विभेदात्मक एकाधिकार (Discriminating Monopoly)

विभेदात्मक एकाधिकार (Discriminating Monopoly)

विभेदात्मक एकाधिकार (Discriminating Monopoly)

प्रश्न :- मूल्य विभेद की परिभाषा दीजिए। मूल्य विभेद कब संभव, लाभदायक तथा सामाजिक दृष्टि से वांछनीय होता है? इसके अंतर्गत मूल्य किस प्रकार निर्धारित होता है?

☞ कीमत विभेदीकरण कब लाभदायक होता है? कीमत विभेदीकरण के अंतर्गत मूल्य निर्धारण की व्याख्या कीजिए?

उत्तर :- Meaning of the Price Discrimination & Definities : मूल्य विभेद का शाब्दिक अर्थ है :-मूल्यों में भिन्नता

अर्थात् जब कोई एकाधिकारी एक ही वस्तु को विभिन्न उपभोक्ताओं को भिन्न-भिन्न कीमतों पर बेचता है, तो इसे कीमत विभेद कहते है, ऐसा वह तब करता है जब ऐसा करना उसके लिए संभव तथा लाभदायक होता है।

Prof. G. J. Stigler के अनुसार, "समान वस्तु के लिए दो अथवा दो से अधिक कीमत वसूलने को मूल्य विभेद कहते है"।

मूल्य विभेद का शाब्दिक अर्थ मूल्य में भिन्नता है।

Smt. Jone Robinson के शब्दों में, "एक ही नियंत्रण के अंतर्गत उत्पादित एक ही वस्तु को विभिन्न क्रेताओं को विभिन्न कीमतों पर बेचने का कार्य मूल्य विभेद कहा जाता है"

मूल्य विभेद कब संभव है -

विभेदात्मक एकाधिकार (Discriminating Monopoly)

मूल्य विभेद केवल एकाधिकार में ही संभव होता है, क्योंकि इसमें एक ही विक्रेता होता है, उसका पूर्ति पर पूर्ण नियंत्रण रहता है। पूर्ण प्रतियोगिता में मूल्य विभेद संभव नहीं होता क्योंकि यदि एक विक्रेता वस्तु की ऊँची कीमत वसूल करना चाहता है तो उपभोक्ता दूसरे विक्रेता के पास चला जायेगा।

स्टोनियर एवं हेंग के अनुसार, मूल्य विभेद चार परिस्थितियों में संभव है-

1. उपभोक्ताओं की अज्ञानता के कारण :- मूल्य विभेद उपभोक्ताओं की निम्नलिखित तीन अज्ञानता के कारण संभव होता है:-

a) उपभोक्ताओं के विभिन्न बाजारों का ज्ञान न होना।

b) उपभोक्ता के मन में यह बात बैठ गई है कि अमुख वस्तु अच्छी है क्योंकि वह उसकी ऊंची कीमत दे रहा है।

c) वह वस्तु की विभिन्न स्थानों पर मामूली कीमत अन्तर पर ध्यान नहीं देता है।

2. वस्तु की प्रकृति :- मूल्य विभेद वस्तु एवं सेवा की प्रकृति से भी प्रभावित होता है। उदाहरण के लिए, सिनेमा के पीछे की सीटों के लिए अधिक कीमत वसूल की जाती है जबकि नाटक एवं सर्कस में आगे की कीमत पीछे की सीटों के मुकाबले अधिक होती है।

3. दूरी एवं सीमा की रुकावटे :- यदि दो बाजारों में अधिक दूरी है तो मूल्य विभेद संभव हो सकता है क्योंकि उपभोक्ताओं को एक बाजार से दूसरे बाजार में जाने में यातायात व्यय देना पड़ता है। इसलिए वह उस वस्तु को खरीदने के लिए नीची कीमत वाले बाजार में जाना पसंद नहीं करता हैं। यदि दोनों बाजारों में उस वस्तु की कीमत में अंतर अधिक हो तो संभव है ,उपभोक्ता नीची कीमत वाले बाजार में चला जाय ,ऐसी दशा में मूल्य विभेद नहीं होगा।

4. बाजारों में मांग की लोच :- एकाधिकारी अपने वस्तु की कुल मात्रा के दो उप-बाजारों में उनकी माँग की लोच के आधार पर बांटता हैं।

दोनों उप- बाजारों की माँग की लोच आपस में बराबर नहीं होनी चाहिए अर्थात्,

e1e2e1e2

इसे गणितीय विधि से सिद्ध किया जा सकता है।

We know that

R = Px

Let,

u = P               

v = x

u1=dPdxu1=dPdx

v’ = 1

dRdx=vu1+uv1dRdx=vu1+uv1

MR=xdPdx+P(1)MR=xdPdx+P(1)

