वितान 1. सिल्वर वैडिंग
1.
जीवन- परिचय
जन्म
सन् 1935, कुमाऊँ (राजस्थान) में। हिंदी के प्रसिद्ध पत्रकार और टेलीविज़न
धारावाहिक लेखक। लखनऊ विश्वविद्यालय से विज्ञान स्नातक।
निधन-
सन् 2006, दिल्ली में।
30
मार्च 2006 को 73 वर्ष की आयु में नई दिल्ली, भारत में उनका निधन हो गया। उनके परिवार
में पत्नी डॉ. भगवती जोशी और बेटे अनुपम जोशी, अनुराग जोशी और आशीष जोशी हैं। उनकी
मृत्यु पर, प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह ने उन्हें "हाल के दिनों में हिंदी के सबसे
प्रभावशाली लेखकों और टिप्पणीकारों में से एक" कहा।
प्रख्यात
लेखक, संपादक और आलोचक खुशवंत सिंह के अनुसार, “2006 में जब उनकी मृत्यु हुई, तब
तक वे हिंदी के पहले और सबसे नवीन लेखक के रूप में पहचाने जा चुके थे।"
2.
साहित्यिक-परिचय
दिनमान
पत्रिका में सहायक
संपादक
और साप्ताहिक हिंदुस्तान में संपादक के रूप में कार्य। सन् '84 में भारतीय
दूरदर्शन के प्रथम धारावाहिक हम लोग के लिए कथा-पटकथा लेखन शुरू
प्रमुख अवदानः
कहानी संग्रह: कुरु कुरु स्वाहा, कसप, हरिया हरक्यूलीज़ की
हैरानी, हमज़ाद, क्याप।
व्यंग्य-संग्रह : एक दुर्लभ व्यक्तित्व, कैसे किस्सागो,
मंदिर घाट की पौड़ियाँ, ट-टा प्रोफ़ेसर षष्ठी वल्लभ पंत, नेताजी कहिन, इस देश का
यारों क्या कहना।
साक्षात्कार लेख संग्रहः बातों-बातों में, इक्कीसवीं सदी।
संस्मरण-संग्रहः लखनऊ मेरा लखनऊ, पश्चिमी जर्मनी पर एक
उड़ती नज़र।
टेलीविज़न धारावाहिक: हम लोग, बुनियाद, मुंगेरी लाल के हसीन
सपने।
पुरस्कारः क्याप के लिए 2005 के साहित्य अकादमी से
सम्मानित।
कैरियर
संपादन करना
भारत के पहले टेलीविजन सोप ओपेरा, हम लोग के लेखक होने के
नाते उन्हें अक्सर " भारतीय सोप ओपेरा का जनक " [8] कहा जाता है।
1982 में बनाया गया था, जब टेलीविजन अभी भी अधिकांश
भारतीयों के लिए एक लक्जरी आइटम था, यह धारावाहिक भारत के मध्यम वर्ग के रोजमर्रा
के संघर्षों से निपटता है, जिससे यह तुरंत हिट हो जाता है, खासकर इसलिए कि हर
भारतीय इससे अपनी पहचान बना सकता है।
एक अन्य लोकप्रिय रचना बनियाद (1987-1988) थी, जिसका
निर्देशन रमेश सिप्पी ने किया था, जो 1947 में भारत के विभाजन से विस्थापित एक
परिवार के जीवन पर आधारित धारावाहिक है; दोनों ने भारतीयों की एक पूरी पीढ़ी के
साथ-साथ भारतीय टेलीविजन उद्योग को भी गहराई से प्रभावित किया।
बाद के वर्षों में उन्होंने मुंगेरी लाल के हसीन सपने,
काकाजी कहीं, हमराही, ज़मीन आसमान और गाथा जैसे कई और लंबे समय तक चलने वाले
धारावाहिक लिखे ।
पाठ का सार
1. सिल्वर वैडिंग एक लंबी कहानी। मनोहर श्याम जोशी की अन्य
रचनाओं से अलग दिखती सी (पर है नहीं)।
2. यह कहानी अपने शिल्प में जोशी जी के चिर परिचित भाषिक
अंदाज़ और मुहावरों से युक्त है। आधुनिकता की ओर बढ़ता हमारा समाज एक ओर कई नयी
उपलब्धियों को समेटे हुए है तो दूसरी ओर मनुष्य को मनुष्य बनाए रखने वाले मूल्य
कहीं घिसते चले गए हैं।
3. जो हुआ होगा और समहाउ इंप्रॉपर ये दो जुमले इस कहानी के
बीज वाक्य हैं। जो हुआ होगा में यथास्थितिवाद यानी ज्यों का त्यों स्वीकार कर लेने
का भाव है तो समहाउ इंप्रॉपर में एक अनिर्णय की स्थिति भी है। ये दोनों ही भाव इस
कहानी के मुख्य चरित्र यशोधर बाबू के भीतर के द्वंद्व हैं।
4. ये दोनों ही स्थितियाँ हालात को ज्यों का त्यों स्वीकार
कर बदलाव को असंभव बना देने की ओर ले जाती हैं। महत्त्वपूर्ण बात यह है कि यशोधर
बाबू इन स्थितियों का ज़िम्मेदार किसी व्यक्ति को नहीं ठहराते । वे अनिर्णय की
स्थिति में हैं।
5. यशोधर बाबू जहाँ बच्चों की तरक्की से खुश होते हैं वहीं
समहाउ इंप्रॉपर यह भी अनुभव करते हैं कि वह खुशहाली भी कैसी जो अपनों में परायापन
पैदा करे। इसी द्वंद्व के साथ-साथ इस कहानी को यशोधर बाबू के बहाने देश के प्रापर
विकास में बाधक समहाउ इंप्रॉपर तत्त्वों की तलाश के रूप में भी पढ़ा जा सकता है।
प्रश्न-अभ्यास
1. यशोधर बाबू की पत्नी समय के साथ ढल सकने
में सफल होती है लेकिन यशोधर बाबू असफल रहते हैं। ऐसा क्यों?
