प्रश्न :- "जनसंख्या की समस्या केवल आकार
की समस्या नही है, बल्कि यह तो कुशल उत्पादन एवं न्यायपूर्ण वितरण की समस्या है"।
इस कथन की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए?
→ जनसंख्या के अनुकूलतम सिद्धांत की विवचना
कीजिए। क्या अनुकूलतम की अवधारणा समय के साथ बदलती रहती है।
→ अनुकूलतम् जनसंख्या सिद्धांत की आलोचनात्मक,
विवेचना कीजिए।
क्या यह माल्थस के सिद्धांत के ऊपर सुधार है?
उत्तर :- अनुकूलतम जनसंख्या के सिद्धांत का प्रतिपादन माल्थस के जनसंख्या
सिद्धांत के विकल्प के रूप में किया गया है। इसकी चर्चा सर्वप्रथम सिजविक ने अपनी पुस्तक
'Principles of Political Economy में की। बाद में प्रो. कैनन ने इसका विकास कर इसे
वैज्ञानिक सिद्धांत का रूप दिया। आधुनिक समय में प्रो. डाल्टन, प्रां रॉबिन्स तचा कार
सौन्डस ने इस सिद्धांत को लोकप्रिय बनाया। माल्थस ने अपने सिद्धांत में यह बतलाया था
कि बढ़ती हुई जनसंख्या किसी देश के लिए अभिशाप होती है, लेकिन, आधुनिक अर्थशास्त्रियों
के अनुसार बढ़ती हुई जनसंख्या सर्वदा बुरी नहीं होती। इस सिद्धांत के अनुसार किसी दिये हुए समय एवं परिस्थिति में
किसी देश के लिए जनसंख्या का एक आदर्श आकार होता है जो उस देश में साधनों के समुचित
उपयोग के लिये वाछंनीय होता है तथा जनसंख्या
के इस बिन्दु पर होने से देश का वार्षिक उत्पादन अधिकतम होता
है। अतः देश की जनसंख्या यदि इस बिन्दु से कम है तो जनसंख्या में वृद्धि होना देश के
लिये लाभदायक ही है। जनसंख्या के जिस बिन्दु पर रहने से देश का वार्षिक उत्पादन अधिकतम
हो अथवा प्रति व्यक्ति आय अधिकतम हो
उसे ही देश के लिये आदर्शतम जनसंख्या कहा जायेगा।
मान्यताऐ
अनुकूलतम जनसंख्या का सिद्धांत निम्नलिखित मान्यताओ पर आधारित
है:-
(1) जिस अनुपात में जनसंख्या बढ़ती है, ठीक उसी अनुपात में कार्यशील जनसंख्या भी बढ़ती है।
(2) श्रमिक के औसत उत्पादन के घटने तथा बढ़ने पर प्रतिव्यक्ति
आय भी घटती- बढ़ती रहती है।
(3) उत्पादन-ह्मस
नियम एक निश्चित सीमा या बिन्दु के बाद क्रियाशील हो जाता है।
विभिन्न अर्थशास्त्रियों ने अनुकूलतम जनसंख्या की परिभाषा
दी है। कुछ अर्थशास्त्रियों ने आय
के आधार पर परिभाषा दी और कुछ ने उत्पादन
के आधार पर।
रॉबिन्स के अनुसार "अनुकूलतम जनसंख्या वह
है,जिससे अधिकतम उत्पादन संभव होता है"।
प्रो. हिक्स ने कहा, "आदर्श जनसंख्या, जनसंख्या का वह स्तर है जो प्रति
व्यक्ति उत्पादन अधिकतम बनाता है"।
बोल्डिग के अनुसार,"वह जनसंख्या जिस पर जीवन स्तर उच्चतम होता है आदर्श
जनसंख्या कहलाती है"।
डाल्टन के शब्दों में, "आदर्श
जनसंख्या वह है, जो प्रति व्यक्ति अधिकतम आय प्रदान करती है"।
इस प्रकार माल्थस ने जहाँ अपने सिद्धांत में जनसंख्या
एवं खाद्य सामग्री से सम्बंध स्थापित किया था वहाँ आदर्शतम जनसंख्या के सिद्धांत में
जनसंख्या एवं उत्पादन तथा प्रति व्यक्ति आय से सम्बंध स्थापित किया गया है। यदि देश
की जनसंख्या आदर्श जनसंख्या से कम अथवा अधिक होगी तो प्रति व्यक्ति आय में कमी होगी।
इस प्रकार इस सिद्धांत के अनुसार किसी देश में जनसंख्या की तीन अवस्थाएँ हो सकती है।
(1) जनाभाव :- यदि किसी देश की जनसंख्या आदर्श जनसंख्या
से कम हो तो इसे जनाभाव की स्थिति कहा जाता है। इस अवस्था में श्रम शक्ति की कमी के कारण देश के प्राकृतिक साधनों का पूर्ण
