Class 12 Economics CM School of Excellence,Pre-Test Examination Answer Key (Session 2024-25)

Class 12 Economics CM School of Excellence,Pre-Test Examination Answer Key (Session 2024-25)

 Class 12 Economics CM School of Excellence,Pre-Test Examination Answer Key (Session 2024-25)

CM School of Excellence, Jharkhand

Class: XII Pre-Test Examination (Session 2024-25)

Subject: ECONOMICS [Subject Code – 303]

Full Marks: 70 Time: 3 Hours

सामान्य निर्देश

1. इस प्रश्न पत्र में दो खंड हैं

खंड - A व्यष्टि अर्थशास्त्र

खंड B भारतीय आर्थिक विकास

2. इस प्रश्न पत्र में 1 अंक के 20 बहुविकल्पीय प्रश्न हैं।

3. इस. प्रश्न पत्र में 3 अंकों के 4 लघु उत्तरीय प्रश्न हैं, जिनका उत्तर 60 से 80 शब्दों में देना है।

4. इस प्रश्न पत्र में 4 अंकों के 6 लघु उत्तरीय प्रश्न हैं, जिनका उत्तर 80 से 100 शब्दों में देना है।

5. इस प्रश्न पत्र में 6 अंकों के 4 दीर्घ उत्तरीय प्रश्न हैं, जिनका उत्तर 100 से 150 शब्दों में देना है।

6. यदि प्रश्नों के हिंदी अनुवाद में कोई विसंगति हो तो अंग्रेजी संस्करण मान्य होगा।

खंड - A : व्यष्टि अर्थशास्त्र

1. निम्नलिखित कथन को ध्यानपूर्वक पढ़ें

कथन 1: व्यष्टि अर्थशास्त्र में समग्र मांग से तात्पर्य एक लेखा वर्ष के दौरान अर्थव्यवस्था में वस्तुओं और सेवाओं पर अनियोजित व्यय से है।

कथन 2: समग्र मांग वक्र अर्थव्यवस्था में पूर्व-भुक्त मांग को दर्शाता है।

दिए गए कथनों के आलोक में निम्नलिखित में से सही विकल्प चुनें-

(A) कथन 1 सही है और कथन 2 गलत है।

(B) कथन 1 गलत है और कथन 2 सही है।

(C) दोनों कथन 1 और 2 सही हैं।

(D) दोनों कथन 1 और 2 गलत हैं।

व्याख्या - कथन 1: व्यष्टि अर्थशास्त्र में समग्र मांग से तात्पर्य एक लेखा वर्ष के दौरान अर्थव्यवस्था में वस्तुओं और सेवाओं पर अनियोजित व्यय से है।

गलत क्यों:

व्यष्टि अर्थशास्त्र: यह व्यक्तिगत इकाइयों (एक व्यक्ति, एक फर्म) के आर्थिक निर्णयों का अध्ययन करता है, जबकि समग्र मांग पूरे अर्थव्यवस्था के लिए एक अवधारणा है।

अनियोजित व्यय: समग्र मांग में नियोजित व्यय शामिल होता है, जिसमें उपभोग, निवेश, सरकारी व्यय और शुद्ध निर्यात जैसे विभिन्न घटक शामिल होते हैं।

कथन 2: समग्र मांग वक्र अर्थव्यवस्था में पूर्व-भुक्त मांग को दर्शाता है।

गलत क्यों:

समग्र मांग वक्र: यह कीमत स्तर और कुल मांग के बीच संबंध को दर्शाता है। यह वर्तमान और भविष्य की अपेक्षाओं पर आधारित होता है, न कि केवल पूर्व-भुक्त मांग पर।

पूर्व-भुक्त मांग: यह एक स्पष्ट आर्थिक अवधारणा नहीं है।

समग्र मांग क्या है?

किसी अर्थव्यवस्था में दिए गए कीमत स्तर पर सभी वस्तुओं और सेवाओं की कुल मांग को समग्र मांग कहते हैं। इसे निम्नलिखित समीकरण से दर्शाया जाता है:

AD = C + I + G + (X-M)

2. मान लीजिए कि एक दी गई अर्थव्यवस्था में:

S = - 400 + 0.2Y

I = Rs 200 Crore

जहाँ S = बचत प्रकटन, Y = राष्ट्रीय आय और I = निवेश व्यय है।

संतुलन स्तर की आय----------- करोड़ होगी।

(A) Rs 9,000

(B) Rs 10,000

(C) Rs 11,000

(D) Rs 12,000

व्याख्या - दिए गए समीकरण:

S = - 400 + 0.2Y (बचत फलन)

I = 200 करोड़ (निवेश)

संतुलन स्तर की आय: वह आय स्तर होता है जहां कुल बचत (S) कुल निवेश (I) के बराबर होती है।

समीकरण को हल करना:

संतुलन पर, S = I

इसलिए, -400 + 0.2Y = 200

0.2Y = 200 + 400

0.2Y = 600

Y = 600 / 0.2

Y = 3000

अतः, संतुलन स्तर की आय 3000 करोड़ है।

3. 'धन एक संपत्ति है जिसे भविष्य में उपयोग के लिए संग्रहीत किया जा सकता है'। दिए गए कथन के संदर्भ में, धन के कार्य की पहचान करें। (सही विकल्प चुनें)

(A) मूल्य की माप

(B) स्थगित भुगतान का मानक

(C) मूल्य का भंडार

(D) विनिमय का माध्यम

व्याख्या - कथन: "धन एक संपत्ति है जिसे भविष्य में उपयोग के लिए संग्रहीत किया जा सकता है" यह स्पष्ट रूप से धन के मूल्य भंडारण के कार्य को दर्शाता है।

मूल्य भंडार: इसका अर्थ है कि धन को भविष्य में उपयोग के लिए संचित किया जा सकता है। यह एक मूल्यवान वस्तु है जिसे समय के साथ रखा जा सकता है और बाद में इसका उपयोग किया जा सकता है।

4. अंतर्राष्ट्रीय बाजार में भारतीय मुद्रा (रु) के मूल्यहास को ध्यान में रखते हुए, भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने खुले बाजार में भारतीय मुद्रा (रु) खरीदने का निर्णय लिया है। यह --------- विनिमय दर प्रणाली का प्रतिनिधित्व करता है। [सही विकल्प भरें]

(A) स्थिर

(B) लचीला

(C) प्रबंधित परिवर्ती

(D) हेरफेर किया हुआ

व्याख्या- जब भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) खुले बाजार में भारतीय रुपये को खरीदता है, तो वह मुद्रा की मांग बढ़ा रहा है। मांग बढ़ने से रुपये का मूल्य बढ़ता है। यह कदम मुद्रा के मूल्य में गिरावट को रोकने या धीमा करने का प्रयास है।

प्रबंधित परिवर्ती विनिमय दर प्रणाली: इस प्रणाली में सरकार या केंद्रीय बैंक विदेशी मुद्रा बाजार में हस्तक्षेप करके मुद्रा के मूल्य को प्रभावित करते हैं। RBI द्वारा रुपये की खरीद एक ऐसा ही हस्तक्षेप है। इसका मतलब है कि RBI मुद्रा के मूल्य को पूरी तरह से बाजार के हवाले नहीं छोड़ना चाहता है, बल्कि इसे कुछ हद तक नियंत्रित करना चाहता है।

5. ग्राफिक रूप से, समग्र मांग प्रकटन को ---------- और --------- प्रकटन को लंबवत जोड़कर प्राप्त किया जा सकता है।

(A) खपत, बचत

(B) खपत, निवेश

(C) निवेश, बचत

(D) समग्र आपूर्ति, खपत

व्याख्या- समग्र मांग (Aggregate Demand) किसी अर्थव्यवस्था में किसी दिए गए कीमत स्तर पर सभी वस्तुओं और सेवाओं की कुल मांग होती है। यह चार प्रमुख घटकों से मिलकर बनती है:

खपत (Consumption): उपभोक्ताओं द्वारा वस्तुओं और सेवाओं की खरीद।

निवेश (Investment): व्यवसायों द्वारा पूंजीगत सामानों की खरीद।

सरकारी व्यय (Government Spending): सरकार द्वारा वस्तुओं और सेवाओं की खरीद।

शुद्ध निर्यात (Net Exports): देश द्वारा निर्यात किए गए सामानों का मूल्य और आयात किए गए सामानों के मूल्य के बीच का अंतर।

ग्राफिक रूप से:

समग्र मांग वक्र की गणना करते समय, हम आमतौर पर खपत और निवेश को प्रमुख घटकों के रूप में लेते हैं।

खपत को क्षैतिज अक्ष पर और निवेश को ऊर्ध्वाधर अक्ष पर दर्शाकर, हम एक ग्राफ बना सकते हैं।

इन दोनों को जोड़कर हमें समग्र मांग का एक बिंदु प्राप्त होता है।

विभिन्न कीमत स्तरों पर खपत और निवेश के विभिन्न संयोजनों को लेकर हम समग्र मांग वक्र बना सकते हैं।

6. उन सही कारणों की पहचान करें जो किसी अर्थव्यवस्था में विदेशी मुद्रा की मांग को प्रभावित कर सकते हैं।

[I] दृश्यमान वस्तुओं का आयात

[II] अदृश्य वस्तुओं का निर्यात

[III] विदेशों में काम करने वाले निवासियों द्वारा प्रेषण

[IV] विदेशों में संपत्ति की खरीद

विकल्पः

(A) [I] and [II]

(B) [II] and [III]

(C) [III] and [IV]

(D) [1] and [IV]

व्याख्या- विदेशी मुद्रा की मांग को प्रभावित करने वाले सही कारण:

[I] दृश्यमान वस्तुओं का आयात: जब कोई देश विदेश से सामान खरीदता है, तो उसे भुगतान विदेशी मुद्रा में करना होता है। इसलिए, आयात बढ़ने से विदेशी मुद्रा की मांग बढ़ जाती है।

[IV] विदेशों में संपत्ति की खरीद: जब कोई व्यक्ति या कंपनी विदेश में संपत्ति खरीदती है, तो उन्हें भुगतान विदेशी मुद्रा में करना होता है। यह भी विदेशी मुद्रा की मांग को बढ़ाता है।

7. यदि किसी अर्थव्यवस्था में निवेश गुणक का मान 4 है और स्वतः खपत रु 30 करोड़ है, तो संबंधित खपत प्रकटन होगा:

