
झारखण्ड
में खनिज संसाधन
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खनिज संसाधन में झारखण्ड भारत का सबसे सम्पन्न राज्य है। यहाँ विविध प्रकार के खनिज
पाए जाते हैं, इसलिए इसको रत्नगर्भा भी कहा गया है। राज्य की दामोदर घाटी को स्टोर
हाउस ऑफ मिनरल्स कहा जाता है। अपनी खनिज सम्पन्नता के कारण इस राज्य को भारत का रूर
प्रदेश भी कहा जाता है।
खनिज संसाधन
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झारखण्ड विश्व के सबसे समृद्ध खनिज क्षेत्रों में से एक है। यहाँ भारत के खनिज और कोयला
भण्डार का क्रमशः 40% और 29% उपस्थित है। राज्य की सर्वाधिक आय का स्रोत खनन व वन से
प्राप्त होता
है
।
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झारखण्ड अभ्रक, पायराइट, ताँबा, कोयला, ग्रेफाइट, बॉक्साइट, यूरेनियम, कायनाइट, फायरक्ले,
चीनी मिट्टी उत्पादन के क्षेत्र में प्रथम स्थान पर आता है।
खनिज के प्रकार
राज्य
में खनिज को दो वर्गों में विभाजित किया गया है
(i)
धात्विक खनिज
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धात्विक खनिज के अन्तर्गत लोहा, टंगस्टन, ताँबा, सीसा, जस्ता इत्यादि आते हैं।
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यह धारवाड़ क्रम की चट्टानों से प्राप्त होती हैं। धात्विक खनिजों का संक्षिप्त विवरण
निम्न प्रकार है
लौह-अयस्क
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झारखण्ड के लौह-अयस्क का सम्पूर्ण भण्डार धारवाड़ चट्टानों से सम्बद्ध है । यहाँ उच्च
कोटि का हेमेटाइट तथा मैग्नेटाइट लौह-अयस्क मिलता है । झारखण्ड में उपलब्ध लौह-अयस्क
में 99% भाग हेमेटाइट लौह-अयस्क का है।
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लौह-अयस्क के भण्डारण की दृष्टि से झारखण्ड का भारत के राज्यों में पाँचवाँ स्थान है।
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राज्य में लौह-अयस्क का कुल भण्डार 4596.62 मिलियन टन है, जो देश के कुल भण्डार का
25.70% है। राज्य की नोआमुण्डी खान एशिया की सबसे बड़ी लौह-अयस्क की खान है। राज्य
में लौह-अयस्क भण्डार कुल देश के लौह-अयस्क भण्डार का लगभग 22% है।
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यहाँ लौह-अयस्क की 48 किमी लम्बी पेटी सिंहभूम के दक्षिणी भाग में अवस्थित है।
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लौह-अयस्क का मुख्य उत्पादक जिला पश्चिमी सिंहभूम है।
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राज्य में लौह-अयस्क की लगभग 28 खानें स्थापित हैं, जिनमें पश्चिमी सिंहभूम की नोआमुण्डी,
जामदा, गुआ, पवसीराबरु, वनरसियाबुरू, नाटुबुरु, गुरुमहिसानी आदि प्रमुख हैं।
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टाटा स्टील लिमिटेड को लौह-अयस्क की आपूर्ति नोआमुण्डी, किरीबुरू, जामदा, गुआ, बदाम
पहाड़ इत्यादि खानों से होता है।
मैंगनीज
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धारवाड़ युग की अवसादी शैलों में काले रंग की भस्मों के रूप में मैंगनीज धातु पाई जाती
है।
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राज्य से प्राप्त होने वाले मैंगनीज का उपयोग इस्पात बनाने, सूखी बैटरी निर्माण, विद्युत
एवं रसायन उद्योगों में होता है । मैंगनीज को अधात्विक प्रयोगों में भी लिया जाता है,
जैसेपौटेशियम परमैगनेट, क्लोरीन, ऑक्सीजन एवं ब्लीचिंग पाउडर निर्माण इत्यादि ।
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इसके अतिरिक्त मैंगनीज का प्रयोग काँच बनाने तथा काँच का रंग उड़ाने में भी किया जाता
है । यह राज्य के चाईबासा, लिमटू, जामदा, कालेण्डा, बरजमुण्डा और बंसाडेरा में मुख्य
रूप से पाया जाता है।
