मानवीय पूँजी निर्माण- शिक्षा, स्वास्थ्य तथा कुपोषण (Human capital formation- education, health and malnutrition)

मानवीय पूँजी निर्माण- शिक्षा, स्वास्थ्य तथा कुपोषण (Human capital formation- education, health and malnutrition)

मानवीय पूँजी निर्माण- शिक्षा, स्वास्थ्य तथा कुपोषण (Human capital formation- education, health and malnutrition)

प्रश्न:- शिक्षा, स्वास्थ्य तथा कुपोषण किस प्रकार आर्थिक विकास को प्रभावित करते हैं?

उत्तर -

 शिक्षा

शिक्षा मानवीय पूंजी निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह जीवन गुणवत्ता में सुधार लाती है तथा लोगों की आर्थिक तथा स्वास्थ्य के प्रति सचेत करती है। यूनेस्को के अनुसार, "शिक्षा और प्रशिक्षण. का प्रसंग तथा आर्थिक प्रगति दोनों साथ-साथ चलते हैं।

 शिक्षा का योगदान या महत्व

1. यह उत्पादकता और कार्यकुशलता में सुधार लाती है

2. यह लोगों के मानसिक ज्ञान में सुधार लाती है जिससे वह अपने स्वास्थ्य स्तर में सुधार लाते है।

3. साधारण शिक्षित लोग देश के विकास में योगदान देना आरम्भ कर देते हैं

4. यह उन्हे एक अच्छा नागरिक बनाती है जो एक समझदार सरकार के चुनाव में सहायक होते हैं।

5. यह कुशल तथा प्रशिक्षित श्रमिक पैदा करती है। इस सम्बंध में एक अर्थशास्त्री का कहना है," प्राथमिक शिक्षा श्रम उत्पादकता में 40%, वृद्धि करती है, सैकेण्डरी शिक्षा 10% तथा उच्च शिक्षा इसमें 300% सुधार लाती है।"

 शिक्षा के सन्दर्भ में सरकार की नीतियाँ

भारतीय संविधान के निर्देशक सिद्धांत के अनु‌सार, "राज्यों को 14 वर्ष की आयु से कम बच्चों को निः शुल्क तथा अनिवार्य शिक्षा प्रदान करने चाहिए। परन्तु राज्य सरकारे बड़े स्तर पर इस कर्तव्य के पालन में असफल रही है। इसलिए सरकार ने निम्नलिखित नई नीतियाँ बनाई:-

(1) नई शिक्षा नीतियाँ:- हमारी 1966 तथा 1986 की शिक्षा प्रणालियों ने सभी क्षेत्रों के लिए सुधरे रूप में शिक्षा के विस्तार की सिफारिश की है। ये नीतियां निम्न बातों पर केन्द्रित है-

(a) 6 - 14 वर्ष के बच्चों को निःशुल्क तथा अनिवार्य शिक्षा

(b) अनपढ़ता को पूर्ण रूप से समाप्त करना

(c) शिक्षा का व्यवसायीकरण

(d) स्त्री, निर्बल तथा सीमित वर्ग की शिक्षा पर केन्द्रीयकरण

(2) सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय :- सुप्रीम कोर्ट के एक निर्णय ने शिक्षा के अधिकार को एक मौलिक अधिकार घोषित किया है। इसी तरह लोक सभा ने अपने संविधान के 93वे संशोधन बिल में 6-14 वर्ष के बच्चों के लिए निःशुल्क तथा अनिवार्य शिक्षा का अधिकार प्रदान किया है।

(3) NCERT द्वारा सर्वेक्षण :- 1993 में NCERT ने छठा अखिल भारतीय शिक्षा सर्वेक्षण आयोजित किया जिसमें इसने ग्रामीण जनसंख्या का प्राथमिक तथा उच्च प्राथमिक स्कूल के प्रति आशावादी निष्कर्ष दिया। इस संबंध में इस सर्वेक्षण के निम्न निष्कर्ष है

(a) ग्रामीण जनसंख्या का 94% तथा शहरी जनसंख्या का 83% एक किलोमीटर के घेरे में स्कूलों के प्रति पहुंच रखता है।