(A) C = 30+0.75 Y

(B) C = (-30)+0.25 Y

(C) C = 30-0.75 Y

(D) C = 30-0.25 Y

व्याख्या- निवेश गुणक = 1 / (1 - MPC)

जहाँ, MPC = सीमांत उपभोग प्रवृत्ति (Marginal Propensity to Consume)

हल: निवेश गुणक दिया गया है: 4

इसलिए, 4 = 1 / (1 - MPC)

MPC का मान ज्ञात करना:

1 - MPC = 1/4

MPC = 1 - 1/4 = 3/4 = 0.75

खपत प्रकटन का सामान्य रूप:

C = a + bY

जहाँ,

C = खपत

a = स्वतः खपत

b = MPC

Y = आय

दिए गए मानों को रखने पर:

C = 30 + 0.75Y

8. तालिका पूरी करेंः यदि अर्थव्यवस्था में प्रारंभिक जमा रु 4000 करोड़ है।

LRR/एलआरआर

Credit creation/ऋण सृजन

5%

(i)

8%

(ii)

विकल्प

(A) (i) 50,000 (ii) 80,000

(B) (i) 40,000 (ii) 20,000

(C) (i) 80,000 (ii) 50,000

(D) (i) 20,000 (ii) 40,000

व्याख्या- सूत्र: ऋण गुणक = 1 / LRR

कुल ऋण सृजन = प्रारंभिक जमा x ऋण गुणक

हल:

LRR

ऋण गुणक (1/LRR)

कुल ऋण सृजन (4000 x ऋण गुणक)

5% (0.05)

20

4000 x 20 = 80,000 करोड़

8% (0.08)

12.5

4000 x 12.5 = 50,000 करोड़

9. भारतीय अर्थव्यवस्था में, -----भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा जारी किए जाते हैं और वैध मुद्रा के रूप में कार्य करते हैं।

(i) सभी मूल्यवर्ग के सिक्के

(ii) एक रुपये के नोट को छोड़कर विभिन्न मूल्यवर्ग के मुद्रा नोट

(iii) मांग जमा

(A) only (i)

(B) only (ii)

(C) only (iii)

(D) (i) & (ii)

व्याख्या-

(i) सभी मूल्यवर्ग के सिक्के: भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) विभिन्न मूल्यवर्ग के सिक्के जारी करता है, जैसे 1 रुपये, 2 रुपये, 5 रुपये, 10 रुपये आदि। ये सिक्के भारत में वैध मुद्रा के रूप में स्वीकार किए जाते हैं।

(ii) एक रुपये के नोट को छोड़कर विभिन्न मूल्यवर्ग के मुद्रा नोट: आरबीआई 2 रुपये, 5 रुपये, 10 रुपये, 20 रुपये, 50 रुपये, 100 रुपये, 200 रुपये, 500 रुपये और 2000 रुपये के नोट जारी करता है। एक रुपये का नोट भारत सरकार द्वारा जारी किया जाता है। हालांकि, ये सभी नोट भारत में वैध मुद्रा के रूप में स्वीकार किए जाते हैं।

(iii) मांग जमा: मांग जमा बैंक खातों में जमा धनराशि है। ये वैध मुद्रा नहीं हैं, बल्कि मुद्रा के एक रूप हैं जिनका उपयोग भुगतान के लिए किया जा सकता है।

10. निम्नलिखित कथनों को ध्यानपूर्वक पढ़ें।

कथन 1: दृश्यमान और अदृश्य वस्तुओं दोनों के संतुलन को संदर्भित करता है।

कथन 2: एक सॉफ्टवेयर विशेषज्ञ की सेवाएं एक अदृश्य वस्तु हैं।

दिए गए कथनों के आलोक में, निम्नलिखित में से सही विकल्प चुनेंः

(A) कथन 1 सही है और कथन 2 गलत है।

(B) कथन 1 गलत है और कथन 2 सही है।

(C) दोनों कथन 1 और 2 सही हैं।

(D) दोनों कथन 1 और 2 गलत हैं।

व्याख्या-

कथन 1: यह कथन पूरी तरह से सही है। जब हम "संतुलन" की बात करते हैं, तो हम आमतौर पर किसी चीज़ के दो या अधिक हिस्सों के बीच समानता या संतुलन की बात करते हैं। अर्थशास्त्र में, "संतुलन" का उपयोग अक्सर विभिन्न प्रकार के आर्थिक चरों के बीच संतुलन का वर्णन करने के लिए किया जाता है, जैसे कि पूर्ति और मांग, निर्यात और आयात, या दृश्यमान और अदृश्य वस्तुओं का व्यापार।

कथन 2: यह भी सही है। एक सॉफ्टवेयर विशेषज्ञ की सेवाएं एक अदृश्य वस्तु का एक उदाहरण है। अदृश्य वस्तुएं वे होती हैं जिन्हें आप छू नहीं सकते हैं या देख नहीं सकते हैं, लेकिन वे मूल्यवान होती हैं और उनका व्यापार किया जा सकता है। सेवाएं, बौद्धिक संपदा, और डिजिटल उत्पाद सभी अदृश्य वस्तुओं के उदाहरण हैं।

11. दिए गए डेटा के आधार पर, NDPFC (घरेलू आय) का मान अनुमानित करें।

मदें

राशि (करोड़ रुपये में)

घरेलू उपभोग व्यय

600

सकल स्थिर पूंजी निर्माण

200

स्टॉक में परिवर्तन

40

सरकारी अंतिम उपभोग व्यय

200

शुद्ध निर्यात

-40

शुद्ध अप्रत्यक्ष कर

120

विदेश से प्राप्त शुद्ध कारक आय

20

स्थिर पूंजी की खपत

40

उत्तर- NDPFC (घरेलू आय) का अर्थ है किसी अर्थव्यवस्था के भीतर एक वर्ष में उत्पादित सभी अंतिम वस्तुओं और सेवाओं का मूल्य, जिसमें मूल्यह्रास को घटा दिया गया हो।

NDPFC की गणना करने का सूत्र:

NDPFC = GDPmp - मूल्यह्रास - अप्रत्यक्ष कर + सब्सिडी

दिए गए डेटा के आधार पर:

GDPmp (बाजार मूल्य पर सकल घरेलू उत्पाद) की गणना:

GDPmp = घरेलू उपभोग व्यय + सकल स्थिर पूंजी निर्माण + स्टॉक में परिवर्तन + सरकारी अंतिम उपभोग व्यय + शुद्ध निर्यात

GDPmp = 600 + 200 + 40 + 200 + (-40)

GDPmp = 1000 करोड़ रुपये

NDPFC की गणना:

NDPFC = GDPmp - मूल्यह्रास - अप्रत्यक्ष कर + सब्सिडी

NDPFC = 1000 - 40 - 120 + 0 (सब्सिडी का मान दिया नहीं गया है, इसलिए इसे शून्य मान लेते हैं)

NDPFC = 840 करोड़ रुपये

अतः, दिए गए डेटा के आधार पर NDPFC (घरेलू आय) का मान 840 करोड़ रुपये है।

12. भुगतान संतुलन के चालू खाते के घटकों का वर्णन करें।

उत्तर - चालू खाता वह खाता है जिसमें वस्तुओं और सेवाओं के आयात और निर्यात एवं एक पक्षीय अतरणों का हिसाब-किताब रखा जाता है।

चालू खाते के मुख्य घटक हैं:

1. वस्तुओं का व्यापार (दृश्यमान संतुलन)

2. सेवाओं में व्यापार (अदृश्य संतुलन), जैसे बीमा और सेवाएँ

3. प्राथमिक आय खाता - इसमें शामिल हैं - कर्मचारियों का मुआवजा, परिसंपत्तियों से निवेश आय, लाभ और लाभांश।

4. द्वितीयक आय खाता - आर्थिक मूल्य के समकक्ष मदों के बिना धन का लेनदेन, उदाहरण के लिए, विदेशी श्रमिकों से प्राप्त धन, यूरोपीय संघ, संयुक्त राष्ट्र और अंतर्राष्ट्रीय सहायता के लिए स्थानान्तरण।

अथवा

कर नीति का उपयोग अर्थव्यवस्था में आय असमानता को कम करने के लिए कैसे किया जा सकता है?

उत्तर - कर नीति एक शक्तिशाली उपकरण है जिसका उपयोग आय असमानता को कम करने और अधिक समतापूर्ण समाज बनाने में किया जा सकता है। यह विभिन्न तरीकों से किया जा सकता है:

1. प्रगतिशील कर प्रणाली:

उच्च आय वर्ग पर उच्च कर दर: उच्च आय वाले व्यक्तियों पर अधिक कर लगाकर सरकार आय के अंतर को कम कर सकती है।

अधिक आय वाले लोगों पर अतिरिक्त कर: सरकार अतिरिक्त कर लगाकर अत्यधिक धन वाले लोगों पर बोझ बढ़ा सकती है।

2. न्यूनतम वैकल्पिक कर (MAT):

कंपनियों पर न्यूनतम कर: कंपनियां जो कर से बचने के लिए विभिन्न तरीकों का उपयोग करती हैं, उन पर न्यूनतम कर लगाकर सरकार राजस्व बढ़ा सकती है और आय असमानता को कम कर सकती है।

3. संपत्ति कर:

अचल संपत्ति और अन्य संपत्तियों पर कर: संपत्ति पर कर लगाकर सरकार अमीरों से अधिक राजस्व एकत्र कर सकती है और आय असमानता को कम कर सकती है।

4. उपहार कर और विरासत कर:

उपहार और विरासत पर कर: इन करों के माध्यम से सरकार अत्यधिक धन के संचय को रोक सकती है और पीढ़ी दर पीढ़ी संपत्ति के हस्तांतरण को सीमित कर सकती है।

5. कर छूट और रियायतें:

निम्न आय वर्ग को कर छूट: सरकार निम्न आय वर्ग के लोगों को कर छूट देकर उनकी आय बढ़ा सकती है और आय असमानता को कम कर सकती है।

सामाजिक कल्याण पर खर्च: करों से प्राप्त राजस्व का उपयोग शिक्षा, स्वास्थ्य और अन्य सामाजिक कल्याण कार्यक्रमों पर किया जा सकता है, जिससे सभी के लिए समान अवसर उपलब्ध हो सकते हैं।