उपयोग नहीं हो पाता है। अतः इस अवस्था में जनसंख्या का बढ़ना लाभदायक होता है। जनसंख्या
के बढ़ने के साथ-साथ प्रतिव्यक्ति आय भी बढ़ने लगती है।
(2) आदर्श जनसंख्या :- यह जनसंख्या का वह आकार है जिस
पर देश में उपलब्ध प्राकृतिक साधनों का अनुकूलतम उपयोग होने लगता है। उत्पादन अधिकतम
होता है। प्रतिव्यक्ति आय अधिकतम होती है। अनुकूलतम जनसंख्या सिद्धांत यहीं बताता है
कि देश की जनसंख्या इसी आदर्श जनसंख्या के बिन्दु से न कम होनी चाहिए न अधिक, अन्यथा
प्रति व्यक्ति आय कम होने लगेगी।
(3) जनाधिक्य :- यदि किसी देश की जनसंख्या आदर्श जनसंख्या से अधिक हो जाती है तो
वहाँ जनाधिक्य की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। इस अवस्था में देश में श्रम-शक्ति की
मात्रा बढ़ जाती है। अनावश्यक भीड़ के कारण उत्पादन के क्षेत्र में उत्पादन ह्मस नियम क्रियाशील हो जाता है। अतः प्रति
व्यक्ति आय कम होने लगती है। इस स्थिति में जनसंख्या का कम होना लाभदायक होता है।
अनुकुलतम जनसंख्या के सिद्धांत की व्याख्या एक रेखाचित्र से की जाती है।
चित्र में OM = अनुकूलतम जनसंख्या, जहाँ प्रतिव्यक्ति आय अधिकतम होती
है, जिसे B बिन्दु
द्वारा दिखलाया गया है।
OM से कम जनसंख्या जनाभाव एवं OM से अधिक जनसंख्या जनाधिक्य की
स्थिति को दिखलाती है।
आदर्श जनसंख्या के संदर्भ में यह उल्लेखनीय है कि
अनुकूलतम जनसंख्या का बिन्दु स्थिर नहीं होता है। यह बिन्दु विज्ञान की उन्नति,
नये प्राकृतिक साधनों की खोज तथा उत्पादन की नयी रीतियों के प्रयोग के कारण बदलता
रहता है।
अनुकूलतम जनसंख्या के इस परिवर्तनशील स्वभाव को एक
चित्र से स्पष्ट किया जा सकता है
प्रारम्भिक स्थिति-
OM = आदर्श जनसंख्या, A = बिन्दु जो
प्रतिव्यक्ति आय अधिकतम बनाती है।
विभिन्न कारणों के फलस्वरूप AP' रेखा (औसत उत्पादन की
रेखा) ऊपर की ओर खिसक जाती है जिसे AP2 द्वारा दिखलाया गया है। ON = आदर्श जनसंख्या, B - बिन्दु जहाँ
अब प्रति व्यक्ति आय अधिकतम है। इस तरह यह स्पष्ट हो जाता है कि आदर्श जनसंख्या की
धारणा एक गतिशील धारणा है।
प्रो. डाल्टन ने जनसंख्या की इन तीनों स्थितियों को स्पष्ट करने के लिए एक सूत्र का
प्रयोग किया है जो निम्नलिखित है।
M=A-OO
जहाँ, M =
जनसंख्या की कुव्यवस्था है जो बतलाती है कि वास्तविक जनसंख्या आदर्श जनसंख्या से
कहाँ तक अधिक या कम है।
A = वास्तविक जनसंख्या तथा
0 = आदर्श जनसंख्या
इस सूत्र के अनुसार यदि M धनात्मक
हो तो देश में जनाधिक्य होगा, यदि M ऋणात्मक हो तो देश में जनाभाव होगा तथा यदि M
शून्य हो तो देश की जनसंख्या आदर्श होगी।
उदाहरण द्वारा इसे स्पष्ट
कर सकते है
(1)
जनाधिक्य - माना कि वास्तविक जनसंख्या (A) 500 है तथा आदर्श जनसंख्या
(O) 400
है तो
M=500-400400=100400=14
M धनात्मक
हैं। इसलिए यहां जनाधिक्य स्थिति होगी।
(2)
जनाभाव - माना कि वास्तविक
जनसंख्या (A) 200 है तथा आदर्श जनसंख्या (O)
400 है तो
M=200-400400=-200400=-0.5
M ऋणात्मक
है। इसलिए यहां जनाभाव की स्थिति होगी।
(3)
आदर्श जनसंख्या -
माना कि वास्तविक जनसंख्या (A) 400
है तथा आदर्श जनसंख्या (O) 400
है तो
M=400-400400=0400=0
अतः M शून्य के बराबर है। इसलिये
यहाँ आदर्श जनसंख्या होगी।
आलोचनाएँ
आदर्श जनसंख्या सिद्धांत की निम्न आलोचनाएँ हैं-
1.
