2. जूझ
लेखक परिचय :-
1. आनंद यादव
2. पूरा नाम आनंद रतन यादव
3. जन्म 30 नवंबर, 1935, कागल, कोल्हापुर (महाराष्ट्र) में।
4. मृत्यु - 27 नवंबर, 2016, पुणे में।
5. इन का प्रारंभिक जीवन अत्यंत संघर्षमय रहा है।
6. मराठी एवं संस्कृत साहित्य में स्नातकोत्तर की डिग्री
प्राप्त कर डॉ. आनंद यादव बहुत समय तक पुणे विश्वविद्यालय में मराठी विभाग में कार्यरत
रहे।
7. आनंद यादव मूलतः मराठी लेखक हैं।
8. प्रमुख रचनाएँ - नटरंग, जूझ । अब तक लगभग 25 रचनाएँ प्रकाशित
9. भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित 'नटरंग' हिंदी पाठकों के
बीच भी काफी चर्चित रही।
10. इनके द्वारा रचित आत्मकथात्मक उपन्यास 'जुझ' सन्
1990 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित है।
11. आनंद यादव का उपन्यास के अतिरिक्त कविता - संग्रह, समालोचनात्मक
निबंध आदि पुस्तकें भी प्रकाशित हैं।
पाठ का सारांश:-
'जूझ' कहानी मराठी उपन्यासकार आनंद रतन यादव के बहुचर्चित
आत्मकथात्मक उपन्यास 'जूझ' का एक अंश है। इस उपन्यास को सन् 1990 में साहित्य अकादमी
पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। आत्मकथात्मक शैली के इस उपन्यास में ग्रामीण
जीवन के खुरदरे यथार्थ का मर्मस्पर्शी चित्रण है।
'जूझ' उपन्यास के इस अंश में कथानायक 'आनंदा' (आनंद यादव)
के किशोर-जीवन की संघर्ष-गाथा है। निम्न मध्यवर्गीय कृषक-पुत्र आनंदा को जीवन की अनिवार्य
आवश्यकताओं के लिए भी संघर्ष करना पड़ता है। कक्षा चार की पढ़ाई के बाद पिता ने उसे
पाठशाला जाने से रोक दिया है। उसे खेत में पानी देना, ढोर चराना तथा कोल्हू पर काम
करना पड़ता है। पिता की सोच के विपरीत उसे खेती में कोई भविष्य नहीं दिखता है। वह आगे
पढ़कर नौकरी में लगना चाहता था। वह अपनी बात पिता से कहने में डरता है। इसलिए वह
माँ से बात करता है। माँ भी उसके पिता को 'बरहेला सूअर' मानती हुई बात करने से
डरती है। लेखक माँ के साथ गाँव के सबसे प्रतिष्ठित व्यक्ति दत्ता जी राव देसाई के
पास जाता है। वहाँ माँ ने दीवार के साथ बैठकर उन्हें इसकी पढ़ाई की इच्छा के बारे
में बताया और अपने पति की कामचोरी एवं बाजार में रखमाबाई के पास वक्त गुजारने की
बात बतलायी। खुद लेखक ने भी अपनी इच्छा बतलायी। दत्ता जी राव देसाई भी उसका साथ
देने एवं उसके पिता को समझाने के लिए तैयार हो जाते हैं। योजनानुसार दत्ता जी राव
के पास किसी बहाने से उसके पिता को भेजा जाता है। थोड़ी देर में लेखक (आनंदा) भी
पहुँचता है। वहाँ देसाई सरकार के सामने लेखक निडर होकर बतलाता है कि उसके पिता ने
उसे पाठशाला जाने से रोक दिया है। देसाई सरकार उसके पिता को कामचोरी तथा पढ़ाई
छुड़वाने के लिए फटकारते हैं तथा उस पर बालक को पढ़वाने के लिए दबाव डालते हैं।
पिता बात मान लेते हैं किन्तु सुबह उठकर खेतों में पानी देने तथा शाम को ढोर चराने
की शर्त पर पाठशाला जाने की इजाजत देते हैं।
पाँचवीं की कक्षा में उसकी गली के दो लड़कों को छोड़ सभी
