Class 11th & 12th 4. पत्रकारीय लेखन के विभिन्न रूप और लेखन प्रक्रिया

Class 11th & 12th 4. पत्रकारीय लेखन के विभिन्न रूप और लेखन प्रक्रिया

अभ्यास प्रश्न

प्रश्न 1: किसे क्या कहते हैँ-

(क) सबसे महत्त्वपूर्ण तथ्य या सूचना को सबसे ऊपर रखना और उसके बाद घटते हुए महत्त्वक्रम में सूचनाएँ देना…………………

(ख) समाचाएर के अंतर्गत किसी घटना का नवीनतम और महत्त्वपूर्ण पहलू…………………

(ग) किसी समाचार के अंतर्गत उसका विस्तार, पृष्ठभूमि, विवरण आधि देना …………………

(घ) ऐसा सुव्यवस्थित, सृजनात्मक और आत्मनिष्ट लेखन; जिसके माध्यम से सूचनाओं के साथ-साथ मनोरंजन पर भी ध्यान दिया जाता है…………………

(ङ) किसी घटना, समस्या या मुद्दे की गहन छानबीन और विश्लेषण…………………

(च) वह लेख, जिसमें किसी मुद्दे के प्रति समाचार-पत्र को अपनी राय प्रकट होती है…………………

उत्तर –

(क) उलटा पिरामिड

(ख) रेखांकन एव कार्टोंग्राफ

(ग) विशेष रिपोर्ट

(घ) फीचर

(ङ) आलेख एवं स्तंभ

(च) संपादकीय

प्रश्न 2: नीचे दिए गए समाचार के अंश को ध्यानपूर्वक पढिए-

शांति का संदेश लेकर आए फ़ज़लुर्रहमान

पाकिस्तान में विपक्ष के नेता मौलाना फ़ज़लुर्रहमान ने अपनी भारत-यात्रा के दौरान कहा कि वे शांति व भाईचारे का संदेश लेकर आए हैं। यहॉ दारूलउलुश्नम पहूँचने पर पत्रकार सम्मेलन को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि दोनों देशों के संबंधो में निरंतर सुधार हो रहा है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से गत सप्ताह नई दिल्ली में हुई वार्ता के संदर्भ में एक प्रश्न के उतार में उन्होंने कहा कि पाकिस्तानी सरकार ने कश्मीर समस्या के समाधान के लिए 9 प्रस्ताव दिए हैं।

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने उन पर विचार करने का आश्वासन दिया है। कश्मीर समस्या के संबंध में मौलाना साहब ने आशावादी रवैया अपनाते हुए कहा कि 50 वर्षों की इतनी बड़ी जटिल समस्या का एक-दो वार्ता में हल होना संभव नहीं है। लेकिन इस समस्या का समाधान अवश्य निकलेगा। प्रधानमंत्री के प्रस्तावित पाकिस्तान दौरे की बाबत उनका कहना था कि निकट भविष्य में यह संभव है और हम लोग उनका ऐतिहासिक स्वागत करेंगे। उन्होंने कहा कि दोनों देशी के रिश्ते बहुत मज़बूत हुए हैं और प्रथम बार सीमाएँ खुली हैं, व्यापार बढ़ा है तथा बसों का आवागमन आरभ हुआ है।

(क) दिए गए समाचार में से ककार ढूंढ़कर लिखिए।

(ख) उपर्युक्त उदाहरण के आधार यर निम्नलिखित बिंदुओं कौ स्पष्ट कीजिए :

● इंट्रो

● बॉडी

● समापन

(ग) उपर्युक्त उदाहरण का गौर से अवलोकन कीजिए और बताइए कि ये कौन-सी पिरामिड-शेली में है, और क्यों?

उत्तर –

(क)

क्या – शांति का संदेश।

कौन – फ़ज़लुर्रहमान, पाकिस्तान के विपक्षी नेता।

कब – दारुलउलूम पहुंचने पर, भारत और पाक के मध्य होने वाली वार्ता के अवसर पर।

कहाँ – भारत-यात्रा पर आए।

कैसे – वार्ता द्वारा दोनों देशो में निकटता लाना और समस्या का हल खोजना।

क्यों – कश्मीर समस्या का हल चाहने के उदृदेश्य से

(ख)

● इंट्रो-पाकिस्तान में विपक्ष के नेता मौलाना फ़ज़लुर्रहमान ने अपनी-भारत पात्रों के दौरान कहा कि वे शांति व भाईचारे का सदेश लेकर भारत आए हैं।

● बॉडी-फ़ज़लुर्रहमान द्वारा दारूलउलूम पहुँचने पर तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ हुई बातचीत को पत्रकारों हैं बताने क अंश।

● समापन-भारतीय प्रधानमंत्री को आमंत्रण तथा दोनों देशों के रिश्तों में आई मजबूती संबंधो कथन।

(ग) यह समाचार उलटा पिरामिड शैली में है क्योंकि इसमें इंट्रो पहले, बॉडी मध्य में और समापन सबसे अंत में है।

प्रश्न 3: एक दिन के किन्हीं जीन समाचार-पत्रों को पढिए और दिए गए बिन्दुओं के संदर्भ में उनका तुलनात्मक अध्ययन कीजिए-

(के) सूचनाओं का केंद्र/मुख्य आकर्षण

(ख) समाचार का पृष्ठ एवं स्थान

(ग) समाचार की प्रस्तुति

(घ) समाचार की भाषा-शैली

उत्तर –

हिंदुस्तान

नवभारत टाइम्स

पंजाब केसरी

(सूचनाएँ आकर्षक एवं विस्तृत हैं।

(सूचनाएँ आकर्षक एवं जिज्ञासापूर्ण हैं।

(सूचनाएँ सामान्यतया ठीक हैं।

(समाचार प्रारंभ के सात-आठ पृष्ठों पर होते हैं।

(समाचार पहले, दूसरे, तीसरे और चौथे पृष्ठों यर अधिक हैं।

(पहले तीन-चार पृष्ठों पर समाचार हैं।

(समाचार प्रस्तुति का ढंग रोचक, आकर्षक एवं प्रभावशाली है।

(समाचार प्रस्तुति का ढंग आकर्षक एवं प्रभावी है।

(समाचार प्रस्तुति का ढंग साधारण है।

(समाचार की भाषा सरल, सहज तथा स्तरीय है।

(भाया सरल, सुबोध एवं स्तरीय है।

(भाषा अच्छी है।

प्रश्न 4: अपने विद्यालय और मोहल्ले के आस-यास की समस्याओं यर नज़र डालें। जैसे-यानी की कमी, बिजली की कटौती, खराब सड़कें, सफाई की दुर्व्यवस्था। इनमें से किन्हीं दो विषयों यर रिपोर्ट तैयार करें और अपने शहर के अखबार में भेजें।

उत्तर – पानी को कमी-मार्च का महीना बीता नहीं कि पानी की किल्लत शुरू हो गई। तालाब और पोखर सूखने लगे और नलों में भी पानी आना कम हो गया । पानी की कमी और उपर से बढ़ती गर्मी, दोनों मिलकर जीना कितना कठिन वना देती हैं, पर परेशानियों का नाम ही तो जीवन है। शहरी क्षेत्रों में यह समस्या और भी विकराल रूप ले लेती है। अनधिकृत कॉलोनियों में यानी के टैंकर समय पर न आना, सप्ताह में एक-दो बार आने पर युदृध जैसी स्थिति उत्पन्न होना आम बात हो जाती है। पानी के टैंकर की राह देखते हुए रात बिताना सामान्यतः कोई नई बात नहीं है। चुनावी वायदे करने वाले नेता अब दर्शन नहीं देते और शिकायत लेकर जाने पर पल्ला झाड़ने की कोशिश करते नज़र आते हैं। वे कभी जल बोर्ड की दोष देते हैं तो कभी पिछली सरकार को। आखिर यह समस्या लोगों का पीछा कब छोड़ेगी?

सफाई की दुर्व्यवस्थर-सफाईं का नाम लेते ही जगह-जगह पहुँ कूड़े के ढेर, गंदे पानी से भरी नालियाँ, कूडेदान के बाहर तक सड़क पर बिखरा कूड़ा और उनमें मुँह मारते जानवरों का दृश्य साकार हो उठता है। कुछ एसा दृश्य उतारी दिल्ली को पुनर्वास कॉलोनियों में देखा जा सकता हैं। यूँ तो उत्तारी दिल्ली नगर निगम साफ़-सफाई के बड़े-बड़े दावे करता है, पर हल्की-सी बारिश होते ही उसके दावों की पोल खुल जाती है। वर्षा होते ही सड़कों पर पानी का भरना, उनमें कूड़ा-करकट तैरना सांगा को नाक बंद करके जाने के लिए मज़बूर करता है।

ऐसा गंदगीपूर्ण दृश्य देखकर इसे देश को राजधानी का हिस्सा कहने में संकोच होने लगता है। नगर निगम के अध्यक्ष और अधिकारी सफाई-कार्यों का बजट कहीं और खर्च करके तथा सफाई के लिए किए गए कार्यों के झूठे आँकड़े प्रस्तुत करके जनता को धोखा देन का प्रयास करते हैं। उनके इस कृत्य से दिल्ली की आधी से अधिक आबादी साफ हवा-यानी के लिए तरसने को मज़बूर है।

प्रश्न 5: किसी क्षेत्र-विशेष से जुड़े व्यक्ति से साक्षात्कार करने के लिए प्रश्न-सूची तैयार कीजिए, जैसे-

● संगीत/नृत्य

चित्रकला

शिक्षा

अभिनय

साहित्य

खेल

उत्तर – अभिनय के दुनिया में पैर जमा चुके अभिनेता से साक्षात्कार के लिए तैयार की गई प्रशन-सूची-

1. आपकी अभिनय की दुनिया में आने के लिए प्रेरणा कहाँ से मिली?

