पाठ्यपुस्तक आधारित प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. रजा ने अकोला में ड्राइंग अध्यापक की नौकरी की पेशकश क्यों
नहीं स्वीकार की?
उत्तर
: रजा ने तय किया कि वे मुम्बई से वापस नहीं जाएँगे क्योंकि उन्हें मुम्बई में रहकर
कला का अध्ययन करना था और फिर उन्हें मुम्बई शहर पसन्द था, वहाँ की आर्ट गैलरियाँ पसंद
थीं तथा शहर में बनाएं अपने दोस्त पसंद थे, इसलिए उन्होंने सरकार द्वारा अकोला में
दी गयी ड्राइंग मास्टर की नौकरी की पेशकश ठुकरा दी।
प्रश्न 2.बम्बई (मुम्बई) में रहकर कला के अध्ययन के लिए रज़ा ने क्या-क्या
संघर्ष किए ?
उत्तर
: मुम्बई में रहकर पहले सैयद हैदर रजा ने एक्सप्रेस ब्लॉक स्टूडियो में डिजाइनर की
नौकरी की और सालभर में ही उनके काम से प्रसन्न होकर स्टूडियो के मालिक ने उन्हें मुख्य
डिजाइनर बना दिया। चार बरस तक वहाँ काम करते रहने के बाद 1948 में बॉम्बे आर्ट सोसाइटी
का स्वर्णपदक उन्हें मिला। 1943 में आर्ट्स सोसाइटी ऑफ इण्डिया की प्रदर्शनी में रज़ा
के दो चित्र प्रदर्शित किए गए, जिनकी पर्याप्त सराहना हुई और वे दोनों चित्र 40-40
रुपए में बिक गए। यह उस समय एक बड़ी रकम थी।
प्रो.
लैंगहैमर 'द टाइम्स ऑफ इण्डिया' में आर्ट डाइरेक्टर थे। उनके स्टूडियो में रज़ा साहब
चित्र बनाते और शाम को वे उसका बारीकी से विश्लेषण करते। इस प्रकार उनका काम निखरता
गया और वे रज़ा साहब के बनाए चित्र खरीदने लगे। इस प्रकार रजा के लिए नौकरी छोड़कर
अध्ययन करने का रास्ता साफ हुआ और तब 1947 में वे जे. जे. स्कूल ऑफ आर्ट्स में नियमित
छात्र बन सके। मुम्बई में रहते समय उन्हें एक टैक्सी ड्राइवर के साथ रहना पड़ा, नौकरी
में समय गुजारना पड़ा और पैसे के लिए संघर्ष करना पड़ा। अन्ततः अपनी मेहनत के बल पर
वे अपना लक्ष्य प्राप्त करने में सफल रहे।
प्रश्न 3. भले ही 1947 और 1948 में महत्त्वपूर्ण घटनाएँ घटी हों,मेरे
लिए वे कठिन बरस थे' रज़ाने ऐसा क्यों कहा?
उत्तर
: 1947 में कल्याण वाले भी घर में जब रजा साहब रहते थे तब उनकी माँ का देहान्त हो गया
और 1948 में उनके पिता की मृत्यु हो गयी। इसी समय भारत विभाजन की त्रासदी व महात्मा
गाँधी के निधन से भी वे विचलित हुए। इन्हीं सब कारणों से ही रज़ा ने 1947-48 के वर्षों
को अपने लिए कठिन वर्ष कहा है।
प्रश्न 4. रज़ा के पसंदीदा कलाकार कौन थे?
उत्तर
: रज़ा के पसंदीदा फ्रेंच चित्रकार थे-सेजाँ, बॉन, गॉग, गोगा पिकासो, मातीस, शागाल
और ब्रॉक।
प्रश्न 5. तुम्हारे चित्रों में रंग है, भावना है, लेकिन रचना नहीं
है। चित्र इमारत की तरह बनाया जाता है-आधार, नींव, दीवारें, बीम, छत और तब जाकर वह
टिकता है-यह बात :
(क) किसने किस सन्दर्भ में कही?
(ख) रज़ा पर इसका क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर
:
(क)
उक्त टिप्पणी प्रख्यात फ्रेंच फोटोग्राफर हेनरी कार्तिए-ब्रेसाँ ने सैयद हैदर रज़ा
के चित्र देखने के बाद की। गों का गहरा प्रभाव रजा पर पड़ा और उन्होंने फ्रेन्च सीखने
के लिए अलयाँस फ्रांस में दाखिला ले लिया। वे फ्रेन्च चित्रकारों के चित्र में रचना
या बनावट को समझने का प्रयास करने लमे, जिससे अपनी कला में भी उसका समावेश कर सकें।
पाठ के आस-पास
प्रश्न 1. रज़ा को जलील साहब जैसे लोगों का सहारा न मिला होता तो क्या
तब भी वे एक जाने-माने चित्रकार होते ? तर्क सहित लिखिए।
उत्तर
: सैयद हैदर रज़ा साहब को मुम्बई में जलील साहब ने बहुत सहारा दिया। उन्हें एक्सप्रेस
ब्लॉक स्टूडियो में उन्होंने ही डिजाइनर और फिर मुख्य डिजाइनर बनाया, रहने का ठिकाना
दिया जिससे मुम्बई में रज़ा साहब के पैर टिक सके। निश्चय ही यदि जलील साहब जैसे लोगों
का सहारा न मिला होता तो रज़ा साहब को आगे बढ़ने का और एक प्रसिद्ध चित्रकार बन सकने
का मौका न मिलता। वे कहीं किसी स्कूल में ड्राइंग टीचर बनकर रह जाते।
प्रश्न 2. चित्रकला व्यवसाय नहीं अन्तरात्मा की पुकार है-इस कथन के
आलोक में कला के वर्तमान और भविष्य पर विचार कीजिए।
उत्तर
: कोई भी कला व्यवसाय नहीं होती क्योंकि कलाकार अपनी कला में अपनी अन्तरात्मा को व्यक्त
करता है। उसे पूर्ण सन्तुष्टि तभी मिलती है जब वह अपनी अनुभूतियों को, अपनी संवदेनाओं
को कला के माध्यम से प्रकट कर लेता है। इसलिए चित्रकला को व्यवसाय नहीं अन्तरात्मा
की पुकार कहा गया है।
कोई
भी पेन्टिंग इस दृष्टि से नहीं की जाती कि इसे ऊँचे दामों में बेचा जाएगा अपितु कलाकार
को जो अनुभूति होती है उसे जब तक वह चित्र में व्यक्त नहीं कर लेता तब तक उसे शांति
भी नहीं मिलती। जब तक कलाकार का दृष्टिकोण व्यावसायिक न होकर संवेदनाओं की अभिव्यक्ति
पर केन्द्रित रहेगा तब तक अच्छे चित्र बनते रहेंगे, . इसलिए कला का वर्तमान भी उज्ज्वल
है एवं भविष्य भी।
प्रश्न 3. हमें लगता था कि हम पहाड़ हिला सकते हैं'-आप किन क्षणों में
ऐसा सोचते हैं?