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पूर्वी तथा पश्चिमी सिंहभूम के अतिरिक्त, धनबाद और हजारीबाग जिलों में भी मैंगनीज की
खानें हैं। मैंगनीज का भण्डार कम होने के कारण झारखण्ड मैंगनीज का आयात करता है।
क्रोमाइट
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यह अयस्क झारखण्ड में कायान्तरित शैल समूह से प्राप्त किया जाता है, जिसका उपयोग इस्पात
बनाने व स्टेनलेस स्टील बनाने में होता है। झारखण्ड में इसके मुख्य केन्द्र पश्चिमी
सिंहभूम के चाईबासा, जोजोहातू एवं सरायकेला क्षेत्रों में है ।
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क्रोमाइट उत्पादन में झारखण्ड देश में दूसरे स्थान पर है।
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यह खनिज सामान्यतः ड्यूनाइट, पैरीडोटाइट व सर्पेटाइन शैलों से प्राप्त किया जाता है।
जस्ता
एवं टिन
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जस्ता राज्य के हजारीबाग, सन्थाल परगना, पलामू, रांची तथा सिंहभूम जिलों में पाया जाता
है।
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टिन कैसिटेराइट नामक खनिज स्तर से प्राप्त किया जाता है, जो आग्नेय चट्टानों में कच्ची
धातु के रूप में पाया जाता है।
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झारखण्ड में यह सन्थाल परगना, पलामू, रांची, हजारीबाग तथा सिंहभूम जिलों में अनेक स्थानों
से प्राप्त होता है ।
ताँबा
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देश के कुल ताँबा उत्पादन का लगभग 26% सुरक्षित भण्डार झारखण्ड में पाया जाता है।
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राज्य में ताँबे का खनन कार्य वर्ष 1924 से इण्डियन कॉपर कॉम्प्लेक्स द्वारा किया जा
रहा है।
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राज्य में ताँबे का 18% भण्डार है। ताँबा उत्पादन धारवाड़ क्रम की शैल समूहों द्वारा
होता है।
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राज्य के पूर्वी तथा पश्चिमी सिंहभूम जिले में लगभग 130 किमी ताँबा पेटी है, जो 17
किमी चौड़ी है।
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राज्य में पूर्वी सिंहभूम के मुसाबनी, सुरादा, धोबनी, पत्थरगोड़ा, केन्दाडीह तथा घाटशिला
में ताँबे की खानें अवस्थित हैं। इसके अतिरिक्त हजारीबाग एवं सन्थाल परगना के भागों
से भी ताँबा प्राप्त कुछ 6 होता है।
बॉक्साइट
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बॉक्साइट अयस्क से एल्युमीनियम की प्राप्ति होती है। इसका सम्पूर्ण भण्डार पाट क्षेत्र
में संचित है।
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इस क्षेत्र के दो जिले गुमला और लोहरदगा बॉक्साइट के उत्पादन में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण
हैं ।
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राज्य में बॉक्साइट के प्रमुख क्षेत्र पलामू के आस-पास के पाट क्षेत्र रांची का पठार,
हजारीबाग और राजमहल का पहाड़ी क्षेत्र तथा लोहरदगा के आस-पास का क्षेत्र हैं ।
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बॉक्साइट के प्रमुख खनन केन्द्रों में बगडू पहाड़, बंजारी, कुच्चा, सरेंगदाग, पकरी,
पाखर, ऊपर घाट आदि शामिल हैं।
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मुरी (रांची) में बॉक्साइट गलाने का सबसे बड़ा संयन्त्र स्थापित है।
टंगस्टन
एवं वेनेडियम
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टंगस्टन का उपयोग मुख्य रूप से विद्युत उद्योग में होता है। इसका मुख्य खनिज बुलफ्राम
होता है।
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यह राज्य के पूर्वी सिंहभूम जिले के कालीमाटी क्षेत्र तथा हजारीबाग जिले में पाया जाता
है।