2. आपकों इस क्षेत्र में पैर जमाने के लिए क्या-क्या करना पड़ा?

3. आपके अभिनय के क्षेत्र में आने पर आपके माता-पिता की क्या प्रतिक्रिया रही?

4. अब तक आपने किन-किन फिल्मों में अपनी प्रतिभा का जौहर दिखाया है?

5. अभिनय के क्षेत्र में आज आप खुद को कहाँ पाते हैं?

6. प्रसिदृधि के शिखर पर पहुँचकर कुछ लोग पैसों के लालच में विज्ञापनों के माध्यम रने गलत संदेश देकर अपनी छवि का दुरुपयोग करते हें? उनके इस कृत्य की आप किस रूप में देखते हैं?

7. अभिनय के क्षेत्र में नवागंतुकों की मदद आप कैसे करते हैं?

8. अच्छे अभिनय के बाद भी जब आपको सरकार दुवारा पुरस्कृत नहीं किया जाता तब आप कैसा महसूस करते हैं?

9. आपकी आने वाली फिल्में कौन-कौंन-सी हैं? वे आपकी पिछली फिल्मों से किस तरह अलग हैं?

10. अभिनय की दुनिया में आपने धन तो खूब कमाया पर इससे आपकी कितनी संतुष्टि मिली?

11. यदि आप अभिनेता न होते तो क्या करना पसंद करते?

प्रश्न 6: आप अखबार के मुखपृष्ठ पर कौन-से छह समाचार शीर्षक/सुखियाँ (हेडलाइन) देखना चाहेंगे? उन्हें लिखिए।

उत्तर –

1. अखबार के मुखपृष्ठ पर मैं निम्नलिखित छह समाचार शीर्षक/सुखियाँ (हेडलाइन) देखना चाहूँगा

2. अपने देश की सर्वाधिक महत्वपूर्ण एवं चर्चित खबर का शीर्षक।

3. महत्वपूर्ण विश्वस्तरीय खबर का शीर्षक।

4. अपने राज्य की राजधानी संबंधी मुख्य खबर।

5. दिल्ली में आयोजित खेल-कूद, सांस्कृतिक कार्यक्रम की जानकारी संबंधी शीर्षक।

6. किनारे बने बॉक्स में मुख्य समाचारों की झलकियाँ।

7. मौसम-संबंधी पूर्वानुमान, तापमान, शेयर बाजार भाव आदि की तालिका।

अन्य हल प्रश्न

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1: संपादकीय से आप क्या समझते हैं?

उत्तर – संपादकीय समाचार-पत्र का वह महत्त्वपूर्ण अंश होता है, जिसे संपादक, सहायक संपादक तथा संपादक मंडल के सदस्य लिखते हैं।

प्रश्न 2: संपादकीय का समाचार-पत्र के लिए क्या महत्व है?

उत्तर – संपादकीय को किसी समाचार-पत्र की आवाज माना जाता है। यह एक निश्चित पृष्ठ पर छपता है। यह अंश समाचारपत्र को पठनीय तथा अविस्मरणीय बनाता है। संपादकीय से ही समाचार-पत्र की अच्छाइयाँ एवं बुराइयाँ (गुणवत्ता) का निर्धारण किया जाता है। समाचार-पत्र के लिए इसकी महत्ता सर्वोपरि है।

प्रश्न 3: संपादकीय किसी नाम के साथ नहीं छापा जाता, क्यों?

Ø  संपादकीय में लेखक का नाम क्यों नहीं होता?

उत्तर – संपादकीय किसी एक व्यक्ति या व्यक्ति-विशेष की राय, भाव या विचार नहीं होता अत: उसे किसी के नाम के साथ नहीं छापा जाता।

प्रश्न 4: संपादकीय पृष्ठ पर किन-किन सामग्रियों को स्थान दिया जाता है?

उत्तर – संपादकीय पृष्ठ पर संपादकीय, महत्वपूर्ण लेख, फ़ीचर, सूक्तियाँ, संपादक के नाम पत्र आदि को स्थान दिया जाता है।

प्रश्न 5: संपादकीय का उददेश्य क्या है?

उत्तर – किसी घटना, समस्या अथवा विशिष्ट मुद्दे पर संपादक मंडल की राय (समाचार-पत्र के विचार) जनता तक पहुंचाना संपादकीय का उद्देश्य होता है।

प्रश्न 6: संपादकीय लेखन के चार कार्यों का उल्लेख कीजिए।

उत्तर – संपादकीय लेखन के चार कार्य हैं-समाचारों का विश्लेषण, पृष्ठभूमि की तैयारी, भविष्यवाणी करना तथा नैतिक निर्णय देना।

प्रश्न 7: स्तंभ-लेखन से आप क्या समझते हैं?

उत्तर – स्तंभ-लेखन विचारपरक लेखन का एक महत्वपूर्ण रूप है। कुछ लेखक अपने खास वैचारिक रुझान के लिए जाने जाते हैं, जिनकी लोकप्रियता देखते हुए अखबार उन्हें एक नियमित स्तंभ लिखने का जिम्मा दे देते हैं। इसमें विषय चुनने और विचार अभिव्यक्ति की छूट लेखक को होती है।

एक अच्छा पत्रकार कैसे बनें?

एक अच्छा पत्रकार या लेखक बनने के लिए विभिन्न जनसंचार माध्यमों में लिखने की अलग-अलग शैलियों से परिचित होना जरूरी है। अखबारों या पत्रिकाओं में समाचार, फ़ीचर, विशेष रिपोर्ट, लेख और टिप्पणियाँ प्रकाशित होती हैं। इन सबको लिखने की अलग-अलग पद्धतियाँ हैं, जिनका ध्यान रखा जाना चाहिए। समाचार-लेखन में उलटा पिरामिड-शैली का उपयोग किया जाता है। समाचार लिखते हुए छह ककारों का ध्यान रखना जरूरी है।

फ़ीचर-लेखन में उलटा पिरामिड की बजाय फ़ीचर की शुरुआत कहीं से भी हो सकती है। जबकि विशेष रिपोर्ट के लेखन में तथ्यों की खोज और विश्लेषण पर जोर दिया जाता है। समाचार-पत्रों में विचारपरक लेखन के तहत लेख, टिप्पणियों और संपादकीय लेखन में भी विचारों और विश्लेषण पर जोर होता है।

अच्छे लेखन में ध्यान देने योग्य बातें

● छोटे-छोटे वाक्य लिखें। जटिल वाक्य की तुलना में सरल वाक्य की संरचना को वरीयता दें।

आम बोलचाल की भाषा और शब्दों का इस्तेमाल करें। गैर-जरूरी शब्दों के इस्तेमाल से बचें। शब्दों को उनके वास्तविक अर्थ समझकर ही प्रयोग करें।

अच्छा लिखने के लिए अच्छा पढ़ना भी बहुत जरूरी है। जाने-माने लेखकों की रचनाएँ ध्यान से पढ़ें।

लेखन में विविधता लाने के लिए छोटे वाक्यों के साथ-साथ कुछ मध्यम आकार के और कुछ बड़े आकार के वाक्यों का प्रयोग कर सकते हैं। इसके साथ-साथ मुहावरों और लोकोक्तियों के प्रयोग से लेखन में रंग भरने की कोशिश करें।

अपने लिखे को दुबारा जरूर पढ़ें और अशुद्धयों के साथ-साथ गैर-जरूरी चीजों को हटाने में संकोच न करें। लेखन में कसावट बहुत जरूरी है।

लिखते हुए यह ध्यान रखें कि आपका उद्देश्य अपनी भावनाओं, विचारों और तथ्यों को व्यक्त करना है, न कि दूसरे को प्रभावित करना।

एक अच्छे लेखक को पूरी दुनिया से लेकर अपने आस-पास घटने वाली घटनाओं, समाज और पर्यावरण पर गहरी निगाह रखनी चाहिए और उन्हें इस तरह से देखना चाहिए कि वह अपने लेखन के लिए उससे विचारबिंदु निकाल सके। एक अच्छे लेखक में तथ्यों को जुटाने और किसी विषय पर बारीकी से विचार करने का धैर्य होना चाहिए।

पत्रकारीय लेखन क्या है?