अपरिचित थे। साथ ही सभी लड़के कम उम्र के थे। कक्षा के एक शरारती लड़के ने उसकी
वेशभूषा का मजाक भी उड़ाया। उसका गंदा गमछा छीनकर शरारती लड़का चह्वाण मास्टर साहब
की नकल करता है तथा उनकी टेबल पर ही छोड़ देता है। इसी तरह उसकी धोती भी लड़कों ने
खोल दी थी। अपनी स्थिति उसे खिलौना के लिए बने कौआ के बच्चे की तरह दिखती है जिसे
कौए जुटकर चारों ओर से चोंच मारते हैं। उसकी अपनी पाठशाला ही उसे चोंच मार-मार कर
परेशान कर रही थी। उसने माँ से कहकर एक नयी टोपी और चड्डी मँगवा ली। स्कूल में
मंत्री नामक गणित-अध्यापक शरारती लड़कों की पिटाई करने लगे, जिससे कक्षा में शरारत
कम हुई। कक्षा के मॉनिटर वसंत पाटिल से लेखक दोस्ती करता है। वह उसी की तरह पढ़ने
का प्रयास करता है। धीरे-धीरे लेखक भी पढ़ने में होशियार हो गया। मास्टर जी भी उसे
प्रसन्न होकर 'आनंदा' नाम लेकर पुकारने लगे, जो नाम केवल माँ ही कहती थी।
न. वा. सौंदलगेकर मास्टर का मराठी कविता पढ़ाने का ढंग
लेखक को बहुत पसंद था। मास्टर स्वयं भी कविता लिखते थे। आनंदा (लेखक) खेत में काम
करते हुए मास्टर की ही भाँति हाव-भाव, यति-गति और आरोह-अवरोह के अनुसार गाने का
प्रयास करता है। कविता पढ़ते रहने से उसे अकेलेपन की ऊब नहीं होती। लेखक के
कविता-गायन से मास्टर इतना प्रभावित हुए कि उसे विद्यालय-समारोह में भी गाने के
लिए कहा। मराठी मास्टर कक्षा में कवियों के संस्मरण भी सुनाते थे, जिसे जानकर लेखक
को विश्वास हो गया कि कवि कोई अलौकिक व्यक्ति नहीं, बल्कि हाड़-मांस का मनुष्य ही
होता है। उसे भी अपने अंदर कवि के होने का अहसास होता है। वह भी तुकबन्दी करने
लगता है। अपनी रची कविता वह मास्टरजी को दिखाता था
कभी तो अति उत्साह में रात को भी दिखाने पहुँच जाता था।
मास्टर जी उसे कविता का शास्त्र समझाते थे, छंद, अलंकार, लय आदि का ज्ञान कराते
थे, शुद्ध भाषा का महत्त्व समझाते थे। इस प्रकार लेखक को अपनी कवि प्रतिभा तराशने
का अवसर मिला। उसे शब्दों के साथ खेलने में आनंद आने लगा।
प्रश्नोत्तर अभ्यास
1. 'जूझ' शीर्षक के औचित्य पर विचार करते हुए
यह स्पष्ट करें कि क्या यह शीर्षक कथानायक की किसी केन्द्रीय चारित्रिक विशेषता को
उजागर करता है?
उत्तर :- किसी भी रचना का शीर्षक उसके मूल विषय- वस्तु
को दर्शाता है। इस कहानी में कथानायक आनंदा के विभिन्न स्तर पर संघर्ष को चित्रित
किया गया है। कथानायक आनंदा (लेखक) के जुझारू व्यक्तित्व का चित्रण पूरी कथा में
है। यही जुझारूपन लेखक के व्यक्तित्व की केन्द्रीय विशेषता है। वह स्वयं व्यक्तिगत
स्तर, पारिवारिक स्तर, सामाजिक स्तर, विद्यालय में सहपाठियों के स्तर, आर्थिक स्तर
आदि सभी स्तर पर जूझते हुए दिखाई पड़ता है। उसकी पढ़ाई की इच्छा एवं कुछ कर गुजरने
की अभिलाषा ही उसके संघर्ष को बल देती है। अतः इस उपन्यास अंश का शीर्षक 'जूझ'
बहुत उचित है।
2. स्वयं कविता रच लेने का आत्मविश्वास लेखक
के मन में कैसे पैदा हुआ?
