प्रश्न:- परिवर्तनशील अनुपात का
नियम की विवेचना कीजिए तथा उसके लागू होने की दशाओं की व्याख्या करें।
☞ उत्पत्ति ह्वास
नियम के परिवर्तनशील अनुपात नियम की व्याख्या कीजिए। क्या यह केवल कृषि में लागू
होता है?
☞ उत्पत्ति ह्वास
नियम का कारण उत्पादन के साधनों की सीमितता तथा उनके बीच अपूर्ण स्थानापन्न है।
व्याख्या करें।
☞ विविध अनुपात नियम
की व्याख्या करें।
☞ साधन के प्रतिफल
नियम की व्याख्या करें।
☞ चल अनुपात नियम की
व्याख्या करें।
उत्तर:- परिवर्तनशील अनुपात का नियम अल्पकालीन
उत्पादन फलन हो तो अल्पकाल में उत्पादन के केवल परिवर्तनशील साधनों को परिवर्तित
कर उत्पादन को घटाया बढ़ाया जा सकता है। सिर्फ परिवर्तनशील साधनों को एक दिए हुए
अनुपात में परिवर्तित करने से उत्पादन में जिस अनुपात में परिवर्तन होता है, उसे
परिवर्तनशील अनुपात का नियम कहते हैं।
प्रो. मार्शल के अनुसार, "यदि कृषि कला में कोई
प्रगति न हो तो कृषि में लगाई जाने वाली पूंजी एवं श्रम की वृद्धि से कुल उपज में
सामान्यतः अनुपात में कम वृद्धि होती है।"
प्रो स्ट्रिगलर ने अपनी पुस्तक "Theory of Price" में लिखा है,"जैसे
जैसे एक साधन के बराबर मात्राएँ बढ़ाई जाती है तथा दूसरे साधन की मात्राएँ स्थिर
रखी जाती है तो एक स्थिति के बाद उत्पादन में होने वाली वृद्धि कम होने लगती है
अर्थात् सीमांत उत्पादन घटने लगता है।"
मान्यताऐ
परिवर्तनशील अनुपात का नियम निम्न मान्यताओं पर आधारित है:
1) उत्पादन के साधनों
के संयोग के
अनुपात में परिवर्तन किया जा सकता है।
उत्पादन का एक साधन परिवर्तनशील होते हैं जबकि अन्य साधन स्थिर रहते हैं।
2) परिवर्तनशील साधन की सभी इकाईयां समरूप होती है।
3) उत्पादन के तकनीक में कोई परिवर्तन नहीं होता ।
4) यह नियम अल्पकाल में लागू होता है।
5) उत्पादन को मौलिक इकाईयों में मापा जाता है तथा यह उत्पादन
के सभी क्षेत्रों में लागू होता है।
उत्पादन ह्वास नियम की प्राचीन व्याख्या
परिवर्तनशील साधन को वैज्ञानिक, तार्किक एवं क्रमबद्ध बनाने
का श्रेय प्रो. मार्शल को मिला ।
यदि कृषि
कला में एक साधन को स्थिर रखकर अन्य
साधनों में वृद्धि की जाती है, तो
कुल उत्पादन में वृद्धि बढ़ती हुई दर से होती
है। अर्थात सीमांत उत्पादन घटता जाता है।
भूमि स्थिर साधन |
श्रम एवं पूँजी की इकाई |
कुल उत्पादन (kg) |
सीमांत उत्पादन(kg) |
1 एकड़ |
11 |
440 |
40 |
1 एकड़ |
12 |
470 |
30 |
1 एकड़ |
13 |
490 |
20 |
1 एकड़ |
14 |
500 |
10 |
उपर्युक्त तालिका में भूमि एक स्थिर साधन है तथा श्रम एवं पूँजी की इकाईयों में वृद्धि की जाती है तो उत्पादन क्रमश: 40, 30, 20, 10 kg का होता है अर्थात् सीमांत उत्पादन घटने लगता है। इसे एक रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट कर सकते हैं
DR रेखा झुकी हुई है जो इस बात का प्रतीक है कि जैसे-जैसे
श्रम एवं पूंजी की इकाईयों में वृद्धि की जाती है, सीमांत उत्पादन घटता जाता है। इसी
प्रवृत्ति को उत्पादन ह्वास नियम कहते हैं।
परिवर्तनशील नियम का आधुनिक व्याख्या
अन्य साधनों को स्थिर रखकर जब किसी एक साधन में परिवर्तन