अखबार पाठकों को सूचना देने, उन्हें जागरूक और शिक्षित बनाने तथा उनका मनोरंजन करने का दायित्व निभाते हैं। लोकतांत्रिक समाजों में वे एक पहरेदार, शिक्षक और जनमत-निर्माता के तौर पर बहुत महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। अपने पाठकों के लिए वे बाहरी दुनिया में खुलने वाली ऐसी खिड़की हैं, जिनके जरिये असंख्य पाठक हर रोज सुबह देश-दुनिया और अपने पास-पड़ोस की घटनाओं, समस्याओं, मुद्दों तथा विचारों से अवगत होते हैं।

अखबार या अन्य समाचार माध्यमों में काम करने वाले पत्रकार अपने पाठकों, दर्शकों और श्रोताओं तक सूचनाएँ पहुँचाने के लिए लेखन के विभिन्न रूपों का इस्तेमाल करते हैं। इसे ही पत्रकारीय लेखन कहते हैं।

पत्रकार तीन प्रकार के होते हैं-

1. पूर्णकालिक पत्रकार-इस श्रेणी के पत्रकार किसी समाचार संगठन में कमकने वाले नाम बेनोग कर्मबारी होते हैं।

2. अंशकालिक पत्रकार-इस श्रेणी के पत्रकार किसी समाचार संगठन के लिए एक निश्चित मानदेय पर एक निश्चित समयावधि के लिए कार्य करते हैं।

3. फ्रीलांसर पत्रकार-इस श्रेणी के पत्रकारों का संबंध किसी विशेष समाचार-पत्र से नहीं होता, बल्कि वे भुगतान के आधार पर अलग-अलग समाचार-पत्रों के लिए लिखते हैं।

साहित्यिक और पत्रकारीय लेखन में अंतर

1. पत्रकारीय लेखन का संबंध तथा दायरा समसामयिक और वास्तविक घटनाओं, समस्याओं तथा मुद्दों से होता है। यह साहित्यिक और सृजनात्मक लेखन-कविता, कहानी, उपन्यास आदि-इस मायने में अलग है कि इसका रिश्ता तथ्यों से होता है, न कि कल्पना से।

2. पत्रकारीय लेखन साहित्यिक और सृजनात्मक लेखन से इस मायने में भी अलग है कि यह अनिवार्य रूप से तात्कालिकता और अपने पाठकों की रुचियों तथा जरूरतों को ध्यान में रखकर किया जाने वाला लेखन है, जबकि साहित्यिक और सृजनात्मक लेखन में लेखक को काफी छूट होती है।

पत्रकारीय लेखन के स्मरणीय तथ्य

पत्रकारीय लेखन करने वाले विशाल जन-समुदाय के लिए लिखते हैं, जिसमें पाठकों का दायरा और ज्ञान का स्तर विस्तृत होता है। इसके पाठक मजदूर से विद्वान तक होते हैं, अत: उसकी लेखन-शैली और भाषा-

1. सरल, सहज और रोचक होनी चाहिए।

2. अलंकारिक और संस्कृतनिष्ठ होने की बजाय आम बोलचाल वाली होनी चाहिए।

3. शब्द सरल और आसानी से समझ में आने वाले होने चाहिए।

4. वाक्य छोटे और सहज होने चाहिए।

समाचार कैसे लिखा जाता है?

पत्रकारीय लेखन का सबसे जाना-पहचाना रूप समाचार-लेखन है। आमतौर पर समाचार-पत्रों में समाचार पूर्णकालिक और अंशकालिक पत्रकार लिखते हैं, जिन्हें संवाददाता या रिपोर्टर भी कहते हैं।

समाचार-लेखन की विशेष शैली

अखबारों में प्रकाशित अधिकांश समाचार एक खास शैली में लिखे जाते हैं। इन समाचारों में किसी भी घटना, समस्या या विचार के सबसे महत्वपूर्ण तथ्य, सूचना या जानकारी को सबसे पहले पैराग्राफ़ में लिखा जाता है। उसके बाद के पैराग्राफ़ में उससे कम महत्वपूर्ण सूचना या तथ्य की जानकारी दी जाती है। यह प्रक्रिया तब तक जारी रहती है जब तक समाचार खत्म नहीं हो जाता।

उलटा पिरामिड शैली

समाचार-लेखन की एक विशेष शैली है, जिसे उलटा पिरामिड शैली (इन्वर्टेड पिरामिड टी या स्टाइल) के नाम से जाना जाता है। यह समाचार-लेखन की सबसे लोकप्रिय, उपयोगी और बुनियादी शैली है। यह शैली कहानी या कथा-लेखन की शैली के ठीक उलटी है, जिसमें क्लाइमेक्स बिलकुल आखिर में आता है। इसे ‘उलटा पिरामिड शैली’ इसलिए कहा जाता है क्योंकि इसमें सबसे महत्वपूर्ण तथ्य या सूचना यानी ‘क्लाइमेक्स’ पिरामिड के सबसे निचले उलटा पिरामिड में हिस्से में नहीं होती, बल्कि इस शैली में पिरामिड को उलट दिया जाता है।

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हालाँकि इस शैली का प्रयोग 19वीं सदी के मध्य से ही शुरू हो गया था लेकिन इसका विकास अमेरिका में दौरान हुआ। उस समय संवाददाताओं को अपनी खबरें टेलीग्राफ़ संदेशों के ज् यूँ महँगी, अनियमित और दुर्लभ थीं। कई बार तकनीकी कारणों से सेवा ठप्प हो किसी घटना की खबर कहानी की तरह विस्तार से लिखने की बजाय संक्षेप में पिरामिड शैली का विकास हुआ और धीरे-धीरे लेखन और संपादन की सुविधा के की मानक (स्टैंडर्ड) शैली बन गई।

समाचार – लेखन और छह ककार

किसी समाचार को लिखते हुए जिन छह सवालों का जवाब देने की कोशिश की जाती है, वे हैं-

क्या हुआ?

किसके साथ हुआ?

कब हुआ?

कहाँ हुआ?

कैसे हुआ?

क्यों हुआ?

इस क्या, किसके (या कौन), कब, कहाँ, कैसे और क्यों को ही छह ककारों के रूप में जाना जाता है।

समाचार के मुखड़े (इंट्रो) यानी पहले पैराग्राफ़ या शुरुआती दो-तीन पंक्तियों में आमतौर पर तीन या चार ककारों को आधार बनाकर खबर लिखी जाती है। ये चार ककार हैं-क्या, कौन, कब और कहाँ? इसके बाद समाचार की बॉडी में और समापन के पहले बाकी दो ककारों-कैसे ‘ और क्यों-का जवाब दिया जाता है। इस तरह छह ककारों के आधार पर समाचार तैयार होता है। इनमें से पहले चार ककार-क्या, कौन, कब और कहाँ-सूचनात्मक और तथ्यों पर आधारित होते हैं जबकि बाकी दो ककारों-कैसे और क्यों-में विवरणात्मक, व्याख्यात्मक और विश्लेषणात्मक पहलू पर जोर दिया जाता है।

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उदाहरणतया 26 जून, 2015 के ‘हिंदुस्तान’ दैनिक में प्रकाशित समाचार पर ध्यान दीजिए-

23 अगस्त को देश भर के लखों केंद्रों पर नव साक्षरों की परीक्षा होगीजिसमें एक करोड़ से ज्यादा लोगों के बैठने की संभावना है

देश मैं होगी दूनिया की सबसे बड़ी परीक्षा

क्या – दुनिया की सबसे बड़ी परीक्षा

किसकी – नवसाक्षरों की

कब – 23 अगस्त, 2015 को

कहाँ देशभर के लाखों केंद्रों पर

समाचार का इंट्रो-मानव संसाधन विकास मंत्रालय अगले महीने 23 अगस्त, 2014 को दुनिया की सबसे बड़ी परीक्षा कराने जा रहा है। इसमें एक करोड़ से ज्यादा नवसाक्षर परीक्षार्थियों के हिस्सा लेने की संभावना है। परीक्षा देश के 26 राज्यों के 410 जिलों में दो लाख सै ज्यादा केंद्रों पर होगी।

कैसे – मानव संसाधन विकास मंत्रालय, राज्य के शिक्षा विभाग तथा मुक्त बिदूयालयी संस्थान के सहयोग से

क्यों – अधिकाधिक लोगों को साक्षर बनाना

समाचार की बाँडी-साक्षरता अभियान में पढ़ रहे लोग परीक्षा में शामिल होंगे : मंत्रालयसाक्षर भारत अभियानके तहत पढ़ रहे छात्र-छात्राओं के लिए इस परीक्षा का आयोजन कर रहा है। स्कूल जा पाने वाले 16 साल सै लेकर किसी भी आयु तक के वे लोग इसमें भाग लेंगे जो साक्षर भारत अभियानशिक्षा ले रहे हैं। इसे अंजाम देने में मानव संसाधन विकास मंत्रालय के अलावा राज्यों के शिक्षा महकमे, प्रौढ़ शिक्षा विभाग और राष्ट्रीय मुक्त विदूयालयी संस्थान के कार्मिक एवं स्वंयसेवक भी जुटेंगे।

