पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1. फ्रांस में प्रारम्भिक सामंती समाज के दो लक्षणों का वर्णन
कीजिए।
उत्तर:
- सामंती समाज से कृषक अपने खेतों के साथ-साथ
सामंत के खेतों पर कार्य करते थे।
- लार्ड किसानों को सैनिक सरक्षा प्रदान करता
था।
प्रश्न 2.जनसंख्या के स्तर में होने वाले लंबी अवधि के परिवर्तनों ने
किस प्रकार यूरोप की अर्थव्यवस्था और समाज को प्रभावित किया?
उत्तर:यूरोप
की जनसंख्या निरंतर बढ़ती जा रही थी। 1000 ई. में लगभग 420 लाख थी, बढ़कर 1200 में
लगभग 620 लाख और 1300 ई. में 730 लाख हो गयी। इसका समाज और अर्थव्यवस्था पर निम्नलिखित
प्रभाव पड़ा –
- अधिक जनसंख्या बढ़ने से कृषि का विस्तार
हुआ और कृषकों के पास आवश्यकता से अधिक खाद्यान्न होता था।
- लोगों को नगर चौक, चर्च, सड़कें, बाजार
आदि की आवश्यकता महसूस हुई। फलस्वरूप नगरों का विकास किया गया।
प्रश्न 3. नाइट एक अलग वर्ग क्यों बने और उनका पतन कब हुआ?
उत्तर:
नोवी शताब्दी में नाइट एक अलग वर्ग बना जो कुशल अश्वसेना की आवश्यकता की पूर्ति कर
सके।
14
– 15 वीं शताब्दी में नगरों के उत्थान के साथ इनका पतन शुरू हो गया।
प्रश्न 4. मध्यकालीन मठों का क्या कार्य था?
उत्तर:
मध्यकालीन मठों का निम्नलिखित कार्य था –
- मठ धार्मिक समुदाय के निवास थे। वहाँ भिक्षु
प्रार्थना करता था, अध्ययन करता था और कृषि जैसे शारीरिक श्रम भी करते थे।
- इन मठों ने कला के विकास में थी योगदान
दिया। उदाहरण के लिए हेडेलगार्ड ने चर्च की प्रार्थनाओं में सामुदायिक गायन को
प्रथा के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
प्रश्न 5. मध्यकालीन फ्रांस के नगर में एक शिल्पकार के एक दिन के जीवन
की कल्पना कीजिए और इसका वर्णन करिए।
उत्तर:
मध्यकालीन फ्रांस के नगर में एक शिल्पकार के एक दिन का जीवन-मध्यकालीन फ्रांस में शिल्प
का विकास हो गया और मूर्तिकार, कसीदाकारी करने वाले, पत्थर पर डिजाइन बनाने वाले कहीं
भी देखे जा सकते थे। पत्थर पर काम करने वाले शिल्पकार की ही कल्पना करते हैं। वह पत्थर
को अपने सामने लाता है। उसको इधर-उधर देखकर उचित ढंग से रखता है। फिर वह अपने औजार
का बक्स खोलता है। वह एक-एक करके उन्हें निकालता जाता है
और
साफ करता है। पत्थर को तोड़ने के लिए हाथ में हथौड़ी लेता है। उसे ढोकता है और उसके
हत्थे को ठीक करता है। फिर छेनी को पत्थर पर घिसकर तेज करता है। घिसते समय बार-बार
देखता है कि वह काम लायक है या नहीं। ठीक हो जाने पर पत्थर का काम करने के लिए तैयार
हो जाता है।
पत्थर
पर डिजाइन सांचे की सहायता से चाक से बना लेता है। फिर पच्चीकारी के कार्य में जुट
जाता है हथौड़ी से छेनी को कभी धीमे कभी तेज मारता है। पत्थर से कभी छोटा टुकड़ा निकल
ग कभी बड़ा टुकड़ा निकलता है। तर यह कार्य बड़े मनोयोग से करता है। बीच-बीच में मनारजन
के लिए गाना गुनगुनाता रहता है या सिगार पी लेता है। दोपहर के समय काम बंद कर देता
है और खाने के लिए चला जाता है। थोड़ा आराम करने के बाद फिर काम में लग जाता है। मैंने
देखा शाम होने जा रही है परंतु शिल्पकार कंवल पत्थर के एक छाट भाग को ही है खूबसूरत
डिजाइन का रूप दे पाया है। वह दिन भर खून पसीना बहाता रहा । वह काम बंद कर देता है,
सामान को उचित जगह पर रखकर प्रसन्न होकर घर चला जाता है।
प्रश्न 6. फ्रांस के सर्फ और रोम के दास जीवन की दशा की तुलना कीजिए।
उत्तर:
फ्रांस के सर्फ और रोम के दास जीवन की दशा की तुलना –
- फ्रांस का सर्फ या कृषि दास को अपने लार्ड
के जागीर पर काम करना होता था परंतु काम करने के दिन निश्चित होते थे।
- वह इन दिनों में सभी प्रकार का कार्य करता
था उस कार्य विशेष रूप से कृषि एवं गृह कार्य से सम्बद्ध होता था।
- रोम का दास अपने मालिक के दास खूटे में
बंधा हुआ था। उससे कभी भी कोई भी कार्य कराया जा सकता था। उसका पूरा समय स्वामी
के साथ जुड़ा हुआ था।
- स्वामी के कार्य के बदले दोनों को स्वामी
से कोई मजदूरी नहीं मिलती थी।
- सर्फ प्रायः अपने परिवार के लार्ड के यहाँ
कार्य करते थे परंतु रोम के दासों के साथ ऐसा नहीं था। उनका पार्टनार प्रायः उनके
साथ नहीं होता था।
- कृषिदास के पास गुजारे के लिए लार्ड का
एक भूखंड होता था। इसके अधिकांश उपज लार्ड को देनी पडती थी। रोम के दास के पास
इस प्रकार की कोई व्यवस्था नहीं थी।
- फ्रांस के कृषि दास और रोम के दास दोनों
स्वामी की आज्ञा के बिना कहीं नहीं जा सकते थे।
- सर्फ लार्ड की आज्ञा से ही विवाह कर सकता
था परंतु रोम का दास तो विवाह ही नहीं कर सकता था।
- रोम का दास खरीदा या बेचा जा सकता था परंतु
सर्फ के साथ ऐसा नहीं किया जा सकता था।
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1. ‘सामंतवाद’ का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
सामंतवाद (Fuedalism) शब्द जर्मन शब्द ‘फ्यूड’ से बना है। फ्यूड का अर्थ है-भूमि का
टुकड़ा। अतः ऐसी प्रणाली को सामंतवाद कहा जाता है जिसमें भूमि के बदले सेवाएँ प्राप्त
की जाती हैं। सामंती समाज का उदय मध्यकालीन यूरोप में हुआ।
प्रश्न 2. रोमन साम्राज्य का कौन-सा प्रांत आगे चलकर फ्रांस बना और
कैसे?
उत्तर:
रोमन साम्राज्य का गॉल (Gaul) प्रांत आगे चलकर फ्रांस बना। इसे जर्मनी की फ्रंक
(Franks) नामक एक जनजाति ने अपना नाम देकर फ्रांस बना दिया।
प्रश्न 3. फ्रांस का समाज किस आधार पर तीन वर्गों में बँटा था?
उत्तर:
फ्रांसीसी पादरियों को विश्वास था कि प्रत्येक व्यक्ति कार्य के आधार पर तीन वर्गों
में से किसी एक वर्ग सदस्य होता है। एक बिशप ने कहा, “वर्ग क्रम में, कुछ प्रार्थना
करते हैं, दूसरे लड़ते हैं और शेष अन्य कार्य करते हैं।” फ्रांस का समाज इसी आधार पर
तीन वर्गों अर्थात् पादरी, अभिजात और कृषक वर्ग में बँटा था।
प्रश्न 4. फ्रांस के अभिजात वर्ग को प्राप्त कोई दो विशेषाधिकार बताएँ।
उत्तर:
- उनका अपनी संपदा पर स्थायी रूप से पूर्ण
नियंत्रण होता था।
- वे अपना स्वयं का न्यायालय लगा सकते थे।
यहाँ तक कि वे अपनी मुद्रा भी जारी कर सकते थे।
प्रश्न 5. मेनर क्या था?
उत्तर:
उपजाऊ भूमि को ‘मेनर’ कहते थे। मेनर के मध्य लार्ड अथवा सामंत का महल होता था। मेनर
में रहने वाले लोग की भूमि पर ही निर्वाह करते थे। किसान का जीवन बड़ा कष्टमय था। मेनर
का स्वामी अथवा सामंत बहुत भोग-विलास का जीवन व्यतीत करता था।
प्रश्न 6. मध्यकालीन यूरोप में वर्गों का विकास नहीं हुआ? 13वीं शताब्दी
में इनका आकार क्यों बढ़ाया जाने लगा?
उत्तर:
मध्यकालीन यूरोप में वर्गों का विकास सामंत प्रथा के अंतर्गत राजनीतिक प्रशंसा तथा
सैनिक शक्ति के केन्द्रों के रूप में हुआ। 13वीं शताब्दी में इनका आकार इसलिए बढ़ाया
जाने लगा ताकि ये नाईट तथा उसके परिवार का निवास स्थान बन सकें।
प्रश्न 7. सामंती प्रथा के अंतर्गत ‘फीफ’ क्या थी?
उत्तर:
लार्ड नाइट को भूमि का एक भाग देता था। इसी भू-भाग को ‘फीफ’ कहते थे। नाइट फीफ के बदले
लार्ड को एक निश्चित धनराशि देता था और युद्ध में उसकी ओर से लड़ने का वचन देता था।
प्रश्न 8. बारहवीं शताब्दी में फ्रांस में घुमक्कड़ चारण क्या भूमिका
निभाते थे?
उत्तर:
घुमक्कड़ चारण गायक थे। वे फ्रांस के मेनरों में वीर राजाओं तथा नाइट्स की वीरता भरी
कहानियाँ गीतों के रूप में गाते हुए घूमते रहते थे। इस प्रकार वे योद्धाओं का उत्साह
बढ़ाते थे।
प्रश्न 9. कैथोलिक चर्च एक शक्तिशाली संस्था थी। कैसे?
उत्तर:
कैथोलिक चर्च एक स्वतंत्र संस्था थी जिसके अपने नियम थे। उसके पास राजा द्वारा दी गई
भूमि होती थी जिससे वह कर उगाता था। इसलिए चर्च एक शक्तिशाली संस्था थी।
प्रश्न 10. ‘टीथ’ (Tithe) क्या था?
उत्तर:
चर्च ते कृषक से एक वर्ष में उसकी उपज का दसवाँ भाग लेने का अधिकार था। इसे टीथ कहा
जा था।
प्रश्न 11. तीन वर्गों से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
तीन गौ से अभिप्राय 9वीं से 16वीं शताब्दी के बीच यूरोप की तीन सामाजिक श्रेणियों से
है।
वर्ग
थे –
- ईसाई पादरी
- भूमिधारक अभिजात वर्ग तथा
- कृषक
प्रश्न 12. 96 से 11वीं शताब्दी के बीच पश्चिमी यूरोप के ग्रामीण क्षेत्रों
में होने वाला कोई एक परिवर्तन बताएँ। एक उदाहरण भी दें।
उत्तर:
इस कार में चर्च तथा शाही शासन ने वहाँ के कबीलों के प्रचलित नियमों और संस्थाओं में
तालमेल स्थापित करने में सहायता की। इसका सबसे अच्छा उदाहरण पश्चिमी और मध्य यूरोप
में शालर्मन का साम्राज्य था।
प्रश्न 13. वाइकिंग लोग कौन थे?
उत्तर:
वाइकिंग स्कैंडीनेविया अर्थात् नार्वे, स्वीडेन डेनमार्क तथा आइसलैंड के थे जो 8वीं
से वीं शताब्दी के बीच उत्तर पश्चिमी रोप पर आक्रमण करने के बाद वहीं बस गए। इनमें
से अधिकांश लोग समुद्री लुटेरे तथा व्यापारी थे।
प्रश्न 14. 9वीं से 16वीं शताब्दी तक पश्चिमी यूरोप के इतिहास की जानकारी
किस प्रकार मिल सकी? उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
- चर्चा में मिलने वाले जन्म, मृत्यु तथा
विवाह के अभिलेखों की सहायता से परिवारों और जनसंख्या की संरचना को समझा जा सका।
- चर्चा से प्राप्त अभिलेखों से व्यापारिक
संस्थाओं की जानकारी मिली।
- गीत व कहानियों द्वारा हमें त्योहारों और
सामुदायिक गतिविधियों के बारे में बोध हुआ।
प्रश्न 15. कैथोलिक चर्च की आय के दो स्रोत बताइए।
उत्तर:
- किसानों से मिलने वाली टीथ।
- धनी लोगों द्वारा अपने कल्याण तथा मरणोपरांत
अपने रिश्तेदारों के कल्याण के लिए दिया जाने वाला दान।
प्रश्न 16. चर्च के औपचारिक रीति-रिवाज की कुछ महत्त्वपूर्ण रस्में,
सामंती कुलीनों की नकल थीं। इसके दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
- प्रार्थना करते समय हाथ जोड़कर और सिर झुकाकर
घुटनों के बल झुकना नाइट द्वारा अपने वरिष्ठ लॉर्ड के प्रति वफादारी की शपथ लेते
समय अपनाए गए तरीके जैसा था।
- इसका एक अन्य उदाहरण था-ईश्वर के लिए ‘लॉर्ड’
शब्द का प्रयोग।
प्रश्न 17. यूरोप के दो सबसे प्रसिद्ध मठ कौन-कौन से थे?