MR=xdPdx+PMR=xdPdx+P

MR=P+xdPdxMR=P+xdPdx

MR=P(1+xPdPdx)MR=P(1+xPdPdx)

MR=P(1+dPdx.xP)MR=P(1+dPdx.xP)

MR=P(1+1dxdP.Px)MR=P(1+1dxdP.Px)

P=ARP=AR

MR=AR(1-1e)MR=AR(11e)

जहां

MR = सीमांत आय

AR = औसत आय

e = मांग की लोच

MR=AR(e-1e)MR=AR(e1e)

MR=eAR-AReMR=eARARe 

or, eMR = eAR – AR

or, AR = eAR – eMR

or, AR = e(AR – MR)

or, e(AR – MR) = AR

or,e=AR(AR-MR)or,e=AR(ARMR)

e1=AR1(AR1-MR1)e1=AR1(AR1MR1)

e2=AR2(AR2-MR2)e2=AR2(AR2MR2)

e1qe2e1qe2

मूल्य विभेद समाज के लिए लाभदायक एवं वांछनीय-

लाभ

Smt. Jone Robinson ने अपनी पुस्तक, " Economics of Imperfect Competition" में  कहा - "अधिकतम सामाजिक लाभ की प्राप्ति के लिए मूल्य विभेद किया जाय तो यह लाभदायक है"

मूल्य विभेद से समाज को निम्नलिखित लाभ है।

1. मूल्य विभेद समाज में विशेष कर निर्धन वर्ग के लिए लाभदायक होता है । उदाहरण के लिए सरकार रेल किराये में मूल्य विभेद करती है, क्योंकि प्रथम श्रेणी में यात्रा करने वाला व्यक्ति ऊँची य वाले होते है तथा द्वितीय श्रेणी निर्धन व्यक्ति ।

2. निम्न माँग की लोच :- सामान्यतः जिस बाजार में मांग की लोच निम्न होती है वहाँ कीमत नीची होती है। प्राय: ऐसे बाजार में निर्धन क्रेता होते हैं।

3. मूल्य विभेद के कारण लोगों को बाजार में वस्तु अधिक मात्रा में उपलब्ध होती हैं।

4. उत्पादन में वृद्धि :- घटती हुई औसत लागत की स्थिति में यदि मूल्य विभेद होती है तो उत्पादन में वृद्धि होती है। जिससे उपभोक्ताओं को लाभ होता हैं।

5. भुगतान संतुलन बनाये रखने में सहायक :- मूल्य विभेद लाभकारी उस स्थिति में भी हो सकता है जब बाजार में एक रेलू बाजार हो और दूसरा विदेशी बाजार, और घरेलू बाजार में कम कीमत पर एवं विदेशी बाजार में अधिक कीमत पर वस्तु बेची जाती है। यदि विदेशी बाजार में माँग लोचदार हुई तो कम कीमत पर अधिक वस्तुएँ बेची जा सकती है। अत: उत्पादन में वृद्धि होगी, उत्पादन के साधनों का अधिकतम उपयोग होने लगेगा और आय की प्राप्ति होगी। इतना ही नहीं, विदेशी मुद्रा की प्राप्ति के कारण भुगतान संतुलन बनाये रखने में मदद मिलेगी।

हानि

मूल्य विभेद की निम्नलिखित हानियाँ हैं:-

1. मूल्य विभेद के कारण राशिपतन उत्पन्न हो जाती है जिसके कारण समाज को हानि उठानी पड़ती है।

2. चूंकि एक ही वस्तु का भिन्न-भिन्न मूल्य लिया जाता है इसलिए यह सामाजिक न्याय के विरुद्ध है।

3. मूल्य विभेद के कारण वस्तुओं के उत्पादित साधनों का अनुचित वितरण होता है।

4. मूल्य विभेद से एकाधिकारी लाभ मे वृद्धि होती है जो सामाजिक दृष्टिकोण से ठीक नहीं है, क्योंकि एकाधिकारी उपभोक्ता का शोषण करता है।

मूल्य निर्धारण

मूल्य निर्धारण के पूर्व एकाधिकारी दो उप-बाजारों को चुनता है।

दो उप बाजारों में माँग की लोच भिन्न-भिन्न होती है।

वस्तु की कुल मात्रा की पूर्ति पर एकाधिकारी का पूर्ण नियंत्रण होती है। मूल्य निर्धारण के पूर्व एकाधिकारी संतुलन की अवस्था में पहुँचता है।

संतुलन के लिए दो शर्त निम्न‌लिखित है -

1) MR1 = MR2 = MC

2. MC की रेखा MR1 तथा MR2 को नीचे से काटती है।

π = [R1(q1) + R2 (q2)] – [C]

dπdq1=R11(q1)+0-dCdq1dπdq1=R11(q1)+0dCdq1

dπdq1=MR1-MC---(1)dπdq1=MR1MC(1)

dπdq2=0+R12(q2)-dCdq2dπdq2=0+R12(q2)dCdq2

dπdq2=MR2-MC--(2)dπdq2=MR2MC(2)

