12th Hindi Core 15. चार्ली चैप्लिन यानी हम सब JCERT/JAC Reference Book

12th Hindi Core 15. चार्ली चैप्लिन यानी हम सब JCERT/JAC Reference Book

 

12th Hindi Core 15. चार्ली चैप्लिन यानी हम सब JCERT/JAC Reference Book

15. चार्ली चैप्लिन यानी हम सब

जीवन-परिचय

जन्म - 9 फरवरी 1940 ई०, छिन्दवारा (मध्य प्रदेश)

मृत्यु - 19 सितम्बर 2018 ई०, ब्रेन हैमरेज से

रचनाएँ -

एक गैर रूमानी समय में

खुद अपनी आँख से

सबकी आवाज़ के पर्दे में,

पिछला बाकी (कविता-संग्रह);

आलोचना की पहली किताब (आलोचना)

सिनेमा पढ़ने के तरीके (सिने आलोचना)

मरु प्रदेश और अन्य कविताएँ (टी. एस. इलियट),

यह चाकू समय (आँतिला योझेफ),

कालेवाला (फिनलैंड का राष्ट्रकाव्य) (अनुवाद)

प्रमुख पुरस्कार :

रघुवीर सहाय सम्मान,

हिंदी अकादमी (दिल्ली) का सम्मान,

शिखर सम्मान,

मैथिलीशरण गुप्त सम्मान,

फिनलैंड का राष्ट्रीय सम्मान नाइट ऑफ़ दि ऑर्डर ऑफ़ दि व्हाइट रोज़

एक भारतीय कवि, अनुवादक, साहित्यकार तथा फ़िल्म समीक्षक, पत्रकार व पटकथा लेखक थे।

वे हिन्दी तथा अंग्रेजी दोनों भाषाओं में लिखते थे। वे अंग्रेजी साहित्य को विश्वविद्यालय स्तर पर पढ़ाते थे।

उन्होंने साहित्य अकादमी में कार्यक्रम सचिव का भी पद सम्भाल चुके हैं तथा वे हिन्दी दैनिक नवभारत टाइम्स के लखनऊ, जयपुर तथा नई दिल्ली में सम्पादक भी रह चुके थे

5 समकालीन हिंदी कविता और आलोचना में विष्णु खरे एक विशिष्ट हस्ताक्षर हैं।

उन्होंने हिंदी जगत को अत्यंत गहरी विचारपरक कविताएँ दी हैं, तो साथ ही बेबाक आलोचनात्मक लेख भी दिए हैं।

विश्व साहित्य का गहन अध्ययन उनके रचनात्मक और आलोचनात्मक लेखन में पूरी रंगत के साथ दिखलाई पड़ता है।

विश्व सिनेमा के भी वे गहरे जानकार हैं और पिछले कई वर्षों से लगातार सिनेमा की विधा पर गंभीर लेखन करते रहे हैं।

1971-73 के अपने विदेश-प्रवास के दरम्यान उन्होंने तत्कालीन चेकोस्लोवाकिया की राजधानी प्राग के प्रतिष्ठित फ़िल्म क्लब की सदस्यता प्राप्त कर संसार भर की सैकड़ों उत्कृष्ट फ़िल्में देखीं। यहाँ से सिनेमा-लेखन को वैचारिक गरिमा और गंभीरता देने का उनका सफ़र शुरू हुआ।

'दिनमान', 'नवभारत टाइम्स', 'दि पायोनियर', 'दि हिंदुस्तान', 'जनसत्ता', 'दैनिक भास्कर', 'हंस', 'कथादेश', जैसी पत्र-पत्रिकाओं में उनका सिनेमा विषयक लेखन प्रकाशित होता रहा है।

वे उन विशेषज्ञों में से हैं जिन्होंने फ़िल्म को समाज, समय और विचारधारा को आलोकित किया।

