जो आडम्बर रचा जा रहा है उसने पूर्णतया भ्रमपूर्ण स्थिति उत्पन्न कर दी है। क्योंकि
आर्थिक समानता के अभाव में किसी प्रकार की भी समानता स्थापित नहीं की जा सकती है।
प्रश्न 2. नकारात्मक समानता का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर
: सामान्य रूप में नकारात्मक स्वतन्त्रता का अर्थ है, ‘विशेषाधिकारों का अन्त’। समाज
के किसी वर्ग-विशेष को जन्म, धर्म, जाति या रंग के आधार पर किसी प्रकार के विशेष अधिकार
प्रदान न किए जाएँ, तो यह नकारात्मक समानता का द्योतक है। राज्य को चाहिए कि वह बिना
भेदभाव के नागरिकों को व्यक्ति के विकास के समान अवसर प्रदान करे। लोगों में प्राकृतिक
कारणों से अर्थात् जन्मजात असमानता हो सकती है, परन्तु अप्राकृतिक कारणों से अर्थात्
पैतृक परिस्थितियों अथवा राज्य द्वारा किए गए भेदभाव के परिणामस्वरूप किसी प्रकार की
असमानता नहीं होनी चाहिए। छुआछूत का अन्त व सबको शैक्षणिक संस्थाओं में प्रवेश का अधिकार
नकारात्मक समानता के उदाहरण हैं।
प्रश्न 3. सकारात्मक समानता का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर
: सामान्यतया इसका अर्थ है कि प्रत्येक व्यक्ति को उसके व्यक्तित्व के विकास हेतु पर्याप्त
अवसर मिलें तथा राज्य के द्वारा उनमें कोई बाधा उत्पन्न न की जाए। यदि सभी को समान
अवसर न मिलें तो मनुष्य का सर्वांगीण विकास नहीं हो सकता है। प्रत्येक व्यक्ति को अपनी
योग्यता व प्रतिभा विकसित करने का समान अवसर प्राप्त होना चाहिए। लॉस्की के अनुसार,
“समानता का तात्पर्य एक-सा व्यवहार करना नहीं, इसका तो आग्रह इस बात के लिए है कि मनुष्यों
को सुख का समान अधिकार प्राप्त होना चाहिए। उनके अधिकारों में किसी प्रकार का आधारभूत
अन्तर स्वीकार नहीं किया जा सकता है। समानता मूलतः समाजीकरण की एक प्रक्रिया है—प्रथमतः
इसका अभिप्राय विशेषाधिकारों की समाप्ति है -” और दूसरे, व्यक्तियों को विकास के पर्याप्त
एवं समान अवसर उपलब्ध कराने से है।”
इस
प्रकार राजनीति विज्ञान के समानता का तात्पर्य ऐसी परिस्थितियों के अस्तित्व से होता
है जिससे व्यक्तियों को अपने व्यक्तित्व के विकास के समान अवसर मिलें, जिससे असमानता
का अन्त हो जाए जिसका मूल सामाजिक असमानता है।
प्रश्न 4. कानून के समक्ष समानता के सिद्धान्त को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
: कानून के समक्ष समानता का अर्थ होता है कि कानून के समक्ष सभी व्यक्ति समान है तथा
इसके अन्तर्गत सभी व्यक्तियों के लिए राज्य समान कानून बनाता है तथा उन्हें समान रूप
से लागू करता है। कानून के सम्बन्ध में राज्य धनी-निर्धन, ऊँच-नीच, गोरे-काले, साक्षर-निरक्षर
आदि का कोई भेद नहीं करता है। जन्म, वंश, लिंग तथा जन्म-स्थान के आधार पर कानून किसी
भी व्यक्ति को प्राथमिकता प्रदान नहीं करता है। पश्चिम बंगाल बनाम अनवर अली के मुकदमे
में भारतीय उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि समान परिस्थितियों में सभी लोगों के साथ कानून
का व्यवहार एक-सा होना चाहिए। कानूनी समानता के सम्बन्ध में इसी प्रकार की बात डायसी
ने भी कही थी। डायसी के शब्दों में, “हमारे देश में प्रत्येक अधिकारी चाहे वह प्रधानमंत्री
हो या पुलिस का सिपाही अथवा का वसूल करने वाला, अवैधानिक कार्यों के लिए उतना ही दोषी
माना जाएगा, जितना कि कोई अन्य नागरिका”
