समष्टि अर्थशास्त्र-आय और उत्पाद- समुच्चय- राष्ट्रीय आय- मुद्रा स्मरण रखे (Remember an Macroeconomics-Income & Product-Aggregates-NI-M)

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1. प्रारंभिक समष्टि-अर्थशास्त्र

☼ समष्टि अर्थशास्त्र (Macroeconomics); समष्टि अर्थशास अर्थशास्त्र, की वह शाखा है जिसमें समस्त अव्यवस्था के स्तर पर आर्थिक समस्याओं (या आर्थिक विषयों) का अध्ययन किया जाता है।

☼ क्लासिकी विचारधारा (The Classical School of Thought), क्लासिकी विचारधारा स्वतंत्र अर्थव्यवस्था में पूर्ण रोजगार को एक सामान्य स्थिति मानती है। जो कि स्वतः ही बनी रहती है।

☼ केन्जियन विचारधारा (The Keynesian School of Thoughty; केन्जियन विचारधारा पूर्ण रोजगार की अर्थव्यवस्था की सामान्य स्थिति नहीं मानती है। इसके अनुसार बेरोजगारी आदि समस्याओं के समाधान के लिए सरकारी हस्तक्षेप आवश्यक है।

☼ मष्टि-अर्थशास्त्र का विकास (Emergence of Macroeconomics); समष्टि अर्थशास्त्र का विकास 1930 के दशक में हुआ जब पूर्ण रोजगार की स्थिति को स्वत: ही बनाए रखने के लिए परंपरावादी समाधान असफल सिद्ध हुआ। केन्द्र की विचारधारा का विकास भी इसी समय हुआ।

☼ व्यष्टि-अर्थशास्त्र, समष्टि-अर्थशास्त्र से भिन्न है (Microeconomics is Different from Macroeconomics)

1. व्यष्टि अर्थशास्त्र व्यक्तिगत स्तर पर चुनाव एवं दुर्लभता की समस्या पर प्रकाश डालता है। इसके विपरीत समष्टि-अर्थशास्त्र समस्त अर्थव्यवस्था के स्तर पर इन समस्याओं पर प्रकाश डालता है।

2. व्यष्टि अर्थशास्त्र में सामूहिकता की मात्रा समष्टि अर्थशास्त्र की तुलना में कम होती है।

3. व्यष्टि और समष्टि अर्थशास्त्र विभिन्न मान्यताओं पर आधारित हैं

4. व्यष्टि अर्थशास्त्र की केंद्रीय समस्या कीमत निर्धारण है जबकि समष्टि अर्थशास्त्र की केंद्रीय समस्या राष्ट्रीय आय और रोजगार का निर्धारण है।

5. व्यष्टि स्तर पर जो इष्टतम है (जैसे एक व्यक्ति की बचत), आवश्यक नहीं कि वह समष्टि स्तर पर भी इष्टतम हो।

☼ व्यष्टि-अर्थशास्त्र तथा समष्टि-अर्थशास्त्र की परस्पर निर्भरता (Interdependence between Microeconomics and Macroeconomics); व्यष्टि अर्थशास्त्र एवम् समष्टि अर्थशास्त्र स्वतंत्र नहीं हैं। वे परस्पर निर्भर हैं।

उदाहरण: (i) एक उद्योग में किया जाने वाला निवेश अर्थव्यवस्था में किए जाने वाले समस्त निवेश पर निर्भर करता है। (ii) सकल माँग व्यष्टि स्तर पर कुल माँग का जोड़ है।

☼ आर्थिक एजेंट (Economic Agent); ये वे व्यक्ति या संस्थाएँ हैं जो आर्थिक निर्णय लेते हैं। इनमें उपभोक्ता, उत्पादक तथा सरकार शामिल हैं।

☼ पूँजीवादी अर्थव्यवस्था (Capitalist Economy): इसकी निम्नलिखित विशेषताएँ हैं: (i) भूमि और पूँजी का निजी स्वामित्व (ii) लाभ अधिकतमीकरण के अनुसार उत्पादन निर्णय, (iii) पूर्ति और मांग की बाजारी शक्तियों स्वतंत्र अताया, (iv) सरकारी हस्तक्षेप, स्थिरता तथा सामाजिक न्याय के साथ संवृद्धि के संपूर्ण नियंत्रण तक सीमित।