उत्तर
: उक्त कथन का तात्पर्य है कि दिल में जब जोश होता है, किसी कार्य को करने का उत्साह
होता है, तो हमारे भीतर इतनी हिम्मत आ जाती है कि हम कठिन से कठिन काम को कर सकते हैं।
जब हमारे सामने कोई निश्चित लक्ष्य होता है, कोई हमें चुनौती देता है तब हम अपने जोश,
जुनून एवं हिम्मत के बल पर बड़े से बड़ा और कठिन से कठिन कार्य करने में भी सक्षम हो
जाते हैं। इसी को पहाड़ हिलाना कहा गया है।
प्रश्न 4. राजा रवि वर्मा, मकबूल फिदा हुसैन, अमृताशेरगिल के प्रसिद्ध
चित्रों का एक अलबम बनाइए। सहायता के लिए इण्टरनेट या किसी आर्ट गैलरी से सम्पर्क करें।
उत्तर
: परीक्षोपयोगी नहीं।
भाषा की बात
प्रश्न 1. जब तक मैं मुम्बई पहुँचा तब तक जे.जे स्कूल में दाखिला बन्द
हो चुका था-इस वाक्य को हम दूसरे तरीके से भी कह सकते हैं। मेरे मुम्बई पहुँचने के
पहले जे. जे. स्कूल में दाखिला बन्द हो चुका था।
नीचे दिए गए वाक्यों को दूसरे तरीके से लिखिए :
(क) जब तक मैं प्लेटफार्म पहुँचती तब तक गाड़ी जा चुकी थी।
(ख)जब तक डाक्टर हवेली पहुँचता तब तक सेठजी की मृत्यु हो चुकी थी।
(ग) जब तक रोहित दरवाजा बंद करता तब तक उसके साथी होली का रंग लेकर
अंदर आ चुके थे।
(घ) जब तक रुचि कैनवास हटाती तब तक बारिश शुरू हो चुकी थी।
उत्तर
:
(क)
मेरे प्लेटफार्म पहुँचने से पहले ही गाड़ी जा चुकी थी।
(ख)
डाक्टर के हवेली पहुँचने से पहले ही सेठजी की मृत्यु हो चुकी थी।
(ग)
रोहितं के दरवाजा बंद करने से पहले ही उसके साथी होली का रंग लेकर अंदर आ चुके थे।
(घ)
रुचि के कैनवास हटाने से पहले ही बारिश शुरू हो चुकी थी।
प्रश्न 2. आत्मा का ताप' पाठ में कई शब्द ऐसे आए हैं, जिनमें ऑ'का इस्तेमाल
हुआ है। जैसे-ऑफ, ब्लॉक, नॉर्मल। नीचे दिए गए शब्दों में यदि ऑ का इस्तेमाल किया जाए
तो शब्द के अर्थ में क्या परिवर्तन आएगा? दोनों शब्दों का प्रयोग करते हुए अर्थ के
अन्तर को स्पष्ट कीजिए।
हाल, काफी, बाला
उत्तर
: ओं का प्रयोग करने से बने शब्द इस प्रकार होंगे।
(i)
हाल हॉल
(ii)
काफी कॉफी
(iii)
बाल बॉल।
वाक्य
प्रयोगों से अर्थगत अन्तर -
(i)
हॉल = (बड़ा कमरा) - मैं अपने घर में बने हॉल में बैठा था।
हाल
= (हाल-चाल) - कहिए क्या हाल है ?
(ii)
कॉफी = (एक पेय पदार्थ) - दो कप कॉफी ले आओ।
काफी
अधिक (पर्याप्त) - बस, इतना काफी है।
(iii)
बॉल = (गेंद) - क्रिकेट की बॉल खरीदनी है।
बाल
= (केश) - उसके बाल सफेद हो गए हैं।
अति लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. सैयद हैदर रज़ा का सम्बन्ध कला के किस विभाग से रहा है ?
उत्तर
: सैयद हैदर रज़ा का सम्बन्ध चित्रकला से रहा है।
प्रश्न 2. भारत के तीन प्रसिद्ध समकालीन चित्रकारों के नाम लिखिए।
उत्तर
: भारत के तीन प्रसिद्ध समकालीन चित्रकार हैं -
1.
एफ.एम. हुसैन
2.
सैयद हैदर रज़ा और
3.
सूजा।
प्रश्न 3. फ्रांसीसी-सरकार की छात्रवृत्ति पर रज़ा फ्रांस कब गए? और
यह छात्रवृत्ति उन्हें कितने समय के लिए मिली?
उत्तर
: फ्रांसीसी-सरकार की छात्रवृत्ति पर सैयद हैदर रज़ा सन् 1950 में फ्रांस गए और यह
छात्रवृत्ति उन्हें दो वर्ष के लिए प्रदान की गई।
प्रश्न 4. सैयद हैदर रज़ा की कलाकृतियों के केन्द्र में क्या है ?
उत्तर
: सैयद हैदर रज़ा की कलाकृतियों के केंद्र में बिन्दु है, जिसकी तरफ उनका झुकाव स्कूली
शिक्षक नंदलाल झरिया ने कराया था।
प्रश्न 5. मुम्बई में रज़ा किस टैक्सी ड्राइवर के कमरे में रात बिताते
थे ?
उत्तर
: मुम्बई में सैयद हैदर रज़ा प्रारंभ में टैक्सी ड्राइवर मित्र ‘राल्फ' के कमरे में
रात बिताते थे, क्योंकि वह रात में टैक्सी चलाता था।
प्रश्न 6. वेनिस अकादमी के प्रोफेसर वाल्टर लैंग हैमर ने रज़ा की तारीफ
करते हुए अंग्रेजी में क्या कहा?
उत्तर
: वेनिस अकादमी के प्रोफेसर वाल्टर लैंग हैमर ने जर्मन उच्चारण वाली अंग्रेजी में रज़ा
के काम की तारीफ करते हुए कहा-"आई लफ्ड यूअर स्टॅफ, मिस्टर रत्जा।"
प्रश्न 7. भारत के चार प्रसिद्ध चित्रकारों के नाम बताइए।
उत्तर
: भारत के चार प्रसिद्ध चित्रकार हैं मकबूल फिदा हुसैन, सैयद हैदर रज़ा, अमृता शेरगिल,
राजा रवि वर्मा।
प्रश्न 8. सैयद हैदर रज़ा को फ्रांस में चित्रकला के अध्ययन के लिए
कितने वर्षों की छात्रवृत्ति मिली?
उत्तर
: सैयद हैदर रज़ा को फ्रांस में चित्रकला के अध्ययन करने हेतु दो वर्ष की छात्रवृत्ति
प्रदान की गई।
प्रश्न 9. सैयद हैदर रज़ा अपने कुटुम्बियों से क्या कहते रहते थे ?
उत्तर
: सैयद हैदर रज़ा अपने कुटुम्बियों से कहते रहते थे कि तुम्हें सब कुछ मिल सकता है,
बस तुम्हें मेहनत करनी होगी।
प्रश्न 10. जहरा जाफरी कौन है ? और वे किसके साथ काम करती हैं ? .