यह एक सिद्धांत नहीं है (This is not a theory) -
अनुकूलतम जनसंख्या का सिद्धांत कोई सिद्धांत नहीं है, यह केवल धारणा मात्र है
क्योंकि यह सिद्धांत जनसंख्या की वृद्धि के संबंध में 'क्यों' और 'कैसे' प्रश्नों
का उत्तर नहीं देता। यह सिद्धांत केवल इतना कहता है कि प्रत्येक देश की एक
अनुकूलतम जनसंख्या होती है। देश की जनसंख्या उसी अनुकूलतम जनसंख्या के बराबर होनी
चाहिए, न कम न अधिक।
2.
यह सिद्धांत राष्ट्रीय आय के वितरण पक्ष पर ध्यान नहीं देता (This theory ignores
the distribution aspect of National Income) -
यह केवल देश के उत्पादन की ओर ध्यान देता है, राष्ट्रीय आय के वितरण संबंधी पक्ष
पर जोर नहीं देता जो कि उचित नहीं है क्योंकि राष्ट्रीय आय के सुवितरण से देश के
आर्थिक कल्याण में वृद्धि होती है और कुवितरण से अनेक समाजिक बुराइयों को जन्म
मिलता है।
3.
आदर्श बिन्दु ज्ञात करना कठिन है (It is difficult to find out Optimum Point)-
क्योंकि अर्थव्यवस्था के परिवर्तन के साथ अनुकूलतम जनसंख्या भी परिवर्तित होती
रहती है। चटर्जी के शब्दों में, "इस आकस्मिक और प्रतिक्षण परिवर्तनीय संसार
में, वस्तुतः अनुकूलतम जनसंख्या की खोज मृगतृष्णा की भाँति है, जोकि हमेशा हमारी
समझ को छल करके निकल जाता है, व्यर्थ प्रयत्न रहेगा।"
4.
यह सिद्धांत भौतिकवादी है (This theory is Materialistic) -
क्योंकि यह केवल अधिक उत्पादन एवं अधिक प्रति व्यक्ति आय पर ही जोर देता है। यह
दृष्टिकोण संकुचित है, क्योंकि आदर्श जनसंख्या केवल आर्थिक दृष्टि से ही नहीं वरन्
सामाजिक, राजनीतिक व सैनिक परिस्थितियों को भी ध्यान में रखकर निश्चित की जानी
चाहिए।
5.
इस सिद्धांत का कोई व्यावहारिक महत्त्व नहीं है (This theory has got on Practical
Importance)- क्योंकि (i) यह पता लगाना ही बहुत कठिन है कि कौन-सी
जनसंख्या सर्वोत्तम है, (ii) अल्पकाल में जनसंख्या में इसकी कसौटी के अनुसार कमी
या वृद्धि नहीं की जा सकती, तथा (iii) यद्यपि यह जनाभाव
और जनाधिक्य की अवांछनीयता का उल्लेख करता है, परंतु उनको दूर करने के लिए कोई
निश्चित निर्देश नहीं देता।
6.