☼ अर्थव्यवस्था के चार क्षेत्र (Four Sectors of the Economy): (i) परिवार क्षेत्र, (ii) उत्पादक क्षेत्र, (iii) सरकार क्षेत्र, (iv) शेष विश्व क्षेत्र।

2. आय और उत्पाद के चक्रीय प्रवाह

☼ आय/उत्पाद का चक्रीय प्रवाह (Circular Flow of Income/product): आय/उत्पाद के चक्रीय प्रवाह से अभिप्राय है अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में वस्तुओं और सेवाओं या मुद्रा का प्रवाह। प्रत्येक प्रवाह से ज्ञात होता है कि एक क्षेत्र दूसरे क्षेत्र पर कैसे निर्भर करता है।

☼ वास्तविक प्रवाह (Real Flows): वास्तविक प्रवाह विभिन्न क्षेत्रों में होने वाले वस्तुओं और सेवाओं के प्रवाह को प्रकट करता है।

☼ मौद्रिक प्रवाह या आय प्रवाह (Money Flows or Income Flows): मौद्रिक प्रवाह या आय का प्रवाह विभिन्न क्षेत्रों में मुद्रा के प्रवाह को प्रकट करता है।

☼ आय के प्रवाह को चक्रीय प्रवाह क्यों कहते हैं? (Why the Flow of Income it called a Circular Flow?): आय के प्रवाह को चक्रीय प्रवाह इसलिए कहते हैं क्योंकि: (1) विभिन्न क्षेत्रों में प्राप्तियों और भुगतानों का प्रवाह बराबर होता है और (ii) प्रत्येक वास्तविक प्रवाह जिस दिशा में होता है उसका मौद्रिक प्रवाह उसकी विपरीत दिशा में होता है।

☼ चक्रीय प्रवाह के तीन क्षेत्र (Three Phases of a Circular Flow); किसी अर्थव्यवस्था में चक्रीय प्रवाह मॉडल के तीन क्षेत्र हैं उत्पादन, वितरण एवं व्यय। वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन = आय (लगान, ब्याज, लाभ और मजदूरी के रूप में) का वितरण = वस्तुओं और सेवाओं पर आय का व्यय।

☼ समावेश या भरण (Injections): उपभोग, निवेश और निर्यात चक्रीय प्रवाह के महत्वपूर्ण समावेश या भरण हैं। इन चरों में होने वाली वृद्धि अर्थव्यवस्था में आर्थिक क्रिया के स्तर में वृद्धि करती है।

☼ वापसी या क्षरण (Leakages): बचत, कर और आयात चक्रीय प्रवाह में से होने वाली मुख्य वापसी या क्षरण हैं। इन चरों में होने वाली वृद्धि अर्थव्यवस्था में आर्थिक क्रिया के स्तर कम कर देती है।

☼ चक्रीय प्रवाह मॉडल का महत्त्व (Significance of Circular Flow Model): चक्रीय प्रवाह मॉडल का निम्नलिखित महत्त्व है: (i) विभिन्न क्षेत्रों की परस्पर निर्भरता का ज्ञान, (ii) समावेश और वापसी का ज्ञान, (iii) राष्ट्रीय आय के अनुमान की सुविधा, (iv) महत्वपूर्ण समष्टि चरों का ज्ञान, (v) अर्थव्यवस्था की रचना का ज्ञान।

3. राष्ट्रीय आय एवं संबंधित समुच्चय

☼ कारक आय तथा हस्तांतरण आय (Factor Incomes and Transfer Incomes): कारक आय से अभिप्राय उत्पादन के कारकों की आय से है; जैसे-मजदूरी, लगान, ब्याज तथा लाभ जो क्रमशः श्रम, भूमि, पूँजी तथा उद्यमकर्ता को प्राप्त होता है। हस्तांतरण आय से अभिप्राय उस आय से है जो सेवाओं के पुरस्कार के फलस्वरूप प्राप्त नहीं होती या जिसके बदले में कोई वस्तु या सेवा प्रदान नहीं की जाती। यह एक प्रकार से नकद उपहार, छात्रों को छात्रवृत्ति, वरिष्ठ नागरिकों को वृद्धावस्था पेंशन आदि है।

☼ राष्ट्रीय आय में केवल कारक आय-शामिल होती हैं, हस्तांतरण आय नहीं। (National income includes only Factor Incomes, Not the Transfer Incomes)

