प्रश्न :- तकनीक के चयन एवं उपयुक्त
तकनीक जिनका प्रयोग करना चाहिए, उनकी व्याख्या करें?
→ "उत्पादन
की तकनीकों का चुनाव देश की साधन संपन्नता पर निर्भर करता है"। इस कथन की
विवेचना कीजिए?
उत्तर
- तकनीकों के चुनाव की समस्या किसी विशिष्ट परियोजना अथवा उद्यम के लिए संयोगों
के प्रकार को निर्दिष्ट
करती है। अल्पविकसित देश के लिए श्रम तथा पूँजी तकनीकों के बीच, हल्के तथा भारी
उद्योगों के बीच और कृषि तथा उद्योग के बीच विकल्प विद्यमान रहते है। परन्तु
अन्तिम चुनाव श्रम गहन तथा पूँजी गहन विधियों में से चुनने का रहता है, चाहे वह
कृषि और उधोग में हो अथवा हल्के तथा भारी उधोग में हो। A. K.
Sen ने अपनी पुस्तक 'Choice of Techniques' में
बताया कि "विभिन्न तकनीकों का प्रायः अभिप्राय होता है, अर्थव्यवस्था के
निष्पादन के बहुत विभिन्न प्रयत्नों के साथ आर्थिक विकास की बिल्कुल विभिन्न
कूटनीतियाँ"
। अन्तिम उद्देश्य उस तकनीक का चुनात करना होता है, जो वर्तमान साधन अनुपातो को ध्यान में रखते हुए अन्य तकनीक की अपेक्षा अधिक दक्ष हो। दक्ष तकनीक वह होती
है जो दी हुई निर्गत की लागतो को न्यूनतम करे अथवा दिए हुए आगतो से उत्पादन को
अधिकतम बनाए।
उत्पादन फलन पर तकनीकी परिवर्तन के प्रभाव को नीचे दिए गये चित्रों के द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है-
ऊपर
के चित्रों में R वक्र तकनीकी परिवर्तन से पहले के उत्पादन फलन
को व्यक्त करता है। R1 वक्र नवप्रवर्तन के पश्चात् उत्पादन की उन्ही मात्राओं को दिखलाता है।
चित्र (1) में नवप्रवर्तन श्रम और पूँजी के सम्बंध में तटस्थ है। नया उत्पादन फलन
R1 इस बात को बतलाता है कि तकनीकी प्रगति के पश्चात् उत्पादन की उसी मात्रा
को कम
श्रम और कम पूँजी से पैदा किया जा सकता है।
चित्र
(2) मे नवप्रवर्तन श्रम की बचत करने वाला है और R1 वक्र यह बतलाता है कि उत्पादन की उसी
मात्रा को प्राप्त करने के लिए श्रम और पूँजी दोनों ही कम लगते है, किन्तु श्रम की बचत
पूंजी की बचत की अपेक्षा अधिक है।
चित्र
(3) में नव प्रवर्तन पूंजी की बचत करने वाला है और R1
वक्र यह दिखलाता है कि उसी उत्पादन को पैदा करने के लिए श्रम और
पूँजी दोनों ही कम मात्रा में लगते
हैं। किन्तु पूंजी की बचत श्रम की बचत की अपेक्षा अधिक है।
तकनीकी प्रगति पूँजी निर्माण से अधिक महत्त्वपूर्ण है, इसे चित्र (4) में स्पष्ट किया गया है-
चित्र
(4) में OR उत्पादन फलन को दिखलाता है जो तकनीकी प्रगति के साथ बढकर OR1,
OR2 तथा OR3 हो जाता है। OR उत्पादन फलन पर यदि प्रति
श्रमिक पूँजी की मात्रा को 200रु.
