भारत की जनसंख्या नीतियाँ (POPULATION POLICIES OF INDIA)

भारत की जनसंख्या नीतियाँ (POPULATION POLICIES OF INDIA)

भारत की जनसंख्या नीतियाँ (POPULATION POLICIES OF INDIA)

प्रश्न - जनसंख्या नीति का अर्थ, आवश्यकता व उद्देश्य लिखिए।

भारत में स्वतंत्रता के बाद जनसंख्या नीति को स्पष्ट कीजिए।

विकसित तथा विकासशील देशों में जनसंख्या नीति को स्पष्ट करके भारत की जनसंख्या नीति को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर - भारत में प्रतिवर्ष तीव्र गति से जनसंख्या में वृद्धि हो रही है। 1901 में जो भारत की जनसंख्या 23.84 करोड़ थी वह 2011 में 121.01 करोड़ पहुँच गई है। तीव्र गति से बढ़ती हुई भारत की जनसंख्या हमें गंभीरतापूर्वक यह विचार करने को विवश करती है कि इसे किस प्रकार नियन्त्रित किया जाये। भारत की जनसंख्या की तीव्र गति से निंदा करते हुए डॉ० चन्द्रशेखर ने कहा है कि "भारतवर्ष में सन्तानोत्पत्ति एक सबसे बड़ा कुटीर उद्योग बन गया है।" श्रीमती इन्दिरा गाँधी ने कहा था कि, "जनसंख्या के तीव्र गति से बढ़ते रहते आयोजित विकास करना बहुत कुछ ऐसी भूमि पर मकान खड़ा करने के समान है, जिसे बाढ़ का पानी बराबर बहा ले जा रहा हो।"

योजना आयोग ने भी प्रायः इसी प्रकार का विचार व्यक्त किया है- "भारत जैसी स्थिति वाले देश में जनसंख्या की वृद्धि की दर का आर्थिक विकास एवं प्रति व्यक्ति जीवन-स्तर पर निश्चय ही विपरीत प्रभाव पड़ेगा।" अतः भारत में जन्म-दर में कमी लाना अति आवश्यक है। आर्थिक विकास एवं औद्योगीकरण की सहायता से धीरे-धीरे सामाजिक एवं सांस्कृतिक परिवर्तन किये जाते रहे। पश्चिमी देशों के अनुभवों के आधार पर यह माना जाता है कि आर्थिक विकास एवं औद्योगीकरण दोनों ही सबसे पृथक निरोधक है। इसी उद्देश्य को लेकर संयुक्त राष्ट्र संघ ने 1974 में 'विश्व जनसंख्या वर्ष मनाया था। संयुक्त राष्ट्र संघ के हंगरी में हुए एक सम्मेलन में यह प्रस्ताव पास किया कि विकास ही समाज का सबसे बड़ा निरोधक है तथा सम्पूर्ण विश्व में यह स्वीकार किया गया कि आर्थिक विकास से नगरीयकरण को सदैव प्रोत्साहन मिलता है, जिससे जीवन के प्रति दृष्टिकोण में परिवर्तन होता है। जो बात विकसित देशों के लिए सार्थक थी वह भारत के संदर्भ में सार्थक नहीं है क्योंकि वर्तमान स्थिति पश्चिमी देशों की 19वीं शताब्दी की स्थिती के समान नहीं है जब वे विकास के दौर से गुजर रहे थे। किसी भी पश्चिमी देश में मृत्यु दर में इतनी तीव्र गति से ह्वास नहीं हुआ जितना कि भारत में हुआ हैं। अधिकांश पश्चिमी देशों को अपने आर्थिक विकास के शुरूआत में आसानी से कृषि पदार्थों, खनिजों तथा औद्योगिक कच्चे माल के लिए बाजार उपलब्ध हो सके, परन्तु भारत के लिए यह सम्भव नहीं हो सकता। इसी प्रकार अधिकांश पश्चिमी देशों से जनसंख्या का प्रवसन हुआ, लेकिन भारत में यह सम्भव नहीं हो सका है। जिस प्रकार आर्थिक विकास को बाजार की शक्तियों के अनिश्चित कार्य-करण पर नहीं छोड़ा जा सकता, उसी प्रकार जनसंख्या के कुशल एवं प्रभावपूर्ण नियन्त्रण के लिए सुनियोजित जनसंख्या-नीति की महत्वपूर्ण आवश्यकता है।

जनसंख्या-नीति का अर्थ (Meaning of Population Policy)

जनसंख्या-नीति से आशय उस सरकारी मान्यता से है जिसके अनुसार वह जनसंख्या-निरोध को प्रोत्साहित करती है। अब हम यहाँ जनसंख्या नीति की कुछ परिभाषाओं का विस्तृत अध्ययन करेंगे।

(1) जे० जे० स्पेंग्लर के अनुसार, "राष्ट्रीय जनसंख्या नीति के उद्देश्यों के अन्तर्गत हम राज्य को उन समस्त नीतियों में शामिल कर लें जिनके अन्तर्गत जनसंख्या की मांत्रा एवं किस्म या भौगोलिक वितरण में परिवर्तन लाया जा सकता है।"

(2) तेराव के अनुसार, "जनसंख्या की समस्या के हल हेतु जो उपाय किये जाते हैं उन्हें ही जनसंख्या- नीति के अन्तर्गत रखा जा सकता है। इस नीति में मुख्यतः जनसंख्या वृद्धि अथवा निरोध दोनों ही सम्मिलित किये जाते हैं।"

(3) पी० सी० जैन के अनुसार, "जनसंख्या नीति केन्द्र अथवा राज्य सरकार द्वारा विचारपूर्वक बनायी गयी और क्रियान्वित की गई नीति होती है, जिसका प्रमुख उद्देश्य प्रजनन-दर को घटाकर जनसंख्या वृद्धि की दर को घटाना है।"

(4) मिर्डल के अनुसार, "एक जनसंख्या नीति सामान्य रूप से सामाजिक नीति से कम नहीं होती।"

संकुचित अर्थ में जनसंख्या नीति का अर्थ उन नीतियों से है जो जनसंख्या को प्रभावित करने के लिए बनाई जाती है।

(5) एस० चन्द्रशेखर के अनुसार, "जनसंख्या नीति राष्ट्रीय सरकार के द्वारा देश की आबादी के आकार और संगठन में किसी सरकारी कानून या निदर्शन के द्वारा परिवर्तन लाने का जानबूझ कर किया गया प्रयत्न होता है।"

