Rostow Growth Model (रोस्टोव आर्थिक विकास मॉडल)

Rostow Growth Model (रोस्टोव आर्थिक विकास मॉडल)

 

डा0देवेंद्र प्रसाद

सहायक प्राध्यापक अर्थशास्त्र विभाग

पी0के0रॉय मेमोरियल महाविद्यालय, धनबाद

W.W. Rostow ने अपनी पुस्तक "The Stage of Economic Growth" में आर्थिक विकास की उन अवस्थाओं की व्याख्या की है जिस अवस्थाओं से होकर गुजरने के बाद किसी देश का पूर्ण आर्थिक विकास संभव हो सकता है । Adam Smith, Karl Marks, Fredrik Least आदि अर्थशास्त्रियों ने भी आर्थिक विकास की विभिन्न अवस्थाओं की व्याख्या की है । विकासशील देशों में किसी खास अर्थशास्त्रियों ने इन अवस्थाओं का पूर्णरूपेण अनुभव नहीं किया लेकिन रोस्टोव के द्वारा प्रतिपादित आर्थिक विकास की अवस्था अत्यंत लोकप्रिय एवं व्यवहारिक है ।

प्रोफेसर रोस्टोव के अनुसार:-

किसी देश का आर्थिक विकास एक गैर-आर्थिक तत्वों पर निर्भर करता है तथा यह निम्नलिखित प्रवृत्तियों से निर्धारित होता है, जैसे:- आधारभूत विज्ञान यंत्र का विकास, आर्थिक क्षेत्र में विज्ञान का प्रयोग, नवप्रवर्तन को स्वीकार किया जाए एवं वस्तु के विकास की इच्छा आदि ।

 Rostow के आर्थिक विकास की अवस्थाएं :-

(I)            परंपरागत समाज की अवस्था (The Stage of Traditional Society)

(II)          आत्मस्फूर्त से पूर्व की अवस्था (The Stage of Pre Condition of Take off)

(III)          आत्मस्फूर्त की अवस्था (The Stage of Take Off)

(IV)        परिपक्वता की ओर आत्मगत होने की अवस्था (The Stage of drive to Maturity)

(V)          अधिकाधिक उपभोग की अवस्था (The Stage of high mass Consumption)

Stage – I

(1)  परंपरागत समाज की अवस्था (The Stage of Traditional Society):-

प्रारम्भिक अवस्था परंपरागत समाज की स्थैतिक अवस्था होती है जहां तकनीकी की प्रवृत्ति न्यूनतम स्तर पर होता है ।

रोस्टोव के अनुसार :-

“परंपरागत समाज वह समाज की रूपरेखा है जिसमें सीमित उत्पादन फलन के अंतर्गत न्यूटन के पूर्व विज्ञान पावती एवं भौतिक जगत के संबंध में विचारों के आधार पर विकसित हो ।”

परंपरागत समाज की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें लोग सामाजिक जीवन में नवप्रवर्तन को स्वीकार करना नहीं चाहते । आधुनिक तकनीक के प्रयोग के अभाव में इनकी उत्पादकता अत्यंत निम्न होती है।  कृषि में उत्पादन के प्राचीन तरीके का प्रयोग किया जाता है जिसके कारण व्यय अनुत्पादक हो जाता है ।

परंपरागत समाज में अधिकतम प्रति व्यक्ति उत्पादन MA से अधिक तकनीकी विकास का परिचायक है जो प्रथम अवस्था में संभव नहीं है क्योंकि जनसंख्या में वृद्धि माल्थस के नियम के अनुसार होती है ।

Stage-II

(2) आत्मस्फूर्त से पूर्व की अवस्था (The Stage of Pre Condition of Take off):-

रोस्टोव की यह आर्थिक विकास की दूसरी अवस्था है इस अवस्था में आत्मस्फूर्त के लिए आवश्यक शर्तों को पूरा किया जाता है यह अवस्था समाज का वह संक्रमण काल है जिसमें समाज अपने परंपरागत अवस्था से आत्मस्फूर्त की ओर अग्रसर होता है सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक व्यवस्था परिवर्तित होती है ।  रोस्टोव के अनुसार इस अवस्था के लिए निम्नलिखित चार परिवर्तन आवश्यक है :-