से बठाकर 300रु. कर दिया जाता है तो
प्रति व्यक्ति उत्पादन AM से बढ़कर A1M1 हो जाता है। जब प्रति
श्रमिक पूँजी बढ़कर 500 रु. हो जाती है तो प्रति श्रमिक उत्पादन A3M3
हो जाती है। तकनीकी प्रगति की मुख्य विशेषता यह है कि वह श्रम तथा अन्य साधनों के अधिक
अच्छे प्रयोग को सम्भव बनाती है और इसलिए उत्पादन फलन ऊपर की ओर हटता चला जाता है जो
यह बतलाता है कि प्रति श्रमिक उतनी ही पूँजी लगाकर अधिक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता
है। जबकि प्रति श्रमिक पूँजी की मात्रा 200 रूपये रहती है, प्रति श्रमिक उत्पादन
AM से KM तक बढ़ता चला जाता है, जैसे- जैसे उत्पादन फलन ऊपर की ओर हटता जाता
है। इसी प्रकार पूँजी प्रधानता के अन्य स्तरों पर भी अधिक उत्पादन प्राप्त किया जा
सकता है। तकनीकी प्रगति उत्पादन फलन को ऊपर की और हटा देती है जो प्रति श्रमिक पूँजी
की उतनी ही मात्रा से अधिक उत्पादन को सम्भव बनाती है। इस प्रकार तकनीकी प्रगति किसी
देश के आर्थिक विकास का एक महत्त्वपूर्ण साधन हो सकती है।
श्रम प्रधान तकनीक
उत्पादन में श्रम प्रधान तकनीक वह होती है जिसमे सापेक्षिक रूप से श्रम की अधिक मात्रा और पूँजी की कम मात्रा प्रयोग की जाती है। प्रो रेड्डावे ने श्रम प्रधान तकनीक की परिभाषा इस प्रकार दी है - 'वह तकनीक श्रम प्रधान तकनीक है जिसमें श्रम की अधिक मात्रा को पूँजी की कम मात्रा के साथ मिलाया जाता है'। इस प्रकार श्रम प्रधान तकनीक श्रम पर अधिक और पूंजी पर कम निर्भर होती है। उत्पादन पर श्रम प्रधान तकनीक के प्रभाव को नीचे दिये गये चित्र (5) के द्वारा दिखलाया जा सकता है -
चित्र
(5) में Q उत्पादन के प्रारम्भिक स्तर को बतलाता
है जो अर्थव्यवस्था में श्रम की OL मात्रा और पूँजी की OC
मात्रा के प्रयोग से पैदा किया जा रहा है। नयी तकनीक के
द्वारा पूँजी की
उतनी ही मात्रा अर्थात् OC तथा श्रम की अधिक मात्रा अर्थात्
OL1 के द्वारा उत्पादन का ऊँचा स्तर प्राप्त किया जा सकता है जिसे Q1
के द्वारा दिखलाया गया है। यह तकनीक श्रम प्रधान है क्योंकि इसमें पूँजी की उतनी ही
मात्रा के साथ अधिक श्रम का प्रयोग किया जा रहा है।
कुछ विकास अर्थशास्त्रियों ने जैसे नर्कसे, लेविस, मायर और
बाल्डविन ने इस विचार का जोरदार समर्थन किया है कि अल्प विकसित देशों को औधोगिक
दृष्टि से विकसित देशों के पूँजी प्रधान तकनीक के पीछे जाने की अपेक्षा श्रम प्रधान
तकनीक का प्रयोग करना चाहिए। संयुक्त राष्ट्र संघ के विशेषज्ञों ने भी अल्प विकसित
देशों में उत्पादन के श्रम प्रधान तरीकों के अपनाये जाने की आवश्यकता पर जोर दिया है।
श्रम- प्रधान तकनीक के पक्ष में तर्क
श्रम-प्रधान तकनीकों के समर्थन में सामान्य रूप से प्रस्तुत