6. कर प्रशासन में सुधार:

कर चोरी रोकना: कर चोरी को रोककर सरकार अधिक राजस्व एकत्र कर सकती है और आय असमानता को कम कर सकती है।

कर प्रणाली को सरल बनाना: कर प्रणाली को सरल बनाकर करदाताओं के लिए अनुपालन करना आसान बनाया जा सकता है और कर चोरी को कम किया जा सकता है।

7. कर प्रणाली का नियमित मूल्यांकन:

समय-समय पर समीक्षा: सरकार को समय-समय पर कर प्रणाली की समीक्षा करनी चाहिए और इसे बदलती आर्थिक परिस्थितियों के अनुरूप बनाना चाहिए

13. यदि खपत प्रकटन C = 150+ 0.8y है और अर्थव्यवस्था में निवेश स्तर रु 700 करोड़ है, तो संतुलन आय स्तर की गणना करें।

उत्तर - दिया गया है:

खपत फलन (Consumption Function), C = 150 + 0.8Y

निवेश (Investment), I = 700 करोड़

संतुलन आय स्तर (Equilibrium Level of Income) ज्ञात करने के लिए:

संतुलन आय स्तर वह स्तर होता है जहां कुल मांग (Aggregate Demand) कुल उत्पादन (Aggregate Supply) के बराबर होती है। एक बंद अर्थव्यवस्था में, कुल मांग (AD) खपत (C) और निवेश (I) के योग के बराबर होती है।

यानी, AD = C + I

संतुलन पर, AD = Y (कुल उत्पादन)

इसलिए, Y = C + I

अब, C का मान खपत फलन से रखने पर:

Y = 150 + 0.8Y + 700

Y - 0.8Y = 150 + 700

0.2Y = 850

Y = 850 / 0.2

Y = 4250 करोड़

अतः, संतुलन आय स्तर 4250 करोड़ रुपये है।

14. सांविधिक तरलता अनुपात और खुला बाजार परिचालन एक देश के केंद्रीय बैंक द्वारा उसके ऋण को नियंत्रित करने के लिए उपयोग किए जाने वाले महत्वपूर्ण ऋण नियंत्रण उपाय हैं। समझाइए।

उत्तर - एक देश का केंद्रीय बैंक मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने और आर्थिक स्थिरता बनाए रखने के लिए कई उपकरणों का उपयोग करता है। इनमें से दो सबसे महत्वपूर्ण उपकरण हैं - सांविधिक तरलता अनुपात (SLR) और खुला बाजार परिचालन (OMO)।

सांविधिक तरलता अनुपात (SLR)

SLR वह अनुपात है जो बैंकों को अपनी कुल जमा राशि का एक निश्चित हिस्सा नकदी, सोना या सरकार द्वारा समर्थित प्रतिभूतियों के रूप में रखने के लिए बाध्य करता है। यह एक प्रकार का सुरक्षा जाल है जो बैंकिंग प्रणाली को संकट के समय स्थिर रखने में मदद करता है।

ऋण नियंत्रण में भूमिका: जब केंद्रीय बैंक SLR बढ़ाता है, तो बैंकों के पास उधार देने के लिए कम धन होता है, जिससे ब्याज दरें बढ़ जाती हैं। इससे लोग कम उधार लेते हैं और खर्च कम करते हैं, जिससे मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने में मदद मिलती है। इसके विपरीत, जब SLR कम किया जाता है, तो बैंकों के पास उधार देने के लिए अधिक धन होता है, जिससे ब्याज दरें कम होती हैं और आर्थिक गतिविधियां बढ़ती हैं।

खुला बाजार परिचालन

खुला बाजार परिचालन में केंद्रीय बैंक सरकार के प्रतिभूतियों को खरीदता या बेचता है।

ऋण नियंत्रण में भूमिका:

प्रतिभूतियाँ खरीदना: जब केंद्रीय बैंक सरकार की प्रतिभूतियाँ खरीदता है, तो बैंकों के पास अधिक धन होता है, जिससे ब्याज दरें कम होती हैं और अर्थव्यवस्था में अधिक धन प्रवाहित होता है।

प्रतिभूतियाँ बेचना: जब केंद्रीय बैंक सरकार की प्रतिभूतियाँ बेचता है, तो बैंकों के पास कम धन होता है, जिससे ब्याज दरें बढ़ जाती हैं और अर्थव्यवस्था में कम धन प्रवाहित होता है।

दोनों उपकरणों के बीच संबंध

SLR और OMO दोनों ही एक दूसरे के पूरक हैं। SLR बैंकों के व्यवहार पर एक स्थायी प्रभाव डालता है, जबकि OMO का उपयोग अधिक लचीले तरीके से किया जा सकता है। केंद्रीय बैंक इन दोनों उपकरणों का उपयोग करके मुद्रा आपूर्ति को नियंत्रित करता है और अर्थव्यवस्था को स्थिर रखता है।

अथवा

अर्थव्यवस्था अतिरिक्त मांग की समस्या का सामना करती है, इसके कई कारण हो सकते हैं। ऐसे चार कारणों का उल्लेख कीजिए।

उत्तर - अतिरिक्त मांग से तात्पर्य उस स्थिति से है जब कुल मांग (AD) अर्थव्यवस्था में उत्पादन के पूर्ण रोजगार स्तर के अनुरूप कुल आपूर्ति (AS) से अधिक होती है। यह पूर्ण रोजगार उत्पादन के मूल्य पर प्रत्याशित व्यय की अधिकता है।

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1. उपभोग की प्रवृत्ति में वृद्धि: उपभोग की प्रवृत्ति में वृद्धि या बचत की प्रवृत्ति में गिरावट के कारण उपभोग व्यय में वृद्धि के कारण अतिरिक्त मांग उत्पन्न हो सकती है।

2. करों में कमी: यह करों में कमी के कारण प्रयोज्य आय और उपभोग मांग में वृद्धि के कारण भी हो सकता है।

3. सरकारी व्यय में वृद्धि: सार्वजनिक व्यय में वृद्धि के कारण वस्तुओं और सेवाओं की सरकारी मांग में वृद्धि से भी अतिरिक्त मांग उत्पन्न होगी।

4. निवेश में वृद्धि: अतिरिक्त मांग तब भी उत्पन्न हो सकती है जब ब्याज दर में कमी या अपेक्षित रिटर्न में वृद्धि के कारण निवेश में वृद्धि हो।

5. आयात में गिरावट: घरेलू कीमतों की तुलना में अंतर्राष्ट्रीय कीमतें अधिक होने के कारण आयात में कमी से भी मांग में अधिकता हो सकती है।

6. निर्यात में वृद्धि: अत्यधिक मांग तब भी उत्पन्न हो सकती है जब घरेलू वस्तुओं की तुलनात्मक रूप से कम कीमतों के कारण या घरेलू मुद्रा की विनिमय दर में कमी के कारण निर्यात की मांग बढ़ जाती है।

7. घाटे का वित्तपोषण: घाटे के वित्तपोषण के कारण मुद्रा आपूर्ति में वृद्धि के कारण अतिरिक्त मांग उत्पन्न हो सकती है।

15. दी गई खपत वक्र के आधार पर, उससे बचत वक्र प्राप्त करने के लिए उठाए जाने वाले चरणों का वर्णन करें। आरेख का उपयोग करें।

उत्तर - खपत वक्र (Consumption Curve) और बचत वक्र (Saving Curve) एक दूसरे के पूरक होते हैं। खपत वक्र यह दर्शाता है कि विभिन्न आय स्तरों पर उपभोक्ता कितना खर्च करते हैं, जबकि बचत वक्र यह दर्शाता है कि विभिन्न आय स्तरों पर उपभोक्ता कितनी बचत करते हैं।

उपभोग वक्र की व्युत्पत्ति के लिए उठाए गए कदम हैं:

(i) आय के शून्य स्तर पर, बचत O\overline{S} है जो Y = 0 पर स्वायत्त उपभोग की मात्रा है। तो, - O\overline{C} । इसलिए, उपभोग बिंदु \overline{C} से शुरू होगा । (

ii) हम मूल बिंदु से गुजरने वाली 45° की रेखा खींचते हैं जो दर्शाती है कि C = Y। यह आय रेखा है।

(iii) अब, हम बिंदु E से एक ऊर्ध्वाधर रेखा खींचते हैं, जहां बचत शून्य है। बचत के शून्य स्तर पर, C = Y। तो, B लाभ- सम बिंदु है।

(iv) उपभोग वक्र C और B से मिलकर और इसे आगे बढ़ाते हुए व्युत्पन्न होता है।

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16. सरकारी बजट के निम्नलिखित उद्देश्यों को समझाइएः

(A) संसाधनों का आवंटन

(B) आय असमानताओं को कम करना

उत्तर - सरकारी बजट एक वित्तीय दस्तावेज होता है जो एक निश्चित अवधि (आमतौर पर एक वर्ष) के लिए सरकार के अनुमानित राजस्व और व्यय को दर्शाता है। यह सरकार के लिए एक रोडमैप की तरह होता है जो यह बताता है कि वह आने वाले समय में धन कहाँ से प्राप्त करेगी और उसे किस पर खर्च करेगी। सरकारी बजट के दो प्रमुख उद्देश्यों को यहां विस्तार से समझाया गया है:

(A) संसाधनों का आवंटन:

सरकारी बजट का सबसे महत्वपूर्ण कार्य यह है कि यह सीमित संसाधनों को विभिन्न क्षेत्रों में आवंटित करने का एक तंत्र प्रदान करता है। सरकार को यह निर्णय लेना होता है कि वह स्वास्थ्य, शिक्षा, रक्षा, बुनियादी ढांचे, कृषि आदि जैसे विभिन्न क्षेत्रों में कितना धन खर्च करेगी।

संसाधनों के आवंटन का महत्व:

1. विकास प्राथमिकताएं: बजट के माध्यम से सरकार अपनी विकास प्राथमिकताओं को स्पष्ट करती है। उदाहरण के लिए, यदि सरकार शिक्षा पर अधिक ध्यान देना चाहती है, तो वह शिक्षा के लिए अधिक धन आवंटित करेगी।

