Class 11th & 12th 5. विशेष लेखन-स्वरूप और प्रकार

Class 11th & 12th 5. विशेष लेखन-स्वरूप और प्रकार
Class 11th & 12th 5. विशेष लेखन-स्वरूप और प्रकार

पाठ्यपुस्तक आधारित प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1: विज्ञान के क्षेत्र में काम कर रही भारत की पाँच संस्थाओं के नाम लिखें।

उत्तर – विज्ञान के क्षेत्र में काम कर रही भारत की पाँच संस्थाएँ हैं-

1. साहा नाभिकीय भौतिक संस्थान, कोलकाता।

2. भौतिक अनुसंधानशाला, अहमदाबाद।

3. गणित एवं विज्ञान संस्थान, चेन्नई।

4. अंतरिक्ष भौतिकी प्रयोगशाला, तिरुवनंतपुरम।

5. मेहता अनुसंधान संस्थान, इलाहाबाद।

प्रश्न 2: पर्यावरण पर छपने वाली किन्हीं तीन पत्रिकाओं के नाम लिखें।

उत्तर – पर्यावरण पर छपने वाली तीन पत्रिकाएँ हैं-

1. हमारा पर्यावरण।

2. हमारा जीवन।

3. पर्यावरण बचाओ।

प्रश्न 3: व्यावसायिक शिक्षा के दस विभिन्न पाठ्यक्रमों के नाम लिखें और उनका ब्योरा एकत्र करें।

उत्तर – व्यावसायिक शिक्षा के दस पाठ्यक्रमों के नाम हैं-

1. जीवन बीमा संबंधी पाठ्यक्रम

2. शिक्षण प्रशिक्षण पाठ्यक्रम

3. बैंकिंग पाठ्यक्रम

4. टंकण एवं आशुलिपि पाठ्यक्रम

5. होटल मैनेजमेंट पाठ्यक्रम

6. फूड टेक्नॉलोजी पाठ्यक्रम

7. पुस्तक छपाई पाठ्यक्रम

8. बुक बाइंडिग पाठ्यक्रम

9. टूरिज्म प्रबंधन पाठ्यक्रम

10. मोटर मेकैनिक पाठ्यक्रम

प्रश्न 4: निम्न में से किसी एक विषय पर अपने शब्दों में आलेख लिखें-

(क) सानिया मिर्जा के खेल के तकनीकी पहलू

(ख) शिक्षा की मौलिक अधिकार बनाए जाने के परिणाम

(ग) सर्राफ में आई तेजी

(घ) फिल्मों में हिसा

(ड) पल्स पोलियो अभियान-सफलता या असफलता

(च) पटते जगाल

(छ) ग्रहों पर जीवन की खोज

उत्तर – फिल्मों में कई तरह की हिंसा दिखाने का प्रचलन काफी समय से रहा है फिल्मों में दिखाई गई हिंसा का प्रभाव नौजवानों, बच्चों सभी पर होता है दरअसल फिल्म दिखने कि वजह से कई जगह ऐसा भी देखने को मिलता है कई लोगों पर फिल्मी स्टाइल में हिंसा की जाती हैं यह सही नहीं है हम जो फिल्मों में देखते हैं वह वास्तव में हकीकत नहीं होता वो केवल एक ऐक्टिंग होती है।

उससे जीवन में इस तरह की बातें सीखना और अपने जीवन में अपनाना बिल्कुल भी सही नहीं है। नौजवानों में एक्शन का एक जुनून होता है जब वह फिल्में देखते हैं तो यह जुनून उन पर और भी ज्यादा सवार हो जाता है कई बार वह अपनी जवानी के दिनों में ऐसे कार्य कर बैठते हैं जिनका उन्हें जीवन भर पछतावा होता है। नौजवान जो हर वक्त कुछ नया करना चाहता है। वह फिल्मी दुनिया के इस आधुनिक जमाने में फिल्मों में देखकर हिंसा करने में भी नहीं चूकता कई नौजवानों में ऐसा देखा जाता है।

हम सभी को इस बारे में सोचने की जरूरत है और इस हिंसा को दूर करने की जरूरत है फिल्मों में अक्सर हम देखते हैं कि एक विलन को मारता है पर इस तरह के सीनों का गलत प्रभाव पड़ता है और वो अपने जीवन में भी ऐसा अपनाने के बारे में सोचते हैं यह सही नहीं है ऐसे दृश्य दिखाए जाते हैं जिनसे लोगों को हिंसा करने के नए-नए तरीके मिलते हैं इसके अलावा हमारे भारत देश के बच्चों पर भी फिल्मो में दिखाए जा रहे हिंसात्मक सीनों का प्रभाव काफी देखने को मिलता है।

फिल्मों में कई बार ऐसे उत्तेजित करने वाले सीन दिखाए जाते हैं जिससे बच्चों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है और बच्चों की सोच बदलती हुई दिखती हैं कभी कभी वह ऐसे कदम भी उठा लेते हैं जिनसे उनकी जिंदगी तक बर्बाद हो जाती है इस तरह के अश्लील दृश्य बच्चों की सोच मानसिक स्थिति पर बहुत ज्यादा बुरा प्रभाव डालते हैं हम सभी को इस ओर ध्यान देने की जरूरत हैं।

हमें चाहिए कि हम फिल्मों में दिखाए जाने वाले इस तरह के हिंसा के सीन बच्चों के सामने बिल्कुल भी न देखें इससे बहुत ही ज्यादा बुरा प्रभाव होता है और जो बच्चे देश का भविष्य होते हैं जिन पर देश का भविष्य निर्धारित होता है इस तरह की हिंसात्मक फिल्मों की वजह से उनकी जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव होता है। दरअसल यह सब होता इसलिए है कि आजकल के नौजवान फिल्मों के सुपरस्टार को इतना महत्व देते हैं कि वह समझते हैं कि इनका जीवन असलियत में ही ऐसा है और कई बार वह अपने सुपरस्टार की तरह बिहेवियर करना चाहते हैं और कई बार वह ऐसा करते भी हैं जिससे वह अपनी असलियत की दुनिया को भूल कर ऐसी रीयल लाइफ की तरह अपने जीवन को बदलते हैं यह बिल्कुल भी सही नहीं है।