किए गए तर्क निम्नलिखित है
(1) बेरोजगारी की समस्या का हल :- अल्पविकसित देशो में बेरोजगारी, अल्प- रोजगारी तथा छिपी हुई
बेरोजगारी बहुत अधिक पायी जाती है। इसका एक मात्र हल यही है कि गाँवों, कस्बों तथा
शहरों में श्रम प्रधान तकनीके अपनाई जाये ताकि अधिक लोगों को रोजगार के अवसर प्राप्त
हो।
(2) स्थानीय साधनों का प्रयोग :- ऐसी तकनीके अपनाने से स्थानीय साधनों (कच्चे माल) का अधिकतम
प्रयोग होता है तथा लोगों की आय बढ़ती है जैसे, गुड़ बनाना, चटाइयाँ बनाना, खेस,
दरी आदि बुनना, रस्सी बुनना आदि।
(3) कम कुशलता की आवश्यकता :- अल्पविकसित देशों में लोग अनपढ़, अप्रशिक्षित तथा अकुशल
होते है। परन्तु यह कठिनाई श्रम प्रधान तकनीके अपनाकर दूर की जा सकती है क्योंकि ऐसी
तकनीके अनपढ़ और अकुशल व्यक्ति बहुत कम समय में आसानी से सीख सकते है। इस प्रकार रोजगार
तथा उत्पादन में वृद्धि के साथ-साथ श्रम गहन तकनीके अपनाने से कुशलता निर्माण भी होता
है।
(4) कम आयात की आवश्यकता :- अल्पविकसित देशो में पूँजी की कमी पायी जाती है जिसे विदेशों
से पूंजी पदार्थ आयात करके पूरा किया जा सकता है। परन्तु श्रम गहन
तकनीके अपनाने से पूँजी पदार्थ आयात करने के लिए अधिक आवश्यकता नहीं पड़ती है। नर्कसे
के अनुसार श्रम प्रधान तकनीको से सम्बन्धित मशीने, औजार आदि देश में ही बनाये जा सकते
है या उनको एक बार आयात करके वैसी मशीने, औजार आदि देश में बनाये जा सकते हैं। इस प्रकार
अर्थव्यवस्था में विदेशी मुद्रा तथा भुगतान शेष की कठिनाइयाँ
कम उत्पन्न होती है।
(5) शीघ्र फलदायक :- श्रम गहन तकनीके शीघ्र फलदायक होती है, अर्थात् उनके प्रारम्भ
करने और उनसे बनी हुई वस्तुओं के बाजार में बिकने के लिए आने में बहुत कम समय लगता
है। इस प्रकार वे उपभोक्ता वस्तुओं की पूर्ति बढ़ाने में सहायक
होती है जिससे देश में कीमते अधिक नहीं बढ़ पाती और स्फीति की रोक थाम होती है।
(6) कम पूँजी की आवश्यकता :- अल्पविकसित देशों में श्रम-गहन तकनीके इसलिए भी अपनानी आवश्यक
होती है। क्योंकि उनमे श्रम की प्रधानता पायी जाती है। इस प्रकार श्रम- प्रधान तकनीके
अपनाने से कम पूँजी की आवश्यकता पड़ती है जिसकी ऐसे देशो में पहले से ही बहुत कमी पायी
जाती है।
(7) कम सामाजिक लागते :- अल्पविकसित देशो में श्रम - प्रधान तकनीके अपनाने से सामाजिक
लागतो में बचत होती है क्योंकि इनके प्रयोग के लिए कारखानों की बड़ी इमारतो, श्रमिको
के रहने के लिए मकानो, उनके लिए यातायात आदि की समस्याये उत्पन्न नहीं होती जो कि पूँजी
- प्रधान तकनीक अपनाने से पैदा होती है। इस प्रकार दूषित वातावरण, खराब स्वास्थ्य, गंदी बस्तियो
आदि की समस्याएँ भी नहीं पायी जाती जबकि गांवों और कस्बों के खुले वातावरण में श्रम