करने से उत्पादन में जो परिवर्तन होगा, उसे निम्नलिखित काल्पनिक उदाहरण द्वारा स्पष्ट
कर सकते है-
स्थिर साधन (ƒ) |
परिवर्तनशील साधन (V) |
कुल उत्पादन (TP) |
औसत उत्पादन (AP) |
सीमांत उत्पादन (MP) |
1 |
1 |
6 |
6 |
6 |
1 |
2 |
16 |
8 |
10 |
1 |
3 |
30 |
10 |
14 |
1 |
4 |
40 |
10 |
10 |
1 |
5 |
45 |
9 |
5 |
1 |
6 |
48 |
8 |
3 |
1 |
7 |
48 |
6.8 |
0 |
1 |
8 |
44 |
5.5 |
-4 |
1 |
9 |
38 |
4.2 |
-6 |
तालिका से स्पष्ट है कि जैसे-जैसे परिवर्तनशील साधन
में वृद्धि की जाती है सीमांत उत्पादन पहले बढ़ता है उसके बाद घटता है तथा शून्य
या ऋणात्मक भी हो जाता है।
इसे एक रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट कर सकते हैं
उपर्युक्त रेखाचित्र में TP कुल उत्पादन वक्र है
जो OK तक
तीव्र गति से बढ़ता है तथा उसके बाद KT
तक धीमी गति से बढ़ता बढ़ता है तथा उसके बाद K के बाद घटने लगता है।
OX अक्ष = परिवर्तनशील साधन की मात्रा
OY अक्ष = उत्पादन की मात्रा
TPC = कुल उत्पादन की रेखा
MPC = सीमांत उत्पादन की रेखा
APC = औसत उत्पादन की रेखा
इसे गणितीय विधि द्वारा निकाल सकते है।
Y = ƒ (V.F)
जहाँ,
Y = उत्पादन
V = परिवर्तनशील साधन
F = सिार साधन
ƒ = फलन
Let, Y = 6ax -x4
`\frac{dY}{dX}`= 6a – 4x3 > 0
अतः उत्पादन की ढाल धनात्मक
होगी।
`\frac{d^2Y}{dX^2}`= – 12x2 < 0
अतः उत्पादन की ढाल ऋणात्मक
होगी।
`\frac{d^3Y}{dX^3}`= – 24x < 0
अतः उत्पादन की ढाल ऋणात्मक
होगी।
`\therefore\frac{d^3Y}{dV^3}<0`
O – K → `\frac{d^2Y}{dV^2}>0`
K – T →`\frac{d^2Y}{dV^2}<0`
O – T → `\frac{d^2Y}{dV^2}>0`
T – TP → `\frac{d^2Y}{dV^2}<0`
MP सीमांत
उत्पादन का वक्र है जो नीचे की ओर गीर रहा है।
`\frac{d^2M}{dV^2}<0`
AP औसत
उत्पादन वक्र है जो नीचे की ओर गीर रहा है।
`\frac{d^2A}{dV^2}<0`
सीमांत उत्पादन एवं कुल उत्पादन में संबंध
जब तक सीमांत उत्पादन
धनात्मक है कुल उत्पादन बढ़ता है, जब सीमांत उत्पादन शून्य होता है तो कुल उत्पादन
अधिकतम होता है तथा जब सीमांत उत्पादन ऋणात्मक होता है तो कुल उत्पादन घटने लगता
है।
औसत उत्पादन एवं सीमांत उत्पादन में संबंध
जब तक औसत उत्पादन बढ़ता है तो सीमांत उत्पादन इसके ऊपर
होता है, जब औसत उत्पादन घटता
है तब सीमांत उत्पादन इसके नीचे हो जाता है। औसत उत्पादन के अधिकतम बिंदु पर
सीमांत उत्पादन इसे काटता है।
परिवर्तनशील अनुपात नियम की अवस्थाएँ :
अन्य साधनों को स्थिर रखकर जब परिवर्तनशील साधनो में वृद्धि की जाती है
तो उत्पादक के व्यवहार को निम्नलिखित तीन अवस्थाओं में बाँटा जा सकता है
प्रथम अवस्था :- रेखाचित्र में KN
के बाई ओर के भाग को प्रथम अवस्था कहा जाता है। जब औसत उत्पादन अधिकतम होता है तो
प्रथम अवस्था समाप्त हो जाती है।
इस अवस्था में कुल उत्पादन में तीव्र गति से वृद्धि होती है। सीमांत उत्पादन बढ़कर फिर
घटना प्रारंभ करता है तथा औसत उत्पादन बढ़ता है। इसलिए प्रथम अवस्था को उत्पत्ति
वृद्धि नियम की अवस्था कहा जाता है।
इस अवस्था में स्थिर साधन की अपेक्षा परिवर्तनशील साधन इतना अधिक होता है कि उसका पूर्ण उपयोग नहीं हो पाता
