संतुलित बजट गुणक के अनुसार सार्वजनिक बजट को संतुलित रखते
हुए, यदि इसका आकार बढ़ा दिया जाए तो आय और रोजगार में वृद्धि की गुणक प्रक्रिया प्रारम्भ हो जाती है। सूत्र से
इस अनुपात में ∆Y राष्ट्रीय आय में वह वृद्धि है, जो बजट
को संतुलित रखते हुए केवल इसके आकार में वृद्धि (∆B) के फलस्वरूप होती है।
मान्यताऐ
सन्तुलित
बजट गुणक का आंकिक मूल्य केवल निम्नलिखित मान्यताओ के अन्तर्गत 1 के बराबर होगा-
(1)
सरकारी व्यय सरकार के द्वारा केवल वस्तुओं एवं सेवाओं की खरीद से
सम्बद्ध है तथा यह व्यय सरकारी हस्तान्तरण भुगतानों के रूप में नहीं किया जाता है।
सरकारी हस्तांतरण भुगतान गुणक संतुलित बजट की स्थिति में शून्य होगा क्योंकि धनात्मक
हस्तांतरण गुणक एवं ऋणात्मक
कर गुणक समान होगे। परिणाम स्वरूप, ये एक दूसरे का निराकरण कर देंगे और अर्थव्यवस्था
पर सरकारी नीति का कोई प्रभाव नहीं होगा। यह निष्कर्ष इस मान्यता पर आधारित है कि जिन
व्यक्तियों को सरकारी हस्तांतरण भुगतान प्राप्त होते है उन व्यक्तियों की तथा जो व्यक्ति
अतिरिक्त कर चुकाते है उन व्यक्तियों की MPC समान है।
(2)
करदाताओं की MPC तथा सरकार को वस्तुओं
एवं सेवाओं की बिक्री करने वालों की MPC समान
होनी चाहिये ।
(3)
सरकारी खरीद तथा कर नीति का अर्थव्यवस्था की निवेश क्रिया
पर कोई प्रभाव नहीं होता है।
(4)
करो
का आय से कोई सम्बन्ध नहीं है तथा इसका निर्धारण स्वायत्त रूप से किया जाता है।
संतुलित बजट गुणक को
निम्नलिखित प्रकार से ज्ञात किया जा सकता है
Y = C + IA +
G
Where C = a + bYd
Putting the Value of C
in Y
Y = a + bYd
+ IA + G
Where Yd = Y
– T + R
`Y=a+bY–bT+bR)+\overline{I_A}+\overline G`
`Y-bY=a–bT+bR+\overline{I_A}+\overline G`
`\therefore Y=\frac{a-bT+\;bR+\overline{I_A}+\overline G}{1-b}---(1)`
सरकारी व्यय मे `\overline{\Delta G}` की वृद्धि होने तथा इतनी ही राशि की वृद्धि करो (∆T) में करने पर सरकारी बजट का संतुलन बना रहेगा तथा नई संतुलन आय निम्नलिखित प्रकार निर्धारित होगी-
`Y+\Delta Y=a+b\left(Y+\Delta Y-T-\Delta T+R\right)+\overline{I_A}+\overline G+\overline{\Delta G}`
`Y+\Delta Y=a+bY+b\Delta Y-bT-b\Delta T+bR+\overline{I_A}+\overline G+\overline{\Delta G}`
`Y-bY+\Delta Y-b\Delta Y=a-bT-b\Delta T+bR+\overline{I_A}+\overline G+\overline{\Delta G}`
`Y(1-b)+\Delta Y(1-b)=a-bT-b\Delta T+bR+\overline{I_A}+\overline G+\overline{\Delta G}`
`\therefore Y+\Delta Y=\frac{a-bT-b\Delta T+bR+\overline{I_A}+\overline G+\overline{\Delta G}}{1-b}---(2)`
समीकरण (1) को (2) में
घटाने पर
`Y=\frac{a-bT+bR+\overline{I_A}+\overline G}{1-b}-\left[Y+\Delta Y=\frac{a-bT-b\Delta T+bR+\overline{I_A}+\overline G+\Delta\overline G}{1-b}\right]`
`-\Delta Y=\frac{a-bT+bR+\overline{I_A}+\overline G}{1-b}-\frac{a-bT-b\Delta T+bR+\overline{I_A}+\overline G+\Delta\overline G}{1-b}`
`-\Delta Y=\frac{a-bT+bR+\overline{I_A}+\overline G-a+bT+b\Delta T-bR-\overline{I_A}-\overline G-\Delta\overline G}{1-b}`
