पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1. सातवीं शताब्दी के आरंभिक दशकों में बेदुहनों के जीवन की
क्या विशेषताएँ थीं?
उत्तर:
सातवीं शताब्दी के आरंभिक दशकों में बेदुइने खजूर आदि खाद्य पदार्थों तथा अपने ऊँटों
के लिए चारे की तलाश में घूमते रहते थे। ये प्रायः मरुस्थल के सूखे क्षेत्रों से
हरे-भरे क्षेत्रों की ओर जाते रहते थे।
प्रश्न 2. ‘अब्बासी क्रांति’ से आपका क्या
तात्पर्य है?
उत्तर:
उमय्यदों के विरुद्ध ‘दावा’ नामक एक सुसंगठित आंदोलन हुआ। फलस्वरूप उनका पतन हो
गया। सन् 1750 में उनके स्थान पर मक्काई मूल के अन्य परिवार, अब्बसिदों को स्थापित
कर दिया गया। वस्तुतः अब्बासिदों ने उमय्यद शासन की जमकर आलोचना की और पैगम्बर
द्वारा स्थापित मूल इस्लाम को फिर से बहाल करने का वायदा किया। इस क्रांति से
राजवंश में परिवर्तन के साथ राजनीतिक ढाँचे और इस्लाम की ढाँचे में भारी परिवर्तन
हुए।
प्रश्न 3. अरबों, इरानियों व तुर्कों द्वारा स्थापित राज्यों की
बहुसंस्कृतियों के उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
- अरब साम्राज्यों में
मुस्लिम, ईसाई तथा यहूदी संस्कृतियों के लोग रहते थे।
- ईरानी साम्राज्यों में
मुस्लिम तथा एशियाई संस्कृतियों का विकास हुआ।
- तुर्की साम्राज्य में
मिस्री, ईरानी, सीरियाई तथा भारतीय संस्कृतियों का विकास हुआ।
प्रश्न 4. यूरोप व एशिया पर धर्मयूद्धों का क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
क्रूसेड या धर्मयुद्ध का यूरोप और एशिया पर गहरा प्रभाव पड़ा जो निम्नलिखित है –
- मुस्लिम राज्यों ने
अपने ईसाई प्रजाजनों के प्रति कठोर व्यवहार अपनाया। विशेष रूप से यह स्थिति
लड़ाड़ियों में देखी गयी।
- फलस्वरूप ईसाइयों ने
अपने आबादी वाले क्षेत्रों की सुरक्षा का प्रबन्ध किया।
- मुस्लिम सत्ता की
बहाली के बाद भी पूर्व और पश्चिम के बीच व्यापार में इटली के व्यापारिक
समुदायों (पीसा, जेनेवा और वीनस का अधिक प्रभाव था)।
प्रश्न 5. रोमन साम्राज्य के वास्तुकलात्मक रूपों से इस्लामी
वास्तुकलात्मक रूप कैसे भिन्न थे?
उत्तर:
रोमन वास्तुकला-रोम के निवासी कुशल निर्माता थे। उन्होंने वास्तुकला में डाट और
गुंबद बनाकर दो महत्वपूर्ण सुधर किए। उनके भवन दो-तीन मंजिलों वाले होते थे। इनमें
डाटों को एक के ऊपर बनाया जाता था। उनकी डार्ट गोल होती थीं। ये डाटें नगर के
द्वारों, पुलों, बड़े भवनों तथा विजय स्मारक बनाने में प्रयोग की जाती थीं । डाटों
का प्रयोग कोलेजियम बनाने में किया गया। यहाँ ग्लेडिएटरों की प्रतियोगिताएं आयोजित
की जाती थीं। ये डाटें नहर बनाने में भी काम में लाई जाती थीं।
इस्लामी
वास्तुकला-इस्लामी वास्तुकला पर ईरानी कला का प्रभाव था। परंतु अरब निवासियों ने
अलंकरण के मौलिक नमूने निकाल लिए । उनके भवनों में गोल गुबंद, छोटी मीनारें,
घोड़ों के खुर के आकार के महराब तथा मरोड़दार स्तंभ होते थे। इस्लामी वास्तुकला की
विशेषताएँ अरबों की मस्जिदों, पुस्तकलयों, महलों, चिकित्सालयों और विद्यालयों में
देखी जा सकती हैं।
प्रश्न 6. रास्ते पर पड़ने वाले नगरों का उल्लेख करते हुए समरकंद
से दमिश्क तक की यात्रा का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
समरंकद इस्लामी राज्य के उत्तर:पूर्व में स्थित था, जबकि दमिश्क (सीरिया) मध्य में
स्थित था। समरकंद से दमिश्क जोन के लिए यात्री को मर्व, निशापुर समारा आदि नगरों
से गुजरना पड़ता था।
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1. ‘कुरान’ शब्द किससे बना है?
उत्तर:
‘कुरान’
शब्द ‘इकरा’ से बना है जिसका अर्थ हैं-पाठ करो। ‘इकरा’ शब्द सबसे पहले महादृव जिवरील
ने पुकारा था। वह पैगम्बर मोहम्द के लिए संदेश लाया करते थे।
प्रश्न 2. मक्का शहर क्यों विख्यात था?
उत्तर:
- मक्का शहर अपनी
पवित्र स्थान ‘काबा’ के लिए विख्यात था।
- यह यमना और सोरिया के
बीच व्यापार-मार्गी एक चौराहे पर स्थित था। इसलिए भी इसे महत्त्वपूर्ण माना
जाता था।
प्रश्न 3. पैगंबर मुहम्मद ने अपने आपको खुदा का संदेशवाहक कब घोषित
किया? उन्होंने लोगों को कौन-सी दो बातें बनाई?
उत्तर:
पैगंबर मुहम्मद ने लगभग 612 ई० में अपने आपको खुदा का संदेशावाहक घोषित किया।
उन्होंने लोगों को निम्नलिखित दो बातें बताई –
- केवल अल्लाह की ही
पूजा की जानी चाहिए।
- उन्हें एक ऐसे समाज
की स्थापना करनी है जिसमें अल्लाह के बंदे सामान्य धार्मिक विश्वासों द्वारा
आपस में जुड़े हो।
प्रश्न 4. पैगंबर मुहम्मद के धर्म-सिद्धांत को स्वीकार करने वाले
लोग क्या कहलाए? उन्हें किन दो बातों का आश्वासन दिया जाता था?
उत्तर:
पैगंबर मुहम्मद के धर्म-सिद्धांत को स्वीकार करने वाले लोग मुसलमान कहलाए। उन्हें
कयामत के दिन मुक्ति और धरती पर रहते हुए समाज के संसाधनों में हिस्सा देने का
आवश्वासन दिया जाता था।
प्रश्न 5. मक्का में मुसलमानों को किन लोगों के विरोध का सामना
करना पड़ा और क्यों?
उत्तर:
मुसलकानों को समृद्ध लोगों के विरोध का सामना करना पड़ा। उन्हें अपने देवी-देवताओं
का ठुकराया जाना बुरा लगा था। इसके अतिरिक्त वे नए धर्म को मक्का की प्रतिष्ठा और
समृद्धि के लिए खतरा मानते थे।
प्रश्न 6. ‘हिजरा’ से क्या अभिप्राय है?
इस्लाम के इतिहास में इसका क्या महत्त्व है?
उत्तर:
मक्का में समृद्ध लोगों के विरोध के कारण 522 ई० में पैगंबर मुहम्मद की अपने
अनुयायियों के साथ मक्का छोड़कर मदीना जाना पड़ा । मुहम्मद साहिब की इस यात्रा को
हिजरा कहते है। वह जिस वर्ष मदीना पहुँचे उसी वर्ष से हिजरी सन् (मुस्लिम कैलेंडर)
की शुरुआत हुई।
प्रश्न 7. किसी धर्म के जीवित रहने के लिए क्या शर्ते होती हैं?
उत्तर:
किसी धर्म का जीवित रहना उस पर विश्वास करने वाले लोगों के जीवित रहने पर निर्भर
करता है। इस लोगों को आंतरिक रूप से मजबूत बनाना था उन्हें बाहरी खतरों से बचाना
भी आवश्यक होता हैं। इसके लिए राज्य और सरकार जैसी संस्थाओं की आवश्यकता होती है।
प्रश्न 8. खिलाफत की संस्था का का निर्माण कैसे हुआ?
उत्तर:
632
ई० में मुहम्मद साहिब के देहांत के बाद उनका कोई वैध उत्तराधिकारी नहीं रहा था। उत्तराधिकार
का कोई निश्चित नियम भी नहीं था। इस्लामी राजसत्ता उम्मा को सौंप दी गई। इस प्रकार
खिलाफत की संस्था का निर्माण हुआ ।
प्रश्न 9. इस्लामी क्षेत्रों में 600-1200 ई० के इतिहास के कोई चार
स्रोत बताइए।
उत्तर:
- इतिवृत
- पैगंबर के कथनों के
अभिलेख
- कुरान की टीकाएँ
- जीवन चरित्र
प्रश्न 10. पैगंबर मुहम्मद कौन थे?
उत्तर:
पैगंबर एक सौदागर थे जिनका संबंध मक्का (अरब) में रहने वाले कुरैशा कबीले से था।
उन्होंने इस्लाम धर्म की स्थापना की थी।
प्रश्न 11. अरब कबीले के संगठन की जानकारी दीजिए।
उत्तर:
अरब कबील वंशों से बना होता था अथवा बड़े परिवार का एक समूह होता था। प्रत्येक
कबीले का नेतृत्व एक शेख द्वारा किया जाता था जिसका चुनाव मुख्यतः व्यक्तिगत साहस,
बुद्धिमता तथा उदारता के आवास पर किया जाता था।
प्रश्न 12. खलीफाओं ने नये शहरों की स्थापना किस उद्देश्य से की?
उनके द्वारा स्थापित चार फौजी शहरों के नाम बताइए।
उत्तर:
खलीफाओं ने नये शहरों की स्थापना मुख्य रूप से उन अरब सैनिकों को बसाने के लिए की
जो स्थानीय प्रशासन की रीढ़ थे। उनके द्वारा स्थापित चार फौजी शहर थे-(i) इराक में
कुफा तथा बसरा और मिस्र में फुस्तात तथा काहिरा।
प्रश्न 13. इस्लाम धर्म का मूल क्या है?
उत्तर:
एक ही ईश्वर अर्थात् अल्लाह की पूजा करना।
प्रश्न 14. ‘काबा’ क्या था।
उत्तर:
‘काबा’
मक्का में स्थित एक घनाकार ढाँचा था। यह मक्का का मुख्य पवित्र स्थल था। मक्का के बाहर
के कबीले भी काबा का पवित्र मानते थे और हर वर्ष यहाँ की धार्मिक यात्रा (हज) करते
थे।
प्रश्न 15. उमर-खय्याम कौन था?
उत्तर:
उमर खय्याम एक कवि, गणितज्ञ तथा खगोलशास्त्री था। उसने रूबाई को लोकप्रिय बनाया।
प्रश्न 16. अब्बासी कौन थे? उन्होंने अपने सत्ता प्राप्ति के
प्रयास को किस प्रकार वैध ठहराया?
उत्तर:
अब्बासी मुहम्मद के चाचा अब्बास के वंशज थे। उन्होंने विभिन्न अरब समूहों को यह
आवश्वासन दिया कि पैगंबर के परिवार का कोई मसीहा उन्हें उमय्यद वंश के दमनकारी
शासन से मुक्ति दिलवाएगा। इसी आवश्वासन द्वारा ही उन्होंने अपने सत्ता प्राप्ति के
प्रयास का वैध ठहराया।
प्रश्न 17. अब्बासी ने उमय्यन वंश की किन दो परम्पराओं को बनाए
रखा?