उत्तर - यशोधर बाबू और उनकी पत्नी में कुछ वैचारिक मतभेद
दिखाई देता है। यशोधर की पत्नी जब अपने पहाड़ी गाँव से उनके साथ दिल्ली आयी थी, तब
वह पूरी तरह ग्रामीण थी। उस समय यशोधर का संयुक्त परिवार था, ताऊ और उनकी दो बहुएँ
भी साथ में रहती थीं। उस समय यशोधर की पत्नी को कुमाऊँनी मूल संस्कारों के अनुसार
'आचार-व्यवहार के बन्धनों में जकड़कर रहना पड़ता था।
बाद में बच्चे बड़े हो गये, तो उनकी तरफदारी करने लगी और
बेटी के कहने से वह समय के अनुसार आधुनिक बनने का प्रयास करने है। लगी। यशोधर की
'सिल्वर वैडिंग' पार्टी के अवसर पर तो उसने होंठों पर लाली और बालों पर खिजाब लगा
लिया था, बिना बाँह का ब्लाउज पहन रखा था एवं सिर पर पल्लू नहीं रखा था। इस तरह
यशोधर की पत्नी समय के साथ ढल सकने में सफल हो जाती है। वहीं यशोधर बाबू पत्नी की
तरह स्वयं को समयानुसार ढालने में सफल नहीं रहता है।
यशोधर का आदर्श किशनदा थे, संयुक्त परिवार था और
वंश-परम्परा के अनुसार धर्म-कर्म था, सामाजिक रीति-रिवाजों का भी प्रभाव था। इन
सभी बातों के अलावा यशोधर स्वयं को बुजुर्ग मान रहा था, अर्थात् रूढ़ परम्परा का
पोषक मानता था। इसी कारण उसका अपने बच्चों एवं पत्नी के साथ मतभेद था।
2. पाठ में 'जो हुआ होगा' वाक्य की आप कितनी
अर्थ छवियाँ खोज सकते/सकती हैं?
उत्तर- प्रस्तुत पाठ में जब किसी जाति भाई ने यशोधर से गाँव
में हुई किशनदा की मृत्यु का कारण पूछा, तो यशोधर ने जवाब दिया "जो हुआ
होगा।" इसका अर्थ यह है कि पता नहीं किस कारण उनकी मृत्यु हुई। किशनदा बिना
बाल-बच्चों वाले अर्थात् अविवाहित थे। इसलिए उनकी मृत्यु को लेकर किसी को भी यह
जानने की जरूरत नहीं थी कि उनकी देखभाल नहीं हुई। इससे किशनदा के जीवन को लेकर
लोगों की उदासीनता व्यंजित हुई है।
दूसरी बार 'जो हुआ होगा' वाक्य से बाल-बच्चों का न होना,
घर-परिवार का न होना और रिटायर होकर गाँव के एक कोने में बैठकर विवश जीवनयापन
करना-यह अर्थ व्यक्त हुआ है। तीसरी बार पाठ के अन्त में अपने बेटे के रूखे व्यवहार
एवं पत्नी की उदासीनता से यशोधर बाबू को अपनी उपेक्षा का बोध हुआ। तब यशोधर स्वयं
को किशनदा की तरह उपेक्षित मानने लगा तथा कहने लगा कि उनकी मौत 'जो हुआ होगा' से
हुई होगी। अर्थात् इस तरह की उपेक्षा मिलने से ही हुई होगी।
3. 'समहाउ इंप्रॉपर' वाक्यांश का प्रयोग यशोधर
बाबू लगभग हर वाक्य के प्रारंभमें तकिया कलाम की तरह करते हैं। इस वाक्यांश का उनके
व्यक्तित्व और कहानी के कथ्य से क्या संबंध बनता है?