प्रश्न 5. आर्थिक समानता के किन्हीं पाँच तत्त्वों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर
: आर्थिक समानता के पाँच तत्त्व निम्नलिखित हैं
- प्रत्येक व्यक्ति की न्यूनतम भौतिक आवश्यकताओं
की पूर्ति होनी चाहिए; जैसे-वस्त्र, भोजन तथा आवास आदि की सुविधाएँ।
- प्रत्येक व्यक्ति को रोजगार, पर्याप्त मजदूरी
तथा विश्राम के लिए पर्याप्त अवकाश प्राप्त होना चाहिए।
- समान कार्य के लिए समान वेतन मिलना चाहिए।
- बेकारी, वृद्धावस्था, बीमारी व अन्य ऐसी
स्थितियों में लोगों को राज्य की ओर से आर्थिक सहायता मिलनी चाहिए।
- विभिन्न लोगों में आर्थिक विषमता की दूरी
कम-से-कम होनी चाहिए।
प्रश्न 6. नीचे दी गई तालिका में विभिन्न समुदायों की शैक्षिक स्थिति
से जुड़े कुछ आँकड़े दिए गए हैं। इन समुदायों की शैक्षिक स्थिति में जो अन्तर हैं,
क्या वे महत्त्वपूर्ण हैं? क्या इन अन्तरों का होना केवल एक संयोग है या ये अन्तर जाति-व्यवस्था
केअसर की ओर संकेत करते हैं? आप यहाँ जाति-व्यवस्था के अलावा और किन कारणों का प्रभाव
देखते हैं।
शहरी भारत में उच्च शिक्षा में जातिगत समुदायों में असमानता
स्रोत-
नेशनल सेम्पल सर्वे आर्गेनाइजेशन, 55 वाँ राउण्ड सर्वे,1999-2000.
उत्तर
: शैक्षिक स्थिति में अन्तर महत्त्वपूर्ण हैं, क्योंकि सभी को शिक्षा का समान अधिकार
प्राप्त है। फिर भी यह अन्तर बना हुआ है जो हमारी शिक्षा व्यवस्था की कमियों पर हमारा
ध्यान आकृष्ट करता है। इन अन्तरों का होना संयोग नहीं है। यह असफल शिक्षा प्रणाली का
परिणाम है। इसका अन्य कारण
आर्थिक
असमानता, जागरूकता की कमी भी है।
प्रश्न 7. इन चित्रों पर एक नजर डालें।
ये
चित्र क्या संकेत करते हैं?
उत्तर
: ये चित्र मनुष्यों के बीच नस्ल और रंग के आधार पर भेदभाव की ओर संकेत करते हैं। यह
हममें से अधिकांश को अस्वीकार्य हैं। वास्तव में इस प्रकार का भेदभाव समानता के हमारे
आत्म-बोध का उल्लंघन करता है। समानता का हमारा आत्म-बोध कहता है कि साझी मानवता के
कारण सभी मनुष्य बराबर, सम्मान और परवाह के हकदार हैं।
प्रश्न 8. अवसरों की समानता से क्या आशय है?
उत्तर
: अवसरों की समानता-
समानता
की अवधारणा में यह निश्चित है कि सभी मनुष्य अपनी दक्षता और प्रतिभा को विकसित करने
के लिए तथा अपने लक्ष्यों और आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए समान अधिकार और अवसरों
के हकदार हैं। इसका आशय यह है कि समाज में लोग अपनी पसन्द और प्राथमिकताओं के मामलों
में अलग हो सकते हैं। उनकी प्रतिभा और योग्यताओं में भी अन्तर हो सकता है और हो सकता
है इस कारण कुछ लोग अपने चुने हुए क्षेत्रों में शेष लोगों से अधिक सफल हो जाएँ। लेकिन
केवल इसलिए कि कोई क्रिकेट में पहले पायदान पर पहुँच गया है या कोई बहुत सफल वकील बन
गया है, समाज को असमान नहीं माना जा सकता। दूसरे शब्दों, में सामाजिक दर्जा, सम्पत्ति
या विशेषाधिकारों में समानता का अभाव होना महत्त्वपूर्ण नहीं है लेकिन शिक्षा, स्वास्थ्य
और सुरक्षित आवास जैसी बुनियादी चीजों की उपलब्धता में असमानताओं से कोई समाज असमान
और अन्यायपूर्ण बनता है।
प्रश्न 9. नीचे दी गई स्थितियों पर विचार करें। कया इनमें से किसी भी
स्थिति में विशेष और विभेदकारी बरताव करना न्यायोचित होगा? ।
कामकाजी
महिलाओं को मातृत्व अवकाश मिलना चाहिए।
- एक विद्यालय में दो छात्र दृष्टिहीन हैं।
विद्यालय को उनके लिए कुछ विशेष उपकरण खरीदने के लिए धनराशि खर्च करनी चाहिए।