पाठ परिचय

यह पाठ हास्य फिल्मों के महान अभिनेता और निर्देशक चार्ली चैप्लिन के कलाकर्म की विशेषताओं पर आधारित है। इसका सार इस प्रकार है -

1. चार्ली का कलाकर्म- सन् 1989 ई. में चार्ली चैप्लिन की जन्मशती मनाई गई। उनकी पहली फिल्म 'मेकिंग ए लिविंग' के पचहत्तर वर्ष पूरे हो गये। अब टेलीविजन और वीडियो के प्रसार से सारा संसार चालीं की फिल्में देख रहा है। फिर भी उनकी कई फिल्में दर्शकों को देखने को नहीं मिली हैं। इस कारण चैप्लिन के कलाकर्म का सही आकलन अभी नहीं हो पाया है।

2. चार्ली की फिल्मों का आधार- चार्ली चैप्लिन की फिल्में भावनाओं पर टिकी हैं, बुद्धि पर नहीं। इस कारण पागल से लेकर महान् प्रतिभा वाले व्यक्ति उनकी फिल्मों का रसास्वादन कर सकते हैं। चैप्लिन ने फिल्म-कला को लोकतान्त्रिक बनाया तथा उनसे वर्ण-व्यवस्था को भी तोड़ा। चैप्लिन ने अपनी फिल्मों के द्वारा यह भी बताया कि कोई भी व्यक्ति अपने ऊपर हँसना पसन्द नहीं करता और कमियाँ सभी के जीवन में रहती हैं।

3. चार्ली का परिचय- चार्ली की माँ एक परित्यक्ता और दूसरे दर्जे की स्टेज अभिनेत्री थी। वह बाद में पागल हो गई थी। चार्ली के पिता यहूदी थे तो नानी खानाबदोश। बचपन में घर में निर्धनता थी। बड़ा होने पर धनपतियों तथा सामन्तों से चार्ली को अनादर ही मिला। उसका जीवन घुमन्तू जैसा था। इस तरह का परिवेश पाने से चार्ली ने करोड़पति हो जाने पर भी अपने जीवन में बदलाव नहीं किया। इसी कारण उनकी फिल्मों में उसी छवि का समावेश हुआ है।

4. चैप्लिन की लोकप्रियता- चार्ली चैप्लिन पर कई फिल्म समीक्षकों तथा विद्वानों ने कुछ लिखना चाहा, परन्तु उनका मूल्यांकन आसान नहीं है। खुद को चार्ली में देखना और नियत सीमाओं में बाँधना सम्भव नहीं है। इस कारण चार्ली सभी दर्शकों को अपना और जाना-पहचाना लगता है। यह स्थिति उसकी लोकप्रियता को सिद्ध करती है।

5. बचपन की घटनाओं का प्रभाव- चार्ली पर बचपन की घटनाओं का प्रभाव ऐसा रहा कि उसने बुद्धि की अपेक्षा भावना को चुना। एक बार अत्यधिक बीमार रहने पर उसकी माता ने बाइबिल से ईसा मसीह का जीवन-वृत्त पढ़कर सुनाया। सूली पर चढ़ने के प्रसंग से चार्ली में स्नेह और करुणा का भाव जागा। दूसरी घटना घर के समीप चलने वाले कसाईखाना से सम्बन्धित थी, जिसमें भेड़ों को काटा जाता था। एक भेड़ के भागने तथा पकड़े जाने के दृश्य से चार्ली का हृदय हास्य के साथ करुणा से भर गया। यही घटना उनकी फिल्मों में त्रासदी और हास्योत्पादक तत्त्वों के सामंजस्य का आधार बनी।

6. भारतीय कला और सौन्दर्यशास्त्र- भारतीय कला और सौन्दर्यशास्त्र का सम्बन्ध रस से है। इस सिद्धान्त में करुणा हास्य में नहीं बदलती। जीवन में हर्ष और विषाद आते रहते हैं, परन्तु हास्य व करुणा में निकटता नहीं दिखाई देती है। रामायण, महाभारत आदि रचनाओं में करुणा का समावेश हास्य के विपरीत हुआ है, उनमें सामंजस्य नहीं है। चैप्लिन ने इस सिद्धान्त को बदला। इस कारण उसका हास्य कब करुणा में और कब करुणा हास्य में बदल जायेगा, यह भारतीयों के लिए अपरिचित ही है।

