प्रश्न बैंक - सह - उत्तर पुस्तक (Question Bank-Cum-Answer Book)
Class - 12
अर्थशास्त्र (Economics)
अध्याय - 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत
बहुविकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Question)
1. किस बाजार में AR वक्र X- अक्ष के समानांतर होता है ?
(a) पूर्ण प्रतियोगिता (Perfect Competition)
(b)
एकाधिकार (Monopoly)
(c)
एकाधिकारिक प्रतियोगिता (Monopolistic Competition)
(d)
इनमें से सभी
2. किस बाजार में AR = MR होता है ?
(a)
एकाधिकार
(b)
एकाधिकारिक प्रतियोगिता
(c)
अ और ब दोनों
(d) पूर्ण प्रतियोगिता
3. फर्म का लाभ निम्नलिखित में किस शर्त को पूरा करने पर अधिकतम होगा
?
(a)
जहां MR = MC
(b)
जहां MC वक्र रेखा MR को नीचे से काटे
(c) a और b दोनों
(d)
इनमें से कोई नहीं ।
4. फर्म के संतुलन की प्रथम शर्त है-
(a) MC = MR
(b)
MR=TR
(c)
MR = AR
(d)
AC = AR
5. सम-विच्छेद बिंदु तब उत्पन्न होता है जब-
(a) TR = TC
(b)
MR = MC
(c)
TR > TC
(d)
(a) और (b) दोनों
6. पूर्ति निम्नलिखित में किस से जुड़ी होती है
(a)
किसी समय की अवधि
(b) कीमत
(c)
(a) और (b) दोनों
(d)
इनमें से कोई नहीं
7. वस्तु की पूर्ति के निर्धारक घटक कौन से हैं?
(a)
वस्तु की कीमत
(b)
संबंधित वस्तुओं की कीमत
(c)
उत्पादन साधनों की कीमत
(d) उपर्युक्त सभी
8. पूर्ति के नियम को निम्नलिखित में कौन-सा फलन प्रदर्शित करता है
?
(a) S=f(p)
(b)
S=f(1/p)
(c)
S = f(Q)
(d)
इनमें से कोई नहीं
9. अन्य बातें समान रहे तो वस्तु की कीमत तथा पूर्ति की मात्रा में
धनात्मक संबंध क्या व्यक्त करता है ?
(a)
मांग का नियम
(b)
पूर्ति की लोच
(c) पूर्ति का नियम
(d)
पूर्ति फलन
10. पूर्ति अपने लिए मांग स्वयं ही उत्पन्न कर लेती है। " यह किसका
कथन है?
(a) Prof. J.B.Say
(b)
Ricardo
(c)
Prof Pigou
(d)
Keynes
11. जब कीमत में थोड़ा-सा परिवर्तन होने पर पूर्ति में ज्यादा वृद्धि
हो जाए तो पूर्ति का स्वरूप निम्नलिखित में कौन-सा होगा?
(a) लोचदार
(b)
बेलोचदार
(c)
पूर्ण लोचदार
(d)
पूर्ण बेलोचदार
12. जब किसी वस्तु की पूर्ति में आनुपातिक परिवर्तन उसकी कीमत में होने
वाले आनुपातिक परिवर्तन से अधिक होता है तो पूर्ति की लोच होगी-
(a)
इकाई से कम
(b)
इकाई के बराबर
(c) इकाई से अधिक
(d)
अनंत
13. यदि किसी वस्तु की कीमत में 40% की वृद्धि हो परंतु पूर्ति केवल
15% की वृद्धि हो ऐसी वस्तु की पूर्ति होगी
(a)
अत्याधिक लोचदार
(b)
लोचदार
(c) बेलोचदार
(d)
पूर्णतया बेलोचदार
14. निम्नांकित चित्र प्रदर्शित करता है
(a) पूर्णतया लोचदार पूर्ति
(b)
पूर्णतया बेलोचदार पूर्ति
(c)
लोचदार पूर्ति
(d)
बेलोचदार पूर्ति
15. निम्नांकित चित्र प्रदर्शित करता है
(a)
लोचदार पूर्ति
(b) पूर्णतया बेलोचदार पूर्ति
(c)
पूर्णतया लोचदार पूर्ति
(d)
बेलोचदार पूर्ति
16. किस प्रकार के बाजार में एक फर्म कीमत स्वीकारक होती है ?