- गीता बास्केटबॉल बहुत अच्छा खेलती है। विद्यालय
को उसके लिए बॉस्केटबॉल कोर्ट | बनाना चाहिए जिससे वह अपनी योग्यता को और भी विकास
कर सके।
- जीत के माता-पिता चाहते हैं कि वह पगड़ी
पहने। इरफान चाहता है कि वह जुम्मे (शुक्रवार) को नमाज पढे, ऐसी बातों को ध्यान
में रखते हुए स्कूल को जीत से यह आग्रह नहीं करना चाहिए कि वह क्रिकेट खेलते समय
हेलमेट पहने और इरफान के अध्यापक को शुक्रवार को उससे दोपहर बाद की कक्षाओं के
लिए रुकने को नहीं कहना चाहिए।
उत्तर
: कामकाजी महिलाओं को मातृत्व अवकाश मिलना चाहिए; इस स्थिति में विभेदकारी बरताव करना
न्यायोचित होगा शेष प्रकरणों में विभेदकारी बरताव आवश्यक नहीं
दीर्घ लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. समानता से क्या आशय है? समानता के अन्तर्गत कौन-सी बातें
आती हैं।
उत्तर
: समानती का वास्तविक अर्थ है कि सभी व्यक्तियों को अपने विकास के लिए समान सुअवसर
प्राप्त हों। जन्म, सम्पत्ति, जाति, धर्म, रंग आदि के आधार पर जो सामाजिक जीवन के कृत्रिम
आधार हैं। व्यक्ति में विभेद न किया जाए अर्थात् राज्य सभी नागरिकों को किसी प्रकार
के भेदभाव के बिना उसकी बुद्धि और व्यक्तित्व के पूर्ण विकास के लिए समुचित अवसर प्रदान
करे। आकांक्षा और योग्यता के रहते किसी व्यक्ति के विकास में बाधा नहीं आनी चाहिए।
समानता के अन्तर्गत तीन मौलिक बातें आती हैं
प्रथम,
किसी नागरिक, समुदाय, वर्ग या जाति के विरुद्ध किसी प्रकार की वैधिक अनर्हता
(disqualification) नहीं रखनी चाहिए। द्वितीय, सभी को उन्नति और विकास के अवसर दिए
जाएँ।
तृतीय,
सभी को शिक्षा, आवास, भोजन और प्राथमिक सुविधाओं की प्राप्ति का पूरा-पूरा हक हो।”
समानता की व्याख्या करते हुए लॉस्की ने कहा है-“समानता का पहला अर्थ है कि समाज में
कोई विशेष हित वाला न हो, दूसरा प्रत्येक व्यक्ति को उन्नति के समान अवसर प्राप्त हों।
प्रश्न 2. “आर्थिक समानता के अभाव में राजनीतिक स्वतन्त्रता निरर्थक
है।” स्पष्ट कीजिए।
Ø आर्थिक समानता के बिना राजनीतिक
स्वतन्त्रता एक भ्रम है।” इस कथन की विवेचना कीजिए।
उत्तर
: प्रो० लॉस्की ने लिखा है, “राजनीतिक समानता आर्थिक समानता के बिना निरर्थक है; क्योंकि
राजनीतिक शक्ति आवश्यक रूप से आर्थिक शक्ति के हाथों में खिलवाड़ ही सिद्ध होगी। यदि
व्यक्ति को समस्त राजनीतिक अधिकार; जैसे-मतदान का, चुनाव में प्रत्याशी होने का, सार्वजनिक
पद धारण करने का आदि दे दिए जाएँ परन्तु उसे पेट भर खाना न मिले तो उसके लिए सम्पूर्ण
प्रदत्त राजनीतिक अधिकार व्यर्थ हैं। एक गरीब व्यक्ति का धर्म, ईमान व राजनीति आदि
सब-कुछ रोटी तक ही सीमित हैं। भारत में नागरिकों को मत अधिकार है पर रोजी छोड़कर मतदान
केन्द्र पर जाने का परिणाम क्या होगा। लोगों को चुनाव में खड़े होने का अधिकार है,
किन्तु चुनाव कितने महँगे होते हैं। क्या एक सामान्य व्यक्ति चुनाव लड़ सकता है। सामान्य
व्यक्ति के पास जीवन-यापन करने के सीमित साधन होते हैं, फिर वह राजनीतिक अधिकारों का
कैसे उपभोग करेगा? समाजवादी विचारक इस बात पर बल देते हैं कि आर्थिक स्वतन्त्रता के
बिना राजनीतिक स्वन्तत्रता व्यर्थ है। राजनीतिक स्वतन्त्रता की उपलब्धि के लिए आर्थिक
सुरक्षा की व्यवस्था की जानी चाहिए। आर्थिक विषमता को समाप्त करना। चाहिए जिससे मनुष्य
का शोषण न हो।
प्रश्न 3. समाजवाद क्या है? लोहिया की सप्तक्रान्तियाँ क्या थीं?
