प्रश्न :- भारतीय जनसंख्या की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख करें? ग्रामीण क्षेत्र से शहरी
क्षेत्र में पलायन की व्याख्या करें?
→ भारतीय जनसंख्या की
प्रमुख प्रवृत्तियों का वर्णन करें ?
उत्तर
:- किसी भी देश का आर्थिक विकास पूर्ण रूप से वहाँ के प्राकृतिक साधनों, जनसंख्या
तथा पूँजी की उपलब्धियों पर निर्भर करता है। देश के आर्थिक विकास में देश की जनता
महत्वपूर्ण भाग अदा करती है, क्योंकि प्राकृतिक साधनों का उपयोग तथा आर्थिक विकास
देश की जनसंख्या पर ही आधारित होती है। प्रो. के. के कुरिहारा ने इस संदर्भ में कहा भी
है, "किसी देश की जनसंख्या उपयोगिता संतुष्टि एवं उपयोगिता सृजन का कार्य सम्पादित करती है "।
विश्व
में भारत आबादी के मामले में दूसरे स्थान पर और क्षेत्रफल में सातवें स्थान पर है। विश्व की जनसंख्या का 16% भाग भारत में रहता है, जबकि
इसका क्षेत्रफल दुनिया के क्षेत्रफल का 2.42% है।
भारत की जनसंख्या की मुख्य विशेषताएँ
भारत
की जनसंख्या की मुख्य विशेषताओं अथवा मुख्य प्रवृत्ति के संदर्भ में निम्न
तथ्यों का उल्लेख किया जा सकता है।
(1)
जनसंख्या का विशाल आकार :-
1991 की जनगणना के अनुसार भारत की आबादी 84.63
करोड़ थी जो बढ़कर 2001 में लगभग 102.7 करोड़ हो गई। यह
आस्ट्रेलिया की जनसंख्या का दस गुणा है और जापान की जनसंख्या से अधिक है।
World
Bank Population Projection 1994-95 शीर्षक प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार दक्षिण एशियाई
देशों में भारत की आबादी
अगामी 25 वर्षों में 53.3% बढ़ सकती है। 2030 ई. की संभावित आबादी (भारत की)
140 करोड़ होगी। वस्तुतः भारत जनसंख्या विस्फोट की स्थिति से गुजर रहा है।
वर्ष |
जनसंख्या (करोड़
में) |
दशक वृद्धि दर(%) |
1901 |
23.84 |
- |
1911 |
25.20 |
5.75 |
1921 |
25.13 |
-0.31 |
1931 |
27.89 |
11 |
1941 |
31.86 |
14.22 |
1951 |
36.10 |
13.31 |
1961 |
43.92 |
21.51 |
1971 |
54.81 |
24.80 |
1981 |
68.33 |
24.66 |
1991 |
84.63 |
23.85 |
2001 |
102.7 |
25.2 |
(2)
जनसंख्या का घनत्व :- किसी देश में प्रतिवर्ग किलोमीटर
में निवास करने वाले व्यक्तियों की औसत संख्या को जनसंख्या का घनत्व कहते
है। भारत की जनसंख्या बहुत ही घनी
है। जनसंख्या
के घनत्व के संदर्भ में तीन बाते महत्त्वपूर्ण है
(i)
भारत में जनसंख्या का घनत्व उत्तरोत्तर बढ़ता ही जा रहा
है। यह निम्न तालिका से स्पष्ट
है:-
वर्ष |
जनसंख्या का घनत्व |
1921 |
81 |
1931 |
90 |
1941 |
103 |
1951 |
117 |
1961 |
142 |
1971 |
177 |
1981 |
216 |
1991 |
267 |
(ii)
अन्य कृषि प्रधान देशों की तुलना में भारत में जनसंख्या का
घनत्व अधिक है। यथा -
देश |
जनसंख्या का घनत्व
प्रति व्यक्ति |
भारत |
267 |