☼ राष्ट्रीय उत्पाद/आय की तीन अभिव्यक्तियाँ: (Three Expressions of National Product/Income): (i) अंतिम वस्तुओं तथा सेवाओं का बाजार मूल्य, (ii) उत्पादन के कारकों की आय; जैसे-लगान, ब्याज, लाभ तथा कर्मचारियों का पारिश्रमिक, (iii) अंतिम वस्तुओं तथा सेवाओं पर किए जाने वाले व्यय; जैसे-अतिम उपभोग व्यय, सकल देशीय पूँजी निर्माण तथा निवल निर्यात।

☼ राष्ट्रीय आय तथा देशीय आय के बीच आधारभूत अंतर (Basic Difference between National Income and Domestic Income): राष्ट्रीय आय एक देश के सामान्य निवासियों को प्राप्त होने वाली कारक आय का कुल जोड़ है (चाहे यह आय विश्व के किसी भी भाग में उत्पन्न क्यों न होती हो)। देशीय आय कारक आय का वह कुल जोड़ है जिसका देश की सीमा के अंदर सृजन किया जाता है (चाहे यह आय देश के निवासियों अथवा गैर निवासियों को ही प्राप्त क्यों न होती हो)। राष्ट्रीय आय = देशीय कारक आय - हमारी देशीय सीमा के अंदर गैर-निवासियों को प्राप्त होने वाली कारक आय + देश के निवासियों को देशीय सीमा से बाहर या शेष विश्व से प्राप्त होने वाली कारक आय।

☼ बाजार कीमत पर सकल देशीय उत्पाद तथा कारक लागत पर सकल देशीय उत्पाद में अंतर (Difference between GDPMP and GDPFC): बाजार कीमत पर सकल देशीय उत्पाद और कारक लागत पर सकल देशीय उत्पाद में अंतर पाया जाता है। पहले में “निवल अप्रत्यक्ष कर'' शामिल होते हैं पिछले वाले में नहीं।

☼ जिन मदों को देशीय उत्पाद/आय में शामिल नहीं किया जाता (Items Not Included in National Product/Income): (i) गृहिणियों की सेवाएँ, (ii) पुरानी वस्तुओं का क्रय-विक्रय, (iii) हस्तांतरण भुगतान, (iv) वित्तीय लेन-देन, (v) गैर-कानूनी गतिविधियाँ, (vi) खाली समय की गतिविधियाँ, (vii) मध्यवर्ती वस्तुएँ।

☼ निजी क्षेत्र को प्राप्त होने वाली निवल देशीय उत्पाद से आय (Income from Net Domestic Product Accruing to Private Sector): निजी क्षेत्र को निवल देशीय उत्पाद से प्राप्त आय का अर्थ है श्रमिकों के पारिश्रमिक, प्रचालन अधिशेष तथा मिश्रित आय के रूप में अर्जित निवल देशीय उत्पाद की कारक लागत का वह भाग जो निजी क्षेत्र को प्राप्त होता है।

☼ निजी आय (Private Income): निजी आय वह आय है जो निजी क्षेत्र को सभी स्रोतों से प्राप्त होने वाली कारक आय तथा सरकार से प्राप्त वर्तमान हस्तांतरण और शेष विश्व से प्राप्त वर्तमान हस्तांतरण तथा राष्ट्रीय ऋण पर ब्याज का जोड़ है।

☼ वैयक्तिक आय (Personal Income): वैयक्तिक आय व्यक्तियों द्वारा सभी स्रोतों से वास्तव में प्राप्त कारक आय तथा वर्तमान हस्तांतरण भुगतान का जोड़ है।

☼ व्यक्तिगत प्रयोज्य आय (Personal Disposable Income): व्यक्तिगत प्रयोज्य आय वह आय है जो व्यक्तियों के पास सरकार द्वारा उनकी आय तथा संपत्तियों पर लगाए गए सभी प्रकार के करों का भुगतान करने के बाद बचती है।

☼ राष्ट्रीय प्रयोज्य आय (National Disposable Income): यह शेष विश्व से वर्तमान निवल हस्तांतरण के साथ बाजार कीमत पर निवल राष्ट्रीय आय (NNPMP) के बराबर होती है।

