अंतर्राष्ट्रीय आदिवासी मूल निवासी दिवस (International Indigenous Peoples Day)

अंतर्राष्ट्रीय आदिवासी मूल निवासी दिवस (International Indigenous Peoples Day)

अंतर्राष्ट्रीय आदिवासी मूल निवासी दिवस (International Indigenous Peoples Day)

अंतर्राष्ट्रीय आदिवासी मूल निवासी दिवस

• विश्व के मूल निवासी/ स्वदेशी लोगों का अंतर्राष्ट्रीय दिवस 9 अगस्त को संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा प्रतिवर्ष मनाया जाता है।

यह दिवस स्वदेशी लोगों के कार्यों, उपलब्धियों, योगदानों आदि को पहचानने और सम्मान देने के उद्देश्य से मनाया जाता है। साथ ही, यह दिवस मूल निवासियों की विभिन्न परंपरागत पद्धतियों (कृषि, व्यापार, लोकगीत, भाषा-बोली, चिकित्सा आदि) के संरक्षण पर भी ध्यान बढ़ाता है।

• इस दिवस को मनाने का निर्णय संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा 23 दिसंबर, 1994 को लिया गया। यह तारीख वर्ष 1982 में स्वदेशी आबादी पर संयुक्त राष्ट्र कार्य समूह की पहली बैठक का प्रतीक है।

मूल निवासी और भविष्य निर्माण में इनका योगदान

• ऐसे समूह जो सभ्य समाजों से दूर जंगल, पहाड़ों अथवा पठारी क्षेत्रों में निवास करते हैं, को जनजाति, आदिम समाज, वन्य जाति, आदिवासी और मूल निवासी आदि नामों से जाना जाता है। इनकी अपनी अलग बोली, भाषा, संस्कृति और परंपराएँ होती हैं।

• मूल निवासी / स्वदेशी लोग अद्वितीय सांस्कृतिक परंपराओं के धनी और पर्यावरण से घनिष्ठ रूप से संबंधित होते हैं। उन्होंने सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और राजनीतिक विशेषताओं को अक्षुण्ण रखा है, जो उन प्रमुख समाजों से अलग हैं जिनमें वे रहते हैं।

• इन्हें पारंपरिक खाद्य प्रणालियों और औषधियों का विशेष ज्ञान होता है।

स्वदेशी पारंपरिक ज्ञान हमारी कई सामान्य चुनौतियों का समाधान प्रदान कर सकता है।

• ये वनों और इसकी समृद्ध जैव-विविधता की रक्षा करते हैं।

• ये अद्वितीय संस्कृतियों और पर्यावरण से संबंधित तरीकों के उत्तराधिकारी और अभ्यासकर्ता हैं।

• पीढ़ियों (सामुदायिक-जातीय) के बीच संबंध, स्वदेशी लोगों के हित का एक महत्त्वपूर्ण पहलू है, क्योंकि यह स्वदेशी ज्ञान के हस्तांतरण की सुविधा प्रदान करता है और पीढ़ियों के बीच मजबूत संबंध को बढ़ावा देता है।

मूल निवासियों की समस्याएँ

• मूल निवासी लोग वास्तव में दुनिया में सबसे वंचित और कमजोर लोगों के समूह में से हैं।

• अंतर्राष्ट्रीय समुदाय मानता है कि उनके अधिकारों की रक्षा और उनकी विशिष्ट संस्कृतियों और जीवन शैली को बनाए रखने के लिए विशेष उपायों की आवश्यकता है।

• अपने सांस्कृतिक मतभेदों के बावजूद, विश्व के स्वदेशी लोग विशिष्ट लोगों के रूप में अपने अधिकारों की सुरक्षा से संबंधित सामान्य समस्याओं को अनुभव करते हैं।

• स्वदेशी भाषाएँ विशेष रूप से असुरक्षित हैं, क्योंकि उनमें से कई को स्कूल में नहीं पढ़ाया जाता है या सार्वजनिक क्षेत्र / सामान्य बोलचाल में उपयोग नहीं किया जाता है।