उत्तर
: समाजवाद असमानताओं के जवाब में उत्पन्न हुए कुछ राजनीतिक विचारों का समूह है। ये
विशेषकर वे असमानताएँ थीं, जो औद्योगिक पूँजीवादी अर्थव्यवस्था से उत्पन्न हुईं और
उसमें बाद तक बनी रहीं। समाजवाद का मुख्य उद्देश्य वर्तमान असमानताओं को न्यूनतम करना
और संसाधनों का न्यायपूर्ण विभाजन है। हालाँकि समाजवाद के पक्षधर पूरी तरह से बाजार
के विरुद्ध तो नहीं होते, लेकिन वे शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा जैसे आधारभूत क्षेत्रों
में सरकारी नियमन, नियोजन और नियन्त्रण का समर्थन अवश्य करते हैं।
भारत
में प्रमुख समाजवादी चिन्तक राममनोहर लोहिया ने पाँच प्रकार की असमानताओं की पहचान
की, जिनके विरुद्ध एक साथ लड़ना होगा-स्त्री-पुरुष असमानता, त्वचा के रंग पर आधारित
असमानता, जातिगत असमानता, कुछ देशों का अन्य पर औपनिवेशिक शासन और नि:सन्देह आर्थिक
असमानता है। यह आज स्वप्रमाणितं धारण लग सकती है, लेकिन लोहिया के समय में, समाजवादियों
के बीच आमतौर पर यही तर्क चलता था कि असमानता का एकमात्र रूप वर्गीय असमानता है जिसके
विरुद्ध संघर्ष अपरिहार्य है। दूसरी असमानताएँ गौण हैं या आर्थिक असमानता के समाप्त
होते ही वे स्वतः समाप्त हो जाएगी। लोहिया का कहना था कि इन असमानताओं में से प्रत्येक
की अलग-अलग जड़े हैं और इन सबके विरुद्ध अलग-अलग लेकिन एक साथ संघर्ष छेड़ने होंगे।
उन्होंने एकांगी क्रान्ति की बात नहीं कही। उनके लिए उपर्युक्त पाँच असमानताओं के विरुद्ध
संघर्ष का अर्थ था—पाँच क्रान्तियाँ। उन्होंने इस सूची में दो और क्रान्तियों को शामिल
किया–व्यक्तित्व जीवन पर अन्यायपूर्ण अतिक्रमण के विरुद्ध नागरिक स्वतन्त्रता के लिए
क्रान्ति तथा अंहिसा के लिए सत्याग्रह के पक्ष में शस्त्र त्याग के लिए क्रान्ति। ये
ही सप्तक्रान्तियाँ थीं। यही लोहिया के अनुसार समाजवाद का आदर्श है।
प्रश्न 4. समानता के कितने प्रकार होते हैं?
Ø समानता के विविध रूपों का विवेचन
कीजिए।
उत्तर
: समानता के भेद अथवा प्रकार
समानता
के विभिन्न भेदों का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है
1.
प्राकृतिक समानता– प्लेटो के अनुसार, “प्राकृतिक समानता से अभिप्राय
यह है कि सब मनुष्य जन्म से समान होते हैं। स्वाभाविक रूप से सभी व्यक्ति समान हैं,
हम सबका निर्माण एक ही विश्वकर्मा ने एक ही मिट्टी से किया है। हम चाहे अपने को कितना
ही धोखा दें, ईश्वर को निर्धन, किसान और शक्तिशाली राजकुमार सभी समान रूप से प्रिय
हैं।”
आधुनिक
युग में प्राकृतिक समानता को कोरी कल्पना माना जाता है। कोल के अनुसार, “मनुष्य शारीरिक
बल, पराक्रम, मानसिक योग्यता, सृजनात्मक शक्ति, समाज-सेवा की भावना और सम्भवतः सबसे
अधिक कल्पना-शक्ति में एक-दूसरे से मूलतः भिन्न हैं।” संक्षेप में, वर्तमान युग में
प्राकृतिक समानता का आशय यह है कि प्राकृतिक रूप से नैतिक आधार पर ही सभी व्यक्ति समान
हैं तथा समाज में व्याप्त विभिन्न प्रकार की असमानताएँ कृत्रिम हैं।
2.