उदूधरपा/स्त्रोत-संवाददाता , हिंदुस्तान, नई दिल्ली।

150 अंकों का प्रश्न-पत्रकरीब 13 भाषाओ में 150 अच्छे का प्रश्न-पत्र होता हे। इसमें लिखने, अक्षर या शब्द पहचानने और गणित के छोटे-छोटे सवाल होते हैं। 60 फीसदी से ज्यादा अंक लाने वालों को ग्रेड, 40 फ्रीसदी रनै ज्यादा अंक लाने वालों को बी ग्रेड दिया जाता है। सी ग्रेड वाले फेल माने जाते हैं, उन्हें दुबारा परीक्षा देनी होती है।

परीक्षार्थियों में होंगी 70 फीसदी महिलाएँ: मत्रालय के अनुसार यह कार्यक्रम उन जिलों में चल रहा है, जहाँ महिलाओँ की साक्षरता दर 50 फीसदी से कम है, इसलिए इसमेंज्यादातर महिलाएं होती हैं। यह कार्यक्रम 2010 से शुरू हुआ था और तब से पाँच करोड़ लोग साक्षर हो चुके हैं।

उपर्युक्त समाचार के पहले पैराग्राफ़ यानी मुखड़े (इंट्रो) में चार ककारों-क्या, कौन, कब और कहाँ-के बाबत जानकारी दी गई है जबकि उसके बाद के तीन पैराग्राफ़ में दो अन्य ककारों-कैसे और क्यों-के माध्यम से परीक्षा के आयोजन के कारणों पर प्रकाश डाला गया है। अधिकांश समाचार इसी शैली में लिखे जाते हैं। लेकिन कभी-कभी अपने महत्व के कारण ‘कैसे” या ‘क्यों’ भी समाचार के मुखड़े में आ सकते हैं। एक और बात याद रखने की है कि समाचार में सूचना के स्रोत यानी जिससे जानकारी मिली है, उसको भी अवश्य उद्धृत करना चाहिए।

समाचार-लेखन के कुछ अन्य उदाहरण

आठ मिनट में आठ कारों की बैटरी चोरी

नई दिल्ली, वरिष्ठ सवाददाता।

लक्ष्मी नगर में चोरों ने सिर्फ़ आठ मिनट में आठ कारों से बैटरियाँ चोरी कर लीं। खास बात यह है कि इन चोरों ने सिर्फ़ मारुति की कारों को ही निशाना बनाया। मंगलवार सुबह चार बजे हुई घटना गली में लगे सीसीटीवी में कैद हुई है। पीड़ित लोगों ने शकरपुर थाने में चोरी का मामला दर्ज कराया है।

इलाके में रहने वाले शैलेंद्र नारंग ने बताया कि चोर उनकी मारुति वैन से बैटरी चोरी कर ले गए। उन्होंने बताया कि उनके मुताबिक उनकी गली से आठ कारों की बैटरिया चोरी की गई। यहाँ रहने वाले राधेश्याम ने बताया कि एक साल के भीतर यह तीसरी घटना है जब उनकी कार से बैटरी निकाल ली गई। लोगों ने बताया कि ये लोग सिर्फ़ मारुति की गाड़ियों को निशाना बनाते हैं। यह पूरी घटना गुरुरामदास नगर में रहने वाले बृजेश कौशिक के घर के बाहर लगे सीसीटीवी में कैद हो गई है।

सीसीटीवी फुटेज देखने पर पता चला कि सुबह चार बजे दो संदिग्ध व्यक्ति सफेद रंग की एक्टिवा से पूरी गली का जायजा लेते हैं और फिर वापस चले जाते हैं। पाँच मिनट बाद वे वापस आते हैं और राजकिशन जैन की गाड़ी को निशाना हैं। सफेद कुर्ता-पाजामा और सफेद जालीदार टोपी पहने तकरीबन 27-28 वर्षीय युवक फुर्ती से कार का बोनट खोल देता है और जेब से औजार निकालकर बैटरी चुरा लेता है। ऐसा करने में उसे करीब एक मिनट का समय लगता है।

गैस सिलेंडर में रिफ़िलिंग से धमाका, छत उड़ी

नोएडा, प्रमुख सवाददाता।

चौड़ा गाँव में बुधवार को छोटे सिलेंडर में गैस रिफ़िलिंग के दौरान आग लग गई। आग तीन बड़े सिलेंडरों में भी जा लगी, जिससे जोरदार धमाका हुआ और दुकान की छत उड़ गई।

इस घटना में कोई हताहत नहीं हुआ है, लेकिन पड़ोस की बिजली की एक दुकान का सारा सामान जल गया है। दुकानदार ने एफ़आईआर दर्ज कराने के साथ ही प्रशासन ने भी रिफ़िलिंग करने वाले के खिलाफ़ रिपोर्ट दर्ज कराई है। सोनू भारद्वाज की गैस रिफ़िलिंग की दुकान में बुधवार सुबह 11 बजे पाँच किलो के सिलेंडर में रिफ़िलिंग के दौरान बर्नर की जाँच करते हुए आग लग गई। सोनू आग लगते ही मौके से भाग गया। देखते-ही-देखते चार सिलेंडरों में धमाके हुए और दुकान की छत उड़ गई। सूचना पर पुलिस और दमकल की गाड़ियाँ मौके पर पहुँचीं। दमकल की चार गाड़ियों ने सोनू की दुकान तथा देवेंद्र की बिजली के सामान की दुकान में लगी आग को बुझाया।

फीचर क्या है?

समकालीन घटना या किसी भी क्षेत्र विशेष की विशिष्ट जानकारी के सचित्र तथा मोहक विवरण को फ़ीचर कहा जाता है। इसमें तथ्यों को मनोरंजक ढंग से प्रस्तुत किया जाता है। इसके संवादों में गहराई होती है। यह सुव्यवस्थित, सृजनात्मक व अद्धि न है जिक उद्देश्य पाठकों को स्चना ने तथा उह शतकने के साथ मुष्यरूप सेउक मोजना करना होता है।

फ़ीचर में विस्तार की अपेक्षा होती है। इसकी अपनी एक अलग शैली होती है। एक विषय पर लिखा गया फ़ीचर प्रस्तुति विविधता के कारण अलग अंदाज प्रस्तुत करता है। इसमें भूत, वर्तमान तथा भविष्य का समावेश हो सकता है। इसमें तथ्य, कथन व कल्पना का उपयोग किया जा सकता है। फ़ीचर में आँकड़े, फोटो, कार्टून, चार्ट, नक्शे आदि का उपयोग उसे रोचक बना देता है।

फीचर व समाचार में अंतर.

1. फ़ीचर में लेखक के पास अपनी राय या दृष्टिकोण और भावनाएँ जाहिर करने का अवसर होता है। जबकि समाचार-लेखन में वस्तुनिष्ठता और तथ्यों की शुद्धता पर जोर दिया जाता है।

2. फ़ीचर-लेखन में उलटा पिरामिड शैली का प्रयोग नहीं होता। इसकी शैली कथात्मक होती है।

3. फ़ीचर-लेखन की भाषा सरल, रूपात्मक व आकर्षक होती है, परंतु समाचार की भाषा में सपाटबयानी होती है।

4. फ़ीचर में शब्दों की अधिकतम सीमा नहीं होती। ये आमतौर पर 200 शब्दों से लेकर 250 शब्दों तक के होते हैं, जबकि समाचारों पर शब्द-सीमा लागू होती है।

5. फ़ीचर का विषय कुछ भी हो सकता है, समाचार का नहीं।

फ़ीचर के प्रकार

फ़ीचर के प्रकार निम्नलिखित हैं

1. समाचार फीचर

2. घटनापरक फीचर

3. व्यक्तिपरक फीचर

4. लोकाभिरुचि फ़ीचर

5. सांस्कृतिक फ़ीचर

6. साहित्यिक प्रफीचर

7. विश्लेषण प्रफीचर

8. विज्ञान फ़ीचर।

फीचर-लेखन संबंधी मुख्य बातें

1. फ़ीचर को सजीव बनाने के लिए उसमें उस विषय से जुड़े लोगों की मौजूदगी जरूरी होती है।

2. फ़ीचर के कथ्य को पात्रों के माध्यम से बताना चाहिए।

3. कहानी को बताने का अंदाज ऐसा हो कि पाठक यह महसूस करें कि वे घटनाओं को खुद देख और सुन रहे हैं।

4. फ़ीचर मनोरंजक व सूचनात्मक होना चाहिए।

5. फ़ीचर शोध रिपोर्ट नहीं है।

6. इसे किसी बैठक या सभा के कार्यवाही विवरण की तरह नहीं लिखा जाना चाहिए।

7. फ़ीचर का कोई-न-कोई उद्देश्य होना चाहिए। उस उद्देश्य के इर्द-गिर्द सभी प्रासंगिक सूचनाएँ तथ्य और विचार गुंथे होने चाहिए।

8. फ़ीचर तथ्यों, सूचनाओं और विचारों पर आधारित कथात्मक विवरण और विश्लेषण होता है।

9. फ़ीचर-लेखन का कोई निश्चित ढाँचा या फ़ॉर्मूला नहीं होता। इसे कहीं से भी अर्थात प्रारंभ, मध्य या अंत से शुरू किया जा सकता है।

10. फ़ीचर का हर पैराग्राफ अपने पहले के पैराग्राफ से सहज तरीके से जुड़ा होना चाहिए तथा उनमें प्रारंभ से अंत तक प्रवाह व गति रहनी चाहिए।

11. पैराग्राफ छोटे होने चाहिए तथा एक पैराग्राफ में एक पहलू पर ही फोकस करना चाहिए।

उदाहरण

वुदहरणस्वरूप कुछ महत्वपूर्ण विषयों पर फीचर दिए जा रहे हैं, इन्हें पढ़कर समझिए।

1. आदत, जो छूटती नहीं ….

