निर्धनता : निरपेक्ष, सापेक्ष तथा सूचक (Poverty: absolute, relative and indicator)

निर्धनता : निरपेक्ष, सापेक्ष तथा सूचक (Poverty: absolute, relative and indicator)

निर्धनता : निरपेक्ष, सापेक्ष तथा सूचक (Poverty: absolute, relative and indicator)

प्रश्न:- निर्धनता क्या है। निरपेक्ष निर्धनता एवं सापेक्ष निर्धनता में अन्तर स्पष्ट करे? निर्धनता के कौन-कौन से सूचक है?

उत्तर:- निर्धनता मानवता पर एक अभिशाप है। यह समाज के वर्ग को जीवन की न्यूनतम वश्यकताओं जैसे अनाज, कपड़े, आवास, शिक्षा तथा स्वास्थ्य से वंचित रखती है।

"निर्धनता रेखा आय- वितरण में एक ऐसा विभाजन बिन्दु है जो जनसंख्या को निर्धन तथा गैर निर्धन वर्ग में बांटता है।"

निर्धनता रेखा के नीचे लोग निर्धन कहलाते है तथा इससे ऊपर मध्य तथा नी वर्ग होता है। निर्धनता रेखा इस प्रकार आय वितरण की असमानता से निकली धारणा है यद्यपि  अथवा व्यय का यह विभाजन बिन्दु विभिन्न देशो तथा क्षेत्रों में विभिन्न प्रकार से निर्धारित होता है

भारतीय नियोजन आयोग के अनुसार, "निर्धनता रेखा न्यूनतम पौष्टिकता स्तर के आधार पर प्रति व्यक्ति ग्रामीण क्षेत्र में 2400 कैलोरी तथा शहरी क्षेत्रों में 2100 कैलोरी लेकर खींची गई है"

वास्तव में, निर्धनता की विभिन्न परिभाषाओ में न्यूनतम जीवन स्तर पर ही जोर दिया जाता है। और अर्थशास्त्री सामान्यतः दो प्रकार के जीवन स्तर की चर्चा करते हैं-

सापेक्ष निर्धनता

यह विभिन्न वर्गों, क्षेत्रों तथा विभिन्न देशों के तुलनात्मक अध्ययन को सम्बोधित करती है। वह देश अथवा र्ग जिसका जीवनहन-सहन का स्तर, ऊँचे रहन सहन के स्तर में रहने वाले लोगों से निम्न है, उन्हे निर्धन अथवा सापेक्ष रूप से निर्धन स्वीकार किया जाता है। 2004 में प्रकाशित World Report ने कुछ देशों के समक इस प्रकार से प्रस्तुत किए है।

प्रति व्यक्ति आय (डॉलरो में)

देश

प्रति व्यक्ति आय

जापान

33550

U.S.A

35060

U.K

25250

चीन

940

भारत

480

बंगलादेश

380

इन आंकड़ों से हम निष्कर्ष निकाल सकते है कि भारत जैसे देशो की प्रति व्यक्ति आय अमेरिका जैसे देशों की तुलना में काफी कम है। इसलिए भारत, विकसित देशों की तुलना में एक निर्धन देश है। इसीलिए इसे एक अल्पविकसित देश स्वीकार किया जाता है।

निरपेक्ष या परम स्तर निर्धनता

निरपेक्ष निर्धनता समाज के उस वर्ग को सम्बोधित करती है जिसके पास जीवन की न्यूनतम आवश्यकताएँ भी नहीं होती अथवा वह जीवन के न्यूनतम स्तर को प्राप्त करने में असफल रहते है। इसे निम्न दो विधियों के आधार पर निर्धारित किया जा सकता है -

(a) न्यूनतम कैलोरीज विधि :- योजना आयोग 1977 ने निर्धनता रेखा को कैलोरीज के उपभोग के आधार पर परिभाषित किया। कैलोरीज की प्राप्ति अनाज सम्बन्धी वस्तुओं के उपभोग पर निर्भर करती है। इसने 2400 कैलोरीज प्रतिदिन प्रति व्यक्ति ग्रामीण क्षेत्र के लिये तथा 2100 कैलोरीज प्रति व्यक्ति प्रतिदिन शहरी क्षेत्र के लिए परिभाषित की। इस स्तर के नीचे उपभोग करने वाले लोग 'निर्धनता रेखा से नीचे रहते हैं।

(b) न्यूनतम उपभोग व्यय विधि :- भारत में निर्धनता निर्धारित करने के बहुत से अनुमान प्रति व्यक्ति, प्रति मास न्यूनतम उपभोग व्यय पर आधारित है। यह ग्रामीण तथा शहरी वर्ग के लिए अलग- अलग राशि होती है। 1993-94 की कीमतों के आधार पर ग्रामीण क्षेत्रों के लिए न्यूनतम उपभोग व्यय 229.80 रुपये तथा शहरी क्षेत्र के लिए प्रति व्यक्ति प्रति मास व्यय 264 रु. निर्धारित किया गया है। इस स्तर के नीचे रह रहे लोग निर्धनता रेखा से नीचे स्वीकार किए जाते है।

निरपेक्ष और सापेक्ष निर्धनता में अन्तर

इन दोनों में अन्तर निम्नलिखित है -

निरपेक्ष निर्धनता

सापेक्ष निर्धनता

(1) अर्थ के आधार पर- इसका अभिप्राय उन लोगों की कुल संख्या से है, जो निर्धनता रेखा से नीचे रहते हैं