☼ सकल राष्ट्रीय प्रयोज्य आय में चालू प्रतिस्थापन लागत को भी शामिल किया जाता है। सकल राष्ट्रीय प्रयोज्य आय = निवल राष्ट्रीय प्रयोज्य आय + चालू प्रतिस्थापन लागत

☼ चालू पुनर्स्थापन लागत (Current Replacement Cost): इससे अभिप्राय, एक वर्ष की अवधि के दौरान, संपूर्ण अर्थव्यवस्था में परिसंपत्ति के घिसने-पिटने के कारण उनके पुनर्स्थापन से है। यह घिसावट की धारणा है जिसका अनुमान सामूहिक स्तर पर लगाया जाता

4. राष्ट्रीय आय का माप

☼ राष्ट्रीय आय को मापने की तीन विभिन्न विधियाँ (Three Different Methods of Measuring National Income): आय विधि, उत्पाद विधि (मूल्य वृद्धि विधि) तथा व्यय विधि।

☼ आय विधि का प्रयोग करते समय सावधानी (Precaution while Using Income Method): केवल कारक आय को जोड़ो, हस्तांतरण भुगतानों को न जोड़ो। गैर कानूनी क्रियाओं (जैसे जुआ) द्वारा सृजित आय को भी इसमें शामिल न करो।

☼ उत्पाद विधि का प्रयोग करते समय सावधानी (Precaution while Using Product Method): केवल अंतिम वस्तुओं तथा सेवाओं का मूल्य जोड़ें, मध्यवर्ती वस्तुओं तथा सेवाओं के बाजार मूल्य को शामिल न करें। अथवा दोहरी गणना से बचें।

☼ व्यय विधि का प्रयोग करते समय सावधानी (Precaution while Using Expenditure Method): उन अंतिम वस्तुओं में होने वाले व्यय को ही ध्यान में रखें जिनके फलस्वरूप (i) अंतिम उपभोग अथवा (ii) पूँजी निर्माण (या निवेश) होता है। मध्यवर्ती वस्तुओं तथा सेवाओं पर होने वाले व्यय को शामिल न करें। पुरानी वस्तुओं या शेयर व बाण्डों पर किए जाने वाले व्यय की ओर भी ध्यान न दें।

☼ दोहरी गणना- इससे बचना (Double Counting and Avoiding it): दोहरी गणना तब होती है जब सभी उत्पादकों के उत्पादन को जोड़ दिया जाता है, यह ध्यान किए बिना कि एक उत्पादक का उत्पादन दूसरे उत्पादक द्वारा आगत या कच्चे माल के रूप में प्रयोग हुआ है। विभिन्न फर्मों के उत्पादन को जोड़े बिना, 'मूल्य-वृद्धि' को जोड़ कर इससे बचा जा सकता है। मूल्य वृद्धि (Value added) = उत्पादन का मूल्य – मध्यवर्ती उपभोग (जिसका अभिप्राय मध्यवर्ती वस्तुओं और सेवाओं पर व्यय से है)।

☼ 

यह कीमत स्तर में परिवर्तन होने के फलस्वरूप GNP में परिवर्तन को प्रकट करता है। मौद्रिक राष्ट्रीय आय = चालू कीमतों पर राष्ट्रीय आय



☼ GDP कल्याण का उचित सूचकांक नहीं है क्योंकि यह (i) आय के वितरण, (ii) GDP की रचना, (ii) गैर-मौद्रिक लेन-देन तथा (iv) बाह्यताओं (धनात्मक तथा ऋणात्मक) के प्रभाव की अवहेलना करता है।

☼ बाह्यताओं (Externalities) से अभिप्राय, बिना कोई कीमत दिए अथवा दंड के, किसी आर्थिक क्रिया के अन्य लोगों पर पड़ने वाले धनात्मक तथा ऋणात्मक प्रभाव से है।

5. मुद्रा - अर्थ, विकास एवं कार्य राष्ट्रीय आय का माप

☼ वस्तु विनिमय प्रणाली (Barter System of Exchange): मुद्रा की अनुपस्थिति में, वस्तुओं का आदान-प्रदान वस्तुओं से किया जाता था। इसे वस्तु विनिमय प्रणाली कहते हैं। जिस अर्थव्यवस्था में वस्तु विनिमय प्रणाली पाई जाती है उसे “वस्तु-वस्तु अर्थव्यवस्था' (C-Ceconomy) कहा जाता है।

