12th Sanskrit 2. रघुकौत्ससंवादः JCERT/JAC Reference Book
12th Sanskrit 2. रघुकौत्ससंवादः JCERT/JAC Reference Book 2.
रघुकौत्ससंवादः अधिगम
प्रतिफलानि 1
संस्कृतश्लोकान उचितबलाघातपूर्वकं छन्दोऽनुगुणम् उच्चारयति । (संस्कृत
श्लोकों का छन्दानुसार उचित लय के साथ उच्चारण करते हैं।) 2.
श्लोकान्वयं कर्तुं समर्थः अस्ति। (श्लोकों
का अन्वय करने में समर्थ होते हैं।) 3.
तेषां भावार्थं प्रकटयति । (उनके
भावार्थ प्रकट करते हैं।) पाठ
परिचयः प्रस्तुत
पाठ्यांश महाकवि कालिदास द्वारा विरचित रघुवंश महाकाव्य के पंचम सर्ग से संकलित है।
इसमें महाराज रघु एवं वरतन्तु ऋषि के शिष्य कौत्स नामक ब्रह्मचारी के मध्य साकेत नगरी
में हुआ संवाद वर्णित है। कौत्स
वेद, पुराण, वेदाङ्ग, दर्शन आदि 14 विद्याओं का अध्ययन समाप्त करके गुरु दक्षिणा देने
की इच्छा से अपने गुरु वरतन्तु से बार- बार गुरु दक्षिणा लेने की प्रार्थना करता है। गुरु द्वारा गुरु भक्ति को ही गुरु दक्षिणा के रूप में
मानने पर भी कौत्स की निरन्तर प्रार्थना रूपि जिद से रुष्ट होकर वरतन्तु उसे गुरु दक्षिणा
के रूप में 14 करोड़ स्वर्ण मुद्राएं देने की आज्ञा देते हैं। कौत्स विश्वजित् नामक यज्ञ में सर्वस्व दान कर चुके महाराज
रघु के पास गुरूदक्षिणा के लिए धन माँगने आता है। महाराज रघु धनपति कुबेर प…