उत्तर:
- उन्होंने सरकार और
साम्राज्य के केंद्रीय स्वरूप को बनाए रखा।
- उन्होंने उमय्यदों की
शाही वास्तुकला तथा राजदरबार के व्यापक समारोहों की परंपरा को भी जारी रखा।
प्रश्न 18. नौवीं शताब्दी में अब्बासी राज्य के कमजोर हो जाने के
कोई दो कारण बताइए।
उत्तर:
- दूर के प्रांतों पर
बगदाद का नियंत्रण कम हो गया था।
- सेना तथा नौकरशाही
में अरब समर्थक तथा ईरान समर्थक गुटों के बीच झगड़ा हो गया था।
प्रश्न 19. बगदाद के बुवाही शासकों के दो कार्य बताएँ।
उत्तर:
- बुवाही शासकों ने
विभिन्न उपाधियाँ धारण की इनमें से एक उपाधि ‘शहंशाह’ की थी।
- उन्होंने शिया
प्रशासकों, कवियों तथा विद्वानों को आश्रय प्रदान किया।
प्रश्न 20. फातिमी कौन थे? वे स्वयं को इस्लाम का एकमात्र
न्यायसंगत शासक क्यों मानते थे?
उत्तर:
फातिमी का संबंध शिया संप्रदाय के एक उपसंप्रदाय इस्लामी से था। उनका दावा था कि
वे पैगंबर की बेटी फातिमा के वंशज है। इसलिए वे इस्लाम के एकमात्र न्याय-संगत शासक
हैं।
प्रश्न 21. उपय्यद वंश के अब्द-अल मलिक द्वारा अरब-इस्लामी पहचान
के विकास के लिए किए गए कोई दो कार्य बताएँ।
उत्तर:
- अब्द-अल-मलिक ने
इस्लामिक सिक्के चलाए जिन पर अरबी भाषा में लिखा गया।
- उसने जेरूसलम में
‘डीम ऑफ रॉक’ बनवाकर भी अरब-इस्लामी पहचान के विकास में योगदान दिया।
प्रश्न 22. तुर्क कौन थे? संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
तर्क लोग तुर्किस्तान के मध्य एशियाई घास के मैदानों के खानाबदेश कबाइली थे। वे
कशल सवार तथा योद्धा थे। वे गुलामों तथा सैनिकों के रूप में अब्बासी ससानी तथा
बवाही शासकों के अधीन कार्य करने लगे। अपनी सैनिक योग्यता तथा वफदारी के बल पर
उन्नति करके वें उच्च पदों पर पहुंच गए।
प्रश्न 23. खिलाफत संस्था के दो मुख्य उद्देश्य क्या थे?
उत्तर:
खिलाफत संस्था के दो मुख्य उद्देश्य थे –
- उम्मा के कबीलों पर
नियंत्रण बनाए रखना।
- राज्य के लिए संसाधन
जुटाना।
प्रश्न 24. बाइजेंटाइन तथा ससानी साम्राज्यों के विरुद्ध अरबों की
सफलता में योग देने वाले कारक कौन-कौन से थे ?
उत्तर:
- अरबों की सामरिक
नीति।
- अरबों का धार्मिक जोश
- विरोधियों की
कमजोरियाँ।
प्रश्न 25. तीसरे खलीफा उथमान की हत्या क्यों की गई?
उत्तर:
खलीफा उथमान एक कुरैश था। सत्ता पर अपना नियंत्रण बढ़ाने के लिए उसने प्रशासन में
कुरैश कबीले के लोगों को ही भर दिया इसलिए अन्य कबीले उसके विरुद्ध हो गए। और उसकी
हत्या कर दी गई।
प्रश्न 26. चौथे खलीफा ने कौन-कौन से दो युद्ध लड़े और उनका क्या
परिणाम निकला?
उत्तर:
- अली ने पहला युद्ध
मुहम्मद की पत्नी आयशा की सेना के विरुद्ध लड़ा। इसे ऊँट की लड़ाई’ कहा जाता
है। इस युद्ध में आयशा पराजित हुई।
- अली का दूसरा युद्ध
उत्तरी मेसोपोटामिया में सिफ्फिन में हुआ था। यह संधि के रूप में समाप्त हुआ
था।
प्रश्न 27. इस्लाम का दो मुख्य संप्रदायों में विभाजन क्यों हुआ?
ये संप्रदाय कौन-कौन से थे?
उत्तर:
खलीफा अली ने अपने शासनकाल में मक्का के अभिजात वर्ग का प्रतिनिधित्व करने पाले
लोगों के विरुद्ध दो युद्ध लड़े। इससे मुसलमानों के बीच में दरार पड़ गई और इस्लाम
दो संप्रदायों में विभाजित हो गया। ये संप्रदाय थे-सुन्नी और शिया।
प्रश्न 28. खलीफा अली की हत्या कहाँ और किसने किया?
उत्तर:
खलीफा अली की हत्या एक खरजी ने कुफा की एक मस्जिद में की।
प्रश्न 29. उमय्यद वंश की स्थापना कब और किसने की? यह वंश कब तक
चलता रहा?
उत्तर:
उमय्यद वंश की स्थापना 661 ई. में मुआविया ने की। यह वंश 750 ई. तक चलता रहा।
प्रश्न 30. जेरूसलम में डोम ऑफ रॉक किसने बनाया? इसका क्या महत्त्व
है?
उत्तर:
जेरूसलम में डोम ऑफ रॉक अब्द अल-मलिक ने बनवाया । यह इस्लामी वास्तुकला का पहला
बड़ा नमूना है। इसका एक रहस्यमय महत्त्व भी है। वह यह कि यह स्मारक पैगंबर मुहम्मद
की स्वर्ग की ओर रात्रि यात्रा से जुड़ा है।
प्रश्न 31. चौथी शताब्दी में किन दो कारणों से लाल सागर मार्ग का
महत्व बढ़ा?
उत्तर:
- काहिरा का व्यापार
शक्ति के रूप में उभरना।
- इटली के व्यापारिक
शहरों से पूर्वी वस्तुओं की बढ़ती हुई माँग।
प्रश्न 32. समरकंद में कागज के निर्माण में किस घटना ने सहायता
पहुँचाई?
उत्तर:
751
ई. में समरकंद के मुस्लिम प्रशासक ने 20,000 चीनी आक्रमणकारियों को बंदी बना लिया।
इनमें से कुछ आक्रमणकारी कागज बनाने में बहुत निपुण थे और इसी घटना ने समरकंद में कागज
के निर्माण में सहायता पहुँचाई।
प्रश्न 33. वाणिज्यिक पत्रों के उपयोग से व्यापारियों को क्या लाभ
पहुँचा?
उत्तर:
- वाणिज्यिक पत्रों के
उपयोग से व्यापारियों को हर स्थान पर नकद धन ले जाने से मुक्ति मिल गई।
- इससे उनकी यात्राएँ
अधिक सुरक्षित हो गई।
प्रश्न 34. औपचारिक व्यापार प्रबंध ‘मुजार्बा’ क्या था?
उत्तर:
इस व्यापार प्रबंध में निष्क्रिय साझेदार कारोबार के लिए अपनी पूँजी देश-विदेश में
जाने वाले सक्रिय साझेदारों को सौंप देते थे। वे लाभ या हानि को किए गए निर्णय के
अनुसार आपस में बाँट लेते थे।
प्रश्न 35. इस्लाम में धन कमाने से जुड़े ब्याज संबंधी निषेध नियम
बताएँ। लोग इसका अनुचित लाभ कैसे उठाते थे?
उत्तर:
इस्लाम के अनुसार ब्याज की कमाई खाना मना है। परंतु लोग एक विशेष प्रकार के
सिक्कों में उधार लेकर उधार को अन्य प्रकार के सिक्कों में चुकाते थे। वे मुद्रा
विनिमय पर भी कमीशन खाते थे। ये बातें ब्याज का ही रूप थीं।
प्रश्न 36. अरब जगत् में 8वीं तथा 9वीं शताब्दी में कानून की चार
शाखाएँ कौन-सी थीं? इनमें से कौन-सी शाखा सबसे अधिक रूढ़िवादी थी?
उत्तर:
8वीं
तथा 9वीं शताब्दी में अरब जगत् में कानून की चार शाखाएँ थीं-मलिकी, हनफी, शफीई और इनबली।
इनमें से इनबली सबसे अधिक रूढ़िवादी थी।
प्रश्न 37. सूफी मत के दो सिद्धांत लिखिए।
उत्तर:
- संसार का त्याग करना।
- केवल खुदा पर ही
भरोसा।
प्रश्न 38. सूफी मत के सर्वेश्वरवाद का क्या अर्थ हैं।
उत्तर:
सूफी मत का सर्वेश्वरवाद ईश्वर तथा उसकी सृष्टि से एक होने का विचार है। इससे
अभिप्राय यह है कि मनुष्य की आत्मा को परमात्मा से मिलाना चाहिए।
प्रश्न 39. इनसिना (980-1037) कौन था?
उत्तर:
इनसिना एक चिकित्सक तथा दार्शनिक था। वह इस बात पर विश्वास नहीं रखता था कि कयामत
के दिन व्यक्ति फिर से जिंदा हो जाता है।
प्रश्न 40. सलजुक तुर्कों की पहली राजधानी निशापुर का क्या महत्त्व
था?
उत्तर:
निशापुर शिक्षा का एक महत्वपूर्ण फारसी-इस्लामी केंद्र था। इसके अतिरिक्त यह उमर
खय्याम का जन्म स्थान था।
प्रश्न 41. तुगरिल बेग कौन था?
उत्तर:
तुगरिल बेग एक सलजुक तुर्क था। अपने भाई के साथ 1037 ई. में खुरासान को जीत लिया
और निशापुर को अपनी पहली राजधानी बनाया। 1055 ई. में उन्होंने बगदाद पर भी अधिकार
कर लिया।
प्रश्न 42. धर्म-युद्ध क्या थे?
उत्तर:
पश्चिमी यूरोप के ईसाइयों ने मुसलमानों से अपने धर्म स्थल मुक्त कराने के लिए उनके
साथ अनेक युद्ध किए। इन युद्धों को धर्म-युद्ध का नाम दिया गया है।
प्रश्न 43. प्रथम धर्म-युद्ध की संक्षिप्त जानकारी दीजिए।
उत्तर:
प्रथम धर्म – युद्ध (1098-1099) में फ्रांस तथा इटली के सैनिकों ने एंटीओक तथा
जेरूसलतम पर अधिकार कर लिया। इस विजय के लिए उन्होंने मुसलमानों तथा यहूदियों की
निर्मम हत्या कौं।
प्रश्न 44. मध्यकाल में इस्लामी समाज का ईसाइयों के प्रति क्या
दृष्टिकोण था?
उत्तर:
मध्यकाल में इस्लामी समाज ईसाइयों को पुस्तक वाले लोग कहते थे, क्योंकि उनके पास
अपना धर्म ग्रंथ ‘इंजील’ (न्यू टेस्टामेंट) होता था। वे मुस्लिम राज्यों में आने
वाले ईसाइयों को रक्षा प्रदान करते थे।
प्रश्न 45. धर्म-युद्धों ने ईसाई-मुस्लिम संबंध पर क्या प्रभाव
डाला? अथवा, यूरोप व एशिया पर धर्म-युद्धों का क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
- मुस्लिम राज्यों ने
अपनी ईसाई प्रजा के प्रति कठोर नीति अपनानी आरंभ कर दी।
- पूर्व तथा पश्चिम के
बीच होने वाले व्यापार में इटली के व्यापारिक समुदायों का प्रभाव बढ़ गया।
प्रश्न 46. फ्रैंक कौन थे? उनका अपने अधीन किए गए मुसलमानों के
प्रति कैसा व्यवहार था?
