प्रश्न :- खेल सिद्धांत (प्रमेय) की
व्याख्या करे
उत्तर:-
प्रो.वॉन न्यूमन तथा
मॉरगनस्टर्न ने अपनी पुस्तक "The Theory of Games
and Economic Behaviour" जो
कि 1944 में प्रकाशित हुई, में ,परस्पर विरोधी स्थितियों
वाली विभिन्न समस्याओं के प्रति एक नया दृष्टिकोण प्रदान किया
प्रो.
न्यूमैन एवं मार्जेन्सटर्न के शब्दों में, "हल की तात्कालिक विचारधारा यह है कि
प्रत्येक भाग लेने वाले (खिलाड़ी) के लिए तर्कपूर्ण नियमों का एक ऐसा सेट हो जो यह निर्देशित
करें कि उत्पन्न होने वाली प्रत्येक संभव स्थिति में उसे कैसा व्यवहार करना चाहिए।"
खेल सिद्धांत की मौलिक धारणाएं
(1)
प्रत्येक खेल के कुछ मौलिक नियम होते है जिनका अनुपालन करना प्रत्येक खिलाड़ी के
लिए अनिवार्य होता है।
(2)
खेल में भाग लेने वाला खिलाड़ी कहलाता है। एक ही खेल में भाग लेने वाले खिलाड़ी
परस्पर प्रतिद्वंद्वी होते है
(3)
प्रत्येक खिलाड़ी एक विशिष्ट तरकीब
(specifc Strategy) का प्रयोग
करता है। एक विशिष्ट तरकीब से एक निश्चित परिणाम की संभावना होती है।
(4)
प्रत्येक खिलाड़ी अपनी चुनी विशिष्ट तरकीब के अन्तर्गत विभिन्न चालों का प्रयोग करता
है। खिलाड़ी की प्रत्येक चाल के विरोधी खिलाड़ी के लिए अनेक विकल्प होते है।
(5)
विरोधी खिलाड़ी उपलब्ध विकल्पों में से जिस विकल्प विशेष
का चुनाव
करता है वह चुनाव कहलाता है।
(6)
प्रत्येक खिलाड़ी अपनी तरकीब (strategy) अपनाते समय यह मान लेता है कि प्रतिक्रियास्वरूप
उसका प्रतिद्वन्दी जिस तरकीब का प्रयोग करेगा वह उसके लिए सबसे अधिक हानिकारक होगी।
इस प्रकार प्रत्येक खिलाड़ी सुरक्षित खेल की नीति अपनाता है।
(7)
प्रत्येक खिलाड़ी द्वारा अपने विरोधी खिलाड़ी की चाल की प्रतिक्रिया के रूप में अपनाई गई
तरकीबें उसकी प्रदेयक (Pay-off) कहलाती है।
(8)
संतुलन बिन्दु अथवा परिणाम बिन्दु खेल का प्रल्याण बिन्दु (Saddle
Point) होता है।
मान्यताऐ
(1)
बाजार में द्वैयाधिकारी
स्थिति उपस्थित है
(2)
खेल के नियमों के अनुसार प्रत्येक अल्पाधिकारी विक्रेता को जितना
अधिक लाभ होगा उतना ही विरोधी विक्रेता को कम लाभ होगा
(3)
प्रत्येक अल्पाधिकारी विक्रेता को
अपने विरोधी विक्रेताओं की संभावित प्रतिक्रियाओं का ज्ञान होता है।
(4)
परस्पर प्रतियोगी विक्रेताओं के स्वार्थ आपस में विरोधी होते है
(5)
दोनों विक्रेताओं के लिए खेल के परिणाम का योग एक स्थिर राशि होती है।
प्रल्याण बिन्दु (Saddle Point)
जब प्रदेयक मैट्रिक्स (Pay-off-matrix) में Minimax तथा Maximin परस्पर समान हो तो वह पूर्ण निश्चित खेल होता है जिसमें लाभ निर्धारणीच है। जैसे
इसमें Maximin
तथा Minimax आपस में समान है। ऐसे
निश्चित खेल में दोनों खिलाड़ियों के लिए एक निश्चित लाभ की गारंटी होती है। इस
खेल में कोई भी खिलाड़ी अपने निश्चित लाभ की मात्रा से न तो कम ही जीत सकता है और
न अधिक ही। ऐसे खेल में संतुलन बिन्दु को Saddle Point की संज्ञा
दी जाती है।
प्रो. बाॅमोल के शब्दों में, "संतुलन बिन्दु में स्थिरता का तत्व होता है क्योंकि यदि एक खिलाड़ी इस बिन्दु को प्राप्त करने के लिए एक संगत तरकीब अपनाता
है तो दूसरे खिलाड़ी को तदनुसार कार्य करने की प्रेरणा मिलती है।"
यही कारण है कि पूर्ण निश्चित खेल में विशुद्ध तरकीब के साथ
द्वैयाधिकारियों को परस्पर निर्भरता की नीति अपनाने की कोई आवशकता नहीं रहती
क्योंकि पल्याण बिन्दु की उपस्थिति के बाद विक्रेता A द्वारा अपनाई गई Maximin तरकीब
विक्रेता B की Minimax तरकीब में कोई सुधार नहीं कर सकती। इस प्रकार में
द्वैयाधिकार में स्थिति पूर्ण निश्चित हो जाती है। इसी आधार पर द्वैयाधिकार
विक्रेता अपने लाभों को अधिकतम एवं हानियों को न्यूनतम करने का प्रयास करते हैं।