बच्चों में तो सही और गलत करने की सोच भी नहीं होती है वह तो नादान होते हैं यदि हम इसी तरह से हिंसात्मक स्कूल में बच्चों को दिखाते हैं तो उन पर बहुत ज्यादा बुरा असर भी हो सकता है हमें इन चीजों से बचने की जरूरत है और अपने देश के लिए देश के भविष्य के लिए बच्चों के बारे में बहुत ज्यादा सोचने की जरूरत है।

हमें चाहिए कि हम बच्चों के सामने सिर्फ ऐसी फिल्में देखें जो उनके सामने देखी जाने वाली हो। कई सारी फिल्मों में फिल्म शुरू होने से पहले ही बता दिया जाता है कि यह फिल्म बच्चों को देखने के लिए नहीं है लेकिन हम यदि इस तरह की नासमझी करते हैं और बच्चों के सामने हिंसा से भरी हुई फिल्में देखते हैं तो हम अपने परिवार का अपने देश का बहुत बड़ा नुकसान करते हैं।

अन्य हल प्रश्न

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1: समाचार-पत्र-पत्रिकाओं में विशेष लेखन किन विषयों पर किया जाता है?

उत्तर – समाचार-पत्र-पत्रिकाओं में विशेष लेखन खेल, अर्थ-व्यापार, सिनेमा या मनोरंजन आदि विषयों पर किया जाता है।

प्रश्न 2: विशेष लेखन क्यों किया जाता है?

उत्तर – विशेष लेखन इसलिए किया जाता है, क्योंकि

1. इससे समाचार-पत्रों में विविधता आती है और उनका कलेवर बढ़ता है।

2. पाठकों की व्यापक रुचियों को ध्यान में रखते हुए उनकी जिज्ञासा शांत करते हुए मनोरंजन करने के लिए विशेष लेखन किया जाता है।

प्रश्न 3: विशेष संवाददाता किन्हें कहते हैं?

उत्तर – जिन रिपोर्टरों द्वारा विशेषीकृत रिपोर्टिग की जाती है, उन्हें विशेष संवाददाता कहते हैं।

प्रश्न 4: फ्री-लांस पत्रकार किन्हें कहते हैं?

उत्तर – एक निश्चित भुगतान लेकर अलग-अलग समाचार-पत्र-पत्रिकाओं के लिए समाचार-लेखन करने वाले पत्रकारों को फ्री-लांस पत्रकार कहते हैं।

प्रश्न 5: क्रिकेट की कमेंट्री करने वाले दो प्रसिदध व्यक्तियों के नाम लिखिए।

उत्तर –

1. नरोत्तम पुरी

2. जसदेव सिंह

3. हर्ष भोगले

प्रश्न 6: कारोबार एवं व्यापार क्षेत्र से जुड़ी पाँच शब्दावली लिखिए।

उत्तर –

1. मुद्रा-स्फीति

2. तेजड़िए

3. बिकवाली

4. निवेशक

5. व्यापार घाटा

प्रश्न 7: विशेष लेखन के किन्हीं पाँच क्षेत्रों का उल्लेख कीजिए।

उत्तर –

1. खेल

2. अर्थ-व्यापार

3. विज्ञान प्रौद्योगिकी

4. कृषि

5. पर्यावरण

प्रश्न 8: कारोबार और अर्थजगत से जुड़ी रोजमर्रा की खबरें किस शैली में लिखी जाती हैं?

उत्तर – कारोबार और अर्थजगत से जुड़ी रोजमर्रा की खबरें उलटा पिरामिड शैली में लिखी जाती हैं।

प्रश्न 9: विशेषीकृत पत्रकारिता से आप क्या समझते हैं?

उत्तर – वह पत्रकारिता, जो किसी घटना की तह में जाकर उसका अर्थ स्पष्ट करे और पाठकों को उसका महत्त्व बताए, विशेषीकृत पत्रकारिता कहलाती है।

प्रश्न 10: डेस्क से आप क्या समझते हैं? अथवा डेस्क किसे कहते हैं?

उत्तर – समाचार-पत्रों, टीवी, रेडियो चैनलों में विशेष लेखन के लिए अलग डेस्क होता है, जिन पर समाचारों का संपादन करके छपने योग्य बनाया जाता है।

प्रश्न 11: पत्रकारिता में ‘बीट’ शब्द का क्या अर्थ है?

Ø  मीडिया की भाषा में ‘बीट’ किसे कहते हैं?

उत्तर – समाचार कई प्रकार के होते हैं; जैसे-राजनीति, अपराध, खेल, आर्थिक, फ़िल्म तथा कृषि संबंधी समाचार आदि। संवाददाताओं के बीच काम का बँटवारा उनके ज्ञान एवं रुचि के आधार पर किया जाता है। मीडिया की भाषा में इसे ही बीट कहते हैं।

प्रश्न 12: बीट रिपोर्टर की रिपोर्ट कब विश्वसनीय मानी जाती है?

उत्तर – बीट रिपोर्टर को अपने बीट (क्षेत्र) की प्रत्येक छोटी-बड़ी जानकारी एकत्र करके कई स्रोतों द्वारा उसकी पुष्टि करके विशेषज्ञता हासिल करना चाहिए। तब उसकी खबर विश्वसनीय मानी जाती है।

प्रश्न 13: विशेष लेखन क्या है?