उत्तर:
फ्रैंक धर्म-युद्धों में विजय पाने वाले पश्चिमी देशों के नागरिक थे। इनमें से कुछ
सीरिया तथा फिलिस्तीन में बस गए थे। ये लोग मुसलमानों के प्रति सहनशील थे।
प्रश्न 47. खलीफाओं ने धर्मांतरण के कारण राजस्व में आई कमी को
पूरा करने के लिए क्या दो कदम उठाए?
उत्तर:
- उन्होंने
धर्म-परिवर्तन को निरुत्साहित किया।
- बाद में उन्होंने कर
लगाने की एक समान नीति अपनाई।
प्रश्न 48. रूबाई क्या होती है?
उत्तर:
रूबाई चार पंक्तियों वाला छंद होता है। इसमें पहली दो पंक्तियाँ भूमिका बाँधती
हैं। तीसरी पंक्ति बढ़िया तरीके से सधी होती है। चौथी पंक्ति मुख्य बात को
प्रस्तुत करती है।
प्रश्न 49. उमय्यद शासकों द्वारा बनवाए गए मरुस्थलीय महल किस काम
आते थे?
उत्तर:
ये महल विलासपूर्ण निवास स्थानों के काम आते थे। इसके अतिरिक्त इनका प्रयोग शिकार
तथा मनोरंजन के लिए विश्राम स्थलों के रूप में किया जाता था।
प्रश्न 50. किसी मस्जिद के बड़े कमरे की दो महत्वपूर्ण विशेषताएं
कौन-कौन सी होती हैं?
उत्तर:
- दीवार में एक मेहराब
जो मक्का की दिशा का संकेत देती है।
- एक मंच जहाँ से
शुक्रवार को दोपहर की नवाज के समय प्रवचन दिए जाते हैं।
प्रश्न 51. महमूद गजनबी के दरबारी कवि फिरदौसी द्वारा रचित
‘शाहनामा’ की दो विशेषताएँ बताएँ।
उत्तर:
फिरदौसी द्वारा रचित शाहनामा इस्लामी साहित्य की एक श्रेष्ठ कृति मानी जती है।
- इस पुस्तक में 50,000
पद हैं।
- यह पुस्तक परंपराओं
तथा आख्यानों का संग्रह है। इनमें से सबसे लोकप्रिय आख्यान रूस्तम को है।
लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1. 950 से 1200 ई. के बीच इस्लामी
समाज की एकजुटता में किन तत्वों का योगदान था?
उत्तर:
सन् 950 से 1200 के बीच इस्लामी समाज सामान्य आर्थिक और सांस्कृतिक प्रवृत्तियों
के कारण एकजुट बना रहा।
- इस एकता को बनाए रखने
के लिए राज्य को समाज से अलग माना गया।
- उच्च इस्लामी संस्कृति
की भाषा के रूप में फारसी का विकास किया गया।
- इस एकता के निर्माण
में बौद्धिक परंपराओं के बीच संवाद की परपिक्वता का भी योगदान था।
विद्वान,
कलाकार और व्यापारी इस्लामी दुनिया के भीतर स्वतंत्र रूप से आते जाते रहते थे। इस
प्रकार इस्लामी समाज के बीच विचारों तथा तौर-तरीकों का आदान-प्रदान होता रहता था।
परिणामस्वरूप मुसलमानों की जनसंख्या जो उमय्यद काल और प्रारंभिक अब्बासी काल में
10 प्रतिशत से भी कम थी, आगे चलकर बहुत अधिक बढ़ गई। इस्लाम ने एक अलग धर्म और
सांस्कृतिक प्रणाली का रूप ले लिया।
प्रश्न 2. सलजुक तुर्क कौन थे? उन्होंने तुर्की सत्ता की स्थापना
तथा विस्तार किस प्रकार किया?
उत्तर:
सलजुक तुर्क सुदूर-पूर्व के गैर-मुस्लिम थे। ग्यारहवीं शताब्दी के पूर्वाद्ध में
उन्होंने तूरान में समानियों तथा काराखानियों के सैनिकों के रूप में प्रवेश किया।
बाद में उन्होंने दो भाइयों तुगरिल और छागरी बेग के नेतृत्व में एक शक्तिशाली समूह
का रूप धारण कर लिया। गजनी के महमूद की मृत्यु के बाद फैली अव्यवस्था का लाभ उठा
कर सलजुकों ने 1037 में खुरासान को जीत लिया। उन्होंने निशापुर को अपनी पहली
राजधानी बनाया।
इसके
बाद उन्होंने अपना ध्यान पश्चिमी फारस की ओर लगाया। 1055 में उन्होंने बगदाद को
पुनः सुन्नी शासन के अधीन कर दिया । प्रसन्न होकर खलीफा अल-कायम ने तुगरिल बेग को
सुलतान की उपाधि प्रदान की। सलजुक भाइयों ने परिवार द्वारा शासन चलाने की कबाइली
धारणा के अनुसार मिल कर शासन चलाया। तुगरिल बेग के बाद उसका भतीजा अल्प अरसलन उसका
उत्तराधिकारी बना। अल्प अरसलन’ के शासनकाल में सलजुक साम्राज्य का विस्तार
अनातोलिया (आधुनिक तुर्की) तक हो गया।
प्रश्न 3. चौथै खलीफा अली के शासनकाल पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
खलीफा अली ने (656-61) मक्का के अभिजात तंत्र का प्रतिनिधित्व करने वाले लोगों के
विरुद्ध दो युद्ध लड़े। फलस्वरूप मुसलमानों में दरार और अधिक गहरी हो गई। अली के
समर्थकों और शत्रुओं ने बाद में इस्लाम के दो मुख्य संप्रदाय शिया और सुन्नी बना
लिए। अली ने अपने आपकों गुफा में स्थापित कर लिया। उसने मुहम्मद की पत्नी, आयशा के
नेतृत्व वाली सेना को ‘ऊँट की लड़ाई’ (657) में पराजित कर दिया।
परंतु,
वह उथमान के नातेदार और सीरिया के गवर्नर मुआविया के गुट का दमन न कर सका। उसके
साथ अली का युद्ध सिफिन (उत्तरी मेसोपोटामिया) में हुआ था। यह संधि के रूप में
समाप्त हुआ। इस युद्ध ने उसके अनुयायियों को दो धड़ों में बाँट दिया, कुछ उसके
वफादार बने रहे, जबकि अन्य लोगों ने उसका साथ छोड़ दिया, उसका साथ छोड़ने वाले लोग
खरजी कहलाने लगे। इसके शीघ्र, बाद एक खरजी ने गुफा की एक मस्जिद में अली की हत्या
कर दी।
प्रश्न 4. उमय्यद वंश की स्थापना किन परिस्थितियों में हुई? पहले
उमय्यद शासक मुआविया के शासनकाल पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
बड़े-बड़े क्षेत्रों पर विजय प्राप्त होने से मदीना में स्थापित खिलाफत नष्ट हो गई
और उसका स्थान राजतंत्र ने ले लिया। 661 ई. में मुआविया ने स्वयं को अलग खलीफा
घोषित कर दिया और उमय्यद वंश की स्थापना की। उमय्यदों ने ऐसे अनेक राजनीतिक कदम
उठाए जिनसे उम्मा के भीतर उनका नेतृत्व सुदृढ़ हो गया।
पहले
उमय्यद खलीफा मुआविया ने दमिश्क को अपनी राजधानी बना लिया। उसने बाइजेंटाइन
साम्राज्य की राजदरबारी परंपराओं तथा प्रशासनिक संस्थाओं को अपनाया। उसने वंशगत
उत्तराधिकार की परंपरा भी प्रारम्भ की और प्रमुख मुसलमानों को इस बात पर राजी कर
लिया कि उसके बाद वे उसके पुत्र को उसका उत्तराधिकारी स्वीकार करें। उसके बाद आने
वाले खलीफाओं ने भी ये नवीन परिवर्तन अपना लिए। फलस्वरूप उमय्यद 90 वर्ष तक सत्ता
में बना रहा।
सिद्धांत
नहीं था। अतः इस्लामी राजसत्ता उम्मा को सौंप दी गई। इससे नयी प्रक्रियाओं के लिए
अवसर उत्पन्न हुए, परंतु इससे मुसलमानों में गहरे मतभदे भी पैदा हो गए। सबसे बड़ा
नव-परिवर्तन यह हुआ कि खिलाफत की संस्था का निर्माण हुआ। इसमें समुदाय का नेता
‘अमीर अल-मोमिनिनि; पैगंबर का प्रतिनिधि बन गया। वह खलीफा कहलाया। पहले चार
खलीफाओं (632-661) ने पैगबर के साथ अपने गहरे नजदीकी संबंधों के आधार पर अपनी
शक्तियों का औचित्य स्थापित किया। उन्होंने पैगंबर द्वारा दिए दिशा-निर्देशों के
अनुसार उनके कार्य को आगे बढ़ाया। खिलाफत के दो प्रमुख उद्देश्य थे
- उम्मा का कबीलों पर
नियंत्रण स्थापित करना।
- राज्य के लिए संसाधन
जुटाना।
प्रश्न 5. आरंभिक खलीफाओं के अधीन अरब साम्राज्य के प्रशासनिक ढाँचे
की मुख्य विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
खलीफाओं ने जीते गए सभी प्रांतों में नया प्रशासनिक ढाँचा लागू किया। इसके अंतर्गत
प्रांतों के अध्यक्ष गवर्नर (अमीर) और कबीलों के मुखिया (अशरफ) थे। केंद्रीय सत्ता
में राजस्व के दो मुख्य स्रोत थे-मुसलमानों द्वारा अदा किए जाने वाले कर तथा धावों
से मिलने वाली लूट में से प्राप्त हिस्सा। खलीफा के सैनिक रेगिस्तान के किनारों पर
बसे शहरों कुफा और बसरा में शिविरों में रहते थे ताकि वे अपने प्राकृतिक आवास
स्थलों के निकट और खलीफा की ‘कमान के अंतर्गत बने रहें।
शासक
वर्ग और सैनिकों को लूट में हिस्सा मिलता था और मासिक राशियाँ (अत्तता) प्राप्त
होती थीं। गैर मुस्लिम लोग ‘स्वराज और जजिया’ नामक कर देते थे। इससे उनका संपत्ति
का तथा धार्मिक कार्यों को संपन्न करने का अधिकार बना रहता था। यहूदी तथा ईसाई
लोगों को राज्य के संरक्षित लोग घोषित किया गया था। उन्हें अपने सामुदायिक कार्य
करने के लिए बहुत अधिक स्वायत्तता प्राप्त थी।
प्रश्न 6. तीसरे खलीफा उथमान की हत्या के लिए कौन-सी परिस्थितियाँ
उत्तरदायी थीं?