ज्यादातर विकासशील देशों में जनसंख्या की मात्रा की समस्या इतनी भयावह हो गई है कि जनसंख्या नीति को यदि एक ही शब्द में जन्म-नियंत्रण-नीति कहा जाये तो अनुपयुक्त न होगा। 'जन्म-नियन्त्रण' वैज्ञानिक अर्थों में एक असंगत शब्द है, सही शब्द गर्भ-नियन्त्रण है, किन्तु व्यवहार में जन्म-नियन्त्रण शब्द का ही प्रयोग होता है। बिना जनसंख्या नियन्त्रण के आर्थिक विकास तो किसी ऐसे घरातल पर भवन निर्माण करने के समान है जिसमें निरन्तर बाढ़ आ जाने से धरातल अस्त-व्यस्त हो जाता हो। अतः स्पष्ट है कि यह एक निष्फल क्रिया मात्र है। यह सन्तान एवं समय में सामंजस्य पैदा करता है। अतः मों के स्वास्थ्य को बिगड़ने से रोकता है तथा दो बच्चों के बीच का समय इस प्रकार निर्धारित किया जाता है कि प्रत्येक बच्चे के पालन-पोषण एवं शिक्षा के लिए समान अवसर उपलब्ध हो सके। देश के आर्थिक विकास के लाभ को जनता तक पहुँचाने के लिए यह आवश्यक है कि लाभ के हिस्सेदारों में वृद्धि में वृद्धि न हो अन्यचा कोई भी आर्थिक कार्यक्रम सफल नहीं हो पायेगा। 1961-71 के दशक में देश की जनसंख्या 10.89 करोड़ बढ़ी और 1971-81 के दशक में 13.56 करोड़ बढ़ी। जिस देश के 50 प्रतिशत परिवार जीवन-निर्वाह स्तर से भी कम आय कमाते हों, जिनकी औसत आय 35 पैसे प्रतिदिन है ऐसे में प्रति डेढ़ सेकण्ड पर एक बच्चे का जन्म होना या प्रत्येक वर्ष 1.35 करोड़ व्यक्तियों का बढ़ जाना (जो आस्ट्रेलिया की कुल आबादी के बराबर है) संयुक्त राष्ट्र संघ के एक प्रकाशन के अनुसार 1980 में विश्व की जनसंख्या 3721 मिलियन थी जिसमें से 957 मिलियन चीन में, 687 मिलियन भारत में, 267 मिलियन सोवियत रूस में तथा 222 मिलियन संयुक्त राज्य अमेरिका में थी। इस प्रकार भारत विश्व का द्वितीय सर्वाधिक जनसंख्या वाला देश था।

रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने लिखा था कि "परिवार नियोजन स्त्रियों को अनावश्यक मातृत्व से बचाता है, देश को अनावश्यक जनसंख्या से बचाता है तथा भुखमरी से बचाता है। भारत जैसे भूखग्रस्त देश में और बच्चे पैदा करना न केवल इन बेकसूर बच्चों की मौत बुलाना है, वरन् सम्पूर्ण परिवार एवं देश को निकृष्ट जीवन में डालना है।"

सम्पूर्ण भारतवर्ष में जनगणना सम्बन्धी सूचनायें 1872 से उपलब्ध हैं तथा इनमें पर्याप्त स्तर की विश्वसनीयता पाई जाती है। 1872 से लेकर 1921 तक के आँकड़े यह दर्शाते हैं कि भारत में जन्म-दर भी ऊँची थी तथा मृत्यु-दर भी ऊँची थी। खाद्यान्न का संकट, अकाल, महामारी की बारम्बारता बहुत अधिक थी। सन् 1921 के उपरान्त प्राकृतिक प्रकोपों की प्रचण्डता कम हो गयी। संक्रामक रोगों पर रोक लगने लगा। कृषि में सुधार, सिंचाई की व्यवस्था एवं राहत कार्यों की व्यवस्था में सुधार होने लगे। शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास आदि में सुधार होने से मृत्यु-दर धीरे-धीरे घटने लगी तथा यही क्रम अब तक चल रहा है। इसके विपरीत जन्म-दर में विशेष कमी नहीं हुई है। परिणामस्वरूप जनसंख्या की वृद्धि बहुत ही तीव्र दर से होने लगी है और यह वृद्धि की दर 2 प्रतिशत प्रति वर्ष से 2.4 प्रतिशत प्रति वर्ष के बीच है।

यद्यपि नियोजित ढंग से जन्म नियन्त्रण के लिए कदम प्रथम पंचवर्षीय योजना से ही उठाये गये, किन्तु इसका तात्पर्य यह नहीं है कि इससे पूर्व भारत में परिवार नियोजन की चर्चा नहीं हो रही थी। भारत में परिवार नियोजन की चर्चा 1915 से प्रारम्भ हो गयी थी, जबकि पी० के० वटल ने अपनी पुस्तक 'दी पोपुलेशन प्रोब्लम इन इण्डिया' प्रकाशित की। 1935 में राज्य योजना समिति, जिसके अध्यक्ष पं० जवाहरलाल नेहरू थे, ने परिवार नियोजन को भारत के लिए उचित ठहराया। पी० एन० सप्रू ने 1940 में 'कौसिल ऑफ स्टेट्स' में परिवार नियोजन सम्बन्धी प्रस्ताव पास करा लिया। 11 अप्रैल 1951 को योजना आयोग ने एक पैनल बनाया जिसके सदस्य डॉ० सुशीला नैय्यर, श्रीमती धनवन्ती रामाराव, श्री आर० एन० गोपालास्वामी, डॉ० ज्ञानचन्द एवं डॉ० ए० सी० वसु थे।

भारत की जनसंख्या नीति (Population Policy of India)

भारत की जनसंख्या नीति का अध्ययन हम निम्नलिखित दो भागों में कर सकते हैं:-

(A) स्वतंत्रता से पूर्व जनसंख्या नीति (Population Policy in Pre-Independence Period):- ब्रिटिश शासन काल में शासन जनसंख्या के सम्बन्ध में कोई नीति बनाने में रूचि नहीं रखता था। वे जनसंख्या वृद्धि पर नियंत्रण लगाने के विरूद्ध थे। 1916 में श्री प्यारे किशन वात्तल ने जनसंख्या वृद्धि और उसके परिणामों का विवरण देते हुए अपनी पुस्तक The Population Problem of India' प्रकाशित की। इस पुस्तक ने परिवार कल्याण के महत्व पर प्रकाश डाला। सन् 1935 में इंडियन नेशनल कांग्रेस ने, जिसके अध्ययन स्वर्गीय श्री जवाहर लाल नेहरू थे, एक 'राष्ट्रीय योजना समिति' की स्थापना की। इस समिति की प्रमुख सिफारिशें निम्न थींः-

(i) परिवार कल्याण के लिए परिवार नियोजन राज्य की नीति का अभिन्न अंग होना चाहिए।

(ii) जो लोग संक्रामक बीमारियों से ग्रस्त हैं, उनकी नसबंदी की जानी चाहिए।

(iii) जीवन समंक एवं जनांकिकी सर्वेक्षण द्वारा बार-बार सर्वे कर जनसंख्या समंकों के गुण में सुधार किया जाना आवश्यक है।

(iv) विवाह की आयु में वृद्धि एवं बहुपत्नी प्रथा की समाप्ति से परिवार के आकार को सीमित करने में मदद मिलेगी।