(1) अर्थ के आधार पर- यह दो समाजो या राष्ट्रों के बीच तुलनात्मक अध्ययन है।

(2) माप के आधार पर- इसे दो आधार पर मापा जा सकता है

(i) मासिक उपभोग व्यय मापदण्ड

(ii) कैलोरीज मापदण्ड

(2) माप के आधार पर- इसे भी दो आधार पर मापा जा सकता है

(ⅰ) तुलना के आधार पर

(ii) प्रति व्यक्ति आय के रूप में डॉलर मापदण्ड


निर्धनता के सूचक

भारतवासियो की निर्धनता के सूचक निम्नलिखित है -

(1) प्रति व्यक्ति निम्न आय :- भारत में प्रति व्यक्ति औसत आय विश्व के अन्य देशो की अपेक्षा बहुत ही कम है। भारत की प्रति व्यक्ति औसत आय की तुलना में संयुक्त राज्य अमेरिका की प्रति व्यक्ति औसत आय 55 गुनी, कनाडा की 45 गुनी तथा ब्रिटेन की 40 गुनी अधिक है। इससे देशवासियों के निम्न जीवन स्तर का अन्दाजा लगाया जा सकता है।

(2) राष्ट्रीय ‌आका विषम वितरण :- India : Irrigation and Power projects के अनुसार, देश की सम्पूर्ण राष्ट्रीय आय का एक बहुत बड़ा भाग थोड़े से व्यक्तियों के हाथ में केन्द्रित है। ये लोग ऐश एवं आराम का जीवन व्यतीत करते है जबकि समाज के बहुसंख्यक व्यक्तियों की न्यूनतम वश्यकताओं की भी पूर्ति नहीं हो पाती। National Council of Applied Economic Research के अनु‌मान के अनुसार 1962-63 में भारत में केवल 1% परिवारो को कुल राष्ट्रीय आय का 10% भाग प्राप्त होता था। इससे भी हम देशवासियों की निर्धनता का अन्दाजा लगा सकते हैं।

(3) उपभोग का निम्न स्त :- भारतवासियों के उपभोग का स्तर भी बहुत ही निम्न है जो निम्नांकित विवरण से अधिक स्पष्ट हो जाता है

(a) सन्तुलित भोजन का अभाव :- दांडेकर एवं रथ नामक अर्थशास्त्रियों ने यह अनुमान लगाया था कि भारत में 40% लोगों को अत्यन्त कम पोषक तत्त्वयुक्त भोजन मिलता है। जहाँ तक संतुलित भोजन का प्रश्न है हमारे देश के प्रायः 95% लोगों को सन्तुलित भोजन नहीं मिलता। विशेषज्ञों के अनुसार सन्तुलित भोजन के लिए एक औसत भारतीय के भोजन में कम से कम 3000 कैलोरी की आवश्यकता है, किन्तु उसे 1984 में केवल 2056 कैलोरी ही प्राप्त हो पाता है। इस प्रकार संयुक्तत राज्य अमेरिका के एक औसत निवासी के भोजन में प्रतिदिन मिलने वाले 3641 कैलोरी, ब्रिटेन के 3240 कैलोरी, कनाडा के 3346 कैलोरी तथा फ्रांस के 3530 कैलोरी से इसकी तुलना करने पर हम भारतवासियों के भोजन के पोषक तत्वों का कितना अभाव है, स्पष्ट हो जाता है ।

(b) प्रति व्यक्ति वस्त्र एवं चीनी की कम खपत :- भारत में प्रति व्यक्ति प्रतिवर्ष औसत रुप से 16 मीटर कपड़ा मिलता है, जबकि संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्रिटेन तथा जर्मनी में प्रति व्यक्ति वस्त्र का वार्षिक औसत उपभोग क्रमशः 64 मीट, 48 मीटर तथा 34 मीटर है।

इसी प्रकार भारत में प्रति व्यक्ति प्रतिदिन चीनी की औसत खपत केवल 50 ग्राम है जबकि इंगलैंड में इसकी औसत प्रतिदिन खपत 135 ग्राम, संयुक्त राज्य अमेरिका में 140 ग्राम तथा आस्ट्रेलिया में 144 ग्राम है।

(4) प्रति व्यक्ति औसत बिजली की कम खपत :- किसी राष्ट्र की आर्थिक समृद्धि का अन्दाजा प्रति व्यक्ति औसत बिजली की खपत से भी लगाया जाता है।: पंवर्षीय योजनाओं के सफल सम्पादन के बाद भी भारत में प्रति व्यक्ति बिजली की औसत खपत 1984 में केवल 182 इकाई है जो संयुक्त राज्य अमेरिका में औसत प्रति व्यक्ति प्रयुक्त बिजली की औसत खपत 7030 का प्रायः 1/40 वाँ भाग है।

(5) इस्पात की प्रति व्यक्ति कम खपत :- इस्पात की प्रति व्यक्ति खपत भी आज के युग में लोगों के भौतिक रहन सहन के स्तर का द्योतक और राष्ट्र के औद्योगिक विकास का मापदण्ड है। इस सम्बंध में भी भारत अन्य देशों से ही पिछड़ा हैStatistical Outline of India 1986-87 के अनुसार, भारत में इस्पात की प्रति व्यक्ति औसत खपत केवल 19 किलो ग्राम थी जबकि संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस तथा रूस में इसकी प्रति व्यक्ति औसत खपत क्रमशः 508kg, 247kg, 373kg तथा 554kg थी।

