अधिमाँग-सरकारी बजट-विनिमय दर-भुगतानशेष-स्मरण रख (Remember an Excess Demand-Budget-Exchange-Balance)

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11. न्यून (अभावी) और अधि माँग को ठीक करने के उपाय

☼ राजकोषीय नीति (Fiscal Policy): राजकोषीय नीति से अभिप्राय. देश में क्रय शक्ति के प्रवाह को नियंत्रित करने के लिए, सरकार की आय-व्यय नीति (अथवा बजट संबंधी नीति) से है. ताकि स्फीतिक अथवा अवस्फीतिक दबाव को नियंत्रित किया जा सके।

☼ मौद्रिक नीति (MonetaryPolicy): मौदिक नीति से अभिपाय, देश में क्रय शक्ति के प्रवाह को नियंत्रित करने के लिए, सरकार की मुद्रा पूर्ति (अथवा साख पूर्ति) को नीति से है, ताकि स्फीतिक अथवा अवस्फीतिक दबाव को नियंत्रित किया जा सके।

☼ स्फीतिक अंतराल (Inflationary Gap): स्फीतिक अंतराल की स्थिति तब होती है जब पूर्ण रोजगार के स्तर पर समग्र माँग (AD) समग्र पूर्ति ( AS) से अधिक हो जाती है। इसलिए समय माँग अथवा क्रय शक्ति को कम करके स्फीतिक अंतराल की स्थिति को ठीक किया जा सकता है। इसको राजकोषीय नीति के निम्न उपायों द्वारा प्राप्त किया जा सकता है:

(1) सरकारी व्यय को कम करके और

(ii) निजी व्यय को कम करके, निजी व्यय प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष करों की ऊँची दरों द्वारा कम किया जा सकता है। स्फीतिक अंतराल को मौद्रिक नीति द्वारा, देश में मुद्रा को पूर्ति अथवा साख के प्रवाह को प्रतिबंधित करके, भी नियंत्रित किया जा सकता है।

☼ अवस्फीतिक अंतराल (Deflationary Gap): अवस्फीतिक अंतराल की स्थिति तब उत्पन्न होती है जब देश में पूर्ण रोजगार के स्तर पर समग्र पूर्ति (AS) की तुलना में समग्र माँग (AD) कम (Deficient) हो जाती है। इसलिए समग्र माँग को बढ़ा कर अवस्फीतिक स्थिति को ठीक किया जा सकता है। इसको राजकोषीय नीति के निम्न उपायों द्वारा ठीक किया जा सकता है:

(i) सार्वजनिक व्यय में वृद्धि करके (सार्वजनिक निर्माण कार्यक्रम, सार्वजनिक स्वास्थ्य और शिक्षा, तथा कानून एवं व्यवस्था पर व्यय करके) और

(ii) प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष करों को घटा/ कम करके निजी व्यय को बढ़ा कर। इसे नियंत्रित करने के लिए मौद्रिक नीति का सहारा भी लिया जा सकता है, इस नीति में मुद्रा की पूर्ति अथवा साख के प्रवाह को देश में बढ़ाने की जरूरत होगी।

☼ साख प्रवाह में वृद्धि ( Increase in the Flow of Credit): देश में साख के प्रवाह को निम्नलिखित उपायों द्वारा बढ़ाया जा सकता

1. बैंक दर को कम करके।

2. नकद कोष अनुपात को कम करके।

3. सरकारी प्रतिभूतियों की खरीद को प्रोत्साहित करके ताकि प्रतिभूतियों के धारक अधिक नकदी प्राप्त कर सकें।

4. ऋणों के लिए मार्जिन आवश्यकता को कम करके अथवा 'सस्ती मुद्रा नीति' अपना कर भी साख के प्रवाह को बढ़ाया जा सकता है। दूसरी ओर, यदि साख के प्रवाह को कम या प्रतिबंधित करना है, तव उपरोक्त के विपरीत उपाय अपनाए जाने चाहिए। ऐसी स्थिति में 'महँगी मौद्रिक नीति' अपनाई जानी चाहिए।

12. सरकारी बजट तथा अर्थव्यवस्था

☼ बजट (Budget): बजट एक वित्तीय वर्ष (अप्रैल 1 से मार्च 31 तक) में सरकार की अनुमानित आय तथा व्यय का ब्योरा है।