(a) पूर्ण प्रतियोगिता
(b)
एकाधिकार
(c)
एकधिकारात्मक प्रतियोगिता
(d)
अल्पाधिकार
17. यदि एक फर्म का मांग वक्र सरल रेखा है तो -
(a) फर्म प्रचलित कीमत पर कितनी भी मात्रा बेच सकती है।
(b)
फर्म प्रचलित कीमत पर एक निर्धारित मात्रा बेच सकती है।
(c)
सभी फर्में एक वस्तु की समान मात्रा बेचेंगी
(d)
फर्में अपने उत्पाद में विभिन्नता ला सकती हैं
18. जिस बाजार में स्वतंत्र प्रवेश तथा बहिर्गमन हो, उसका नाम है-
(a)
एकाधिकारात्मक प्रतियोगिता बाजार
(b)
अपूर्ण प्रतियोगिता का बाजार
(c) पूर्ण प्रतियोगिता का बाजार
(d)
इनमें से कोई नहीं
19. पूर्ण प्रतियोगिता में क्या स्थिर रहता है?
(a)
AR
(b)
MR
(c) AR तथा MR दोनों
(d)
उपर्युक्त में कोई नहीं
20. पूर्ण प्रतियोगिता बाजार की निम्नलिखित में कौन विशेषताएं हैं?
(a)
क्रेताओं और विक्रेताओं की अधिक संख्या
(b)
वस्तु की समरूप इकाइयां
(c)
बाजार दशाओं का पूर्ण ज्ञान
(d) उपर्युक्त सभी
अति लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर (Very Short Question Answer)
प्रश्न 1. पूर्ण प्रतियोगिता बाजार में AR तथा MR में क्या संबंध होता
है?
उत्तर- पूर्ण प्रतियोगिता बाजार में AR,MR के बराबर होता है।
प्रश्न 2. पूर्ण प्रतियोगिता में AR वक्र X- अक्ष के समानांतर क्यों
होता है ?
उत्तर
- पूर्ण प्रतियोगिता में प्रत्येक फर्म के लिए कीमत दी हुई होती हैं। अपनी इच्छा से
फर्म कीमत में परिवर्तन नहीं कर सकती। अतः उत्पादन के प्रत्येक स्तर पर कीमत समान रहती
है। अतः पूर्णप्रतियोगिता के अंतर्गत फर्म का मांग वक्र (अथवा औसत आगम वक्र) OX- अक्ष
के समांतर होता है।
प्रश्न 3. कीमत रेखा क्या है?
उत्तर
- कीमत रेखा एक फर्म के मांग वक्र को दर्शाती है वह बाजार कीमत तथा एक फर्म के उत्पादन
मात्रा के बीच संबंध को दर्शाती है।
प्रश्न 4. पूर्ति क्या है ?
उत्तर
- पूर्ति से अभिप्राय एक वस्तु की उन विभिन्न मात्राओं से है जो एक बाजार में एक निश्चित
समय पर उत्पादक विभिन्न कीमतों पर बेचने के लिए तैयार है।
प्रश्न 5. पूर्ति के विस्तार से क्या समझते हैं?
उत्तर
- पूर्ति के विस्तार से अभिप्राय किसी वस्तु की कीमत बढ़ने के फलस्वरूप उसकी पूर्ति
में होने वाली वृद्धि से है।
प्रश्न 6. पूर्ति में वृद्धि क्या है?
उत्तर
- पूर्ति में वृद्धि से अभिप्राय पूर्ति वक्र के दाएं ओर खिसकाव से है। यह वह स्थिति
हैं जिसमें उत्पादक वर्तमान कीमत पर वस्तु की अधिक मात्रा बेचने के लिए तैयार होता
है ।
प्रश्न 7. पूर्ति के संकुचन से क्या अभिप्राय है?
उत्तर
- पूर्ति के संकुचन से अभिप्राय किसी वस्तु की कीमत कम होने के फलस्वरूप उसकी पूर्ति
में होने वाली कमी से है ।
प्रश्न 8. पूर्ति में कमी को परिभाषित करें ?