प्रधान तकनीके अपनाई जाती है। इस प्रकार श्रम प्रधान तकनीके अपनाने से सामाजिक लागते
कम होती है।
(8) केन्द्रीयकरण की बुराइयों से मुक्त :- जब सभी गाँवों तथा कस्बों में श्रम प्रधान तकनीके अपना कर
उत्पादन किया जाता है तो अर्थव्यवस्था में विकेन्द्रीयकरण होता है और देश केन्द्रीयकरण
की बुराइयों से मुक्त हो जाता है, जैसे रहन-सहन यातायात, वातावरण, विद्युत, पानी आदि ।
(9) प्रशासकीय साधनों की कम आवश्यकता :- श्रम - प्रधान तकनीके अपनाने से काम छोटे पैमाने पर
होता है जिसे लोग घरो में स्वयं ही या कोई छोटा सा स्थान लेकर, कुछ अन्य
व्यक्तियों को काम पर लगाकर करते है जिसके लिए कोई विशेष प्रशासकीय साधनों की
आवश्यकता नही पड़ती ।
(10) आय
का समान वितरण :- जब अल्पविकसित
देशो में अर्थव्यवस्था के बहुत बड़े क्षेत्र में श्रम प्रधान तकनीके अपनाई जाती है
तो इससे आय का समान वितरण करने में सहायता मिलती है क्योंकि आय व धन का कुछ एक धनी
उधोगपतियों के हाथ में संकेन्द्रण नहीं हो पाता, बल्कि श्रम गहन तकनीके अपनाने
वाले असंख्य लोगो की धीरे- धीरे आय बढ़ती है। इस प्रकार राष्ट्रीय आय के वितरण अधिक
समान होता जाता है।
पूँजी - प्रधान तकनीक
पूँजी प्रधान तकनीक वह होती है जो सापेक्षिक रूप से अधिक मात्रा में पूँजी और कम मात्रा में श्रम का प्रयोग करती हो। मिन्ट के अनुसार, " किसी वस्तु को पैदा करने के पूँजी- प्रधान अथवा श्रम की बचत करने वाले तरीके उपभोग की वस्तुओं को पैदा करने के आधुनिक फैक्ट्री के तरीकों तथा सड़कों, सिचाई योजनाओं एवं अन्य परियोजनाओं के निर्माण के यान्त्रिक तरीको को बतलाते है। इन तरीको में श्रम की कम लागत और अधिक उत्पादकता होने के कारण पूंजी की प्रति इकाई के पीछे शुद्ध उपज सापेक्षिक रूप से अधिक हो सकती है"।
चित्र (6) में Q उत्पादन के प्रारम्भिक स्तर को
दिखलाता है जो अर्थव्यवस्था के द्वारा श्रम की OL
मात्रा तथा पूँजी की OC मात्रा को लगाकर पैदा किया जाता है। उत्पादन की नये तकनीक
को अपनाकर श्रम की उतनी ही मात्रा अर्थात् OL और
पूँजी की अधिक मात्रा अर्थात् OC1 के द्वारा उत्पादन का ऊँचा स्तर
प्राप्त किया जा सकता है जिसे OQ1 के द्वारा दिखलाया गया है। यह तकनीक
पूँजी प्रधान है क्योंकि वह श्रम की उतनी ही मात्रा के साथ अधिक मात्रा में पूंजी
का प्रयोग करता है।
पूँजी प्रधान तकनीको के पक्ष में तर्क
पूँजी प्रधान तकनीको के पक्ष में अर्थशास्त्री निम्नलिखित
तर्क दिए है-
(1) अधिकतम विकास दर के लिए :- अल्पविकसित देशो की विकास दर को अधिकतम करने के लिए
पूँजी गहन तकनीके अपनाना अधिक अच्छा होता है क्योंकि इनके द्वारा ही दीर्घकाल में