उत्तर
: जहरा जाफरी सैयद हैदर रज़ा के कुटुम्ब की हैं तथा वे बड़ी लगन एवं समर्पण से दमोह
शहर के आस-पास के ग्रामीणों के साथ काम करती हैं।
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. "चित्रकला व्यवसाय नहीं अन्तरात्मा की पुकार है"का
आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
: चित्रकला व्यवसाय नहीं जिसमें कोई व्यक्ति चित्र बनाकर बेचे और धनार्जन करे, अपितु
यह व्यक्ति की अन्तरात्मा की अनुभूतियों एवं संवेदनाओं की अभिव्यक्ति है। जब तक व्यक्ति
इन अनुभूतियों एवं संवेदनाओं को व्यक्त नहीं कर लेता है, उसका मन छटपटाता रहता है।
प्रश्न 2. जलील और हुसैन कौन थे? और रज़ा की मदद उन्होंने किस प्रकार
की?
उत्तर
: जलील मुंबई में एक्सप्रेस ब्लॉक स्टूडियो चलाते थे, हुसैन साहब उसके प्रबंधक थे।
इन दोनों ने रजा को अपने यहाँ नौकरी दे दी। पहले उन्हें डिजाइनर का काम दिया गया और
फिर वे मुख्य डिजाइनर बना दिए गए। यही नहीं कुछ समय बाद उन्होंने रज़ा को रहने के लिए
एक शानदार फ्लैट दिलवा दिया। इस प्रकार जब रज़ा मुंबई में आर्थिक संकट से जूझ रहे थे
तब जलील और हुसैन की मदद से ही वे वहाँ टिक सके।
प्रश्न 3. सैयद हैदर रजा को 1943 में आयोजित प्रदर्शनी में क्यों आमंत्रित
नहीं किया गया? उनके पहले चित्र कितने में बिके?
उत्तर
: नवंबर 1943 में आर्ट्स सोसायटी ऑफ इंडिया ने चित्रों की प्रदर्शनी आयोजित की। उद्घाटन
समारोह में रज़ा को नहीं बुलाया गया। क्योंकि तब वे कला-जगत में प्रसिद्ध नहीं थे।
किन्तु उनके दो चित्र प्रदर्शनी में रखे गये थे। रज़ा के ये दोनों चित्र 40-40 रुपये
में बिक गए, जो उस समय एक बड़ी रकम थी।
दीर्घ उत्तरात्मक प्रश्नोत्तर
प्रश्न : रज़ा को फ्रांस जाकर चित्रकला के अध्ययन का अवसर कैसे प्राप्त
हुआ?
उत्तर
: कश्मीर भ्रमण के दौरान रज़ा की भेंट एक फ्रेंच फोटोग्राफर हेनरी कार्तिए-ब्रेसाँ
से हुई। रज़ा के चित्र देखने के बाद कार्तिए ने कहा कि वह प्रतिभाशाली चित्रकार था।
उसके चित्रों में रंग और भावना थी लेकिन रचना नहीं थी। कार्तिए ने रज़ा को सलाह दी.कि
वह सेजाँ के चित्रों का अध्ययन करे। रज़ा ने फ्रेंच सीखना आरम्भ कर दिया। 1950 में
रज़ा ने फ्रेंच दूतावास के सांस्कृतिक सचिव से भेंट की। इस वार्ता में सचिव महोदय रज़ा
साहब के उत्तरों से इतने प्रभावित हुए कि उन्हें एक वर्ष के बजाय दो वर्षों के लिए
फ्रेंच सरकार की छात्रवृत्ति मिल गई। इस प्रकार रज़ा को फ्रांस में चित्रकला के उच्च
अध्ययन का अवसर प्राप्त हुआ।
आत्मा का ताप (सारांश)
लेखक परिचय :
सैयद
हैदर रज़ा का जन्म 1922 ई. में मध्य प्रदेश के बाबरिया गाँव में हुआ था। उन्होंने चित्रकला
की शिक्षा नागपुर स्कूल ऑफ आर्ट तथा सर जे. जे. स्कूल ऑफ आर्ट मुम्बई से प्राप्त की।
उनके बनाए चित्रों की अनेक प्रदर्शनियाँ भारत में आयोजित की गईं, तत्पश्चात् वे फ्रांस
की सरकार द्वारा दी गई छात्रवृत्ति पर फ्रांस चले गए। जहाँ उन्होंने चित्रकला का अध्ययन
किया। आधुनिक भारतीय चित्रकला को जिन कलाकारों ने नवीनता प्रदान की उनमें हैदर रजा
का महत्त्वपूर्ण स्थान है। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भारतीय चित्रकला को प्रतिष्ठित
करने का श्रेय जिन तीन चित्रकारों को दिया जाता है, उनमें हुसैन, सूजा के साथ रज़ा
का नाम भी सम्मिलित है।
इनमें
से हुसैन सबसे ज्यादा घुमक्कड़ रहे लेकिन उनका केन्द्र भारत ही रहा। अभी इसी वर्ष वे
भारत की नागरिकता छोड़कर कतर में बस गए हैं। सूजा न्यूयार्क चले गए और रज़ा पेरिस में
जाकर बस गए। इनकी मृत्यु सन् 2016 में हुई है। चित्रकला में रज़ा का महत्त्व
रज़ा
की कला और व्यक्तित्त्व में उदात्तता है। उनकी कला में रंगों की व्यापकता के साथ-साथ
अध्यात्म की गहराई भी उपलब्ध होती है। भारत के साथ-साथ विदेशों में भी उनकी कला को
सराहा गया है। रज़ा की कला में भारतीय एवं पाश्चात्य चित्रकला का कई दृष्टियों से मेल
हुआ है। लम्बे समय तक विदेश में रहने के बावजूद रज़ा ठेठ रूप से भारतीय चित्रकार हैं।
उनकी कलाकृतियों के केन्द्र में 'बिन्दु' है। उनकी कई कलाकृतियाँ 'बिन्दु' का रूपाकार
हैं, जिसे पारंपरिक भारतीय चिंतन से भी जोड़ा गया है। उनके स्कूली .. शिक्षक नन्दलाल
झरिया ने बिंदु की तरफ उनका झुकाव प्रारंभ से ही करा दिया था।
'आत्मा
का ताप' रज़ा की आत्मकथात्मक पुस्तक है, जिसमें उन्होंने चित्रकला के क्षेत्र में किए
संघर्षों एवं सफलताओं को व्यक्त किया है। मूल पुस्तक अंग्रेजी में है जिसका हिन्दी
अनुवाद मधु. बी. जोशी ने किया है। अत्यन्त रोचक शैली में चित्रकला के प्रति अपने जोश,
जुनून, संघर्ष का वर्णन उन्होंने यहाँ किया है। उन्हें 'ग्रेड ऑव आफ़िसर ऑव द ऑर्डर
ऑव आर्ट्स ऐंड लेटर्स' नामक सम्मान भी चित्रकला के क्षेत्र में प्रदान किया गया है।
पाठ का सारांश :
'आत्मा
का ताप' प्रसिद्ध चित्रकार सैयद हैदर रज़ा की आत्मकथा का एक अंश है, जिसका सार निम्न
शब्दों में प्रस्तुत किया जा सकता है :
मुम्बई
के दिन-नागपुर स्कूल में रज़ा अपनी कक्षा में प्रथम आए तथा उन्हें
दस में से नौ विषयों में विशेष योग्यता प्राप्त हुई। पिताजी के रिटायर हो जाने से उन्हें
नौकरी खोजनी थी, अत: वे गोदिया में चित्रकला के अध्यापक बन गए। सन् 1943 में मध्य प्रान्त