उत्तर:
अरब कबीलों ने अपना राजनीतिक विस्तार और एकीकरण का कार्य सरलता से कर लिया था।
राजक्षेत्र के विस्तार से राज्य के संसाधनों और प्रशासनिक पदों के वितरण पर झगडे
उत्पन्न हो गए। ये झगड़े उम्मा की एकता के लिए खतरा बन गए। वास्तव में प्रारंभिक
इस्लामी राज्य के शासन में मक्का के कुरैश लोगों का ही बोलबाला था। तीसरा खलीफा
उथमान (64456) भी एक कुरैश था।
उसने
सत्ता पर अपना नियंत्रण बढ़ाने के लिए प्रशासन में अपने ही आदमी भर दिए।
परिणामस्वरूप अन्य कबीलों में रोष फैल गया। इराक और मिस्र में पहले ही शासन का
विरोध हो रहा था, अब मदीना में भी विरोध उत्पन्न हो जाने से उथमान की हत्या कर दी
गई। उथमान की मृत्यु के बाद अली को चौथा खलीफा नियुक्त किया गया।
प्रश्न 7. मध्यकालीन इस्लामी जगत में इस्लाम के धार्मिक विद्वानों
ने कुरान की टीका लिखने तथा शरीआ तैयार करने की ओर ध्यान क्यों दिया।
उत्तर:
इस्लाम के धार्मिक विद्वानों (उलमा) के लिए करान से प्राप्त (इल्म) और पैगंबर का
आदर्श व्यवहार (सुन्ना) ईश्वर की इच्छा को जानने तथा संसार का मार्गदर्शन करने का
एकमात्र तरीका था। अत: मध्यकाल में उलेमा अपना समय कुरान पर टीका (तफसीर) लिखने और
मुहम्मद की प्रामाणिक उक्तियों और कार्यों को लेखबद्ध (हदीथ) करने में लगाते थे।
कुछ उलमा ने कर्मकांडों (इबादत) द्वारा ईश्वर के साथ और सामाजिक कार्यों (मुआमलात)
द्वारा अन्य लोगों के साथ मुसलमानों के संबंधों को नियंत्रित करने के लिए कानून
अथवा शरीआ तैयार करने का काम किया।
इस्लामी
कानून तैयार करने के लिए विधिवेत्ताओं ने तर्क और अनुमान (कियास) का प्रयोग भी
किया क्योंकि कुरान एवं हदीथ में प्रत्येक बात प्रत्यक्ष नहीं थी। स्रोतों के
अर्थ-निर्णय और विधिशास्त्र के तरीकों के बारे में मतभेदों के कारण आठवीं और नौवीं
शताब्दी में कानून की चार शाखाएँ (मजहब) बन गई। ये थीं-मलिकी, हनफी, शफीई और इनबली
। शरीओ न सुन्नी समाज का सभी संभव कानूनी मुद्दों के बारे में मार्गदर्शन किया।
प्रश्न 8. मध्यकालीन व्यापार-व्यवस्था में साख-पत्रों इंडियों
(वाणिज्यिक पत्रों) का क्या महत्त्व था?
उत्तर:
मध्यकालीन आर्थिक जीवन में मुस्लिम जगत् का सबसे बड़ा योगदान यह था कि उन्होंने
अदायगी और व्यापार व्यवस्था के बढ़िया तरीकों का विकास किया। व्यापारियों तथा
साहूकारों द्वारा धन को एक जगह से दूसरी जगह और एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक
पहुँचाने के लिए साख-पत्रों और हुडियों (बिल ऑफ एक्सेंचज) धन का इस्तेमाल किया
जाता था। वाणिज्यिक पत्रों के व्यापक उपयोग से व्यापारियों को हर स्थान पर अपने
साथ ले जाने से मुक्ति मिल गई । इससे उनकी यात्राएँ भी अधिक सुरक्षित हो गई ।
खलीफा भी वेतन देने अथवा कवियों और चरणों को इनाम देने के लिए साख पत्रों का
प्रयोग करते थे।
प्रश्न 9. अरब साम्राज्य में कृषि की समृद्धि के लिए क्या-क्या पग
उठाए गए?
उत्तर:
अरब साम्राज्य में राजनीतिक स्थिरता के आने के साथ-साथ कृषि में समृद्धि आई। इसके
लिए कई कदम उठाए गए।
- नील घाटी सहित कई
क्षेत्रों में सिंचाई प्रणाली का विकास किया गया। इसके लिए बाँध बनाए गए तथा
नहरें एवं कुएँ खोदे गए।
- अपनी भूमि पर पहली
बार खेती करने वाले लोगों को कर में छूट दी गई । खेती योग्य भूमि का विस्तार
किया गया। इन सब कार्यों के परिणामस्वरूप उत्पादकता में वृद्धि हुई।
- कुछ नयी फसलें भी
उगाई जाने लगी। इनमें कपास, संतरा, केला, तरबूज, पालक, बैगन आदि की फसलें
शामिल थीं। इनमें से कुछ फसलों का यूरोप को निर्यात भी किया गया ।
प्रश्न 10. तुर्क कौन थे? गजनी में तुर्की सत्ता किस प्रकार
स्थापित हुई और मजबूत बनी?
उत्तर:
तुर्क लोग तुर्किस्तान के मध्य एशियाई घास के मैदानों के खानाबदोश कबाइली थे।
उन्होंने इस्लाम धर्म अपना लिया था। वे कुशल घुड़सवार एवं योद्धा थे। वे गुलामों
तथा सैनिका के रूप में अब्बासी, ससानी तथा बुवाही शासकों के अधीन कार्य करने लगे
अपनी वफादारी तथा। सैनिक योग्यताओं के बल पर उन्नति करके उच्च पदों पर पहुंच गए।
961
ई. में अल्पकालीन नामक तुर्क ने गजनी सल्तनत की स्थापना की। इसे गजनी के महमूद
(998-1030) ने मजबूत किया। बुवाहियों की तरह गजनवी भी एक सैनिक वंश था। उनके पास तुकों
और भारतीयों जैसी पेशेवर सेना थी। परंतु उनकी सत्ता एवं शक्ति का केंद्र खुरासान और
अफगानिस्तान में था।
अब्बासी
खलीफे सत्ता वैधता के स्रोत थे। एक दास का पुत्र होने के कारण महमूद खलीफा से
सुलतान की उपाधि प्राप्त करना चाहता था। दूसरी ओर खलीफा भी शिया सत्ता के मुकाबले
गजनवी को सुन्नी सत्ता का समर्थन देने के लिए तैयार हो गया । अतः अब्बासी खलीफे
गजनी में तुर्की सत्ता की वैधता के स्रोत बन गए।
प्रश्न 11. अरबों द्वारा विजित क्षेत्रों में कृषि-भूमि का
स्वामित्व की दृष्टि से वितरण कैसा था?
उत्तर:
अरबों द्वारा नए जीते हुए क्षेत्रों में लोगों का प्रमुख व्यवसाय कृषि था। इस्लामी
राज्य ने इसमें कोई परिवर्तन नहीं किया। कृषि भूमि के स्वामी छोटे बड़े किसान थे।
कहीं-कहीं भूमि पर राज्य का स्वामित्व था। ईरान में जमीन बड़ी-बड़ी इकाइयों में
बंटी हुई थी जिस पर किसान खेती करते थे। ससानी और इस्लामी कालों में भूमि के
स्वामी राज्य की ओर से कर एकत्र करते थे। उन प्रदेशों में पशुचारण की अवस्था से
स्थिर कृषि की अवस्था तक पहुँच गए थे। भूमि गाँव की साझी संपत्ति थी। इस्लामी विजय
के बाद मालिकों द्वारा छोड़ी गई भू-संपदाओं को राज्य ने अपने हाथ में ले लिया था।
इसे साम्राज्य के विशिष्ट वर्ग के मुसलमानों को दे दिया गया था-विशेष रूप से खलीफा
के परिवार के सदस्यों को।
प्रश्न 12. अरब साम्राज्य में भू-राजस्व की क्या व्यवस्था थी?
उत्तर:
अरब साम्राज्य में कृषि भूमि का सर्वोपरि नियंत्रण राज्य के हाथों में था। वह अपनी
अधिकांश आय भू-राजस्व से प्राप्त करता था। अरबों द्वारा जीती गई भमि पर. जो अब भी
उन मालिकों के हाथों में थी, खराज नामक करा लगता था। यह कर खेती की स्थिति के
अनुसार उत्पादन के आधे भाग से लेकर पांचवें हिस्से के बराबर होता था। उस भूमि पर
जिसके स्वामी मुसलमान थे अथवा जिस पर उनके द्वारा खेती की जाती थी उपज के दसवें
भाग के बराबर कर वसूल किया जाता था।
अत:
कई गैर-मुसलमान कम कर देने के उद्देश्य से मुसलमान बनने लगे। इससे राज्य की आय कम
हो गई। इस समस्या से निपटने के लिए खलीफाओं ने पहले तो धर्म-परिवर्तन को
निरुत्साहित किया और बाद में कर वसूलने की एक समान, नीति अपनाई। 10वीं शताब्दी से
प्रशासनिक अधिकारियों को उनका वेतन राजस्व में से दिया जाने लगा। इसे इक्ता कहा
जाता था जिसका अर्थ है-भू-राजस्व का भाग।
प्रश्न 13. गजनी साम्राज्य में फारसी साहित्य के विकास की जानकारी
दीजिए। अथवा, फारसी साहित्य में फिरदौसी का क्या योगदान रहा?
उत्तर:
ग्यारहवीं शताब्दी के प्रारंभ में गजनी फारसी साहित्य का एक कॅन्द्र बन गया था।
कवि स्वाभाविक रूप से शाही दरबार की चमक-दमक से आकर्षित होते थे। शासकों ने भी
अपनी प्रतिष्ठा बढ़ाने के लिए कलाकारों और विद्वानों को संरक्षण देना आरंभ कर दिया
था। महमूद गजनवी के काल में अनेक कवियों ने काव्य-संग्रहों (दीवानों) और महाकाव्यों
(मथनवी) की रचना की। सबसे अधिक प्रसिद्ध कवि फिरदौ था। उसने ‘शाहनामा’ नामक काम, थ
की रचना की थी।
इसे
पूरा करने से उसे 30 वर्ष लगे थे। इस पुस्तक में 50,000 पद हैं और यह इस्लामी
साहित्य की एक श्रेष्ठ कृति मानी जाती है। शाहनामा परंपराओं और आख्यानों का संग्रह
है। इनमें सबसे लोकप्रिय आख्यान रूस्तम का है। पुस्तक में प्रारंभ से लेकर अरबों
की विजय तक ईरान का चित्रण काव्यात्मक शैली में किया गया है।
प्रश्न 14. इस्लामी जगत में नई फारसी का विकास कब हुआ? इस भाषा ने
काव्य के विकास में क्या योगदान दिया?