इस्पात के न्यून उपभोग स्तर से भी देश वासियों की निर्धनता का अन्दाजा लगता है।

(6) आवास सुविधा का अभाव :- भोजन तथा वस्त्र के बाद मनुष्य की तीसरी बुनियादी आवश्यकता आवास की है। किन्तु हमारे देश की अधिकांश निवासियों को आवास की उचित सुविधा भी उपलब्ध नहीं है।

(7) यातायात एवं संवादवाहन के साधनों की अपर्याप्तता :- प्रति 10 हजार जनसंख्या पर भारत में रेल लाइनों की औसत लम्बाई केव1.4 किलोमीटर है। जबकि संयुक्त राज्य अमेरिका में यह 19.8 km, कनाडा में 39.7km, फ्रांस में 8.8 km तथा ब्रिटेन में  5km है।

(8) कृषि की प्रधानता :- भारत में कृषि की प्रधानता है। उद्योग-धंधों का यहाँ बहुत ही कम विकास हो पाया है। देश में प्राय: 70 प्रतिशत व्यक्ति आज भी कृषि पर आश्रित है। कृषि पर हमारी यह अत्यधिक निर्भरता भी हमारी निर्धनता का परिचायक है।

(9) बेकारी तथा अर्द्धबेरोजगारी की समस्या :- भारत मे बेरोजगारी की संख्या बढ़ती जा रही है। जो निर्धनता को बढ़ाता चला जाता है।

निर्धनता के कारण

भारतीय समाज सुधारको ने भारत में निर्धनता को कम करने तथा दूर करने के लिए इसके कारणों की जाँच की है। इसमें निम्न कारण बताने योग्य है।

(1) आर्थिक विकास की धीमी दर :- योजना के दौरान आर्थिक विकास की दर 4.1% वार्षिक रही है, जबकि जनसंख्या विकास दर 1.9% वार्षिक रही है। इससे प्रति व्यक्ति वास्तविक दर में केवल 1.7% वार्षिक वृद्धि हुई। परिणाम स्वरूप लोगों की क्रय शक्ति कम हो गई।

(2) जनसंख्या में वृद्धि :- भारत में जनसंख्या निरन्तर बढ़ रही है। परिणामस्वरूप राष्ट्रीय आय में ऊँची वृद्धि दर के बावजूद भी प्रति व्यक्ति आवश्यक स्तर तक नहीं बढ़ रही है।

(3) ब्रिटिश शासन के दौरान शोषण :- ब्रिटिश शासकों ने भारतीय अर्थव्यवस्था का अपने उद्देश्यों के लिए शोषण किया। भारतीय उद्योग, कृषि तथा विदेशी व्यापार दबे रहे। घरेलू तथा छोटे उद्योगों का नाश हुआ जिससे प्रति व्यक्ति आय स्थिर रही तथा निर्धनता बढ़तीं रही

(4) बेरोजगारी संवृद्धि :- निर्धनता बेरोजगारी के साढ़ रही है। पंचवर्षीय योजनाओं में भारत सरकार द्वारा विशेष प्रयत्न करने पर भी बेरोजगारी निरन्तर बढ़ती गई।

(5) प्राकृतिक साधनों के शोषण का अभाव :- भारत एक नी देश है परन्तु यह निर्धन लोगों से घिरा हुआ है। इसका कारण यह है कि देके साधनों का पूर्ण उपयोग नहीं हो पाता। परिणामस्वरूप निर्धनता फैल जाती है।

(6) भारतीय कृषि का पिछड़ापन :- भारतीय कृषि पिछड़ी हुई है। इसलिए भारत के कृषि क्षेत्र की उत्पादकता धनी देशों से काफी कम है। इसके रिणाम स्वरूप अधिकतर भारतीय लोग निर्धनता रेखा से नीचे रह रहे है।

(7) पूँजी निर्माण की कम दर :- भारत में पूँजी निर्माण की दर बहुत कम है। कृषि तथा उद्योग की वृद्धि भी काफी कम रहती है।

(8) सामाजिक तत्व :- भाग्यवाद, अनपढ़ता, अज्ञानता, जातिवाद, संयुक्त परिवार प्रणाली दि तत्त्वों ने भारतीय लोगों को नई तकनीके अपनाने से रोका है। इससे न तो उनकी आय तथा न ही उपभोग व्यय बढ़ सका।

(9) आय तथा धन में असमानता :- भारत में आतथा न की असमानता भी निर्धनता के लिए उत्तरदायी है। इससे मुद्रा केवल कुछ हाथो तक केन्द्रित रहती है। परिणामस्वरूप बहुत से लोग जीवन की आधारभूत आवश्यकताएं भी प्राप्त नहीं कर सकते

(10) मुद्रास्फीति :- योजना की अवधि के दौरान मुद्रा स्फीति ने मध्य आय वाले समूह को बुरी तरह प्रभावित किया। दोहरी अंक वाली मुद्रास्फीति के कारण उनकी वास्तविक आकम हुई।