की सरकारी छात्रवृत्ति उन्हें जे. जे. स्कूल ऑफ आर्ट, मुम्बई में अध्ययन के लिए दी
गई। किन्तु जब वे मुम्बई पहुँचे तब तक जे. जे. स्कूल में प्रवेश बन्द हो चुके थे।
यदि
प्रवेश हो भी जाता तो उपस्थिति पूरी नहीं होती अत: छात्रवृत्ति वापस ले ली गयी, किन्तु
रज़ा ने मुम्बई में ही अध्ययन करने एवं रहने का मन बना लिया। उन्हें यहाँ का वातावरण,
आर्ट गैलरियाँ एवं नए मित्र पसन्द आए। यही नहीं अपितु उन्हें एक्सप्रेस ब्लॉक स्टूडियों
में डिजाइनर की नौकरी मिल गई। यह स्टूडियो फीरोजशाह मेहता रोड पर था। करीब साल भर में
ही स्टूडियो के मालिक और मैनेजर ने उन्हें मुख्य डिजाइनर बना दिया।
दिनभर
काम करके रज़ा अध्ययन के लिए शाम को मोहन आर्ट क्लब जाते और वहाँ एक परिचित टैक्सी
ड्राइवर के साथ उसके कमरे में रात गुजारते। एक दिन उस टैक्सी ड्राइवर की टैक्सी में
हत्या हो गयी। अत: स्टूडियो के मालिक जलील साहब ने उन्हें आर्ट डिपार्टमेण्ट में कमरा
दे दिया। वे रात ग्यारह बजे तक स्केच बनाते। कुछ दिनों के बाद जलील साहब ने अपने चचेरे
भाई के फ्लैट का एक कमरा उन्हें दे दिया।
विदेशी
चित्रकारों का प्रोत्साहन रज़ा साहब पूरी तरह अपने काम में डूब गए। परिणामत: 1948 में
उन्हें बॉम्बे आर्ट्स सोसाइटी का स्वर्णपदक प्राप्त हुआ। दो वर्ष बाद फ्रान्स सरकार
की छात्रवृत्ति मिल गई और वे सितम्बर में फ्रांस के लिए चल पड़े। 2 अक्टूबर 1950 को
वे मार्सेई पहुँचे और इस प्रकार उनका पेरिस का जीवन प्रारंभ हुआ। यदि कोई यहाँ काम
करने का इच्छुक हो तो लोग सहायता को तत्पर रहते थे। रज़ा ने अपने जीवन-संघर्ष से यह
निष्कर्ष निकाला कि दृढ़ इच्छा-शक्ति एवं परिश्रम के बल पर हम अपने जीवन का लक्ष्य
प्राप्त कर सकते हैं।
कठिन शब्दार्थ :
·
विशेष योग्यता = जब
किसी विषय में 75 प्रतिशत से अधिक अंक प्राप्त हों, तो उस विषय में विशेष योग्यता मानी
जाती है (विषय की अच्छी जानकारी होना)
·
रिटायर = सेवानिवृत्त
·
गोंदिया = एक नगर का
नाम
·
ड्राइंग = चित्रकला
·
अमरावती = महाराष्ट्र
का एक नगर
·
दाखिला = प्रवेश
·
पेशकश = प्रस्ताव
·
गैलरियाँ = कला दीर्धाएँ,
(जहाँ चित्रकार अपनी प्रदर्शनी आयोजित करते हैं)
·
डिजाइनर = कलाकार।
·
वारदात = दुर्घटना
·
अक्ल गुम होना = बुद्धि
चकरा जाना
·
संदिग्ध = संदेह से
भरी हुई
·
गतिविधियाँ = क्रिया-कलाप
·
आर्ट-डिपार्टमेंट =
कला-विभाग
·
स्केच = रेखाचित्र
·
गलीज = गंदा
·
छात्रवृत्ति = वजीफा
(स्कॉलरशिप)
·
प्रदर्शनी = नुमाइश।
·
रुडॉल्फ वॉन लेडेन
= प्रसिद्ध कला समीक्षक
·
प्रतिभा = बुद्धि,
·
दक्ष = चतुर
·
वियना = यूरोप का एक
नगर
·
निखरता गया = अच्छा
होता गया
·
कल्याण = मुम्बई के
पास का उपनगर
·
त्रासदी = दुखद घटना
·
सामर्थ्य = क्षमता।
·
क्रूर = निर्दयतापूर्ण
·
कबायली आक्रमण =
1948 में कश्मीर पर हुआ कबालियों का आक्रमण
·
बारामूला = जम्मू-कश्मीर
प्रांत का एक नगर
·
ध्वस्त = नष्ट
·
शहराती = नगर निवासी
·
प्रख्यात = प्रसिद्ध,शेख
अब्दुल्ला कश्मीर के तत्कालीन प्रधानमन्त्री (फारुख अब्दुल्ला के पिता)।
·
सेजाँ = एक फ्रेन्च
चित्रकार
·
अलयोस फ्रान्स = फ्रेन्च
सिखाने वाली एक संस्था
·
फ्रेन्च पेन्टिंग =
फ्रान्स की कलाकृतियाँ, पिकासो प्रसिद्ध फ्रेन्च चित्रकार
·
जीनियस = अत्यन्त बुद्धिमान
·
मार्सेई = फ्रान्स का
एक नगर
·
पेरिस = फ्रान्स की
राजधानी
·
ताप = बुखार
·
कुटुम्ब = परिवार
·
सर्वस्व = सब कुछ
·
जहरा जाफरी = रज़ा के
परिवार का एक अन्य चित्रकार
·
धृष्टता = बदतमीजी
·
हाथ पर हाथ धरे बैठे
रहना = कुछ भी न करना, निठल्ले बैठे रहना
·
सम्भावनाएं = कुछ बन
सकने की क्षमता
·
संतप्त = दु:खी
·
खामी = दोष
·
भगवद्गीता = हिन्दुओं
का एक धर्मग्रन्थ
·
जागृति = सचेत होना,
जागना
·
मसले = विषय
·
आजीविका = रोजी-रोटी
के साधन
·
उत्तरदायित्त्व = जिम्मेदारियाँ
·
खासी जटिल = अत्यधिक
कठिन
·
जटिलता = कठिनाई।
सप्रसंग व्याख्याएँ एवं अर्थग्रहण सम्बन्धी प्रश्नोत्तर
1. नागपुर स्कूल की परीक्षा में मैं कक्षा में प्रथम आया।
दस में से नौ विषयों में मुझे विशेष योग्यता प्राप्त हुई। इससे मुझे बड़ी मदद मिली।
पिताजी रिटायर हो चुके थे। अब मुझे नौकरी ढूँढ़नी थी। मैं गोंदिया में ड्राइंग का अध्यापक
बन गया। महीने-भर में ही मुझे मुम्बई में जे. जे. स्कूल ऑफ आर्ट में अध्ययन के लिए
मध्य प्रान्त की सरकारी छात्रवृत्ति मिली। यह सितम्बर 1943 की बात है।
मैंने
अमरावती के गवर्नमेण्ट नॉर्मल स्कूल से त्यागपत्र दे दिया। जब तक मैं मुम्बई पहुँचा
तब तक जे. जे. स्कूल में दाखिला बन्द हो चुका था। दाखिला हो भी जाता तो उपस्थिति का
प्रतिशत पूरा न हो पाता। छात्रवृत्ति वापस ले ली गई। सरकार ने मुझे अकोला में ड्राइंग
अध्यापक की नौकरी देने की पेशकश की। मैंने तय किया कि मैं लौटूंगा नहीं, मुम्बई में
ही अध्ययन करूँगा। मुझे शहर पसन्द आया, वातावरण पसन्द आया, गैलरियाँ और शहरों में अपने
पहले मित्र पसन्द आए।
संदर्भ
एवं प्रसंग - प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक 'आरोह' में संकलित
सैयद हैदर रज़ा' लिखित 'आत्मा का ताप' पाठ से लिया गया है। इस अंश में लेखक ने अपने
मुंबई जाने और वहीं रहकर अध्ययन करने के बारे में बताया है।
