मार्शल उपभोक्ता संतुलन (Marshall's Consumer Equilibrium Theory)

मार्शल उपभोक्ता संतुलन (Marshall's Consumer Equilibrium Theory)

मार्शल उपभोक्ता संतुलन (Marshall's Consumer Equilibrium Theory)

प्रश्न :- मार्शल के उपभोक्ता संतुलन के सिद्धांत की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए ?

सम सीमान्त उपयोगिता नियम की व्याख्या कीजिए ?

मार्शल के ह्मस प्रतिपादित प्रतिस्थापन के नियम की व्याख्या कीजिए ?

उपभोक्ता व्यवहार, उपभोक्ता संतुलन के संख्यात्मक उपयोगिता विश्लेषण की व्याख्या कीजिए।

उपभोक्ता संतुलन के गणनावाचक धारणा की व्याख्या कीजिए ?

सीमान्त उप‌योगिता ह्मस नियम की परिभाषा दीजिए ? यह नियम क्यों कार्यशील होता है ?

उत्तर :- मार्शल ने अपनी पुस्तक Principles of Economics में उपभोक्ता संतु‌लन की व्याख्या की। इस पुस्तक में मार्शल ने दो सिद्धांतो का प्रतिपादन किया।

1. मूल्य बराबर है सीमान्त उपयोगिता के :- इस सिद्धान्त के अनुसार एक उपभोक्ता संतुलन अवस्था में तब पहुंचता है जब कीमत तथा सीमान्त उपयोगिता बराबर हो जाती है। उपभोक्ता किसी वस्तु की खरीद की मात्रा में तब तक वृद्धि करता चला जाता है जब तक की सीमान्त उपयोगिता कीमत के बराबर न हो जाए। इसे रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट कर सकते हैं।

DD = मांग की रेखा

PP' = मूल्य रेखा ; E = संतुलन बिन्दु

OM = संतुलन की अवस्था में खरीद की मात्रा

माना कि उपभोक्ता OM1 मात्रा खरीदता है तो इसकी सीमान्त उपयोगिता E1M1 है जो मूल्य OP से ज्यादा है। अतः उपभोक्ता और इकाईयां को खरीदेगा। खरीद की मात्रा को तब तक बढ़ाया जाएगा जब तक की सीमान्त उपयोगिता और कीमत बराबर न हो जाए। OM से अधिक मात्रा इसलिए नहीं खरीदेगा, क्योकि इस मात्रा के बाद प्रति इकाई सीमान्त उपयोगिता मूल्य से कम हो जाती है।

अतः संतुलन की अवस्था वही होगी जहां कीमत तथा सीमान्त उपयोगिता बराबर होगी।

2. सम सीमान्त उपयोगिता नियम :- इसका सर्वप्रथम उल्लेख 1854 ई० में गोसेन ने अपने लेखो में किया था। परंतु मार्शल ने इसे विस्तृत रूप प्रदान किया।

उपभोक्ता की आवश्यकताएँ अनंत तथा साधन सीमित होते हैं, कोई भी उपभोक्ता अपने सीमित साधन से असीमित आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं कर सकता है। इसलिए उपभोक्ता कम उपयोगी वस्तु के स्थान पर अधिक उपयोगी वस्तु का प्रतिस्थापन करता है। इसलिए इसे प्रतिस्थापन का नियम भी कहा जाता है। यह प्रतिस्थापन तब तक जारी रहता है जब तक की सभी वस्तुओं से प्राप्त होने वाली सीमान्त उपयोगिता समान हो जाएगा, तभी उपभोक्ता को अधिकतम संतुष्टि प्राप्त होगी।

मार्शल के अनुसार, " अगर किसी व्यक्ति के पास कोई वस्तु हो जिसे वह विभिन्न प्रयोगो मे ला सकता है तो उस स्तु को विभिन्न प्रयोगो के बीच इस प्रकार विभाजित करेगा कि सभी वस्तुओं की सीमान्त उपयोगिता समान हो जाए।"

उपर्युक्त परिभाषा एक विस्तृत परिभाषा है जिसमे अगर वस्तु के स्थान पर मुद्रा शब्द का प्रयोग किया जाए तब भी परिभाषा कार्यशील रहेगा।

इस परिभाषा से स्पष्ट है कि उपभोक्ता अपनी आय को विभिन्न मदों पर खर्च करता है तो उसे अधिकतम संतु‌ष्टि की प्राप्ति तभी होगी जब प्रत्येक मद पर व्यय की जाने वाली रकम की सीमान्त उपयोगिता समान हो जाएगी। अतः उपभोक्ता उस समय संतुलन में होता है जब की