रोजगार उत्पादन और आय में विस्तार होता है।
(2) पुर्ननिवेश दर बढ़ाने के लिए :- गलेनसन तथा लीबन्स्टीन के अनुसार पूँजी गहन तकनीके
अपनाने से अर्थव्यवस्था में पुर्ननिवेश की दर में वृद्धि होती है, जिससे आर्थिक
विकास तेज होता है क्योंकि ऐसी तकनीके अपनाने से जब किसी उद्योग की आय बढ़ती है तो
उसका बहुत बड़ा भाग उद्यमी को चला जाता है जो उसे पुनः निवेशित कर देता है। इसी
प्रकार जब सारी अर्थव्यवस्था में ऐसी तकनीके अपनाई जाती है तो पुर्ननिवेश की दर
बढ़ती है और उससे शीघ्र आर्थिक विकास होता है।
(3) शीघ्र औद्योगीकरण :- अल्पविकसित देशों में जब पूँजी प्रधान तकनीके अपनाई
जाती है तो उसका अभिप्राय यह होता है कि बड़े बड़े उद्योगों की स्थापना, जिससे देश
में शीघ्र औद्योगीकरण की सम्भावना बन जाती है।
(4) प्रति व्यक्ति उत्पादन में वृद्धि :- शीघ्र आर्थिक विकास के लिए प्रति व्यक्ति उत्पादकता
अधिक होनी चाहिए जो कि केवल पूँजी प्रधान तकनीके अपनाने से ही बढ़ती है क्योकि एक
श्रमिक हाथ की अपेक्षा मशीन से अधिक वस्तुएं बना सकता है।
(5) रोजगार में वृद्धि :- यद्यपि ऐसा समझा जाता है कि पूँजी प्रधान तकनीके अपनाने
से बेरोजगारी बढ़ती है परन्तु वास्तविकता यह है कि जब ऐसी तकनीके अपना कर उपभोक्ता
और पूँजी वस्तुओं के क्षेत्रो में बड़े-बड़े उद्योग स्थापित किए जाते है तो उनसे
दीर्घकाल में रोजगार के अवसर कई गुणा बढ़ते है। इस प्रकार पूँजी प्रधान तकनीक
रोजगार को बढ़ाने में सहायक होती है।
(6) कुशलता बढ़ाने में सहायक :- जब अर्थव्यवस्था में पूँजी प्रधान तकनीको को अपनाया
जाता है तो उससे श्रमिको की कार्य- क्षमता तथा कुशलता में वृद्धि होती है जब वे एक
ही कार्य को बार- बार करते है।
(7) लागतो में कमी :- जब उद्योगों में पूँजी प्रधान तकनीके अपनाई जाती है तो
उन्हें बड़े पैमाने की बचते और लाभ प्राप्त होते है जिससे उत्पादन बढ़ता है और
लागते कम होती है।
(8) मानक वस्तुओं का निर्माण :- पूँजी प्रधान तकनीके अपनाने से देश में मानक वस्तुओं का
निर्माण होता है जो बढ़िया और सस्ती होती है तथा जिनके उपभोग से लोगों का रहन-सहन
का स्तर ऊँचा होता है।
(9) आयात में कमी :- यद्यपि पूँजी प्रधान तकनीके अपनाने के लिए प्रारम्भ में
अल्पविकसित देशों को पूँजी पदार्थों का आयात करना पड़ता है फिर भी दीर्घकाल में ये
तकनीके आयातों को कम करने में सहायक होती है। इनके द्वारा अर्थव्यवस्था में जब
पूँजी तथा उपभोक्ता वस्तुओं से सम्बन्धित उद्योग स्थापित हो जाते है तो आयात की
बचत होती है तथा निर्यात में वृद्धि होती है। इस प्रकार विदेशी मुद्रा और भुगतान
शेष की समस्याएँ भी हल हो जाती है।
(10) उपरि पूँजी के निर्माण के लिए :- अल्पविकसित देशों में यातायात, विद्युत, सिचाई आदि से