उत्तर:
- 529 ई. में इटली में स्थापित सेंट बेनेडिक्ट
(St. Benedict) का मठ।
- 910 ई. में बरगंडी में स्थापित क्लूनी
(Clunny) का मठ।
प्रश्न 18. फ्रायर (Friars) किन्हें कहा जाता था?
उत्तर:
तेरहवीं शताब्दी में भिक्षुओं के कुछ समूहों ने मठों में न रहने का निर्णय लिया। वे
एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूम-घूम कर लोगों को उपदेश देते थे और दान से अपनी जीविका
चलाते थे। इन्हें फ्रायर (Friars) कहा जाता था।
प्रश्न 19. टैली (Taille) क्या था? कौन लोग इससे मुक्त थे?
उत्तर:
टैली एक प्रकार का प्रत्यक्ष कर था जो राजा कृषकों पर लगाते थे। पादरी तथा अभिजात वर्ग
इस कर से मुक्त थे।
प्रश्न 20. विलियम प्रथम कौन था? उसने इंग्लैंड का शासन कैसे प्राप्त
किया ?
उत्तर:
विलियम प्रथम नारमैंडी का ड्यूक था। 11वीं शताब्दी में उसने एक सेना लेकर इंग्लिश चैनल
को पार किया तथा इंग्लंड के सैक्सन राजा को हराकर इंग्लैंड पर अपना अधिकार कर लिया।
प्रश्न 21. मध्यकाल में इग्लैंड की कृषि से जुड़ी कोई दो समस्याएँ बताओ।
उत्तर:
- हल लकड़ी का था जिसे बैल खींचते थे। यह
हल केवल भूमि की सतह को ही खुरच सकता था। यह भूमि की प्राकृतिक उत्पादकता को पूरी
तरह से बाहर निकाल पाने में असमर्थ था।
- फसल-रक में भी एक प्रभावहीन तरीके का उपयोग
हो रहा था।
प्रश्न 22. कृषिदास नगरों में भाग जान का प्रयास क्यों करते थे?
उत्तर:
पदाम अपने लाडों से छिर्ग के लिए नगरों में भाग जाने का प्रयास करते थे। यदि वे अपने
भाई से एक वर्ष और एक दिन तक छिपे रहने में सफल हो जाते थे, तो वे स्वतंत्र नागरिक
या जाते थे।
प्रश्न 23. इंग्लैंड में नयी कृषि प्रौद्योगिकी के प्रचलन से कृषि क्षेत्र
में हुए कोई दो परिवर्तन लाएँ।
उत्तर:
- लकड़ी से बने हल के स्थान पर लोहे की भारी
नोक वाले हल तथा साँचे दर पट्टे (Mould-hoards) का उपयोग होने लगा। ऐसे हल भूमि
को अधिक गहरा खोद सकते थे।
- पशुओं को हल में जोतने के तरीकों में सुधार
हुआ। अब जुआ गले (Neck harmess) के स्थान पर कधे पर रखा जाने लगा। इससे पशुओं
के काम करने की क्षमता बढ़ गई।
प्रश्न 24. मध्ययुग में नगरों के विकास के कोई दो कारणों का वर्णन करो।
उत्तर:
- मध्ययुग में वाणिज्य-व्यापार की उन्नति
के कारण नगरों का महत्त्व काफी अधिक बढ़ गया। अत: बहुत-से व्यापारी नगरों में
बस गए।
- नगर सामंती नियंत्रण से मुक्त हो गए थे।
नगरों में रहने वाले लोगों के आने-जाने पर कोई प्रतिबंध नहीं था। फलतः नगरों का
विकास हुआ।
प्रश्न 25. मध्ययुगीन यूरोप की शिल्पी श्रेणियों की दो मुख्य विशेषताओं
की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
- ये श्रेणियाँ वेतन, मूल्यों तथा काम की
अवधि का निर्धारण करती थीं।
- ये अपने शिल्प संघ के उच्च स्तर को बनाए
रखने का प्रयत्न करती थीं और इस उद्देश्य से विशेष नियम निश्चित करती थीं।
प्रश्न 26. मध्यकालीन यूरोप में मठों के जीवन की दो विशेषताएँ बताएँ।
उत्तर:
- मठों का जीवन पूरी तरह व्यवस्थित था। इनमें
रहने वाले भिक्षुओं तथा भिक्षुणियों को कठोर अनुशासन में रहना पड़ता था।
- भिक्षुओं तथा भिक्षुणियों को संपत्ति रखने
तथा विवाह करने की अनुमति नहीं थी।
प्रश्न 27. फ्रांस के कैथीइल नगर क्या थे?
उत्तर:
फ्रांस में बड़े-बड़े चर्चा का निर्माण हुआ जिन्हें कैथील कहते थे। समय बीतने पर इन
चर्चा के चारों ओर नगरों का विकास हुआ। इन्हीं नगरों को कैथील नगर कहा जाता है।
प्रश्न 28. 14वीं शताब्दी में यूरोप में किसान विद्रोह क्यों हुए?
उत्तर:
14वीं शताब्दी में लाडौँ ने अपने धन संबंधी अनुबंधों को तोड़ कर फिर से पुरानी मजदूरी
सेवाओं को लागू कर दिया। किसानों ने इसका विरोध किया और विद्रोह करना आरंभ कर दिया।
प्रश्न 29. 15वीं तथा 16वीं शताब्दी के यूरोपीय शासकों को ‘नये शासक’
क्यों कहा गया?
उत्तर:
15वीं तथा 16वीं शताब्दी में यूरोप के शासकों ने अपनी सैनिक तथा वित्तीय शक्ति में
वृद्धि की । इस प्रकार उन्होंने शक्तिशाली राज्य स्थापित किए जो आर्थिक दृष्टि से भी
महत्त्वपूर्ण थे। इसी कारण इतिहासकारों ने उन्हें ‘नये शासक’ कहा।
प्रश्न 30. फ्रांस में स्टेट्स जनरल (परामर्शदात्री सभा) का अधिवेशन
कब और किस शामक द्वारा बुलाया गया ? इसके बाद 1789 तक इसे क्यों नहीं बुलाया गया ?
उत्तर:
फ्रांस में स्टेट्स जनरल का अधिवेशन 1614 ई. में लुई 13वें द्वारा बुलाया गया । इसके
तीन सदन थे जो समाज के तीन वर्गों का प्रतिनिधित्व करते थे। इसके पश्चात् 1789 ई. तक
इसे फिर नहीं बुलाया गया क्योंकि राजा तीन वर्गों के साथ अपनी शक्ति बाँटना चाहता था।
लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1. सामंतवाद के समय यदि आप निम्नलिखित में से किसी एक वर्ग में
होते, तो लिखें कि अपना समय किस प्रकार बिताते? नाइट, सर्फ, मेनर का स्वामी, स्वतंत्र
किसान, मठवासी।
उत्तर:
1.
यदि मैं नाइट होता तो सामंत या बैरन मेरे स्वामी होते। मैं उनका बहुत आदर करता तथा
पूर्ण रूप से उनका स्वामिभक्त रहता। मैं उन्हें सैनिक सेवाएँ प्रदान करता। अपने अधीनस्थ
किसानों से मैं कर के अतिरिक्त उनकी उपज का कुछ भाग वसूल करता। सर्फ लोगों से मैं अनेक
प्रकार के घरेलू काम लेता। इस प्रकार मैं सुख तथा आनंद का जीवन व्यतीत करता।
2.
यदि मैं सर्फ होता तो मेरी दशा बड़ी शोचनीय होती। मुझे नाइट की प्रत्येक आज्ञा का पालन
करना पड़ता। हर समय कोड़े पड़ने का भय रहता। कभी मुझे मकान की मरम्मत करनी पड़ती तो
कभी सड़क बनाने का काम करना पड़ता। इसके अतिरिक्त नाइट के खेत पर बेगार के रूप में
भी कार्य करना पड़ता।
3.
यदि मैं किसी मेनर का स्वामी होता तो मेरा जीवन भोग-विलास में व्यतीत होता। मैं पत्थर
के बने हुए एक सुंदर तथा विशाल मकान में रहता जिसमें जीवन यापन की सभी सुविधाएँ प्राप्त
होतीं। अपने मकान के चारों ओर मैं एक खाई खुदवाता ताकि कोई शत्रु अंदर न आ सके। संकट
के समय मैं अपनी प्रजा को अपने मकान में शरण देता। मैं सभी आवश्यक वस्तुओं का मेनर
में ही उत्पादन करता ताकि मेनर में रहने वालों को दूसरे लोगों पर निर्भर न रहना पड़े।
4.
यदि मैं एक स्वतंत्र किसान होता तो मैं खेतों में कठिन परिश्रम करता ताकि कृषि की उपज
बढ़ सके। कारण यह है कि मुझे अपनी उपज का कोई भी भाग अपने स्वामी को नहीं देना पड़ता।
मुझे तो केवल एक निश्चित राशि ही कर के रूप में अपने स्वामी को देनी पड़ती। मैं भोग-विलास
का जीवन तो व्यतीत नहीं कर पाता परंतु मेरा जीवन अन्य किसानों से काफी उन्नत होता।
5.
यदि मैं मठवासी होता तो मेरा जीवन बड़ा सादा होता। मैं ईश्वर की उपासना करता और प्रतिदिन
चर्च में जाता। मैं मठ के नियमों का पूरी तरह पालन करता और मठ में बने अस्पताल की देखभाल
करता। चर्च की पाठशाला में मैं एक शिक्षक के रूप में कार्य करता और विद्यार्थियों के
जीवन को सुधारने का प्रयत्न करता। इसके अतिरिक्त मैं लोगों में धर्म-प्रचार करके नैतिक
जीवन को उन्नत करता ।
प्रश्न 2. आजकल किसी भी देश के समाज के जीवन-क्रम को सामंतवादी कहना
क्यों बुरा समझा जाता है?
उत्तर:
आजकल किसी भी देश के समाज के जीवन क्रम को सामंतवादी कहना निम्नलिखित कारणों से बुरा
समझा जाता है –
1.
सामंतवादी प्रथा में कई बड़े दोष थे। जहाँ भी यह प्रथा प्रचलित रही वहाँ अशांति का
बोलबाला रहा। परंतु आजकल किसी भी देश में शांति तथा व्यवस्था का बना रहना बहुत आवश्यक
समझा जाता है। इसका कारण यह है कि शांति के बिना देश की प्रगति रूक जाती है, सांस्कृतिक
विकास क जाता है और व्यापार ठप्प पड़ जा है। इसीलिए किसी भी देश के समाज के जीवन-क्रम
को सामंतवादी कहना बुरा समझा जाता है।
2.
सामंतवादी समाज में किसानों की दशा बड़ी ही शोचनीय थी। कठोर परिश्रम करने पर भी उन्हें
पेट भर रोटी नहीं मिलती थी। अत: सामंतवाद जैसी व्यवस्था को कौन अच्छा कह सकता है।
3.
सामंतवादी समाज में ऊँच-नीच की विचारधारा पर बड़ा बल दिया जाता था। बड़े-बड़े सामंतों
को सभी अधिकार प्राप्त थे। परंतु निर्धन किसानों को सभी अधिकारों से वंचित रखा गया
था।
4.
