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IS - LM व्याख्या या ब्याज का आधुनिक सिद्धांत

IS - LM व्याख्या या ब्याज का आधुनिक सिद्धांत

IS - LM व्याख्या या ब्याज का आधुनिक सिद्धांत

प्रश्न :- ब्याज के हिक्स - हैन्सन सिद्धांत की आलोचनात्मक व्याख्या करे?

ब्याज का आधुनिक सिद्धांत या IS - LM वक्र या कर्जदार कोष एवं केन्स सिद्धांत का मालन की आलोचनात्मक व्याख्या करें?

उत्तर- हिक्स, लर्नर तथा हेन्सन जैसे आधुनिक अर्थशास्त्रियों ने केन्स के ब्याज सिद्धांत तथा ऋणयोग्य-कोष सिद्धांत के कुछ महत्त्वपूर्ण अंशो को मिलाकर एक नवीन सिद्धांत प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। उनके विचारानुसार, ऋयोग्य-कोष सिद्धांत तथा तरलता अधिमान सिद्धांत दोनों ही अलग-अलग होने पर ब्याज निर्धारण की सन्तोषजनक व्याख्या प्रस्तुत नहीं करते हैं, परन्तु यदि इन दोनों का समन्वय कर दिया जाय तो ब्याज का एक उचित तथा निर्धारणीय सिद्धांत बनाया जा सकता है। आधुनिक सिद्धांत को नव-केन्सियन सिद्धांत भी कहा जाता है। नव प्रतिष्ठित, तथा नव-केन्सियन सिद्धान्तों का समन्वय करने से हमे चार तत्त्व प्राप्त होते है - निवेश, बचत, तरलता अधिमान तथा मुद्रा की मात्रा। आधुनिक सिद्धांत के अनुसार ब्याज का निर्धारण इन चारों तत्त्वों पर निर्भर करता है। इस प्रकार मौद्रिक तथा, वास्तविक तत्त्व एक साथ ब्याज निर्धारण का आधार बन जाते है।

प्रो. हेन्सन के अनुसार, ब्याज दर के निर्धारक तत्व चार है जो निम्नलिखित है-

(1) मुद्रा की पूर्ति :- यदि केन्द्रीय बैंक की क्रिया द्वारा मुद्रा की पूर्ति में वृद्धि कर दी जाती है। तरलता अधिमान अनुसूची होने पर मुद्रा की पूर्ति में वृद्धि होने पर आय के प्रत्येक स्तर पर अपेक्षाकृत अधिक मुद्रा ट्टे के उद्देश्य से खी जायगी और ब्याज दर को कम होना पड़ेगा। इसके परिणामस्वरूप LM वक्र दाहिनी ओर सरक जाएगा। LM वक्र के दाहिनी ओर सरकने से नवीन सन्तुलन अवस्था में पहले की अपेक्षा ब्याज दर कम तथा आय का स्तर अधिक होगा। इसे चित्र द्वारा स्पष्ट कर सकते हैं।

IS - LM व्याख्या या ब्याज का आधुनिक सिद्धांत

चित्र में, मुद्रा की दी हुई पूर्ति के साथ LM तथा IS वक्र E बिन्दु पर बराबर है अतः ब्याज की or तथा OY होती है। दि मुद्रा की पूर्ति में वृद्धि हो तो LM दायी ओर सरक जाता है तथा IS के यथावत् रहने पर नवीन संतुलन  G बिन्दु पर होगा। जहां ब्याज की दर E की अपेक्षा कम तथा आय स्तर अधिक होगा यदि केन्द्रीय बैंक मुद्रा की पूर्ति को कम कर दे तो, के प्रत्येक स्तर पर सट्टे के उद्देश्य के लिए कम मुद्रा उपलब्ध होगी और इसके परिणामस्वरूप LM वक्र E के बायी ओर सरक जायगा IS क्र के अपरिवर्तित रहने पर नवीन संतुलन अवस्था बिन्दु T पर प्राप्त होगी जिसके अनुसार पहले की अपेक्षा ब्याज दर ऊँची तथा आय का स्तर कम होगा।

(2) बचत या उपभोग प्रवृत्ति:- जब लोगों की बचत करने की इच्छा कम होती है अर्थात् उपभोग प्रवृत्ति बढ़ती है तो वस्तुओं के लिए समस्त माँग में वृद्धि होगी जिससे एक दी हुयी ब्याज दर पर आय का स्तर बढ़ेगा। इसके परिणामस्वरूप IS वक्र दाहिनी ओर खिसक जायगा। इसे चित्र द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है।