2. सामाजिक कल्याण: बजट के माध्यम से सरकार गरीबों, वंचितों और कमजोर वर्गों के लिए कल्याणकारी कार्यक्रमों के लिए धन आवंटित करती है।

3. आर्थिक स्थिरता: बजट के माध्यम से सरकार मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने, आर्थिक वृद्धि को बढ़ावा देने और व्यापार घाटे को कम करने के लिए उपाय करती है।

4. क्षेत्रीय असंतुलन: बजट के माध्यम से सरकार विभिन्न क्षेत्रों के विकास में असंतुलन को कम करने का प्रयास करती है।

(B) आय असमानताओं को कम करना:

सरकारी बजट का एक अन्य महत्वपूर्ण उद्देश्य आय असमानताओं को कम करना है। सरकार विभिन्न करों और शुल्कों के माध्यम से धन एकत्र करती है और इस धन का उपयोग गरीबों और वंचितों के कल्याण के लिए करती है।

आय असमानताओं को कम करने के तरीके:

1. प्रगतिशील कर प्रणाली: सरकार उच्च आय वाले लोगों पर अधिक कर लगाकर और निम्न आय वाले लोगों पर कम कर लगाकर आय असमानताओं को कम कर सकती है।

2. कल्याणकारी कार्यक्रम: सरकार गरीबों को नकद हस्तांतरण, सब्सिडी और अन्य कल्याणकारी कार्यक्रमों के माध्यम से सहायता प्रदान करती है।

3. रोजगार सृजन: सरकार रोजगार सृजन के लिए विभिन्न योजनाएं चलाकर लोगों की आय बढ़ाने का प्रयास करती है।

4. शिक्षा और स्वास्थ्य: सरकार सभी के लिए शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराकर लोगों की आय बढ़ाने और उनकी जीवन स्तर में सुधार करने का प्रयास करती है।

अथवा

तालिका और आरेख की सहायता से "खपत प्रकटन" को समझाइए।

उत्तर- लाॅडस जे.एम.केन्स ने अपनी पुस्तक 'The General Theory of Employment, Interst and Money' में उपभोग फलन (खपत प्रकटन ) का वर्णन किया है।

किसी भी समाज में उपभोग मुख्यता आपर निर्भर करता हैउपभोग तथा आय में संबंध को उपभोग फलन कहते हैं। अतः

                                                 C = f ( Y )

"आय के विभिन्न स्तरों पर उपभोग के विभिन्न मात्राओं को प्रकट करने वाली अनुसूची को उपभोग प्रवृत्ति कहा जाता है।"

अर्थव्यवस्था में जैसे-जैसे राष्ट्रीय आय के स्तर में बढ़ोत्तरी होती है, उपभोग भी बढ़ता है परंतु उपभोग में ृद्धि राष्ट्रीय आय की वृद्धि की तुलना में कम होती है।

आय(Y)करोड़ रु.

0

60

120

180

240

300

उपभोग (C)

20

70

120

170

220

270

तालिका से स्पष्ट होता है की आय के अनुपात में उपभोग में वृद्धि नहीं होती है।

Class 12 Economics CM School of Excellence,Pre-Test Examination Answer Key (Session 2024-25)

चित्र से स्पष्ट है की आय में वृद्धि की अपेक्षा उपभोग में वृद्धि कम होती है

                                            C1 C2 < Y1 Y2

17.

(a) उपयुक्त उदाहरणों के साथ, प्रत्यक्ष करों और अप्रत्यक्ष करों के बीच अंतर करें।

उत्तर- प्रत्यक्ष कर और अप्रत्यक्ष कर में मुख्य अंतर निम्नलिखित है -

1. अंतिम भा :- प्रत्यक्ष कर का अंतिम भाउसी व्यक्ति को उठाना पड़ता है जो सरकार के कर का भुगतान करता हैइसके विपरीत अप्रत्यक्ष कर जिसका सरकार को भुगतान एक व्यक्ति करता है किंतु अंतिम भाकिसी अन्य व्यक्ति को उठाना पड़ता है

2. कर का टालना :- प्रत्यक्ष कर को दूसरे व्यक्तियों पर नहीं टाला जा सकता जबकि अप्रत्यक्ष कर को दूसरे व्यक्तियों पर टाला जा सकता है

3. प्रगतिशीलता :- प्रत्यक्ष कर साधारणतप्रगतिशील होते हैंइनका वास्तविक भार निर्धन व्यक्तियों की तुलना में धनी व्यक्तियों पर अधिक पड़ता हैइसके विपरीत अप्रत्यक्ष कर साधारणतप्रतिगामी होते हैंइसका वास्तविक भार निर्धन व्यक्तियों पर धनी व्यक्तियों की तुलना में अधिक पड़ता है

प्रत्यक्ष कर का उदाहरण :- आयकर, संपत्ति कर, निगम कर

अप्रत्यक्ष कर का उदाहरण :- बिक्री कर, सीमा शुल्क, उत्पादन शुल्क

(b) उपयुक्त उदाहरणों के साथ, अंतिम वस्तुओं और मध्यवर्ती वस्तुओं के बीच अंतर करें।

उत्तर-

मध्यवर्त्ती वस्तुएं तथा अन्तिम वस्तुएं

अन्तिम वस्तुएं

मध्यवर्त्ती वस्तुएं

अन्तिम वस्तुएं वे वस्तुएं हैं जिन्होंने उत्पादन की सीमा रेखा को पार कर लिया है।

मध्यवर्त्ती वस्तुएं वे वस्तुएं हैं जो अभी उत्पादन की सीमा रेखा में ही है।

इनमें कोई मूल्य जोड़ना शेष नहीं है।

मध्यवर्त्ती वस्तुओ में मूल्य जोड़ना शेष रहता है।

अंतिम उपभोग करने वालों (जिनमें उपभोक्ता तथा उत्पादक सम्मिलित होते हैं) के लिए तैयार होती है

अंतिम उपभोग करने के लिए तैयार नहीं रहती

राष्ट्रीय आय का अनुमान लगाने के लिए अंतिम वस्तुओं को सम्मिलित किया जाता है

राष्ट्रीय आय का अनुमान लगाने के लिए सम्मिलित नहीं किया जाता है


खंड बी: भारतीय आर्थिक विकास

18. निम्नलिखित वक्तव्यों को ध्यान से पढ़ें।

कथन 1: ब्रिटिश नीतियों के कारण भारत की विश्व प्रसिद्ध हस्तशिल्प उ‌द्योगों का पतन हुआ।

कथन 2: भारत में औपनिवेशिक शासन के दौरान, औ‌द्योगिक क्षेत्र का सकल मूल्य वर्धन (GVA) में योगदान महत्वपूर्ण रूप से बढ़ा।

दिए गए वक्तव्यों के आधार पर सही विकल्प चुनेंः

(A) कथन 1 सत्य है और कथन 2 असत्य है

(B) कथन 1 असत्य है और कथन 2 सत्य है

(C) दोनों कथन 1 और 2 सत्य हैं

(D) दोनों कथन 1 और 2 असत्य हैं

व्याख्या:

कथन 1: यह बिल्कुल सत्य है। ब्रिटिश शासन के दौरान, भारत के हस्तशिल्प उद्योगों को भारी नुकसान हुआ। ब्रिटिश नीतियों ने भारतीय हस्तशिल्पों को कई तरह से प्रभावित किया:

सस्ते ब्रिटिश सामान: ब्रिटिश कंपनियां भारत में सस्ते मशीन से बने उत्पाद लाती थीं, जिनका भारतीय हस्तशिल्पों से मुकाबला नहीं हो पाता था।

कच्चे माल का निर्यात: भारत के कच्चे माल को ब्रिटेन भेजा जाता था और वहां उनसे उत्पाद बनाकर फिर भारत में बेचा जाता था। इससे भारतीय हस्तशिल्पों का बाजार खत्म होता गया।

उच्च कर: भारतीय हस्तशिल्पों पर उच्च कर लगाए जाते थे, जिससे उनकी कीमतें बढ़ जाती थीं और वे बाजार में कम प्रतिस्पर्धी हो जाते थे।

कथन 2: यह असत्य है। भारत में औपनिवेशिक शासन के दौरान, औद्योगिक क्षेत्र का विकास बहुत धीमा था। ब्रिटिश नीतियों का मुख्य फोकस भारत को कच्चे माल का उत्पादक बनाना था, न कि औद्योगिक देश। औद्योगिक क्षेत्र मुख्य रूप से ब्रिटेन के लिए कच्चे माल का उत्पादन करता था। भारत में बड़े पैमाने पर औद्योगिक विकास ब्रिटिश शासन के बाद ही हुआ।

19. यह पहचानें कि निम्न में से कौन सा विकल्प कृषि विपणन प्रणाली के घटकों का गलत संयोजन दर्शाता है।

(A) एकत्रीकरण, भंडारण, प्रसंस्करण, पैकेजिंग

(B) उत्पादन, एकत्रीकरण, प्रसंस्करण, ग्रेडिंग

(C) एकत्रीकरण, प्रसंस्करण, पैकेजिंग, परिवहन

(D) प्रसंस्करण, एकत्रीकरण, पैकेजिंग, ग्रेडिंग

व्याख्या- कृषि विपणन प्रणाली में उत्पादन को शामिल करना पूरी तरह से सही नहीं है। उत्पादन कृषि विपणन प्रणाली का एक पूर्ववर्ती चरण है, न कि इसका एक घटक।

कृषि विपणन प्रणाली के प्रमुख घटक हैं:

एकत्रीकरण: किसानों से उत्पाद खरीदना और उन्हें एक जगह इकट्ठा करना।

प्रसंस्करण: उत्पादों को उपभोग या आगे के उपयोग के लिए उपयुक्त बनाने के लिए उन पर प्रक्रियाएं करना।

पैकेजिंग: उत्पादों को सुरक्षित रूप से रखने और परिवहन के लिए पैक करना।

परिवहन: उत्पादों को उत्पादन स्थल से उपभोक्ता तक पहुंचाना।

ग्रेडिंग: उत्पादों को उनकी गुणवत्ता के आधार पर वर्गीकृत करना।

भंडारण: उत्पादों को भविष्य में उपयोग के लिए सुरक्षित रखना।

विपणन: उत्पादों को उपभोक्ताओं तक पहुंचाने के लिए विभिन्न मार्केटिंग रणनीतियाँ अपनाना।