सामंतवादी समाज में किसानों का शोषण किया जाता था। सर्फ लोगों से बेगार ली जाती थी
जो आज के युग में एक अपराध माना जाता है। इन्हीं सभी कारणों से किसी भी समाज को सामंतवादी
कहना बुरा समझा जाता है।
प्रश्न 3. मध्यकालीन यूरोप के समाज में कौन-कौन से मुख्य वर्ग थे? उनमें
से किसी एक की दशा का वर्णन करों।
Ø सामंतवाद के अंतर्गत यूरोप में किसानों की दशा का वर्णन करें।
उत्तर:
मध्यकालीन यूरोप का समाज मुख्य रूप से दो वर्गों में बंटा हुआ था –
- बड़े-बड़े सामंत तथा सरदार
- कृषक
कृषकों
की दशा – मध्यकाल में सामंतवादी जीवन कृषि पर आधारित था परंतु दास कृषक बड़ा कठोर जीवन
व्यतीत करते थे। वे मिट्टी तथा घास के बने हुए मकानों में रहते थे। उन्हें अपने स्वामी
की निजी भूमि पर काम करना पड़ता था। इसके लिए उन्हें कोई मजदूरी नहीं दी जाती थीं।
किसानों की पत्नियाँ तथा लड़कियाँ सामंत के घर में कताई, बुनाई आदि का काम करती थीं।
सामंत
के तंदूर से रोटियाँ बनाना तथा उनकी चक्की में आटा पिसवाना उनके लिए आवश्यक था। इसके
लिए उन्हें पैसे देने पड़ते थे। इस प्रकार हम देखते हैं कि मध्यकालीन यूरोप -के समाज
में किसानों की दशा बहुत खराब थी।
प्रश्न 4. यूरोपीय सामंत व्यवस्था के गुण-दोषों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
सामंती व्यवस्था के कारण यूरोपीय समाज में शांति और सुरक्षा का समावेश हुआ। सामाजिक
और आर्थिक जन-जीवन बिना किसी बाधा के चलता रहा। शक्तियों का विकेंद्रीकरण हुआ। इनका
विभाजन राजा और सामंतों के बीच हुआ। इसी राजनीति के कारण ही इंग्लैंड में ससंद की स्थापना
हुई। सामंती व्यवस्था अभिशाप भी सिद्ध हुई।
इससे
समाज में नये वर्गों का उदय हुआ। मनुष्य-मनुष्य और वर्ग-वर्ग में भेद समझा जाने लगा।
इस प्रकार इस काल में राजनीतिक एकता की स्थापना न हो सकी। साधारण मनुष्य को अनेक कष्टों
का सामना करना पड़ा। शक्तिशाली सामंतों में अपने अपने स्वार्थों के लिए लड़ाइयाँ होने
लगी और राजा मूक दर्शक बना रहा।
प्रश्न 5. मध्य युग में नगरों के विकास के कारणों का वर्णन करें।
उत्तर:
मध्य युग में नगरों के विकास के निम्नलिखित कारण थे –
- मध्य युग में वाणिज्य-व्यापार की उन्नति
के कारण नगरों का महत्त्व काफी अधिक बढ़ गया। अत: बहुत-से व्यापारी नगरों में
बस गये।
- नगर सामंती नियंत्रण से मुक्त हो गये थे।
नगरों में रहने वाले लोगों के आने-जाने पर कोई प्रतिबंध नहीं था। नगरों की इस
स्वतंत्रता के कारण भी नगरों का विकास हुआ।
- नगर में र। वाले लोग व्यापार से काफी धन
क…ने लगे और वे काफी धनवान हो गये। नगरों में धन की अधिकता के कारण भी नगरों के
विकास में बड़ी सहायता मिली।
प्रश्न 6. मध्य युग में नगरों के विकास तथा संगठन का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मध्य युग में वाणिज्य-व्यापार की उन्नति, धन में वृद्धि और सामंती जीवन से मुक्ति के
कारण नगरों का विकास हुआ। विभिन्न शिल्पों के विकास ने भी नगरों के उदय में सहायता
पहुँचाई। इन नगरों में रहने वाले व्यापारियों तथा शिल्पियों ने धीरे-धीरे अपने संघ
बना लिये। ये संघ अपने-अपने संगठन के सदस्यों के हितों का पूरा ध्यान रखते थे।
नगरों
में शिल्पियों के संगठन का महत्त्व बहुत अधिक था और इनके नियम भी काफी कठोर थे। किसी
नए शिल्पी को तब तक संगठन में शामिल नहीं किया जाता था जब तक कि वह किसी योग्य शिल्पी
से काम सीख कर उसमें पूरी तरह निपुण न हो जाए।
प्रश्न 7. 5वीं से 11वीं शताब्दी तक यूरोप के पर्यावरण का वहाँ की कृषि
पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
पाँचवीं से दसवीं शताब्दी तक यूरोप का अधिक भाग विस्तृत वनों से ढंका हुआ था। अतः कृषि
के लिए उपलब्ध भूमि सीमित थी। उस समय यूरोप में तीव्र ठंड का दौर चल रहा था। इससे सर्दियाँ
प्रचंड हो गई और उनकी अवधि लंबी हो गई। फलस्वरूप फसलों का वर्धनकाल छोटा हो गया, जिससे
कृषि की पैदावार में कमी आई।
परंतु
ग्यारहवीं शताब्दी से यूरोप के पर्यावरण में एकाएक परिवर्तन हुआ। वहाँ औसत तापमान बढ़
गया जिसका कृषि पर अच्छा प्रभाव पड़ा । कृषकों को कृषि के लिए अब लंबी अवधि मिलने लगी।
मिट्री पर पाले का प्रभाव कम हो जाने से खेती करना सरल हो गया। फलस्वरूप यूरोप के अनेक
भागों के वन क्षेत्रों में कमी हुई और कृषि भूमि का विस्तार हुआ।
प्रश्न 8. यूरोप में व्यापार एवं वाणिज्य में किस प्रकार वृद्धि हुई
और इसका क्या परिणाम निकला?
उत्तर:
ग्यारहवीं शताब्दी में यूरोप तथा पश्चिम एशिया के बीच नवीन व्यापार-मार्ग विकसित होने
लगे। स्कैंडीनेविया के व्यापारी वस्त्र के बदले में फर तथा शिकारी बाज लेने के लिए
उत्तरी सागर से दक्षिण की समुद्री यात्रा करते थे। अंग्रेज व्यापारी राँगा बेचने के
लिए आते थे। बारहवीं शताब्दी तक फ्रांस में भी वाणिज्य और शिल्प विकसित होने लगे थे।
पहले दस्तकारों को एक मेनर से दूसरे मेनर में जाना पड़ता था।
परंतु
अब उन्हें एक स्थान पर टिक कर रहना अधिक सुविधाजनक लगा। वे यहीं पर वस्तुओं का उत्पादन
कर सकते थे और अपनी आजीविका के लिए उनका व्यापार कर सकते थे। परिणाम-जैसे-जैसे नगरों
की संख्या बढ़ती गई और व्यापार का विस्तार होता गया, नगर व्यापारी अधिक धनी तथा शक्तिशाली
होते गए। उनमें अभिजात वर्ग में शामिल होने के लिए प्रतिस्पर्धा भी आरंभ हो गई।
प्रश्न 9. यूरोप के नगरों में आर्थिक संस्था का आधार क्या था और इसका
क्या महत्त्व था?
उत्तर:
यूरोप में आर्थिक संस्था का आधार ‘श्रेणी’ (गिल्ड) था। प्रत्येक शिल्प या उदयोग एक
‘श्रेणी’ के रूप में संगठित था। श्रेणी एक ऐसी संस्था थी जो उत्पाद की गुणवत्ता, उसके
मूल्य और बिक्री पर नियंत्रण रखती थी। श्रेणी सभागार’ प्रत्येक नगर का आवश्यक अंग होता
था। इस सभागार में आनुष्ठानिक समारोह होते थे और गिल्डों के प्रधान आपस में मिलते थे।
पहरेदार नगर के चारों ओर गश्त लगाकर पहरा देते थे। संगीतकारों की प्रातिभोजों तथा नागरिक
जुलूसों में अपनी कला का प्रदर्शन करने के लिए बुलाया जाता था। सराय वाले यात्रियों
की देखभाल करते थे।
प्रश्न 10. यूरोप में समाज का चौथा वर्ग किस प्रकार अस्तित्व में आया?
उत्तर:
‘नगर की हवा स्वतंत्र बनाती है’ एक लोकप्रिय कहावत थी। अत: स्वतंत्र होने की इच्छा
रखने वाले कृषि दास भाग कर नगर में छिप जाते थे। यदि कोई कृषि दास अपने लॉर्ड की नजरों
से एक वर्ष एक दिन तक छिपे रहने में सफल था तो वह स्वतंत्र नागरिक बन जाता था। गरों
में रहने वाले अधिकतर व्यक्ति या तो स्वतंत्र कृषक थे या भगोड़े कूषक। कार्य की दृष्टि
वे अकुशल श्रमिक होते थे। नगरों में अनेक दुकानदार और व्यापारी भी रहते थे। आगे चलर
विशिष्ट कौशल वाले व्यक्तियों जैसे साहूकार तथा वकील आदि की आवश्यकता अनुभव हुई। बड़े
नगरों की जनसंख्या लगभग तीस हजार होती थी। नगरों में रहने वाले इन्हीं लोगों ने समाज
का चौथा वर्ग बनाया।
प्रश्न 11. 11वीं शताब्दी में यूरोप में सामंतवादी संबंधों में क्या
परिवर्तन आया और इसका क्या परिणाम निकला?
उत्तर:
ग्यारहवीं सदी से व्यक्तिगत संबंध जो सामंतवाद के आधार थे, कमजोर पड़ने लगे। इसका कारण
यह था कि अब अधिकांश लेन-देन मुद्रा द्वारा होने लगी थी। लॉर्ड भी कृषकों से लगान सेवाओं
की बजाय नकदी में वसूल करने लगे। कृषकों ने भी वस्तु-विनिमय को छोड़ अपनी फसल को व्यापारियों
को मुद्रा में (नकदी में) बेचना शुरू कर दिया। व्यापारी उन वस्तुओं को शहर में बेंचकर
मुद्रा कमाते थे। धन के बढ़ते उपयोग का प्रभाव कीमतों पर पड़ा जो खराब फसल के समय बहुत
अधिक बढ़ जाती थीं। उदाहरण के लिए 1270 ई. से 1320 ई. के बीच इंग्लैंड में कृषि भूमि
के मूल्य दुगुने हो गए थे।
प्रश्न 12. सामंतवाद क्या था? इसकी आर्थिक विशेषताएं बताएँ।
उत्तर:
‘सामंतवाद’ (Fuedalism) शब्द जर्मन फ्यूड’ से बना है जिसका अर्थ भूमी का एक टुकड़ा
है। इस प्रकार सामंतवाद भूमि से जुड़ी एक प्रणाली थी। यह एक ऐसे समाज की ओर संकेत करता
है जो मध्य फ्रॉस और बाद में इग्लैंड तथा दक्षिण इटली में विकसित हुआ।
आर्थिक
दृष्टि से सामंतवाद एक प्रकार के कृषि उत्पादन को व्यक्त करता है जो सामंत (लार्ड)
और कृषकों के संबंधों पर आधारित था। कृषक अपने खेतों के साथ-साथ लार्ड के खेतों पर
काम करते थे। लार्ड कृषकों को उनकी श्रम-सेवा के बदले में सैनिक सुरक्षा देते थे। लार्ड
के कृषकों पर व्यापक न्यायिक अधिकार भी थे। इसलिए सामंतवाद ने जीवन के न केवल आर्थिक
बल्कि सामाजिक और राजनीतिक पहलुओं पर भी प्रभाव डाला।
प्रश्न 13. गॉल किस प्रकार फ्राँस बना? 11वीं शताब्दी तक फ्रांस की
क्या स्थिति थी?
उत्तर:
गॉल रोमन साम्राज्य का एक प्रांत था। इसमें दो विस्तृत तट रेखाएँ, पर्वत श्रेणियाँ,
लंबी-लंबी नदियाँ, वन और कृषि योग्य विस्तृत मैदान स्थित थे। जर्मनी की एक फ्रंक नामक
जनजाति ने गॉल को अपना नाम देकर उसे फ्राँस बना दिया। छठी शताब्दी में इस प्रदेश पर
किश अथवा फ्रांस के ईसाई राजा शासन करते थे। फ्रांसीसियों के चर्च के साथ गहरे संबंध
थे। ये संबंध पोप द्वारा राजा शार्लमेन को पवित्र रोमन सम्राट की उपाधि दिए जाने पर
और अधिक मजबूत हो गए।
ग्यारहवीं
सदी में फ्रांस के प्रांत नरमंडी के राजकुमार ने एक संकर जलमार्ग के पार स्थित इंग्लैंड-स्कॉटलैंड
द्वीपों को जी ‘लया था।
प्रश्न 14. खर्चीले प्रौद्योगिकी परिवर्तनों की समस्या से कैसे निपटा
गया?