निर्धनता दूर करने के उपा

निर्धनता एक दीर्घकालीन बीमारी है। इसे दूर करने के लिए प्रत्येक प्रकार के प्रयत्न की आवश्यकता है।

(1) जनसंख्या पर नियंत्रण :- जनसंख्या नियन्त्रण समय कीवश्यकता है। यदि प्रति व्यक्ति आय की विकास दर, जनसंख्या में वृद्धि की दर से अधिक होती है तो यह निर्धनता को कम कर देगी।

(2) आर्थिक विकास की ऊंची दर :- निर्धनता को देश में र्थिक विकास की दर की बढ़ाकर दूर किया जा सकता है। इससे लोगों की आय बढ़ेगी जिससे लोगों के उपभोग व्यय में भी वृद्धि होगी।

(3) न्यूनतआवश्यकता कार्यक्रम :- सरकार को न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम को प्रभावशाली ढंग से लागू करने के प्रयत्न करने चाहिए। प्रत्येक व्यक्ति को जीवन सम्बन्धी आधारभूत आवश्यकताएं प्रदान करवानी चाहिए

(4) आय की असमानता में कमी :- निर्धनता में कमी, आकी असमानता को दूर करके भी लाई जा सकती है। इससे आय, सम्पत्ति धारक व्यक्तियों से गैर सम्पत्ति धारक व्यक्ति को हस्तांतरित होगी जिससे नीचे का हस्तांतरण प्रभाव कहते है। इससे अमीरो और गरीबो में खाई कम होगी।

(5) मुद्रास्फीति पर नियन्त्रण :- सरकार को कीमत नियन्त्रण विधियां अपनानी चाहिए ताकि निर्धन मजदू‌रों के रहन सहन का स्तर बुरी तरह प्रभावित न हो। उन्हें कीमत वृद्धि का उचित मु‌आव‌जा दिया जाना चाहिए

(6) सामाजिक सुरक्षा उपाय :- औद्योगिक श्रमिकों को पर्याप्त सामाजिक सुरक्षा उपाय जैसे पेंशन, सेवा निवृत्त लाभ, मातृत्व-अवकाश आदि प्रदान करने चाहिए। इससे वृद्ध औद्योगिक श्रमिकों के स्तर में सुधार होगा

(7) निवेश में वृद्धि :- कुछ राज्य जैसे उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, उड़ीसा आदि राज्य पिछड़े हुए राज्य है। इन राज्यों में लोग काफी निर्धन है। इनमें निर्धनता कम करने के लिए अधिक निवेश करने की आवश्यकता है

(8) रोजगार के अधिक अवसर :- सरकार को छोटे तथा घरेलू उद्योगों को प्रोत्साहित करना चाहिए। रोजगार में वृद्धि करने के लिए अधिक सार्वजनिक कार्य प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है।

(9) कुटीर तथा लघु उद्योग को प्रोत्साहन :- सरकार को कुटीर और लघु उद्योगों को प्रोत्साहन देना चाहिए। इससे ग्रामीण क्षेत्र की आय बढ़ेगी तथा इस क्षेत्र की निर्धनता कम होगी।

(10) पुनर्वितरण उपाय :- निर्धनता एक सापेक्ष धारणा है। यह आय तथा धन की असमानता के कारण पैदा होती है। इसे दूर करने के लिए निम्न कदम उठाने चाहिएँ

→ निर्धन वर्ग के लिए अधिक मजदूरी तथा स्व-रोजगार के अवसर

→ श्रमिकों द्वारा उप‌भोग की जाने वाली वस्तुओं पर न्यूनतम अप्रत्यक्ष कर तथा धनी वर्ग की आय एवं धन पर प्रगतिशील कर

→ भूमि जोतो पर उच्चतम सीमा तथा भूमिहीन किसानों में कुछ वित्त सहित तिरिक्त भूमि का आबंटन

→ प्रत्येक श्रमिक को न्यूनतम मजदूरी की गारण्टी

→ बाल्य और औरत श्रमिकों के शोषण के प्रति कठोर उपाय

→ निर्धन वर्ग के लिए मजदूरी स्तुओ (अनाज) के उत्पाद को बढ़ाकर इन वस्तु‌ओं को सस्ती दरों पर उपलब्ध करवाना।

→ निर्धन वर्ग को सस्ती साख सुविधाएं प्रदान करना ताकि वे स्व-रोजगार अवसर पैदा हो सके।

सरकार के निर्धनता उन्मूलन कार्यक्रम

या

गरीबी दूर करने के लिए सरकार के उपा

ग्रामीण विकास तथा गरीबी उन्मूलन हमारे देश की विभिन्न योजनाओं के प्रमुख लक्ष्य रहे हैं परन्तु अभी तक इस सम्बन्ध में कोई अधिक प्रगति नहीं हुई है। स्वयं छठी योजना ने यह स्वीकार किया है कि यहाँ की लगभग 50 प्रतिशत जनसंख्या पिछले काफी लम्बे समय से गरीबी की रेखा से नीचे रह रही है। छठी योजना के 10 प्रमुख उद्देश्य थे जिनमें से एक "गरीबी व बेरोजगारी के भार को उत्तरोत्तर कम करना" (A Progressive Reduction in the Incidence of Poverty and Unemployment) था। सातवीं व आठवीं योजनाओं में भी गरीबी उन्मूलन की बात जोरदारी से कही गयी, जबकि नौवीं योजना में भी प्रमुख स्थान दिया गया।