उत्तर
- पूर्ति में कमी से अभिप्राय पूर्ति वक्र के बाई और खिसकाव से है यह वह स्थिति है
जिसमें उत्पादक वर्तमान कीमत पर वस्तु की कम मात्रा बेचने के लिए तैयार है।
प्रश्न 9. एक वस्तु की पूर्ति कब लोचदार कहलाती है ?
उत्तर
- जब पूर्ति की मात्रा में प्रतिशत परिवर्तन कीमत में प्रतिशत परिवर्तन से अधिक होता
है।
प्रश्न 10. उत्पादक के संतुलन से क्या तात्पर्य है?
उत्तर
- उत्पादक की संतुलन की अवस्था उस समय होती है जबकि उसके लाभ अधिकतम होते हैं। अधिकतम
लाभ के लिए फर्म के कुल आगम (TR) तथा कुल लागत (TC) का अंतर अधिकतम हो ।
प्रश्न 11. उत्पादक कौन है
उत्तर
- उत्पादक एक आर्थिक एजेंट है जो उत्पत्ति के साधनों को एकत्रित करके अधिकतम लाभ अर्जित
करने के उद्देश्य से वस्तुओं का उत्पादन करता है।
प्रश्न 12. संतुलन कीमत क्या है?
उत्तर-
संतुलन कीमत, वह कीमत है जिस पर मांग तथा पूर्ति एक दूसरे के बराबर होते हैं इस कीमत
पर परिवर्तन के लिए कोई प्रेरक तत्व नहीं होता।
प्रश्न 13. एक कीमत स्वीकारक फर्म की बाजार कीमत तथा औसत संप्राप्ति
में क्या संबंध है?
उत्तर-
एक कीमत स्वीकारक फर्म की औसत संप्राप्ति बाजार कीमत के बराबर होती है।
प्रश्न 14. इकाई के बराबर पूर्ति लोच प्रकट करने वाले पूर्ति वक्र बनाएं
?
उत्तर-
प्रश्न 15. पूर्ति की लोच का सूत्र लिखें?
उत्तर-
पूर्ति की लोच = पूर्ति में आनुपातिक परिवर्तन/ कीमत में आनुपातिक परिवर्तन
लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर (Short Question Answer)
प्रश्न 1. पूर्ण प्रतियोगिता की स्थिति में फर्म के औसत आगम तथा सीमांत
आगम को समझाइए
उत्तर
- पूर्ण प्रतियोगिता में समरूप इकाइयां एक ही कीमत पर बेची जाती है अतः औसत आगम और
सीमांत आगम वक्र एक सीधी रेखा के रूप में होती है। यह वक्र X- अक्ष के समानांतर होता
है क्योंकि उत्पादन की एक अतिरिक्त इकाई को भी सामान्य विक्रय मूल्य पर बेचा जा सकता
है।
बेची
गई इकाइयां |
कीमत |
कुल
आगम |
औसत
आगम |
सीमांत
आगम |
1 |
10 |
10 |
10 |
10 |
2 |
10 |
20 |
10 |
10 |
3 |
10 |
30 |
10 |
10 |
4 |
10 |
40 |
10 |
10 |
5 |
10 |
50 |
10 |
10 |
ऊपर
दिए गए चित्र में बेची गई इकाइयां X- अक्ष पर तथा आगम Y-अक्ष पर दिखाया गया है। औसत
आगम और सीमांत आगम समान है अतः वक्र X- अक्ष के समानांतर है।
प्रश्न 2. पूर्ण प्रतियोगिता में कीमत रेखा की क्या प्रकृति होती है
?
उत्तर- पूर्ण प्रतियोगिता में कीमत रेखा क्षैतिज अर्थात X- अक्ष के समांतर होती है। पूर्ण प्रतियोगिता में उद्योग कीमत का निर्धारण करता है। फर्म उस कीमत को स्वीकार करती है।
दी
हुई कीमत पर एक फर्म एक वस्तु की जितनी भी मात्रा बेचना चाहती है बेच सकती है पूर्ण
प्रतियोगिता में कीमत रेखा OX - अक्ष के समानांतर होती है कीमत रेखा को पूर्ण प्रतियोगिता
फर्म का मांग वक्र भी कहा जाता है।
प्रश्न 3. पूर्ण प्रतियोगिता में कीमत रेखा तथा कुल आगम में क्या संबंध
पूर्ण है ?