☼ बजट के उद्देश्य (Objectives of the Budget): (a) समानता में वृद्धि करने के लिए आय तथा संपत्ति का पुन: वितरण, (b) सामाजिक कल्याण को अधिकतम करने के लिए संसाधनों का पुन: आवंटन; (c) आर्थिक स्थिरता की प्राप्ति और (d) सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों द्वारा संवृद्धि दर को तीव्र गति से बढ़ाना।

☼ बजट का अर्थव्यवस्था के तीन स्तरों पर प्रभाव (Three Levels at which the Budget impacts the Economy): (a) समग्र राजकोषीय अनुशासन, (b) संसाधनों का आवंटन, (c) सरकारी सेवाओं की उपलब्धि।

☼ बजट की संरचना (Structureof the Budget): (a) राजस्व वजट जिसमें सरकार की राजस्व आय तथा राजस्व व्यय दिखाया जाता है और (b) पूँजीगत बजट जिसमें सरकार की पूँजीगत आय तथा पूँजीगत व्यय दिखाया जाता है।

☼ राजस्व प्राप्तियाँ (Revenue Receipts): राजस्व प्राप्तियाँ वे प्राप्तियाँ होती हैं (a) जिनसे सरकार की परिसंपत्तियों में कोई कमी नहीं होती या (b) सरकार की कोई देयता उत्पन्न नहीं होती है। (उदाहरणतया सरकार की कर प्राप्तियाँ)

☼ पूँजीगत प्राप्तियाँ (Capital Receipts): पूँजीगत प्राप्तियाँ वे प्राप्तियाँ होती हैं जिनसे (a) सरकार की देयता उत्पन्न होती है, (उदाहरणतया सरकार द्वारा लिए गए ऋण) या (b) सरकार की परिसंपत्ति कम होती है. (उदाहरणतया विनिवेश)।

☼ कर (Tax): यह एक ऐसा भुगतान है जो आवश्यक रूप से सरकार को परिवारों, फर्मों या संस्थागत इकाइयों द्वारा दिया जाता है। इसके बदले में किसी सेवा प्राप्ति की आशा नहीं की जा सकती।

☼ प्रगतिशील कर (Progressive Tax): प्रगतिशील कर से अभिप्राय ऐसे कर से है जिसमें आय बढ़ने के साथ साथ कर की दर भी बढ़ती है। इस कर का वास्तविक भार धनी व्यक्तियों पर अधिक तथा निर्धनों पर कम पड़ता है।

☼ प्रतिगामी कर (Regressive Tax): प्रतिगामी कर वह कर हैं जिसमें आय बढ़ने के साथ कर की दर कम होती जाती है। इस कर का वास्तविक भार निर्धन व्यक्तियों पर अधिक तथा धनी व्यक्तियों पर कम पड़ता है।

☼ मूल्य अनुसार कर (Ad Valorem Tax): इस कर का संबंध वस्तुओं तथा सेवाओं के मूल्य के साथ होता है।

☼ विशेष कर (Specific Tax): इसका संबंध वस्तुओं की इकाई (Units of Goods) से है न कि उनके मूल्य से।

☼ प्रत्यक्ष कर (Direct Tax): प्रत्यक्ष कर उस कर को कहते हैं जिसका अंतिम भार उसी व्यक्ति को उठाना होता है जो इसका भुगतान करता है। आय कर तथा संपत्ति कर इसके उदाहरण हैं।

☼ अप्रत्यक्ष कर (Indirect Tax); अप्रत्यक्ष कर वह कर है जो वस्तुओं तथा सेवाओं पर लगाया जाता है। आरंभ में यह उत्पादक/व्यापारी द्वारा चुकाया जाता है किंतु इसके अंतिम भार को कर वाली वस्तु की कीमत में वृद्धि करके वस्तु के अंतिम क्रेता पर डाल दिया जाता है। बिक्री कर इसका उदाहरण है।