 (I) सामाजिक उपरी व्यय संबंधी पूंजी का विकास (Development of social overhead expenditure capital):- इसके अंतर्गत समाज में परिवहन व्यवस्था तथा बाजार का विस्तार होता है।

(II) कृषि के क्षेत्र में तकनीकी क्रांति (Technological revolution in agriculture):- साधन का अभाव नहीं होता है एवं उद्योगों को कच्चे माल की प्राप्ति होती है ।

(III) पूंजीगत वस्तुओं एवं अन्य वस्तुओं के आयात का प्रसार (Expansion of imports of capital goods and other commodities)

(IV) समाज में नए नेतृत्व का विकास (Development of new leadership in society):- जिससे आधुनिक समाज का निर्माण कर सके ।

रोस्टोव ने भी कहा है कि आत्मस्फूर्त वह अंतराल है जिसमें विनियोग की दर इस प्रकार बढ़ती है कि प्रतिव्यक्ति वास्तविक उत्पाद में वृद्धि होती है तथा इस प्रारंभिक वृद्धि से उत्पादन के तकनीक एवं आय के प्रवाह के वितरण में इस प्रकार परिवर्तन होता है कि विनियोग  की दर को निरंतरता प्राप्त होती है जिससे प्रति व्यक्ति उपज में वृद्धि की प्रवृत्ति जारी रहती है ।

  Stage-III

(III) आत्मस्फूर्त की अवस्था (The Stage of Take Off) :-

आर्थिक विकास के सबसे महत्वपूर्ण अवस्था होती है जिसकी अवधि सामान्यत: दो से तीन दशक की होती है । इस अवस्था में आर्थिक क्रांति की विशेषताएं दृष्टिगोचर होती है जिसके परिणामस्वरूप स्वचालित विकास की प्राप्ति होती है ।

आत्मस्फूर्त अवस्था के निम्नलिखित तीन विशेषताएं हैं :-

(I) उत्पादक विनियोग में वृद्धि की दर(Rate of increase in productive investment):-

राष्ट्रीय आय को 10% के आस पास होना चाहिए इसके अंतर्गत प्रतिव्यक्ति आय में वृद्धि की दर जनसंख्या वृद्धि  की दर से ऊंची होनी चाहिए ।

विनियोग की दर अगर OM से कम होती होगी तो जनसंख्या वृद्धि दर प्रति व्यक्ति आय की वृद्धि दर से अधिक होगी इसलिए विकास की अवस्था प्राप्त करने के लिए विनियोग की दर OM से अधिक होनी चाहिए । इस OM को रोस्टोव ने  10% कहा है ।

            भारत में पूंजी उत्पाद 5.1% है जनसंख्या वृद्धि की दर 2.2% प्रतिवर्ष है इसलिए विनियोग 11% होने से प्रति व्यक्ति आय समान दर पर रहेगा । अगर हम 2% विकास दर चाहते हैं तो विनियोग की दर 22% होनी चाहिए ।

(II) अग्रणी देशों का विकास (Development of leading countries):-

            अत्यधिक उत्पादक क्षेत्र को अग्रणी क्षेत्र कहा जाता है अग्रणी क्षेत्रों के विकास से प्रभावपूर्ण मांग, उत्पादन, विनियोग, बचत एवं लाभ की प्राप्ति होती है जिससे दूसरे क्षेत्रों का विकास होता है ।

अग्रणी क्षेत्रों को निम्नलिखित भागों में बांटा जा सकता है:-

(a) प्रारंभिक विकास क्षेत्र (The Preliminary Development area):-

            इसके अंतर्गत उन क्षेत्रों का विकास होता है जिससे नवप्रवर्तन की संभावना होती है, जैसे:- परिवहन साधनों का विकास ।

(b) व्युत्पन्न विकास क्षेत्र (Derived Development Zone):-

            कुल वास्तविक आय, उत्पादन, जनसंख्या आदि के परिणामस्वरूप कृषि, यातायात, स्वास्थ्य, शिक्षा आदि का विकास होता है ।

(c) पूरक विकास क्षेत्र (Complementary development area):-

प्रारंभिक विकास से पूरक क्षेत्रों का विकास होता है, जैसे:- परिवहन, शक्ति आदि के कारण लौह-इस्पात उद्योग, कोयला उद्योग आदि का विकास होता है ।