उत्तर :- श्री सौंदलगेकर मास्टर का मराठी कविता पढ़ाने
की शैली ने लेखक को कविता के प्रति रुचि जगायी। उनका सस्वर काव्यपाठ, छंद, लय,
गति, अलंकार आदि का अध्यापन लेखक को कविता समझने में सहायक होता है। स्वयं श्री
सौंदलगेकर की कविता एवं अन्य कवियों के संस्मरण से लेखक को विश्वास हुआ कि कवि
किसी दूसरे लोक के नहीं, बल्कि मनुष्य ही होते हैं। मास्टर जी की 'मालती की बेल'
कविता से लेखक को लगा कि वह भी अपने आस-पास की चीजों पर कविता रच सकता है। पाठशाला
के समारोह में गायन तथा मराठी मास्टर के प्रोत्साहन और शाबाशी से लेखक में आत्मविश्वास
पैदा हुआ कि वह भी कविता रच सकता है।
3. श्री सौंदलगेकर के अध्यापन की उन विशेषताओं
को रेखांकित करें जिन्होंने कविताओं के प्रति लेखक के मन में रुचि जगाई।
उत्तर: मास्टर श्री सौंदगलेकर का कविता पढ़ाने की शैली
लेखक को अत्यधिक प्रभावित करता है। कविता पढ़ाते समय वे स्वयं रम जाते थे। वे अपने
सुरीले गले से छंद की अच्छी गति के साथ पहले गायन करते थे। फिर अभिनय के साथ कविता
का भाव ग्रहण कराते थे। नयी पुरानी मराठी कविताओं तथा अँग्रेजी कविताओं को सुनाकर
वे कविता के लय, ताल और गति का बोध कराते थे। वे कवि यशवंत, बा. भ. बोरकर, भा. रा.
ताँबे, गिरीश, केशवकुमार आदि कवियों के साथ अपनी मुलाकात का संस्मरण भी सुनाते थे।
मास्टर सौंदगलेकर स्वयं भी अपनी रचना कक्षा में सुनाते थे। उनकी एक कविता जो उनके
दरवाजे पर पर छायी मालती की बेल पर थी, उसे सुनकर लेखक को लगा कि कवि भी हाड़-मांस
का मनुष्य होता है, अलौकिक नहीं। उसे लगने लगा कि वह भी अपने आसपास की चीजों,
पेड़-पौधों, फसलों, पशुओं आदि को कविता के माध्यम से चित्रित कर सकता है। कक्षा के
बाहर अपने घर पर भी रात के समय भी जब लेखक अपनी रचना लेकर मास्टर के पास पहुँचता
तो वे उसे शाबाशी देते, कविता-शास्त्र, अलंकार, शुद्ध भाषा प्रयोग, संस्कृत शब्दों
के प्रयोग आदि के संबंध में लेखक को समझाते रहते थे। इस तरह लेखक को कवि बनाने में
मास्टर श्री सौंदलगेकर का विशेष योगदान है।
4. कविता के प्रति लगाव से पहले और उसके बाद
अकेलेपन के प्रति लेखक की धारणा में क्या बदलाव आया?
उत्तर :- कविता के प्रति लगाव से पहले जब लेखक खेतों में
पानी लगाता या ढोर चराता या अन्य काम करता तो उसे अकेलापन बहुत कष्ट देता था,
अकेलेपन के कारण वह बहुत ऊब जाते थे। उसकी इच्छा होती थी कि किसी के साथ
बोलते-गपशप करते, हँसी मजाक करते हुए काम करे।
कविता के प्रति लगाव के बाद उसे अकेलेपन से ऊब नहीं
होती। उल्टे उसे एकांत अच्छा लगने लगा, ताकि वह अपनी रची हुई कविता को जोर से गा
सके, अभिनय कर सके और थुई थुई करके नाच सके।
5. आपके खयाल से पढ़ाई-लिखाई के संबंध में
लेखक और दत्ताजी राव का रवैया सही था या लेखक के पिता का? तर्क सहित उत्तर दें।
उत्तर :- पढ़ाई-लिखाई के संबंध में लेखक की सोच थी कि पढ
जाऊँगा तो नौकरी लग जायेगी, चार पैसे हाथ में रहेंगे तो बिठोबा अण्णा की तरह कोई
कारोबार कर सकेंगे। दत्ता जी राव भी लेखक का उत्साह देखकर उसे पढ़ाई के लिए
प्रोत्साहित करते हैं। जबकि लेखक के पिता को उसकी पढ़ाई-लिखाई पसंद नहीं है। वह
लेखक के पढ़ाई-लिखाई का विरोध करता है। मेरे विचार में लेखक और दत्ता जी राव दोनों
सही हैं, क्योंकि शिक्षा व्यक्ति को उसकी प्रतिभा निखारने तथा अपना जीवन सँवारने
का अवसर देती है, शिक्षा ही वह आँख होती है जो सही-गलत की पहचान कराती है।
6. दत्ता जी राव से पिता पर दबाव डलवाने के
लिए लेखक और उसकी माँ को एक झूठ का सहारा लेना पड़ा। यदि झूठ का सहारा न लेना
पड़ता तो आगे का घटनाक्रम क्या होता? अनुमान लगाएँ।
उत्तर :- गाँव के सबसे प्रतिष्ठित और प्रभावशाली व्यक्ति
दत्ता जी राव देसाई से पिता पर दबाव डलवाने के लिए लेखक और उसकी माँ ने एक झूठ का
सहारा लिया। माँ लेखक के पिता को दत्ता जी राव देसाई के पास भेजने के लिए झूठ
बोलती है। वह यदि झूठ न बोलती तो देसाई सरकार पिता पर दबाव न डाल पाते और लेखक की
पाठशाला जाने की इच्छा धरी-की-धरी रह जाती। न तो वह पढ़ पाता और न ही 'जूझ' जैसा
प्रेरणादायक उपन्यास लिख पाता।
वस्तुनिष्ठ प्रश्न-उत्तर
प्रश्न 1. 'जूझ' शीर्षक का पाठ के संदर्भ
में क्या औचित्य है ?