☼ राजस्व व्यय (Revenue Expenditure): राजस्व व्यय सरकार द्वारा किए गए उस व्यय को कहते हैं जिसके कारण (a) सरकार की परिसंपत्ति में कोई वृद्धि नहीं होती और (b) न ही सरकार के दायित्व (देयता) में कोई कमी होती है। वृद्धावस्था पेंशन इसका उदाहरण है।

☼ पूँजीगत व्यय (Capital Expenditure): पूँजीगत व्यय सरकार द्वारा किए गए उस व्यय को कहते हैं जिसके कारण (a) सरकार की परिसंपत्तियों में वृद्धि होती है (जैसे सड़कों का निर्माण) और (b) सरकार के दायित्व (देयता) में कमी होती है (जैसे सरकार द्वारा ऋण का भुगतान करना)

☼ योजना व्यय (Plan Expenditure): योजना व्यय उस व्यय को कहते हैं जो सरकार द्वारा देश के योजनाबद्ध विकास कार्यक्रम पर किया जाता है। उदाहरण के लिए, सिंचाई के लिए नहरों के निर्माण पर किया जाने वाला व्यय।

☼ योजनेतर व्यय (Non-Plan Expenditure): योजनेतर व्यय एक ऐसा व्यय है जो देश के योजनाबद्ध विकास कार्यक्रम के अधीन नहीं किया जाता। उदाहरण के लिए, भूकंप पीड़ितों की सहायतार्थ व्यय।

☼ विकास व्यय (Development Expenditure): विकास व्यय वह व्यय जो देश के आर्थिक विकास के लिए किया जाता है और जो अर्थव्यवस्था में वस्तुओं तथा सेवाओं के प्रवाह में प्रत्यक्ष रूप से वृद्धि करता है। उदाहरणतः सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों के विस्तार पर किया जाने वाला व्यय।

☼ विकासेतर व्यय (Non-Development Expenditure): वह व्यय जिसका देश के विकास कार्यक्रमों के साथ कोई संबंध नहीं होता और जो अर्थव्यवस्था में वस्तुओं तथा सेवाओं के प्रवाह में प्रत्यक्ष तौर पर कोई योगदान नहीं देते। उदाहरण: सुरक्षा पर व्यय।

☼ संतुलित बजट (Balanced Budget): कुल व्यय = कुल प्राप्तियाँ।

☼ घाटे का बजट (Deficit Budget): कुल व्यय > कुल प्राप्तियाँ।

☼ बचत का बजट (Surplus Budget): कुल व्यय < कुल प्राप्तियाँ।

☼ राजस्व घाटा (Revenue Deficit): राजस्व प्राप्तियाँ < राजस्व व्यय।

☼ राजकोषीय घाटा (Fiscal Deficit): (राजस्व व्यय + पूँजीगत व्यय) - [राजस्व प्राप्तियाँ + पूँजीगत प्राप्तियाँ (सरकारी ऋणों के अतिरिक्त)

☼ प्राथमिक घाटा (Primary Deficit): राजकोषीय घाटा – ब्याज का भुगतान।

☼ संतुलित बजट (Balanced Budget): समग्र माँग (AD) को अप्रभावित नहीं छोड़ती। AD के बढ़ने की अपेक्षा की जाती है। इसकी तब सिफारिश की जाती है जब अर्थव्यवस्था पूर्ण रोज़गार की स्थिति के समीप होती है।

☼ घाटे का बजट (Deficit Budget): इसकी तब सिफारिश की जाती है जब अर्थव्यवस्था में मंदी की स्थिति हो और AD के बढ़ाने की आवश्यकता है।

☼ बजट का बजट (Surplus Budget): इस की सिफारिश की जाती है जब देश में स्फीतिक अंतराल हो और AD को कम करने की आवश्यकता है।

☼ बजटीय घाटे को रोकने के दो उपाय (Two ways of Containing Budgetary deficit): (a) सरकारी व्यय को कम करना, विशेषकर विकासेतर व्यय को, (b) सरकारी राजस्व की (i) कर, (ii) विनिवेश, (iii) घाटे की वित्त व्यवस्था (या उधार) द्वारा वृद्धि करना।