व्याख्या
- लेखक ने नागपुर स्कूल की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। दस विषयों में से
नौ में उसने विशेष योग्यता प्राप्त की। इससे उसे आगे बहुत सहायता मिली। लेखक के पिता
रिटायर हो चुके थे। अतः लेखक ने महाराष्ट्र के गोदिया में चित्रकला अध्यापक की नौकरी
कर ली। इसके महीने भर बाद ही लेखक को मुंबई के जे. जे. स्कूल ऑफ आर्ट' में अध्ययन करने
के लिए मध्य प्रांत की सरकारी छात्रवृत्ति मिल गई। यह सन् 1943 की बात थी। लेखक ने
अमरावती के गवर्नमेंट नॉर्मल स्कूल से त्यागपत्र दे दिया। परन्तु जब मुंबई पहुँचा तो
जे. जे. स्कूल में प्रवेश बंद हो चुका था।
यदि
दाखिला हो भी जाता तो उपस्थिति का प्रतिशत भी अब पूरा नहीं हो सकता था। अत: छात्रवृत्ति
वापस हो गई। सरकार की ओर से लेखक को अकोला में चित्रकला अध्यापक की नौकरी का प्रस्ताव
मिला। परन्तु लेखक ने वापस न लौटने और मुंबई में ही अध्ययन करने का निश्चय किया। लेखक
को मुंबई का वातावरण अनुकूल लगा। लेखक वहाँ की चित्र वीथिकाएँ (गैलरियाँ) और वहाँ पर
पहली बार बने मित्र भी पसंद आए।
विशेष
- रजा साहब ने चित्रकला जगत में प्रवेश के लिए अपना प्रथम प्रयास कैसे किया, यह इस
अंश से ज्ञात होता है।
प्रश्न :
1. नागपुर स्कूल की परीक्षा में लेखक का परीक्षाफल कैसा रहा ? इससे
उसे क्या मदद मिली?
2. अपने प्रारम्भिक संघर्ष के बारे में लेखक ने क्या बताया है ?
3. मुम्बई में लेखक क्यों गया था ? क्या उसकी इच्छा पूरी हुई ? यदि
नहीं तो क्यों ?
4. मुम्बई से वापस न लौटने का निर्णय लेखक ने क्यों लिया?
उत्तर
:
1.
नागपुर स्कूल की परीक्षा में लेखक (सैयद हैदर रज़ा) अपनी कक्षा में प्रथम आया। उसे
दस विषयों में से नौ में विशेष योग्यता प्राप्त हुई। इससे इसे नौकरी पाने में बड़ी
मदद मिली।
2.
लेखक के पिताजी रिटायर हो चुके थे इसलिए उसके लिए नौकरी आवश्यक थी। पहले वह गोदिया
में अध्यापक बना तत्पश्चात् जे. जे. स्कूल ऑफ आर्ट मुम्बई में अध्ययन हेतु मध्य प्रान्त
की छात्रवृत्ति प्राप्त हुई लेकिन दाखिला बंद हो जाने के कारण उनका दाखिला न हो सका।
अत: छात्रवृत्ति वापस हो गयी।
3.
मुम्बई में लेखक जे. जे. स्कूल ऑफ आर्ट में प्रवेश हेतु आया था किन्तु तब तक वहाँ प्रवेश-प्रक्रिया
पूरी हो चुकी थी। अत: उसका प्रवेश न हो सका और सरकारी छात्रवृत्ति वापस करनी पड़ी।
4.
अकोला में उसे पुराने पद पर नियुक्ति की पेशकश की गई किन्तु लेखक ने मुम्बई में ही
रहने का निश्चय किया। क्योकि वहाँ के लोग, वहाँ का वातावरण, आर्ट गैलरियाँ और नए मित्र
उसे पसन्द आए।
2. मेरे पहले दो चित्र नवम्बर 1943 में आर्ट्स सोसाइटी ऑफ
इण्डिया की प्रदर्शनी में प्रदर्शित हुए। उद्घाटन में मुझे आमन्त्रित नहीं किया गया,
क्योंकि मैं जाना-माना नहीं था। अगले दिन मैंने 'द टाइम्स ऑफ इण्डिया' में प्रदर्शनी
की समीक्षा पढ़ी। कला-समीक्षक रुडॉल्फ वॉन लेडेन ने मेरे चित्रों की काफी तारीफ की
थी। उसका पहला वाक्य मुझे आज भी याद है, "इनमें से कई चित्र पहले भी प्रदर्शित
हो चुके हैं, और नयों में कोई नई प्रतिभा नहीं दिखी।
हाँ,
एस. एच. रज़ा नाम के छात्र के एक-दो जलरंग लुभावने हैं। उनमें संयोजन और रंगों के दक्ष
प्रयोग की जबर्दस्त समझदारी दिखती है।" दोनों चित्र 40-40 रुपए में बिक गए। एक्सप्रेस
ब्लॉक स्टूडियोज में आठ-दस घण्टा रोज काम करने के बाद भी महीने-भर में मुझे इतने रुपए
नहीं मिल पाते थे।
संदर्भ
एवं प्रसंग - प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक 'आरोह' में संकलित
सैयद हैदर रज़ा की आत्मकथा 'आत्मा का ताप' से लिया गया है। इस अंश में लेखक ने अपने
दो चित्रों के प्रदर्शनी में प्रदर्शित होने और अच्छे मूल्य पर बिक जाने के प्रसंग
का वर्णन किया है।
व्याख्या
- सन् 1943 में रज़ा के दो चित्रों को आर्ट्स सोसाइटी ऑफ इंडिया की चित्र-प्रदर्शनी
में स्थान दिया गया। प्रदर्शनी के उद्घाटन के अवसर पर रजा को आमंत्रित नहीं किया गया
था। कारण यह था कि उनका नाम जाना-पहचाना नहीं था। अगले दिन रज़ा ने 'द टाइम्स ऑफ इंडिया'
समाचार-पत्र में प्रदर्शनी की समालोचना पढ़ी। उसमें कला की समीक्षा करने वाले कलाविद्
रुडॉल्फ वॉन लेडेन ने रज़ा के चित्रों की काफी प्रशंसा की थी। उनकी समीक्षा का पहला
वाक्य रजा को तब भी याद था।
समीक्षक
ने लिखा था कि प्रदर्शनी में प्रदर्शित चित्रों में से कई चित्र पहले भी प्रदर्शित
हो चुके थे और जो नये चित्र थे उनमें कोई नयापन दिखाई नहीं दिया। समीक्षक ने आगे लिखा
था कि एस. एच. रज़ा नाम के छात्र द्वारा बनाये गये चित्रों में लुभावने जल रंगों का
प्रयोग अवश्य किया गया था। उन चित्रों में चित्र योजना और रंगों के प्रयोग में दक्षता
की बड़ी समझदारी दिखाई देती थी। रज़ा के वे दोनों चित्र 40-40 रुपये में बिक गए। इतने
रुपये तो रजा साहब को एक्सप्रेस ब्लॉक स्टूडियोज में रोज आठ-दस घंटे काम करने पर भी
महीनेभर में नहीं मिल पाते थे।
विशेष
- रजा की मेहनत रंग लाई। उनको चित्रकला जगत में भूरि-भूरि प्रशंसा के साथ प्रवेश मिला।
चित्रकला के छात्रों के . लिए यह अंश धैर्य के साथ अभ्यास में लगे रहने की संदेश दे
रहा है।
प्रश्न :
1. रजा साहब के पहले दो चित्र कब और कहाँ प्रदर्शित हुए ?