उत्तर- पूर्ण प्रतियोगिता में कीमत तथा कुल आगम में महत्वपूर्ण संबंध है। कीमत रेखा के नीचे का क्षेत्र कुल आगम के बराबर होता है। पूर्ण प्रतियोगिता में प्रत्येक फर्म कीमत को स्वीकार करती है। उद्योग द्वारा निर्धारित कीमत को इसे स्वीकार करना पड़ता है। वह दी हुई कीमत पर अपने उत्पाद की जितनी चाहे उतनी इकाइयां बेच सकती है।
अतः
कुल आगम कीमत तथा बेची गई इकाइयों का गुणनफल होगा। रेखा चित्र में वस्तु की कीमत
OP है। PA कीमत रेखा है। फर्म के विक्रय की मात्रा OQ है अतः कुल आगम OPxOQ होगा यह
OQRP आयत के क्षेत्रफल को प्रदर्शित करता है। अतः हम कह सकते हैं कि पूर्ण प्रतियोगिता
में कुल आगम कीमत रेखा के नीचे के क्षेत्रफल के बराबर है।
प्रश्न 4. एक कीमत स्वीकारक फर्म का कुल संप्राप्ति वक्र ऊपर की ओर
प्रवणता वाली सीधी रेखा क्यों होती है? यह वक्र उद्गम से होकर क्यों गुजरता है?
उत्तर
- पूर्ण प्रतियोगिता बाजार में मूल्य दिया हुआ रहता है तथा प्रत्येक फर्म को उसे स्वीकार
करना पड़ता है, अतः कुल आय तथा उत्पादन में संबंध स्थापित करने के लिए कुल बिक्री की
मात्रा में मूल्य से गुणा करना होता है। उदाहरण के लिए मान लिया जाए कि कोई विक्रेता
100 किलो आलू बेचता है और आलू का मूल्य रु० 10 प्रति किलो है तो कुल आये (TR) 100
× 10 = 1000 रुपए होगी। जैसे- जैसे विक्रय की मात्रा बढ़ती जाती है वैसे वैसे कुल आय
में वृद्धि होती जाती है। इसे हम चित्र के द्वारा स्पष्ट कर सकते हैं।
चित्र में OX- रेखा पर उत्पादन तथा OY- रेखा पर कुल आय को दिखलाते हैं। TR कुल आय की रेखा है। चित्र से स्पष्ट है कि शून्य उत्पादन पर TR अवश्य ही शून्य होगी। अतः TR रेखा उद्गम से गुजरती है और सीधी रेखा का रूप ले लेती है क्योंकि बाजार में दिए हुए समान मूल्य पर उत्पादन की कोई भी मात्रा बेची जा सकती है।
चित्र
से स्पष्ट है कि जब उत्पादन 00 है तो कुल आय OR है लेकिन जब उत्पादन बढ़कर क्रमश:
OQ1 तथा 002 हो जाता है तो कुल आय भी बढ़कर क्रमश: OR1 तथा OR2 हो जाती है यानी उत्पादन
अथवा बिक्री की मात्रा में वृद्धि के साथ-साथ कुल आय भी बढ़ती जाती है।
प्रश्न 5. सीमांत आगम और सीमांत लागत द्वारा फर्म का साम्य कैसे निर्धारित
होता है ?