• स्वदेशी लोग वर्षों से अपनी पहचान, अपने जीवन के तरीके और पारंपरिक भूमि, क्षेत्रों और प्राकृतिक संसाधनों पर अपने अधिकार को मान्यता देने की मांग कर रहे हैं।

स्वदेशी मुद्दों पर संयुक्त राष्ट्र स्थायी मंच

• आर्थिक और सामाजिक विकास के लिए एक उच्च स्तरीय सलाहकार निकाय है।

• इसकी स्थापना 28 जुलाई, 2000 को की गई थी। इसका उद्देश्य सामाजिक, सांस्कृतिक, पर्यावरणिक, शैक्षिक, स्वास्थ्यिक और मानवाधिकार संबंधी विकास करना था।

विश्व में कुछ प्रमुख जनजातियाँ

• विश्व के लगभग 90 देशों में 476 मिलियन मूल निवासी रहते हैं। उनकी कुल जनसंख्या विश्व की कुल जनसंख्या के 5% हिस्से से भी कम है।

• ये विश्व की अनुमानित 7,000 भाषाओं में से अधिकांश भाषाएँ बोलते हैं और 5,000 विभिन्न संस्कृतियों का प्रतिनिधित्व करते हैं।

यूकाधिर साइबेरिया में रहने वाली जनजाति है। यह मंगोलाइड प्रजाति से संबंधित जनजाति है। इनकी • आँखें आधी खुली होती हैं और इनका रंग पीला होता है।

बुशमैन अफ्रीका महाद्वीप के कालाहारी मरुस्थल में पाई जाने वाली जनजाति है।

एस्किमो जनजाति उत्तरी अमेरिका के कनाडा, ग्रीनलैण्ड और साइबेरिया क्षेत्र में पाई जाती है।

मसाई अफ्रीका के केन्या में पाई जाने वाली जनजाति है।

भारत की कुछ प्रमुख जनजातियाँ

सेंटिनलीज जनजाति एक प्रतिबंधित उत्तरी सेंटिनल द्वीप पर रहने वाली एक नेग्रिटो जनजाति है। वर्ष 2011 के जनगणना आँकड़ों के अनुसार, इनकी जनसंख्या 15 के आस-पास थी।

जारवा जनजाति अण्डमान एवं निकोबार द्वीप समूह की एक प्रमुख जनजाति है। जारवा जनजाति 5 हजार साल से यहाँ रहती है, लेकिन वर्ष 1990 तक बाहरी दुनिया के लोगों से इनका कोई संपर्क नहीं था। यह जनजाति अब भी तीर-धनुष से शिकार करती है।

संथाल जनजाति झारखंड के ज्यादातर हिस्सों तथा पश्चिम बंगाल, ओडिशा और असम के कुछ जिलों में रहने वाली भारत की प्राचीनतम जनजातियों में से एक है।

हक्की पिक्की जनजाति एक अर्द्ध-घुमंतू समुदाय है, जो प्राकृतिक उत्पादों को बेचकर जीवन निर्वाह करता है। ये प्रमुखता से कर्नाटक और आस-पास राज्यों में रहते हैं।

भारत ही नहीं, दुनिया के तमाम हिस्सों में आदिवासी समुदाय के लोग रहते हैं, जिनका रहन-सहन, खानपान, रीति-रिवाज वगैरह आम लोगों से अलग है समाज की मुख्यधारा से कटे होने के कारण ये पिछड़ गए हैं इस कारण भारत समेत तमाम देशों में इनके उत्थान के लिए, इन्हें बढ़ावा देने और इनके अधिकारों की ओर ध्यान आकर्षित करने के लिए कई तरह के कार्यक्रम चलाए जाते हैं इसी कड़ी में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने पहली बार 1994 को अंतर्राष्ट्रीय आदिवासी वर्ष घोषित किया था इसके बाद से हर साल ये दिन  9 अगस्त को मनाया जाता है