नौवीं योजना में ग्रामीण क्षेत्रों में स्वरोजगार एवं मजदूरी रोजगार उत्पन्न करने के लिये विशेष रूप से बनाये गये गरीबी उन्मूलन कार्यक्रमों को पुनः तैयार एवं गठित किया गया है, ताकि गरीबों के लिये उनकी कारगरता एवं प्रभाव में सुधार लाया जा सके। वर्ष 1998-99 में ₹9,345 करोड़ की तुलना में 1999-2000 में ₹ 9,650 करोड़ का परिव्यय प्रदान किया गया।

गरीबी उन्मूलन और रोजगार उत्पादन के प्रमुख कार्यक्रम इस प्रकार हैं-

(1) स्व-रोजगार कार्यक्रम (Self Employment Programme):

(a) स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना (Swarna Jayanti Gram Swarozgar Yojana)

(II) मजदूरी रोजगार कार्यक्रम (Wage Employment Programme):

(a) सम्पूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना (Sampoorna Grammen Rozgar Yojana, SGRY)।

(b) प्रधानमन्त्री ग्रामोदय योजना (PMGY)।

(III) शहरी निर्धनता दूर करने के लिये कार्यक्रम -

(a) स्वर्ण जयन्ती शहरी रोजगार योजनाएँ।

(IV) राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम (National Social Assistance Programme, NSAP):

(a) राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन योजना।

(b) राष्ट्रीय परिवार लाभ योजना।

(c) राष्ट्रीय मातृत्व लाभ योजना।

(V) अन्य योजनाएँ (Other Plans)।

ग्रामीण निर्धनता दूर करने के कार्यक्रम (Rural Poverty Alleviation Programme) - ग्रामीण क्षेत्रों में सरकारी पहल की एक मुख्य विशेषता निर्धनता-उन्मूलन कार्यक्रम है। इन कार्यक्रमों को विभिन्न वर्षों के दौरान इस प्रकार पुनर्मूल्यांकन एवं पुनर्गठन किया जाता रहा है जिससे वे ग्रामीण गरीबी दूर करने में और अधिक प्रभावी हो सके। मुख्य कार्यक्रमों को नीचे दिया जा रहा है-

(1) स्व-रोजगार कार्यक्रम-

(1) स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना (Swarna Jayanti Gram Swarozgar Yojana, SJGSY) - गरीबी उन्मूलन एवं रोजगार सृजन की पूर्व में चल रही निम्नांकित योजनाओं को 31 मार्च, 1999 को समाप्त घोषित करके अप्रैल, 1999 से स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना लागू की गयी है और पूर्व की सभी योजनाओं को इस योजना में विलय कर दिया गया है-

(i) एकीकृत ग्रामीण विकास योजना (IRDP), (ii) ट्राइसेम (TRYSEM), (iii) ग्रामीण महिला एवं बालोत्थान योजना (डवाकरा), (iv) दस लाख कूप योजना (MWS)।

उद्देश्य (Objectives)  

इस योजना के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं-

(i) गरीबी उन्मूलन के लिये संकेन्द्रित प्रयास, (ii) सामूहिक ऋणों के लाभों का पूँजीकरण, (iii) कार्यक्रमों की बहुलता सम्बन्धित समस्याओं को दूर करना।

इस योजना की वित्तीय व्यवस्था केन्द्र और राज्यों द्वारा 75: 25 में की जाती है।

वर्ष 2004-05 में इस योजना पर ₹ 1,000 करोड़ व्यय करने का प्रावधान है।

(II) मजदूरी रोजगार कार्यक्रम (Wage Employment Programme)- मजदूरी रोजगार कार्यक्रम निर्धनता-उन्मूलन रणनीति के महत्वपूर्ण घटक हैं जो न केवल कृषि कार्य में कमी के मौसम के दौरान बल्कि बाढ़, सूखा और अन्य प्राकृतिक आपदाओं के समय पर रोजगार प्रदान करते हैं। इनमें ग्रामीण अवसंरचना का सृजन किया जाता है जो आर्थिक गतिविधियों को संबल प्रदान करती है। 1970 में खाद्यात्रों में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के बाद ही इन मजदूरी रोजगार कार्यक्रमों पर जोर दिया जाता था। राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम (NERP) और ग्रामीण भूमिहीन रोजगार गारण्टी कार्यक्रम (RLEGP) का अप्रैल, 1989 में जवाहर रोजगार योजना में विलय कर दिया गया था। अप्रैल, 1999 से जवाहर रोजगार योजना का नवीनीकरण करके उसे जवाहर ग्राम स्मृद्धि योजना बना दिया गया था। 2 अक्टूबर, 1993 को रोजगार आश्वासन योजना भी शुरू की गई थी जिसका विलय भी सम्पूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना में कर दिया गया है। अतः उसका हम विस्तार में विश्लेषण करेंगे।

(1) सम्पूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना (Sampoorna Grameen Rozgar Yojana, SGRY)- जवाहर ग्राम समृद्धि योजना (JRY) और रोजगार आश्वासन योजना (EAS) को एकीकृत करके सम्पूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना (SGRY) सितम्बर, 2001 में शुरू की गई थी। इस योजना का उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में खाद्य सुरक्षा, स्थायी सामुदायिक, सामाजिक और आर्थिक आधारभूत ढाँचे का विकास करने के साथ-साथ अतिरिक्त मजदूरी मुहैया कराना है।