उत्तर
- फर्म के संतुलन को सीमांत आगम तथा सीमांत लागत विधि द्वारा भी समझ सकते हैं। फर्म
को संतुलन प्राप्त करने के लिए दो शर्तों को पूरी करनी होती है।
(i)
MR = MC तथा
(ii)
MC रेखा MR को नीचे से काटे ।
सीमांत आय और सीमांत लागत के बीच का अंतर लाभ को बताता है। जब तक सीमांत आय सीमांत लागत से अधिक होता है उत्पादन में वृद्धि लाभदायक है जब सीमांत आय सीमांत लागत के बराबर होती है उस समय फर्म को अधिकतम लाभ की प्राप्ति होती है। यदि उसके बाद भी उत्पादन में वृद्धि होती है तो सीमांत लागत सीमांत आय से अधिक हो जाएगी और उत्पादक को हानि होगी ।
चित्र
से स्पष्ट है कि MC वक्र MR वक्र को दो बिंदुओं E तथा E1 पर काटती है बिंदु
E1 पर उत्पादन OQ1 है। यदि उत्पादक इसी बिंदु पर संतुलन को प्राप्त
करता है तो उत्पादन वृद्धि होने पर मिलने वाले लाभ से वंचित रहना पड़ेगा। E1
बिंदु से E बिंदु के बीच सीमांत लागत कम है सीमांत आय से। E बिंदु पर MR = MC । E बिंदु
के बाद यदि उत्पादक उत्पादन करेगा तो उसे हानि प्राप्त होगी क्योंकि सीमांत लागत सीमांत
आय से अधिक होगा।
प्रश्न 6. पूर्ति का नियम क्या है? इसे उदाहरण व रेखा चित्र द्वारा
समझाइए ।
उत्तर
- अन्य बातें समान रहने पर किसी वस्तु की अपनी कीमत बढ़ने पर पूर्ति की गई मात्रा बढ़
जाती है और कीमत कम होने पर पूर्ति की गई मात्रा कम हो जाती है।
Px |
Sx |
10 |
100 |
11 |
200 |
12 |
300 |
तालिका से ज्ञात होता है कि जब वस्तु की अपनी कीमत ₹10 से बढ़कर 11 हो जाती है तो पूर्ति की गई मात्रा 100 इकाइयों से बढ़कर 200 इकाइयों हो जाती है इसी तरह कीमत के ₹11 से बढ़कर ₹ 12 होने पर यह 200 इकाइयों से बढ़कर 300 इकाइयां हो जाती हैं इसका अर्थ है कि वस्तु की अपनी कीमत तथा इसकी पूर्ति के लिए मात्रा में धनात्मक संबंध है इसे हम रेखा चित्र द्वारा दिखाते हैं।
पूर्ति
वक्र (SS) का ढलान ऊपर की ओर है यह प्रकट करता है कि वस्तु की अपनी कीमत बढ़ने पर पूर्ति
की गई मात्रा भी बढ़ती है। जब कीमत OP से बढ़कर OP1 हो जाती है तो पूर्ति
की गई मात्रा OQ से बढ़कर OQ1 हो जाती है।
प्रश्न 7. पूर्ति में विस्तार को रेखा चित्र द्वारा समझाइए ?
उत्तर
- पूर्ति में विस्तार पूर्ति का विस्तार तब होता है जब वस्तु की अपनी - कीमत में वृद्धि
के फलस्वरूप पूर्ति की गई मात्रा में वृद्धि होती है।
Px |
Qx |
1 |
1 |
5 |
5 |
पूर्ति
के विस्तार को पूर्ति वक्र पर बिंदु A से B तक संचलन द्वारा दर्शाया गया है। वस्तु
की अपनी कीमत में वृद्धि के फलस्वरूप पूर्ति की गई मात्रा में वृद्धि होती है।
तालिका
में जब वस्तु -X की कीमत 1 रुपया है तो इसकी पूर्ति की गई मात्रा 1 इकाई है। जब कीमत
बढ़कर 5 रुपया प्रति इकाई हो जाती है तो पूर्ति का विस्तार होकर 5 इकाइयाँ हो जाता
है। उत्पादक उसी पूर्ति वक्र के बिन्दु A से बिंदु B पर पहुंच जाता है जिसे पूर्ति
वक्र पर संचलन कहते हैं।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर (Long Question Answer)
प्रश्न 1. पूर्ण प्रतियोगिता से क्या अभिप्राय है इसकी प्रमुख विशेषताएं
क्या है ?
उत्तर
- पूर्ण प्रतियोगिता, बाजार की वह स्थिति है जिसमें क्रेता तथा विक्रेता की संख्या
बहुत अधिक होती है। एकसमान वस्तुओं का उत्पादन होता है। इस बाजार में वस्तु की एक ही
कीमत प्रचलित होती है।
परिभाषा-
प्रो.