(III) नये राजनैतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, संस्थागत ढाँचे का उदय (The rise of new political, social, cultural, institutional structures):-

            देश में ऐसे राजनैतिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक ढाँचे का उदय होता है जिससे आधुनिक क्षेत्र का विकास होता है परिणामस्वरूप प्रभावपूर्ण मांग, आय एवं बचत में वृद्धि होती है तथा बचत को गतिशील करने के लिए बैंकिंग संस्थाओं का विकास होता है जिससे साहसी वर्ग विनियोग कर लाभ प्राप्त करता है ।

इस रेखा चित्र में OS बचत की रेखा है जिसकी ढाल कम है यह बताती है कि बचत की सीमांत प्रवृत्ति निम्न है। KoYo पूंजी-उत्पाद अनुपात को प्रतिपादित करता है ।

                 K1Y1 //  K0Y0

जो बतलाता है की पूंजी-उत्पाद अनुपात स्थिर है ।

`\frac{OK_0}{OY_0}=\frac{OK_1}{OY_1}` 

or, `\frac{OK_1}{OY_1}-\frac{OK_0}{OY_0}=\frac{K_1K_0}{Y_1Y_0}` 

K0Y0 की ढाल अधिक है जो अर्थव्यवस्था के निम्न विकास को प्रदर्शित करता है । शून्य काल में उत्पादन OY0 है जो बतलाता है कि OT0 विनियोग है जिसके फलस्वरूप पूंजी भंडार में वृद्धि होगी । परिणामस्वरूप प्रथम अवधि में आय में वृद्धि OY1 होती है जिससे विनियोग बढ़कर OT1 हो जाती है अब किसी बड़े उत्प्रेरक की उपस्थिति से उत्पादक पूंजी का तीव्र गति से वृद्धि होता है ।

 `\frac{OK_2}{OY_2}` < `\frac{OK_1}{OY_1}`

आय में वृद्धि Y1 Y2 होती है जिससे विनियोग OT2 होता है फलस्वरुप आय में और तीव्र गति से वृद्धि होती है इस प्रकार अर्थव्यवस्था का विकास हो जाता है ।

Stage-IV

(4) परिपक्वता की ओर अग्रसर होने की अवस्था (The Stage of drive to Maturity):-

            जब समाज अपने अधिकांश साधनों के विदोहन में आधुनिक तकनीक का प्रयोग करता है तथा कुल राष्ट्रीय आय का 10% से 20% विनियोग किया जाता है जिससे उत्पादन में वृद्धि दर जनसंख्या वृद्धि दर से अधिक होती है ।

इस अवस्था के तीन प्रमुख विशेषताएं हैं

(I) श्रम शक्ति में परिवर्तन (Labor force changes):-

            श्रम शक्ति की संरचना, मजदूरी, योग्यता एवं उत्पादकता में तीव्र गति से वृद्धि होती है कुल जनसंख्या का एक छोटा भाग 28% ही कृषि पर आश्रित रहता है ।

(II) नेतृत्व की प्रवृत्ति में परिवर्तन (Change in leadership trend):-

            योग्य एवं कुशल साहसियों की संख्या में वृद्धि होती है जिससे नए-नए शोध होते हैं ।

(III) पूर्ण औद्योगिकरण (Complete industrialization):-

            समाज पूर्ण औद्योगिकरण के पश्चात नित्य नये परिवर्तन की आशा करता है ।

इस अवस्था में पहुंचने के बाद अर्थव्यवस्था परिपक्व हो जाता है।

Stage -IV

(5) अधिकाधिक उपभोग की अवस्था (The Stage of high mass Consumption):-

            रोस्टव के अनुसार:- “यह अवस्था अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण अवस्था है जिसमें उपभोक्ता टिकाऊ वस्तु एवं सेवाओं की ओर अग्रसर होते हैं ।”

            समाज पूर्ति से मांग की ओर तथा उत्पादन से हटकर उपभोग एवं समाज कल्याण की ओर अग्रसर होता है ।