उत्तर:
नई फारसी का विकास अरबों की ईरान विजय के पश्चात् ईरानी भाषा पहलवी का एक अन्य रूप
था। इसमें अरबी भाषा के शब्दों की भरमार थी। खुरासान और तुरान सल्तनतों की स्थापना
से नई फारसी सांस्कृतिक ऊंचाइयों पर पहुंच गई। ससानी राजदरबार में कवि रुदकी को नई
फारसी कविता का जनक माना जाता है। इस कविता में गजल और रुबाई जैसे नए रूप शामिल
थे।
रुबाई
चार पंक्तियों वाला छंद होता है। इसमें पहली दो पंक्तियाँ भूमिका बाँधती हैं।
तीसरी पंक्ति बढ़िया तरीके से सधी होती है और चौथी पंक्ति मुख्य बात को प्रस्तुत
करती है। इसका प्रयोग प्रियतम अथवा प्रेयसी के सौंदर्य का बखान करने, संरक्षण की
प्रशंसा करने अथवा दार्शनिक के विचारों को अभिव्यक्त करने के लिए किया जा सकता है।
रुबाई उमर खय्याम (1048-1131) के हाथों अपनी पराकाष्ठा पर पहुंच गई।
प्रश्न 15. मध्यकालीन इस्लामी समाज में भाषा के विकास की संक्षिप्त
चर्चा कीजिए।
उत्तर:
मध्यकालीन इस्लामी समाज में बढ़िया भाषा और रचनात्मक कल्पना को व्यक्ति का सराहनीय
गुण माना जाता था। ये गुण किसी भी व्यक्ति की विचार-अभिव्यक्ति को ‘अदब’ के स्तर
तक ऊँचा उठा देते थे। अदब रूपी अभिव्यक्तियों में पद्य (कविता) और गद्य (बिखरे हुए
शब्द) शामिल थे। इस्लाम-पूर्व काल की सबसे अधिक लोकप्रिय पद्य रचना संबोधन गीत
(कसीदा) थी। इस विधा का विकास अब्बासी काल के कवियों ने अपने आश्रयदाताओं की
उपलब्धियों का गुणगान करने के लिए किया।
फारस
मूल के कवियों ने अरबी कविता का पुनः आविष्कार किया और उसमें नई जान फूंकी। फारसी
मूल के एक कवि अबुनवास ने इस्लाम में वर्जित होने के बावजूद आनंद मनाने के लिए
शराब और पुरुष-प्रेम जैसे विषयों पर उत्कृष्ट कविताओं की रचना की। अबुनवास के बाद
के कवियों ने अपने अनुराग के पात्र को पुरुष के रूप में संबोधित किया, भले ही वह
स्त्री हो। इसी परंपरा का अनुसरण करते हुए सूफियों ने रहस्थवादी प्रेम की मदिरा
द्वारा उत्पन्न मस्ती का गुणगान किया।
प्रश्न 16. प्रारंभिक इस्लाम के इतिहास के स्रोतों के रूप में
कुरान के उपयोग ने क्या समस्याएँ उत्पन्न की हैं?
उत्तर:
प्रारंभिक इस्लाम के इतिहास के लिए स्रोत के रूप में कुरान के उपयोग ने मुख्य रूप
से दो समस्याएँ प्रस्तुत की हैं। पहली यह कि यह एक धर्मग्रंथ है और एक ऐसा मूल-पाठ
है जिसमें धार्मिक सत्ता निहित है। मुसलमानों का मानना है कि खुदा की वाणी (कलाम
अल्लाह) होने के कारण कुरान के एक-एक शब्द को समझा जाना चाहिए।
परंतु
बुद्धिवादी धर्म विज्ञानी रूढ़िवादी नहीं थे। उन्होनें कुरान की व्याख्या अधिक
उदारता से की। 833 ई. में अब्बासी खलीफा अल-मामून ने यह मत लागू किया कि कुरान
खुदा की वाणी न होकर उसकी अपनी रचना है। दूसरी समस्या यह है कि कुरानं प्रायः
रूपकों में बात करता है। ओल्ड टेस्टामेंट के विपरीत यह घटनाओं का कंवल उल्लेख करता
है, उनका वर्णन नहीं करता। अतः कुरान को पढ़ने-समझने के लिए कई हदीथ लिखे गए।
प्रश्न 17. सूफी कौन थे और उनके धार्मिक विश्वास क्या थे?
उत्तर:
मध्यकालीन इस्लाम के उदार धार्मिक विचारों वाले लोगों के एक समूह को सूफी कहा जाता
है। –
धार्मिक
विश्वास – सूफी लोग तपश्चर्या (रहबनिया) और रहस्यवाद द्वारा खुदा के बारे में गुढ
ज्ञान प्राप्त करना चाहते थे। समाज जितना अधिक पदार्थों और सुखों की ओर झकता था,
सूफी लोग उतना ही अधिक संसार का त्याग (जुहद) करना चाहते थे। वे केवल खुदा पर भरोस
(तवक्कुल) करना चाहते थे। आठवीं और नौवीं शताब्दी में तपश्चर्या एवं वैराग्य की इन
प्रवृत्तियं ने सर्वेश्वरवाद एवं प्रेम के विचारों द्वारा रहस्यवाद (तसव्वुफ) का
रूप धारण कर लिया।
सर्वेश्वरवाद
ईश्वर और उसकी सृष्टि के एक हो जाने का विचार है। इससे अभिप्राय यह है कि मनुष्य
की आत्मा को परमात्मा के साथ मिलना चाहिए। यह ईश्वर से मिलने के साथ गहरे प्रेम
(इश्क) द्वारा हो सकता है। सूफी लोग आनंद की अवस्था में पहुँचने तथा प्रेम को
उद्दीप्त करने के लिए संगीत (समा) का सहारा लेते थे। सूफीवाद का द्वार सभी के लिए
खुला है, चाहे वह किसी भी धर्म, पद अथवा लिंग का हो। सूफीवाद ने अत्यधिक
लोकप्रियता प्राप्त की और अपनी उदारता से रूढ़िवादी इस्लाम के सामने चुनौती पेश
की।
प्रश्न 18. विज्ञान संबंधी नये विषयों के अध्ययन का इस्लाम जगत् के
बौद्धिक जीवन पर क्या प्रभाव पड़ा?
Ø इनसिना कौन था? उसकी सबसे प्रभावशाली पुस्तक का क्या महत्त्व है?
उत्तर:
नये विषयों के अध्ययन ने आलोचनात्मक दृष्टिकोणों को बढ़ावा दिया। इसका इस्लाम के
बौद्धिक जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ा। वैज्ञानिक प्रवृत्ति वाले धार्मिक विद्वानों ने
इस्लामी विश्वासों की रक्षा के लिए यूनानी तर्क एवं विवेचना (कलाम) का प्रयोग
किया। दार्शनिक (फलसिका) ने व्यापक प्रश्न किए और उनके उत्तर प्रस्तुत किए। उदाहरण
के लिए एक वैज्ञानिक एंव चिकित्सक इनसिना इस बात को नहीं मानता था कि कयामत के दिन
व्यक्ति फिर से जिंदा हो जाता है।
उसके
चिकित्सा संबंधी लेख व्यापक रूप से पढ़े जाते थे। उसकी सबसे प्रभावशाली पुस्तक
‘चिकित्सा के सिद्धांत’ (अल-कानून फिल तिब) है। यह दस लाख शब्दों वाली पांडुलिपि
है। इनमें उस समय के औषधिशास्त्रियों द्वारा बेची जाने वाली 760 औषधियों का उल्लेख
है। पुस्तक में इनसिना के किए गए प्रयोगों तथा अनुभवों की जानकारी भी दी गई है। इस
पुस्तक में आहार-विज्ञान के महत्त्व पर प्रकाश डाला गया है। यह बताया गया है कि
जलवायु और पर्यावरण का स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव पड़ता है। इसके अतिरिक्त कुछ
रोगों के संक्रामक स्वरूप की जानकारी दी गई है।
प्रश्न 19. इस्लामी धार्मिक कला में प्राणियों के चित्रण की मनाही
से कला के किन दो – रूपों को बढ़ावा मिला?
उत्तर:
इस्लाम धर्म में प्राणियों के चित्रण की मनाही थी। इससे कला के जिन दो रूपों को
बढ़ावा मिला, वे थे-खुशनवीसी अर्थात् सुंदर लिखने की कला और अरबेस्क अर्थात्
ज्यामितीय तथा वनस्पति कं डिजाइनों संबंधी कला। इमारतों को मनाने के लिए प्रायः
धार्मिक उद्धरणों का छोटे-बड़े शिलालख में उपयोग किया जाता था। कुरान की आठवीं तथा
नौवौं शताब्दियों की पांडुलिपियों में खुशनवीसी की कला को सुरक्षित रखा गया है।
‘किताब
अल-अघानी’ (गीत पुस्तक) ‘कलिका व दिमना’ और ‘हरिरी की मकामात’ आदि साहित्यिक कृतियों
को लघुचित्रों से सजाया गया था। इसके अतिरिक्त पुस्तक के सौंदर्य को बढ़ाने के लिए
चित्रावली की अनेक किस्मे आरंभ की गई। इमारतों और पुस्तकों के चित्रण में पौधों तथा
फूलों के नमूनों का उपयोग किया जाता था।
प्रश्न 20. अब्बासी शासन की क्या विशेषताएँ रहीं? क्या अब्बासी
शासक राजतंत्र को समाप्त कर सके?
उत्तर:
अब्बासी शासन की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित थीं –
अब्बासी
शासन के अंतर्गत अरबों के प्रभाव में गिरावट आई। इसके विपरीत ईरानी संस्कृति का
महत्त्व बढ़ गया।
- अब्बासियों ने अपनी
राजधानी बगदाद में स्थापित की।
- प्रशासन में इराक और
खुरासान की धार्मिक भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए सेना तथा नौकरशाही का
गैर-कबीलाई आधार पर पुनर्गठन किया गया।
- अब्बासी शासकों ने खिलाफत
की धार्मिक स्थिति तथा कार्यों को मजबूत बनाया और इस्लामी संस्थाओं एवं
विद्वानों को संरक्षण प्रदान किया।
- अब्बासी शासक और
राजतंत्र-अब्बासी शासकों के अधीन सरकार और साम्राज्य का केंद्रीय स्वरूप बना
रहा, क्योंकि समय की यही माँग थी।
- उन्होंने उमय्यदों की
शाही वास्तुकला और राजदरबार के व्यापक समारोहों की परंपरा को भी बनाये रखा।
इस प्रकार राजतंत्र को समाप्त करने वाले अब्बासी शासकों को फिर से राजतंत्र
स्थापित करने लिए विवश होना पड़ा।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1. खलीफाओं के अधीन इस्लामी सत्ता का विस्तार किस प्रकार
हुआ?
उत्तर:
पैगंबर मुहम्मद के देहांत के बाद बहुत-से कबीले इस्लामी राज्य से टूटकर अलग हो गए।
कुछ कबीलों ने तो उम्मा की तरह अपने अलग समाजों की स्थापना करने के लिए स्वयं के
पैगंबर बना लिए।
- पहले खलीफा अबूबकर ने
अनेक अभियानों द्वारा इन विद्रोहों का दमन किया।
- दूसरे खलीफा उमर ने
उम्मा की सत्ता के विस्तार की नीति अपनाई।
खलीफा
जानता था कि उम्मा को व्यापार और करों से होने वाली थोड़ी-सी आय के बल पर नहीं
चलाया जा सकता। इसके लिए बहुत बड़ी धनराशि की जरूरत होगी। इसलिए खलीफा और उसके
सेनापतियों ने पश्चिम में बाइजेंटाइन साम्राज्य तथा पूर्व में ससानी साम्राज्य
प्रदेशों को जीतने के लिए अपने कबीलों को सक्रिय किया। बाइजेंटाइन और ससानी दोनों
साम्राज्यों के पास विशाल संसाधन थे। बाईजेंटाइन साम्राज्य ईसाई मत को बढ़ावा देता
था और ससानी साम्राज्य ईरान के प्राचीन धर्म, जरतुश्त धर्म को संरक्षण प्रदान करता
था।
अरबों
के समय से साम्राज्य धार्मिक संघर्षों तथा अभिजात वर्गों के विद्रोहों के कारण
कमजोर हो गए थे। परिणामस्वरूप युद्धों और संधियों द्वारा उन्हें अपने अधीन लाना
आसान हो गया। अरबों के तीन सफल अभियानों (637-642) में सीरिया, इराक और मिन पर
मदीना का नियंत्रण स्थापित हो गया। अरबों की सफलता में सामरिक नाति, धार्मिक जोश
और विरोधियों में गंगदान दिया।
तीसरे
खलीफा उथमान ने अपना नियंत्रण मध्य एशिया तक बढ़ाने के लिए और अभियान चलाए। इस
प्रकार पैगंबर मुहम्मद को मृत्यु के केवल एक दशक के अंदर, अरब-इस्लामी राज्य ने
नील और ऑक्सस के बीच के विशाल क्षेत्र को अपने नियंत्रण में ले लिया। ये प्रदेश आज
तक मुस्लिम शासन के अंतर्गत हैं।
प्रश्न 2. अरब साम्राज्य में खिलाफत का विघटन किस प्रकार हुआ?