उत्तर:
कुछ प्रौद्योगिकी परिवर्तन अत्यधिक खर्चीले थे। उदाहरण के लिए कृषकों के पास पनचक्की
और पवन चक्की लगाने के लिए पर्याप्त धन नहीं था। इसलिए इस मामले में लॉडों द्वारा पहल
की गई। परंतु कुछ क्षेत्रों में कृषक भी पहल करने में सक्षम रहे। उन्होंने खेती योग्य
भूमि का विस्तार किया। फसलों की तीन-चक्रीय व्यवस्था को अपनाया और गाँवों में लोहार
की दुकानें तथा भट्ठियाँ स्थापित की। यहाँ पर कम लागत में लोहे की नोंक वाले हल और
घोड़े की नाल बनाने और उनकी मरम्मत करने का काम किया जाने लगा।
प्रश्न 15. फ्रांस के सर्फ और रोम के दास के जीवन की दशा की तुलना कीजिए।
उत्तर:
रोम के दास-रोम के दासों का जीवन बहुत ही कठोर था। उनसे कई-कई घंटे तक लगातार काम लिया
जाता था। उन्हें समूहों में बेडियों में जकड कर रखा जाता था. ताकि वे भाग न जाएँ ।
सोते समय भी उनकी बेड़ियाँ नहीं खोली जाती थीं। उन्हें अधिक-से-अधिक बच्चे पैदा करने
के लिए उत्साहित किया जाता था, क्योंकि उनके बच्चे भी बड़े होकर दास बनते थे। कुछ स्वतंत्र
दास भी थे। उनका जीवन बेहतर था।
फ्रांस
के सर्फ-फ्रांस में सर्फ अर्थात् कृषि-दास लाडों की भूमि पर कृषि करते थे। इसलिए उनकी
अधिकतर उपज भी लॉर्ड को मिलती थी। उनसे वेगार भी ली जाती थी। वे लॉर्ड की आज्ञा के
बिना जागीर नहीं छोड़ सकते थे। सर्फ केवल अपने लार्ड की चक्की में ही आटा पीस सकते
थे, उनके तंदूर में ही रोटी सेंक सकते थे और उनकी मदिरा संपीडक में ही मदिरा और बीयर
तैयार कर सकते थे। लॉर्ड को उनका विवाह तय करने का अधिकार था।
प्रश्न 16. लॉर्ड तथा नाइट के आपसी संबंधों की संक्षिप्त जानकारी दीजिए।
उत्तर:
नाइट लॉर्ड से उसी प्रकार जुड़े थे जिस प्रकार लॉर्ड राजा के संबद्ध थे। लॉर्ड नाइट
को भूमि का एक भाग देता था और उसकी रक्षा करने का वचन देता था। इस भू-भाग के फीफ
(Fiel) कहते थे। फीफ को उत्तराधिकार में भी प्राप्त किया सकता था। यह 1000-2000 एकड़
या इससे अधिक क्षेत्र में फैली हुई हो सकती थी। इसमें नाइट और उसके परिवार के लिए एक
पनचक्की और मदिरा संपीडक के अतिरिक्त उनका घर, चर्च और उस पर निर्भर व्यक्तियों के
रहने का स्थान होता था।
सामंत
मैनर की तरह फीफ की भूमि को भी कृषक जोतते थे। फीफ के बदले में नाइट अपने लॉर्ड को
एक निश्चित धनराशि देता था और युद्ध में उसकी ओर से लड़ने का वचन देता था। अपनी सैन्य
कुशलता को बनाए रखने के लिए नाइट प्रतिदिन कुछ समय के लिए पुतलों से लड़ने तथा अपने
बचाव का अभ्यास करते थे। नाइट अपनी सेवाएँ अन्य लॉडाँ को भी दे सकता था। परंतु उसकी
सर्वप्रथम निष्ठा अपने लॉर्ड के प्रति ही होती थी।
प्रश्न 17. मध्यकालीन पश्चिमी यूरोप का प्रथम वर्ग कौन-सा था? कैथोलिक
चर्च में उसकी भूमिका का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मध्यकालीन यूरोप का प्रथम वर्ग पादरी वर्ग था। इसमें पोप, विशप तथा पादरी शामिल थे।
कैथोलिक चर्च में उन्हें महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त था। पोप पश्चिमी चर्च के अध्यक्ष
थे। वे रोम में रहते थे। यूरोप में ईसाई समाज का मार्गदर्शन बिशप तथा पादरी करते थे।
अधिकतर गाँवों के अपने चर्च होते थे। यहाँ प्रत्येक रविवार को लोग पादरी के धर्मोपदेश
सुनने तथा सामूहिक प्रार्थना करने के लिए इकट्ठे होते थे। चर्च के अपने नियम थे। इनके
अनुसार प्रत्येक व्यक्ति पादरी नहीं हो सकता था।
कृषि-दास,
शारीरिक रूप में बाधित व्यक्ति तथा स्त्रियाँ पादरी नहीं बन सकती थीं। पादरी बनने वाले
पम्प विवाह नहीं कर सकते थे। धर्म के क्षेत्र में बिशप अभिजात (उच्च वर्ग के) माने
जाते थे। बिशपों के पास भी लॉर्ड की तरह विस्तृत जागीरें थीं। वे शानदार महलों में
रहते थे। चर्च को कृषक से एक वर्ष में उसकी उपज का दसवाँ भाग लेने का अधिकार था। इसे
‘टीथ’ (Tithe) कहते थे। धनी लोगों द्वारा अपने कल्याण तथा मरणोपरांत अपने रिश्तेदारों
के कल्याण के लिए दिया जाने वाला दान भी चर्च की आय का एक स्रोत था।
प्रश्न 18. इंग्लैंड में सामंतवाद का विकास कैसे हुआ?
उत्तर:
इंग्लैंड में सामंतवार का विकास ग्यारहवीं शताब्दी से हुआ। छठी शताब्दी में मध्य यूरोप
से एंजिल (Angles) और सैक्सन (Saxons) लोग इंग्लैंड में आकर बस गए। इंग्लैंड देश का
नाम ‘एंजिल लैंड’ का रूपांतरण है । ग्यारहवीं शताब्दी में नोरमंडी (Normandy) के इयूक
विलियम प्रथम ने एक सेना के साथ इंग्लिश चैनल (English Channel) को पार करके इंग्लैंड
के सैक्सन राजा को हरा दिया और इंग्लैंड पर अपना अधिकार कर लिया। उसने देश की भूमि
नपवाई, उसके नक्शे बनवाए और उसे अपने साथ आए 180 नॉरमन अभिजातों में बाँट दिया। ये
लॉर्ड राजा के प्रमुख काश्तकार बन गए।
इनसे
राजा सैन्य-सहायता प्राप्त करता था। वे राजा को कुछ नाइट देने के लिए भी बाध्य थे।
इसलिए लॉर्ड नाइटों को कुछ भूमि उपहार में देने लगे। बदले में वे उनसे उसी प्रकार सेवा
की आशा रखते थे जैसी वे राजा की करते थे। परंतु वे अपने निजी युद्धों के लिए नाइटों
का उपयोग नहीं कर सकते थे। एंग्लो-सैक्सन कृषक विभिन्न स्तरों के भू-स्वामियों के काश्तकार
बन गए। इस प्रकार इंग्लैंड में सामंतवादी व्यवस्था अस्तित्व में आई।
प्रश्न 19. सामंतवाद के समय यूरोपीय समाज में जो वर्ग थे, उनका वर्णन
करें। पध्यकाल के अंतिम वर्षों में किस नए वर्ग का विकास हुआ और क्यों?
उत्तर:
सामंती प्रथा के अंतर्गत सामाजिक संगठन के दो वर्ग थे-शासक वर्ग तथा शासित वर्ग । शासक
वर्ग में बड़े-बड़े सामंत (अलं) थे, जिन्हें राजा की ओर से भूमि मिली हुई थी। इस भूमि
को उन्होंने नाइटों में बाँट रखा था। इस प्रकार सामंत तथा नाइट शासक वर्ग में थे। कृषक
शासित वर्ग में आते थे।
दास
कृषक भूमि पर काम करते थे और सामंत वर्ग उनके परिश्रम की कमाई को भोग-विलास तथा आपसी
लड़ाईयों में खर्च कर देते थे। परिश्रमी कृषकों के जीवन के कल्याण की ओर ध्यान नहीं
दिया जाता था।
नया
वर्ग-मध्य काल के अंतिम वर्षों में व्यापार ने बहुत उन्नति की। इसका एक महत्त्वपूर्ण
परिणाम यह निकला कि इस युग में नए वर्ग का जन्म हुआ जिसे व्यापारी वर्ग के नाम से जाना
जाता है। इस नए वर्ग के विकास के निम्नलिखित कारण थे
धर्म
युद्ध के कारण यूरोप में भोग-विलास की वस्तुओं की मांग बढ़ गयी। इसके कारण बहुत से
लोग इन वस्तुओं का व्यापार करने लगे। इससे व्यापारी वर्ग का विकास हुआ।
कृषि
के विकास के कारण किसान कृषि की वस्तुओं का गैर कृषि-वस्तुओं के साथ विनिमय करने लगे।
इससे भी व्यापारी वर्ग के विकास को काफी प्रोत्साहन मिला।
प्रश्न 20. मध्य युग में पश्चिमी यूरोप की राजनीतिक दशा का विवेचन करें।
उत्तर:
मध्य युग में यूरोप की राजनीतिक दशा अच्छी नहीं थी। पश्चिमी यूरोप अनेक छोटे-छोटे राज्यों
में बाँट हुआ था। पूर्वी भाग में बिजेंटाइन साम्राज्य स्थापित था जिसकी राजधनी कुस्तनतुनिया
थी। पश्चिमी भाग में समय-समय पर कुछ विजेताओं ने छोटे राज्यों को मिलाकर बड़े राज्यों
की स्थापना का प्रयास किया। 800 ई. में लगभग यहाँ शार्लेमेन ने एक बड़ा राज्य स्थापित
किया। 1000 ई. के लगभग यहाँ पवित्र रामन साम्राज्य की स्थापना हुई। 1453 ई. में बिजेंटाइन
साम्राज्य के प्रदेशों को तुर्की ने जीत लिया और इस तरह रोमन साम्राज्य का पतन हो गया।
प्रश्न 21. फ्रांस के कथील नगर किस प्रकार अस्तित्व में आए?
उत्तर:
धनी व्यापारी चों को बहुत अधिक दान देते थे। अत: फ्रांस में बड़ी चर्चा का निर्माण
होने लगा। इन्हें कधील कहा जाता था। यू तो चर्च मठों की संपत्ति थे फिर भी लोगों के
विभिन्न समूहों ने अपने श्रम, वस्तुओं तथा धन से उनके निर्माण में सहयोग दिया । कथील
पत्थर के बने होते थे और उन्हें पूरा करने में कई-कई वर्ष लग जाते थे। उनके निर्माण
के दौरान कथोड्रल के आसपास का क्षेत्र और अधिक बस गया और उनका निर्माण कार्य पूरा होने
पर वे तीर्थ-स्थल बन गए। इस प्रकार उनके चारों ओर छोटे-छोटे नगर उभर आए। यही कथील नगर
थे।
प्रश्न 22. कथील किस प्रकार बनाए जाते थे?
उत्तर:
कथील इस प्रकार बनाए गए थे कि पादरी की आवाज लोगों के जमा होने वाले सभागार में साफ
सुनाई दे सके और भिक्षुओं का गायन भी अधिक मधुर सुनाई पड़े। इसके अतिरिक्त लोगों को
प्रार्थना के लिए बुलाने वाली घंटियाँ भी दूर तक सुनाई दें। खिड़कियों के लिए अभिजित
काँच का प्रयोग होता था। दिन के समय सूर्य का प्रकाश उन्हें कथील के अंदर विद्यमान
व्यक्तियों के लिए चमकदार बना देता था। सूयार्यस्त के पश्चात् मोमबत्तियों का प्रकाश
उन्हें बाहर के व्यक्तियों के लिए चमक प्रदान करता था। अभिरंजित कांच की खिड़कियों
पर बाईबल की कथाओं से संबंधित चित्र बने होते थे जिन्हें अनपढ़ व्यक्ति भी पढ़ सकते
थे।
प्रश्न 23. 14वीं शताब्दी के आर्थिक संकट ने कृषकों में किस प्रकार
सामाजिक असंतोष को जन्म दिया? यह किस बात का संकेत था?
उत्तर:
14वीं शताब्दी के संकट से लॉर्डों की आय बुरी तरह प्रभावित हुई। मजदूरी की दरें बढ़ने
तथा कृषि संबंधी मूल्यों की गिरावट ने उनकी आय को घटा दिया। निराशा में उन्होंने अपने
धन संबंधी अनुबंधों को तोड़ दिया और फिर से पुरानी मजदूरी सेवाओं को लागू कर दिया।
कृषकों, विशेषकर पढ़े-लिखे और समृद्ध कृषकों ने इसका विरोध किया। उन्होंने 1323 ई.
में फ्लैंडर्स (Flanders) में, 1358 ई. में फ्रांस में और 1381 ई. में इंग्लैंड में
विद्रोह किए।
यद्यपि
इन विद्रोहों का क्रूरतापूर्वक दमन कर दिया गया, परंतु महत्त्वपूर्ण बात यह थी कि सबसे
हिंसक विद्रोह उन स्थानों पर हुए जहाँ आर्थिक विस्तार के कारण समृद्धि आई थी। यह इस
बात का संकेत था कि कृषक पिछली सदियों में मिले लाभों को खोना नहीं चाहते थे। तीव्र
दमन के बावजूद इन विद्रोहों की तीव्रता ने सुनिश्चित कर दिया कि कृषकों पर पुराने सामंती
रिश्तों को फिर से नहीं लादा जा सकता। इससे यह भी सुनिश्चित हो गया कि कृषि दासता के
पुराने दिन फिर नहीं लौटेंगे।
प्रश्न 24. मध्यकालीन यूरोप में नगरों के उत्थान का जन-जीवन पर क्या
प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
मध्यकालीन यूरोप में नगरों के उत्थान का जन-जीवन पर बड़ा गहरा प्रभाव पड़ा। नगरों के
उत्थान के कारण यूरोप के सामाजिक जीवन में अनेक परिवर्तन आए । इससे सामंत प्रधान समाज
का ढाँचा शिथिल पड़ गया। व्यक्तिगत स्वतंत्रता का महत्त्व काफी बढ़ गया। नगरों के कारण
ही शिक्षा का प्रसार हुआ और समाज तथा धर्म-सुधार आंदोलनों को बल मिला। सच तो यह है
कि नगरों के उत्थान ने जन-जीवन को प्रगति के पथ पर जा खड़ा कर दिया।
प्रश्न 25. यूरोप में मध्यकाल के अंतिम वर्षों में किस नए सामाजिक वर्ग
का विकास हुआ और क्यों?
उत्तर:
मध्यकाल के अंतिम वर्षों में व्यापार ने बहुत उन्नति की। इसका एक महत्त्वपूर्ण परिणाम
यह निकला कि इस युग में नए वर्ग का जन्म हुआ जिसे व्यापारी वर्ग के नाम से जाना जाता
है। इस वर्ग के विकास के निम्नलिखित कारण थे
- धर्म-युद्धों के कारण यूरोप में भोग-विलास
की वस्तुओं की मांग बढ़ गयी। इसके कारण बहुत-से लोग इन वस्तुओं का व्यापार करने
लगे। इस प्रकार व्यापारी वर्ग का काफी विकास हुआ।
- कृषि के विकास के कारण किसान कृषिगत वस्तुओं
का गैर-कृषिगत वस्तुओं के साथ विनिमय करने लगे। इससे भी व्यापारी वर्ग के विकास
को काफी प्रोत्साहन मिला।
प्रश्न 26. मध्यकालीन यूरोप के मठों में ईसाई भिक्षु कैसा जीवन बिताते
थे?