बार-बार एक ही शब्द दोहराने की आदत आपको मुश्किल में भी डाल सकती है। खुद पर विश्वास और दृढ़ निश्चय हो तो आप इससे छुटकारा पाने में सफल हो सकते हैं। तकिया कलाम यानी सखुन तकिया। सोते समय सिर को आराम देने के लिए जैसे तकिया का सहारा लिया जाता है, उसी प्रकार अपने कथन या उक्ति को जोर देने के लिए ‘आपकी कृपा …….आपकी कृपा’, ‘यानी कि ………..यानी कि’, ‘है ना ’ है ना’ शब्द विशेष का सहारा लिया जाता है। मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि तकिया कलाम हकलाने या तुतलाने जैसा ही एक रोग है। कुछ लोग निश्चित अवस्था तक सुधर जाते हैं और जो नहीं सुधरते, वे उसके रोगी हो जाते हैं। लंदन के मनोवैज्ञानिक डॉ० बुच मानते हैं कि तकिया कलाम एक प्रकार का इ०सी०ए० है, यानी एक्स्ट्रा केरिक्यूलर एक्शन है। इस इस कुक करता होता हैऔ वाक्टुता बात है तिकया कहामक बेल प्रयोग सायक बाद व बारता करना भी है।

दृढ़ निश्चय से निजात

इस आदत को खुद से दूर करने के लिए आप में दृढ़ निश्चय का भाव होना बेहद जरूरी है। सबसे पहले अपने संवाद को तौलें कि आप कब-कब और किन परिस्थितियों में तकिया कलाम का प्रयोग करते हैं। स्थितियाँ चिहनित कर लेने के बाद आपको तकिया कलाम से बचना है। साथ ही ‘कम बोलो-सार्थक बोली’ के नियम का अनुसरण भी करना होगा। धीरे-धीरे जब आम बोलचाल में आप तकिया कलाम के इस्तेमाल में कोताही बरतेंगे, तो खुद-ब-खुद आपकी आदत बदल जाएगी। लेकिन सकारात्मक परिणामों के लिए आपका दृढ़-निश्चयी होना बेहद जरूरी है। कोशिश करें, यह इतना मुश्किल भी नहीं, जितना आप समझ रहे हैं।

तकिया कलाम के इस्तेमाल से आपको कई बार विपरीत और हास्यास्पद परिस्थितियों का भी सामना करना पड़ सकता है, इसलिए बेहतर होगा कि दूसरों के टोकने या खुद मजाक बनने से पहले आप खुद अपने स्वभाव को बदल लें।

2. बिना प्यास के भी पिएँ पानी

सर्दी के मौसम में वैसे तो सब कुछ हजम हो जाता है, इसलिए जो मर्जी खाएँ। इसके अलावा सर्दी के मौसम में पानी पीना शरीर के लिए बहुत जरूरी होता है। गर्मी के दिनों में तो बार-बार प्यास लगने पर व्यक्ति पर्याप्त मात्रा में पानी पी लेता है, लेकिन सर्दी के मौसम में वह इस चीज को नजरअंदाज कर देता है। ऐसा नहीं होना चाहिए क्योंकि मौसम चाहे सर्दी का हो या फिर गर्मी का, शरीर को पानी की जरूरत होती है। जब तक शरीर को पानी पर्याप्त मात्रा में नहीं मिलेगा, तब तक शरीर का विकास भी सही तरीके से नहीं हो पाएगा।

माना कि सर्दी में प्यास नहीं लगती, लेकिन हमें बिना प्यास के भी पानी पीना चाहिए। पानी पीने से एक तो शरीर की अंदर से सफ़ाई होती रहती है। इसके अलावा पथरी की शिकायत भी अधिक पानी पीने से दूर हो जाती है। पानी पीने से शरीर की पाचन-शक्ति भी सही बनी रहती है तथा पाचन-रसों का स्राव भी जरूरत के अनुसार होता रहता है। बिना पानी के शरीर अंदर से सूखा हो जाता है, जिससे शारीरिक क्रियाओं में व्यवधान उत्पन्न हो जाता है। विज्ञान में पानी को हाइड्रोजन तथा ऑक्सीजन का मिश्रण माना गया है और अॉक्सीजन हमारे जीवन के लिए सबसे जरूरी गैस है। इसी वजह से पानी को भी शरीर के लिए जरूरी माना गया है, चाहे सर्दी हो या फिर गर्मी।

3. अच्छे काम पर बच्चों को करें एप्रिशिएट

हर कोई गलतियों से सबक लेता है। जब गलती ही अच्छे कार्य के लिए प्रेरित करती है तो बच्चों को भी गलती करने पर दुबारा अच्छे कार्य के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए। अच्छा काम करने पर बच्चों को यानी प्रोत्साहित करना जरूरी है, जब हम बच्चों को प्रोत्साहित करेंगे तो वे आगे भी बेहतर करने को उत्सुक होंगे।

लोकनायक जयप्रकाश अस्पताल के चाइल्ड स्पेशलिस्ट डॉ० तनुज के मुताबिक आम तौर पर दो वर्ष के बच्चे का 90 प्रतिशत दिमाग सीखने-समझने के लिए तैयार हो जाता है और पाँच वर्ष तक वह पूर्ण रूप से सीखने, बोलने लायक हो जाता है। यही वह उम्र होती है, जब बच्चा तेजी से सीखता है। ऐसे में माहौल भी इस तरह का हो कि बच्चा अच्छा सीखे। गलती करने पर यदि प्यार से समझाया जाए तो वह उसे समझेगा। उसे गलत करने पर टोकना जरूरी हो जाता है। वरना वह गलती को दोहराता रहेगा। बच्चों को बेहतर करने के लिए प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए।

डॉ० तनुज कहते हैं कि बच्चों को यह नहीं पता होता कि वे जो कर रहे हैं, वह सही है या गलत। उसे बताया जाए कि जो उसने किया है, वह गलत है, क्योंकि जब तक बच्चों को बताया नहीं जाएगा, उन्हें गलती के बारे में पता नहीं चलेगा। यदि एक बार उसकी गलती के विषय में उसे बताते हैं तो वह दुबारा वही गलती नहीं करेगा। बच्चों के साथ हमारा व्यवहार वैसा ही हो, जैसा हम खुद के लिए अपेक्षा करते हैं। बच्चों को प्यार-दुलार की ज्यादा जरूरत होती है।

4. बच्चों में आत्मविश्वास

सफलता के लिए आत्मविश्वास बहुत जरूरी है। आत्मविश्वास से भरपूर बच्चे किसी भी मुश्किल का सामना बड़ी आसानी से कर लेते हैं, लेकिन ज्यादातर बच्चों में आत्मविश्वास की कमी होती है। ऐसे बच्चे अपने कामों के लिए अपने मम्मी-पापा पर ही निर्भर रहते हैं। हर कदम बढ़ाने के लिए उन्हें मम्मी-पापा के सहारे की जरूरत होती है। बड़े होने पर ऐसे बच्चों को बहुत परेशानियों का सामना करना पड़ता है। लेकिन अगर शुरुआत से ही ध्यान दिया जाए तो बच्चों को आत्मविश्वासी बनाया जा सकता है।

छोटे-छोटे फैसले खुद करने दें

आत्मविश्वास कोई ऐसी चीज नहीं है, जिसे किसी परीक्षा में पास करके हासिल कर लिया जाए। आत्मविश्वास खुद फैसले लेने से आता है। अगर हम बच्चों को खुद कोई फैसला लेने ही नहीं देंगे तो उनमें आत्मविश्वास कभी नहीं आ पाएगा। हमें चाहिए कि बच्चों को छोटे-छोटे फैसले खुद लेने दें, लेकिन साथ ही उन पर नजर भी रखें। जहाँ उनसे गलती हो, वहाँ उन्हें सही मार्ग दिखाएँ। ऐसा करने से बच्चों में अपने फैसले खुद लेने की क्षमता तो आएगी ही, साथ ही उनमें आत्मविश्वास भी पैदा होगा।