बुवाही शासकों ने खिलाफत के विघटन के बाद भी खलीफा के पद को प्रतीकात्मक रूप से
क्यों बनाए रखा?
उत्तर:
नौवीं शताब्दी में अब्बासी राज्य कमजोर होता गया। इसके दो मुख्य कारण थे –
- दूर क प्रांतों पर
बगदाद का नियंत्रण कम हो गया था।
- सेना और नौकरशाही में
अरब-समर्थक और ईरान-समर्थक गुट के बीच झगड़ा हो गया था।
गृह
युद्ध तथा नये राजवंश का उदय-810 में खलीफा हारून अल-रशीद के पुत्रों अमीन और
मामुन के समर्थकों के बीच गृह युद्ध छिड़ गया। इससे प्रशासन में गुटबंदी और अधिक
बढ़ गई तथा तुर्की गुलाम अधिकारियों (मामलुक) का एक नया शक्ति गुट बन गया। दूसरी
ओर शियाओं ने एक बार फिर सुन्नी रूढ़िवादिता के साथ सत्ता के लिए संघर्ष आरंभ कर
दिया। फलस्वरूप अनेक छोटे राजवंश उत्पन्न हो गए। इनमें खुरासान और ट्रांसोक्सियाना
वाले प्रदेश के ताहिरी एवं ससानी वंश और मिन तथा सीरिया में तुलुनी वंश शामिल थे।
शीघ्र ही अब्बासियों की सत्ता मध्य ईराक और पश्चिमी ईरान तक सीमित रह गई।
बुवाहियों
द्वारा अब्बासी सत्ता का अंत-945 में ईरान के कैस्पियन क्षेत्र के बुवाही नामक
शिया वंश ने बगदाद पर अधिकार कर लिया। इस प्रकार अब्बासियों के शासन का पूरी तरह
अंत हो गया। बुवाही शासकों ने विभिन्न उपाधियाँ धारण कीं। इनमें एक प्राचीन ईरानी
उपाधि ‘शहंशाह’ अर्थात् राजाओं का राजा भी शामिल थी। उन्होंने स्वयं खलीफा की पदवी
धारण नहीं की, बल्कि अब्बासी खलीफा को अपनी सुन्नी प्रजा का प्रतीकात्मक मुखिया का
स्थान दिया। इस प्रकार खिलाफत का विघटन हो गया, भले ही खलीफा का पद प्रतीकात्मक
रूप से बना रहा।
बुवाही
शासकों की खलीफा के पद के प्रति नीति-बुवाही शासकों द्वारा खलीफा के पद को
प्रतीकात्मक रूप को बनाए रखने का निर्णय बहुत से चतुराईपूर्ण था। इसका कारण यह था
कि ‘फातिमी’ नामक एक अन्य शिया राजवंश इस्लामी जगत पर शासन करने की योजना बना रहा
था। फातिमी का संबंध शिया संप्रदाय के एक उप-संप्रदाय इस्माइली से था। उनका दावा
था कि वे पैगंबर की बेटी फातिमा के वंशज हैं। इसलिए वे इस्लाम के एकमात्र
न्यायसंगत शासक हैं। 969 ई. में उन्होंने मिस्र को जीत लिया और फातिमी खिलाफत की
स्थापना की। उन्होंने मिस्र की पुरानी राजधानी फुस्तात की बजाय काहिरा को अपनी
राजधानी बनाया।
प्रश्न 3. धर्म युद्ध किस-किस के बीच हुए? इनके लिए कौन-कौन सी
परिस्थितियाँ उत्तरदायी थी?
उत्तर:
धर्म युद्ध यूरोप के ईसाइयों तथा अरबों के बीच हुए। इनके लिए निम्नलिखित
परिस्थितियाँ उत्तरदायी थीं –
1.
ईसाइयों के लिए फिलिस्तीन ‘पवित्र भूमि’ थी। इसका कारण था कि उनके अधिकतर धार्मिक स्थल
यही स्थित थे। यहाँ स्थित जेरूसलतम को ईसा के क्रूसीकरण तथा पुनः जीवित होने का स्थान
माना जाता थ। इस स्थान को 638 ई. में अरबों ने जीत लिया था। इसलिए यरोपीय ईसाइयों तथा
मुस्लिम जगत के बीच शत्रुता थी।
2.
ग्यारहवीं शताब्दी में पश्चिमी यूरोप के सामाजिक तथा आर्थिक संगठनों में भी परिवर्तन
हो गया था। इससे ईसाई जगत् और इस्लामी जगत् के बीच शत्रुता और अधिक बढ़ गई।
3.
पादरी और योद्धा वर्ग राजनीतिक स्थिरता के लिए प्रयत्नशील थे।
4.
ईश्वरीय शांति आंदोलन ने सामंती राज्यों के बीच सैनिक मुठभेड़ की संभावनाओं को समाप्त
कर दिया था। अब सामंती समाज की आक्रमणकारी प्रवृत्तियों का रुख ‘ईश्वर के शत्रुओं’
अर्थात् अरबों की ओर हो गया था। इससे एक ऐसा वातावरण तैयार हुआ जिसमें विधर्मियों के
विरुद्ध लड़ाई न केवल उचित अपितु प्रशंसनीय मानी जाने लगी।
5.
1092 में बगदाद के सलजुक सुलतान मलिक शाह की मृत्यु के पश्चात् उसके साम्राज्य का विघटन
हो गया। इससे बाइजेंटाइन सम्राट् एलेक्सियस प्रथम को एशिया माइनर और उत्तरी सीरिया
को फिर से हथियाने का अवसर मिल गया। 1095 में पोप अर्बन द्वितीय ने बाइजेंटाइन सम्राट्
के साथ मिलकर पवित्रभूमि (होली लैंड) को मुक्त कराने के लिए ईश्वर के नाम पर युद्ध
का आह्वान किया।
अतः
1095 और 1291 के बीच पश्चिमी यूरोप के ईसाइयों ने पूर्वी भूमध्य सागर के तटवर्ती
मैदानों में मुस्लिम शहरों के विरुद्ध युद्धों की योजना बनाई। परिणामस्वरूप लगातार
अनेक युद्ध लड़े गए । इन युद्धों को बाद में ‘धर्मयुद्ध’ का नाम दिया गया।
प्रश्न 4. प्रथम तीन धर्मयुद्धों की जानकारी दीजिए और उनके
प्रभावों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
धर्मयुद्ध 1095 से 1291 ई. में ईसाइयों तथा मुसलमानों के बीच हुए। इन युद्धों तथा
उनके प्रभावों का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है –
1.
प्रथम युद्ध – धर्मयुद्ध (1098-1099) में फ्रांस और इटली
के सैनिकों ने सीरिया में एंटीओक तथा जेरूसलम पर अधिकार कर लिया। जेरूसलम में मुसलमानों
और यहूदियों की निर्मम हत्याएँ की गई। शीघ्र ही उन्होंने सीरिया-फिलिस्तीन के क्षेत्र
में धर्मयुद्ध द्वारा जीते गए चार राज्य स्थापित कर लिए। इन क्षेत्रों को सामूहिक रूप
से ‘आउटरैमर’ कहा जाता था। बाद के धर्मयुद्ध इसकी रक्षा और विस्तार के लिए लड़े गए।
2.
दूसरा धर्मयुद्ध – आउटरैमर प्रदेश कुछ समय तक सुरक्षित रहा।
परंतु 1144 में तुर्को ने एडेस्सा पर अधिकार कर लिया। अत: पोप में ईसाई लाडों से एक
अन्य धर्मयुद्ध (11451149) के लिए अपील की। एक जर्मन आर फ्रांसीसी सेना ने दमिश्क पर
अधिकार करने का प्रयास किया। परंतु उसे पराजय का मुँह देखना पड़ा। इसके बाद ‘आउटरैमर’
की शक्ति धीरे-धीरे क्षीण होता गई और ईसाईयों में धर्मयुद्ध का जोश अब समाप्त हो गया।
अब ईसाई शासकों ने विलासिता से जीना और नए-नए प्रदेशों के लिए लड़ाई करना शुरू कर दिया।
इस
बीच सलाह अल-दीन ने एक मिनी-सीरियाई साम्राज्य स्थापित किया और ईसाइयों के विरुद्ध
युद्ध छेड़ दिया। 1187 में ईसाई पराजित हुए। जेरूसलम पर फिर से मुसलमानों का
अधिकार हो गया। परंतु ईसाई लोगों के साथ सलाह अल-दीन ने दयापूर्ण व्यवहार किया और
द चर्च ऑफ दि होली सेपलकरे की अभिरक्षा का काम ईसाईयों को सौंप दिया । फिर भी
बहुत-से गिरजाघरों को मस्जिदों में बदल दिया गया। इस प्रकार जेरुसलम एक बार फिर
मुस्लिम शहर बन गया।
3.
तीसरा धर्मयुद्ध – जेरूसलम के छिन जाने से 1189 ने तीसरे धर्मयुद्ध
को जन्म दिया परंतु धर्मयुद्ध करने वाले फिलिस्तीन में कुछ तटवर्ती शहरों तथा ईसाई
तीर्थ-यात्रियों के लिए जेरूसलम में स्वतंत्र प्रवेश के अतिरिक्त कुछ प्राप्त नहीं
कर सके। अंतत: 1291 में मिस्र के मामलूक शासकों ने धर्मयुद्ध करने वाले सभी ईसाईयों
को समूचे फिलिस्तीन से बाहर निकाल दिया।
प्रभाव
– इन युद्धों ने ईसाई-मुस्लिम संबंधों के दो पहलुओं पर स्थायी प्रभाव छोड़ा।
प्रथम
मुस्लिम राज्यों ने अपनी ईसाई प्रजा के प्रति कठोर नीति अपनानी आरंभ कर दी।
दूसरे,
पूर्व और पश्चिम के बीच व्यापार में इटली के व्यापारिक समुदायों का प्रभाव बढ़
गया।
प्रश्न 5. मध्यकालीन इस्लामी जगत् में शहरीकरण की मुख्य विशेषताएँ
बताइए।
उत्तर:
मध्यकालीन इस्लामी जगत् में शहरों की संख्या में तेजी से वृद्धि हुई। परिणामस्वरूप
इस्लामी सभ्यता फली फूली। अनेक नए शहरों की स्थापना की गई। इनका उद्देश्य मुख्य
रूप से अरब सैनिकों (जुड) को बसाना था। इस श्रेणी के फौजी शहरों में इराक में कूफा
और बसरा, मिस्र में फुस्तात तथा काहिरा थे। इन शहरों के अतिरिक्त बगदाद, दमिश्क,
इस्फहान और समरकंद जैसे कुछ पुराने शहर थे। इन शहरों को भी नया जीवन मिला। बगदाद
की जनसंख्या में तो बड़ी तेजी से वृद्धि हुई।
शहरों
के विकास एवं विस्तार के लिए खाद्यान्नों और चीनी के उत्पादन में वृद्धि की गई।
उद्योगों के लिए कच्चे माल का उत्पादन भी बढ़ाया गया। इससे शहरों के आकार और
जनसंख्या में बढ़ोतरी हुई। फलस्वरूप संपूर्ण क्षेत्र में शहरों का एक विशाल जाल
विकसित हो गया। एक शहर दूसरे शहर से जुड़ गया और उनमें परस्पर संपर्क एवं कारोबार
बढ़ गया।
दो
भवन – समूह-शहर के केंद्र में दो भवन-समूह होते
थे, जहाँ से सांस्कृतिक और आर्थिक शक्ति का संचालन होता था।
मस्जिद
– एक भवन-समूह मस्जिद (मस्जिद अल-जामी) होती थी। इसमें सामूहिक नमाज पढ़ी जाती थी।
यह इतनी बड़ी होती थी कि दूर से दिखाई देती थी।
केंद्रीय
मंडी – दूसरा भवन-समूह केंद्रीय मंडी (सुक्र)
था। इसमें दुकानों की कतारें, व्यापारियों के आवास (फंदुक) और शर्राफ का कार्यालय
होता था। इसके अतिरिक्त इस भाग में शहर के प्रशासकों और विद्वानों एवं व्यापारियों
(तुज्जर) के घर होते थे जो केंद्र के निकट बने होत थे। सामान्य नागरिकों और
सैनिकों के आवास शहर के बाहरी घेरे में होते थे। मंडी की प्रत्येक इकाई की अपनी
मस्जिद, अथवा सिनेगोग (यहूदी प्रार्थनाघर), छोटी मंडी, सार्वजनिक स्नानघर (हमाम)
तथा एक महत्वपूर्ण सभा-स्थल होता था।
शहर
के बाहरी इलाकों में शहरी गरीबों के मकान, हरी सब्जियों और फलों के बाजार, काफिलों
के ठिकानों, चमड़ा साफ करने या रंगने की दुकानें और कसाई की दुकानें होती थीं। शहर
की चारदीवारी के बाहर कब्रिस्तान और सराय होते थे। सराय में लोग उस समय आराम कर
सकते थे जब शहर के दरवाजे बंद कर दिये जाते थे। शहरों के नक्शे-परिदृश्य, राजनीतिक
परंपराओं और ऐतिहासिक घटनाओं के आधार पर अलग-अलग होते थे।
प्रश्न 6. मध्यकालीन इस्लामी जगत् में वास्तुकला के विकास का विवरण
दीजिए।
उत्तर:
(a)
दसवीं शताब्दी तक इस्लामी जगत् ने एक ऐगा रूप धारण कर लिया जिसने अपनी वास्तुकला द्वारा
अपनी स्पष्ट पहचान बना ली थी। इस काल में अरब जगत् में अनेक मस्जिद, महल तथा मकबरे
बनाए गए। इनकी विशेषताओं का वर्णन इस प्रकार है –
1.