उत्तर:
मध्यकालीन चर्च और इसके ईसाई नेता अपने अनुयायियों को यह उपदेश देते थे कि उन्हें संन्यासियों
जैसा जीवन व्यतीत करना चाहिए। उनके इस उपदेश से प्रभावित होकर बहुत-से ईसाईयों ने सांसारिक
जीवन छोड़ दिया और संन्यासी हो गये। संन्यासी पुरुषों को भिक्षु तथा स्त्रियों को भिक्षुणियाँ
कहा जाता था।
ये
सभी बहुत सादा जीवन व्यतीत करते थे। इन्हें अनुशासन के कठोर नियमों का पालन करना पड़ता
था। इन्हें विवाह करने और संपत्ति रखने का अधिकार नहीं था। नियमों को उल्लंघन करने
पर इन्हें कठोर दंड दिया जाता था। मठों में रहने वाले लोग ईश्वर की उपासना करते थे।
ये लोगों को नैतिक शिक्षा देते थे तथा रोगियों की सेवा करते थे।
प्रश्न 27. यूरोप में मध्ययुगीन मठों के दो-दो गुण तथा दोषों की सूची
बनाओ।
उत्तर:
मध्ययुगीन मठ प्रणाली यूरोप के लिए वरदान भी थी और अभिशाप भी। इसके दो गुणों और दो
दोषों का वर्णन इस प्रकार है
गुण
–
- इन मठों ने शिक्षा केंद्रों के रूप में
कार्य किया। इस प्रकार यूरोप में ज्ञान का प्रसार हुआ।
- मध्यकालीन चर्च के प्रतिनिधि के रूप में
कार्य करते हुए प्रशिक्षित भिक्षुओं ने संन्यासी जीवन की पवित्रता, नैतिकता, तप,
त्याग, अनुशासन के आदर्शों को प्रोत्साहन दिया।
दोष
–
- मठों ने विस्तृत भूमि और अत्यधिक धन अपने
पास एकत्रित कर लिया।
- भिक्षु एवं भिक्षुणियों के साथ-साथ रहने
के कारण भ्रष्टाचार फैल गया। वे तप और त्याग के जीवन को छोड़ कर भ्रष्ट एवं विलासितापूर्ण
जीवन व्यतीत करने लगे।
प्रश्न 28. राष्ट्र राज्यों के विकास में किन तत्त्वों ने सहायता पहुँचाई
? इन राज्यों में विकसित राजनीतिक व्यवस्था का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
राष्ट्र-राज्यों के विकास में निम्नलिखित तथ्यों ने सहायता पहुँचाई –
- सामंतवाद का पतन-सामंतवाद के पतन के कारण
सामंतों की शक्ति कमजोर हो गई। इसके कारण शक्तिशाली शासकों ने पूर्ण सत्ता अपने
हाथ में ले ली।
- मध्यम वर्ग का शक्तिशाली होना-वाणिज्य और
व्यापार की उन्नति के कारण मध्यम वर्ग की शक्ति बढ़ गई। मध्यम वर्ग ने राष्ट्र-राज्यों
के उदय तथा विकास में महत्त्वपूर्ण भाग लिया।
- राष्ट्रीय भाषाएँ और साहित्य-राष्ट्रीय
भाषाओं और उनमें लिखे गए साहित्य ने भी राष्ट्र-राज्यों के विकास में बन सहायता
की।
- नए राष्ट्र-राज्यों का शासन शक्तिशली निरंकुश
राजाओं के हाथ में था। इन शासकों ने अपीलों के लिए न्यायालय स्थापित किए। देश
में
- ऐसी राजनीतिक व्यवस्था की स्थापना हुई जिससे
अराजकता का अंत हो गया। इसके अतिरिक्त कृषि दासता की प्रथा को सदा के लिए समाप्त
कर दिया गया।
प्रश्न 29. मार्टिन लूथर कौन थे?
उत्तर:
मार्टिन लूथर एक जर्मन युवा भिक्षु थे, जिन्होंने 1517 ई. में कैथोलिक चर्च के रूढ़िवाद
एवं भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान छेड़ा था। लूथर के आंदोलन को प्रोटेस्टेंट सुधारवाद
का नाम दिया गया। उन्होंने सादगी से पूर्ण जीवन एवं ईश्वर में असीम आस्था को अपनाने
पर बल दिया था। प्रोटेस्टेंट आंदोलन के आचार संहिता का भी निर्माण लूथर ने किया, जिनमें
आंदोलन संबंधी 95 प्रावधान रखे गये थे।
प्रश्न 30. मध्यकालीन यूरोप में मठों का क्या कार्य था?
उत्तर:
मध्यकालीन यूरोप के विशेष श्रद्धालु ईसाई धार्मिक समुदायों में रहते थे, जिन्हें मठ
कहा जाता था। ईसाई धर्म के प्रचार-प्रसार में मठों ने अपनी अहम् भूमिका निभायी है।
पुरुष ईसाई भिक्षुओं को “मोक” एवं महिलाओं को ‘नन’ कहा जाता था। मठों ने सामाजिक और
शैक्षणिक विकास के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
प्रश्न 31. राष्ट्र-राज्यों की तीन उपलब्धियाँ बताएँ।
उत्तर:
राष्ट्र-राज्यों की तीन उपलब्धियाँ निम्नलिखित थीं –
- समाज में सर्फ वर्ग की समाप्ति कर दी गई।
इसके अतिरिक्त सामतवाद का अंत करके कृषि, उद्योग तथा व्यापार की उन्नति से लोगों
के जीवन-स्तर को ऊँचा उठाया गया ।
- सीमा विवादों को समाप्त करके राज्यों को
सुरक्षित सीमाएं प्रदान की गई।
- राष्ट्र-राज्यों में एक ही भाषा बोलने वाले
और समान संस्कृति से संबंधित लोगों में एकता स्थापित हुयी।
प्रश्न 32. मध्यकालीन यूरोप में सामंतवाद के विभिन्न वर्गों में जो
संबंध था, उसका वर्णन कीजिए।
उत्तर:
सामंतवाद में विभिन्न वर्ग थे-ड्यूक या अर्ल, बैरन या नाइट । इन सामंतों के अतिरिक्त
किसानों की श्रेणी भी थी। किसानों के दो वर्ग थे-पहले वर्ग में स्वतंत्र किसान आते
थे और दूसरे वर्ग में कृषक दासों की गणना होती थी। प्रत्येक सामंत अधिपति समझा जाता
था। सामंत का कोई भी स्वामी नहीं था।
वह
अपने अधिपति की ओर से उस भूमि का प्रबंध करता था। युद्ध के समय में राजा इयूकों तथा
अलों से, अर्ल बैरनों से और बैरन नाइटों से सैनिक सहायता लेते थे। राजा भी सीधा बैरन
या नाइट से संपर्क स्थापित नहीं कर सकता था । स्वतंत्र किसान केवल कर देते थे, परंतु
दस किसानों से बेगार ली जाती थी।
प्रश्न 33. यूरोपीय सामंतवाद की मुख्य विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
सामंतवाद का अर्थ है-भूमि का एक भाग जिसका प्रयोग सामंत सेवा करने की शर्तों के बदले
करते थे। राजा अपनी जागीरों को लॉर्ड्स में बाँट देते थे। लॉर्ड्स इस भूमि का वितरण
सामंतों में कर देते थे। प्रत्येक सामंत अपने अधिपति के प्रति निष्ठा रखता था और उसे
सैनिक सहायता तथा उपहार देता था।
सामंत
सरदार को अपने अधिपति से औपचारिक अधिकार मिल जाते थे। कृषक सामंती अधिक्रम में किसानों
का सबसे निम्न वर्ग था। ये दो प्रकार के थे-स्वतंत्र किसान तथा दास कृषक (सर्फ)। किसान
अपने स्वामी को मिलने वाली भूमि पर बंधुआ मजदूर के रूप में कार्य कर थे। इस प्रकार
सामंतवाद में सत्ता व विकेंद्रीकरण किया गया । परंतु राजा का सामान्य व्यक्ति से कोई
संपर्क न रहा।
प्रश्न 34. सामंतवाद के राजनीतिक और आर्थिक महत्त्व का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मध्यकालीन यूरोप में सामंतवाद के कारण समाज में राजनीतिक और आर्थिक स्तर पर बहुत परिवर्तन
हुए। राजनीतिक रूप में सामंतवाद के कारण एक नवीन शासन पद्धति का विकास हुआ। केंद्रीय
सत्ता का अभाव हो गया और वास्तविक शक्ति का प्रयोग सामंती लॉर्ड करने लगे। इस व्यवस्था
में कानून तथा न्याय का कोई आदर नहीं था। आर्थिक रूप से लोग का जीवन बड़ा पिछड़ गया।
इस
युग में दास कृषकों का शोषण किया जाता था। नगरों के अभाव के कारण इस युग में व्यापार
ठप्प हो गया। वास्तव में सामंती ढाँचे में जीवन मुख्यतः ग्रामीण गा। काम किसान करते
थे और उनके उत्पादन का एक कहत बड़ा भाग सामंतों के हाथों में चला जाता था।
प्रश्न 35. सामंतवाद में मेनर पर आश्रित जीवन का विवरण दीजिए।
उत्तर:
गाँव के समीप उपजाऊ भूमि को ‘मेनर’ कहते थे। मेनर के मध्य सामंत का महल होता था। वहाँ
एक चरागाह भी होता था। मेनर में रहने वाले लोग मेनर की भूमि पर ही निर्वाह करते थे।
इनकी भूमि पट्टियों में बँटी हुई थी। प्रत्येक किसान को खेतों के लिए कुछ पट्टियाँ
दे दी जाती थीं। किसान का जीवन बड़ा कष्टमय था। मेनर का स्वामी उनके सामाजिक एवं व्यक्तिगत
जीवन में भी हस्तक्षेप कर सकता था। सामंत भोग-विलासी जीवन व्यतीत करता था।
प्रश्न 36. मध्यकालीन यूरोप की सामंती व्यवस्था की आर्थिक और राजनैतिक
विशेषताओं का उल्लेख करें।
उत्तर:
1.
आर्थिक विशेषताएँ – सामंती व्यवस्था के आर्थिक जीवन का आधार कृषि
थी। गाँव की कृषि भूमि मेनर कहलाती थी। मेनर में एक चरागाह होता था, जहाँ पर पशु चराए
जाते थे। प्रत्येक मेनर में कारखानों की भी व्यवस्था थी जो मेनर की आवश्यकताओं की पूर्ति
करते थे। उद्यम और व्यक्तिगत पहल का सर्वथा अभाव था। नये तौर-तरीकों की खोज को कोई
प्रोत्साहन नहीं दिया जाता था।
2.
राजनीतिक विशेषताएँ – सामंतवाद के कारण राजा की सत्ता का विकेंद्रीकरण
हो गया और शक्तियाँ राजा और सामंतों के बीच बँट गयो। राजा का साधारण जनता से कोई संपर्क
नहीं था। सामंत जनता के कल्याण की कोई चिंता नहीं करते थे। वे आपसी युद्धों में उलझे
रहते थे जिसके कारण राजनीतिक एकता नष्ट हो गयी।
प्रश्न 37. प्रारंभ में यूरोप में कृषि संबंधी क्या समस्याएँ थीं? इसका
जनजीवन पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
1.
प्रारंभ में यूरोप में कृषि प्रौद्योगिकी बहुत ही प्राचीन थी। कृषक का एकमात्र कृषि
उपकरण बैलों की जोड़ी से चलने वाला लकड़ी का हल था। यह हल केवल पृथ्वी की सतह को ही
खुरच सकता था। यह भूमि की प्राकृतिक उत्पादकता को पूरी तरह से बाहर निकाल पाने में
असमर्थ था। इसलिए कृषि में अत्यधिक परिश्रम करना पड़ता था। भूमि को प्राय: चार वर्ष
में एक बार हाथ से खोदा जाता था जिसके लिए अत्यधिक मानव श्रम की आवश्यकता होती थी।
2.
फसल – चक्र का भी एक प्रभावहीन तरीके से उपयोग हो रहा था। भूमि को दो भागों में बाँट
दिया जाता था। एक भाग में सर्दियों में गेहूँ बाया जाता था, जबकि दूसरी भूमि को परती
या खाली रखा जाता था। अगले वर्ष परती भूमि पर राई बोई जाती थी जबकि दूसरा आधा भाग खाली
रखा जाता था।
प्रभाव
– इस व्यवस्था से मिट्टी की उर्वरता का ह्रास होने लगा और बार-बार अकाल पड़न लगा। कुपोषण
और विनाशकारी अकालों ने गरीबों के जीवन को अत्यंत दुष्कर बना दिया।
प्रश्न 38. कृषि संबंधी समस्याओं ने लार्डी तथा कृषकों के बीच किस प्रकार
विरोधी भावनाएं उत्पन्न की?
उत्तर:
कृषि संबंधी कठिनाइयों के बावजूद लार्ड अपनी आय बढ़ाने के लिए उत्सुक रहते थे। क्योंकि
कृषि उत्पादन को बढ़ाना संभव नहीं था, इसलिए उन्होंने कृषकों को मेनरों की जागीर की
समस्त भूमि को कृषि के अधीन लाने के लिए बाध्य किया। यही कार्य करने के लिए उन्हें
निधारित समय से अधिक समय काम करना पड़ता था।
कृषक
इस अत्याचार को सहन नहीं कर सकते थे। वे खुलकर विरोध नहीं कर सकते थे, इसलिए उन्होंने
निष्क्रिय प्रतिरोध का सहारा वे अपने खेतों पर कृषि करने में अधिक समय लगाने लगे और
उस श्रम से किए गए उत्पादन का अधिकतर भाग अपने पास रखने लगे।
वे
बेगार करने से बचने लगे। चरागाहों तथा वन-भूमि के कारण भी उनका अपने के साथ विवाद होने
लगा। लॉर्ड इस भूमि को अपनी व्यक्तिगत संपत्ति समझते थे जबकि कृषक इसे संपूर्ण समुदाय
की साझी संपदा मानते थे।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1. यूरोप में चौदहवीं शताब्दी का संकट क्या था ? इसके लिए कौन-कौन
से कारक उत्तरदायी थे? इस संकट के क्या परिणाम निकले?