कनाडा |
3 |
सोवियत रूस |
12 |
संयुक्त राज्य
अमेरिका |
25 |
चीन |
79 |
(iii)
भारत में जनसंख्या का घनत्व सर्वत्र समान नहीं है।
2001 की
जनसंख्या के अनुसार (लाखों में ; जनघनत्व व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर)
राज्य |
जनसंख्या (लाखों
में) |
जनघनत्व |
दिल्ली |
138 |
9294 |
पश्चिमी बंगाल |
802 |
904 |
बिहार |
829 |
880 |
झारखंड |
269 |
338 |
उत्तर प्रदेश |
1660 |
689 |
पंजाब |
243 |
489 |
भारत |
10270 |
324 |
वस्तुतः किसी प्रदेश की जनसंख्या का घनत्व निम्नांकित बातो
पर निर्भर करता है
- जलवायु
- वर्षा
- शांति एवं सुरक्षा
- उद्योग धन्धों का विकास
- मिट्टी
तथा भूमि की बनावट
- सिंचाई की सुविधा
(3) उच्च जन्म तथा मृत्यु दर :- जन्म दर की अपेक्षा मृत्यु दर अधिक होने से जनसंख्या
में कमी होगी और यदि मृत्यु दर कम है तो जनसंख्या में वृद्धि होगी। दोनों में
अन्तर को अति जीवन दर कहते है। भारत में जन्म दर अन्य विकसित देशों की तुलना में
बहुत अधिक है। यह निम्न तालिका से स्पष्ट है
भारत में औसत जन्म व मृत्यु दर (प्रति हजार)
अवधि |
जन्म दर |
मृत्यु दर |
1901-11 |
48.1 |
42.6 |
1911-21 |
49.2 |
48.6 |
1921-31 |
46.4 |
36.3 |
1931-41 |
45.2 |
31.2 |
1951-61 |
40 |
18 |
1961-71 |
41.2 |
19.2 |
1971-80 |
37.2 |
15 |
1985-86 |
32.6 |
11.1 |
वस्तुत: भारत में जन्म दर अधिक होने के कई कारण है-
- आर्थिक कारण
- बाल विवाह
- गर्म जलवायु
- सर्व विवाह प्रथा
- संयुक्त परिवार प्रथा
- निर्धनता
- शिक्षा का अभाव
- रूढ़िवादी विचार
- मनोरंजन के साधनों का अभाव
भारत में मृत्यु दर में तो कमी आई है, फिर भी अन्य देशों की तुलना में
यह ज्यादा है। भारत में मृत्यु दर की दो प्रमुख विशेषताएँ है - अधिक शिशु मृत्यु दर और प्रजनन अवस्था में स्त्रियों की
अत्यधिक मृत्यु
विभिन्न देशों में मृत्यु दर
(1978) (प्रति हजार व्यक्ति)
देश |
मृत्यु दर |
शिशु मृत्यु दर |
संयुक्त राज्य अमेरिका |
8.8 |
15.8 |
जापान |
6.1 |
9.3 |
फ्रांस |
10,1 |
10.4 |
ग्रेट ब्रिटेन |
11.7 |
14.3 |
भारत |
14.2 |
122 |
(4) स्त्री-पुरुष अनुपात :- जनसंख्या की संरचना पुरुष एवं स्त्रियों के अनुपात से प्रभावित
होती है। स्त्री अनुपात को इस रूप में परिभाषित किया जाता है कि प्रति एक हजार पुरुषों
के अनुपात में स्त्रियों की जनसंख्या क्या है। 1991 में 927 प्रति हजार पुरुष हो गया है।
केरल की स्थिति भिन्न है जहाँ स्त्रियों की संख्या पुरुषों की अपेक्षा अधिक है और यहाँ 1036 स्त्रियाँ एक हजार पुरुष का
अनुपात है।
स्त्री-पुरुष अनुपात
जनगणना वर्ष |
स्त्री प्रति हजार
पुरुष |
1901 |
927 |
1921 |
955 |
1951 |
946 |
1961 |
941 |
1971 |
930 |
1981 |
934 |
1991 |
927 |