7. चार्ली के सौन्दर्यशास्त्र का प्रभाव- चार्ली का हास्य एवं करुणा के इस सिद्धान्त का काफी प्रभाव रहा है। इससे प्रभावित होकर राजकपूर ने 'आवारा' फिल्म बनायी, जो 'दि टैम्प' का शब्दानुवाद ही नहीं, अपितु चार्ली का भारतीयकरण था। फिल्मों में नायकों को अपने पर हँसने की परम्परा चलने से देवानन्द, दिलीपकुमार, शम्मी कपूर, अमिताभतथा श्रीदेवी ने भी चार्ली जैसे किरदार निभाये। इससे चार्ली की अभिनय-कला का सहज स्मरण हो जाता है।

8. चार्ली की फिल्मों की विशेषताएँ- चार्ली चैप्लिन द्वारा निर्मित फिल्मों की अनेक विशेषताएँ हैं। चार्ली की फिल्मों में -

• प्रायः भाषा का प्रयोग न होना

मानवीय व्यक्तित्व का प्रदर्शन

चित्रण की सार्वभौमिकता

• चिर-युवा स्वरूप का प्रदर्शन

• अद्भुत प्रदर्शन की क्षमता

सार्वदेशिक संस्कृति का समावेश तथा

• सार्वजनिक वेशभूषा, स्वरूप आदि प्रमुख बातों का समावेश सुन्दर कलात्मक रूप से किया गया है।

9. चैप्लिन का भारत में महत्त्व- भारत में स्वयं पर हँसने की, स्वयं को हास्य का पात्र बनाने की परम्परा नहीं है। चार्ली स्वयं पर सबसे अधिक हँसता है। भारत में चार्ली का महत्त्व इस कारण है कि वह बड़े-बड़े व्यक्तियों पर हँसने का मौका देता है। जब वह स्वयं को गर्वोन्मत्त, ज्यादा शक्तिशाली और सभ्यता-संस्कृति एवं समृद्धि की प्रतिमूर्ति के रूप में दिखाता है, तब हास्य की नयी सृष्टि करता है। वह महानतम क्षणों में अपमानित होना जानता हैं। हम भी उसके प्रभाव से शूरवीर क्षणों में क्लैव्य और पलायन के शिकार हो जाते हैं। कभी-कभार लाचार होते हुए भी विजयी बन जाते हैं। इन सब कारणों से हम सब सुपरमैन नहीं, चार्ली हैं, हमारा चेहरा भी चार्ली जैसा हो जाता है।

अभ्यास

पाठ के साथ

प्रश्न 1. लेखक ने ऐसा क्यों कहा है कि अभी चैप्लिन पर करीब 50 वर्षों तक काफी कुछ कहा जाएगा?

उत्तर : चार्ली चैप्लिन के विषय में अभी पचास वर्षों तक काफी कुछ कहा जायेगा, क्योंकि चार्ली ने भारतीय जन-जीवन पर कितना प्रभाव छोड़ा है, इसका अभी तक मूल्यांकन नहीं हुआ है तथा चार्ली की कुछ फिल्में या रीलें ऐसी मिली हैं, जो अभी तक प्रदर्शित नहीं हुई हैं। इस कारण उनकी भी चर्चा होगी

प्रश्न 2. 'चैप्लिन ने न सिर्फ फिल्म-कला को लोकतान्त्रिक बनाया बल्कि दर्शकों के वर्ग तथा वर्ण व्यवस्था को तोड़ा।' इस पंक्ति में लोकतान्त्रिक बनाने का और वर्ण-व्यवस्था तोड़ने का क्या अभिप्राय है? क्या आप इससे सहमत हैं?