`-\Delta Y=\frac{b\Delta T-\Delta\overline G}{1-b}`
Sign Change both sides
`\Delta Y=\frac{\Delta G-b\Delta T}{1-b}`
`\Delta Y=\frac{\Delta G-b\Delta G}{1-b}\left[\because\Delta T=\Delta G\right]`
`\Delta Y=\frac{\Delta G\left(1-b\right)}{1-b}`
ΔY = ΔG
इस प्रकार, बजट
संतुलन की स्थिति में अतिरिक्त सरकारी खरीद के लिए धनराशि की व्यवस्था अतिरिक्त
करों के द्वारा की जाती है तथा इनके फलस्वरूप कुल आय में उतनी ही वृद्धि होती है जितनी
वृद्धि कुल सरकारी व्यय में होती है।
चित्र में,
चित्र में सन्तुलित आय
में विशुद्ध वृद्धि केवल ∆YB
(= Y1-Y0) राशि है, जो अतिरिक्त सरकारी
व्यय ∆G के बराबर है। सरल गुणक के सन्दर्भ में इतनी ही राशि का अतिरिक्त सरकारी
व्यय करने के फलस्वरूप कुल संतुलित आय में मात्र Y0Y2
राशि की वृद्धि हुई होती।
यदि सरकारी बजट में
अतिरिक्त सरकारी व्यय ∆G की पूर्ति अतिरिक्त कर लगाकर नहीं
की जाती है तो आय में कुल वृद्धि Y0Y2 होगी। परन्तु
सम्पूर्ण अतिरिक्त सरकारी व्यय ∆G = ∆T है। फलस्वरूप, अतिरिक्त सरकारी व्यय के
कारण आय में होने वाली कुल वृद्धि पर ऋणात्मक कर गुणक के कारण प्रतिकूल प्रभाव
होगा। अतः सन्तुलित आय में विशुद्ध वृद्धि सरकारी व्यय में हुई वृद्धि द्वारा
प्राप्त अतिरिक्त आय (∆Y) एवं करारोपण के कारण आय में होने वाली कमी के अन्तर के
समान होगी।
चित्र में केवल सरकारी
व्यय में हुई वृद्धि के फलस्वरूप कुल आय में Y0Y2 राशि की
वृद्धि होती है, जबकि करो में वृद्धि होने के कारण कुल आय में Y1Y2
राशि की कमी हो जाती है। अतः कुल आय में Y0Y1
राशि की विशुद्ध वृद्धि होती है जो मात्र अतिरिक्त सरकारी व्यय ∆G के समान है।
सन्तुलित बजट गुणक
विश्लेषण इस मान्यता पर आधारित है कि सरकारी करो का निर्धारण स्वायत्त रूप में
होता है तथा करो का आय से कोई सम्बन्ध नहीं है। परन्तु वास्तविकता यह है कि
सम्पूर्ण कर प्रणाली में सम्मिलित कुछ कर ऐसे होते है जिनका आय से सम्बन्ध होता
है। साधारणतः करदाताओ की आय में वृद्धि होने पर सरकार को प्राप्त होने वाली कुल कर
आय में भी वृद्धि होती है तथा आय में कमी होने पर सरकार की कुल कर आय में भी कमी
होती है। स्थिति बहुधा इस कारण से जटिल हो जाती है क्योंकि करो की दरे भी प्रगतिशील
होती है तथा आय में वृद्धि होने के साथ ये कर की दरें भी बढ़ती जाती है। जब सरकार
को प्राप्त कुल कर आय राशि का एक भाग स्वायत्त निर्धारण रुप होता है तथा शेष भाग
आय द्वारा प्रेरित होता है तब कर फलन को निम्नलिखित प्रकार व्यक्त किया जा सकता
है।
T=d +tY
उपरोक्त कर फलन के समीकरण
में d सरकारी कुल कर आय का स्वायत्त भाग
है, Y कुल आय है तथा t कर की स्थिर
धनात्मक दर है। इस प्रकार कर फलन रेखीय है। वस्तुत: t को
सीमान्त कर प्रवृत्ति (MPT) की संज्ञा दी जा सकती है।
आनुपातिक कर प्रणाली के
सन्दर्भ में संतुलित बजट गुणक को निम्न प्रकार ज्ञात कर सकते हैं -
`Y=C+\overline{I_A}+\overline G`
`Y=a+bY_d+\overline{I_A}+\overline G`
`Y=a+b\left[1-\left(d+tY\right)+R\right]+\overline{I_A}+\overline G`