उत्तर:
चौदहवीं शताब्दी के आरंभ में यूरोप का आर्थिक विस्तार धीमा पड़ा गया। इस संकट के लिए
मुख्य रूप निम्नलिखित कारक उत्तरदायी थे –
1.
मौसम में परिवर्तन-तेरहवीं शताब्दी के अंत तक उत्तरी यूरोप में
पिछले तीन सौ वर्षों की तेज ग्रीष्म ऋतु का स्थान अत्यधिक ठंडी ग्रीष्म ऋत ने ले लिया
। फलस्वरूप फसल उगाने वाले मौसम छोटे हो गए। ऊँची भूमि पर तो फसल उगाना और भी कठिन
हो गया। तूफानों और सागरीय बादों ने अनेक कृषि फार्मों को नष्ट कर दिया। परिणामस्वरूप
सरकार को करों द्वारा मिलनी वाली आय कम हो गई।
2.
गहन जुताई और जनसंख्या में वृद्धि-तेरहवीं शताब्दी से पहले की
अनुकूल जलवायु ने अनेक जंगलों तथा चरागाहों को कृषि भूमि में बदल दिया था। परंतु गहन
जुताई ने तीन क्षेत्रीय फसल-चक्र व्यवस्था के बावजूद भूमि को कमजोर बना दिया। ऐसा उचित
भू-संरक्षण के अभाव में हुआ था। चरगाहों की कमी हो गई जिसके कारण पशुओं की संख्या में
कमी आ गई। जनसंख्या वद्धि इतनी तेजी से हुई कि उपलब्ध संसाधन कम पड़ गए और अकाल पड़ने
लगे। 1315 ई. और 1317 ई. के बीच यूरोप में कई भयंकर अकाल पड़े । इसके पश्चात् 1320
ई. के दशक में अनगिनत पशु मौत का शिकार हो गए।
3.
चाँदी के उत्पादन में कमी-ऑस्ट्रिया और सर्बिया की चाँदी की खानों
के उत्पादन में कमी आ गई जिसके कारण धातु-मुद्रा का अभाव हो गया। इससे व्यापार प्रभाव
हुआ। अतः सरकारी मुद्रा में चाँदी की शुद्धता घटानी पड़ी। अब मुद्रा में सस्ती धातुओं
का मिश्रण किया जाने लगा।
4.
महामारियाँ-बारहवीं तथा तेरहवीं शताब्दी में वाणिज्य में विस्तार के
परिणामस्वरूप दूर देशों में व्यापार करने वाले पोत यूरोपीय तटों पर आने लगे। पोतों
के साथ-साथ बड़ी संख्या .3471. से 1350 ई. के बीच पश्चिमी यूरोप महामारी से बुरी तरह
प्रभावित हुआ। आधुनिक भाकलन के आधार पर यूरोप की जनसंख्या का लगभग 20 % भाग महामारी
का शिकार हो गया। कुछ स्थानों पर तो मरनों पर तो मरने वालों की संख्या वहाँ की जनसख्या
का 40% थी।
व्यापार
केंद्र होने के कारण नगरों पर महामारी का सबसे अधिक प्रभाव पड़ा। मठों तथा कानवेंटों
में जब एक व्यक्ति प्लेग की चपेट में आ जाता था तो वहाँ रहने वाले सभी लोग उसकी चपेट
में आ जाते थे। परिणामस्वरूप बड़ी संख्या में लोग मौत का शिकार हो जाते थे। प्लेग का
युवाओं तथा बुजुर्गों पर सबसे अधिक प्रभाव पड़ता था। 1350 ई. और 1370 ई. के करण पश्चात्
1360 ई. में भी प्लेग की छोटी-छोटी अनेक घटनाएँ हई। परिणामस्वरूप यूरोप की जनसंख्या
730 लाख से घटकर 1400 ई. में 450 लाख रह गई।
परिणाम
–
- इस विनाशलीला के साथ आर्थिक मंदी के जुड़ने
से व्यापक सामाजिक विस्थापन हुआ।
- जनसंख्या में कमी के कारण मजदूरों की संख्या
में भारी कमी आई। अतः कृषि और उत्पादन के बिच गंभीर असंतुलन उत्पन्न हो गया।
- खरीदारों की जनसंख्या में कमी आने से कृषि
उत्पादन के मूल्य एकाएक गिर गए।
- प्लेग के बाद इंग्लैंड में मजदूरों: विशेषकर
कृषि मजदूरों की मांग बढ़ गई जससे मजदूरी की दरों में 250 प्रतिशत तक वृद्धि हो
गई।
- इसका कारण यह था कि बचा हुआ श्रमिक बल अब
अपनी पुरानी दरों से दुगुनी मजदूरी की माँग करने लगा था।
प्रश्न 2. मध्यकालीन यूरोप में शक्तिशाली राज्यों (राष्ट्र राज्यों
) का उदय किस प्रकार हुआ? क्या अभिजात वर्ग द्वारा इसका विरोध हुआ?
उत्तर:
मध्यकालीन यूरोप में सामाजिक प्रक्रियाओं के साथ-साथ राजनीतिक क्षेत्रों में भी परिवर्तन
आए। पंद्रहवी और सोलहवीं सदियों में यूरोपीय शासकों ने अपनी सैनिक तथा वित्तीय शक्ति
में वृद्धि की। उनके द्वारा स्थापित नए शक्तिशाली राज्य उस समय होने वाले आर्थिक परिवर्तनों
के समान ही महत्त्वपूर्ण थे। फ्रांस में लुई, ग्यारहवें, ऑस्ट्रिया में मैक्यमिलन,
इंगलैंड में हेनरी सप्तम और स्पेन में ईसावला और फर्जीनेंड निरंकुश शासक थे। उन्होंने
राष्ट्रीय स्थायी सेनाओं तथा स्थायी नौकरशाही की व्यवस्था को तथा कर प्रणाली स्थापित
की । स्पेन तथा पुर्तगाल ने समुद्र पर यूरोप के विस्तार में भूमिका निभाई।
सहायक
तत्व-राष्ट्र राज्यों के उदय में निम्नलिखित तत्त्वों ने सहायता पहुँचाई –
1.
इन राजतंत्रों की सफलता का सबसे महत्वपूर्ण कारण बारहवीं और तेरहवीं शताब्दी में होने
वाली सामाजिक परिवर्तन था। जागीरदारी (Vassalage) और सामंताशाही (lordship) वाली सामंत
प्रथा के विलय और आर्थिक विकास की धीमी गति ने इन शासकों को प्रभावशाली बनया और जनसाधारण
पर अपना नियंत्रण बढ़ाने का अवसर प्रदान किया। नए शासकों में सामंतों से अपनी सेना
के लिए कर लेना बंद कर दिया।
इसके
स्थान पर उन्होंने बंदूकों और बड़ी तोपों से सुसज्जित प्रशिक्षित सेना तैयार की जो
पूर्ण रूप से उनके अधीन थी। इस प्रकार राजा इतने शक्तिशाली हो गए कि अभिजात वर्ग उनका
विरोध करने का साहसे नहीं जुटा पाता था।
2.
कों में वृद्धि से शासकों को पर्याप्त राजस्व प्राप्त होने लगा। इससे उन्हें पहले से
बड़ी सेनाएँ रखने में सहायता मिली। सेनाओं की सहायता से उन्होंने अपने राज्य की सीमाओं
की रक्षा की और उनकी विस्तार किया। सेना के बल पर उनके लिए राजसत्ता के प्रति होने
वाले आंतरिक प्रतिरोधों को दबाना भी सरल हो गया। विरोध-इसका अर्थ यह नहीं था कि अभिजात
वर्ग कॅन्द्रीय सत्ता का विरोध नहीं किया। अब कर प्रणाली के प्रश्न पर विद्रोह हुए
। इंग्लैंड में इस विद्रोह का 1497 ई., 1536 ई., 1547 ई. , 1549 ई. और 1533 ई. में
दमन कर दिया गया। फाँस में लुई xi (1461-83 ई.) को ड्यूकों तथा राजकुमारों के विरोद्ध
एक लंबा संघर्ष करना पड़ा। छोटे सरदारों और अधिकांश स्थनीय सभाओं के सदस्यों ने भी
अपनी शक्ति के जबरदस्ती हड़पे जाने का विद्रोह किया। सोलहवीं शताब्दी में फ्रांस में
होने वाले ‘धर्म युद्ध’ कुछ सीमा तक शाही सुविधाओं और क्षेत्रीय स्वतंत्रता के बीच
संघर्ष थे।
प्रश्न 3. यूरोप के शक्तिशाली राज्यों में अपनी शक्ति को बनाए रखने
के लिए अभिजात वर्ग ने क्या नीति अपनाई? क्या वे इसमें सफल रहे?
उत्तर:
अभिजात वर्ग ने अपने अस्तित्व को बनाए रखने के लिए एक चाल चली। उन्होंने नई शासन-व्यवस्था
का विरोधी होने की बजाय राजभक्त होने का दिखावा किया। इसी कारण निरंकुशता का सुधारा
हुआ रूप माना जाता है। वास्तव में लॉर्ड, जो सामती प्रथा में शासक थे, राजनीतिक परिदृश्य
पर अभी भी छाए हए थे। उन्हें प्रशासनिक सेवाओं में स्थायी स्थान दिए गए थे। फिर भी
नई शासन व्यवस्था कई महत्वपूर्ण तरीकों से सामंती प्रथा से अलग थी।
शासक
अब उस पिरामिड के शिखर पर नहीं था जहाँ राजभक्ति आपसी विश्वास और आपसी निर्भरता पर
टिकी थी। अब वह एक व्यापक दरबारी समाज तंत्र का कंद्र-बिंदु था। वह अपने अनुयायियों
को आश्रय भी देता था। सभी राजतंत्र चाहे वे कमजोर थे या शक्तिशाली सत्ता में भाग लेने
वाले व्यकितयों का सहयोग चाहते थे। राजा द्वारा दिया गया संरक्षण अथवा आश्रय इस सहयोग
को सुनिश्चित करने का साधन था। संरक्षण धन के माध्यम से दिया या प्राप्त किया जा सकता
था। इसलिए धन, व्यापारियों और साहूकारों जैसे गैर-अभिजात वर्गों के लिए दरबर में प्रवेश
पाने का, एक महत्वपूर्ण माध्यम बन गया। वे राजाओं को धन उधार देते थे जो इसका उपयोग
सैनिकों को वेतन देने के लिए करते थे। इस प्रकार राज्य व्यवस्था में गैर सामांती तत्वों
को भी स्थान मिल गया।
1614ई.
में शासक लुई xiii के शासनकाल में फ्रांस की परामर्शदात्री सभा, एस्टेट्स जनरल का एक
अधिवेशन हुआ। इसके तीन सदन थे जो समाज के तीन वर्गा का प्रतिनिधित्व करते थे। इसके
पश्चात् 1789 ई. तक इसे फिर नहीं बुलाया गया क्योंकि राजा तीन वर्गों के साथ अपनी शक्ति
नहीं बाँटना चाहते थे। इंग्लैंड में नॉरमन विजय से भी पहले एंग्लो सैक्सन लोगों की
एक महान् परिषद् होती थी। कोई भी कर लगाने से पहले राजा को इसे परिषद् की सलाह लेनी
पड़ती थी। इसने आगे चलकर दो सदनों वाली पालिर्यामेंट का रूप धारण कर लिया।
ये
सदन थे-हाऊस ऑफ लॉड्स तथा हाऊस ऑफ कामन्स। हाऊस हॉफ लॉड्स क सदस्य लॉर्ड तथा पादरी
थे। हाऊस ऑफ कामन्स नगरों एवं ग्रामीण क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करता था। राजा चार्ल्स
प्रथम (1629-40 ई.) ने पालिमेंट को बिना बुलाए ग्यारह वर्षों तक शासन किया। एक बार
धन की आवश्यकता पड़ने पर ही उसने पालिर्यामेंट को बुलाने का निर्णय किया। परंतु पार्लियामेंट
के एक भाग ने उसके विरुद्ध युद्ध छेड़ दिया। बाद में उसे प्राणदंड देकर गणतंत्र की
स्थापना कर दी गई। यह व्यवस्था भी अधिक समय तक नहीं चल पाई और राजतंत्र की पुनः स्थापना
हुई। यह निर्णय हुआ कि अब पार्लियामेंट नियमित रूप से बुलाई जाएगी। इससे स्पष्ट है
कि अभिजात वर्ग शक्तिशाली राज्यों में भी अपनी शक्ति बनाये रखने में सफल रहा।
प्रश्न 4. यूरोप में मध्यकाल में नगरों का विकास किन कारणों से हुआ?