20. समकालीन भारत में ग्रामीण बैंकिंग की संस्थागत संरचना बहु-एजेंसी संस्थानों के एक समूह से बनी है, अर्थात, -------(सही विकल्प चुनें।

(i) क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक

(ii) सहकारी बैंक

(iii) भूमि विकास बैंक

(iv) वाणिज्यिक बैंक

विकल्पः

(A) [i] & [iv]

(B) [i], [iii] and [iv]

(C) [i], [ii] and [iii]

(D) [i], [ii], [iii] and [iv]

व्याख्या- समकालीन भारत में ग्रामीण बैंकिंग की संस्थागत संरचना वास्तव में एक बहु-एजेंसी वाला ढांचा है, जिसमें विभिन्न प्रकार के बैंक मिलकर ग्रामीण क्षेत्रों में वित्तीय सेवाएं प्रदान करते हैं। इनमें शामिल हैं:

क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक (RRBs): ये बैंक विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में वित्तीय सेवाएं प्रदान करने के लिए स्थापित किए गए थे। इनका मुख्य उद्देश्य छोटे किसानों और ग्रामीण कारीगरों को ऋण प्रदान करना है।

सहकारी बैंक: ये बैंक किसानों, ग्रामीण कारीगरों और अन्य ग्रामीण समुदायों के स्वामित्व वाले होते हैं। ये बैंक अपने सदस्यों को ऋण, बचत और अन्य वित्तीय सेवाएं प्रदान करते हैं।

भूमि विकास बैंक: ये बैंक कृषि और ग्रामीण विकास के लिए दीर्घकालिक ऋण प्रदान करते हैं। ये बैंक सिंचाई, भूमि सुधार और अन्य कृषि विकास परियोजनाओं के लिए वित्त प्रदान करते हैं।

वाणिज्यिक बैंक: हालांकि वाणिज्यिक बैंक मुख्य रूप से शहरी क्षेत्रों में काम करते हैं, लेकिन कई वाणिज्यिक बैंक भी ग्रामीण क्षेत्रों में शाखाएं खोलते हैं और कृषि और ग्रामीण विकास के लिए ऋण प्रदान करते हैं।

21. पाकिस्तान में आर्थिक सुधारों की शुरुआत वर्ष .......... में हुई।

(A) 1978

(B) 1980

(C) 1988

(D) 1991

व्याख्या- पाकिस्तान में व्यापक आर्थिक सुधारों की शुरुआत 1988 में हुई थी। इस समय, जनरल ज़िया-उल-हक के शासनकाल के अंत के साथ, पाकिस्तान ने अपनी अर्थव्यवस्था को अधिक बाजार-उन्मुख बनाने की दिशा में कदम उठाए।

क्यों 1988 महत्वपूर्ण था?

बेनावजीर भुट्टो का शासन: 1988 में बेनावजीर भुट्टो पाकिस्तान की प्रधानमंत्री बनीं। उनके शासनकाल को आर्थिक सुधारों के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ माना जाता है।

आर्थिक उदारीकरण: 1988 के बाद, पाकिस्तान ने आर्थिक उदारीकरण की नीतियों को अपनाना शुरू किया। इसमें निजीकरण, विनियमन में ढील देना और विदेशी निवेश को प्रोत्साहित करना शामिल था।

संस्थागत सुधार: वित्तीय संस्थानों में सुधार, व्यापार सुधार और सरकारी नीतियों में बदलाव जैसे कई संस्थागत सुधार भी किए गए।

आर्थिक सुधारों का उद्देश्य

आर्थिक वृद्धि: आर्थिक सुधारों का मुख्य उद्देश्य देश की आर्थिक वृद्धि को बढ़ावा देना था।

गरीबी कम करना: इन सुधारों के माध्यम से गरीबी कम करने और लोगों के जीवन स्तर को बेहतर बनाने का लक्ष्य था।

विदेशी निवेश आकर्षित करना: विदेशी निवेश को आकर्षित करके देश में रोजगार के अवसर पैदा करना।

बाजार को अधिक कुशल बनाना: सरकारी नियंत्रण को कम करके बाजार को अधिक कुशल बनाना।

आर्थिक सुधारों के परिणाम

पाकिस्तान में आर्थिक सुधारों के परिणामस्वरूप कुछ सकारात्मक बदलाव हुए, जैसे कि आर्थिक वृद्धि में वृद्धि और विदेशी निवेश में वृद्धि। हालांकि, इन सुधारों के कुछ नकारात्मक परिणाम भी रहे, जैसे कि असमानता में वृद्धि और कुछ क्षेत्रों में विकास की कमी।

22. चीन ने ग्रामीण क्षेत्रों में सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित की है। सुधारों से पहले भी सामाजिक अवसंरचना प्रदान करने में सार्वजनिक हस्तक्षेप ने चीन में मानव विकास सूचकांकों में सकारात्मक परिणाम लाए हैं। निम्नलिखित में से कौन सा स्वास्थ्य संकेतक नहीं है?

(A) शिशु मृत्यु दर

(B) जन्म पर जीवन प्रत्याशा

(C) गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों का प्रतिशत

(D) मातृ मृत्यु दर

23. ---------- खेती वह प्रणाली है जो पारिस्थितिक संतुलन को पुनर्स्थापित, बनाए रखती और बढ़ाती है। [सही विकल्प से रिक्त स्थान भरें]

(A) पारंपरिक

(B) रासायनिक

(C) जैविक

(D) बहु-स्तरीय

व्याख्या- जैविक खेती एक ऐसी खेती की विधि है जिसमें रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों और अन्य सिंथेटिक पदार्थों का उपयोग नहीं किया जाता है। इसके बजाय, जैविक खेती में प्राकृतिक तरीकों जैसे खाद, कम्पोस्ट और जैव नियंत्रण का उपयोग करके फसलें उगाई जाती हैं।

पारिस्थितिक संतुलन: यह एक ऐसी स्थिति है जिसमें जीव और पर्यावरण एक-दूसरे के साथ सामंजस्य स्थापित करके रहते हैं। जैविक खेती इस संतुलन को बनाए रखने और बढ़ावा देने में मदद करती है क्योंकि यह प्राकृतिक प्रक्रियाओं पर निर्भर करती है।

24. भारत में पहली पंचवर्षीय योजना ---------- की अवधि के लिए शुरू की गई थी

(A) 1948-1953

(B) 1954-1959

(C) 1951-1956

(D) 1955-1960

25. "भारत में गूगल ने 4000 स्नातक छात्रों को नियुक्त किया है" दिया गया वक्तव्य ---------क्षेत्र रोजगार से संबंधित है।

(A) औपचारिक

(B) अनौपचारिक

(C) ग्रामीण

(D) शहरी

व्याख्या- औपचारिक क्षेत्र: औपचारिक क्षेत्र वह होता है जहां संगठित रूप से काम होता है और सरकार द्वारा निर्धारित नियमों का पालन किया जाता है। इसमें बड़ी कंपनियां, सरकारी संस्थान, और ऐसी ही अन्य संस्थाएं शामिल होती हैं। इनमें कर्मचारियों को नियमित वेतन मिलता है और उन्हें सामाजिक सुरक्षा लाभ भी मिलते हैं।

अनौपचारिक क्षेत्र: अनौपचारिक क्षेत्र में छोटे व्यवसाय, स्वरोजगार और ऐसे ही अन्य काम शामिल होते हैं। इसमें नियमित वेतन और सामाजिक सुरक्षा लाभ नहीं मिलते हैं।

ग्रामीण और शहरी क्षेत्र: ये भौगोलिक क्षेत्र हैं, न कि रोजगार के प्रकार।

क्यों औपचारिक क्षेत्र?

गूगल एक बहुराष्ट्रीय कंपनी है: यह एक बड़ी संगठित कंपनी है जो औपचारिक क्षेत्र का हिस्सा है।

नियुक्ति प्रक्रिया: गूगल में नियुक्ति के लिए एक औपचारिक प्रक्रिया होती है जिसमें इंटरव्यू, टेस्ट आदि शामिल होते हैं।

कर्मचारी लाभ: गूगल अपने कर्मचारियों को नियमित वेतन, स्वास्थ्य बीमा, और अन्य सामाजिक सुरक्षा लाभ प्रदान करता है।

26. ------ एक महत्वपूर्ण माइक्रो- फाइनेंस प्रणाली के रूप में उभरी हैं और महिलाओं के सशक्तिकरण का कारण बनी हैं। सही विकल्प भरें।

(A) नाबार्ड

(B) स्वयं सहायता समूह

(C) वाणिज्यिक बैंक

(D) भूमि विकास बैंक

व्याख्या- स्वयं सहायता समूह (SHG): ये छोटे समूह होते हैं जो मुख्यतः ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं द्वारा बनाए जाते हैं। ये समूह सदस्यों के बीच बचत को प्रोत्साहित करते हैं और छोटे ऋण प्रदान करते हैं।

महिला सशक्तिकरण में भूमिका: SHG महिलाओं को आर्थिक रूप से स्वावलंबी बनाने में मदद करते हैं। इन समूहों के माध्यम से महिलाएं छोटे व्यवसाय शुरू कर सकती हैं, अपनी आय बढ़ा सकती हैं और परिवार के निर्णय लेने में अधिक सक्रिय भूमिका निभा सकती हैं।

27. ---------- एक प्रक्रिया है, जिसमें बचत से लेकर बाजार में अंतिम उत्पाद की बिक्री तक की सभी गतिविधियाँ शामिल हैं।

(A) ग्रामीण विकास

(B) कृषि विविधीकरण

(C) जैविक खेती

(D) कृषि विपणन

व्याख्या- कृषि विपणन वह प्रक्रिया है जिसमें किसान द्वारा उत्पादित कृषि उत्पादों को खेत से लेकर उपभोक्ता तक पहुंचाया जाता है। इसमें उत्पादन, प्रसंस्करण, भंडारण, परिवहन और बिक्री जैसी कई गतिविधियां शामिल होती हैं।

28. (A) भारतीय शिक्षा प्रणाली के सामने आने वाली तीन चुनौतियों का उल्लेख कीजिए।

उत्तर - भारत की आधुनिक शिक्षा प्रणाली ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार द्वारा शुरू की गई थी। औपनिवेशिक काल के दौरान, भारतीय शिक्षा प्रणाली की नींव मैकाले मिनट, वुड्स डिस्पैच, कर्जन की शिक्षा नीति, सैडलर आयोग आदि द्वारा रखी गई थी।