क्यों पड़ी इस दिन को सेलिब्रेट करने की जरूरत

दुनिया के तमाम देशों में आदिवासी समुदाय के लोग रहते हैं। इनकी भाषाएं, संस्कृति, त्योहार, रीति-रिवाज और पहनावा सबकुछ अलग है। इस कारण ये समाज की मुख्यधारा से नहीं जुड़ पाए हैं। रिपोर्ट्स बताती हैं कि इनकी संख्या भी समय के साथ घटती जा रही है। आदिवासी लोगों को अपना अस्तित्व, संस्कृति और सम्मान बचाने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। इस जनजाति को संरक्षण और बढ़ावा देने, इनकी संस्कृति व सम्मान को बचाने के लिए आदिवासी दिवस मनाया जाता है।

अमेरिकी आदिवासियों का बड़ा योगदान

विश्व आदिवासी दिवस मनाए जाने में अमरीका के आदिवासियों का बड़ा योगदान है। दरअसल अमेरिका में 12 अक्टूबर को हर साल कोलंबस दिवस मनाया जाता है। वहां के आदिवासियों का मानना था कि कोलंबस उस उपनिवेशी शासन व्यवस्था का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिसके लिए बड़े पैमाने पर जनसंहार हुआ था। इसलिए कोलंबस दिवस की जगह पर आदिवासी दिवस मनाया जाना चाहिए। इसके लिए 1977 में जेनेवा में एक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया गया। इस सम्मेलन में कोलंबस दिवस की जगह आदिवासी दिवस मनाने की मांग की गई। 1989 से आदिवासी समुदाय के लोगों ने इस दिन को सेलिब्रेट करना शुरू कर दिया। इसके बाद हर साल 12 अक्टूबर को कोलंबस दिवस की जगह आदिवासी दिवस मनाने लगे। इसके बाद यूनाइटेड नेशन ने साल 1994 में आधिकारिक रूप से आदिवासी दिवस 9 अगस्त को मनाने का ऐलान किया।

कैसे किया जाता है सेलिब्रेट

इस दिन दुनियाभर में संयुक्त राष्ट्र और कई देशों की सरकारी संस्थानों के साथ-साथ आदिवासी समुदाय के लोग, आदिवासी संगठन सामूहिक समारोह का आयोजन करते हैं इस दौरान आदिवासियों की मौजूदा स्थिति और भविष्य की चुनौतियों को लेकर चर्चा होती है कई जगहों पर जागरुकता अभियान चलाए जाते हैं

भारत में आदिवासी लोगों की बड़ी तादाद भारत की बात करें तो यहां मध्य प्रदेश, झारखंड, छत्तीसगढ़, बिहार आदि तमाम राज्यों में आदिवासी समुदाय के लोग रहते हैं मध्य प्रदेश में 46 आदिवासी जनजातियां निवास करती हैं एमपी की कुल जनसंख्या के 21 फीसदी लोग आदिवासी समुदाय के हैं वहीं झारखंड की कुल आबादी का करीब 28 फीसदी आदिवासी समाज के लोग हैं इसके अलावा भी तमाम राज्यों में आदिवासी समुदाय के लोग रहते हैं

मध्य प्रदेश में गोंड, भील और ओरोन, कोरकू, सहरिया और बैगा जनजाति के लोग बड़ी संख्या में रहते हैं। गोंड एशिया का सबसे बड़ा आदिवासी ग्रुप है, जिनकी संख्या 30 लाख से अधिक है। मध्य प्रदेश के अलावा गोंड जनजाति के लोग महाराष्ट्र, बिहार, छत्तीसगढ़, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और उत्तर प्रदेश में भी निवास करते हैं। वहीं में संथाल, बंजारा, बिहोर, चेरो, गोंड, हो, खोंड, लोहरा, माई पहरिया, मुंडा, ओरांव आदि आदिवासी समूह के लोग रहते हैं।

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