लाभ अधिकतम करने के लिए आवश्यक है कि ,

dπdq1=0;dπdq2=0dπdq1=0;dπdq2=0

From eqution (1)

dπdq1=MR1-MCdπdq1=MR1MC 

MR1 – MC = 0

MR1 = MC ---(3)

From eqution (2)

dπdq2=MR2-MCdπdq2=MR2MC 

MR2 – MC = 0

MR2 = MC ---(4)

From eqution (3) & (4)

MR1 = MR2 = MC

Sufficient Condition

dπdq1=R11(q1)-dCdq1dπdq1=R11(q1)dCdq1

d2πdq21=R111(q1)-d2Cdq21--(5)d2πdq21=R111(q1)d2Cdq21(5)

d2πdq22=R112(q2)-d2Cdq22--(6)d2πdq22=R112(q2)d2Cdq22(6)

लाभ अधिकतम करने पर,

d2πdq21<0d2πdq21<0

R111(q1)-d2Cdq21<0R111(q1)d2Cdq21<0

or,ddq1[R11(q1)]-ddq1(dCdq1)<0or,ddq1[R11(q1)]ddq1(dCdq1)<0

or,ddq1(MR1)-ddq1(MC)<0or,ddq1(MR1)ddq1(MC)<0

or,ddq1(MR1)<ddq1(MC)or,ddq1(MR1)<ddq1(MC)

or,ddq1(MC)<ddq1(MR1)or,ddq1(MC)<ddq1(MR1)

Slope of MC > Slope of MR1

From eqution (6)

लाभ अधिकतम करने पर

d2πdq22<0d2πdq22<0

R112(q2)-d2Cdq22<0R112(q2)d2Cdq22<0

or,ddq2[R12(q2)]-ddq2(dCdq2)<0or,ddq2[R12(q2)]ddq2(dCdq2)<0

or,ddq2(MR2)-ddq2(MC)<0or,ddq2(MR2)ddq2(MC)<0

or,ddq2(MR2)<ddq2(MC)or,ddq2(MR2)<ddq2(MC)

or,ddq2(MC)<ddq2(MR2)or,ddq2(MC)<ddq2(MR2)

Slope of MC > Slope of MR2

इसलिए स्पष्ट है कि MC,MR1 और MR2 को नीचे से काटती है।

दोनों उप-बाजारों में माँग की लोच भिन्न होनी चाहिए तभी लाभ होगा और एकाधिकारी कीमत विभेद करेगा ।

इसे गणितीय विधि से स्पष्ट किया जा सकता है -

किसी वस्तु की कीमत सीमांत आय (MR) तथा माँग की मूल्य लोच में निम्न संबंध हैं :-

MR=P(e-1e)MR=P(e1e)

Where, MR = सीमांत आय , P = मूल्य, e = मूल्य लोच

इसलिए बाजार A में ,

MRa=Pa(ea-1ea)--(1)MRa=Pa(ea1ea)(1)

बाजार B में ,

MRb=Pb(eb-1eb)--(2)MRb=Pb(eb1eb)(2)

चूंकि मूल्य विभेद के अन्तर्गत संतुलन की स्थिति में,

MRa = MRb

इसलिए समीकरण (1) और (2) से

Pa(ea-1ea)=Pb(eb-1eb)Pa(ea1ea)=Pb(eb1eb)

or,PaPb=eb-1ebea-1eaor,PaPb=eb1ebea1ea

or,PaPb=ebeb-1ebeaea-1eaor,PaPb=ebeb1ebeaea1ea

or,PaPb=1-1eb1-1eaor,PaPb=11eb11ea

मान लिया A में मांग की मूल्य लोच 2 है और मार्केट B में 3

or,PaPb=1-131-12or,PaPb=113112

or,PaPb=3-132-12or,PaPb=313212

or,PaPb=2312or,PaPb=2312

or,PaPb=23×12

or,PaPb=43

अतः जब बाजार A, और B में माँग की मूल्य लोच क्रमशः 2 और 3 है तो दो बाजारों में मूल्य 4:3 के अनुपात में निश्चित होगी।

राशि पतन (Dumping)

राशिपातन से आशय माल को घरेलू बाजार के मूल्य की तुलना में कम मूल्य पर बेचने से है। एकाधिकारी को दो बाजारों में अपना माल बेचना होता है जिसमें से देशी बाजार में उसका एकाधिकार होता है और विदेशी बाजारों में उसे प्रतियोगिता का सामना करना पड़ता है। ऐसी परिस्थिति में एकाधिकारी अपनी वस्तु को विदेशी मण्डी में देशी बाजार से कम मूल्य पर बेचकर एकाधिकारी लाभ को अधिकतम करता है। इस प्रकार जब वस्तु को नीचे मूल्य पर बेचा जाता है तो उसे राशिपातन कहते हैं। एक बाजार की हानि को वह दूसरे बाजार में अधिक मूल्य पर बेचकर पूर्ण कर सकता है।