उत्तर : चार्ली चैप्लिन ने दर्शकों के किसी वर्ग-विशेष या वर्ण-विशेष को महत्त्व न देकर अपनी फिल्मों को आम आदमी से जोड़कर लोकतान्त्रिक रूप दिया। इस तरह चैप्लिन ने फिल्म जगत में चल रही वर्ण-व्यवस्था को तोड़ा। चैप्लिन का किसी राजनीतिक विचारधारा, वाद या उच्च जाति-वर्ग आदि से लगाव नहीं था। इस कारण कलाकारों की रूढ़ मान्यताओं को न मानकर चैप्लिन ने ऐसी फिल्में बनायीं, जो समाज के सर्वसाधारण लोगों एवं सभी देशों में लोकप्रिय हुईं।

प्रश्न 3. लेखक ने चार्ली का भारतीयकरण किसे कहा और क्यों? गाँधी और नेहरू ने भी उनका सान्निध्य क्यों चाहा?

उत्तर: लेखक ने राजकपूर द्वारा बनाई गई 'आवारा' फिल्म को चार्ली का भारतीयकरण कहा। राजकपूर ने 'दि ट्रैम्प' का शब्दानुवाद किया था। 'आवारा' एवं 'श्री 420' फिल्म में राजकपूर ने चार्ली की परम्परा का अनुकरण कर दर्शकों को खूब हँसाया। इसी क्रम में देवानन्द, दिलीप कुमार, शम्मी कपूर, अमिताभ बच्चन तथा श्रीदेवी ने भी स्वयं पर हँसने-हँसाने की परम्परा को आगे बढ़ाया। महात्मा गाँधी और नेहरूजी भी कभी-कभी चार्ली की तरह अपने पर हँसते थे। गाँधीजी चैप्लिन के साथ रहकर प्रसन्न होते थे। वे चार्ली की इस कला के बड़े प्रशंसक भी थे।

प्रश्न 4. लेखक ने कलाकृति और रस के सन्दर्भ में किसे श्रेयस्कर माना है और क्यों? क्या आप कुछ ऐसे उदाहरण दे सकते हैं जहाँ कई रस साथ-साथ आए हों?

उत्तर : लेखक ने माना है कि कलाकृति में एक से अधिक रस हों। इससे कलाकृति समृद्ध और रुचिकर बनती है। जीवन में हर्ष और विषाद के क्षण तो आते रहते हैं। उसी प्रकार काव्यों में भी श्रृंगार और वीर, रौद्र और वीर, हास्य और श्रृंगार आदि रसों का समावेश एक साथ किया जाता है। परन्तु रसशास्त्र में हास्य और करुण को तथा श्रृंगार और शान्त रस को परस्पर विरोधी बताया गया है। संस्कृत के नाटकों में एक रस मुख्य तथा अन्य रस सहयोगी रूप में रखे गये हैं।

प्रश्न 5. जीवन की जद्दोजहद ने चार्ली के व्यक्तित्व को कैसे सम्पन्न बनाया?

उत्तर : चार्ली चैप्लिन को बचपन में परित्यक्ता माँ के साथ बहुत गरीबी में रहना पड़ा। बीमार होने पर माँ ने उसे स्नेह, करुणा और मानवता का पाठ पढ़ाया। बाद में माँ पागल हो गई तो उसे भी संभालना पड़ा। चार्ली को बड़े बड़े पूँजीपतियों, सामन्तों तथा उद्योगपतियों ने बहुत दुत्कारा-अपमानित किया। जटिल परिस्थितियों से सतत संघर्ष करके तथा साथ ही घुमन्तू रहने पर बड़े-बड़े लोगों, शासकों एवं पूँजीपतियों के जीवनगत यथार्थ को नजदीक से देखा और बाद में करोड़पति हो जाने पर भी अपने मूल्यों पर स्थिर रहा।

प्रश्न 6. चार्ली चैप्लिन की फिल्मों में निहित त्रासदी/करुणा/हास्य का सामंजस्य भारतीय कला और सौन्दर्यशास्त्र की परिधि में क्यों नहीं आता?