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भारत का 14% टंगस्टन का उत्पादन अकेले हजारी बाग में होता है ।
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वेनेडियम मुख्य रूप से झारखण्ड के सिंहभूम जिले के दुबलावेटन तथा दुलपारा में पाया
जाता है।
सोना
एवं चाँदी
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राज्य में सोना, नदियों की बालू मिट्टी व चट्टानों से प्राप्त की जाती है।
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स्वर्ण रेखा नदी के बालू में यह अल्प मात्रा में पाया जाता है।
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इसके अतिरिक्त सोने की प्राप्ति पलामू क्षेत्र की सोन घाटी, फल्गु नदी के घाटी क्षेत्र
तथा रांचीहजारीबाग का दामोदर घाटी क्षेत्र से भी अल्पमात्रा में की जाती है ।
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राज्य में प्रति वर्ष 300 से 350 किग्रा सोने का उत्पादन घाटशिला से हिन्दुस्तान कॉपर
कॉर्पोरेशन द्वारा किया जाता है।
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राज्य में चाँदी पलामू, हजारीबाग, रांची, सिंहभूम आदि जिलों में सीमित मात्रा में प्राप्त
होती है, जो मुख्यतः जस्ता, सीसा, गन्धक व ताँबे के साथ मिश्रित रूप में प्राप्त होती
है।
(ii)
अधात्विक खनिज
अधात्विक
खनिजों का संक्षिप्त विवरण निम्न प्रकार है
कोयला
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ऊर्जा संसाधनों में कोयले का महत्त्वपूर्ण स्थान है, क्योंकि इसका सर्वाधिक भण्डार
सुरक्षित है।
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झारखण्ड (मध्य झारखण्ड) कोयले के सन्दर्भ में भारत का अग्रणी राज्य है।
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कोयला राज्य में कार्बोनीफेरस युग की गोण्डवाना चट्टानों में निक्षेपित है, जिससे इसकी
गुणवत्ता अति उत्तम है। राज्य से बिटुमिनस व एन्थ्रांसाइट दोनों प्रकार का बड कोयला
पाया जाता है।
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राज्य में सर्वप्रथम कोयला खनन का कार्य दामोदर नदी घाटी कोयला क्षेत्र के अन्तर्गत
झरिया में हुआ था।
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गुणात्मक दृष्टिकोण से भी झारखण्ड का कोयला सर्वोत्तम है।
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झारखण्ड में उत्पादन एवं सुरक्षित भण्डार की दृष्टि से पाँच प्रमुख कोयला क्षेत्र हैं,
जिनका विवरण इस प्रकार है
दामोदर
नदी घाटी क्षेत्र
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यहाँ देश का उच्च श्रेणी का कोयला भण्डार है, जो उत्पादन में सर्वश्रेष्ठ है। इस क्षेत्र
के अन्तर्गत झरिया, चन्द्रपुरा, बोकारो, रामगढ़ व कर्णपुरा आते हैं।
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यह क्षेत्र कुल कोयला उत्पादन का लगभग 95% उत्पादित करता है तथा इस क्षेत्र का सबसे
बड़ा उत्पादक झरिया है । यह क्षेत्र कोंकिग कोयले का भी शत-प्रतिशत उत्पादक क्षेत्र
है।
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झरिया क्षेत्र में 39 किमी लम्बी तथा 19 किमी चौड़ी कोयला पट्टी में कोयले का उत्पादन
होता है। इन क्षेत्रों में उच्च श्रेणी का कोंकिग कोयला पाया जाता है। यहाँ पर लगभग
20 किमी कोयले की परतें पाई जाती हैं।
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बोकारो क्षेत्र में 64 किमी लम्बी तथा 11 किमी चौड़ी कोयला पट्टी है, जिसका सम्पूर्ण
क्षेत्रफल 374 वर्ग किमी है। इस क्षेत्र को दो भागों में बाँटा गया है – बोकारो का
पूर्वी भाग व बोकारो का पश्चिमी भाग ।
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राज्य के उत्तरी कर्णपुरा क्षेत्र में कोयले की 42 मीटर मोटी परतें पाई जाती हैं। इस