IS - LM व्याख्या या ब्याज का आधुनिक सिद्धांत

माना लिया कि बचत करने की इच्छा में हुई निश्चित कमी ( उपभोग प्रवृत्ति में वृद्धि) से IS वक्र दाहिनी ओर IS' की दिशा को सरक जाता है। LM वक्र स्थिर रहने के कारण सन्तुलन की दशा H पर होती है। जिस पर ब्याज की दर तथा का स्तर E की अपेक्षा अधिक होगे। दूसरी स्थिती में यदि उपभोग प्रवृत्ति में कमी हो जाए (चत बढ़ जाएँ) तो IS वक्र बायी सरक जाएगा जहाँ संतुलन L बिन्दु पर होगा। यहाँ ब्याज की दर तथा आय का स्तर दोनों ही E बिन्दु की अपेक्षा कम होगा।

(3) निवेश :- निवेश में परिवर्तन भी IS क्र को सरकायेंगे। यदि निजी निवेश बढ़ता है तो इसके कारण राष्ट्रीय आय में वृद्धि होगी यह IS वक्र को दाहिनी ओर सरका देगी तथा LM वक्र दिये हुए होने पर ब्याज दर तथा का स्तर बढ़ेगा। इसके विपरीत, यदि किसी कारण निजी निवेश कम होता है तो आय का स्तर गिरेगा। इससे IS वक्र बायी ओर सरक जायगा तथा LM वक्र के दिये होने पर ब्याज दर कम होगी।

(4) तरलता अधिमान :- तरलता अधिमान में परिवर्तत LM वक्र में परिवर्तन उत्पन्न करेंगे। यदि लोगों का तरलता अधिमान बढ़ता है, तो LM वक्र बायी ओर सरक जायेगा। यही कारण है कि मुद्रा की पूर्ति दी हुई होने पर अपेक्षाकृत ऊँचा तरलता अधिमान राष्ट्रीय आय के प्रत्येक स्तर पर ब्याज को बढ़ा देगा तथा IS वक्र के दिये होने पर सन्तुलन ब्याज दर में वृद्धि होगी तथा राष्ट्रीय आय के स्तर में कमी होगी। इसके विपरीत की स्थिती में ठीक इसका उल्टा प्रभाव ब्याज की तथा राष्ट्रीय आय के स्तर पर पड़ेगा।

प्रो. हेन्सन ने अपनी पुस्तक "Monetary theory and Fiscal Policy में लिखा है 'सन्तुलन की स्थिति में मुद्रा की पूर्ति नकप कोषों की मांग के बराबर होती है, ब्याज दर पूँजी की सीमांत क्षमता के बराबर होती है तथा निवेश की मात्रा बचत की सामाना माता के बराबर होती है और ये सभी तत्व एक दूसरे से जुड़े होते हैं। इस प्रकार बचत, निवेश, तरलता व्यधिमान तथा मुद्रा- पूर्ति के चार परिवर्ती तत्त्वों को आय के साथ संयोजित करने से ब्याज-निर्धारण की एक सन्तोषजनक व्याख्या प्राप्त हो जाती है।

आधुनिक सिद्धांत की व्याख्या दो अनुसूचियों पर आधारित है : IS अनुसूची तथा LM अनुसूची। इन्हीं के आधार पर IS तथा LM वक्र बनाये जा सकते है। IS अनुसूची कुल बचत तथा कुल निवेश की समानता को व्यक्त करती है। LM अनुसूची मुद्रा की मांग था पूर्ति में समानता को व्यक्त करती है। बचत एवं निवेश वास्तविक तत्व है और मुद्रा की मांग और पूर्ति मौद्रिक तत्व है। ब्याज की सन्तु‌लित दर पर वास्तविक तथा मौद्रिक तत्त्व सन्तुलन की अवस्था में होते है।