उत्तर : भारतीय कला और सौन्दर्यशास्त्र रस को महत्त्व देता है, परन्तु इसमें हास्य और करुण रस को परस्पर विरोधी मानकर दोनों को एकसाथ नहीं रखा जाता है। इसके विपरीत चार्ली चैप्लिन की फिल्मों में त्रासदी, करुणा और हास्य का सामंजस्य दिखाई देता है। भारतीय काव्यशास्त्र में हास्य दूसरों को लेकर होता है, हँसी में करुणा की स्थिति नहीं रहती है। इसी कारण चार्ली चैप्लिन की फिल्मों में निहित त्रासदी, करुणा एवं हास्य भारतीय कला एवं सौन्दर्यशास्त्र की परिधि में नहीं आता है।

प्रश्न 7. चार्ली सबसे ज्यादा स्वयं पर कब हँसता है?

उत्तर : चार्ली स्वयं पर सबसे ज्यादा तब हँसता है. जब वह स्वयं को गर्वोन्नत, आत्मविश्वास से लबरेज, सफलता, सभ्यता, संस्कृति तथा समृद्धि की प्रतिमूर्ति, दूसरों से अधिक शक्तिशाली तथा श्रेष्ठ रूप में दिखाता है। तब वह ऐसा अवसर निर्मित कर देता है कि सारी गरिमा को त्याग कर हास्य का पात्र बन जाता है।

पाठ के आसपास

प्रश्न 1. आपके विचार से मूक और सवाक् फिल्मों में से किसमें ज्यादा परिश्रम करने की आवश्यकता है और क्यों?

उत्तर : हमारे विचार से मूक फिल्मों में ज्यादा परिश्रम करने की आवश्यकता है। मूक फिल्मों के सभी भावों को शारीरिक चेष्टाओं द्वारा ही व्यक्त किया जाता है, जो कि अत्यधिक श्रम-साध्य है। जबकि सवाक् फिल्मों में वाणी अथवा संवादों के द्वारा करुणा, स्नेह, शोक आदि भावों को व्यक्त करना काफी सरल रहता है।

प्रश्न 2. सामान्यतः व्यक्ति अपने ऊपर नहीं हँसते, दूसरों पर हँसते हैं। कक्षा में ऐसी घटनाओं का जिक्र कीजिए जब

(क) आप अपने ऊपर हँसे हों;

(ख) हास्य करुणा में या करुणा हास्य में बदल गई हो।

उत्तर : (क) एक बार मैंने अपने मित्र को मजाक में बेवकूफ बनाने का प्रयास किया, परन्तु उसने बातों-बातों में मुझे ही बेवकूफ बना दिया। तब मैं अपने आप पर ही हँसने लगा।

(ख) एक बार एक भिखारी जैसा व्यक्ति नशे में धुत्त होकर घूम रहा था। उसकी वेशभूषा और बोलने के ढंग पर सब बच्चे खूब हँस रहे थे और उसे चिढ़ा रहे थे। तभी एक कुत्ता उसे देखकर भौंकने लगा, तो वह भागने लगा उसी समय वह एक गाड़ी से टकरा गया और बेहोश होकर सड़क पर गिर पड़ा। ऐसा लगा कि उसके जीवन का अन्त हो गया है। तब सारा हास्य करुणा में बदल गया।

प्रश्न 3. 'चार्ली हमारी वास्तविकता है, जबकि सुपरमैन स्वप्न' आप इन दोनों में खुद को कहाँ पाते हैं?