कोयले की पट्टी का क्षेत्रफल 1424 वर्ग किमी है। इसे दो उत्तरी व दक्षिणी क्षेत्रों
में बाँटा गया है। यहाँ पर मध्यम श्रेणी का कोयला पाया जाता है। इस क्षेत्र में कुल
अनुमानित कोयला भण्डार 58 करोड़ टन है, जिसमें 44 परतें पाई जाती हैं ।
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राज्य के दक्षिणी कर्णपुरा (रामगढ़) क्षेत्र में कोयले की परतें 98 वर्ग किमी में
पाई जाती हैं, जिसका सम्पूर्ण क्षेत्रफल 1230 वर्ग किमी है।
बराकर
बेसिन क्षेत्र
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यहाँ कोयला भण्डार राज्य के गिरिडीह व हजारीबाग जिलों में पाया जाता है, जिसमें हजारीबाग
में कुल अनुमानित 50 करोड़ टन भण्डार है।
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गिरिडीह जिले से उच्च श्रेणी का कोयला प्राप्त किया जाता है, जिसका कुल भण्डार 40 करोड़
टन कोयले का है ।
अजय
बेसिन क्षेत्र
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इस क्षेत्र के अन्तर्गत जयन्ती, करैया व सहजोरी आदि कोयला केन्द्र आते हैं। यहाँ कोयला
क्रमबद्ध रूप में प्राप्त नहीं होता है, यहाँ पर साधारण श्रेणी का कोयला 2 परतों,
3 परतों और कहीं-कहीं 5 परतों में पाया जाता है। इस क्षेत्र में कुल कोयला भण्डार
40 करोड़ टन है।
राजमहल
पहाड़ी क्षेत्र
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इस क्षेत्र के अन्तर्गत जिलवारी, पचवारा व छपरविट्टा आदि आते हैं। यहाँ वृहद् रूप से
कोयले की प्राप्ति की जाती है, जिसका क्षेत्रफल 520 वर्ग किमी है।
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इस क्षेत्र का विस्तार उत्तर से दक्षिण तक है। इस क्षेत्र के छपरविट्टा में 13 परतों
में कोयला पाया जाता है तथा हेना जिलवारी में 5 परतों में कोयला पाया जाता है।
उत्तरी
कोयल बेसिन क्षेत्र
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इस क्षेत्र के अन्तर्गत औरंगा, हुटार, डाल्टनगंज व अमानत नदी घाटी क्षेत्र को सम्मिलित
किया जाता है ।
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यहाँ 612 वर्ग किमी क्षेत्र में कोयले का भण्डार है। इस क्षेत्र में कोयले का कुल अनुमानित
भण्डार 250 करोड़ टन है।
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औरंगा क्षेत्र में सामान्य श्रेणी का लगभग 207 करोड़ टन कोयला है तथा डाल्टनगंज में
10 करोड़ टन कोयले की उपलब्धता है।
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यह बेसिन क्षेत्र धरातल से 300 मीटर की गहराई पर स्थित है, जहाँ पर कहीं-कहीं नमी व
राख के रूप में कोयला पाया जाता है।
यूरेनियम
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यूरेनियम की प्राप्ति धारवाड़ एवं आर्कियन क्रम की शैलों से होती है ।
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राज्य में जादूगोड़ा, कन्याजलुका, नरवो, डुंगरी और जुरमाडीह यूरेनियम प्राप्ति के मुख्य
क्षेत्र हैं ।
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इन सभी क्षेत्रों में सर्वाधिक यूरेनियम की प्राप्ति जादूगोड़ा से होती है। यह पूर्वी
सिंहभूम में स्थित है और यूरेनियम की खानों के लिए प्रसिद्ध है।
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भाटिन खान में यूरेनियम का लघु जमाव मिलता है, यह जादूगोड़ा से 3 किमी पश्चिम में अवस्थित
है। यहाँ 215 मी की गहराई पर यूरेनियम मिलता है।
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यूरेनियम कार्पोरेशन ऑफ इण्डिया लिमिटेड (UCIL) को टुमराडीह जादूगोड़ा, बागजटा, नरदा,
कन्यालुका, जुरमाडीह तथा बेरुआ – डुमरी खानों के संचालन का उत्तदायित्व प्राप्ति है
।
राज्य
में यूरेनियम की अन्य खानें निम्नलिखित हैं –
1.