(v) भारत की जनसंख्या का आकार उनके जीवन स्तर पर बुरा प्रभाव डाल रहा है।

भारत की 'अखिल भारतीय महिला सभा' के विशेष निमंत्रण पर परिवार कल्याण कार्यक्रम की अमेरिकन महिला विशेषज्ञ श्रीमती मार्गरेट सेंगर 1935-36 में भारतवर्ष आयीं। उनका यह मानना था कि "Reproduction is a privilege not a right" अतएव मानव को अपने इस दायित्व को विवेकपूर्ण ढंग से निभाना चाहिए। 1 सितंबर 1935 को 'फेमिली हाइजीन' सम्बन्धी अध्ययन हेतु एक समिति का गठन किया गया। डॉ० ए० पी० पिल्लई ने जो संतति निग्रह के प्रबल समर्थक थे, सन् 1936 में कई स्थानों पर प्रशिक्षण केंद्रों की स्थापना की। सन् 1938 में अखिल भारतीय कांग्रेस के अध्यक्ष श्री सुभाषचंद्र बोस ने अपने अध्यक्षीय भाषण में परिवार कल्याण कार्यक्रम को समर्थन किया। सन् 1939 में रैना साहब ने उज्जैन में एक 'मातृ सेवा मंदिर' प्रारंभ किया। सन् 1940 में बम्बई में 'भगिनी समाज संतति निग्रह चिकित्सा केंद्र' को सम्मिलित करते हुए 'स्टडी एंड प्रोमोशन ऑफ फेमिली कमेटी' की स्थापना की गयी, जिसके अध्यक्ष श्री जोसेफ भोर थे। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने भी सम्पूर्ण भारतवर्ष में जनसंख्या वृद्धि से उत्पन्न समस्याओं के समाधान हेतु अपने विचार व्यक्त किए। सन् 1949 में श्रीमती धनवंती रामाराव की अध्यक्षता में 'भारतीय परिवार नियोजन संघ' की स्थापना की गयी। सन् 1951 में 'योजना आयोग' ने परिवार कल्याण के महत्व को ध्यान में रखकर एक विशेष समिति का गठन किया, इस समिति की अध्यक्षा डॉ० सुशील नय्यर थीं। इसके अतिरिक्त इसकी महत्वपूर्ण सदस्या श्रीमती धनवंती रामाराव भी थीं। इस समिति ने अध्ययन का जो लेखा जोखा प्रस्तुत किया, उसमें बढ़ती हुई जनसंख्या की समस्या पर गहन चिंता व्यक्त करते हुए परिवार कल्याण कार्यक्रम सम्बन्धी महत्वपूर्ण सुझाव भी दिए।

(B) स्वतंत्रता के बाद जनसंख्या नीति (Population Policy in Post-Independence Period): स्वतंत्रता के बाद भारतवर्ष में पंचवर्षीय योजनाएँ क्रियान्वित की गयीं और योजना के साथ-साथ जनसंख्या नीति का भी मूल्यांकन होता रहा। उनमें से पंचवर्षीय योजनाकाल में जो विकास हुए उनका वर्णन निम्नलिखित है:-

(1) प्रथम पंचवर्षीय योजनाकाल (1951-56) में जनसंख्या नीति या परिवार कल्याण कार्यक्रमः- इस योजनाकाल में योजना आयोग ने भारत के आर्थिक विकास पर जनसंख्या के पड़ने वाले प्रभावों के सम्बन्ध में निश्चित प्रतिक्रिया व्यक्त की थी, उनका मानना था कि जनसंख्या वृद्धि का प्रति व्यक्ति आय से प्रत्यक्ष सम्बन्ध नहीं है। परन्तु यह बढ़ती हुई जनसंख्या देश के समस्त उत्पादन एवं उपभोग व्यवस्था को प्रभावित करती है और हमारी तीव्र गति से बढ़ती जनसंख्या जीवन स्तर के सुधार में बाधक है। इस योजना काल में जनसंख्या नियंत्रण नीति के अंतर्गत निम्नलिखित कार्यक्रम सम्मिलित किये गयेः-

(1) परिवार नियोजन की विभिन्न विधियों के सम्बन्ध में अनुभवसिद्ध तथ्यों को एकत्रित करना, उनकी उपयुक्तता, प्रभावपूर्णता एवं लोकप्रियता का पता लगाना।

(2) परिवार नियोजन की विभिन्न विधियों से जनता को कैसे शिक्षित किया जाए, इस सम्बन्ध में विभित्र विधियों की जांच-पड़ताल करना।

(3) मानवीय प्रजननता के मनोवैज्ञानिक एवं मेडिकल वस्तुओं पर अनुसन्धान।

(4) परिवार के आकार को सीमित करने के लिए जनता से अपील करना और इसे स्वास्थ्य कार्यक्रम का अंग बना लिया जाना।

(5) जनता के विभिन्न वर्गों में प्रतिनिधियों से प्रजनन प्रवृत्ति, परिवार के आकार व दृष्टिकोण आदि के सम्बन्ध में सूचनाएँ एकत्रित करना।

(ii) द्वितीय पंचवर्षीय योजनाकाल (1956-61) में जनसंख्या नीति या परिवार कल्याण कार्यक्रमः-

द्वितीय योजनाकाल में राष्ट्रीय कार्यक्रम में निम्न मुख्य बातें रखी गयीं :-

(1) कार्यकर्ताओं के प्रशिक्षण के लिए उचित एवं पर्याप्त प्रशिक्षण केन्द्रों की स्थापना करना।

(2) जनसंख्या की समस्याओं के सम्बन्ध में अनुसन्धान करना।

(3) जिन संस्थाओं को केन्द्रीय समिति द्वारा अनुदान तथा सहायता दी जाए, उनके कार्यों का निरीक्षण करना।

(4) विकास कार्य का प्रतिवेदन एवं विवरण तैयार करना।

(5) परिवार कल्याण के सम्बन्ध में जनता को परामर्श एवं सहायता देने वाली सुविधाओं का प्रसार करना।

(6) परिवार कल्याण के सम्बन्ध में जनता को शिक्षित बनाना।

द्वितीय पंचवर्षीय योजना में इसके लिए 5 करोड़ रूपये की व्यवस्था की गयी, जबकि वास्तविक व्यय 3.5 करोड़ रूपये ही हुआ।

(iii) तृतीय पंचवर्षीय योजनाकाल (1961-66) में जनसंख्या-नीति या परिवार कल्याण कार्यक्रमः- भारत में परिवार कल्याण कार्यक्रम का सर्वाधिक प्रसार सर्वप्रथम सन् 1961 के बाद आरंभ हुआ। 1961 की जनगणना के परिणामों ने सरकार तथा बुद्धिजीवी व्यक्तियों को इस दिशा में कार्य करने के लिए विवश कर दिया। इसके पूर्व की दो योजनाओं में इस कार्यक्रम की विशेष प्रगति नहीं हुई। साथ ही विभिन्न समुदायों में परिवार कल्याण के पति विशेष अभिरुचि भी नहीं थी और अनेक समुदायों के नेता राजनीतिक आधार पर कार्यक्रम का विरोध करते थे। जनसंख्या की वृद्धि दर को देखते हुए योजना आयोग ने परिवार कल्याण को राष्ट्रीय विकास कार्यक्रम का अभिन्न अंग स्वीकार किया। परिवार कल्याण के लिए 25.5 करोड़ रूपये का व्यय किया गया। तृतीय पंचवर्षीय योजना में निम्न प्रमुख बातें थी।