भारत अपनी शैक्षणिक प्रतिभा के लिए जाना जाता है। हालाँकि, भारतीय शिक्षा प्रणाली की आलोचना इस बात के लिए की जाती है कि वह औद्योगिक आवश्यकताओं के संबंध में अपने छात्रों के लिए आवश्यक रोजगार क्षमता बनाने में विफल रही है। इसलिए, भारतीय शिक्षा क्षेत्र के सामने बहुत सी चुनौतियाँ हैं जिन पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है।

1. शिक्षक-छात्र अनुपात- यूनेस्को की भारत के लिए शिक्षा की स्थिति रिपोर्ट 2021 के अनुसार, स्कूलों में 11.16 लाख शिक्षण पद रिक्त हैं। यह स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि स्कूलों में शिक्षकों की कमी है। इसके अलावा, शिक्षकों पर बहुत सारे गैर-शैक्षणिक कार्यभार हैं, जिसके परिणामस्वरूप अंततः छात्रों को पढ़ाने से उनका ध्यान भटक जाता है। नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एजुकेशन प्लानिंग एंड एडमिनिस्ट्रेशन (NIEPA) द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार, शिक्षक अपने समय का केवल 19% ही शिक्षण के लिए समर्पित करते हैं, जबकि उनका बाकी समय गैर-शिक्षण प्रशासनिक कार्यों में व्यतीत होता है।

इसके अलावा, जब सरकारी क्षेत्र की बात आती है, तो सरकारी शिक्षकों को उनके प्रदर्शन के बावजूद नौकरी की सुरक्षा की आजीवन गारंटी मिलती है, जिसके परिणामस्वरूप उनकी ओर से कोई जवाबदेही नहीं होती है।

2. महंगी उच्च शिक्षा- एसोचैम के एक सर्वेक्षण के अनुसार, 2005 से 2011 तक प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा में मुद्रास्फीति में 169% की वृद्धि हुई है। भारत में विशेष संस्थान और कॉलेज महंगे हैं। कुछ पाठ्यक्रमों के लिए उच्च शिक्षा आम आदमी की पहुँच से बाहर है। उदाहरण के लिए, IIM MBA कक्षाओं के लिए प्रति सेमेस्टर 2 लाख रुपये लेता है। लालची उद्यमियों के हाथों में उन्नत शिक्षा के निजीकरण के परिणामस्वरूप उच्च शिक्षा के क्षेत्र में गिरावट की दर बहुत अधिक है।

3. बुनियादी ढांचे का अभाव- खराब स्वच्छता, शौचालयों की कमी, पीने के पानी की सुविधा, बिजली, खेल के मैदान आदि जैसी बुनियादी सुविधाओं की कमी शिक्षा क्षेत्र की प्रमुख खामियों में से एक है। 2010 में एक सर्वेक्षण किया गया था जिसके अनुसार लगभग 95.2% स्कूल अभी भी आरटीई बुनियादी ढांचे के संकेतकों के पूर्ण सेट के अंतर्गत नहीं हैं। 2016 की वार्षिक शिक्षा सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार, केवल 68.7% स्कूलों में उपयोग करने योग्य शौचालय की सुविधा थी और भारत के लगभग 3.5% स्कूलों में शौचालय की सुविधा नहीं थी।

अथवा

(B) गैर-संस्थागत ऋण स्रोतों की सीमाएँ क्या हैं?

उत्तर - गैर-संस्थागत ऋण स्रोत, जैसे कि साहूकार, दोस्तों और परिवार से उधार, कई लोगों के लिए, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में, धन की आवश्यकता पूरी करने का एक प्रमुख स्रोत होते हैं। हालांकि, इन स्रोतों के साथ कई सीमाएँ भी जुड़ी हुई हैं:

उच्च ब्याज दरें

• अधिक बोझ: गैर-संस्थागत ऋणदाता अक्सर बहुत उच्च ब्याज दरें चार्ज करते हैं, जिससे ऋण का बोझ बढ़ जाता है और ऋण चक्र में फंसने का खतरा बढ़ जाता है।

• गरीबी का चक्र: उच्च ब्याज दरें गरीबी के चक्र को बनाए रख सकती हैं, क्योंकि ऋणदाता को चुकाने के लिए लोगों को अपनी आय का एक बड़ा हिस्सा खर्च करना पड़ता है, जिससे उनके पास अन्य आवश्यकताओं के लिए कम पैसे बचते हैं।

पारदर्शिता का अभाव

• अस्पष्ट शर्तें: गैर-संस्थागत ऋणों की शर्तें अक्सर स्पष्ट नहीं होती हैं, जिससे ऋणदाता और उधारकर्ता दोनों के बीच गलतफहमी हो सकती है।

• शोषण का खतरा: पारदर्शिता की कमी का फायदा उठाकर ऋणदाता उधारकर्ताओं का शोषण कर सकते हैं।

सुरक्षा की कमी

• कानूनी सुरक्षा नहीं: गैर-संस्थागत ऋणों के लिए कोई कानूनी सुरक्षा नहीं होती है, जिससे उधारकर्ताओं को धोखाधड़ी का शिकार होने का खतरा रहता है।

• संपत्ति जब्ती का खतरा: यदि उधारकर्ता समय पर ऋण नहीं चुका पाता है, तो ऋणदाता उसकी संपत्ति जब्त कर सकते हैं।

सीमित राशि

• छोटे ऋण: गैर-संस्थागत ऋणदाता आमतौर पर बड़ी राशि के ऋण नहीं देते हैं, जिससे बड़ी परियोजनाओं के लिए धन जुटाना मुश्किल हो जाता है।

अनियमित आपूर्ति: ऋण की उपलब्धता अक्सर अनियमित होती है और यह ऋणदाता के मूड पर निर्भर करती है।

सामाजिक दबाव

संबंधों पर दबाव: गैर-संस्थागत ऋण लेने से सामाजिक संबंधों पर दबाव पड़ सकता है, खासकर जब ऋणदाता दोस्त या परिवार का सदस्य होता है।

समाजिक बहिष्कार: ऋण न चुका पाने पर व्यक्ति को सामाजिक बहिष्कार का सामना करना पड़ सकता है।

29. निम्नलिखित कथन सही है या गलत, इसे उचित कारण के साथ स्पष्ट करें:

स्व-नियोजित श्रमिक और किराए पर रखे गए श्रमिक अलग-अलग होते हैं।

उत्तर - यह कथन बिल्कुल सही है। स्व-नियोजित श्रमिक और किराए पर रखे गए श्रमिक के बीच कई महत्वपूर्ण अंतर हैं, जो उनकी भूमिका, अधिकारों और जिम्मेदारियों को अलग करते हैं:

नियंत्रण:

• स्व-नियोजित: वे अपने काम के तरीके, समय और अन्य पहलुओं पर पूर्ण नियंत्रण रखते हैं।

• किराए पर रखे गए: वे किसी नियोक्ता के नियंत्रण में काम करते हैं और उनके निर्देशों का पालन करते हैं।

जिम्मेदारी:

• स्व-नियोजित: वे अपने काम की सफलता या असफलता के लिए पूरी तरह जिम्मेदार होते हैं।

• किराए पर रखे गए: वे अपने काम के लिए जिम्मेदार होते हैं, लेकिन कंपनी के समग्र लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए भी काम करते हैं।

आय:

• स्व-नियोजित: उनकी आय उनके द्वारा किए गए काम और प्राप्त किए गए मुनाफे पर निर्भर करती है।

• किराए पर रखे गए: उन्हें एक निश्चित वेतन या मजदूरी मिलती है।

लाभ:

• स्व-नियोजित: वे अपने लाभ का आनंद लेते हैं, लेकिन जोखिम भी उठाते हैं।

• किराए पर रखे गए: वे कंपनी के लाभों का आनंद ले सकते हैं, जैसे कि स्वास्थ्य बीमा और पेंशन।

कर:

• स्व-नियोजित: उन्हें अपनी आय पर स्वयं कर का भुगतान करना होता है।

• किराए पर रखे गए: कंपनी आमतौर पर उनके आयकर का एक हिस्सा काटती है।

कानूनी अधिकार:

• स्व-नियोजित: वे स्वयं के मालिक होते हैं और उनके पास कम कानूनी सुरक्षा होती है।

• किराए पर रखे गए: उनके पास श्रम कानूनों द्वारा प्रदान की जाने वाली अधिक सुरक्षा होती है।

उदाहरण:

• एक डॉक्टर, एक लेखक या एक छोटे व्यवसाय का मालिक एक स्व-नियोजित श्रमिक का उदाहरण है।

• एक कारखाने का कर्मचारी, एक शिक्षक या एक दुकानदार एक किराए पर रखे गए श्रमिक का उदाहरण है।

30. भारतीय अर्थव्यवस्था के कृषि क्षेत्र में हरित क्रांति के दो लाभ और दो हानियों पर चर्चा कीजिए।

उत्तर - भारत में हरित क्रांति ने कृषि उत्पादन में अभूतपूर्व वृद्धि की, जिसने देश को खाद्यान्न संकट से उबारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। हालांकि, इसके साथ ही कुछ नकारात्मक प्रभाव भी देखने को मिले। आइए, हरित क्रांति के प्रमुख लाभ और हानियों पर विस्तार से चर्चा करते हैं:

लाभ

1. खाद्यान्न उत्पादन में वृद्धि: हरित क्रांति के कारण भारत खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भर बन गया। उन्नत बीजों, सिंचाई और उर्वरकों के उपयोग से खाद्यान्न उत्पादन में कई गुना वृद्धि हुई। इससे देश में खाद्यान्न की उपलब्धता बढ़ी और लोगों को भूख से बचाया जा सका।

2. कृषि विकास में तेजी: हरित क्रांति ने कृषि क्षेत्र में आधुनिक तकनीकों को अपनाने को बढ़ावा दिया। सिंचाई सुविधाओं का विस्तार हुआ, कृषि यंत्रों का उपयोग बढ़ा और कृषि अनुसंधान को प्रोत्साहन मिला। इससे कृषि उत्पादकता में वृद्धि हुई और किसानों की आय में सुधार हुआ।

