प्रश्न:- यूलर प्रमेय तथा
योगिकरण समस्या की व्याख्या करें
☞ उत्पादन के पूर्ण रूपेण विभाजित
हो जाने की समस्या का वर्णन करें?
उत्तर :- जब प्रत्येक उत्पादन के साधन को उसकी सीमान्त उत्पादकता के समान पारिश्रमिक
अथवा कीमतें मिलती है तो कुल उत्पादन किसी शेष अतिरेक (Surplus) अथवा घाटे
(Deficit) के बिना पूर्णतया वितरित हो जाएगा। सिद्ध करने की इस समस्या को कि साधनों
को सीमान्त उत्पादकताओं के बराबर पारिश्रमिक देने पर कुल उत्पादन पूर्णतया वितरित हो
जाएगा, योगीकरण की समस्या (Adding up Problem) कहा गया है।
फिलिप विकस्टीड (Philip Wicksteed) ने अपनी पुस्तक
"The Co-ordination of the Loans of Distribution' में इस समस्या की ओर ध्यान
आकृष्ट किया। उनके अनुसार, यदि प्रत्येक साधन को उसकी सीमान्त उत्पादकता के बराबर पुरस्कार
दिया जाता है तो सम्पूर्ण उत्पादन समाप्त हो जायेगा तथा कुछ भी अतिरेक शेष नहीं बचेगा।
प्रो. फिलिप विकस्टीड ने इस समस्या को 'उत्पाद समाप्ति की समस्या' (Product
Exhaustion Problem) बताया। प्रो. विकस्टीड ने यह सिद्ध करने के लिए कि "प्रत्येक
साधन की सीमान्त उत्पादकता के बराबर किया गया भुगतान कुल उत्पाद को पूर्ण रूप से परिसमाप्त
कर देता है", स्विट्जरलैण्ड के गणितन्त्र लैनहर्ड यूलर (Leanhar Euler) द्वारा
बनायी गयी यूलर प्रमेय (Euler's Theorem) का प्रयोग किया।
यूलर प्रमेय की सहायता से यह दर्शाया गया कि यदि उत्पादन
फलन कॉब डगलस की प्रकृति का है, तब प्रत्येक उत्पत्ति के साधन को उसकी सीमान्त उत्पादकता
के बराबर भुगतान देने पर सम्पूर्ण उत्पादन समाप्त हो जायेगा।
मान लीजिए कि P कुल उत्पादन का, a श्रम का, b पूँजी का तथा
c उद्यमकर्ता का सूचक है। यह पूर्वधारणा लेते हुए कि उत्पादन में यही तीन साधन प्रयुक्त
होते हैं, योगीकरण की समस्या का निम्न अर्थ होगा:
P=[MPa × a ]+[MPb x b ]+[MPc x c ]
जहाँ MPa, MPb, और MPc
क्रमशः साधन a (श्रमिक), साधन b (पूँजी) और साधन c (उद्यमकर्ता) की सीमान्त उत्पादकताओं
को व्यक्त करते हैं।
उपर्युक्त समीकरण का अर्थ यह है कि सभी साधनों की मात्राओं
a, b और c को जब उनकी सीमान्त उत्पादकताओं से गुणा किया जाता है तो उनका योग (Sum)
कुल उत्पादन P के बराबर होता है।
रेखाचित्र द्वारा स्पष्टीकरण
उत्पादन के पूर्ण रूप से विभाजित हो जाने की समस्या को वह मानते हुए कि उत्पादन के लिए केवल दो साधन श्रम एवं पूँजी आवश्यक है, हम चित्र द्वारा समझायेंगे। a श्रम के लिए और b पूँजी के लिए प्रयुक्त किए गये हैं। यह उल्लेखनीय है कि किसी साधन का सीमान्त उत्पादन तभी ज्ञात किया जा सकता है, जबकि अन्य साधनों की मात्रा को स्थिर रखते हुए उसकी मात्रा में परिवर्तन किया जाय। जब परिवर्तनशील साधन की एक निश्चित मात्रा का प्रयोग किया जाता है अथवा उसे रोजगार में लगाया जाता है, तब परिवर्तनशील साधन का पुरस्कार उसके सीमान्त उत्पादन के बराबर दिखाया जा सकता है। ऐसी स्थिति में स्थिर साधन का पुरस्कार, कुल उत्पादन में से परिवर्तनशील साधन को उसके सीमान्त उत्पादन के बराबर पुरस्कार देने के बाद उत्पन्न अतिरिक्त (अविशिष्ट आय) के रूप में प्रदर्शित किया जा सकता है।