IS वक्र

IS अनुसूची से हमें वास्तविक क्षेत्र के सन्तुलन का पता चलता है। यह आय (Y) तथा ब्याज दरो (r) के विभिन्न संयोजनों द्वारा कुल वास्तविक बचत तथा कुल वास्तविक निवेश के बीच सन्तुलन को व्यक्त करता है। ब्याज दर का निवेश के साथ विपरीत सम्बंध होता है अर्थात् ब्याज दर में वृद्धि निवेश में कमी लाती है, और बचत का के साथ सीधा सम्बंध होता है। अर्थात् आय बढ़ने पर बचत भी बढ़ती है। IS अनुसूची को हम क्र की सहायता से दिखा सकते है।

IS - LM व्याख्या या ब्याज का आधुनिक सिद्धांत

चित्र (a) और (b) में यह दिखाया गया है कि किस प्रकार हम प्रतिष्ठित सिद्धांत से IS वक्र प्राप्त करते है। चित्र (a) से स्पष्ट होता है कि विभिन्न आय स्तरो Y1, Y2, Y3, Y4 और Y5 पर बचत वक्र क्रमश: S1Y1, S2Y2, S3Y3, और S4Y4, S5Y5 है जो कि दिये हुए निवेश वक्र से क्रिया करके ब्याज की दर क्रमशः r5, r4, r3, r2 और r1 निर्धारित करते हैं। विभिन्न आय के स्तरों पर बचत वक्रो तथा निवेश माँग द्वारा निर्धारित विभिन्न आय के स्तरों पर ब्याज की विभिन्न दरों में एक रेखा द्वारा मिलाने से IS वक्र की प्राप्ति होती है।

LM वक्र

तरलता अधिमान क्रिया (L) तथा मुद्रा की पूर्ति (M) भी आय तथा ब्याज दर के बीच सम्बंध स्थापित करते हैं। आय के विभिन्न स्तरों पर तरलता अधिमान अनुसूचियाँ मुद्रा अधिकारी द्वारा निर्धारित की गयी मुद्रा की मात्रा के साथ मिलकर LM अनुसूची का निर्माण करती है, जिसे LM वक्र द्वारा दिखाया जा सकता है। LM वक्र हमे यह बताता है कि एक निश्चित मुद्रा की तरलता अथवा माँग तथा पूर्ति होने पर ब्याज दर तथा आय स्तर में क्या सम्बंध होगा।

IS - LM व्याख्या या ब्याज का आधुनिक सिद्धांत

चित्र (a) से स्पष्ट है कि जैसे आय बढ़ती है, नकदी अधिमान वक्र LP ऊपर को विवर्तित होता जाएगा जिससे मुद्रा की पूर्ति ON पर स्थिर रहने पर ब्याज की दर बढती जाएगी। विभिन्न आय के स्तरो Y1, Y2, Y3, Y4 और Y5 पर नकदी अधिमान वक्र क्रमशः LP1, LP2, LP3, LP4 और LP5 है और उनके अनुसार ब्याज की रे क्रमशः r1, r2, r3, r4 और r5 है। चित्र (a) की सहायता से ही चित्र (b) बनाया गया है जिससे स्पष्ट है कि विभिन्न आय के स्तरों पर विभिन्न ब्याज दरों की बीच संतुलन बिन्दु को मिलाने से LM वक्र प्राप्त होता है।

LM वक्र से हमे निश्चित रूप से ब्याज दर मालूम नही होती, यदि हमें पहले आय स्तर का पता हो।

ब्याज दर का निर्धारण

आधुनिक सिद्धांत के अनुसार ब्याज दर का निर्धारण उस बिन्दु पर होता है जिस पर IS तथा LM वक्र एक दूसरे को काटते है। इस बिन्दु, पर ब्याज तथा आय स्तर का निर्धारण साथ-साथ होता है। इसे चित्र द्वारा स्पष्ट कर सकते हैं।

IS - LM व्याख्या या ब्याज का आधुनिक सिद्धांत

चित्र (a) में IS तथा LM वक्र एक दूसरे को R बिन्दु पर काटते है। यहां आय और ब्याज दर का सम्बंध इस प्रकार का है कि बचत और निवेश में सन्तुलन स्थापित हो जाता है और साथ ही मुद्रा की मांग और पूर्ति में भी संतुलन स्थापित होता है। IS अथवा LM वक्र की स्थिति में कोई परिवर्तन होने पर ब्याज दर भी प्रभावित होती है।

चित्र (b) से यह पता चलता है कि IS के दायी ओर बढ़ने पर आय बढ़ती है तथा ब्याज दर में भी वृद्धि होती है। इसके विपरीत IS स्थिर रहने पर जब LM दायी ओर बढ़ता है तो ब्याज दर में कमी होती है।