विकसित करें आत्मविश्वास की भावना

बच्चों का मन बहुत कोमल होता है। अगर शुरुआत से ही उनमें आत्मविश्वास की भावना विकसित की जाए तो वे हर काम को बड़ी आसानी से कर सकते हैं। आत्मविश्वास से भरपूर बच्चों का बौद्धक और शारीरिक विकास भी अच्छा होता है।

दें खुलकर जीने की आजादी

बच्चों को खुलकर जीने दें। जब कोई पूरी स्वतंत्रता और अपनी मर्जी से जीता है और हालातों का सामना करता है तो उसमें आत्मविश्वास खुद-ब-खुद आ जाता है। लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं कि बच्चों को मनमुताबिक कुछ भी करने दें। उनकी हरकतों पर पूरी नजर रखें और गलती करने पर उन्हें गलती का अहसास भी कराएँ।

5. बस्ते का बढ़ता बोझ

आज जिस किसी भी गली, मोहल्ले या चौराहे पर सुबह के समय देखिए, हर जगह छोटे-छोटे बच्चों के कंधों पर भारी बस्ते लदे हुए दिखाई देते हैं। कुछ बच्चों से बड़ा तो उनका बस्ता ही होता है। यह दृश्य देखकर आज की शिक्षा-व्यवस्था की प्रासंगिकता पर प्रश्नचिहन लग जाता है। क्या शिक्षा-नीति के सूत्रधार बच्चों को किताबों के बोझ से लाद देना चाहते हैं।

वस्तुत: इस मामले पर खोजबीन की जाए तो इसके लिए समाज अधिक जिम्मेदार है। सरकारी स्कूलों में छोटी कक्षाओं में बहुत कम पुस्तकें होती हैं, परंतु निजी स्कूलों में बच्चों के सर्वागीण विकास के नाम पर बच्चों व उनके माता-पिता का शोषण किया जाता है। स्कूल गैर-जरूरी विषयों की पुस्तकें भी लगा देते हैं, ताकि वे अभिभावकों को यह बता सकें कि वे बच्चे को हर विषय में पारंगत कर रहे हैं, जिससे भविष्य में वह हर क्षेत्र में कमाल दिखाने में समर्थ होगा।

अभिभावक भी सुपरिणाम की चाह में यह बोझ झेल लेते हैं, परंतु इसके कारण बच्चे का बचपन समाप्त हो जाता है। वह हर समय पुस्तकों के ढेर में दबा रहता है। खेलने का समय उसे नहीं दिया जाता। अधिक बोझ के कारण उसका शारीरिक विकास भी कम होता है। छोटे-छोटे बच्चों के नाजुक कंधों पर लदे भारी-भारी बस्ते उनकी बेबसी को ही प्रकट करते हैं। इस अनचाहे बोझ का वजन विद्यार्थियों पर दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है जो किसी भी दृष्टि से उचित नहीं है।

6. महानगर की ओर पलायन की समस्या

महानगर सपनों की तरह है। मनुष्य को ऐसा लगता है मानो स्वर्ग वहीं है। हर व्यक्ति ऐसे स्वर्ग की ओर खिचा चला आता है। चमक-दमक, आकाश छूती इमारतें, मनोरंजन आदि सब कुछ पा लेने की चाह में गाँव का सुदामा भी लालायित होकर चल पड़ता है, महानगर की ओर। आज महानगरों में भीड़ बढ़ रही है। हर ट्रेन, बस में आप यह देख सकते हैं। गाँव यहाँ तक कि कस्बे का व्यक्ति भी अपनी दरिद्रता समाप्त करने के ख्वाब लिए महानगरों की तरफ चल पड़ता है।

शिक्षा प्राप्त करने के बाद रोजगार के अधिकांश अवसर महानगरों में ही मिलते हैं। इस कारण गाँव व कस्बे से शिक्षित व्यक्ति शहरों की तरफ भाग रहा है। इस भाग-दौड़ में वह अपनों का साथ भी छोड़ने को तैयार हो जाता है। दूसरे, अच्छी चिकित्सा सुविधा, परिवहन के साधन, मनोरंजन के अनेक तरीके, बिजली-पानी की कमी न होना आदि अनेक आकर्षण महानगर की ओर पलायन को बढ़ा रहे हैं, जिससे महानगरों की व्यवस्था चरमराने लगी है।

यहाँ के साधन भी भीड़ के सामने बौने हो जाते हैं। महानगरों का जीवन एक ओर आकर्षित करता है तो दूसरी ओर यह अभिशाप से कम नहीं है। सरकार को चाहिए कि वह कस्बों व गाँवों के विकास पर भी ध्यान दे। इन क्षेत्रों में शिक्षा, स्वास्थ्य, परिवहन, रोजगार आदि की सुविधा होने पर महानगरों की ओर पलायन रुक सकता है।

7. फुटपाथ पर सोते लोग

महानगरों में सुबह सैर पर निकलिए, एक तरफ आप स्वास्थ्य-लाभ करेंगे तो दूसरी तरफ आपको फुटपाथ पर सोते हुए लोग नजर आएँगे। महानगर को विकास का आधार-स्तंभ माना जाता है, लेकिन वहीं पर मानव-मानव के बीच इतना अंतर है। यहाँ पर दो तरह के लोग हैं-एक उच्च वर्ग, जिसके पास उद्योग, सत्ता, धन है, जिससे वह हर सुख भोगता है। उसके पास बड़े-बड़े भवन हैं और यह वर्ग महानगर के जीवन-चक्र पर प्रभावी है।

दूसरा वर्ग वह है जो अमीर बनने की चाह में गाँव छोड़कर आता है तथा यहाँ आकर फुटपाथ पर सोने के लिए मजबूर हो जाता है। इसका कारण उसकी सीमित आर्थिक क्षमता है। महँगाई, गरीबी आदि के कारण इन लोगों को भोजन भी मुश्किल से नसीब होता है। घर इनके लिए एक सपना होता है। इस सपने को पूरा करने के चक्कर में यह वर्ग अकसर छला जाता है। सरकारी नीतियाँ भी इस विषमता के लिए दोषी हैं।

सरकार की तमाम योजनाएँ भ्रष्टाचार के मुँह में चली जाती हैं और गरीब सुविधाओं की बाट जोहता रहता है। वह गरीबी में पैदा होता है, गरीबी में पलता-बढ़ता है और गरीबी में ही मर जाता है। वह जीते-जी रूखी-सूखी खाकर पेट की आग जैसे-तैसे बुझा लेता है और फटे-पुराने कपड़ों से तन ढँक लेता है, पर उसके सिर पर छत नसीब नहीं हो पाती और वह फुटपाथ, पार्क या अन्य खुली जगहों पर सोने को विवश रहता है।

8. ‘आतंकवाद की समस्या’ या ‘आतंकवाद का धिनौना चेहरा’

सुबह अखबार खोलिए-कश्मीर में चार मरे, मुंबई में बम फटा-दो मरे, ट्रेन में विस्फोट। इन खबरों से भारत का आदमी सुबह-सुबह साक्षात्कार करता है। उसे लगता है कि देश में कहीं शांति नहीं है। न चाहते हुए भी वह आतंक के फ़ोबिया से ग्रस्त हो जाता है। आतंकवाद एक विश्वव्यापी समस्या बन गया है। यह क्रूरतापूर्ण नरसंहार का एक रूप है। आतंकवाद मुख्यत: 20वीं सदी की देन है तथा इसके उदय के अनेक कारण हैं।

कहीं यह एक वर्ग द्वारा दूसरे वर्ग के शोषण का परिणाम है तो कहीं यह विदेशी राष्ट्रों की करतूत है। कुछ विकसित देश धर्म के नाम पर अविकसित देशों में लड़ाई करवाते हैं। आतंकवाद की जड़ में अशिक्षा, बेरोजगारी, पिछड़ापन है। सरकार का ध्यान ऐसे क्षेत्रों की तरफ तभी जाता है, जब वहाँ हिंसक घटनाएँ शुरू हो जाती हैं। देश के कुछ राजनीतिक दल भी अपनी सत्ता बनाए रखने के लिए आतंक के नाम पर दंगे करवाते रहते हैं। इस समस्या को सामूहिक प्रयासों से ही समाप्त किया जा सकता है।

आतंकवादी भय का माहौल पैदा करके अपने उद्देश्यों में सफल होते हैं। जनता को चाहिए कि वह ऐसे तत्वों का डटकर मुकाबला करे। आतंक से जुड़े व्यक्तियों के खिलाफ़ सख्त कानूनी कार्रवाई करनी चाहिए। सरकार को भी आतंक-प्रभावित क्षेत्रों में विकास-योजनाएँ शुरू करनी चाहिए ताकि इन क्षेत्रों के युवक गरीबी के कारण गलत हाथों का खिलौना न बनें।

9. चुनावी वायदे

“अगर हम जीते तो बेरोजगारी भत्ता दो हजार रुपये होगा।”

“किसानों को बिजली मुफ़्त, पानी मुफ़्त।”

“बूढ़ों की पेंशन डबल।”