मस्जिद – इस दुनिया की सबसे बड़ी बाहरी धार्मिक प्रतीक इमारत मस्जिद
थी। स्पेन से लेकर मध्य एशिया तक फैली मस्जिदों, इबादतगाहों और मकबरे का मूल रूप एक
जैसा ही था। इनकी मुख्य विशेषताएँ थीं-मेहराबें, गुबंद, मीनार और खुले सहन (प्रांगण)।
ये इमारतें मुसलमानों की धार्मिक तथा व्यावहारिक आवश्यकताओं को पूरा करती थीं। इस्लाम
की पहली शताब्दी में मस्जिद ने एक विशेष वास्तुशिल्प का रूप धारण कर लिया था।
2.
मस्जिद में एक खुला प्रांगण होता था। इस प्रांगण में एक फव्वारा
अथवा जलाशय बनाया जाता था। यह प्रांगण एक बड़े कमरे की ओर खुलता था जिसमें प्रार्थना
करने वाले लोगों तथा प्रार्थना (नमाज) का नेतृत्व करने वाले व्यक्ति (इमाम) के लिए
पर्याप्त स्थान होता था।
3.
बड़े कमरे की दो विशेषताएँ थीं – दीवार में एक मेहराब जो
मक्का (काबा) की दिशा का संकेत देती थी तथा एक मंच जहाँ से शुक्रवार को दोपहर की नमाज
के समय प्रवचन दिए जाते थे। इमारत में एक मीनार जुड़ी होती थी। इसका प्रयोग नियत समय
पर नमाज के लिए लोगों को बुलाने के लिए किया जाता था। मीनार नए धर्म के अस्तित्व का
प्रतीक थी। शहरों और गाँवों में लोग समय का अनुमान पाँच दैनिक नमाजों की सहायता से
लगाते थे। मस्जिद की ये विशेषताएँ आज भी विद्यमान हैं।
4.
मस्जिद के केंद्रीय प्रांगण के चारों ओर बनी इमारतों के निर्माण
का स्वरूप न केवल मकबरों में बल्कि सरायों, अस्पतालों और महलों में भी पाया जाता था।
(b)
महल –
1.
उमय्यदों ने नखलिस्तानों में ‘मरुस्थली महल’ बनाए । इनमे फिलिस्तीन में खिरवत अलफजर
और जोर्डन में कुसाईर अमरा शामिल थे। ये महल विलासपूर्ण निवास स्थान और शिकार एवं मनोरंजन
के लिए विश्राम स्थल का काम देते थे। महलों को चित्रों, प्रतिमाओं और भव्य पच्चीकारी
से सजाया जाता था।
2.
अब्बासियों ने समरा में बागों और बहते हुए पानी के बीच एक नया शाही शहर बनाया। इसका
उल्लेख खलीफा हारून-अल-रशीद से जुड़ी कहानियों और आख्यानों में मिलता है।
3.
अब्बासियों ने बगदाद में तथा फातिमियों ने काहिरा में भी महल बनवाए। परंतु ये महल लुप्त
हो गए हैं।
प्रश्न 7. इस्लाम धर्म की स्थापना कब हुई? इसका अरब समाज पर क्या
प्रभाव पड़ा? अथवा, इस्लाम धर्म के धार्मिक विश्वास क्या थे?
उत्तर:
इस्लाम धर्म की स्थापना लगभग 612 ई. में पैगंबर मुहम्मद ने की। इस वर्ष में
उन्होंने स्वयं को खुदा का संदेशवाहक (रसूल) घोषित किया। उन्होंने एक नये धर्म
सिद्धात का प्रचार किया। इस सिद्धांत को स्वीकार करने वाले लोग मुसलमान अथवा
मुस्लिम कहलाए। ये सभी लोग एक ऐसे समाज का अंग थे जिसे उम्मा कहा जाता है।
इस्लाम
धर्म के धार्मिक विश्वास-इस्लाम धर्म के धार्मिक विश्वास उनकी पवित्र पुस्तक
‘कुरान शरीफ’ में दिये गए हैं। इनका संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है –
- केवल अल्लाह की ही
पूजा की जानी चाहिए।
- मनुष्य को कयामत के
दिन (मृत्यु के समय) अपने कर्मों का फल अवश्य मिलेगा।
- प्रत्येक मुसलमान को
इन पाँच सिद्धांत का पालन करना चाहिए –
(i)
अल्लाह ही एकमात्र ईश्वर है और मुहम्मद उसका पैगंबर है।
(ii)
उसे प्रतिदिन पाँच बार नमाज पढ़नी चाहिए।
(iii)
उसे निर्धनों को दान देना चाहिए।
(iv)
उसे रमजान के महीने में रोजे रखने चाहिए।
(v)
उसे जीवन में एक बार मक्का की यात्रा अवश्य करनी चाहिए।
- किसी मुसलमान को
मूर्ति-पूजा नहीं करनी चाहिए।
- उसे ब्याज की कमाई
नहीं खानी चाहिए और चोरी नहीं करनी चाहिए।
- उसे विवाह और तलाक के
निर्धारित नियमों का पालन करना चाहिए।
- उसे मनुष्य मात्र की
समानता में विश्वास रखना चाहिए।
- उसे उदार तथा
सद्गुणों से परिपूर्ण होना चाहिए।
- उसे कुरान को पवित्र
ग्रंथ मानना चाहिए।
प्रश्न 8. पैगंबर मुहम्मद के अधीन इस्लामी राज्य तथा समाज के मुख्य
पहलुओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
पैगंबर मुहम्मद ने मदीना में एक राजनैतिक व्यवस्था की स्थापना की थी जिसने उनके
अनुयायियों को सुरक्षा प्रदान की। उन्होंने शहर में चल रही कलह को भी सुलझाया।
उम्मा को एक बड़े समुदायों के रूप में बदला गया, ताकि मदीना के बहुदेववादियों और
यहदियों को पैगंबर मुहम्मद के राजनैतिक नेतृत्व के अधीन लाया जा सके। पैगंबर ने
कर्मकांडों (उपवास आदि) तथा नैतिक सिद्धांत में वृद्धि की और उन्हें परिष्कृत
किया। इस प्रकार उन्होंने धर्म को अपने अनुयायियों के लिए मजबूत बनाया।
इस्लामी
राज्य का विस्तार-आरंभ में मुस्लिम कृषि एवं व्यापार से प्राप्त होने वाले राजस्व
तथा खैरात-कर (जकात) पर जीवित रहा। इसके अतिरिक्त मुसलमान मक्का के काफिलों और
निकट के नखलिस्तानों पर छापे भी मारते थे। कुछ समय बाद मक्का पर मुसलमानों का
अधिकार हो गया। इसके फलस्वरूप एक धार्मिक प्रचारक तथा राजनैतिक नेता के रूप में
पैगंबर मुहम्मद की प्रतिष्ठा दूर-दूर तक फैल गई। पैगंबर मुहम्मद की उपलब्धियों से
प्रभावित होकर, बहुत-से कबीलों, मुख्य रूप से बहुओं ने अपना धर्म बदलकर इस्लाम को
अपना लिया और मुस्लिम समाज में शामिल हो गए।
इस
प्रकार पैगंबर मुहम्मद द्वारा बनाए गए गठजोड़ का प्रसार समूचे अरब देश में हो गया
। मदीना उभरते हुए इस्लामी राज्य की प्रशासनिक राजधानी बना और मक्का उसका धार्मिक
केंद्र बन गया । काबा से बुतों को हटा दिया गया था। मुस्लिमों के लिए यह जरूरी था
कि वे काबा की ओर मुंह करके प्रार्थना करें। मुहम्मद साहिब थोड़े ही समय में अरब
प्रदेश के बहुत बड़े भाग को एक नए धर्म, समुदाय एवं राज्य के अंतर्गत लाने में सफल
रहे। उनके द्वारा स्थापित इस्लामी राज्य व्यवस्था काफी लंबे समय तक अरब कबीलों और
कलों का राज्य संघ बनी रही।
प्रश्न 9. ‘अब्बासी क्रांति’ से क्या अभिप्राय
है? उमय्यद वंश के पतन तथा अब्बसी वंश की स्थापना के संदर्भ में इसकी जानकारी दीजिए।
उत्तर:
उमय्यद वंश को मुस्लिम राजनैतिक व्यवस्था के केंद्रीयकरण के लिए भारी मूल्य चूकाना
पड़ा। ‘दवा’ नामक एक सुनियोजित आंदोलन के उमय्यद वंश को उखाड़ फेंका। 750 में
उमय्यद वंश का स्थान अब्बासी वंश ने ले लिया। इसे अब्बासी क्रांति का नाम दिया
जाता है अब्बासियों ने उमय्यद शासन को दुष्ट बताया और यह दावा किया कि वे पैगबर
मुहम्मद के मूल इस्लाम की फिर से स्थापना करेंगे।
अब्बासी
विद्रोह तथा उमय्यद का पतन-अब्बासियों का विद्रोह पूर्वी ईरान में स्थित खुरासान
में प्रारंभ हुआ। यहाँ पर अरब-ईरानियों की मिली-जुली संस्कृति थी। यहाँ पर अरब
सैनिक मुख्यतः इराक से आए थे। उन्हें सीरियाई लोगों का प्रभुत्व पसंद नहीं था।
खुरासान के अरब नागरिक भी उमय्यद शासन में घृणा करते थे। इसका कारण यह कि उमय्यदों
ने करों में छूट देने और विशेषाधिकार देने के जो वायदे किए थे, वे पूरे नहीं किए
थे।
दूसरी
ओर वहाँ के ईरानी मुसलमानों को जातीय चेतना से ग्रस्त अरबों के तिरस्कार का शिकार
होना पड़ा था। अत: उमय्यदों को बाहर निकालने के वे किसी भी अभियान में शामिल होने
के लिए तैयार थे। अब्बासी क्रांति की सफलता-अब्बासी पैगंबर के चाचा अब्बास के वंशज
थे।
उन्होंने
विभिन्न अरब समूहों को यह आश्वासन दिया कि पैगंबर के परिवार का कोई मसीहा (महदी)