उत्तर : चार्ली चैप्लिन की फिल्मों में हमारे जीवन की वास्तविकता का वर्णन है। उसका अभिनय हमारे जीवन से जुड़ा हुआ है, उसमें हम अपना रूप देखते हैं। सुपरमैन की संकल्पना तो एक स्वप्न है कल्पना है, जिसकी पूर्ति यथार्थ जीवन में सम्भव नहीं है। अतः हम स्वयं को सुपरमैन के रूप में नहीं देख पाते हैं।

प्रश्न 4. भारतीय सिनेमा और विज्ञापनों ने चार्ली की छवि का किन-किन रूपों में उपयोग किया है? कुछ फिल्में (जैसे-आवारा, श्री 420, मेरा नाम जोकर, मिस्टर इंडिया और विज्ञापनों (जैसे चैरी ब्लॉसम) को गौर से देखिए और कक्षा में चर्चा कीजिए।

उत्तर : विद्यार्थी स्वयं चर्चा करें।

प्रश्न 5. आजकल विवाह आदि उत्सव समारोहों एवं रेस्तराँ में आज भी चार्ली चैप्लिन का रूप धरे किसी व्यक्ति से आप अवश्य टकराए होंगे। सोचकर बताइए कि बाजार ने चार्ली चैप्लिन का कैसा उपयोग किया है?

उत्तर : आजकल विवाहोत्सवों, समारोहों एवं होटलों में चार्ली के रूप एवं वेशभूषा में सुसज्जित व्यक्ति को मेहमानों के स्वागतार्थ रखा जाता है। लोगों के ध्यानाकर्षण एवं हँसी मजाक के लिए भी बाजार ने चार्ली चैप्लिन की सहायता को अनदेखा करके उसके नकली रूप का उपयोग किया है।

भाषा की बात

प्रश्न 1..... तो चेहरा चार्ली-चार्ली हो जाता है। वाक्य में चार्ली शब्द की पुनरुक्ति से किस प्रकार की अर्थ छटा प्रकट होती है? इसी प्रकार के पुनरुक्त शब्दों का प्रयोग करते हुए कोई तीन वाक्य बनाइए। यह भी बताइए कि संज्ञा किन स्थितियों में विशेषण के रूप में प्रयुक्त होने लगती है?

उत्तर : 'चार्ली-चार्ली' प्रयोग से पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार प्रयुक्त हुआ है। इसमें चार्ली का अर्थ वास्तविकता है। चेहरा चार्ली-चार्ली हो जाता है, का आशय है चेहरे पर वास्तविकता का भाव उजागर होना।

पुनरुक्त-प्रयोग के तीन वाक्य -

1. क्रोध में चेहरा लाल-लाल दिखाई दे रहा था।

2. नौकर रोज-रोज छुट्टी कर देता है।

3. यहाँ डाल-डाल पर फल लगे हैं।

प्रश्न 2. नीचे दिए वाक्यांशों में हुए भाषा के विशिष्ट प्रयोगों को पाठ के सन्दर्भ में स्पष्ट कीजिए

(क) सीमाओं से खिलवाड़ करना।

(ख) समाज से दुरदुराया जाना।

ग) सुदूर रूमानी सम्भावना।

(घ) सारी गरिमा सुई चुभे गुब्बारे जैसी फुस्स हो उठेगी।

(ङ) जिसमें रोमांस हमेशा पंचर होते रहते हैं।

उत्तर : (क) चार्ली चैप्लिन की फिल्मों का प्रभाव काल, स्थान एवं संस्कृति आदि की सीमाओं से खिलवाड़ कर भविष्य को रेखांकित कर रहा है।

(ख) नानी खानाबदोश, माँ साधारण कलाकार और परिवार अत्यन्त गरीब होने से चार्ली का प्रारंभिक जीवन घुमन्तू बना, इस कारण वह उच्च वर्ग द्वारा दुत्कारा गया था।

(ग) स्ववंशानुगत पूर्व सम्बन्धों के कारण चार्ली की फिल्मों के दृश्य आँखों के सामने सुन्दर रूमानी सम्भावना प्रकट करते हैं।