गणितीय विश्लेषण

Given the money supply Ms=M, the Linear demand function for money as a function of income Y and interest rate r is given by

Md=a1+a2Y+ a3r     a1, a2>0, a3<0

The goods and money market are

Goods (IS)

C = bY          Consumption

I = i1 + i2r     Investment (i2 < 0 < i1)

Y = C + I      Equilibrium

r=i1i2+1-b1b2Y -------(1)

IS Curve Slopes downwords

becouse drdY=1-b1b2<0

An increase in Y induces a smaller increase in C

Money (LM)

Md = a1 + a2Y + a3r       Demand

Ms = M                          Supply

Md = Ms                         Equilibrium

r=M-a1a3-a1a3Y--(2)

LM Curve Slopes upwords

becouse drdY=-a2a3>0

An increase in Y increases Md and r must rise sufficiently to leave Md unchanged

Solving (1).(2) for Y and r

Y=i1(1-b)+a2i2a3+i2a2(1-b)+a2i2a3(M-a1)

r=a2i1a3(1-b)+{a2i2a3}+(1-b)a3(1-b)+a2i2a3(M-a1)

dYdM=[a2+(1-b)a3i2]-1>0

आलोचना

IS-LM वक्रों की सहायता से ब्याज दरों के निर्धारण से सम्बन्धित एक सामान्य, व्यावहारिक और अधिक व्यापक दृष्टिकोण प्रस्तुत किया गया है। सरकार द्वारा मौद्रिक तथा राजकोषीय उपाय अपनाकर आर्थिक क्रियाओं के स्तर को प्रभावित किया जा सकता है। इस प्रकार IS, LM दृष्टिकोण एक ओर राजकोषीय और मौद्रिक नीतियों मे समन्वय लाता है तथा दूसरी ओर आय निर्धारण के सिद्धांत को मुद्रा सिद्धांत के साथ जोड़ता है।

उपर्युक्त गुणों के बावजूद IS, LM व्याख्या में अनेक त्रुटियां है जो निम्नलिखित है:-

(1) यह व्याख्या इस मान्यता पर आधारित है कि ब्याज दरे पूर्ण रूप से परिवर्तनशील है। यदि केन्द्रीय बैंक द्वारा ब्याज दरों को स्थिर कर दिया जाय तो ऊपर बतायी गयी प्रक्रिया द्वारा समायोजन नहीं होगा।

(2) इसमें यह माना गया है कि विनियोग ब्याज सापेक्ष है, अर्थात् ब्याज दर में परिवर्तन होने पर विनियोग में परिवर्तन होता है। व्यावहारिक रूप में ऐसा न होने पर समायोजन प्रक्रिया कार्य नहीं करेगी।

(3) डॉन पेंटिंकन तथा मिल्टन फ्रिडमैन के अनुसार, 'अर्थव्यवस्था का मौद्रिक तथा वास्तविक क्षेत्रों में विभाजन करना अव्यावहारिक है। वास्तविकता यह है कि दोनों क्षेत्र एक दूसरे से जुड़े होते है तथा एक दूसरे से प्रभावित होते हैं।

(4) पेटिंकन ने IS-LM व्याख्या में इस त्रुटि की ओर ध्यान दिलाया है कि इसमें कीमत स्तर के परिवर्तनों की ओर ध्यान नहीं दिया गया है।

निष्कर्ष

स्पष्ट है कि ब्याज का आधुनिक सिद्धांत यह बताता है कि ब्याज दर तथा आय स्तर दोनों ही का निर्धारण चार तत्त्वों पर निर्भर करता है। केन्स ने ब्याज निर्धारण के लिए केवल दो तत्त्वो- नकदी अधिमान तथा मुद्रा की मात्रा को महत्त्व दिया था। परन्तु आधुनिक सिद्धांत की व्याख्या में यह दो तत्व केवल LM अनुसूची को ही निर्धारित करते है। ब्याज के निर्धारण के लिए IS अनुसूची भी समान रूप से महत्त्वपूर्ण है। आधुनिक अर्थशास्त्रियों ने केन्स के सिद्धांत के साथ ऋणयोग्य कोष सिद्धांत को मिलाकर एक अधिक व्यापक एवं संतोषजनक व्याख्या प्रस्तुत की है।

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