13. विदेशी विनिमय दर

☼ विनिमय दर (Exchange Rate): विनिमय दर से अभिप्राय अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा बाजार (अथवा अंतर्राष्ट्रीय विनिमय बाजार) में एक करेंसी की अन्य करेंसियों के रूप में कीमत है। उदाहरण: यदि 1 अमेरिकी डालर को खरीदने के लिए 50 रु देने पड़ते हैं तो दोनों करेंसियों की विनिमय दर = 50: 1 होगी।

☼ विनिमय दर की प्रणालियाँ (Systems of Exchange Rate): विनिमय दर को निर्धारित करने की दो प्रणालियाँ हैं- (a) स्थिर विनिमय दर प्रणाली और (b) नम्य विनिमय दर प्रणाली।

☼ स्थिर विनिमय दर (Fixed Exchange Rate): स्वर्ण विनिमय दर तथा विनिमय दर की समंजनीय सीमा प्रणाली स्थिर विनिमय दर प्रणाली के दो महत्वपूर्ण परिवर्तित रूप हैं। विनिमय दर की समंजनीय सीमा प्रणाली (जिसे ब्रेटन वुडस प्रणाली भी कहते हैं। विनिमय दर में कुछ सीमा तक समंजन की अनुमति देती है; यह प्रणाली उतनी कठोर नहीं है जितनी स्वर्ण विनिमय दर प्रणाली।

स्थिर विनिमय दर प्रणाली के गुण (Merits of Fixed Exchange Rate): स्थिर विनिमय दर प्रणाली के मुख्य गुण इस प्रकार हैं: (i) यह अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा बाजार में स्थिरता निश्चित करती है (ii) अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को प्रोत्साहन देती है (1) व्यापार के भागीदारों को समष्टिगत नीतियों में समन्वय स्थापित करती है।

☼ स्थिर विनिमय दर प्रणाली के दोष (Demerits of Fixed Exchange Rate): स्थिर विनिमय दर प्रणाली के मुख्य दोष इस प्रकार है: (i) इसके लिए बहुत अधिक अंतर्राष्ट्रीय निधि की आवश्यकता होती है, (ii) अंतर्राष्ट्रीय बाजार में पूँजी के आवागमन को सीमित करती है. (iii) जोखिम पूँजो को निरुत्साहित करती है और (iv) साधनों के आवंटन में कठोरता लाती है।

☼ नम्य विनिमय दर (Flexible Exchange Rate): विदेशी विनिमय बाज़ार में इसका निर्धारण विभिन्न मुद्राओं की पूर्ति तथा माँग द्वारा होता है।

☼ नम्य विनिमय प्रणाली के गुण और दोष (Merits and Demerits of Flexible Exchange Rate): गुण (Merits): (i) अंतर्राष्ट्रीय निधि कोषों की आवश्यकता नहीं होती, (ii) साधनों का इष्टतम या आवंटन, (iii) अंतर्राष्ट्रीय पूँजी आवागमन (iv) जोखिम पूँजी। अवगुण (Demerits): (1) अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा बाजार में अस्थिरता, (ii) अंतराष्ट्रीय व्यापार में स्थिरता, (iii) समष्टि आर्थिक नीतियों के समन्वय में कठिनाई

☼ नस्य विनिमय दर का निर्धारण (Determination of Flexible Exchange Rate): लोचशील विनिमय दर का निर्धारण अतराष्ट्रीय विनिमय बाजार में विभिन्न करेंसियों की माँग तथा पूर्ति की कीमतों द्वारा होता है। विदेशी विनिमय के लिए माँग (Demand for Foreign Exchange): विदेशी विनिमय की माँग निम्नलिखित कारणों से होती है: (i) अन्तराष्ट्रीय ऋणों का भुगतान करना, (ii) शेष विश्व को उपहार तथा अनुदान देना, (iii) शेष विश्व में निवेश के लिए और (iv) विदेशों से प्रत्यक्ष क्रय के लिए। विदेशी विनिमय की कीमत से इसका विपरीत संबंध है।

☼ विदेशी विनिमय के लिए पूर्ति (Supply for Foreign Exchange): विदेशी विनिमय की पूर्ति निम्नलिखित कारणों से होती है: (i) देश के नियांत (ii) प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (iii) गैर निवासियों के प्रत्यक्ष क्रय (iv) गैर निवासियों के सट्टा हेतु क्रय (v) शेष विश्व में रहने वाले गैर निवासियों से प्राप्त धन। विदेशी विनिमय की पूर्ति का विनिमय दर से प्रत्यक्ष/धनात्मक संबंध है।