(b) 85% ग्रामीण जनसंख्या तथा 76% ग्रामीण निवासियों की उच्च प्राथमिक स्कूलों के प्रति पहुंच है।

 भारत में शिक्षा क्षेत्र का विकास

स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात भारत ने शिक्षा के क्षेत्र में काफी प्रगति की है। इसमें प्राथमिक, उच्च प्राथमिक, सेकण्डरी उच्च तथा तकनीकी शिक्षा में शामिल की जाती है। निम्न तथ्य भारत में शिक्षा क्षेत्र के विकास को बताते हैं।

(ⅰ) विभिन्न स्तरों पर शिक्षा का प्रसार :-

(a) 1950-51 से 2002-03 के दौरान प्राथमिक स्कूलों की संख्या तीन गुना (2.1 से 6.5 लाख) बढ़ी। सैकण्डरी स्कूलों की संख्या 15 गुना (0.07 to 1.2 लाख) बढ़ गई।

(b) 2002-03 के लगभग 61% विधार्थी उच्च प्राथमिक स्कूल अर्थात् आठवीं कक्षा में पढ़ रहे थे।

(c) 1950-51 से 2002-03 के दौरान प्राथमिक स्कू‌लों में नामांकन 43 से 95% तक बढ़ा । इसी समय में सैकण्डरी स्कूलों में नामांकन 0.33% से बढ़कर 28% हो गया।

(d) विश्वविद्यालयों की सरूण 27 में कर 300 हो गई। इसलिए कॉलेज की संख्या में काफी वृद्धि हुई।

(e) 2002-03 मे 80% विद्यार्थी प्राथमिक तथा सैकण्डरी स्तर पर पढ़ रहे थे। इनमे से 90% लड़के तथा 70% लड़कियां थी।

(2) पढ़ाई छोड़ने की दर में कमी :- 1980-81 से 2002-03 के दौरान प्राथमिक स्तर पर लड़कों के पढ़ाई छोड़ने की दर 55% से कम हो कर 50% तथा उच्च प्राथमिक स्तर पर 68% में कम होकर 50% रह गई। 1980-81 में लड़कियों की शिक्षा छोड़ने की दर 65% प्राथमिक स्तर पर तथा 80% उच्च प्राथमिक स्तर पर थी। यह 2002-03 में कम होकर 40% तथा 56% रह गई।

(3) साक्षरता दर में वृद्धि :- 1951 में साक्षरता दर 18% थी जो कि 2001 में बढ़ कर 65% हो गई। 2.5 गुना पुरुष साक्षरता तथा 6 गुना स्त्रियों की साक्षरता में सुधार हुआ। इस समय में ग्रामीण साक्षरता 12% से बढ़कर 59.4% हो गई, शहरी साक्षरता में 18.3% से 80.3 % वृद्धि हुई।

(4) तकनीकी शिक्षा :- स्वतंत्रता के बाद तकनीकी शिक्षा में कई गुना विकास हुआ है। स्वतंत्रता के समय देश में 43 पॉलिटेक्निक कॉलेज थे जिनकी सख्या 2003-04 में बढ़कर 1265 हो गई। डिग्रीस्तर पर संस्थाओं की सख्या 1947 में 38 थी जो वर्तमान समय में बढ़कर 1265 हो गई। आजकल 185 संस्थाएं इंजीनियरिंग तथा टैक्नोलॉजी में पोस्ट ग्रेजुएट शिक्षा प्रदान कर रही है। 1034 संस्थाएँ MCA डिग्री तथा 958 संस्थाएँ देश में MBA की शिक्षा प्रदान कर रही है।

 शिक्षा के विकास में समस्याएं

(1) असन्तु‌लित विकास :- प्लिक स्कूल इंग्लिश माध्यम में उच्च स्टैंडर्ड की शिक्षा प्रदान कर रहे है परन्तु सरकार द्वारा चलाए अथवा सरकारी सहायता वाले स्कून निम्न स्टैंडर्ड की शिक्षा प्रदान कर रहे हैं।