रेखाचित्र में पूँजी को स्थिर मानते हुए परिवर्तनशील साधन
श्रम a की इकाइयों को X-अक्ष पर दिखाया गया है। जब श्रम की OL मात्राओं का प्रयोग किया
जाता है, तब इस साधन मात्रा पर सीमान्त उत्पादकता LF है जिसके बराबर OE मजदूरी निर्धारित होती है। कुल मजदूरी
भुगतान (Total Wage Bill) OLFE क्षेत्र द्वारा प्रदर्शित किया गया है। कुल मजदूरी का
भुगतान करने के बाद शेष उत्पाद AEF क्षेत्र के बराबर कुल भुगतान पूँजी को ब्याज के रूप में प्राप्त होगा। इस प्रकार श्रम
और पूँजी को उनका पुरस्कार देने के बाद कुल उत्पाद समाप्त हो जाता है। चित्रों में
श्रम की मात्रा को स्थिर मानते हुए परिवर्तनशील साधन पूँजी की मात्रा को X-अक्ष पर
दिखाया गया है। पूँजी की OK मात्रा का प्रयोग करने पर पूँजी की सीमान्त उत्पादकता
TK, पूँजी की कीमत (अर्थात् व्याज) के बराबर है। पूँजी का कुल भुगतान OKTS क्षेत्र
के बराबर होगा। शेष उत्पाद BST श्रम को उसकी सेवा के भुगतान के रूप में चला जायेगा।
यह सिद्ध करने के लिए कि श्रम एवं पूँजी को उनकी सीमान्त
उत्पादकताओं के बराबर भुगतान देने पर सम्पूर्ण
उत्पाद समाप्त हो जायेगा, हमें यह सिद्ध करना पड़ेगा कि चित्र 1 का OLFE क्षेत्रफल
चित्र 2 के BST क्षेत्रफल के बराबर है तथा चित्र 1 का AEF क्षेत्रफल चित्र 2 के क्षेत्रफल
OKTS के बराबर है।
इस तरह से हम बता सकते हैं कि किसी साधन की सीमान्त रूप में
निर्धारित आय उस साधन की निर्धारित अवशिष्ट आय के बराबर होती है। ध्यान रहे कि हमने
उत्पादन के पूर्ण रूप में विभाजित करने की समस्या को सिद्ध नहीं किया है, केवल उदाहरणस्वरूप
प्रस्तुत किया है।
सिद्धान्त की मान्यताएँ
यूलर प्रमेय या योगीकरण प्रमेय निम्नलिखित मान्यताओं
पर आधारित है:
1. उत्पादन फलन प्रथम कोटि का समरूप फलन होता है अर्थात्
पैमाने का प्रतिफल स्थिर होता है।
2. उत्पत्ति के साधन पूर्णतया विभाजित होते हैं।
3. उत्पत्ति के साधन पूरक होते हैं।
4. पूर्ण प्रतियोगिता की दशा विद्यमान रहती है।
5. यह समस्या दीर्घकालीन है।
6. उत्पादन के केवल दो ही साधन श्रम (L) तथा पूँजी (K) है।
विभिन्न साधनो की सीमांत उत्पादकताओं को आंशिक
व्युत्पन्नो (Partial derivatives) में व्यक्त किया जा सकता है। अतएव साधन a (श्रम) की सीमांत उत्पादकता को
dp/da, साधन b (पूँजी)
की सीमांत उत्पादकता को dp/db और c (उद्यमकर्ता) की सीमांत उत्पादकता को dp/dc लिख सकते है। अतः योगीकरण
समस्या का समाधान तब होगा जब
`P=a\frac{dp}{da}+b\frac{dp}{db}+c\frac{dp}{dc}`हो यहां `a\frac{dp}{da},b\frac{dp}{db},c\frac{dp}{dc}` क्रमशः श्रम, पूंजी एवं उद्यम कर्ता को प्राप्त होने वाले हिस्से को सूचित करता है।
यूलर प्रमेय के अनुसार यदि P
प्रथम डिग्री का समरूप फलन है तो निम्न शर्त पूरी होगी-
`P=a\frac{dp}{da}+b\frac{dp}{db}+c\frac{dp}{dc}`
अर्थात् यदि उत्पादन फलन
प्रथम डिग्री का समरूप फलन है, तो कुल उत्पादन साधनों की प्रयुक्त मात्राओं के
उनके सीमांत उत्पादकताओं के गुणा करने से प्राप्त योग के बराबर होगा।
यूलर प्रमेय के अनुसार यदि
P (उत्पादन) प्रथम कोटि का समरूप फलन है अर्थात् यदि
P = ƒ