(क) पाठ
में बालक के जीवन-संघर्ष का वर्णन है।
(ख) पाठ में खेत में काम करने का संघर्ष।
(ग) पाठ में ढोर चराने का संघर्ष है।
(घ) पाठ में शरारती बच्चे अन्य बच्चों को परेशान करते।
प्रश्न 2. 'जूझ' पाठ के लेखक का नाम
बताइये?
(क) आंनद गुप्ता
(ख) आनंद रतन यादव
(ग) आनंदा सिंह
(घ) राजेश जोशी
प्रश्न 3. निम्नलिखित में से 'जूझ' पाठ का
कथानायक कौन है?
(क) दत्ता जी राव
(ख) आनंदा
(ग)
लेखक का दादा
(घ)
श्री सौंदलगेकर
प्रश्न 4. 'जूझ' नामक पाठ किस भाषा का हिन्दी अनुवाद है?
(क)
ब्रज भाषा का
(ख)
खड़ी बोली हिन्दी का
(ग) मराठी भाषा का
(घ)
अवधी भाषा का
प्रश्न 5. बालक आनंदा के पिता सबसे पहले कोल्हू चलाना क्यों चाहते
हैं?
(क) ईख की फसल का लाभ सबसे
पहले अधिक लेने के लिए
(ख)
खेती के कार्य को सबसे पहले खत्म करने के लिए
(ग)
अपने बेटे आनंदा को परेशान करने के लिए
(घ)
दत्ता जी राव के कहने के अनुसार
प्रश्न 6. आनंदा के पिता का व्यवहार कैसा
था?
(क) सहृदय व दयालु
(ख) मेहनती व जुझारू
(ग) कठोर
व अशिक्षित
(घ) विनम्र व ईमानदार
प्रश्न 7. देसाई के बाड़े का बुलावा दादा
के लिए कैसी बात थी?
(क) सम्मान की बात थी
(ख) भय की बात थी
(ग) अपमाजनक
(घ) शोभनीय बात थी
प्रश्न 8. 'श्री सौंदलगेकर' बालक आनंदा को
किस विषय का ज्ञान देते थे?
(क) मराठी
साहित्य की रचनाओं का
(ख) गणित विषय का
(ग) अंग्रेजी विषय की कविताओं का
(घ सामाजिक विज्ञान का
प्रश्न 9. लेखक बचपन में किस प्रकार
कविताओं की रचना किया करता था?
(क) भैसों की पीठ पर
(ख)
ढोर को चराते हुए
(ग) पत्थर की शिला पर कंकड़ से
(घ) उपरोक्त
सभी प्रकार से
प्रश्न 10. आनंदा को पढ़ने भेजने में
मुख्य योगदान किसका था?
(क) लेखक की माँ का
(ख) दत्ता जी राव का
(ग) लेखक के दादा का
(घ) आनंदा के अध्यापक का
प्रश्न 11. लेखक का दादा जल्दी कोल्हू
क्यों चलाता था?
(क) जल्दी काम खत्म करने के लिए
(ख) अधिक
पैसे के लिए
(ग) अपनी आवारागर्दी के लिए
(घ) आराम करने के लिए
प्रश्न 12. लेखक की कक्षा के मॉनीटर का
नाम क्या था?
(क) वसंत पाटील
(ख) चव्हाण पाटील
(ग) मनोहर पाटील
(घ) राव पाटील
प्रश्न 13. कहानी के शीर्षक 'जूझ' का अर्थ
है-
(क) संघर्ष
(ख) चालाकी
(ग) मेहनत
(घ) कठिनाई
प्रश्न 14. 'जूझ' उपन्यास मूलतः किस भाषा
में रचित है?
(क) मराठी
(ख) गुजराती
(ग) अवधी
(घ) ब्रज