(1) शिक्षा के प्रसार द्वारा परिवार कल्याण कार्यक्रम के लिए अनुकूल सामाजिक वातावरणों को तैयार करना।

(2) गर्भ नियंत्रण के पदार्थों का वितरण करना और लोगों को उनके उपयोग की विधि से परिचित कराना।

(3) जनसंख्या की सेवाओं के साथ-साथ परिवार कल्याण की सुविधाओं को सुलभ करना और कार्यक्रमों को क्रियान्वित करना।

(4) परिवार कल्याण कार्यक्रम के लिए स्थानीय नेताओं तथा अन्य सेवा संस्थाओं का सहयोग प्राप्त करना।

(5) परिवार कल्याण संबंधी आवश्यक सामग्री के उत्पादन में वृद्धि करना।

(6) स्त्री शिक्षा का प्रसार करना और विलंब से विवाह को प्रोत्साहित करना।

इस योजना में 27 करोड़ रूपये व्यय करने का प्रावधान था, लेकिन वास्तविक व्यय 25 करोड़ रूपये हुआ।

इस योजनाकाल में कानपुर में लूप बनाने का कारखाना खोला गया, जिसमें लगभग 40 हजार लूप प्रतिदिन बनाए जाते हैं। इसी योजनाकाल में तकनीकी परामर्श के लिए दिल्ली में एक केंद्रीय परिवार कल्याण संस्था स्थापित की गयी।

(iv) चतुर्थ पंचवर्षीय योजनाकाल (1969-74) में जनसंख्या नीति या परिवार कल्याण कार्यक्रमः- भारत में इस योजना द्वारा परिवार कल्याण कार्यक्रमों को सर्वाधिक प्राथमिकता दी गयी और इस बात पर विशेष जोर दिया गया कि अथक प्रयास करके निर्धारित लक्ष्य को प्राप्त किया जाए। परिवार कल्याण कार्यक्रमों को तीव्र गति से लागू करने के लिए कुछ संगठनात्मक परिवर्तन भी किये गये। स्वास्थ्य मंत्रालय को स्वास्थ्य परिवार कल्याण मंत्रालय का नाम दिया गया। इस योजना में परिवार नियोजन कार्यक्रम के लिए 330 करोड़ रूपये व्यय किए जाने की व्यवस्था की गयी थी, किंतु वास्तविक व्यय 276 करोड़ रूपये हुआ। इस योजना में जन्म दर 40 प्रति हजार से घटकर 38 प्रति हजार रह गयी थी।

(v) पांचवीं पंचवर्षीय योजनाकाल (1974-78) में जनसंख्या नीति या परिवार कल्याण कार्यक्रमः- इस योजना में परिवार नियोजन कार्यक्रम को 'परिवार कल्याण कार्यक्रम' के रूप में अपनाया गया। पांचवीं योजना में इस कार्यक्रम पर 491.8 करोड़ रूपये व्यय करने का प्रावधान था, जबकि वास्तविक व्यय 498 करोड़ रूपये का हुआ।

(vi) छठी पंचवर्षीय योजनाकाल (1980-85) में जनसंख्या नीति या परिवार कल्याण कार्यक्रमः- इस योजना में परिवार कल्याण कार्यक्रम को उच्च प्राथमिकता प्रदान की गयी तथा इसके लिए 1,010 करोड़ रूपये व्यय किए जाने का प्रावधान रखा गया। जबकि वास्तविक व्यय 1380 करोड़ हुआ।

(vii) सातवीं पंचवर्षीय योजना (1985-90) में जनसंख्या नीति या परिवार कल्याण कार्यक्रमः- इस योजना में परिवार नियोजन कार्यक्रम के लिए 3,256 करोड़ रूपये की व्यवस्था की गयी। इस अवधि (1985-90) में परिवार नियोजन कार्यक्रम पर 3,121 करोड़ रूपये की राशि वास्तव में खर्च की गयी। इस योजना में सन् 1990 तक जन्म-दर को 27 प्रति हजार तथा वार्षिक वृद्धि दर को 1.66 प्रतिशत के स्तर पर लाने का लक्ष्य रखा गया था।

(viii) आठवीं पंचवर्षीय योजना (1992-97) में जनसंख्या नीति व परिवार कल्याण कार्यक्रमः- आठवीं योजना में जन्म दर घटा कर जनसंख्या वृद्धि के सीमित करने के कार्य को बहुत महत्वपूर्ण ठहराया गया। परिवार कल्याण कार्यक्रम के लिए योजना में अपेक्षाकृत बहुत बड़ी धनराशि 6,500 करोड़ रूपये की व्यवस्था की गयी। जबकि वास्तविक व्यय 7,294 करोड़ रूपये था। आठवीं योजना की प्रगति संतोषजनक है।

(ix) नौवीं योजना (1907-2002) में जनसंख्या नीति व परिवार कल्याण कार्यक्रमः- सन् 1994 में काहिरा के जनसंख्या और विकास सम्मेलन में स्वीकृत कार्य योजना के आधार पर अक्टूबर, 1997 में प्रजनन और बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम को आरम्भ किया गया। यह कार्यक्रम नौवीं पंचवर्षीय योजना में जनसंख्या की समस्या का नये दृष्टिकोण से विश्लेषण करता है। RCH के संघटक: RCH की अवधारणा प्रजनन अधिकार से जुड़ी हुई है। RCH में निम्नलिखित प्रावधान किए गए हैं :-

(1) स्त्रियों के सुरक्षित गर्भधारण करने और बच्चों को जन्म देने का अधिकार।

(2) गर्भ का परिणाम माता एवं शिशु के जीवन और स्वस्थ रहने में दिखलाई देना चाहिए।

(3) दंपत्तियों को निर्भय होकर यौन सम्बन्ध स्थापित करने की स्वतंत्रता, जिससे गर्भधारण होने या किसी रोग को पकड़ने का भय न हो।

(4) लोगों में प्रजनन और परिवार की जनन क्षमता को नियमित करने का अधिकार।

(5) सभी दंपत्तियों एवं व्यक्तियों को बच्चों की संख्या और उनके जन्म में अंतर को निर्धारित करने का मूल अधिकर।

इस योजना में परिवार कल्याण कार्यक्रम में 15,120 करोड़ रूपए व्यय किए गये।

(x) दसवीं पंचवर्षीय योजना में परिवार कल्याण कार्यक्रमः दसवीं योजना में परिवार कल्याण की सेवाओं से संबंधित अनुभव की गयी सभी जरूरतों को पूरी तरह से पूरा करने और परिवार को निम्नलिखित में महत्वपूर्ण परिवर्तन करके उनके प्रजनन सम्बन्धी लक्ष्यों को हासिल करने में समर्थ बनाने का प्रस्ताव है :- (1) दंपत्तियों को उनके प्रजनन संबंधी लक्ष्यों को पूरा करने में समर्थ बनाने पर ध्यान देने के लिए जनसांख्यिकीय लक्ष्य। (ii) शिशु मृत्यु और अधिक वांछित जनन क्षमता में कमी लाने के लिए समुदाय आवश्यकता पर आधारित मूल्यांकन और विकेन्द्रित क्षेत्र विशिष्ट लघु योजना निर्माण तथा प्रजननकारी और बाल स्वास्थ्य देखरेख (आरसीएच) कार्यक्रम के कार्यान्वयन के केन्द्रीय रूप से परिभाषित लक्ष्य। (iii) नियोजित मातृत्व- पितृत्व में पुरूषों को शामिल करने पर जोर देने के साथ-साथ स्वास्थ्य देख-रेख सम्बन्धी जरूरतों को पूरा करने के लिए मुख्य रूप से महिला केन्द्रित कार्यक्रम।