(घ) चार्ली ने सामन्तों, शासकों एवं उद्योगपतियों का सारा बड़प्पन एकदम ऐसे निकाल दिया जैसे सुई चुभने से गुब्बारा फुस्स हो जाता है।

(ङ) चार्ली की फिल्मों में ऐसे प्रसंगों का चित्रण हुआ है, जिनमें रोमांस किसी-न-किसी हास्यास्पद घटना से मजाक में बदल जाता है।

गौर करें

प्रश्न : (क) दरअसल सिद्धान्त कला को जन्म नहीं देते, कला स्वयं अपने सिद्धान्त या तो लेकर आती है या बाद में उन्हें गढ़ना पड़ता है।

(ख) कला में बेहतर क्या है- बुद्धि को प्रेरित करने वाली भावना या भावना को उकसाने वाली बुद्धि?

(ग) दरअसल मनुष्य स्वयं ईश्वर या नियति का विदूषक, क्लाउन, जोकर या साइड किक है।

(घ) सत्ता, शक्ति, बुद्धिमता, प्रेम और पैसे के चरमोत्कर्ष में जब हम आईना देखते हैं तो चेहरा चार्ली-चाली हो जाता है।

(ङ) मॉडर्न टाइम्स, द ग्रेट डिक्टेटर आदि फिल्में कक्षा में दिखाई जाएँ और फिल्मों में चार्ली की भूमिका पर चर्चा की जाए।

उत्तर : (क) कला तो हृदयगत भावों की सहज अभिव्यक्ति होती है। कला पहले साकार होती है, उसके सिद्धान्त बाद में गढ़े जाते हैं।

(ख) भावना को उकसाने वाली बुद्धि कला में बेहतर है।

(ग) मनुष्य ईश्वर या नियति के अनुसार ही जीवन में सभी भावों एवं क्रियाओं को अपनाता है।

(घ) जीवन-जगत् में वास्तविकता का बोध होने पर प्रत्येक व्यक्ति अपना यथार्थ परिचय पा लेता है।।

(ङ) शिक्षक के सहयोग से फिल्म देखकर चर्चा करें।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न-उत्तर

1. देवानंद ने चार्ली का अनुकरण करते हुए किन फ़िल्मों में अभिनय किया?

A. गाइड और हरे रामा हरे कृष्णा

B. नौ दो ग्यारह और तीन देवियाँ

C. ज्यूल थीफ और जुआरी

D. गैम्बलर और जॉनी मेरा नाम

2. चार्ली की फ़िल्मों की प्रमुख विशेषता क्या है?

A. विदेशी न लगना

B. विदेशी लगना

C. पागल दिखना

D. बुद्धिमान दिखना

3. भारत में स्वयं पर हँसने की परंपरा किस पर्व में देखी जा सकती है?

A. होली

B. दीवाली

C. दशहरा

D. शिवरात्रि

4. चार्ली किस भारतीय साहित्यकार के अधिक नज़दीक हैं?

A. यशपाल

B. जयशंकर प्रसाद

C. प्रेमचन्द

D. अमृतलाल नागर

5. किन दो महान भारतीयों ने चार्ली का सान्निध्य चाहा था?

A. लाल बहादुर शास्त्री और इंदिरा गांधी

B. सरदार पटेल और सुभाष चंद बोस

C. लोकमान्य तिलक और भगत सिंह

D. जवाहर लाल नेहरू और महात्मा गांधी

6. 'चार्ली चैप्लिन यानी हम सब' के लेखक का क्या नाम है?

A. विष्णु खरे

B. हज़ारी प्रसाद द्विवेदी

C. विष्णु प्रभाकर

D. महादेवी वर्मा

7. 'मेकिंग ए लिविंग' फिल्म को बने हुए कितने साल हो चुके हैं?

A. 50 साल

B. 60 साल

C. 75 साल

D. 80 साल

8. चार्ली ने अपनी फिल्मों में किन दो रसों का मिश्रण किया है?