लेफ्टविच के अनुसार, पूर्ण प्रतियोगिता बाजार की वह स्थिति है; जिसमें बहुत सी फर्में
एक समान वस्तुएँ बेचती हैं और इनमें से किसी भी फर्म की यह स्थिति नहीं होती कि वह
बाजार कीमत को प्रभावित कर सके।"
पूर्ण
प्रतियोगिता की प्रमुख विशेषताएं-
(i)
क्रेताओं और विकेताओं की अत्याधिक संख्या-
पूर्ण
प्रतियोगिता बाजार में क्रेताओं और विक्रेताओं की संख्या बहुत अधिक होती है। जिसके
कारण कोई भी क्रेता अथवा विक्रेता बाजार कीमत को प्रभावित नहीं कर पाता है।
(ii)
समरूप वस्तुएँ-
इस
बाजार में सभी विक्रेताओं द्वारा बेची जाने वाली वस्तुओं की इकाईयाँ समरूप होती हैं।
(iii)
फर्मों का स्वतंत्र प्रवेश व निकास-
पूर्ण
प्रतियोगिता में कोई भी नई फर्म उद्योग में प्रवेश कर सकती है तथा कोई भी पुरानी फर्म
उद्योग से बाजार जा सकती है। इस प्रकार पूर्ण प्रतियोगिता में फर्मों के उद्योग में
आने-जाने पर कोई प्रतिबंध नहीं होता है।
(iv)
बाजार का पूर्ण ज्ञान-
इस
बाजार में क्रेताओं तथा विक्रेताओं को बाजार की दशाओं का पूर्ण ज्ञान होता है। अतः
कोई क्रेता वस्तु की प्रचलित कीमत से अधिक कीमत देकर वस्तु नहीं खरीदेगा ।
(v)
साधनों की पूर्ण गतिशीलता-
इस
प्रतियोगिता में उत्पत्ति के साधन बिना किसी बाधा के एक फर्म से दूसरे फर्म में अथवा
एक उद्योग से दूसरे उद्योग में स्थानांतरित किये जा सकते हैं।
(vi)
यातायात लागत का अभाव-
इस
प्रतियोगिता में यातायात लागत शून्य होती है जिसके कारण बाजार में एक कीमत प्रचलित
रहती है।
प्रश्न 2. पूर्ण प्रतियोगिता में फर्म कीमत प्राप्तकर्ता होती है। क्यों?
अथवा
पूर्ण प्रतियोगिता में मूल्य कैसे निर्धारित होता है?
उत्तर - पूर्ण प्रतियोगिता में क्रेता तथा विक्रेता एक बड़ी संख्या में होते हैं जिसके कारण कोई व्यक्तिगत फर्म वस्तु की कीमत पर कोई प्रभाव नहीं डाल सकती। उद्योग में एकसमान वस्तुएँ उत्पादित करने वाली अनेक फर्मों होती है। जिसके कारण एक व्यक्तिगत फर्म का उद्योग के उत्पादन में सूक्ष्म योगदान होता है। यही कारण है कि पूर्ण प्रतियोगिता में कोई फर्म उद्योग की कीमत को प्रभावित नहीं कर पाती। पूर्ण प्रतियोगिता में एक उद्योग के अन्तर्गत कार्य करने वाली प्रत्येक फर्म कीमत प्राप्तकर्ता (Price-taker) तथा मात्रा नियोजक (quantity-adjuster) होती है।
उपर्युक्त
चित्र से वस्तु की कीमत वस्तु की माँग तथा वस्तु की पूर्ति द्वारा निर्धारित हो रही
है। उद्योग में सन्तुलन बिन्दु ६ पर उपलब्ध होता है जिसके कारण वस्तु की OP कीमत तय
होती है। इस कीमत OP को उद्योग के अन्तर्गत कार्य कर रही प्रत्येक फर्म दिया हुआ मान
लेती है तथा वह इस कीमत पर अपनी उत्पादन मात्रा को तय करती है।
पूर्ण
प्रतियोगी फर्म उद्योग द्वारा निर्धारित इस कीमत में तो परिवर्तन नहीं कर सकती, किन्तु
इस कीमत पर वह वस्तु की कितनी ही मात्रा का उत्पादन एवं विक्रय कर सकती है। यही कारण
है कि फर्म के लिए कीमत रेखा X- अक्ष के समानान्तर एक क्षैतिज रेखा (Horizontal
line parallel to X-axis) होती है।
प्रश्न 3. बाज़ार कीमत एवं सामान्य कीमत में अंतर कीजिए।
उत्तर-
बाजार कीमत एवं सामान्य कीमत में अन्तर
बाजार
कीमत |
सामान्य
कीमत |
1.