`\frac{MU_x}{P_x}=\frac{MU_y}{P_y}` हो जाएगा।

अब यदि  `\frac{MU_x}{P_x}` तथा `\frac{MU_y}{P_y}` समान नहीं है तथा 

`\frac{MU_x}{P_x}>\frac{MU_y}{P_y}` उसे उपभोक्ता वस्तु X का वस्तु Y से प्रतिस्थापन करेगा। इस प्रतिस्थापन के कारण X का सीमांत उपयोगिता गिरेगा और Y का सीमांत उपयोगिता बढ़ेगा। यह प्रतिस्थापन तब तक चलता रहेगा जब तक `\frac{MU_x}{P_x}=\frac{MU_y}{P_y}` न हो जाए।

मान्यताएँ

1. उपभोक्ता विवेकशील है।

2. उपयोगिता को संख्या में मापा जा सकता है।

3. मुद्रा की सीमान्त उपयोगिता स्थिर होती है।

4. उपभोक्ता की आय, फैशन, रूचि आदत आदि अपरिवर्तित होता है।

5. बाजार पूर्ण प्रतियोगी होती है।

6. वस्तुओं का मूल्य स्थिर होता है।

7. वस्तुएं स्वतंत्र होती है। अर्थात् किसी वस्तु की उपयोगिता सिर्फ उसी वस्तु की इकाई पर निर्भर करता है।

मार्शल के सम सीमान्त उपयोगिता नियम को निम्नलिखित काल्पनिक उदाहरण से स्पष्ट कर सकते है।

इकाई

सीमान्त उपयोगिता X वस्तु की

सीमान्त उपयोगिता Y वस्तु की

1

15 (1)

15 (2)

2

12 (3)

11 (4)

3

10 (5)

8

4

8

7

5

6

5

मान लिया कि उपभोक्ता के पास 5 रु० है। 1,2,3,4,5 रू० जब X पर व्यय किया जाता है तो उसकी सीमान्त उपयोगिता क्रमशः 15,12,10,8,6 तथा Y से क्रमश: 15,11, 8, 7, 5 प्राप्त होता है इसलिए वह 1 रु० से X, 2 रु० से Y, 3 रु० से X, 4 रु० से Y, 5 रु० से X क्रय करेगा। तभी दोनो वस्तुओं से मिलने वाली सीमान्त उपयोगिता समान होगी, एवं उपभोक्ता को अधिकतम संतुष्टि प्राप्त होगी।

मार्शल उपभोक्ता संतुलन (Marshall's Consumer Equilibrium Theory)

इस रेखाचित्र में A पर व्यय की गई सीमान्त उपयोगिता का वक्र AQ तथा B पर की गई व्यय पर सीमान्त उपयोगिता का वक्र BK है। RC उपभोक्ता की कुल मौद्रिक आय है। संतुलन बिन्दु S है जहां दोनो वस्तुओं पर व्यय की गई सीमान्त उपयोगिता समान होती है। इसलिए उपभोक्ता जब A वस्तु पर RL तथा B वस्तु पर LC व्यय करता है तो दोनो वस्तुओं पर व्यय की गई सीमान्त उपयोगिता समान होती है तथा उपभोक्ता को अधिकतम कुल उपयोगिता प्राप्त होती है। जिसे रेखाचित्र में RASBC में दिखलाया गया है।

मार्शल उपभोक्ता संतुलन (Marshall's Consumer Equilibrium Theory)

अगर उपभोक्ता A वस्तु पर RL से अधिक RM तथा B वस्तु पर LC से कम MC व्यय करे तो ऐसे स्थिति में दोनों वस्तुओं पर व्यय की जाने वाली रकम की सीमान्त उपयोगिता समान नहीं होगी। जिसके कारण उपभोक्ता की कुल उपयोगिता अधिक नहीं होगी।

अतः ऐसे स्थिति में उपभोक्ता की कुल उपयोगिता RAPNSBC होगा। अर्थात् उपभोक्ता की कुल उपयोगिता NSP घट जाएगी। इसी प्रकार यह भी सिद्ध किया जा सकता है कि अगर B पर अधिक एवं A पर कम व्यय किया जाए तब भी उपभोक्ता की कुल उपयोगिता घट जाएगी। अतः सिद्ध हो जाता है कि उपभोक्ता की कुल उपयोगिता तभी अधिकतम होगी जब दोनों वस्तुओं पर व्यय की जाने वाली रकम की सीमान्त उपयोगिता हो जाती है। अर्थात् प्रत्येक वस्तु की सीमांत उपयोगिता एवं मूल्य का अनुपात समान हो जाती है।

मार्शल द्वारा गणितीय व्याख्या

उपयोगिता फलन U =ƒ(q1 , q2) -----(1)

तथा उसका बजट प्रतिबंध Y = P1q1 + P2q2 ---(2)

or, Y - P1q1 - P2q2 = 0

लैंगरान्ज गुणक = पुराना समीकरण + λ (नया समीकरण)

Z = ƒ (q1 , q2) + λ (Y - P1q1 - P2q2)