A. वीर रस और रौद्र

B. श्रृंगार रस और वीर रस

C. हास्य रस और वीभत्स रस

D. करुण रस और हास्य रस

9. लेखक के विचारानुसार आने वाले कितने वर्षों तक चार्ली के नाम का मूल्यांकन होता रहेगा?

A. पचास वर्षों तक

B. पच्चीस वर्षों तक

C. साठ वर्षों तक

D. चालीस वर्षों तक

10. चार्ली की फ़िल्में किस पर आधारित हैं?

A. कल्पना पर

B. यथार्थ पर

C. भावनाओं पर

D. विचारों पर

11. चार्ली की जो फ़िल्में हमें अलग प्रकार की भावनाओं का एहसास कराती हैं, उनमें से दो के नाम लिखिए।

A. रेल ऑफ़ सिटी और छिविटेड

B. मेट्रोपोलिस और द रोवंथ सील

C. वीक एण्ड तथा सन्डे

D. पोटिक्स और कोमेक्स

12. चार्ली की माँ किस प्रकार की नारी थी?

A. परित्यक्ता

B. विदूषी

C. लोकप्रिय अभिनेत्री

D. नौकरी पेशा

13. चार्ली की माँ किस प्रकार की अभिनेत्री थी?

A. लोकप्रिय

B. सामान्य

C. सर्वश्रेष्ठ

D. घटिया

14. परिस्थितियों ने चार्ली को किस प्रकार का चरित्र बना दिया?

A. घुमंतू

B. अमीर

C. गरीब

D. शिक्षित

15. चार्ली को किससे संघर्ष करना पड़ा?

A. राजाओं से

B. नेताओं से

C. फ़िल्म निर्माताओं से

D. जटिल परिस्थितियों से

16. चार्ली की नानी कौन थी?

A. अभिनेत्री

B. चीनी

C. शिक्षिका

D. खानाबदोश

17. चार्ली का पिता कौन था?

A. जापानी

B. यहूदी

C. पाकिस्तानी

D. भारतीय

18. चार्ली ने बुद्धि की अपेक्षा किसे महत्त्व दिया?

A. श्रद्धा को

B. भक्ति को

C. भावनाओं को

D. मानवता को

19. बीमार पड़ने पर उसकी माँ ने चार्ली को क्या पढ़कर सुनाया?

A. रामचरितमानस

B. कुरान शरीफ

C. महाभारत

D. बाइबिल

20. किस प्रसंग को सुनकर चार्ली और उसकी माँ रोने लगे?

A. भेड़ के भागने का प्रसंग

B. ईसा के सूली चढ़ने का प्रसंग

C. कसाईखाने का प्रसंग

D. भेड़ के पकड़े जाने का प्रसंग

21. चार्ली के घर के पास क्या था?

A. कसाईखाना

B. स्कूल

C. सरकारी दफ्तर

D. अस्पताल

22. भेड़ के पकड़े जाने पर चार्ली के हृदय में करुणा का भाव उत्पन्न क्यों हो गया?

A. भेड़ के भाग जाने से

B. भेड़ के मरने के डर से

C. भेड़ के गिरने से

D. भेड़ के बच जाने से

23. भारतीय सौंदर्यशास्त्र में हास्य का पात्र कौन होता है?

A. नायक

B. खलनायक

C. विदूषक

D. सहनायक

24. चार्ली से प्रभावित होकर राजकपूर ने कौन-सी दो फ़िल्में बनाईं?

A. मेरा नाम जोकर और संगम

B. जिस देश में गंगा बहती है और अनाड़ी

C. बरसात और तीसरी कसम

D. आवारा और श्री 420

25. चार्ली का अनुकरण करते हुए दिलीप कुमार ने किन फ़िल्मों में अभिनय किया?

A. लीडर और गोपी

B. शराबी और औरत

C. क्रांति और नया दौर

D. कर्मा और गंगा यमुना


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