बाजार कीमत पूर्ण प्रतियोगी बाजार दशा में अति अल्पकाल अथवा बाजार अवधि में निर्धारित
होती है। |
1
सामान्य कीमत पूर्ण प्रतियोगी बाजार में दीर्घकाल में माँग तथा पूर्ति की शक्तियों
द्वारा निर्धारित होती है। |
2.
इस कीमत-निर्धारण में वस्तु की माँग वस्तु की पूर्ति की तुलना में अधिक प्रभावी रहती
है क्योंकि अति अल्पकाल में पूर्ति स्थिर रहती है। |
2.
इस कीमत निर्धारण में पूर्ति अधिक सबल होती है क्योंकि दीर्घकाल में पर्याप्त समय
होने के कारण वस्तु की पूर्ति माँग की दशाओं के अनुसार पूर्णतः समायोजित की जा सकती
हैं। |
3.
यह कीमत माँग तथा पूर्ति के अस्थायी सन्तुलन द्वारा निर्धारित होती
है जिसके कारण अल्पकालीन बाजार कीमत में उच्चावचन दृष्टिगोचर होते हैं। |
3.
दीर्घकाल में सामान्य कीमत माँग तथा पूर्ति
के स्थायी सन्तुलन द्वारा निर्धारित होती है। |
4.
इस कीमत में उत्पादक को असामान्य लाभ, सामान्य लाभ या हानि भी हो सकती है। |
4.
इस कीमत में उत्पादक को केवल सामान्य लाभ, होता
है। |
5.
यह कीमत वास्तव में बाजार में प्रचलित होती है। |
5.
यह कीमत काल्पनिक होती है। |
6.
बाजार कीमत में उतार-चढ़ाव आते रहते हैं तथा वह सामान्य कीमत के सापेक्ष इर्द-गिर्द
घूमती रहती है। |
6.
सामान्य कीमत स्थिर होती है। |
प्रश्न 4. पूर्ण प्रतियोगिता और एकाधिकार में अन्तर लिखिए।
उत्तर
-
पूर्ण
प्रतियोगिता |
एकाधिकार |
1.
औसत आगम और सीमान्त आगम दोनों बराबर होते हैं। AR = MR |
1.
औसत आगम सीमान्त आगम से अधिक होता है। AR > MR |
2.
वस्तु की कीमत सीमान्त लागत के बराबर होती है। AR = MC |
2.
वस्तु की कीमत सीमान्त लागत से अधिक होती
है। AR > MC |
3.
दीर्घकाल में केवल स्थिर लागत दशा में उत्पादन सम्भव है। |
3.
दीर्घकाल में घटती लागत, स्थिर लागत एवं बढ़ती लागत तीनों दशाओं में उत्पादन एवं
सन्तुलन सम्भव है। |
4.
दीर्घकाल में केवल सामान्य लाभ की दशा सम्भव है। |
4
दीर्घकाल में केवल लाभ ही मिलता है। चाहे लागत घटती हो, स्थिर हो अथवा बढ़ती हो। |
5.
उत्पादन स्तर अधिक और कीमत कम होती है। |
5.
कीमत ऊँची और उत्पादन स्तर कम होता है। |
6.
फर्म अपने अनुकूलतम आकार (optimun size) पर सन्तुलन में होती है। |
6.
फर्म अपने अनुकूलतम आकार से कम (less than optimum) पर सन्तुलन में होती है। |
7.