नरवापहाड़ खान यहाँ यूरेनियम का विशाल निक्षेप है। यह जादूगोड़ा से 12 किमी पश्चिम
में अवस्थित है।
2.
टुरमाडीह खान यहाँ भी यूरेनियम का निक्षेप मिलता है। यह जादूगोड़ा से 24 किमी पश्चिम
में अवस्थित है। यहाँ यूरेनियम कई संस्तरों में मिलता है।
3.
बागजटा खान यह जादूगोड़ा से 30 किमी दक्षिण-पूर्व में अवस्थित है। यहाँ यूरेनियम तीन
संस्तरों में मिलता है।
4.
मोहुलडीह खान यह जादूगोड़ा से 27 किमी पश्चिम में अवस्थित है।
5.
बन्दुहुरंग खान यह टुरमाडीह खान का पश्चिम विस्तारीकृत भाग है। यहाँ ओपन कास्ट माइन
तन्त्र है।
थोरियम
एवं इल्मेनाइट
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थोरियम नामक आण्विक खनिज का विस्तार रांची पठार और धनबाद में है। राज्य में इसका लगभग
2 लाख टन भण्डारण है ।
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इल्मेनाइट एक आण्विक खनिज है, जिसका उपयोग अन्तरिक्षयान और अणुशक्ति के लिए टाइटेनियम
धातु बनाने में होता है । इल्मेनाइट रांची जिले में प्राप्त होता है। राज्य में इस
खनिज का लगभग 7.4 लाख टन भण्डारण है।
अभ्रक
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राज्य में उच्चकोटि का मास्कोवाइट अभ्रक (माइका) पाया जाता है। राज्य में अभ्रक खनन
के प्रमुख केन्द्र कोडरमा, गिरिडीह एवं हजारीबाग है।
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गिरिडीह में अभ्रक बड़े पैमाने पर पाया जाता है। उत्तर झारखण्ड में अभ्रक का विस्तृत
भण्डार है।
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राज्य में प्राप्त होने वाले सफेद अभ्रक को रूबी अभ्रक कहा जाता है, जिसकी प्राप्ति
कोडरमा एवं गिरिडीह जिलों से होती है। अभ्रक की सबसे बड़ी खान कोडरमा में स्थित है।
कोडरमा को ‘भारत की अभ्रक राजधानी’ कहा जाता है।
कायनाइट
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इस खनिज का उपयोग ताप सहने वाली सामग्रियों के निर्माण में होता है।
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लोहा गलाने वाली भट्टियों के स्तर इस खनिज से बनाए जाते हैं।
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कायनाइट उत्पादन की दृष्टि से राज्य का देश में प्रथम स्थान है। इस खनिज का सबसे बड़ा
भण्डार सिंहभूम के लिप्साबुरु क्षेत्र में है। इस खनिज की खानें धागीडीह, मोहनपुरा
व कनियाल में स्थित है।
ग्रेफाइट
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यह कार्बन का अपरूप है, जिसे काला सीसा या प्लम्बगो भी कहा जाता है। कायान्तरित शैलों
में पाए जाने वाले इस खनिज में सिलिका एवं सिलिकेट जैसी अशुद्धियाँ मिली रहती हैं।
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झारखण्ड में लगभग 30.5 लाख टन ग्रेफाइट का भण्डारण है, जो देश के कुल भण्डार में राज्य
का 57.47% है।