पुरुषों की तुलना में औरतों की संख्या
के कम होने का प्रमुख कारण यह है कि भारत में औरतों के स्वास्थ्य तथा आहार पर विशेष
रूप से ध्यान नहीं दिया जाता। बाल-विवाह, पर्दा प्रथा तथा प्रसव सम्बन्धी चिकित्सा के अभाव में भी स्त्रियों
की अत्यधिक मृत्यु होती है। इस प्रकार हमारे देश में पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों
का जीवन अधिक कठोर है, अंतः इनकी संख्या लगातार कम होती जा रही है।
(5) साक्षरता दर :- साक्षरता से आर्थिक विकास में बहुत
अधिक सहायता मिलती है। इंगलैंड, अमेरिका तथा जापान आदि देशों में शत-प्रतिशत व्यक्ति
साक्षर है। किंतु भारत में 1981 की जनगणना के अनुसार कुल जनसंख्या के लगभग 36.2% व्यक्ति
ही शिक्षित है।
साक्षरता दर
वर्ष |
व्यक्ति |
पुरुष |
महिलाएं |
1951 |
18.33 |
27.16 |
8.86 |
1961 |
28.31 |
40.40 |
15.34 |
1971 |
34.45 |
45.95 |
21.97 |
1981 |
43.56 |
56.37 |
29.75 |
1991 |
51.21 |
64.13 |
30.29 |
(6)
जीवन की औसत आयु का कम होना :- विगत कुछ वर्षों में जीवन
की औसत आयु में वृद्धि हुई है। उदाहरण के लिए 1971 ई. की जनगणना के अनुसार जीवन की
औसत आयु 46 वर्ष थी जो बढ़कर 1981 ई. 53 वर्ष हो गयी। लेकिन भारत इस संबंध में अभी भी विकसित
देशों की तुलना में बहुत ही पिछड़ा है। हमारे देश में अधिकांश व्यक्तियों को पौष्टिक
भोजन नहीं मिलता, अतः उनकी आयु कम हो जाती है।
निम्नांकित
तालिका से 1984 ई. में विश्व के कुछ प्रमुख देशो की तुलना में भारत में जीवन की औसत
आयु का अन्दाजा लगाया जा सकता है।
देश |
जीवन की औसत आयु (वर्ष
में) |
संयुक्त राज्य अमेरिका |
76 |
ब्रिटेन |
74 |
जापान |
77 |
भारत |
56 |
भारत
में जीवन की औसत आयु सम्बन्धी एक विशेषता यह भी है कि यहाँ पुरुषों की तुलना में औरतों
की औसत आयु बहुत ही कम होती है।
(7)
उम्र के अनुसार जनसंख्या का वितरण :- उम्र के अनुसार
जनसंख्या के वितरण से कार्यशील जनसंख्या का पता चलता है। इस संदर्भ में मुख्य बात यह
है कि भारत में बच्चे की संख्या
विश्व के अन्य विकसित देशों की तुलना में बहुत ही अधिक है। 15 वर्ष से कम आयु वाले
लोगों के अनुपात का विश्व स्तर पर 35% है जबकि भारत में 40%, आस्ट्रेलिया में 27% तथा ब्रिटेन
में 23% है।
भारत
1993 के अनुसार : आयु संरचना (1990)
आयु वर्ष |
प्रतिशत में |
0-4 |
12.85 |
5-14 |
23.15 |
15-59 |
57.51 |
60
से ऊपर |
6.49 |
(8)
कार्यशील जनसंख्या :- कार्यशील तथा अकार्यशील
जनसंख्या में किसी देश की सम्पूर्ण जनसंख्या को विभाजित किया जा सकता है। कार्यशील
जनसंख्या ही देश के विकास में अथवा
उत्पादक कार्यों में सहयोग प्रदान करती है। सामान्यतः बच्चे, बूढे तथा लाचार लोग अकार्यशील जनसंख्या में आते हैं। 1961
के बाद भारत में कार्यशील जनसंख्या में कमी आई है। यह निश्चित ही चिंता की बात है।