उन्हें उमय्यदों के दमनकारी शासन से मुक्त कराएगा। इस प्रकार उन्होंने सत्ता
प्राप्त करने के अपने प्रयास को वैध ठहराया। उसकी सेना का नेतृत्व एक ईरानी दास
अबू मुस्लिम ने किया। उसने अंतिम उमय्यद खलीफा मारवान को ‘जब’ नदी पर हुई लड़ाई
में हराया। इस प्रकार उमय्यद वंश का अंत हो गया और अब्बासी क्रांति सफल रही।
प्रश्न 10. मध्यकालीन मुस्लिम साम्राज्य के व्यापार एवं वाणिज्य की
जानकारी देते हुए यह बताइए कि इसका मुद्रा के प्रसार पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
मध्यकालीन मुस्लिम साम्राज्य का विस्तार हिंद महासागर और भूमध्यसागर के
व्यापारियों क्षेत्रों के बीच था। पाँच शताब्दियों तक चीन, भारत और यूरोप के
समुद्री व्यापार पर अरब तथा ईरानी व्यापारियों का एकाधिकार रहा। व्यापार
मार्ग-व्यापार दो मुख्य मार्गों लाल सागर और फारस की खाड़ी से होता था। लंबी दूरी
के व्यापार के लिए मसालों, कपड़े, चीनी मिट्टी की चीजों तथा बारूद को भारत और चीन से
लाल सागर (अदन और ऐधाब तक) तथा फारस की खाड़ी के पत्तनों (सिराफ और बसरा) तक
जहाजों द्वारा लाया जाता था।
यहाँ
से माल को ऊँटों के काफिलों द्वारा बगदाद दमिश्क और लेप्पो के भंडारगृहों तक
स्थानीय खपत अथवा आगे भेजने के लिए भेजा जाता था। हज की यात्रा के समय मक्का के
रास्ते से गुजरने वाले काफिलों का आकार बड़ा हो जाता था। व्यापारिक मार्गों के
भूमध्य सागर के सिरे पर सिकंदरिया के पत्तन से यूरोप को किए जाने वाला निर्यात
यहूदी व्यापारियों के हाथ में था। उनमें से कुछ भारत के साथ सीधे व्यापार करते थे।
चौथी शताब्दी में व्यापार एवं शक्ति के केंद्र के रूप में काहिरा के उभरने तथा
इटली के व्यापारिक शहरों में पूर्वी सिरे पर माल की बढ़ती हुई माँग के कारण लाल
सागर के मार्ग का महत्त्व बहुत अधिक बढ़ गया।
पूर्वी
सिरे पर ईरानी व्यापारी मध्य एशियाई और चीनी वस्तुएँ लाने के लिए बगदाद से बुखारा
तथा समरकंद (तूरान) होते हुए रेशम मार्ग से चीन जाते थे। तूरान भी वाणिज्यिक तंत्र
में एक महत्त्वपूर्ण कड़ी था। यह तंत्र फर और स्लाब गुलामों के व्यापार के लिए
उत्तर में रूस और स्केंडीनेविया तक फैला हुआ था। यहाँ के बाजारों में खलीफाओं और
सुल्तानों के दरबार के लिए दास-दासियाँ खरीदी जाती थीं।
मुद्रा
का प्रसार-राजकोषीय प्रणाली और बाजार के लेन-देन से इस्लामी देशों में धन के
महत्त्व में वृद्धि के फलस्वरूप मुद्रा का प्रसार बढ़ गया। सोने, चाँदी और ताँबे
(फुलस) के सिक्के बड़ी संख्या में बनाए जाने लगे। वस्तुओं और सेवाओं का मूल्य
चुकाने के लिए इन्हें प्राय: सर्राफों द्वारा सीलबंद थैलों में भेजा जाता था। सोना
अफ्रीका (सूदान) से और चाँदी मध्य एशिया से आती थी।
बहुमूल्य
धातुएँ और सिक्के पूर्वी व्यापार की वस्तुओं के बदले यूरोप से भी आते थे। धन की
बढ़ती हुई माँग से लोगों के सचित भंडारों और बेकार संपत्ति का भी उपयोग होने लगा।
उधार का कारोबार भी मुद्राओं के साथ जुड़ गया।
वस्तुनिष्ठ प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1. पैगम्बर मुहम्मद ने प्रथम सार्वजनिक उपदेश कब दिये?
(क)
610
(ख) 612
(ग)
622
(घ)
627
प्रश्न 2. उम्मयद खिलाफत वंश की स्थापना किसने की?
(क) मुआविया
(ख)
याजीद
(ग)
उस्मान
(घ)
वालीद
प्रश्न 3. मुस्लिम कानून के किस शाखा को सर्वाधिक रूढ़िवादी माना
गया है?
(क)
मलिकी
(ख)
हनफी
(ग)
शफीई
(घ) हनबली
प्रश्न 4. किस सूफी संत ने फना के सिद्धांत दिये?
(क) वयाजिद विस्तामी
(ख)
रबिया
(ग)
बहाउद्दीन जकारिया
(घ)
सलीम चिश्ती
प्रश्न 5. मुरुज अल-धाहाब की रचना किसने की?
(क) मसूदी
(ख)
ताबरी
(ग)
अलबेरूनी
(घ)
बालाधुरी
प्रश्न 6. इरान में इल-खानी राज्य की स्थापना किसने की?
(क)
कुबलई खाँ
(ख) हजनू खाँ
(ग)
मौके खान
(घ)
चगताई खाँ
प्रश्न 7. 1095 से 1291 तक के धर्मयुद्ध
(क्रुसेड) किन दो संप्रदायों के मध्य हुए?
(क)
ईसाई एवं यहूदी
(ख)
यहूदी एवं अरब
(ग) ईसाई एवं मुसलमान
(घ)
मुसलमान एवं मंगाले
प्रश्न 8. समानी वंश का संबंध किस देश से था?
(क) इरान
(ख)
तुर्की
(ग)
रूस
(घ)
इटली
प्रश्न 9. ‘डोम ऑफ द रॉक’ नामक मस्जिद कहाँ
पर स्थित है?
(क)
बसरा
(ख)
दमिश्क
(ग) जेरूसलम
(घ)
समरकंद
प्रश्न 10. अब्बासी क्रांति कब हुई?
(क)
712 ई.
(ख) 750 ई.
(ग)
786 ई.
(घ)
802 ई.
प्रश्न 11. पैगम्बर का प्रतिनिधि क्या कहलाता था?
(क)
ताजा
(ख)
उम्मा
(ग)
अमीर
(घ) खलीफा
प्रश्न 12. दास प्रजनन क्या है?
(क) गुलामों की संख्या बढ़ाने की प्रथा
(ख)
वेतनभोगी दासों की श्रेणी
(ग)
दासता से स्वतंत्र होने की प्रथा
(घ)
अभिजात्य वर्ग द्वारा दासों की स्त्रियों
प्रश्न 13. मुसलमानों का प्रथम खलीफा कौन था?
(क)
उमर
(ख)
अब्बासी
(ग) अबू बकर
(घ)
अक्त-महदी
प्रश्न 14. मामलूक किसे कहा जाता था?
(क)
खलीफा
(ख)
तुर्क शासक
(ग) तुर्की गुलाम अधिकारी
(घ)
ईरानी मुसलमान
प्रश्न 15. शर्लमेन कौन था?
(क) फ्रांस का शासक
(ख)
इंगलैंड का शासक
(ग)
इटली का शासक
(घ)
स्पेन का शासक
प्रश्न 16. इस्लाम के संस्थापक पैगम्बर मुहम्मद साहब का जन्म कब
हुआ था?
(क) 570 ई.
(ख)
622 ई.
(ग)
612 ई.
(घ)
इनमें से कोई नहीं
प्रश्न 17. पैगम्बर मुहम्मद साहब का जन्म किस स्थान पर हुआ था?
(क)
मदीना
(ख) मक्का
(ग)
बगदाद
(घ)
इनमें से कोई नहीं
प्रश्न 18. पैगम्बर मुहम्मद साहब को ‘सत्य के दिव्य दर्शन’ किस आयु
में हुए थे?
(क)
30 वर्ष की आयु में
(ख)
35 वर्ष की आयु में
(ग) 40 वर्ष की आयु में
(घ)
इनमें से कोई नहीं
प्रश्न 19. मक्का से मदीना को पैगम्बर साहब का प्रस्थान क्या
कहलाता है?
(क) हिजरा
(ख)
आवागमन
(ग)
तीर्थयात्रा
(घ)
इनमें से कोई नहीं
प्रश्न 20. मुस्लिम पंचांग का प्रथम वर्ष माना जाता है …………………..
(क)
सन् 612 ई.
(ख)
सन् 570 ई.
(ग) सन् 622 ई.
(घ)
इनमें से कोई नहीं
प्रश्न 21. मुसलमानों का पवित्र धर्म ग्रंथ कहलाता है ………
(क) कुरान
(ख)
उपदेश
(ग)
(क) एवं (ख) दोनों
(घ)
इनमें से कोई नहीं
प्रश्न 22. पैमगम्बर मुहम्मद साहब की मृत्यु हुई ………………….
(क)
620 ई.
(ख) 632 ई.
(ग)
640 ई.
(घ)
650 ई.
प्रश्न 23. इस्लामिक कॉलेज (अल-अजहर) कहाँ स्थित था?
(क)
मक्का में
(ख)
मदीना में
(ग) काहिरा में
(घ)
बसरा में
प्रश्न 24. पहले खलीफा कौन थे?
(क) अबू बकर
(ख)
उथमान
(ग)
अली
(घ)
इनमें से कोई नहीं
प्रश्न 25. द्वितीय खलीफा कौन थे?
(क)
अली
(ख) उमर
(ग)
खलीफा
(घ)
इनमें से कोई नहीं
प्रश्न 26. तीसरे खलीफा कौन थे?
(क) उथमान
(ख)
उम्मयद
(ग)
अब्बसिद
(घ)
इनमें से कोई नहीं
प्रश्न 27. चौथे खलीफा कौन थे?
(क)
अमीर
(ख) अली
(ग)
अशरफ
(घ)
इनमें से कोई नहीं
प्रश्न 28. 657 ई. की प्रसिद्ध ऊँट की
लड़ाई में अली ने किसे परास्त किया?
(क)
उस्मान
(ख)
मुआविया
(ग) आयशा
(घ)
याजीद
प्रश्न 29. जजिया किनसे लिया जाता था?
(क)
हिन्दू
(ख) गैरमुसलमान
(ग)
मुसलमान
(घ)
यहूदी
प्रश्न 30. प्रसिद्ध सूफी महिला संत रबिया कहाँ की रहने वाली थी?
(क)
दमिश्क
(ख)
मक्का
(ग) वसरा
(घ)
इस्तांबुल
प्रश्न 31. नई फारसी कविता का जनक किसे कहा जाता है?
(क)
अबुनुनास
(ख)
उमर खैय्याम
(ग)
फिरदौसी
(घ) रूदकी