SGRY (एस.जी.आर. वाई) उन सभी ग्रामीण निर्धनों के लिये खुली है जिन्हें मजदूरी की जरूरत है और जो गाँव/बस्ती में और उसके आसपास शारीरिक और अकुशल श्रम कार्य करने के इच्छुक हों। यह योजना पंचायती राज संस्थानों के जरिये कार्यान्वित की जा रही है।

इस योजना में एक वर्ष में रोजगार के 100 करोड़ मानव दिवसों का सृजन करने की परिकल्पना की गई है। इस कार्यक्रम का खर्च केन्द्र और राज्यों में 75: 25 अनुपात में लागत बँटवारे के आधार पर बाँटा जाता है।

(2) प्रधानमन्त्री ग्रामोदय योजना (PMGY)- ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों के जीवन स्तर में सुधार लाने के समग्र उद्देश्य सहित स्वास्थ्य, प्राथमिक शिक्षा, पेयजल, आवास तथा ग्रामीण सड़कों जैसे पाँच महत्वपूर्ण क्षेत्रों में ग्रामीण स्तर पर विकास करने पर ध्यान देने के उद्देश्य से यह योजना वर्ष 2000-01 में शुरू की गई।

(III) शहरी निर्धनता दूर करने के लिये कार्यक्रम (Urban Poverty Alleviation Programme)- शहरी क्षेत्र में विशिष्ट निर्धनता उन्मूलन कार्यक्रम स्वर्ण जयन्ती शहरी योजना के नाम से चल रहा है। इसका वर्णन नीचे किया जा रहा है-

(1) स्वर्ण जयन्ती शहरी रोजगार योजना (SJSRY)- इस योजना की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं-

 (अ) यह योजना 1 दिसम्बर, 1997 से लागू की गयी जिसमें पूर्व में चल रही तीन योजनाओं को सम्मिलित किया गया है। ये योजनाएँ हैं-

(i) नेहरू रोजगार योजना,

(ii) गरीबों के लिये शहरी बुनियादी सेवायें,

(iii) प्रधानमन्त्री की समन्वित शहरी गरीबी उन्मूलन योजना।

(ब) इस योजना के अन्तर्गत कुल व्यय का 75 प्रतिशत केन्द्र द्वारा और 25 प्रतिशत सम्बन्धित राज्यों द्वारा वहन किया जायेगा। इस योजना के अन्तर्गत दो विशेष स्कीमें हैं-

(i) शहरी स्वरोजगार कार्यक्रम (Urban Self Employment Programme, USEP)- इस कार्यक्रम के निम्न दो घटक हैं-

(क) लघु उद्यम और कौशल विकास के द्वारा स्वरोजगार

(ख) शहरी क्षेत्रों में महिलाओं और बच्चों का विकास।

(ii) शहरी मजदूर रोजगार कार्यक्रम (Urban Wage Employment Programme, UWEP) - इस कार्यक्रम का उद्देश्य शहरी स्थानीय निकायों के अधिकार क्षेत्र में गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले लाभार्थियों को उनके श्रम का सामाजिक और आर्थिक रूप से उपयोगी सार्वजनिक सम्पत्ति के निर्माण में उपयोग करके मजदूरी रोजगार उपलब्ध कराना है।

(IV) राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम (National Social Assistance Programme, NSAP)- चालू राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम अपने इन तीन घटकों अर्थात् (i) राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन स्कीम, (ii) राष्ट्रीय परिवार लाभ स्कीम और (iii) राष्ट्रीय मातृत्व लाभ स्कीम के अन्तर्गत लाभ प्रदान करता है।

(1) राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन योजना (National Old Age Pension Scheme)- इस योजना के अन्तर्गत गरीबी रेखा से नीचे वर्ग के 65 वर्ष अथवा उससे अधिक आयु वाले आवेदक (महिला अथवा पुरुष) को र 75 प्रति माह की राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन दिये जाने का प्रावधान है।

(2) राष्ट्रीय परिवार लाभ योजना (National Family Benefit Scheme)- इस योजना के अन्तर्गत परिवार के मुख्य आय अर्जक (पुरुष अथवा महिला) की सामान्य मृत्यु होने पर (जबकि वह 18 वर्ष से अधिक तथा 65 वर्ष से कम आयु का है) निर्धन परिवार को ₹ 5,000 की एकमुश्त राशि उत्तरजीवी लाभ (Survivor Benefit) के रूप में दी जाती है। दुर्घटना से मृत्यु की स्थिति में यह सहायता ₹ 10,000 की होती है।

(3) राष्ट्रीय मातृत्व लाभ योजना (National Maternity Benefit Scheme)- इस योजना के अन्तर्गत गरीब महिलाओं को प्रथम दो प्रसवों में ₹ 300 प्रति प्रसव के हिसाब से मातृत्व लाभ देने का प्रावधान है। इस योजना के अन्तर्गत सहायता प्राप्त करने के लिये लाभार्थी की आयु 19 वर्ष या इससे अधिक होनी चाहिये।