दसवीं योजना में वर्ष 2007 तक शिशु मृत्यु दर को कम करके 45/1,000 करने और वर्ष 2012 तक 28/1,000 करने वर्ष 2007 तक मातृ मृत्यु दर को कम करके 2/1,000 जीवित जन्म और वर्ष 2012 तक 1/1,000 जीवित जन्म करने तथ वर्ष 2001-2011 के बीच जनसंख्या की दशकीय वृद्धि दर को कम करके 16.2 करने की परिकल्पना की गयी है।

विकसित देशों में जनसंख्या नीति (Population Policies in Developed Countries)

आज यद्यपि विश्व के अधिकांश विकसित देशों में जन्म-नियंत्रण विधियों के प्रयोग का सर्वमान्य प्रचलन है, किन्तु सीमित संख्या में देशों के द्वारा ही जनसंख्या वृद्धि की राष्ट्रीय नीति बनाई गई है, हाँ, अन्तर्राष्ट्रीय स्थानान्तरण को विनियमित करने के लिए अवश्य बनाए गए हैं। कुछ यूरोपीय देशों में तो अभी भी देशों की घटती जनसंख्या को दृष्टिगत कर जनवृद्धि-प्रोत्साहित करने वाली ही नीतियों (Pronatalist Policies) बनाई गई है। तथापि इन देशों की अनेक आर्थिक, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण सम्बन्धी नीतियों का ही जनांकिकीय महत्व है क्योंकि इनमें गर्भ निरोधकों की उपलब्धता, बन्ध्याकरण, गर्भपात, विवाह, तलाक, आयकर, परिवार भत्ता एवं आप्रवास सम्बन्धी बातों को सम्मिलित किया गया है। संयुक्त राज्य अमेरिका में कोई विशिष्ट जनसंख्या नीति नहीं है। 1960 तक जनसंख्या वृद्धि की ओर उन्मुख विचार थे, जबकि 1970 में परिवार नियोजन तथा जनसंख्या-अनुसंधान अधिनियम पारित कर इच्छित लोगों को परिवार नियोजन सेवाएँ प्रदान करने का प्राविधान हुआ। 1970 में सं० रा० जनसंख्या वृद्धि आयोग ने जनवृद्धि को देश के लिए अलाभकर घोषित कर, गर्भपात नियम को सरल बनाने का सुझाव दिया। इस आयोग ने नाबालिग सहित सभी के लिए गर्भ-निरोधकों की उपलब्धता, बन्ध्याकरण पर चिकित्सालयों के नियंत्रण को कम करने, यौन-शिक्षा को पाठयक्रम में सम्मिलित करने तथा जनता से संबंधित स्वस्थ्य सेवाओं को स्वास्थ्य-बीमा के अन्तर्गत रखने की सशक्त संस्तुति की।

यूरोप के अधिकांश देशों में सरकार जनसंख्या नीति तो नहीं फिर भी यहाँ गर्भ निरोधकों के प्रयोग की परम्परा लम्बी अवधि से प्रचलित है। परम्परागत निरोधकों के स्थान पर गोलियों का प्रयोग बढ़ गया है। यूरोपीय देशों मे स्वीडन एक अपवाद है जहाँ 1930 से ही जनसंख्या की सरकारी नीति लागू है। यहाँ यौन-शिक्षा, कुछ परिस्थितियों में गर्भपात, राष्ट्रीय स्वास्थ्य संगठन के अंग के रूप में तथा परिवार नियोजन सेवाओं को प्रचारित किया गया। इंग्लैण्ड में 1974 में गर्भ निरोधक तथा गर्भपात को सरकारी स्वीकृति मिली। फ्रांस, बेल्जियम और नीदरलैण्ड में अभी हाल के वर्षों तक नियोजन-सामग्रियों के वितरण पर वैधानिक नियंत्रण था- फ्रांस में 1960 के दशक में गर्भ निरोधकों का प्रयोग वैधानिक हुआ। इटली में 1975 में ही परिवार नियोजन को सरकारी स्वीकृति प्राप्त हो पाई थी। एशिया में जापान ही एक ऐसा देश है जिसने विकसित देशों की भाँति अपने यहाँ गर्भपात को वैधानिक बनाकर, जन्मदर को कम करने में सफलता प्राप्त की है। यहाँ 1950 में ही शिक्षा एवं सामुदायिक कार्यक्रम के माध्यम से दो बच्चों के परिवार बनाए जाने पर जोर दिया गया जिसके परिणामस्वरूप जनवृद्धि पर समुचित नियंत्रण हो सका।

विकासशील देशों में जनसंख्या नीति

(Population Policies in Under Developed or Developing Countries)

विश्व के अधिकांश अल्पविकसित देश जनसंख्या विस्फोट के दौर से गुजर रहे हैं, अतः इनकी सरकारों द्वारा परिवार नियोजन कार्यक्रम को अंगीकार किया जा चुका है। चीन, भारत, इण्डोनेशिया, पाकिस्तान, दक्षिणी कोरिया, सिंगापुर, ट्यूनीशिया, मिस्त्र आदि देशों ने तो इसके लिए एक सामाजिक नीति को ही अपना लिया है। अफ्रीकी महाद्वीप पर विश्व के दक्षिणी भाग में विकास हेतु अधिक मनुष्यों की आवश्यकता जैसी विचारधारा आज भी बहुत ही प्रचलित है। कीनिया तथा घाना में सर्वप्रथम सघन परिवार नियोजन कार्यक्रम प्रारम्भ किया गया। कुछ उत्तरी अफ्रीकी देशों, जैसे- मिस्त्र, ट्यूनीसिया द्वारा गर्भपात को वैध करार देना सफल जनसंख्या नीति क्रियान्वयन का एक उदाहरण है।

विश्व जनसंख्या के आधे भाग को धारण करने वाले एशिया में जनसंख्या नीति का विस्तृत स्वरूप प्रदर्शित होता है। चीन, भारत, इण्डोनेशिया, चाईलैण्ड, श्रीलंका, हांगकांग, सिंगापुर, दक्षिण कोरिया में परिवार नियोजन नीति अनेक सामाजिक-आर्थिक उपायों से जोड़ दी गई तथा इसमें आश्चर्य नहीं कि यहाँ जन्मदर में ह्रास भी अंकित किया जा रहा है। पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, मलेशिया और फिलीपाइन्स में परिवार नियोजन कार्यक्रमों को अपनाया तो गया है परन्तु इसका अल्पमत प्रभाव ही नीतियों देखी जाती है। अफगानिस्तान, इराक, जार्डन, सीरिया में मात्र स्वास्थ्य तथा कल्याण की दृष्टि से परिवार नियोजन सेवाओं के प्रति लोगों की रूचि है।