(2) साधनों का व्यर्थ प्रयोग :- भारत में हमारी शिक्षा प्रणाली में स्कूल छोड़ने की दबहुत ऊँची है। इस कारण, वित्तीय तथा मानवीय साधनों हुत व्यर्थ होते हैं।

(3) दोषपूर्ण परीक्षा प्रणाली :- हमारी शिक्षा प्रणाली परीक्षाओं पर आधारित है। इसमें पूर्णतयः परिवर्तन करने कीवश्यकता है।

(4) मंगी शिक्षा प्रणाली :- उच्च शिक्षा, कुछ अवस्थाओं में बेमेल बन चुकी है। यह दिन-प्रतिदिन महंगी होती जा रही है। यह साधारण व्यक्ति की पहुंच से बाहर हो रही है।

(5) कोषों की कमी :- बहुत सी शिक्षा संस्थाओं के पास कोषों की कमी है। कुछ स्कूल तथा कॉलेज अपने कर्मचारियों को वेतन भी नहीं दे पा रहे है।

(6) भारतीय भाषाओं की अवहेलना :- पढ़ाई का माध्यम अभी भी अंग्रेजी है। ह‌मारे ग्रामीण विद्यार्थी इस माध्यम को समझने के योग्य नहीं। भारतीय भाषाएं अभी भी कुछ विषयों में अल्पविकसित है।

 शिक्षा को प्रोत्साहन देने के लिए सरकार के प्रयत्न

भारत सरकार ने प्रारम्भिक शिक्षा को प्रोत्साहित करने के लिए योजना काल में निम्न प्रयत्न किए है-

(1) प्राथमिक शिक्षा : -

(i) 1987-88 में स्कूलों के आधारभूत ढांचे को सुधारने के लिए ब्लैक बोर्ड कार्यक्रम तथा अतिरिक्त अध्यापकों की नियुक्ति

(ii) 1995 में प्राथमिक शिक्षा को पौष्टिकता का समर्थन प्रदान करने के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम

(iii) बच्चों के लिए न्यूनतम सीखने का स्तर जिसमे भाषाओं, गणित तथा पर्यावरण अध्ययन की योग्यता का विकास शामिल किया गया

(iv) गैर-औपचारिक शिक्षा

(v) 1989 में स्त्रियों को अधिकार दिलाने के लिए महिला समाख्यता कार्यक्रम आरंभ किया गया

(2) व्यावसायिक शिक्षा :- इसे भारत सरकार द्वारा विशेष महत्व प्राप्त हुआ है। 1986 में +2 स्तर पर शिक्षा नीति लागू की गई। 1990 में व्यावसायिक शिक्षा के लिए संयुक्त काउंसिल को स्थापित किया गया ताकि राष्ट्रीय स्तर पर नीति निर्माण तथा एकीकरण किया जा सके

(3) नए संस्थान खोलना :- 1989 में राष्ट्रीय ओपन स्कूल स्थापित किया गया ताकि उनको शिक्षा प्रदान की जाए जो नियमित रूप से स्कूल में उपस्थित नहीं हो सकते। इसी तरह 450 स्थानो पर नवोदय विद्यालय खोले गए ताकि ग्रामीण क्षेत्र के बु‌द्धिमान तथा तेज बुद्धि वाले बच्चों को नए ढंग की शिक्षा प्रदान की जा सके। 874 केन्द्रीय विद्यालय देश के विभिन्न भागों में खोले गए ताकि प्रतिरक्षा से सम्बन्धित कर्मचारियों के बच्चों को शिक्षा प्रदान की जाए NCERT को 1981 में स्थापित किया गया। यह भारत सरकार के मानवीय संसाधन विकास मन्त्रालय के लिए शिक्षण सलाहकार के रूप में कार्य करता है तथा स्कूल शिक्षा सम्बन्धी नीतियो तथा कार्यक्रमों को लागू करता है।

(4) उच्च शिक्षा :- कॉलेज शिक्षा के लिए यूनिवर्सिटी ग्रान्ट कमीशन (UGC) की स्थापना 1956 में की गई। 1985 में IGNOU की स्थापना की गई।

