
झारखण्ड
में सिंचाई व्यवस्था
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झारखण्ड की सिंचाई परियोजनाओं की कुल सिंचाई क्षमता 1000.64 हजार हेक्टेयर है, जिसमें
381.04 हजार हेक्टेयर क्षेत्र वृहद् और मध्यम सिंचाई परियोजनाओं द्वारा सिंचित है और
619.66 हजार हेक्टेयर क्षेत्र लघु सिंचाई परियोजनाओं द्वारा सिंचित है।
सिंचाई के साधन
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राज्य में सिंचाई के प्रमुख साधन नहर, तालाब, नलकूप, कुआँ आदि हैं।
नहर
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राज्य के कुल सिंचित क्षेत्र के 30.17% भाग पर नहरों द्वारा सिंचाई की जाती है ।
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राज्य की नदियों पर अनेक छोटे-छोटे बाँधों का निर्माण किया गया है, जिनसे नहरों को
निकाला गया है।
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राज्य में नहरों के माध्यम से सर्वाधिक सिंचाई सिंहभूम एवं सरायकेला-खरसावाँ जिलों
में की जाती है।
कुआँ
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राज्य के कुल सिंचित क्षेत्र 29.5% भाग पर कुओं द्वारा सिंचाई की जाती है। पथरीली जमीन
होने के कारण राज्य में सभी जगह नहरों का विकास नहीं किया जा सका है।
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ऐसे स्थानों पर सिंचाई के पारम्परिक साधन कुएँ हैं।
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कुओं द्वारा सिंचाई की दृष्टि से झारखण्ड में गुमला जिले का प्रथम स्थान है। गुमला
में कुल 87.2% सिंचित भूमि की सिंचाई कुओं से की जाती है। इसके बाद राज्य के गिरिडीह
(77.9%), रांची (71.4% ) धनबाद ( 56.2%), हजारीबाग (52.7%) तथा सिंहभूम (17.5%) भागों
पर कुओं द्वारा सिंचाई की जाती है।
तालाब
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झारखण्ड में तालाब सिंचाई का सबसे प्राचीन साधन हैं। राज्य की 18.8% सिंचित भूमि की
सिंचाई तालाबों के माध्यम से होती है।
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तालाबों द्वारा सर्वाधिक सिंचाई राज्य के देवघर, धनबाद, साहेबगंज, दुमका, गोड्डा आदि
जिलों में की जाती है। देवघर में तालाबों से 49.3% क्षेत्र की सिंचाई, धनबाद में
43.8%, साहेबगंज में 27.7% और दुमका में 27.7% क्षेत्र की सिंचाई की जाती है।
नलकूप
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राज्य के कुल सिंचित क्षेत्र का मात्र 8.4% भाग पर नलकूपों द्वारा सिंचाई की जाती है।
लोहरदगा जिले में नलकूपों द्वारा सर्वाधिक ( 32.6% ) सिंचाई की जाती है ।
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नलकूप को ‘आधुनिक युग का कुआँ’ कहा जाता है। इस तकनीक में विद्युत या डीजल द्वारा चालित
इंजन के माध्यम से जमीन से पानी (पाइप द्वारा) निकाला जाता है ।
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राज्य के लोहरदगा, गिरिडीह ( 6.3%), हजारीबाग
(9.4%)
आदि जिलों में सिंचाई के लिए नलकूप का प्रयोग से किया जाता है ।
सिंचाई
के अन्य साधन
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राज्य में सिंचाई के अन्य साधन पाइप, आहर आदि आते हैं। राज्य में इन साधनों से सिंचित
भूमि कुल के 26.3% भाग पर सिंचाई की जाती है।
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राज्य में कुल 87,300 हेक्टेयर भूमि की सिंचाई पाइप द्वारा की जाती है। इन साधनों से
सर्वाधिक सिंचाई सन्थाल परगना एवं पलामू जिलों में की जाती है।
राज्य की बहुउद्देशीय परियोजनाएँ
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राज्य की बहुउद्देशीय परियोजनाएँ निम्न हैं
1.