जब भी चुनाव आते हैं तो ऐसे नारों से दीवारें रैंग दी जाती हैं। अखबार हो, टी०वी० हो, रेडियो हो या अन्य कोई साधन, हर जगह मतदाताओं को अपनी तरफ खींचने के लिए चुनावी वायदे किए जाते हैं। भारत एक लोकतांत्रिक देश है। यहाँ हर पाँच वर्ष बाद चुनाव होते हैं तथा सरकार चुनने का कार्य संपन्न किया जाता है। चुनावी बिगुल बजते ही हर राजनीतिक दल अपनी नीतियों की घोषणा करता है। वह जनता को अनेक लोकलुभावने नारे देता है।

जगह-जगह रैलियाँ की जाती हैं। भाड़े की भीड़ से जनता को दिखाया जाता है कि उनके साथ जनसमर्थन बहुत ज्यादा है। उन्हें अपने-अपने क्षेत्र की समस्याओं का पता होता है। चुनाव-प्रचार के दौरान वे इन्हीं समस्याओं को मुद्दा बनाते हैं तथा सत्ता में आने के बाद इन्हें सुलझाने का वायदा करते हैं। चुनाव होने के बाद नेताओं को न जनता की याद आती है और न ही अपने वायदे की। फिर वे अपने कल्याण में जुट जाते हैं।

वस्तुत: चुनावी वायदे कागज के फूलों के समान हैं जो कभी खुशबू नहीं देते। ये केवल चुनाव जीतने के लिए किए जाते हैं। इनका वास्तविकता से कोई संबंध नहीं होता। अत: जनता को नेताओं के वायदों पर यकीन नहीं करना चाहिए और विवेक तथा देशहित के मद्देनजर अपने मत का प्रयोग करना चाहिए।

10. वैलेंटाइन डे : शहरी युवाओं का त्योहार

फरवरी माह की शुरुआत में ही मीडिया एक नए त्योहार को मनाने की तैयारी शुरू कर देता है। कंपनियाँ अपने उत्पादों में इस त्योहार के नाम पर छूट देनी शुरू कर देती हैं। यह सब प्रेम के नाम पर होता है। जी हाँ, यह त्योहार है-वैलेंटाइन डे। यह 14 फरवरी को मनाया जाता है। वैसे तो भारत में अनेक त्योहार मनाए जाते हैं; जैसे-होली, दीवाली, दशहरा, वैशाखी आदि।

इन सबके पीछे पौराणिक, धार्मिक व आर्थिक आधार होते हैं, परंतु वैलेंटाइन डे पूर्णत: विदेशी है। इसका भारतीय मिट्टी से कोई लेना-देना नहीं है। मीडिया के प्रचार-प्रसार से यह कभी नहीं सोचना चाहिए कि यह भारत के गाँव-गाँव में मनाया जाने वाला त्योहार है। वस्तुत: यह शहरी त्योहार है। यहाँ के युवा इस दिन अपने प्यार का इजहार करते हैं। इस दिन युवा लड़के-लड़कियाँ अपने दोस्तों तथा प्रेमियों को कुछ-न-कुछ उपहार देकर अपने प्रेम का इजहार करते हैं। इस दिन के लिए बाजारों में तरह-तरह के उपहार व ग्रीटिंग कार्डस की भरमार देखी जा सकती है।

कुछ लोग इसे ‘फ्रेंडशिप डे’ भी कहते हैं। इस दिन युवा अपने मन की इच्छाएँ व्यक्त करने के लिए आतुर होता है। वैसे इस दिन अनेक आपराधिक घटनाएँ भी घटती हैं। अपने प्रेमी से उचित जवाब न मिलने पर तेजाब डालने या आत्महत्या करने जैसी खबरें अकसर सुनाई देती हैं। वैसे समाज में उन्हीं त्योहारों को मनाना चाहिए जो देश की मिट्टी तथा संस्कृति से जुड़े हों।

11. जंक फूड की समस्या

भोजन का स्वाद और स्वास्थ्य से सीधा संबंध है। स्वादिष्ट भोजन देखते ही हमारी लार टपकने लगती है और हम अपने आपको रोक नहीं पाते। कई बार तो हम बिना भूख के भी खाने के लिए उतावले ही बैठते हैं। ऐसी स्थिति आने पर यह समझना चाहिए कि हम जाने-अनजाने व्यसन या भोजन के लालच का शिकार हो रहे हैं। आज इस उपभोक्तावादी युग में चारों ओर वातावरण ऐसा बना दिया गया है कि हम ललचाए बिना रह ही नहीं सकते। दुकानों पर टैंगे स्वादिष्ट चटपटे और कुरकुरे व्यंजन तथा खाद्य वस्तुएँ देखकर हमारे मुँह में पानी आना स्वाभाविक ही है।

हमारी भूख-प्यास को बढ़ाने में अभिनेत्रियों का योगदान भी कम नहीं है, जब वे यह कहती हुई ‘टेढ़ा है पर मेरा है’-कुरकुरे हमारी ओर बढ़ाती प्रतीत होती हैं; इसके अलावा सेवन अप, लिम्का, कोकाकोला आदि विज्ञापन हमें घर के भोजन से दूर करके अपनी ओर आकर्षित करते हैं; पिज्जा, बर्गर, नूडल, चाउमीन आदि के विज्ञापन हमारी भूख बढ़ा देते हैं तो हम उन्हें खरीदने के लिए बाध्य हो जाते हैं। अब तो विज्ञापन में बच्चे भी कहते दिखते हैं-‘खाने से डरता है क्या?”

यह सुनकर जंक फूड के प्रति हमारी झिझक दूर होती है और हम उनके नफ़े-नुकसान पर विचार किए बिना उनको अपने नाश्ते और भोजन के अलावा समय-असमय खाना शुरू कर देते हैं। जंक फूड के प्रति बच्चों और युवाओं की दीवानगी देखने लायक होती है। आप कहीं भी चले जाइए, चप्पे-चप्पे पर बर्गर, हॉट डॉग, सैंडविच, पैटीज, नूडल्स, कोल्ड ड्रिक, समोसे, चाउमीन, ढोकले आदि मिल जाएँगे।

इनमें छिपी उच्च कैलोरी की मात्रा बच्चों में मोटापा और आलस्य बढ़ाते हैं। डॉक्टर इन्हें स्वास्थ्य के लिए विष बताते हैं। योगगुरु रामदेव जैसे लोग इनका विरोध करते हैं, पर लोगों की समझ में यह बात आए तब न। मोटापा, मधुमेह, रक्तचाप हृदयाघात जैसी बीमारियों से यदि बचना है तो जंक फूड से तौबा करना ही पड़ेगा।

12. घरों में बढ़ती चोरी, हत्या आदि की घटनाओं पर फीचर

निरंतर बढ़ती जनसंख्या ने अनेक समस्याओं को जन्म दिया है। इनमें से एक है-समाज में अवांछित घटनाओं में वृद्ध। खाली-ठाली बैठे लोग अपनी जरूरतें पूरी करने के लिए अनैतिक कार्यों में संलिप्त हो जाते हैं। इसी का परिणाम है-गाँव, शहर और महानगरों में चोरी, हत्या की घटनाओं में अप्रत्याशित वृद्ध।

महानगरों में ये घटनाएँ होनी आम बात हो गई हैं। शहरों में लोगों का एकल परिवार और वृद्धावस्था में अपनों से अलग रहने को विवश वृद्ध दंपति प्राय: इन घटनाओं का शिकार बनते रहते हैं। शहरों की बढ़ती जनसंख्या के कारण कानून-व्यवस्था उतनी चुस्त-दुरुस्त नहीं रह पाती, जितनी होनी चाहिए। इसका अनुचित फ़ायदा चोर-उचक्के, डकैत आदि उठाते हैं और चोरी-डकैती की घटनाओं को अंजाम देते हैं। इन घटनाओं का विरोध करने वालों को ये मार-पीटकर घायल कर देते हैं और हत्या तक कर देते हैं। इनके शिकार शहर के बड़े-बड़े व्यापारी और धनाढ्य लोग बनते हैं।

उनके बच्चों का अपहरण करके फिरौती राशि की माँग करना तथा उसकी पूर्ति न होने पर हत्या कर देना आम बात है। यद्यपि यहाँ पुलिस की तैनाती गाँवों की अपेक्षा अधिक होती है, पर पुलिस की निष्क्रियता देखकर लगता है कि अपराधियों और पुलिस में कोई साठ-गाँठ हो क्योंकि डकैत और हत्यारे अपना काम करके आसानी से चले जाते हैं। यद्यपि कुछ घटनाओं में पुलिस सफलता प्राप्त करती है, पर उनका प्रतिशत ‘न’ के बराबर है। इसके लिए सख्त कानून बनाकर उन्हें दृढ़ इच्छा शक्ति के साथ लागू करवाकर पूरी निष्ठा और ईमानदारी से पालन करवाया जाना चाहिए।

अन्य हल प्रश्न

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1: पत्रकारिता के विभिन्न पहलू कौन-कौन-से हैं?