सम्बन्धित उपरिव्यय सुविधाओं का निर्माण केवल पूँजी प्रधान तकनीके अपनाकर ही
शीघ्रता से किया जा सकता है।
पूँजी प्रधान तकनीक की सीमाएँ
पूँजी प्रधान तकनीको के प्रयोग किये जाने के विपक्ष में निम्नलिखित
तर्क दिये जाते हैं-
(1) पूँजी प्रधान तकनीक अल्पविकसित देशों को प्रदान किये
गये साधनों के अनुसार नहीं है। इन देशों में प्रायः श्रम की अधिकता पायी जाती है
इसलिए अत्यधिक पूँजी प्रधान तकनीक इन देशों के लिए उपयुक्त नहीं है क्योंकि इनमे
बहुत बड़ी मात्रा में पूँजी का विनियोग करने की आवशयकता होती है। जो इन देशो की
क्षमता से बाहर है।
(2) पूँजी प्रधान तकनीक का प्रयोग करने के लिए बहुत बड़ी
मात्रा में मशीनो, औजारो, उपकरणों तथा तकनीकी ज्ञान का आयात करने की आवश्यकता होगी
जो अल्प - विकसित देशों की भुगतान सन्तुलन सम्बन्धी कठिनाइयो को बढ़ाने की
प्रवृत्ति रखेगी ।
(3) पूँजी प्रधान तरीको को अपनाने से अल्प विकसित देशों के
अल्प पूँजी साधनों का अपव्यय होता है। किण्डलबर्जर के अनुसार, "आधुनिक तकनीक
का बहुत सा प्रयोग उत्पादन के पक्ष पर केवल दिखावे का प्रभाव है, चलने की योग्यता
प्राप्त करने से पहले ही भागने का प्रयास करना है"। इस
प्रकार की तकनीक पूँजी का अपव्यय करती है क्योंकि वह पूँजी को एक संकीर्ण क्षेत्र
पर अत्यधिक गहनता के साथ प्रयोग करती है और लाभपूर्ण विनियोग के अवसरो की उपेक्षा
करती है।
(4) आधुनिक पूँजी प्रधान तकनीको का अपनाया जाना इस बात को
मानकर चलता है कि शक्ति, यातायात और संचार की सुविधाएं मौजूद है तथा तकनीकी
योग्यता वाले प्रशिक्षित लोग और इससे सम्बन्धित अन्य प्रकार की सेवाये पर्याप्त
मात्रा में उपलब्ध है। किन्तु ये सुविधाये अल्पविकसित देशों में अधिकांश रूप से
नहीं पाई जाती है और इसलिए इन देशो के लिए पूँजी प्रधान तकनीक अधिक उपयुक्त नहीं
हो सकती है।
निष्कर्ष
इसमें संदेह नहीं कि श्रम-प्रधान विधियाँ अधिक रोजगार
उत्पन्न करती है और परिणामतः आय स्तरो को बढ़ाती है, परन्तु उन्ही के, जिनकी आय कम
है और उपभोग प्रवृत्ति अधिक है। इसलिए प्रजनित आय का थोड़ा अनुपात ही बचत तथा
निवेश के लिए उपलब्ध होता है। परन्तु जनसाधारण के विशाल हित को ध्यान में रखते
हुए, अर्थात् रोजगार के अधिक सुअवसर उत्पन्न करने, वस्तुओं की पूर्ति बढ़ाने,
यथासम्भव स्फीतिकारी तथा भुगतान शेष के दबावो को रोकने के लिए उपभोक्ता वस्तु
क्षेत्र में श्रम प्रधान तकनीके प्रयोग करनी चाहिए। आय की वृद्धि की दर पर
"सतत तथा संयोजन प्रभाव' के लिए पूँजी, प्रधान तकनीको को पूँजी क्षेत्र तक
सीमित रखा जाए।
भारतीय अर्थव्यवस्था (INDIAN ECONOMICS)
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