उत्तर – अखबारों के लिए समाचारों के अलावा खेल, अर्थ-व्यापार, सिनेमा या मनोरंजन आदि विभिन्न क्षेत्रों और विषयों संबंधित घटनाएँ, समस्याएँ आदि से संबंधित लेखन विशेष लेखन कहलाता है। इस प्रकार के लेखन की भाषा और शैली समाचारों की भाषा-शैली से अलग होती है।

प्रश्न 14: विशेष लेखन की भाषा-शैली संबंधी विशेषता का वर्णन कीजिए।

उत्तर – विशेष लेखन किसी विशेष विषय पर या जटिल एवं तकनीकी क्षेत्र से जुड़े विषयों पर किया जाता है, जिसकी अपनी विशेष शब्दावली होती है। इस शब्दावली से संवाददाता को अवश्य परिचित होना चाहिए। उसे इस तरह लेखन करना चाहिए कि रिपोर्ट को समझने में परेशानी न हो।

प्रश्न 15: आज विशेष लेखन के कौन-कौन से क्षेत्र महत्वपूर्ण हैं?

उत्तर – आज खेल, कारोबार, सिनेमा, मनोरंजन, फैशन, स्वास्थ्य विज्ञान, पर्यावरण, शिक्षा, जीवनशैली, रहन-सहन जैसे क्षेत्र विशेष लेखन हेतु महत्वपूर्ण हैं।

इस पाठ में हम पढ़ेंगे और जानेंगे

• क्या है विशेष लेखन?

• विशेष लेखन की भाषा और शैली

• विशेष लेखन के क्षेत्र

• कैसे हासिल करें विशेषज्ञता

अधिकतर अखबारों में खेल, अर्थ-व्यापार, सिनेमा या मनोरंजन के अलग-अलग पृष्ठ होते हैं। इनमें छपने वाली खबरें, फ़ीचर या आलेख कुछ अलग तरह से लिखे जाते हैं। इनकी भाषा और शैली दोनों ही अलग होती हैं। किसी समाचार-पत्र या पत्रिका को संपूर्ण बनाने के लिए उसमें विभिन्न विषयों और क्षेत्रों के बारे में घटने वाली घटनाओं, समस्याओं और मुद्दों की जानकारी नियमित रूप से दी जानी चाहिए।

विशेष लेखन से एक ओर समाचार-पत्र में विविधता आती है तो दूसरी ओर उनका कलेवर व्यापक होता है। वास्तव में पाठक अपनी व्यापक रुचियों के कारण साहित्य, विज्ञान, खेल, सिनेमा आदि विविध क्षेत्रों से जुड़ी खबरें पढ़ना चाहता है, इसलिए समाचार-पत्रों में विशेष लेखन के माध्यम से निरंतर और विशेष जानकारी देना आवश्यक हो जाता है।

क्या है विशेष लेखन?

विशेष लेखन का अर्थ है-किसी खास विषय पर सामान्य लेखन से हटकर किया गया लेखन। अधिकांश समाचार-पत्रों और पत्रिकाओं के अलावा टी०वी० और रेडियो चैनलों में विशेष लेखन के लिए अलग डेस्क होता है और उस विशेष डेस्क पर काम करने वाले पत्रकारों का समूह भी अलग होता है। जैसे समाचार-पत्रों और अन्य माध्यमों में बिजनेस यानी कारोबार और व्यापार का अलग डेस्क होता है, इसी तरह खेल की खबरों और फ़ीचर के लिए खेल डेस्क अलग होता है। इन डेस्कों पर काम करने वाले उपसंपादकों और संवाददाताओं से अपेक्षा की जाती है कि संबंधित विषय या क्षेत्र में उनकी विशेषज्ञता होगी।

खबरें भी कई तरह की होती हैं-राजनीतिक, आर्थिक, अपराध, खेल, फ़िल्म, कृषि, कानून, विज्ञान या किसी भी और विषय से जुड़ी हुई। संवाददाताओं के बीच काम का विभाजन आमतौर पर उनकी दिलचस्पी और ज्ञान को ध्यान में रखते हुए किया जाता है। मीडिया की भाषा में इसे बीट कहते हैं। एक संवाददाता की बीट अगर अपराध है तो इसका अर्थ यह है कि उसका कार्यक्षेत्र अपने शहर या क्षेत्र में घटने वाली आपराधिक घटनाओं की रिपोर्टिग करना है। अखबार की ओर से वह इनकी रिपोर्टिग के लिए जिम्मेदार और जवाबदेह भी होता है।

विशेष लेखन के लिए किसी व्यक्ति (संवाददाता) को उसी क्षेत्र-विशेष से संबंधित लेखन-कार्य सौंपा जाता है, जिसमें उसकी रुचि होती है। इसके अलावा उसे विषय-संबंधी गहरी जानकारी होती है। जैसे-खेल जगत की जानकारी एवं रुचि रखने वाले को खेल बीट मिल जाती है। विशेष लेखन केवल बीट रिपोर्टिग न होकर उससे भी आगे एक तरह की विशेषीकृत रिपोर्टिग है, जिसमें न सिर्फ़ उस विषय की गहरी जानकारी होनी चाहिए बल्कि उसकी रिपोर्टिग से संबंधित भाषा-शैली पर भी पूर्ण अधिकार होना चाहिए।

बीट रिपोर्टिग के लिए तैयारी

सामान्य बीट रिपोर्टिग के लिए भी एक पत्रकार को काफ़ी तैयारी करनी पड़ती है। उदाहरण के तौर पर जो पत्रकार राजनीति में दिलचस्पी रखते हैं या किसी खास राजनीतिक पार्टी को कवर करते हैं, उन्हें पता होना चाहिए कि उस पार्टी का इतिहास क्या है, उसमें समय-समय पर क्या हुआ है, आज क्या चल रहा है, पार्टी के सिद्धांत या नीतियाँ क्या हैं, उसके पदाधिकारी कौन-कौन हैं और उनकी पृष्ठभूमि क्या है, बाकी पार्टियों से उस पार्टी के रिश्ते कैसे हैं और उनमें आपस में क्या फ़र्क है, उसके अधिवेशनों में क्या-क्या होता रहा है, उस पार्टी की कमियाँ और खूबियाँ क्या हैं, आदि-आदि।