परिवार नियोजन (Family Planning)

जनसंख्या नीति के उद्देश्यों को देखने से स्पष्ट होता है, भारत में भारी जनसंख्या वृद्धि तथा परिवारों के बढ़ते आकार को देखते हुए परिवार नियोजन आवश्यक है। परिवार नियोजन का तात्पर्य ऐसे परिवारो का निर्माण करना है जो आकार में छोटा व स्वस्थ हो तथा जीवन स्तर को ऊँचा उठाने या बनाए रखने में सहायक हो। भारत में 12.3 करोड़ परिवारों के सन्दर्भ में औसत परिवार आकार का 5.55 आता है। अर्थात् एक परिवार में औसतन 4 बच्चे हैं। स्पष्ट है कि यह परिवार आकार उच्च जन्म दर एवं निम्न मृत्यु दर का प्रतिफल है। अतः परिवार नियोजन के माध्यम से जन्म दर में समुचित कमी कर औसत परिवार आकार को 4 करने पर प्रति परिवार माता-पिता तथा 2 बच्चे का औसत आएगा और यह भारत की जनसंख्या को स्थिर करने में सहायक होगा। परिवार में बच्चों की संख्या एक होने पर जनसंख्या का ह्रास, दो होने पर स्थिर होगा तथा 3 होने पर साधारण वृद्धि तथा उससे अधिक होने पर भारी वृद्धि होगी।

भारत में परिवार नियोजन की प्रगति को तीन कालावधि में संक्षेपित किया जा रहा है-

(A) स्वतंत्रतापूर्व के काल को प्रारम्भिक प्रयास का समय माना जा सकता है। इस अवधि में छिटपुट रूप से परिवार नियोजन की आवश्यक के प्रति जागरूकता उत्पन्न की गई। 1930 में मैसूर सरकार ने बैंगलूर तथा 1932 में मद्रास सरकार ने प्रेसीडेंसी में सन्तति निग्रह चिकित्सालयों की स्थापना की। 1935 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा परिवार नियोजन को विकास कार्यक्रमों का अंग बनाने की सलाह दी गई। 1943 में सरकार के स्वास्थ्य सर्वेक्षण एवं विकास परिषद ने मातृत्व रक्षा हेतु सरकारी अस्पतालों में संतति निग्रह वार्ड खोलने की संतुष्टि प्रदान की। 1949 में भारतीय परिवार नियोजन संघ बना जिसका प्रमुख कार्य देश में परिवार नियोजन का प्रचार-प्रसार करना था। 1951 में योजना आयोग ने परिवार नियोजन कार्यक्रम संबंधी सुझाव देने के लिए विशेष समिति का गठन किया।

(B) प्रयोग की अवधि (195165 तक): प्रथम पंचवर्षीय योजनाकाल से ही सरकारी स्तर पर परिवार नियोजन कार्यक्रमों को प्रोत्साहन मिलना शुरू हो गया। 1951 से 1965 के मध्य की अवधि को चिकित्सालय उपागम की संज्ञा के अंतर्गत लोगों को परिवार नियोजन कार्यक्रमों को अपनाने के लिए प्रेरित किया गया। नसबन्दी ऑपरेशन हेतु नकद-प्रोत्साहन इसी योजना का अंग है। शासन की ओर से द्वितीय उपागम के साथ 'कैफेटेरिया उपागम' को भी अपनाया गया जिसके अन्तर्गत लोगों को परिवार नियोजन के उपलब्ध साधनों में से किसी भी साधन को अपनाने का विकल्प दिया गया है।

(C) प्रभावी नियंत्रण के प्रारम्भ का समय 1966 के बाद ही देखा जा सका है। 1975-86 तक 185.2 लाख नसबन्दी ऑपरेशन किए गए, लगभग 60 लाख महिलाओं ने अन्तर्गर्भाशय युक्तियों (IUCD) का प्रयोग किया तथा निरोध (कंडोम) उपयोग करने वालों की संख्या 165.2 लाख थी। इनके उपयोग की दरें क्रमशः 33.1, 10.7 और 26.4 प्रति हजार जनसंख्या थी। इन दस वर्षों में प्रगति अच्छी रही। तदन्तर सत्नोषप्रद रही। तदन्तर लगभग 7 वर्षों तक अर्थात् 1982-83 तक भी परिवार नियोजन कार्यक्रम की प्रगति संतोषप्रद रही। 1982-83 तक 4 करोड़ से कुछ अधिक ऑपरेशन हुए, जिसमें 2.2 करोड़ पुरुष नसबन्दी तथा 1.8 करोड़ महिला बन्ध्याकरण के मामले थे। कापर-टी, लूप आदि अपनाने वाली, स्वियों की संख्या 1.06 करोड़ तक पहुँच गई थी। अप्रैल 1972 से मार्च 1983 तक 28 लाख गर्भपात भी कराए गए। योजना की विभागीय रिपोर्ट के अनुसार 1983 तक लगभग 547 लाख जन्म रोके गए थे। देश की आपातकालीन अवधि में नसबन्दी की संख्या में भारी वृद्धि पाई जाती है। 1981 तक जन्म दर को घटाकर 25 पति हजार करने का लक्ष्य था किन्तु यह दर मात्र 34 प्रति हजार तक ही पहुँच गयी। सन्तानोत्पत्ति योग्य दम्पतियों (12.3 करोड़) में से एक तिहाई लोग ही 1982-83 तक परिवार नियोजन को भलीभाँति अपना पाए है जबकि 25 जन्मदर लाने के लिए 75 से 80 प्रतिशत दम्पतियों को परिवार नियोजन सुरक्षा की आवश्यकता होगी। इसके बाद 1991 के बाद "हम दो हमारे दो" का नारा बुलन्द किया गया। फिर 2001 के बाद सरकार ने "हम दो हमारा एक" घोष वाक्य रखा है।

दीर्घावधि एवं मध्यावधि के कुछ नीतिगत परिवर्तन

(i) शिशु विकास कार्यक्रम (ICDS) में सुधार करनाः 0-3 आयु वर्ग में माताओं एवं शिशुओं की देखभाल, 3-9 आयु वर्गों में लड़कियों की शिक्षा का विशेष प्रबन्ध करना, तथा 9-18 आयुवर्ग में किशोरियों को स्त्री-शिक्षा, उनमें कार्य तथा धनोपार्जन की योग्यता विकसित करना, 18 वर्ष से ऊपर आयु में विवाह के लिए प्रेरित करना।

(ii) सूचना के माध्यम से जनता को शक्ति प्रदान करना (Power to People Through Information):- गाँवों में सूचनापट पर महत्वपूर्ण सरकारी कार्यक्रमों को लिखना, स्थानीय रेडियो तथा टेलीविजन स्टेशनों द्वारा सूचनाओं का सतत प्रसारण।

(iii) विदेशी सहयोग की क्षेत्रीय परियोजनाओं (Foreign - Aided Regional Projects) को जनोपयोगी बनाने की दिशा में प्रयास करना।