है। इसलिए स्थिर साधन का सीमांत उत्पादन जब ऋणात्मक होता है तब परिवर्तनशील साधन को बढ़ाने के लिए श्रम विभाजन एवं विशिष्टिकरण संभव
होता है। बड़े पैमाने के उत्पादन का लाभ प्राप्त
होता है, एवं स्थिर साधन के अप्रयुक्त भाग का भी प्रयोग होने लगता है तथा फर्म के व्यवस्था में भी सुधार आता है। इसलिए उत्पादन में तीव्र गति
से वृद्धि होती है।
द्वितीय अवस्था :- रेखाचित्र में KN, TS के बीच के भाग को दूसरी अवस्था
कहा जाता है। जहाँ सीमांत उत्पादन शून्य एवं कुल उत्पादन अधिकतम होता है। द्वितीय अवस्था समाप्त हो जाता है। इस अवस्था
में कुल उत्पादन में घटते हुए दर पर वृद्धि होती है। औसत उत्पादन एवं सीमांत उत्पादन घटता है। इसलिए इसे ह्वासमान
उत्पादन कहा जाता है । इस अवस्था में स्थिर
एवं परिवर्तनशील दोनों साधनों का पूर्ण उपयोग होता है तथा धीरे-धीरे स्थिर साधन पर दबाव बढ़ता जाता है। बड़े पैमाने
के उत्पादन की हानियां प्रारंभ होती है, नियंत्रण,
निरीक्षण एवं समन्वय कठीन होने लगता है। इसलिए उत्पादन में घटते हुए दर पर वृद्धि होती
है।
तृतीय अवस्था :- रेखाचित्र में TS
से दाहिनी ओर के भाग को तृतीय अवस्था कहते है। इस अवस्था में कुल उत्पादन घटने
लगता है। औसत, उत्पादन घटता रहता है एवं सीमांत उत्पादन ऋणात्मक हो जाता है। इसलिए
इस अवस्था को ऋणात्मक उत्पत्ति की अवस्था कहा जाता है। इस अवस्था में स्थिर साधन
की अपेक्षा परिवर्तनशील साधन इतना अधिक हो जाता है कि कुल उत्पादन घटने लगता है।
सीमांत उत्पादन ऋणात्मक हो जाता है।
विवेकशील उत्पादक :- कोई भी विवेकशील उत्पादक प्रथम अवस्था में उत्पादन करना
नहीं चाहेगा क्योंकि इस अवस्था में स्थिर साधन का एक भाग अप्रयुक्त रहता है तथा
इसका सीमांत उत्पादन ऋणात्मक होता है। कोई भी विवेकशील उत्पादक तृतीय अवस्था में
भी उत्पादन करना नहीं चाहेगा, क्योंकि इसका सीमांत उत्पादक ऋणात्मक होता है। अतः विवेकशील उत्पादक द्वितीय अवस्था में उत्पादन करना चाहेगा। जहाँ स्थिर एवं
परिवर्तनशील दोनों साधनों का सीमांत उत्पादन धनात्मक होता है।द्वितीय अवस्था में
किस वस्तु का उपादन किया जाएगा, यह साधन की उपलब्धि एवं मूल्य पर निर्भर करेगा। अगर परिवर्तनशील
साधन आसानी से कम मूल्य पर उपलब्ध हो, तो उत्पादक द्वितीय अवस्था में N बिंदु के निकट उत्पादन करेगा। अगर
साधन अभाव ग्रस्त एवं ऊंचे मूल्य पर उपलब्ध हो, तो उत्पादक द्वितीय अवस्था में S बिंदु के निकट उत्पादन करेगा।
परिवर्तनशील अनुपात का नियम लागू होने के कारण
परिवर्तनशील अनुपात का नियम लागू होने के निम्नलिखित
कारण है:
(i) स्थिर साधनों का अनुकूलतम उपयोग :- आरंभ में स्थिर साधन की मात्रा
परिवर्तनशील साधन की तुलना में बहुत अधिक होती है। इसलिए परिवर्तनशील साधन की
अतिरिक्त इकाईयां स्थिर साधन की समान मात्रा के साथ उत्पादन के लिए प्रयोग की जाती
है। जिसमें स्थिर साधन का अधिक गहन एवं पूर्ण रूप से उपयोग होता है।
(ii) श्रम विभाजन एवं विशिष्टिकरण :- दूसरा कारण जिसमें प्रथम अवस्था
में तो बढ़ते प्रतिफल प्राप्र होते हैं जिसमें परिवर्तनशील साधन की मात्रा बढ़ाई
जाती है तो स्वयं परिवर्तनशील साधन की कार्यकुशलता बढ़ती है। परिवर्तनशील साधन की