पत्रकार को उस पार्टी के भीतर गहराई तक अपने संपर्क बनाने चाहिए और खबर हासिल करने के नए-नए स्रोत विकसित करने चाहिए। किसी भी स्रोत या सूत्र पर आँख मूँदकर भरोसा नहीं करना चाहिए और जानकारी की पुष्टि कई अन्य स्रोतों के जरिये भी करनी चाहिए। तभी वह उस बारे में विशेषज्ञता हासिल कर सकता है और उसकी रिपोर्ट या खबर विश्वसनीय मानी जा सकती है।

बीट रिपोर्टिग और विशेषीकृत रिपोर्टिग में अंतर

बीट रिपोर्टिग और विशेषीकृत रिपोर्टिग के बीच सबसे महत्वपूर्ण अंतर यह है कि अपनी बीट की रिपोर्टिग के लिए संवाददाता में उस क्षेत्र के बारे में जानकारी और दिलचस्पी का होना पर्याप्त है। इसके अलावा एक बीट रिपोर्टर को आमतौर पर अपनी बीट से जुड़ी सामान्य खबरें ही लिखनी होती हैं। लेकिन विशेषीकृत रिपोर्टिग का तात्पर्य यह है कि आप सामान्य खबरों से आगे बढ़कर उस विशेष क्षेत्र या विषय से जुड़ी घटनाओं, मुद्दों और समस्याओं का बारीकी से विश्लेषण करें और पाठकों के लिए उसका अर्थ स्पष्ट करने की कोशिश करें।

विशेष लेखन के अंतर्गत रिपोर्टिग के अलावा उस विषय या क्षेत्र विशेष पर फीचर, टिप्पणी, साक्षात्कार, लेख, समीक्षा और स्तंभ-लेखन भी आता है। इस तरह का विशेष लेखन समाचार-पत्र या पत्रिका में काम करने वाले पत्रकार से लेकर फ्री-लांस (स्वतंत्र) पत्रकार या लेखक तक सभी कर सकते हैं। शर्त यह है कि विशेष लेखन के इच्छुक पत्रकार या स्वतंत्र लेखक को उस विषय में निपुण होना चाहिए।

मतलब यह कि किसी भी क्षेत्र पर विशेष लेखन करने के लिए जरूरी है कि उस क्षेत्र के बारे में आपको ज्यादा-से-ज्यादा पता हो, उसकी ताजी-से-ताजी सूचना आपके पास हो, आप उसके बारे में लगातार पढ़ते हों, जानकारियाँ और तथ्य इकट्ठे करते हों और उस क्षेत्र से जुड़े लोगों से लगातार मिलते रहते हों।

इस तरह अखबारों और पत्र-पत्रिकाओं में किसी खास विषय पर लेख या स्तंभ लिखने वाले कई बार पेशेवर पत्रकार न होकर उस विषय के जानकार या विशेषज्ञ होते हैं। जैसे रक्षा, विज्ञान, विदेश-नीति, कृषि या ऐसे ही किसी क्षेत्र में कई वर्षों से काम कर रहा कोई प्रोफ़ेशनल इसके बारे में बेहतर तरीके से लिख सकता है क्योंकि उसके पास इस क्षेत्र का वर्षों का अनुभव होता है, वह इसकी बारीकियाँ समझता है और उसके पास विश्लेषण करने की क्षमता होती है।

हो सकता है उसके लिखने की शैली सामान्य पत्रकारों की तरह न हो लेकिन जानकारी और अंतर्दूष्टि के मामले में उसका लेखन पाठकों के लिए लाभदायक होता है। उदाहरण के तौर पर हम खेलों में हर्ष भोगले, जसदेव सिंह या नरोत्तम पुरी का नाम ले सकते हैं। वे पिछले चालीस सालों से हॉकी से लेकर क्रिकेट तक और ओलंपिक से लेकर एशियाई खेलों तक की कमेंट्री करते रहे हैं।

विशेष लेखन की भाषा और शैली

विशेष लेखन का संबंध जिन विषयों और क्षेत्रों से है, उनमें से अधिकांश क्षेत्र तकनीकी रूप से जटिल हैं और उनसे जुड़ी घटनाओं तथा मुद्दों को समझना आम पाठकों के लिए कठिन होता है। इसलिए इन क्षेत्रों में विशेष लेखन की जरूरत पड़ती है, जिससे पाठकों को समझने में मुश्किल न हो। विशेष लेखन की भाषा और शैली कई मामलों में सामान्य लेखन से अलग होती है। उनके बीच सबसे बुनियादी फ़र्क यह होता है कि हर क्षेत्र-विशेष की अपनी विशेष तकनीकी शब्दावली होती है जो उस विषय पर लिखते हुए आपके लेखन में आती है।

जैसे कारोबार पर विशेष लेखन करते हुए आपको उसमें इस्तेमाल होने वाली शब्दावली से परिचित होना चाहिए। दूसरे, अगर आप उस शब्दावली से परिचित हैं तो आपके सामने चुनौती यह होती है कि आप अपने पाठक को भी उस शब्दावली से इस तरह परिचित कराना चाहिए ताकि उसे आपकी रिपोर्ट को समझने में कोई दिक्कत न हो।

उदाहरणार्थ-‘सोने में भारी उछाल’, ‘चाँदी लुढ़की’ या ‘आवक बढ़ने से लाल मिर्च की कड़वाहट घटी’ या ‘शेयर बाजार ने पिछले सारे रिकॉर्ड तोड़े, सेंसेक्स आसमान पर’ आदि के अलावा खेलों में भी ‘भारत ने पाकिस्तान को चार विकेट से पीटा’, ‘चैंपियंस कप में मलेशिया ने जर्मनी के आगे घुटने टेके’ आदि शीर्षक सहज ही ध्यान खींचते हैं।