(iv) साक्षरता रणनीति के अन्तर्गत निरक्षरता, अज्ञानता को त्वरित गति से समाप्त करने, गरीबी- निवारण कार्यक्रमों में से भ्रष्टाचार को न्यूनतम करने तथा जनसमूह के शिक्षण हेतु सूचना माध्यमों का बेहतर प्रयोग जैसे कार्यों को लागू करना।

(v) जन्म और मृत्यु का अनिवार्य पंजीयन (Compulsory Registration of Births and Deaths) अनिवार्य किया जाए जिसके लिए सरकार को एक ऐसी योजना बनानी पड़ेगी जिससे सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) देश के सभी भागों तक पहुँच सके, तथा प्रत्येक कुटुम्ब का एक कुटुम्ब-कार्ड बने, जिस पर वे स्वास्थ्य एवं परिवार नियोजन सहित अन्य सुविधाएँ प्राप्त कर सकें।

(vi) परिवार कल्याण कार्यक्रमों का विकेन्द्रीकरण (Decentralisation): परिवार नियोजन तथा स्वास्थ्य कार्यक्रमों को पंचायतों के कार्यक्षेत्र में सम्मिलित करने की वैधानिक व्यवस्था की जानी चाहिए।

(vii) स्वयंसेवीवाद (Voluntarism):- स्वयंसेवी संस्थाओं तथा समाजसेवी जनों द्वारा लोगों में जागरूकता उत्पन्न करने की रणनीति तैयार करना।

इस प्रकार, भारत में परिवार नियोजन को अपेक्षित सफलता नहीं मिल पा रही है जिसके लिए मूल रूप से अशिक्षा तथा अज्ञानता अधिक उत्तरदायी है। आवश्यकता लोगों तथा परिवार नियोजन सन्देश को पहुँचाने, समझाने तथा एक वातावरण तैयार करने की है, ताकि लोग स्वतः परिवार नियोजन कार्यक्रमों को अपनाने के लिए आगे आ सकें।

जनसंख्या नीति के उद्देश्य (Objects of Population Policy)

जनसंख्या नीतियों के उद्देश्य को निम्न विन्दुओं के आधार पर स्पष्ट किया जा सकता हैः-

(1) जनसंख्या की संरचना में सुधार, (2) जन्म व मृत्यु दरो में नियंत्रण, (3) जनसंख्या वृद्धि का नियमन, (4) जनसंख्या के भौगोलिक वितरण में संतुलन, (5) आर्थिक विकास एवं जनसंख्या का नियमन। इसी प्रकार जनसंख्या नीति के प्रमुख उद्देश्यों का दो दृष्टिकोण से अध्ययन किया जा सकता है:-

(1) परिमाणात्मक या संख्यात्मक दृष्टिकोण (Quantitative Aspect): इसके अंतर्गत जिन तत्वों की और प्रमुख रूप से निम्न मुद्दों पर ध्यान दिया जाता है।

(i) देशांतरण का निर्धारण: देश में आंतरिक व बाड़ा प्रवसन को देश के लोगों के हितों को ध्यान में रखकर निर्धारित करना जनसंख्या नीति का प्रमुख अंग होता है।

(ii) उर्वरता का पुनर्निरीक्षणः इसके अंतर्गत देश की वर्तमान जन्य दर का मूल्यांकन कर यह देखा जाता है कि देश में उपलब्ध संसाधनों को देखते हुए जनसंख्या का आकार उपयुक्त है या अधिक है, इसी तथ्य को ध्यान में रखते हुए उर्वरता दर को कम करने या बढ़ाने का प्रयास किया जाता है।

(iii) मृत्यु तथा अस्वस्थता को कम करनाः विकसित व विकासशील दोनों ही देशों में मृत्यु दर में कमी व स्वास्थ्य सुधार में वृद्धि का उद्देश्य जनसंख्या नीति का प्रमुख उद्देश्य होता है। इससे प्रत्याशित आयु में वृद्धि होती है, जिसके कारण उत्पादक आयु बढ़ने से राष्ट्रीय उत्पादन भी बढ़ता है।

(2) गुणात्मक दृष्टिकोण (Qualitative Aspect): विभित्र देश की जनसंख्या में निरन्तर गुणात्मक व परिमाणात्मक परिवर्तन होते रहते हैं, किन्तु ये परिवर्तन पर्याप्त एवं मंदगति से होते हैं, जिनका आभास तुरंत अथवा दिन-प्रतिदिन नहीं होता, बल्कि कुछ वर्षों पश्चात् अथवा अगली जनगणना के आंकड़ों के विश्लेषण से ज्ञात होता है। जनसंख्या में होने वाले ऐसे परिवर्तन देश की जनसंख्या में गुणात्मक परिवर्तन होते हैं. उसे जनसंख्या का गुणात्मक पहलू कहते हैं।

राष्ट्रीय जनसंख्या नीति, 1981 (National Population Policy, 1981)

जून, 1981 में सरकार ने राष्ट्रीय जनसंख्या नीति का संशोधित रूप प्रस्तुत किया जिसके प्रमुख मुद्दे निम्न प्रकार थे-

(1) गर्भपात सुविधाओं का विस्तार करना स्वीकार किया गया।

(2) जनसंख्या शिक्षा के लिए उचित कार्यक्रम बनाने के विचार पर बल दिया गया।

(3) परिवार नियोजन के विभिन्न साधनों एवं उपायों को सामान्यजन तक सुलभ कराने की समुचित व्यवस्था पर बल दिया गया।

(4) सन् 2001 तक जन्म दर को घटा कर 21 प्रति हजार लाना।

(5) सन् 2001 तक 90 प्रतिशत दंपतियों को परिवार नियोजन कार्यक्रमों की परिधि में लाने का लक्ष्य रखा गया।

(6) पुरूष बंध्याकरण से संबंधित भ्रांतियों का निराकरण करने पर बल दिया गया।

(7) स्त्री शिक्षा एवं रोजगार की दिशा में विशेष ध्यान पर बल दिया गया ताकि स्वियों में आत्मनिर्भरता एंव सामाजिक सुरक्षा की भावना जाग्रत की जा सके।

(8) सन् 2001 तक मृत्यु दर घटा कर 9 प्रति हजार लाना तथा शिशु मृत्यु दर 125 प्रति हजार से घटा कर 60 प्रति हजार लाना।

(9) परिवार कल्याण कार्यक्रम को अन्य आर्थिक एवं सामाजिक विकास कार्यक्रमों के साथ जोड़ने पर बल दिया गया।

(10) माताओं एवं बच्चों को रोग प्रतिरक्षण टीके समय पर लगा कर उनके स्वास्थ्य में सुधार के प्रयास पर बल दिया गया।

राष्ट्रीय जनसंख्या नीति 2000

15 फरवरी 2000 को स्वामीनाथन समिति की सिफारिशों के आधार पर केन्द्र सरकार ने राष्ट्रीय जनसंख्या नीति 2000 की घोषणा की। इस नीति में निम्नांकित तीन उद्देश्यों का समावेश हैः-

(A) तात्कालिक उद्देश्यः- इस उद्देश्य में गर्भ निरोधक उपायों के विस्तार हेतु स्वास्थ्य एवं बुनियादी दाँचे का विकास करना रखा गया है।