सामाजिक समानता- सामाजिक समानता का अर्थ यह है कि प्रत्येक
व्यक्ति को समाज में
समान
अधिकार प्राप्त हों और सबको समान सुविधाएँ मिलें। जिस समाज में जन्म, जाति, धर्म, लिंग
इत्यादि के आधार पर भेदभाव नहीं किया जाता, वहाँ सामाजिक समानता होती है। संयुक्त राष्ट्र
संघ के द्वारा जो मानव-अधिकारों की घोषणा की गयी है, उसमें सामाजिक समानता पर विशेष
बल दिया गया है।
3.
नागरिक या कानूनी समानता– नागरिक समानता का अर्थ नागरिकता के समान
अधिकारों से होता है। नागरिक समानता के लिए यह आवश्यक है कि सब नागरिकों के मूलाधिकार
सुरक्षित हों तथा सभी नागरिकों को समान रूप से कानून का संरक्षण प्राप्त हो। नागरिक
समानता की पहली अनिवार्यता यह है कि समस्त नागरिक कानून के समक्ष समान हों। यदि कानून
धन, पद, जाति अथवा अन्य किसी आधार पर भेद करता है तो उससे नागरिक समानता समाप्त हो
जाती है और नागरिकों में असमानता का उदय होता है।
4.
राजनीतिक समानता- जब राज्य के सभी नागरिकों को शासन में भाग
लेने का समान अधिकार प्राप्त हो तो वहाँ के लोगों को राजनीतिक समानता प्राप्त रहती
है। राजनीतिक समानता के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को मत देने, निर्वाचन में खड़े होने
तथा सरकारी नौकरी प्राप्त करने का समान अधिकार होता है। उनके साथ जाति, धर्म या अन्य
किसी आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जाता। राजनीतिक समानता लोकतन्त्र की आधारशिला होती
है।
5.
धार्मिक समानता- धार्मिक समानता का अर्थ यह है कि धार्मिक मामलों
में राज्य तटस्थ हो और सब नागरिकों को अपनी इच्छा से धर्म मानने की स्वतन्त्रता हो।
राज्य धर्म के आधार पर | किसी प्रकार का भेदभाव न करे। प्राचीन और मध्यकाल में इस प्रकार
की धार्मिक समानता का
अभाव
था, परन्तु आज धर्म और राजनीति एक-दूसरे से अलग हो गये हैं और सामान्यत: राज्य नागरिकों
के धार्मिक जीवन में हस्तक्षेप नहीं करता।
6.
आर्थिक समानता- आर्थिक समानता का अभिप्राय यह है कि समाज में
धन के वितरण की उचित व्यवस्था हो तथा मनुष्यों की आय में बहुत अधिक असमानता नहीं होनी
चाहिए। लॉस्की के अनुसार, “आर्थिक समानता का अभिप्राय यह है कि राज्य में सभी को समान
सुविधाएँ तथा अवसर प्राप्त हों।” इस सन्दर्भ में लॉर्ड ब्राइस का मत है कि “समाज से
सम्पत्ति के सभी भेदभाव समाप्त कर दिये जाएँ तथा प्रत्येक स्त्री-पुरुष को भौतिक साधनों
एवं सुविधाओं का समान भाग दिया जाए।”
संक्षेप
में, आर्थिक समानता से सम्बन्धित प्रमुख बातें इस प्रकार हैं—
(i)
समाज में सभी को समान रूप से व्यवसाय चुनने की स्वतन्त्रता हो।
(ii)
प्रत्येक मनुष्य को इतना वेतन या पारिश्रमिक अवश्य प्राप्त हो कि वह अपनी न्यूनतम आर्थिक
आवश्यकताओं की पूर्ति कर सके।
(iii)
राज्य में उत्पादन और उपभोग के साधनों का वितरण और विभाजन इस प्रकार से हो कि
आर्थिक
शक्ति कुछ ही व्यक्तियों या वर्गों के हाथों में केन्द्रित न हो सके। सी० ई० एम० जोड
के अनुसार, “स्वतन्त्रता का विचार, जो राजनीतिक विचारधारा में बहुत महत्त्वपूर्ण है,
जब आर्थिक क्षेत्र में लागू किया गया तो उससे विनाशकारी परिणाम निकले, जिसके फलस्वरूप
समाजवादी और साम्यवादी विचारधाराओं का उदय हुआ, जो आर्थिक समानता पर विशेष बल देती
हैं और जिनकी यह निश्चित धारणा है कि आर्थिक समानता के अभाव में वास्तविक राजनीतिक
स्वतन्त्रता कदापि प्राप्त नहीं हो सकती।” वास्तविकता यह है कि आर्थिक समानता सभी प्रकार
की स्वतन्त्रताओं का आधार है और आर्थिक समानता के बिना राजनीत्रिक स्वतन्त्रता केवल
एक भ्रम है। प्रो० जोड के अनुसार, “आर्थिक समानता के बिना राजनीतिक स्वतन्त्रता एक
भ्रम है।’ |
(iv)
सुदृढ़ राजनीतिक एवं नागरिक समानता की कल्पना अपेक्षित आर्थिक समानता की पृष्ठभूमि
पर ही की जा सकती है।
7.