विशेष लेखन की कोई निश्चित शैली नहीं होती। लेकिन अगर हम अपने बीट से जुड़ा कोई समाचार लिख रहे हैं तो उसकी शैली उलटा पिरामिड शैली ही होगी। लेकिन अगर आप समाचार फीचर लिख रहे हैं तो उसकी शैली कथात्मक हो सकती है। इसी तरह अगर आप लेख या टिप्पणी लिख रहे हों तो इसकी शुरुआत भी फ़ीचर की तरह हो सकती है। जैसे हम किसी केस स्टडी से उसकी शुरुआत कर सकते हैं, उसे किसी खबर से जोड़कर यानी न्यूजपेग के जरिये भी शुरू किया जा सकता है। इसमें पुराने संदभों को आज के संदर्भ से जोड़कर पेश करने की भी संभावना होती है।

विशेष लेखन के क्षेत्र

विशेष लेखन के अनेक क्षेत्र हैं, जैसे

• कारोबार और व्यापार

• खेल

• विज्ञान-प्रौद्योगिकी

• कृषि

• विदेश

• रक्षा

• पर्यावरण

• शिक्षा

• स्वास्थ्य

• फ़िल्म-मनोरंजन

• अपराध

• सामाजिक मुद्दे

• कानून, आदि।

समाचार-पत्रों और दूसरे माध्यमों में खेल, कारोबार, सिनेमा, मनोरंजन, फ़ैशन, स्वास्थ्य, विज्ञान, पर्यावरण, शिक्षा, जीवन-शैली और रहन-सहन जैसे विषयों को आजकल विशेष लेखन के लिहाज से ज्यादा महत्व मिल रहा है। इसके अलावा रक्षा, विदेश-नीति, राष्ट्रीय सुरक्षा और विधि जैसे क्षेत्रों में विशेषीकृत रिपोर्टिंग को प्राथमिकता दी जा रही है।

कैसे हासिल करें विशेषज्ञता

विशेष लेखन के किसी भी विषय में विशेषज्ञता हासिल करने के लिए

1. जिस भी विषय में विशेषज्ञता हासिल करना चाहते हैं, उसमें आपकी वास्तविक रुचि होनी चाहिए।

2. उच्चतर माध्यमिक (+2) और स्नातक स्तर पर उसी या उससे जुड़े विषय में पढ़ाई करें।

3. अपनी रुचि के विषय में पत्रकारीय विशेषज्ञता हासिल करने के लिए उन विषयों से संबंधित पुस्तकें खूब पढ़नी चाहिए।

4. विशेष लेखन के क्षेत्र में सक्रिय लोगों के लिए खुद को अपडेट रखना बेहद जरूरी होता है। इसके लिए उस विषय से जुड़ी खबरों और रिपोटीं की कटिंग करके फ़ाइल बनानी चाहिए।

5. उस विषय के प्रोफेशनल विशेषज्ञों के लेख और विश्लेषणों की कटिंग भी सहेजकर रखनी चाहिए।

6. एक तरह से उस विषय में जितनी संभव हो, संदर्भ सामग्री जुटाकर रखनी चाहिए।

7. उस विषय का शब्दकोश और इनसाइक्लोपीडिया भी आपके पास होनी चाहिए।

8. विषय विशेष से जुड़े सरकारी और गैरसरकारी संगठनों और संस्थाओं की सूची, उनकी वेबसाइट का पता, टेलीफ़ोन नंबर और उसमें काम करने वाले विशेषज्ञों के नाम और फ़ोन नंबर अपनी डायरी में रखना चाहिए।

विशेष लेखन के कुछ चुने हुए क्षेत्र

कारोबार और व्यापार

समाचार-पत्रों में कारोबार और व्यापार (अर्थ-जगत) से जुड़ी खबरों के लिए अलग से एक पृष्ठ होता है। अखबारों में आर्थिक खबरों के दो पृष्ठ प्रकाशित होते हैं। यह कहा जाए तो गलत नहीं होगा कि समाचार-पत्र में आर्थिक और खेल का पृष्ठ न हो तो वह संपूर्ण समाचार-पत्र नहीं माना जाएगा।

इसका कारण यह है कि अर्थ यानी धन हर आदमी के जीवन का मूल आधार है। हमारे रोजमर्रा के जीवन में खास महत्व है। हम बाजार से कुछ खरीदते हैं, बैंक में पैसे जमा करते हैं, बचत करते हैं, किसी कारोबार के बारे में बनाते हैं या कुछ भी ऐसा सोचते या करते हैं, जिसमें आर्थिक फ़ायदे, नफ़ा-नुकसान आदि की बात होती है तो इन कारोबार और अर्थ-जगत से संबंध जुड़ता है। यही कारण है कि कारोबार, व्यापार और अर्थ-जगत से जुड़ी खबरों में काफ़ी पाठकों की रुचि होती है।

पिछले कुछ वर्षों में आर्थिक पत्रकारिता का महत्व काफ़ी बढ़ा है। ऐसा इसलिए, क्योंकि देश की राजनीति और अर्थव्यवस्था के बीच रिश्ता गहरा हुआ है। खासकर आर्थिक उदारीकरण और देश में खुली अर्थव्यवस्था लागू होने के बाद से अर्थव्यवस्था में व्यापक बदलाव आया है। राजनीति भी इससे अछूती नहीं है। वैसे भी अर्थनीति और राजनीति के बीच गहरा रिश्ता होता है। इसलिए एक आर्थिक पत्रकार को देश की राजनीति और उसमें हो रहे बदलाव की भी जानकारी होनी चाहिए।