1961 में कार्यशील जनसंख्या कुल जनसंख्या का 43% थी जो 1971 में
34.2% तथा 1981 में 32.5% हो
गयी।
(9) कार्यशील जनसंख्या का व्यावसायिक वितरण :- जनसंख्या के व्यावसायिक वितरण का तात्पर्य यह है कि देश
की कुल कार्यशील जनसंख्या विभिन्न व्यवसायों अथवा पेशों में किस अनुपात में
विभाजित है, यानी कुल कार्यशील जनसंख्या का कितना प्रतिशत प्राथमिक उद्योगों जैसे
कृषि, मत्स्य पालन, लकड़ी काटने आदी उद्योगों में
कितना प्रतिशत द्वितीयक उद्योगों जैसे निर्माण सम्बन्धी उद्योगों में तथा कितना
प्रतिशत भाग तृतीयक क्षेत्र यथा सरकारी नौकरी, व्यापार तथा यातायात आदि में लगे
हैं। प्रो. कोलिन क्लार्क के अनुसार, "प्रति व्यक्ति औसत
उच्च आय वाले देशों में कार्यशील जनसंख्या का एक बहुत बड़ा भाग तृतीयक उद्योगों, व्यापार,
यातायात तथा सेवाओं में लगा रहता है जब कि निम्न औसत आय वाले देशों में कृषि की प्रधानता
रहती है"।
1971 ई. की जनगणना के अनुसार भारत की कार्यशील जनसंख्या का
व्यावसायिक वितरण निम्नांकित प्रकार से था
पेशा या व्यवसाय |
कुल कार्यशील
जनसंख्या का अनुपात |
1.
कृषक |
43.3 |
2.
कृषि श्रमिक |
26.3 |
3.
निर्माण उद्योग |
9.0 |
4.
व्यापार तत्था वाणिज्य |
5.6 |
5.
पशुपालन, मत्स्य पालन |
2.4 |
6.
भवन निर्माण |
1.3 |
7.
परिवहन |
1.0 |
8.
खनन |
2.4 |
9.
अन्य सेवाएं |
8.7 |
कुल |
100 |
तालिका से स्पष्ट है कि कृषि पर अधिक तथा उद्योग-धंधों पर
कम व्यक्तियों का आश्रित होना हमारी असन्तुलित आर्थिक व्यवस्था का परिचायक है।
(10) ग्रामीण तथा शहरी जनसंख्या :- भारतीय जनसंख्या की ग्रामीण तथा शहरी संरचना देखने से
यह पता लगता है कि भारत की अधिकांश जनता गाँवों में निवास करती है। आधुनिक
प्रवृत्ति शहरी जनसंख्या में बढ़ने की है। यह निम्न तालिका से दर्शाया गया है।
भारत 1993 के अनुसार -
ग्रामीण तथा शहरी जनसंख्या का अनुपात (%में)
वर्ष |
ग्रामीण |
शहरी |
1951 |
82.7 |
17.3 |
1961 |
82.0 |
18.0 |
1971 |
80.1 |
19.9 |
1981 |
76.7 |
23.3 |
1991 |
74.3 |
25.7 |
(11)
भाषा के आधार पर जनसंख्या का
वितरण
:- भाषा के आधार पर जनसंख्या पर दृष्टि डालने से यह पता चलता है कि हिन्दी भाषा बोलने
वालों की संख्या सबसे ज्यादा है। बंगाली, तेलगू तथा मराठी बोलने वालों की संख्या लगभग
बराबर है। 1981 में 42.9% जनसंख्या हिन्दी भाषा वाले थे। 8.3% बंगाली 8. 2% तेलगू तथा
8% मराठी भाषी थे।
(12)
धर्म के आधार पर जनसंख्या का वितरण :- भारत में सबसे अधिक
संख्या हिन्दुओं की है। दूसरे नम्बर मुसलमान तथा तीसरे नम्बर पर ईसाई है।
मुख्य
धर्मावलम्बी की जनसंख्या (1991)% में
हिन्दू |
82.41 |
मुसलमान |
11.67 |
ईसाई |
2.32 |
सिख |
1.99 |
उपर्युक्त