4. प्रधानमन्त्री रोजगार सृजन कार्यक्रम (PMEGP)- केन्द्र सरकार ने 15 अगस्त, 2008 से स्वरोजगार के अधिकाधिक अवसर सृजित करने के लिये प्रधानमन्त्री रोजगार सृजन कार्यक्रम (Prime Minister Employment Generation Programme (PMEGP) प्रारम्भ किया है। अनुदान मुक्त साख वाले इस कार्यक्रम के तहत ग्रामीण व शहरी क्षेत्रों में 'माइक्रो इंटर प्राइजेज' की स्थापना के जरिये रोजगार के लिये अवसर सृजित किये जा रहे हैं।

5. राष्ट्रीय ग्रामीण अजीविका मिशन (NRLM)- ग्रामीण क्षेत्रों में निर्धनता निवारण के लिये अब एक राष्ट्रीय ग्रामीण अजीविका मिशन (National Rural Livelihood Mission-NRLM) की शुरूआत 3 जून, 2011 को केन्द्र सरकार ने की है। इस मिशन के तहत ग्राम स्तर पर स्वयं सहायता समूहों (Self Help Groups SHGS) को फेडरेशन के रूप में गठित कर उनके माध्यम से लाभप्रद स्वरोजगार के अवसर उपलब्ध कराकर उन्हें बेहतर जीवन-यापन का स्थायी आधार प्रदान करने की सरकार की योजना है।

(V) अन्य योजनाएँ (Other Plans)- निर्धनता को दूर करने की दृष्टि से कुछ अन्य योजनाएँ भी हैं। उनमें से प्रमुख योजनाओं को नीचे दी गयी सारणी में दर्शाया गया है।

निर्धनता उन्मूलन की अन्य केन्द्रीय योजनाएँ

योजना

प्रमुख लक्ष्य

अन्य विशेषताएँ

1. सार्वभौमिक स्वास्थ्य बीमा योजना

गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले लोगों के लिये बेहतर चिकित्सा सुविधाएँ उपलब्ध कराने हेतु बीमा सुरक्षा प्रदान करना।

28 फरवरी, 2003 को वित्त मन्त्री द्वारा घोषित तथा 14 जुलाई, 2003 को प्रधानमन्त्री द्वारा प्रारम्भ करने की घोषणा की गयी।

2. वरिष्ठ पेंशन बीमा योजना

वरिष्ठ नागरिकों को बेहतर सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने हेतु आजीवन नियमित पेंशन की व्यवस्था सुनिश्चित करना।

28 फरवरी, 2003 को वित्त मन्त्री द्वारा घोषित तथा 14 जुलाई, 2003 को प्रधानमन्त्री द्वारा प्रारम्भ करने की घोषणा की गयी।

3. डॉ. अम्बेडकर शैक्षिक पारितोषिक योजना

अनुसूचित जाति व जनजाति के मेधावी बच्चों को नगद पुरस्कार प्रदान कर प्रोत्साहित करना।

17 फरवरी, 2003 को उप-प्रधानमन्त्री द्वारा योजना की घोषणा की गयी।

4. जीवन भारतीय महिला सुरक्षा योजना

18 से 50 वर्ष आयु वर्ग वाली महिलाओं को गम्भीर बीमारियों एवं उनके शिशुओं के जन्मजात अपंग होने पर उन्हें सुरक्षा कवच प्रदान करना।

8 मार्च, 2003 को अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर भारतीय जीवन बीमा निगम द्वारा घोषित ।

5. जननी सुरक्षा योजना

गर्भवती महिलाओं को स्वास्थ्य केन्द्र में पंजीकरण के बाद से शिशु जन्म तथा आवश्यक चिकित्सा सुविधाएँ उपलब्ध कराते हुए बच्चों के जन्म पर नगद सहायता उपलब्ध कराना।

8 मार्च, 2003 को अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं संसदीय कार्यक्रम सुषमा स्वराज द्वारा घोषित ।

6. जयप्रकाश नारायण रोजगार गारण्टी योजना

देश के सर्वाधिक गरीबी वाले जनपदों में ग्रामीण बेरोजगारों को रोजगार प्रदान करना।

वित्त मन्त्री द्वारा फरवरी 2002 के बजट में घोषणा की गयी।

7. मौलाना आजाद राष्ट्रीय छात्रवृत्ति योजना

अल्पसंख्यक समुदाय को गरीब प्रतिभाशाली लड़कियों के लिये विशेष छात्रवृत्ति प्रदान कर उच्च शिक्षा के लिये प्रोत्साहित करना।

1 अगस्त, 2003 को केन्द्र सरकार द्वारा घोषणा की गयी।

8. हरियाली परियोजना

पेयजल समस्या के निवारण एवं बंजर भूमि में सिंचाई हेतु जल की व्यवस्था सुनिश्चित करना।

27 जनवरी, 2003 को प्रधानमन्त्री द्वारा इस योजना की घोषणा की गयी।

9. बन्धक ऋण गारण्टी योजना

आवास ऋण अधिक सुविधाजनक तथा वाहनीय बनाना।

फरवरी 2002 के बजट में वित्त मन्त्री द्वारा इस योजना की घोषणा की गयी।

10. आश्रय बीमा योजना

उदारीकरण प्रक्रिया के फलस्वरूप विभिन्न उद्योगों से विस्थापित श्रमिकों हेतु स्वरोजगार स्थापित करने हेतु आर्थिक सहायता उपलब्ध कराना।