उत्तर:
यूरोप में मध्य वर्ग के जन्म के साथ दो – घटित हुई। एक तो बड़े नगर अस्तिव में आए और
दूसरे सामंतवादी ढाँचे की नीवं हिल गई। नगरों के उत्थान से मेनर में बसने वाले लोगों
ने नगरों में रहना आरंभ कर दिया। नगर में उद्योग थे, धन था तथ ऐश्वर्य भरा जीवन था।
एक ऐसा समय आय जब स्वयं सामंत भी जा कर इन नगरों में रहने लगे। मध्यकालीन इन नगरों
के इर्द-गिर्द पत्थर की चारदीवारी होती थी। चारदीवारी के बाहर खाई और उसके ऊपर बड़े-बड़े
बुर्ज होते थे। नगर में एक बड़ा बाजार और कुछ तंग गलियाँ होती थीं। इन नगरों के विकाश
के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं
1.
सामंतो का आश्रय – नगरों का आरंभ मध्य वर्ग के उदय होने के कारण
हुआ। मध्य वर्ग का उदय वीं शताब्दी क अंत में हुआ। इसका आरंभ शिल्पकारों से हुआ। शिल्पकारों
अपने उद्योग वहीं उन्नत कर सकते थे, जहाँ उन्हे रक्षा की आशा थी। ऐसी स्थान सामंतों
की गढियाँ थीं। आरंभ में उन्होंने गढ़ियाँ के समीप आश्रय लिया। वे सामत से रक्षा की
आशा करते थे। वे उसकों रक्षक मानते थे और उसका पूर्ण आदर करते थे। गढ़ी के समीप रहने
वाली वसितयाँ 11वीं तथा 12वीं शताब्दी में विस्तृत रूप धारण करने लगीं। अंततः ये नगर
बन गए।
2.
धर्मयुद्ध – धर्मयुद्ध ने भी नगरों के विकास में विशेष भूमिका निभाई।
ये धर्म युद्ध ईसाईयों और मुसलमानों के बीच हुए। वे ग्यारहवीं शताब्दी के अंत से लेकर
तेरहवीं शताब्दी के अंत तक चलते रहे। इन युद्धों के फलस्वरूप यरोप और एशिया के देशों
का व्यापार कई गना बढ़ गया। व्यापार से नगरों में स्थित मंडियों की रौनक बढ़ी। लोगों
की संख्या बढ़ने लगी जिसके कारण नगरों का आकर बढ़ा। कुछ लोग नगर छोड़ कर दूर जा कर
बसने लगे। इस प्रकार नवीन नगर अस्तित्व में आए।
3.
सिक्के की वृद्धि – स्किके की वृद्धि के कारण नगरों का विकाश
हुआ। जब व्यापारियों की वस्तुओं की मांग बढ़ी तो उन्होंने अधिक मात्रा में वस्तुएँ
बनानी आरंभ कर दी। माल विदेशों में भी भेजा जाता था। विदेशी व्यापारियों से सोना-चाँदी
में मूल्य लिया जाता था। इससे मुद्रा या सिक्कों में वृद्धि हुई। आंतरिक मंडियों में
व्यापार में आरंभ में, वस्तुओं के आदान-प्रदान से होता रहा. परंतु धीरे-धीरे यहाँ भी
सिक्कों का प्रयोग किया जाने लगा। इस प्रकार मुद्रा के प्रसार ने व्यापारिक वृद्धि
में बड़ा योगदान दिया और व्यापार के कारण नगरों का विकास हुआ।
4.
नगरों का स्वतंत्र जीवन – समय बीतने के साथ-साथ नगर सामंतो से
स्वतंत्र हो गये। उन्होंने व्यापारियों से धन लेकर नगर व्यापारियों को सौंप दिये। इन
व्यापारियों ने गिल्ड प्रणाली द्वारा नगरों के जीवन को नया रूप दिया। नगरों के स्वतंत्र
जीवन का प्रभाव प्राकृतिक रूप से आस-पास के क्षेत्रों पर भी पड़ा। सामांती के दास और
काम करने वाले पर इसका बहुत प्रभाव पड़ा। उनमें से कई लोग सामंतो के अत्याचारों से
तंग आकर समीप के नगरों में शरण लेने लगे। नगर में कुछ समय रहने के बाद वे स्वतंत्र
समझे जाते थे। समयानुसार सामंतों ने भी अपनी गढ़ियाँ खाली कर दी तथ नागरिक जीवन के
सुख प्राप्त करने के लिए नगरों में आकर रहने लगे।
5.
नगरों का प्रतिनिधित्व – तेरहवीं शताब्दी में नगरों की शक्ति बहुत
बढ़ गई। सम्राटों को इनके प्रतिनिधियों कों विधानमंडलों में लेना पड़ा। इससे नगरों
का महत्व बड़ा और उनके विकास में योगदान मिला। सच तो, हे कि नगरों के विकास ने सामाजिर
उन्नति के द्वार खोल दिये। इसके करण सामंत-प्रधान समाज की नींब हिल गई । व्यक्तिगत
स्वतंत्रता को बल मिला तथा व्यापार और उद्योग स्थापित हुए। इस प्रकार पूरे समाज का
ही रूप बदल गया।
प्रश्न 5. मध्यकालीन फ्रांस का दूसरा सामाजिक वर्ग कौन-सा था? समाज
में इसकी क्या भूमिका थी?
उत्तर:
मध्यकालीन फ्रांस का दूसरा सामाजिक वर्ग अभिजात वर्ग था। पहले स्थान पर पादरी थे। वास्तव
में सामाजिक प्रक्रिया में अभिजात वर्ग की महत्त्वपूर्ण भूमिका थी। इसका कारण था भूमि
पर उनका नियंत्रण। यह नियंत्रण वैसलेज नामक एक प्रथा के विकास का परिणाम था।
समाज
में अभिजात वर्ग की भूमिका – फ्रांस के शासक अपनी प्रजा से जुड़े
हुए थे। इसी कारण वैसलेज प्रथा जर्मन मूल के लोगों, जिनमें फ्रैंक लोग भी शामिल थे,
में समान रूप से प्रचलित थी।
1.
भू-स्वामी और अभिजात वर्ग राजा के अधीन होते थे, जबकि कृषक भू-स्वामियों के अधीन होते
थे। अभिजात वर्ग राजा को अपना स्वामी (Seigneur अथवा Senior) मान लेता था और वे आपस
में वचनबद्ध होते थे। सेनयोर अथवा लॉर्ड दास (vassal) की रक्षा करता था। बदले में दास
लॉर्ड के प्रति निष्ठावान रहता था। इन संबंधों के व्यापक रीति-रिवाज तथा शपथें जुड़ी
थीं। यह शपथ चर्च में बाईबल की शपथ लेकर ली जाती थीं। इस समारोह में दास को लॉर्ड द्वारा
दी गई भूमि के प्रतीक के रूप में एक लिखित अधिकार पत्र अथवा एक छड़ी (Staff) या कंवल
मिट्टी का एक डला दिया जाता था।
2.
अभिजात वर्ग को एक विशेष स्थान प्राप्त था। उनका अपनी संपदा पर स्थायी रूप से पूर्ण
नियंत्रण होता था। वे अपनी सैन्य क्षमता बढ़ा सकते थे। उनकी सेना सामंती सेना कहलाती
थी। वे अपना स्वयं का न्यायालय लगा सकते थे। यहाँ तक कि वे अपनी मुद्रा भी जारी कर
सकते थे।
3.
लॉर्ड अपनी भूमि पर बसे सभी लोगों का स्वामी होता था। उसके पास विस्तृत भू-क्षेत्र
होता था। इसमें उसके घर, उसके निजी खेत एवं चरागाह और उनके कृषकों के घर तथा खेत होते
थे। लॉर्ड का घर ‘मेनर’ कहलाता था। उनकी व्यक्तिगत भूमि कृषकों द्वारा जोती जाती थी।
इन कृषकों को अपने खेतों पर काम करने के साथ-साथ आवश्यकता पड़ने पर युद्ध के समय सैनिक
के रूप में भी कार्य करना पड़ता था।
प्रश्न 6. मेनर की जागीर क्या थी? इसकी मुख्य विशेषताएँ बताएँ।
उत्तर:
मध्यकालीन लॉर्ड का अपना मेनर-भवन होता था। वह गाँवों पर नियंत्रण रखता था-कुछ लॉर्ड
अनेक गाँवों के स्वामी थे। किसी छोटे मेनर की जागीर में दर्जन भर तथा बड़ी जागीर में
50-60 परिवार हो सकते थे। मेनर की जागीर की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित थीं
1.
दैनिक उपयोग की प्रत्येक वस्तु जागीर पर ही मिलती थी। अनाज खेतों में उगाये जाते थे।
लोहार तथा बढ़ई लॉर्ड के औजारों की देखभाल एवं मरम्मत करते थे। राजमिस्त्री उनकी इमारतों
की देखभाल करते थे। औरतें सूत कातती एवं बुनती थीं । बच्चे लॉर्ड की मदिरा संपीडक में
काम करते थे। जागीरों में विस्तृत अरण्य भूमि और वन होते थे जहाँ लॉर्ड शिकार करते
थे। मेनर पर चरागाह भी होते थे जहाँ उनके पशु और क रते थे। मेनर पर एक चर्च और सुरक्षा
के लिए एक दुर्ग भी होता था।
2.
तेरहवीं शताब्दी में कुछ दुर्गों को बड़ा बनाया जाने लगा ताकि वे नाइट (Knight) तथा
उसके परिवार का निवास स्थान बन सकें। वास्तव में, इंग्लैंड में नॉरमन विजय से पहले
दुर्गों की कोई जानकारी / थी। इनका विकास सामंत प्रथा के अंतर्गत राजनीतिक प्रशासन
और सैनिक शक्ति के केंद्रों के रूप में हुआ था।
3.
मेनर कभी भी आत्मनिर्भर नहीं हो सकते थे क्योंकि उन्हें नमक, चक्की का पाट और धातु
के बर्तन बाहर से मंगवाने पड़ते थे। विलासी जीवन बिताने के इच्छुक लॉडॉ को भी महंगी
वस्तुएँ, वाद्य यंत्र और आभूषण आदि दूसरे स्थानों से मंगवाने पड़ते थे।
4.