जहां λ , लैंगरान्ज गुणक तथा Z फलन है q1,q2 तथा λ का । चूंकि हमारा उद्देश्य Z को अधिकतम बनाना है। अतः q1,q2 तथा λ के सापेक्ष Z का आंशिक अवकलज ज्ञात कर उनको शून्य के बराबर रखते हैं।

अर्थात्

Z = λY - λP1q1 - λP2q

`\frac{\partial Z}{\partial q_1}=ƒ_1-\lambda P_1=0--(3)`

`\frac{\partial Z}{\partial q_2}=f_2-\lambda P_2=0---(4)`

`\frac{\partial Z}{\partial\lambda}=Y-P_1q_1-P_2q_2=0---(5)`

उपर्युक्त तीनों समी० को हल करने पर वह बिन्दु प्राप्त होगा जहां उपयोगिता अधिकतम अथवा न्यूनतम हो सकती है। द्वितीय क्रम की शर्त के संतुष्ट होने पर ही यह ज्ञात हो सकेगा कि उस बिन्दु पर

फलन U =ƒ(q1 , q2) का मान अधिकतम होगा।

द्वितीय क्रम की शर्त के परीक्षण से पूर्व प्रथम क्रम की

शर्त की विवेचना करना उपयुक्त होगा।

समीकरण (3) तथा (4) प्रथम क्रम की शर्त को संतुष्ट करते हैं। इन समीकरण के अनुसार

ƒ1 – λP1 =0 ; ƒ1 = λP1

ƒ2 – λP2 =0 ; ƒ2 = λP2

`or,\frac{ƒ_1}{ƒ_2}=\frac{\lambda P_1}{\lambda P_2}`

`or,\frac{ƒ_1}{ƒ_2}=\frac{P_1}{P_2}--(6)`

पुनः समीकरण (3) (4) तथा (5) का सम्पूर्ण अवकलज करने पर अग्र समीकरण प्राप्त होते हैं।

ƒ11dq1 + ƒ12dq2 – P1dλ = λdP1 ---(7)

ƒ21dq1 + ƒ22dq2 – P2dλ = λdP2  ---(8)

-P1dq1 - P2dq2 = -λY + q1dP1 + q2dP2 --(9)

उपर्युक्त समीकरण (7) (8) तथा की अज्ञात राशि dq1, dq2 तथा dλ को ज्ञात करने के लिए मैट्रिक्स बीजगणित का उपयोग किया जा सकता है।

उपयोगिता के अधिकतम होने की द्वितीय क्रम की शर्त के लिए संगत सीमा कृत हेस सारणिक का मान धनात्मक होना चाहिए।

सारणिक का प्रसार करने पर ;

`f_{11}\left(-P_2^2\right)-f_{12}\left(-P_1P_2\right)–\P_1(-P_2f_{21}+P_1f_{22})>0`

`-f_{11}P_2^2+f_{12}P_1P_2+f_{21}P_1P_2-f_{22}\P_1^2>0`

`\left(-f_{11}P_2^2+2f_{12}P_1P_2-f_{22}\;P_1^2\right)>0`

`f_{11}P_2^2-2f_{12}P_1P_2+f_{22}\;P_1^2<0`

इस तरह उपभोक्ता को परम संतुष्टि तभी प्राप्त होगी जब समी० (6) और (9) की शर्त एक साथ पूरी होगी।

आलोचनाएँ

1. मार्शल की मान्यता यह गलत है कि उपयोगिता को संख्याें मापी जा सकती है क्योकि उपयोगिता एक भावनात्मक आस्था है जिसकी संख्यात्मक माप सही नहीं होती है।

2. मुद्रा की सीमान्त उपयोगिता स्थिर नहीं होती है।

3. उपभोक्ता हिसाबी स्वभाव के नहीं होते हैं।

4. अनेक वस्तुएँ अविभाज्य होते है जिन्हे आवश्यक अनुपात में परिवर्तन नहीं किया जा सकता।

5. कुछ टिकाऊ वस्तुएँ जैसे भवन, जमीन पर सीमान्त उपयोगिता की गणना कठिन है।

6. मार्शल का सीमान्त उपयोगिता विश्लेषण कीमत प्रभाव को प्रतिस्थापन प्रभाव तथा आय प्रभाव में विभाजित नहीं करता।

7. गिफन विरोधाभास की व्याख्या कर सकने में असमर्थ।

निष्कर्ष

यद्यपि मार्शल का सिद्धांत दोषपूर्ण है लेकिन अधिकतम दोष मान्यताओं से संबंधित है। हिक्स के सिद्धांत को मार्शल से श्रेष्ठ माना जाता है लेकिन हिक्स ने भी मार्शल से भिन्न कोई निष्कर्ष नहीं दिया उपभोक्ता व्यवहार का सिद्धांत का व्यवहारिक सिद्धांत प्रो० सेम्युलसन ने प्रकट अधिमान सिद्धांत मे प्रतिपादित किया है।

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