शैक्षिक एवं सांस्कृतिक समानता- शैक्षिक समानता का अभिप्राय
यह है कि प्रत्येक व्यक्ति को शिक्षा प्राप्त करने तथा अन्य योग्यताएँ विकसित करने
का समान अवसर मिलना चाहिए और शिक्षा के क्षेत्र में जाति, धर्म, वर्ण और लिंग के आधार
पर कोई भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए। समानता का तात्पर्य यह है कि सांस्कृतिक दृष्टि
से बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक सभी वर्गों को अपनी भाषा, लिपि और संस्कृति बनाये रखने
का अधिकार होना चाहिए। इसका महत्त्व इसी बात से सिद्ध हो जाता है कि इसे भारतीय संविधान
में मूल अधिकारों के अन्तर्गत रखा जाता है। ‘
8.
नैतिक समानता- इस समानता के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को अपने
चरित्र का विकास करने के लिए अन्य व्यक्तियों के समान अधिकार प्राप्त होने चाहिए।
9.
राष्ट्रीय समानता- प्रत्येक राष्ट्र समान है, चाहे कोई राष्ट्र
छोटा हो या बड़ा। इसलिए प्रत्येक राष्ट को विकास करने के समान अधिकार प्राप्त होने
चाहिए।
प्रश्न 5. समानता से आप क्या समझते हैं? क्या समानता और स्वतन्त्रता
एक-दूसरे के पूरक हैं?
Ø स्वतन्त्रता एवं समानता का
सम्बन्ध स्पष्ट कीजिए।
Ø “स्वतन्त्रता की समस्या का
केवल एक ही हल है और वह हल समानता में निहित है।” इस कथन की विवेचना कीजिए।
Ø समानता को परिभाषित कीजिए तथा
स्वतन्त्रता के साथ इसके सम्बन्ध की व्याख्या कीजिए।
उत्तर
: समानता का अर्थ
साधारण
रूप से समानता का अर्थ यह लगाया जाता है कि सभी व्यक्तियों को ईश्वर ने बनाया है; अतः
सभी समान हैं और इसी कारण सभी को समान सुविधाएँ व आय का समान अधिकार होना चाहिए। इस
प्रकार का मत व्यक्त करने वाले व्यक्ति प्राकृतिक समानती में विश्वास व्यक्त करते हैं,
किन्तु यह विचार भ्रमपूर्ण है, क्योंकि प्रकृति ने ही मनुष्यों को बुद्धि, बल तथा प्रतिभा
के आधार पर समान नहीं बनाया है। अप्पादोराय के शब्दों में, “यह स्वीकार करना कि सभी
मनुष्य समान हैं, उतना ही भ्रमपूर्ण है जितना कि यह कहना कि भूमण्डल समतल है।”
मनुष्यों
में असमानता के दो कारण हैं—प्रथम, प्राकृतिक और द्वितीय, सामाजिक या समाज द्वारा उत्पन्न।
अनेक बार यह देखने में आता है कि प्राकृतिक रूप से समान होते हुए भी व्यक्ति असमान
हो जाते हैं, क्योंकि आर्थिक समानता के अभाव में सभी को अपने व्यक्तित्व का विकास करने
के समान अवसर उपलब्ध नहीं हो पाते। इस प्रकार समाज द्वारा उत्पन्न परिस्थितियाँ मनुष्य