(a,b,c) मे विभिन्न चरों a, b, c को किसी n मात्रा द्वारा बढ़ाया जाय तो
उत्पादन P में भी ठीक n मात्रा
द्वारा वृद्धि होगी अतः
nP = ƒ (na,nb,nc)
इस प्रथम कोटि के समरूप फलन की दशा में यूलर प्रमेय के अनुसार
:
`P=a\frac{dp}{da}+b\frac{dp}{db}+c\frac{dp}{dc}`
इससे यह निष्कर्ष निकलता
है कि यदि उत्पादन फलन प्रथम कोटि का समरूप फलन है तो यूलर प्रमेय के अनुसार यदि विभिन्न
साधनो a,b तथा c को उनकी सीमांत उत्पादकताओं के अनुसार पुरस्कार दिये जाये तो कुल उत्पादन पूर्णतया
वितरित हो जाएगा।
उत्पादन के पूर्णरुपेण विभाजित हो जाने की समस्या को यूलर प्रमेय की सहायता से और अधिक स्पष्ट रूप से सिद्ध कर सकते है। सामान्य उत्पादन फलन `P=\sqrt{ab}` को लेते हैं जिसमे a तथा b दो साधनो A और B की मात्राओं को व्यक्त करते है। माना कि यही दो साधन किसी वस्तु के उत्पादन के लिए आवश्यक है।
\The Partial derivatives
of this function becomes
`\frac{\partial P}{\partial a}=\frac{1}2a^{-1/2}.b^{1/2}`
`or,\frac{\partial P}{\partial a}=\frac1{2\sqrt a}.\sqrt b`
`or,\frac{\partial P}{\partial a}=\frac{\sqrt b}{2\sqrt a}`
Again, Pratial
derivatives with respect to b
`or,\frac{\partial P}{\partial a}=a^{1/2}1/2b^{-1/2}`
`or,\frac{\partial P}{\partial a}=\sqrt a.\frac1{2\sqrt b}`
`or,\frac{\partial P}{\partial a}=\frac{\sqrt a}{2\sqrt b}`
इन Pratial derivatives (आंशिक व्युत्पन्नो) के मूल्यों को यूलर प्रमेय
`P=\frac{dp}{da}.a+\frac{dp}{dp}.b`में प्रतिस्थापित करने पर हमें निम्न समीकरण प्राप्त होता है
`P=\frac{\sqrt b}{2\sqrt a}.a+\frac{\sqrt a}{2\sqrt b}.b`
`P=\frac{\sqrt b\sqrt a}2+\frac{\sqrt a\sqrt b}2`
`P=\sqrt b\sqrt a`
इसे निम्न उदाहरण द्वारा
सिद्ध किया जा सकता है। माना कि किसी वस्तु के उत्पादन में प्रयुक्त दो साधनो A और
B की मात्राएँ क्रमशः 4 और 16 है, तो उत्पादन फलन मे
`P=\sqrt{ab}=\sqrt{4\times16}=\sqrt{64}=8`
साधनों की दो मात्राओं को
यूलर प्रमेय के निकाले गये उपयुक्त रूप में
`P=\sqrt b\sqrt a=\sqrt{16}\sqrt4=4\times2=8`
इस प्रकार यूलर प्रमेय की
सहायता से यह प्रमाणित होता है कि यदि सभी साधनों को उनकी सीमांत उत्पादकताओं के
अनुसार पारिश्रमिक दिए जाते है तो कुल उत्पादन पूर्णतया वितरित हो जायेगा।
योगीकरण समस्या के विकस्टीड
के समाधान की वालरस, बरोन, एजवर्थ और पेरेटो द्वारा आलोचना की गई। जो
निम्नलिखित है -
(1) आलोचको का मत है कि
उत्पादन फलन प्रथम डिग्री का समरूप फलन नहीं है अर्थात् वास्तविक जगत मे पैमाने के
प्रतिफल स्थिर नहीं होते ।
(2) जब कोई फर्म पैमाने के
बढ़ते प्रतिफल के अन्तर्गत कार्य कर रही होती है तो सभी साधनों को उनकी सीमांत उत्पादकताओं
के बराबर पारिश्रमिक देने पर कुल पारिश्रमिक की मात्रा कुल उत्पादन से अधिक होगी
इसके विपरीत, यदि फर्म पैमाने के घटते प्रतिफल के अन्तर्गत काम कर रही होती है तो
साधनों को उनकी सीमांत उत्पादकताओं के समान पारिश्रमिक देने पर कुल उत्पादन
पूर्णतया वितरित नहीं होता, बल्कि कुछ शेष बच रहेगा। इस प्रकार निष्कर्ष निकलता है
कि पैमाने के बढ़ते-घटते प्रतिफल प्राप्त होते है तो यूलर प्रमेय लागू नहीं होता और