आर्थिक मामलों की पत्रकारिता सामान्य पत्रकारिता की तुलना में काफ़ी जटिल होती है। ऐसा इसलिए क्योंकि आम लोगों को इसकी शब्दावलियों के बारे में या उनके मतलब के बारे में ठीक से पता नहीं होता। उसे आम लोगों की समझ में आने लायक कैसे बनाया जाए, यह आर्थिक मामलों के पत्रकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती होती है। लेकिन इसके साथ ही आर्थिक खबरों का एक ऐसा पाठकवर्ग भी है जो उस क्षेत्र से जुड़ा होने के कारण उसके बारे में काफ़ी जानता है। एक आर्थिक पत्रकार को इन दोनों तरह के पाठकों की जरूरत को पूरा करना पड़ता है। इसलिए आर्थिक मामलों पर विशेष लेखन करते हुए इस बात का हमेशा ध्यान रखा जाना चाहिए कि वह किस वर्ग के पाठक के लिए लिखा जा रहा है?

कारोबार एवं व्यापार से जुड़ी खबर के उदाहरण

महँगाई सातवें माह शून्य से नीचे

नई दिल्ली, एजेंसियाँ।

पेट्रोल, डीजल समेत ईधन एवं ऊर्जा वर्ग के उत्पादों की कीमतों में भारी गिरावट के कारण मई में थोक मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रा-स्फीति की दर शून्य से 2.36 प्रतिशत कम रही। पिछले साल नवंबर से यह लगातार सातवाँ महीना है जब थोक महँगाई ऋणात्मक स्तर पर रही है। पिछले साल मई में यह दर 6.18 प्रतिशत तथा इस साल अप्रैल में शून्य से 2.65 प्रतिशत नीचे रही थी। चालू वित्त वर्ष के पहले दो महीने के लिए समेकित थोक महँगाई दर 0.91 फ़ीसदी रही है जबकि 2014-15 के पहले दो महीने में यह 0.94 फ़ीसदी रही।

खाद्य पदार्थों की कीमत में साल-दर-साल आधार पर 3.8 फ़ीसदी की बढ़ोतरी के बावजूद खनिजों के दाम में 28.41 प्रतिशत की गिरावट के कारण प्राथमिक वस्तुओं की कीमतें 0.77 प्रतिशत नीचे आई, जबकि विनिर्मित वस्तुओं की कीमत में 0.64 प्रतिशत की गिरावट से इनकी माँग में कमजोरी बने रहने के संकेत मिल रहे हैं। वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय द्वारा सोमवार को जारी आँकड़ों के अनुसार, पिछले साल मई की तुलना में इस साल मई में ईंधन एवं ऊर्जा समूह की वस्तुओं के दाम 10.51 प्रतिशत गिर गए। पेट्रोल में यह गिरावट 11.29 फ़ीसदी तथा डीजल में 11.62 फ़ीसदी रही, जबकि एलपीजी के दाम 5.18 प्रतिशत कम रहे।

हालाँकि, खाद्य पदार्थों के दाम में 3.80 फ़ीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई, जिसमें दाल के दाम सबसे ज्यादा 22.84 प्रतिशत तथा प्याज के 20.41 प्रतिशत बढ़े। फल 8.65 प्रतिशत तथा दूध 6.85 प्रतिशत महँगे हो गए। गेहूँ के दाम 2.79 प्रतिशत बढ़ गए। वहीं आलू के दाम 51.95 फ़ीसदी, सब्जियों के 5.54 फ़ीसदी तथा चावल के 1.77 फ़ीसदी गिर गए। सूचकांक में सबसे ज्यादा 64.97 प्रतिशत का भारांश रखने वाले विनिर्मित पदाथों के दाम में 0.64 प्रतिशत की गिरावट देखी गई। चीनी 9.06 प्रतिशत तथा इस्पात 7.66 प्रतिशत सस्ते हो गए। सूती कपड़ों की कीमतों में 628 प्रतिशत की कमी आई। विनिर्मित वस्तुओं में पिछले साल मई की तुलना में ७ जिनके दाम बढ़े हैं उनमें सीमेंट तथा चूना पत्थर 5.49 प्रतिशत और अधातु खनिज पदार्थ 5.36 प्रतिशत शामिल है।

सोने-चाँदी की कीमतों में आया उछाल

विदेशों में कमजोर रुख के बावजूद आभूषण-निर्माताओं की खरीददारी के चलते दिल्ली सर्राफ़ा बाजार में सोमवार को सोने के भाव 105 रुपये की तेजी के साथ 27,180 रुपये प्रति 10 ग्राम हो गए।

वहीं औद्योगिक इकाइयों और सिक्का निर्माताओं द्वारा उठाव बढ़ाने से चाँदी के भाव 140 रुपये की तेजी के साथ 37050 रुपये प्रति किलो हो गए। बाजार सूत्रों के अनुसार आभूषण-निर्माताओं की खरीददारी के चलते बहुमूल्य धातुओं की कीमतों में तेजी आई। उन्होंने बताया कि विदेशी बाजारों में डॉलर की मजबूती के कारण सोने की कीमतों में गिरावट आई, जिससे स्थानीय बाजार में तेजी सीमित रही। दिल्ली में सोना 99.9 और 99.5 शुद्धता के भाव 105 रुपये की तेजी के साथ क्रमश: 27,180 रुपये और 27030 रुपये प्रति 10 ग्राम पर बंद हुए। गिन्नी के भाव पूर्वस्तर 23,300 रुपये प्रति आठ ग्राम पर स्थिर बने रहे।

चाँदी तैयार के भाव 140 रुपये की तेजी के साथ 37,050 रुपये और चाँदी साप्ताहिक डिलीवरी के भाव 75 रुपये सुधरकर 36,670 रुपये प्रति किलो बंद हुए। सीमित कारोबार के दौरान चाँदी सिक्का के भाव पूर्वस्तर 54,000 : 55,000 ७ रुपये प्रति सैकड़ा अपरिवर्तित पर बंद हुए।