बारहवीं शताब्दी से फ्रांस के मेनरों में गायक वीर राजाओं तथा नाइट्स की वीरता की कहानियाँ
गीतों के रूप में सुनाते हुए घूमते रहते थे। उस काल में जब पढ़े-लिखे लोगों की संख्या
बहुत कम थी और पांडुलिपियाँ भी अधिक नहीं थी, ये घुमक्कड़ चारण बहुत प्रसिद्ध थे। अनेक
मेनर भवनों के मुख्य कक्ष के ऊपर एक संकरा छज्जा होता था जहाँ मेनर लोग भोजन करते थे।
यह वास्तव में एक गायक दीर्घा होती थी। यहीं पर गायक अभिजात वर्ग के लोगों को भोजन
के समय मनोरंजन प्रदान करते थे।
प्रश्न 7. मध्यकालीन यूरोप के भिक्षुओं के जीवन तथा मठवाद का वर्णन
कीजिए।
उत्तर:
भिक्षु, विशेष श्रद्धालु ईसाइयों की एक श्रेणी थी। ये अत्यधिक धार्मिक प्रवृत्ति के
व्यक्ति थे। ये लोग नगरों और गाँवों में नहीं रहते थे, बल्कि एकांत जीवन जीना पसंद
करते थे। वे धार्मिक समुदायों में रहते थे जिन्हें ऐबी (Abbeys) या मोनैस्ट्री अथवा
मठ कहते थे। मध्यकालीन यूरोप के दो सबसे अधिक प्रसिद्ध मठों में एक मठ 529 ई. में इटली
में स्थापित सेंट बेनेडिक्ट (St. Benedict) मठ था। दूसरा मठ 910 ई. में बरगंडी
(Burgundy) में स्थापित क्लूनी (Clunny) का मठ था। भिक्षु अपना सारा जीवन ऐबी में रहने
और अपना समय प्रार्थना करने तथा अध्ययन एवं कृषि जैसे शारीरिक श्रम में लगाने का व्रत
लेता था। भिक्षु जीवन पुरुष
और
स्त्रियाँ दोनों ही अपना सकते थे। ऐसे पुरुषों को मोंक (Monk) तथा स्त्रियों को नन
(Nun) कहा जाता था। पुरुषों और महिलाओं के लिए प्रायः अलग-अलग ऐबी थे। पादरियों की
तरह भिक्षु और भिक्षुणियों को भी विवाह करने की अनुमति नहीं थी। धीरे-धीरे मठों का
आकार बढ़ने लगा और भिक्षुओं की संख्या सैकड़ों तक पहुंच गईं।
भिक्षु
तथा भिक्षुणियों के लिए नियम-बेनेडिक्टीन (Benedictine) मठों में भिक्षुओं के लिए एक
हस्तलिखित पुस्तक होती थी इसमें नियमों के 73 अध्याय थे। भिक्षुओं द्वारा इनका पालन
कई सदियों तक किया जाता रहा । इनमें से कुछ नियम इस प्रकार हैं –
- भिक्षुओं को बोलने की अनुमति कभी-कभी ही
दी जानी चाहिए।
- विनम्रता का अर्थ है-आज्ञा का पालन।
- किसी भी भिक्षु को निजी संपत्ति नहीं रखना
चाहिए।
- आलस्य आत्मा का शत्रु है। इसलिए भिक्षु-भिक्षुणियों
को निश्चित समय पर शारीरिक श्रम और निश्चित घंटों में पवित्र पाठ करना चाहिए।
- मठ इस प्रकार बनाने चाहिए कि आवश्यकता की
सभी वस्तुएँ-जल, चक्की, उद्यान, कार्यशाला आदि सब कुछ उसकी सीमा के अंदर हों।
चौदहवीं
सदी तक मठवाद के महत्त्व और उद्देश्य के बारे में कुछ शंकाएँ उभरने लगीं। इंग्लैंड
में लैंग्लैंड की कविता पियर्स-द-प्लाउमैन (1360-1370 ई.) में कुछ भिक्षुओं के आरामदायक
एवं विलासितापूर्ण जीवन की तुलना साधारण कृषकों, गड़ेरियों और गरीब मजदूरों के ‘विशुद्ध
विश्वास’ से की गई है। इंग्लैंड में चौसर ने भी कैंटरबरी टेल्स लिखी जिसमें भिक्षुणी,
भिक्ष और फ्रायर का हास्यास्पद चित्रण किया गया है।
प्रश्न 8. मध्यकालीन यूरोप के समाज पर चर्च के प्रभाव की चर्चा कीजिए।
उत्तर:
यूरोपवासी ईसाई तो बन गए थे परंतु उने अभी तक चमत्कार और रीति-रिवाजों से जुड़े अपने
पुराने विश्वासों को पूरी तरह नहीं छोड़ा था। क्रिसमस और ईस्टर चौथी शताब्दी में ही
कैलेंडर की महत्त्वपूर्ण तिथियाँ बन गए थे। क्रिसमस अथवा ईसा मसीह के जन्मदिन ने एक
पुराने पूर्व-रोमन त्योहार का स्थान ले लिया। इस तिथि की गणना सौर-पंचांग (Solar
Calendar) के आधार पर की गई थी। ईस्टर-ईस्टर ईस के शूलारोपण और उनके पुनर्जीवित होने
का प्रतीक था।
परंतु
इसकी तिथि निश्चित नहीं थी क्योंकि इसने चंद्र-पंचाग (Lunar Calendar) पर आधारित एक
प्राचीन त्योहार का स्थान लिया था। यह प्राचीन त्योहार लंबी सदी के पश्चात् वसंत के
आगमन का स्वागत करने के लिए मनाया जाता था। एक परंपरा के अनुसार उस दिन प्रत्येक गाँव
के व्यक्ति अपने गाँव की भूमि का दौरा करते थे। ईसाई धर्म अपनाने पर भी उन्होंने इसे
जारी रखा। परंतु अब वे उसे ग्राम के स्थान पर ‘पैरिश’ कहने लगे।
त्योहारों
का महत्त्व-काम से दबे कृषक इन पवित्र दिनों अथवा छुट्टियों (Holidays) का स्वागत इसलिए
करते थे क्योंकि इन दिनों उन्हें कोई काम नहीं करना पड़ता था। वैसे तो यह दिन प्रार्थना
करने के लिए था परंतु लोग सामान्यतः इसका उपयोग मनोरंजन करने और दावत करने में करते
थे। तीर्थयात्रा-तीर्थयात्रा, ईसाइयों के जीवन का एक महत्त्वपूर्ण भाग था। बहुत-से
लोग शहीदों की समाधियों या बड़े गिरिजाघरों की लंबी यात्राओं पर जाते थे।
प्रश्न 9. मध्यकालीन यूरोप के तीसरे सामाजिक वर्ग अर्थात् किसानों के
जनजीवन की मुख्य विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
किसान अथवा काश्तकार प्रथम तथा द्वितीय वर्ग का भरण-पोषण करते थे। काश्तकार दो प्रकार
के होते थे-स्वतंत्र किसान और सर्फ अथवा कृषि दास। सर्फ अंग्रेजी की क्रिया टू सर्व
(To serve) से बना है। स्वतंत्र किसान-स्वतंत्र कृषक अपनी भूमि को लॉर्ड के काश्तकार
के रूप में देखते थे। कृषकों के लिए वर्ष में कम-से-कम चालीस दिन सैनिक सेवा में योगदान
आवश्यक होता था। कृषक परिवारों को लॉर्ड की जागीरों पर जाकर काम करना पड़ता था।
इस
श्रम से होने वाला उत्पादन जिसे ‘श्रम-अधिशेष’ (Labour-rent) कहते थे, सीधे लॉर्ड के
पास जाता था। इसके अतिरिक्त उनसे गड्ढे खोदना, जलाने के लिए लकड़ियाँ इकट्ठी करना,
खेतों के लिए बाड़ बनाना और सड़कों एवं इमारतों की मरम्मत करने जैसे कुछ अन्य कार्य
करने की भी आशा की जाती थी। इसके लिए उन्हें कोई मजदूरी नहीं मिलती थी। स्त्रियों व
बच्चों को खेतों में सहायता करने के अतिरिक्त कई अन्य कार्य भी करने पड़ते थे। वे सूत
कातते, कपड़ा बुनते, मोमबत्ती बनाते और लॉर्ड के लिए अंगूरों से रस निकाल कर मदिरा
तैयार करते थे। इसके साथ ही राजा कृषकों पर एक प्रत्यक्ष कर भी लगाता था जिसे टैली
(Taille) कहते थे। पादरी और अभिजात वर्ग इस कर से मुक्त थे।
कृषिदास
अथवा सर्फ-कृषिदास अपने गुजारे के लिए जिन भूखंडों पर कृषि करते थे, वे लॉर्ड से संबंधित
थे । इसलिए उनकी अधिकतर उपज भी लॉर्ड को ही मिलती थी। वे उस भूमि पर भी कृषि करते थे
जो केवल लॉर्ड के स्वामित्व में थी। इसके लिए उन्हें कोई मजदूरी नहीं दी जाती थी। चे
लॉर्ड की आज्ञा के बिना जागीर नहीं छोड़ सकते थे। सर्फ केवल अपने लॉर्ड की चक्की में
ही आटा पीस सकते थे. उनके तंदूर में ही. रोटी सेंक सकते थे और उनकी मदिरा संपीडक में
ही मदिरा और बीयर तैयार कर सकते थे। लॉर्ड को कृषिदास का विवाह तय करने का भी अधिकार
था। वह कृषिदास की पसंद को भी अपना आशीर्वाद दे सकता था। परंतु इसके लिए वह शुल्क लेता
था।
प्रश्न 10. ग्यारहवीं शताब्दी में यूरोप में होने वाले नए प्रौद्योगिकी
परिवर्तनों की विवेचना कीजिए। इनके क्या परिणाम निकले?
उत्तर:
ग्यारहवीं शताब्दी तक यूरोप में विभिन्न प्रौद्योगिकियों में परिवर्तन आने लगे। इन
परिवर्तनों का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है –
1.
अब लकड़ी के हल के स्थान पर लोहे की भारी नोंक वाले हल तथा साँचेदार पटरे (Mould
board) का उपयोग होने लगा। ऐसे हल भूमि को अधिक गहरा खोद सकते थे साँचेदार पटरे उपरी
मृदा को सही ढंग से उलट-पुलट सकते थे। फलस्वरूप भूमि में विद्यमान पौष्टिक तत्त्वों
का बेहतर उपयोग होने लगा।
2.
पशुओं को हल में जोतने के तरीकों में सुधार हुआ। अब जुआ पशु के गले (Neck harmess)
के स्थान पर कंधे पर बाँधा जाने लगा। इससे पशुओं के काम करने की क्षमता बढ़ गई।
3.
घोड़े के खुरों पर अब लोहे की नाल लगाई जाने लगी जिससे उनके खुर सुरक्षित हो गए।
4.
कृषि के लिए पवन-ऊर्जा और जल शक्ति का उपयोग बढ़ गया।
5.
अन्न को पीसने और अंगूरों को निचोड़ने के काम भी जलशक्ति और वायुशक्ति से चलने वाले
कारखानों में किए जाने लगे।
6.
भूमि के उपयोग के तरीके में भी बदलाव आया। सबसे क्रांतिकारी परिवर्तन था-दो खेतों वाली
व्यवस्था का तीन खेतों वाली व्यवस्था में बदलना। इस व्यवस्था में कृषक तीन वर्षों में
दो वर्ष अपने खेत का उपयोग कर सकता था।
उसे
करना यह था कि वह एक फसल शरद् ऋतु में गेहूँ या राई बो सकते थे दूसरे में वसंत ऋतु
में मटर, सेम और मसूर बायो जा सकता था तथा घोड़ों के लिए जौ तथा बाजरा उपागया जा सकता
था। तीसरा खेत परती अर्थात् खाली रखा जाता था। प्रत्येक वर्ष वे तीनों खेतों का प्रयोग
बदल-बदल कर, कर सकते थे।
परिणाम
अथवा प्रभाव –
- इन सुधारों से भूमि के प्रति इकाई उत्पादन
क्षमता में तेजी से वृद्धि हुई। फलस्वरूप भोजन की उपलब्ध दुगुनी हो गई।
- आहार में मटर और से का अधिक उपयोग अधिक
प्रोटीन का स्रोत बन गया।
- पशुओं को भी पौष्टिक चारा मिलने लगा।
- किसान अब कम भूमि पर अधिक भोजन का उत्पादन
कर सकते थे।
- तेरहवीं शताब्दी तक एक कृषक के खेत का औसत
आकार सौ एकड़ से घटकर बीस से तीस एकड़ तक रहा गया। इन छोटी जोतों
- पर अधिक कुशलता से कृषि की जा सकती थी और
उसमें कम श्रम की आवश्यकता थी। फलस्वरूप समय की बचत हुई जिसका
- उपयोग कृषक अन्य कार्यों के लिए कर सकते
थे।
प्रश्न 11. मध्यकालीन यूरोप में कृषि के विस्तार के क्या परिणाम निकलें?
उत्तर:
कृषि में विस्तार के परिणामस्वरूप उससे संबंधित तीन क्षेत्रों अर्थात् जनसंख्या, व्यापार
और नगरों का विस्तार हुआ। यूरोप की जनसंख्या जो 1000 ई. में लगभग 420 लाख थी बढ़कर
1300 ई. में 730 लाख हो गई। बेहतर आहार से जीवन-अवधि लंबी हो गई। तेरहवीं शताब्दी तक
एक औसत यूरोपीय आठवीं सदी की तुलना में दस वर्ष अधिक जी सकता था। पुरुषों की तुलना
में स्त्रियों तथा बालिकाओं की जीवन-अवधि छोटी थी। इसका कारण यह था कि उन्हें पुरूषों
बेहतर भोजन नहीं मिल पाता था।
रोमन
साम्राज्य के पतन के पश्चात् उसके नगर वीरान हो गए थे। परन्तु ग्यारहवीं शताब्दी से
नगर फिर से बढ़ने लगे। जिन कृषकों के पास अपनी आवश्यकता से अधिक खाद्यान्न होता था,
उन्हें एक ऐसे स्थान की आवयश्कता महसूस हुई जहाँ वे अपना बिक्री केन्द्र स्थापित कर
सकें और अपने उपकरण और कपड़े खरीद सकें। इस आवश्यकता ने मियादी हाट-मेलों को बढ़ावा
दिया। इससे छोटे विपणन केंद्रों का विकास भी हुआ। ये केंद्र धीरे-धीरे नगरों का रूप
धारण करने लगे। इन नगरों के लक्षण थे-एक नगर नौक, चर्च, सड़क, घर और दुकानें। एक कार्यलय
भी होता था जहाँ नगर पर शासन करने वाल व्यक्ति आपस में मिलते थे। अन्य स्थानों पर नगरों
का विकास:-विशाल दुर्गा, बिशपों की जागीरों तथा बड़े-बड़े चर्चा के चारों ओर होने लगा।
नगरों
में लोग उन लॉडों को जिनकी भूमि पर नगर बसे थे, सेवा के स्थान पर कर देन लगे। नगरों
ने कृषक परिवारो के युवा लोगों के लिए वैतनिक कार्य करने तथा लॉर्ड के नियंत्रण से
मुक्ति दिलाने की संभावनाओं में भी वृद्धि को।
वस्तुनिष्ठ प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1. माइक्रोस्कोप की खोज किस वर्ष हुई?
(क) 1590 में
(ख)
1560 में
(ग)
1570 में
(घ)
1561 में
प्रश्न 2. सौर-परिवार सिद्धांत किसने प्रस्तुत किया?
(क) कोपरनिकस
(ख)
गैलीलियो
(ग)
जचारियास
(घ)
जेन्सन
प्रश्न 3. चीन में मिंग राजवंश कब स्थापित हुआ?
(क) 1368 में
(ख)
1373 में
(ग)
1378 में
(घ)
1383 में
प्रश्न 4. रूस में आधुनिकीकरण किसने किया?
(क) पीटर महान् ने
(ख)
सनयात् सेन ने
(ग)
च्यांग काई शेक ने
(घ)
अल्हम्वा ने
प्रश्न 5. कॉफी का यूरोप में पहली गर प्रयोग किस वर्ष हुआ?
(क) 1517 में
(ख)
1520 में
(ग)
1521 मं
(घ)
1570 में
प्रश्न 6. 1325 में प्लेग किस देश में फैला?
(क) मिस्र
(ख)
रूस
(ग)
पुर्तगाल
(घ)
भारत
प्रश्न 7. इंग्लैण्ड में ट्युडर वंश की स्थापना कब हुई?
(क) 1485 में
(ख)
1487 में
(ग)
1473 में
(घ)
1486 में
प्रश्न 8. केन्टवरी टेल्स की रचना किसने की?
(क)
जेफ्री चाँसर
(ख) यार्थीपोलो
(ग)
ऐडी रोडो
(घ) विची