`Y=a+bY-bY-bd-btY+bR+\overline{I_A}+\overline G`
`Y-bY+btY=a-bd+bR+\overline{I_A}+\overline G`
`Y(1-b+bt)=a-bd+bR+\overline{I_A}+\overline G`
`\therefore Y=\frac{a-bd+bR+\overline{I_A}+\overline G}{1-b+bt}----(3)`
जब सरकारी व्यय (खरीद) में ∆G राशि
की वृद्धि होती है तथा सरकारी करों में भी समान राशि ∆T की
वृद्धि की जाती है, अर्थात् यदि ∆G
= ∆T तो
नई साम्य आय का स्तर निम्नलिखित प्रकार ज्ञात किया जा सकता है।
`Y+\Delta Y=a+b\left[Y+\Delta Y-\left(d+tY+t\Delta Y+\Delta T\right)+R\right]+\overline{I_A}+\overline G+\Delta G`
`Y+\Delta Y=a+bY+b\Delta Y-bd-btY-bt\Delta Y-b\Delta T+bR+\overline{I_A}+\overline G+\Delta G---(4)`
समीकरण (4) में Y तथा ∆Y
युक्त
सब पदों को साथ लाने पर
`Y+\Delta Y-bY-b\Delta Y+btY+bt\Delta Y=a-bd-b\Delta T+bR+\overline{I_A}+\overline G+\Delta G`
`Y(1-b+bt)+\Delta Y(1-b+bt)=a-bd-b\Delta T+bR+\overline{I_A}+\overline G+\Delta G`
उपरोक्त समीकरण 1
- b + bt से विभाजित करने पर
`Y+\Delta Y=\frac{a-bd-b\Delta T+bR+\overline{I_A}+\overline G+\Delta G}{1-b+bt}---(5)`
समीकरण (3) को (4) से
घटाने पर
`\Delta Y=\frac{\Delta G-b\Delta T}{1-b+bt}`
`\Delta Y=\frac{\Delta G-b\Delta G}{1-b+bt}\left[\because\Delta T=\Delta G\right]`
`\Delta Y=\frac{\Delta G(1-b)}{1-b+bt}---(6)`
समीकरण (6) की दोनों भुजाओं को ∆G से विभाजित करने पर हमें
आनुपातिक कर प्रणाली के अन्तर्गत संन्तुलित बजट गुणक का निम्नलिखित संशोधित स्वरूप
प्राप्त होगा
`\frac{\Delta Y}{\Delta G}=\frac{(1-b)}{1-b+bt}=K_b`
इस प्रकार, जब कुल करों की राशि में स्वायत्त तथा प्रेरित (आनुपातिक) कर राशियाँ सम्मिलित होती है तो संतुलित बजट गुणक मूल्य `\frac{(1-b)}{1-b+bt}` मूल समीकरण में चूंकि b (=MPC) तथा t दोनो धनात्मक अंश है। इसलिए 1 - b + bt हर का मूल्य 1- b के मूल्य से अधिक होगा। फलस्वरूप, सन्तुलित बजट गुणक का मूल्य धनात्मक परन्तु इकाई से कम होगा, अर्थात् O < Kb < 1। इस प्रकार, आनुपातिक करो के संदर्भ में संतुलित बजट गुणक का मूल्य उस स्थिति की अपेक्षा कम होगा जब करो की राशि पूर्णतः स्वायत्त होती है। प्रगतिशील कर प्रणाली में (जब t स्थिर नहीं होता है) सन्तुलित बजट गुणक का मूल्य और भी कम होगा क्योंकि t अथवा सीमान्त कर प्रवृत्ति का मूल्य आय के साथ बढ़ता जाएगा। इसके फलस्वरूप bt, जो हर में एक धनात्मक राशि है, का अंकीय मूल्य भी बढ़ता जाएगा, फलतः संशोधित संतुलित बजट गुणक `\frac{(1-b)}{1-b+bt}`का अंकीय मूल्य अपेक्षाकृत कम होगा।
इसीलिए अर्थव्यवस्था में
मन्दी के समय कुल आय में पर्याप्त वृद्धि करने के लिए संतुलित बजट अनुपयुक्त है।
सीमाऐ
वास्तविकता के जटिलतापूर्ण
होने के परिणामस्वरूप सन्तुलित बजट गुणक की प्रक्रिया भी अति जटिल होती है, तथा
सामान्यतः इसका प्रमापन भी इकाई के बराबर नहीं होता।
☞ यह आवश्यक नहीं कि करदाताओं
की सीमांत उपभोग प्रवृत्ति सरकारी व्यय से लाभान्वित होने वाले उपभोक्ताओं की
सीमांत उपभोग प्रवृत्ति के बराबर हो। दोनों प्रवृत्तियों में असमानता होने पर स.