वर्ष 2002-01 के बजट में इस योजना की घोषणा की गयी।

11. खेतिहर मजदूर बीमा योजना

ग्रामीण खेतिहर मजदूरों को बीमा सुरक्षा प्रदान करने के साथ ₹ 100 प्रतिमाह पेंशन प्रदान करना।

1 जुलाई, 2001 से इस योजना को पूरे देश में लागू किया गया है।

12. शिक्षा सहयोग बीमा योजना

गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले परिवारों के कक्षा 9 से 12 तक की कक्षाओं में पढ़ने वाले बच्चों को ₹ 100 प्रतिमाह शिक्षा भत्ता प्रदान करना।

1 जुलाई, 2001 से इस योजना को पूरे देश में लागू किया गया है।

13. अम्बेडकर-बाल्मीकि मलिन बस्ती आवास योजना

शहरी क्षेत्रों में अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों, पिछड़े, कमजोर वर्गों के लोगों को सस्ती दरों पर मकान उपलब्ध कराना।

इसकी घोषणा 15 अगस्त, 2001 को की गयी। इस योजना के अन्तर्गत प्रतिवर्ष शहरी विकास मन्त्रालय द्वारा ₹2,000 करोड़ का अनुदान दिये जाने का प्रावधान किया गया है।

14. महिला स्वाधार योजना

स्वयं सहायता समूहों के गठन के माध्यम से महिलाओं का आर्थिक- सामाजिक सशक्तिकरण करना।

इसकी घोषणा जुलाई 2001 में मानव संसाधन विकास मन्त्री द्वारा की गयी।

 

गरीबी निवारण कार्यक्रमों का आलोचनात्मक मूल्यांकन

1. गरीब निवारण कार्यक्रम का पूरा ध्यान दीर्घकालीन आधार पर गरीबी को दूर करने के लिये आवश्यक सामाजिक आगों की आपूर्ति पर ध्यान नहीं दिया गया है बल्कि यह अतिरिक्त आय के सूजन पर ही केन्द्रित रहा है।

2. परिवार कल्याण, पौष्टिक आहार, सामाजिक सुरक्षा तथा न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति की ओर ध्यान नहीं दिया गया है।

3. जनसंख्या के लगातार बढ़ते हुए दबाव की परिस्थिति में जबकि खेतों का आकार लगातार छोटा होता जा रहा है, स्व-रोजगार उद्यमों पर या मजदूरी के रोजगार कार्यक्रमों पर निर्भरता सही नहीं है।

4. इस कार्यक्रम में अपाहिज, बीमार तथा उत्पादक रूप में काम करने के अयोग्य लोगों के लिये कुछ नहीं किया गया है।

5. ये कार्यक्रम इस बात को निश्चित नहीं कर पाते कि गरीब लोगों को वर्षपर्यन्त खाद्यान्नों की उपयुक्त मात्रा में प्राप्ति हो सके क्योंकि यह तो खाद्यान्नों की कीमतों, पूर्ति की सहजता तथा आय प्राप्त होने के समय पर निर्भर करता है।

6. गरीबी निवारण कार्यक्रमों की सफलता को जाँचने के लिये इस कसौटी का प्रयोग करना कि गरीबी की रेखा को कितने लोग पार कर चुके हैं, उपयुक्त नहीं है। इस बात पर भी ध्यान देना आवश्यक है कि गरीबी की रेखा से नीचे रह रहे विभिन्न लोगों के आय स्तरों पर क्या प्रभाव पड़ रहा है। इस सन्दर्भ में अमृत्य सेन का यह सुझाव है कि गरीबी की रेखा से नीचे वाले आय वर्गों का अलग-अलग भार (Weight) दिया जाये।

7. इन कार्यक्रमों में लाभार्थी और सरकार के मध्य, मध्यस्थों की काफी लम्बी श्रृंखला होती है जिसके कारण लाभार्थियों को कार्यक्रम का पूरा लाभ नहीं मिल पाता है।

8. विभिन्न कार्यक्रमों की सफलता का मूल्यांकन रोजगार सृजन (मानव दिवस) के आधार पर कर लिया जाता है। खाद्यान्न की कीमतों की आपूर्ति तथा गरीबों की आय के समय का ध्यान नहीं रखा जाता है।

9. गरीबी की रेखा के नीचे रह रहे लोगों में भी कई स्तर हैं। अलग-अलग स्तर की गरीबी के लिये इन कार्यक्रमों में कोई प्रावधान नहीं है।

निष्कर्ष

इससे प्रतीत होता है कि सरकार ने समय-समय पर निर्धनता उन्मूलन के अनेक कार्यक्रम प्रारंभ किया। परंतु प्रभावपूर्ण ढंग से लागू न होने के कारण यह कार्यक्रम अपने उद्देश्य को प्राप्त न कर सके।

जनांकिकी (DEMOGRAPHY)

Public finance (लोक वित्त)

भारतीय अर्थव्यवस्था (INDIAN ECONOMICS)

आर्थिक विकास (DEVELOPMENT)

JPSC Economics (Mains)

व्यष्टि अर्थशास्त्र  (Micro Economics)

समष्टि अर्थशास्त्र (Macro Economics)

अंतरराष्ट्रीय व्यापार (International Trade)

Quiz

NEWS

إرسال تعليق

Hello Friends Please Post Kesi Lagi Jarur Bataye or Share Jurur Kare