के बीच असमानता उत्पन्न कर देती हैं।
नागरिकशास्त्र
की अवधारणा के रूप में समानता से हमारा तात्पर्य समाज द्वारा उत्पन्न इस असमानता का
अन्त करने से होता है। दूसरे शब्दों में, समानता का तात्पर्य अवसर की समानता से है।
सभी व्यक्तियों को अपने विकास के लिए समान सुविधाएँ व समान अवसर प्राप्त हों, ताकि
किसी भी व्यक्ति को यह कहने का अवसर न मिले कि यदि उसे यथेष्ट सुविधाएँ प्राप्त होतीं
तो वह अपने जीवन का विकास कर सकता था। इस प्रकार समाज में जाति, धर्म व भाषा के आधार
पर व्यक्तियों में किसी प्रकार का भेद न किया जाना अथवा इन आधारों पर उत्पन्न विषमता
का अन्त करना ही ‘समानता है। समानता की परिभाषा व्यक्त करते हुए लास्की ने लिखा है
कि “समानता मूल रूप से समतल करने की प्रक्रिया है। इसीलिए समानता का प्रथम अर्थ विशेषाधिकारों
का अभाव और द्वितीय अर्थ अवसरों की समानता से है।”
समानता
के दो पक्ष :
(1)
नकारात्मक तथा
(2)
सकारात्मक।
नकारात्मक
पक्ष
से तात्पर्य है कि सामाजिक क्षेत्र में किसी के साथ किसी प्रकार का भेदभाव न हो तथा
सकारात्मक पक्ष का अर्थ है कि प्रत्येक व्यक्ति को अपने अधिकाधिक विकास के लिए समान
अवसर प्राप्त हों। उदाहरणार्थ-शिक्षा की आवश्यकता सबके लिए होती है; अतः राज्य का यह
कर्तव्य है कि वह अपने सब नागरिकों को शिक्षा प्राप्त करने का समान अवसर प्रदान करे।
समानता
के विविध रूप
समानता
के विविध रूपों में नागरिक समानता, सामाजिक समानता, राजनीतिक समानता, आर्थिक समानता,
प्राकृतिक समानता, धार्मिक समानता एवं सांस्कृतिक और शिक्षा सम्बन्धी समानता प्रमुख
हैं।
स्वतन्त्रता
और समानता का सम्बन्ध
स्वतन्त्रता
और समानता के पारस्परिक सम्बन्ध के विषय पर राजनीतिशास्त्रियों में पर्याप्त मतभेद
हैं। और इस सम्बन्ध में प्रमुख रूप से दो विचारधाराओं का प्रतिपादन किया गया है, जो
इस प्रकार हैं
1.
स्वतन्त्रता और समानता परस्पर विरोधी हैं— कुछ व्यक्तियों द्वारा स्वतन्त्रता
और समानता के जन-प्रचलित अर्थों के आधार पर इन्हें परस्पर विरोधी बताया गया है। उनके
अनुसार स्वतन्त्रता अपनी इच्छानुसार कार्य करने की शक्ति का नाम है, जब कि समानता का
तात्पर्य प्रत्येक प्रकार से सभी व्यक्तियों को समान समझने से है। इस आधार पर सामान्य
व्यक्ति ही नहीं, वरन् डी० टॉकविले और एक्टन जैसे विद्वानों द्वारा भी इन्हें परस्पर
विरोधी माना गया है। लॉर्ड एक्टन ‘एक स्थान पर लिखते हैं कि “समानता की उत्कृष्ट अभिलाषा
के कारण स्वतन्त्रता की आशा ही व्यर्थ हो गयी है।”
2.