हानियां

1. पर्यावरणीय क्षति: हरित क्रांति में रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के अत्यधिक उपयोग से भूमि की उर्वरा शक्ति कम हुई, जल प्रदूषण बढ़ा और जैव विविधता को नुकसान पहुंचा। इसके अलावा, भूमि का क्षरण और लवणता जैसी समस्याएं भी उत्पन्न हुईं।

2. किसानों पर आर्थिक बोझ: हरित क्रांति से जुड़ी उच्च लागत जैसे कि उन्नत बीजों, उर्वरकों और कीटनाशकों की खरीद किसानों के लिए एक बड़ा बोझ बन गई। कई छोटे किसान इन लागतों को वहन नहीं कर पाए और कर्ज में डूब गए।

31. "कार्यस्थल पर प्रशिक्षण पर किया गया व्यय किसी अर्थव्यवस्था में मानव पूंजी निर्माण का एक महत्वपूर्ण साधन है।" दिए गए कथन को उचित कारणों के साथ स्पष्ट कीजिए।

उत्तर - हां, कार्यस्थल पर प्रशिक्षण पर किया गया व्यय किसी अर्थव्यवस्था में मानव पूंजी निर्माण का एक महत्वपूर्ण साधन है:

1. प्रशिक्षण और शिक्षा में निवेश करने से लोगों के तकनीकी और पेशेवर कौशल का विकास होता है। इससे उनकी उत्पादकता बढ़ती है और उच्च गुणवत्ता वाले उत्पादन और आर्थिक दक्षता हासिल होती है।

2. कई कंपनियां श्रम उत्पादकता बढ़ाने के लिए ऑन-द-जॉब प्रशिक्षण देती हैं। इन प्रशिक्षणों के कई रूप हो सकते हैं, जैसे कि कुशल पर्यवेक्षक के तहत प्रशिक्षण, ऑफ-कैंपस प्रशिक्षण, या इन-हाउस प्रशिक्षण।

3. मानव पूंजी से तात्पर्य किसी कर्मचारी की योग्यताओं और कौशल के आर्थिक मूल्य से है।

4. मानव पूंजी निर्माण के अन्य स्रोतों में शिक्षा, स्वास्थ्य, प्रवास, और तकनीकी जानकारी शामिल हैं।

5. मानव पूंजी निर्माण की अधिक दर से आर्थिक संवृद्धि को बढ़ावा मिलता है।

6. मानव पूंजी और भौतिक पूंजी दोनों ही किसी भी सफल उद्यम के निर्माण के लिए ज़रूरी हैं।

अथवा

"सतत विकास को बढ़ावा देने के लिए जैविक खेती समय की आवश्यकता है, लेकिन इसकी अपनी सीमाएँ हैं।" दिए गए कथन के संदर्भ में जैविक खेती के दो लाभ और दो सीमाएँ स्पष्ट कीजिए।

उत्तर - जैविक खेती सतत विकास के लिए एक महत्वपूर्ण उपकरण है, लेकिन साथ ही इसकी कुछ सीमाएँ भी हैं।

जैविक खेती के लाभ

पर्यावरण संरक्षण: जैविक खेती में रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का उपयोग नहीं किया जाता, जिससे मिट्टी की उर्वरता बनी रहती है, जल प्रदूषण कम होता है और जैव विविधता को संरक्षित किया जाता है। यह लंबे समय में पर्यावरण को स्वस्थ रखने में मदद करता है।

स्वस्थ खाद्य: जैविक खेती से उत्पादित खाद्य पदार्थों में रासायनिक पदार्थों की मात्रा नगण्य होती है, जिससे ये अधिक स्वस्थ और पौष्टिक होते हैं। यह लोगों के स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में मदद करता है।

जैविक खेती की सीमाएँ

उत्पादन लागत अधिक: जैविक खेती में रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के स्थान पर जैविक खाद और कीटनाशकों का उपयोग किया जाता है, जिससे उत्पादन लागत अधिक होती है। इससे जैविक उत्पादों की कीमतें बढ़ जाती हैं, जिससे सभी लोग इन्हें आसानी से खरीद नहीं पाते हैं।

उत्पादन कम: जैविक खेती में रासायनिक उर्वरकों के उपयोग नहीं होने के कारण फसल उत्पादन पारंपरिक खेती की तुलना में कम हो सकता है। बढ़ती जनसंख्या को खाद्यान्न उपलब्ध कराने के लिए बड़े पैमाने पर जैविक खेती करना एक चुनौतीपूर्ण कार्य हो सकता है।

32. भारत की नई आर्थिक नीति पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।

उत्तर - 1991 में भारत ने आर्थिक संकट से उबरने के लिए एक नई आर्थिक नीति अपनाई। इस नीति को उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण (LPG) मॉडल के नाम से जाना जाता है।

नई आर्थिक नीति के प्रमुख उद्देश्य थे:

1. अर्थव्यवस्था को गति देना: आर्थिक वृद्धि को बढ़ावा देना और रोजगार के अवसर पैदा करना।

2. विदेशी निवेश को आकर्षित करना: विदेशी कंपनियों को भारत में निवेश करने के लिए प्रोत्साहित करना।

3. बाजार को मुक्त करना: सरकारी नियंत्रण को कम करके बाजार को अधिक स्वतंत्र बनाना।

4. निजी क्षेत्र को बढ़ावा देना: निजी क्षेत्र को अर्थव्यवस्था में अधिक सक्रिय भूमिका निभाने का अवसर देना।

नई आर्थिक नीति के प्रमुख सुधार:

1. उदारीकरण: आयात शुल्क कम करना, लाइसेंसिंग प्रक्रिया को आसान बनाना और विदेशी व्यापार को बढ़ावा देना।

2. निजीकरण: सार्वजनिक उपक्रमों को निजी क्षेत्र को बेचना।

3. वैश्वीकरण: विश्व अर्थव्यवस्था के साथ अधिक एकीकृत होना।

नई आर्थिक नीति के परिणाम:

1. आर्थिक वृद्धि: भारत की अर्थव्यवस्था में तेजी से वृद्धि हुई।

2. विदेशी निवेश: विदेशी निवेश में वृद्धि हुई।

3. रोजगार सृजन: नए रोजगार के अवसर पैदा हुए।

4. उपभोक्तावाद में वृद्धि: लोगों की जीवनशैली में सुधार हुआ।

5. असमानता में वृद्धि: आय में असमानता बढ़ी।

6. पर्यावरणीय समस्याएं: पर्यावरण प्रदूषण और संसाधनों का अत्यधिक दोहन जैसी समस्याएं बढ़ीं।

33. (A) "प्रधानमंत्री ने ग्रामीण आय को गैर-कृषि गतिविधियों को बढ़ाकर बढ़ाने का आग्रह किया।

समझाइए कि गैर-कृषि गतिविधियाँ ग्रामीण क्षेत्र के लोगों की आय में कैसे वृद्धि कर सकती हैं।

उत्तर - ग्रामीण भारत में कृषि पर निर्भरता बहुत अधिक है, जो मौसमी अनिश्चितता और कम आय जैसी समस्याओं को जन्म देती है। ऐसे में गैर-कृषि गतिविधियों को बढ़ावा देना ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने और ग्रामीण लोगों की आय में वृद्धि करने का एक कारगर तरीका है।

गैर-कृषि गतिविधियाँ ग्रामीण आय में निम्न तरीके से वृद्धि करती हैं:

1. आय के अतिरिक्त स्रोत: गैर-कृषि गतिविधियाँ कृषि के अलावा आय का एक अतिरिक्त स्रोत प्रदान करती हैं। इससे ग्रामीण परिवारों की आय में वृद्धि होती है और वे अपनी आवश्यकताओं को बेहतर ढंग से पूरा कर पाते हैं।

2. रोजगार के अवसर: गैर-कृषि गतिविधियों से ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के नए अवसर पैदा होते हैं। इससे बेरोजगारी और अंडरएम्प्लॉयमेंट की समस्या कम होती है।

3. कौशल विकास: गैर-कृषि गतिविधियों में शामिल होने के लिए लोगों को नए कौशल सीखने होते हैं, जिससे उनकी उत्पादकता बढ़ती है।

4. आत्मनिर्भरता: गैर-कृषि गतिविधियाँ ग्रामीण क्षेत्रों को आत्मनिर्भर बनाने में मदद करती हैं। इससे उन्हें बाहरी स्रोतों पर निर्भर रहने की आवश्यकता कम होती है।

5. ग्रामीण विकास: गैर-कृषि गतिविधियाँ ग्रामीण क्षेत्रों के विकास में योगदान देती हैं। इससे बुनियादी सुविधाओं में सुधार होता है और ग्रामीण क्षेत्रों का शहरी क्षेत्रों के साथ एकीकरण होता है।

(B) "भारतीय स्वास्थ्य प्रणाली को स्वयं को ठीक करने के लिए सार्वजनिक व्यय की बढ़ी हुई खुराक की आवश्यकता है।" दिए गए कथन का उचित तर्कों के साथ समर्थन या खंडन कीजिए।

उत्तर - सार्वजनिक व्यय बढ़ाने के पक्ष में तर्क

1. पहुंच और समानता: सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाएं सभी वर्गों के लोगों को सस्ती और सुलभ स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करती हैं। इससे स्वास्थ्य सेवाओं में असमानता कम होती है और सभी को गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा मिलती है।

2. बुनियादी ढांचे का विकास: सार्वजनिक व्यय से स्वास्थ्य केंद्रों, अस्पतालों और अन्य स्वास्थ्य सुविधाओं का विकास होता है। इससे ग्रामीण और दूरदराज के क्षेत्रों में भी स्वास्थ्य सेवाएं पहुंचती हैं।

3. मानव संसाधन विकास: सार्वजनिक व्यय से डॉक्टरों, नर्सों और अन्य स्वास्थ्य कर्मचारियों को प्रशिक्षित करने और नियुक्त करने में मदद मिलती है। इससे स्वास्थ्य कर्मचारियों की कमी की समस्या का समाधान होता है।

4. नई तकनीकों का उपयोग: सार्वजनिक व्यय से अत्याधुनिक चिकित्सा उपकरणों और तकनीकों को खरीदने में मदद मिलती है। इससे रोगियों को बेहतर इलाज मिलता है।