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राज्य के पलामू जिले में इसके सर्वाधिक भण्डार पाए जाते हैं। पलामू के अतिरिक्त गढ़वा,
लातेहार व रांची में भी इसके भण्डार पाए जाते हैं। इसका उपयोग तापसह सामग्री के निर्माण,
रंग-रोगन, पेन्सिल निर्माण तथा नाभिकीय रिएक्टरों में मोडरेटर के रूप में किया जाता
है।
चूना
– पत्थर
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5 इस खनिज का प्रयोग मुख्य रूप से सीमेण्ट निर्माण, इमारत निर्माण, इस्पात भट्टी में
कच्चे माल के रूप में किया जाता है ।
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चूना पत्थर राज्य के सिंहभूम तथा रांची जिले उच्च श्रेणी का चूना पत्थर सन्थाल परगना
पलामू, हजारीबाग, प्राप्त होता है।
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क्षेत्र में पाया जाता है। इसकी प्राप्ति मुख्य रूप से विन्ध्ययुगीन क्रम की चट्टानों
से की जाती है।
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झारखण्ड में सर्वाधिक चूना पत्थर पालामू क्षेत्र में पाया जाता है। राज्य में चूना
पत्थर की 33 खानें अवस्थित है।
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वर्ष 2015-16 के दौरान झारखण्ड में चूना पत्थर का उत्पादन 634.41 मिलियन टन था।
एस्बेस्टस
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यह खनिज राज्य की धारवाड़ क्रम की चट्टानों में पाया जाता है। इसमें सिलिका, मैग्नीशियम
व पानी का मिश्रण होता है। एस्बेस्टस के उत्पादन में देश में झारखण्ड राज्य का प्रथम
स्थान है ।
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सरायकेला-खरसाँवा इस खनिज का मुख्य उत्पादक क्षेत्र है। इसके अतिरिक्त यह सिंहभूम के
जोजोहार और रांची में पाया जाता है।
फायरक्ले
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इस मिट्टी से बनी ईंट का उपयोग भट्टियों को बनाने में किया जाता है। दामोदर घाटी क्षेत्र,
रांची, पलामू में इसके भण्डार निक्षेपित हैं तथा यह खनिज झरिया के कोयले भण्डारों में
भी पाया जाता है।
डोलोमाइट
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इस खनिज का उपयोग लौह-इस्पात, सीसा, कागज, सीमेण्ट एवं गृह सामग्री से सम्बन्धित उद्योगों
में होता है। इसका प्रमुख उत्पादक जिला पलामू (डाल्टेनगंज) है। इसके अतिरिक्त यह सिंहभूम
के चाईबासा के निकट पाया जाता है।
सीसा
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इस खनिज की प्राप्ति जस्ते व चाँदी के साथ गैलेना नामक खनिज पत्थर से होती है। विद्युत
कुचालकता के कारण इस खनिज का प्रयोग मोटरकार, बैटरी, हवाई जहाज, रेल इंजन, बिजली के
तार व टाइपराइटर इत्यादि में किया जाता है। यह खनिज राज्य के
हजारीबाग जिले के बरगुण्डा, बरामासिया व टाँडा क्षेत्र के अतिरिक्त गोड्डा व पलामू
जिलों के कुछ क्षेत्रों में भी पाया जाता है।