उत्तर - प्रस्तुत कहानी में 'समहाउ इंप्रॉपर' वाक्यांश का प्रयोग
एक दर्जन से भी अधिक बार हुआ है। यह यशोधर बाबू का तकिया कलाम है और इसका सम्बन्ध यशोधर
बाबू के व्यक्तित्व से है। वह पुराने सिद्धान्तों से चिपका हुआ व्यक्ति है। इस कारण
नये जमाने के साथ तालमेल न बिठा पाने से वह कुछ असन्तुष्ट होने पर ऐसा कहता है कि वह
हर चीज का मूल्यांकन अपनी सोच के आधार पर करता है। उसे किशनदा की परम्परा तथा बुजुर्ग
लोगों की मान्यताओं का सदा ध्यान रहता है।
घर में पत्नी और बच्चों के साथ वह इसी कारण सामंजस्य नहीं बिठा
पाता है कि वह उनकी बातों को अनुचित मानता है, स्वयं को परिवार का बुजुर्ग मानकर अकड़ा
रहता है। इस प्रकार यशोधर बाबू द्वारा बार-बार प्रयुक्त 'समहाउ इंप्रॉपर' वाक्यांश
उनके पुराने परम्परावादी व्यक्तित्व पर प्रश्न चिह्न लगाता है। लेखक ने व्यंजना की
है कि नये युग के अनुसार जीना और नये परिवर्तनों को हैं।) स्वीकार करना चाहिए। नये
ज़माने के हिसाब से यशोधर बाबू की तरह 'समहाउ इंप्रॉपर' नहीं होना चाहिए।
4. यशोधर बाबू की कहानी को दिशा देने में किशनदा
की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। आपके जीवन को दिशा देने में किसका महत्त्वपूर्ण योगदान
रहा और कैसे ?
उत्तर - यशोधर बाबू का जीवन किशनदा के व्यक्तित्व से पूरी तरह
प्रभावित था। यशोधर एक प्रकार से किशनदा के शिष्य तथा मानस-पुत्र थे। किशनदा ने ही
उन्हें सर्वप्रथम सहारा दिया था, फिर नौकरी पर लगाया था और जीवन के निर्माण की अनेक
शिक्षाएँ दी थीं। इसी कारण यशोधर बाबू हर बात पर किशनदा का स्मरण कर उनसे प्रेरणा लेते
रहते थे। कार्यालय में अधीनस्थ कर्मचारियों से, अन्य लोगों से, सामाजिक कार्यकलापों
एवं घर-गृहस्थी आदि सभी कामों में प्रवृत्त रहने पर वे पूर्णतया किशनदा को अपना आदर्श
मानते थे।
विद्यार्थी अनुभव के अनुसार स्वयं उत्तर दें।
5. वर्तमान समय में परिवार की संरचना, स्वरूप
से जुड़े आपके अनुभव इस कहानी से कहाँ तक सामंजस्य बिठा पाते हैं?
उत्तर (नोट- यह प्रश्न प्रत्येक छात्र के पारिवारिक अनुभवों
एवं स्थितियों पर आधारित है। अतः अनुभव स्वयं लिख सकते है।
6. निम्नलिखित में से किसे आप कहानी की मूल संवेदना
कहेंगे / कहेंगी और
(क) हाशिए पर धकेले जाते मानवीय मूल्य
(ख) पीढ़ी का अंतराल
(ग) पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव
उत्तर - 'सिल्वर वैडिंग' कहानी में यशोधर बाबू के बच्चे एवं
पत्नी नये विचारों के समर्थक होने से मानवीय मूल्यों को उतना महत्व नहीं देते हैं।
वे रिश्तेदारी, सामाजिक कर्त्तव्य, भाईचारा, बुजुर्गों का सम्मान आदि का कम ही ध्यान
रखते हैं। यशोधर के बच्चों पर पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव रहता है, स्वयं यशोधर भी
कभी-कभी पाश्चात्य संस्कृति से प्रभावित दिखाई देते हैं, परन्तु प्रस्तुत कहानी की
मूल संवेदना में ये दोनों बिन्दु सहायक तत्व हैं।
इस कहानी की मूल संवेदना 'पीढ़ी का अन्तराल' व्यंजित करना है।
यशोधर बाबू पुरानी परम्पराओं एवं किशनदा के आदर्शों को अपनाते हैं, परन्तु उनके बेटे-बेटी
(तथा पत्नी भी) पाश्चात्य संस्कृति से प्रभावित रहते हैं। उनकी बेटी जीन्स बाँहरहित
टॉप पहनती है, पत्नी भी नये ज़माने के हिसाब से मॉडल बनने का प्रयास करती है। इस कारण
यशोधर बाबू अपने परिवार से कटे रहते हैं। अतः उपर्युक्त तीन स्थितियों में से पीढ़ी
अन्तराल की समस्या ही प्रस्तुत कहानी का केन्द्र है।
7. अपने घर और विद्यालय के आस-पास हो रहे उन बदलावों
के बारे में लिखें जो सुविधाजनक और आधुनिक होते हुए भी बुजुर्गों को अच्छे नहीं लगते।
अच्छा न लगने के क्या कारण होंगे?