(B) मध्यकालीन उद्देश्यः- इस उद्देश्य के अन्तर्गत 2010 तक कुल प्रजननता दर को घटाने की व्यवस्था करने का लक्ष्य रखा गया है।

(C) दीर्घकालीन उद्देश्यः- इस उद्देश्य में 2045 तक स्थायी आर्थिक विकास हेतु आवश्यक स्थिर जनसंख्या के उद्देश्य की प्राप्ति का लक्ष्य रखा गया है।

इस नीति में निम्न उद्देश्यों को पूर्ण करने की योजना बनायी गयी।

(1) 14 तक विद्यालयी शिक्षा को मुफ्त तथा अनिवार्य बनाना। प्राथमिक वर्ष की आयु तथा माध्यमिक विद्यालय स्तरों पर छात्र और छात्राओं दोनों का ही विद्यालय छोड़ने में 20 प्रतिशत तक कमी लाना। शिशु मृत्यु दर प्रति हजार पर 30 से नीचे लाना।

(2) मातृत्व मृत्यु-दर 1,00,000 प्रति जीवित जन्मों पर 100 से नीचे लाना।

(3) कन्याओं के विवाह में देरी को प्रोत्साहित करना जो, 18 वर्ष से पहले नहीं हों तथा 20 वर्ष के बाद करने को प्रोत्साहन दिया जाए।

(4) 80 प्रतिशत प्रसव संस्थाओं द्वारा 100 प्रतिशत प्रसव प्रशिक्षित दाइयों के द्वारा होना।

(5) प्रजनन विनियमन के लिए सूचना, सलाह और सेवाओं की सार्वभौम पहुँच तथा गर्भ-निरोधक के व्यापक विकल्पों का पता लगाना।

(6) टीकों द्वारा रोकथाम वाली बीमारियों के विरूद्ध सार्वभौमिक टीकाकरण की व्यवस्था करना।

(7) टी० एफ० आर० को प्रतिस्थापन स्तरों तक प्राप्त करने हेतु छोटे परिवार के मानदण्डों को ठोस रूप से बढ़ावा देना।

(8) प्रजनन तथा शिशु स्वास्थ्य सेवाओं की व्यवस्था तथा घरों तक इनकी पहुँच करने हेतु भारतीय औषध पद्धति को एकीकृत करना।

(9) संक्रामक बीमारियों की रोकथाम और उन पर नियंत्रण करना।

(10) एड्स के प्रसार को रोकना तथा प्रजनन अंग-संक्रमण (आर० टी० आई०) और यौन संचारी रोगों तथा एड्स नियंत्रण संगठन के बीच अपेक्षाकृत अधिक एकीकरण को बढ़ावा देना।

राष्ट्रीय जनसंख्या नीति 2000 की आलोचना

सम्पूर्ण भारत में जनसंख्या नियोजन के उद्देश्य से बनाई गयी उपर्युक्त वर्णित जनसंख्या नीति की निम्नलिखित आलोचनाएँ की गयी हैः-

(1) विलंब से घोषणाः जनसंख्या नियंत्रण के सम्बन्ध में किसी विधिवत् नीति की घोषणा स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् काफी देर से की गयी है।

(2) अधिक सैद्धांतिकः भारत की जनसंख्या नीति व्यावहारिक कम तथा सैद्धांतिक अधिक है. फलतः इस नीति को देश के सभी धर्मों और वर्गों पर समान रूप से क्रियान्वित नीति व्यावहारिक कम तथा सैद्धांतिक अधिक है, फलतः इस नीति को देश के सभी धर्मों और वर्गों पर समान रूप से क्रियान्वित करने में अनेक व्यावहारिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है।

(3) राज्य सरकारों की अकुशलताः वर्तमान जनसंख्या नौति यद्यपि भारत सरकार द्वारा तैयार की गयी है। परन्तु इसके क्रियान्वयन का उत्तरदायित्व राज्य सरकारों पर है। राज्य सरकारें इस उत्तस्दायित्व का कुशलतापूर्वक निर्वाह नहीं कर पा रही है।

(4) अनिवार्यता का अभावः यह नीति स्वैच्छिक अधिक और अनिवार्य कम है। जनसंख्या के प्रभावी नियंत्रण हेतु जिन उपायों को बतलाया गया है, उनको अपनाने के लिए किसी भी प्रकार की अनिवार्यता का इस नीति में सर्वधा अभाव है।

(5) अपर्याप्त मौद्रिक प्रलोभनः वर्तमान समय में जिस गति से मुद्रा प्रसार हो रहा है, उसे देखते हुए इस नीति में जनसंख्या नियंत्रण के लिए जिन मौद्रिक प्रलोभनों की घोषणा की गयी है, वे अपर्याप्त है।

(6) यौन शिक्षा की उपेक्षाः यद्यपि सरकार ने जनसंख्या शिक्षा और यौन शिक्षा को पाठ्‌यक्रमों में सम्मिलित करने की बात को सिद्धांत रूप में स्वीकार कर लिया है किंतु व्यवहार में सरकार इसके प्रति उदासीन ही रही है।

निष्कर्ष के रूप में वर्तमान राष्ट्रीय जनसंख्या नीति को सही दिशा में कदम माना जा सकता है। किन्तु आलोचकों का आरोप है कि नई जनसंख्या नीति परिवार-परिसीमन का सारा भार 'स्त्रियों' पर डाल रही है। यह अधिक अच्छा होता यदि नीति में दो बच्चों के बाद नसबंदी कराने के लिए पुरूषों को भी अधिक आकर्षक प्रोत्साहन उपलब्ध कराया जाता ताकि परिवार के दोनों साझीदारों पुरूष एवं स्त्री पर जनसंख्या नियंत्रण का भार समान रूप से डाला जा सके।

राष्ट्रीय जनसंख्या आयोग (National Population Commission)

केन्द्र सरकार द्वारा प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में एक सौ सदस्यीय राष्ट्रीय जनसंख्या आयोग का गठन किया गया है। केन्द्र सरकार ने जनसंख्या आयोग के गठन की घोषणा ऐसे समय पर की जब देश की जनसंख्या एक अरब से अधिक हो गई। इस आयोग में वित्त, शिक्षा, पर्यावरण, सामाजिक न्याय, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण, सूचना प्रसारण, ग्रामीण विकास, नगर विकास तथा महिला और बाल-विकास मंत्रालयों के मंत्रियों, सभी राज्यों एवं केन्द्र शासित प्रदेशों के मुख्य मंत्रियों, लोकसभा और राज्यसभा के प्रतिपक्ष के नेता एवं विभिन्न महत्वपूर्ण क्षेत्रों के प्रतिनिधि सदस्य है। यह आयोग राष्ट्रीय जनसंख्या नीति - 2000 के क्रियान्वयन की समीक्षा करेगा तथा इस बारे में आवश्यक निर्देश देगा। इसके अलावा यह आयोग विभिन्न जनसांख्यिकी, शैक्षिक, पर्यावरण संरक्षण और विकास कार्यक्रमों के बीच बेहतर तालमेल स्थापित करेगा, साथ ही जनसंख्या नियंत्रण के लिए केन्द्र एवं राज्यों के बीच समन्वय स्थापित करेगा।

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