(5) अनुसन्धान :- देश में शोध कार्यों को प्रोत्साहित करने के लिए विभिन्न शोध केन्द्र खोले गए है। विभिन्न शोध केन्द्र, सामाजिक विज्ञानों के विज्ञानों के विकास के लिए भी खोले गए है। यद्यपि भौतिक विज्ञानों में शोध कार्य यूनिवर्सिटियों में किया जाता है।

(6) शिक्षा पर व्यय :- सन् 1952 से 2002 की अवधि के दौरान शिक्षा व्यय में 7.92 से 13.17% की वृद्धि हुई। सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के प्रतिशत के रूप में इसमें 0.64 से 4.02% तक की वृद्धि हुई।

भारत में शिक्षा क्षेत्र का विकास

क्र.स.

मदे

1950-51

2002-03

1

प्राथमिक स्कूलों की संख्या

2.10 लाख

6.5 लाख

2

मिडल स्कूलों की संख्या

0.14 लाख

2.4 लाख

3

सैकेण्डरी स्कूलों की संख्या

7.4 हजार

1.16 लाख

4

कॉलेजों की संख्या

578

12 हजार (1500 लड़कियों के लिए कॉलेज)

5

यूनीवर्सिटियों की संख्या

27

300

6

भर्ती

 

 

 

(i) प्राथमिक स्कूल

43%

95%

 

(ii) उच्च प्राथमिक स्कूल

13%

61%

 

(iii) सैकेण्डरी स्कूल

0.33%

28%

7

साक्षरता अनुपात

18.33%

65.38%

 

(i) पुरुष

27%

76%

 

(ⅱ) स्त्री

8.9%

54%

 

(iii) ग्रामीण

12.1%

59.4%

 

(iv) शहरी

18.3%

80.3%

 स्वास्थ्य

स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात योजनाओं के दौरान स्वास्थ्य सेवाओं में काफी सुधार हुआ है। 1950-51 से चिकित्सा सुविधाओं में कई गुना विकास हुआ है। निम्नलिखित तथ्य इसकी वृद्धि की ओर संकेत करते हैं -

(1) अस्पतालों और डिस्पेन्सरियों की संख्या में वृद्धि :- सन् 1951 से 2004 के दौरान अस्पतालों और डिस्पैन्सरियों की संख्या 4 गुना (313%) की वृद्धि हुई। अस्पतालों में बिस्तरों की सख्या 9 गुना बढ़ी।

(2) मेडिकल शिक्षा का विकास :- मेडिकल कॉलेजों की संख्या 1951 में 28 से बढ़कर 2004 में 200 में हो गई। अब 1000 व्यक्तियों के लिए 6 डॉक्टर है जबकि 1951 में केवल 2 डॉक्टर थे।

(3) अनुसन्धान :- भारत सरकार द्वारा 4 अनुसन्धान केन्द्र स्थापित किए गए है। ये निम्नलिखित है- अखिल भारतीय मैडीकल साईस की संस्था, केन्द्रीय आयुर्वेदिक शोध काऊंसिल, केन्द्रीय यूनानी शोध काऊंसिल, केन्द्रीय होमियोपैथिक शोध काउंसिल ।

 समस्याएँ

स्वास्थ्य क्षेत्र में निम्न समस्याएँ देखी गई है

(1) मैडीकल सुवि‌धाओ का असमान वितरण :- ग्रामीण तथा शहरी क्षेत्र में स्वास्थ्य संस्थाओं का असमान वितरण है। ग्रामीण जनता को लम्बी दूरी तय करके उचित चिकित्सा सुविधाएँ प्राप्त करनी पड़ती है।

(2) आधारभूत ढाँचे तथा प्रशिक्षित व्यक्तियों में असंगतता :- भारत में अस्पतालो तथा डिस्पैन्सरियों का विशाल जाल फैला हुआ है। इनमें प्रशिक्षित तथा कुशल स्टाफ की कमी है।

(3) उचित सम्बोधन प्रणाली की कमी :- सम्बोधन प्रणाली का अर्थ है कि कठिन बीमारी वाले मरीजो के लिए केन्द्रीय सेवा स्वास्थ्य केन्द्रों को सम्बोधित करना। भारत में सम्बोधन प्रणाली उचित नहीं है। गम्भीर मरीज विशेषज्ञों को सम्बोधित नहीं किया जाता।