2. इन चित्रों पर कला जगत ने क्या प्रतिक्रिया दी ?
3. रुडॉल्फ ने रज़ा के चित्रों में क्या विशेषताएँ बताईं ?
4. रजा साहब के दोनों चित्रों की बिक्री से उन्हें कितना आर्थिक लाभ
हुआ?
उत्तर
:
1.
रज़ा साहब के पहले दो चित्र नवम्बर 1943 में आ सोसाइटी ऑफ इण्डिया की प्रदर्शनी में
प्रदर्शित हुए लेकिन कला जगत में सुपरिचित न होने के कारण उन्हें उद्घाटन में आमन्त्रित
नहीं किया गया।
2.
कला समीक्षक रुडॉल्फ वॉन लेडेन ने रजा साहब के चित्रों की काफी तारीफ की थी। वे 'टाइम्स
ऑफ इण्डिया' में कला
समीक्षक
का काम करते थे।
3.
रूडॉल्फ ने रज़ा के चित्रों में संयोजन और रंगों के दक्षता से प्रयोग करने की समझदारी
बताई थी।
4.
रज़ा साहब के दोनों चित्र 40-40 रुपए में बिक गए थे। इतने रूपए उन्हें एक्सप्रेस ब्लॉक
स्टूडियों में पूरे महीने काम करने पर भी नहीं मिल पाते थे।
3. भले ही 1947 और 1948 में महत्वपूर्ण घटनाएँ घटी
हों, मेरे लिए वे कठिन बरस थे। पहले तो कल्याण वाले घर में मेरे पास रहते मेरी माँ
का देहान्त हो गया। पिताजी मेरे पास ही थे। वे मण्डला लौट गए। मई 1948 में वे भी नहीं
रहे। विभाजन की त्रासदी के बावजूद भारत स्वतन्त्र था। उत्साह था, उदासी भी थी। जीवन
पर अचानक जिम्मेदारी का बोझ आ पड़ा। हम युवा थे। मैं पच्चीस बरस का था, लेखकों, कवियों,
चित्रकारों की संगत थी। हमें लगता था कि हम पहाड़ हिला सकते हैं। और सभी अपने-अपने
क्षेत्रों में, अपने माध्यम में सामर्थ्य भंर-बढ़िया काम करने में जुट गए। देश का विभाजन,
महात्मा गाँधी की हत्या क्रूर घटनाएँ थीं। व्यक्तिगत स्तर पर, मेरे माता-पिता की मृत्यु
भी ऐसी ही क्रूर घटना थी। हमें इन क्रूर अनुभवों को आत्मसात करना था। हम उससे उबर कर
पुनः काम में जुट गए।
संदर्भ
एवं प्रसंग - प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक 'आरोह' में संकलित
सैयद हैदर रज़ा द्वारा लिखित आत्मकथा 'आत्मा का ताप' से लिया गया है। इस अंश में लेखक
ने 1947-48 के समय को अपने लिए कठिन समय बताया है।
व्याख्या
- लेखक कहता है कि 1947 और 1948 के वर्षों में घटित कई घटनाएँ काफी महत्वपूर्ण थीं।
परन्तु उसके निजी जीवन में ये वर्ष अनेक कठिनाइयाँ लेकर आये थे। पहली व्यथित करने वाली
घटना थी, कल्याण स्थित घर में उसके साथ रहने वाली, उसकी माँ का देहावसान हो गया। उसके
पिता भी वहाँ से मंडला लौट गए। मई 1948 में लेखक के पिता का भी देहांत हो गया।
उस
समय भारत विभाजन का आघात झेल कर स्वतंत्र हो चुका था। लोगों में उत्साह होने के साथ
ही विभाजन के दौरान हुई घटनाओं के कारण उदासी भी थी। माँ और पिता दोनों का साया एक
साथ हट जाने से लेखक पर अनेक पारिवारिक जिम्मेदारियाँ आ गई थीं। लेखक की आयु उस समय
25 वर्ष की थी। वह लेखकों, कवियों और चित्रकारों की संगति में रहता था। उसे अपने मन
में बहुत आत्मविश्वास था।
उसे
लगता था कि वह कठिन-से-कठिन समस्या से भी जूझ सकता था। अत: सभी लोग अपनी-अपनी जिम्मेदारियाँ
निभाने और अपनी शक्ति के अनुसार अच्छी से अच्छी तरहं काम करने में जुट गए। लेखक के
माता-पिता की मृत्यु, देश-विभाजन एवं महात्मा गाँधी की हत्या जैसी क्रूर घटनाओं को
लेखक ने सहन किया। इन घटनाओं से उबरकर वह पुनः अपने कार्य में जुट गया।
विशेष
-
जीवन
की क्रूर सच्चाइयों का सामना करते हुए सैयद हैदर रज़ा अपने मुख्य लक्ष्य की ओर कैसे
बढ़ते गये, यह। इस अंश में बताया गया है।
यह
अंश नवयुवकों को आत्मविश्वास और धैर्य से लक्ष्य की ओर बढ़ते जाने की प्रेरणा दे रहा
है।
प्रश्न
1. 1947-48 के वर्ष लेखक के लिए कठिन क्यों थे?
2. लेखक को युवावस्था में क्या लगता था?
3. लेखक ने किन घटनाओं को क्रूर घटनाएँ कहा है ?
4. इस अवतरण के माध्यम से लेखक क्या कहना चाहता है ?
उत्तर
:
1.
1947-48 के वर्ष लेखक के लिए इसलिए कठिन थे क्योंकि उन दिनों कल्याण में रहते समय लेखक
की माँ का देहान्त हो गया तथा साथ रहने वाले पिताजी मण्डला लौट गए। मई 1948 में पिताजी
का भी देहान्त हो गया।
2.
लेखक को युवावस्था में ही माता-पिता के देहान्त का दुख झेलना पड़ा, साथ ही भारत विभाजन
की त्रासदी भी उसने देखी। इसके बावजूद स्वतन्त्रता का उत्साह भारत में था। माता-पिता
के निधन से सारी जिम्मेदारियों का बोझ उसी पर आ गया, किन्तु उसमें अदम्य उत्साह उस
समय व्याप्त था।
3.