इस अवस्था में निम्नलिखित परिवर्तन होते हैं: -

(I) वांछित प्रभाव एवं शक्ति की प्राप्ति (Achieve desired effect and strength):- इसके लिए राष्ट्रीय प्रयत्न प्रारंभ हो जाते हैं देश की सुरक्षा एवं विदेशी हस्तक्षेप पर अधिक व्यय किया जाता है ।

(II) कल्याणकारी राज्य (Welfare state):- परिपक्वता की अवस्था तक लोग निजी लाभ को अधिक महत्व देते हैं लेकिन इस अवस्था में सामाजिक कल्याण को महत्व देते हैं ।

(III) उपभोग के स्तर का विकास (Consumption level development):- इसमें समाज उपभोग, स्वास्थ्य, शिक्षा तथा अन्य टिकाऊ वस्तु एवं सेवाओं का प्रयोग करती है ।

उपर्युक्त ग्राफ रोस्टोव के विकास के सभी अवस्थाओं को प्रदर्शित करता है । AB प्रारंभ की अवस्था है जहाँ विकास की गति लगभग स्थिर है क्योंकि लोग परंपरागत समाज से आर्थिक विकास की स्थिति में परिवर्तन लाना नहीं चाहते हैं । BC भाग आत्मस्फूर्त से पूर्व की अवस्था को प्रदर्शित करता है जहाँ से विकास की दर प्रारंभ होती है । CD भाग आत्मस्फूर्त की अवस्था को बतलाता है जहाँ विकास की दर सबसे अधिक है । DE भाग विकास की चौथी अवस्था है जहाँ अर्थव्यवस्था परिपक्व होती है विकास की अंतिम अवस्था पाँचवीं अवस्था है जहाँ देश की आर्थिक एवं सामाजिक आवश्यकतानुसार अर्थव्यवस्था को EF, EG  तथा EH की ओर मोड़ा जा सकता है ।

आलोचनाएँ (Criticisms):-

(I) रोस्टोव के विकास अवस्थाओं में कौन सा देश किस अवस्था में है इसे निर्धारित करना अत्यंत कठिन है ।

(II) रोस्टोव ने अपने विकास मॉडल में विकास के अवरोधक तत्वों को निष्क्रिय करने का कोई उपाय नहीं बताया है ।

(III) किसी खास अवस्था में ही अगले अवस्था की शर्त या विशेषताएँ परिवर्तित होने लगती है । इसकी व्याख्या इन्होने नहीं की ।

(IV) रोस्टोव की यह मान्यता सही नहीं है कि पूंजी-उत्पाद अनुपात स्थिर है ।

(V) अर्द्धविकसित देशों की सबसे बड़ी विशेषता बेरोजगारी की समस्या है जिसे दूर किए बिना आर्थिक विकास संभव नहीं है इसका विश्लेषण रोस्टोव ने नहीं किया ।

भारत एवं रोस्टोव के विकास की अवस्था (State of development of India and Rostow)

            रोस्टोव के अनुसार भारत 1951 से विकास की प्रथम अवस्था में पहुँच गया है तथा 1965-66 तक यह द्वितीय अवस्था में पहुँच गया लेकिन उसके बाद भारतीय अर्थव्यवस्था का संतोषजनक विकास नहीं हो पाया । लेकिन 1990 के बाद से भारतीय अर्थव्यवस्था विकास की ओर तीव्र गति से अग्रसर है देश में जन्म दर में कमी आदि को देखकर यह कहा जा सकता है कि अब आत्मस्फूर्त अवस्था को पूर्ण करने वाला है । हमलोग इस अवस्था को इसलिए पूर्ण कर नहीं पाए हैं क्योंकि अभी भी ग्रामीण क्षेत्रों में व्यापक गरीबी एवं अशिक्षा को दूर करने में समर्थ नहीं हो पाए हैं ।

निष्कर्ष(The conclusion):-

             रोस्टोव के विकास की अवस्था के कुछ दोष हो सकते हैं लेकिन रोस्टोव का विकास मॉडल आज किसी भी विकासशील अथवा विकसित देश में यह लागू हो सकता है ।इससे यह सिद्ध हो जाता है कि रोस्टोव की विकास की अवस्था आर्थिक विकास का व्यवहारिक मॉडल है ।

Post a Comment

Hello Friends Please Post Kesi Lagi Jarur Bataye or Share Jurur Kare