महत्त्व
(1) खेल सिद्धांत इस बात की व्याख्या करने का प्रयत्न करता
है कि द्वैधिकार समस्या कैसे निर्धारित नहीं हो सकती है। यह द्वैधिकारियो को किसी
तरह सहमत होने के लिए मार्ग-दर्शक का कार्य करता है।
(2) यह सिद्धांत सहयोगी गैर स्थिर राशि तथा गैर सहयोगी गैर-स्थिर राशि खेलों
की मदद से दो से अधिक फर्मों की स्थिति में भी बाजार के संतुलन की व्याख्या का
प्रयास करता है
(3) इस सिद्धांत में 'कैदी की दुविधा'
सामूहिक निर्णयकरण और सहयोग की आवश्यकता पर बल देता है।
(4) खेल सिद्धांत व्यापार, श्रम और प्रबन्धन की समस्याओं को
हल करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
(5) यह सिद्धांत आर्थिक विश्लेषण में गणितीय प्रत्याशा के
महत्व पर प्रकाश डालता है।
खेल सिद्धांत की सीमाएँ या आलोचनाएँ
खेल सिद्धांत की अवास्तविक मान्यताएं इसके प्रयोग को सीमित
कर देती है। अवास्तविक मान्यताओं के कारण ही इसकी आलोचनाएँ भी हुई है। इसके
अतिरिक्त इसके प्रयोग की कुछ अन्य सीमाएँ भी है। खेल सिद्धांत की सीमाओं एवं इसकी
आलोचनाओं को निम्न बिन्दुओं के द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है
(1) इस सिद्धांत की एक प्रमुख मान्यता है कि खेल में भाग
लेने वाले प्रत्येक खिलाड़ी को अपने विरोधी की संभावित प्रतिक्रियाओं या चालो की
जानकारी होती है। लेकिन यह वास्तविक नहीं है। वास्तविकता तो यह है कि किसी खिलाड़ी
को अपने द्वारा अपनाया जा सकने वाली सभी वैकल्पिक कूटनीतियों का भी ज्ञान नहीं
होता। प्रत्येक खिलाड़ी अपने विरोधी खिलाड़ी की संभावित प्रतिक्रिया (या कूटनीति)
का केवल अनुमान लगा सकता है। इस प्रकार अवास्तविक मान्यता पर आधारित इस सिद्धांत
के परिणाम भी अवास्तविक हो जाते हैं।
(2) खेल सिद्धांत में प्रत्येक खिलाड़ी से विवेकशील निर्णय
की उम्मीद की जाती है। प्रत्येक खिलाड़ी यह मान कर अपनी चाले चलता है कि उसका
प्रतिद्वंद्वी समझदारी से उसका जवाब देगा लेकिन, वास्तव में ऐसा नहीं होता है और
यदि ऐसा नहीं होता है तो खिलाड़ी न तो Minimax Strategy अपनाएगा
और न ही Maximin strategy का ही सहारा ले सकेगा। इस प्रकार, खेल
सिद्धांत का व्यवहार में प्रयोग सीमित हो, जाता है।
(3) खेल
सिद्धांत के अन्तर्गत एक खिलाड़ी के विरुद्ध दूसरे खिलाड़ी द्वारा अपनायी जाने
वाली कूटनीतियों की एक अनंत श्रृंखला का जन्म होता है जिसमे किसी हल या संतुलन की
प्राप्ति काल्पनिक हो जाता है। जब पहला खिलाड़ी (माना A) के द्वारा कोई कूटनीति
अपनाया जाता है तो दूसरे खिलाड़ी (B) द्वारा जवाब में कई कूटनीतियाँ अपनाई जाती है। पुनः पहला
खिलाड़ी उसकी जवानी कूटनीति अपनाता है इस प्रकार कूटनीतियों की श्रृंखला का
निर्माण हो जाता है तथा ऐसी स्थिति में किसी हल की उम्मीद करना उचित प्रतीत नहीं
होता है।
(4) खेल सिद्धांत दो खिलाड़ियों की उपस्थिति में सहज प्रतीत
होता है किंतु जब खेल सिद्धांत की विचारधारा के तीन या चार खिलाड़ियों के खेल एवं
उनकी तरकीबों तक विस्तृत किया जाता है तब खेल सिद्धांत के परिणाम की प्रक्रिया
जटिल एवं समस्यापूर्ण बन जाती है।
(5) अन्य द्वैयाधिकारी माॅडलों के अनुरुप खेल सिद्धांत द्वैयाधिकार समस्या का संतोषजनक हल प्रस्तुत करने में असफल रहा है। न्यूमैन एवं मार्जेन्सटर्न की पुस्तक "Although games theory has developed for since (1944)" के प्रकाशन के बाद अल्पाधिकारी समस्या के संगत समाधान की आशा की गई थी किन्तु परिणाम निराशाजनक ही रहा। प्रो. डोनाल्ड वॉटसन के शब्दों में, "यदापि 1944 से खेल सिद्धांत का विकास हुआ है परन्तु अल्पाधिकारी सिद्धान्त के प्रति योगदान निराशाजनक रहा है।"
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