उत्तर – पत्रकारिता के विभिन्न पहलू हैं-

1. समाचारों का संकलन,

2. उनका संपादन कर छपने योग्य बनाना,

3. उन्हें पत्र-पत्रिकाओं में छापकर पाठकों तक पहुँचाना आदि।

प्रश्न 2: पत्रकार किसे कहते हैं?

उत्तर – समाचार-पत्रों, पत्र-पत्रिकाओं में छपने के लिए लिखित रूप में सामग्री देने, सूचनाएँ और समाचार एकत्र करने वाले व्यक्ति को पत्रकार कहते हैं।

प्रश्न 3: संवाददाता के प्रमुख कार्यों का उल्लेख कीजिए।

उत्तर – संवाददाता का प्रमुख कार्य विभिन्न स्थानों से खबरें लाना है।

प्रश्न 4: संपादक के कार्य लिखिए।

उत्तर – संपादक संवाददाताओं तथा रिपोर्टरों से प्राप्त समाचार-सामग्री की अशुद्धयाँ दूर करते हैं तथा उसे त्रुटिहीन बनाकर प्रस्तुति के योग्य बनाते हैं। वे रिपोर्ट की महत्वपूर्ण बातों को पहले तथा कम महत्व की बातों को अंत में छापते हैं तथा समाचार-पत्र की नीति, आचार-संहिता और जन-कल्याण का विशेष ध्यान रखते हैं।

प्रश्न 5: किन गुणों के होने से कोई घटना समाचार बन जाती है?

उत्तर – नवीनता, लोगों की रुचि, प्रभाविकता, निकटता आदि तत्वों के होने से घटना समाचार बन जाती है।

प्रश्न 6: पत्रकारिता किस सिदधांत पर कार्य करती है?

उत्तर – पत्रकारिता मनुष्य की सहज जिज्ञासा शांत करने के सिद्धांत पर कार्य करती है।

प्रश्न 7: पत्रकारिता के प्रमुख प्रकार कौन-से हैं?

उत्तर – पत्रकारिता के कई प्रमुख प्रकार हैं। उनमें से खोजपरक पत्रकारिता, वॉचडॉग पत्रकारिता और एडवोकेसी पत्रकारिता प्रमुख हैं।

प्रश्न 8: समाचार किसे कहते हैं?

उत्तर – समाचार किसी भी ऐसी घटना, विचार या समस्या की रिपोर्ट होता है, जिसमें अधिक-से-अधिक लोगों की रुचि हो और जिसका अधिकाधिक लोगों पर प्रभाव पड़ रहा हो।

प्रश्न 9: संपादन का अर्थ बताइए।

उत्तर – संपादन का अर्थ है-किसी सामग्री से उसकी भाषा-शैली, व्याकरण, वर्तनी एवं तथ्यात्मक अशुद्धयों को दूर करते हुए पठनीय बनाना।

प्रश्न 10: पत्रकारिता की साख बनाए रखने के लिए कौन-कौन-से सिदभांत अपनाए जाते हैं?

उत्तर – पत्रकारिता की साख बनाए रखने के लिए निम्नलिखित सिद्धांत अपनाए जाते हैं

1. तथ्यों की शुद्धता,

2. वस्तु परखता,

3. निष्पक्षता,

4. संतुलन, और

5. स्रोत।

प्रश्न 11: किन्हीं दो राष्ट्रीय समाचार-पत्रों के नाम लिखिए।

उत्तर –

1. नवभारत टाइम्स (हिंदी)

2. हिंदुस्तान (हिंदी)

प्रश्न 12: समाचार-पत्र संपूर्ण कब बनता है?

उत्तर – जब समाचार-पत्र में समाचारों के अलावा विचार, संपादकीय, टिप्पणी, फोटो और कार्टून होते हैं तब समाचार-पत्र पूर्ण बनता है।

प्रश्न 13: खोजपरक पत्रकारिता किसे कहते हैं?

उत्तर – सार्वजानिक महत्व के भ्रष्टाचार और अनियमितता को लोगों के सामने लाने के लिए खोजपरक पत्रकारिता की मदद ली जाती है। इसके अंतर्गत छिपाई गई सूचनाओं की गहराई से जाँच की जाती है। इसके प्रमाण एकत्र करके इसे प्रकाशित भी किया जाता है।

प्रश्न 14: वॉचडॉग पत्रकारिता क्या है?

उत्तर – जो पत्रकारिता सरकार के कामकाज पर निगाह रखती है और कोई गड़बड़ी होते ही उसका परदाफ़ाश करती है, उसे वॉचडॉग पत्रकारिता कहते हैं।

प्रश्न 15: एडवोकेसी पत्रकारिता किसे कहते हैं?

उत्तर – जो पत्रकारिता किसी विचारधारा या विशेष उद्देश्य या मुद्दे को उठाकर उसके पक्ष में जनमत बनाने के लिए लगातार और जोर-शोर से अभियान चलाती है, उसे एडवोकेसी पत्रकारिता कहते हैं।

प्रश्न 16: वैकल्पिक पत्रकारिता किसे कहते हैं?

उत्तर – जो मीडिया स्थापित व्यवस्था के विकल्प को सामने लाने और उसके अनुकूल सोच को अभिव्यक्त करते हैं, उसे वैकल्पिक पत्रकारिता कहते हैं।

प्रश्न 17: पेज थ्री पत्रकारिता क्या है?

उत्तर – पेज श्री पत्रकारिता का आशय उस पत्रकारिता से है, जिसमें फ़ैशन, अमीरों की बड़ी-बड़ी पार्टियों, महफ़िलों तथा लोकप्रिय लोगों के निजी जीवन के बारे में बताया जाता है। ऐसे समाचार सामान्यत: समाचार-पत्र के पृष्ठ तीन पर प्रकाशित होते हैं।

प्रश्न 18: पत्रकारीय लेखन किसे कहते हैं?

उत्तर – पत्रकार अखबार या अन्य समाचार माध्यमों के लिए लेखन के विभिन्न रूपों का इस्तेमाल करते हैं, इसे पत्रकारीय लेखन कहते हैं।

प्रश्न 19: स्वतंत्र या फ्री-लांसर पत्रकार किसे कहा जाता है?

उत्तर – फ्री-लांसर पत्रकार को स्वतंत्र पत्रकार भी कहा जाता है। ये किसी विशेष समाचार-पत्र से संबद्ध नहीं होते। ये किसी भी समाचार-पत्र के लिए लेखन करके पारिश्रमिक प्राप्त करते हैं।

प्रश्न 20: पत्रकारीय लेखन संबंधी भाषा की विशेषताएँ लिखिए।

उत्तर – पत्रकारीय भाषा सीधी, सरल, साफ़-सुथरी परंतु प्रभावपूर्ण होनी चाहिए। वाक्य छोटे, सरल और सहज होने चाहिए। भाषा में कठिन और दुरूह शब्दावली से बचना चाहिए, ताकि भाषा बोझिल न हो।

प्रश्न 21: समाचार-लेखन की कितनी शैलियाँ होती हैं?

उत्तर – समाचार-लेखन की दो प्रमुख शैलियाँ होती हैं-

1. सीधा पिरामिड शैली,

2. उलटा पिरामिड शैली।

प्रश्न 22: सीधा पिरामिड शैली की विशेषताएँ बताइए।

उत्तर – सीधा पिरामिड शैली में सबसे महत्वपूर्ण समाचार (घटना, समस्या, विचार के सबसे महत्वपूर्ण अंश) को पहले पैराग्राफ में लिखा जाता है। इसके बाद कम महत्वपूर्ण समाचार की जानकारी दी जाती है।

प्रश्न 23: उलटा पिरामिड शैली (इंवटेंड पिरामिड शैली) से आप क्या समझते हैं?

उत्तर – यह समाचार-लेखन की सबसे लोकप्रिय, उपयोगी और बुनियादी शैली है। यह कहानी या कथा लेखन शैली की ठीक उलटी होती है। इसमें आधार ऊपर और शीर्ष नीचे होता है। इसमें शुरू में समापन, मध्य में बॉडी और अंत में मुखड़ा होता है।

प्रश्न 24: समाचार-लेखन के छह ककारों के नाम लिखिए।

उत्तर – क्या, कौन, कहाँ, कब, क्यों और कैसे-ये समाचार-लेखन के छह ककार हैं।

प्रश्न 25: समाचार-लेखन में छह ककारों का महत्व क्या है?

उत्तर – किसी समाचार को लिखते समय मुख्यत: छह सवालों के जवाब देने की कोशिश की जाती है। समाचार लिखते समय क्या हुआ, किसके साथ हुआ, कहाँ हुआ, कब हुआ, कैसे और क्यों हुआ का उत्तर दिया जाता है।

प्रश्न 26: समाचारों के मुखड़े (इंट्रो) में किन ककारों का प्रयोग किया जाता है?

उत्तर – समाचारों के मुखड़े (इंट्रो) में तीन या चार ककारों-क्या, कौन, कब और कहाँ-का प्रयोग किया जाता है, क्योंकि ये सूचनात्मक और तथ्यों पर आधारित होते हैं।

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