☼ संतुलित विनिमय दर (Equilibrium Exchange Rate): संतुलित विनिमय दर तब स्थापित होती है जब विदेशी विनिमय की पृर्ति = विदेशी विनिमय की मांग।

☼ विदेशी विनिमय बाजार (Foreign Exchange Market): यह संसार के विभिन्न देशों की राष्ट्रीय करेंसियों का बाजार है। इसके तीन मुख्य कार्य हैं: (i) हम्नांतरण कार्य (ii) साख कार्य (iii) जोखिम से बचाव कार्य।

☼ हाजिर (चालू) बाजार (Spot Market): हाजिर बाजार वह बाजार है जिसमें विदेशी विनिमय का चालू क्रय-विक्रय होता है। इसमें तात्कालिक विनिमय दर का निर्धारण होता है।

☼ वायदा बाजार (Forward Market): वायदा बाजार का संबंध विदेशी विनिमय के ऐसे क्रय तथा विक्रय से है जिसमें लेन-देन के प्रपत्रों पर हस्ताक्षर तो आज किए जाते हैं किंतु यह लेन-देन भविष्य में किसी दिन पूरा होता है। यह भविष्य की विनिमय दर को परिभाषित करता है।

☼ विनिमय दरों में परिवर्तनशीलता के कारण (Reasons for Volatility in Exchange Rates): (i) अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय बाजारों का विकास, (ii) सूचना प्रौद्योगिकी का विकास, (iii) सट्टा क्रियायों का बढ़ना, (iv) घरेलू ब्याज दरों में तेजी से परिवर्तन।

14. भुगतान शेष

☼ भुगतान शेष (Balance of Payments): भुगतान शेष एक देश तथा विश्व के बीच सभी आर्थिक सौदों का संक्षिप्त विवरण है।

☼ आर्थिक सौदे (Ficconomic Transactions): भुगतान शेष के आर्थिक सौदों का विस्तृत वर्णन इस प्रकार है: (i) दृश्य मदें (ii) अदृश्य मद तथा (iii) पूँजी अंतरण।

☼ व्यापार शेष (Balance of Trade); व्यापार शेष दृश्य निर्यात और दृश्य आयात का अंतर है।

☼ व्यापार शेष और भुगतान शेष में अंतर (Difference between Balance of Trade and Balance of Payments): व्यापार शेष तथा भुगतान शेष में भिन्नता पाई जाती है। व्यापार शेष में केवल दृश्य मदों का रिकार्ड होता है। भुगतान शेष में दृश्य तथा अदृश्य मदों के अतिरिक्त पूँजी अंतरण का रिकार्ड भी पाया जाता है।

☼ भुगतान शेष का चालू खाता तथा पूँजी खाता: (Current Account and Capital Account of BOP): चालू खाते में (1) दृश्य मदों (1) अदृश्य मदों तथा (ji) एक पक्षीय अंतरण का रिकार्ड होता है। पूँजी खाते में उन सब सौदों का रिकार्ड रखा जाता है जो एक देश के निवासियों अथवा उनकी सरकार की परिसंपत्तियों अथवा देनदारियों की स्थिति में परिवर्तन लाते हैं।

☼ स्वायत्त या स्वप्रेरित तथा समायोजक मदें (Autonomous and Accommodating Items): स्वायत्त या स्वप्रेरित मदें उन सौदों से संबंधित होती है जिनका निर्धारण लाभ को ध्यान में रख कर किया जाता है। समायोजक मदों का निर्धारण लाभ को ध्यान में रखकर नहीं किया आता है। इन मदों का ध्येय भुगतान शेष की समानता को पुनः स्थापित करना है।

☼ भुगतान शेष में असंतुलन (Disequilibrium in BOP): यह असंतुलन बचत वाला भी और घाटे वाला भी हो सकता है।

☼ असंतुलन के कारण (Causes of Disequilibrium in BOP): (i) आर्थिक कारक (ii) राजनीतिक कारक और (ii) सामाजिक कारक

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