विश्लेषण से यह स्पष्ट है कि भारतीय जनसंख्या का विस्तृत आयाम है।
नगरीकरण अथवा ग्रामीण क्षेत्र से शहरी क्षेत्र पलायन
पश्चिम
में औद्योगिक क्रांति के प्रभावस्वरुप नगरो की संख्या में वृद्धि हुई।
मशीनी वस्तुओं की प्रतिस्पर्धा के कारण श्रमिक, कारीगर और शिल्पी बेकार हो गए और इन
बेरोजगार श्रमिकों को
नगर क्षेत्रों में रख लिया गया। इस प्रकार बड़े पैमाने का उत्पादन, मशीनों के प्रयोग
और औद्योगिक सभ्यता के विकास के परिणामस्वरूप नगरीकरण हुआ। भारत में यूरोप की भांति
नगरीकरण की प्रक्रिया घटित नहीं हुई। बल्कि
19 शताब्दी तथा 20वी शताब्दी के आरंभिक काल में निम्नलिखित तत्वों के परिणामस्वरूप
नगरीकरण हुआ-
(1)
रेल के विकास के कारण व्यापार महत्त्वपूर्ण स्टेशनों के मार्गो द्वारा होने लगा। भारत
में रेल की आवश्यकता या तो
प्रशासनिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए अनुभव की गई या फिर
निर्यात के उद्देश्य से महत्त्वपूर्ण व्यापारिक केन्द्रो पर वस्तुएं और
कच्चा माल एकत्रित करने के लिए।
(2) 19वीं शताब्दी में व्यापक अकालो के कारण बड़े पैमाने पर
किसान बेरोजगार हो गए। ग्राम-क्षेत्रो में रोजगार न मिल सकने के कारण ग्रामीण
जनसंख्या रोजगार की तलाश में नगरों की ओर चल पड़ी। 1872 से 1881 और 1891 से
1901 की अवधि में भीषण अकाल पड़ने के कारण नगरो की ओर जनसंख्या का प्रवाह सर्वाधिक
तीव्र दिखाई पड़ता है।
(3) भूमिहीन श्रमवर्ग के विकास से भी नगरीकरण उत्पन्न हुआ,
चाहे यह केवल नकारात्मक प्रवृत्ति ही थी। इस वर्ग का मूल कृषि में था और यह ग्राम
तथा नगरों के बीच आने-जाने वाली श्रम शक्ति का ही एक अंग था। इस वर्ग के जिन लोगों
को नगर क्षेत्रो में स्थायी रोजगार अथवा अपेक्षाकृत ऊंची मजदूरी मिल गई, वे वहीं
बस गये। किंतु इनमें से कोई आकर्षण महत्वपूर्ण रूप से कार्य नहीं कर सका।
(4) धनी जमींदारों में नगरों में बसने की प्रवृत्ति भी
विद्यमान हुई क्योंकि नगर जीवन में कुछ ऐसे आकर्षण है जिनका ग्रामों में सर्वथा
अभाव है।
(5) नये उद्योगों की स्थापना अथवा पुराने उद्योगों का
विस्तार होने के कारण श्रम-शक्ति नगरो में खपने लगी।
इस सम्बंध में प्रोफेसर डी. आर. गाडगिल ने अपनी पुस्तक "The Industrial Evelution of India" में इस परिणाम पर पहुंचे है " इन सब कारणों में उद्योगों का विकास अन्य सभी देशों में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण कारण रहा है किंतु भारत में इसका प्रभाव निश्चय ही इतना सशक्त नहीं रहा। सच तो यह है कि भारत में बहुत कम ऐसे नगर है जिनका उद्भव नए उद्योगों के कारण हुआ हो"।
भारतीय अर्थव्यवस्था (INDIAN ECONOMICS)
व्यष्टि अर्थशास्त्र (Micro Economics)
समष्टि अर्थशास्त्र (Macro Economics)
अंतरराष्ट्रीय व्यापार (International Trade)