दामोदर नदी घाटी परियोजना
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दामोदर बहुउद्देशीय परियोजना भारत की प्रथम परियोजना थी। इसे वर्ष 1948 में प्रारम्भ
किया गया। यह परियोजना राज्य के धनबाद जिले में स्थापित है। यह संयुक्त राज्य अमेरिका
की टेनेसी परियोजना पर आधारित है।
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इस परियोजना को चलाने के लिए वर्ष 1948 में दामोदर घाटी निगम की स्थापना की गई, जिसका
मुख्यालय कोलकाता में है।
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592 किमी लम्बी दामोदर नदी वर्षाकाल में अधिक बाढ़ आती थी, जिससे काफी हानि होती थी।
परियोजना शुरू करने से पूर्व इस तथ्य को भी ध्यान में रखा गया था ।
2.
सुवर्ण / स्वर्ण रेखा नदी घाटी परियोजना
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इस परियोजना की शुरुआत वर्ष 1982-83 में विश्व बैंक की सहायता से की गई थी। स्वर्ण
रेखा नदी घाटी यह परियोजना स्वर्ण रेखा तथा उसकी सहायक नदियों पर स्थित है। स्वर्ण
रेखा की मूल छोटानागपुर पठार है
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यह बहुउद्देशीय परियोजना-झारखण्ड, ओडिशा तथा पश्चिम बंगाल की संयुक्त परियोजना है।
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इस नदी पर चाण्डिल बाँध, गालूडीह बैराज, खरकई बैराज, ईच बाँध तथा पालना बाँध स्थित
हैं।
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चाण्डिल बाँध का निर्माण वर्ष 2016-17 में पूर्ण हुआ। चाण्डिल बाँध की सिंचाई क्षमता
99,560 हेक्टेयर है और गालूडीह बैराज की सिंचाई क्षमता 7766 हेक्टेयर है।
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इस परियोजना के अन्तर्गत हुण्डरु जलप्रपात से जल-विद्युत का उत्पादन किया जाता है।
जिसकी उत्पादन क्षमता 120 मेगावाट है। यह 60-60 मेगावाट की दो इकाइयों में स्थापित
किया गया है।
वृहद् सिंचाई परियोजनाएँ
राज्य
की वृहद् सिंचाई परियोजनाएँ निम्न हैं
1.
उत्तरी कोयल परियोजना
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यह परियोजना उत्तरी कोयल नदी पर कुटकू गाँव (गढ़वा) में निर्माणाधीन है। इस परियोजना
के अन्तर्गत एक नहर निकालने की भी योजना है।
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इसके अन्तर्गत एक बाँध (66 मी ऊँचा) एवं विद्युत गृह का निर्माण किया जाएगा। इसके माध्यम
से तहत 90 मेगावाट जल विद्युत का उत्पादन किया जाएगा।
2.
मयूराक्षी परियोजना
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इसे वर्ष 1955 में प्रारम्भ किया गया था। यह झारखण्ड और पश्चिम बंगाल की संयुक्त परियोजना
है। यह परियोजना मयूराक्षी नदी पर निर्मित है।
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इस परियोजना के अन्तर्गत कनाडा की सहायता से मयूराक्षी के ऊपरी भाग में कनाडा बाँध
जिसे दुमका जिले के मसानजोर स्थान पर बनाया गया है, जिसके कारण इसे मसानजोर बाँध भी
कहते हैं। इस बाँध के माध्यम से 10 हजार हेक्टेयर भूमि को सिंचित किया जा रहा है एवं
इसके निचले भाग में तिलपारा अवरोधक बाँध (310 मी लम्बा) बनाया गया है।
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तिलपारा के दोनों किनारों से सिंचाई के लिए नहरें निकाली गई हैं, जो झारखण्ड तथा बंगाल
की 3 लाख हेक्टेयर भूमि की सिंचाई करती है तथा 04 हजार किलोवाट विद्युत का उत्पादन
भी किया जाता है। जिसका उपयोग सन्थाल परगना के साथ-साथ बंगाल में भी किया जाता है।
3.