राशिपातन की शर्तें – राशिपातन के लिए निम्न दो शर्तों को पूर्ण करना आवश्यक होता है :-

(1) सुरक्षित बाजार – एकाधिकारी को सुरक्षित बाजार प्राप्त होना चाहिए।

(2) माँग की लोच नीची होना असुरक्षित बाजार की तुलना में सुरक्षित बाजार में माँग की लोच नीची होनी चाहिए।

राशिपातन के उद्देश्य – राशिपातन के मुख्य उद्देश्य निम्न हैं:-

(1) विदेशी बाजार में लोचदार माँग जब देशी बाजार की तुलना में विदेशी बाजार में माँग अधिक लोचदार हो तो राशिपातन द्वारा मूल्य विभेद किया जाता है।

(2) प्रतियोगी को निकालना – राशिपातन में असुरक्षित मण्डी में नीची कीमत पर वस्तु को बेचकर प्रतियोगी विक्रेता को बाजार से निकाला जा सकता है।

(3) अतिरिक्त उत्पादन को बेचना राशिपातन का उद्देश्य अतिरिक्त उत्पादन को बेचना भी हो सकता है। यदि गलत माँग के अनुमान पर अधिक उत्पादन कर लिया जाता है तो उसे विदेशी बाजारों में कम मूल्य पर बेचा जा सकता है।

विभेदात्मक एकाधिकार (Discriminating Monopoly)

4) उत्पादन का विस्तार – एकाधिकारी अपने उत्पादन को बड़े पैमाने पर करके कम लागत पर माल उत्पादन कर सकता है और बढ़ी हुई उत्पादन की मात्रा को विदेशी बाजारों में कम मूल्य पर बेच सकता है।

राशिपातन द्वारा मूल्य निर्धारण - राशिपातन करते समय यह मान लिया जाता है कि विक्रेता को देशी बाजार में एकाधिकार प्राप्त हैं तथा विदेशी बाजार में प्रतियोगिता का सामना करना पड़ता है। चित्र में OA कुल उत्पादन की मात्रा है। ARI देशी बाजार तथा AR विदेशी बाजार की माँग रेखा है। इसी प्रकार MRI तथा MR रेखाएँ क्रमशः देशी व विदेशी बाजार की सीमान्त आय रेखाएँ हैं। देशी बाजार में OB मात्रा को BC मूल्य पर बेचा जाता है जबकि विदेशी बाजार में OA उत्पादन को AD मूल्य पर बेचा जाता है। इसमें BC मूल्य विदेशी बाजार में AD मूल्य से ऊँचा है।

राशिपातन से लाभ – राशिपातन से उपभोक्ताओं को निम्न लाभ प्राप्त हो सकते हैं :

(1) निर्यात में वृद्धि - निर्यात व्यापार में वृद्धि करने की दृष्टि से मूल्य विभेद द्वारा राशिपातन करना लाभदायक रहेगा, जबकि देशी बाजारों में अधिक एवं विदेशी बाजारों में कम मूल्य पर वस्तुएँ बेची जा रही हों।

(2) सामाजिक न्याय - सामाजिक न्याय की दृष्टि से मूल्य विवेचन न्यायोचित माना गया है जिसमें गरीबों को कम मूल्य पर तथा अमीरों को अधिक मूल्य पर वस्तु बेचकर राशिपातन किया जाता है।

(3) उद्योग की प्रकृति - कुछ उद्योगों की प्रकृति ही ऐसी होती है कि उन्हें विभेदात्मक एकाधिकार के आधार पर ही सफलतापूर्वक चलाया जा सकता है, ऐसे मूल्य विभेद के आधार पर ही रेगिस्तान भागों में जहाँ यातायात कम होता है रेलवे या बस सेवाएँ चालू रहती हैं।

(4) आर्थिक कल्याण में वृद्धि- यदि मूल्य विभेद के कारण कुल उत्पादन में अपेक्षाकृत अधिक वृद्धि हो रही हो तो उससे समाज के आर्थिक कल्याण में वृद्धि सम्भव हो जाती है।

निष्कर्ष

मूल्य विभेद स्वधन्य नाम है। एक ही वस्तु को भिन्न-भिन्न कीमतों पर बेचना कीमत विभेद कहलाता हैं। यह एकाधिकार में ही संभव है। जिसमें बाजारों का पृथ्यीकरण तथा माँग की लोच में भिन्नता आवश्यक हैं। इस प्रकार,

"कीमत विभेद की नीति संपूर्ण विश्व में कायम है"

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