वास्तविक धन (True Wealth)- अनुकूलतम जनसंख्या का
सिद्धांत राष्ट्रीय आय के अधिकतम होने को अधिकतम प्रसन्नता व सुखसूचक मानता है जो
कि ठीक नहीं है- क्योंकि वास्तविक सुख एवं प्रसन्नता देश के स्वस्थ, बुद्धिमान,
मेधावी नागरिकों पर निर्भर है। प्रो. विपिल सुख का आधार बताते हुए कहते हैं,
"एक देश का वास्तविक धन उस देश की भूमि या पानी, वनों या खानों में, पशुओं या
डॉलरों में नहीं है वरन् उस देश के स्वस्थ और सुखी पुरुषों, स्त्रियों और बच्चों
में निहित है।"
सर्वोत्तम जनसंख्या सिद्धांत की माल्थस के सिद्धांत से श्रेष्ठता
दोनों सिद्धांतों के
विश्लेषण के पश्चात् हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि सर्वोत्तम जनसंख्या माल्थस
के सिद्धांत से अधिक श्रेष्ठ है जैसा कि निम्न सारणी 2 में विभिन्न बिन्दुओं के
आधार पर स्पष्ट किया गया है-
अनुकूलतम जनसंख्या का सिद्धांत |
माल्थस का जनसंख्या सिद्धांत |
(1) जनसंख्या का स्पष्ट सिद्धांत- इस सिद्धांत में जनसंख्या की समस्या केवल आकार की ही समस्या न होकर कुल
उत्पादन व न्यायपूर्ण वितरण की भी समस्या है। |
(1) जनसंख्या का सीमित सिद्धांत - इस सिद्धांत ने जनसंख्या के केवल परिमाणात्मक पहलू पर ही बल दिया है। |
(2) विस्तृत दृष्टिकोण - अनुकूलतम जनसंख्या के सिद्धांत में जनसंख्या को देश के समस्त साधनों, कुल
उत्पादन तथा राष्ट्रीय आय से संबंधित किया गया है। |
(2) संकुचित दृष्टिकोण - माल्थस ने अपने सिद्धांत में जनसंख्या को केवल खाद्यपूर्ति से संबंधित
किया है। |
(3) जनाधिक्य न होने पर भी
नैसर्गिक अवरोधों का लागू होना-अनुकूलतम सिद्धांत नैसर्गिक
अवरोधों को जनाधिक्य के प्रतीक के रूप में नहीं मानता। यह तो प्रति व्यक्ति आय
को ही वास्तविक कसौटी मानता है। |
(3) नैसर्गिक अवरोधों का लगना
जनाधिक्य का सूचक है- माल्थस ने किसी भी देश में
प्राकृतिक प्रकोपों, जैसे-अकाल, अनावृष्टि, अतिवृष्टि, भूकम्प, महामारी, आदि जिन्हें
उसने नैसर्गिक अवरोध कहा है, की क्रियाशीलता को जनाधिक्य का प्रतीक माना है। |
(4) आदर्श जनसंख्या बिन्दु की
कल्पना-इस सिद्धांत में अधिकतम जनसंख्या की सीमा का विचार न करके आदर्श जनसंख्या
बिन्दु की कल्पना की गई है। |
(4) अधिकतम जनसंख्या की सीमा का
विचार - माल्थस ने अधिकतम जनसंख्या की सीमा का विचार प्रस्तुत किया है। |
(5) गतिशील सिद्धांत- अनुकूलतम जनसंख्या का सिद्धांत एक प्रगतिशील सिद्धांत है क्योंकि इसके
अनुसार किसी देश में सदा के लिए जनाधिक्य अथवा जनाभाव की स्थिति नहीं हो सकती। |
(5) स्थैतिक सिद्धांत- माल्थस का जनसंख्या संबंधी सिद्धांत एक स्थिरता का सिद्धांत है
........क्योंकि वह इस धारणा पर आधारित है कि परिस्थितियाँ सदा एक-सी रहती हैं। |
(6) आशावादी सिद्धांत- अनुकूलतम जनसंख्या सिद्धांत न तो निराशावादी और न ही आशावादी दृष्टिकोण
अपनाता है। वह तो जनसंख्या की समस्या पर विवेकपूर्ण ढंग से विचार करता है। |
(6) निराशावादी सिद्धांत- माल्थस का सिद्धांत अत्यन्त निराशावादी दृष्टिकोण अपनाए हुए है। जनसंख्या
की दर में तेजी से वृद्धि होने पर माल्थस डर और परेशानी का अनुभव करते हैं। |