लेखक ने देश-विभाजन की घटना को, महात्मा गाँधी की हत्या को क्रूर घटना बताया है। व्यक्तिगत
स्तर पर उसके माता-पिता की मृत्यु भी ऐसी ही क्रूर घटना थी। लेखक ने इन क्रूर अनुभवों
को झेला और उनसे उबर कर पुन: अपने काम में जुट गया।
4.
लेखक इस अवतरण के माध्यम से यह कहना चाहता है कि जीवन में व्यक्ति को कठिन दौर से भी
गुजरना पड़ता है। सन् 1947-48 के वर्ष इसी प्रकार के थे, किन्तु जीवन की दुखद घटनाओं
से भी व्यक्ति उबरता है और अन्तत: अपने काम में संलग्न हो जाता है।
4. श्रीनगर की इसी यात्रा में मेरी भेंट प्रख्यात फ्रेंच
फोटोग्राफर हेनरी कार्तिए-ब्रेसाँ से हुई। मेरे चित्र देखने के बाद उन्होंने जो टिप्पणी
की वह मेरे लिए बहुत महत्त्वपूर्ण रही है। उन्होंने कहा, 'तुम प्रतिभाशाली हो, लेकिन
प्रतिभाशाली युवा चित्रकारों को लेकर मैं संदेहशील हूँ। तुम्हारे चित्रों में रंग है,
भावना है, लेकिन रचना नहीं है। तुम्हें मालूम होना चाहिए कि चित्र इमारत की ही तरह
बनाया जाता है-आधार, नींव, दीवारें, बीम, छत और तब जाकर वह टिकता है। मैं कहूँगा कि
तुम सेज़ाँ का काम ध्यान से देखो।'
इन
टिप्पणियों का मुझ पर गहरा प्रभाव रहा। मुम्बई लौटकर मैंने फ्रेंच सीखने के लिए आलयाँस
फ्रांसे में दाखिला ले लिया। फ्रेन्च पेन्टिंग में मेरी खासी रुचि थी, लेकिन मैं समझना
चाहता था कि चित्र में रचना या बनावट वास्तव में क्या होगी? 1950 में एक गम्भीर वार्तालाप
के दौरान फ्रेन्च दूतावास के सांस्कृतिक सचिव ने मुझसे पूछा तुम फ्रांस जाकर कला अध्ययन
क्यों करना चाहते हो ? मैंने पूरे आत्मविश्वास से उत्तर दिया, फ्रेंच कलाकारों का चित्रण
पर अधिकार है। फ्रेन्च पेन्टिंग मुझे अच्छी लगती है।'
"तुम्हारे
पसंदीदा कलाकार ?" "सेजॉ, बॉन, गॉग, गोगों पिकासो, मातीस, शागाल और ब्राका"
पिकासो के काम के बारे में तुम्हारा क्या विचार है?" मैंने कहा "पिकासो का
हर दौर महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि पिकासो जीनियस है।" वह इतने खुश हुए कि मुझे
एक के बजाय दो बरस के लिए छात्रवृत्ति मिली। मैं सितम्बर में फ्रांस के लिए निकला और
2 अक्टूबर, 1950 को मार्सेई पहुँचा। यूँ पेरिस में मेरा जीवन प्रारम्भ हुआ।
संदर्भ
एवं प्रसंग - प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक 'आरोह' में संकलित
'सैयद हैदर रजा' की आत्मकथा 'आत्मा का ताप' से लिया गया है। इस अंश में लेखक ने फ्रेंच
फोटोग्राफर हेनरी कार्तिए-बेसाँ से अपनी मुलाकात का और चित्रकला पर उनके दिशा-निर्देशों
के बारे में बताया है।
व्याख्या
- लेखक 1948 में श्रीनगर गया था। इस यात्रा में उसकी भेंट प्रसिद्ध फ्रेंच फोटोग्राफर
हेनरी कार्तिए ब्रेसाँ से हुई। रज़ा के चित्रों को देखने के बाद हेनरी ने जो विचार
व्यक्त किए वे रजा को बहुत उपयोगी लगे। हेनरी ने कहा कि वह (रजा) एक प्रतिभाशाली चित्रकार
थे। हेनरी ने साथ ही यह भी कहा कि प्रतिभाशाली चित्रकारों को लेकर उनके मन में संदेह
बना हुआ था। हेनरी ने यह भी कहा कि उनके (रजा के) चित्रों में उपयुक्त रंग और भाव-अभिव्यक्ति
थी।
किन्तु
हेनरी के अनुसार चित्रों में रचना तत्व का अभाव था। हेनरी ने समझाया कि एक चित्र की
रचना बिल्कुल एक भवन की तरह ही की जाती है। चित्र में भी आधार के लिए भूमि, नींव, दीवारों,
बीम और छत की जरूरत होती है। एक आदर्श और आकर्षक चित्र तभी बन पाता है। हेनरी के विचारों
का रज़ा पर गहरा प्रभाव पड़ा। जब रजा मुंबई लौट कर आये तो उन्होंने फ्रांसीसी भाषा
सीखने के लिए 'अलयांस फ्रांसे' संस्था में प्रवेश ले लिया। फ्रांसीसी चित्रकला में
रज़ा की बहुत पहले से ही गहरी रुचि थी परंतु वह यह समझना चाहते थे कि चित्र बनाते समय
रचना या बनावट कैसी होनी चाहिए।
1950
में रज़ा की फ्रांसीसी दूतावास के सांस्कृतिक सचिव से भेंट हुई थी। तब सचिव ने उनसे
पूछा था कि वह (रजा) फ्रांस जाकर चित्रकला का अध्ययन क्यों करना चाहते थे? तब रजा ने
आत्मविश्वास के साथ उत्तर दिया कि फ्रांसीसी चित्रकार अपने विषय की संपूर्ण जानकारी
रखते थे। इसके अतिरिक्त उन्हें स्वयं भी फ्रांसीसी चित्रकला बहुत अच्छी लगती थी।
विशेष
:
इस
अंश से स्पष्ट है कि रज़ा साहब कुशल चित्रकार होते हुए भी चित्रकला की सभी बारीकियों
से परिचित होना चाहते थे।
इस
प्रसंग से फ्रांसीसी चित्रकला के प्रति उनके विशेष प्रेम का भी पता चलता है।
प्रश्न :
1. श्रीनगर की इस यात्रा में लेखक की भेंट किससे हुई ? और उन्होंने
लेखक के चित्र देखने के बाद क्या टिप्पणी की?
2. हेनरी कार्तिए ने लेखक को किस कलाकार के चित्रों को ध्यान से देखने
का सुझाव दिया ?
3. फ्रेंच दूतावास के सांस्कृतिक सचिव के यह पूछने पर कि तुम्हारे पसंदीदा
कलाकार कौन से हैं, लेखक ने क्या उत्तर दिया?
4. फ्रेंच चित्रकारों के बारे में रज़ा की क्या राय थी ?
उत्तर
:
1.
श्रीनगर की यात्रा में सैयद हैदर रज़ा की भेंट प्रसिद्ध फ्रेन्च फोटोग्राफर हेनरी कार्तिए-ब्रेसाँ
से हुई और उन्होंने लेखक के चित्र देखने के बाद कहा कि इन चित्रों में रंग और भावना
तो है किन्तु रचना नहीं है। चित्र इमारत की तरह बनाया जाता है-आधार, नींव, दीवारें,
बीम, छत और तब वह जाकर टिकता है।
2.