उत्तर-आज के वैज्ञानिक युग में सुख-सुविधा के नये-नये साधन उपलब्ध
हैं। लोगों के खान-पान एवं रहन सहन में भी बदलाव आ रहा है। उदाहरण के लिए टी.वी., फ्रिज,
टेलीफोन, मोबाइल आदि सभी साधनों से अब संचार क्रान्ति आ गई है, परन्तु बुजुर्ग लोगों
को मोबाइल पर हर समय बातें करना अच्छा नहीं लगता है। लड़के-लड़कियों के नये फैशन के
कपडे, जीन्स, बालों की स्टाइल आदि का वे पूरी तरह से विरोध करते हैं।
पहले घर की बहुएँ घूँघट में रहती थीं, सबके सामने बोलने में
संकोच करती थीं, परन्तु अब बहुएँ आधुनिक बन गई हैं और प्रसाधन सामग्री का खुलकर उपयोग
करती हैं। विद्यालयों में पहले के ज़माने में गुरुजी के सामने दण्डवत् होना पड़ता था,
टाट-पट्टी पर बैठना पड़ता था, परन्तु अब समय बदलने से पुरानी सभी परम्पराएँ बदल रही
हैं। बुजुर्गों को ये सब बातें अच्छी नहीं लगती हैं और अपने बीते हुए समय को ही अच्छा
मानते हैं। फलस्वरूप नयी पीढ़ी को वे उपेक्षा एवं शंका की दृष्टि से देखते हैं और
'समहाउ इंप्रॉपर' की स्थिति में रहते हैं।
8. यशोधर बाबू के बारे में आपकी क्या धारणा बनती
है? दिए गए तीन कथनों में से आप जिसके समर्थन में हैं, अपने अनुभवों और सोच के आधार
पर उसके लिए तर्क दीजिए
(क) यशोधर बाबू के विचार पूरी तरह से पुराने हैं और वे सहानुभूति
के पात्र नहीं हैं।
(ख) यशोधर बाबू में एक तरह का द्वंद्व है जिसके कारण नया उन्हें
कभी कभी खींचता तो है पर पुराना छोड़ता नहीं। इसलिए उन्हें सहानुभूति के साथ देखने
की ज़रूरत है।
(ग) यशोधर बाबू एक आदर्श व्यक्तित्व है और नयी पीढ़ी द्वारा
उनके विचारों का अपनाना ही उचित है।
उत्तर - यशोधर बाबू में एक तरह का द्वन्द्व है। इस कारण उन्हें
नये जमाने का रहन-सहन एवं चाल-चलन आदि अपनी ओर खींचता है, तो दूसरी तरफ उन्हें पुरानी
परम्पराएँ एवं संस्कार नहीं
छोड़ते हैं। इस तरह वे नये और पुराने संस्कारों के द्वन्द्व से घिरे रहते हैं। इस
कारण उनके प्रति सहानुभूति रखने की ज़रूरत है; क्योंकि वे ग्रामीण परिवेश से
दिल्ली में आये, किशनदा के परम्परागत आचरण से प्रभावित रहे, संयुक्त परिवार में भी
रहे तथा रिश्ते नातों के साथ सामाजिक कार्यों से भी जुड़े रहे।
वे अपने गाँव के नाते-रिश्तों, परम्परागत संस्कारों,
धर्म-कर्म तथा समाज-सेवा आदि से जुड़े थे। अपनी बहिन के सुख-दुःख में सहभागी बनते
थे। इस तरह वे सिद्धान्तों और मूल्यों को महत्त्व देते थे, परन्तु परिवार में
बच्चों के व्यवहार से, 'सिल्वर वैडिंग' के आयोजन से तथा अन्य कारणों से नयेपन की
ओर भी कुछ आकर्षित होने लगे थे। इस सम्बन्ध में हमारा मानना है कि पुरानी एवं नयी
पीढ़ी के मध्य का यह द्वन्द्व एक ही पात्र में पूर्णतया सही दिखाई देता है। अतः
यशोधर बाबू सहानुभूति के पात्र हैं।