कीमत विभेदीकरण सम्भव नहीं है। क्योंकि क्रेताओं को बाजार का पूर्ण ज्ञान होता है। |
7.
कीमत विभेदीकरण सम्भव एवं लाभप्रद है। |
8.
एक समान उत्पादन करने वाली फर्मों की संख्या बहुत अधिक होती है। |
8.
एक अकेली फर्म होती है। फर्म ही उद्योग है और उद्योग ही फर्म है। |
9.
फर्मों का उद्योग में प्रवेश एवं बहिर्गमन स्वतन्त्र होता है। |
9
फर्मों का उद्योग में प्रवेश प्रतिबन्धित होता है। |
प्रश्न 5. कुल आगम और कुल लागत विधि द्वारा फर्म का संतुलन कैसे निर्धारित
होता है ?
उत्तर- कुल आय और कुल लागत का अंतर कुल लाभ को बताता है। - कुल लाभ कुल आय कुल लागत उत्पादन के अलग-अलग स्तरों पर TR तथा TC का अंतर अलग-अलग होता है। एक उत्पादक का कुल लाभ तभी अधिकतम होता है जब TR तथा TC का अंतर अधिकतम होता है।
पूर्ण प्रतियोगिता में एक फर्म दी गई कीमत पर वस्तु की कितनी भी मात्रा का उत्पादन कर सकती है क्योंकि पूर्ण प्रतियोगिता में फर्म कीमत स्वीकारक तथा मात्रा निर्धारित करने वाला होता है इसलिए पूर्ण प्रतियोगिता में कुल आगम वक्र बाएं से दाएं चढ़ती हुई सीधी रेखा होती है। चित्र में कुल आगम वक्र को TR से दिखाते हैं। उत्पादन के बढ़ने पर कुल लागत बढ़ती है चित्र में कुल लागत वक्र TC से दिखाया गया है। बिंदु Q1 तक अर्थात OQ1 उत्पादन तक कुल लागत कुल आगम से अधिक है । उत्पादन बिंदु Q1 पर कुल आगम तथा कुल लागत दोनों बराबर हैं। बिंदु T एक समविच्छेद बिंदु है। इस बिंदु T पर शून्य लाभ की स्थिति है। उत्पादन बिंदु Q1 से Q2 तक कुल आगम, कुल लागत से अधिक है । उत्पादक के लिए यह क्षेत्र लाभ का क्षेत्र है। इस क्षेत्र के विभिन्न उत्पादन बिंदुओं से संबंधित कुल लागत रेखा के बिंदु पर स्पर्श रेखा खींचकर कुल लागत बिंदु तथा कुल आगम बिंदु का अंतर ज्ञात करते हैं। जिस बिंदु पर यह अंतर अधिकतम होगा वही बिंदु फर्म के संतुलन का बिंदु होगा। चित्र में यह उत्पादन संतुलन बिंदु Q दिखाया गया है जिस पर कुल आगम (TR) तथा कुल लागत वक्र (TC) की खड़ी दूरी KN अधिकतम है। बिंदु Q2 के बाद पुनः कुल लागत कुल आगम से अधिक है। अतः उत्पादक को हानि होने के कारण Q2 के बाद उत्पादन नहीं होगा। इस प्रकार उत्पादन स्तर OQ पर कुल आगम (TR) तथा कुल लागत (TC) का अंतर अधिकतम है। अतः उत्पादक उत्पादन स्तर OQ पर अधिकतम लाभ प्राप्त करते हुए संतुलन में होगा।
JCERT/JAC प्रश्न बैंक - सह - उत्तर पुस्तक (Question Bank-Cum-Answer Book)
विषय सूची
अध्याय
व्यष्टि अर्थशास्त्र
समष्टि अर्थशास्त्र
अध्याय 1
अध्याय 2
अध्याय 3
अध्याय 4
अध्याय 5
अध्याय 6
Solved Paper 2023
अध्याय | व्यष्टि अर्थशास्त्र | समष्टि अर्थशास्त्र |
अध्याय 1 | ||
अध्याय 2 | ||
अध्याय 3 | ||
अध्याय 4 | ||
अध्याय 5 | ||
अध्याय 6 | ||
Solved Paper 2023 |