(7) नैतिक सीमाओं का न होना- आदर्श सिद्धांत में जनसंख्या नियंत्रण की नैतिक सीमा का निर्धारण नहीं
किया गया। इनके बताये गये उपाय सरल एवं व्यावहारिक हैं। |
(7) नैतिक सीमाओं का निर्धारण-माल्थस ने जनसंख्या नियन्त्रण के सम्बन्ध में नैतिक सीमाएँ निर्धारित की
थीं। इसके बताये गये उपाय व्यावहारिक नहीं हैं। |
माल्थस के सिद्धान्त की
अपेक्षा अनुकूलतम सिद्धान्त का श्रेष्ठ होना (Superiority of Opti- mum Theory of
Population of Malthusian Theory) - अनुकूलतम जनसंख्या सिद्धांत माल्थस के
जनसंख्या सिद्धांत की अपेक्षा कहाँ तक श्रेष्ठ है, इसे सारणी 2 की सहायता से
स्पष्ट किया गया है।
निष्कर्ष -
तुलना में दिये गये तथ्यों से स्पष्ट है कि अनुकूलतम जनसंख्या का सिद्धांत माल्थस
के सिद्धांत से श्रेष्ठ ही नहीं बल्कि यह अधिक उपयोगी, वास्तविक एवं वैज्ञानिक है।
यदि सैद्धांतिक दृष्टिकोण
से देखा जाय तो अनुकूलतम जनसंख्या का सिद्धांत निःसन्देह माल्थस के सिद्धांत के
ऊपर सुधार है क्योंकि यह जनसंख्या के संबंध में एक संतुलित तथा विवेकपूर्ण
दृष्टिकोण रखता है परंतु यदि व्यावहारिक दृष्टिकोण से देखा जाय तो अनुकूलतम
जनसंख्या सिद्धांत का कोई महत्त्व नहीं है क्योंकि अनुकूलतम जनसंख्या के आकार को
मालूम करना कठिन है। प्रो. हिक्स के शब्दों में, "यह बहुत ही कम व्यावहारिक
महत्त्व का विचार है।" इस प्रकार सैद्धांतिक दृष्टिकोण से अनुकूलतम जनसंख्या
का सिद्धांत महत्त्वपूर्ण है लेकिन व्यावहारिक दृष्टिकोण से माल्थस का सिद्धांत ही
महत्त्वपूर्ण है। वस्तुतः माल्थस का जनसंख्या सिद्धांत और अनुकूलतम जनसंख्या
सिद्धांत दोनों ही अपर्याप्त व अपूर्ण हैं।
अनुकूलतम जनसंख्या का महत्त्व
उपर्युक्त आलोचनाओं के होते
हुए भी 'अनुकूलतम जनसंख्या सिद्धांत' का सैद्धांतिक और व्यावहारिक महत्त्व है,
जैसा कि निम्न बिन्दुओं से स्पष्ट होता है-
(i) अनुकूलतम जनसंख्या का
सिद्धांत जनसंख्या वृद्धि को आर्थिक विकास के साथ संबंधित करता है।
(ii) यह सिद्धांत प्रति
व्यक्ति आय की वृद्धि पर भी जोर देता है, क्योंकि प्रति व्यक्ति आय वृद्धि से ही
किसी देश के नागरिकों की समृद्धि और सुख संभव है।
(iii) यह सिद्धांत जनसंख्या
को नियंत्रित कर कम करने पर बल देता है। इस प्रकार परिवार नियोजन की सफलता के लिए
यह सिद्धांत उपयोगी है।
(iv) यह सिद्धांत अपने
वातावरण में परिवर्तन पर भी बल देता है। समय और परिस्थिति के अनुसार अपने वातावरण
में परिवर्तन करने से समाज और राष्ट्र का संतुलन बना रहता है।
(v) इस सिद्धांत में
जनसंख्या को उत्पादनकर्ता के रूप में देखा गया है और स्पष्ट किया गया है कि किसी
देश के लिए न तो जनसंख्या की कमी ही अच्छी होती है और न ही इसकी वृद्धि।
(vi) अनुकूलतम जनसंख्या के सिद्धांत का महत्त्व इस बात में निहित है कि इसने 'माल्यूसियन भूत' को कम करके जनसंख्या को सही रूप में समझने का दृष्टिकोण प्रस्तुत किया है।
भारतीय अर्थव्यवस्था (INDIAN ECONOMICS)
व्यष्टि अर्थशास्त्र (Micro Economics)
समष्टि अर्थशास्त्र (Macro Economics)
अंतरराष्ट्रीय व्यापार (International Trade)