☼ वस्तु विनिमय प्रणाली की कठिनाइयाँ (Difficulties of Barter System): वस्तु विनिमय प्रणाली की कठिनाइयाँ इस प्रकार हैं

(i) इसके लिए दोहरे संयोग की जरूरत होती है जो बहुत कठिन है।

(ii) इसमें विनिमय की समान इकाई का अभाव पाया जाता है।

(iii) स्थगित भुगतान का कोई प्रावधान नहीं होता।

(iv) इसमें मूल्य के संचय का अभाव पाया जाता है।

☼ मुद्रा की परिभाषा (Definition of Money):

(i) कानूनी परिभाषा (Legal Definition) : मुद्रा वह कोई भी वस्तु है जिसे कानून द्वारा मुद्रा घोषित किया जाता है।

(ii) कार्यात्मक परिभाषा (Functional Definition): मुद्रा वह कोई भी वस्तु है जो विनिमय के माध्यम, मूल्य के माप, मूल्य के संचय तथा स्थगित भुगतान के मान का कार्य करती है।

☼ मुद्रा के कार्य (Functions of Money): मुद्रा के विकास से वस्तु विनिमय प्रणाली की सभी सीमाएँ दूर हो गई हैं। मुद्रा के कार्य इस प्रकार हैं:

(i) यह एक विनिमय का माध्यम है, (ii) मुद्रा मूल्य का माप है, (iii) यह स्थगित भुगतानों का माप है, (iv) यह मूल्य का संचय है।

☼ आदेश मुद्रा (Fiat Money): उस मुद्रा को कहते हैं जो सरकार के आदेश के आधार पर जारी की जाती है।

☼ न्यास मुद्रा (Fiduciary Money): वह मुद्रा जिसका आधार प्राप्तकर्ता तथा अदाकर्ता के बीच परस्पर विश्वास होता है।

☼ पूर्ण-कार्य मुद्रा (Full Bodied Money): वह मुद्रा जिसका मौद्रिक मूल्य = वस्तु मूल्य।

☼ साख-मुद्रा (Credit Money): मौद्रिक मूल्य वस्तु मूल्य से अधिक होता है।

☼ भारतीय मौद्रिक प्रणाली (Indian Monetary System) पत्र मुद्रा मान पर आधारित है।

☼ करेंसी का जारी करना (Issue of Currency): भारत में जारी करेंसी न्यूनतम सुरक्षित प्रणाली पर आधारित है। भारत में जारी करेंसी अपरिवर्तनशील (inconvertible) है। निर्गमन अधिकारी इसे सोने या चाँदी में परिवर्तित नहीं करेगा। (i) एक रुपये के नोट के अतिरिक्त बाकी सभी नोट भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा जारी किए जाते हैं। (ii) एक रुपये के नोट तथा सिक्के भारत सरकार (वित्त मंत्रालय) द्वारा जारी किए जाते हैं।

☼ मुद्रा की पूर्ति (Supply of Money): मुद्रा की पूर्ति एक स्टॉक अवधारणा है। किसी समय बिंदु पर जनता के पास उपलब्ध मुद्रा का स्टॉक ही मुद्रा की पूर्ति कहलाता है।

* मुद्रा को जारी करने वाले प्राधिकरण (सरकार तथा देश की बैंकिंग व्यवस्था) के पास मुद्रा के स्टॉक को मुद्रा की पूर्ति का एक भाग नहीं माना जाता।

* M1, M2, M3 तथा M4 भारत में मुद्रा पूर्ति के चार मापक हैं।

M1 = जनता के पास करेंसी + माँग जमाएँ + रिजर्व बैंक के पास अन्य जमाएँ।

M2 = M1 + डाकखाने के बचत बैंकों की जमाएँ।

M3 = M1 + बैंकों की सावधि जमाएँ।

M4 = M3 + डाकखानों की कुल जमाएँ।

*M4 मुद्रा पूर्ति का मापक बहुत विस्तृत कितु सबसे कम तरल है।

• M1 मुद्रा पूर्ति का मापक बहुत तरल किंतु बहुत कम विस्तृत है।

☼ उच्च बालायुक्त मुद्रा (High Power Money) जनता के पास नकद राशि (सिक्के + पत्र मुद्रा) और बैंकों के पास नकद कोष को शामिल किया जाता है।

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