ब. गु. का मूल्य भी इकाई के बराबर नहीं रहता।
☞ करदाताओं के विभिन्न
वर्गो की सीमांत उपभोग वृत्तियों में असमानता होती है, और यही तथ्य लोक व्यय से
लाभान्वित विभिन्न वर्गो मे भी देखने को मिलता है। परिणामस्वरूप गुणक प्रक्रिया के
दौरान ही अर्थव्यवस्था में सीमांत उपभोग वृत्ति का औसत मूल्य भी परिवर्तित होता
जाता है।
☞ कर राजस्व का एक भाग कर
के वसूलने में ही व्यय हो जाता है। यह भाग भी सार्वजनिक व्यय का ही अंग है। इसी
प्रकार सरकार द्वारा अंतरित राशियाँ भी गुणकीय प्रक्रिया को प्रभावित करती है।
☞ विदेशी व्यापार से भी
गुणक का मूल्य प्रभावित होता है। उदाहरण के लिए यदि सरकार समस्त अतिरिक्त कर
राजस्व अपनी आवश्यकताओं के लिए आयात की मदों पर व्यय कर दे तो स. ब. गु. का मूल्य
नकारात्मक हो जाएगा। इसका कारण यह है कि सरकार द्वारा अर्थव्यवस्था की सकल माँग
में कोई वृद्धि न होने पर भी करदाता अपनी माँग घटा देगे तथा इस प्रकार कुल माँग घट
जाएगी।
☞ गुणक का उपरोक्त विश्लेषण
तुलनात्मक स्थैतिक के आधार पर किया गया है, अर्थात् इसमें गुणक प्रक्रिया की
प्रारम्भिक और अंतिम स्थितियों की तुलना की गई है। परन्तु वास्तव मे गुणक
प्रक्रिया के दौरान ही कई घटक और कारक इस प्रकार परिवर्तित होने लगते है कि गुणक
का पूर्वानुमानित मूल्य प्राप्त नहीं हो पाता।
निष्कर्ष
इन सब विश्लेषणात्मक सीमाओं
के बावजूद सं. ब. गु की अवधारणा इस आधारभूत सत्य को उभारती है कि सार्वजनिक बजट से
अर्थव्यवस्था की गतिविधियों के प्रति तटस्थता की आशा नहीं की जानी चाहिए। साथ ही
बजट का प्रयोग इसके प्रभावों की जानकारी के बिना भी नहीं किया जाना चाहिए। बजटीय
नीति सरकार के हाथ में एक शक्तिशाली नीति शास्त्र की भूमिका निभा सकती है।
अतः उचित यही है कि इस अवधारणा को बजटीय नीति में यथोचित स्थान प्रदान किया जाए।
भारतीय अर्थव्यवस्था (INDIAN ECONOMICS)
व्यष्टि अर्थशास्त्र (Micro Economics)
समष्टि अर्थशास्त्र (Macro Economics)
अंतरराष्ट्रीय व्यापार (International Trade)