इस प्रकार योगीकरण समस्या का समाधान नहीं होता।
(3) विकस्टीड की एक और
त्रुटि यह बताई गई है कि जब पैमाने के स्थिर प्रतिफल प्राप्त हो तो दीर्घकालीन औसत
लागत वक्र क्षितिज के समानान्तर सरल रेखा होता है जो पूर्ण प्रतियोगिता के विरुद्ध
है।
हिक्स और सैम्यलुसन ने उत्पादन निर्वातन समस्या (Product Exhausion Problem) के समाधान को स्पष्ट किया कि उत्पादन निर्वातन समस्या का समाधान उत्पादन फलन के स्वरूप अर्थात् कि क्या इसके अनुसार पैमाने के स्थिर प्रतिफल होते है, पर निर्भर नहीं अपितु यह तो पूर्ण प्रतियोगिता की मार्केट दशाओं पर निर्भर करता है। उनके अनुसार दीर्घकाल में फर्मों द्वारा उद्योग में प्रवेश व उससे बाहर चले जाने की स्वतंत्रता के कारण पूर्ण प्रतियोगिता के अन्तर्गत फर्मों का संतुलन दीर्घकालीन औसत लागत वक्र के निम्नतम बिन्दु पर स्थापित होता है जहाँ पर उन्हें न तो कोई आर्थिक लाभ और न कोई हानि होती है। इसे चित्र द्वारा स्पष्ट कर सकते हैं -
सीमांत उत्पादकता सिद्धांत
के अनुसार साधनों को उनके सीमांत उत्पादकता के बराबर पारिश्रमिक प्राप्त होता है और
पूर्ण प्रतियोगिता सिद्धांत के अनुसार दीर्घकाल में फर्म को शून्य आर्थिक लाभ प्राप्त
होते है से यह निष्कर्ष निकलता है कि पदार्थ तथा साधनों (श्रम व पूँजी) की मार्केटों में पूर्ण प्रतियोगिता
के अन्तर्गत दीर्घकालीन सन्तुलन की अवस्था में फर्म के आर्थिक लाभ शून्य होने के कारण योगीकरण
समस्या अथवा उत्पादन निर्वातन समस्या का समाधान सम्भव
होता है।
गणितीय दृष्टि से शून्य आर्थिक
लाभ की स्थिति का अभिप्राय यह है कि कुल उत्पादन का मूल्य कुल उत्पादन लागत के समान
है। इसे उदाहरण से स्पष्ट कर सकते हैं:-
माना कि L श्रम, K पूँजी, w मजदूरी की दर, r पूँजी की कीमत तथा Q पदार्थ के उत्पादन को व्यक्त
करते है।
उपर्युक्त रेखा चित्र में
पूर्ण प्रतियोगिता के अन्तर्गत दीर्घकालीन संतुलन दीर्घकालीन औसत लागत वक्र के निम्नतम
बिन्दु E पर होगा।अतः
उत्पादन का कुल मूल्य = कुल
लागत
P.Q = Lw+Kr ---------(1)
अब वितरण के सीमांत उत्पादकता
सिद्धांत के अनुसार साधनों को उनके सीमांत उत्पादन के मूल्य के समान पारिश्रमिक प्राप्त
होते है। अतः
w = VMPL =
P.MPPL -------(2)
r =VMPK =
P.MPPK -------(3)
w तथा r के इन मूल्यों को समीकरण(1) में रखने पर
P.Q = L. P.MPPL +
K. P.MPPK
इस प्रकार समीकरण (4) से सिद्ध होता है कि पदार्थ
की कीमत दी हुई होने पर यदि साधनों को उनके सीमांत उत्पादनों के समान पारिश्रमिक प्राप्त
होने की दशा में अर्थात् w = MPPL तथा r = MPPK की स्थिति
में कुल उत्पादन पूर्णतः वितरित हो जाएगा।
निष्कर्ष
उपर्युक्त विवेचनाओं से स्पष्ट है कि पूर्ण प्रतियोगिता में दीर्घकालीन संतुलन दीर्घकालीन औसत लागत वक्र के निम्नतम बिन्दु पर स्थापित होता है, जिससे उत्पादन निर्वातन की समस्या या योगीकरण की समस्या का समाधान होता है। तथा U आकृति के दीर्घकालीन औसत लागत वक्र के निम्नतम बिन्दु पर पैमाने के प्रतिफल स्थिर होते है।
भारतीय अर्थव्यवस्था (INDIAN ECONOMICS)
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