खेल

खेल का क्षेत्र ऐसा है, जिसमें अधिकांश लोगों की रुचि होती है। खेल हर आदमी के जीवन में नई ऊर्जा का संचार करता है। बचपन से ही हमारी विभिन्न खेलों में रुचि होती है और हममें से अधिकांश के भीतर एक खिलाड़ी जरूर होता है। जीवन की भाग-दौड़ और दूसरी जिम्मेदारियों की वजह से यह खिलाड़ी बेशक कहीं दब जाता हो, लेकिन खेलों में दिलचस्पी बनी रहती है। इसलिए हम देखते हैं कि क्रिकेट हो या हॉकी, टेनिस हो या फुटबॉल, ओलंपिक हो या एशियाई खेल-ये सब एक उत्सव बन जाते हैं। कई खेल तो देश की संस्कृति में रच-बस जाते हैं और इसलिए उन खेलों के बारे में पढ़ने वालों और उसे देखने वालों की संख्या काफ़ी ज्यादा होती है।

अखबारों और दूसरे माध्यमों में खेलों को बहुत अधिक महत्व मिलता है। सभी समाचार-पत्रों में खेल के एक या दो पृष्ठ होते हैं और कोई भी टी०वी० तथा रेडियो बुलेटिन खेलों की खबर के बिना पूरा नहीं होता। यही नहीं, समाचार माध्यमों में खेलों का महत्व लगातार बढ़ता जा रहा है। समाचार-पत्र और पत्रिकाओं में खेलों पर विशेष लेखन, खेल विशेषांक और खेल परिशिष्ट प्रकाशित हो रहे हैं। इसी तरह टी०वी० और रेडियो पर खेलों के विशेष कार्यक्रम प्रसारित किए जा रहे हैं।

पत्र-पत्रिकाओं में खेल-संबंधी लेखन के लिए आवश्यक बातें

खेल-संबंधी लेखन करने के लिए आवश्यक है कि-

1. लिखने वाला उस खेल-विशेष की तकनीक, उसके नियमों, उसकी बारीकियों और उससे जुड़ी अन्य बातों से परिचित होना चाहिए क्योंकि क्रिकेट का विशेषज्ञ, फुटबॉल का भी विशेषज्ञ हो, यह आवश्यक नहीं।

2. उस खेल-विशेष के बारे में हमारी जानकारी और समझदारी का स्तर ऊँचा होना चाहिए।

3. उस खेल में बनने वाले रिकॉर्डस या कीर्तिमानों के बारे में पता होना चाहिए। तथ्यों और पुराने रिकॉर्डस को तो अब इंटरनेट पर भी ढूँढा जा सकता है, लेकिन खेल के नियम या उसकी बारीकियाँ या किसी खिलाड़ी की तकनीक के बारे में जानने-समझने वाले ही इस बारे में अच्छा लिख या बोल सकते हैं।

4. एक खेल पत्रकार को अपनी इन जानकारियों को दिलचस्प तरीके से पेश करना चाहिए।

5. किसी मैच का, किसी खिलाडी-विशेष के प्रदर्शन का, खेल की तकनीक का विश्लेषण खेल की तरह ही रोमांचक होना चाहिए।

6. खेलों की रिपोर्टिग और विशेष लेखन की भाषा और शैली में एक ऊर्जा, जोश, रोमांच और उत्साह दिखना चाहिए।

7. खेल की खबर या रिपोर्ट उलटा पिरामिड-शैली में शुरू होती है लेकिन दूसरे पैराग्राफ़ से वह कथात्मक यानी घटनानुक्रम शैली में चली जाती है।

खेल-संबंधी लेखन के कुछ उदाहरण

डीआरएस को ‘टेस्ट’ करना चाहते हैं। कोहली

फातुल्लाह,एजेंसियाँ

भारतीय टेस्ट टीम के कप्तान विराट कोहली ने कहा है कि वे टीम के खिलाड़ियों के साथ डिसीजन रिव्यू सिस्टम (डीआरएस) के उपयोग को लेकर चर्चा करने के लिए तैयार हैं। भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) शुरू से ही इसे लागू करने का विरोध करता रहा है। वेबसाइट क्रिकइंफो के अनुसार कोहली ने कहा, “इसके लिए आपको बैठकर इस विषय पर विचार करना होगा। साथ ही गेंदबाजों और बल्लेबाजों से पूछने की जरूरत है कि वे इस बारे में क्या सोचते हैं।”.

गौरतलब है कि नए टेस्ट कप्तान विराट के नेतृत्व में अच्छे प्रदर्शन के बावजूद बांग्लादेश के खिलाफ़ वर्षा-प्रभावित एकमात्र टेस्ट ड्रॉ रहा। तब विराट ने डीआरएस को लेकर कहा, “आपको बैठकर इस प्रणाली की समीक्षा करनी होगी। भारत ही एकमात्र ऐसी टीम है जो लगातार डीआरएस का मजबूती से विरोध करती रही है।” चर्चा का समय है हमारे पास : कोहली ने बांग्लादेश के साथ खत्म हुए टेस्ट मैच का जिक्र करते हुए कहा, “हमें इस मैच के लिए आने से पूर्व बहुत कम समय मिला। अब हमारे पास समय है और मुझे विश्वास है कि इस विषय पर चर्चा होगी।”

धोनी का हमेशा यह मानना रहा है कि डीआरएस फुलपूफ नहीं है और इसमें काफी सुधार की जरूरत है। वहीं कोहली का मानना है कि इस विवादित व्यवस्था पर बात की जा सकती है। कोहली ने कहा, “आपको गेंदबाजों से पूछना होगा कि वे इसके बारे में क्या सोचते हैं। बल्लेबाजों से पूछना होगा कि वे क्या सोचते हैं। पिछले साल भारतीय टेस्ट टीम के तात्कालिक कप्तान महेंद्र सिंह धोनी ने भी डीआरएस पर भारत की सोच में बदलाव के संकेत दिए थे। धोनी ने तब कहा था कि फ़ील्ड अंपायर द्वारा पहल किए जाने के मुकाबले स्वतंत्र तरीके से अंपायर के फैसले को डीआरएस तकनीक द्वारा आँका जाना चाहिए।”

सहवाग को छोड़ना होगा दिल्ली का साथ!