मात्रा जितनी अधिक होगी श्रम विभाजन एवं विशिष्टिकरण उतना ही अधिक संभव होगा और
फलस्वरूप उत्पादकता तथा कार्यकुशलता का स्तर उतना ही अधिक ऊंचा होगा।
(iii) अविभाज्यता :- घटते अथवा ह्मसमान प्रतिफल भी बढ़ते
प्रतिफल की तरह स्थिर साधन की अविभाज्यता के कारण उत्पन्न होते है। जब परिवर्तनशील
साधन की मात्रा और बढ़ाने से इष्टतम अनुपात नहीं रहता तो परिवर्तनशील साधन का औसत
उत्पादन अथवा प्रति इकाई प्रतिफल घट जाता है।
यदि स्थिर साधन पूर्णतया विभाज्य होता तो न बढ़ते प्रतिफल
और न ही घटते प्रतिफल प्राप्त होते है। साधनों की पूर्ण विभाज्यता का अर्थ है कि
एक छोटा फर्म जिसमें एक छोटी मशीन एक श्रमिक काम करता है उतना ही कार्यकुशल होगा
जितना कि बड़ा फर्म, जिसमें बड़ी मशीने तथा बहुत संख्या में श्रमिक कार्य करते हैं
इससे औसत उत्पादकता दोनों में समान होती है।
(iv) साधनों की सीमितता एवं
प्रतिस्थापनता का अभाव :- जॉन रोबिन्सन का विचार है कि घटते प्रतिफल इसलिए होते
है क्योंकि उत्पादन के साधन एक दूसरे के लिए अपूर्ण प्रतिस्थापक होते हैं। द्वितीय
अवस्था में एक दुर्लभ साधन की स्थिर मात्रा को परिवर्तनशील साधन की बढ़ती हुई
मात्रा के साथ लेना पड़ता है जिससे इष्टतम अनुपात के पश्चात घटते प्रतिफल प्राप्त
होते है। इस संबंध में जॉन रॉबिन्सन लिखती है कि, " घटते प्रतिफल का नियम
वास्तव में यह बताता है कि एक उत्पादन के साधन को दूसरे साधन से प्रतिस्थापित कर
सकने की एक सीमा होती है।"
(v) उत्पादन की मितव्ययिताएँ एवं
अमितव्ययिताएँ :- उत्पादन
में जब बाहरी एवं आंतरिक बचते प्राप्त होने लगती है तो उत्पादन वृद्धि नियम
क्रियाशील हो जाता है लेकिन एक सीमा के बाद मितव्ययिताएँ अमितव्ययिताओं में बदल
जाती है जिसके फलस्वरूप उत्पादन के क्षेत्र में उत्पादन ह्मासनियम क्रियाशील हो
जाता है।
परिवर्तनशील अनुपात के नियम की मौलिकता
परिवर्तनशील अनुपात का नियम उत्पादन का एक मौलिक नियम
है। इसका संबंध केवल कृषि से नहीं है। उत्पादन के सभी क्षेत्रों में यह लागू होता
है।
प्रो० बेनहम के शब्दों में, " भूमि या कृषि में
कोई खास बात नहीं है। यह नियम प्रत्येक साधन के संबंध में प्रत्येक व्यवसाय में
लागू होता है।"
प्रो. विकस्टीड ने कहा, "यह नियम उतना ही व्यापक है जितना
स्वयं जीवन का नियम"।
प्रो० केयरनेस के अनुसार, "यदि यह नियम लागू न
हो तो अर्थशास्त्र इस प्रकार पूर्णतया बदल जाऐगा, मानों मनुष्य का स्वभाव ही बदल
गया हो।"
अतः परिवर्तनशील अनुपान का नियम को तार्किक आवश्यकता
का विषय कहा गया है। आर्थिक विश्लेषण एवं नीति निर्धारण में इस नियम का महत्वपूर्ण
स्थान है।
निष्कर्ष
परिवर्तनशील अनुपात का नियम अर्थशास्त्र का एक
महत्वपूर्ण नियम है जिसमें स्थिर साधनों के साथ परिवर्तनशील साधन बढ़ाने से
उत्पादन में कैसा परिवर्तन होगा यह पता चलता है। इसके साथ यह भी ज्ञात होता है कि
एक विवेकशील उत्पादक को किस बिंदू पर उत्पादन करना चाहिए।
यह सिद्धांत केवल कृषि क्षेत्रों में ही लागू नहीं होता बल्कि यह उत्पादन के प्रत्येक क्षेत्र में लागू होता है।
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