प्रसिद्ध चित्रकार सेजों का काम देखने का सुझाव रज़ा को हेनरी कार्तिए ने दिया और कहा
कि उनके चित्र देखने के बाद तुम चित्रकला की बारीकियों से परिचित हो सकोगे।
3.
फ्रेंच दूतावास के सांस्कृतिक सचिव ने हैदर रजा से पूछा कि आपके पसंदीदा कलाकार कौन-कौन
से है ? तब उसने उत्तर दिया-सेजाँ, वॉन, गाँग, गोगा पिकासो, मातीस, शागाल और ब्रॉक।
4.
रजा ने फ्रांसीसी दूतावास के सांस्कृतिक सचिव द्वारा पूछे जाने पर अपनी राय बताते हुए
कहा कि फ्रांसीसी चित्रकारों का चित्रकला पर पूर्ण अधिकार था।
5. मेरे मन में शायद युवा मित्रों को यह संदेश
देने की कामना है कि कुछ घटने के इन्तजार में हाथ पर हाथ धरे न बैठे रहें- खुद कुछ
करो। जरा देखिए, अच्छे-खासे सम्पन्न परिवारों के बच्चे काम नहीं कर रहे, जबकि उनमें
तमाम सम्भावनाएँ हैं। और यहाँ हम बेचैनी से भरे, काम किए जाते हैं। मैं बुखार से छटपटाता-सा,
अपनी आत्मा, अपने चित्त को संतप्त किए रहता हूँ। मैं कुछ ऐसी बात कर रहा हूँ, जिसमें
खामी लगती है। यह बहुत गजब की बात नहीं है, लेकिन मुझमें काम करने का संकल्प है।
भगवद्गीता
कहती है, "जीवन में जो कुछ भी है, तनाव के कारण है।" बचपन, जीवन का पहला
चरण, एक जागृति है। लेकिन मेरे जीवन का मुंबई वाला दौर भी जागृति का चरण ही था। कई
निजी मसले थे, जिन्हें सुलझाना था। मुझे आजीविका कमानी थी। मैं कहूँगा कि पैसा कमाना
महत्त्वपूर्ण होता है, वैसे अन्ततः वह महत्त्वपूर्ण नहीं होता। उत्तरदायित्व होते हैं,
किराया देना होता है, फीस देनी होती है, अध्ययन करना होता है, काम करना होता है। कुल
मिलाकर स्थिति खासी जटिल थी। मेरे माता-पिता के न रहने और राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी
को खो देने से जटिलता और बढ़ी।
संदर्भ
एवं प्रसंग - प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक 'आरोह' में संकलित
सैयद हैदर रजा की आत्मकथा 'आत्मा का ताप से लिया गया है। इस अंश में रज़ा साहब अपने
युवा साथियों को संदेश देना चाहते हैं।
व्याख्या
- लेखक कहता है कि वह अपने युवा मित्रों को कुछ संदेश देना चाहता है। संदेश यह है कि
युवाओं को अनुकूल घटना या समय की प्रतीक्षा में निष्क्रिय होकर बैठे रहना उचित नहीं
होता। स्वयं रास्ता बनाओ। लेखक कहता है कि समर्थ और सम्पन्न परिवारों के युवक बेकार
घूमते हैं, जबकि उनके अंदर बहुत कुछ कर गुजरने की क्षमता छिपी है। जबकि लेखक के जैसे
युवा लोग अनेक चुनौतियों का सामना करते हुए बेचैनी से काम में जुटे हुए हैं। लेखक कहता
है कि वह आगे बढ़ने के लिए रास्ता खोजते हुए ऐसा छटपटाता रहता है जैसे उसे बुखार चढ़ा
हो। इससे उसकी आत्मा और चित्त में तपता रहता है।
लेखक
कहता है कि उसकी बात कुछ अटपटी-सी लग सकती हैं। यह कोई बहुत बड़ी बात भी नहीं है, परन्तु
इससे यह तो प्रमाणित होता है कि उसमें (लेखक में) काम करने की दृढ़ इच्छा है। लेखक
भगवद्गीता का उद्धरण देते हुए कहता है कि जीवन में जो भी समस्याएँ या बेचैनियाँ हैं
.... उनके पीछे मन का तनाव में रहना ही कारण है। मानव जीवन में बचपन जीवन का पहला चरण
होता है। जो एक जागरण की तरह हुआ करता है। लेखक मानता है कि मुंबई में बिताया गया समय
भी जागृति का ही समय था।
उसके
सामने कई समस्याएँ थीं। नौकरी भी करनी थी। लेखक स्वीकार करता है कि पैसा कमाना भी महत्वपूर्ण
है लेकिन वही सब कुछ नहीं होता। जीवन में आदमी को अनेक दायित्व निभाने पड़ते हैं। किराया
चुकाना, फीस भरना, अध्ययन करना। लेखक के साथ भी ये सारी परिस्थितियाँ थीं। . माता-पिता
और गाँधीजी के असामयिक निधन ने उसके जीवन को और भी जटिल बना दिया था।
विशेष
- लेखक ने अनेक समस्याओं का सामना करते हुए भी अपने दृढ़ संकल्प के बल पर अपना अध्ययन
भी जारी रखा और आगे का रास्ता भी बनाया।
प्रश्न :
1. लेखक युवाओं को क्या सन्देश.देना चाहता है?
2. लेखक के जीवन का कौन-सा दौर जागृति का चरण था ? और क्यों ?
3. लेखक के अनुसार पैसा क्यों महत्त्वपूर्ण है ?
4. लेखक के जीवन में जटिलता क्यों बढ़ी?
उत्तर
:
1.
लेखक, युवाओं को अकर्मण्यता छोड़कर कुछ न कुछ करते रहने का संदेश देता है। कुछ न कुछ
करते रहने से तुम्हारे अन्दर छिपी सम्भावनाएँ सामने आ सकेंगी। सम्पन्न परिवारों के
युवकों का निठल्ले रहना उसे उचित नहीं लगता। वह स्वयं अपना उदाहरण देता है कि किस प्रकार
तनावों के बीच रहते हुए भी वह काम के प्रति संकल्पित है।
2.
लेखक बचपन को जीवन में जागृति का प्रथम चरण मानता है साथ ही वह अपने जीवन में मुम्बई
वाले दौर को भी जागृति का चरण मानता है, क्योंकि अपनी व्यक्तिगत समस्याओं को सुलझाने
के लिए आजीविका उसके लिए आवश्यक थी।
3.
भले ही पैसा महत्त्वपूर्ण नहीं होता, किन्तु अपने उत्तरदायित्वों को पूरा करने और अध्ययन
आदि की फीस चुकाने के लिए पैसे की जरूरत उसे थी इसलिए पैसा कमाना आवश्यक था।
4. लेखक को अपने जीवन में जटिलता का अनुभव माता-पिता की मृत्यु तथा गाँधीजी की क्रूर हत्या से हुआ। इन घटनाओं ने इसके मन पर गहरा प्रभाव डाला और वह जीवन-यापन को लेकर तनाव में रहने लगा।