5. जन स्वास्थ्य कार्यक्रम: सार्वजनिक व्यय से टीकाकरण, परिवार नियोजन और अन्य जन स्वास्थ्य कार्यक्रमों को चलाने में मदद मिलती है। इससे बीमारियों को फैलने से रोका जा सकता है।

6. आर्थिक विकास: स्वस्थ नागरिक एक उत्पादक समाज का निर्माण करते हैं। स्वास्थ्य सेवाओं पर निवेश से देश की उत्पादकता और आर्थिक विकास में वृद्धि होती है।

सार्वजनिक व्यय बढ़ाने के विपक्ष में तर्क

1. वित्तीय बोझ: सार्वजनिक व्यय बढ़ाने से सरकार पर वित्तीय बोझ बढ़ता है।

2. दक्षता का अभाव: कई बार सार्वजनिक स्वास्थ्य संस्थानों में दक्षता का अभाव होता है, जिससे धन का दुरुपयोग होता है।

3. निजी क्षेत्र की भूमिका: निजी क्षेत्र स्वास्थ्य सेवाओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। सार्वजनिक व्यय बढ़ाने से निजी क्षेत्र की भूमिका कम हो सकती है।

अथवा

(a) वर्तमान समय में भारत द्वारा सामना किए जा रहे किसी दो पर्यावरणीय चिंताओं का उल्लेख और चर्चा कीजिए।

उत्तर -

1. जैव विविधता की हानि- जैव विविधता को सभी स्रोतों और हमारे पारिस्थितिकी तंत्र, जिसका वे हिस्सा हैं, के जीवों के बीच परिवर्तनशीलता के रूप में परिभाषित किया जाता है; संरक्षण और सतत उपयोग जैव विविधता संकट पारिस्थितिक रूप से सतत विकास के लिए मौलिक हैं।

भारत में विश्व की लगभग 17% जनसंख्या तथा 20% पशुधन निवास करते हैं, तथा यह विश्व के मात्र 2.5% भौगोलिक क्षेत्र पर स्थित है।

स्वतंत्रता के बाद, आर्थिक सुधारों के कारण तेजी से औद्योगिकीकरण, टाउनशिप का विकास और शहरीकरण हुआ। इससे आवास और जैव विविधता स्थलों का विनाश हुआ है।

2. वायु प्रदूषण- वायु प्रदूषण कार्बन ऑक्साइड, मोनोऑक्साइड जैसी जहरीली गैसों के कारण वायु का दूषित होना है, जो इसे उपभोग के लिए अनुपयुक्त बना देता है।

• शहरी क्षेत्रों में वाहनों से निकलने वाला उत्सर्जन वायु प्रदूषण में प्रमुख योगदानकर्ता है।

• जिन क्षेत्रों में उद्योगों और ताप विद्युत संयंत्रों की अधिकता है, वे भी वायु प्रदूषण में योगदान करते हैं।

• वायु प्रदूषण से उच्च रक्तचाप, अस्थमा और हृदय संबंधी समस्याएं जैसी घातक बीमारियां होती हैं।

(b) ग्रामीण विकास में ऋण के महत्व पर चर्चा कीजिए।

उत्तर - ग्रामीण विकास में ऋण का महत्व इस प्रकार है:

1. ऋण से किसानों को खेती का व्यवसायीकरण करने में मदद मिलती है।

2. ऋण से किसानों को बीज, उर्वरक, कीटनाशक, और आधुनिक उपकरण खरीदने में मदद मिलती है. इससे फसल की पैदावार बढ़ती है और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित होती है।

3. ऋण से भूमि सुधार गतिविधियां, जैसे कि मृदा संवर्धन, सिंचाई विकास, और बुनियादी ढांचे का निर्माण किया जा सकता है।

4. ऋण से किसानों को बुवाई और कटाई के मौसम के बीच की अवधि में अपनी ज़रूरतें पूरी करने में मदद मिलती है।

5. ऋण से किसान आधुनिक कृषि तकनीकों को अपना सकते हैं।

6. ऋण से किसान मवेशी और ज़मीन खरीद सकते हैं।

7. कृषि ऋण प्रणाली के तहत, अल्पावधि ऋण और कृषि सावधि ऋण दिए जाते हैं।

8. कृषि ऋण और फसल बीमा से किसानों को जलवायु की अनिश्चितताओं से बचाया जा सकता है।

34. (a) समझाइए कि 'मानव पूंजी में निवेश' एक अर्थव्यवस्था की वृद्धि में कैसे योगदान देता है?

उत्तर - मानव पूंजी किसी व्यक्ति में निहित कौशल, ज्ञान, अनुभव और स्वास्थ्य का योग है। यह एक ऐसी संपत्ति है जिसे शिक्षा, प्रशिक्षण, स्वास्थ्य सेवाओं आदि में निवेश करके बढ़ाया जा सकता है। यह निवेश ही मानव पूंजी में निवेश कहलाता है।

मानव पूंजी में निवेश अर्थव्यवस्था की वृद्धि में निम्न तरह से योगदान देता है,

1. उत्पादकता में वृद्धि: शिक्षित और कुशल श्रमिक अधिक उत्पादक होते हैं। वे नई तकनीकों को अपनाने और नवाचार करने में सक्षम होते हैं, जिससे उत्पादन में वृद्धि होती है।

2. आर्थिक विकास: उत्पादकता में वृद्धि से राष्ट्रीय आय में वृद्धि होती है, जिससे अर्थव्यवस्था का विकास होता है।

3. नई तकनीकों का विकास: शिक्षित और कुशल श्रमिक नए उत्पादों और सेवाओं का विकास करने में सक्षम होते हैं, जिससे अर्थव्यवस्था में विविधता आती है।

4. रोजगार सृजन: नए उद्योगों और सेवाओं के विकास से रोजगार के नए अवसर पैदा होते हैं।

5. आय असमानता में कमी: शिक्षा और प्रशिक्षण के अवसरों को समान रूप से उपलब्ध कराने से आय असमानता में कमी आती है।

6. अर्थव्यवस्था की प्रतिस्पर्धात्मकता में वृद्धि: कुशल श्रमिकों की उपलब्धता से देश की अर्थव्यवस्था अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अधिक प्रतिस्पर्धी बनती है।

7. नवाचार को बढ़ावा: शिक्षित और कुशल श्रमिक नए विचारों और तकनीकों को विकसित करने में 8. अधिक सक्षम होते हैं, जिससे नवाचार को बढ़ावा मिलता है।

सामाजिक विकास: शिक्षित और स्वस्थ समाज अधिक विकसित होता है और सामाजिक समस्याओं का समाधान करने में सक्षम होता है।

(b) यह कहा जाता है कि उ‌द्योग किसी भी देश के आर्थिक विकास की रीढ़ होते हैं।

भारत को उदाहरण के रूप में लेते हुए, समझाइए कि कैसे औ‌द्योगिक विकास भारत में आर्थिक वृद्धि को बढ़ावा दे सकता है।

उत्तर - उद्योग किसी भी देश के आर्थिक विकास की रीढ़ होते हैं। औद्योगिक विकास भारत में आर्थिक वृद्धि को बढ़ावा दे सकता है:

1. रोजगार सृजन:

• बड़े पैमाने पर रोजगार: उद्योगों की स्थापना से बड़े पैमाने पर रोजगार के अवसर पैदा होते हैं। यह न केवल कुशल श्रमिकों बल्कि अकुशल श्रमिकों के लिए भी रोजगार के अवसर उपलब्ध कराता है।

• आय में वृद्धि: रोजगार से आय में वृद्धि होती है जिससे लोगों की जीवन स्तर में सुधार होता है।

2. निर्यात और विदेशी मुद्रा:

• विश्व बाजार में पहुंच: भारतीय उत्पादों को विश्व बाजार में पहुंचाने से निर्यात बढ़ता है।

• विदेशी मुद्रा अर्जन: निर्यात से विदेशी मुद्रा अर्जित होती है जिससे देश का विदेशी मुद्रा भंडार मजबूत होता है।

• आर्थिक स्थिरता: विदेशी मुद्रा भंडार मजबूत होने से देश की आर्थिक स्थिरता सुनिश्चित होती है।

3. अन्य क्षेत्रों का विकास:

• सहायक उद्योगों का विकास: उद्योगों के विकास से सहायक उद्योगों जैसे कि परिवहन, बैंकिंग, बीमा आदि का विकास होता है।

• बुनियादी ढांचे का विकास: उद्योगों की स्थापना के लिए सड़क, रेल, बिजली आदि जैसे बुनियादी ढांचे का विकास किया जाता है जो समाज के अन्य क्षेत्रों के लिए भी फायदेमंद होता है।

4. प्रौद्योगिकी का विकास:

• नई तकनीकों का उपयोग: उद्योगों में नई तकनीकों का उपयोग होता है जिससे उत्पादन की दक्षता बढ़ती है।

• अनुसंधान और विकास: उद्योगों द्वारा अनुसंधान और विकास पर खर्च किया जाता है जिससे नई तकनीकों का विकास होता है।

5. सरकारी राजस्व में वृद्धि: करों में वृद्धि: उद्योगों से सरकार को करों के रूप में राजस्व प्राप्त होता है जिससे सरकार विभिन्न विकास कार्यों के लिए धन जुटा सकती है।

6. मानव विकास:

• शिक्षा और प्रशिक्षण: उद्योगों को कुशल श्रमिकों की आवश्यकता होती है जिसके लिए शिक्षा और प्रशिक्षण की सुविधाएं विकसित की जाती हैं।

• सामाजिक विकास: उद्योगों के विकास से सामाजिक विकास भी होता है जैसे कि स्वास्थ्य सुविधाओं का विकास, सामुदायिक विकास आदि।

भारत में औद्योगिक विकास के लिए सरकार द्वारा किए जा रहे प्रयास:

• मेक इन इंडिया: सरकार 'मेक इन इंडिया' अभियान के माध्यम से भारत को एक वैश्विक विनिर्माण केंद्र बनाने का प्रयास कर रही है।

• स्टार्टअप इंडिया: सरकार स्टार्टअप्स को प्रोत्साहित करने के लिए कई योजनाएं चला रही है।

• डिजिटल इंडिया: सरकार डिजिटल इंडिया अभियान के माध्यम से डिजिटल अर्थव्यवस्था को बढ़ावा दे रही है।

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