नई दिल्ली, एजेंसियाँ

विस्फोटक बल्लेबाज विरेंदर सहवाग दिल्ली टीम का साथ छोड़ने पर गंभीरता से विचार कर रहे हैं। हालाँकि अभी घरेलू रणजी सत्र शुरू होने में कुछ महीने बाकी हैं लेकिन खिलाड़ियों के ट्रांसफ़र की चर्चा जोरों पर है। सहवाग को कुछ अन्य राज्य संघों से खेलने का प्रस्ताव मिला है और उनके हिमाचल प्रदेश की टीम के साथ जुड़ने की संभावना है। वहीं, मुंबई के दिग्गज ओपनर वसीम जाफ़र ने भी विदर्भ के साथ जुड़ने का फैसला किया है।

युवाओं को देना चाहते हैं मौका : सूत्रों के मुताबिक, सहवाग का मानना है कि दिल्ली की बल्लेबाजी लाइनअप में उनके, गौतम गंभीर, मिथुन मन्हास और रजत भाटिया जैसे अनुभवी खिलाड़ियों के रहते युवाओं के लिए मौके सीमित हैं। ऐसे में यह बेहतर होगा कि वे खुद अपने कैरियर के इस पड़ाव पर युवा खिलाड़ियों को मौका दें। डीडीसीए के साथ संबंध अच्छे नहीं : इस धुरंधर बल्लेबाज के दिल्ली एवं जिला क्रिकेट संघ (डीडीसीए) के साथ बहुत अच्छे संबंध नहीं रहे हैं। उन्होंने 2009 में डीडीसीए में भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए दिल्ली से हटाने की धमकी भी दी थी।

डीडीसीए में पिछले कुछ समय से कुछ भी अच्छा नहीं चल रहा है। ऐसे में सहवाग के जाने से स्थिति और ज्यादा खराब हो सकती है। अभी संन्यास का इरादा नहीं : सहवाग फिलहाल इन बातों से खुद को दूर रखते हुए घरेलू सत्र पर ध्यान लगा रहे हैं ताकि उनका कैरियर लंबा खिच सके। हाल ही में सहवाग ने कहा था कि वे अभी संन्यास नहीं लेना चाहते, उनका इरादा अभी दो-तीन साल और खेलने का है।

जाफर जाएँगे विदर्भ : दिग्गज ओपनर वसीम जाफ़र ने लगातार हो रही अनदेखी के कारण मुंबई से नाता तोड़ा है। हालाँकि मुंबई टीम के कोच प्रवीण आमरे ने उनकी प्रशंसा करते हुए कहा कि टीम को जाफ़र की कमी काफी खलेगी। वहीं, विदर्भ के कप्तान सुब्रहमण्यम बद्रीनाथ ने कहा, “कोई भी टीम वसीम जाफ़र जैसे खिलाड़ी को अपने साथ जोड़ना चाहेगी।”

शुरुआत में भाग्य का काफी साथ मिला : गावस्कर

मुंबई, एजेंसियाँ

महानतम भारतीय बल्लेबाजों में शुमार सुनील गावस्कर ने अपने बेहद सफल कैरियर से जुड़ी कुछ अनछुई बातें साझा कीं। उन्होंने कहा कि कैरियर के शुरुआत में उन्हें भाग्य का काफी साथ मिला। गावस्कर ने मार्च, 1971 से नवंबर, 1987 के बीच 16 साल तक भारत के लिए शानदार क्रिकेट खेला। भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व सलामी बल्लेबाज माधव आप्टे की आत्मकथा ‘ऐज लक वुड हैव इट’ के अनावरण के अवसर पर गावस्कर ने अपने पदार्पण टेस्ट सिरीज से जुड़ी कई रोचक बातें साझा कीं।

गावस्कर ने 1971 में वेस्ट इंडीज़ दौरे पर अपने टेस्ट कैरियर की शुरुआत की थी। गावस्कर ने कहा, “मैं आज यहाँ सिर्फ़ अपने भाग्य के कारण हूँ। 1971 में वेस्ट इंडीज दौरे पर मेरे साथ कुछ-एक घटनाएँ ऐसी हुई जो इसे साबित करती हैं।” गावस्कर ने कहा, “एक मैच में मैं छह रन के निजी योग पर बल्लेबाजी कर रहा था, तभी मैंने स्क्वॉयर कट मारा और गेंद काफी ऊपर चली गई। लेकिन क्षेत्ररक्षण कर रहे गैरी सोबर्स के सीने पर वह गेंद लगी और मैं बच गया। उसके बाद मैंने अर्धशतकीय पारी खेली। उन्होंने इसी तरह के एक और वाकिये का जिक्र करते हुए कहा, “यह घटना मेरे पहले टेस्ट शतक से जुड़ी है।

मैं 94 रन बनाकर खेल रहा था और ऑफ़ स्पिन गेंदबाज पर मैंने फ़ॉरवर्ड की ओर शॉट खेला, गैरी सोबर्स मुझसे ठीक पीछे सटकर खड़े थे। लेकिन मैंने चूँकि फ़ॉरवर्ड की ओर शॉट खेला, वे बायीं ओर फ़ॉरवर्ड शॉर्ट लेग की ओर चले गए। गेंद मेरे ग्लव्स से टकाराई और पीछे की ओर उछल गई। गैरी अगर अपनी पहले वाली जगह ही खड़े रहते तो यह एक साधरण कैच होता।”

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