स्वतन्त्रता और समानता परस्पर पूरक हैं— उपर्युक्त प्रकार की विचारधारा
के नितान्त विपरीत दूसरी ओर विद्वानों का बड़ा समूह है, जो स्वतन्त्रता और समानता को
परस्पर विरोधी नहीं, वरन्। पूरक मानते हैं। रूसो, टॉनी, लॉस्की और मैकाइवर इस मत के
प्रमुख समर्थक हैं और अपने मत की पुष्टि में इन विद्वानों ने निम्नलिखित तर्क दिये
हैंस्वतन्त्रता और समानता को परस्पर विरोधी बताने वाले विद्वानों द्वारा स्वतन्त्रता
और समानता की गलत धारणा को अपनाया गया है।
स्वतन्त्रता
का तात्पर्य प्रतिबन्धों के अभाव’ या स्वच्छन्दता से नहीं है, वरन् इसका तात्पर्य केवल
यह है कि अनुचित प्रतिबन्धों के स्थान पर उचित प्रतिबन्धों की व्यवस्था की जानी चाहिए
और उन्हें अधिकतम सुविधाएँ प्रदान की जानी चाहिए, जिससे उनके द्वारा अपने व्यक्तित्व
का विकास किया जा सके। इसी प्रकार पूर्ण समानता एक काल्पनिक वस्तु है और समानता का
तात्पर्य पूर्ण समानता जैसी किसी काल्पनिक वस्तु से नहीं, वरन् व्यक्तित्व के विकास
हेतु आवश्यक और पर्याप्त सुविधाओं से है, जिससे सभी व्यक्ति अपने व्यक्तित्व का विकास
कर सकें और इस प्रकार उसे असमानता का अन्त हो सके, जिसका मूल कारण सामाजिक परिस्थितियों
का भेद है। इस प्रकार स्वतन्त्रता और समानता दोनों ही व्यक्तित्व के विकास हेतु नितान्त
आवश्यक हैं।
प्रश्न 6. नारीवाद’ पर लघु निबन्ध लिखिए।
उत्तर
: नारीवाद स्त्री-पुरुष के समान अधिकारों का पक्ष लेने वाला राजनीतिक सिद्धान्त है।
वे स्त्री व पुरुष नारीवादी कहलाते हैं, जो मानते हैं कि स्त्री-पुरुष के बीच की अनेक
असमानताएँ न तो नैसर्गिक हैं और न ही आवश्यक। नारीवादियों का मानना है कि इन असमानताओं
को बदला जा सकता है और स्त्री-पुरुष एक सम्पूर्ण जीवन व्यतीत कर सकते हैं।
नारीवाद
के अनुसार, स्त्री-पुरुष असमानता ‘पितृसत्ता’ से आशय एक ऐसी सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक
व्यवस्था से है जिसमें पुरुष को स्त्री से अधिक महत्त्व और शक्ति दी जाती है। पितृसत्ता
इस मान्यता पर आधारित है कि पुरुष और स्त्री प्रकृति से भिन्न हैं और यही भिन्नता समाज
में उनकी असमान स्थिति को न्यायोचित ठहराती है। नारीवादी इस दृष्टिकोण को सन्देह की
दृष्टि से देखते हैं। इसके लिए वे स्त्री-पुरुष के जैविक विभेद और स्त्री-पुरुष के
बीच सामाजिक भूमिकाओं के विभेद के बीच अन्तर करने का आग्रह करते हैं। जैविक या लिंग
भेद प्राकृतिक और जन्मजात होता है, जबकि लैंगिकता समाजजनित है। इसे दूसरे शब्दों में
इस प्रकार भी समझा जा सकता है कि मनुष्य का नर या मादा के रूप में जन्म होता है, लेकिन
स्त्री या पुरुष को जिन सामाजिक भूमिकाओं में हम देखते हैं उन्हें समाज गढ़ता है। उदाहरण
के लिए, यह जीव-विज्ञान का एक तथ्य है कि केवल स्त्री ही गर्भधारण करके बालक को जन्म
दे सकती है, लेकिन जीव-विज्ञान के तथ्य में निहित नहीं है कि जन्म देने के बाद केवल
स्त्री ही बालक का लालन-पालन करे। नारीवादियों ने यह स्पष्ट किया है कि स्त्री-पुरुष
असमानता का अधिकांश भाग प्रकृति ने नहीं समाज ने पैदा किया है।
‘पितृसत्ता’
ने श्रम का कुछ ऐसा विभाजन किया है जिसमें स्त्री ‘निजी’ और ‘घरेलू’ किस्म के कार्यों
के लिए जिम्मेदार है जबकि पुरुष की जिम्मेदारी सार्वजनिक’ और ‘बाहरी दुनिया में है।
नारीवादी इस विभेद पर भी सवाल खड़े करते हैं। उनका कहना है कि अधिकतर महिलाएँ घर से
बाहर अनेक क्षेत्रों में कार्यरत हैं। लेकिन घरेलू कामकाज की पूरी जिम्मेदारी केवल
स्त्रियों के कन्धों पर है। नारीवादी इसे स्त्रियों के कन्धे पर दोहरा बोझ’ बताते हैं।
हालाँकि इस दोहरे बोझ के बावजूद स्त्रियों को सार्वजनिक क्षेत्र के निर्णयों में ना
के बराबर महत्त्व दिया जाता है।
नारीवादियों का मानना है कि निजी/सार्वजनिक के बीच यह विभेद और समाज या व्यक्ति द्वारा गढ़ी हुई लैगिक असमानता के सभी रूपों को मिटाया जा सकता है और मिटाया भी जाना चाहिए।