कोनार सिंचाई परियोजना
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इसे वर्ष 1955 में प्रारम्भ किया गया था। इस परियोजना का निर्माण दामोदर घाटी निगम
द्वारा किया गया है, जो हजारीबाग जिले के विष्णुगढ़ प्रखण्ड के बनासो गाँव में स्थित
है।
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इस परियोजना से गिरिडीह, बोकारो एवं हजारीबाग जिले को सिंचाई का लाभ मिलता है।
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इस बाँध से 40 हजार किलो वाट बिजली का उत्पादन होता है।
4. पुनासी जलाशय परियोजना
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इस परियोजना के अन्तर्गत एक बाँध का निर्माण अजय नदी पर किया गया है, जो देवघर जिले
के पुनासी गाँव में स्थित है।
5. रामरेखा जलाशय परियोजना
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यह परियोजना वर्तमान में कार्यरत् है, जिसका निर्माण राज्य के सिमडेगा जिले के उतलय
नाला के पास कैरबैरा गाँव में किया जा रहा है।
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इस परियोजना से सिमडेगा प्रखण्ड क्षेत्र के 4,405 हेक्टेयर भूमि पर सिंचाई की सुविधा
उपलब्ध होती है।
6.
अजय बैराज परियोजना
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इस परियोजना के अन्तर्गत देवघर जिले के सारठ प्रखण्ड के सिकटिया गाँव के समीप एक बैराज
बनाया गया है, जो ज पर स्थित है।
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इस परियोजना के अन्तर्गत 110.8 किमी लम्बी नहर का निर्माण किया गया है, जिससे जामताड़ा,
कुण्डहित व नाला प्रखण्ड के क्षेत्र में सिंचाई का लाभ प्राप्त हो रहा है। यह परियोजना
राज्य के दुमका व देवघर जिले में स्थित है।
7.
अमानत बैराज परियोजना
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इस योजना के लाभान्वित क्षेत्र पलामू जिले के पाँकी, मनातू, पाटन प्रखण्ड क्षेत्र हैं।
इस परियोजना का निर्माण कार्य (1983) पलामू जिले के पाँकी प्रखण्ड के अमानत नदी पर
किया गया है।
राज्य में कृषि सिंचाई योजनाएँ एवं अभियान
राज्य
की प्रमुख कृषि सिंचाई योजनाओं एवं अभियान का वर्णन निम्न है
जलनिधि
योजना
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यह योजना वर्ष 2015-16 में प्रारम्भ की गई है। यह राज्य के सभी जिलों में संचालित है।
इसका उद्देश्य किसानों की वर्षा पर निर्भरता को कम करना और सिंचाई के अन्य माध्यम उपलब्ध
कराना है।
प्रधानमन्त्री
कृषि सिंचाई योजना
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इस योजना के अन्तर्गत झारखण्ड में 927 माइक्रोवाटरशेड प्रोजेक्ट 24 जिलों में संचालित
किए जा रहे हैं। वर्ष 2013 से 2017 के बीच इस योजना के अन्तर्गत कन्ट्रर ट्रेन्चिग,
चेक डैम निर्माण, फार्म पोंड आदि का निर्माण किया गया है। यह योजना अब तक 5744 वर्षा
जल संग्रह प्रोजेक्ट संचालित है, जिनसे 6,415 हेक्टेयर क्षेत्र की सिंचाई की जा रही
है ।
निरांचल
राष्ट्रीय वाटरशेड योजना
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यह योजना वर्ष 2015 में प्रारम्भ की गई थी। यह केन्द्र सरकार की योजना है, जो विश्व
बैंक द्वारा पोषित हैं। इस योजना का कार्य प्रधानमन्त्री कृषि सिंचाई योजना के प्रोजेक्टों
को तकनीकी सहायता प्रदान करना है। यह योजना सभी राज्यों में लागू है।
जल
क्रान्ति अभियान
> वर्ष 2015-16 में जल संसाधनों के विकास हेतु झारखण्ड में जल क्रान्ति अभियान प्रारम्भ किया गया। इस अभियान में 48 गाँवों को जल-ग्राम के रूप में चयनित किया गया और इन गाँवों को जल संसाधन के क्षेत्र में स्वावलम्बी होने हेतु व्यापक एकीकृत जल सुरक्षा प्लान विकसित किया गया है।