(4) निम्न सफाई की दशाएँ :- घटिया सफाई साफ पीने के पानी की कमी तथा दूषित वातावरण लोगों के स्वास्थ्य के लिए उत्तरदायी है।

 स्वास्थ्य सेवाओं को प्रोत्साहित करने के सरकार के प्रयत्न

भारत सरकार ने योजनाओं के दौरान स्वास्थ्य सेवाओं में वृद्धि करने के लिए अनेक कार्यक्रम आरम्भ किए हैं। उनमें से कुछ निम्नलिखित है -

(1) राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2002 :- स्वास्थ्य विभाग ने राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति (NHP 2002) तैयार की है। इस नीति का उद्देश्य आम जनता के अच्छे स्वास्थ्य का एक स्वीकृत स्तर हासिल करना है। इसमें अगले दो दशको के लिए निम्न लक्ष्य निर्धारित किए गए है-

कार्यक्रम

वर्ष

(i) कालाजार का उन्मूलन

2010

(ii) लसीका फाइलेरिया का उन्मूलन

2015

(iii) एच आई वी. / एड्स की वृद्धि को शून्य स्तर पर लाना

2007

(iv) क्षय रोग, मलेरिया और अन्य रोग वाहकों एवं जलवाहित रोगों के कारण होने वाली मृत्यु दर में 50% कमी लाना

-

(v) अन्धेपन को कम करके 0.5% के स्तर तक लाना

2010

(vi) जनस्वास्थ्य सुविधाओं के उपयोग के 20% के मौजूदा स्तर को बढ़ा कर 75% तक लाना

2010

(2) स्वास्थ्य सेवाओं पर व्यय में वृद्धि :- भारत में विभिन्न योजनाओं के अन्तर्गत स्वास्थ्य सेवाओं पर किए जाने वाले व्यय में वृद्धि हुई है। पहली योजना में स्वास्थ्य सेवाओं पर कुल योजना व्यय का 5% भाग था जो छठी योजना में कम होकर 2% भाग रह गया। नौवीं योजना में इसमें वृद्धि की गई है परन्तु पहली से नौवीं योजना के दौरान स्वास्थ्य पर किए जाने वाले कुल व्यय में 65 से 20606 करोड़ की वृद्धि हुई।

(3) दसवीं पंचवर्षीय योजना में स्वास्थ्य सेवाएं (2002-07) :- दसवीं पंचवर्षीय योजना में स्वास्थ्य कार्यक्रम की ओर विशेष ध्यान दिया गया है। दसवी पंचवर्षीय योजना में स्वास्थ्य सुविधाओं से सम्बन्धित विशेषताएँ निम्नलिखित है-

(a) संख्यात्मक तथा गुणात्मक दृष्टि से कर्मचारियों की वृद्धि

(b) सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार

(c) रोगों को नियन्त्रित करने के प्रभावी कार्यक्रम

(d) विभिन्न संस्थाओं से सहयोग

(e) स्वास्थ्य विश्वविद्यालयों की स्थापना

(f) प्रदू‌षित पर्यावरण के कारण उचित स्वास्थ्य के उपायो की ओर ध्यान

(g) सार्वभौमिक स्वास्थ्य बीमा योजना का आरम्भ

भारत में स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार

 

1951

2004

अस्पताल और डिस्पैंसरी

9209

38031

सामुदायिक प्राथमिक तथा उप-स्वास्थ्य केन्द्र

725

1.63 लाख

डॉक्टर

61800

6.25 लाख

मेडिकल कॉलेज

28

200

नर्स

18054

8.36 लाख

डॉक्टर (प्रति 10000 जनसंख्या के पीछे)

1.7

6.2

अस्पतालों में बिस्तरों की संख्या

1.17

9.15


 कुपोषण

कुपोषण अर्थात् भोजन का अभाव होना या, भोजन में पौष्टिक तत्वों के कम मात्रा का होना है।

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